गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

सौराष्ट्र-कच्छ में 6 घंटे में 10 बार भूकंप आया, पोरबंदर में रात से सुबह तक 8 बार झटके

गुरुवार को गुजरात के सौराष्ट्र-कच्छ इलाकों में 6 घंटे में भूकंप के 10 झटके महसूस किए गए। पोरबंदर के पास 7, जामनगर के लालपुर में 2 और कच्छ में भूकंप का एक झटका आया, जिससे इन इलाकों में डर फैल गया। हालांकि, इन झटकों से किसी तरह के नुकसान की खबर नहीं है। भूकंप का केंद्र जामनगर से 28 किमी दूर दक्षिण-पूर्व में था।

पोरबंदर में 8 झटके महसूस किए गए
पोरबंदर में मंगलवार रात 12 बजकर 19 मिनट पर, 12:34, 1:26, 2:13, 2:54, 2:59 और फिर सुबह 6 बजकर 21 पर भूकंप के आठ झटके महसूस किए गए। इनकी तीव्रता 2.1 से 3.3 रही। इससे लोग रात भर सो नहीं सके और कई इलाकों में लोग रात को घरों से बाहर रहे। वहीं, जामनगर के लालपुर में देर रात 2 बजकर 21 मिनट पर और 2:59 पर 2.5 तीव्रता के और कच्छ में सुबह 6 बजकर 10 मिनट पर 2.3 तीव्रता के झटके महसूस किए गए।



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भूकंप के झटकों की तीव्रता 2.1 से 3.3 रही।- प्रतीकात्मक फोटो।


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नौसेना के बेड़े में शामिल हुआ आईएनएस कवरत्ती, एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल ‘नाग’ का परीक्षण सफल

भारत में बना आईएनएस कवरत्ती गुरुवार को नौसेना के बेड़े में शामिल हो गया है। सेना प्रमुख एमएम नरवणे ने विशाखापटनम नेवल डॉकयार्ड में इसे प्रोजेक्ट 28 (कमरोटा क्लास) के तहत कमीशंड किया । भारत में तैयार आईएनएस कवरत्ती एंटी-सबमरीन वारफेयर (एएसडब्ल्यू) और दुश्मन के रडार की पकड़ में नहीं आने वाली स्टील्थ तकनीक से लैस है। यह लंबी दूरी वाले ऑपरेशन्स में मददगार होगा।

भारत ने गुरुवार को सुरक्षा के क्षेत्र में एक और उपलब्धि हासिल की। एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल ‘नाग’ का अंतिम परीक्षण गुरुवार सुबह राजस्थान के पोखरण फायरिंग रेंज में हुआ। वारहेड के साथ हुआ फाइनल ट्रायल सफल रहा। अब यह स्वदेशी मिसाइल सेना में शामिल होने के लिए तैयार है।

दिन और रात कभी भी दागी जा सकती है नाग मिसाइल

नाग मिसाइल को नाग मिसाइल कैरियर (एनएएमआईसीए) से लॉन्च किया गया। यह 4 से 7 किलोमीटर की रेंज तक निशाना लगा सकती है। यह एक थर्ड जेनरेशन एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल है। दिन और रात दोनों समय दुश्मन टैंकों को निशाना बना सकती है। इसके सेना के शामिल होने के बाद इंडियन आर्मी आसानी से दुश्मन के टैंकों को निशाना बना सकेगी। रक्षा मंत्रालय ने 2018 में इंडियन आर्मी के लिए 300 नाग मिसाइल और 25 एनएएमआईसीए खरीदने को मंजूरी दी थी।

कमीशन होने ही सेवा शुरू करेगा आईएनएस कवरत्ती
आईएनएस कवरत्ती की डिजाइन इंडियन नेवी के नेवल डिजाइन डायरेक्टोरेट ने तैयार की है। इसे कोलकाता की गार्डन रीच शिप बिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (जीआरएसई) ने तैयार किया है। जहाज बनाने के लिए 90% तक भारतीय सामान इस्तेमाल में लाए गए हैं। इस पोत का ढांचा तैयार करने में कार्बन कंपोजिट का इस्तेमाल हुआ है। नौसेना में शामिल होते ही अपनी सेवाएं शुरू कर देगा, क्योंकि इसके सभी समुद्री ट्रायल पहले ही पूरे हो चुके हैं।



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आईएनएस भारत के चार स्वदेशी पोत में से एक है। इसे बनाने के लिए 90% तक भारतीय सामान इस्तेमाल में लाए गए हैं। -फाइल फोटो


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सौराष्ट्र-कच्छ में 6 घंटे में 10 बार भूकंप आया, पोरबंदर में रात से सुबह तक 8 बार झटके

गुरुवार को गुजरात के सौराष्ट्र-कच्छ इलाकों में 6 घंटे में भूकंप के 10 झटके महसूस किए गए। पोरबंदर के पास 7, जामनगर के लालपुर में 2 और कच्छ में भूकंप का एक झटका आया, जिससे इन इलाकों में डर फैल गया। हालांकि, इन झटकों से किसी तरह के नुकसान की खबर नहीं है। भूकंप का केंद्र जामनगर से 28 किमी दूर दक्षिण-पूर्व में था।

पोरबंदर में 8 झटके महसूस किए गए
पोरबंदर में मंगलवार रात 12 बजकर 19 मिनट पर, 12:34, 1:26, 2:13, 2:54, 2:59 और फिर सुबह 6 बजकर 21 पर भूकंप के आठ झटके महसूस किए गए। इनकी तीव्रता 2.1 से 3.3 रही। इससे लोग रात भर सो नहीं सके और कई इलाकों में लोग रात को घरों से बाहर रहे। वहीं, जामनगर के लालपुर में देर रात 2 बजकर 21 मिनट पर और 2:59 पर 2.5 तीव्रता के और कच्छ में सुबह 6 बजकर 10 मिनट पर 2.3 तीव्रता के झटके महसूस किए गए।



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भूकंप के झटकों की तीव्रता 2.1 से 3.3 रही।- प्रतीकात्मक फोटो।


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गुप्तेश्वर पांडे कुछु ना कइले, उ चहिते त पूरा जवार चमका देते, उनका टिकट भाजपा ने कटवा दिया

बक्सर से करीब 7-8 किमी की दूरी पर एक गांव है महदह। बड़ा गांव है। 10 हजार के आसपास की आबादी वाला। शाम के 4 बजे का वक्त है। गांव के प्रवेश द्वार पर कुछ युवा और बुजुर्ग बैठे हैं। वैसे भले ही माहौल चुनावी न बन पाया हो, लेकिन मौसम चुनाव का है, सो इनके बीच भी चर्चा पॉलिटिक्स पर ही चल रही है।

एक युवक कह रहा है, 'लगता है चौबे जी (अश्विनी चौबे) परशुराम बाबा को फंसा दिए हैं। लड़ाई बहुत टक्कर वाली है। हमरा त लगता है कहीं कांग्रेस फिर से न जीत जाए।’ तभी एक बुजुर्ग बोल पड़ते हैं, ‘तोहार दिमाग त ठीक बा न, बक्सर से कबो भाजपा हारी (दिमाग तो ठीक है न, बक्सर से कभी भाजपा हारेगी)।'

इसी बीच उनकी डिबेट के बीच मैंने एंट्री ले ली है, 'बाबा, पिछला चुनौवा त भाजपा हारल रहे न। वो बोले, 'उ टाइम गईल बबुआ, अबकी भाजपा के कोई न रोक सकी (वो समय गया, इसबार भाजपा को कोई नहीं रोक सकेगा)।

बक्सर सीट से भाजपा प्रत्याशी परशुराम चौबे इसी गांव के हैं। कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर ‘हवलदार डीजीपी पर भारी पड़ गया’ जुमला काफी चर्चा में रहा था। परशुराम चौबे वही हवलदार हैं, जो अब नौकरी छोड़कर नेतागिरी में आ चुके हैं।

यहां के लोग इस बात से खुश जरूर है कि गांव के आदमी को टिकट मिला है, लेकिन जीत को लेकर मन में थोड़ा अगर-मगर भी बना हुआ है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि गुप्तेश्वर पांडे को टिकट मिलता तो जीत आसान होती।

पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे का गांव भी इसी जिले में पड़ता है। यहां से करीब 10 किमी दूर है गेरूआबांध। गांव से पहले एक छोटी सी चाय-समोसे की दुकान है। यहां भी चार-पांच लोग बैठे हैं और बातचीत जारी है, लेकिन चुनावी गुणा-गणित से दूर।

हमने पूछा- चुनाव का क्या माहौल है। समोसे का मसाला तैयार कर रहे युवक ने अनमने भाव से कहा, ‘माहौल का बताएं हम, चुनाव के बाद कउनो झांकने भी आता है यहां। कोरोना में हम 14 दिन क्वारैंटाइन रहे, नीतीश बोले थे कि हजार रुपया देंगे, एक पैसा भी नहीं दिया।’

पांडेजी (गुप्तेश्वर पाण्डेय) कुछ नहीं किये! के जवाब में बोले- ‘छोड़िए महाराज, उ का करेंगे। एतना बड़का अधिकारी थे, चाहते तो ई पूरा जवार( इलाका) चमका देते।’

यह बतकही यहीं छोड़ हम पांडेजी के गांव पहुंचे तो एक छोटी सी झोपड़ी में 5-6 लोग बैठे मिले। उनसे कुछ बतियाना चाहा तो एक युवक बोला, 'ई बताइए कोई कोरोना के समय बोलने की हिम्मत किया है। देश में खाली दो ही आदमी है, जो बोला है। एक मोदी और दूसरा गुप्तेश्वर पांडे। नीतीश भी बोलने की हिम्मत नहीं कर पाए। अगर बक्सर से गुप्तेश्वर पांडे को टिकट मिला होता तो बक्सर सबसे हॉट सीट होता। मीडिया का तो यहां जमावड़ा लगा होता।’

वो कहते हैं, 'भाजपा ने ही टिकट काटा है इनका। भाजपा ने पहले 2009 में धोखा दिया और अब फिर 2020 में। ई बेर के चुनाव में हम भाजपा को सबक सिखाएंगे। मैंने पूछा कि एक-दो गांव के विरोध से कुछ फर्क पड़ेगा क्या? वो कहते हैं, ‘देखिए ई विधानसभा के चुनाव है। यहां एक गांव की तो बात छोड़िए एक वोट से फर्क पड़ता है। आप देखिएगा बक्सर और राजपुर दोनों जगह एनडीए का क्या हाल होता है।’

गांव में सुशांत सिंह राजपूत और टीआरपी घोटाले की भी खूब चर्चा है। एक बुजुर्ग कहते हैं, उ कौन ठाकरे है न मुख्यमंत्री महाराष्ट्र के, उ बिहारियों को देखना नहीं चाहता है। जैसे दो महीना उ केस नहीं दर्ज किया, उससे तो यही लगता है न कि उहो ई खेल में शामिल हैं। एक युवक तो मुंबई के पुलिस कमिश्नर का इस्तीफा भी मांग रहा है कि उसने एक चैनल को जानबूझकर फंसाया। हालांकि, ये लोग भावनाओं में ज्यादा मंत्रमुग्ध हैं, जमीनी फैक्ट पर कोई बात नहीं करना चाहता, ठीक अपने नेताओं की तरह।



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Nitish Kumar Gupteshwar Pandey (Bihar) Election 2020 | Buxar Locals Voters Political Debate On Nitish Kumar and BJP Parshuram Chaubey


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मोदी 12 बजे बंगाल के लोगों को शुभकामनाएं देंगे; भाजपा 78 हजार बूथ पर प्रोग्राम दिखाएगी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज 12 बजे पश्चिम बंगाल के लोगों के साथ दुर्गा पूजा में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शामिल होंगे। बंगाल का सबसे बड़ा उत्सव दुर्गा पूजा आज से शुरू हो रहा है। इस मौके पर मोदी वहां के लोगों को पुजोर शुभेचा (पूजा की शुभकामनाएं) देंगे। मोदी ने बुधवार को ट्विटर पर यह जानकारी दी।

मोदी के इस प्रोग्राम के जरिए भाजपा की नजर पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले चुनावों पर भी है। भाजपा ने सभी 294 विधानसभा सीटों के 78 हजार पोलिंग बूथों पर मोदी का संबोधन दिखाने के इंतजाम किए हैं। सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए हर बूथ पर 25 कार्यकर्ता मोदी का संबोधन देख सकेंगे।

प्रधानमंत्री के संबोधन से पहले कोलकाता के ईस्टर्न जोनल कल्चरल सेंटर (EZCC) में एक कल्चरल प्रोग्राम होगा। इसमें पश्चिम बंगाल भाजपा के सीनियर नेता मौजूद रहेंगे।



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मोदी के संबोधन से पहले 10 बजे कोलकाता के ईस्टर्न जोनल कल्चरल सेंटर कल्चरल प्रोग्राम भी होगा। - फाइल फोटो।


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भारत में दुनिया के कई देशों से कम मौतें, महीने भर पहले की तुलना में औसतन 300 से 400 मौतें घटीं

दुनिया के कई देशों में कोरोना की दूसरी लहर शुरू हो चुकी है। इसके साथ ही मौत की रफ्तार भी इन देशों में तेज हो गई है। राहत की बात है कि भारत में इसके उलट मौत की रफ्तार धीमी पड़ने लगी है। हर दिन अभी यहां औसतन 700-800 लोग संक्रमण के चलते जान गंवा रहे हैं। अगस्त-सितंबर में यही आंकड़ा 1 हजार से 1100 तक पहुंच गया था।

आंकड़ों पर नजर डालें तो यूएस में अगस्त-सितंबर माह में हर दिन जान गंवाने वालों की संख्या घटकर 400-600 हो गई थी। जो एक बार फिर से बढ़कर 700-800 हो गई है। इसी तरह स्पेन में 50-100 मरीज जान गंवा रहे थे जो जहां अब 150 से 290 तक मौतें होने लगी हैं। भारत में अब तक 1.16 लाख से ज्यादा मौतें हुईं हैं। बीते 24 घंटे में 703 लोगों की जान गई है।

देश में अब तक 77 लाख 5 हजार 158 लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। राहत की बात है कि ठीक होने वालों का आंकड़ा 68 लाख के पार हो चुका है। 68 लाख 71 हजार 895 लोग ठीक हो चुके हैं। अभी 7 लाख 15 हजार 509 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 1 लाख 16 हजार 653 लोगों की मौत हो चुकी है। बीते 24 घंटे में 56 हजार नए मामले सामने आए और 79 हजार 342 लोग ठीक हुए।

आंकड़ों पर नजर डालें तो देश के टॉप-5 संक्रमित राज्यों में 85% से ज्यादा लोग ठीक हो चुके हैं। सबसे ज्यादा आंध्र प्रदेश में 95.09%, तमिलनाडु में 93.15% और उत्तर प्रदेश में 91.91% मरीज रिकवर हो चुके हैं। महाराष्ट्र में 86.50% और कर्नाटक में 85.25% लोग अब तक ठीक हो चुके हैं। देश का औसत रिकवरी रेट 88.82% हो गया है।

पांच राज्यों का हाल

1. मध्यप्रदेश

राज्य में पिछले 24 घंटे में 1118 नए मरीज मिले और 1222 लोग रिकवर हुए। 17 संक्रमितों ने दम तोड़ दिया। अब तक 1 लाख 63 हजार 296 लोग कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं। इनमें 12 हजार 386 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 1 लाख 48 हजार 82 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण के चलते 2828 मरीजों की मौत हो चुकी है।

2. राजस्थान

राज्य में बीते 24 घंटे में 1810 केस मिले, 2865 लोग रिकवर हुए और 14 मरीजों की मौत हो गई। राज्य में अब तक 1 लाख 78 हजार 933 लोग संक्रमित पाए जा चुके हैं। इनमें 19 हजार 185 मरीजों का अभी इलाज चल रहा है, जबकि 1 लाख 57 हजार 960 लोग ठीक हो चुके हैं। 1788 संक्रमित अब तक जान गंवा चुके हैं।

3. बिहार

राज्य में बीते 24 घंटे में को 1277 नए मरीज मिले और 1319 लोग ठीक हुए। 8 संक्रमितों की मौत हो गई। मरीजों का आंकड़ा अब 2 लाख 8 हजार 238 हो गया है। इनमें 11 हजार 10 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 1 लाख 96 हजार 208 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण के चलते अब तक 1019 संक्रमित दम तोड़ चुके हैं।

4. महाराष्ट्र

राज्य में संक्रमण के चलते जान गंवाने वालों का आंकड़ा 24 लाख 633 हो गया है। बीते 24 घंटे में 180 मरीजों की मौत हुई। 8142 नए केस मिले और 23 हजार 371 लोग रिकवर हुए। अब तक 16 लाख 17 हजार 658 लोग संक्रमित पाए जा चुके हैं। इनमें 1 लाख 58 हजार 852 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 14 लाख 15 हजार 679 लोग ठीक हो चुके हैं।

5. उत्तरप्रदेश

राज्य में कोरोना मरीजों का आंकड़ा 4 लाख 61 हजार 475 लोग हो गया है। पिछले 24 घंटे के अंदर 2321 नए केस मिले और 3332 लोग रिकवर हुए। 41 मरीजों की मौत हो गई। संक्रमण से अब तक 4 लाख 25 हजार 356 लोग रिकवर हो चुके हैं। अभी 29 हजार 364 मरीजों का इलाज चल रहा है। 6755 मरीजों की मौत हो चुकी है।



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चर्चा है अश्विनी चौबे जहर की शीशी लेकर बैठे थे कि गुप्तेश्वर पांडे को टिकट मिला तो जहर पी लेंगे

बक्सर जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर की दूरी पर हरपुर-जयपुर पंचायत में एक गांव है गेरूआबांध। 700 के करीब गांव की आबादी है। यहां ब्राह्मण और यादवों की संख्या ज्यादा है, जबकि दलितों के चार-पांच घर ही हैं। उनके घर टूटे हुए या झोपड़ी वाले हैं। इसी गांव के रहने वाले हैं बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे, जो पिछले दिनों सुशांत सिंह केस की जांच के वक्त चर्चित हुए थे।

गांव के प्रवेश द्वार पर पहुंचते ही एक अधेड़ मिले, जो घास काट रहे थे। उनसे पूछा कि पांडेजी का गांव यही है न? उन्होंने हां में सिर हिलाया। जब उनसे सवाल किया कि गांव के लिए पांडे जी ने कुछ काम किया है कि नहीं? उन्होंने कहा, 'गांव खातिर का कइले बानी, कुछु ना। उहां के त आइना और जाइना। ( गांव के लिए कुछ नहीं किए हैं, वो यहां कुछ देर के लिए आते हैं और फिर वापस लौट जाते हैं।)

गांव में पक्की सड़क है, देखकर ऐसा लगता है कि चुनावी मौसम से थोड़े दिन पहले ही बनी है। आगे बढ़ने पर एक झोंपड़ी में कुछ लोग बैठे मिले। उनसे पूर्व डीजीपी का घर पूछा तो एक युवक ने हाथ से इशारा किया कि बगल में ही है। इन्हीं में से एक 50-55 साल के तेजनारायण पांडे हैं। ये गुप्तेश्वर पांडे के बचपन के दोस्त हैं। साथ ही पढ़े हैं, नौकरी के बाद भी कई महीने उनके आवास पर रहे हैं। आज भी जब भी वो गांव आते हैं, इनसे जरूर मिलते हैं।

गांव के लोगों में गुप्तेश्वर पांडे को टिकट नहीं मिलने पर नाराजगी है। इनका कहना है कि बक्सर की चारों सीटों पर इसका असर पड़ेगा।

वो कहते हैं, ' वीआरएस लेने से कुछ दिन पहले साहब यहां आए थे। हमलोगों से चुनाव लड़ने के बारे में चर्चा किए थे। तब हमने कहा था कि डीजीपी होकर विधायक का चुनाव नहीं लड़िए, लेकिन वो बोले कि अब मन बना लिया हूं, जनता का भी बहुत प्रेशर है। हमने कहा कि लोकसभा का लड़ जाइएगा, लेकिन वो बोले कि 'जब लड़ब त बक्सरे से लड़ब' (जब लड़ेंगे तो बक्सर से ही लड़ेंगे)।

अश्विनी चौबे, गुप्तेश्वर पांडे की पीठ में छुरा घोंप दिए

तेजनारायण कहते हैं, 'भाजपा और अश्विनी चौबे ने धोखा दिया है। जब 2014 में वो लोकसभा के लिए भागलपुर से यहां आए तो हम लोगों ने गुप्तेश्वर पांडे के कहने पर ही इनको वोट किया, पूरे क्षेत्र में इनके लिए काम किया। और आज वही अश्विनी चौबे, इनके पीठ में छुरा घोंप दिए। हम लोग कट्टर भाजपाई रहे हैं लेकिन, ई बेर (इस बार) इनको सबक सिखाना है। चौबेजी दुबारा मुंह ना दिखइहें एह क्षेत्र में। राजपुर और बक्सर दोनों जगह इनके खिलाफ वोटिंग होगी।'

हमने पूछा कि आखिर अश्विनी चौबे को गुप्तेश्वर पांडे से क्या दिक्कत है, जो उनका टिकट काटेंगे? वो कहते हैं,' दिक्कत है, दोनों की छवि में जमीन-आसमान का अंतर है। पूरे क्षेत्र में घूम लीजिए आप, एक्को काम नहीं किया है। उनको डर था कि अगर गुप्तेश्वर पांडे को टिकट मिलता है तो उनका लोकसभा का पत्ता साफ हो जाएगा। तभी पीछे से एक युवक कहता है, 'आप इस गांव से बाहर जाकर दूसरे गांव में भी पता कीजिए, सब जगह चर्चा है कि अश्विनी चौबे जहर की शीशी लेकर बैठे थे कि बक्सर से पांडे को टिकट मिला तो जहर पी लेंगे।'

थोड़ी देर बाद गुप्तेश्वर पांडे के छोटे भाई रासबिहारी पांडे भी आ गए। वे अपनी मां के साथ गांव में रहते हैं और खेती-बाड़ी का काम करते हैं। इनके घर पहुंचे तो सामने एक बेड पर गुप्तेश्वर पांडे की मां बैठीं थीं। वो थोड़ा कम सुनती हैं, चुनाव और पॉलिटिक्स के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है, बस इतना पता है कि बेटा बड़ा साहब है। इनसे बात कर ही रहा था, तभी रासबिहारी आ गए। उन्होंने कहा कि इनसे कुछ बात मत करिए चलिए बाहर हम लोग बात करते हैं। शायद वो नहीं चाहते थे कि मां से कुछ बात हो और वो बात आगे निकल जाए। खैर हमने भी कोई जबरदस्ती नहीं की।

गुप्तेश्वर पांडे की मां गांव में ही रहती हैं। इन्हें राजनीति के बारे में कुछ नहीं पता है। बस इतना जानती हैं कि बेटा बड़ा आदमी है।

हम उनके साथ बाहर दरवाजे पर आ गए। कुछ गाय-भैंस बंधी हैं, कुछ अनाज भी सूखने के लिए रखा गया है। पांडेजी के बारे में सवाल करने पर वो ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। हो सकता है कि टिकट कटने के बाद बड़े भाई का ये आदेश हो कि कुछ बोलना नहीं है। वो यहां की राजनीति के बारे में जानते बहुत कुछ हैं, मुझसे पूछते भी हैं कि क्या माहौल है और गांव के लोग गुप्तेश्वर पांडे के बारे में क्या कह रहे थे।

लेकिन, खुद टिकट कटने के सवाल पर कहते हैं,' हम किसान आदमी हैं, हम ई सब के चक्कर में नहीं रहते हैं। हमें तो गांव के लोगों से पता चला कि टिकट कटा है। क्यों कटा और कौन काटा, हमें नहीं पता। उनके पास ही एक बुजुर्ग बैठे हैं, वो मुज्जफरपुर के रहने वाले हैं। 10 साल से यहीं रहते हैं और खेती किसानी का काम करते हैं। कहते हैं, 'टिकट तो भाजपा वाले ही काटे हैं, ई बात तो सब जानते हैं। वैसे देखिएगा आप अगर सरकार बनी तो साहब को नीतीश कुमार मंत्री बनाएंगे।'

गांव में एक प्राइमरी स्कूल है। इसके बाद की पढ़ाई के लिए उनवास या बक्सर जाना होता है। कोई अस्पताल या मेडिकल ट्रीटमेंट की व्यवस्था गांव में नहीं है। नल-जल योजना के तहत गांव में नल तो लगे हैं, लेकिन कभी इनसे पानी नहीं निकला है। यहां के दलितों को न तो राशन मिलता है, न ही आवास।

नीतीश ने टिकट ही नहीं दिया

रामनाथ राम मजदूरी करके गुजारा करते हैं। कहते हैं कि नीतीश ने ही हमारे साहब( गुप्तेश्वर पांडे) का टिकट काट दिया।

रामनाथ राम पैर के घाव से तंग हैं, मजदूरी करके गुजारा करते हैं। कई सालों से इन्हें राशन नहीं मिला है। पूर्व डीजीपी 50 हजार रुपए की मदद किए थे। वो कहते हैं,' साहब जऊन हमारा खातिर कइले बानी हम कबो ना भुलाइब, वोट के का बात बा हम उहां खातिर जान दे देब। नीतीशवा नु उनकर टिकट काट देहलसा ( मेरे लिए साहब जो किए हैं, उसे हम भूल नहीं सकते हैं। वोट की क्या बात है, उनके लिए तो जान भी दे सकते हैं, लेकिन नीतीश ने टिकट ही नहीं दिया)।

पंकज पांडे होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहे हैं। अभी कोरोना के चलते गांव में हैं। कहते हैं, 'ई बताइए कि नीतीश चाह देते तो पूरे बिहार में एक सीट नहीं मिलती। बक्सर में नहीं तो डुमरांव दे देते, शाहपुर दे देते, ब्रह्मपुर दे देते। लेकिन, उनको भी कहीं न कहीं डर था कि ये जीत गए तो एक तेजतर्रार नेता के सामने कहीं उनकी छवि कमजोर न हो जाए।'

लोगों से बातचीत से पता चला कि गुप्तेश्वर पांडे दो-चार महीने में यहां आते हैं, लेकिन कभी ज्यादा देर रुकते नहीं हैं। पहली बार 2009 में वीआरएस लिए थे, तब से इन क्षेत्रों में थोड़ी सक्रियता बढ़ी है। इस गांव के पास ही हरपुर और जयपुर गांव हैं। वहां भी गुप्तेश्वर पांडे की लोकप्रियता है। लेकिन, टिकट मिलने या नहीं मिलने को लेकर कोई मलाल या नाराजगी नहीं है।

इसी गांव से थोड़ी दूर पर एक गांव है महदह। ये गांव उसी भाजपा प्रत्याशी परशुराम चौबे का है, जिन्हें बक्सर से इस बार भाजपा ने टिकट दिया है। यहां भी गुप्तेश्वर पांडे को लेकर चर्चा जरूर है, लेकिन गांव के आदमी को टिकट मिलने से खुशी भी है। गांव के ही एक बुजुर्ग कहते हैं, ' देखिए गांव के आदमी को टिकट मिला है तो खुशी तो है, लेकिन पांडे जी थोड़ा मजबूत कैंडिडेट थे। उनको टिकट नहीं मिलने से इस इलाके के कुछ सवर्ण कांग्रेस को वोट कर सकते हैं। क्योंकि, सबको पता है कि ये चौबेजी के चहेते हैं और चौबेजी की छवि इधर बहुत अच्छी नहीं है, वो तो मोदी के नाम पर जीत जाते हैं।

यह भी पढ़ें :

बिहार के 'रॉबिनहुड' पांडे की कहानी : सुर्खियां बटोरना जिनका शौक, सीतामढ़ी में दंगा हुआ तो लाश के पास बैठ रोने लगे, सुरक्षा गार्ड से फेसबुक लाइव करवाते हैं



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Bihar Assembly election 2020 :Ground report From former DGP Gupteshwar Pandey, Bihar Buxar


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बिहार में वोट मांगने गए नीतीश के काफिले पर जनता ने हमला किया? 2 साल पुराना है वीडियो

क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया जा रहा है। वीडियो में भीड़ एक वीआईपी काफिले पर हमला करती दिख रही है। काफिले के साथ मौजूद पुलिस बल भीड़ पर काबू पाने की कोशिश कर रहा है।

28 अक्टूबर से बिहार विधानसभा चुनावों की वोटिंग शुरू होनी है। दावा है कि इसी चुनाव के लिए जब जदयू प्रमुख नीतीश कुमार वोट मांगने गए। तो जनता ने उन पर इस तरह अपना गुस्सा निकाला। वीडियो के साथ कैप्शन शेयर किया जा रहा है - नीतीश कुमारजी आप इतना अच्छा काम करते ही क्यों हो

बिहार की जनता आपका न जाने कब से स्वागत करने के लिए खड़ी इंतज़ार कर रही थी...

और जैसे ही स्वागत करने का समय आया आप जनता के बीच से भाग खड़े हुए।

ऐसे कैसे चलेगा सुशासन बाबू

और सच क्या है ?

  • इंटरनेट पर हमें हाल की ऐसी कोई खबर नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि बिहार चुनाव में प्रचार के दौरान नीतीश कुमार पर हमला हुआ।
  • वायरल वीडियो के की-फ्रेम्स को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से हमें ‘आज तक’ न्यूज चैनल के फेसबुक पेज पर भी यही वीडियो मिला। यहां वीडियो 2 साल पहले अपलोड किया गया है। हालांकि, ये बात सच है कि जिस काफिले पर हमला हुआ वो नीतीश कुमार का ही था।
  • पड़ताल के दौरान हमें न्यूज एजेंसी ANI का एक ट्वीट भी मिला। जिससे पुष्टि होती है कि नीतीश के काफिले पर हमले का मामला 2 साल पुराना है।
  • साफ है कि वायरल वीडियो में भीड़ नीतीश कुमार के काफिले पर ही हमला कर रही है। लेकिन, ये घटना 2 साल पुरानी है। इसे हाल ही का बताकर लोगों को गुमराह किया जा रहा है।


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Fact Check: Did people attack Nitish Kumar's convoy for seeking votes in Bihar elections? Viral Video is actually 2 years old


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ऐश्वर्या यह अवॉर्ड जीतने वाली देश की पहली लड़की, 11 साल की उम्र में शुरू की थी फोटोग्राफी

ऐश्वर्या श्रीधर नवी मुंबई में रहती हैं। वे वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर के अलावा वाइल्डलाइफ प्रजेंटेटर और डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर भी हैं। 23 साल की ऐश्वर्या को 2020 वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर ऑफ द ईयर अवॉर्ड दिया गया है। वो यह पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय लड़की हैं।

'लाइट्स ऑफ पैशन' टाइटल वाली उनकी फोटो ने दुनिया भर के 80 से अधिक देशों की 50,000 एंट्रीज में पहली पोजिशन हासिल की। ऐश्वर्या ने बिहेवियर इनवर्टेब्रेट्स कैटेगरी में यह पुरस्कार जीता।

इस फोटो के लिए ऐश्वर्या को मिला वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर ऑफ द ईयर अवॉर्ड।

ऐश्वर्या को इससे पहले सेंक्चुरी एशिया यंग नेचरलिस्ट अवॉर्ड और इंटरनेशनल कैमरा फेयर अवॉर्ड भी मिला है। वो यह सम्मान पाने वाली सबसे कम उम्र की लड़की हैं। ऐश्वर्या अपने करिअर, रोल मॉडल और इस क्षेत्र में आने वाली लड़कियों के लिए क्या कहती हैं, जानिए उन्हीं की जुबानी:

'मुझे बचपन से वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी का शौक था। मेरे डैडी बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी के मेंबर हैं। उनके साथ मैं कई जगह जाती थी। तभी मुझे ये शौक लगा। जब मुझे डैडी ने मेरे बर्थडे पर पहला कैमरा गिफ्ट किया तो मैंने छोटी-छोटी चीजों की फोटोग्राफी करनी शुरू की। ग्रेजुएशन के बाद मैं वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बनी।'

महज 11 साल की उम्र से ऐश्वर्या ने फोटोग्राफी की शुरुआत की।

ऐश्वर्या कहती हैं, ''जंगल में फोटोग्राफी के दौरान मुझे डर नहीं लगता। लेकिन, कई बार पत्तों के नीचे या घने जंगलों में सांप छिपे होते हैं। तभी मुझे डर लगता है। वरना मैं किसी जानवर से नहीं डरती। मैं अपने इस काम से बहुत प्यार करती हूं। यही मेरा पैशन है। जिस इमेज के लिए मुझे अवॉर्ड मिला, वो मैंने पिछले साल जून में खींची थी। मैंने एक पेड़ देखा जो ढेर सारे जुगनुओं से भरा था। ये देखकर मुझे ऐसा लगा, जैसे सितारे जमीन पर उतर आए हैं। तब मैंने ये फोटो लिया।''

वो बताती हैं, ''मैंने 11 साल की उम्र से फोटोग्राफी की शुरुआत की। मम्मी-डैडी ने पूरा सपोर्ट किया। अगर देश में वुमन वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर की बात करूं तो कई लड़कियां या महिलाएं इस क्षेत्र में आने से हिचकिचाती हैं। मैं उन सबसे कहना चाहती हूं कि एक महिला होने के नाते अपने सपनों और पैशन को पूरा करने से पीछे न हटें। इस काम की शुरुआत के लिए आप सबसे पहले किसी ट्रेनी या किसी कॉलेज, इंस्टीट्यूट से फोटोग्राफी सीखिए।''

ऐश्वर्या को जंगलों में प्रकृति के बीच रहना बहुत अच्छा लगता है।

ऐश्वर्या कहती हैं, ''अपनी मेहनत सीखने में लगाइए। अगर आप सही तरीके से सीखेंगी तो फोटोग्राफी में भी परफेक्शन दिखने लगेगा। हर हाल में अपना आत्मविश्वास बनाए रखें। जब आप पूरी इच्छाशक्ति के साथ जिंदगी की परेशानियों का सामना करते हैं, तो हर काम आसान हो जाता है।''

उन्होंने कहा, "वैसे तो जंगलों में प्रकृति के बीच रहना मुझे बहुत अच्छा लगता है। लेकिन, यहीं से मैंने जीवन के कई सबक भी सीखे। एक बार मैं जंगल में पक्षियों की फोटो ले रही थी। मैं इतनी खो गई थी कि पता ही नहीं चला कि जहां खड़ी हूं, वहां दलदल है। फोटो लेने के बाद मैं कदम भी नहीं चल पा रही थी। उस वक्त मैंने ये सीखा कि फोटाेग्राफी के साथ ही आसपास के माहौल का ध्यान रखना भी जरूरी है ताकि सुरक्षित रह सकें। जीवन में धैर्य रखना भी जरूरी है। जब आप अपनी इच्छाओं के बारे में कम सोचते हैं, तो जीवन सबसे अच्छा होता है।"

टाइगर की ये फोटो ऐश्वर्या ने क्लिक की है। वो कहती हैं कि किसी भी जानवर से उन्हें डर नहीं लगता है।

उन्होंने अपने रोल मॉडल के बारे में बताया- ''ऐसे कई वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर हैं, जिन्हें मैं अपना रोल मॉडल मानती हूं। इनमें राधिका रामासामी, लतिका नाथ, अश्विका कपूर और कल्याण वर्मा शामिल हैं। इनकी फोटोग्राफी मुझे प्रेरित करती है। फिलहाल मैं बंदरों पर एक डॉक्यूमेंट्री बना रही हूं। मैं भविष्य में वाइल्ड लाइफ टीवी प्रजेंटेटर बनना चाहती हूं। साथ ही डिस्कवरी और एनिमल प्लेनेट जैसे चैनलों के जरिये सारी दुनिया को वाइल्ड लाइफ की सैर कराने का सपना देखती हूं।''



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Aishwarya Sridhar is the first girl in the country to win the Wildlife photographer of the Year award, learns many life lessons while living amidst nature


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रिकवरी के बाद मरीजों के फेफड़े, हार्ट, किडनी पर बुरा असर, 64% सांस की तकलीफ से जूझ रहे

कोरोना से रिकवर होने वाले 64% मरीजों में कई महीनों तक वायरस का असर दिख रहा है। इलाज के बाद भी मरीज सांस लेने की दिक्कत, थकान, बेचैनी और डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। यह रिसर्च करने वाली ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स का कहना है- कोरोना का संक्रमण होने के 2 से 3 महीने बाद ये असर दिखना शुरू हो रहा है। रिसर्च के दौरान पाया गया कि 64% मरीज सांस लेने की तकलीफ से जूझ रहे थे। वहीं, 55% थकान से परेशान थे।

ज्यादातर मरीजों में फेफड़े ठीक से काम नहीं कर रहे
रिसर्च के मुताबिक, मरीजों की MRI करने पर पता चला कि कोरोना के 60% मरीजों के फेफड़े एब्नॉर्मल मिले। 29% मरीजों की किडनी में दिक्कतें मिलीं। वहीं, 26% में हार्ट प्रॉब्लम्स और 10% को लिवर से जुड़ी समस्याएं हुईं।

55% थकान से जूझ रहे
रिकवरी के बाद 55% मरीज थकान से जूझ रहे हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रेडक्लिफ डिपार्टमेंट ऑफ मेडिसिन के डॉक्टर बैटी रमन कहते हैं- आंकड़े बताते हैं कि रिकवरी के बाद शरीर की जांच करने की जरूरत है। डिस्चार्ज के बाद उन्हें मेडिकल केयर देने के लिए एक मॉडल डेवलप किया जाना चाहिए।

ऑर्गेन फेल्योर और सूजन के बीच कनेक्शन मिला
डॉक्टर बैटी रमन कहते हैं, "मरीजों में एब्नॉर्मेलिटी देखी जा रही है। इसका सीधा कनेक्शन अंगों की सूजन से है। शरीर के अंगों में यह गंभीर सूजन और ऑर्गेन फेल्योर के बीच कनेक्शन मिला है। सूजन ही शरीर के अंगों को डैमेज करने का काम कर रही है। कोरोना से रिकवर होने वाले मरीज इससे जूझ रहे हैं।"

लॉन्ग कोविड के मामले दिख रहे
पिछले हफ्ते ब्रिटेन के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ रिसर्च ने बताया था कि मरीजों में लॉन्ग कोविड के मामले सामने आ रहे हैं। वे रिकवरी के बाद पहले की तरह सेहतमंद नहीं दिख पा रहे। शरीर के अलग-अलग हिस्सों में कोरोना का असर लम्बे समय तक दिख रहा है।



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Abnormalities spotted in lungs of 60 percent coronavirus patients months later Oxford University study


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टूर्नामेंट में बने रहने के लिए दोनों को चाहिए जीत, पॉइंट्स टेबल में राजस्थान छठवें और हैदराबाद 7वें नंबर पर

आईपीएल के 13वें सीजन का 40वां मैच राजस्थान रॉयल्स (RR) और सनराइजर्स हैदराबाद (SRH) के बीच दुबई में शाम 7:30 बजे से खेला जाएगा। टूर्नामेंट में बने रहने के लिए दोनों टीमों को यह मैच जीतना जरूरी है। पॉइंट्स टेबल में राजस्थान 8 पॉइंट के साथ छठवें और हैदराबाद 6 पॉइंट के साथ 7वें नंबर पर है। हालांकि राजस्थान ने लीग में अब तक 10 और हैदराबाद ने 9 मैच खेले हैं।

पिछले मैच में राजस्थान ने हैदराबाद को हराया था
पिछले मैच में राजस्थान ने हैदराबाद को 5 विकेट से हराया था। राहुल तेवतिया और रियान पराग ने अपने दम पर मैच हैदराबाद से छीन लिया था। राजस्थान ने पहले 9 बल्लेबाजी करते हुए 5 विकेट पर 158 रन बनाए थे। जवाब में हैदराबाद ने एक बॉल रहते 5 विकेट पर मैच जीत लिया था।

बटलर-स्मिथ राजस्थान के टॉप स्कोरर
राजस्थान के जोस बटलर और कप्तान स्टीव स्मिथ ने राजस्थान के लिए सीजन में सबसे ज्यादा रन बनाए हैं। बटलर ने 9 मैच में 262 रन और स्मिथ ने 10 मैच में 246 रन बनाए हैं। इसके अलावा संजू सैमसन ने 10 मैच में 236 रन बनाए हैं।

आर्चर-तेवतिया के नाम सबसे ज्यादा विकेट
राजस्थान के लिए सीजन में सबसे ज्यादा विकेट लेने के मामले में जोफ्रा आर्चर पहले और राहुल तेवतिया दूसरे नंबर पर हैं। आर्चर ने 10 मैच में 13 विकेट जबकि तेवतिया ने इतने ही मैचों में 7 विकेट लिए हैं। सीजन में आर्चर ने सबसे ज्यादा 120 डॉट बॉल डालीं हैं।

वॉर्नर-बेयरस्टो हैदराबाद के टॉप स्कोरर
हैदराबाद के कप्तान डेविड वॉर्नर और जॉनी बेयरस्टो ने अपनी टीम के लिए सीजन में सबसे ज्यादा रन बनाए हैं। वॉर्नर ने 9 मैच में 331 और बेयरस्टो ने 9 मैच में 316 रन बनाए हैं। इसके बाद मनीष पांडे का नंबर आता है, जिन्होंने अब तक 9 मैच में 212 रन बनाए हैं।

राशिद-नटराजन ने गेंदबाजी में संभाला मोर्चा
राशिद खान और टी नटराजन ने हैदराबाद के लिए गेंदबाजी में मोर्चा संभाला हुआ है। राशिद ने 10 मैच में 13 विकेट जबकि नटराजन ने 9 मैच में 11 विकेट अपने नाम किए हैं। सीजन में डॉट बॉल डालने के मामले में राशिद (94) छठवें स्थान पर हैं।

हैदराबाद-राजस्थान के महंगे खिलाड़ी
हैदराबाद के सबसे महंगे खिलाड़ी डेविड वॉर्नर हैं। उन्हें फ्रेंचाइजी सीजन का 12.50 करोड़ रुपए देगी। इसके बाद टीम के दूसरे महंगे खिलाड़ी मनीष पांडे (11 करोड़) हैं। वहीं, राजस्थान में कप्तान स्टीव स्मिथ और बेन स्टोक्स 12.50 करोड़ रुपए कीमत के साथ सबसे महंगे प्लेयर हैं।

पिच और मौसम रिपोर्ट
दुबई में मैच के दौरान आसमान साफ रहेगा। तापमान 22 से 36 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। यहां पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां स्लो विकेट होने के कारण स्पिनर्स को भी काफी मदद मिलेगी। दुबई में टॉस जीतने वाली टीम पहले बल्लेबाजी करना पसंद करेगी। दुबई में इस आईपीएल से पहले हुए पिछले 61 टी-20 में पहले बल्लेबाजी वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 55.74% रहा है।

  • इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 61
  • पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 34
  • पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 26
  • पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 144
  • दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 122

हैदराबाद ने 2 और राजस्थान ने एक बार खिताब जीता
हैदराबाद ने 3 बार (2009, 2016 और 2018) फाइनल में जगह बनाई और 2 बार (2009 और 2016) खिताब अपने नाम किया। वहीं, राजस्थान ने आईपीएल (2008) का पहला सीजन अपने नाम किया था।

आईपीएल में हैदराबाद का सक्सेस रेट राजस्थान से ज्यादा
लीग में सनराइजर्स हैदराबाद का सक्सेस रेट 52.56% है। हैदराबाद ने अब तक कुल 117 मैच खेले हैं, जिनमें उसने 61 मैच जीते और 56 हारे हैं। वहीं, राजस्थान का सक्सेस रेट 50.64% है। राजस्थान ने अब तक कुल 157 मैच खेले हैं, जिनमें उसने 79 जीते और 76 हारे हैं। 2 मैच बेनतीजा रहे।



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RR vs SRH Head To Head Record: Playing 11 Royals Vs Sunrisers | IPL 40th Match Preview Update | Rajasthan Royals vs Sunrisers Hyderabad IPL Latest News


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माता कात्यायनी की उपासना से रोग, भय और संताप का होगा नाश

महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदि-शक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था, इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। स्कंद पुराण के अनुसार मां कात्यायनी परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थीं ।

स्वरूप

माता कात्यायनी का भी वाहन सिंह है। इस पर आरूढ़ होकर उन्होंने महिषासुर का वध किया। इनकी दो भुजाएं अभय मुद्रा और वर मुद्रा में हैं। अन्य दो भुजाओं में खड्ग और कमल है।

महत्त्व

मां कात्यायनी की पूजा से रोग, शोक, संताप, भय का नाश होता है।

पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) की डायरेक्टर डॉ. प्रिया अब्राहम कोरोना रूपी महिषासुर के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाले सबसे प्रमुख वैज्ञानिकों में से एक हैं। उन्होंने न केवल भारत में सबसे पहले कोरोना वायरस को आइसोलेट किया, बल्कि पूरे देश में इस संक्रमण की जांच के लिए लेबोरेट्रीज का जाल बिछाया।

भारत में 30 जनवरी 2020 को कोरोना संक्रमण का पहला केस कन्फर्म हुआ। उस समय पूरे देश में केवल एनआईवी में ही कोरोना की जांच होती थी। यह देश की सबसे बड़ी हेल्थ रिसर्च बॉडी आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) का इंस्टीट्यूट है। इस घटना से करीब दो महीने पहले यानी नवंबर में ही डॉ. प्रिया अब्राहम ने एनआईवी डायरेक्टर की कुर्सी संभाली थी।

तब देश के वैज्ञानिकों पर दबाव था कि कोरोना वायरस पर शोध करके उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाएं। ऐसे में उनके सामने दो बड़े लक्ष्य थे। पहला- नोवेल कोरोना वायरस को आइसोलेट करना। ताकि उसकी दवा और वैक्सीन तैयार की जा सके। दूसरा-पूरे देश में कोरोना टेस्ट के लिए लैबोरेट्रीज को तैयार करना।

कोरोना रूपी राक्षस के खिलाफ यह दोनों काम डॉ. प्रिया अब्राहम की अगुवाई में किए गए। उन्होंने मार्च में ही कोरोना वायरस को आइसोलेट कर लिया। भारत के लिए यह बड़ी उपलब्धि थी। वहीं, कोरोना की जांंच के लिए 13 लेबोरेट्रीज के वॉयरोलॉजिस्ट और अन्य कर्मचारियों की ट्रेनिंग शुरू की गई।

आज देश में करीब 1114 सरकारी और 839 प्राइवेट लैब हैं। इनमें रोज करीब 10 लाख कोरोना सैंपल्स की जांच होती हैं। देश में अब तक करीब 9.7 करोड़ सैंपल्स की जांच हो चुकी हैं। इस दौरान सभी सरकारी लैब्स में जांच किट व अन्य जरूरी उपकरण पहुंचाने का काम भी डॉ. प्रिया की टीम ने किया। इसमें करीब 10 सदस्य थे। उन्होंने सभी लैब को एक वॉट्सऐप ग्रुप से जोड़कर उनके काम की रियल टाइम मॉनिटरिंग की।

घरवालों से दो माह बात तक नहीं कर सकीं

कोरोना काल के शुरुआती दौर की इस बड़ी कवायद के दौरान डॉ. प्रिया तमिलनाडु के वेल्लोर में मौजूद अपने परिवार के किसी भी सदस्य करीब दो महीने तक बात नहीं कर सकीं। मूल रूप से केरल के कोट्टयम की रहने वाली डॉ. प्रिया ने इस बीच अपनी सभी हॉबीज जैसे बागवानी और किताबें पढ़ना भी छोड़ दिया था।

डॉ. प्रिया याद करती हैं कि कभी-कभी तो एक-दो दिन में ही देश की तमाम लैबोरेट्रीज तक कोरोना जांच के काम आने वाले 5 लाख रीजेंट पहुंचाने पड़ते थे। वह भी लॉकडाउन के दौरान। न कोई ट्रक, न ट्रेन और न विमान। ऐसे में माल ढोने वाले विशेष विमानों और वायुसेना के विमानों से ही यह सब लैबोरेट्रीज तक पहुंचाते थे।

कई बार को यह सामान हवाई अड्डों तक पहुंचाना भी एक चुनौती बन जाता था। मगर उन्‍होंने अपनी टीम के साथ बखूबी इस काम को अंजाम दिया। एक अमेरिका को छोड़ दें तो कोरोना की कुल जांचों के मामले में आज भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर खड़ा है।

डॉ. मीनल धकावे

डॉ. मीनल धकावे भोसले: पहली स्वदेशी कोरोना जांच किट बनाई, विदेशी किटों से कीमत आधी

पुणे स्थित मॉल्यूक्यूलर बॉयोलॉजी फर्म ने देश में बनी पहली कोरोना वायरस टेस्टिंग किट तैयार कर ली। यह केवल ढाई घंटे में नतीजे देती है। इसकी कीमत भी इम्पोर्टेड किटों से काफी कम, करीब 1200 रुपए है। इस किट को तैयार करने वाली माइलैब की रिसर्च एंड डवलपमेंट प्रमुख डॉ. मीनल धकावे भोसले ही हैं।

सबसे बड़ी बात यह है कि डॉ. मीनल ने यह रिसर्च गर्भावस्था के दौरान की। उन्होंने 18 मार्च को अपनी किट नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) को सौंपी और अगले दिन एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया।

डॉ.निवेदिता गुप्ता

डॉ. निवेदिता गुप्ता: कोरोना की जांच और इलाज का प्रोटोकॉल किया तैयार

देश में कोरोना के इलाज और टेस्टिंग के प्रोटोकॉल तैयार करने में आईसीएमआर की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. निवेदिता की अहम भूमिका है। उनकी अगुवाई में ही आईसीएमआर ने यह दोनों प्रमुख काम किेए। कहा जा सकता है कि देश में कोरोना मरीजों के स्वस्थ होने की ऊंची दर के पीछे डॉ. निवेदिता की खास रोल है। आईसीएमआर के लिए लेबोरेट्रीज का नेटवर्क स्थापित करने वाली टीम में भी डॉ. निवेदिता का बड़ा योगदान था।



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Maa katyayani Navratri 2020 Day 6 Devi Puja Significance and Importance | Facts On Pune


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युवा फालतू फोन से छुटकारा पाएं और भारत को अमीर बनाने के लिए काम करें

प्रिय मित्रों, मैं नहीं जानता की एक बड़े समाचार पत्र में प्रकाशित होने के बावजूद, यह पत्र आप तक पहुंचेगा या नहीं। आपमें से तमाम लोग फोन पर बात करने, वीडियो देखने, चैटिंग, सोशल मीडिया पर कमेंट या सिर्फ सुंदर सेलेब्रिटीज की फीड देखने में व्यस्त होंगे, क्योंकि किसी आर्टिकल को पढ़ना आपकी प्राथमिकता में बहुत नीचे है। हालांकि, अगर आपको इसे पढ़ने का मौका मिल जाए तो कृपया पूरा पढ़ें।

आप फोन पर अपनी जिंदगी को बर्बाद कर रहे हो। हां, आप भारत के इतिहास की पहली युवा पीढ़ी हो, जिसे स्मार्टफोन व सस्ता डेटा उपलब्ध है और आप हर दिन घंटों इस पर बिता रहे हो। अपना स्क्रीन टाइम देखें, जो युवाओं के लिए अक्सर औसत 5-7 घंटे है। रिटायर अथवा स्थापित लोग अपने गैजेट्स पर इतना समय व्यतीत कर सकते हैं। एक युवा, जिसे अभी अपनी जिंदगी बनानी वह ऐसा नहीं कर सकता।

पांच घंटे आपके उत्पादकता वाले कामकाजी समय का एक तिहाई

पांच घंटे आपके उत्पादकता वाले कामकाजी समय का एक तिहाई है। फोन की लत आपकी जिंदगी का एक हिस्सा खा रही है। यह कॅरिअर की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा रही है और दिमाग खराब कर रही है। अगर ऐसा ही चलता रहा था तो आपकी पीढ़ी 4Gotten generation (भूली हुई पीढ़ी) बन जाएगी, यानी एक पूरी पीढ़ी जिसे 4G की लत है, जो लक्ष्यहीन है और देश के बारे में अनभिज्ञ है। फोन की लत के यह तीन टॉप नकारात्मक प्रभाव हैं-

पहला, निश्चित ही यह समय की बर्बादी है, जिसका इस्तेमाल जीवन में अधिक उत्पादक चीजें पर हो सकता है। फोन पर लगने वाले तीन घंटे बचाकर उन्हें फिटनेस, कुछ सीखने, पढ़ने, अच्छी नौकरी तलाशने, बिजनेस खोलने में इस्तेमाल कर सकते हैं।

दूसरे, फिजूल कंटेंट देखने से आपका समझ संबंधी दिमाग कमजोर होता है। हमारे दिमाग के दो क्षेत्र होते हैं- ज्ञान (समझ) संबंधी और भावनात्मक। एक अच्छा दिमाग वह है, जिसमें दोनों अच्छे से काम करते हैं। जब आप कबाड़ देखते हैं तो ज्ञान संबंधी दिमाग कम इस्तेमाल होता है। जल्द ही आपकी सोचने व तर्क सहित बहस की क्षमता कम हो जाती है।

आप किसी बात के गुण-दोष देखने व सही फैसले में विफल होने लगते हैं। आप सिर्फ भावनात्मक दिमाग से काम करते हैं। सोशल मीडिया पर स्थायी गुस्सा, ध्रुवीकरण, किसी सेलेब्रिटी या राजनेता के धुर प्रशंसक या उससे घृणा और किसी टीवी एंकर की लोकप्रियता, ये सभी उस पीढ़ी की ओर इशारा करते हैं, जिसका नियंत्रण भावनात्मक दिमाग के हाथ में है। इसलिए वे जिंदगी में अच्छा नहीं कर पाते। इससे बचने का एक ही तरीका है कि अपने दिमाग को सुन्न न होने दें और उसे उत्पादक कामों में लगाए रखें।

तीसरा, स्क्रीन पर कई घंटे बिताने से मनोबल और ऊर्जा का क्षय होता है। जिंदगी में सफलता लक्ष्य निर्धारित करने, प्रेरित रहने और कड़ी मेहनत करने से मिलती है। जबकि स्क्रीन देखना हमें आलसी बनाता है। आपमें विफलता का एक डर बैठ जाता है, क्योंकि आपको भरोसा नहीं होता कि आप काम कर सकते हैं। इसलिए आप कारण तलाशने लगते हैं कि जिंदगी में सफलता क्यों नहीं मिली। आप एक दुश्मन तलाशने लगते हैं- आज के बुरे राजनेता, पुराने बुरे राजनेता, मुस्लिम, बॉलीवुड और उसका भाई-भतीजावाद, अमीर, प्रसिद्ध लोग या कोई और विलेन जिसकी वजह से आपकी जिंदगी वह नहीं हो सकी जो हो सकती थी।

सोशल मीडिया पर समय बर्बाद करने से मदद नहीं मिलेगी

हां, सिस्टम अन्यायपूर्ण है। लेकिन सोशल मीडिया पर समय बर्बाद करने से मदद नहीं मिलेगी। अपने ऊपर काम करने से मिलेगी। क्या आप अपना अधिकतम कर रहे हैं? इस फोन को तब तक खुद से दूर रखें जब तक आप कुछ बन नहीं जाते। विजेता अन्याय के खिलाफ भी रास्ता निकाल लेते हैं। आप भी निकाल सकते हैं।

यह आप पर है कि आप भारत को कहां ले जाना चाहते हैं। उस पीढ़ी के बारे में सोचें जिसने हमें आजादी दिलाई। मुझे आज भी मंडल कमीशन का विरोध या 2011 का अन्ना आंदोलन याद है। युवा राष्ट्रीय मुद्दों की परवाह करता था। क्या आज का युवा इस बात की परवाह करता है कि हमें असल में क्या प्रभावित कर रहा है? या फिर वह किसी सनसनीखेज समाचार पर भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया करता है?

सबसे जरूरी हमारी अर्थव्यवस्था को फिर से उठाना होना चाहिए। क्या हम उस पर फोकस कर रहे हैं? या फिर हमें एक ऐसे विज्ञापन पर गुस्सा होना चाहिए, जिसमें कोई अंतरधार्मिक जोड़ा दिखाया जाता है। क्या आपको कॅरिअर पर फोकस करना चाहिए या कभी खत्म न होने वाले हिंदू-मुस्लिम मुद्दों पर? आप अच्छी जिंदगी बनाना चाहते हैं या बॉलीवुड की साजिशों को हल करना?

आप आज के युवा हैं और आपको इस सवालों का जवाब तय करना है। आप खुद को और इस देश को वहां ले जाइए, जहां आप जाना चाहते हैं। भारत को गरीब और घमंडी बनाने का लक्ष्य न रखें। भारत और खुद को अमीर और सौम्य बनाने का लक्ष्य रखें। इस फालतू फोन से छुटकारा पाएं और दिमाग को उत्पादक और रचनात्मक चीजों में व्यस्त करें। देश को बनाने वाली पीढ़ी बनें। (generation that 4Ges India ahead)एक 4Gotten पीढ़ी की तरह खत्म न हों। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



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चेतन भगत, अंग्रेजी के उपन्यासकार


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आम आदमी संक्रमण से खुद को बचाए, सरकार मृत्युदर और कम करे

केरल में हाल ही में ओनम का त्योहार मनाया गया और इस दौरान लोगों का मिलना-जुलना काफी बढ़ गया। सितंबर के बाद से यहां करीब 23 से 25 फीसदी तक इंफेक्शन का रेट बढ़ गया। अब हम सभी को इससे सबक लेना चाहिए। अब पूरे देश में त्योहारों का मौसम शुरू हो गया है। ऐसे में फिजिकल डिस्टेंसिंग (सामाजिक दूरी) बहुत जरूरी है।

इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि अब लॉकडाउन नहीं है। अभी तक सरकार के जो अनुमान हैं कि फरवरी के बाद से हम कोरोना वायरस की स्थिति को नियंत्रण में कर सकेंगे, उसके पीछे तर्क यह है कि अभी जिस गति से देश में कोरोना का इंफेक्शन कम हुआ है, यदि ऐसा ही आगे भी चलता रहा, तो फरवरी तक स्थिति नियंत्रण में रहेगी। यानी समिति ने यह माना है कि संक्रमण में जो गिरावट अभी आई है, वैसी ही आगे भी आती रहेगी। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या त्योहारों की भीड़-भाड़ के बीच ऐसा संभव हो सकेगा?

कई देशों में कोरोना की दूसरी लहर

हमें सावधानी के साथ यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि बाकी देशों में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहरें आई हैं। यूरोप, अमेरिका और इजरायल आदि में तो दूसरी लहर पहली लहर से भी कहीं ज्यादा बड़ी रही है। भले ही अब सब जगह कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या कम हो रही है, लेकिन इंफेक्शन सभी जगह काफी बढ़ा है। मेरे ख्याल से अभी यह कहना कि फरवरी में कोरोना का संक्रमण कम हो जाएगा, आशावादी होना है।

अभी यह बहुत जरूरी है कि त्योहारों के इन दिनों में हम सतर्कता बिल्कुल न छोड़ें। जिस दर से इंफेक्शन घट रहा है, आने वाले समय में उसी रेट से घटता रहा, तो फरवरी तक हम बहुत बेहतर स्थिति में होंगे। केरल में ओनम के बाद, एक के बाद एक कई सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। इसके बाद वहां संक्रमण तेजी से बढ़ा। अगर केरल की ही तरह, अब पूरे देश में संक्रमण फैलता है तो इससे संकट और ज्यादा बढ़ेगा। ऐसा न हो इसलिए हमें सावधानी बरतना बहुत ज्यादा जरूरी है। क्योंकि अब तक हमने बहुत अच्छे से कोरोना वायरस को हैंडल किया है।

यूरोपियन और लैटिन अमेरिकी देशों की तुलना में हम काफी अच्छे

जैसा कि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि देश में कोरोना से मृत्युदर प्रति दस लाख पर 83 मौत है, जबकि अमेरिका जैसे देशों में यह आंकड़ा प्रति दस लाख लोगों पर 600 मृत्यु के पार है। हम यूरोपियन और लैटिन अमेरिकी देशों की तुलना में बहुत अच्छी स्थिति में हैं। अमेरिका के बाद सबसे अधिक टेस्ट हमारे देश में ही हो रहे हैं। देश में जिस तरह से और जितनी जल्दी कोरोना टेस्टिंग बढ़ाई गई है, यह बहुत सराहनीय काम है।

बहुत बड़ी आबादी है इसलिए ज्यादा संख्या में टेस्टिंग करना बहुत जरूरी है, लेकिन हमारा जैसा हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर था, उसके मुकाबले हमने बेहद तेजी से यह काम किया है। जहां-जहां टेस्टिंग बढ़ाने की जरूरत थी सरकार ने वहां ऐसा किया। अगर टेस्टिंग सही समय पर हो जाती है, तो संक्रमण का इलाज जल्दी शुरू होता है। ऐसे में मृत्युदर भी काफी जल्दी कम हो जाती है। क्योंकि हमें बीमारी के बारे में समय पर पता चल जाता है। जहां टेस्टिंग में देर होती है, वहां फैटेलिटी रेट भी बढ़ जाता है।

देश की अर्थव्यवस्था दोबारा पटरी पर लौटने लगी है

दूसरी तरफ अच्छी बात यह है कि देश की अर्थव्यवस्था दोबारा पटरी पर लौटने लगी है। जब मार्च में सबसे पहला लॉकडाउन हुआ तो अर्थव्यवस्था पर ज्यादा असर पड़ा। इसके बाद तो हर लॉकडाउन लगभग अनलॉक जैसा ही रहा। धीरे-धीरे कई तरह की रियायतें मिलनी शुरू हो गई थीं। अब त्योहारों पर बाजार पूरी तरह खुले हुए हैं, तो इसका असर संक्रमण पर भी पड़ेगा। लेकिन हमारे लिए यही समय संतुलन बनाने का है।

अब हमें इस तरह व्यवहार करना है कि अर्थव्यवस्था भी चलती रहे और कोरोना का संक्रमण भी न बढ़े। एमएसएमई (लघु एवं मध्यम उद्योग) आदि सेक्टर के लिए त्योहारों का समय ही सबसे ज्यादा जरूरी होता है। इसी तरह छोटे-छोटे दुकानदार होते हैं, जिनके लिए यह समय बेहद जरूरी होता है। ऐसे में अगर अब भी हमने दुकान आदि खोलने पर सख्ती की तो बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाएंगे।

कई ऐसे राज्य हैं जहां कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे थे, लेकिन अब वहां भी नियंत्रित होने लगे हैं। ऐसे में हमें त्योहारों के लिए एक ऐसी रणनीति अपनाने की जरूरत है, जिसमें आम आदमी और सरकार दोनों की ही अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी हो। जब चीजें अनलॉक होती हैं, बाजार खोल दिए जाते हैं, तो संक्रमण रोकना मुश्किल हो जाता है।

ऐसे में अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम संक्रमण रोकें। बाजारों में मास्क लगाकर जाएं और दूसरों से दूरी बनाकर रखें। वहीं सरकार को चूंकि अब समय मिल गया है, इसलिए उसकी तैयारी पूरी है। वो कोरोना के संक्रमण को समझ चुकी है, तो डेथ रेट को और कम करने पर जोर दे। अगर आम आदमी और सरकार दोनों अपना काम जागरूकता और मुस्तैदी के साथ करते हैं तो हमारी तैयारी ऐसी है कि हम त्योहारों में भी अच्छे से कोरोना के संक्रमण को नियंत्रित कर सकते हैं। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)



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शमिका रवि, प्रधानमंत्री की इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल की पूर्व सदस्य


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जांच गैंगस्टर विकास दुबे एनकाउंटर की, लोग आयोग से शिकायत कर रहे- कब्जाई जमीन वापस दिलवाएं, गिरोह से जान का खतरा

(पवन कुमार) यूपी के गैंगस्टर विकास दुबे एनकाउंटर की जांच कर रहे जस्टिस बीएस चौहान आयोग को इन दिनों अजीब परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उनके पास ऐसी शिकायतें आ रही हैं, जिनसे आयोग का कोई वास्ता ही नहीं है।

कोई विकास दुबे के गिरोह से अपनी जान बचाने की गुहार लगा रहा है, तो कोई अपनी जमीन को कब्जा मुक्त करने की बात कह रहा है। जवाब में आयोग ने ऐसी शिकायतों पर संबंधित लोगों को पुलिस, कोर्ट व प्रशासन के पास गुहार लगाने की बात कही है। 8 पुलिस कर्मियों की हत्या का आरोपी, गैंगस्टर विकास 10 जुलाई को कानपुर में एनकाउंटर में मारा गया था। एनकाउंटर फर्जी बताया गया तो जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर आयोग गठित हुआ।

दर्जनभर से ज्यादा शिकायतें मिलीं

दरअसल, जबसे जांच आयोग बना है, तबसे उसे दर्जनभर से ज्यादा ऐसी शिकायतें मिली हैं, जिनका एनकाउंटर से कोई लेना-देना नहीं है। एक शिकायत में तो एक शख्स ने पत्र लिखकर कहा कि विकास दुबे के मारे जाने के बाद उसके गैंग के सदस्य पुलिस मुखबिरी को लेकर उस पर संदेह कर रहे हैं और वे उसे मारना चाहते हैं। इसलिए, उसे पुलिस सुरक्षा दिलवाई जाए।

वहीं, कानपुर के एक व्यक्ति ने कहा कि विकास ने उसकी जमीन पर कब्जा किया हुआ था। डर के कारण वह अपनी जमीन नहीं छुड़ा सका। चूंकि उसकी मौत हो चुकी है, इसलिए उसे उसकी जमीन वापस दिलवाई जाए। वहीं, कुछ शिकायतें विकास व उसके परिवार के लोगों द्वारा पैसे हड़पने व उन्हें रकम वापस दिलाने की मांग को लेकर भी आई है।

आयोग के लिए दूसरे राज्यों के वकील भी परेशानी का सबब बने हुए हैं। मुंबई, बिहार व कई अन्य राज्यों के वकील खुद को गवाह के तौर पर जोड़ना चाहते हैं, जबकि उनका मामले से कोई संबंध नहीं है। वे न तो एनकाउंटर के समय घटनास्थल के पास थे, न ही विकास की गिरफ्तारी के समय।

आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्य बीमार पड़े, जांच का काम रुका

इधर, एनकाउंटर की जांच कर रहे रिटायर्ड जस्टिस बीएस चौहान बीमार पड़ गए हैं। उन्हें दिल की बीमारी होने से अस्पताल में दाखिल किया गया है। कुछ दिनों पहले उनका ऑपरेशन भी किया गया। जांच से जुड़े एक अन्य सदस्य इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज एसके अग्रवाल भी बीमार चल रहे हैं। इस वजह से फिलहाल जांच का काम रुक सा गया है। इसके पहले आयोग की टीम ने उस जगह का भी दौरा किया, जहां विकास का एनकाउंटर हुआ था। आयोग ने पुलिसकर्मियों से पूछा भी था कि उन्होंने हाई-वे के बजाए साइड लेन का रास्ता क्यों चुना?



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गैंगस्टर विकास दुबे (फाइल फोटो)


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