गुरुवार, 18 जून 2020

एक दिन में रिकॉर्ड 13107 मरीज बढ़े, अब तक 3.67 लाख केस; एनआईए में चार महिला कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव

देश में कोरोना मरीजों की संख्या बढ़कर 3 लाख 67 हजार 264 हो गई है। बुधवार को एक दिन में सबसे ज्यादा 13 हजार 107 नए मरीज सामने आए और 341 ने जान गंवाई। दिल्ली में रिकॉर्ड 2414 और उत्तरप्रदेश में 583 रिपोर्ट पॉजिटिव आईं। तमिलनाडु में संक्रमितों का आंकड़ा 50 हजार के पार हो गया। यह महाराष्ट्र के बाद दूसरा सबसे संक्रमित राज्य है।

इस बीच खबर हैं कि केंद्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) में चार महिला कर्मचारी पॉजिटिव मिलीं। इसके साथ अब तक एजेंसी में 8 लोग संक्रमित हो चुके हैं।इससे पहले बुधवारशाम कोदिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई जबकि मंगलवार को उनकी टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई थी। आप विधायक आतिशी भी संक्रमित मिलीं।पूर्व केंद्रीय मंत्री और राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह भी कोरोना की चपेट में आ गए। वहीं, केंद्र के निर्देश परदिल्ली में कोरोना की जांच फीस 2400 रुपए तय की गई है।

5 दिन,जब सबसे ज्यादा मामले आए

तारीख

केस
18 जून 13107
13 जून 12031
14 जून 11374
12 जून 11314
16 जून 11086

5 राज्यों का हाल
मध्यप्रदेश: यहां बुधवार को 161 नए मरीज सामने आएऔर 6 ने जान गंवाई। भोपाल में 49, इंदौर में 44, खरगोन और ग्वालियर में 10-10 रिपोर्ट पॉजिटिव आईं।प्रदेश में संक्रमितों की संख्या 11 हजार 244 हो गई, इनमें से 2374 एक्टिव केस हैं। कोरोना से अब तक 482 लोगों की मौत हुई।

उत्तरप्रदेश:यहां बुधवार कोकोरोना के 583 मरीज बढ़े और 30 मौतें हुईं। लखनऊ में 74, गौतमबुद्धनगर में 54, मेरठ में 44 पॉजिटिव मिले। प्रदेश में संक्रमितों की संख्या 15 हजार 181 हो गई, इनमें से 5477 एक्टिव केस हैं।कोरोना से अब तक 465 ने जान गंवाई। रिकवरी रेट 61% तकपहुंच गया है।

महाराष्ट्र:यहां बुधवार को 3307 मरीज बढ़े और 114 ने दम तोड़ा। मुंबई में 1365, ठाणे में 839 और पुणे में 362 केस बढ़े। प्रदेश में संक्रमितों का आंकड़ा 1 लाख 16 हजार 752 पहुंच गया। इनमें से 51 हजार 922 एक्टिव मरीज हैं। कोरोना से अब तक 5651 मौतें हुईं। महाराष्ट्र में मृत्युदर बढ़कर 3.35% हो गई।

राजस्थान: यहांबुधवार को कोरोना के 326 नए मामले सामने आए और 5 की जान गई। जयपुर में 60, धौलपुर में 55 और जोधपुर में 35 केस बढ़े। राज्य में संक्रमितों का आंकड़ा 13 हजार 542 पहुंच गया, इनमें से 2762 एक्टिव केस हैं। कोरोना से मरने वालों की संख्या 313हो गई।

बिहार: यहांबुधवार को 130 नए संक्रमित मिले और एक भी मौत नहीं हुई। इसके साथ मरीजों की संख्या 6940हो गई, इनमें से 2125 एक्टिव केस हैं। वहीं, अब तक 39 मरीजों की मौत हो चुकी है। राज्य में अब तक एक लाख 27 हजार 86 सैंपल की जांच हुई है। इसके अलावा 4776 मरीज ठीक हुए हैं।



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A record 13107 patients grew in a single day, so far 3.67 lakh cases; Four female employees positive in NIA


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अवंतीपोरा के पाम्पोर इलाके में सुरक्षा बलों ने आतंकियों को घेरा; 2 दिन पहले भी 3 आतंकी मार गिराए थे

जम्मू-कश्मीर मेंअवंतीपोरा के पाम्पोर इलाके में सुरक्षा बलों का आतंकियों से एनकाउंटर चल रहा है। आतंकियों के छिपे होने के इनपुट पर सिक्योरिटी फोर्सेज ने सर्च ऑपरेशन शुरू किया था। इस बीच आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी। सुरक्षा बलों ने मई के आखिरी हफ्ते से ऑपरेशन चला रखा है। दो दिन पहले शोपियां के तुर्कवंगम गांवमें 3 आतंकी ढेर किए थे।

इस महीने 28 आतंकी मारे गए
18 दिन में आज दसवां एनकाउंटर है। इससे पहले 9 एनकाउंटर में 28 आतंकी मारे गए। पिछले दिनों पाकिस्तान से ऑपरेट हो रहानार्को-टेरर रैकेट भी पकड़ा गया। ये रैकेट आतंकियों के लिए फंडिंग में मदद कर रहा था।

बीते 16 दिन में 9 एनकाउंटर
1 जून:
नौशेरा सेक्टर में घुसपैठ की कोशिश करते हुए 3 पाकिस्तानी आतंकियों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया।
2 जून: पुलवामा के त्राल इलाके में 2 आतंकी मारे गए।
3 जून: पुलवामा के ही कंगन इलाके में सुरक्षा बलों ने 3 आतंकियों को ढेर कर दिया।
5 जून: राजौरी जिले के कालाकोट में एक आतंकवादी मारा गया।
7 जून: शोपियां के रेबन गांव में 5 आतंकी मारे गए।
8 जून: शोपियां के पिंजोरा इलाके में 4 आतंकी ढेर।
10 जून: शोपियां के सुगू इलाके में 5 आतंकियों का एनकाउंटर।
13 जून: कुलगाम के निपोरा इलाके में 2 आतंकी मारे गए।
16 जून: शोपियां के तुर्कवंगम गांव में 3 आतंकी ढेर।



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ये फोटो 16 जून का है, उस दिन जम्मू-कश्मीर के शोपियां जिले के तुर्कवंगम गांव में एनकाउंटर हुआ था।


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नक्शे पर भारतीय इलाकों को अपना दिखाता रहा, भारत ने पूछा तो बोला- नया नक्शा बनाने का टाइम नहीं; 63 साल पहले बिना बताए अक्साई चीन से हाईवे निकाला

भारत-चीन के बीच 42 दिन से जारी तनाव अब गहराता जा रहा है। सोमवार रात लद्दाख के पास गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए। इस झड़प में चीन के भी 43 सैनिकों के हताहत होने की खबर है, लेकिन चीन ने अभी तक इसे कबूला नहीं है।

पिछले महीने 5 मई को पूर्वी लद्दाख में दोनों सेनाओं के 200 सैनिक आमने-सामने आ गए थे। तनाव बढ़ने लगा था। फिर दोनों देशों के बीच बातचीत भी हुई और तनाव थोड़ा कम भी हुआ। लेकिन, सोमवार रात को हिंसक झड़प होने के बाद तनाव अब और बढ़ गया है।

लेकिन, ये पहली बार नहीं है जब चीन ने इस तरह की हरकत की हो। चीन मेंकम्युनिस्ट सरकार आने के 10 साल बाद से ही भारत-चीन के बीच सीमा विवाद शुरू हो गया थाऔर इसकी शुरुआत भी चीन ने ही की थी। इसका नतीजा ये हुआ कि भारत तो हिंदी-चीनी भाई-भाई करता रहा, लेकिन चीन बार-बार झगड़ा करने की फिराक में लगा रहा।

चीन की 10 हरकतें
1) अपने नक्शों में भारतीय इलाके दिखाए

भारत और चीन के बीच 1 अप्रैल 1950 से डिप्लोमैटिक रिलेशन हैं। 1949 से लेकर 1958 तक चीन ने कभी सीमाओं को लेकर आपत्ति नहीं जताई। हालांकि, 1954 में चीन की एक किताब 'अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ मॉडर्न चाइना' में छपे नक्शे में चीन ने लद्दाख को अपना हिस्सा बताया।

बाद में जुलाई 1958 में भी चीन से निकलने वालीं दो मैगजीन'चाइना पिक्टोरियल' और 'सोवियत वीकली' में भी चीन ने अपना जो नक्शा छापा, उसमें भारतीय इलाकों को भी शामिल किया गया। भारत ने दोनों ही बार इस पर आपत्ति जताई। लेकिन, चीन ने ये कह दिया कि ये नक्शे पुराने हैं और उनकी सरकार के पास नक्शे ठीक करने का समय नहीं है।

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीन के पहले राष्ट्रपति झोऊ इन-लाई। अप्रैल 1960 में झोऊ भारत दौरे पर आए थे।

2) हमारे इलाकों में ही हमारी सेनाकी तैनाती पर आपत्ति
1954 में चीन ने उत्तरप्रदेश के बाराहोती इलाके में भारतीय सैनिकों की तैनाती पर आपत्ति जताई। उस समय उत्तराखंड नहीं था और ये इलाका उत्तरप्रदेश में ही था। चीन का कहना था कि बाराहोती उसका हिस्सा है, जिसे वो वू-जी नाम से बुलाता था। इसके बाद चीन ने भारतीय इलाकों में घुसपैठ शुरू कर दी।

सितंबर 1956 में चीनी सैनिकों ने शिपकी-ला इलाके (अरुणाचल) में घुसपैठ की। जुलाई 1958 में चीनी सैनिकों ने लद्दाख के पास खुरनाक किले पर कब्जा कर लिया। सितंबर-अक्टूबर 1958 में चीन अरुणाचल प्रदेश के लोहित फ्रंटियर डिविजन के अंदर तक आ गया। भारत ने हर बार आपत्ति जताई।

3) बिना बताए ही भारतीय इलाके में सड़क बना दी
अखबार के माध्यम से भारत को पता चला कि चीन ने शिंजियांग से लेकर तिब्बत के बीच एक हाईवे बनाया है। इसकी सड़क अक्साई चीन से भी गुजरी है, जो भारतीय हिस्से में है। इसे कन्फर्म करने के लिए 1958 की गर्मियों में भारत ने दो टीम अक्साई चीन भेजी। चीन ने पहली टीम को तो गिरफ्तार ही कर लिया।

दूसरी टीम जो लौटकर आई, उसने बताया कि शिंजियांग-तिब्बत हाईवे बनकर तैयार है और उसकी सड़क अक्साई चीन से भी गुजर रही है। इस पर भारत ने 18 अक्टूबर 1958 को चीन को लेटर भी लिखा। चीन का जवाब आया कि जो हाईवे बना है, वो पूरी तरह से चीन के हिस्से में है।

4) चीन के राष्ट्रपति ने भारतीय इलाकों को अपना हिस्सा बताया
पूरी स्थिति पर उस समय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चीन के राष्ट्रपतिझोऊ इन-लाई को पत्रलिखा। इस पर झोऊ ने 23 जनवरी 1959 को जवाब दिया और सीमा विवाद का मुद्दा उठाते हुए दावा किया कि उसका 5 हजार स्क्वायर मील (करीब 13 हजार स्क्वायर किमी) का इलाका भारतीय सीमा में है। ये पहली बार था जब चीन ने आधिकारिक रूप से सीमा विवाद का मुद्दा उठाया। झोऊ ने ये भी कहा कि उनकी सरकार 1914 में तय हुई मैकमोहन लाइन को भी नहीं मानता।

मैकमोहन लाइन 1914 में तय हुई थी। इसमें तीन पार्टियां थीं- ब्रिटेन, चीन और तिब्बत। उस समय ब्रिटिश इंडिया के विदेश सचिव थे- सरहेनरी मैकमोहन। उन्होंने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किमी लंबी सीमा खींची। इसे ही मैकमोहन लाइन कहा गया। इस लाइन में अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा ही बताया था।

हालांकि, आजादी के बाद चीन ने दावा किया कि अरुणाचल तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा है और क्योंकि तिब्बत पर अब उसका कब्जा है, इसलिए अरुणाचल भी उसका हुआ। जबकि, भारत का कहना है कि जो भी ब्रिटिशों ने तय किया था, वही भारत भी मानेगा।

ये तस्वीर 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के समय की है। पहाड़ी इलाका होने की वजह से भारतीय सेना को अपने हथियार लाने-ले जाने में काफी दिक्कतें उठानी पड़ती थीं। चीन ने भी उस समय अचानक हमला कर दिया था। भारत उस समय युद्ध के लिए तैयार भी नहीं था।

5) व्यापारिक समझौते पर भारत ने मना किया, तो युद्ध कर दिया
3 दिसंबर 1961 को चीन ने भारत के सामने एक नया व्यापारिक समझौता पेश किया। इस पर भारत ने साफ कर दिया कि जब तक चीन 1954 से पहले की स्थिति पर नहीं आता और अपने सैनिकों को वापस नहीं बुलाता, तब तक हस्ताक्षर नहीं करेगा। इसका नतीजा ये हुआ कि भारत-चीन के बीच जो पहले व्यापारिक समझौता हुआ था, वो 23 मई 1962 को खत्म हो गया।

1959 के बाद पहली बार 8 सितंबर 1962 को चीन ने मैकमोहन लाइन को पार किया। 13 सितंबर 1962 को चीन ने फिर प्रस्ताव दिया कि अगर भारत समझौते पर हस्ताक्षर करने को तैयार होता है, तो उसकी सेना 20 किमी पीछे जाने को तैयार है। भारत इस पर बात करने को तैयार हो गया। लेकिन, 20 सितंबर को चीन के सैनिक और भारतीय सैनिकों के बीच झड़प हो गई। उसके बाद एक महीने तक बॉर्डर पर तनातनी रही और आखिरकार 20 अक्टूबर 1962 को दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू हो गया। 22 नवंबर 1962 को युद्धविराम हो गया।

6) चीन में भारतीय दूतावास के अधिकारियों को हिरासत में लिया
13 जून 1967 को चीन ने भारतीय दूतावाद के दो अधिकारियों पर जासूसी का आरोप लगाते हुए उन्हें निष्कासित कर दियाऔर भारतीय दूतावास को सीज कर दिया। भारत ने भी यही किया और नई दिल्ली स्थित चीनी दूतावास को सीज कर दिया। बाद में चीन ने भारतीय दूतावास के अधिकारियों को छोड़ दिया।

7) सिक्किम में नाथूला के पास चीनी सैनिकों ने मोर्टार दागे
11 सितंबर 1967 को चीन ने तिब्बत-सिक्किम सीमा के पास नाथूला में मोर्टार दागे। 1962 के युद्ध के बाद ये पहला मौका था, जब चीन ने गोलाबारी और फायरिंग की थी। इतना ही नहीं, चीन ने भारतीय सैनिकों के शव को अपने पास ही रख लिया और 15 सितंबर को उन्हें लौटाया। न सिर्फ नाथूला बल्कि छोला के पास भी भारत-चीन के सैनिकों के बीच लड़ाई हुई। हालांकि, दोनों जगह चीनी सेना को ज्यादा नुकसान पहुंचा। नाथूला में भारत के 88 जवान शहीद हुए थे, जबकि चीन के 300 जवान मारे गए थे। वहीं, छोला में चीन के 40 जवानों की जान गई थी।

8) 1962 जैसी हरकत फिर दोहराने लगा
1980 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वास्तविक रेखा (एलएसी) के पास भारतीय सेना की तैनाती बढ़ा दी। साथ ही विवादित जगहों पर इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का काम भी शुरू करवा दिया। 1984 में भारतीय सेना ने अरुणाचल प्रदेश के पास समदोरांग चू घाटी के पास पैट्रोलिंग बढ़ा दी। उसके दो साल बाद 1986 की सर्दियों में चीनी सेना भी समदोरांग चू घाटी पर तैनात हो गई और वांडुंग में हेलीपैड बना दिया।

चीन की इस हरकत पर उस समय के आर्मी चीफ जनरल के. सुंदराजी ने इलाके में सेना तैनात कर दी। इससे चीनी सेना को पीछे जाना पड़ा। 1987 तक चीन का रुख 1962 की तरह ही रहा और उसकी सेना बार-बार उकसा रही थी। हालांकि, उस समय विदेश मंत्री एनडी तिवारी और प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बातचीत से मसला सुलझा लिया।

जून 2017 में भारत-चीन की सेनाएं डोकलाम के पास 73 दिन तक आमने-सामने थीं। लेकिन, इस दौरान दोनों देशों के बीच हिंसक झड़प नहीं हुई थी।

9) चाल देखिए अरुणाचल के अफसर को वीजा नहीं दिया
चीन शुरू से ही ऐसी चालें चलते आ रहा है, जिससे दुनिया को दिखा सके कि उसकी सीमा से लगे भारतीय हिस्से विवादित हैं। 2007 में अरुणाचल प्रदेश के एक आईएएस अफसर गणेश कोयू को चीन ने वीजा देने से मना कर दिया। गणेश कोयू ने चीन की यात्रा करने के लिए वीजा आवेदन दिया था। लेकिन, चीन ने ऐसा कहते हुए मना कर दिया कि अरुणाचल भी चीन का ही हिस्सा है, इसलिए उन्हें उनके देश में घूमने के लिए वीजा की जरूरत नहीं है।

10) हम सड़क बनाएं तो आपत्ति, खुद सड़क बनाए तो कुछ नहीं
जून 2017 में भारत-चीन की सेनाएं 73दिन तक आमने-सामने थीं। दरअसल, भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों को सड़क बनाने से रोक दिया था। जिस पर चीन का दावा था कि वो अपने इलाके में सड़क बना रहा था। दोनों सेनाओं के बीच डोकलाम इलाके में तनातनी हुई थी। ये इलाका उस जगह है, जहां भारत, चीन और भूटान की सीमा मिलती है। इसे भूटान में डोकलाम और भारत में डोका ला कहते हैं।

(नोट : ये स्टोरी भारत-चीन के संबंधों पर हुई रिसर्च पर आधारित है)



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India China Ladakh Border Map Dispute/Galwan Valley Violence Update | Old Map Of India-China Border Uttar Pradesh To Sikkim Arunachal Pradesh


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जिन्हें क्वारैंटाइन होना चाहिए, पॉजिटिव मरीजों के वो परिजन सड़क पर बैठे हैं; बोल रहे हैं लक्षण के बावजूद कोई हमारी जांच नहीं कर रहा

नवाबों का शहर हैदराबाद कोरोना के मामले में बारूद के ढेर पर बैठा है। तेलंगाना के 34 जिलों की तीन करोड़ से ज्यादा की आबादी के लिए यहां तीन दिन पहले तक सिर्फ एक कोविड हॉस्पिटल था। इस हॉस्पिटल में डॉक्टरों की तो कमी है ही, पैरामेडिकल स्टाफ भी न के बराबर है। राजधानी हैदराबाद के इस गांधी अस्पताल में अब तक 110 डॉक्टर कोरोना से संक्रमित भी हो चुके हैं। यहां के डॉक्टर खुद बताते हैं कि तेलंगाना सरकार ने कोरोना मरीजों और डॉक्टरों को मरने के लिए छोड़ दिया है।

गांधी अस्पताल में अब तक 110 डॉक्टर कोरोना से संक्रमित भी हो चुके हैं। डॉक्टर बताते हैं कि तेलंगाना सरकार ने कोरोना मरीजों और डॉक्टरों को मरने के लिए छोड़ दिया है।फोटो- ताराचंद गवारिया

हैदराबाद की नीना पिछले चार दिन से गांधी अस्पताल के सामने सड़क पर गंदगी में बैठी हैं। इनकी 64 वर्षीय मां कोरोना पॉजिटिव हैं और बीते 13 दिन से अस्पताल में एडमिट हैं। वह बताती हैं कि हमारे पास अपनी मां की कोई खबर नहीं है। हमें नहीं पता कि वह अंदर जिंदा भी हैं या मर चुकी हैं।

नीना कहती हैं कि पहले हम मां को चेस्ट हॉस्पिटल में ले गए थे, लेकिन वहां से हमें गांधी अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया। यहां मां को एडमिट तो किया गया लेकिन अब अंदर क्या हो रहा है, कोई नहीं बताता।

शहर में ऐसे कई लोग हैं जो अपना कोरोना टेस्ट करना चाह रहे हैं, लेकिन हेल्थ डिपार्टमेंट से बार-बार कहने के बाद भी इनकी जांच नहीं हो रही है।फोटो- ताराचंद गवारिया

मोहसिन भी कुछ ऐसी ही कहानी बता रहे हैं। वे कहते हैं, ‘13 दिन हो गए हैं, मां को देखा नहीं है। आखिरी बार जब फोन पर बात हुई तो मां ने बस यह कहा था कि एक बार अंदर आकर मुझे देख ले।’हॉस्पिटल के बाहर मिले एक अन्य शख्स बताते हैं कि उनकी मां कोरोना संक्रमित है। परिवारवालों में भी वैसे ही लक्षण दिख रहे हैं, लेकिन हेल्थ डिपार्टमेंट में कई बार बोलने के बाद भी घरवालों का कोरोना टेस्ट नहीं हो रहा है। वह बताते हैं कि कायदे से तो हम लोगों को क्वारैंटाइन होना चाहिए लेकिन हैदराबाद में तो सब को बम बनाकर सड़कों पर छोड़ रखा है।

गांधी अस्पताल के बाहर बैठे इन लोगों की तकलीफों का कारण डॉक्टर या हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन नहीं बल्कि राज्य सरकार है। यहां के डॉक्टरों का तो यही कहना है। डॉक्टर बहुत कम है, पैरामेडिकल स्टॉफ न के बराबर, 12-12 घंटे काम कर रहे हैं।

हेल्थ रिफॉर्मिग डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. महेश बताते हैं, "यहां सबसे बड़ी दिक्कत है कि हमारे पास मैनपावर नहीं है। डॉक्टर 12-12 घंटे की डयूटी कर रहे हैं। काम का दबाव भी है और तनाव भी। पैरामेडिकल स्टाफ तो न के बराबर है। तेलंगाना की जनता के लिए यहां कुल 450 डॉक्टर हैं, जिनमें से 110 कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। कुछ सीनियर डॉक्टर्स भी अब 20 जून से शुरू होने वाले पीजी एग्जाम को कंडक्ट करवाने में लगे हुए हैं। कुल मिलाकर यहां हालत खराब हो रहे हैं।

सिर्फ 150 हॉस्पिटल बेड बढ़े, मरीजों के मुकाबले यह बहुत कम है
गांधी अस्पताल की डॉ जैनब बताती हैं, "हाल ही में एक हजार बैड के इस अस्पताल की सातवीं और तीसरी मंजिल को आईसीयू में कन्वर्ट किया गया है। एक अन्य बिल्डिंग को भी आईसीयू में बदल दिया गया है। ग्राउंड फ्लोर में ऑक्सीजन पोर्ट्स लग रहे हैं। इस तरह करीब 150 अतिरिक्त बैड लगाए गए हैं। लेकिन कोरोना मरीजों की बढ़ रही तादाद के सामने यह इंतजाम कुछ भी नहीं है, क्योंकि यहां डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की संख्या उतनी ही है, जितनी पहले थी।

अस्पताल में स्टाफ और डॉक्टरों की कमी के कारण लोगों की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।फोटो- ताराचंद गवारिया

मुख्यमंत्री के बेटे की साख बनी रहे, इसलिए हैदराबाद के आंकड़े छिपाए जा रहे
नाम न बताने की शर्त पर हॉस्पिटल के डॉक्टर कहते हैं कि तेलंगाना सरकार कोविड को लेकर सही आंकड़े पेश नहीं कर रही है। खासकर हैदराबाद शहर के आंकड़ें छिपाए जा रहे हैं। यह इसलिए क्योंकि हैदराबाद को चलाने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री के बेटे और आईटी मंत्री की है। उनके राजनीतिक करियर के लिए हैदराबाद की जनता के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इसका उदाहरण हम इससे समझ सकते हैं कि राज्य सरकार हैदराबाद के कोरोना मरीजों का डेटा रिलीज न करके ग्रेटर हैदराबाद के नाम से डेटा बताती है जिसमें तीन जिले और आते हैं और इनमें भी सही आंकड़े नहीं होते हैं।

लोगों को अपने परिजनकी जानकारी नहीं मिलती, डेड बॉडी एक्सचेंज हो रही
गांधी अस्पताल प्रवासियों और आम लोगों की मदद कर रही हैदराबाद की खालिदा प्रवीनबताती हैं कि आलम यह है कि बीते दस दिन में गांधी अस्पताल में कई मर्तबा डेड बॉडीज एक्सेंच हो चुकी हैं। किसी की डेड बॉडी किसी और को दे दी जाती है। दो मामले ऐसे आए हैं कि लोगों ने खुद गांधी अस्पताल में अपने परिजन को भर्ती करवाया, लेकिन वह जिंदा है या मर गया और मर गया है तो उसकी डेड बॉडी कहां है, इसकी कोई खबर नहीं है। खालिदा के मुताबिक, इसकी एक वजह यही है कि यहां स्टॉफ नहीं है और डॉक्टरों पर काम का दबाव और तनाव दोनों ही बहुत ज्यादा है।

लोगों का आरोप है किसरकार हैदराबाद के कोरोना मरीजों का डेटा रिलीज न करके ग्रेटर हैदराबाद के नाम से डेटा बताती है , जिसके आंकड़े सही नहीं होते हैं।फोटो- ताराचंद गवारिया

सरकार कहती है, हर दिन 8-10 मरीज मर रहे, जबकि इनकी संख्या 25 से ज्यादा है: डॉक्टर
हैदराबाद के गांधी अस्पताल की एक पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टर ने तो जो बताया वह चौकाने वाला नहीं बल्कि डराने वाला है। वे बताती हैं, "हैदराबाद का क्या होगा यह कुछ ही दिनों में पता चल जाएगा। कोरोना मरीजों की गिनती और मरने वालों की तादाद का गलत आंकड़ा दिया जा रहा है। मीडिया को बताया जा रहा है कि हर दिन 8 से 10 लोग कोरोना से मर रहे हैं जबकि मरने वालों की तादाद हर दिन 25 से ज्यादा है। कोविड रिपोर्ट आने से पहले जो लोग मर रहे हैं उनका तो आंकड़ा भी नहीं है।"

हेल्थ डायरेक्टर का पूरे राज्य में 30 कोविड सेंटर होने का दावा
पब्लिक हेल्थ डायरेक्टर श्रीनिवास राव बताते हैं कि शुरूआत में कोरोना के ग्रामीण इलाकों से केस नहीं आ रहे थे इसलिए सिर्फ गांधी अस्पताल में ही कोरोना ट्रीटमेंट सेंटर बनाया गया था। लेकिन जैसे-जैसे केस बढ़ते गए हमने जिलों में कोरोना टेस्ट करने शुरू कर दिए। कोरोना के लक्षण दिखने पर लोगों को घरों में ही क्वारैंटाइन किया जा रहा है। पूरे राज्य में कोविड ट्रीटमेंट के लिए 30 सेंटर बनाए गए हैं।

हालांकि गांधी अस्पताल के डॉ. लोहित तजूटा इस दावे को खारिज करते हैं। वे कहते हैं कि सरकार ने हर जिले में कोविड ट्रीटमेंट सेंटर बनाने की हमारी मांग मानी तो थी लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ। हालत वही है। आज भी हर जिले से मरीज गांधी अस्पताल ही आ रहे हैं।



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हैदराबाद की नीना पिछले चार दिन से गांधी अस्पताल के सामने सड़क पर गंदगी में बैठी हैं। इनकी मां कोरोना पॉजिटिव हैं और 13 दिनों से अस्पताल में भर्ती है, लेकिन नीना को इस बात की जानकारी नहीं है कि उनकी मां जिंदा है या नहीं।


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1 लाख करोड़ के खजाने वाले पद्मनाभ मंदिर में पैसों की किल्लत, दान की कमी से रोजमर्रा के कामों पर असर, सरकार और राजपरिवार से मांगी जाएगी मदद

करीब एक लाख करोड़ की संपत्ति वाला तिरुवनंतपुरम का पद्मनाभस्वामी मंदिर इन दिनों भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा है। 25 मार्च से मंदिर लॉकडाउन के चलते बंद है। हर महीने आने वाला 5 से 7 करोड़ के दान का आंकड़ा चंद हजार रुपएमें सिमट गया है। मंदिर का खर्च 1.50 करोड़ रुपए महीना है। ऐसे में मंदिर प्रबंधन अब सरकार और त्रावणकोर राज परिवार से सहायता मांगने पर विचार कर रहा है। स्टॉफ और पुजारियों की सैलेरी का ही खर्च लगभग एक करोड़ रुपए महीना है।

मंदिर को खोलने का फैसला 30 जून के बाद ही होगा। जून के अंतिम सप्ताह में मंदिर प्रशासन समिति की मीटिंग में आर्थिक संकट से उबरने के लिए प्रस्तावों पर चर्चा होगी। मंदिर समिति के सामने इस समय आर्थिक संकट से निपटना ही सबसे बड़ी चुनौती है। मार्च अंत में बंद हुए मंदिर के सामने अर्थ संकट अप्रैल से ही शुरू हो गया था। उस समय मंदिर के दान का आंकड़ा सात लाख तक आ गया था। और इस समय तो दान नहीं के बराबर ही है।

  • इंक्रीमेंट की बजाय 20 प्रतिशत सैलेरी में कटौती

अप्रैल में अमूमन सैलेरी में इंक्रीमेंट होता है लेकिन पद्मनाभस्वामी मंदिर के 150 से ज्यादा पुजारियों की तनख्वाह में 20 प्रतिशत की कटौती की गई है। हालांकि मंदिर के प्रशासक वी. रथेसन के मुताबिक वेतन का कुछ हिस्सा रोका गया है। स्थितियां सामान्य होने पर ये हिस्सा जारी कर दिया जाएगा। इससे मंदिर जुलाई तक अपने जरूरी खर्च निकालसकेगा। क्योंकि जुलाई में मंदिर खुलने पर भी श्रद्धालुओं की संख्या सीमित ही रहेगी।

  • ट्रस्ट से 5 लाख और सरकारी अनुदान 25 लाख रुपए

मंदिर को अपने ट्रस्ट से 5 लाख रुपए सालाना मिलते हैं, वहीं सरकारी अनुदान में लगभग 25 लाख रुपए मिलते हैं। मंदिर समिति इस राशि को बढ़वाने की मांग पर भी विचार कर रही है। सरकारी अनुदान 25 लाख से बढ़ाकर 2 करोड़ रुपए सालाना करने की मांग की जा रही है।

पद्मनाभस्वामी मंदिर उन चुनिंदा मंदिरों में से है जिनका उल्लेख एक से ज्यादा ग्रंथों में है। पद्मनाभ मंदिर का जिक्र ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण, वाराहपुराण सहित 8 पुराणों और महाभारत में मिलता है। मंदिर 5000 साल से ज्यादा पुराना माना जाता है।
  • राजपरिवार पद्मनाभ का दास

त्रावणकोर के राजपरिवार ने ही 16वीं शताब्दी में इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। 17वीं शताब्दी में राजा मार्तंड वर्मा ने खुद को पद्मनाभस्वामी का दास घोषित कर दिया था। तभी से राज परिवार के सदस्यों में पुरुषों के नामों के साथ पद्मनाभ दास और महिलाओं के साथ पद्मनाभ सेविका जोड़ा जाता है। इस कारण मंदिर समिति को उम्मीद है कि राजपरिवार से इस संकट काल में सहायता मिलेगी।

  • सोने के एक-एक सिक्के की कीमत ढाई करोड़ से ज्यादा

2011 में मंदिर के तहखानों से मिले खजाने में कई बहुमूल्य रत्न और सोने के सिक्के मिले थे। करीब 800 किलो सोने के सिक्के दूसरी शताब्दी के हैं। पुरातत्व विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक-एक सिक्के की कीमत ढाई करोड़ रुपए से ज्यादा आंकी गई है। इसके अलावा भी कई दुर्लभ कलाकृतियां और रत्न मिले हैं। इनकी कीमत करोड़ों में है।



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त्रावणकोर के राजपरिवार ने ही 16वीं शताब्दी में पद्मनाभस्वामी मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। (फाइल)


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नेहरू से मोदी तक दोस्ती तो खूब दिखाई, लेकिन सिर्फ नारा ही बनकर रह गया हिंदी-चीनी, भाई-भाई

20 जवानों की शहादत के बाद भारत और चीन के रिश्ते गलवान घाटी के ऐसे संकरे दर्रे में फंस गए हैं जहां सेभरोसे वाले पांव जमाकरसाथ निकलना अब संभव नहीं। 15 जून की दुखद घटना के 48 घंटों के बाद अब फिर से इतिहास के पन्ने पलटे जा रहे हैं, और देखा-समझा जा रहा है कि क्या वाकई, अपने सामान की तरह चीन 'यूज एंड थ्रो' वालेसस्ते रिश्तों में यकीन रखता है?

कथनी-करनी-कम्युनिस्ट

बाकी दुनिया के लिए चीन हमेशा से एक पहेली बना हुआ है। नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक भारत भीअपने बड़े भाई जैसे लगने वाले पड़ोसी देश को समझ नहीं पाया। वजह साफ है क्योंकि,चीन की कम्युनिस्ट सरकार कीकथनी और करनी में बहुत अंतर है, जिसके सबूत उसके नेता बीते 70साल में हर मौके परभारत को धोखा देकर देतेरहे हैं।

ड्रैगन-पानी-आग

मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले 67 साल में सिर्फ पांच प्रधानमंत्रियों ने चीन का दौरा किया था। इनमें पंडित नेहरू, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव,अटल बिहारी वाजपेयीऔर मनमोहन सिंह शामिल हैं।इसी पड़ताल में तलाशी गईं कुछ पुरानीतस्वीरें और उनकी कहानी, जो यही बात दोहराती है कि चीनी ड्रैगन दिखाता तो शांति और मित्रका का ठंडापानी है, लेकिन आखिर मेंउगलता आग ही है।

तस्वीरों की ये कहानी मोदी से नेहरू तक चलेगी, और उसमें सबसे ऊपर वह तस्वीर जिसके लिए खुद मोदी निशाने पर हैं, जो पीएम रहते चीनी राष्ट्रपति से कुल18 मुलाकातों में रिश्ते सुधारने की भरसक कोशिश कर चुके हैं।

साल 2014- झूला तो झूले, पर सिर्फ दिखावे के लिए:मई 2014 में गुजरात के नरेंद्र भाई देश के मोदी हो गए। शपथ समारोह में ही तमाम पड़ोसियों को बुलाकर यह समझाया कि भारत आपके लिए कितना जरूरी है। मौके की नजाकत और बाजार देखचार महीने बाद सितंबर 2014 में चीनी राष्ट्रपति भी दौड़े आए। होमवर्क के माहिरपीएम मोदी ने बहुत संजीदगी से मेजबानी निभाई, जिसका गवाह अहमदाबाद मेंसाबरमती का किनारा बना। जिनपिंग ने गांधी आश्रम में चरखा चलाया और बाद में मोदी के साथ पक्की दोस्ती दिखाते हुए हिंडोले में झूले। 12 समझौते किए और 20 अरब डॉलर निवेश का वादा भी किया और आगे के 5 साल ऐसा बहुत कुछ हुआ भी, लेकिन डोकलाम में इस दोस्ती की परीक्षा हुई और नतीजा गलवान में आया।
साल- 2019 ऐतिहासिक जगह मिले, पर इतिहास नहीं बदला: साबरमती नदी के तटसे शुरू हुए भारत-चीन के रिश्ते 5 साल मेंबंगाल की खाड़ी तक पहुंच गए। मई 2019 में देश की दोबारा बागडोर संभालने के बादपीएम मोदी और शी जिनपिंग की अक्टूबरमें महाबलीपुरम में अनौपचारिक मुलाकात हुई थी। चीन की सत्ता में 7 साल से जमेजिनपिंग की मोदी सेयह तीसरी मुलाकात थी। समुद्र किनारे ऐतिहासिक नगर की पृष्ठभूमि में दोनों नेताओं ने नारियल पानी पिया, बच्चों से मिलेऔर करीब6 घंटे तक बातचीत भीकी। गलवान से 7 महीने पहलेजिनपिंग का ये दौराभारत और चीन के रिश्तों की आखिरी सुखद याद कहा जाएगा।
साल 2015 - टेराकोटा की मूर्तियों में रिश्तों की तलाश:पीएम मोदी अपने पहले कार्यकाल में सबसे पहले भूटान गए थे और फिर नेपाल। चीन से रिश्ते साधने में उन्होंने धीरज और चतुराई दिखाई। चीनी राष्ट्रपति के भारत दौरे के 8 महीने बाद मोदी बतौर पीएम चीन गए। राष्ट्रपति जिनपिंग भी मोदी के मेजबानी मॉडल पर चले और एहसान उतारने मित्र को भव्य स्वागत के साथ होमटॉउन शियान ले गए। हर मौके को तस्वीर बना देने में माहिर हमारे पीएम की चीन के टेराकोटा वॉरियर्स संग्रहालय की ये तस्वीर खूब वायरल हुई। इसमें मोदी चीनी सैनिकों की मूर्तियों को निहार रहे थे, उन्हें छूकर ऐसे देख रहे थे, मानो उनसे बाते करना चाहते हों। इसके बाद उनकी चीनी नेताओं से खूब मुलाकातें हुईं, दोस्ती की नई इबारतें और मूर्तियां लगाने के वादे हुए।
अप्रैल 2018 - रिश्तों के सुर साधते मोदी-जिनपिंग:27 अप्रैल 2018 की ये तस्वीर पीएम मोदी की चौथी चीन यात्रा की है और जगह है कोरोनावायरस वाले वुहान शहर का हुबेई म्यूजियम। ये यात्रा इसलिए ऐतिहासिक रही कि मोदी के स्वागत में गर्मजोशी दिखाने के लिए जिनपिंग ने पहली बार देश का प्रोटोकॉल तोड़ दिया।मोदी के लिहाज से भी यात्रा ने रिकॉर्ड बनाए क्योंकि हमारे पीएम सबसे ज्यादा चौथी बार चीन का दौरा करने वाले पहले नेता बन गए थे। इस मौके परदौरान मोदी ने चीन के सामने 21वीं सदी के पंचशील की नई व्याख्या पेश की थी।
1953 का पंडित नेहरू का पंचशील सिद्धांत :पंडित नेहरू ने 1953-54 में चीन के साथ रिश्ते सुधारने का जो पंचशील सिद्धांत दिया था उसके मुताबिक: 1. एक दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान, 2. परस्पर आक्रामकता से बचना , 3. एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना, 4. समान और परस्पर लाभकारी संबंध, 5. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व बनाए रखना। 2018 का मोदी का पंचशील सिद्धांत-"अगर हम समान विजन, मजबूत रिश्ते, साझा संकल्प, बेहतर संवाद और समान सोच के पांच सिद्धांतों वाले पंचशील के इस रास्ते पर चलें तो इससे विश्वशांति, स्थिरता और समृद्धि आयेगी।
जून 2018: तस्वीरों में दोस्ती के रंग-9 जून को बीजिंग में शंघाई समिट में भाग लेने के लिए पीएम मोदी फिर से चीन पहुंचे। इससे मात्र 42 दिनों में चीन के दो दौरे करने का नया रिकॉर्ड भी बन गया। दुनिया में मोदी-शी के दोस्ती के चर्चे और बढ़ने लगे। चीन को ट्रेड वॉर में घेरने में लगे ट्रम्प भी इस दोस्ती से घबराए। मोदी का ये पांचवा और गलवान से पहले का आखिरी चीन दौरा था, जिसमें उन्होंने अपने मित्र काे थोड़ा नाराज भी कर दिया क्योंकि भारत ने चीन केबेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव(बीआरआई) प्रोजेक्ट को समर्थन देने इससे इनकार कर दिया था। चीन ने इस परियोजना के लिए 80 देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से समझौते किए हैं और पूरे दक्षिण एशिया में अकेला भारत इससे बाहर है। हालांकि इस दौरे में जिनपिंग ने नवंबर 2019 में दूसरी भारत यात्रा का निमंत्रण स्वीकार कर लिया था।
नवंबर 2019 - नए रिश्तों की आखिरी तस्वीर: 13 नवंबर 2019 की ब्राजील की राजधानी की ये तस्वीर इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी समय चीन में कोरोना दस्तक दे रहा था। मोदीब्राजील में 11वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने गए थे और इस दौरान शी जिनपिंग से अपनी 18वीं मुलाकात भी कर आए। इस मुलाकात के बाद दोनों नेताओं के बीच सिर्फ फोन पर बात हुई है। कोरोना के कारण दुनिया का भारी दबाव झेल रहा चीन इतनी जल्दी भारत के साथ आधी सदी पुराना सीमा विवाद सुलगाने में लग जाएगा, ये शायद ही किसी ने सोचा था।
जनवरी, 2008 - मनमोहन की पहली यात्रा:यूपीए-1 में पीएम डॉ. मनमोहन सिंह ने चीन की अपनी पहली अधिकारिक द्विपक्षीय यात्रा 13 से 15 जनवरी के दौरान की।इस दौरानदोनों देशों ने 21वीं सदी के लिए साझा दृष्टिकोण पर संयुक्त दस्तावेज जारी किया। इसके बाद 26-31 मई, 2010 को भारत कीराष्ट्रपतिप्रतिभा पाटिलने चीन का दौरा किया। 15-17 दिसंबर, 2010 को चीनी प्रधानमंत्री बेन जियाबाओ भी भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच छह समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। 2015 तक द्विपक्षीय कारोबार को 100 अरब डॉलर का लक्ष्य निर्धारित किया गया। ये तमाम यात्राएं भारत और चीन संबंधों में ज्यादा गर्मी नहीं ला पाईं,क्योंकि उस दौर मेंदोनों ओर से राजनीतिक इच्छाशक्ति कमजोर थी।
1998 से 2005 के बीच का दौर - गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री की पहली चीन यात्रा:मई, 1998 में पहली अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा पोखरण में परमाणु विस्फोट किया गया। भारत को परमाणु ताकत का दर्जा देने वाली यह घटना पड़ोसी को अच्छी नहीं लगी। उसकी तीखी प्रतिक्रिया ने दोनों देशों के बीच संबंधों को करीब झुलसा ही दिया। जून, 1999 में तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने चीन दौरा किया। इस दौरे में दोनों पक्षों ने एक दूसरे को धमकी न देने के वचन को दोहराया। मई-जून, 2010 में तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन की यात्रा से दोनों के बीच उच्च स्तरीय आदान-प्रदान की वापसी हुई। जनवरी, 2002 में चीनी प्रधानमंत्री झू रोंगजी भी भारत आए और फिर से संबंधों को नई हवा मिलने लगी। 2003 में पहली एनडीए सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहली चीन यात्रा के दौरान दोनों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने के एक विजन डॉक्यूमेंट पर हस्ताक्षर किए गए। सीमा विवाद को सुलझाने के लिए विशेष प्रतिनिधियों की नियुक्ति हुई। अप्रैल, 2005 में चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ की यात्रा के दौरान दोनों देशों के संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर हुए। नवंबर, 2006 में चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई क्षेत्रों में सहमति का संयुक्त घोषणापत्र जारी किया गया।
1991 से 1996 का दौर- राष्ट्र प्रमुखों की आवाजाही शुरू हुई: यह आर्थिक उदारीकरण की आहट का दौर था। दुनिया के बाजार खुल रहे थे और चीन बाजार के हिसाब से अपनी नीतियांबदल रहा था।दिसंबर,1991 में चीन के प्रधानमंत्री ली पेंग ने भारत दौरा किया। इसके बादमई,1992 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमण चीन की राजकीय यात्रा पर गए थे। राष्ट्राध्यक्ष स्तर पर दोनों देशों के बीच यह पहली यात्रा थी। इसके बादतत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने चीन का अपना पहला दौरा किया। उनकी इस यात्रा के दौरान भारत - चीन सीमा क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति एवं अमन चैन बनाए रखने पर महत्वपूर्ण करार पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसमें प्रावधान किया गया था कि दोनों पक्ष सीमा पर यथास्थिति औरएलएसी का सम्मान करेंगे।नवंबर, 1996 में चीनी राष्ट्रपति जियांग जेमिन ने भारत का राजकीय दौरा किया। यह चीन के राष्ट्राध्यक्ष की पहली भारतयात्रा थी।
1976 से 1988 का दौर - भारत ने 1962 के जख्म भुला कर नई शुरुआत की:अक्साई चिन-गलवान घाटी को लेकर लड़े गए 1962 के युद्ध के बाददोनों देशों के बीच खत्म हो चुके राजनयिक संबंध अगस्त, 1976 में बहाल हुए। इसका आगाज तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की फरवरी, 1979 के चीन दौरे से हुआ। इस दौरे के बाद 1981 में चीनी विदेश मंत्री ज्जांग हुआ ने भारत की यात्रा की। 19 साल बाद फिर से भारत-चीन करीब आने लगे। भारत में ये आपातकाल की राजनीतिक उथल-पुथल के बाद का इंदिरा युग था। लेकिन, इंदिरा गांधी ने कभी चीन पर वैसा भरोसा नहीं किया जो उनके पिता पंडित नेहरू ने किया था। इंदिरा कभी चीन यात्रा पर नहीं गईं। हालांकि इंदिरा की हत्या के बाद राजीव गांधी ने अपने नाना के पंचशील को आगे बढ़ाने की पहल की।दिसंबर, 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन गए। 1962 युद्ध के 26 साल बाद रिश्तों में आई खटास दूर करने के लिए राजीव बीजिंग पहुंचे थे। इस दौरे से दोनों पक्षों के बीच सभी क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों के विस्तार एवं विकास पर सहमति बनी थी। चीन ने राजीव के रूप में भारत में नई लीडरशिप को उभरते देखा और रिश्ते फिर हरे होने लगे।
1953 से 1962 का दौर - पंडित नेहरू से हुई पहले धोखे की शुरुआत: 23अक्टूबर 1954ये ऐतिहासिक तस्वीर पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के पहले चीन दौरे की है जिसमें वे चीन से सबसे शक्तिशाली नेता माओत्से के साथ बिना अपनी खास टोपी के टोस्ट करते हुए नजर आ रहे हैं। इस तस्वीर के जाने कितने मतलब निकाले गए हैं और लगभग हर मतलब में उन्हें कमजोर बताया गया है। चीन गणराज्य की स्थापना एक अक्टूबर, 1949 को हुई थी और इसे मान्यता देने वाला भारत पहला गैर कम्युनिस्ट देश था। एक अप्रैल, 1950 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों स्थापित हो गए थे। जून, 1954 में चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एनलाई जहां भारत दौरे पर आए वहीं, इसके बाद नेहरू अक्टूबर 1954में पूरे 8 दिन के लिएचीन गए और दोनों के बीचपंचशीलसमझौते की नींव पड़ी। हालांकि सिर्फ 5 साल में ही पंचशील का दम फूलने लगा क्योंकि चीनी नेता एलएसी न होने का फायदा उठाकरविस्तारवादी नीति पर चल रहे थे। 1959 आते-आते चीन ने नेहरू के हिंदी-चीनी, भाई-भाई के नारे को किनारे करते हुए, करीब 50 हजार वर्गमील जमीन हड़पने की योजना बनाई।तिब्बत,कैलाश मानसराेवर और अक्साई चिन के साथ गलवान घाटी पर कब्जाइसी समय की बात है।इसी पहले और बड़े धोखेका नतीजा था 1962 का युद्ध, जिसके बाद करीब 38 हजार वर्गमील भारतीय जमीन आज भी चीन के कब्जे में है।


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In context of Galwan Valley crisis Photo story based on 70 years journey of India-china relationship


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60 साल से हो रहा डेक्सामेथासोन का इस्तेमाल, इससे हर रोज इलाज का खर्च सिर्फ 48 रुपए प्रति मरीज

दुनियाभर में इस समय डेक्सामेथासोन की चर्चा है। कोरोना महामारी के बीच यह दवा पहली लाइफ सेविंग ड्रग बनकर उभरी है, जो नाजुक हालत में भर्ती कोरोना के मरीजों में मौत का खतरा 35%तक घटाती है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने अपनी ताजा रिसर्च में इसकी पुष्टि की है। भारत मेंभी इसका इस्तेमाल कोरोनामरीजों पर किया जा रहा है, लेकिन लो-डोज के रूप में। रिसर्च में कैसे यह ड्रग सफल हुई, यह कैसे मौत का खतरा कम करती है और देश इसका इस्तेमाल कैसे हो रहा है...एक्सपर्ट से जानिए ऐसे कई सवालों के जवाब...


4 पॉइंट में रिसर्च की सफलता की कहानी शोधकर्ता पीटर की जुबानी

  • ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता और चीफ इन्वेस्टिगेटर पीटर हॉर्बी के मुताबिक, रिसर्च के दौरान अब तक सामने आया है कि डेक्सामेथासोन ही एकमात्र ऐसी ड्रग है, जो कोरोना मरीजोंमें मौत का खतरा घटाती है। यह मौत के आंकड़े को एक तिहाई तक कम करती है।
  • कोरोना के 2,104 ऐसे गंभीर मरीजों को यह दवा दी गई जिन्हें या तो ब्रीदिंग मशीन या ऑक्सीजन की जरूरत थी। जिन मरीजों को ब्रीदिंग मशीन की जरूरत थी उनमें मौत का खतरा घटा 35% तक घटा। वहीं, जो ऑक्सीजन ले रहे थे उनमें खतरा 20%तक कम हुआ।
  • यह दवा बेहद सस्तीहोने के कारण वैश्विक स्तर पर लोगों की जान बचाने में इस्तेमाल की जा सकती है। इस दवा से 10 दिन तक चलने वाले ट्रीटमेंट का खर्च प्रति मरीज 477 रुपए यानि सिर्फ 48 रुपए प्रतिदिनआता है।
  • इस दवा का असर कोरोना के हल्के लक्षणों वाले मरीजों में नहीं दिखा है। डेक्सामेथासोन के कारण मरीजों में लक्षण 15 दिन की जगह 11 दिन में दिखना कम हुए।

Q&A: एंड्रोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश केसवानी से समझिए दवा से जुड़ी खास बातें

1.क्या है डेक्सामिथेसोन और कब से हो रहा है इस्तेमाल?

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, डेक्सामेथासोन एक स्टेरॉयड है जिसका इस्तेमाल 1960 से किया जा रहा है। यह दवा सूजन से दिक्कत जैसे अस्थमा, एलर्जी और कुछ खास तरह के कैंसर में दी जाती है। 1977 में इसे डब्ल्यूएचओ ने जरूरी दवाओं की मॉडल लिस्ट में शामिल किया और ज्यादातर देशों में कम कीमत में मिलने वाली दवा बताया है।
  • डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल टेड्रोस अधानोम ने डेक्सामिथेसोन की सफलता पर कहा, यह पहली दवा है जो कोरोना के ऐसे मरीजों की मौत का खतरा घटाती है जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत है या वेंटिलेटर पर हैं।
  • जयपुर के एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश केसवानी ने बताया, डेक्सामिथेसोन काफी पुरानी स्टेरॉयड ड्रग है। स्टेरॉयड का इस्तेमाल कई तरह की इमरजेंसी में किया जाता है। चाहें एलर्जी का रिएक्शन हो या ब्लड प्रेशर कम हो जाए या सेप्टीसीमिया शॉक हो जाए।

2. कोविड-19 के मामले में कैसे काम करती है स्टेरॉयड डग?

  • ऑक्सफोर्ड की रिसर्च में सामने आया है कोविड-19 के मरीजों में साइटोकाइन स्टॉर्म की स्थिति भी बनती है। इस स्थिति में रोगों से बचाने वाला इम्यून सिस्टम भी शरीर के खिलाफ काम करने लगता है और फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है।
  • डॉ. प्रकाश केसवानी कहते हैं, ये स्टेरॉयड्स यही साइटोकाइन स्टॉर्म की स्थिति को कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं। यह दवा फेफड़ों में गंभीर संक्रमण वाले मरीजों को दी जाती है। देश में कोरोना के मरीजों को भी इसकी लो डोज दी जा रही है, लेकिन इसके साथ दूसरी दवाएं जैसी एंटीबायोटिक्स और एंटी-वायरल भी दी जाती हैं।

3. कैसे काम करती है दवा?

  • डॉ. प्रकाश केसवानी ने बताया, संक्रमित मरीजों में साइटोकाइन स्टॉर्म के कारण जो इम्यून कोशिकाएं फेफड़ों की कोशिकाओं को डैमेज कर रही हैं, यह दवा उन्हें रोकने की कोशिश करती है। डैमेज हुई कोशिकाओं से जो शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले तत्व बन रहे हैं उनकोकम करके फेफड़ों की सूजन घटाती है।

4. देश में कौन बनाता है डेक्सामेथासोन ?

  • देश में डेक्सामेथासोन की सबसे बड़ी सप्लायर अहमदाबाद की फार्मा कम्पनी जायडस कैडिला है। कम्पनी हर साल सिर्फ इस दवा से 100 करोड़ रुपए का टर्नओवर करती है। कम्पनी के ग्रुप चेयरमैन पंकज पटेल का कहना है कि देश में पर्याप्त मात्रा में इस दवा की सप्लाई की जा रही है।
  • पिछले 40 साल से इसका इस्तेमाल अलग-अलग तरह से किया जा रहा है। यह काफी सस्ती दवा है। यह दवा और इंजेक्शन दोनों तरह से उपलबध है। इसके एक इंजेक्शन की कीमत 5-6 रुपए है।
  • इंडियन फार्मास्युटिकल्स एलियांस के जनरल सेक्रेट्री सुदर्शन जैन के मुताबिक, देश में डेक्सामिथेसोन का 83% मार्केट शेयर फार्मा कम्पनी जायडस केडिला के पास है। महाराष्ट्र के अस्पतालों में पहले ही इस ड्रग का इस्तेमाल कोविड-19 के मरीजों पर किया जा रहा है।


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The steroid dexamethasone, which saves the lives of up to 35 percent of Corona patients, is being used first in Jaipur and Maharashtra but as a low-dose


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क्या 16 जून को कम्युनिस्ट पार्टी ने सेना के विरोध में प्रदर्शन किया? पड़ताल में मामला गरीब मजदूरों के हक का निकला

क्या वायरल- कुछ ट्वीटऔर फेसबुक पोस्ट। जिनमें भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) को कोसा जा रहा है। कुछ फोटो भी वायरल हो रही हैं, जिनके साथ लिखा है कि यह पार्टी भारत सरकार और भारतीय सेना के विरोध में प्रदर्शन कर रही है।

वॉट्सऐपपर इस तरह के मैसेज शेयर किए जा रहे हैं

सीपीआईएम और भारत-चीन विवाद को जोड़कर किए गए कुछ ट्वीट

https://twitter.com/Venureddy67/status/1273260190414979076

https://twitter.com/siddhu92

https://twitter.com/jr_IndiaFirst/status/1273058462067388416

https://twitter.com/GhostriderPs/status/1273256086875721730

फेसबुक पर इस तरह की पोस्ट की जा रही हैं

http://archive.is/ozuF9#selection-4529.2-4532.0

यह पोस्ट मराठी में है। इसका हिंदी अनुवाद है: भारतीय सेना द्वारा पांच चीनी सैनिकों को गोली मारने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने दिल्ली में रैली की। बड़ा दुर्भाग्य है।

फैक्ट चेक पड़ताल

  • लद्दाख में15 जून कीरात भारतीय सेना के 20 जवानों की शहादत से पूरा देश शोक में है। इसबीच सीपीआईएमके प्रदर्शनों की फोटो को इस शहादत से जोड़कर शेयर किया जा रहा है। सबसे पहले हमने इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए पड़ताल शुरू की कि क्या सीपीआईएमके प्रदर्शनों का भारत-चीन सीमा विवाद से कोई लेना-देना है?
  • पार्टीका ऑफिशियल ट्विटर हैंडल चेक करने पर ही काफी हद तक इन प्रदर्शनों के पीछे की मांगों का पता चल गया। यहांदेश के अलग-अलग हिस्सों में हो रहे प्रदर्शनों की तस्वीरों के साथ कैप्शन में मांगें भी लिखी गई हैं। यहसभी मांगें राशन, वेतन, मुआवजा, फ्री ट्रांसपोर्ट और श्रम कानूनों से जुड़ी हुई हैं।
  • जो तस्वीरें वायरल हो रही हैं वह 16 जून की हैं। जब सीपीआईएमने केंद्र सरकार के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन किया। इस देशव्यापी आंदोलन का क्या भारत-चीन तनाव से कोई संबंध है? इसका जवाब पार्टी द्वारा जारी किए गए आधिकारिक बयान से मिलता है। यह बयान सीपीआई(एम) की वेबसाइट पर है। बयान में पार्टी ने अपनी मांगों के बारे मेंबताया है। यह मांगें केंद्र सरकार से की गई हैं।
https://cpim.org/pressbriefs/meet-urgent-demands-people
  • क्या हैं यह मांगें?

- जो भी परिवार आयकर के दायरे में नहीं आते, उनके बैंक खातों में अगले छह माह तक 7,500 रुपए ट्रांसफर किए जाएं।

- परिवार के हर सदस्य के हिस्से का 10 किलो अनाज भी अगले छह माह तक दिया जाए।

- मनरेगा के तहत बेरोजगारश्रमिकों को कम से कम 200 दिनों का रोजगार।

- पब्लिक सेक्टर का निजीकरण रोका जाए और श्रम कानून खत्म न किए जाए।

- फसल की बिक्री पर न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू हो और यह मूल्य लागत से 50% अधिक हो। साथ ही किसानों का एक बार का लोन माफ हो।

निष्कर्ष : सीपीआईएम के आधिकारिक बयानों के लिहाज सेपार्टी द्वारा किए जा रहे प्रदर्शनों का भारत-चीन सीमा विवाद से कोई संबंध नहीं है। यह प्रदर्शन किसान-मजदूरों से जुड़ी विभिन्न मांगों को लेकर हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर किए जा रहे दावे भ्रामक हैं।



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The nationwide protest of CPIM has nothing to do with the India-China border dispute.


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तंगहाली ने दिखाए सबसे बुरे दिन: किसी ने बीवी के गहने बेचे तो किसी ने पावरलूम बेचकर खोली टॉफी-बिस्किट की दुकान

उत्तरप्रदेश केकाशी में जलालीपुरा की पहचान बुनकरों से है। यहां कभी 24 घंटे खटर-पटर की आवाजें सुनाई देती थीं, लेकिन तीन माह से यहां खामोशी है। कोरोनावायरस के चलते देशव्यापी लॉकडाउन से यह धंधा चौपट हो गया। नतीजा पांच लाख से ज्यादा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष बुनकरों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया। लॉकडाउन में यहां किसी ने गुजारा करने के लिए पत्नी के गहनेबेच दिएतो किसी ने मशीनों को कबाड़ी के हाथ बेच दी। कुछ ने तो बुनकरी छोड़ सब्जी का ठेला लगाना शुरू कर दिया है। बनारसी साड़ी को दुनिया में पहचान दिलाने वाले बुनकर अब इस धंधे से दूर हो रहे हैं। छह बुनकर परिवारों की कहानी, उनकी जुबानी...

पहली कहानी: पत्नी के जेवरबेचकर गुजारा किया

60 साल के सरदार शमसुद्दीन की लंबी उमर बुनाई के काम में गुजर गई। इनके घर में कुछ करघा बंद पड़े हैं तो कुछ को उन्होंने खोलकर खूंटी पर टांग दिया है। शमशुद्दीन कहते हैं कि, इतने बुरे दिन कभी नहीं देखे। बेटी, बेटा, पोता-पोती मिलाकर 22 लोगों का परिवार है। बुनकरी ही परिवार का आधार है। लेकिन लॉकडाउन में मशीनें बंद हुईं तो कमाई भी ठप हो गई। जमापूंजी से कुछ दिन गुजरे। बाद में जिस गद्दीदार (व्यापारी) को साड़ी देते थे, उसी से कर्ज लेना पड़ा। लेकिन, कर्ज से कितने दिन परिवार का पेट भरते? मजबूरी में रमजान में पत्नी के जेवरात बेच दिए। 60 हजार रुपए मिले, जिससे अब तक खर्च की गाड़ी चली है। 5-5 किलो गेहूं व चावल सरकारी कोटे से मिला है। चटनी चावल खाकर दिन काट रहे हैं। बच्चे भी अब दूसरे रोजगार करने की सोच रहे हैं।

कारीगर शमशुद्दीन।

दूसरी कहानी: 40 हजार में बेच दी मशीन, खोल ली दुकान

55 साल के जमील अहमद 24 लोगों का परिवार है। जमील कहते हैं कि बाजार में बनारसी साड़ी का कारोबार ठप है। होली से ही बाजार पर कोरोना की मार पड़ने लगी थी। पहले लोग खाएंगे कि खरीदारी करेंगे? शादियों में 25-50 लोगों को ही जुटने की अनुमति है। अब कोई ऑर्डर भी नहीं है। जमा पूंजी से जब तक परिवार का खर्च चल पाया, तब तक चला। जब लगा कि अब खाने का संकट हो जाएगा तो 40 हजार रुपए में साड़ी बुनने वाली मशीन बेच दी। उसी पैसे से अब छोटी सी दुकान खोल ली है। टॉफी, बिस्किट, दूध, राशन बेचने लगा हूं। परिवार का पेट भरने भर का पैसा मिल रहा है। सरकार से 500-1000 रुपए कैसे मिलता है? मुझे नहीं मालूम। लॉकडाउन में दूध की बिक्री बहुत थी। मेरे जैसे कई बुनकर हैं, जो अब दुकान खोलकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं।

जमील अहमद।

तीसरी कहानी: कर्ज लेकर सब्जियां बेचना शुरू किया

सलीम की उम्र 50 के करीब है। लॉकडाउन में उनके परिवार में इस कदर तंगहाली आई कि उन्होंने बुनकरी छोड़कर सब्जी बेचना शुरू कर दिया है। उनके घर लगे करघे बंद पड़े हैं। अब उसी कमरे में उन्होंने सब्जियां रखना शुरू कर दिया है। सलीम की तीन बेटियां और तीन बेटे हैं। दो बेटियों की शादी हो चुकी है। चार बच्चे सलीम के साथ रहते हैं। सलीम ने कहा- ऊपर वाला ऐसा दिन कभी किसी को न दिखाए। छोटा सा कर्ज लेकर सब्जी बेचने का काम शुरू किया है। शुरुआत में इस काम में शर्म भी आई, लेकिन पेट पालना था। मेरे भीतर एक बुरी लत है बीड़ी पीने की। लेकिन अब बीड़ी पीने के भी पैसे नहीं बचते हैं। अच्छा ही है, यह लत छूट जाएगी।

सलीम।

चौथी कहानी: हाथ खाली हुए तो खजूर बेचा
बिलाल अहमद ने अपनी आंखों के सामने हथकरघा को पावरलूम में बदलते हुए देखा है। उनकी उम्र 55 साल है। लेकिन इन दिनों उनके यहां लगी मशीनों में जाले लग चुके हैं। परिवार में पत्नी और 9 बच्चे हैं। वे बताते हैं कि, लॉकडाउन ने रोजगार छीन लिया। साढ़े तीन हजार कर्ज लेकर घर पर ही छोटी सी दुकान खोल लिया है। टॉफी, बिस्किट, राशन व दूध बेंचकर कुछ आमदनी हो जाती है। रमजान में ज्यादा तंगहाली आ गई थी तो खूजर बेचे थे। आगे भी अंधकार ही दिखाई पड़ रहा है।

बिलाल अहमद।

बिलाल अहमद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नाराज भी दिखे। कहा- लॉकडाउन करने से पहले उन्हें गरीबों के बारें में सोचना चाहिए था। भुखमरी की नौबत न आए इसलिए सम्मान से जीने वाला बुनकर रोजगार छोड़ रहा है। आने वाली पीढ़ी इससे दूर हो जाएगी।

मशीन पर लगे जाले।

पांचवीं कहानी: अब पुश्तैनी काम में दम नहीं

45 वर्षीय सलाउद्दीन का 6 लोगों का परिवार है। बुनकरी से आराम से 15 से 20 हजार हर कमा लेते थे। लेकिन, लॉकडाउन में धंधा बंद हो गया। अब बाटी चोखा की दुकान लगाते हैं। सलाऊद्दीन कहते हैं कि, बाजार खुल गए हैं। तमाम दुकानें भी लग रही हैं। लेकिन, लोगों में बाहर खाने पीने में डर है। लोग सामान जल्दी नहीं खरीदते हैं। परिवार को पालना मुश्किल हो गया है। सरकार की तरफ से 500 रुपए मिले। लेकिन, इससे क्या होगा? बच्चे अभी छोटे छोटे हैं। लॉकडाउन ने इस बात का अहसास करा दिया कि, पुश्तैनी काम में अब दम नहीं बचा है। समय रहते कुछ और नहीं सोचा तो खाना भी नसीब नहीं होगा।

बुनकर का काम छोड़कर लिट्‌टी-चोखा बेचते सलाउद्दीन।

छठी कहानी: न राशन मिला न रुपए, सरकारी इमदाद भी नहीं

50 वर्षीय अनवार अहमद कम उम्र से ही बुनकरी के काम में रम गए थे। परिवार में 9 लोग हैं। अनवार ने दस दिन पहले ही जमा पूंजी से सब्जी बेचने के लिए ठेला खरीदा है। अब वे शहर की गलियों में घूमकर सब्जी बेचते हैं। वे कहते हैं किन ही उन्हें किसी ने राशन दिया न ही कोई पैसा अकाउंट में आया। गद्दीदार को साड़ियां बनाकर दी थी। लेकिन उसने भी मेहनत का पैसा रोककर रखा है। कहता है कि माल बिकेगा तो कुछ मिलेगा।

अनवार अहमद।

क्या कहते हैं वार्ड पार्षद?

जलालीपुरा वार्ड नंबर 39 के पार्षद हाजी ओकास अंसारी हैं। वे बताते हैं- "मोहल्ले की आबादी करीब 40 हजार के आसपास है। करीब 2500 कच्चे-पक्के मकान हैं। 4000 के करीब हिंदू आबादी भी यहां होगी। 80 से 90 प्रतिशत लोग बुनकरी के धंधे से जुड़े हैं। लॉकडाउन में बुनकर परिवारों की मदद के लिए 800 से 1000 राशन किट बांटी गई है। जरूरत के अन्य सामानों को भी दिया गया। लेकिन, यहां सरकारी मदद न के बराबर पहुंची। कई बुनकरों ने मजबूरी में दूसरे रोजगार को करना उचित समझा। बहुत से बुनकर कर्ज में डूबे हैं।"

चुनावों में केंद्र बिंदु रहे बुनकर मगर नहीं सुधरेहालात
लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का चुनाव, पूर्वांचल के बुनकरों को अपने पाले में करने की खींचतान हर पार्टियों ने की। लेकिन,इनकी हालत जस की तस है। नतीजा बुनकर उद्योग अब बंद होने की कगार पर है।

बनारस पावरलूम वीवर्स एसोसिएशन के पूर्व जनरल सेकेट्री और समाजसेवी अतीक अंसारी ने बताया- "साल 2006 में मुलायम सिंह यादव की सरकार में बुनकरों को 150 करोड़ रुपए का सबसे बड़ा पैकेज मिला था। बुनकर कार्ड भी बनाए गए थे। बिजली विभाग को 72 रुपए देकर एक माह तक पावरलूम चलता था।

साल 2019 तक यही व्यवस्था रही। लेकिन, योगी सरकार ने अब इसे 1600 रुपए प्रति एक पावरलूम कर दिया है। जब बुनकर बिल जमा करेगा, तब उसे 600 रुपए सब्सिडी के रूप में खाते में मिलेगा। लेकिन, अभी यह लागू नहीं हुआ है। दूसरी मार जीएसटी लागू होने के बाद पड़ी है। वर्तमान में काशी में 30 हजार से अधिक बुनकर कार्ड और डेढ़ लाख के करीब पावरलूम होंगे। हैंडलूम 10 प्रतिशत ही बचा होगा।"

बुनकरी उद्योग से जुड़े लोगों में नेतृत्व की कमी
काशी विद्यापीठ के पूर्व प्रो. सतीश राय ने बताया कि, इस पेशे से जुड़े लोगों में नेतृत्व की कमी रही है। अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर की तरह यह उद्योग बढ़ता गया। भविष्य को लेकर योजनाओं को बनाने की कमी रही। मुलायम सिंह सरकार की योजना का लाभ बुनकरों को मिला। इसीलिए बुनकरों का झुकाव अखिलेश सरकार की तरफ भी हुआ था। बनारस, मिर्जापुर, भदोही, जौनपुर मऊ, आजमगढ़, पूर्वांचल का केंद्र रहा है।



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वाराणसी के जलालीपुरा में घर-घर बुनकरी का काम होता है। लेकिन लॉकडाउन में यह धंधा चौपट हो गया। अब पावरलूम बंद पड़े हैं। लोग बेरोजगार होकर दूसरे धंधे अपना रहे हैं। ऐसे में पूरी दुनिया में बनारसी साड़ियों को पहचान दिलाने वाला यह उद्योग अब संकट में है।


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