बुधवार, 26 अगस्त 2020

निर्दयी, निर्लज्ज - ये सारे शब्द छोटे लग रहे हैं, उस औरत के लिए जो इस मासूम बच्ची को टॉयलेट में फेंककर फरार हो गई

मां की ममता को एक बार फिर कलयुगी मां ने कलंकित किया है। मामला बिहार के सीतामढ़ी जिले के शिवहर स्थित सदर अस्पताल का है। जहां एक मां अपने जिगर के टुकड़े (बच्ची) को अस्पताल में छोड़कर फरार हो गई। बच्ची रोती रही लेकिन मां को दया तक नहीं आई। बच्ची की आवाज सुनकर अस्पताल कर्मियों ने उसे गोद में लिया और डॉक्टर के पास पहुंचे। डॉक्टर ने नवजात का इलाज करने के बाद उसे दत्तक ग्रहण संस्थान को सुपुर्द कर दिया। नवजात की हालत अभी ठीक है।

4 साल का बच्चा 18 घंटे बाद मलबे से बचाया

महाराष्ट्र के रायगढ़ में 5 मंजिला इमारत ढहने के 18 घंटे बाद चमत्कार हुआ है। वहां राहत व बचाव के काम में लगे जवानों ने मंगलवार को 4 साल के बच्चे को मलबे से सही सलामत निकाल लिया। हालांकि बच्चे को बचाए जाने की यह खुशी आधे घंटे में ही तब काफूर हो गई, जब उसकी मां नौशीन और दाे बहनाें का शव मलबे से निकला।

एक अधिकारी ने बताया कि बच्चे का नाम मोहम्मद बांगी है। फिलहाल, उसकी हालत ठीक है। उसे अस्पताल में भर्ती किया गया है। एनडीआरएफ के एक अधिकारी ने बताया कि यह बच्चा एक पिलर के किनारे था। ऐसे में मलबा सीधे उस पर नहीं गिरा। चारों तरफ से मलबे से घिरे रहने के बाद बच्चे का सुरक्षित रहना किसी करिश्मे से कम नहीं है।

रिक्शे पर लाउड स्पीकर लगाया, बच्चों को पढ़ाया

फोटो देखने में शायद उतनी खूबसूरत न लगे, लेकिन इसके मायने बड़े हैं, क्योंकि यह उस जज्बे को दिखाती है, जिसमें कोरोना के दौर में बच्चे पढ़ने बैठे हैं और टीचर्स उन्हें पढ़ाने के लिए उनके घर तक पहुंची हैं। दरअसल छत्तीसगढ़ में पढ़ई तुंहर दुआर के नाम से एक योजना चल रही है, जिसका मकसद है कि टीचर्स बच्चों को उनके घर जाकर पढ़ाने की कोशिश करें। फोटो राजधानी के पुरैना और हीरापुर इलाके की है, जहां मिडिल स्कूल पुरैना की शिक्षिका कविता आचार्य मंगलवार को 7वीं के बच्चों को अंग्रेजी पढ़ा रही हैं।

श्री कंध साहिब में 10 हजार संगत ने शीश नवाया

गुरुद्वारा श्री कंध साहिब (जहां बाबा नानक की बारात रुकी थी) में विवाह पर्व को संबंधित करवाए महान गुरमति समागम में संगत ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। मंगलवार सुबह से ही संगत का गुरुद्वारा साहिब में आना शुरू हो गया था। वही गुरुद्वारा साहिब मे स्थित श्री पालकी साहिब को पीले रंग के फूलों से सजाया गया था। विवाह पर्व के दिन गुरुद्वारा श्री कंध साहिब में 10 हजार के करीब संगत ने माथा टेका।

आज लगेगा 56 भोग, भजन होंगे

महाराष्ट्रीयन समाज में महालक्ष्मीजी की स्थापना मंगलवार को हुई। मान्यता है कि श्रीगणेश की दोनों बहनें ज्येष्ठा और कनिष्ठा गणेश चतुर्थी के तीसरे दिन मायके आती हैं। इस बार वह तिथि की घट-बढ़ के कारण चौथे दिन आई हैं। बुधवार को दोनों बहनों को 56 भोग लगाने के साथ आरती उतारेंगे, भजन भी करेंगे। गुरुवार को उनका विसर्जन होगा। फोटो इंदौर के नारायणबाग की है।

मनमोहक दृश्य, सेल्फी लेने की होड़

फोटो मध्यप्रदेश के दतिया जिले के असनई ताल की है। बारिश में असनई तालाब लबालब हो गया है। उसका पानी अब कुआं में गिरकर पुलिया से निकल कर श्री रामलला मंदिर के ताल में जा रहा है। कुआं में ताल का पानी गिरने से मनमोहक दृश्य नजर आ रहा है और अब जो भी इस रास्ते से निकलता है वह खुद को झरने के पास खड़े होकर सेल्फी लेने से नहीं रोक पाता है। तालाब से लेकर पूरा झरना हरे रंग ने नहाया है। इसका मुख्य कारण यह है कि दोनों तरफ घने पेस लगे हैं और पानी मे पेड़ों की छांव से पानी भी हरा नजर आ रहा है।

जुआफाल में 30 फीट ऊंचाई से गिरता है पानी

राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के दानपुर से 5 किमी दूर मूलिया ग्राम पंचायत में चारों ओर हरी भरी वादियों से घिरा खूबसूरत जुआफाल है। यह नदी और झरने के संगमस्थल पर बना है। यहां दानपुर से 5 किमी अंदर पक्की सड़क के रास्ते जा सकते हैं। यह झरना 30 फीट ऊंचाई से गिरता है। इस झरने के पास ही माही बांध में मिलने वाली सहायक नदी भी बहती है। बारिश के दिनों में इस नदी और जुआफाल में बहने वाला पानी सुकून देता है। नॉन कमांड कहे जाने वाले इस क्षेत्र में बारिश के दिनों में ही हरियाली और पानी नजर आता है।



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Ruthless, shameless - all these words seem small, for the woman who threw this innocent in the toilet


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जगदीश के पूर्वजों ने राजा हरिश्चंद्र को खरीद कर पाई थी डोम राजा की पदवी, मां ने ही अपने बेटे जगदीश को मुखाग्नि के लिए ज्योति दी

काशी के डोम राजा जगदीश चौधरी का मंगलवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर हुआ। मुखाग्नि उनके बेटे ओम ने दी। 45 साल के जगदीश डोम राजा परिवार से थे, जिसका संबंध सदियों से काशी और मणिकर्णिका घाट से जुड़ा रहा है। जगदीश के पूर्वज कालू डोम ने ही राजा हरिश्चंद्र को खरीद कर डोम राजा की पदवी पाई थी।

जगदीश 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के नामांकन में प्रस्तावक भी बने थे। उनके परिवार को काशी के राजा के समान ही सम्मान प्राप्त था। समाज के आखिरी तबके का प्रतिनिधित्व करने वाले डोम राजा परिवार ने महंत अवैद्यनाथ को भोजन करवाना स्वीकार किया था।

1977 में गोरक्ष पीठाधीश महंत अवैद्यनाथ ने दक्षिण भारत के मीनाक्षीपुरम मंदिर में दलितों के प्रवेश पर रोक के विरोध में आंदोलन शुरू किया तो डोम राजा से जुड़ने के लिए कहा। जवाब में डोम राजा ने कहा कि हम तब मानेंगे, जब संत आकर हमारे घर भोजन करेंगे। अवैद्यनाथ ने शर्त मानी और तय समय पर साधु-संतों के साथ पहुंचे और खाना खाया।

इस घटना के बाद डोम राजा परिवार का सम्मान काशी में और बढ़ गया। श्रीसंकटमोचन मंदिर के महंत डॉ. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने कहा कि उनके जाने का दुःख सबको है, लेकिन उन्हें मोक्ष मिलना तय है, क्योंकि वे स्वयं मोक्ष के रास्ते के द्वारपाल थे।

जगदीश बचपन से ही अपने कार्य को लेकर आनंदित रहे

वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ भट्टाचार्य कहते हैं कि जगदीश बचपन से ही अपने कार्य को लेकर आनंदित रहे। मुझे भरोसा है उनकी अगली पीढ़ी भी उनकी थाती को संभाल कर रखेगी। स्वागतम काशी फाउंडेशन के संयोजक अभिषेक शर्मा बताते हैं कि घाट पर दाह संस्कार के बाद जो लकड़ी बचती, उसी से परिवार का भोजन बनता था।

पान उनकी कमजोरी था

जगदीश इसे प्रसाद समझ कर ग्रहण करते थे। शर्मा बताते हैं कि पान उनकी कमजोरी था। नामांकन के वक्त भी पीएम के बगल में खड़े जगदीशजी के मुंह में पान ही था। काशी के लोग उन्हें हमेशा याद करेंगे।

घाट पर मां की बारी थी, संयोग ऐसा कि बेटे का शव आ गया

मणिकर्णिका घाट पर डोम राजा परिवार से ही ज्योति लेकर शवों को मुखाग्नि देने की परंपरा सदियों से है। परिवार का एक सदस्य बारी-बारी हर दिन घाट पर जाकर आने वाले शवों के लिए ज्योति देता है। इसी ज्योति से मुखाग्नि दी जाती है। मंगलवार को संयोग ही था कि घाट पर परिवार की ओर से शवों के लिए ज्योति देने की बारी (पारी) डोम राजा की मां रानी सारंगा देवी की थी। भारी मन से उन्होंने बेटे जगदीश के लिए ज्योति दी। जगदीश के परिवार में मां के अलावा पत्नी, दो बेटियां और बेटा ओम है।



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पान जगदीश जी (मध्य में) की कमजोरी था। नामांकन के वक्त भी पीएम के बगल में खड़े जगदीशजी के मुंह में पान ही था।


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पांच लाख कैमरों से निगरानी, बिना मास्क के निकले तो ई चालान मिल जाएगा; एक माह में 15 हजार लोग पकड़े गए

वर्षा बंसल. हैदराबाद के उर्दू शिक्षक इमरान को जुलाई में ट्रैफिक नियम तोड़ने के एवज में ई-चालान भेजा गया। उन्हें 1035 रुपए जुर्माना भरने को कहा गया। चालान में वो बिना हेलमेट के मोटरसाइकिल पर दिखाई दिए। पर चालान में दिए विवरण से पता चला कि जुर्माना हेलमेट को लेकर नहीं, बल्कि फेस मास्क नहीं पहनने पर लगाया गया था।

इमरान जैसे 15 हजार लोगों को इस आईटी सिटी में मास्क नहीं पहनने पर जुर्माना देना पड़ा है। इनमें ज्यादातर सीसीटीवी के जरिए ही पकड़ में आए। तेलंगाना की राजधानी शहर के सर्विलांस सिस्टम का इस्तेमाल अब कोरोना को नियंत्रित करने में भी कर रही है।

ट्रैफिक डिपार्टमेंट से इसी तरह का चालान लोगों तक पहुंचता है।

हैदराबाद में 5 लाख सीसीटीवी कैमरे, दिल्ली में 5 हजार

हैदराबाद देश का प्रमुख टेक्नोलॉजी हब है। लिहाजा शहर की सुरक्षा में भी टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल किया गया है। पूरे शहर में 5 लाख सीसीटीवी कैमरा लगाए गए हैं, इसलिए यह देश का सबसे ज्यादा सर्विलांस वाला शहर बन गया है, वहीं दिल्ली में महज पांच हजार सीसीटीवी कैमरा लगाए गए हैं, जबकि यहां पर हैदराबाद की तुलना में तीन गुना ज्यादा लोग रहते हैं।

हैदराबाद प्रशासन का कहना है कि इस उपाय से महामारी के दौरान लोगों को सुरक्षित रखने में बड़ी मदद मिली। जुलाई तक राज्य में 80 हजार कोरोना मरीज थे, वहीं 637 मौतें हुईं। तेलंगाना पुलिस के आईटी विभाग के डिप्टी सुप्रीटेंडेंड श्रीनाथ रेड्‌डी के मुताबिक, शहर में औसत 20 लोगों पर एक कैमरा है, इससे 95% लोगों को मास्क पहनना सुनिश्चित करा सके। हालांकि, बड़े स्तर पर इस सर्विलांस की आलोचना भी हो रही है। एक नागरिक घर पहुंचते-पहुंचते 50 कैमरों में कैद हो चुका हो जाता है।

20 मंजिला इमारत में बनाया गया है कमांड एंड कंट्रोल सेंटर

सर्विलांस टेक्नोलॉजी में हैदराबाद शुरू से आगे रहा है। 2015 में यहां ऑटोमैटिक नंबर प्लेट रिकॉग्निशन सिस्टम लागू कर दिया गया था। इसके बाद चेन्नई और कोलकाता में यह सिस्टम लागू हुआ। पिछले साल ही हैदराबाद देश का पहला ऐसा एयरपोर्ट बना जहां यात्रियों के लिए फेशियल रिकग्निशन सिस्टम शुरू किया गया। सर्विलांस के लिए बंजारा हिल्स इलाके में 20 मंजिला कमांड एंड कंट्रोल सेंटर बनाया गया है।



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हैदराबाद में जहां 5 लाख सीसीटीवी कैमरे लगवाए गए हैं वहीं देश की राजधानी दिल्ली में केवल 5 हजार कैमरे ही लगाए गए हैं।


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वुमन इक्विलिटी डे आज : जानिए क्या खास है इस दिन में और यह क्यों मनाया जाता है?

आपने अक्सर सुना होगा कि महिलाओं को पुरुषों से बराबरी का हक नहीं मिल रहा। पुरुषों के मुकाबले उनका वेतन कम होता है। कुछ जगहों पर ऐसा है भी। लेकिन, यह भी याद करना जरूरी है कि इस असमानता के खिलाफ सबसे बड़ी लड़ाई लड़ी गई थी अमेरिका में। वहां महिलाओं को वोटिंग का अधिकार तक नहीं था। 50 से ज्यादा साल लड़ाई चली। तब जाकर 1920 में 26 अगस्त को उन्हें वोटिंग का अधिकार मिला।

इस दिन को याद करते हुए यूएस में महिला समानता दिवस या वुमन इक्विलिटी डे के तौर पर मनाया जाता है। चूंकि, लैंगिक समानता का मुद्दा सिर्फ अमेरिका तक ही सीमित नहीं है, इसलिए भले ही अंतरराष्ट्रीय न हो, इस दिन पूरी दुनिया में महिलाओं और पुरुषों को बराबरी पर लाने के प्रयासों की जरूरत को दोहराया जाता है। इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों की बात की जाती है।

सबसे पहले, क्या है यह वुमन इक्विलिटी डे?

  • वुमन इक्विलिटी डे हर साल 26 अगस्त को मनाया जाता है। 1920 में इसी दिन अमेरिकी संविधान में 19वां अमेंडमेंट हुआ था। इसके जरिये महिलाओं को पुरुषों के बराबर वोटिंग का अधिकार मिला था।
  • अब यह धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय सेलिब्रेशन बन गया है। दुनियाभर की महिलाएं इस दिन को समानता दिवस के तौर पर मनाती हैं। भारत में कई संगठन डिबेट्स, प्रतियोगिताएं, गेट-टूगेदर आयोजित करते हैं।

महिला समानता दिवस का इतिहास क्या है?

  • अमेरिका में महिला अधिकारों की लड़ाई 1853 में शुरू हुई। विवाहित महिलाओं ने संपत्ति पर अधिकार मांगना शुरू कर दिया था। तब अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों में महिलाओं की स्थिति आज जैसी नहीं थी। उन्हें गुलाम समझा जाता था।
  • 1890 में अमेरिका में नेशनल अमेरिकन वुमन सफरेज एसोसिएशन बना। इस संगठन ने महिलाओं को वोटिंग का अधिकार देने के आंदोलन का नेतृत्व किया। इसने ही निर्णायक लड़ाई लड़ी और 1920 में वोटिंग का अधिकार पाया।
  • अमेरिकी संसद ने 1971 में तय किया कि 26 अगस्त को वुमन इक्विलिटी डे के तौर पर मनाया जाएगा। तब से ही यह दिन मनाया जा रहा है। उसी की देखादेखी पूरी दुनिया में यह डे मनाया जाता है।

भारत में महिलाओं की वोटिंग की क्या स्थिति है?

  • भारत में महिलाओं की वोटिंग का इतिहास अमेरिका जितना ही है। ब्रिटिश शासन के समय 1921 में मद्रास स्टेट ने सबसे पहले महिलाओं को वोटिंग का अधिकार दिया था। 1950 में पूरे देश में महिलाएं वोट करने लगीं।
  • भारत के संविधान में महिलाओं के वोटिंग अधिकार का उल्लेख संविधान के आर्टिकल 326 में है। 1962 के चुनावों में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 46.63% था, जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में यह बढ़कर 67.2% हो गया।
  • ध्यान देने वाली बात यह है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में भारत में कुल वोटिंग 67.4% हुई और महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत महज 0.2% कम था। बिहार, यूपी, पश्चिम बंगाल, झारखंड, केरल, उत्तराखंड और गोवा जैसे राज्यों में महिलाओं ने वोटिंग में पुरुषों को भी पीछे छोड़ दिया था।

महिलाओं को नेता बनाने में पीछे क्यों रह गया अमेरिका?

  • भारत, ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी, इजरायल और डेनमार्क में महिला राष्ट्राध्यक्ष रह चुके हैं। लेकिन अब तक अमेरिका में किसी भी महिला को राष्ट्राध्यक्ष बनने का मौका नहीं मिला है।
  • 2016 में हिलेरी क्लिंटन ने डोनाल्ड ट्रम्प से कड़ा मुकाबला किया था, लेकिन जीत नहीं सकी थी। 2020 के राष्ट्रपति चुनावों में भी अमेरिका को महिला राष्ट्रपति मिलने की संभावना खत्म हो चुकी है।
  • यदि हम भारत की बात करें तो पिछले साल के चुनावों में 78 महिला सांसद जीतकर संसद पहुंची हैं। यह संसद में 14.58% प्रतिनिधित्व बनता है। हम संसद में महिलाओं की भागीदारी को लेकर दुनिया में 20वें स्थान पर हैं।
  • हमारे यहां पंचायत से संसद तक महिलाओं को 33% आरक्षण देने वाला विधेयक राज्यसभा में पारित हो चुका है। किसी न किसी कारण से यह विधेयक लोकसभा से पारित नहीं हो पा रहा।


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Woman's Equality Day today: know what is special on this day and why it is celebrated?


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जिस लड़के का चाचा कारगिल में लड़ा, उसे आतंकी बता कश्मीर में एनकाउंटर किया, एक का तो पिछले महीने ही डोमेसाइल बना था

‘अगर हमारे लड़के मिलिटेंट थे, तो उनकी मौत का हमें कोई गम नहीं। हमें उनकी बॉडी भी नहीं चाहिए। लेकिन, अगर वो मिलिटेंट नहीं थे तो हमें उनकी बॉडी भी चाहिए और जिम्मेदारों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई भी। हमें भी तो पता चले कि महज एक रात में कोई कैसे मिलिटेंट बन सकता है?' यह दर्द शिफत जान का है। वो मोहम्मद अबरार की मां हैं। 18 जुलाई को शोपियां में जिन तीन लड़कों का एनकाउंटर हुआ है, उनमें 16 साल का अबरार भी शामिल था। उसके अलावा दो और लड़के थे, एक 21 साल का इम्तियाज अहमद और 25 साल का अबरार अहमद। आर्मी ने इन्हें मिलिटेंट बताया था। हालांकि, अब इस मामले में हाई लेवल कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी चल रही है।

तीनों लड़कों के एनकाउंटर के बाद उनके परिवारों में मातम छाया है।

तीनों लड़कों के एनकाउंटर के 36 दिन बाद भी अभी तक परिवारों को कोई ऐसा सबूत नहीं दिया गया है, जिससे यह साबित हो कि यह तीनों मिलिटेंट थे। ये लोग आपस में रिश्ते में थे। शोपियां में काम की तलाश में सबसे पहले इम्तियाज अहमद गया था। करीब एक महीने बाद उसने मोहम्मद अबरार और अबरार अहमद को भी आने को कहा। ये लोग 16 जुलाई को शोपियां गए। 17 जुलाई को इन्होंने परिवार को फोन पर बताया कि हम सही-सलामत पहुंच गए हैं। कमरा भी ले लिया है। फिर इन लोगों का फोन बंद हो गया और 18 जुलाई को हुए एनकाउंटर में मार दिए गए।

परिवार का कहना है कि अगर ये आतंकी निकले तो हम इनके शव भी नहीं मांगेंगे।

परिवार को इनकी मौत की खबर 9 अगस्त को तब मिली, जब एनकाउंटर की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं। अबरार अहमद के पिता को एक मीडियाकर्मी ने फोन पर फोटो दिखाई, तो तुरंत समझ गए कि यह उनके लड़के ही हैं। 10 जुलाई को परिजनों ने थाने में मिसिंग रिपोर्ट दर्ज करवाई।

11 अगस्त को इन लोगों के परिजन डीजीपी दिलबाग सिंह, एसएसपी चंदन कोहली और एएसपी लियाकत अली से मिले थे। 13 अगस्त को पुलिस ने डीएनए कलेक्ट किया। यह सिर्फ इनकी पहचान की पुष्टि करेगा। हालांकि, परिजन फोटो देखकर समझ चुके हैं कि यह उनके ही लड़के हैं। इसलिए डीएनए रिपोर्ट वही आएगी।

परिजनों को डीएनए रिपोर्ट से ज्यादा इंतजार उस रिपोर्ट के आने का है, जो 18 जुलाई को हुए एनकाउंटर का सच सामने लाए। पुलिस ने किन सबूतों के आधार पर मारा? पूछताछ क्यों नहीं की? मिलिटेंट हैं, इसकी पुष्टि कैसे की? ऐसे तमाम सवाल परिजनों के मन में चल रहे हैं। इन लोगों को तो अभी तक यह भी नहीं पता कि बच्चों की डेडबॉडी आखिर रखी कहां है? उसे दफना दिया गया है या कहीं रखा गया है? 13 अगस्त को परिजनों से कहा गया था कि दस-बारह दिन में डीएनए की जांच रिपोर्ट आ जाएगी और एनकाउंटर की सच्चाई भी। अभी इन दोनों ही चीजों का इंतजार है।

एनकाउंटर में मारे गए तीनों लड़कों की मां अब तक सदमे में हैं। वो अपने बच्चे को आखिरी बार देखना चाहती हैं।

थाने में मिसिंग रिपोर्ट दर्ज करवाने वाले नसीब ने बताया कि जब लड़कों के फोन बंद आए तो हमें लगा कि अभी कोरोना का दौर चल रहा है। ऐसा हो सकता है कि इन लोगों को क्वारैंटाइन कर दिया गया हो। इसलिए हमने भी बार-बार फोन नहीं किया और कहीं रिपोर्ट भी दर्ज नहीं करवाई।

अबरार अहमद के पिता पहाड़ी पर मवेशी चराने गए थे। हर साल गांव के लोग मवेशियों को लेकर ऊपर ही जाते हैं, क्योंकि नीचे जानवरों को खिलाने को कुछ नहीं होता। वो 9 अगस्त को गांव लौटे। तभी उन्हें एक मीडियाकर्मी मिला। जिसने फोन पर वायरल हो रही तस्वीरें दिखाईं। फोटो देखते ही समझ गए कि एनकाउंटर में मारे गए लड़के हमारे हैं। जबकि, मोहम्मद अबरार के पिता तो अभी भारत लौटे भी नहीं हैं। वो सऊदी अरब में हैं। वहीं मजदूरी करते हैं। लॉकडाउन के पहले से ही वहां हैं। 9 अगस्त को जब फोटो सामने आईं तो पूरे गांव में आग की तरह फैल गई। घरों में आसपास के लोगों की भीड़ लग गई, क्योंकि लड़कों का कोई क्रिमिनल बैकग्राउंड नहीं रहा। पढ़ने-लिखने और कामकाज वाले रहे हैं, इसलिए हर किसी को इस खबर ने चौंका दिया।

ये मोहम्मद अबरार के घर की तस्वीर है। मजदूरी करके ये लोग गुजारा करते हैं।

मोहम्मद अबरार ने तो 4 जुलाई को ही मूल निवासी प्रमाण पत्र बनवाया था। इसमें उसकी उम्र 25 फरवरी 2004 बताई गई है। उसके दोस्त मोहम्मद सलीम ने बताया, मैं बचपन से उसके साथ रह रहा हूं। कभी किसी ऐसी एक्टिविटी में वो शामिल रहा ही नहीं, क्योंकि हमारा तो सुबह 6 से शाम 6 बजे तक का पूरा टाइम स्कूल आने-जाने में ही लग जाता है। हमारे गांव में अभी आठवीं तक स्कूल आया है, पहले पांचवीं तक ही था। हम लोग पढ़ने दूसरे गांव में जाया करते थे। रास्ता पैदल तय करना होता था, इसलिए आने-जाने में दो-दो घंटे का समय लगता था। बाकी टाइम स्कूल में ही रहते थे। बाहर के लोगों से मिलना-जुलना कम ही हो पाता था। अब पूरे गांव में यही बात चल रही है कि पुलिस ने हमें डेडबॉडी नहीं दी तो इसके बाद कैसा विरोध होगा?

मोहम्मद अबरार ने पिछले महीने ही डोमेसाइल सर्टिफिकेट बनवाया था।

मोहम्मद अबरार की अम्मी कहती हैं, लॉकडाउन में सब बंद था। वो शोपियां गया था, ताकि काम करके कुछ पैसे जोड़ ले, जिससे आगे की पढ़ाई कर सके। वो पढ़ने में अच्छा था। उसने पिछले साल 10वीं में 500 में से 279 नंबर हासिल किए थे। लॉकडाउन के पहले से ही वहां मजदूरी करके पैसा कमाता था। हम लोग मजदूर परिवारों से हैं। राजौरी के सोशल एक्टिविस्ट गुफ्तार अहमद चौधरी ने इन तीनों लड़कों के परिजनों से बात की है। अम्मी, अब्बू सभी का वीडियो बनाया है और सोशल मीडिया पर शेयर भी किया है।

ये अबरार की दसवीं की मार्कशीट है। उसने 500 में से 279 अंक हासिल किए थे।

गुफ्तार बताते हैं, अबरार अहमद तीन साल कुवैत में भी रहा है। उसका महज 15 महीने का बेटा है। कुछ ही दिनों पहले उसका घर बना है। लेकिन, पैसे नहीं होने के चलते घर में प्लास्टर नहीं हुआ था। वो शोपियां गया ही इसलिए था ताकि कुछ पैसे जोड़ ले और घर में प्लास्टर का काम पूरा करवा सके। उसका सगा चाचा कारगिल की लड़ाई में लड़ा है। अभी भी उसके परिवार के कई लोग आर्मी में हैं। ऐसे में बिना किसी पूछताछ के सीधे गोली मार देना कहां का न्याय है?

गुफ्तार कहते हैं, लोकल थाने से लेकर ऊपर तक पूरी जांच की जाए। इनके खिलाफ कहीं कोई मामला नहीं मिलेगा। इनका कोई क्रिमिनल बैक्रग्राउंड नहीं रहा। ऐसे में एनकाउंटर पर सवाल उठना लाजिमी है। अबरार अहमद के पिता युसूफ कहते हैं, मेरा बेटा 16 को घर से निकला था। 17 को शोपियां पहुंचा। 18 को मार दिया गया। उसके मिलिटेंट होने का कोई भी सबूत मिलता है तो मैं उसका जवाबदार हूं। मुझे पता है मेरा बच्चा बेकसूर है। मुझे इंसाफ चाहिए। बच्चे को मारने से कुछ नहीं होगा।

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मथुरा की मस्जिद के लोग कहते हैं, ईद पर हिंदू दोस्त केक लाते हैं तो उस पर बांसुरी और मोरपंख बना होता है और लिखा होता है, ईद मुबारक

अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास होने के साथ ही ‘काशी-मथुरा बाकी है’ जैसे नारे भी उठने लगे हैं। खुद को राम मंदिर आंदोलन का अगुआ बताने वाले बीजेपी के पूर्व सांसद और बजरंग दल के संस्थापक विनय कटियार ने खुद इस रिपोर्टर से कहा था, “अयोध्या में मेरा रोल यहीं तक था। अब मैं मथुरा पर ध्यान लगा रहा हूं।” ये बात उन्होंने अयोध्या में होने वाले भूमि पूजन से दो रोज पहले कही थी।

‘मथुरा बाकी है’ जैसे नारे क्यों लगाए जाते हैं? और क्यों कई हिंदू संगठन लगातार अयोध्या की ही तरह मथुरा को भी ‘मुक्त’ कराने की बात कहते रहे हैं? ये समझने के लिए मथुरा के इतिहास पर एक नजर डालना जरूरी है। हिंदू पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, मथुरा भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण का जन्मस्थान है। लिहाजा, यहां सदियों पुराना श्री कृष्ण जन्म भूमि मंदिर भी होगा, जिसे देखने लाखों श्रद्धालु हर साल मथुरा आते रहे हैं।

मथुरा का यह श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर इतिहास में कई बार टूटा और कई बार बनाया गया। कई इतिहासकार दावा करते हैं कि 17वीं सदी में औरंगजेब ने इस मंदिर को तुड़वाकर इसके एक हिस्से में मस्जिद का निर्माण करवा दिया था, जो कि आज भी मंदिर के ठीक बगल में ही मौजूद है। कई हिंदू संगठनों का दावा है कि जिस जगह पर यह शाही ईदगाह मस्जिद मौजूद है, ठीक उसी जगह पर भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। यही इस विवाद का मुख्य कारण भी है।

हिंदू संगठन दावा करते हैं कि जिस जगह ईदगाह मस्जिद है, ठीक उसी जगह भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था।

हालांकि, इस मामले में 12 अक्टूबर 1968 को शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट और श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ के बीच एक समझौता हो चुका है। इस समझौते के बाद मस्जिद की कुछ जमीनें मंदिर के लिए खाली की गई थीं और ये मान लिया गया था कि यह विवाद अब हमेशा के लिए सुलझा लिया गया है। लेकिन, श्री कृष्ण जन्मभूमि न्यास के सचिव कपिल शर्मा और न्यास के सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी इस समझौते को ही गलत बताते हैं।

न्यास से जुड़े लोग इस मंदिर की ‘मुक्ति’ की बात तो कहते हैं, लेकिन किसी भी हिंसक आंदोलन या आपसी सौहार्द बिगाड़ने वाली गतिविधि का समर्थन नहीं करते। स्थानीय लोगों के मुताबिक, जन्माष्टमी के मौके पर जब मंदिर में ज्यादा भीड़ हो जाती है तो श्रद्धालुओं को मस्जिद की तरफ से बाहर निकाला जाता है। वहीं ईद के मौके पर मंदिर के इलाके में नमाजी खड़े होकर ईद की नमाज पढ़ते हैं।

बीते दिनों इस शहर में कुछ गतिविधियां ऐसी भी हुईं, जिनके चलते प्रेम नगरी के नाम से पहचाने जाने वाले मथुरा का जिक्र होना शुरू हो गया। मथुरा के आचार्य देव मुरारी बापू ने हाल ही में श्री कृष्ण जन्मभूमि निर्माण न्यास के नाम से एक ट्रस्ट का गठन किया है, जिसका उद्देश्य श्री कृष्ण जन्म भूमि को मुक्त कराना बताया गया है। इस घटना ने राष्ट्रीय सुर्खियों में जगह बनाई और चर्चा तेज होने लगी कि अयोध्या के बाद मथुरा के लिए कुछ लोग सक्रिय होने लगे हैं।

भड़काऊ गतिविधियों के चलते मथुरा प्रशासन ने आचार्य देव मुरारी बापू के खिलाफ धार्मिक उन्माद भड़काने का मामला दर्ज किया। इसके साथ ही श्री कृष्ण जन्म भूमि न्यास (ट्रस्ट) के सचिव कपिल शर्मा ने भी उनके खिलाफ फर्जीवाड़े की शिकायत दर्ज करवाई है। इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने आचार्य देव मुरारी बापू सहित 13 अन्य लोगों पर मुकदमा दर्ज किया है।

5 अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन के अगले दिन मथुरा में कृष्ण मंदिर के लिए श्री कृष्ण जन्मभूमि निर्माण न्यास का गठन किया गया है।

पुलिस को दिए अपने बयान में कपिल शर्मा ने कहा है कि आचार्य देव मुरारी बापू समेत 13 लोगों ने मिलकर श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट से मिलते-जुलते नाम वाला ट्रस्ट बनाया है जिसके जरिए लोगों को भ्रमित किया जा रहा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ऐसा करके लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई जा रही है।

श्री कृष्ण जन्म भूमि ट्रस्ट वो संस्थान है, जो कृष्ण जन्म भूमि की देखरेख करता है। ऐसा दावा किया जाता है कि इस ट्रस्ट की स्थापना करीब 70 साल पहले महामना मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में हुई थी और राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष नृत्यगोपाल दास ही इसके भी अध्यक्ष हैं।

कृष्ण जन्मभूमि को मुक्त करवाने का दावा करने वाले आचार्य देव मुरारी बापू के खिलाफ जिस तरह से न्यास के सचिव कपिल शर्मा ने मुकदमा दर्ज करवाया है, क्या उसके आधार पर ये माना जा सकता है कि न्यास से जुड़े लोग ‘मथुरा की मुक्ति’ जैसी बातों से इत्तेफाक नहीं रखते? इस सवाल के जवाब में कपिल शर्मा कहते हैं, “मंदिर की स्थिति जो आज आप देख रहे हैं वो कुछ साल पहले तक नहीं थी। यहां बहुत गंदगी रहती थी और मंदिर के पास में ही गाय तक कटती थीं। बीते कुछ सालों में हालात थोड़े ठीक हुए हैं। लेकिन, मंदिर की मुक्ति को लेकर कोई संदेह किसी को नहीं होना चाहिए। हां, इस देश में अदालतें हैं लिहाजा ये फैसला वहीं से आना चाहिए। सड़क पर कुछ तय नहीं होता और ना होगा।”

दूसरी तरफ शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के मौजूदा अध्यक्ष जेड हसन का मानना है कि मथुरा में मंदिर-मस्जिद से जुड़ा कोई भी पहलू विवादित नहीं है। मथुरा की मिली-जुली संस्कृति का हवाला देते हुए वो कहते हैं, “देखिए। आज की तारीख में कोई विवाद नहीं है। अब कुछ लोग अपने फायदे के लिए कोई विवाद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं तो वो अलग बात है। मैं उस बारे में कुछ नहीं कहूंगा। मथुरा तो प्रेम की नगरी है। यहां दुनिया को प्रेम का संदेश देने वाले कन्हैया का जन्म हुआ है। इस जमीन पर विवाद हो ही नहीं सकता। एक छोटा-सा उदाहरण आपको देता हूं। ईद के मौके पर जब हमारे हिंदू दोस्त केक भेंट करते हैं तो उस केक पर बांसुरी और मोरपंख की आकृति बनी होती है और लिखा रहता है- ईद मुबारक!”

ये तस्वीर 5 अगस्त की है, जिस दिन अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन हुआ था। उस रात मथुरा में भी श्री कृष्ण जन्मस्थान मंदिर में दीए जलाए गए थे।

मथुरा की कुल आबादी का बीस प्रतिशत मुस्लिम हैं। शहर की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कृष्ण के बाल स्वरूप जिसे लड्डू-गोपाल कहते हैं की मूर्ति बनाने, खास पोशाक तैयार करने और मुकुट बनाने जैसे काम से रोजगार पाता है। शहर ने पिछले कुछ सालों में अच्छी तरक्की की है। यहां छोटे-बड़े लगभग तीन सौ होटल हैं, जिनमें साल भर बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।

रेलवे स्टेशन के पास स्थित एक होटल के मैनेजर के मुताबिक, शहर के किसी भी होटल में चार-पांच दिन पहले ही बुक न किया हो तो कमरा नहीं मिल पाता।

मथुरा वाले कहते हैं कि ये जगह हमेशा शांत ही रही है। 1992 के वक्त भी यहां कोई फसाद नहीं हुआ था।

सवाल उठता है कि तेजी से विकास कर रहे और मंदिरों के सहारे व्यापार बढ़ा रहे परिवारों में मंदिर-मस्जिद विवाद के लिए कितनी जगह है? इस सवाल के जवाब में शहर के निवासी, पेशे से वकील और मथुरा के मिजाज को समझने वाले मधुवन दत्त चतुर्वेदी कहते हैं, “स्थानीय लोग मंदिर-मस्जिद के विवाद में कभी नहीं उलझना चाहेंगे। ये शहर हमेशा शांत रहा है। 1992 में भी मथुरा में कोई फसाद नहीं हुआ था और उसके बाद भी अमूमन शांति ही रही है। अगर मैं इस शहर के मिज़ाज को थोड़ा भी समझता हूं तो कह सकता हूं कि यहां अयोध्या जैसा कोई विवाद पैदा नहीं होगा।”

मथुरा केवल कृष्ण की जन्मभूमि नहीं है। केंद्र और यूपी की सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी से जुड़े राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक मजबूत गढ़ भी है। स्थानीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग ये मानता है कि मथुरा को लेकर की जाने वाली ऐसी कोशिशें नाकाम ही होंगी। लेकिन, ये भी सच है कि विवाद को हवा देने वाले तत्व यहां खासे सक्रिय हैं।

मथुरा-काशी बाकी है...की बाकी स्पेशल रिपोर्ट यहां पढ़ सकते हैं

1. काशी मथुरा बाकी है रिपोर्ट-1 : लॉकडाउन न हुआ होता तो अब तक या तो काशी विश्वनाथ मुक्त हो गया होता या हम जेल में बंद होते...

2. काशी के विश्वनाथ कॉरिडोर से ग्राउंड रिपोर्ट : पूरा बन जाने के बाद काशी विश्वनाथ धाम में 2 लाख लोग आसानी से आ सकेंगे, पहले सिर्फ 5 हजार की जगह थी

3. काशी-मथुरा बाकी है:कहानी काशी की दीवानी अदालत के एक मुकदमे की, जो काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद का भविष्य तय करेगा



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The dispute was settled in the agreement reached 52 years ago; Hindu organizations are saying - the matter will be resolved by the court


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अपनों के बीच ही बराबरी के हक की 5 कहानियां और 2 फैसले, दुनिया हारी और इनका हौसला जीत गया

महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने के लिए लगातार संघर्ष करने वाली दुनिया भर की तमाम महिलाओं के नाम है 26 अगस्त को मनाया जाने वाला 'महिला समानता दिवस'। ये दिन एक बार फिर उन मेहनत करने वाली महिलाओं की याद दिलाता है जो तमाम मुश्किलों के बाद भी जिंदगी में मुकाम हासिल कर रही हैं।

पहले जहां महिलाएं घर की चार दीवारी में बंद थीं, वहीं अब वे हर कीमत पर अपने हक की लड़ाई लड़ रही हैं। ऐसी ही पांच मेहनकश महिलाओं की कहानी महिला समानता दिवस पर हम आपके लिए पेश कर रहे हैं। इनका जूनून और हौसला उन्हें नई पहचान देने में सफल रहा है।

  • सुभाषिनी शहीदों की विधवाओं को डांस, आर्ट, प्ले, एजुकेशनल प्रोग्राम के जरिए खुशहाल जिंदगी के नए उद्देश्य दे रही हैं।
  • उनके सराहनीय कामों के लिए 2016 में सुभाषिनी को ''नीरजा भनोट पुरस्कार'' से नवाजा जा चुका है।
  • वे अपने प्रयासों से शहीदों की विधवाओं के सूने जीवन में घर कर गए खालीपन को भरने का प्रयास करती हैं। उनकी संस्था शहीदों के बच्चों को स्कॉलरशिप प्रदान करती है, ताकि इन बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो सके।
  • शाइनी को ओडिशी हैंडमेड प्रोडक्ट बनाने के लगभग 500 ऑर्डर हर महीने मिलते हैं। लॉकडाउन में भी उनकी वजह से कारीगरों को रोजगार मिला।
  • वे 25 कारीगरों के साथ मिलाकर ओडिशी मिनी डॉल्स बना रही हैं। उनके इस काम को ज्यादातर महिला कारीगर कर रही हैं। उनके प्रोडक्ट की डिमांड मुंबई, बेंगलुरु और अन्य मेट्रो सिटीज में भी है।
  • वे इन कारीगरों को ज्वैलरी और ओडिशी पट्‌टचित्र डिजाइन वाले बॉक्स बनाने की ट्रेनिंग देती हैं। साथ ही रॉ मटेरियल का सही इस्तेमाल कर उन्हें यूनिक डिजाइन बनाना सीखाती हैं।
  • उमंग खादीजी ब्रांड की संस्थापक हैं। पिछले साल उनका नाम प्रतिष्ठित बिजनेस पत्रिका फोर्ब्स की अंडर-30 अचीवर्स की सूची में शामिल था।
  • चरखे के माध्यम से खादी को डिजिटल फाॅर्म में पेश करती हैं। उनके क्लाइंट्स में रिलायंस इंडस्ट्रीज और आदित्य बिड़ला ग्रुप भी शामिल हैं।
  • उन्होंने अपने ब्रांड खादीजी की शुरुआत 30 हजार रुपए से की थी। आज उनका टर्नओवर लगभग 60 लाख रुपए है।
  • पूजा जून 2001 में एयरफोर्स की प्रशासनिक शाखा में शामिल हुईं और विंग कमांडर एयरफोर्स की ह्यूमन रिर्सोसेज पॉलिसी को चुनौती दी।
  • जब एयरफोर्स ने 2012 में स्थायी कमीशन का ऑप्शन दिया था, तब व्यक्तिगत कारणों से पूजा स्थायी कमीशन नहीं ले पाईं। उसके बाद उन्हें दूसरा अवसर नहीं दिया गया। एयरफोर्स ने अपनी स्वयं की एचआर पॉलिसी का हवाला दिया। जबकि ये सरकार या रक्षा मंत्रालय से स्वीकृत पॉलिसी नहीं थी।
  • पूजा ने इसी पॉलिसी को चुनौती दी और उनके प्रयासों से सुप्रीम कोर्ट ने थलसेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने पर अपना फैसला सुनाया।
  • गगनचुंबी ईमारतों की खिड़कियों के शीशे साफ करते समय उनके एक हाथ में स्मार्टफोन होता है, जिससे वह वीडियो बनाती हैं तो दूसरे हाथ में कांच साफ करने वाला टूल। इस युवती की डेयरिंग देखकर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
  • टिकटॉक पर नोआ के 60 हजार तो इंस्टाग्राम पर 3 हजार फॉलोअर्स हैं। नोआ इजराइल सोशल मीडिया पर मशहूर हस्ती बन चुकी हैं।
  • नोआ को जब लोग ऊंची बिल्डिंग की खिड़की के कांच साफ करते हुए देखते हैं तो वे हैरान रह जाते हैं कि ये काम एक लड़की कैसे कर सकती है।
  • एक नजर इस साल महिलाओं के हक में हुए दो अहम फैसलों पर :

फैसला नं.# 1

सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों के हक में बड़ा फैसला सुनाया। आदेश के मुताबिक, अब पिता की संपत्ति में बेटी भी बराबर की हिस्सेदार होंगी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि 2005 में हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून आने से पहले पिता की मौत क्यों न हो गई हो, इसके बावजूद बेटी का हक बराबर का होगा।

फैसला नं.# 2

आर्मी में महिलाओं को बराबरी का हक मिलेगा। सरकार ने उन्हें स्थायी कमीशन देने का आदेश जारी किया है। महिलाओं को सेना की सभी 10 स्ट्रीम- आर्मी एयर डिफेंस, सिग्नल, इंजीनियर, आर्मी एविएशन, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियर, आर्मी सर्विस कॉर्प, इंटेलीजेंस, जज, एडवोकेट जनरल और एजुकेशनल कॉर्प में परमानेंट कमीशन देने का फैसला किया गया।



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5 stories of equalization on women's equality day and 2 decisions in which daughters got equal in father's property, order of permanent commission in army was issued


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दाऊद इब्राहिम की नई प्रेमिका बताई जा रही पाकिस्तानी एक्ट्रेस मेहविश हयात; इमरान की भी करीबी, जिसके चलते मिला पाकिस्तान का नागरिक सम्मान

भारत का मोस्ट वांटेड भगोड़े दाऊद इब्राहिम का नाम इन दिनों पाकिस्तान की प्रमुख फिल्म अभिनेत्री 'ग्लैमरस गर्ल' मेहविश हयात के साथ जुड़ रहा है। उसने अपने दबदबे के चलते हयात को कई फिल्मों में काम भी दिलाया है। मेहविश को गैंगस्टर गुड़िया के नाम से भी जाना जा रहा है।

पीएम इमरान से भी करीबी संबंध, मिला तमगा-ए-इम्तियाज
सूत्रों के मुताबिक हयात का केवल दाऊद ही नहीं, कई क्रिकेटर और यहां तक की पाकिस्तान के पीएम इमरान खान से भी करीबी संबंध है। पिछले साल मेहविश हयात को पाकिस्तान के नागरिक पुरस्कारों में से एक तमगा-ए-इम्तियाज से नवाजा गया था।

इसके बाद तो सोशल मीडिया कई तरह की कहानियों से पट गया था। लोगों का कहना था कि उसे पुरस्कार इसलिए मिला, क्योंकि उसके पाकिस्तान में बहुत ताकतवर लोगों से संबंध हैं। एक प्रमुख वेबसाइट ने तभी दाऊद इब्राहिम से उनकी करीबी के बारे में संकेत दिया था।

आइटम नंबर करने के बाद शोहरत मिली
अपने लुक के लिए जानी जाने वाली हयात पाकिस्तान की एक टॉप सिंगिंग स्टार भी है और अक्सर कुछ जानी-मानी हस्तियों को होस्ट करती है। इनमें क्रिकेटर्स, राजनेता और उद्योगपति शामिल हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हयात को पाकिस्तानी फिल्मों में आइटम नंबर करने के बाद शोहरत मिली थी। इसके बाद वह दाऊद इब्राहिम के संपर्क में आई, जिसके दबदबे के चलते उसे कुछ हाई बजट की फिल्में मिलीं।
दाऊद पाकिस्तान की फिल्म इंडस्ट्री को फंड करता है। उसके कराची और लाहौर में कई बड़े प्रोड्यूसर और डाइरेक्टर से संबंध हैं।

सोशल मीडिया पर हो रही ट्रोल
37 साल की हयात के ट्विटर पर 14 लाख फॉलोवर्स हैं। हाल में हयात को सोशल मीडिया पर काफी ट्रोल किया जा रहा है। कई भारतीयों ने उन्हें ट्विटर पर ट्रोल करते हुए लिखा कि जिसने 1993 के मुंबई में बम धमाकों में सैकड़ों निर्दोष लोगों की हत्या की उसके साथ वह करीबी रिश्ते में हैं। पाकिस्तान के लोगों ने भी हयात को सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजे जाने पर सवाल उठाए हैं।

मेरे खिलाफ साजिश की जा रही: हयात
ट्विटर पर ट्रोल किए जाने के बाद हयात ने कहा कि उनके खिलाफ साजिश की जा रही है। उसने दाऊद के साथ अपने संबंधों को नकारते हुए कहा कि जो उनसे जुलते हैं उन्होंने ही यह अफवाह फैलाई है।


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1. पाकिस्तान के राजदूत का कारनामा: इंडोनेशिया में पाक के राजदूत ने बेच दी दूतावास की बिल्डिंग, 19 साल बाद अब कोर्ट पहुंचा मामला

2. पाक का कबूलनामा:पाकिस्तान ने पहली बार माना- दाऊद इब्राहिम के पास 14 पासपोर्ट और कराची में 3 घर; दुनिया में बदनामी से बचने के लिए 88 आतंकियों पर प्रतिबंध लगाए



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37 साल की मेहविश हयात ने आइटम नंबर के साथ अपने करियर की शुरुआत की थी। -फाइल फोटो


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भारत में 'लर्निंग पॉड' मॉडल के जरिए स्कूलों को दोबारा खोला जा सकता है, अभी ये अमेरिका में चल रहा है; जानिए क्या है ये मॉडल

देश में कोरोनावायरस के कारण बंद स्कूलों को फिर से खोलने के लिए विचार किया जा रहा है। इसका ऐलान अनलॉक-4 में संभव है, जो 1 सितंबर तक आ सकता है। ऐसे में 'लर्निंग पॉड' मॉडल की चर्चा है, जिसे स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग के लिए अपनाया जा सकता है।

लर्निंग पॉड शब्द कुछ समय पहले ही आया है, इसके तहत लोग भरोसेमंद साथियों को चुनकर एक समूह तैयार करते हैं। इस समूह में बाहर के किसी भी व्यक्ति को आने की अनुमति नहीं होती। इसी मॉडल को अमेरिकी स्कूल भी अपना रहे हैं। वे बच्चों के लिए लर्निंग पॉड्स तैयार कर रहे हैं। इन पॉड्स में कई बच्चे एक साथ पढ़ाई कर करते हैं। आइए लर्निंग पॉड को और समझते हैं..

  • क्या हैं लर्निंग पॉड्स?
  1. एक साथ होगी पढ़ाई: संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए डिजिटल डिवाइसेज के जरिए घर से पढ़ाई कर रहे बच्चे लर्निंग पॉड्स में एक साथ पढ़ाई कर सकेंगे। एक इलाके या शहर में रहने वाले पैरेंट्स अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए नजदीकी स्कूल में भेज सकेंगे।
  2. बनेंगे छोटे ग्रुप्स: 'नैनो स्कूल' या 'माइक्रो स्कूल' कहे जा रहे लर्निंग पॉड्स के तहत माता-पिता अपने बच्चों के लिए छोटे-छोटे समूह तैयार कर सकते हैं। इन ग्रुप्स में करीब 10 बच्चे शामिल हो सकते हैं। इससे बड़ी जगह और कम बच्चों की संख्या के साथ सुरक्षित दूरी बनाए रखना भी मुमकिन होगा।
  3. ट्यूटर हायर करेंगे माता-पिता: फिलहाल अमेरिका में चल रहे लर्निंग पॉड्स में शामिल बच्चों के परिवार वाले एक ट्यूटर को हायर कर रहे हैं। इसका चुनाव वे टीचर की योग्यता को देखकर कर रहे हैं। इसके अलावा कई प्राइवेट कंपनियों ने भी इस आइडिया को अपनाते हुए माइक्रो स्कूलों की शुरुआत की है। वे यह सर्विसेज पैरेंट्स और अध्यापकों को उपलब्ध करा रहे हैं।

पैरेंट्स और बच्चों के लिए यह आइडिया क्यों फायदेमंद है?

  • बच्चों का मेंटल प्रेशर दूर होगा

एक्सपर्ट्स के मुताबिक बच्चे काफी समय से अपने स्कूल रुटीन और साथियों से दूर हैं। यह दूरी उन्हें मानसिक तौर पर भी परेशान कर रही है। अहमदाबाद में साइकैट्रिस्ट और काउंसलर डॉ. ध्रुव ठक्कर के मुताबिक, बच्चे अपने साथियों के साथ मुलाकात नहीं कर पा रहे हैं और यही चीज उन्हें सबसे ज्यादा प्रभावित कर रही है।

बच्चों में सहनशीलता भी खत्म हो रही है। ऐसे में लर्निंग पॉड्स में बच्चों को अपने साथियों के साथ पढ़ाई, बातचीत और सुरक्षित दूरी के साथ मस्ती करने का मौका मिलेगा। यह उनकी एजुकेशन के साथ-साथ मेंटल हेल्थ के लिए भी फायदेमंद होगा।

  • पढ़ाई का नहीं होगा नुकसान

अब जब लर्निंग पॉड्स में बच्चे किसी ट्यूटर की मदद से पढ़ाई कर रहे हैं तो इससे माता-पिता को भी काफी फायदा होगा। इससे पहले क्लासेज के दौरान अगर बच्चे को कोई डाउट है तो उन्हें पैरेंट्स पर निर्भर रहना होता था। कई बार माता-पिता भी बच्चे की दिक्कत को सुलझा नहीं पाते थे। ऐसे में पढ़ाई का काफी नुकसान होता था।

  • अपने काम पर फोकस कर सकेंगे पैरेंट्स

कई बच्चों को खास देखभाल की जरूरत पड़ती है। ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान माता-पिता को भी उनके साथ मौजूद होना पड़ता था। बच्चे की लंबे एजुकेशन में शामिल होने वाले पैरेंट्स का काम भी प्रभावित होता था। ऐसे में उन्हें आराम मिलेगा और वे अपने काम पर फोकस कर पाएंगे।

इससे क्या कोई नुकसान हो सकता है?

  • स्कूल बंद होने के कारण धीमी हुई एजुकेशन की रफ्तार को बढ़ाने का काम तो लर्निंग पॉड्स करेंगे, लेकिन महंगे होने के कारण कई बच्चे फिर से पढ़ाई में पीछे हो जाएंगे। अमेरिकी में इन पॉड्स की फीस 30 डॉलर (2 हजार रुपए) से लेकर 100 डॉलर (7 हजार रुपए) है। हालांकि एक पॉड में जितने ज्यादा बच्चे होंगे, उतना ही कम खर्च आएगा, क्योंकि टीचर को दी जाने वाली फीस बच्चों की संख्या के आधार पर बांट दी जाएगी।
  • इसके अलावा टीचर्स भी लर्निंग पॉड्स को लेकर उत्साहित हैं। अलजजीरा के मुताबिक, ऑरीगॉन में रहने वाली क्रिस्टल लूकस 10 साल से टीचिंग कर रही हैं और वे पॉड इंस्ट्रक्टर बनने की प्लानिंग कर रही हैं। उन्होंने बताया कि वे इसके लिए उत्साहित हैं और 8 बच्चों के समूह को हफ्ते में तीन बार पढ़ाने के लिए वे 500 डॉलर (37 हजार रुपए) प्रति दिन चार्ज करने के बारे में विचार कर रही हैं।

लर्निंग पॉड क्या भारत में संभव है?

  1. राजस्थान के उदयपुर स्थित गीतांजली हॉस्पिटल में साइकोलॉजिस्ट असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर शिखा शर्मा कहती हैं कि यह भी एक तरह की नैनो स्कूलिंग ही है। लर्निंग पॉड्स भारत में भी ट्रेंड में आ सकते हैं और यह बच्चे की ग्रोथ के लिए अच्छा है।
  2. जवाहर नवोदय विद्यालय में म्यूजिक टीचर संजय भट्ट इसे अच्छा कॉन्सेप्ट मानते हैं। इतना ही नहीं वे इसे जरूरी भी बताते हैं। उन्होंने कहा "इससे बच्चे को फायदा होगा, क्योंकि इससे उसकी थोड़ी आउटिंग भी होगी और मानसिक दबाव कम होगा। यह जरूरी तो है, क्योंकि बच्चा घर में कब तक रहेगा और इससे उनकी एजुकेशन भी मॉनिटर भी हो सकेगी।'
  3. राजस्थान के जयपुर के क्लीनिकल साइकैट्रिस्ट डॉक्टर विजय चौधरी छोटे बच्चों के मामले में ऑनलाइन एजुकेशन के पक्षधर नहीं हैं। वे भी लर्निंग पॉड्स के कॉन्सेप्ट को अच्छा मानते हैं। उन्होंने कहा कि इससे लोगों के बीच इंटरेक्शन बढ़ेगा और बच्चे नया कल्चर भी जानेंगे।

क्या लर्निंग पॉड खर्चीला है?
अमेरिका में लर्निंग पॉड्स काफी चर्चा में है, लेकिन वहां भी पैरेंट्स को यह आइडिया खर्चीला होने के कारण बच्चों की पढ़ाई बिगड़ने का डर लग रहा है। उनका कहना है कि लर्निंग पॉड्स की सुविधा मिलने वाले बच्चों की तुलना में अकेले पढ़ाई कर रहे बच्चे पिछड़ सकते हैं।

डॉक्टर शिखा के मुताबिक, भारत में भी यह आइडिया औसत परिवार की जेब पर भारी पड़ेगा। विदेशों की तरह ही भारत में यह परेशानी दोहरा सकती है।



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America's 'learning pods' idea resembles India's coaching culture, children can be left behind due to financial problems


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110 साल पहले अल्बेनिया में हुआ था संत मदर टेरेसा का जन्म; चित्तौड़ पर अलाउद्दीन खिलजी ने किया था कब्जा, पहली बार टेनिस मैच का कलर प्रसारण

पूरी दुनिया में जब भी सवाल उठता है कि सेवा की मिसाल कौन है, तो जवाब एक ही होता है भारत की मदर टेरेसा। यानी कलकत्ता की संत। अल्बेनिया में जन्मीं लेकिन खुद को पूरी तरह भारतीय मानने वाली मदर टेरेसा का आज जन्मदिन है। जीवित होती तो आज उनकी उम्र 110 साल होती।

खैर, आज के दिन के साथ इतिहास का दुखद पन्ना भी जुड़ा है। अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 में आज ही के दिन चित्तौड़गढ़ पर कब्जा किया था।

पहली बार टेनिस मैच का कलर ब्रॉडकास्ट

विंबलडन में बना डिजाइन यह बताता है कि टीवी के लिए वीडियोग्राफी
कहां से की जा सकती है।
  • आज हमारे पास एचडी, अल्ट्रा एचडी, 4के से लेकर तमाम हाईटेक टीवी हैं। हम इन पर दुनिया के कोने-कोने में चल रही खेल प्रतियोगिताएं देखते भी हैं। लेकिन क्या आपको पता था कि 1955 में पहली बार टेनिस मैच का कलर टेलीकास्ट शुरू हुआ था। वह डेविस कप मैच ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के बीच न्यूयॉर्क में खेला गया था और एनबीसी पर प्रसारित हुआ था। भारत में तो 1982 में कलर टीवी आया। तब तक टीवी ब्लैक एंड व्हाइट ही हुआ करता था।

1920 में महिला समानता की आवाज बुलंद हुई

ये हैं एलिस पॉल। अमेरिका में 19वें अमेंडमेंट के पारित होने पर टोस्ट कर रही हैं। एलिस पॉल का अमेरिका में महिला अधिकारों की लड़ाई में विशेष स्थान है।
  • आज दुनिया के ज्यादातर देशों ने वचन लिया हुआ है कि वे महिलाओं को पुरुषों के बराबर दर्जा देंगे। महिला अधिकारों के मुद्दे पर भारत में भी पश्चिमी देशों की ओर देखने को कहा जाता है। लेकिन, हमेशा से ऐसा नहीं था। अमेरिका में भी महिलाओं ने अधिकारों के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। वहां 1920 में संविधान में 19वें संशोधन के जरिए महिलाओं को वोटिंग का अधिकार मिला।

इतिहास में आज की तारीख इन घटनाओं की वजह से भी महत्व रखती हैः
1303: अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर कब्जा किया।
1541: तुर्की के सुल्तान सुलेमान ने बुडा और हंगरी को अपने कब्जे में किया।
1873: अमेरिका में सेंट लुईस में पहला फ्री किंडरगार्टन स्कूल खुला।
1914: बंगाल के क्रांतिकारियों ने कलकत्ता में ब्रिटिश बेड़े पर हमला कर 50 माउजर और 46 हजार राउंड गोलियां लूटी थी।
1959: ब्रिटिश मोटर कॉर्पोरेशन ने मॉरिस मिनी-माइनर लॉन्च की। इस 10 फीट लंबी गाड़ी में चार यात्रियों के बैठने की जगह थी।
1982: नासा ने टेलीसेट-एफ का प्रक्षेपण किया।
1988: म्यांमार की अहिंसावादी नेता आंग सान सू ची मोर्चा लेकर रंगून पहुंचीं।
1996: अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने वेलफेयर रिफॉर्म पर हस्ताक्षर किए और उन्हें कानून का स्वरूप दिया। यह वेलफेयर पॉलिसी की ओर बड़ा शिफ्ट था।
2002: दक्षिण अफ्रीका के जोहानसबर्ग में दस दिवसीय पृथ्वी सम्मेलन शुरू।
2007: पाक-अफगान सीमा पर अमेरिकी सेना ने 12 तालिबानियों को मार गिराया।
2015: अमेरिका के वर्जीनिया में दो पत्रकारों की गोली मारकर हत्या।



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किसी के लिए विरोध का सिम्बल बना तो किसी के लिए टाइमपास बना मास्क; ये कोरोना से बचाएंगे इसकी गारंटी नहीं

दुनियाभर के महामारी विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कोरोना के मामलों की रफ्तार को धीमा करना है तो मास्क पहनिए। लोग मास्क पहन तो रहे हैं, लेकिन अपने अंदाज में। इन्हें फर्क नहीं कि इससे कोरोना रुकेगा या नहीं। यह बचाव से ज्यादा फैशन और क्रिएटिविटी का हिस्सा बन गया है। कुछ देशों में इसका इस्तेमाल विरोध के तौर पर भी किया जा रहा है।

आज की फोटो स्टोरी में देखिए दुनिया के ऐसे ही अजीबोगरीब मास्क, जो संक्रमण से बचाएंगे या नहीं, इसकी गारंटी नहीं...

प्लास्टिक वाटर टैंक से कोरोना का बचाव
फिलीपींस की राजधानी मनीला में प्लास्टिक के वाटर टैंक को सिर पर लगाकर लोग निकल रहे हैं। महामारी से बचने के लिए लोगों ने यह तरीका अपनाया है। हॉन्गकॉन्ग यूनिवर्सिटी और मेरीलैंड यूनिवर्सिटी की संयुक्त रिसर्च में सामने आया है मास्क 100% तक संक्रामक जर्म्स को रोकने में सफल रहा। इसके बावजूद लोग मास्क लगाने से परहेज कर रहे हैं।

बचाव से ज्यादा विरोध की चिंता
महामारी को लेकर दुनियाभर में लगाई गईं पाबंदियों के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को विरोध भी झेलना पड़ रहा है। कई देशों में लोग डब्ल्यूएचओ के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। यह फोटो वेस्टर्न जर्मनी के डॉर्टमंड की है, जिसमें महिला ने मास्क पर एंटी-डब्ल्यूएचओ लिख रखा है। मास्क का यह तरीका विरोध से ज्यादा संक्रमण को बढ़ावा दे रहा है।

पत्तागोभी वाला मास्क
यह फोटो फिलीस्तीन है, जहां एक मां ने अपने बच्चों का चेहरा पत्तागोभी के पत्तों से ढका है। यहां ऐसा मजाक में किया गया है, लेकिन कई देशों के आदिवासी क्षेत्रों में लोगों ने पत्तागोभी को मास्क की तरह इस्तेमाल किया है। इसकी कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई हैं।

नैपकिन वाला मास्क
यहां फोटो फ्रांस की है, जिसमें एक शख्स ने नैपकिन से मुंह को ढकने की कोशिश की है। एम्स भोपाल की विशेषज्ञ डॉ. नीलकमल कपूर कहती हैं, कुछ लोग बार-बार मास्क नाक से नीचे या मुंह के ऊपर खिसका देते हैं। ऐसा करना खतरनाक है और संक्रमण का खतरा बढ़ता है।

ऐसा मास्क जिसे लगाने का कोई फायदा नहीं
यह तस्वीर युगांडा की राजधानी कंपाला शहर की है। शख्स ने एक गोल मेटल के हिस्से को मास्क की तरह पहन रखा है। इससे संक्रमण कितना रुकेगा, आसानी से समझा जा सकता है। डॉ. नीलकमल कपूर के मुताबिक, मास्क ऐसा होना चाहिए जो आंखों के नीचे से लेकर ठोड़ी तक कवर करे। यह ढीला नहीं होना चाहिए।

प्लास्टिक के वेस्ट से मास्क बनाकर दिखाया
दुनियाभर में प्लास्टिक के प्रदूषण का बढ़ता बोझ दिखाने के लिए फैशन फोटोग्राफर मार्सियो रॉडरिगेस ने एक फोटो तैयार की। इसमें एक शख्स को प्लास्टिक वेस्ट का मास्क लगाए हुए दिखाया गया है ताकि लोगों को प्लास्टिक पॉल्यूशन का सबक सिखा सकें। कोरोना काल में मास्क, सैनेटाइजर की बोतलें, पीपीई और प्लास्टिक का कचरा और ज्यादा बढ़ा है, जो समुद्र तक पहुंच रहा है।

प्लास्टिक की बोतल को बनाया मास्क
मनमाने तरीके से बचाव का तरीका इंडोनेशिया की राजधानी जाकार्ता में भी अपनाया जा रहा है। यहां एक लड़के ने दो मास्क लगाने के बाद भी पानी की बोतल से सिर को ढक रखा है। इससे बेचैनी हो सकती है। इंडोनेशिया में संक्रमितों की संख्या बढ़कर 155,412 हो गई। महमारी में 79 लोगों की मौत के बाद मरने वालों का आंकड़ा 6,759 पर पहुंच गया।

3डी-प्रिंटेड रेस्पिरेट्री वॉल्व फिटिंग
यह खास तरह का 3डी-प्रिंटेड रेस्पिरेट्री वॉल्व फिटिंग है। इसे इटली के डिजाइनर मारियो मिलानेसो में बनाया है और मास्क के ऊपर लगाया है। इटली में संक्रमण के मामलों का आंकड़ा 2.60 लाख पार हो चुके हैं, जबकि 35,430 लोगो की मौत हो चुकी है।

फैशनबेल मास्क

यह फोटो थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक की है। जिसे एक ब्यूटी कॉन्टेस्ट के दौरान कैप्चर किया गया है। राजधानी में मिस, मिस्टर और क्वीन डीफ कॉन्टेस्ट के दौरान प्रतिभागी ने यह फैशनेबल मास्क पहना। जिसकी फोटो सोशल मीडिया पर वायरल भी हुई।

प्रेम और भाईचारे का संदेश देने वाला मास्क
महामारी में संक्रमण के डर ने लोगों के बीच एक खाई खोद दी है। लोग एक-दूसरे से बात करने में हिचक रहे हैं। कोरोना से रिकवर होने के बाद भी लोग मरीज से मिलना पसंद नहीं कर रहे हैं। लोगों के बीच से इस डर को मिटाने के लिए हैदराबाद के शख्स ने यह मास्क लगाया है। मास्क पर लिखा है प्यार फैलाएं वायरस नहीं।



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