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पंजाब के सीमावर्ती इलाके तरनतारन में गुरवार को सुबह-सुबह एक ही परिवार के 5 लोगों की हत्या से सनसनी फैल गई। आनन-फानन में पुलिस ने मौके पर पहुंचकर मामले की छानबीन शुरू कर दी है। अभी तक की जानकारी के मुताबिक हत्याओं की वजह के बारे में किसी को कुछ पता नहीं है। दूसरी ओर बताया जा रहा है कि यह परिवार पिछले करीब 20 साल से इलाके में नशा तस्करी के लिए बदनाम था। बहरहाल, सभी शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए भिजवाते हुए पुलिस मामले की पड़ताल के क्रम को आगे बढ़ाए हुए है। एसएसपी ध्रुव दहिया समेत तमाम बड़े अफसर मौके पर हैं।
मारे गए लोगों की पहचान जिले के गांव कैरों के रहने वाले 55 वर्षीय ब्रजलाल और उसके परिवारजनों के रूप में हुई है। पत्नी रानी नशा तस्करी के मामले में अमृतसर में महिजा जेल में बंद थी। बीमार हो जाने से दो महीने पहले ही उसकी अचानक जेल में ही मौत हो गई।
from Dainik Bhaskar /national/news/several-members-of-a-same-family-gone-killed-in-kairon-village-of-tarn-taran-district-127445481.html
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छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में अरपा नदी के पास लॉकडाउन के दौरान मछुआरों का जीवन जैसे रुकगया था।इस बार की बरसात में नदी में काफी पानी आ गया, जिससे मछुआरों की उम्मीदें बढ़ गई कि अब जीविका चलाने के लिए काफी मछलियां मिलेंगी। जिले में पिछले 4 साल में सबसे ज्यादा बारिश हुई है। अब तक 173 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है। आमतौर पर अरपा नदी में ऐसा नज़ारा नहीं दिखता, लेकिन अच्छी बारिश की वजह से चैक डेम का गेट खोला गया।यहां मछुआरे मछली पकड़ रहे हैं। ये धारा मछुआरों के जीवन की धारा बनकर आई है।
बारिश से पहले बनाया बांस का पुल
झारखंड : रांची जिले का खेदाडीह गांव हर साल बारिश मेंगांव टापू बन जाता है।गांव के पास से उरांगगाढ़ा नदी गुजरती है। किसानों को खेती करने के लिए नदी के पार जाना पड़ता है।बरसात में जिंदगी टापू जैसा न बन जाए, इसलिए गांववालों ने बांस का अस्थायी पुल बनाना शुरू किया है। पुल बन जाने से नदी का जलस्तर बढ़ने पर भी खेदाडीह समेत अन्य गांव के लोगों को परेशानी नहीं होगी।
मानसून के आगमन पर सुहाना हुआ शहर का मौसम
हरियाणा : मानसून के आगमन की यह फोटो पंचकूला शहर के मोरनी हिल्स के चंडीधार से ली गई है। यहां बुधवार को मौसम पहले से ठंडा रहा। कभी धूप निकली तो कभी हल्की बूंदाबांदी होती रही। पहले तो सुबह करीब 5 बजे कुछ जगहों पर बूंदाबांदी हुई और बाद में धूप निकल आई। इसके बाद दोपहर बाद भी शहर के कई हिस्सों में बारिश होना शुरू हो गई।
अम्बाला में मानसून के बादल
हरियाणा: अम्बाला में बुधवार सुबह 11 बजे काले बादल छा गए। शहर में लगभग 15 मिनट तक बरसात हुई। इससे मौसम ठंडा हो गया। वहीं कैंट में बादल तो छाए, लेकिन बिना बरसे चले गए। काले बादलों को देखते बच्चे।
चंडीगढ़ मेंमॉनसून की पहली बारिश
चंडीगढ़ : यहां मानसून की दस्तक की नॉर्मल तारीख 28 जून मानी जाती है। इस बार मानसून ने चार दिन पहले ही दस्तक दे दी है।बुधवार को सुबह से ही काले घने बादल छाए रहे। कुछ इलाकों में तेज बारिश भी हुई। मौसम विभाग के चंडीगढ़ केंद्र के निदेशक सुरेंद्र पाल ने पुष्टि की है कि दक्षिण पश्चिम मॉनसून चंडीगढ़ और उत्तर पंजाब पहुंच गया है। अगले 24 से 48 घंटे में हरियाणा और पंजाब के सभी हिस्सों में मानसून दस्तक दे देगा।
रन-वे परकीटनाशक का छिड़काव
मध्य प्रदेश: फोटो इंदौर एयरपोर्ट की है।बर्ड हिटिंग रोकने के लिए रन-वे के आसपास कीटनाशक का छिड़काव कराया जा रहा है। 7 जून को इंडिगो एयर लाइंस की बेंगलुरु से आई फ्लाइट के पायलट ने बर्ड हिटिंग की आशंका जताई थी। एयरपोर्ट पर पिछले साल इस तरह की 18 घटनाएं सामने आई थीं।
होम क्वारैंटाइन किए गए लोगों की हो रही चेकिंग
चंडीगढ़ : शहर में कोरोनावायरस के एक्टिव केसों की संख्या 92 है। हेल्थ डिपार्टमेंट की टीम ने बुधवार को सेक्टर-29 में पॉजिटिव पाए गए परिवार के घर के आसपास के एरिया को सील कर दिया गया है। बुधवार को स्वास्थ्य विभाग की टीम ने होम क्वारेंटाइन किए गए लोगों को घर पर जाकर चेक किया।
पानी के सूखे कुंड में गिरा 'सेही', रेस्क्यू कर बचाया
राजस्थान: बाड़मेर शहर के गढ़ मंदिर पहाड़ी पर स्थित सूखे पानी के कुंड में पानी की तलाश में भटकते हुए सेही अंदर गिर गया। वन्यजीव संरक्षक दीपक सेन ने सेही को रेस्क्यू कर सुरक्षित स्थान पर छोड़ा।इसकी लंबाई करीब 2.5 फीट होती है। यह जीव शांत होता है। इसके शरीर पर उगे कांटे ही इसके रक्षा कवच होते हैं।
बबूल को ही अपना आशियाना
राजस्थान : फोटो नागौर जिले की है। यहां नागौर-जोधपुर हाईवे पर बंजारा बस्ती के लोगों ने अंग्रेजी बबूल को ही अपना आशियाना बना लिया है। फोटो में दिखाई दे रहा ये मचान बबूल की कंटीली झाडियों से ही बना है। युवकों ने बबूल के एक पेड़ के सहारे मचान बनाकर उसमें चारपाई तक डाल दी है। साथ ही बबूल के पेड़ की झाड़ियों को छतरीनुमा बनाकर मचान को छायादार बना भी दिया। इस मचान में एक व्यक्ति आराम से सो भी सकता है।
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जम्मू-कश्मीर के बारामूला जिले में सुरक्षाबलों काआतंकियों से आज फिर एनकाउंटर हो रहा है। सोपोर के हर्दशिवा इलाके में आतंकियों के छिपे होने के इनपुट पर सिक्योरिटी फोर्सेज ने सर्च ऑपरेशन शुरू किया था। आतंकियों को सरेंडर करने का मौका दिया गया, लेकिन उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी।
इस महीने यह चौदहवां एनकाउंटर है। पिछले 13 एनकाउंटर में 41 आतंकी मारे जा चुके हैं। दो दिन पहले पुलवामा में हुए एनकाउंटर में दो आतंकी मारे गए थे।
जम्मू-कश्मीर में पिछले13एनकाउंटर
तारीख
जगह
आतंकी मारे गए
1 जून
नौशेरा
3
2 जून
त्राल (पुलवामा)
2
3 जून
कंगन (पुलवामा)
3
5 जून
कालाकोट (राजौरी)
1
7 जून
रेबन (शोपियां)
5
8 जून
पिंजोरा(शोपियां)
4
10 जून
सुगू(शोपियां)
5
13 जून
निपोरा(कुलगाम)
2
16 जून
तुर्कवंगम(शोपियां)
3
18-19 जून
अवंतीपोरा और शोपियां
8
21 जून
शोपियां
3
23 जून
बंदजू (पुलवामा)
2
कुल 41
4 महीने में 4 आतंकी संगठनों के सरगना ढेर
पिछले रविवार को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने हिजबुल मुजाहिदीन और इस्लामिक स्टेट के तीन आतंकियों को मार गिराया था। इनमें से एक हिजबुल का सरगना था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर के आईजी विजय कुमार ने बताया कि 4 महीने में लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन और अंसार गजवत-उल हिंद के सरगना मारे जा चुके हैं।
देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 4 लाख 72 हजार 870 हो गई। पिछले हफ्ते यानी 18 से 24 जून तक संक्रमितों की संख्या सबसे ज्यादा तेलंगाना में बढ़ी। यहां ग्रोथ रेट 12% रही। जबकि देश के सबसे ज्यादा टॉप टेन संक्रमित राज्यों में यह राज्य 10वें नंबर पर है। दूसरे नंबर पर दिल्ली और तीसरे नंबर पर दो राज्य तमिलनाडु और हरियाणा हैं। यहां रोजाना औसतन 5% की दर से मरीज बढ़े। महाराष्ट्र में मरीजों का ग्रोथ रेट औसतन 3% रहा।
बुधवार को एक दिन में सबसे ज्यादा 16 हजार 753 केस बढ़े। यह अब तक सबसे ज्यादा है। इससे पहले 20 जून को 15 हजार 918 संक्रमित मिले थे। पिछले 24 घंटे में महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 3890 संक्रमितों की पुष्टि हुई। दिल्ली में 3788 रिपोर्ट पॉजिटिव आईं, अब यहां 70 हजार 390 मरीज हो गए हैं, जो मुंबई से 2 हजार ज्यादा हैं। राहत की बात है कि देश में कोरोना का रिकवरी रेट 6% बढ़कर 56.38% हो गया।
5 दिन, जब देश में सबसे ज्यादा मामले बढ़े
तारीख
केस
24 जून
16753
23 जून
15600
21 जून
15150
20 जून
15918
19 जून
14740
5 राज्यों का हाल
मध्यप्रदेश: शिवराज सरकार एक जुलाई से राज्य में 'किल कोरोना अभियान' शुरू करेगी। इस अभियान के तहत हर घर का सर्वे किया जाएगा।इस बीच भोपाल में बुधवार को 187 केस सामने आए। वहीं, राजभवन में 8 और पॉजिटिव मिले। यहां पर लगातार 3दिन से संक्रमित मिल रहे हैं। राजभवन में अब तक 24 लोग संक्रमित हो चुके हैं। राज्य में संक्रमितों की संख्या अब12,448 हो गई है। महाराष्ट्र: यहां बुधवार को रिकॉर्ड3889 मरीज मिले। इनमें1118 मरीज मुंबई और1374 मरीज ठाणे से मिले। प्रदेश मेंसंक्रमितों की संख्या अब1 लाख 42 हजार 899 हो गई है। उधर,मुंबई के वाशी में एरिक और मर्लिन ने अपनी शादी के मौके पर एक क्वारैंटाइन सेंटर को 50 बेड दिए। महाराष्ट्र पुलिस में 48 घंटों में कोरोना से दो मौतें हुईं। वहीं, 185 केस सामने आए। बिहार: बिहार में पिछले 24घंटों में223 मामले आए। सिवान में सबसे ज्यादा 39, पटना 20, बेगुसराय में 16लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव आईं। राज्य में अब तक 8,273 लोग संक्रमित पाए गए हैं। इनमें 55 लोगों की मौत हो चुकी है। 6,106 मरीज ठीक भी हुए हैं। राजस्थान:राज्यमें बुधवार को 382 नए कोरोना पॉजिटिव केस सामने आए। जयपुर में सबसे ज्यादा100, भरतपुर में 56,धौलपुर में 75लोगपॉजिटिव पाए गए। इसके साथ कुल संक्रमितों का आंकड़ा 16,009 पहुंच गया। वहीं, 10 लोगों की मौत हो गई। कुल मौत का आंकड़ा 375 पहुंच गया है। उत्तरप्रदेश: राज्यमें बुधवार को664केस मिले। गाजियाबाद में सबसे ज्यादा113 लोग संक्रमित पाए गए। गौतमबुद्ध नगर में94,लखनऊ में 62, कानपुर में 27 मरीज मिले।इसके साथ राज्य में संक्रमितों की संख्या 19,557 हो गई है। राज्य में मंगलवार को 576 नए मरीज मिले थे।
जम्मू-कश्मीर के बारामूला जिले में सुरक्षाबलों काआतंकियों से आज फिर एनकाउंटर हो रहा है। सोपोर के हर्दशिवा इलाके में आतंकियों के छिपे होने के इनपुट पर सिक्योरिटी फोर्सेज ने सर्च ऑपरेशन शुरू किया था। आतंकियों को सरेंडर करने का मौका दिया गया, लेकिन उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी।
इस महीने यह चौदहवां एनकाउंटर है। पिछले 13 एनकाउंटर में 41 आतंकी मारे जा चुके हैं। दो दिन पहले पुलवामा में हुए एनकाउंटर में दो आतंकी मारे गए थे।
जम्मू-कश्मीर में पिछले13एनकाउंटर
तारीख
जगह
आतंकी मारे गए
1 जून
नौशेरा
3
2 जून
त्राल (पुलवामा)
2
3 जून
कंगन (पुलवामा)
3
5 जून
कालाकोट (राजौरी)
1
7 जून
रेबन (शोपियां)
5
8 जून
पिंजोरा(शोपियां)
4
10 जून
सुगू(शोपियां)
5
13 जून
निपोरा(कुलगाम)
2
16 जून
तुर्कवंगम(शोपियां)
3
18-19 जून
अवंतीपोरा और शोपियां
8
21 जून
शोपियां
3
23 जून
बंदजू (पुलवामा)
2
कुल 41
4 महीने में 4 आतंकी संगठनों के सरगना ढेर
पिछले रविवार को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने हिजबुल मुजाहिदीन और इस्लामिक स्टेट के तीन आतंकियों को मार गिराया था। इनमें से एक हिजबुल का सरगना था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर के आईजी विजय कुमार ने बताया कि 4 महीने में लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन और अंसार गजवत-उल हिंद के सरगना मारे जा चुके हैं।
from Dainik Bhaskar /national/news/jammu-and-kashmir-encounter-between-security-forces-and-militants-news-and-updates-127445348.html
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मुंबई में दो दिन पहले मंगलवार को कोरोना के 824 नए मामले आए। यह संख्या 40 दिन में सबसे कम है। यहां कोरोना फैलने का एक नया ट्रेंड सामने आया है। अब कोरोना का कहर झुग्गी बस्तियों में कम हो रहा है, लेकिनपॉश इलाकों और हाउसिंग सोसाइटियों में पैर पसार रहा है।
संक्रमण फैलने की सबसे ज्यादा स्पीड बोरीवली के पॉश इलाकों में देखने को मिली है। यहांं हर 16 दिन में मामले दोगुना होरहे हैं, जबकि कभी सबसे ज्यादा प्रभावित रहे धारावी में अब 76 दिनों में मामले दोगुनाहो रहे हैं। कोरोना टॉस्क फोर्स के प्रमुख डॉ. संजय ओक खुद कोरोना संक्रमित हो चुकेहैं। वे बताते हैं कि मुंबई में अब 13 दिन की जगह 37 दिन में मामले दोगुनाहो रहे हैं। हालांकि, पहले 7 दिनों में 5% की दर से पॉजिटिव केस बढ़ रहे थे। अब यह कम होकर 1.88% हो गया है। हालांकि, संजय मानते हैं कि अभी आईसीयू की मांग बढ़ रही है।
मुंबई मेंआईसीयू और वेंटिलेटर्स करीब-करीबफुल
मुंबई में 1219 आईसीयू हैं, जिसमें से सिर्फ 72 खाली हैं। वहीं वेंटिलेटर 701 है, जिसमें से सिर्फ 23 खाली हैं। मुंबई में अब तक 46 पुलिसकर्मी और नगर निगम के 70 कर्मचारियों की कोरोना से मौत हो चुकी है। बीएमसी ने कंटेंनमेंट जोन की संख्या बढ़ाकर 770 कर दी है। 5932 से अधिक रिहायशी इमारतें और चॉल सील की गई हैं।
कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए प्रशासन ने बोरीवली, कांदीवली, मलाड और दहीसर इलाकों में लॉकडाउन लगाने का प्रस्ताव दिया है। इन इलाकों की आबादी लगभग 23 लाख है। बोरीवली रेड जोन में है। इसके पास कादहिसर ऑरेंज जाेन में है। श्री विश्वकर्मा चेरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से इन इलाकों में राहत सामग्री बांट रहे समाज सेवक रामा विश्वकर्मा कहते हैं कि बोरीवली में 7 दिन में 454 और दहिसर में 289 कोरोना संक्रमित मरीज बढ़े हैं। बोरीवली में 16 और दहिसर में 21 दिन में मरीजों की संख्या दोगुनी हो रही है।
बाेरीवली के राकांपा नेता मनीष दुबे कहते हैं कि लोगों की लापरवाही की वजह से यह इलाका रेड जोन में आ गया है।लॉकडाउन खुलते ही लोग सोशल डिस्टेंसिंग भूल गए। वहीं भाजपा के पूर्व सांसद किरीट सोमैया आरोप लगाते हैं कि कोरोना पॉजिटिव के संपर्क में आने वाले लोगों की जांच नहीं की जा रही है। मरीजों को बेड के लिए इधर-उधरभटकना पड़ रहा है। रोजाना 5-10 लोगों की मौत घरों में हो रही है क्योंकि उन्हें इलाज के लिए अस्पताल ही नहीं मिल रहे हैं।
पूर्वी उपनगर में युवा ब्रिगेड एसोसिएशन के सलाहकार डॉ. बाबूलाल सिंह बताते हैं कि मुलुंड के इंद्रानगर और रामगढ़ जैसे स्लम इलाकों में 95% संक्रमित ठीक होकर घर आ गए हैं। मगर संक्रमण अब मुलुंड के पॉश इलाकों की बिल्डिंग में फैल रहा है। वजह शायद यह गलतफहमी है किकोरोना सिर्फ स्लम में रहने वालों को होगा। लोग चोरी-छिपे सोसायटी के ग्राउंड फ्लोर पर इकट्ठा होते रहे और मौका मिलने पर इधर-उधर घूमने निकलने लगे।
नतीजा यह हुआकि मुलुंड में जहां अप्रैल में सिर्फ 13 संक्रमित थे वहीं 13 जून कोसंख्या 1,454 तक जा पहुंची और अब 1870 केस हो गए हैं। यानी पिछले सात दिन में ही 416 नए संक्रमित मिले हैं। दूसरी तरफ मलाड में हालात कुछ सुधरे हैं। भाजपा नेता योगेश वर्मा बताते हैं कि मलाड कुछ दिन पहले तक रेड जोन में था। अभी-अभी ऑरेंज जोन में आया है। यहां की घनी आबादी वाले झुग्गी-झोपड़ी इलाकों में कुरार गांव, अप्पा पाड़ा, संतोषनगर, तानाजी नगर और सोमवारी बाजार में लॉकडाउन का सख्ती से पालन न होने की वजह सेमरीजों की संख्या बढ़कर 3720 हो गई है, जबकि अप्रैल में यहां सिर्फ 59 संक्रमित थे।
मुंबई में मिशन जीरो, घर-घर स्क्रीनिंग
मुंबई नगर पालिका के आयुक्त इकबाल सिंह चहल ने कर्मचारियों को ‘मिशन जीरो’ लक्ष्य दिया है। इसके तहत घर-घर स्क्रीनिंग की जाएगी। इस मिशन के तहत डॉक्टर, नर्स और दवाइयों के साथ 50 मोबाइल डिस्पेंसरी वैन मुलुंड, भांडुप, अंधेरी, मलाड, बोरीवली, दहिसर और कांदिवली में जाकर लोगों की जांच करेंगे। चहल ने भास्कर को बताया कि पिछले सप्ताह मुंबई जिले में कोरोनाकी ग्रोथ रेट 1.88% रही है। जबकि रिकवरी रेट 50% है। यही वजह है कि अब ‘मिशन जीरो’ के तहत मुंबई को कोरोना मुक्त करने की दिशा में कदम बढ़ाया जा रहा है।हालांकि वे बताते हैं कि मानसून की वजह से चुनौतियां बढ़ गई हैं।
लाइफलाइन के पहिए थमे, लेकिन 2786 बसें दौड़ रहीं
कोरोना ने मुंबई की लाइफलाइन कही जाने वाली लोकल ट्रेनों पर भी असर डाला है। मध्य रेलवे में कोरोना महामारी से पहले लोकल ट्रेनें तकरीबन 1774 फेरे लगाती थीं, जिनसे रोजाना 43 लाख यात्री सफर करते थे। लेकिन फिलहाल ये लोकल ट्रेनें सिर्फ 200 फेरे लगा रही हैं, जिनमें लगभग 70-80 हजार लोग सफर कर रहे हैं।
इसी तरह पश्चिम रेलवे की लोकल ट्रेनों के 1300 फेरे लगते थे, जिससे करीब 35 लाख लोग सफर करते थे। लेकिन इन दिनों 140 फेरे ही लगा रही हैं। इनमें 40-45 हजार लोग रोजाना सफर कर रहे हैं।
पहले जहां 1200 यात्री क्षमता वाले एक डिब्बे में 2000 लोग सफर करते थे, वहीं अब सोशलडिस्टेंसिंग का पालन करते हुए सिर्फ 700 को ही सफर की इजाजत दी जा रही है। हालांकि, लोकल बसों पर अब कम असर देखने मिल रहाहै। मुंबई मनपा के बेडे में यूं तो साढ़े तीन हजार से अधिक बसें हैं। इनमें से 2786 बसें चल रही हैं। इनमें रोजाना लगभग ढ़ाई लाख लोग सफर कर रहे हैं। 9 जून से अब तक बेस्ट की बसों से कुल 7.78 लाख लोगों ने सफर किया हैजबकि मेट्रो अभी शुरू नहीं की गई है।
दुकानें, मॉल और सिनेमा हॉलको रोजाना 500 करोड़ का नुकसान
फेडरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन के विरेन शाह के मुताबिक, लॉकडाउन से अब तक मुंबई की दुकानें, मॉल और सिनेमा हॉलके बंद होने से रोजाना 500 करोड़ रुपए से ज्यादाका नुकसान होने का अनुमान है। जहां तक दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों के खुलने का मामला हैतो शाह के मुताबिक, मुंबई की कुल साढ़े तीन लाख दुकानों में से महज 30% ही रोजाना खुल रही हैं। इन प्रतिष्ठानों में सोशल डिस्टेंसिंग का सख्त पालन हो रहा है।
मुंबई के झवेरी बाजार में कुल तीन हजार के करीब ज्वेलरी की दुकानें हैं, इनमें से इन दिनों एक हजार दुकानें ही खुल रही हैं। सरकारी ऑफिसों की बात करें, 25 से 50%कर्मचारी काम कर रहे हैं, जबकि प्राइवेट दफ्तरों में यह संख्या 10-15% है।
मायानगरी में बड़ी फिल्मों की शूटिंग नहीं
फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉइज (एफडब्ल्यूआईसीई) और सिने एंड टेलीविजन आर्टिस्ट्स एसोसिएशन (सिंटा)के मुताबिक मायानगरी में इन दिनों बड़ी फिल्मों की शूटिंग नहीं हो रही। लॉकडाउन के दौरान एसोसिएशन ने 50 लाख काबीमा कवर, 8 घंटे की शिफ्ट और कर्मचारियों का भुगतान शूटिंग खत्म होते ही उसी दिन करने जैसी मांगें रखी थीं, जो अब तक पूरी नहीं हुई है। इसलिए दोनों एसोसिएशन मांगें पूरी होने तक शूटिंग में हिस्सा नहीं लेंगे।
12 लाख प्रवासी घर गए, अब 15 हजार रोजाना लौट रहे हैं
महाराष्ट्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिककोरोना और लॉकडाउन की वजह से मुंबई से करीब 12 लाख से अधिक लोगों ने पलायन किया था। इन दिनों मुंबई में रोजाना करीब 11 से 15 हजार प्रवासी मजदूरों की वापसी हो रही है। इसमें राज्य के अलग-अलग जिलों के मजदूरों के अलावा यूपी-बिहार के लोग भी शामिल हैं।
केंद्र सरकार का अनुमान था कि मुंबई में मई के आखिरी सप्ताह में 75 हजार तक कोरोना के केस होंगे लेकिन मई में यह आंकड़ा 39 हजार 500 रहा और 22 जून को 67 हजार पार कर गया है। यानी मामले उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहे हैं। इसलिए अब मुंबई के अस्पतालों में पहले की तरह भीड़ नहीं दिख रही है।
मुंबई का मनपा अस्पताल जबरन कोरोना मरीजों को प्राइवेट अस्पताल भेज रहाहै। क्योंकि, प्राइवेट अस्पतालों में एक हजार नए बेड उपलब्ध होने की बात उन्हें दिखानी है। इन प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती होने वाले सामान्य मरीजों से मनमाना बिल वसूला जा रहा है। इसके पीछे वजह है यह है किप्राइवेट अस्पतालों में सिर्फ बेड चार्ज ही सरकार ने तय किया है। बड़े अस्पताल मनमाने ढंग से दूसरे चार्ज लगाकर औसतन एक मरीज का बिल 5 लाख रुपए तक रहे हैं। यहां 26 अस्पतालों के खिलाफ 134 शिकायतें आई हैं।
अब्दुल राशिद। उम्र 67 साल, कश्मीर की मशहूर डल झील पर शिकारा चलाते हैं। बचपन से वो यही काम करते आ रहे हैं, अब तो उन्हें याद भी नहीं कि शिकारा चलाते कितने साल हो गए। वे बताते हैंइतने मुश्किल हालात जिंदगी में पहले कभी नहीं देखे थे। वह हर सुबह इस उम्मीद के साथ शिकारा लेकर डल झीलनिकलते हैं कि शायद कोई रोजी मिलेगी, लेकिन देर शाम खाली हाथघर लौटना पड़ता है।
कोरोनावायरस के चलते लगे लॉकडाउन केतीन महीने हो गए।अभी भी कश्मीर की मशहूर झील पर सन्नाटा पसरा है। खाली शिकारे किनारों पर खड़े ऊबगए हैं। इन्हीं किनारों पर बैठकर कुछ लड़के घंटों मछली पकड़ते हैं और ये शिकारे वाले नाउम्मीदी से अपनी नाव पर बैठे उन्हें देखते रहते हैं। पहले ये जगह कश्मीर का सबसे गुलजार इलाका हुआ करती थी, जहां सैलानी रौनकें भरते थे।
लॉकडाउन ने यहां की टूरिज्म और इकोनॉमी को बर्बाद कर दिया
पिछले साल अगस्त में जब आर्टिकल370 हटायागयातो डल झील की हाउसबोट और शिकारे टूरिस्ट से आबाद थे। एडवाइजरी जारी होने के बादबाहरी लोगों को कश्मीर से लौटने के आदेश दिए गए तो टूरिस्ट इन हाउसबोट और शिकारों को छोड़कर जाने को राजीनहीं थे। लेकिनलॉकडाउन ने यहां के बाशिंदों और टूरिज्म पर निर्भरइकोनॉमी को बर्बाद कर दिया।
हाउसबोट और होटल दोनों खाली हैं,न टूरिस्ट हैं न बिजनेस।इसके बाद भी डल झील पर रहनेवाले ये लोग कोरोनावायरस से जुड़े खतरे को लेकरज्यादा सतर्क हैं। इससे जुड़े एहतियात उनके लिए सबसे अहम हैं।
कोरोना को लेकर श्रीनगर में मार्च में ही लॉकडाउन लगा दिया गया था, पूरे देश में लगे लॉकडाउन से एक हफ्ते पहले। राशिद अपनी उम्र को देखते हुएदो महीने घर से बाहर नहीं निकले। जो भी जमा पूंजी थी सब खत्म होती गई तो ईद के बाद वो दोबारा रोजी जुटाने शिकारा लेकर निकलने लगे,लेकिन इस दौरान भी उन्होंने कभी सुरक्षा से समझौता नहीं किया।
सरकारी गाइडलाइन और प्रोटोकॉल वेकभी नहीं भूले। जब भी घर से निकले तो मास्क पहनकर हीनिकले।शिकारे पर हैंड सैनिटाइजर भी साथ लेकर गए। राशिद और बाकी शिकारेवालों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का नियम कभी नहीं टूटा। अपने शिकारे में बैठे राशिद बीता वक्त याद करते हैं, जब डल आबाद था।
कहते हैं, ‘पहले मैं हर दिन हजार रुपए कमाता था, इन दिनों एक रुपए भी नहीं हाथ आते हैं, कोई नहीं जानता ये लॉकडाउन कब खत्म होगा और कश्मीर में कब सबकुछ नॉर्मलहोगा, लेकिन अभी जो सबसे अहम है वो है इस महामारी से निपटना।’
घनी आबादी के बाद भी कोरोना नहीं पसार पाया पांव
घनी आबादी होने के बाद भीडल झील इलाके में कोरोना के ज्यादा केस नहीं मिले हैं। शायद एक भी नहीं। सही नंबर पता करना इसलिए संभव नहीं क्योंकि ये बेतरतीब सा फैला इलाका कोरोना की किस गिनती के हिस्से आएगा अंदाजा लगाना मुश्किल है।
शिकारे वाले राशिद मायूस हैं लेकिन हिम्मत अब भी टूटी नहीं है।अपने शिकारे का चप्पू थोड़ा धीमा करकुछ देर सांस लेते हैं फिर कहते हैं, ‘मैं उम्र के 60 साल पार कर चुका हूं, मुझे इस बीमारी का ज्यादा खतरा है, इसलिए जब कोरोना फैला तो मैंने फैसला किया कि मैं घर में ही बैठूंगा, लेकिन फिर जिंदगी चलानी है तो बाहर आना ही होगा, 64 दिन बाद बोट लेकर घर से बाहर निकला।’
सबसे ज्यादा मौतें श्रीनगर में
22 जून तक जम्मू-कश्मीर में 6088 कोरोना केकेस थे। लगभग 85 लोगों की इस बीमारी से मौत हुई है। इन मौतों में से 75 कश्मीर और 10 जम्मू में हुई हैं। पूरे इलाके में सबसे ज्यादा मौतें श्रीनगर में हुई हैं।डल लेक पर बसी कॉलोनी वालों पर अतिक्रमण करने और झील की खूबसूरती खराब करने के कई इलजाम लगते हैं। डल झील के संरक्षण के जरूरी एहतियातों की गैरमौजूदगी और सीवेज से जुड़ी दिक्कतों का ठीकरा भी कई बार यहां के बाशिंदों के सिर आया है।
यहां लगभग 50 हजार परिवाररहते हैं। ये परिवार सरकार के रीलोकेशन प्लान का हमेशा विरोध करते आए हैं। यही वजह है कि ये कहीं और जाकर घर बनाने और रहने की बजाए वहीं डल झील पर बनी झुग्गी, अस्थाई घरों और छोटे-मोटे शेड्स में रहना पसंद करते हैं। आखिर सवाल उनके रोजगार का है।
डल झील बड़े-बड़े अस्पतालों से घिरा है। एक किनारे पर कश्मीर का सबसे पुरानाहॉस्पिटल है जोकश्मीर में कोरोना की टेस्टिंग और इलाज का सबसे प्रमुख अस्पताल है। वहीं दूसरी ओर एसकेआईएमएस है जो कोरोना इलाज का दूसरा बड़ा सेंटर है। जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल अस्पताल भी डल झील से जुड़े नगीन लेक से ज्यादा दूर नहीं है।
जो भी सरकारें आईं उन्होंने डल झील की सफाई के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए। एनवायरनमेंट एक्सपर्ट की मानें तो डल झील धीमी मौत मर रहा है। इसके पीछे यहां केपानी में सीवेज का मिलना और जल कुंभी का उगना है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने विदेशी कामगारों को जारी होने वाले नए एच-1बी और एल-1 वीजा पर 31 दिसंबर तक प्रतिबंध लगा दिया है। इसका सीधा-सीधा मतलब यही है कि 31 दिसंबर तक किसी भी विदेशी कामगार को अमेरिका में नौकरी के लिए नए एच-1बी वीजा जारी नहीं होगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 के लिए 2 लाख 75 हजार लोगों ने एच-1बी वीजा के लिए एप्लाय किया है, जिसमें से 67.7% भारतीय और 13.2% चीनी नागरिक हैं।
एच-1बी वीजा क्या है? ट्रम्प के इस फैसले के पीछे क्या मकसद है? इससे भारत पर क्या असर पड़ेगा? इस पूरे मसले को समझते हैं:
1. क्या होता है एच-1बी वीजा?
ये एक गैर-प्रवासी वीजा होता है, जो किसी विदेशी नागरिक या कामगार को अमेरिका में काम करने के लिए 6 साल के लिए जारी किया जाता है। जो कंपनियां अमेरिका में हैं, उन्हें ये वीजा ऐसे कुशल कर्मचारियों को रखने के लिए दिया जाता है, जिनकी अमेरिका में कमी हो। इस वीजा को पाने की कुछ शर्तें भी होती हैं। जैसे- कर्मचारी को ग्रेजुएशन होने के साथ-साथ किसी एक क्षेत्र में स्पेशियलिटी भी होनी चाहिए।
इसके अलावा इसे पाने वाले कर्मचारी की सालाना तनख्वाह 40 हजार डॉलर यानी 45 लाख रुपए से ज्यादा होनी चाहिए। ये वीजा अमेरिका में बसने की राह भी आसान करता है। एच-1बी वीजा धारक 5 साल बाद अमेरिका की स्थाई नागरिकता या ग्रीन कार्ड के लिए भी अप्लाय कर सकते हैं। टीसीएस, विप्रो, इन्फोसिस जैसी 50 से ज्यादा भारतीय आईटी कंपनियों के अलावा गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिकी कंपनियां इस वीजा का इस्तेमाल करती हैं।
2. क्या है ट्रम्प का फैसला?
अमेरिकी राष्ट्रपति के पास कुछ विशेष अधिकार होते हैं, जिसका इस्तेमाल करते हुए ही उन्होंने मंगलवार को अमेरिका में वैध रूप से काम करने वाले अप्रवासी कुशल कामगारों के नए दाखिलों पर इस साल के आखिर तक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। ये फैसला 24 जून से लागू हो गया है। फैसले के लागू होते ही 31 दिसंबर तक किसी भी विदेशी कामगार को एच-1बी वीजा या अमेरिका में काम करने के लिए मिलने वाले दूसरे वीजा जारी नहीं होंगे।
ट्रम्प के फैसले के ऑर्डर का जो टाइटल है, उसमें लिखा है 'कोरोनावायरस महामारी के बाद अमेरिका के लेबर मार्केट में एलियंस की एंट्री को रोकने की घोषणा'। इस फैसले के पीछे ट्रम्प का तर्क है किवीजा देने से अमेरिकी कामगारों के रोजगार पर खतरा पैदा होता है।ऐसा फैसला कर ट्रम्प ने उन तमाम वीजा की श्रेणियों को फिलहाल दिसंबर 2020 तक सस्पेंड कर दिया है, जिसमें फायदा मिलने वालों में सबसे बड़ा तबका भारतीयों का है। हो सकता है कि ये सस्पेंशन और आगे बढ़ जाए।
3. किन श्रेणी के वीजा पर रोक लगाई गई है?
ट्रम्प ने फिलहाल नए एच-1बी और एल-1 वीजा पर रोक लगाई है। एच-1बी वीजा उन कुशल विदेशी कामगारों के लिए है, जो अमेरिका में नौकरी के लिए जा रहे हैं। जबकि, एल-1 वीजा उन कुशल विदेशी कर्मचारियों और मैनेजर की रैंक के लोगों के लिए होता है, जिनका अमेरिका में किसी कंपनी के अंदर ट्रांसफर हो रहा है। इस कदम से कोई मल्टीनेशनल कंपनी विदेश में काम कर रहे किसी कर्मचारी को अमेरिका स्थित अपनी कंपनी में फिलहाल ट्रांसफर नहीं कर पाएगी।
इसके अलावा नॉन-एग्रीकल्चर इंडस्ट्रीज में कम समय के लिए लाए जाने वाले सीजनल वर्कर्स के लिए जारी होने वाले एच-2 वीजा पर भी रोक लगाई गई है। एच-4 वीजा पर भी रोक है, जिसके आधार पर एच-1बी वीजा धारक के पति-पत्नी अमरिका में रह पाते हैं। जे-1 वीजा भी सस्पेंड कर दिया गया है। ये वीजा सांस्कृतिक और शिक्षा के एक्सचेंज कार्यक्रम के तहत इमिग्रेशन के लिए जरूरी है।
ट्रम्प के फैसले का भारतीयों पर क्या असर होगा?
मौजूदा लॉटरी सिस्टम के जरिए सालाना 85 हजार नए एच-1बी वीजा जारी किए जाते हैं। विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने संसद में बताया था कि पिछले 5 साल में जारी किए एच-1बी वीजा में 70 फीसदी से ज्यादा भारतीयों को मिले हैं।
वीजा पर रोक का असर उन लाखों भारतीयों पर पड़ेगा, जो काम के लिए अमेरिका जाने वाले थे। ये फैसला भले ही अस्थाई हो, लेकिन भारतीयों के एक बड़े तबके लिए बुरी खबर है। जिन वीजा श्रेणियों में नए दाखिलों पर प्रतिबंध का ऐलान किया गया है, उनमें तय कोटे में आधे से ज्यादा वीजा भारतीयों को ही हासिल होते हैं।
2015 में भारतीय-अमेरिकी समुदाय के लोगों की तादाद ने 10 लाख का आंकड़ा पार कर लिया था। इन लोगों से भारत को भारी रेमिंटंस का फायदा मिलता है और अमेरिकी सियासी गलियारों से लेकर व्हाइट हाउस की टीम में भी आज कई भारतीय-अमेरिकी हैं।इसके साथ ही अमेरिका में रहने के लिए इस साल 8 लाख लोगों को ग्रीन कार्ड मिलने का इंतजार था, लेकिन अब उनके भविष्य पर भी तलवार लटक गई है।
5. जो भारतीय अमेरिका में काम कर रहे हैं, क्या उन्हें वापस लौटना होगा?
नहीं। ट्रम्प का फैसला 24 जून से लागू है। यानी, जो विदेशी कामगार या कर्मचारी पहले से ही अमेरिका में काम कर रहे हैं, उन पर कोई असर नहीं होगा। हालांकि, महामारी और आर्थिक मंदी के इस दौर में किसी की नौकरी चली गई है, तो उन्हें दिक्कत हो सकती है। एच-1बी वीजा में प्रावधान है कि अगर किसी नौकरी चली जाती है और 60 दिन के अंदर उसे दूसरी नौकरी नहीं मिलती, तो ऐसे में उसे घर लौटना होता है।
हालांकि, इस साल अमेरिकी शैक्षणिक संस्थानों से STEM इंडस्ट्रीज यानी साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स से ग्रैजुएट होने वाले छात्र ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग प्रोग्राम के तहत इन बिना किसी वीजा के 1 से 3 साल तक अमेरिका में नौकरी कर सकते हैं।
2020-21 के लिए एच-1बी वीजा आवेदकों का लॉटरी ड्रॉ पूरा कर लिया गया था और अक्टूबर से काम शुरू होने की उम्मीद थी। लेकिन इसे भी फिलहाल अगले साल की शुरुआत तक टाल दिया गया है।
6. ट्रम्प के इस फैसले के पीछे क्या मकसद है?
इस साल नवंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव हैं। अभी जो सर्वे आए हैं, उसें रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प, डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार और अपने प्रतिद्वंदी जो बाइडेन से पीछे चल रहे हैं। बाइडेन, बराक ओबामा के कार्यकाल में उप राष्ट्रपति भी रह चुके हैं।
ट्रम्प की गिरती लोकप्रियता के पीछे कोरोना महामारी से निपटन में नाकाम होना, डामाडोल आर्थिक स्थिती और ब्लैक लाइव्स मैटर जैसे राष्ट्रव्यापी विरोध आंदोलन अहम वजहें हैं।
महामारी की वजह से पैदा हुए आर्थिक मंदी के हालात में कुछ ही हफ्तों में अमेरिका में बेरोजगारी दर 0% से 10% तक पहुंच गई है। मागा यानी मेक अमेरिका ग्रेट अगेन और अमेरिका फर्स्ट जैसे नारों के साथ 2016 में चुनाव जीतकर आए ट्रम्प का सबसे बड़ा वादा था- अमेरिकियों के लिए नौकरियां लाना। इसमें फिलहाल उनकी हालत सवालों के घेरे में हैं।
अब तक अवैध इमिग्रेशन, असाइलम स्पीकर और मुस्लिम इमिग्रेंट्स को लेकर विवादित फैसले करने वाले ट्रम्प की नजरें अब स्किल्ड इमिग्रेशन पर है। तर्क है कि कम तनख्वाह में भारत जैसे देशों से लाए जा रहे विदेशी कामगार अमेरिकियों की नौकरियों पर कब्जा कर रहे हैं।
अमेरिकी सरकार के आंकड़े बताते हैं कि इस साल फरवरी से अप्रैल के बीच 2 करोड़ अमेरिकियों की नौकरी गई है। इनकी भरपाई एच-1बी और एल-1 वीजा के अप्रवासी कर्मचारियों से की जाने की कोशिशें हो रही हैं। ट्रम्प की टीम का दावा है कि वीजा सस्पेंशन से कम से कम 5.25 लाख अमेरिकियों को नौकरी मिलेगी।
एंटी ग्लोबलाइजेशन और नेशनलिज्म यानी राष्ट्रवाद के इस दौर में ट्रम्प खुद को अमेरिकी कामगारों के मसीहा के तौर पर भुनाने की कोशिशों में जुटे हैं और इमिग्रेशन पर हमले को अपना हथियार बनाया है।
7. इस पर भारत सरकार की क्या राय है?
फिलहाल भारत सरकार की इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। विदेश मंत्रालय इस पर चुप्पी साधे हुए है। हालांकि, पिछले कुछ वक्त से वैध इमिग्रेशन को लेकर ट्रम्प की तल्ख टिप्पणियों पर भारत सरकार चिंतित रही है। इस मसले को अलग-अलग कूटनीतिक और राजनीतिक स्तर पर भारत उठाता रहा है।
इस फैसले से तुरंत भारत की अर्थनीति पर तो कोई गहरा असर नहीं पड़ने वाला, लेकिन अगर ट्रम्प दोबारा राष्ट्रपति चुने जाते हैं और इमिग्रेशन पर उनका यही रवैया रहा तो निश्चित रूप से भारत-अमेरिका के रिश्तों पर असर पड़ेगा।
गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने भी इस फैसले पर आपत्ति जताई है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि, इमिग्रेशन की वजह से अमेरिका को बहुत फायदा हुआ है। इसकी वजह से ही वो वर्ल्ड लीडर बना है। पिचाई ने कहा है कि वो प्रवासियों के साथ खड़े हैं और उन्हें हर तरीके के मौके दिलाने का काम करते रहेंगेे।
वहीं यूएस-इंडिया स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप फोरम के प्रेसिडेंट और सीईओ मुकेश आघी ने भी इस फैसले को खुद अमेरिकी इंडस्ट्री के लिए बड़ा झटका करार दिया है और अपील की है कि लॉटरी सिस्टम में मौजूद खामियों को दूर की जाए बजाए प्रतिबंध लगाने के।
Immigration has contributed immensely to America’s economic success, making it a global leader in tech, and also Google the company it is today. Disappointed by today’s proclamation - we’ll continue to stand with immigrants and work to expand opportunity for all.
कोरोनावायरस के संपर्क में आने वाली महिलाओं को पुरुषों की तुलना में मौत का ज्यादा खतरा है। ऐसा दावा जर्नल ऑफ ग्लोबल हेल्थ साइंस की स्टडी में किया गया है। इस स्टडी में 20 मई तक का डेटा लिया गया है। इसके मुताबिक, 20 मई तक देश में पुरुषों में फैटेलिटी रेट 2.9% और महिलाओं में 3.3% थी। यानी, हर 100 महिला मरीजों में तीन से ज्यादा महिलाओं की मौत हो रही थी। जबकि, हर 100 पुरुष मरीजों में से ये आंकड़ा तीन से भी कम था।
स्टडी के मुताबिक, 20 मई तक 1 लाख 12 हजार से कोरोना संक्रमित थे। जबकि, हर तीन संक्रमितों में से एक महिला थी।
80 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को ज्यादा खतरा
कोरोनावायरस को लेकर शुरू से ही ऐसा कहा जा रहा है कि इससे बुजुर्गों को ज्यादा खतरा है। कई स्टडी में भी ये बात साबित हो चुकी है। 20 मई तक देश में फैटेलिटी रेट 3.1% थी। यानी, 100 मरीजों में से 3.1 मरीज कोरोना से दम तोड़ रहे थे।
वहीं, हर उम्र के हिसाब से फैटेलिटी रेट भी अलग-अलग है। 80 साल तक की उम्र के पुरुष मरीजों में फैटेलिटी रेट महिलाओं की तुलना में ज्यादा था। लेकिन, 80 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं में फैटेलिटी रेट पुरुषों से ज्यादा था।
80 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं में फैटेलिटी रेट 25.3% था। जबकि, पुरुषों में फैटेलिटी रेट 20.5% था। जबकि, इस उम्र से ज्यादा के दोनों मरीजों का फैटेलिटी रेट 22.2% था। यानी, 80 साल से ज्यादा उम्र के हर 100 कोरोना मरीजों में से 22 से ज्यादा की मौत हो रही थी।
हालांकि, इस स्टडी में कोरोना से पुरुषों की तुलना महिलाओं की ज्यादा मौत होने का कारण नहीं बताया गया है।
20 मई तक संक्रमितों में 65% से ज्यादा पुरुष थे
स्टडी के मुताबिक, 20 मई तक देश में 1 लाख 12 हजार 27 कोरोना संक्रमित थे। जबकि, 3 हजार 433 लोगों की मौत हो चुकी थी। संक्रमितों में से 65% से ज्यादा यानी 73 हजार 654 पुरुष मरीज थे। 38 हजार 373 महिलाएं थीं। मरने वालों में भी 63% से ज्यादा पुरुष ही थे।
लेकिन, महिला संक्रमित मरीजों में से 1 हजार 268 की मौत हो गई थी। जबकि, 2 हजार 165 पुरुष मरीजों की मौत हुई थी। इसलिए संक्रमितों में महिलाओं की संख्या भले ही पुरुषों के मुकाबले कम हो, लेकिन मौतों का प्रतिशत महिलाओं का ज्यादा था।
लेकिन, दुनिया के 47 देशों में कोरोना से पुरुषों की मौत ज्यादा
ग्लोबल हेल्थ 50/50 के पास 47 देशों का डेटा है। ये वो देश हैं, जो अपने यहां कोरोना संक्रमण से होने वाली मौतों का जेंडर वाइज डेटा जारी करते हैं। इसके मुताबिक, इन सभी 47 देशों में महिलाओं की तुलना मे पुरुषों की ज्यादा मौत हुई है।
इंग्लैंड में 3 जून तक 35 हजार 430 मौतें हुई हैं। इनमें 57% पुरुष हैं। इटली में भी 3 जून तक 32 हजार 354 मौतें हुई, जिसमें 59% पुरुष हैं। वहीं, चीन में 28 फरवरी तक हुई 2 हजार 114 मौतों में से 64% पुरुष हैं।
पुरुषों की मौत ज्यादा, उसके तीन कारण
1. बीमारी : कोरोना से होने वाली मौतों को लेकर कहा जा रहा है कि जिस व्यक्ति को पहले से कोई गंभीर बीमारी है, उसमें मौत का खतरा ज्यादा है। ग्लोबल हेल्थ 50/50 के मुताबिक, महिलाओं के मुकाबले पुरुष गंभीर बीमारियों से ज्यादा जूझते हैं। हर एक लाख आबादी में से 2,776 पुरुष और 1,534 महिलाओं को दिल की बीमारी है। इसी तरह हर लाख में से 1,924 पुरुष और 1,412 महिलाओं को स्ट्रोक का खतरा है। 2. स्मोकिंग रेट : महिलाओं की तुलना में पुरुष ज्यादा स्मोकिंग करते हैं। सिगरेट-बीड़ी के अलावा किसी न किसी तरह के तंबाकू का सेवन करने में भी पुरुष आगे हैं। पुरुषों में स्मोकिंग रेट 36% से ज्यादा है, जबकि महिलाओं में ये 7% है। 3. एल्कोहल : शराब पीने के मामले में भी पुरुष महिलाओं से आगे हैं। 2016 तक के आंकड़े बताते हैं कि 15 साल से ऊपर के पुरुष हर साल औसतन 10.5 लीटर शराब पी जाते हैं। जबकि, महिलाएं सालाना 2.3 लीटर शराब पीती हैं।
1 जुलाई को देवशयनी एकादशीसे चातुर्मास शुरू हो रहे हैं। चातुर्मास मतलब वो चार महीने जब शुभ काम वर्जित होते हैं, त्योहारों का सीजन होता है। देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी के बीच के समय को चातुर्मास कहते हैं। इस बार अधिक मास के कारण चातुर्मास चार की बजाय पांच महीने का होगा। श्राद्ध पक्ष के बाद आने वाले सारे त्योहार लगभग 20 से 25 दिन देरी से आएंगे।
इस बार आश्विन माह का अधिकमास है, मतलब दो आश्विन मास होंगे। इस महीने में श्राद्ध और नवरात्रि, दशहरा जैसे त्योहार होते हैं। आमतौर पर श्राद्ध खत्म होते ही अगले दिन से नवरात्रि आरंभ हो जाती है लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। 17 सितंबर 2020 को श्राद्ध खत्म होंगे और अगले दिन से अधिकमास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा।
17 अक्टूबर से नवरात्रि आरंभ होगी। इस तरह श्राद्ध और नवरात्रि के बीच इस साल एक महीने का समय रहेगा। दशहरा 26 अक्टूबर को और दीपावली 14 नवंबर को मनाई जाएगी। 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी रहेगी और इस दिन चातुर्मास खत्म हो जाएंगे।
160 साल बाद लीप ईयर और अधिक मास एक ही साल में
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, 19 साल पहले 2001 में आश्विन माह का अधिकमास आया था। अंग्रेजी कैलेंडर का लीप ईयर और आश्विन के अधिकमास का योग 160 साल बाद बन रहा है। इससे पहले 1860 में ऐसा अधिकमास आया था, जब उसी साल लीप ईयर भी था।
हर तीन साल में आता है अधिकमास
पं. शर्मा के अनुसार एक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, जबकि एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। ये अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है, जिसे अतिरिक्त होने की वजह से अधिकमास का नाम दिया गया है। अधिकमास के पीछे पूरा वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। अगर अधिकमास नहीं होता तो हमारे त्योहारों की व्यवस्था बिगड़ जाती है। अधिकमास की वजह से ही सभी त्योहारों अपने सही समय पर मनाए जाते हैं।
चातुर्मास में तप और ध्यान करने का विशेष महत्व
चार्तुमास में संत एक ही स्थान पर रुककर तप और ध्यान करते हैं। चातुर्मास में यात्रा करने से यह बचते हैं, क्योंकि ये वर्षा ऋतु का समय रहता है, इस दौरान नदी-नाले उफान पर होते है तथा कई छोटे-छोटे कीट उत्पन्न होते हैं। इस समय में विहार करने से इन छोटे-छोटे कीटों को नुकसान होने की संभावना रहती है। इसी वजह से जैन धर्म में चातुर्मास में संत एक जगह रुककर तप करते हैं। चातुर्मास में भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। देवउठनी एकादशी के बाद विष्णुजी फिर से सृष्टि का भार संभाल लेते हैं।
अधिकमास को मलमास क्यों कहते हैं?
अधिकमास में सभी पवित्र कर्म वर्जित माने गए हैं। इस पूरे माह में सूर्य संक्राति नहीं रहती है। इस वजह से ये माह मलिन हो जाता है। इसलिए इसे मलमास कहते हैं। मलमास में नामकरण, यज्ञोपवित, विवाह, गृहप्रवेश, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदी जैसे शुभ कर्म नहीं किए जाते हैं।
अधिकमास को पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं
मान्यता है कि मलिन मास होने की वजह से कोई भी देवता इस मास का स्वामी होना नहीं चाहता था, तब मलमास ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। मलमास की प्रार्थना सुनकर विष्णुजी ने इसे अपना श्रेष्ठ नाम पुरषोत्तम प्रदान किया। श्रीहरि ने मलमास को वरदान दिया कि जो इस माह में भागवत कथा श्रवण, मनन, भगवान शिव का पूजन, धार्मिक अनुष्ठान, दान करेगा उसे अक्षय पुण्य प्राप्त होगा।
गलवान घाटी में भारत और चीन के कोर कमांडरों की बैठक में यह तय होना स्वागत योग्य है कि दोनों देशों की फौजें अभी जहां हैं, वहां से पीछे हटेंगी। अभी यह पता नहीं चला है कि वे कितने पीछे, कहां-कहां से हटेंगी, यदि हटेंगी तो जो बंकर वगैरह बना लिये हैं, वे तोड़ेंगी या नहीं। हटने के बाद दोनों के बीच खाली जगह कितनी होगी? दोनों सेनाएं वास्तविक नियंत्रण रेखा से कितनी दूरी रखेंगी और जब वे मिलेंगी तो उनके पास हथियार होंगे या नहीं?
इससे पहले कि सीमा पर चली इस बातचीत के बारे में विस्तार से कुछ पता चले, हमारे कई टीवी चैनल कहने लगे हैं कि चीन ने वादाखिलाफी शुरु कर दी है। चीन धोखेबाज है। चीनी माल के बहिष्कार की आवाजें गूंजने लगी हैं। यह भी कहा जा रहा है कि रक्षामंत्री राजनाथ सिंह रूस इसीलिए गए हैं कि वे चीन की काट कर सकें।
कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा सरकार की लापरवाही के कारण हमारी जमीन को चीन हड़प रहा है और उसने हमारे सैनिकों की निर्मम हत्या की है। कांग्रेस का कहना है कि मोदी का यह दावा तथ्यों के विपरीत है कि हमारी सीमाओं में कोई नहीं घुसा है और कोई कब्जा नहीं हुआ है।
मोदी का यह कथन यदि सही है तो फिर वे यह बताएं कि हमारे 20 जवान क्यों मारे गए? क्या वे चीन की सीमा में घुस गए थे? भारत और चीन के बीच की लगभग 3500 किमी की वास्तविक नियंत्रण रेखा, वास्तविक नहीं है। हवाई है, अस्पष्ट है, अपरिभाषित है।
कांग्रेस के इस सवाल को इस तथ्य से भी बल मिलता है कि नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह या विदेशमंत्री जयशंकर ने आज तक चीन के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला है। उन्होंने इस सारे हत्याकांड के लिए चीन के नेताओं या सरकार को सीधे जिम्मेदार भी घोषित नहीं किया। सरकार के किसी मंत्री या अफसर ने चीनी माल के बहिष्कार का नारा नहीं लगाया। भाजपा या संघ के लोगों ने चीन के विरुद्ध कोई प्रदर्शन तक नहीं किया।
हमारे विदेश मंत्री और मंत्रालय के संयुक्त सचिव ने अपने चीनी समकक्षों से बात की। लेकिन उनके बीच तू-तू--मैं-मैं हुई हो, इसका जरा भी पता नहीं चला। चीन का सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’, जो भारत के लिए काफी फूहड़ भाषा का प्रयोग करता रहता है, उसने और चीन के कई विदेश नीति विशेषज्ञों ने मोदी के संयम और धैर्य की प्रशंसा की है। विदेश मंत्री जयशंकर ने कल भारत, रूस और चीन की त्रिपक्षीय बैठक में जो संक्षिप्त-सा भाषण दिया, उसमें भी चीन पर कोई छींटाकशी नहीं की।
इन सब तथ्यों का अर्थ क्या लगाया जाए? क्या यह कि भारत चीन से डर गया है? मेरी राय में यह सोचना बिल्कुल गलत होगा। यह 2020 है, 1962 नहीं है। यह ठीक है कि हमारे नेता इस घटना से घबरा गए हैं। इसीलिए उनके बयान परस्पर विरोधी आते रहे हैं। वे यह भी कह सकते थे कि जो मारकाट हुई है, वह विवादास्पद क्षेत्र में हुई है।
हमारे नेता स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकते थे कि भारत-चीन सीमांत पर कभी ऐसी घटना घट सकती है। पाकिस्तान के राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों और जनरलों से मेरी जब भी बात हुई है, उन्हें भारत-चीन सीमा के शांतिपूर्ण व्यवहार का उदाहरण मैं देता रहा हूं। इस घटना से चीन के नेता भी हक्के-बक्के रह गए हैं। उन्होंने भी कोई भारत-विरोधी बयान नहीं दिया है।
इसका अर्थ यह हुआ कि गलवान घाटी की घटना तात्कालिक और स्थानीय है। इसमें दोनों देशों के नेताओं या सरकारों का हाथ दिखाई नहीं पड़ रहा। ऐसा लगता है और यह बात मैं 16 जून से ही कह रहा हूं कि दोनों तरफ के सैनिकों के बीच कहासुनी हुई और वे तत्काल एक-दूसरे से भिड़ लिए।
यदि ऐसा नहीं होता तो देानों के बीच बंदूकें चल जातीं, तोप के गोले गिरते और मिसाइल फेंके जाते। यह सब नहीं हुआ। और हुआ क्या? 16 जून की सुबह 4 बजे मुठभेड़ खत्म हुई और सुबह साढ़े सात बजे दोनों सेनाओं के जनरल बैठकर झगड़ा सुलझाने लगे। हमारे जवानों की हत्या हुई तो भारत में तो हाहाकार मचना ही था।
मेरी राय थी कि मामला इतना तूल पकड़ता, उसके पहले ही हमारे प्रधानमंत्री को चीन के राष्ट्रपति से सीधे बात करनी थी। दोनों की दोस्ती है। पिछले 6 साल में दोनों जितनी बार मिले हैं, पिछले 70 साल में भारत के सारे प्रधानमंत्री मिलकर किसी चीनी नेता से नहीं मिले। दोनों स्थायी सीमा-रेखा खींचने की बात करते। मामला शांत हो जाता।
लेकिन मेरा यह विश्लेषण यदि गलत है और चीनी नेताओं ने जान-बूझकर यह सुनियोजित हत्याकांड किया है तो भारत सरकार के लिए यह 1962 से भी बड़ी चुनौती सिद्ध होगी। भारत को चीन के प्रति अपनी कूटनीति और समर नीति में आमूल-चूल परिवर्तन करना होगा।
इस घटना पर मोदी सरकार का वर्तमान संयम और धैर्य, जो कि सराहनीय है, वह उसके गले का हार बन जाएगा। देश के राष्ट्रवादी तत्व और विपक्षी दल इस मामले को जबर्दस्त तूल देंगे और कहेंगे कि नेहरु ने 1962 में इतनी हिम्मत तो की थी कि श्रीलंका जाते समय भारतीय सेनाओं से कहा था कि चीनियों को भारतीय सीमा से खदेड़कर बाहर कर दो लेकिन वर्तमान सरकार तो चीन के प्रति मौनालाप ही कर रही है।
दुनिया को समझने में किताबों की बड़ी भूमिका है। 2014 में अरुण फेरेरा की किताब में उन्होंने अपनी जिंदगी के उन पांच सालों के बारे में लिखा जो उन्हें ‘अंडर ट्रायल’ कैदी के रूप में बिताने पड़े। उन पर राजद्रोह का इल्ज़ाम था लेकिन 2014 में सभी मामलों में उन्हें बाइज़्ज़त बरी कर दिया गया।
2007 में जब वे गिरफ्तार हुए, तब उनका बेटा दो साल का था। हम ये मान लेतेे हैं कि जो जेल में हैं, वे सभी अपराधी हैं। कुछ साल पहले ज्ञात हुआ कि देश में लगभग दो-तिहाई कैदी वास्तव में अभी अपराधी करार नहीं दिए गए। वे ‘अंडर ट्रायल्स’ हैं। यानी उनका और उनके गुनाह का फैसला नहीं हुआ है।
वे अदालती निर्णय के इंतजार में जेल में समय बिता रहे हैं। 2015 के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 40% अंडर ट्रायल्स ने जेल में एक साल से कम समय बिताया था। लगभग 20% ऐसे थे जिन्होंने 1-2 साल कैद में बिताए। कई बार ऐसा भी हुआ कि कैदी को खुद पर लगे इल्जाम के लिए जो सज़ा हो सकती है, उससे भी ज़्यादा समय जेल में बिता दिया, बिना अदालती फैसला आए। इनमें कुछ अरुण फरेरा जैसे हैं, जिन्हें अदालत ने बाइज़्ज़त बरी कर दिया। न्यायिक प्रक्रिया ने ही अन्याय किया।
ज़्यादातर अंडर ट्रायल्स कम पढ़े-लिखे, कमजोर तबके के लोग हैं। समाज में उन्हें गुनहगार ही माना जाएगा और निजी जिंदगी में, रोज़गार में दिक्कतें आ सकती हैं। लेकिन अंडर ट्रायल्स के सामने और भी दुःख हैं। देश में कई राज्यों में जेलों में उनकी क्षमता से बहुत ज़्यादा कैदी हैं। इससे कैद की जिंदगी और कठिन हो जाती है और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। 2015 की सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 115 कैदियों की मौत ख़ुदकुशी से हुई।
आज अंडर ट्रायल्स की बात करना क्यों ज़रूरी है? हमें पता है कि कोरोना वायरस एक व्यक्ति से दूसरे में फैलता है और इससे बचने के लिए आपस में दूरी रखना ज़रूरी है। इस वजह से जेलों में कैद लोगों को भी बहुत खतरा है, खासकर जहां क्षमता से ज्यादा कैदी हैं।
जेलों में भीड़ की समस्या केवल भारत में ही नहीं, ईरान, अमेरिका, इंग्लैंड में भी है। इन देशों में धीरे-धीरे सहमति बनी है कि इस समय कैदियों को रिहा कर देना न सिर्फ मानवीयता के नज़रिये से सही है बल्कि इसमें ही समझदारी है।
ईरान में करीब 50 हज़ार कैदियों को मार्च में छोड़ा गया; अमेरिका में ट्रम्प पहले इसका विरोध कर रहे थे लेकिन वहां भी कई राज्यों ने कैदी रिहा किए। भारत में खबरें आ रही हैं कि जेलों में कैदी कोरोना पॉजिटिव पाए गए। इस हफ्ते दिल्ली की मंडोली जेल में कोरोना से पहले कैदी की मौत का तब पता चला जब मौत के बाद जांच हुई। उसके साथ रहने वाले 17 कैदी भी पॉजिटिव मिले। जब देश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है, तो जेलों में क्या हाल होगा।
मार्च में सर्वोच्च न्यायलय ने आदेश दिया कि हर राज्य में कमेटी गठित हो ताकि जेलों में भीड़ घटाने पर विचार होे। दिल्ली के तिहाड़ से मार्च में चार सौ कैदी रिहा किए गए थे और येरवडा, पुणे में हज़ार कैदियों को रिहा किया गया। इस सब पर सरकार की तरफ से और तीव्रता की जरूरत है।
दुःख की बात यह है कि रिहाई में तीव्रता दिखाने की बजाय, सरकारें गिरफ्तारी में लगी हैं। एक तरफ नागरिकता कानून पर सवाल उठानेवालों को अरेस्ट किया जा रहा है, दूसरी तरफ अहमदाबाद में 34 मज़दूरों को एक महीने बाद ज़मानत मिली। उन्हें तब गिरफ्तार किया गया जब वे लॉकडाउन में घर जाने के लिए सड़कों पर उतर आए थे।
तमिलनाडु के थूथुकुड़ी में एक बाप और बेटे को लॉकडाउन के उल्लंघन पर टोका गया तो उन्होंने दुकान तो बंद कर ली लेकिन अपशब्द इस्तेमाल करने पर गिरफ्तार किया गया और इतना टॉर्चर किया कि उनकी मौत हो गई। न्यायिक प्रक्रिया को हमेशा से सत्ता ने राजनैतिक मकसदों के लिए इस्तेमाल किया है। महामारी में सत्ता का ऐसा उपयोग अनैतिक, अमानवीय है।
कोरोनावायरस के चलते जब पूरी दुनिया डर के साये में जी रही है, उस वक्त में टेक्नोलॉजी हमारी सबसेबड़ीमददगार बन रही है। टेक्नोलॉजी की बदौलत हम ना सिर्फ कोरोना के खिलाफ तेजी से रिस्पांड कर पा रहे हैं, बल्कि सरकारें भी तकनीक की मदद से लोगों को भरोसा दे रही हैं।
टेक एक्सपर्ट बालेंदु दाधीच का मानना है कि टेक्नोलॉजी की सबसे बड़ी मदद तो यही है। एआई (AI), एनालिटिक्स, क्लाउड, मोबाइल, सोशल प्लेटफॉर्म्स कोरोना से इस लड़ाई में टेक्नोलॉजी के पांच सबसे मजबूत वॉरियर के रूप में दिखाई दे रहे हैं।
वहीं, टेक गुरु अभिषेक तैलंग एआई, रोबोटिक्स जैसी टेक्नोलॉजी के साथ टेक फ्यूजन के महत्व की भी बात करते हैं। चीन में मरीजों के देखभाल के लिए रोबोट को लगाया गया है जो अस्पतालों के आइसोलेशन वॉर्ड्स में दवाइयां और खाना देने का काम कर रहे हैं। मरीजों के मेडिकल वेस्ट और बेड शीट्स लेने का काम कर रहे हैं।
`लिटिल पीनट्स` नाम का एक रोबोट तो होटलों में क्वारैंटाइन किए गए लोगों तक खाना पहुंचाने का काम कर रहा है। अमेरिका में `विसी` नाम का रोबोट मेडिकल टीम और मरीज के बीच कॉर्डिनेशन का काम कर रहा है। इसी तरह कई चैटबोट्स यात्रियों को लेटेस्ट ट्रेवल प्रोसिजर की जानकारी दे रहे हैं।
कोरोना से लड़ने में टेक्नोलॉजी कैसे कर रही हमारी मदद?
आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस-
बालेंदु दाधीच और अभिषेक तैलंग दोनों का ही मानना है कि कोरोना से लड़ने में टेक्नोलॉजी का मुख्य योगदान प्रोसेस को रफ्तार देने में है। इससे स्पीड बढ़ी है रिस्पांस टाइम कम हो गया है। गूगल डीप माइंड ने `अल्फा फोल्ड` सिस्टम बनाया है,जो प्रोटीन के जेनेटिकसीक्वेंस का 3 डी स्ट्रक्चर प्रिडिक्ट करने में सक्षम है।
इस स्ट्रक्चर को समझने से रिसर्च करने वालों को वैक्सीन के लिए कंपोनेंट खोजने में मदद मिल रही है।इसी तरह रिलेवेंट रिसर्च पेपर को एक जगह लाने में एआई बहुत मददगार बन रही हैं। एलन इंस्टीट्यूट और गूगल डीप माइंड ने इस तरह का टूल भी बनाया है जो रिसर्चर को एक-दूसरे का रिजल्ट और डाटा आसानी से शेयर कर रहा है।
यहां क्लाउड कंप्यूटिंग की इंपॉर्टेंट भूमिका है, जो सभी नतीजों को बहुत कम समय में एक-दूसरे को मुहैया करा रहा है।
यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास और वहां के नेशनल हेल्थ इंस्टीट्यूट ने बायोलॉजी टेक्नीक की मदद से वायरस के स्पाइक प्रोटीन का 3 डी मैप बनाया है। जिससे वायरस के इंफेक्शन की प्रक्रिया को समझा जा सकता है। यह प्रोटीन ही आदमी के शरीर जाकर उसकी सेल को संक्रमित करने के लिए जिम्मेदार है।
इससे वैक्सीन के कंपोनेंट बनाने में मदद मिल रही है। टेक्नोलॉजी के भविष्य में जबरदस्त परिवर्तन लाने वाली एआई तकनीक में गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अलीबाबा, बायजूजैसी कंपनियां भारी इंवेस्ट कर रही हैं।
फ्यूजन टेक्नोलॉजी से ब्रीदिंग उपकरण-
अभिषेक तैलंग कहते हैं कि किस तरह से टेक्नोलॉजी फ्यूजन भी कोरोना से लड़ने में हेल्प कर रहा है। मर्सिडीज फॉर्मूला वन और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के इंजीनियरों ने मिलकर फॉर्मूला वन कारों में उपयोग की जाने वाली टेक्नोलॉजी की मदद से वेंटिलेटर जैसा सीपीएपी उपकरण बनाया है, जो सीधे मरीज के फेफडों में ऑक्सीजन की सप्लाई कर सकता है।
यह उपकरण पिछले उपकरणों से 70 फीसदी कम ऑक्सीजन का इस्तेमाल कर काफी मात्रा में ऑक्सीजन की बचत भी करता है। वेल्स के ग्लेनविली अस्पताल के डॉ. रे थॉमस ने नए तरह का एक वेंटिलेटर बनाया है जो ना सिर्फ मरीजों को ऑक्सीजन देने का काम करता है, बल्कि कमरे से संक्रमित पर्टिकल को हटाकर मरीज को फ्रेश हवा देने का काम भी करता है। इस तरह के इनोवेशन पूरी दुनिया में हो रहे हैं और इनका उपयोग शुरू हो चुका है।
कॉन्टैक्टलेस ऑपरेशंस-
सेल्फ ड्राइविंग कार, ड्रोन और रोबोट्स उन सभी जगहों पर मददगार हैं, जहां ह्यूमन कॉन्टैक्ट से बचना है। संक्रमित लोगों या मरीजों को यहां से वहां ले जाने में इस तरह कीकार बहुत मदद कर सकती है। अभिषेक तैलंग बताते हैं कि रोबोट्स मरीजों को खाना देने, उनकी स्वाबऔर अल्ट्रासाउंड टेस्टिंग, अस्पतालों की साफ-सफाई में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा रोबोट जटिल सर्जरी का काम भी कर रहे हैं।
हमारे देश की बात करें तो कई अस्पतालों में रोबोट असिस्टेड सर्जरी हो रही हैं। इसके अलावा ड्रोन की सहायता से फूड डिलीवरी और मेडिसिन को क्वारैन्टाइन किए गए लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। अपोलो कंपनी और चीन की बायजूने इस तरह के काम के लिए `नियोलिक्स` नाम का स्टार्टअप भी बनाया है, जो सेल्फड्राइविंग व्हीकल बनाने का काम करेगा।
चीन की सबसे बड़ी कूरियर कंपनी एसएफ ने तो वुहान के अस्पतालों में मेडिकल सप्लाई के लिए बड़ी संख्या में ड्रोन का ही इस्तेमाल किया था। इसी तरह अमेरिका की एमआईटी ने एक टेक्नोलॉजी बनाई है जो मरीजों की हेल्थ को वायरलेस सिग्नल की मदद से मॉनिटर कर सकती है। इन सिग्नल को दूर बैठे डॉक्टर को भेजने का काम कर सकती है।
फोन से होगी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग-
गूगल ने एपल के साथ मिलकर इस तरह की टेक्नोलॉजी बना ली है जो कोरोना मरीज के बारे में आपको जानकारी देगी। यह API एक जटिल BLB BEACON प्रोटोकॉल सिस्टम पर काम करती है जो डिफॉल्ट सर्विस के रूप में आपके फोन में रहेगी।
अभिषेक तैलंग का कहना है कि एक्सपोजर नोटिफिकेशन` नाम का यह बहुत उपयोगी API (एप्लीकेशन प्रोग्राम इंटरफेस) है, जल्द ही यह टेक्नोलॉजी आइओएस(iOS) और एंड्रोइड(Android) स्मार्ट फोन पर उपलब्ध होगी।
इसमें ब्लूटूथ की मदद से दो फोन कनैक्ट होते हैं। सहमति से डाटा शेयर होता है,जिससे इंफेक्टेड व्यक्ति के बारे में संपर्क में आए व्यक्ति को इंफॉर्मेशन मिल जाती है। हालांकि, अभी यह शुरुआती स्थिति में है, जिसका ट्रायल लगभग 22 देशों में चल रहा है। इनके नतीजे आते ही यह API देशों की पब्लिक हेल्थ एजेंसियां को सौंपी जाएगी, जिसकी मदद से वे संक्रमित व्यक्ति के कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग का काम आसानी से कर पाएंगी।
सोशल मीडिया से ताकत और जागरूकता-
माइक्रोसॉफ्ट ने एक इंटरएक्टिव मैप बनाया है जो आपको कोरोना के बारे में सही-सही जानकारी देगा। इसी तरह लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टिकटॉक ने डब्ल्यूएचओ के साथ कोरोना के बारे में सही तथ्य और जानकारी देने के लिए हाथ मिलाया है। डब्ल्यूएचओ की लाइव स्ट्रीमिंग के दौरान यूजर यहां उनसे सवाल भी पूछ सकता है।
बालेन्दु कहते हैं कि भले ही फेक न्यूज का सबसे बड़ा सोर्स सोशल मीडिया हो, लेकिन इसी ने लोगों को अवेयर करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है। उन्हें इम्पावर करने में, लोगों के बीच कम्युनिकेशन को बनाकर उन्हें जोड़े रखने में सोशल मीडिया का रोल अहम है। इसके बिना लॉकडाउन में आइसोलेशन की फीलिंग से निपटना मुश्किल हो जाता।
ट्रेकिंग के लिए फेशियल रिकॉग्निशन-
मरीजों के लिए फेशियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी बनाई गई है। जो मास्क के बावजूद भी मरीजों के चेहरों को पहचान सकती है। इसी तरह यह टेक्नोलॉजी सीसीटीवी कैमरे के साथ काम करके क्वारैंटाइन किए गए लोगों पर भी नजर रखकर संबंधित एजेंसियों को जानकारी दे सकती है, जो क्वारैंटाइन पीरियड का पालन सही तरीके से नहीं कर रहे हैं।
दूसरे लोगों को इन संक्रमितों के बारे में जानकारी देने का काम कर सकती है।अस्पतालों में सीमित रूप से तो इसका प्रयोग शुरू हो चुका है, एक्सपर्ट्स का मानना है कि जल्द ही यह टेक्नोलॉजी बड़े पैमाने में उपयोगी में आती दिखाई देने लगेगी।
टेली मेडिसन से रिमोट एरिया में मदद-
अमेरिका के शिकागो स्थित रश यूनिवर्सिटी के मेडिकल सेंटर ने एक वर्चुअल मेडिकल लाइन सेटअप की है जो कोरोना पेशेंट्स की जांच में मदद कर रही है। इस टेक्नोलॉजी की सहायता से वहां रिमोट एरिया में रहने वाले मरीजों की जांच में काफी मदद मिल रही है।
सरल और यूजफुल डिवाइस का इनोवेशन-
बालेंदु बताते हैं कि कोरोना जैसी बीमारी के खिलाफ सिंपल, लेकिन बहुत उपयोगी डिवाइस चाहिए हैं, जो लोगों को सुरक्षित रखे, इलाज में मदद करें। कई रिसर्च में यह साबित हुआ है कि कोरोनावायरस कई सर्फेसपर घंटों से लेकर कई दिनों तक जिंदा रह सकता है।
विशेषकर स्टील की सतह पर तो वायरस तीन दिन तक जीवित रहता है। दरवाजे के हैंडल सबसे कॉमन जगह हैं, जिसे दिन में कई बात टच किया जाता है। यहां संक्रमण का खतरा भी सबसे ज्यादा होता है। डोर ओपनर्स बहुत छोटा सा इनवेंशन है,जो संक्रमण रोकने में बहुत मददगार है। यह बहुत आसानी से दरवाजे को खोल सकता है। इसे आसानी से सैनिटाइज किया जा सकता है।
लंदन के डिजाइनर स्टीव ब्रुक्स ने इस तरह का एक डोर ओपनर बनाया है, जिसे `हाइजीन हुक` नाम दिया है। यह इतना छोटा है कि इसे जेब में रखा जा सकता है। इसकी सहायता से किसी भी दरवाजे को खोला जा सकता है। इसे आसानी से सैनिटाइज भी किया जा सकता है।
यूवी स्टेरेलाइजर वायरलेस चार्जर-
यह डिवाइस आपके मोबाइल, चार्जर, घड़ियों, ईयरफोन आदि की सर्फेससे खतरनाक जर्म्स को हटाने का काम करती हैं। यह डिवाइस मार्केट में आ चुकी है।
वेजीटेबल एंड फूड डिसइंफेक्टेंटः
इस टेक्नोलॉजी की मदद से आप सब्जियों और फलों में खतरनाक पेस्टीसाइड हटा सकते हैं। कुछ कंपनियों ने इस तरह के डिवाइस का प्रोड्क्शन शुरू किया है। यह ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं।