Corona News, Corona Latest News, Corona Update, Latest News Updates, Breaking News, Hindi News Corona, National News, International News, Coronavirus India, COVID-19 tracker, Today's Headlines, World News, Aajtak ki News, Hindi news (हिंदी समाचार) website, watch and read live tv coverages, Latest Khabar, Breaking news in Hindi of India, World, business,पढ़ें आज तक के ताजा समाचार देश और दुनिया से, जाने व्यापार, बॉलीवुड, खेल और राजनीति के ख़बरें
मनोज और अमर दो दोस्त हैं। दोनों पटना में रहकर तैयारी करते हैं। बैंक, एसएससी और अन्य परीक्षाओं की। कुछ देर पहले बुक स्टॉल पर दोनों दोस्त से मुलाकात हुई। कंकड़बाग में अपने तरह की यह अकेली दुकान है, जहां इतनी सारी किताबें मिलती हैं। राजेन्द्र नगर पुल से पहले साईं हॉस्पिटल वाली गली में। इस दुकान में आपको ‘हंस’ से लेकर ‘तद्भव’ भी मिलेगा और करेंट अफेयर्स की सारी किताबें भी। दोनों दोस्तों ने पहले तो किताबें पलटीं। फिर बातचीत शुरू कर दी।
अमर ने कहा- ‘इस बार जो भी सरकार बनेगी, लगता है नौकरी की बहार देगी। जदयू ही मुंह दाबे हुई है। हिसाब-किताब समझा रही है। तेजस्वी को सुने कि नहीं, कहे हैं कि पहली कैबिनेट मीटिंग में ही 10 लाख स्थायी सरकारी नौकरी देंगे। सब ठेकावाली बहाली को स्थायी भी कर देंगे।’
मनोज ने कहा, ‘ऐसा हो जाए तो गरदा न हो जाएगा। लेकिन घोषणा पत्र है, चुनाव के बाद क्या होगा, कौन जानता है।’ अमर ने कहा सरकार कि पार्टी हिसाब जोड़ रही है। बोल रही है कि ई सब बहाली में रुपए खर्च हो गया तो राज्य का विकास ही ठप हो जाएगा।
मनोज ने विरोध किया- ‘यार हर किसी के लिए विकास का मतलब अलग-अलग है। देखते नहीं हो पटना में खाली पुले-पुल है। ऊपरे-ऊपरे निकल जाओ कहीं से।’ अमर ने जोड़ा, ‘ऊ फोर लेन क्या जबर्दस्त बना है यार। रेल लाइन को उखाड़ के बनाया गया है। पूरा राजीव नगर, इंद्रपुरी, पटेल नगर सब का किस्मते बदल गया है।’
अमर बोला, ‘हां सुने हैं कि साइकिल का भी ट्रैक होगा फोरलेन पर। इससे प्रदूषण भी कम होगा। पटना ऐसे जाड़े के दिन में देश में नंबर वन प्रदूषण वाला शहर बन जाता है। जानते हो न, एक जज साहब थे पटना में जस्टिस रवि रंजन। उनको यह बात खूब खटकती थी कि सचिवालय कर्मियों के लिए चलने वाली ट्रेन खाली जाती थी। इसके लिए ट्रेन जाते समय हड़ताली मोड़ पर ट्रैफिक भी बंद कर दिया जाता था। उन जस्टिस महोदय की पहल का ही असर है कि यहां फोरलेन सड़क है। हां इसमें मुख्यमंत्री का विजन भी जरूर शामिल है।' मनोज ने टोका, ‘छोड़ ऊ सब, ई बताव कि किसकी सरकार बनेगी?’
अमर खिसियाया- ‘हम बेजान दारुवाला (प्रसिद्ध ज्योतिष विज्ञानी) हैं क्या, जो भविष्य बता दें। अपना भविष्य पते नहीं है और सरकार किसकी बनेगी, ई बताएं। देखो जिसकी भी बनेगी, अच्छा है कि रोजगार का सवाल उठा है, हम बेरोजगारों का सवाल उठा है, पलायन का सवाल उठा है। मजाक है क्या, नौकरी न चाकरी और तमाशा दुनियाभर का। जानते हो कुछ, विधायक सबको पेंशन मिलता है। विधायक अगर प्रोफेसर हुआ और रिटायर कर गया और विधान सभा चुनाव हार भी गया तो दूनों जगह से पेंशन लेगा।’
अमर ने कहा- ‘ई नेता सब मिलके सबका पेंशन खा गया और अपने लेते रहता है। रेलगाड़ी का भाड़ा फ्री, हवाई जहाज फ्री, हेल्थ इंश्योरेंस भी पूरा परिवार का। ई सब हटने के बाद भी। सोचो क्या मजा है। जनता का पैसा कहां जा रहा है।’
मनोज ने कहा, समझ गया भाई। बोला- ‘सही पकड़े हो। सुशासन बाबू के लोगों को बताना चाहिए कि विधायक सब पर कितना खर्च होता है। ऊ सब पैसा में कटौती की जाए तो युवा को नौकरी देने का पैसा नहीं निकल जाएगा, बताओ तो जरा! मजाक है क्या यार।’
मनोज अब समझाने की मुद्रा में आ चुका था। बोला- ‘देखो यार तुम जो सवाल उठा रहे हो और जो रास्ता बता रहे हो, वेतन के इंतजाम का वह न सत्ता पक्ष बताएगा और न विपक्ष। दोनों को मजा चाहिए ना। हां आरोप- प्रत्यारोप चलता रहेगा और लोकतंत्र चलता रहेगा।’
बुक स्टाल से सटी चाय दुकान भी बहुत पुरानी है और मेरी चाय भी खत्म हो चुकी थी, लेकिन इन दोस्तों की बातचीत का सिलसिला नहीं थमा था। हम इनके नाम नहीं पूछ सके इसलिए सुविधा के लिए काल्पनिक नाम दे दिए हैं। बातचीत पूरी जस की तस है।
पानीपत में शुक्रवार को दृश्यम फिल्म जैसी मिस्ट्री सामने आई है। यहां विकास नगर में 18 महीने से लापता 31 वर्षीय टेक्नीशियन हरबीर सिंह के घर में खुदाई के दौरान नरकंकाल मिला। आशंका है कि कंकाल टेक्नीशियन का ही है। हत्या का शक पत्नी पर है। डीएनए टेस्ट से ही मामला साफ हो पाएगा।
हरबीर के बड़े भाई हरिओम ने आरोप लगाया कि हरबीर की पत्नी और अन्य ने गुपचुप तरीके से कंकाल को घर में ही दूसरी जगह दबा दिया था। मेरे बेटे ने निर्माण कार्य के लिए हो रही खुदाई के दौरान खोपड़ी देखी तो आकर बताया। फिर खुदाई कर कंकाल को निकाला गया। फोरेंसिक एक्सपर्ट डॉ. नीलम आर्या, थाना प्रभारी राजबीर सिंह मौके पर पहुंचे। ड्यूटी मजिस्ट्रेट नियुक्त कराकर कंकाल को कब्जे में लिया। शनिवार को पोस्टमॉर्टम होगा, जिससे पता चलेगा कि कंकाल पुरुष का है या महिला का।
पत्नी पर शक के 6 कारण
1. मायके का ही राजमिस्त्री क्यों? हरिओम ने बताया कि जिस घर में हरबीर रहता था, उसकी पत्नी ने उसी घर में करीब 3 दिन पहले चिनाई का काम लगाया था। उसकी मां और मौसी का बेटा भी आए थे और मायके का ही राजमिस्त्री लाए थे।
2. पत्नी ने पुलिस को सूचना क्यों नहीं दी? शुक्रवार को बाथरूम के लिए गड्ढा खोदा जा रहा था। दोपहर करीब 12 बजे हरिओम का 15 वर्षीय बेटा विशेष चाची के साथ काम कराने लगा। 4 फुट खुदाई के बाद नरकंकाल मिला तो विशेष ने खोपड़ी देख ली। पर पत्नी ने पुलिस को जानकारी नहीं दी।
3. कंकाल को शिफ्ट क्यों किया? आरोप है कि पत्नी और अन्य ने कंकाल को गड्ढे से करीब 5 फुट दूर फिर से दबा दिया।
4. कुत्ते का कंकाल क्यों कहा? पूछने पर चाची ने बच्चे को बताया कि तेरे चाचा हरबीर ने कुत्ता दबा रखा था। तब विशेष ने घर जाकर पिता हरिओम को इसकी जानकारी दी। इसके बाद परिजन मौके पर पहुंचे।
5. बच्चे की निशानदेही पर खुदाई करने गए परिजन से झगड़ा क्यों? हरिओम बेटे और भाइयों के साथ आकर खुदाई करने लगे। भाई की पत्नी ने कुदाली छीनकर फेंक दी। कहासुनी होने पर वे घर चले गए। मां के आने पर खुदाई में कंकाल बरामद हुआ।
6. पत्नी ने लापता होने के 3 महीने बाद FIR दर्ज कराई थी। लापता होने के 3 महीने बाद 20 जुलाई 2019 को उसकी पत्नी ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई।
भाई ने कहा- कंकाल की डीएनए जांच हो
हरिओम ने कहा कि कंकाल हरबीर का भी हो सकता है। पुलिस डीएनए टेस्ट करा मामले की गहराई से जांच करे। इससे पता चल सके कि कंकाल किसका है। कंकाल को दोबारा दबाने के आरोप से शक के दायरे में आई पत्नी को पुलिस ने हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। हरबीर की दो बेटी 11 वर्षीय तनु और 9 वर्षीय मीनाक्षी और 7 वर्षीय बेटा रितिक है।
केंद्र सरकार ने देश की 4 हजार आर्मी कैन्टीन्स को विदेशी सामान आयात न करने का आदेश दिया। इसमें महंगी विदेशी शराब भी शामिल है। सरकार ने यह फैसला आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत स्थानीय वस्तुओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया है। फैसले से पहले इस बारे में तीनों सेनाओं से सलाह ली गई है।
कैन्टीन्स में सस्ता सामान मिलता है
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, देश में करीब चार हजार आर्मी कैन्टीन हैं। इनमें डिस्काउंट रेट्स पर सामान मिलता है। इसका फायदा वर्तमान और पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों को मिलता है। आमतौर पर विदेशी शराब और इलेक्ट्रॉनिक्स सामान की डिमांड ज्यादा रहती है। सरकार के फैसले के बाद अब आर्मी कैन्टीन्स में विदेशी सामान नहीं बेचा जा सकेगा। इनमें विदेशी शराब भी शामिल है। आर्मी कैन्टीन्स देश की सबसे बड़ी रिटेल चेन्स में से एक है। इनमें हर साल करीब 2 अरब की बिक्री होती है।
कुछ दिन पहले जारी हुआ आदेश
19 अक्टूबर को डिफेंस मिनिस्ट्री ने विदेशी वस्तुओं के आयात पर बैन लगाने का आदेश जारी किया। इसमें कहा गया- डायरेक्ट इम्पोर्ट नहीं किया जा सकेगा। ऑर्डर के मुताबिक, इस बारे में आर्मी, एयरफोर्स और नेवी से मई और जुलाई के बीच बातचीत की गई थी। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डोमेस्टिक यानी घरेलू उत्पादों को बढ़ावा देने की पहल के तहत लिया गया फैसला है। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस पर कुछ भी कहने से इनकार दिया।
प्रोडक्ट्स की जानकारी नहीं दी
ऑर्डर में फिलहाल, उन सामनों यानी प्रोडक्ट्स की जानकारी नहीं दी गई है, जिनके आयात पर बैन लगाया जाएगा। लेकिन, सूत्रों का कहना है कि इसमें विदेशी शराब शामिल है। कैन्टीन्स में बिकने वाले सामानों में करीब 7% प्रोडक्ट्स इम्पोर्टेड होते हैं। इनमें चीन से आयात किए जाने वाले सामान जैसे डायपर्स, वैक्यूम क्लीनर, हैंडबैग और लैपटॉप शामिल हैं। विदेशी शराब सप्लाई करने वाली दो कंपनियों को जून से ही ऑर्डर मिलने कम हो गए थे।
from Dainik Bhaskar /national/news/modi-government-to-ban-imported-goods-at-army-canteens-foreign-liquor-may-include-127845137.html
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IIT मद्रास प्रशासन इन दिनों एक अलग तरह की चुनौती से परेशान है। कारण- यहां के ‘पशुप्रेमी’ छात्र 620 एकड़ के परिसर से कुत्तों को हटाए जाने के खिलाफ हैं। दरअसल, परिसर में जितने भी आवारा कुत्ते हैं, उन्हें कैंपस से बाहर निकाला जा रहा है। छात्रों को भी सख्त हिदायत दी गई है कि उन्हें खाना न खिलाएं। हॉस्टल के नोटिस बोर्ड पर यह सूचना लगाई गई है कि अगर कोई छात्र कुत्ते-बिल्ली या अन्य जानवरों को परिसर में खाना खिलाते हुए देखा गया, तो उसे 10 हजार रुपए का जुर्माना भरना होगा। साथ ही उसे हॉस्टल सुविधा से भी वंचित कर दिया जाएगा।
IIT मद्रास प्रशासन के इस फैसले के खिलाफ छात्र एकजुट होने लगे हैं। सोशल मीडिया में और ऑनलाइन पिटिशन के जरिए वे इस बात के लिए समर्थन जुटा रहे हैं कि कुत्तों को कैंपस से क्यों हटाया जा रहा है। लॉकडाउन के दौरान इन बेजुबानों को खाने के लिए कुछ देना क्या गुनाह है? इस मुद्दे पर संस्थान के ही पूर्व छात्र और कर्मचारी ट्राइफेना डडले ने तो एनिमल वेलफेयर बोर्ड और सांसद मेनका गांधी तक को ई-मेल भेजकर शिकायत दर्ज करवाकर हस्तक्षेप करने की मांग की है।
नसबंदी के नाम पर गायब कर दिया जाता है
आईआईटी मद्रास की छात्रा रोशनी (बदला नाम) बताती हैं कि यहां कुत्तों को नसबंदी के नाम पर पकड़कर गायब कर दिया जाता है। मैं आईआईटी-मद्रास के वेलाचेरी गेट के पास कुत्तों को खाना खिलाती थी। मैंने उनमें से बहुत से पिल्लों को टीका लगवाया और नसबंदी भी करवाई है। इन्हीं में से एक काले-सफेद कलर का कुत्ता था- टैरी। लॉकडाउन के बाद मैं दो-तीन बार कैंपस गई, लेकिन ‘टैरी’ दिखाई नहीं दिया। कुछ दिनों बाद मुझे एक वीडियो देखने को मिला। इसमें दो लोग टैरी को कैंपस से जाल में पकड़कर ले जाते हुए दिखाई दे रहे थे। उसके बाद से टैरी आज तक कैंपस में नहीं दिखा।
रोशनी सवाल उठाती हैं कि कैंपस में किसी आवारा कुत्तों ने न तो किसी पर हमला किया और न ही नुकसान पहुंचाया, फिर उन्हें क्यों हटाया जा रहा है? अगर उनकी संख्या बढ़ गई है तो यह काम नगर पालिका का है। टैरी की हमने पैदा होने के बाद से ही देखभाल की है- उसे भी हटा दिया गया। वो एक मच्छर भी नहीं मार सकता, वो इंसानों के लिए कैसे खतरा बन सकता है। इस पर प्रशासन खामोश है।
कैंपस में हिरण का शिकार हुआ तो सभी कुत्तों को हटाया जा रहा है
आईआईटी मद्रास प्रशासन ने कैंपस से कुत्तों को हटाने का फैसला इसलिए लिया, क्योंकि पिछले दिनों कुछ आवारा कुत्तों ने एक हिरण का शिकार किया था। इस मुद्दे पर स्टाफ ने परिसर में जानवरों के कारण हो रही परेशानी शिकायत की थी। इस बारे में छात्रों का कहना था कि हॉस्टल के अंदर या कैंपस में आने वाले कुत्तों ने कभी किसी को कोई हानि नहीं पहुंचाई। छात्र अंकुश (बदला नाम) ने कहा कि कुत्तों की संख्या बढ़ रही है तो यह काम नगर पालिका का है। इस पर आईआईटी प्रशासन को फैसले का अधिकार नहीं है।
from Dainik Bhaskar /national/news/students-came-out-in-protest-at-iit-madrass-decree-administration-swung-hands-as-soon-as-students-opened-their-front-127845075.html
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(समीर राजपूत) कोरोनावायरस से ठीक हो चुके 45% मरीजों पर उसके साइड इफेक्ट नजर आने लगे हैं। संक्रमणमुक्त होने के बाद मरीजों को हाइपरटेंशन, जोड़ों में दर्द, सांस फूलने, स्ट्रोक, डायबिटीज से जुड़ी परेशानियां बढ़ रही हैं। अपोलो के सीओओ डॉ. करन ठाकुर ने कहा कि देश में कोरोना से पहले गैर-संक्रामक रोगों से मरीजों की मृत्यु दर 70% से ज्यादा थी। लेकिन, अब ऐसी समस्याएं बढ़ने से लंबी अवधि में मृत्यु दर बढ़ सकती है।
अनियंत्रित हुई डायबिटीज, फेफड़े की क्षमता कम हुई
63 साल की महिला का ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, थॉयराइड जैसी को-मोर्बिड स्थिति की वजह से आईसीयू में इलाज चला। लेकिन डायबिटीज बेकाबू होने की वजह से दोबारा ओपीडी में इलाज चला। फेफड़े की कार्यक्षमता को मजबूत करने के लिए 15 दिनों तक लंग रिहेब थैरेपी दी गई।
थकावट डिप्रेशन, चिंता और पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस
आईसीयू-वेंटिलेटर पर रह चुके 10 से ज्यादा मरीज स्वस्थ होने के बाद डिप्रेशन, पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस सिन्ड्रोम का शिकार पाए गए। ऐसे मरीजों को न्यूरो फिजीशियन और साइकियाट्रिक इलाज की जरूरत पड़ती है। डिप्रेशन के मरीजों की औसत उम्र 40 साल थी।
दिमाग की नस में ब्लॉकेज, शिथिल हो गया आधा शरीर
एक 45 साल के मरीज को कोविड वार्ड से डिस्चार्ज करने के 6 दिन में ही यह समस्या पेश आई। उसके शरीर के दाएं हिस्से में कमजोरी आ गई थी। एमआरआई से पता चला कि स्ट्रोक की वजह से दिमाग की एक नस में ब्लॉकेज हो गया है। ये ब्लॉकेज न्यूरो फिजीशियन ने निकाला।
छुट्टी के 2 हफ्ते बाद ही फूलने लगी सांस
38 साल के व्यक्ति को कोरोना के सामान्य लक्षण थे। ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी थी, लेकिन 14 दिन में स्वस्थ हो गए। घर जाने के दो हफ्ते बाद दोबारा सांस की समस्या के साथ लौटे। उनके फेफड़े में फायब्रोसिस हो गया था। ऑक्सीजन और फेफड़े की कसरत करवाने से स्वस्थ हुए।
अति आत्मविश्वास में न आएं, प्रोटोकॉल का पालन करें: एक्सपर्ट
डॉक्टर तेजस पटेल ने कहा लापरवाही न बरतें। ये नए तरह का रोग है। अति-आत्मविश्वास जानलेवा हो सकता है। मास्क पहनें, हाथ धोएं और दो गज दूरी के प्रोटोकॉल को बिल्कुल नजरअंदाज न करें।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज 10.30 बजे गुजरात में 4 योजनाओं का वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उद्घाटन करेंगे। ये प्रोजेक्ट हैं- किसान सूर्योदय, पेडिएट्रिक हार्ट हॉस्पिटल और अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में मोबाइल ऐप फॉर टेली-कार्डियोलॉजी और गिरनार में रोप-वे।
A Paediatric Heart Hospital linked with the U.N Mehta Institute of Cardiology and Research Centre and a Mobile App for tele-cardiology at the Ahmedabad Civil Hospital would also be inaugurated. Such endeavours will go a long way in improving the health of citizens.
किसान सूर्योदय योजना के लिए 3500 करोड़ का बजट
खेती के लिए दिन में बिजली सप्लाई देने के लिए गुजरात सरकार ने हाल ही में किसान सूर्योदय योजना का ऐलान किया था। इस स्कीम के तहत किसानों को सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक बिजली मिलेगी। इसके लिए 2023 तक ट्रांसमिशन इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए सरकार ने 3,500 करोड़ का बजट मंजूर किया है।
पेडिएट्रिक हार्ट हॉस्पिटल, यूएन मेहता इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी एंड रिसर्च से जुड़ा हुआ है। 470 करोड़ रुपए की लागत से यूएन मेहता इंस्टीट्यूट का एक्सपेंसन किया जा रहा है। यह प्रोजेक्ट पूरा होने पर इंस्टीट्यूट में बेड की संख्या 450 से बढ़कर 1251 हो जाएगी। यह देश का सबसे बड़ा सिंगल सुपर स्पेशिएलिटी कार्डिएक टीचिंग इंस्टीट्यूट भी बन जाएगा।
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(अनिरुद्ध शर्मा) आकाश में टिमटिमाते तारे बनने बंद हो चुके हैं। सुनने में यह अजीब है, लेकिन सच है। करीब एक हजार करोड़ साल पहले तारे बनने की प्रक्रिया धीमी हो गई थी। लेकिन तारामंडलों में उपलब्ध हाइड्रोजन गैस अणु खत्म होने के बाद तारे बनने बंद हो गए हैं।
भारतीय वैज्ञानिकों ने दुनिया के सबसे बड़े टेलीस्कोप से 8500 तारामंडलों का निरीक्षण कर तारे नहीं बनने के कारणों के रहस्य से पर्दा उठाया है। भारतीय वैज्ञानिकों का यह शोध विज्ञान की प्रतिष्ठित मैग्जीन ‘नेचर’ में प्रकाशित हुआ है। इस शोध की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे भारतीय खगोलविदों की टीम ने तैयार किया है।
इसमें पूरी तरह भारतीय संसाधन जुटाकर खासकर जायंट मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप (जीएमआरटी) का इस्तेमाल किया गया है। इस टीम में पुणे स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स और बेंगलुरू के रमण रिसर्च इंस्टीट्यूट के आदित्य चौधरी, निसिम कनेकर, जयराम चेंगालुर, शिव सेठी व केएस द्वारकानाथ शामिल हैं।
100-200 करोड़ साल तक बहुत तेजी से बने थे तारे: चौधरी
शोध के लेखक आदित्य चौधरी बताते हैं- ‘शुरुआती तारामंडलों में 100 से 200 करोड़ साल तक ही गैसीय अणुओं से तेजी से तारे बने। उसके बाद जब हाइड्रोजन गैस की उपलब्धता खत्म हो गई तो तारे बनने की प्रक्रिया भी धीमी पड़ गई और अंतत: वह बंद हो गई।
सूदूर तारामंडलों में हाइड्रोजन अणुओं के भार का आकलन जीएमआरटी के अपग्रेडेड वर्जन की वजह से संभव हो सका।’ प्रो. निसिम कनेकर ने कहा- ‘तारों की बनने की प्रक्रिया के खत्म होने के प्रत्यक्ष प्रमाण के साथ व्याख्या देने वाला यह दुनिया का पहला शोध है।’
from Dainik Bhaskar /national/news/the-constellation-of-stars-ceased-as-hydrogen-dissipated-this-process-slowed-down-1000-million-years-ago-127845076.html
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(मुकेश कौशिक) डाटा संरक्षण विधेयक मामले में गठित संयुक्त संसदीय समिति के समन पर शुक्रवार को फेसबुक की पॉलिसी प्रमुख अंखी दास पेश हुईं। उनसे पूछा गया कि 13 साल के बच्चे को बालिग कैसे मानते हो? क्योंकि, भारत में बालिग होने की उम्र 18 साल है। आप बालिगों के ही अकाउंट खोलते हैं। ऐसे में भारत में ऑपरेशन कैसे चला पाओगे? दूसरी ओर, दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन ने पेश होने से इनकार कर दिया। समिति ने अमेजन को यह समन भारतीयों का डाटा सुरक्षित रखने के तौर-तरीकों पर उनकी नीतियों को जानने के लिए दिया था।
अमेजन ने कहा कि उसके विशेषज्ञ विदेश में हैं। समिति ने कहा कि कंपनी के जवाब से पता चलता है कि वह इतना बड़ा कारोबार होने के बावजूद भारत में प्रतिनिधि भी नहीं रखती। समिति अध्यक्ष मीनाक्षी लेखी ने इसे विशेषाधिकार हनन जैसा बताया है। सदस्य विवेक तन्खा ने कहा कि हम अमेजन को नोटिस भेज रहे हैं। अगर 28-29 अक्टूबर को उनका प्रतिनिधि नहीं आता है तो विशेषाधिकार हनन की कार्रवाई की जाएगी।
फेसबुक से सवाल: जियो के साथ मिलकर 80 करोड़ से ज्यादा यूजर्स को कैसे रेगुलेट करोगे
भारत से कितना पैसा कमाते हो? Áफेसबुक पर विज्ञापन के लिए टारगेटिंग कैसे करते हो?
इसमें कम्युनिटी पर फोकस होता है, पूरे देश पर या धार्मिक समुदाय व जातपात पर?
भारतीयों का अपार डेटा जुटाकर दुनियाभर में क्यों बेच रहे?
डाटा बेचने की अनुमति लेते हो क्या?
डाटा बिक्री से हुई आमदनी का शेयर फेसबुक यूजर्स को क्यों नहीं देते?
भारत से हुई आमदनी का टैक्स कैसे देते हो?
भारत के विज्ञापन अमेरिकी रूट से क्यों आते हैं?
जिओ से गठबंधन में करोड़ों यूजर्स को कैसे रेगुलेट करोगे? इसमें फेसबुक के 40 करोड़, जबकि इससे ज्यादा यूजर जिओ के हैं। दोनों की साझा कमाई का टैक्स कैसे और कहां भरोगे?
क्या है पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल
काउंट बनाने में यूजर की निजी जानकारी सोशल मीडिया कंपनियों के पास पहुंच जाती है। इसके दुरुपयोग की आशंका रहती है। इसे रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बीएन श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में केंद्र ने एक समिति बनाई थी। उसने ‘पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल’ का ड्राफ्ट सरकार को दिया है। इसी पर समिति सोशल मीडिया कंपनियों के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर रही है। समिति में 20 लाेकसभा, 10 राज्यसभा सांसद हैं।
ट्विटर को 28, गूगल और पेटीएम को 29 को होना है पेश
ट्विटर को 28 अक्टूबर, गूगल और पेटीएम को डाटा सुरक्षा के मुद्दे पर 29 अक्टूबर को समिति के समक्ष पेश होने के लिए समन जारी हुआ है।
ड्राफ्ट में 5 से 15 करोड़ रु. के जुर्माने का प्रावधान
इस ड्राफ्ट बिल में निजी डेटा चोरी करने वाली कंपनियों के खिलाफ सख्ती बढ़ाई है। नियमों के उल्लंघन पर 15 करोड़ रु. या वैश्विक कारोबार के 4% तक के जुर्माने के साथ जेल का प्रावधान है। कम उल्लंघन पर 5 करोड़ या वैश्विक कारोबार का 2% तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
from Dainik Bhaskar /national/news/asked-on-facebook-how-do-you-consider-a-13-year-old-to-be-an-adult-how-much-you-earn-from-india-how-much-do-you-pay-taxes-127845073.html
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अररिया जिले के अम्हारा इलाके में क्लिनिक चलाने वाले डॉक्टर नरसिंह प्रताप सिंह दूर-दूर तक मशहूर हैं। आस-पास के कई जिलों से उनके पास मरीज आते हैं। जिस पर्चे पर वो दवाई लिखते हैं, उसमें सबसे ऊपर शेर पर सवार दुर्गा की एक तस्वीर बनी है और संस्कृत में एक श्लोक दर्ज है। इसके नीचे उनका नाम और ‘रजिस्ट्रेशन नम्बर 00080596’ लिखा है। पड़ताल करने पर वो खुद ही बता देते हैं कि ये असल में उनका यूनिवर्सिटी का रोल नम्बर है।
उनकी डिग्री के बारे में उनके पर्चे पर लिखा है ‘बी.ए.एस.एम.को.’। इस डिग्री के बारे में पूछने पर वो कहते हैं, ‘ये कोलकाता से होने वाली एक मेडिकल डिग्री है, जिसे बिहार सरकार मान्यता नहीं देती, लेकिन कई अन्य सरकारें देती हैं।’ हकीकत ये है कि कोई भी सरकार इस तरह के कोर्स को मान्यता नहीं देती और सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन इस कोर्स को फर्जी घोषित कर चुकी है।
नरसिंह प्रताप सिंह 1971 से लोगों का इलाज कर रहे हैं। अपने बारे में वो कहते हैं, ‘मैंने करीब दस साल एक एमबीबीएस डॉक्टर के साथ काम किया है। मैं तब कंपाउंडर हुआ करता था। उसके बाद ही मैंने अपना डॉक्टर का काम शुरू किया। हमारे संविधान की धारा 62 में यह लिखा भी गया है कि दस साल किसी डॉक्टर के साथ काम करने वाले व्यक्ति को मेडिकल प्रैक्टिशनर का प्रमाणपत्र दिया जा सकता है।’
पूरे आत्मविश्वास से जब नरसिंह प्रताप सिंह संविधान का हवाला देते हैं तो उनके आस-पास मौजूद उनके मरीजों का उन पर विश्वास कुछ और मजबूत हो जाता है। वे नहीं जानते कि उनके ‘डॉक्टर साहब’ संविधान से जुड़ी जो बात कह रहे हैं, वो हकीकत से कोसों दूर है और संविधान का अनुच्छेद 62 तो असल में राष्ट्रपति चुनावों के संबंध में बात करता है।
डॉक्टर नरसिंह अपने मरीजों से कोई भी कंसलटेशन फीस नहीं लेते। वे सिर्फ दवा लिख देते हैं, जो उन्हीं की दवाई की दुकान से मरीज को खरीदनी होती है। इस पर होने वाली बचत ही उनकी फीस है। इसके अलावा वो कई बार खून की जांच या एक्स-रे भी लिख देते हैं, जो पास की ही एक लैब में हो जाती है। यह लैब कोई पैथोलॉजिस्ट या रेडियोलॉजिस्ट नहीं चला रहा, बल्कि लैब टेक्नीशियन का डिप्लोमा किए हुए लोगों के नाम से ही लैब चल रही है।
ऐसी लैब से निकली रिपोर्ट कितनी प्रामाणिक होगी, ये समझना मुश्किल नहीं है। इन रिपोर्ट्स पर किसी पैथोलॉजिस्ट या रेडियोलोजिस्ट के हस्ताक्षर भी नहीं होते। इसमें सिर्फ एक हस्ताक्षर होता है, जिसके नीचे ‘डीएमएलटी’ लिखा होता है, जिसका मतलब हुआ ‘डिप्लोमा इन मेडिकल लैबरेटरी टेक्नीक’। डिप्लोमा किया हुआ कोई व्यक्ति ही हस्ताक्षर कर देता है और मरीज इसे ही रिपोर्ट के प्रामाणिक का सबूत मान लेते हैं।
ये कहानी सिर्फ ‘डॉक्टर’ नरसिंह और उनके आस-पास खुली लैब की नहीं है। पूरे बिहार के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य व्यवस्था ऐसे ही काम कर रही है। यहां बड़ी आबादी इन झोलाछाप डॉक्टरों के पास ही इलाज के लिए पहुंचती है। ये डॉक्टर अपना कोई बोर्ड वगैरह नहीं लगाते। इनकी सिर्फ एक केमिस्ट की दुकान होती है, जिसका लाइसेंस किसी फार्मासिस्ट के फर्जी दस्तावेज लगाकर आसानी से मिल जाता है।
सुपौल जिले के ऐसे ही एक झोलाछाप डॉक्टर बताते हैं, ‘पहले एक फार्मासिस्ट के दस्तावेजों पर ही कई-कई केमिस्ट के लाइसेंस जारी कर दिए जाते थे। अब एक फार्मासिस्ट के नाम पर एक ही केमिस्ट शॉप का लाइसेंस जारी होता है। लेकिन ड्रग इंस्पेक्टर के ऑफिस में बैठे दलाल ये लाइसेंस 50-60 हजार रुपए लेकर जारी करवा देते हैं।'
झोलाछाप डॉक्टर बिहार में कितने व्यापक पैमाने पर फैले हैं, इसका अंदाजा कृष्णा मिश्रा की बातों से लगाया जा सकता है। कृष्णा अररिया जिले में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव का काम करते हैं। वो बताते हैं, ‘तमाम दवाई कंपनियां यहां जो दवाई बेच रही हैं, उसका 60 फीसदी से ज्यादा ऐसे ही झोलाछाप डॉक्टरों के जरिए लोगों तक पहुंच रहा है। एमबीबीएस डॉक्टरों के जरिए 40 फीसदी से भी कम दवाएं बिकती हैं। ग्रामीण इलाकों में तो लगभग सौ फीसदी दवाएं इन्हीं के जरिए जाती हैं, क्योंकि वहां दूर-दूर तक एमबीबीएस हैं ही नहीं।’
नरसिंह प्रताप सिंह बताते हैं कि अररिया जिले के सिर्फ फारबिसगंज ब्लॉक में ही 400 से ज्यादा झोलाछाप डॉक्टर हैं। वे कहते हैं, ‘बीते करीब दस सालों में ये संख्या तेजी से बढ़ी है। नौकरियां हैं, नहीं तो नए लड़के भी झोला लेकर डॉक्टर का काम शुरू कर रहे हैं। दो-तीन साल किसी डॉक्टर के साथ या किसी दवा की दुकान पर काम करने के बाद लड़के ये काम शुरू कर देते हैं।’
रामपुर पंचायत के रहने वाले विक्की मिश्रा बताते हैं, ‘गांव के लोग अधिकतर झोलाछाप के पास जाना ही पसंद करते हैं। एक तो झोलाछाप आस-पास के ही गांव के होते हैं, तो नजदीक ही रहते हैं। दूसरा, प्राइवेट अस्पताल की फीस इतनी ज्यादा है कि हर कोई वो चुका नहीं सकता। एक कारण ये भी है प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति बेहद खराब है। वो या तो हैं ही नहीं या उनमें डॉक्टर नहीं है।’
विक्की आगे कहते हैं, ‘मैं जब चौथी-पांचवीं में पढ़ता था तो माधवपुर पंचायत के मेरे स्कूल के ठीक पीछे एक स्वास्थ्य केंद्र बनना शुरू हुआ था। उसका ढांचा पूरा बनकर खड़ा हुआ और अब करीब 12-13 साल बाद वो ढांचा जर्जर होकर गिरने को हो गया है। लेकिन, उसमें कभी न तो कोई डॉक्टर आया, न कभी उसका उद्घाटन हुआ। ऐसे केंद्र यहां के तमाम गांवों में देखे जा सकते हैं।’
बिहार के ये झोलाछाप डॉक्टर अमूमन सर्दी, खांसी, बुखार, पीलिया, डायरिया या मलेरिया जैसी बीमारियों में लोगों को प्राथमिक उपचार देते आए हैं। इनमें कुछ लोग अब बतौर डॉक्टर अपनी पहचान स्थापित कर चुके हैं तो उन्होंने दुकानें खोल ली हैं, जबकि कई साइकल पर झोला लटकाए गांव-गांव घूमते हैं और लोगों का इलाज करते हैं।
बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था इन झोलाछाप पर इस कदर निर्भर है कि सरकार अगर सख्ती से इन पर पाबंदी लगा दे, तो पूरी व्यवस्था ही चरमराने लगेगी। झोलाछाप डॉक्टरों का अस्तित्व बिहार में एक खुला हुआ रहस्य है। वे जो काम कर रहे हैं, वह कानूनन गलत है, लेकिन सरकार के पास कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है इसलिए इन्हें नजरंदाज करके चलने दिया जाता है।
साल 1993 में ‘सोसायटी फॉर सोशल हेल्थ केयर’ नाम के एक एनजीओ ने इन लोगों को प्रशिक्षण देने का एक खाका तैयार किया था। इसके तहत कई लोगों को चार-पांच महीने का प्रशिक्षण दिया गया, ताकि वे प्राथमिक उपचार से जुड़ी मूलभूत बातें सीख सकें। इसका काफी फायदा भी हुआ, लेकिन आज बात बहुत आगे बढ़ चुकी है। आज कई झोलाछाप डॉक्टर सिर्फ प्राथमिक उपचार ही नहीं, बल्कि ऑपरेशन तक करने लगे हैं।
गालब्लेडर में पथरी, बच्चादानी निकालने और हर्निया जैसे ऑपरेशन जगह-जगह झोलाछाप डॉक्टर खुद ही करने लगे हैं। ये गैर कानूनी तो है ही, साथ ही लोगों की जिंदगी को सीधे-सीधे खतरे में डालने वाला भी है। इन पर गाहे-बगाहे कार्रवाई होती भी है, लेकिन कुछ ही समय बाद ये फिर से शुरू हो जाते हैं और इसका मुख्य कारण सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था का बेहद लचर होना है।
बीते सालों में झोलाछाप डॉक्टरों की संख्या कम होने की जगह तेजी से बढ़ी है। इस बारे में विक्की मिश्रा कहते हैं, ‘जब हम छोटे थे तो हमारे पूरे इलाके में दो-तीन ही ऐसे डॉक्टर हुआ करते थे। एक मुमताज भैया के पापा थे, एक बिंदेश्वरी अंकल थे और शायद एक और कोई थे। लेकिन, आज तो गांव में ही 14-15 से ज्यादा ऐसे डॉक्टर हो गए हैं।’
स्वास्थ्य व्यवस्था का इस कदर लचर होना क्या इन चुनावों में एक मुद्दा होगा? यह सवाल करने पर अररिया के पंकज मंडल कहते हैं, ‘ये बिलकुल भी मुद्दा नहीं होगा। झोलाछाप डॉक्टर असली डॉक्टर हैं या नहीं, इससे गांव के लोगों को फर्क ही नहीं पड़ता। उनके लिए तो ये भगवान हैं, जो कम पैसे में सालों से उनका इलाज करते आ रहे हैं। युवाओं के लिए भी ये मुद्दा नहीं है, क्योंकि नौकरियां नहीं हैं, तो इसी बहाने कई लोगों को काम मिल जाता है। मुझे भी अगर कोई नौकरी नहीं मिली तो मैं भी आसानी से झोलाछाप बन सकता हूं।’
गुजरात की पाटण तहसील के बोतरवाडा गांव में रहने वाले हरेश पटेल मैकेनिकल इंजीनियर हैं। वे फेब्रिकेशन का काम करते थे। डेढ़ साल पहले उन्होंने पशुपालन का काम शुरू किया। इससे वे हर साल 8 लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं। वे अपने खेतों में गोबर और गोमूत्र का उपयोग कर रासायनिक खाद का खर्च भी बचाते हैं। इसके साथ ही वे अब गोबर से धूपबत्ती भी बना रहे हैं। गुजरात सरकार ने इस साल उन्हें श्रेष्ठ पशुपालक के पुरस्कार से सम्मानित किया है।
35 साल के हरेश पहले ने पिता और बड़े भाई की सलाह पर 4 गायों से गोशाला की शुरुआत की। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ाते गए और आज उनके पास 44 गायें हैं। अब उनका टारगेट 100 गायों का है। हरेश पटेल की गोशाला माधव गोशाला के नाम से पहचानी जाती है, जिसमें गिर नस्ल की ही देसी गाएं हैं। गायों के दूध से घी बनाते हैं, जिसकी मार्केट में कीमत 1700 रुपए किलो है। इसके अलावा गायों के मूत्र से अर्क और गोबर से ईकोफ्रेंडली धूपबत्ती (कई फ्लेवर में, गूगल, लोहबान आदि) बनाकर बेचते हैं।
पशुपालन के साथ खेती भी
हरेश पटेल के पास 30 बीघा जमीन है, जिसमें वे गाय आधारित ऑर्गेनिक खेती करते हैं। खेती में गो-मूत्र और गोबर का उपयोग करते हैं। इससे न सिर्फ रासायनिक खाद का खरीदने का खर्च ही बचता है, बल्कि इससे जमीन भी उर्वरा रहती है। खेतों में गोबर और गोमूत्र के अलावा कीटनाशक के रूप में छाछ का छिड़काव करते हैं। इतना ही नहीं, गायों के लिए घास-चारा भी खेतों में ही उगाते हैं। गिर जंगल की गायों के शुद्ध घी की गुजरात में काफी डिमांड है। पिछले साल उन्होंने 400 किलो घी तैयार कर बेचा, जिससे उन्हें करीब 8 लाख रुपए की कमाई हुई।
बड़े शहरों में घी पहुंचाते हैं
पशुपालन की शुरुआत के समय हरेश पटेल सालाना 12 हजार लीटर का उत्पादन करते थे। प्रति लीटर दूध की 70 रुपए कीमत मिलती थी। इसके बाद बचे दूध का घी बनाकर बेचते थे। जब वडोदरा-सूरत और मुंबई जैसे शहरों में घी की डिमांड बढ़ने लगी तो उन्होंने दूध बेचना छोड़कर उसका घी तैयार करना शुरू कर दिया। हरेश बताते हैं कि घी की मांग अब भी बढ़ती जा रही है और इसके चलत वे गिर नस्ल की गायों की संख्या बढ़ाने कोशिशों में लगे हुए हैं।
100 गायों के पालन का लक्ष्य
हरेश गिर की कई नस्लों की गायों के संवर्धन के लिए प्रयत्नशील हैं। वे समय-समय पर अपनी गोशाला में गिर की गायों की ब्रीडिंग के लिए बीज दान भी करते हैं। राज्य सरकार से मिलने वाली सहायता राशि से गायों की खरीदी करते हैं। हरेश बताते हैं कि उनका लक्ष्य गिर की 100 गायों के संवर्धन का है।
हरेश को इसी साल गुजरात सरकार द्वारा श्रेष्ठ पशुपालक के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। दाहोद में आयोजित पुरस्कार वितरण समारोह में कैबिनेट मंत्री कुंवरजी बावलिया ने उन्हें अवॉर्ड के साथ 15000 रुपए की प्रोत्साहन राशि भी दी थी।
अमेरिकी थिंकटैंक की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वायु प्रदूषण ने भारत में पिछले एक साल 1.16 लाख छोटे बच्चों की जान ले ली। वहीं, पूरी दुनिया में करीब पांच लाख छोटे बच्चों की मौत जहरीली हवा की वजह से हुई है। वायु प्रदूषण असामयिक मौतों का चौथा सबसे बड़ा कारण बन चुका है। वहीं, रिपोर्ट यह भी कहती है कि पिछले साल दुनियाभर में 66.7 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हुई है। यह पहली रिपोर्ट है, जिसमें छोटे बच्चों की मौतों के कारण में जहरीली हवा का एनालिसिस किया गया है।
रिपोर्ट दावा करती है कि छोटे बच्चों की 50% मौतों के लिए PM 2.5 (2.5 माइक्रोन्स से कम आकार के कण) जिम्मेदार है। क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (COPD), डाइबिटीज, दिल के रोग, लोअर रेस्पिरेटरी इंफेक्शन (LRI) जैसी बीमारियों में भी मौतों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार रहा। COPD भी फेफड़ों की ही बीमारी है। इसके लक्षण अस्थमा और ब्रोंकाइटिस से मिलते-जुलते हैं। यह क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस है, जिसमें मरीज की एनर्जी कम हो जाती है, वह कुछ कदम चलकर ही थक जाता है। सांस नली में नाक से फेफड़े के बीच सूजन के कारण ऑक्सीजन की सप्लाई घट जाती है।
स्टडी दावा करती है कि छोटे बच्चों की ज्यादातर मौतें जन्म के समय कम वजन और प्री-मेच्योर बर्थ की वजह से हुई, जो गर्भावस्था में महिलाओं के जहरीली हवा के एक्सपोजर में आने से हुआ। हालांकि, अब तक यह पता नहीं चला है कि इसका बायोलॉजिकल कारण क्या है। फिर भी जिस तरह स्मोकिंग की वजह से कम वजन के साथ और प्री-मेच्योर जन्म होता है, उसी तरह वायु प्रदूषण भी असर डालता है।
असामयिक मौतों में वायु प्रदूषण चौथा बड़ा कारण
जब हम वयस्कों पर वायु प्रदूषण के असर की बात करते हैं, तो मौतों का आंकड़ा बढ़कर 66.7 लाख तक पहुंच जाता है। रिपोर्ट कहती है कि हाई ब्लड प्रेशर की वजह से करीब 1.08 करोड़, तंबाकू के इस्तेमाल की वजह से 87.1 लाख और आहार संबंधी बीमारियों की वजह से 79.4 लाख मौतें हुई हैं। इसके बाद जहरीली हवा का नंबर आता है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि इस बात के पक्के सबूत हैं कि जहरीली हवा का दिल व फेफड़ों की बीमारियों से स्पष्ट संबंध है। यह खुलासा चिंता बढ़ाने वाला है, क्योंकि बढ़ता वायु प्रदूषण कोरोनावायरस के खतरनाक प्रभावों को बढ़ा सकता है।
PM 2.5 की मात्रा में भारत टॉप पर
भारत के लिए चिंता करने वाली बात यह है कि प्रति एक घनमीटर हवा में 2.5 माइक्रोन्स से कम आकार के कणों (PM 2.5) का अनुपात हमारे यहां सबसे ज्यादा है। और, यह दुनियाभर में 9.80 लाख लोगों की मौत का कारण बना है। वायु प्रदूषण की वजह से हुई मौतों में इसकी हिस्सेदारी 60% रही है। रिपोर्ट कहती है कि भारत में 2010 से 2019 के बीच PM 2.5 की वजह से हुई मौतों में 60% की बढ़ोतरी हुई है। भारत के साथ-साथ बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल जैसे दक्षिण एशियाई देशों को इस रिपोर्ट में सबसे ज्यादा PM 2.5 एक्सपोजर वाले 10 देशों में रखा गया है।
हर किसी को जिंदगी में सुकून की तलाश होती है। इसी को हासिल करने के लिए नीदरलैंड्स में एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है। नाम है 'काऊ नफलेन'। मतलब गायों काे गले लगाइए और सुकून पाइए।
लोग गायों को गले लगाने के लिए किसी फार्म हाउस जाते हैं और वहां किसी एक गाय के साथ घंटों सटकर बैठते हैं। लोगों का कहना है कि इससे उन्हें मानसिक शांति मिलती है। नीदरलैंड से निकलकर अब यह ट्रेंड धीरे-धीरे यूरोप के कई और देशों में भी मशहूर हो रहा है। एक्सपर्ट्स इसे काऊ थेरेपी भी बता रहे हैं।
इस बारे में हमने हैदराबाद स्थित यशोदा हॉस्पिटल में कंसल्टेंट साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर प्रज्ञा रश्मि से बात की। वह कहती हैं कि यह बात तो सच है कि घरेलू जानवरों में भावनाएं पाई जाती हैं। यदि इंसान उनसे जुड़ता है तो नॉन वर्बल रिलेशन बनाता है, तो लोगों को सुकून का एहसास होता है।
इसलिए आप जितना ज्यादा पशु-पक्षियों के साथ रहेंगे, उतना खुश रहेंगे। आपका तनाव कम होगा। जैसे आप जब नदी या झील के किनारे बैठते हैं तो पैसिव इंट्रैक्शन होता है, उसी तरह जानवरों के साथ बैठने से एक्टिव इंट्रैक्शन होता है।
जानवरों के भय को दूर करने से स्वभाव में विनम्रता आती है
डॉक्टर प्रज्ञा कहती हैं जानवरों के साथ रहने से हमें अकेलेपन का एहसास नहीं होता है। आप बच्चों को जिम्मेदारी का एहसास दिलाने के लिए भी गाय, बकरी, कुत्ता या कोई और भी जानवर घर में रख सकते हैं। उनकी देखभाल की जिम्मेदारी बच्चों को दे सकते हैं। जानवरों को जब सहलाते हैं तो उनका भय दूर होता। इससे आपके स्वभाव में विनम्रता आती है।
भारत में तो यह सदियों पुरानी परंपरा है
यूरोपीय देशों में ये चीजें अब हो रही हैं, भारत में तो ये सदियों पुरानी परंपरा है। पहले हर घर में गाय होती थी। हमारे देश में गायों को पालने और उनके साथ रहने का कल्चर है। हम गाय को रोटी देते हैं। हालांकि अब ये चीजें कम हो रही हैं।
काऊ थेरेपी क्या है?
गाय की पीठ थपथपाना और उसके साथ सटकर बैठना या उसे गले लगा लेना, चूमना ये सब इस काऊ थेरेपी का हिस्सा है।
अगर गाय पलटकर आपको चाटती है तो वो बताती है कि आपके और उसके बीच विश्वास कितना गहरा है।
गाय के शरीर का गर्म तापमान, धीमी धड़कनें और बड़ा आकार सटकर बैठने वालों के मन को शांति का एहसास देता है। खुशी मिलती है।
सटकर बैठने से गायों को भी अच्छा महसूस होता है। ये चीजें उनकी पीठ खुजलाने जैसा है।
गायों के पास बैठने से इंसान में ऑक्सीटोसिन हार्मोन निकलता है
कुछ रिसर्च में पाया गया है कि गायों को गले लगाने, उनके पास बैठने से लोगों के शरीर में ऑक्सीटोसिन निकलता है और इससे उन्हें अच्छा महसूस होता है। ये हार्मोन तब निकलता है, जब आप किसी सुखद संपर्क में आते हैं। ऑक्सीटोसिन से मन में संतुष्टि का भाव आता है। इससे तनाव भी कम होता है।
2017 में हुए शोध के मुताबिक गायों को जब उनकी गर्दन और पीठ के कुछ खास हिस्सों पर मसाज किया गया तो वो शांत हुईं। गायें फैलकर लेटी और उनके कान भी नीचे गिर गए। इस वक्त जाे लोग उनके पास थे, उनके मन को सुकून मिला। ये शोध एप्लाइड एनिमल बिहेवियर साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ था। हालांकि भारत में ये बात बहुत कॉमन है।
गायों के पास बैठकर अमेरिका, स्विट्जरलैंड में लोग तनाव दूर कर रहे
करीब एक दशक पहले नीदरलैंड्स के ग्रामीण इलाकों में जानवरों के साथ समय बिताने की ये संस्कृति शुरू हुई थी। अब वहां इस चीज को बड़ी संख्या में लोग फॉलो कर रहे हैं। इसके जरिए लोग खुद को गांवों से जोड़ रहे हैं। यही काम स्विट्जरलैंड, अमेरिका में भी लोग कर रहे हैं। यहां लोगों का कहना है कि यह थेरेपी जैसी है, इससे उनका तनाव कम होता है।
जीतन राम मांझी। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष। फिलहाल अपनी पार्टी के अकेले विधायक। पहली बार जीतन राम मांझी कांग्रेस के टिकट पर 1980 में विधायक बने। इसके बाद बिहार की लगभग हर राजनीतिक पार्टी में रहे। विधायक रहे। मंत्री रहे। इस विधानसभा चुनाव में एनडीए का हिस्सा हैं और गया के इमामगंज विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इनसे हमारी मुलाकात सुबह 8 बजे उनके गया स्थित घर पर हुई।
सवाल: खुद को नरेंद्र मोदी का ‘हनुमान’ कहने वाले चिराग पासवान की वजह से आपको ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है क्या?
जवाब: कुछ मेहनत नहीं करनी पड़ रही है। बिहार की जनता सब समझती है। यही वजह है कि चिराग पासवान जी की असलियत जनता के सामने है। एक तरफ वो नरेंद्र मोदी जी की तारीफ करते हैं, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आलोचना करते हैं। खुद पीएम कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहेंगे। इसके बाद भी वो इनके पीछे पड़े हुए हैं।
इसलिए जनता जानती है कि चिराग पासवान को भाजपा का साथ नहीं मिलेगा। यही वजह है कि बिहार में जहां भी उनके कैंडिडेट लड़ रहे हैं, वहां उन्हें वोटकटवा कहा जा रहा है। वो हमारे लिए कोई चैलेंज नहीं हैं। आप देखिएगा कि शायद कोई सीट लोजपा को आवे।
सवाल: आपकी पार्टी सात सीटों पर चुनाव लड़ रही है। तीन सीट पर आप और आपके परिजन चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसा क्यों? क्या आपकी पार्टी में दूसरे योग्य उम्मीदवार नहीं थे?
जवाब: देखिए, कमजोर वर्ग के लोगों पर उंगली उठाना बहुत आसान है। आज हिंदुस्तान में कौन ऐसी पार्टी है, जिसमें परिवार के लोग चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। राजनीति में नहीं हैं। चाहे भाजपा हो। कांग्रेस हो या कोई और पार्टी। परिवारवाद के सबसे बड़े उदाहरण तो हमारे लालू प्रसाद जी हैं। इनका बेटा, बेटी और दामाद सहित पूरा परिवार इसी फ्रेम में है। जय प्रकाश यादव नाम के एक सांसद हैं। उनकी बहू चुनाव लड़ रही है। बेटा चुनाव लड़ रहा है तो यहां पर भाई-भतीजा वाद नहीं हुआ?
जहां तक हमारी बात है, हमने अपनी समधिन को टिकट दिया है, लेकिन पहली बार हमने नहीं दिया है। 2010 में नीतीश कुमार ने पहली बार टिकट दिया था। उन्होंने टिकट इसलिए दिया था कि वो एनजीओ से संबंधित है। श्री विधि से जो खेती होती है, उसकी वो विशेषज्ञ है। इस वजह से उन्हें पहली बार टिकट मिला था। तब नीतीश कुमार को मालूम भी नहीं था कि वो मेरी समधिन हैं।
मेरा दमाद मैकेनिकल इंजीनियर है। वो आराम से कहीं लाख-डेढ़ लाख कमा सकता था। मानवाधिकार के मामले में उसका काम है। वो पिछले 6 साल से है। अगर दमाद की वजह से ही टिकट देना होता तो 2015 में ना दे देते? वो पढ़ा-लिखा है। राजनीति करना चाह रहा था। उसके लिए जनता से मांग आ रही थी। अब अगर ऐसे पढ़े-लिखे लोग राजनीति में नहीं आएंगे, तो वही सतमा(सातवां) पास और नौमा(नौवां) पास लोग राजनीति में आते रहेंगे। इन सारी वजहों से उन्हें टिकट मिला है। खाली दामाद की वजह से मिला होता तो दामाद तो मेरे और हैं। दो बेटे भी हैं, लेकिन उनको कहां दे दिया?
सवाल: तेजस्वी यादव की रैली में खूब भीड़ जमा हो रही है। क्या महागठबंधन से निकलने का पछतावा हो रहा है?
जवाब: जहां तक भीड़ की बात है, तो भीड़ में कई लोग ऐसे होते हैं, जो केवल देखने-सुनने जाते हैं। ऐसा नहीं है कि वो सारे लोग उनके भोटरे (वोटर्स) हैं। हां, उनका समाज थोड़ा चुलबुला टाइप का है। 100-200 आदमी सामने रहता है और हो, हो, हो करता है। इससे ऐसा माहौल बनता है कि सब हमारे पक्ष में ही है। जबकि, ऐसा नहीं है।
सवाल: आप महा गठबंधन से एनडीए में आने की वजह क्या है?
जवाब: महा-गठबंधन में तो हम सत्ता पक्ष से आए थे। अगर लोभ होता, सत्ता के लाभ का या किसी तरह की बात करने का तो छोड़कर नहीं आना चाहिए था। लेकिन, एक मुद्दा था, जिस पर लालूजी ने अपना हित साधने के लिए हमसे गलत वायदा किया। अररिया और जहानाबाद लोकसभा के उप-चुनाव को जीतने के लिए उन्होंने मुझे अपनी तरफ किया था। हम न्यायपालिका में आरक्षण समान स्कूलिंग की लड़ाई लड़ रहे थे।
लालू यादव ने मुझे कहा- जीतन भाई, आप हमरी तरफ आ जा। ई हम मिलकर करब ना त एकर लड़ाई लड़ब। उनके इसी वायदे की वजह से मैं महा गठबंधन में शामिल हुआ था, लेकिन जब वहां गया तो खेल ही अलग था। लालू यादव अपना वायदा भूल गए। उन्होंने मेरा समर्थन नहीं किया। मेरी बात को आगे नहीं बढ़ाया। दूसरे वहां पैसा लेकर टिकट देने का काम होता है। ऊपर से उन्होंने कह दिया कि महा-गठबंधन में वही रहेगा, जो तेजस्वी की बात मानेगा तो हमको निकलना पड़ा।
सवाल: आप जदयू से बाहर निकले थे, क्योंकि नीतीश कुमार से आपके मतभेद थे। आज आप उन्हीं के साथ चुनाव लड़ रहे हैं, ऐसे में आपके कार्यकर्ता और पार्टी का क्या मतलब है?
जवाब: मेरा कार्यकर्ता जीतन राम मांझी को देखता है। वो कहीं नहीं जाएगा। हम जहां जाएंगे, वहां हमारा 10-11 प्रतिशत वोट जाएगा।
सवाल: बिहार में शराबबंदी एक बड़ा मुद्दा है। आपके नेता नीतीश कुमार इसे कामयाब मानते हैं, वहीं बड़ी संख्या में दलित और गरीब शिकायत करते हैं कि पुलिस पकड़ लेती है। आप कैसे देखते हैं?
जवाब: कोई भी कानून तभी सफल हो सकता है, जब उसे जनता का समर्थन मिले। डंडा से सब काम नहीं किया जा सकता है। शराबबंदी हम चाहते हैं, मेरे परिवार में शराब बनती थी। मेरे माता-पिता दोनों शराब पीते थे। हम आज तक नहीं पिए हैं। तो क्या शराबबंदी कानून की वजह से नहीं पिए हैं? नहीं। हम यही कहते हैं कि समाज में इसके लिए माहौल बनाना होगा।
केवल जेल में डाल देने से नहीं होगा। बड़े-बड़े आदमी नहीं पकड़ाते हैं। गरीब और मेहनती आदमी को पुलिस पकड़ लेती है। जीतने के बाद हम नीतीश कुमार से इस कानून में सुधार की मांग करेंगे। राज्य में दो लाख ऐसे लोग हैं, जो एक-एक घूंट पीने की वजह से जेल जाकर आ चुके हैं। 25 हजार ऐसे लोग हैं, जो जेल में बंद हैं और उनका जमानत करवाने वाला कोई नहीं है।
सवाल: चुनाव परिणाम आने के बाद भी क्या जीतन राम मांझी एनडीए का हिस्सा रहेंगे?
जवाब: अब ई पूछने का क्या मतलब है? ई हम क्यों कहें? परिस्थितियां आएंगी तो देखा जाएगा। अभी हम एनडीए के साथ हैं। ई कोई प्रश्न नहीं है। ई फालतू प्रश्न है। कौन कहां रहेगा, राजनीति में देख नहीं रहे हैं कि क्या हो रहा है। अगर वैसी कोई परिस्थिति आएगी तो हम देखेंगे…अभी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने के लिए हर कवायद करेंगे।
सवाल: अच्छा अगर रिजल्ट के बाद दूसरे पक्ष से कोई ऑफर मिला तो…?
जवाब: चलिए…अब ई सब फालतू बात मत कीजिए। जाइए अब बहुत हो गया।
बिहार में चुनाव है। तीसरे यानी अंतिम फेज के लिए नॉमिनेशन पूरे हो चुके हैं। हमने दोनों बड़े गठबंधनों एनडीए और महागठबंधन के कैंडिडेट्स का डिटेल का एनालिसिस किया। इसमें कई ऐसे मिले, जिनकी उम्र में हेरफेर दिखा। यह ऐसे कैंडिडेट्स हैं, जो पहले भी चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। हमें 12 ऐसे नाम मिले हैं, जिनकी उम्र में घोटाला है। (पहले फेज और दूसरे फेज के कैंडिडेट्स का उम्र घोटाला यहां पढ़ें) चलिए एक-एक करके जानते हैं इनके बारे में...
वो, जिनकी उम्र 5 साल में 5 साल से ज्यादा बढ़ गई
महेश्वर हजारी: 5 साल में 14 साल बढ़ गई
महेश्वर हजारी कल्याणपुर (समस्तीपुर वाली) विधानसभा सीट से जदयू के उम्मीदवार हैं। 2020 में नीतीश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी हैं। समता पार्टी से नीतीश के साथ ही हैं। 2015 में 44 साल के थे, यह जानकारी उन्होंने तब अपने एफिडेविट में दी थी। 2020 आते-आते इनकी उम्र बढ़ने की रफ्तार तिगुनी हो गई। इस बार के एफिडेविट में उन्होंने अपने आप को 58 साल का बताया है।
तारकिशोर प्रसाद: 5 साल में 12 साल बढ़ गई
तारकिशोर प्रसाद कटिहार से भाजपा के उम्मीदवार हैं। पिछले तीन चुनावों से यहां के विधायक चुने जा रहे हैं। 2015 के एफिडेविट में उम्र 52 साल बताई थी। महज पांच सालों में इनकी उम्र 12 साल बढ़ गई। यह हम नहीं लिख रहे, उनका 2020 का एफिडेविट बता रहा है। उन्होंने इस बार अपनी उम्र 64 साल बताई है।
इंदु सिन्हा: 5 साल में 10 साल बढ़ गई
इंदु सिन्हा पूर्णिया सीट से कांग्रेस की उम्मीदवार हैं। 2015 में पहली बार चुनाव लड़ीं थीं, लेकिन हार गईं। इस बार उन्होंने जो एफिडेविट दाखिल किया है, उसमें अपनी उम्र 55 साल बताई है। जबकि, 2015 के वक्त इनकी उम्र 45 साल थी।
विद्यासागर निषाद: 5 साल में 9 साल बढ़ गए
विद्यासागर निषाद मोरवा से जदयू के उम्मीदवार हैं। 2009 में राजनीति में आए, 2015 में जदयू से चुनाव लड़े और जीते। विधायक बने। निषाद ने 2015 में अपनी उम्र 43 साल बताई थी। इस बार उन्होंने अपनी उम्र 52 साल बताई है।
अशोक कुमार: 5 साल में 9 साल बढ़ गई
अशोक कुमार वारिसनगर से जदयू के उम्मीदवार हैं। वह इस सीट से लगातार दो बार विधायक बने। 1990 में राजनीति में आए थे। इनकी उम्र 5 साल के भीतर 9 साल बढ़ गई है। 2015 में इन्होंने अपनी उम्र 55 साल बताई थी, जो 2020 में बढ़कर 64 साल हो गई।
सुधांशु शेखर: 4 साल में 7 साल बढ़ गई
सुधांशु शेखर हरलाखी सीट से जदयू के उम्मीदवार हैं। 2016 में राजनीति में आए और इसी साल हुए उपचुनाव में उन्होंने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता। अब जदयू में शामिल हो गए हैं। 2016 के उपचुनाव के दौरान उन्होंने अपनी उम्र 27 साल बताई थी। 2020 में 34 साल बताई है। यानी, चार साल में उम्र 7 साल बढ़ गई है।
वो, जिनकी उम्र बढ़ी नहीं, या फिर घट गई
अमरनाथ गामी: पांच साल में उम्र जरा भी इधर से उधर नहीं हुई
अमरनाथ गामी दरभंगा सीट से राजद के उम्मीदवार हैं। राजनीति में 2000 में आए थे। हायाघाट से अबतक दो बार विधायक रह चुके हैं। इस बार हायाघाट की बजाय दरभंगा सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 2015 से 2020 हो चुका है। बदलने को 5 साल बदल गए हैं, लेकिन इनकी उम्र जरा भी इधर-उधर नहीं हुई है। 2015 में भी 49 साल के थे अभी भी 49 के ही हैं।
मुसाफिर पासवान: 5 साल में 2 साल घट गई
मुसाफिर पासवान बोचहां सीट से विकासशील इंसान पार्टी(VIP) के उम्मीदवार हैं। इससे पहले राजद, समाजवादी पार्टी से भी चुनाव लड़ चुके हैं। 2005 में राजद के टिकट पर विधायक बने थे। 2010 और 2015 में हार का सामना करना पड़ा। इस बार उन्होंने अपनी उम्र 58 साल बताई है, जबकि 2015 में 60 साल बताई थी। यानी, 5 साल में इनकी उम्र दो साल घट गई।
अब्दुस सुबहान: 5 साल में 2 साल ही बढ़ी
अब्दुस सुबहान बायसी सीट से राजद के उम्मीदवार हैं। 1982 में राजनीति में आए थे। राजद के अलावा जनता दल, लोकदल से भी चुनाव लड़ चुके हैं। 2000 से राजद के टिकट पर लड़ रहे हैं। अबतक इस सीट से 6 बार विधायक चुने जा चुके हैं। इनकी उम्र 5 साल में 2 साल ही बढ़ी है। 2015 में इन्होंने अपनी उम्र 65 साल बताई थी। इस बार 67 साल बताई है।
स्वीटी सिंह: 5 साल में दो साल ही बढ़ी
स्वीटी सिंह किशनगंज सीट से भाजपा की उम्मीदवार हैं। 2010 में पहली बार चुनाव लड़ी थीं और हार गईं। इसके बाद 2015 में उन्होंने फिर चुनाव लड़ा और हार गईं। 2019 उपचुनाव में भी हार ही मिली। 2015 में उन्होंने अपनी उम्र 36 साल बताई थी। इस बार 38 साल बताई है। पिछले 5 साल में उनकी उम्र दो साल ही बढ़ी है।
रामसूरत राय: 5 साल में दो साल ही बढ़ी उम्र
औराई सीट से भाजपा के उम्मीदवार रामसूरत राय एफिडेविट के मुताबिक वर्तमान में 47 साल के हैं। अबतक तीन बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन जीत नसीब नहीं हो पाई है। इनकी उम्र की बात करें, तो पिछले 5 साल में दो साल ही बढ़ी है। 2015 के एफिडेविट में इन्होंने उम्र 45 साल बताई थी। 2020 में जो पांच साल बढ़कर 50 साल होना थी, लेकिन 47 साल बताई है।
शंभु सुमन: 5 साल में एक साल बढ़ी
शंभु सुमन मनिहारी सीट से जदयू के उम्मीदवार हैं। चुनाव में दूसरी बार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 2015 में निर्दलीय लड़े और हार गए थे। इस बार पार्टी के सिंबल पर लड़ रहे हैं। 2020 में इन्होंने अपनी उम्र 36 साल बताई है। वहीं, 2015 में 35 साल बताई थी। यानी, पांच साल में सिर्फ एक साल बढ़े हैं।
क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर दो फोटो वायरल हो रही हैं। दोनों ही फोटोज में बीच सड़क पर सेना का टैंक खड़ा दिख रहा है। दावा किया जा रहा है कि ये फोटो पाकिस्तान की हैं। और वहां सेना ने तख्तापलट की तैयारी कर ली है।
Some quick updates from Karachi:
-Clashes between Police-Pak Army resulting in 2 casualties
-Army takes over all Police stations of #Karachi
-Law & order issues as Police completely absent on roads
-Governor house surrounded by Army
-Tanks are rolling on streets of Karachi pic.twitter.com/tMenzK2Ehg
पिछले 72 घंटों में पाकिस्तान से लगातार पुलिस और फौज के बीच तनातनी की खबरें आ रही हैं। फौज पर पाकिस्तान पुलिस के आईजी को जबरन गिरफ्तार करने का भी आरोप है। इन सबको देखते हुए तख्तापलट की अटकलें भी चल रही हैं।
और सच क्या है ?
इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि पाकिस्तान में तख्तापलट हो गया है। और सेना ने सड़कों पर टैंक उतार दिए हैं। हमने रिवर्स सर्च के जरिए एक-एक करके दोनों फोटो की पड़ताल शुरू की।
पहली वायरल फोटो को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से Taiwan News वेबसाइट की एक खबर में हमें इससे मिलती-जुलती फोटो मिली। खबर के अनुसार, ये फोटो ताइवान में 25 मार्च, 2020 को हुए सैन्य अभ्यास की है।
Taiwan News की वेबसाइट की फोटो और वायरल फोटो का मिलान करने से साफ हो गया कि दोनों का बैकग्राउंड एक ही है।
गूगल मैप की इस सैटेलाइट इमेज में भी ताइवान की वह गली देखी जा सकती है। जहां वायरल फोटो में आर्मी का टैंक खड़ा दिख रहा है।
अब आते हैं वायरल हो रही दूसरी फोटो पर। इस फोटो को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से हमें CNN की वेबसाइट पर 13 दिसंबर, 2016 का एक आर्टिकल मिला। कैप्शन से पता चलता है कि फोटो सीरिया के अलेप्पो शहर की है।
साफ है कि पाकिस्तान की सड़कों पर सेना द्वारा टैंक उतारने का दावा फेक है। दावे के साथ शेयर की जा रही एक फोटो ताइवान और एक सीरिया की है।