मंगलवार, 17 नवंबर 2020

28 राज्यों में रिकवरी रेट 95% से ज्यादा, अब तक 88.74 लाख संक्रमितों में से 82.88 लाख ठीक हुए

देश में कोरोना से ठीक होने वालों की रफ्तार लगातार बढ़ रही है। 28 राज्यों में रिकवरी रेट 95% से ज्यादा है। देश में कोरोना मरीजों का आंकड़ा 88 लाख 74 हजार 172 हो गया है। इनमें से 82 लाख 88 हजार 169 ठीक भी हो चुके हैं। पिछले 24 घंटे में 28 हजार 377 नए मरीज मिले। पिछले 4 महीने में ये आंकड़ा सबसे कम है। इसके पहले 14 जुलाई को सबसे कम 29 हजार 917 मरीज मिले थे।

एक्टिव केस में भी एक बार फिर से तेज गिरावट शुरू हो गई है। पिछले 2 दिनों में एक्टिव मरीजों की संख्या 25 हजार 944 घटी है। अब देश में 4 लाख 53 हजार 449 एक्टिव केस रह गए हैं। इस मामले में भारत एक पायदान नीचे खिसककर 5वें नंबर पर पहुंच गया है। अब सबसे ज्यादा एक्टिव केस के मामले में बेल्जियम चौथे नंबर पर है।

दुनिया में भारत का रिकवरी रेट 93% के पार
देश में औसत रिकवरी रेट 93.39% पहुंच चुका है। दुनिया के टॉप-5 संक्रमित देशों में भारत का रिकवरी रेट सबसे अच्छा है। अमेरिका में 60.84%, ब्राजील में 90.22%, फ्रांस में 7.07% और रूस में अब तक 74.60% लोग ही ठीक हो पाए हैं।

5 राज्यों का हाल
1. मध्यप्रदेश

राज्य में सोमवार को 597 नए मरीज मिले। 745 लोग रिकवर हुए और 2 मरीजों की मौत हो गई। अब तक 1 लाख 84 हजार 524 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 8 हजार 996 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 1 लाख 72 हजार 436 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण के चलते अब तक 3 हजार 92 मरीजों की मौत हो चुकी है।

2. राजस्थान
सोमवार को राज्य में 2 हजार 169 नए मरीज मिले। 1 हजार 810 लोग ठीक हुए और 12 की मौत हो गई। इसी के साथ संक्रमितों की संख्या अब 2 लाख 27 हजार 986 हो गई है। इनमें 18 हजार 684 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 2 लाख 7 हजार 224 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण के चलते अब तक 2 हजार 78 मरीजों की मौत हो चुकी है।

3. बिहार
पिछले 24 घंटे के अंदर राज्य में 517 नए केस मिले। 597 लोग ठीक हुए और 5 मरीजों की मौत हो गई। अब तक 2 लाख 27 हजार 433 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 5782 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 2 लाख 20 हजार 461 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण के चलते मरने वालों का आंकड़ा अब 1189 हो गया है।

4. महाराष्ट्र
सोमवार को राज्य में 2535 नए केस मिले। 3001 लोग रिकवर हुए और 60 की मौत हो गई। अब तक 17 लाख 49 हजार 777 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 84 हजार 386 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 16 लाख 18 हजार 380 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण के चलते अब तक 46 हजार 34 मरीजों की मौत हो चुकी है।

5. उत्तरप्रदेश
पिछले 24 घंटे के अंदर राज्य में 1546 लोग संक्रमित पाए गए। 1889 लोग रिकवर हुए और 21 मरीजों की मौत हो गई। अब तक राज्य में 5 लाख 12 हजार 850 लोग संक्रमित हो चुके हैं। इनमें 22 हजार 603 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 4 लाख 82 हजार 854 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण से मरने वालों की संख्या अब 7393 हो गई है।



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सोनिया गांधी की एडवाइजर कमेटी की आज बैठक, बिहार में हार की समीक्षा की जा सकती है

बिहार चुनाव और दूसरे राज्यों में उपचुनाव में हार को लेकर कांग्रेस में कलह जारी है। इस बीच कांग्रेस की स्पेशल कमेटी जो कि सोनिया गांधी की सलाहकार समिति है, उसकी आज बैठक होगी। न्यूज एजेंसी ANI के सूत्रों के मुताबिक मीटिंग शाम 5 बजे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए होगी, इसका एजेंडा साफ नहीं है। अटकलें लगाई जा रही हैं कि चुनाव में खराब प्रदर्शन को लेकर चर्चा हो सकती है।

यह मीटिंग ऐसे समय में हो रही है, जब चुनावों में हार के बाद पार्टी में रिव्यू का मुद्दा उठ रहा है। कांग्रेस के सीनियर नेता कपिल सिब्बल ने रविवार को एक इंटरव्यू में कहा था कि पार्टी ने शायद हार को ही नियति मान लिया है। टॉप लीडरशिप को शायद ऐसा लग रहा है कि सब कुछ ठीक चल रहा है।

अगस्त में कांग्रेस की बैठक में हुआ था हंगामा
इससे पहले भी सिब्बल समेत कांग्रेस के 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर पार्टी में बड़े बदलाव करने की जरूरत बताई थी। अगस्त में हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में इस मुद्दे पर हंगामा भी हुआ था। राहुल गांधी ने चिट्ठी लिखने वाले नेताओं का भाजपा का मददगार बता दिया था।

कांग्रेस में 2 गुट बने
लीडरशिप के मुद्दे को लेकर कांग्रेस के नेता 2 गुटों में बंटे नजर आ रहे हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अनिल चौधरी तक सिब्बल पर निशाना साध रहे हैं।

अहमद पटेल अस्पताल में भर्ती
संगठन के तौर तरीकों और पार्टी के काम-काज में सोनिया गांधी की मदद के लिए अगस्त में स्पेशल कमेटी बनाई गई थी। इसमें अहमद पटेल, केसी वेणुगोपाल, एके एंटनी, अंबिका सोनी, मुकुल वासनिक और रणदीप सुरजेवाला शामिल हैं। अहमद पटेल की तबीयत ठीक नहीं है, वे अस्पताल में भर्ती हैं, इसलिए यह तय नहीं कि आज की मीटिंग में शामिल होंगे या नहीं।



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कांग्रेस के 23 नेताओं में अगस्त में सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर पार्टी में बड़े बदलावों की जरूरत बताई थी।- फाइल फोटो।


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दिल्ली से जैश के दो आतंकी गिरफ्तार, महत्वपूर्ण ठिकाने और VIP थे निशाने पर

दिल्ली पुलिस की स्पेशन सेल ने मंगलवार तड़के दो आतंकियों को गिरफ्तार किया। दोनों के पास से कुछ अहम दस्तावेज और विस्फोटक बरामद किए गए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गिरफ्तार किए गए दोनों आतंकी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े हुए हैं। ये जम्मू-कश्मीर के बारामूला के रहने वाले हैं। पुलिस इनसे पूछताछ कर रही है।

कैसे हुई गिरफ्तारी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली पुलिस की इंटेलिजेंस विंग को सराय काले खां में कुछ संदिग्ध लोगों के मौजूद होने की खबर मिली थी। इसके बाद से इन पर नजर रखी जा रही थी। मंगलवार को पुख्ता सूचना के आधार पर स्पेशल सेल की टीम ने कार्रवाई करते हुए दो आतंकियों को गिरफ्तार किया। इनके पास से कुछ संवेदनशील दस्तावेज और विस्फोटक बरामद किए गए।

शुरुआती जानकारी के मुताबिक, दोनों आतंकी जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े हैं और दिल्ली में भी इनके कनेक्शन हैं। इनके निशाने पर राष्ट्रीय राजधानी के महत्वपूर्ण स्थल और VIP थे। दोनों से पूछताछ जारी है।

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दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने मंगलवार तड़के सराय काले खां इलाके से जैश के दो आतंकियों को गिरफ्तार किया। (प्रतीकात्मक चित्र)


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अमेरिका में सिर्फ 6 दिन में 10 लाख केस, पहले 10 लाख केस आने में 100 दिन लगे थे

दुनिया में कोरोना मरीजों का आंकड़ा शुक्रवार सुबह 5.53 करोड़ के पार हो गया। 3 करोड़ 84 लाख से ज्यादा लोग ठीक हो चुके हैं। अब तक 13 लाख 31 हजार से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं। अमेरिका में कोरोना से हर रोज एक लाख से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। इस बीच, प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडेन ने मॉडर्ना कंपनी की वैक्सीन के दावे पर तो खुशी जताई, लेकिन साथ ही कहा कि देश में कोरोना से और लोगों की मौत हो सकती है।

अमेरिका में सिर्फ 6 दिन में 10 लाख केस
अमेरिका में संक्रमितों का आंकड़ा रविवार को एक करोड़ 10 लाख से ज्यादा हो गया। आखिरी 10 लाख केस तो महज 6 दिन में सामने आए। जबकि, पहले 10 लाख केस 100 दिन में सामने आए थे। एक करोड़ से एक करोड़ 10 लाख मामले होने में एक हफ्ते से भी कम वक्त लगा। इतना ही नहीं, हॉस्पिटल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है।

राज्य सरकारें भी अब सख्ती कर रही हैं। नॉर्थ डकोटा में मास्क पहनना मेंडेटरी यानी जरूरी कर दिया गया है। मिशिगन में कॉलेज, हाईस्कूल और ऑफिसों को तीन हफ्ते के लिए बंद कर दिया गया है। वॉशिंगटन में दूसरों के घरों में जाने पर रोक लगा दी गई है। रेस्टोरेंट्स और बार भी बंद रहेंगे। व्हाइट हाउस के कोरोनावायरस एडवाइजर स्कॉट एटलस ने लोगों से गाइडलाइन्स का पालन करने को कहा है।

ट्रम्प नहीं कर रहे सहयोग
प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडेन ने कहा है कि अमेरिका में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा बढ़ सकता है। द गार्डियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बाइडेन और ट्रम्प के बीच चुनाव खत्म होने के बावजूद इस मुद्दे पर मतभेद जारी हैं। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बाइडेन ने कहा- वैक्सीन के बारे में हमें जो जानकारी मिली है, वो बहुत अच्छी खबर है। लेकिन, हम सावधानी से आगे बढ़ेंगे। हम ध्यान रखना होगा कि वायरस अब भी खतरनाक है और इससे कई लोगों की मौत हो सकती है। खासकर यह सर्दियां खतरनाक साबित हो सकती हैं। बाइडेन के कैम्प ने संकेत दिए कि ट्रम्प अब भी यही कह रहे हैं कि चुनाव में धांधली हुई। वे साफ तौर पर हारने के बाद भी इसे मानने को तैयार नहीं हैं।

जर्मनी में दिक्कत
जर्मनी में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। यहां चांसलर एंजेला मर्केल की सरकार सॉफ्ट लॉकडाउन पर विचार कर रही है। लेकिन, इसके लिए राज्य सरकारें तैयार नहीं हैं। जर्मनी में कुल 16 राज्य हैं और ये लॉकडाउन के मुद्दे पर केंद्र के फैसले का विरोध करने पर उतारू हैं। आज मर्केल और इन राज्यों के प्रमुखों की अहम मीटिंग होने जा रही है। चांसलर चाहती हैं कि लोग सिर्फ जरूरी सामान के लिए घर से निकलें। लेकिन, राज्यों का कहना है कि इससे अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी जो पहले ही गहरे दबाव में है।

बर्लिन में एक मेट्रो स्टेशन पर मास्क लगाए यात्री। जर्मन सरकार देश में सॉफ्ट लॉकडाउन लगाने पर विचार कर रही है, लेकिन राज्य सरकारें इसका विरोध कर रही हैं।

मॉडर्ना मांगेगी मंजूरी
अमेरिका की बॉयोटेक कंपनी मॉडर्ना ने सोमवार को कोविड-19 वैक्सीन का ऐलान किया। कंपनी का दावा है कि यह वैक्सीन कोरोना के मरीजों को बचाने में 94.5% तक असरदार है। यह दावा लास्ट स्टेज क्लिनिकल ट्रायल के नतीजों के आधार पर किया गया है। खास बात यह है कि यह वैक्सीन 2 से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान में 30 दिन तक सुरक्षित रह सकती है। कंपनी ने बताया कि फेज-3 के ट्रायल में अमेरिका में 30,000 से ज्यादा लोगों को शामिल किया गया। इनमें 65 से ज्यादा हाई रिस्क कंडीशन वाले और अलग-अलग समुदायों से थे। कंपनी के चीफ एग्जिक्यूटिव स्टीफन बैंसेल ने इस कामयाबी को वैक्सीन के डेवलपमेंट में एक अहम पल करार दिया। इस पर कंपनी जनवरी की शुरुआत से काम कर रही थी। कंपनी ने कहा है कि वो जल्द ही इस वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मांगेगी।

साउथ कोरिया में तीसरी लहर
दक्षिण कोरिया की हेल्थ मिनिस्ट्री ने माना है कि देश में संक्रमण की तीसरी लहर सामने आ चुकी है। लगातार आठवें दिन यहां 200 से ज्यादा मामले सामने आए। मिनिस्ट्री द्वारा जारी आंकड़ों में बताया गया है कि शनिवार को कुल 208 केस सामने आए। सरकार ने एक बार फिर संकेत दिए हैं कि वो तीसरी लहर को रोकने के लिए सख्त कदम उठाएगी। जनवरी से मार्च के बीच यहां पहली लहर थी। जून से अगस्त के बीच दूसरी और अब तीसरी लहर है। हालांकि, हेल्थ मिनिस्ट्री ने ये भी कहा है कि संक्रमण की मुख्य वजह विदेश से आने वाले लोग हैं। शनिवार को दर्ज किए गए 208 में से 176 मामले इम्पोर्टेड बताए गए हैं।

सियोल में एक बार फिर सरकार सख्त उपाय लागू कर रही है। यहां फिलहाल उन रेस्टोरेंट्स और बार पर कार्रवाई कर रही है, जो रात 9 बजे के बाद भी खुले रहते हैं। ऐसे कई रेस्टोरेंट्स और बार को बंद कर दिया गया है।


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सोमवार को डेलावेयर के विलिमिंग्टन में मीडिया से बातचीत करते यूएस प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडेन। बाइडेन ने चेतावनी दी कि अगर सख्त उपाय नहीं किए गए तो अमेरिका में मौतों की संख्या काफी ज्यादा हो सकती है।


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नीतीश की पहली कैबिनेट बैठक आज, पहाड़ों पर सजा बर्फ का ताज और गब्बर बने टीआई पर एक्शन

नमस्कार!
देश की सियासत के साथ मौसम में भी बदल रहा है। वेदर एजेंसी स्काइमेट ने सात राज्यों में आंधी-बारिश का अनुमान लगाया है। एमपी, राजस्थान और यूपी के करीब 70 शहर इसकी जद में आ सकते हैं। चलिए, शुरू करते हैं न्यूज ब्रीफ।

आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर

  • बिहार में नीतीश कैबिनेट की पहली बैठक होगी। सोमवार को ही सीएम नीतीश के साथ 14 मंत्रियों ने शपथ ली थी।
  • मालाबार नेवल एक्सरसाइज का दूसरा फेज शुरू होगा। हिंद महासागर में यह अभ्यास 20 नवंबर तक चलेगा।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स के वर्चुअल समिट में शामिल होंगे। इसमें वह काउंटर टेररिज्म, ट्रेड, हेल्थ, एनर्जी समेत अन्य मुद्दों पर बातचीत करेंगे।

देश-विदेश

बिहार में सातवीं बार नीतीशे सरकार
नीतीश कुमार सोमवार को 7वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बन गए। उनके साथ 14 नेताओं ने मंत्री पद की शपथ ली। इनमें जदयू से 5 और भाजपा के कोटे से दो डिप्टी सीएम समेत 7 मंत्री शामिल हैं। हम और VIP से एक-एक नेता को मंत्री बनाया गया। सवर्ण समुदाय से 5, पिछड़ा वर्ग से 7 और दलित समुदाय से 3 मंत्री बने।

तीन चौधरियों के भरोसे नीतीश कुमार
नीतीश के मंत्रिमंडल में दो चौधरी तो तय थे- विजय कुमार चौधरी और अशोक चौधरी। लेकिन, तीसरे मेवालाल चौधरी का नाम मंत्रिमंडल की पहली सूची में देकर नीतीश कुमार ने अपनी किरकिरी करा ली है। मेवालाल को 2010 में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते कुर्सी गंवानी पड़ी थी।

पहाड़ों पर पहली बर्फबारी
जम्मू-कश्मीर के ऊंचाई वाले इलाकों में सोमवार को मौसम की पहली बर्फबारी हुई। यहां जम्मू-श्रीनगर हाईवे को बंद करना पड़ा है। चार जिलों के लिए एवलॉन्च वॉर्निंग भी जारी की गई है। सिंथान दर्रे में बर्फबारी के चलते फंसे 10 नागरिकों को सेना और पुलिस ने रेस्क्यू किया। उत्तराखंड में केदारनाथ धाम और बद्रीनाथ धाम में भी अच्छी बर्फबारी हुई।

दो हादसों में 13 लोगों की मौत
हिमाचल प्रदेश और उत्तरप्रदेश में सोमवार सुबह हुए दो सड़क हादसों में 13 लोगों की मौत हो गई। पांच लोग जख्मी हुए हैं। हिमाचल प्रदेश के मंडी में पिकअप वैन पुल से नीचे गिरने से बिहार के रहने वाले सात मजदूरों की मौत हो गई। दूसरा हादसा यूपी के सिद्धार्थ नगर में हुआ। यहां बोलेरो पलटने से तीन बच्चों समेत 6 लोगों की जान चली गई।

अनाथालय से बच्चे की भावुक विदाई
गुजरात के कच्छ महिला कल्याण केंद्र में पल रहे साढ़े छह साल के मूक-बधिर बच्चे हर्ष को स्पेन की महिला ने गोद लिया। 13 नवंबर को स्पेन की नोर्मा मार्टिनीस जब हर्ष को लेने आईं, तो केंद्र के सभी लोग उसकी विदाई पर रो पड़े। नोर्मा भी इस पल देखकर अपने आंसू नहीं रोक पाईं।

इंस्पेक्टर को भारी पड़ा गब्बर बनना
एमपी में झाबुआ के एक थाना प्रभारी को फिल्म 'शोले' का 'गब्बर' बनना भारी पड़ गया। पब्लिक प्लेस पर लोगों को गब्बर बनकर समझाते हुए TI का वीडियो वायरल होते ही एसपी ने नोटिस पकड़ा दिया।

सेल्फ आइसोलेशन में ब्रिटिश पीएम
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने खुद को आइसोलेट कर लिया है। 56 साल के जॉनसन रविवार को एक पॉजिटिव व्यक्ति के संपर्क में आए थे। प्रधानमंत्री अपने आवास से काम जारी रखेंगे। इससे पहले जॉनसन कोरोना संक्रमित होने पर 3 दिन हॉस्पिटल में भर्ती रहे थे।

भास्कर एक्सप्लेनर
एशिया-पेसिफिक क्षेत्र के 15 देशों ने 37वें ASEAN (एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस) समिट में 15 नवंबर को दुनिया की सबसे बड़ी ट्रेड डील पर साइन किए। भारत इस डील से बाहर है। पीएम मोदी के मुताबिक, भारत ने यह फैसला भारतीयों के जीवन और आजीविका पर पड़ने वाले असर को ध्यान में रखते हुए लिया है।

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आज की पॉजिटिव खबर
'आपके पास बहुत सारे रिसोर्सेज हैं तो आप वैसा बनेंगे, जैसे रिसोर्सेज होंगे, लेकिन अगर आपके पास रिसोर्सेज नहीं हैं तो आप वैसा बनेंगे, जैसा आप बनना चाहते हैं।' यह एक्सपीरियंस यू-ट्यूबर अमरेश भारती का है। अमरेश के पिता ड्राइवर थे और वे बिहार से दिल्ली आने के बाद 3 साल तक बिना बिजली के रहे। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के दौरान एक स्टूडेंट ने यू-ट्यूब चैनल शुरू करने की सलाह दी। आज अमरेश यूट्यूब से हर महीने 1 लाख कमा रहे हैं।

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सुर्खियों में और क्या है...

  • कोरोना को लेकर अच्छी खबर है। फाइजर के बाद अमेरिकी कंपनी मॉडेर्ना ने दावा किया है कि उसकी वैक्सीन कोरोना रोकेगी। कंपनी ने कहा कि यह 94.5% तक असरदार है।
  • कोरोना के एक्टिव केस के मामले में भारत अब 5वें और रोजाना मौतों के मामले में दुनिया में चौथे नंबर पर पहुंच गया है। एक्टिव केस के मामले में अमेरिका पहले, फ्रांस दूसरे और इटली तीसरे नंबर पर है।
  • ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड में पहले टेस्ट पर खतरा मंडरा रहा है। ऑस्ट्रेलिया के कप्तान टिम पेन समेत कई खिलाड़ी कोरोना की आशंका के चलते आइसोलेशन में चले गए हैं।


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Nitish's first cabinet meeting today, snow crowned on mountains and Gabbar became action on TI


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कोई भी काम अधूरी जानकारी के साथ शुरू न करें, वरना बाद में पछताना पड़ सकता है

कहानी- महाभारत में जब द्रोणाचार्य अर्जुन और अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र चलाना सिखा रहे थे, तब अश्वथामा ने सिर्फ ब्रह्मास्त्र को चलाने के बारे में ही सीखा, उसे लौटाने की विधि नहीं समझी थी। उसने इस विद्या में लापरवाही कर दी। इसका असर महाभारत युद्ध में देखने को मिला।

जब कौरवों और पांडवों का युद्ध अंतिम दौर में चल रहा था, दुर्योधन ने मरने से पहले अश्वत्थामा को कौरव सेना का सेनापति बना दिया। अश्वथामा ने पांडवों के पांच पुत्रों, पांडव सेनापति धृष्टधुम्न और शिखंडी सहित कई योद्धाओं को अकेले ही मार दिया।

इसके बाद अर्जुन और अश्वथामा आमने-सामने आ गए। दोनों ही द्रोणाचार्य के शिष्य थे। युद्धकला में भी पारंगत थे। अश्वथामा ने अर्जुन को हराने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। इस कारण उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था। गुस्से में अश्वथामा ने ब्रह्मास्त्र चला दिया। इसका जवाब अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र से ही दिया।

एक साथ दो-दो ब्रह्मास्त्र चले, अगर ये दोनों टकरा जाते तो पूरी धरती ही खत्म हो जाती। धरती को बचाने के लिए वेदव्यास वहां पहुंचे। उन्होंने अर्जुन और अश्वत्थामा को समझाया, उनसे ब्रह्मास्त्र वापस लेने के लिए कहा।

अर्जुन ने व्यासजी की बात मानकर ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र वापस नहीं ले पा रहा था। जब व्यासजी ने इसका कारण पूछा तो उसने कहा कि मुझे इसे वापस लेने की विधि नहीं आती। ये सुनकर वेदव्यास गुस्सा हो गए और बोले कि जब तुम्हें पूरी विधि मालूम ही नहीं थी, तो ब्रह्मास्त्र चलाया ही क्यों?

अश्वत्थामा ने कहा मुझे इसे लौटाना नहीं आता, लेकिन मैं इसकी दिशा बदल दूंगा, इसे वहां भेज दूंगा, जहां से पांडवों का वंश आगे बढ़ना है। ऐसा कहकर अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र को अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर मोड़ दिया। उस समय उत्तरा गर्भवती थी और पांडवों के वंश की आखिरी संतान परीक्षित उसके गर्भ में थे। ब्रह्मास्त्र के वार से परीक्षित की गर्भ में ही मौत हो गई।

तब भगवान कृष्ण ने परीक्षित को जीवित किया। गर्भ में पल रहे शिशु की हत्या के कारण कृष्ण ने अश्वत्थामा को सजा दी। अश्वत्थामा के माथे पर जन्म के समय से ही एक मणि थी, जिसके कारण वो अमर था। भगवान कृष्ण ने वो मणि निकालकर उसे कलियुग के अंत तक भटकते रहने का श्राप दिया।

सीख - किसी भी चीज का अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है। जब तक किसी काम की पूरी जानकारी न हो, तब तक काम की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। कोई नया काम सीखें तो सतर्क रहें, लापरवाही न करें, सारी बातें अच्छी तरह समझें।



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22 सालों में बिहार में 8 बार साथ, 4 बार अलग लड़े, लेकिन चुनाव बाद हमेशा साथ ही रहे

बिहार में नई सरकार का गठन हो गया है। नीतीश कुमार लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री बने हैं। इधर, महागठबंधन में कांग्रेस और राजद के बीच मतभेद सामने आने लगे हैं। राजद नेता शिवानंद तिवारी ने कांग्रेस की टॉप लीडरशिप पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि गठबंधन के लिए कांग्रेस बाधा की तरह रही। चुनाव के वक्त राहुल गांधी पिकनिक मना रहे थे। कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन 70 रैलियां भी नहीं कीं। तिवारी ने कहा कि क्या कोई पार्टी ऐसे चलाई जाती है? पीएम नरेंद्र मोदी राहुल गांधी से ज्यादा उम्रदराज हैं, लेकिन उन्होंने राहुल से ज्यादा रैलियां कीं। राहुल ने केवल 3 रैलियां क्यों कीं?

दरअसल, इस बार के चुनाव में राजद तेजस्वी के ताजपोशी की तैयारी कर रही थी। भास्कर को छोड़ दें तो तमाम एग्जिट पोल भी उसी के फेवर में थे, लेकिन जब रिजल्ट डिक्लेयर हुआ तो महागठबंधन बहुमत से चंद कदम दूर रह गया। और अब इसका ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ा जा रहा है। आगे इसका असर गठबंधन पर होगा या नहीं ये तो वक्त बताएगा, लेकिन बिहार में कांग्रेस और राजद के बीच गठबंधन का ये खेल कोई नया नहीं है। जब से राजद की एंट्री हुई, तब से दोनों के बीच मिलने बिछुड़ने का दौर चलता रहा है।

दोनों के गठबंधन को समझने के लिए हमें 31 साल पहले जाना होगा। 1989 के अंत में भागलपुर में दंगा हुआ। सैकड़ों जानें गईं। तब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। लालू यादव ने मुस्लिम कार्ड खेला और दंगों के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया। इसके बाद 1990 में विधानसभा चुनाव हुआ। कांग्रेस यह चुनाव हार गई। जनता पार्टी, जो नई- नई बनी थी उसे बहुमत मिला और मुख्यमंत्री बने लालू यादव। सीएम बनते ही लालू ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कर दिया। इस तरह बिहार की राजनीति में एक नए समीकरण MY( मुस्लिम और यादव) की एंट्री हुई और यहीं से बिहार में कांग्रेस के पतन का दौर शुरू हुआ।

कांग्रेस इस कदर कमजोर हो गई कि अब उसे बिहार में राजनीति करने के लिए सहारे की जरूरत पड़ने लगी। 1995 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन और भी खराब हुआ। 324 सीटों में से उसे महज 29 सीटें मिलीं। जबकि, 167 सीटें जीतने वाली जनता पार्टी की तरफ से लालू फिर से सीएम बने। इसके बाद लालू यादव चारा घोटाले में फंस गए। जनता दल ने उनसे अलग हो गई और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल(RJD) का जन्म हुआ। इसके बाद 1998 में लोकसभा का चुनाव हुआ। कांग्रेस बिहार में कमजोर हो गई थी, उसने मजबूती के लिए लालू से हाथ मिला लिया। 1998 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस और RJD ने मिलकर लड़ा। यह दोनों का पहला गठबंधन था।

54 सीटों में लालू ने केवल 8 सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ी। कांग्रेस को चार पर जीत मिली।1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 13 सीटों पर चुनाव लड़ा जिनमें से 8 पर RJD से समझौते के तहत और 5 पर फ्रेंडली लड़ाई हुई, लेकिन जीत मिली सिर्फ 2 पर। कांग्रेस को लगा कि राजद के साथ उसका गठबंधन फायदे का सौदा नहीं है तो अगले साल यानी 2000 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने अकेले लड़ने का फैसला किया। कांग्रेस ने कहा कि लालू यादव भ्रष्ट हैं, उन पर घोटाले का आरोप है। वही लालू यादव जिनके साथ कांग्रेस ने चारा घोटाले का आरोप लगने के बावजूद 1998 और 1999 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में कांग्रेस को 23 सीटें मिलीं। उधर लालू की पार्टी भी बहुमत से दूर रह गई। जोड़- तोड़ की राजनीति शुरू हुई, नीतीश कुमार सात दिनों के लिए सीएम बने, लेकिन कांग्रेस ने राजद को समर्थन दे दिया और राबड़ी देवी बिहार की सीएम बनीं।

2004 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने राजद के साथ लड़ा। इस बार रामविलास पासवान के रूप में एक और नए साथी की गठबंधन में एंट्री हुई थी। इस चुनाव में कांग्रेस को 4 सीटें मिलीं। केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी और लालू-रामविलास मंत्री बने। इसके बाद फरवरी 2005 में विधानसभा का चुनाव हुआ। कांग्रेस फिर से राजद से अलग हो गई और लोजपा के साथ मैदान में उतरी। इस बार किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। सत्ता की चाबी राम विलास के पास रह गई, लेकिन ताला नहीं खुला और इस तरह राष्ट्रपति शासन लग गया।

अक्टूबर 2005 में बिहार में फिर से चुनाव हुआ। इस बार राजद और कांग्रेस में फिर से मिलन हो गया। इस चुनाव में 9 सीटें कांग्रेस मिलीं और गठबंधन बहुमत से दूर रह गया। राज्य में NDA की सरकार बनी और नीतीश कुमार नए सीएम। इसके बाद लोकसभा के तीन और विधानसभा के भी तीन चुनाव हुए। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राजद और लोजपा ने केवल 4 सीटें दीं। कांग्रेस ने उसे लेने से इनकार कर दिया और अपने दम पर चुनाव लड़ा। हालांकि, इसका फायदा उसे नहीं हुआ और सिर्फ दो सीटें ही जीत सकी।

अगले साल यानी 2010 में विधानसभा का चुनाव हुआ। कांग्रेस फिर से अकेले मैदान में उतरी। इस बार उसे सबसे कम यानी सिर्फ 4 सीटें ही हासिल हुईं। कांग्रेस अब लगने लगा कि राजद के बिना बिहार में उसकी दाल गलने नहीं वाली है। 2014 के लोकसभा में वह फिर से राजद के साथ आ गई। इस बार मोदी की लहर थी। लिहाजा, कांग्रेस और राजद दोनों का प्रदर्शन बहुत खराब रहा। कांग्रेस 12 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। उसे दो सीटों पर जीत हासिल हुई, जबकि 27 सीटों पर चुनाव लड़ने वाले राजद को चार सीटें मिलीं।

2015 में फिर से कांग्रेस और राजद साथ मिलकर लड़े। इस बार नीतीश कुमार के रूप में इन्हें नया साथी मिला। कांग्रेस के लिए इस चुनाव ने टॉनिक की तरह काम किया। जो पार्टी बिहार में खत्म सी हो रही थी, उसे थोड़ी जान मिल गई। इस चुनाव में कांग्रेस 41 सीटों पर लड़ी और उसे 27 पर जीत मिली। सीटों की संख्या और स्ट्राइक रेट के हिसाब से 1995 के बाद कांग्रेस का सबसे बेहतर प्रदर्शन था। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी राजद और कांग्रेस साथ लड़ी। जहां कांग्रेस को सिर्फ एक सीट तो राजद का खाता तक नहीं खुला।



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2020 के विधानसभा चुनाव में राजद को 75 सीटें मिली हैं, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 19 सीटें हासिल हुई हैं।


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ट्यूशन टीचर ने स्टूडेंट के कहने पर शुरू किया यू-ट्यूब चैनल, हर महीने 1 लाख कमाई

'आपके पास बहुत सारे रिसोर्सेज (संसाधन) हैं तो आप वैसा बनेंगे, जैसे रिसोर्सेज होंगे, लेकिन अगर आपके पास रिसोर्सेज नहीं हैं तो आप वैसा बनेंगे, जैसा आप बनना चाहते हैं।’ यह एक्सपीरियंस यू-ट्यूबर अमरेश भारती का है। वो बिहार के समस्तीपुर के एक छोटे से गांव बथुआ बुजुर्ग के रहने वाले हैं। 7वीं क्लास तक वहीं पढ़े। फिर मां-बाप के साथ दिल्ली आ गए। पिता दिल्ली में ड्राइवर की नौकरी करते थे। महीने की कमाई तीन हजार रुपए थी।

तीन साल बिना बिजली के रहे
उमेश जब गांव में रहते थे तो वहां बिजली थी, लेकिन दिल्ली में जहां रहते थे, वहां बिजली नहीं थी। तीन साल तक परिवार बिना बिजली के ही रहा। कहते हैं, जहां हम रहते थे, वहां चौकीदार, ड्राइवर, माली ऐसे लोग ही रहते थे तो कभी यह लगा ही नहीं कि हम गरीब हैं, क्योंकि वहां रहने वाले सभी लोग एक जैसे ही थे। दिल्ली में सरकारी स्कूल में पढ़ रहे थे। जब 11वीं क्लास में आए तो परिवार में ट्रेजडी हो गई। मां चल बसीं। दोनों बहनों की पहले ही शादी हो गई थी। रिश्तेदार अमरेश के पिता को कहने लगे कि आप शादी कर लीजिए, परिवार संभल जाएगा। उन्होंने इनकार कर दिया, तो 17 साल की उम्र में ही अमरेश की शादी करवा दी गई। दोस्तों को पता चला तो उन्होंने अमरेश का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। उसके साथ खेलना-कूदना बंद कर दिया।

वे कहते हैं, 'उसी दिन सोच लिया था कि अब जिंदगी में ऐसा कुछ करना है, जिससे नाम बना सकूं। जो हंस रहे हैं, उनके और खुद के बीच में इतना बड़ा डिस्टेंस बना लूंगा कि वे भी एक दिन कहेंगे कि भाई तूने जिंदगी में कुछ किया है।'

अमरेश कहते हैं, दोस्त जब मुझ पर हंसे थे, मैंने तभी तय कर लिया था कि एक दिन ऐसा बनकर दिखाऊंगा कि ये भी कहेंगे, भाई तूने अलग मुकाम पाया है।

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अकाउंट अच्छा था तो कोचिंग पढ़ाने लगे
अमरेश 12वीं की पढ़ाई पूरी करके सोच रहे थे कि पैसे कैसे कमाऊं, क्या करूं। दिमाग में आइडिया आया कि कोचिंग पढ़ाना शुरू कर देता हूं। उन्होंने होम ट्यूटर के तौर पर अकाउंट पढ़ाना शुरू कर दिया। वे कहते हैं कि एक साल में ही मेरे पास 30 से 35 स्टूडेंट्स हो गए थे और महीने की कमाई एक से सवा लाख रुपए थी। मेरे पढ़ाने का तरीका स्टूडेंट्स को बहुत पसंद आया इसलिए मेरी डिमांड बढ़ गई थी, जिसके बाद मैंने फीस भी बढ़ा दी।

इन सबके बीच सीए की पढ़ाई शुरू कर दी। सेकंड ईयर में ही लगा कि सीए करके भी कोचिंग ही पढ़ाना है तो फिर सीए करने से क्या मतलब। इसके बाद सीए की पढ़ाई बीच में ही ड्रॉप कर दी और पूरी तरह से कोचिंग पर फोकस किया। कहते हैं, कोचिंग की दम पर एक साल में ही मैंने पैसा जमा कर लिया, गाड़ी खरीद ली। 2016 तक यही चलता रहा। तभी मेरे एक स्टूडेंट ने सलाह दी कि सर आप यू-ट्यूबर क्यों नहीं बनते। यू-ट्यूब पर लोग वीडियो से खूब कमाई कर रहे हैं।

छह महीने तक यू-ट्यूब पर वीडियो वायरल नहीं हुए
अमरेश कहते हैं, 'मैंने देखा कि यू-ट्यूब पर सालों पुराने वीडियो हम देख रहे हैं। मैंने भी डिसाइड कर लिया कि यू-ट्यूब पर वीडियो बनाना शुरू करूंगा। कोचिंग से पैसे जोड़ लिए थे, इसलिए उस समय कोई दिक्कत नहीं थी। मैंने अच्छा कैमरा खरीदा और वीडियो बनाना शुरू किए। शुरूआत के छह महीने कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला। मैं मोटिवेशनल और पढ़ाई से रिलेटेड वीडियो पोस्ट कर रहा था। छह महीने बाद अचानक मेरे वीडियो वायरल होने शुरू हुए। मैं महीने में दस से बारह वीडियो ही पोस्ट करता हूं। धीरे-धीरे वीडियो वायरल होने लगे, तो अर्निंग भी होने लगी।'

यू-ट्यूब पर चैनल शुरू किया था तब शुरुआती छह महीने में व्यूज नहीं आए, लेकिन अमरेश ने वीडियो अपलोड करने बंद नहीं किए, बल्कि कमियों को दूर करते गए।

वो बताते हैं कि मैं समझ गया था कि फ्यूचर यही है। मैंने ऑफलाइन पढ़ाने का काम पूरी तरह बंद कर दिया और ऑनलाइन कोचिंग शुरू कर दी। कुछ दिनों में ही यू-ट्यूब पर फेमस हो गया। अब बाकायदा स्टाफ रखा है, जो सिलेबस के हिसाब से वीडियो यूट्यूब पर पोस्ट करते हैं। हमारे तीन यू-ट्यूब चैनल हैं, जिनमें 6 मिलियन से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं और सालाना कमाई करोड़ों में है। आज मैं 40 से 45 लोगों को जॉब दे रहा हूं। हम डिजिटल मार्केटिंग और यूट्यूब मार्केटिंग पर काम कर रहे हैं। कई राज्यों में बच्चों को फ्री में यूट्यूब की ट्रेनिंग दे चुके हैं। अब देश के कई राज्यों में वॉलेंटियर भी बना लिए हैं, जो ग्रामीण बच्चों को यूट्यूब के बारे में नॉलेज देते हैं।

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समस्तीपुर में आने वाले छोटे से गांव से निकले अमरेश आज दिल्ली में 45 लोगों को नौकरी दे रहे हैं।


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आत्मनिर्भर भारत के मंत्र ने रोकी दुनिया की सबसे बड़ी ट्रेड डील में भारत की एंट्री! जानिए सबकुछ

एशिया-पेसिफिक के 15 देशों ने 37वें ASEAN (एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस) समिट में 15 नवंबर को दुनिया की सबसे बड़ी ट्रेड डील पर साइन किए हैं। इस डील में शामिल देशों का ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (GDP) 26 लाख करोड़ डॉलर यानी दुनियाभर की कुल GDP के 30% से ज्यादा है। भारत ने इस डील से बाहर रहने का फैसला किया है।

वियतनाम ने 10 दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों की इस एसोसिएशन की सालाना समिट वर्चुअली की थी। इसी समिट में डील पर साइन किए गए। भारत के इस डील से बाहर रहने के फैसले के बाद बचे हुए 15 देशों ने रविवार को इसे अंतिम रूप दिया। डील में शामिल ज्यादातर देश चीन पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं। इस डील को इस क्षेत्र में प्रभाव को बढ़ाने की चीन की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

RCEP क्या है?

  • रीजनल कॉम्प्रेहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) एक ऐसी ट्रेड डील है, जिसमें शामिल देश एक-दूसरे को मार्केट उपलब्ध कराएंगे। अपने-अपने देशों में इम्पोर्ट ड्यूटी को घटाकर 2014 के स्तर पर लाएंगे। सर्विस सेक्टर को खोलने के साथ ही सप्लाई और इन्वेस्टमेंट की प्रक्रिया और नियम सरल बनाएंगे।
  • इस डील पर बातचीत नवंबर 2012 में शुरू हुई थी। इस ट्रेड ग्रुप में 2.1 अरब लोग यानी दुनिया की करीब 30% आबादी शामिल है। डील में इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी को लेकर भी कुछ नियम हैं, लेकिन एनवायरमेंट प्रोटेक्शन और लेबर राइट्स का कोई जिक्र नहीं है।

RCEP में कौन-कौन से देश शामिल हैं?

  • इस डील में 10 आसियान सदस्य देश- ब्रुनेई दारुस्सलाम, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं। साथ ही आसियान देशों के पांच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पार्टनर -ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, कोरिया और न्यूजीलैंड भी शामिल हैं। भारत का आसियान देशों के साथ FTA है और इस डील पर हुई शुरुआती बातचीत में वह शामिल रहा है। हालांकि, नवंबर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस डील में शामिल होने से इनकार किया।

RCEP के इतने फायदे हैं, तो भारत बाहर क्यों रह गया?

  • भारत ने RCEP से बाहर रहने का फैसला किया है तो इसकी वजह है- आत्मनिर्भर भारत अभियान। अगर भारत इस डील में शामिल रहता, तो उसके लिए अपने मार्केट में चीन के सस्ते सामान को आने से रोकना मुश्किल होता। इससे घरेलू उद्योगों को नुकसान होता। चीन से भारत का व्यापार घाटा 50 अरब डॉलर का है, जो और बढ़ जाता।
  • भारतीय दवा कंपनियां RCEP में शामिल होने के पक्ष में थीं, क्योंकि इससे उनके लिए चीन को जेनेरिक दवाइयां सप्लाई करना आसान हो जाता। हालांकि, डेयरी, एग्रीकल्चर, स्टील, प्लास्टिक, तांबा, एल्युमिनियम, मशीनों के कलपुर्जे, कागज, ऑटोमोबाइल्स, केमिकल्स और दूसरे सेक्टरों में नुकसान उठाना पड़ता।
  • इस डील की वजह से इम्पोर्टेड सामान पर इम्पोर्ट ड्यूटी 80% से 90% तक घटानी पड़ती। इसके अलावा सर्विस और इन्वेस्टमेंट नियमों को भी आसान बनाना होता। कुछ भारतीय उद्योगों को डर था कि अगर कस्टम ड्यूटी घटाई जाती, तो देश में इम्पोर्टेड सामान की बाढ़ आ जाती, खासकर चीन से।
  • भारत ने इस डील पर हुई बातचीत के दौरान मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) ऑब्लिगेशन के प्रावधान उपलब्ध न होने का मुद्दा उठाया था। इस डील के तहत RCEP देशों को भी भारत को वह दर्जा देना होता, जो उसने MFN देशों को दे रखा है। टैरिफ घटाने के लिए 2014 को बेस ईयर मानने पर भी भारत का विरोध था।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक, भारत ने इस ट्रेड डील से बाहर रहने का फैसला सभी भारतीयों के जीवन और आजीविका पर पड़ने वाले असर को ध्यान में रखते हुए लिया है। खासकर समाज के वंचित तबके को ध्यान में रखते हुए। अधिकारियों के मुताबिक, भविष्य में डील में भारत के शामिल होने के रास्ते अब भी खुले हैं।

RCEP में शामिल न होकर भारत ने क्या गंवाया?

  • दवा कंपनियों के साथ-साथ कुछ सेक्टरों में भारत को RCEP डील में शामिल देशों में कारोबार करना आसान हो जाता। अब यह इतना आसान नहीं रहने वाला। अगर भारत इस डील में शामिल होता तो वह ब्लॉक में तीसरी बड़ी इकोनॉमी होता।
  • डील से बाहर रहने का मतलब है कि भारत को डील में शामिल देशों से नए इन्वेस्टमेंट में दिक्कत आ सकती है। इसी तरह भारतीयों को इन देशों से इम्पोर्टेड सामान पर ज्यादा कीमत चुकानी होगी। खासकर ऐसे माहौल में जब ग्लोबल ट्रेड, इन्वेस्टमेंट और सप्लाई चेन विकसित करने की कोशिशों को कोरोना ने नुकसान पहुंचाया है।

अब भारत के लिए किस तरह के अवसर बने हैं?

  • डील से बाहर रहने की वजह से भारत अब अपनी स्थानीय इंडस्ट्री को बढ़ावा दे सकेगा और आत्मनिर्भर भारत अभियान को साकार कर सकेगा। जो सामान इम्पोर्ट होते हैं, उनका प्रोडक्शन देश में बढ़ाने में मदद मिलेगी, जिससे इन देशों के साथ व्यापार घाटे को कम किया जा सकेगा।

चीन के लिए RCEP डील का क्या महत्व है?

  • अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ट्रांस-पेसिफिक पार्टनरशिप (TPP) के तौर पर मल्टीनेशनल ट्रेड डील की घोषणा की थी, जिसमें चीन शामिल नहीं था। इस डील में अमेरिका और पेसिफिक रिम के 11 देश थे। इसके बाद ही RCEP को लेकर 2012 में बातचीत शुरू हुई।
  • अमेरिका में इस डील को लेकर सब लोग खुश नहीं थे। जब डोनाल्ड ट्रम्प प्रेसिडेंट बने तो उसने TPP को ठंडे बस्ते में डाल दिया। उन्होंने एशिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं से कोऑपरेशन बढ़ाया और चीन पर हायर टैरिफ लगाए। ऐसे में चीन के पास सामान बेचने के लिए जगह कम हो रही थी और उसने RCEP के लिए प्रयास तेज किए।
  • इस बात को ऐसे समझ सकते हैं कि चीन के पास व्यापार घाटे में 1 लाख करोड़ डॉलर का सरप्लस है। वह अन्य देशों से सामान कम खरीदता है और उन्हें बेचता ज्यादा है। इस सरप्लस में आधा हिस्सा तो अमेरिका से होने वाले ट्रेड की वजह से था। अमेरिका चीन से जितना माल खरीदता है, उतना किसी दूसरे एशियाई देश से नहीं खरीदता।
  • ट्रम्प ने 2019 की पहली छमाही में चीन से ट्रेड वॉर शुरू की। चीन से अमेरिका को एक्सपोर्ट ओवरऑल 8.5% गिर गया। वहीं, दुनिया के अन्य देशों में सिर्फ 2.1% ही बढ़ा है। इसका नतीजा यह हुआ कि उसके यहां प्रोडक्शन सरप्लस की स्थिति बन गई। उसे अपना माल बेचने के लिए नया मार्केट ढूंढना जरूरी हो गया था।
  • चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के झिंजियांग क्षेत्र में अत्याचार बढ़ गए हैं, जिस पर यूरोपीय संघ (EU) की नजर है। ट्रम्प और EU ने पहले ही हिकविजन और हुवाई जैसी चीनी मिलिट्री-समर्थित टेक कंपनियों के साथ कारोबार करना बंद कर दिया है। जल्द ही EU भी अमेरिका की तर्ज पर चीन से ट्रेड रिश्तों की समीक्षा कर सकता है।
  • अमेरिकी प्रेसिडेंट-इलेक्ट जो बाइडेन ने भी चीन को लेकर पॉलिसी पर ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि हालात पहले जैसे हो जाएंगे। इससे चीन की बेचैनी बढ़ गई है और उसने RCEP को गति दी और अपने लिए नया मार्केट खड़ा किया है।


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Regional Cooperation of Economic Partnership or RCEP Deal: All You Need To Know; Why India Opts Out of RCEP Nations; Why RCEP Matters Most For China


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मिनटों में तैयार करें किड्स स्पेशल पनीर डोसा; उन बच्चों के लिए, जो सादा डोसा खाना पसंद नहीं करते



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Kids Special Paneer Dosa, roll it by stuffing the paneer and serve it with the sauce


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कोरोना से दुनियाभर में निगेटिविटी छाई हुई है, जानिए इससे निपटने के तीन तरीके

​​​​​क्रिसथिन वांग. बुरे दिन सभी की जिंदगी में आते हैं। अक्सर हमारे परिवार, ऑफिस और दोस्तों में कोई न कोई ऐसा कहने वाला मिल जाता है कि 'आज का दिन काफी मनहूस रहा।' इसे ही निगेटिविटी कहते हैं। हमारे साथ कभी-कभी ऐसी घटनाएं होती हैं, जिसका नकारात्मक असर पूरे दिन बना रहता है। कभी-कभी निगेटिव दिन हफ्ते में बदल जाता है, हफ्ता महीने में और महीना साल में। अब कोरोनावायरस को ही ले लीजिए, इसके आने से जो निगेटिविटी शुरू हुई, अब उसके एक साल पूरे होने वाले हैं।

साइकोलॉजिस्ट शेल्डोन सोलोमोन कहते हैं कि कोरोना से दुनिया भर में आई निगेटिविटी अभी कब तक रहेगी, कुछ कह नहीं सकते। इस तरह से कई बार होता है कि निगेटिविटी शुरू होती है और खत्म होने का नाम नहीं लेती। ऐसे में लोगों के सामने यह बड़ी चुनौती है कि निगेटिविटी से ब्रेक कैसे लें? अगर सही समय पर इसकी रोकथाम पर ध्यान नहीं दिया गया तो निगेटिविटी तनाव, एंग्जाइटी और डिप्रेशन की वजह भी बन सकती है।

निगेटिविटी में सोचना और निर्णय लेना मुश्किल

मैकिंगन यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी के प्रोफेसर एथन क्रॉस कहते हैं कि निगेटिविटी दलदल की तरह होती है। जब हमारे साथ बुरी घटनाएं घटती हैं और हम निगेटिव हो जाते हैं तो हमारी मानसिक सक्षमता घट जाती है। यानी हम निर्णय नहीं ले पाते, गलत सही में फर्क नहीं कर पाते। जिसके चलते उस निगेटिविटी से बाहर आने के बजाय हम उसमें और भी फंसते जाते हैं। निगेटिविटी के वक्त हम पॉजिटिव चीजों को सोचने के बजाय निगेटिव चीजों को ही सोचते हैं।

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निगेटिविटी में निगेटिव हो जाती है हमारी समझ

डॉक्टर क्रॉस कहते हैं कि जब हम किसी चीज को देखते हैं, पढ़ते हैं या किसी के बातों को सुनते हैं तो हम उसे दो तरह से ले सकते हैं। पहला पॉजिटिव और दूसरा निगेटिव। जब हम निगेटिव दौर से गुजर रहे होते हैं तो हमारी हर चीज को ज्यादातर निगेटिव “इंटरप्रेट” करते हैं। इसलिए हमको यह लगता है कि दुनिया में हर चीज निगेटिव ही हो रही है। यह भी एक वजह है, जो हमें निगेटिविटी से और ज्यादा निगेटिविटी की तरफ ले जाती है।

निगेटिविटी से ब्रेक लेने के तीन उपाय-

1. परेशान होने के बजाय निगेटिविटी की वजह तलाशें-

  • बिहैवियर साइंटिस्ट निक हॉब्सन के मुताबिक, आमतौर पर हम अपनी निगेटिव फीलिंग को निगेटिव होते हुए भी इग्नोर करते हैं। हम यह मान कर चलते हैं कि कुछ दिन में सबकुछ सही हो जाएगा। हमारा यह तरीका या इस तरह की सोच गलत है। यह सोच बैक फायर भी कर सकती है। इसके चलते हम निगेटिविटी से डिप्रेशन में भी जा सकते हैं।
  • इसलिए सबसे जरूरी है निगेटिविटी को स्वीकार करना। ऐसा करने से हम उसे ऑब्जर्व कर पाएंगे कि निगेटिविटी का कारण क्या है? इससे कैसे निपटा जाए? निगेटिविटी को इग्नोर करके हम उससे जितना दूर भागेंगे, उसका असर हम पे उतना ही गहरा होता जाएगा।
  • इससे निपटने के लिए सबसे जरूरी और बेहतर उपाय है कि हम इसे स्वीकार करें। इसकी वजहों को तलाशें। ऐसा करने से निगेटिव फीलिंग कम भी हो जाती है और इससे बाहर निकलने के कई रास्ते भी खुल जाते हैं।

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2. निगेटिविटी को स्वीकार करें और खुद को सुझाव दें

  • सिर्फ निगेटिविटी को स्वीकार करना ही काफी नहीं है। उसे स्वीकार करके खुद को सुझाव देना भी जरूरी है। डॉ. क्रॉस के मुताबिक, खुद को 'आउटसाइडर' यानी तीसरे आदमी की तरह रखें। अपनी निगेटिविटी को स्वीकार करें। उसकी वजह ढूंढें और तीसरे आदमी के तौर पर खुद को ही सुझाव दें।
  • निगेटिविटी में खुद को मोटिवेट करने का यह एक तरीका है। कई बार हम निगेटिविटी से परेशान होकर अकेला महसूस करने लगते हैं। हमें दूसरों के सुझावों की कमी महसूस होने लगती है। ऐसी स्थिति में खुद को ही तीसरा आदमी समझकर खुद को ही सुझाव देना बहुत ही कारगर उपाय है।
  • खुद को सुझाव देना किसी दूसरे की तुलना में इसलिए भी असरदार है, क्योंकि हम खुद की समस्या और वजहों को किसी दूसरे की तुलना में ज्यादा समझते हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, यह एक तरह का सेल्फ मोटिवेशन ही है। निगेटिविटी और डिप्रेशन जैसी स्थिति में सेल्फ मोटिवेशन से बढ़कर दूसरा कोई उपाय भी नहीं हो सकता।

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3. परंपराओं के मुताबिक कुछ प्लान करें

  • निगेटिविटी से ब्रेक लेने के लिए हम 'ट्रेडिशन' यानी परंपराओं का सहारा भी ले सकते हैं। परंपराओं के अनुसार कोई भी काम किसी खास मौके पर ही किया जाता है। जाहिर ही उस वक्त हम खुश और पॉजिटिव रहते हैं। इसलिए परंपरागत तौर पर किसी इवेंट या काम को प्लान करने से हम खुद को पॉजिटिविटी से जोड़ सकते हैं। यह निगेटिविटी का सबसे बड़ा तोड़ है कि हम खुद को वहां ले जाएं, जहां से पॉजिटिविटी आ सकती है।



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The worldwide negativity that coronavirus brought remains so far; Learn three ways to deal with negativity


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सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वाली 3 साल की बच्ची का वीडियो, रेप और धर्म के झूठे दावे से वायरल

क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें एक छोटी बच्ची का शव दिख रहा है। आसपास पुलिस का अमला मौजूद है। बैकग्राउंड में लोगों के रोने की आवाज भी आ रही है।

दावा किया जा रहा है कि वीडियो में दिख रही बच्ची 3 साल की रेप पीड़िता है। मोहम्मद नाजिम नाम के एक पड़ोसी ने रेप के बाद बच्ची की हत्या कर दी। सोशल मीडिया पर वीडियो लव जिहाद के दावे के साथ शेयर किया जा रहा है।

और सच क्या है ?

  • सबसे पहले हमने दावे से जुड़े की-वर्ड को गूगल पर सर्च करना शुरू किया। इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली, जिससे वायरल मैसेज में किए जा रहे दावों की पुष्टि होती हो।
  • वीडियो के की-फ्रेम को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से भी हमें किसी विश्वसनीय मीडिया प्लेटफॉर्म पर यह वीडियो नहीं मिला।
  • मामला अलीगढ़ का बताया जा रहा है। हमने अलीगढ़ पुलिस द्वारा बीते एक सप्ताह में जारी किए गए अपडेट्स चेक करना शुरू किए। पुलिस ने 8 नवंबर को ट्वीट कर इस मामले की पूरी जानकारी दी है।
  • साफ है कि वायरल वीडियो में दिख रही 3 वर्षीय बच्ची की मृत्यु एक्सीडेंट से हुई है। सोशल मीडिया पर किया जा रहा रेप का दावा मनगढ़ंत है।


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3 years girl raped and killed by Muslim boy in Aligarh, fake news


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जब इस शेर को विदाई देने थम गई थी मुंबई; दो लाख लोग आए थे अंतिम दर्शन करने

साल 1996... कार्टूनिस्ट प्रशांत कुलकर्णी एक राजनीतिक हस्ती का इंटरव्यू ले रहे थे। बात शुरू होने से पहले ही प्रशांत से कहा गया कि आपका बनाया ब्रोकन एरो वाला कार्टून अच्छा था। चलो, अब कार्टून की ही बात करते हैं। दरअसल, तारीफ करने वाला शख्स खुद भी एक कार्टूनिस्ट था और उनका नाम था- बालासाहेब ठाकरे।

यह किस्सा बहुत खास है क्योंकि प्रशांत के जिस कार्टून की तारीफ की गई थी, उसका उस समय राजनीतिक तौर पर महत्व बहुत ज्यादा था। दरअसल, पुणे के अलका थिएटर में रमेश किणी की लाश मिली थी और उस समय वह थिएटर में अंग्रेजी फिल्म ब्रोकन एरो (Broken Arrow) देख रहे थे। इस हत्या को लेकर बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे पर अंगुलियां उठ रही थी और यह खूब चर्चित हुआ। प्रशांत ने अपने कार्टून में टूटे तीर की नोंक से टपकता खून दिखाया था। उसके साथ लिखा था- ब्रोकन एरो- खलबली मचाने वाला डरावना सिनेमा। शिवसेना का चुनाव चिह्न भी तीर-कमान ही है। साफ है कि प्रशांत के कार्टून का हमला सीधे तौर पर शिवसेना पर ही था और बाल ठाकरे ने बेबाकी से उस पर अपनी बात रखी। ऐसी ही बेबाकी के साथ अपना जीवन जीने वाले बाल ठाकरे ने 17 नवंबर 2012 को आखिरी सांस ली थी।

1950 में फ्री प्रेस जर्नल में मशहूर कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण के साथ काम कर चुके बाल ठाकरे की कहानी एक किंग मेकर की कहानी है। ठाकरे के कार्टून जापान के एक डेली न्यूज पेपर 'द असाही शिंबुन' और 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' के संडे एडिशन में छपा करते थे। उनके राजनीतिक कद का अंदाजा इस बात से लग सकता है कि उनके निधन के बाद पूरा मुंबई बंद हो गया था। अंतिम यात्रा में 2 लाख से ज्यादा लोग शामिल थे। बाल ठाकरे का जन्म 23 जनवरी 1926 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। 9 भाई-बहनों में सबसे बड़े। मीनाताई ठाकरे से शादी के बाद उन्हें तीन बेटे भी हुए- बिंदुमाधव ठाकरे, जयदेव ठाकरे और उद्धव ठाकरे। उद्धव आज महाराष्ट्र में शिवसेना के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री हैं।

1960 में वह पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हो गए। अपने भाई के साथ मार्मिक नाम से साप्ताहिक अखबार निकाला। 1966 में मराठी माणुस को हक दिलाने के लिए शिवसेना बनाई। खुद कभी चुनाव नहीं लड़ा और किंग मेकर की भूमिका ही निभाई। बेबाकी तो जैसे उनमें कूट-कूटकर भरी थी। जब अयोध्या में बाबरी ढांचा गिराया गया और कोई जिम्मेदारी नहीं ले रहा था, तब बाल ठाकरे ही थे जो खुलकर कह गए कि शिवसैनिकों ने गिराई है मस्जिद। इमरजेंसी के दौरान विपक्ष में रहते हुए भी इंदिरा गांधी को समर्थन दिया था। फिर, प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति बनाने की बात हो या प्रणब मुखर्जी को, उन्होंने गठबंधन से बाहर जाकर अपनी बेबाकी दिखाई। 1995 में शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन सरकार बनाई। 2006 में जब बेटे उद्धव को शिवसेना की कमान सौंपी तो राज ठाकरे ने अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाई। यह बात आखिरी वक्त तक उन्हें टीसती रही।

लाल-बाल-पाल तिकड़ी के लाला का निधन

1900 की शुरुआत में अंग्रेजों को परेशान करने वाली तिकड़ी थी- लाल-बाल-पाल की। यानी लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल। पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना करने वाले लाला लाजपत राय गरम दल के नेताओं में गिने जाते थे। उनका जन्म मोगा जिले में 28 जनवरी 1865 को जैन परिवार में हुआ था। पेशे से वकील थे। स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ आर्य समाज में रहे और वैदिक संस्कृति का खूब प्रचार-प्रसार किया। 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में उन पर अंग्रेजी हुकूमत ने लाठियों से वार किया। इस दौरान वह बुरी तरह से घायल हो गए और कुछ दिन बाद उनका निधन हो गया था। जिस समय वह लाठियों से घायल हुए थे तो उन्होंने कहा था- मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी। लाला लाजपत राय की मौत के बाद पूरे देश में आक्रोश था। चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और बाकी क्रांतिकारियों ने इसका बदला लेने की ठानी। एक महीने बाद 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स को गोली मार दी। इसी मामले में राजगुरु, सुखदेव, और भगतसिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी।

भारत की पहली मिस वर्ल्डः रीता फारिया

यह तस्वीर रीता फारिया के मिस वर्ल्ड खिताब जीतने के समय की है।

17 नवंबर 1966 में भारत की रीता फारिया पावेल ने मिस वर्ल्ड का खिताब जीता था। वह यह उपलब्धि हासिल करने वाली भारत और एशिया की पहली महिला थीं। वह पहली ऐसी मिस वर्ल्ड रहीं, जो पेशे से डॉक्टर थीं। इसके बाद भारत से 6 विश्व सुंदरी बन चुकी हैं। 23 अगस्त 1943 को मुंबई में जन्मी रीता ने 23 साल की उम्र में यह खिताब हासिल किया था। रीता के माता पिता गोवा के रहने वाले थे। खिताब जीतने के बाद उन्होंने एक साल तक मॉडलिंग की, लेकिन फिर छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने मुंबई स्थित ग्रांट मेडिकल कॉलेज और सर जमशेदजी जीजा बाई ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल से MBBS की पढ़ाई पूरी की। फिर आगे की पढ़ाई के लिए लंदन के किंग्स कॉलेज एंड हॉस्पिटल चली गईं। 1971 में उनकी शादी डेविड पॉल से हुई थी। अभी वह अपने पति के साथ आयरलैंड के डबलिन में रहती है। उनके दो बेटे हैं।

भारत और दुनिया में 17 नवंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैं

  • 1525: मुगल शासक बाबर ने भारत में सिंध के रास्ते पांचवी बार प्रवेश किया।
  • 1869: इंग्लैंड के जेम्स मूरी ने 13 हजार Km लंबी पहली साइकिल रेस जीती।
  • 1869: मिस्र में स्वेज कैनाल को खोला गया था।
  • 1917: फ्रेंच मूर्तिकार अगस्त रोडिन का म्यूडन में 77 साल की उम्र में निधन हुआ था।
  • 1932: तीसरे गोलमेज सम्मेलन की शुरुआत हुई।
  • 1970: सोवियत अंतरिक्ष यान लुना खोद-1 चांद पर उतरा था।
  • 1999: अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को यूनेस्को ने स्वीकृति दी।
  • 2006: अमेरिकी सीनेट ने भारत-अमेरिका परमाणु संधि को मंजूरी दी।
  • 2008: चंद्रयान-1 की सफलता के बाद केन्द्र सरकार ने चंद्रयान-2 की मंजूरी दी।


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Today in History (Aaj Ka Itihas) - What Happened on November 17th |Bala saheb death anniversary, Lala saheb death, Rita faria became miss world


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न तीर न तलवार, देखिए कार्टून की धार: आज निशाने पर मोदी का कमांडो अवतार



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Neither arrow nor sword, see the edge of the cartoon: Modi's commando avatar targeted today


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बाइडेन के सामने कई चुनौतियां, अगले 100 दिन तय करेंगे अमेरिका किस तरफ जाएगा

अमेरिका के प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडेन ने संकेत दिए हैं कि वे देश की खराब हो चुकी छवि को सुधारने के लिए तेजी से काम करेंगे। अमेरिका के डिप्लोमैट, इंटेलीजेंस और मिलिट्री सर्विस से जुड़े लोगों को सम्मान दिलाना उनकी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर है।

दूसरे देशों के साथ अमेरिका के रिश्तों के लिए खासतौर से ज्यादा सधा हुआ और सहानुभूति भरा रवैया अपनाया जाए। अमेरिका में बदलाव का यह संदेश दुनिया की कई राजधानियों में सुनाई दे सकता है। यही संदेश बाइडेन ने वोटर्स को दिया था, जिसने उन्हें डोनाल्ड ट्रम्प पर निर्णायक जीत दिलाई थी। यह दुनिया में अमेरिका की असरदार वापसी का संकेत है।

दो मुद्दों पर ट्रम्प से बिल्कुल अलग राय रखते हैं बाइडेन

  • ऐसा बहुत कुछ है जो बाइडेन अपने शासन के पहले 100 दिनों में कर सकते हैं। वे जलवायु परिवर्तन पर किए गए पेरिस समझौते में दोबारा शामिल होने का इरादा पहले ही जाहिर कर चुके हैं। उन्होंने साफ कर दिया है क्लाइमेट चेंज का मुद्दा उनके एडमिनिस्ट्रेशन के लिए सबसे अहम होगा।
  • उन्होंने वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन से अमेरिका के रिश्ते दोबारा बहाल करने के अपने इरादे का भी ऐलान कर दिया है। यह दिखाता है कि अमेरिका भी कोरोना वायरस से हो रहे विनाश को रोकने के लिए दुनिया के बाकी देशों के साथ शामिल हो जाएगा।

बाइडेन से उम्मीदें

बाइडेन से यह उम्मीद भी की जाती है कि वे लोकतांत्रिक देशों का एक शिखर सम्मेलन बुलाएं। इसमें चीन, रूस, सऊदी अरब या तुर्की, जहां भी मानवाधिकारों के हनन के मामले सामने आ रहे हैं, उन्हें उजागर करने के लिए अमेरिका को फिर से तैयार करें।

इसी के साथ वह ईरान के साथ परमाणु समझौते को दोबारा अमल में लाने के रास्ते तलाशें। परमाणु हथियारों को सीमित करने के लिए न्यू स्टार्ट संधि (स्ट्रेटेजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी) के लिए रूस को तैयार करें। उम्मीद है कि बाइडेन यमन के गृहयुद्ध में सऊदी अरब के दखल को अमेरिकी समर्थन खत्म कर देंगे।

सीनेट में रिपब्लिकंस के बहुमत से मुश्किल होगी

टीम बाइडेन की बातों से ऐसा लग रहा है जैसे वे देश की विदेश नीति के अनुभवी और पेशेवर लोगों को जिम्मेदारी सौंपेंगे। अगर ट्रम्प की रिपब्लिक पार्टी सीनेट में बहुमत बनाए रखती है, तो बाइडेन की ओर से की गई नियुक्तियों को उनकी मंजूरी की जरूरत होगी। इसमें रिपब्लिकंस अड़ंगा लगा सकते हैं।

इन मुद्दों पर ट्रम्प जैसे होंगे बाइडेन

डेमोक्रेट के बहुमत वाली सीनेट भी अमेरिकी नीतियों में बड़े नाटकीय बदलाव नहीं करेगी। बाइडेन चीन के साथ ट्रेड वॉर कम कर सकते हैं, लेकिन 5G नेटवर्क या दक्षिण चीन सागर में चीन के दावों जैसे विवादास्पद मुद्दों पर मतभेद फिलहाल बने रहेंगे।

ट्रम्प सरकार की ओर से रूस पर लगाई गई पाबंदियां बाइडेन के राज में भी हटने की उम्मीद नहीं है। ट्रम्प के कार्यकाल में उत्तर कोरिया को लेकर अमेरिका के रुख में काफी बदलाव आया था। इजरायल-फिलिस्तीनी विवाद के प्रति भी ट्रम्प का नजरिया एकतरफा था। हालांकि, इन मुद्दों पर अमेरिका को इससे फर्क नहीं पड़ता कि व्हाइट हाउस में कौन है।

किसी नई जंग में उतरने से बचेंगे

इस बात की पूरी उम्मीद है कि बाइडेन विदेश में चल रहे युद्धों से हटने और किसी नई जंग में शामिल न होने की ट्रम्प की नीति जारी रखेंगे। हालांकि, वे इस तरह के फैसलों में अपने सहयोगियों की चिंताओं का ध्यान रखेंगे।

कारोबार के मसले पर बाइडेन निश्चित रूप से ट्रम्प के रास्ते पर नहीं चलेंगे। ट्रम्प ने कारोबारी शुल्क लगाते समय दोस्त और प्रतिद्वंद्वियों का भेद खत्म कर दिया था। यही वजह है कि अधिकतर नाटो सहयोगी और यूरोपीय संघ के सदस्य ट्रम्प के सत्ता से बाहर होने की खुशी मनाएंगे। इसके साथ ही अमेरिका इस बात पर जोर देता रहेगा कि नार्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (नाटो) के उसके सहयोगी सुरक्षा में अपना उचित हिस्सा देना शुरू करेंगे।

बाइडेन की राह आसान नहीं

अब दुनिया वैसी नहीं है जैसी 2016 में थी। न ही यह उस स्थिति में वापस जा सकती है। उत्तर कोरिया के मसले को सुलझाने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने और चीन की आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए नए नजरिए की जरूरत है।

इसके अलावा बाइडेन को ब्राजील में दक्षिणपंथी राष्ट्रपति और वेनेजुएला के तानाशाह को भी डील करना है। पाबंदियों को बनाए रखते हुए रूस के साथ परमाणु हथियारों में कमी लाने पर बातचीत करनी है। अपने कट्टर दुश्मन ईरान के साथ समझौते को फिर पटरी पर लाना है।

दोराहे पर खड़े हुए सहयोगी देश

यह समझा जा सकता है कि अमेरिका के सहयोगी देशों को इस बात पर शक है कि ट्रम्प का जाना वाकई बेहतर है। ट्रम्प सत्ता में रहने की चाह में गलत टिप्पणियां करते आए हैं, लेकिन उम्मीद है कि बाइडेन-हैरिस एडिमिनिस्ट्रेशन कम से कम पिछले चार साल के अस्थिर और बेकार की वजहों से चर्चा में रहे शासन को खत्म कर देगा।

अमेरिका की ताकत अपने लोकतंत्र, आजाद ख्याली और मूल्यों से हमेशा उतनी ही बढ़ी है, जितनी कि उसके युद्ध पोतों और ड्रोन से। बाइडेन ने संकेत दिया है कि वे अमेरिका को वैश्विक स्तर पर मजबूती से वापस लाने का इरादा रखते हैं। तमाम शक और डर के बावजूद अमेरिका के दोस्तों और सहयोगियों को इस मुहिम में शामिल होने के लिए इंतजार नहीं करना चाहिए।



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प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडेन के सामने दूसरे देशों से संबंध सुधारने के अलावा अपने देश की समस्याएं सुलझाने की भी चुनौती है।


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चीन को लेकर मोदी ने नेहरू जैसी रणनीतिक भूल की है

पूर्वी लद्दाख को चिंतित नजरों से देखते हुए यह कठोर सच कहना जरूरी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल के पहले पांच वर्षों में वैसी ही रणनीतिक भूल की जैसी भूल जवाहरलाल नेहरू ने की थी। साथ ही हम यह भी बताएंगे कि मोदी की भूल नेहरू की 1955-62 वाली भूल की तुलना में आधी क्यों है?

हम एक सोची-समझी धारणा बनाकर चल रहे हैं कि 2014 में मोदी जब पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आए तब उन्हें पूरा आत्मविश्वास था कि उनके दौर में कोई युद्ध नहीं होगा। एक बार जब आप वैश्विक व्यवस्था का हिस्सा बन जाते हैं और देशों के हित एक-दूसरे की बॉन्ड कीमतों से जुड़ जाते हैं तब उनमें लड़ाई नहीं होती। जब देश वैश्विक अर्थव्यवस्था के अहम भागीदार बन जाते हैं, जैसे भारत-चीन बन चुके हैं, तब युद्ध के सैन्य से ज्यादा आर्थिक कु-परिणाम होते हैं। चूंकि कोई युद्ध नहीं होगा इसलिए मोदी के छह साल में जीडीपी में रक्षा बजट का प्रतिशत बढ़ने की बजाए घटा है।
भारत सैन्य शक्ति में चीन की बराबरी निकट भविष्य में नहीं कर सकता। लेकिन भारत पर चीन का आर्थिक दांव भारी व्यापार सरप्लस के कारण ऊंचा होता गया है। 2017 की गर्मियों तक, जब तक उसने डोकलाम में उलटफेर नहीं किया था तब तक ऐसा ही लगता था कि वह अपना ही खेल खराब करने की मूर्खता नहीं करेगा। शुरू में मोदी ने पाकिस्तान और चीन, दोनों की तरफ हाथ बढ़ाया। लेकिन जल्दी ही उन्हें गलती का एहसास हुआ कि पाकिस्तान में असली सत्ता निर्वाचित नेता के हाथ में नहीं बल्कि किसी और के हाथ में होती है। इसके बाद मोदी ने एक रणनीतिक सुधार किया और पाकिस्तान को शाश्वत शत्रु के खांचे में डाल दिया। उरी, पुलवामा-बालाकोट इस के सबूत थे कि यह राजनीतिक चाल कारगर है।
चीन के मामले में उन्होंने दूसरा रवैया अपनाया। उन्होंने राष्ट्रपति शी जिनपिंग को गुजरात आमंत्रित किया। मोदी ने तब यह हिसाब लगाया था कि निजी समीकरण, गहरी दोस्ती, व्यापार व निवेश से होने वाले लाभों का आकर्षण चीनी खतरे को खत्म कर सकता है। लेकिन चीनी सेना ने लद्दाख के चूमर में एलएसी का उल्लंघन करके साबित कर दिया कि चीन अपनी आदत से बाज नहीं आएगा। इसके बावजूद एक के बाद एक शिखर वार्ताएं चलीं।

डोकलाम एक चेतावनी तो थी, मगर वुहान ने फिर इस धारणा को मजबूत किया कि चीन से सीधा सैन्य खतरा नहीं होने वाला है। इसलिए सेना पर खर्चों को अभी टाला जा सकता है। लेकिन शायद कोई नई चिंता उभरी, जिसने रफाल हासिल करने की प्रक्रिया में तेजी ला दी। इसके बावजूद, हासिल किए जाने वाले उन विमानों की संख्या 36 कर दी गई जबकि भारतीय वायुसेना ने न्यूनतम 65 की मांग की थी। और यह मांग भी इसी विश्वास के बूते की गई थी कि युद्ध की कोई आशंका नहीं है। लेकिन यह रणनीतिक भूल थी।

बालाकोट हमला और इसके बाद की झड़पों ने पहली चेतावनी दे दी थी कि भारत ने अपनी बढ़त अपने हाथ से निकल जाने दी है। हालांकि सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में कुछ तेजी आई लेकिन यह चीन पर मुख्य ध्यान देते हुए नहीं किया जा रहा था। यह तेजी भी 20 अप्रैल से पहले नहीं आई थी, जब तक कि चीनी सेना ने बड़े पैमाने पर फौजी घुसपैठ करके झटका नहीं दिया। चीन ने ऐसा क्यों किया? क्या कश्मीर में फेरबदल व अक्साई चीन फिर से हासिल करने के भारतीय दावों ने ही उसे उकसाया?
यहां आकर हम अपने मूल मुद्दे को उठाते हैं कि मोदी ने वैसी ही रणनीतिक भूल की जैसी नेहरू ने की थी। मोदी ने यह मान लिया कि अभी युद्ध नहीं होने वाला और चीन अपने आर्थिक हितों को खतरे में डाल कर भारत के लिए खतरा बनने की कोशिश नहीं करेगा। लेकिन हमने इसे नेहरू की भूल के मुकाबले आधी भूल क्यों कहा? इसलिए कि यह मान लेना ठीक तो है कि कोई पारंपरिक युद्ध लगभग असंभव है। लेकिन शांति की गारंटी जिन वजहों से मानी जा रही है वह सही नहीं है।

भारत को यूपीए राज में एक दशक तक अनिश्चय में झूलते रहने के बाद रक्षा पर खर्चों को बढ़ाना पड़ा। हमारे इस कठिन क्षेत्र में शांति की शर्त यह है कि पाकिस्तान को दंड देने की ताकत बनाए रखी जाए और चीन को चेतावनी देने के तेवर बनाए रखे जाएं। लेकिन सेना पर निवेश में कटौती के कारण ये दोनों रणनीतियां कमजोर पड़ीं।
चीन तो हमेशा नज़र गड़ाए ही रहा है। वाजपेयी-ब्रजेश मिश्र की दबाव की कूटनीति के सिद्धांत को याद कीजिए। इसमें पाकिस्तान पर भारत के निर्णायक व दंडात्मक फौजी वर्चस्व की नीति भी जुड़ी थी। उनका यह भी कहना था कि दबाव की कूटनीति तभी कारगर हो सकती है जब युद्ध का खतरा इतना वास्तविक हो कि हम उसे सच्चा मान लें।
संभव है कि इसी वजह से चीन हमारे साथ लद्दाख में यह सब कर रहा है। वह दबाव की कूटनीति के लिए अपनी सैन्य बढ़त का लाभ उठा रहा है। भारतीय सेना ने कैलाश क्षेत्र में जो साहसिक जवाब दिया उसने दिखा दिया है कि भारत अब 1962 वाला भारत नहीं है। लेकिन हाल के रक्षा समझौते के बाद जब हम अमेरिका से जाड़ों के लिए जरूरी पोशाकों की आपात खरीद करते हैं, तब हम अहम रूप से गलत आकलन करते हुए फिर एक भारी भूल कर रहे होते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’।


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ट्रम्प ने झूठ बोलने को बहुत सामान्य बात बना दिया है

इन चार ऐतिहासिक वर्षों में झूठ बोलना इतना आम, इतना सामान्य हो गया है, जैसा पहले कभी नहीं रहा। मैं नहीं जानता कि इसे कैसे ठीक किया जाएगा, पर ऐसा जल्द करना होगा। जो लोग सच साझा नहीं करते वे महामारी को नहीं हरा सकते, संविधान की रक्षा नहीं कर सकते। सच का युद्ध अब लोकतंत्र के संरक्षण का युद्ध है।
ऐसी स्थिति में आजाद समाज बनाए रखना असंभव है, जब नेता और खबरें देने वाले बिना रोकटोक झूठ फैलाएं। बिना सच, आगे कोई रास्ता नहीं है और बिना विश्वास साथ नहीं चला जा सकता। लेकिन हम इतने गहरे गड्ढे में हैं क्योंकि हमारे राष्ट्रपति सिर्फ एक बात में विश्वास रखते हैं, ‘पकड़े मत जाओ।’ लेकिन पिछले कुछ समय में उन्होंने और उनके आसपास के लोगों ने इसपर भी विश्वास करना बंद कर दिया है। उन्हें अब पकड़े जाने की भी परवाह नहीं है। वे जानते हैं कि जब तक सच अपने जूते के फीते बांधता है, तब तक उनका झूठ आधी दुनिया का सफर कर चुका होता है। वे दुनिया को झूठ से भर देना चाहते हैं, फिर किसी को सच नहीं पता होगा।
सच आपको एकजुट करता है और ट्रम्प ऐसा नहीं चाहते। उन्होंने कोरोना और चुनावों की ईमानदारी के बारे में जो कहा, उससे यही लगता है। और वे सफल भी रहे। ट्रम्प ने साबित कर दिया कि एक झूठ को दिन में कई बार बोला जाए, तो न सिर्फ उससे चुनाव जीत सकते हैं, बल्कि लगभग दोबारा चुनाव जीता जा सकता है। अमेरिकियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि अब ट्रम्प जैसा कोई व्यक्ति अमेरिकी राजनीति में न लौटे।
ट्रम्प ने न सिर्फ खुद झूठ बोले, बल्कि दूसरों को भी ऐसा करने की आजादी दी और उसका लाभ उठाया। जब तक वोट मिलते रहें, उनकी पार्टी को फर्क नहीं पड़ता। जब तक दर्शक मिलते रहें, फॉक्स न्यूज को फर्क नहीं पड़ता। जब तक ट्रम्प गर्भपात विरोधी जजों को नियुक्त करते रहेंगे, उनके कई मतदाताओं को भी फर्क नहीं पड़ता।
इन सभी कारणों से झूठ का उद्योग इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि इसकी खुद की जीडीपी लाइन होनी चाहिए: ‘पिछली तिमाही में ऑटो सेक्टर में 10% की गिरावट देखी गई, लेकिन झूठ बोलने में 30% की बढ़त हुई और अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि झूठ उद्योग 2021 तक दोगुना हो जाएगा।’
इजरायली बदू लोगों के विशेषज्ञ क्लिंटन बेली, बदू मुखिया की एक कहानी सुनाते हैं कि एक दिन उसकी मुर्गी चोरी हो गई। उसने अपने बेटों से कहा, ‘हम खतरे में हैं। मेरी मुर्गी चोरी हो गई है। उसे ढूंढो।’ बेटों ने हंसकर टाल दिया। अगले हफ्ते उसका ऊंट चोरी हो गया। मुखिया ने बेटों से फिर कहा, ‘मेरी मुर्गी ढूंढो।’ कुछ हफ्तों बाद मुखिया का घोड़ा चोरी हो गया। वह फिर बोला, ‘मेरी मुर्गी ढूंढो।’ अंतत: एक दिन उसकी बेटी अगवा हो गई। तब मुखिया ने बेटों को बुलाकर कहा, ‘यह सब मुर्गी की वजह से हुआ है। जब हमने देखा था कि वे मेरी मुर्गी ले जा सकते हैं, मतलब हमने सबकुछ खो दिया।’
और आप जानते हैं कि हमारी मुर्गी कौन थी? जन्मवाद। जब ट्रम्प को ‘जन्म संबंधी’ झूठ फैलाने दिया गया कि हवाई में जन्मे बराक ओबामा दरअसल केन्या में पैदा हुए थे, इसलिए वे राष्ट्रपति बनने के लिए अयोग्य हैं, तब ट्रम्प समझ गए कि वे कुछ भी कहकर बच सकते हैं। बेशक, बाद में ट्रम्प इससे मुकर गए, लेकिन उन्होंने देख लिया कि वे कितनी आसानी से मुर्गी यानी सच चुरा सकते हैं और लगातार ऐसा कर सकते हैं। इससे उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी की आत्मा चुरा ली और दोबारा चुनाव जीतते तो देश की आत्मा चुरा लेते।
वे और उनके सहयोगी अब अमेरिका के लोकतंत्र को बर्बाद करने के लिए फिर बड़े झूठ का सहारा लेकर अमेरिका के उस महानतम पल को अवैध बताने की कोशिश कर रहे हैं, जब महामारी के दौर में भी रिकॉर्ड संख्या में नागरिक वोट करने आए। ट्रम्प और उनके सहयोगी जो कर रहे हैं वह बेहद खतरनाक है लेकिन यह देख और रोना आता है कि उनके कितने समर्थक उनका साथ दे रहे हैं।
इसीलिए यह जरूरी है कि हर प्रतिष्ठित खबर संस्थान, विशेषरूप से टीवी, फेसबुक और ट्विटर ‘ट्रम्प रूल’ अपनाएं। अगर कोई भी अधिकारी झूठ बोलता है, बिना तथ्य आरोप लगाता है, तो उस साक्षात्कार को तुरंत खत्म कर देना चाहिए, जैसा कि हाल ही में चुनाव के बाद ट्रम्प के झूठ बोलने पर कई नेटवर्क्स ने किया था। अगर आलोचक चिल्लाएं, ‘सेंसरशिप’, तो वापस चिल्लाएं, ‘सच।’ यह नया नॉर्मल बन जाना चाहिए। राजनेताओं को टीवी पर झूठ बोलने में डर लगना चाहिए।
इसी के साथ हमें अमेरिका के हर स्कूल में डिजिटल सिविक्स पढ़ानी चाहिए कि यह कैसे पता करें कि इंटरनेट पर दी गई बात सच है या झूठ। इससे पहले कि देर हो जाए, हमें यह फिर स्थापित करना होगा कि झूठ बोलना बुरा है, झूठ बोलने वाले बुरे हैं। हमें सच खोजना होगा, उसके लिए लड़ना होगा और गलत जानकारी देने वाली ताकतों को निर्ममता से हटाना होगा। यह हमारी पीढ़ी की आजादी की लड़ाई है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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थाॅमस एल. फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में नियमित स्तंभकार।


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