शनिवार, 26 दिसंबर 2020

किसान आंदोलन से दिल्ली-जयपुर हाईवे बंद, RBI ने कहा- फटाफट लोन नहीं है बेस्ट और आज से होगा बॉक्सिंग डे टेस्ट

नमस्कार!
शुक्रवार को किसानों को संबोधित करते हुए PM मोदी 80 मिनट के भाषण में 20 मिनट तक किसान आंदोलन पर ही बोले। मुंबई की लोकल ट्रेन में महिला से रेप हुआ। अरुणाचल प्रदेश में BJP ने JDU में सेंध लगा दी। बहरहाल, शुरू करते हैं न्यूज ब्रीफ।

आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर

  • प्रधानमंत्री मोदी जम्मू-कश्मीर में सोशल एंडेवर फॉर हैल्थ एंड टेलीमेडिसिन (SEHAT) की शुरुआत करेंगे।
  • भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच मेलबर्न में दूसरा टेस्ट शुरू होगा। इसे बॉक्सिंग डे टेस्ट भी कहा जाता है।
  • भारतीय किसान यूनियन (एकता-उग्राहां) ने कहा है कि दिल्ली बॉर्डर पर जारी प्रदर्शन में शामिल होने के लिए 30 हजार से ज्यादा किसान पहुंचेंगे।

देश-विदेश
मोदी के मन में बंगाल और किसान आंदोलन

प्रधानमंत्री मोदी के घर से महज 40 किलोमीटर दूर सिंघु बॉर्डर पर किसान 30 दिन से आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन उन तक अपनी बात पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री को 2500 किमी दूर अरुणाचल और तमिलनाडु में बैठे किसानों का सहारा लेना पड़ा। शुक्रवार को जब 9 करोड़ किसानों के खातों में 18 हजार करोड़ रुपए की सम्मान निधि ट्रांसफर हो रही थी, तब मोदी का ज्यादा जोर इस पर बात था कि आंदोलन कर रहे किसानों को कैसे कुछ लोग गुमराह कर रहे हैं और बंगाल के किसानों तक किस तरह फायदा नहीं पहुंच पा रहा। मोदी का भाषण करीब 80 मिनट का था। इसमें से 20 मिनट वे सिर्फ किसान आंदोलन पर बोले।

दिल्ली-जयपुर हाईवे पूरी तरह बंद
राजस्थान में अलवर के शाहजहांपुर-खेड़ा बॉर्डर पर किसान आंदोलन तेज हो गया है। आंदोलनकारियों की बढ़ती संख्या और किसानों के दिल्ली कूच की आशंका को देखते हुए शुक्रवार दोपहर दो बजे हरियाणा पुलिस ने जयपुर-दिल्ली हाईवे की दूसरी लेन को भी बंद कर दिया। शाहजहांपुर बॉर्डर पर 12 दिसंबर से हाईवे पर किसान डटे हुए हैं। अभी तक जयपुर से दिल्ली जाने वाली लेन ही बंद थी।

BJP ने लगाई JDU में सेंध
अरुणाचल प्रदेश में जनता दल यूनाइटेड (JDU) के 6 विधायकों के भारतीय जनता पार्टी (BJP) में जाने से बिहार की राजनीति में भी उथल-पुथल मचने के आसार हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बॉडी लैंग्वेज से तो यही लग रहा है। नीतीश शुक्रवार को जब मीडिया से मुखातिब हुए, तो उनका अंदाज कुछ इस तरह का था, जैसे कह रहें हो - पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त। कयास लगाए जा रहे हैं कि नीतीश कुमार एक-दो दिन में कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं।

मुंबई लोकल में रेप
मुंबई की लोकल ट्रेन में महिला से रेप का मामला सामने आया है। पुलिस के मुताबिक, पहले महिला से लोकल ट्रेन में ज्यादती हुई और फिर उसे चलती ट्रेन से फेंक दिया गया। नवी मुंबई के वाशी में मंगलवार को 24 साल की महिला बेहोशी की हालत में रेलवे ट्रैक पर मिली थी। दो दिन बाद होश आने के बाद उसके बयान के आधार पर गुरुवार को मेडिकल टेस्ट कराया गया। इसमें रेप की पुष्टि हुई। पुलिस ने एक अज्ञात शख्स खिलाफ केस दर्ज किया है। रेलवे स्टेशनों और आसपास लगे CCTV कैमरों की मदद से आरोपी की तलाश की जा रही है।

बॉक्सिंग डे टेस्ट के लिए टीम का ऐलान
चार टेस्ट मैचों की सीरीज के दूसरे मैच के लिए टीम इंडिया की प्लेइंग इलेवन का ऐलान हो गया है। दो प्लेयर्स टेस्ट डेब्यू करेंगे। ये हैं- शुभमन गिल और तेज गेंदबाज मोहम्मद सिराज। विकेटकीपिंग की जिम्मेदारी ऋद्धिमान साहा से लेकर ऋषभ पंत को सौंपी गई है। पहले टेस्ट में ओपनिंग करने वाले पृथ्वी शॉ को बाहर कर दिया गया है। वहीं, रविंद्र जडेजा को टीम में जगह मिली है। कप्तानी का जिम्मा अजिंक्य रहाणे को सौंपा गया है। मिडल ऑर्डर बल्लेबाज चेतेश्वर पुजारा उप कप्तान होंगे।

फटाफट लोन से रहें सावधान
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने लोगों से फटाफट लोन देने वाले डिजिटल मनी लेंडिंग मोबाइल ऐप्स से सावधान रहने की अपील की है। इन ऐप्स से जुड़े करोड़ों रुपए के घोटाले सामने आए हैं। आंध्र प्रदेश के तीन लोग ऐसे ही ऐप्स से कर्ज लेने के बाद सुसाइड कर चुके हैं। RBI की मंजूरी के बिना इन ऐप्स से लोगों को 35% की ब्याज दर पर लोन दिया जाता था। मतलब तीन महीने में पैसा दोगुना हो जाता है। बाद में बकाया रकम की वसूली के लिए कंपनियां जोर-जबरदस्ती करती हैं।

वैक्सीनेशन की उल्टी गिनती
केंद्र सरकार ने देश भर में ब्लॉक लेवल तक कोरोना वैक्सीन लगाने की तैयारी पूरी कर ली है। इसके मैनेजमेंट और वैक्सीनेशन की प्रोसेस को परखने के लिए चार राज्यों में अगले हफ्ते दो दिन का ट्रायल किया जाएगा। इसके लिए आंध्र प्रदेश, असम, गुजरात और पंजाब को चुना गया है। हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर मिनिस्ट्री ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। उन सभी लोगों को ट्रेनिंग भी दी जा चुकी है, जो वैक्सीनेशन के दौरान पूरा मैनेजमेंट संभालेंगे।

एक्सप्लेनर
कोरोना के नए स्ट्रेन कितने खतरनाक?

कोरोनावायरस के नए स्ट्रेन सामने आने का सिलसिला जारी है। UK के बाद दक्षिण अफ्रीका और नाइजीरिया में भी वायरस के नए स्ट्रेन सामने आए हैं। इससे कई तरह के सवाल खड़े हो गए हैं। क्या यह नया स्ट्रेन वायरस के ट्रांसमिशन इफेक्ट को बढ़ाएगा? क्या जांच के मौजूदा तरीके इन स्ट्रेन का पता लगा सकते हैं? जो वैक्सीन बन रही हैं, उनका क्या होगा? क्या वे अब भी असरदार रहेंगी या उनका असर कम हो सकता है? आइए समझते हैं इस बारे में विशेषज्ञ क्या कहते हैं...

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पॉजिटिव खबर
22 साल के संघर्ष के बाद हासिल किया मुकाम

आज की पॉजिटिव खबर 27 साल की उरूज हुसैन की। वो नोएडा में ‘स्ट्रीट टेंपटेशन’ नाम का एक रेस्त्रां चलाती हैं। उरूज का जन्म सामान्य बच्चों की तरह हुआ, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें पता चला कि उनकी तमाम फीलिंग्स लड़कियों की तरह हैं। इसके चलते उन्हें परिवार और समाज में ढेरों मुश्किलों का सामना करना पड़ा। लेकिन अब उन्होंने अपना मुकाम हासिल कर लिया है। उनके रेस्त्रां में सात लोगों की टीम काम करती है। रोजाना 4 से 5 हजार रुपए के ऑनलाइन ऑर्डर आते हैं।

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बड़ी कंपनियों से आगे निकली टेस्ला
महज 16 साल पुरानी टेस्ला, अमेरिका में ऑटोमोबाइल राजधानी कहे जाने वाले डेट्रॉयट की सारी कंपनियों को अकेले चुनौती दे रही है। टेस्ला हर साल 5 लाख से भी कम गाड़ियां बना पाती है। लेकिन, टेस्ला के लिए लोगों की दीवानगी ऐसी है कि कार बनाने वाली 10 बड़ी कंपनियां एक तरफ हैं और टेस्ला एक तरफ। दुनिया की 10 बड़ी कार कंपनियों टोयोटा, फॉक्सवैगन, मर्सिडीज, GM, BMW, होंडा, फिएट, फोर्ड, निसान और सुबारू का टोटल मार्केट कैप 49.15 लाख करोड़ रुपये है, जबकि अकेले टेस्ला का मार्केट कैप 48.50 लाख करोड़ रुपये है।

सुर्खियों में और क्या है

  • उर्दू के मशहूर शायर शम्सुर रहमान फारूकी का शुक्रवार को इलाहाबाद में निधन हो गया। 85 साल के फारूकी एक महीने पहले ही कोरोना से रिकवर हुए थे।
  • ब्रिटेन में गुरुवार को एक ही दिन में मरने वालों का आंकड़ा 574 बढ़ गया। लेकिन, PM बोरिस जॉनसन ने देश में लॉकडाउन की संभावना से इनकार कर दिया है।


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दिल्ली में महीनेभर से लड़ रहे किसान, इधर दिया जा रहा निधि से सम्मान?



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माता-पिता की छोटी सी भूल की कीमत बच्चों को जीवनभर चुकानी पड़ती है

कहानी - महाभारत में अर्जुन और सुभद्रा पति-पत्नी थे। सुभद्रा श्रीकृष्ण की बहन थीं। जब सुभद्रा गर्भवती थीं, तब एक दिन अर्जुन चक्रव्यूह भेदने की विधि समझा रहे थे। गर्भ में पल रहा शिशु भी ये विधि ध्यान से सुन रहा था।

अर्जुन ने चक्रव्यूह की आधी विधि बता दी थी, तभी सुभद्रा को नींद आ गई। माता को नींद आने की वजह से गर्भ में पल रहा शिशु बाकी विधि समझ नहीं सका। जब इस शिशु का जन्म हुआ तो इसका नाम अभिमन्यु रखा गया।

कौरव और पांडवों के युद्ध में 13वें दिन द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की थी। इस व्यूह को सिर्फ अर्जुन भेद सकते थे। लेकिन, उस समय अर्जुन किसी और से युद्ध कर रहे थे। तब युधिष्ठिर ने अभिमन्यु से कहा कि तुम ये चक्रव्यूह भेद सकते हो।

अभिमन्यु ने युधिष्ठिर से कहा, 'मैं चक्रव्यूह भेद तो सकता हूं, लेकिन मुझे वापस आने की विधि नहीं मालूम है। क्योंकि, जब मेरे पिता माता सुभद्रा को चक्रव्यूह की विधि बता रहे थे, तब आधी विधि के बाद माता को नींद आ गई थी।'

युधिष्ठिर ने भीम और अन्य योद्धाओं को अभिमन्यु की मदद के लिए साथ में भेज दिया। अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदकर अंदर प्रवेश कर गया, लेकिन भीम और अन्य योद्धाओं को जयद्रथ ने बाहर ही रोक दिया। चक्रव्यूह में अभिमन्यु अकेला फंस गया और मारा गया।

सीख - इस घटना से हमें ये सीख मिलती है कि संतान के पालन में माता-पिता को बहुत सतर्क रहना चाहिए। नींद आने का मतलब ये है कि माता-पिता लापरवाह हैं। ऐसी गलती की कीमत बच्चों को चुकानी पड़ती है इसलिए माता-पिता को लापरवाही से बचना चाहिए।



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22 साल तक लड़का रहीं, लोगों का बुरा बर्ताव झेला; अब ट्रांसवुमन बनकर रेस्त्रां चला रहीं

आज की पॉजिटिव खबर 27 साल की उरूज हुसैन की। वे नोएडा में स्ट्रीट टेम्पटेशन नाम का एक रेस्त्रां चलाती हैं। वे कहती हैं- मैं एक एंटरप्रन्योर हूं, सोशल वर्कर हूं। लेकिन, जब भी लोग मुझे देखते हैं तो मेरी पहली पहचान ट्रांसवुमन के तौर पर ही करते हैं। लोगों की नजर मे हमारी तस्वीर कुछ इस तरह की बन गई है कि उन्हें हम सिर्फ एक किन्नर के तौर पर ही नजर आते हैं।

उरूज कहती हैं- लोगों को लगता है कि हम या तो ताली बजाकर भीख मांगते हैं या हम सेक्स वर्कर्स होते हैं। लेकिन, असलियत इससे काफी अलग है। मुझे खुद पर गर्व होता है कि मैं समाज के बनाए स्टीरियोटाइप तोड़ कर, खुद के दम पर अपना रेस्त्रां चला रहीं हूं।

फैमिली ने कहा- लड़कों की तरह बर्ताव करो
उरूज बताती हैं, ‘मैंने भी एक सामान्य बच्चे की तरह जन्म लिया था। धीरे-धीरे मुझे एहसास होने लगा कि मेरा शरीर ही सिर्फ लड़कों जैसा है, लेकिन मेरी फीलिंग्स एक औरत जैसी हैं। इसी वजह से मुझे परिवार और समाज में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। मेरे दोस्त, फैमिली चाहती थी कि मैं एक लड़के की तरह बर्ताव करूं। मैंने कोशिश भी की, लेकिन मुझसे नहीं हो पाया।

उरूज बताती हैं कि मुझे खुद पर गर्व होता है कि मैं समाज के बनाए स्टीरियोटाइप तोड़ कर, खुद के दम पर अपना रेस्त्रां चला रहीं हूं।

इंटर्नशिप के दौरान लोग बुरा बर्ताव करते थे
उरूज ने कहा- बचपन में क्लास में भी लड़के मेरा मजाक बनाते और मुझे परेशान करते लेकिन मैंने हार नहीं मानी। स्कूल के बाद मैंने होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया और 2013 मे मैं दिल्ली आ गई। यहां एक इंटर्नशिप के दाैरान वर्कप्लेस पर मेरे साथ बहुत बुरा बर्ताव होता था। लोग मुझे गलत तरीके से छूने की कोशिश करते थे, मुझे परेशान करते थे।

इसके चलते मैंने खुद को लोगों से दूर रखना शुरू कर दिया। एक समय तो मैंने खुद को घर में बंद रखना तक शुरू कर दिया। तब मुझे लगने लगा था कि मैं हार चुकी हूं। लेकिन, तभी मैंने तय किया कि अगर मैं हिम्मत हार जाऊंगी, तो टूट जाऊंगी और मैं टूटना नहीं चाहती थी।

22 साल तक आइडेंटिटी से भागती रही
वो कहती हैं, ‘मैं अपनी आइडेंटिटी से भागती रही। 22 साल तक मैं दुनिया की नजर में एक लड़का थी। मैं वर्कप्लेस पर एक मेल एम्पलाई की तरह ही काम करती थी। लेकिन, कलीग्स हमेशा मुझे चिढ़ाते थे। मैं हमेशा कंफ्यूज रहती थी कि मैं क्या चाहती हूं। इससे पहले मुझे ट्रांजिशन के प्रोसेस के बारे में पता भी नहीं था, क्योंकि मैं बिहार के छोटे से शहर में रही थी।'

'साल 2014 में मैंने सोचा कि मुझे अब खुद को बदलना चाहिए। इसके लिए साइकोमैट्रिक टेस्ट कराने के बाद मैंने लेजर थेरेपी ट्रीटमेंट कराना शुरू किया। इस दौरान साल भर का वक्त ऐसा भी आया, जब मुझे घर पर ही रहना होता था। इस दौरान काफी मूड स्विंग्स, अकेलापन महसूस होता है। कई बार सुसाइडल थॉट्स भी आते थे। लेकिन, आज मैं अपनी बॉडी से खुश हूं। इससे पहले लगता था कि मैं किसी जेल में हूं।’

उरूज बताती हैं कि अभी रोजाना 4 से 5 हजार रुपए के ऑनलाइन ऑर्डर आते हैं। मैं इस रेस्त्रां को बढ़ाने के लिए लगातार मेहनत कर रही हूं।

एलजीबीटी फ्रैंडली हाेटल में 2 साल काम किया
उरूज बताती हैं, ‘2014 से 2015 के बीच मेरा हार्मोन ट्रांसफॉर्मेशनल पीरियड था। इसके बाद 2015 से 2017 तक मैंने दिल्ली में ही ललित होटल में काम किया। वहां मैंने एक फीमेल के तौर पर ही काम किया। चूंकि ललित ग्रुप एलजीबीटी कम्युनिटी को सपोर्ट करता है, इसलिए मुझे वहां किसी तरह की परेशानी नहीं हुई, ना ही किसी तरह का हैरेसमेंट फील नहीं हुआ।'

चूंकि मैंने हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट का कोर्स किया था, इसलिए इंटर्नशिप को दौरान ही तय कर लिया था कि कुछ अपना ही काम करना है। 22 नवंबर 2019 को मैंने नोएडा में एक रेस्त्रां की शुरुआत की। रेस्त्रां शुरू करने के पीछे मेरा एक और मकसद था कि इससे सभी ट्रांसजेंडर्स को खुद के दम पर कुछ करने और अपने आप को और मजबूत बनाने की प्रेरणा मिलेगी।

ट्रांसवुमन को शॉप देने तैयार नहीं हुए लोग
उरूज कहती हैं, 'एक ट्रांसवुमन होने की वजह से मुझे रेस्त्रां शुरू करने में काफी परेशान होना पड़ा। सबसे पहले तो मुझे शॉप मिलने में बहुत दिक्कतें आई। मुझे मेरे जेंडर की वजह से कोई शॉप देने को तैयार नहीं था। तब मेरे एक दोस्त अजय वर्मा ने मेरी मदद की, आज वो मेरे बिजनेस पार्टनर भी हैं।'

उरूज की परेशानियां यहीं खत्म नहीं हुईं। रेस्त्रां शुरू होने के 4 महीने बाद ही लॉकडाउन लग गया। वे कहती हैं- जुलाई में हमने दोबारा से रेस्त्रां खोला। अभी रोजाना 4 से 5 हजार रुपए के ऑनलाइन ऑर्डर आते हैं। मैं इस रेस्त्रां को बढ़ाने के लिए लगातार मेहनत कर रही हूं।

वो बताती हैं कि एक ट्रांसवुमन होने की वजह से रेस्त्रां शुरू में काफी परेशान होना पड़ा। शॉप मिलने में बहुत दिक्कतें आई।

हर शहर में रेस्त्रां खोलना चाहती हैं उरूज
उरूज कहती हैं, ‘मेरे रेस्त्रां पर जो कस्टमर आते हैं, उनका व्यवहार काफी अच्छा हाेता है। अभी रेस्त्रां में सात लोगों की टीम काम करती है। इनमें 2 शेफ हैं। मेरी ख्वाहिश है कि हर शहर में मेरे रेस्त्रां हों और उसे ट्रांसजेंडर्स ही चलाएं। मैं बस यही चाहती हूं कि ट्रांसजेंडर्स भी मेनस्ट्रीम में आएं। वे अपना बिजनेस करें, खुद को स्टेबिलिश करें।’

उरुज को बॉलीवुड से भी शिकायत है। वे कहती हैं कि बॉलीवुड मूवीज में ट्रांसजेंडर्स को या तो मजाक के तौर पर दिखाया जाता है या सेक्स सिंबल के रूप में। इसलिए सोसाइटी भी ट्रांसजेंडर्स को मजाक या सेक्स के नजरिए से ही देखती है। उरूज चाहती हैं कि बॉलीवुड में ट्रांसजेंडर्स को मीनिंगफुल किरदारों में दिखाना चाहिए, ताकि सोसाइटी को असल ट्रांसजेंडर्स के बारे में पता चल सके।



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उरूज हुसैन नोएडा में स्ट्रीट टेंपटेशन नाम का एक रेस्त्रां चलाती हैं। उन्होंने पिछले साल इसकी शुरुआत की थी।


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पति की मौत के बाद खुद सेना में जाने का संकल्प लिया, दो बार SSB से बाहर हुईं, तीसरी बार में बनी फ्लाइंग ऑफिसर

जम्मू की रहने वाली राधा चाडक हाल ही में एयरफोर्स में फ्लाइंग ऑफिसर बनी हैं। पति की मौत के बाद तमाम मुश्किलों से जूझते हुए उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है। 8 अगस्त 1992 को जम्मू के सांबा जिले के स्मैलपुर गांव में एक फौजी के घर जन्मी राधा बचपन से ही काफी टैलेंटेड थीं। आर्मी स्कूल से 12वीं करने के बाद उन्होंने जम्मू यूनिवर्सिटी में लॉ के लिए दाखिला लिया। अभी उनकी पढ़ाई पूरी नहीं हुई थी कि घर वालों ने 2015 में शादी कर दी।

जम्मू के ही एक गांव में एयरफोर्स में नॉन कमीशंड ऑफिसर CPL बूटा सिंह मन्हास से राधा की शादी हुई। इसके बाद 2016 में राधा ने अपनी पढ़ाई पूरी की और एक आम महिला की तरह घर के कामकाज संभालने में जुट गईं। इसके साथ ही वे जम्मू हाईकोर्ट में बतौर वकील प्रैक्टिस करने लगीं। इसी बीच 2017 में उन्हें एक बेटा हुआ। घर-गृहस्थी सब कुछ अच्छे से चल रहा था।

लेकिन 21 जून 2018, एक ऐसी मनहूस तारीख, जिसने राधा का सबकुछ छीन लिया। राधा के पति बरेली में पोस्टेड थे और वे घर आए हुए थे। अब उनका तबादला अंडमान हो गया था। अचानक 21 जून को उनके पति बूटा सिंह की हार्ट अटैक से मौत हो गई। राधा पर मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ा। 24 जून को जम्मू कश्मीर पुलिस में सब इंस्पेक्टर पोस्ट के लिए राधा को टेस्ट देना था। इस कठिन वक्त में भी राधा टेस्ट देने गईं, लेकिन बिना इम्तिहान दिए लौट आईं।

4 दिसंबर 2019 को आखिर वह तारीख आ ही गई जिसका राधा ने पूरी शिद्दत से इंतजार किया था। राधा SSB के लिए सेलेक्ट हो गईं।

फिर शुरू हुई मजबूत इरादों की कहानी

भीतर से टूट चुकीं राधा ने अपने आप को यह समझाकर मजबूत किया के जिस ब्लू यूनिफॉर्म को उसके पति छोड़ गए हैं, अब वही उन्होंने पहननी है। वे कहती हैं, 'मैंने सोचा लिया था कि जाना तो एयरफोर्स में ही है, देश की सेवा अब ब्लू यूनीफार्म में ही करनी है। लॉ किया था तो सोचा जज एडवोकेट जनरल (JAG) का टेस्ट दिया जाए। इसके बारे में जानकारी के लिए अपने पिताजी के साथ एयरफोर्स स्टेशन गई तो पता चला के इसके लिए एलिजिबल नहीं हूं।

इसके बाद भी राधा का कॉन्फिडेंस कमजोर नहीं हुआ। इसी दौरान उन्हें पता चला कि AFCAT यानी एयरफोर्स कॉमन एंट्रेंस टेस्ट के लिए वे अप्लाई कर सकती हैं। इसके बाद 2 सितंबर को कोचिंग के लिए वे दिल्ली चली गईं। जबकि 16 सिंतबर को उनका टेस्ट था।

फ्लाइंग ऑफिसर राधा अपने बेटे के साथ। 2015 में उनकी शादी हुई थी और 2017 में बेटे का जन्म हुआ।

पहला मौका था, तैयारी भी कम थी। राधा स्क्रीनिंग में बाहर हो गईं, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। दिसंबर 2018 में फिर से टेस्ट दिया और इस बार वे कॉन्फ्रेंस आउट हो गईं। अब जज्बा और मजबूत किया। वापस आकर दिन में कोर्ट में प्रैक्टिस, दोपहर बाद कुछ बच्चों को होम ट्यूशन और सुबह और शाम ग्राउंड में फिजिकल टेस्ट की तैयारी और रात को पढ़ाई करने लगीं। ये राधा का डेली रूटीन हो गया।

एक साल बाद यानी 4 दिसंबर 2019 को आखिर वह तारीख आ ही गई जिसका राधा ने पूरी शिद्दत से इंतजार किया था। राधा SSB के लिए सेलेक्ट हो गई और 4 जनवरी 2020 को ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद की एयरफोर्स एकेडमी पहुंचीं। इसी साल 18 दिसंबर को उनकी ट्रेनिंग पूरी हुई और अगले दिन देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के सामने कमीशन लेकर वे फ्लाइंग ऑफिसर बनीं। राधा की पहली पोस्टिंग चंडीगढ़ में हुई है जहां वे कुछ ही दिनों में जॉइन करेंगी।

राधा कहती हैं कि मुश्किल हालात से गुजरते हुए यहां तक पहुंचना आसान नहीं था। इस सफर में उनके पिता का अहम योगदान रहा है। उन्होंने राधा को हिम्मत तो दी ही साथ ही एक साल का बच्चे के हर वक्त ध्यान भी रखा। इसके साथ ही ग्रुप कैप्टन कमल सिंह ने भी उन्हें गाइड किया।

एक लॉयर के तौर पर प्रैक्टिस के दौरान राधा चाडक। शादी के बाद पढ़ाई पूरी करने के बाद वे कोर्ट में प्रैक्टिस करने के लिए जाती थीं।

मेरी बेटी पर आज देश को नाज

फ्लाइंग ऑफिसर राधा चाडक के पिता सूबेदार मेजर TS चाडक कहते हैं कि उनकी बेटी पर उन्हें ही नहीं देश को नाज है। जब लोग उनसे उनकी बेटी की बात करते हैं तो उनका सीना चौड़ा हो जाता है। वे कहते हैं कि मुझे भरोसा है कि अब राधा एयरफोर्स में अपने काम से भी देश का नाम ऊंचा करेगी। राधा के दो भाई हैं, दोनों इंजीनियर हैं।



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जम्मू की रहने वाली राधा चाडक हाल ही में एयर फोर्स में फ्लाइंग ऑफिसर बनी हैं।


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बच्चे पैदा करना और पालना-पोसना जनाना फर्ज है, मर्द का काम तो औरत नाम के खेत में बस बीज डालना है

भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली ऑस्ट्रेलिया में मैच छोड़कर पत्नी अनुष्का के साथ रहने भारत लौट आए। अनुष्का की प्रेग्नेंसी का ये आखिरी चरण है और विराट उनके साथ रहना चाहते हैं। कितना सहज और जरूरी फैसला! लेकिन विराट को नई जिम्मेदारी के लिए हौसला देने के बजाए लानत भेजी जा रही है। धोनी की मिसालें दी जा रही हैं। दरअसल, 2015 में धोनी की पत्नी साक्षी ने जब बेटी को जन्म दिया था, तब वे ऑस्ट्रेलिया में थे। मीडिया ने पूछा कि क्या आप साक्षी के साथ को मिस कर रहे हैं तो धोनी ने तपाक से कहा- कतई नहीं। फिलहाल मैं देश की ड्यूटी पर हूं, बाकी सबकुछ इंतजार कर सकता है।

धोनी को अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि उनकी ये बात राजनीति से अघाए ट्रोलर्स को कैसा तर माल दे देगी। गनीमत है कि विराट के मैच छोड़कर लौटने को सीधे देशद्रोह नहीं कहा जा रहा। 'लानत विराट' के कोरस से सोशल मीडिया का चप्पा-चप्पा आबाद है। देशभक्ति का पहाड़ा सुना रहे इन लोगों को गौर से सुनें तो बड़ी जानी-पहचानी बातें सुनाई देती हैं। जैसे प्रेग्नेंट बीवी के लिए कोई इतना बड़ा मौका छोड़कर आता है क्या! या फिर- बच्चा पैदा करना तो औरत का काम ही है। इसके लिए आदमी को घर बैठने की क्या जरूरत!

सूर्य की बजाए हमारी धरती इसी बात के इर्द-गिर्द डोल रही है कि बच्चे पैदा करना और पालना-पोसना जनाना फर्ज हैं। मर्द का काम औरत नाम के खेत में बीज डालना है, सो वो बखूबी करता है। अब ऐसी दुनिया में विराट ने मजाक उड़ाने लायक काम ही तो किया। वो लौटे ताकि अपनी दर्द में तड़पती बीवी का हाथ थाम सकें। ताकि बच्चे की पहली आवाज सुन सकें। ताकि जिस बच्चे के पिता वो कहलाने वाले हैं, उसके हर पल का गवाह हो सकें। ऐसी कितनी ही वजहों के बीच विराट के लौटने की एक वजह शायद ये भी हो कि बच्चे के लिए रतजगा वे अनुष्का के साथ बांट सकें।

कल्पना करें, उस औरत की, जो बच्चे को 9 महीनों तक शरीर का सारा कैल्शियम-प्रोटीन, रक्त-मज्जा देती है। उसे दुनिया में लाने के लिए शरीर पर तेज नश्तर सहती है। गर्भ नाम का तोहफा खुद कुदरत ने औरत को दिया तो यहां तक का काम उसी का है। लेकिन इससे आगे! ये किसने तय किया कि जर्जर शरीर के साथ भी रातों को जागना औरत की ही जिम्मेदारी है। प्रसव के बाद निचुड़ चुके शरीर के साथ मांएं लगभग पूरी-पूरी रात जागती हैं। बच्चा सोए तो भाग-भागकर घर के बाकी काम निपटाती हैं। नींद की कमी से आंखों के नीचे काला परदा झूल आता है। इंची-टेप में कसा शरीर बेडौल और आवाज में झुंझलाहट भर आती है।

दूसरी ओर मर्द का रुटीन सेट रहता है। वो सुबह चाय के साथ अखबार पढ़ता है और खा-पीकर दफ्तर को निकल पड़ता है। शाम को लौटते वक्त दोस्तों के साथ खुशगप्पियां करता और घर पहुंचते ही बेदम हो सबसे पहली कुर्सी पर गिर पड़ता है। बीवी बेचारी लपक कर पंखे चलाती और चाय हाजिर करती है। घर के तमाम हंगामे रुक जाते हैं कि थका शौहर थोड़ा आराम कर सके। मुर्गी, हलवा, पोस्ता की दाल और कटहल पकाने की फरमाइश के बीच औरत भाग-भागकर काम निपटाती है। रात में बच्चे के रोने पर अपराध से दबी-झुकी झट बिस्तर छोड़ उसे घुमाते हुए सुलाने लगती है और मर्द पिता पीठ फेर दोबारा सो जाता है।

पति-पत्नी से मां-बाप दोनों एक ही वक्त पर बने, तब ये फर्क कैसा?

अपनी बताती हूं। मां बनी तो सलाह देने को कोई पास था नहीं। न्यूक्लियर फैमिली। सातवें दिन पति के उदार मैनेजर ने मजाकिया लहजे में तंज कसा, 'क्या सीधे बेटी की शादी के बाद लौटोगे!' फोन के उस पार से हंसी की आवाज आ रही थी। फोन के इस पार भी झेंपी हुई हंसी थी। दो रोज बाद पति दफ्तर लौट गए। सी-सेक्शन के 10वें दिन मैं, घर और बच्चा। उस पर जनवरी की जमा देने वाली ठंड। नहीं कहूंगी कि उस मैनेजर पर मेरा गुस्सा अब तक खत्म हो सका है।

लेकिन मेरे या किसी भी औरत के गुस्से से फर्क ही क्या पड़ता है। जहां विरोध करो, तुरंत सवालों का तमंचा तन जाता है। तुम पढ़ी-लिखी औरतें क्या पैटरनिटी लीव का राग अलापती हो। हमारे यहां तो बच्चा कब पल जाता है, बाप को पता ही नहीं लगता। सही बात है। पिता के बच्चा संभालने की बात ही तब आती है, जब मां या तो मर जाए या कोमा में चली जाए। उससे पहले मां को कोई छुटकारा नहीं।

साल 2015 में फेसबुक के CEO मार्क जुकरबर्ग ने पिता बनने पर दो महीने की छुट्टी ली थी, तो मर्दानी धरती जैसी डोल ही उठी थी। किस्म-किस्म के कयास लगे कि मार्क आखिर इन दो महीनों में करने क्या वाले हैं। कइयों ने एलान कर दिया कि छुट्टी में मार्क कोई किताब लिख डालेंगे। किसी ने भी ये नहीं कहा कि मार्क छुट्टियों में और बिजी रहने वाले हैं, मार्क को अपना रुटीन बच्चे के हिसाब से सेट करना होगा। या कि मार्क की रातों की नींद अब हराम होने वाली है। इन सारे कयासों की जगह ये सोचा गया कि छुट्टी लेकर मार्क किताब लिखने वाले हैं। मार्क लौट आए। बगैर कोई किताब लिखे। केवल बच्चे और मां के साथ समय बिताकर।

इस वाकये को पांच साल बीते। काफी कुछ बदला। जापान अंतरिक्ष में लकड़ी का सैटेलाइट भेजने वाला है ताकि प्रदूषण न हो। चीन ने अपने यहां गरीबी खत्म करने की मुनादी पिटवा दी। अमेरिका में रिपब्लिकन को हटाकर डेमोक्रेट्स सत्ता में होंगे। कितना कुछ बदला, लेकिन नहीं बदला तो मांओं को लेकर हमारा नजरिया।

भारत 187 में से उन 90 देशों में है, जहां पैटरनिटी लीव को लेकर कोई पक्की पॉलिसी नहीं। जिन निजी कंपनियों में नए पिता को थोड़ी-बहुत छुट्टियां दी भी जा रही हैं, वहां पिता खुद छुट्टियां लेने को राजी नहीं। क्यों भाई? क्योंकि उन्हें डर है कि छुट्टियों से लौटेंगे तो उनका प्रमोशन रुक जाएगा। या साथी उन्हें जोरू का गुलाम कहेंगे। जेंडर इक्वैलिटी पर काम करने वाली अमेरिकी संस्था प्रोमुंडो (Promundo) के सर्वे में 80 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय मर्दों ने माना कि बच्चे की नैपी बदलना, उसे खिलाना या नहलाना औरतों का काम है।

सर्वे करके खलीफागिरी करने वाला अमेरिका भी कोई तीर नहीं मार रहा। वहां भी पिता बनने पर छुट्टी लेने वालों को कंपनी अच्छी नजर से नहीं देखती। छुट्टियां तो अवैतनिक होती ही हैं, साथ ही ऐसे पिताओं का मर्दानापन भी थोड़ा कम हो जाता है। सर्कल में उन्हें 'अलग' नजर से देखा जाता है।

कुल मिलाकर जितनी रिसर्च करो, तस्वीर उतनी साफ है कि ट्रोलर्स की बारात विराट के पीछे क्यों पड़ी। फिलहाल पांच दिनों बाद वक्त अपनी जिल्द बदल रहा है। साल 2021। साइंस इतनी तरक्की कर चुका कि शरीर का हर हिस्सा मर्जी से बढ़ा-घटा सकते हैं, सिवाय दिल और दिमाग के। तो इस साल क्यों न शरीर के इन कलपुर्जों को हवा-पानी दें ताकि विराट की ट्रोलिंग पर वक्त की फिजूलखर्ची छोड़ बाकी मर्द भी ऐसा ही फैसला कर सकें। यकीन जानिए, गर्भवती बीवी की देखभाल या प्रसव के दौरान उसका साथ आपको कतई कम मर्द नहीं बनाएगा, बल्कि रिश्ता कुछ मजबूत ही करेगा।



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It is a duty to raise children and raise children, the man's job is to just add seeds to a field called a woman.


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हर सेक्टर पर मार, फिर भी ना मानी हार; सिनेमाघर बंद हुए तो OTT पर आए, स्टेडियम में रोबोट बैठाए, पर खेले जरूर

देश की जीडीपी हो या आम आदमी का एंटरटेनमेंट, 2020 में हर सेक्टर पर कोरोना का गहरा असर पड़ा। सिनेमाघर महीनों बंद रहे। टूरिज्म इंडस्ट्री ठप पड़ गई। ऑटो से एविएशन तक, हर जगह कोरोना का असर साफ दिखा। लेकिन, इस मुश्किल साल में भी हमने कुछ नए रास्ते निकाले। कुछ कदम ऐसे उठाए जो नई उम्मीद और भरोसा जगाते हैं।

आइए जानते हैं एंटरटेनमेंट, ऑटो, हेल्थ, एजुकेशन, इकोनॉमी, टूरिज्म और स्पोर्ट्स स सेक्टर के लिए बीता साल कैसा रहा और इन सेक्टर्स में आने वाले साल से क्या उम्मीदें हैं...

1. एंटरटेनमेंट : सिनेमाघर खुलें न खुलें, हमने तो OTT पर बंदोबस्त कर लिया

  • इस साल बॉक्स ऑफिस ने कमाए सिर्फ 826 करोड़ रुपए। पिछले साल 5,000 करोड़ से ज्यादा कमाए थे यानी 84% कम हो गया। ओवर-द-टॉप यानी OTT का रेवेन्यू 21,800 करोड़ रुपए हो सकता है। OTT का रेवेन्यू इस साल 26% बढ़ने का अनुमान है।
  • OTT के सब्सक्राइबर 47% बढ़े। ब्रॉडबैंड इंडिया फोरम (BIF) के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान OTT पर 65% कंटेंट गांवों में देखा गया।
  • OTT पर बड़े बजट की फिल्मों की सिर्फ लागत निकली तो छोटी फिल्मों को मुनाफा भी हुआ।
  • अक्षय कुमार की 'लक्ष्मी' के डिजिटल राइट्स 125 करोड़ में बिके, जबकि अक्षय की फीस ही करीब 100 करोड़ (साइनिंग अमाउंट+प्रॉफिट शेयरिंग) थी। फिर दूसरे आर्टिस्ट्स और फिल्म की टीम की फीस।
  • 25 करोड़ में बनी 'लूडो' ने 35 करोड़ में राइट्स बेचे। इसी तरह विद्या बालन की 'शकुंतला देवी' का बजट भी 25 से 30 करोड़ के आसपास था और इसके डिजिटल राइट्स बिके 40 करोड़ में।

आगे क्याः 2022 तक OTT का रेवेन्यू 33,800 करोड़ रुपए तक पहुंचने की उम्मीद है। फिल्म इंडस्ट्री के हालात मार्च 2021 से पहले सुधरने की ज्यादा उम्मीद नहीं है।

2. इकोनॉमी : गिरे, लेकिन तेजी से संभलेंगे

  • 4 साल से GDP गिर ही रही थी। फाइनेंशियल ईयर 2020-21 की पहली तिमाही में GDP में 18% की गिरावट का अनुमान था, लेकिन असल में गिरावट आई 23.9% की।
  • पहली तिमाही में एग्रीकल्चर ही एकमात्र सेक्टर था, जिसमें 3.4% की बढ़त रही थी। बाकी सभी सेक्टर में गिरावट थी। मैनुफैक्चरिंग सेक्टर 39.3% गिर गया था।
  • दूसरी तिमाही में GDP में 12% तक की गिरावट का अनुमान था, लेकिन गिरावट आई 7.5% का। इस बार एग्रीकल्चर में 3.4% और मैनुफैक्चरिंग में 0.6% की बढ़त आई थी।

आगे क्याः SBI के अनुसार पूरे 2020-21 के दौरान देश की GDP में 7.4% की गिरावट आ सकती है। पहले यह अनुमान 10.9% का था। हालात सुधरने लगे हैं, लेकिन IMF का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को कोरोना काल से पहले जैसी स्थिति में पहुंचने में 2 से 3 साल लग सकते हैं।

3. ऑटो सेक्टर : महंगी नहीं तो सस्ती ही सही, लेकिन गाड़ी जरूर खरीदेंगे

  • 15 महीने की मंदी पहले से ही थी। फिर लॉकडाउन हो गया। पार्लियामेंट्री पैनल की रिपोर्ट बताती है कि लॉकडाउन में ऑटो इंडस्ट्री को रोजाना करीब 2,300 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
  • सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) के मुताबिक, जनवरी से जुलाई तक देश में टू-व्हीलर और फोर-व्हीलर की बिक्री बेहद कम हुई, लेकिन अगस्त के बाद से इसमें तेजी आने लगी।
  • इस साल अगस्त से नवंबर तक 70.61 लाख टू-व्हीलर और 10.61 लाख फोर-व्हीलर बिके। 2019 में इसी दौरान 63.37 लाख टू-व्हीलर और 9.28 लाख फोर-व्हीलर बिके थे। यानी इन 4 महीनों में 11% टू-व्हीलर और 14% फोर-व्हीलर ज्यादा बिके।

आगे क्या : अमेरिका की कंसल्टेंसी अर्बन साइंस के मुताबिक, देश में अब 10 लाख से कम कीमत की गाड़ियों की डिमांड रहेगी। 20 लाख से ऊपर की गाड़ियों की डिमांड कम होगी। हालात 2021 की तीसरी तिमाही के बाद ही सुधरने की उम्मीद है।

4. टूरिज्म : इस बार तो कम टूरिस्ट आए, 2 साल में सब ठीक हो जाएगा

  • देश में हर साल एक करोड़ से ज्यादा विदेशी पर्यटक आते थे, लेकिन इस बार सिर्फ 24.62 लाख ही पहुंचे।
  • इस साल विदेशी पर्यटकों से 44,203 करोड़ रुपए की कमाई हुई, जबकि, पिछली बार 2.11 लाख करोड़ रुपए कमाए थे।
  • कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) के अनुसार 2020-21 में टूरिज्म इंडस्ट्री को 72 हजार करोड़ से लेकर 1.58 लाख करोड़ रुपए तक का नुकसान हो सकता है।

आगे क्या : इंस्टीट्यू़ट ऑफ रिस्क मैनेजमेंट का अनुमान है कि टूरिज्म इंडस्ट्री को 2019 के लेवल पर पहुंचने में 2022 तक का समय लग सकता है।

5. एविएशन : एयरलाइन कंपनियों को घाटा तो हुआ, 4 साल में भरने लगेगा उड़ान

  • देश में हर साल तकरीबन 14 करोड़ डोमेस्टिक और 6 करोड़ इंटरनेशनल पैसेंजर्स हवाई यात्रा करते हैं।
  • एक्सपर्ट हर्षवर्धन का कहना है कि एविएशन के इतिहास में पहली बार पायलट्स की नौकरियां गईं।
  • क्रिसिल के मुताबिक, 2020 से 2022 के बीच इंडियन एयरलाइंस कंपनियों को 1.3 लाख करोड़ का नुकसान हो सकता है।
  • लोकसभा में सरकार ने बताया था कि अप्रैल से जून 2020 तक देश की एयरलाइन कंपनियों को 21,866 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था।

आगे क्या : इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA), एयरपोर्ट काउंसिल इंटरनेशनल (ACI) और इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन (ICAO) का अनुमान है कि दुनियाभर की एविएशन इंडस्ट्री को 2019 के लेवल पर पहुंचने में 3 से 4 साल का वक्त लग सकता है।

6. एजुकेशन : ऑनलाइन पढ़ेगा इंडिया, तभी तो आगे बढ़ेगा इंडिया

  • चीन के बाद भारत में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्कूल नेटवर्क है। कोरोना के कारण 15 लाख से ज्यादा स्कूल बंद हो गए। 32 करोड़ से ज्यादा बच्चों पर असर पड़ा।
  • सरकार और UGC ने मिलकर स्वयं ऑनलाइन कोर्सेस, e-PG पाठशाला, स्वयंप्रभा, यूट्यूब चैनल, शोधगंगा, e-शोध सिंधु, विद्वान, दीक्षा, e-पाठशाला जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म शुरू किए।
  • कुछ दिक्कतें भी हुईं, क्योंकि 27% बच्चों के पास न स्मार्टफोन था और न लैपटॉप। वहीं 33% बच्चे ऑनलाइन क्लास के दौरान पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाए। मैथ्स और साइंस को समझने में दिक्कत हुई।
  • नई शिक्षा नीति में ऑनलाइन एजुकेशन पर Online and Digital Education: Ensuring Equitable Use of Technology नाम से नया चैप्टर जोड़ा गया।

आगे क्या : inc42 के मुताबिक, अगले 5 साल में देश में एजुकेशन टेक्नोलॉजी का मार्केट 3.7 गुना बढ़ सकता है। 2020 में एजुकेशन टेक्नोलॉजी का मार्केट 2.8 अरब डॉलर था, जो 2025 तक 10.4 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।

7. हेल्थ : इम्यूनिटी के लिए अदरक का इस्तेमाल 21.6% बढ़ा

  • सर्वे एजेंसी aipalette के मुताबिक, जनवरी से अप्रैल के बीच 31% लोगों ने हेल्दी खाने को पसंद किया, जबकि 30% लोगों ने टेस्ट को अहमियत दी।
  • 2020 में लोगों के खाने में सब्जियां 27.5% और फल 13.4% बढ़ गए। जोर इम्यूनिटी बढ़ाने पर था इसलिए अदरक का इस्तेमाल 21.6% और अश्वगंधा का इस्तेमाल 31.7% बढ़ा।
  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद के एक्सपर्ट डॉ. हरीश भाकुनी बताते हैं कि कोरोना काल में लोगों ने गर्म और ताजा खाना खाया। ठंडा पानी पीना बंद किया। इसका असर गले से लेकर पेट तक हुआ। उनका खाना आसानी से पचा और सर्दी-खांसी-जुकाम का खतरा भी कम हुआ।
  • लॉकडाउन में लोगों को जंक फूड नहीं मिला। संक्रमण से बचने के लिए भी लोग इससे दूरी बनाए रहे। नॉनवेज भी कम खाया।
  • वियरेबल प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनी GOQii के अनुसार लॉकडाउन के दौरान 70% लोगों ने घर का खाना ही खाया, जबकि 19% लोगों ने महीने में एक बार बाहर का खाना लिया।

आगे क्या : अब लोग बाहर होटल-रेस्टोरेंट पर खाने की बजाय घर पर ही खाना ऑर्डर करेंगे। इसके साथ ही अब हाइजीन वाले खाने को तरजीह देंगे।

8. स्पोर्ट्स : नियम भी बदले और दर्शकों की जगह रोबोट बैठे

  • सोशल डिस्टेंसिंग के लिए सभी खेलों में खिलाड़ियों पर मिलकर जश्न मनाने पर रोक लग गई। क्रिकेट में बॉल चमकाने के लिए लार के इस्तेमाल को बैन कर दिया। इस बार IPL तो हुआ, लेकिन बिना दर्शकों के। मैच के दौरान चौके-छक्के लगने पर रिकॉर्डेड शोर का इस्तेमाल किया गया।
  • जर्मनी में 16 मई को फुटबॉल की बुंदेसलीगा हुई, जिसमें गोल करने के बाद खिलाड़ियों ने गले मिलकर जश्न मनाने की बजाय कोहनी मिलाई। डेनमार्क की दानिश सुपर लीग के दौरान स्टेडियम में टीवी स्क्रीन लगाई गईं। इन पर ऐप के जरिए लाइव मैच देख रहे फैन्स को दिखाया गया।
  • ताइवान में भी चाइनीज लीग के दौरान फैंस के कटआउट और डमी लगाई गईं। दर्शकों की जगह रोबोट बैठाए गए। चीयरलीडर्स ने भी रोबोट के सामने परफॉर्म किया। टोक्यो ओलंपिक्स 2021 तक टाल दिया गया।

आगे क्या : IPL में शुरू हुआ बायो-बबल का ट्रेंड 2021 में बना रह सकता है। बायो बबल यानी खिलाड़ियों को होटल से बाहर आने-जाने की इजाजत नहीं होती है। हालांकि, कुछ देशों में दर्शकों को स्टैंड्स में मौजूद रहने की मंजूरी दी जा चुकी है। भारत-ऑस्ट्रेलिया सीरीज में दर्शक मौजूद हैं।



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GDP India: Auto Tourism Airline Companies Losses; Coronavirus Impact | Sector Wise Performance India 2020 Updated | Year-Ender 2020 Latest News Update


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UK के बाद दक्षिण अफ्रीका और नाइजीरिया में सामने आए कोरोना के नए स्ट्रेन; जानिए क्या होगा वैक्सीन पर असर

कोरोनावायरस का एक और नया स्ट्रेन मिला है। नया स्ट्रेन यानी कोरोना का नया रूप। अभी कुछ दिन पहले यह UK में मिला था और अब दक्षिण अफ्रीका के साथ ही नाइजीरिया में ये नए स्ट्रेन सामने आए हैं

इन खबरों के बीच भारत ने फिलहाल UK से आए पैसेंजर्स का RT-PCR टेस्ट जरूरी कर दिया है। ताकि वे नए स्ट्रेन के कैरियर न बनें और अपने देश में नया कोरोना न फैलने लगे। इन सबके बीच नए स्ट्रेन कई तरह के सवाल खड़े कर रहे हैं। मसलन- क्या नए स्ट्रेन से कोरोना का वायरस तेजी से फैलेगा? क्या जांच के मौजूदा तरीके इन स्ट्रेन का पता लगा सकते हैं? जो वैक्सीन बन रही हैं, क्या यह नए स्ट्रेन पर असर करेंगी? आइए समझते हैं, इसके बारे में विशेषज्ञ क्या कहते हैं...

क्या इन बदलावों से वैक्सीन पर असर पड़ेगा?

फिलहाल तो नहीं पड़ेगा। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के पूर्व साइंटिस्ट डॉ. रमन गंगाखेड़ेकर के मुताबिक, जो वैक्सीन बन रही हैं, वह पूरे स्पाइक प्रोटीन को ध्यान में रखकर बनाई जा रही हैं। इस समय वायरस के एक हिस्से में बदलाव दिखा है। इसके आधार पर यह नहीं कह सकते कि नई वैक्सीन की जरूरत पड़ेगी।

तो क्या जो वैक्सीन बन रही हैं, वह कारगर होगी?

हां, बिल्कुल। देश की टॉप वैक्सीन साइंटिस्ट वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर डॉ. गगनदीप कंग का कहना है कि जो वैक्सीन बन रही हैं, वह स्पाइक प्रोटीन के अलग-अलग हिस्सों को टारगेट करती हैं। वायरस के खिलाफ न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी बनाती हैं। इस समय वायरस में कुछ बदलाव दिखे हैं, जिससे वैक्सीन की एफिकेसी पर असर नहीं पड़नी चाहिए। पर उन्होंने चेताया भी कि इन म्युटेशन पर नजर रखी जा रही है। अगर यह तेजी से बढ़े और बड़ी संख्या में होते चले गए तो हो सकता है कि हमें नई वैक्सीन बनाने पर काम करना पड़े। पर घबराने की जरूरत नहीं है। यह बदलाव एकाएक नहीं होगा। इसमें महीने या वर्ष भी लग सकते हैं। इस समय वैज्ञानिक स्टडी कर रहे हैं। जैसी परिस्थिति बनेगी, उस अनुसार स्ट्रैटजी बनाई जाएगी।

वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां क्या कह रही हैं?

वैक्सीन बना रही फाइजर, मॉडर्ना समेत अधिकांश कंपनियों का दावा है कि उनकी वैक्सीन कोरोना के नए स्ट्रेन पर भी कारगर होगी। बदलते वायरस का उनकी वैक्सीन की इफेक्टिवनेस पर असर नहीं होने वाला। अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल यानी CDC के मुताबिक अगर वायरस को नेचुरल इंफेक्शन या वैक्सीन के असर से बचना है तो उसके स्पाइक प्रोटीन को कई और म्युटेशन से गुजरना होगा। WHO ने भी कहा है कि लैबोरेटरी स्टडी हो रही हैं। इसमें देखा जा रहा है कि क्या इन नए वायरस के जैविक गुणों में कोई बदलाव तो नहीं है। इस समय वैक्सीन की इफेक्टिवनेस पर स्ट्रेन से जुड़ी पर्याप्त जानकारी नहीं है।

क्या है कोरोनावायरस में हो रहे बदलाव?

हर जीवित प्राणी की तरह वायरस में भी बदलाव हो रहे हैं। SARS-CoV-2 यानी कोरोनावायरस जैसे RNA वायरस में प्रोटीन अमीनो एसिड्स के खास सीक्वेंस से बनते हैं। सरल शब्दों में अगर वायरस एक दीवार तो उसमें लगने वाली ईटें अमीनो एसिड्स। कोरोना जैसे वायरस में 30 हजार बेस पेयर होती हैं यानी 30 हजार ईटें। जैसे ही इन बेस पेयर की पोजिशन बदलती है, उस वायरस का आकार और व्यवहार बदल जाता है। खास तौर पर इंसानों के शरीर को इंफेक्ट करने वाले स्पाइक प्रोटीन का व्यवहार बदल जाता है। ब्रिटेन में जो वैरिएंट मिला, उसे VUI 202012/01 नाम दिया है। अब तक की रिसर्च से पता चला कि यह पहले के मुकाबले 70% अधिक तेजी से फैलता है। गहराई से जांच करने पर पता चला कि 14 बदलाव हुए हैं और पुराने वायरस के मुकाबले जेनेटिक मटेरियल में 3 सिक्वेंस डिलीट भी हुए हैं।

इन बदलावों से खतरा क्यों बढ़ गया है?

कोरोनावायरस के आकार में हुए बदलाव उस जगह हुए हैं, जहां से यह इंसानों के शरीर में प्रवेश करते हैं। यानी शरीर को इंफेक्ट करते हैं। अमीनो एसिड्स के जो सीक्वेंस डिलीट हुए हैं, वह भी उस जगह पर है, जहां से वे इंसानों से जुड़ते हैं। WHO का कहना है कि अमीनो एसिड्स के डिलीट होने से कुछ RT-PCR टेस्ट की परफॉर्मेंस प्रभावित हो सकती है। फिर भी दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता।

अब तक किस तरह के बदलाव हुए हैं?

कोरोनावायरस में कई तरह के बदलाव हुए हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार है-

N501Y: ब्रिटेन में यह स्ट्रेन मिला है। इसमें अमीनो एसिड को N लिखा गया है। यह कोरोनावायरस के जेनेटिक स्ट्रक्चर में पोजिशन-501 पर था। इसे अब Y ने रिप्लेस कर लिया है।
P681H: नाइजीरिया में मिले इस कोरोनावायरस स्ट्रेन में पोजिशन-681 पर अमीनो एसिड P को H ने रिप्लेस कर दिया है। अमेरिका के CDC के मुताबिक, इस पोजिशन में बदलाव कई बार हो चुका है।
HV 69/70: यह स्ट्रेन कोरोनावायरस में पोजिशन-69 और 70 पर अमीनो एसिड्स के डिलीट होने का नतीजा है। फ्रांस और दक्षिण अफ्रीका में भी वायरस में यह बदलाव दिखा है।
N439K: ब्रिटेन में कोविड-19 जेनोमिक्स कंसोर्टियम (CoG-UK) के रिसर्चर्स ने इस नए वैरिएंट के बारे में बताया था। इसमें पोजिशन-439 पर स्थित अमीनो एसिड N को K ने रिप्लेस किया है।



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Coronavirus New Strain UK Australia South Africa Nigeria Update; What Is COVID Mutation Explain? Everything We Need to Know


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16 साल पहले आई थी भयानक सुनामी, 13 देशों में 2 लाख से ज्यादा लोग मारे गए, समंदर में तैर रहे थे शव

26 दिसंबर 2004 को हिंद महासागर में आई सुनामी लहर ने भारत समेत दुनिया के कई देशों में भारी तबाही मचाई थी। हिंद महासागर में आए 9.1 की तीव्रता वाले भूकंप के बाद सुनामी की जिस तरह की लहरें उठी थीं, उनके बारे में कहा गया था कि ऐसी लहरें पिछले 40 सालों में नहीं देखी गईं। ये लहरें 65 फीट ऊंची उठी थीं।

अकेले भारत में ही सुनामी से 12 हजार 405 लोग मारे गए थे और 3 हजार 874 लापता हो गए थे। करीब 12 हजार करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ था। सबसे ज्यादा 8 हजार 9 मौतें तमिलनाडु में हुई थीं। 3 हजार 513 लोग अंडमान-निकोबार में मारे गए थे। इनके अलावा पुड्डुचेरी में 599, केरल में 177 और आंध्र प्रदेश में 107 मौतें हुई थीं। जबकि, श्रीलंका में 13 और मालदीव में 1 भारतीय की मौत हुई थी।

इसके अलावा 12 देशों को मिलाकर मरने वालों की तादाद 2 लाख से भी ऊपर थी। सबसे ज्यादा नुकसान इंडोनेशिया में हुआ था। यहां 1.28 लाख लोग मारे गए और 37 हजार से ज्यादा लोग लापता हो गए थे। उसके बाद श्रीलंका था, जहां 35 हजार से ज्यादा लोग या तो मारे गए थे या लापता हो गए थे।

ये चौथी प्राकृतिक आपदा थी, जिसमें सबसे ज्यादा जानें गई थीं। इससे पहले 1931 में चीन में आई बाढ़ में 10 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे। उसके बाद 1970 में बांग्लादेश में आए साइक्लोन ने 3 लाख जानें ले ली थीं। 1976 में चीन में ही एक भूकंप में 2.55 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।

पानी की ऊंची-ऊंची लहरें जब 800 किलोमीटर प्रति घंटे की तेज रफ्तार से तटीय इलाकों में दाखिल हुईं, तो लोगों को संभलने के लिए कुछ सेकंड भी नहीं मिले। इसके बाद भारत, श्रीलंका, इंडोनेशिया जैसे देशों से सैकड़ों लोगों की जान जाने की खबरें आने लगीं। भारत के कई सैकड़ों मछुआरे लापता हो गए थे। बाद में इनके शव समुद्र से बहकर वापस आए थे।

क्या था इतनी भयानक सुनामी का कारण?

  • सुनामी के कारण जानने के लिए वैज्ञानिकों ने कई सालों तक रिसर्च की। इसके बाद 26 मई 2017 को जर्नल साइंस में एक रिसर्च पब्लिश हुई। रिसर्च में आया कि 26 दिसंबर 2004 को आई इस तबाही का कारण हिमालय पर्वत था।
  • दरअसल, सुमात्रा में आए भूकंप का केंद्र हिंद महासागर में 30 किलोमीटर की गहराई में रहा, जहां भारत की टेक्टोनिक प्लेट आस्ट्रेलिया की टेक्टोनिक प्लेट के बॉर्डर को छूती हैं।
  • सैकड़ों सालों से हिमालय और तिब्बती पठार से कटने वाली तलछट गंगा और अन्य नदियों के जरिए हजारों किलोमीटर तक का सफर तय कर हिंद महासागर की तली में जाकर जमा हो जाती हैं।
  • हिंद महासागर की तली में जमा होने वाली ये तलछट प्लेटों के बॉर्डर पर भी इकट्टा हो जाती हैं, जिसे सब्डक्शन जोन भी कहते हैं, जो तबाही मचाने वाली सुनामी का कारण बनती हैं।

भारत और दुनिया में 26 दिसंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं :

  • 2012 : चीन की राजधानी बीजिंग से देश के एक अन्य प्रमुख शहर ग्वांग्झू तक बनाए गए दुनिया के सबसे लंबे हाई स्पीड रेलमार्ग की शुरुआत।
  • 2006 : ऑस्ट्रेलिया के फिरकी गेंदबाज शेन वार्न ने अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट में 700 विकेट लेकर इतिहास रचा।
  • 2003 : ईरान के दक्षिणी पूर्वी शहर बाम में रिक्टर पैमाने पर 6.6 की तीव्रता वाले भूकंप से जान-माल का भारी नुकसान।
  • 1997 : ओडिशा के प्रमुख नेता बीजू पटनायक के बेटे नवीन पटनायक ने बीजू जनता दल (बीजद) बनाया।
  • 1978 : भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जेल से रिहा किया गया। मोरारजी देसाई की सरकार ने 19 दिसंबर को इंदिरा गांधी को गिरफ्तार किया था।
  • 1904 : दिल्ली से मुंबई के बीच देश की पहली क्रॉस कंट्री मोटरकार रैली की शुरुआत।


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Today History: Aaj Ka Itihas India World 26 December Update | India Indonesia Tsunami 26 December 2004 Death Toll


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कद्दू-अंगूर का रायता बनाने की इंस्टेंट रेसिपी, सिर्फ 15 मिनट में हो जाएगा तैयार



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Instant recipe for making pumpkin grape raita, will be ready in just 15 minutes


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वर्चुअल वेडिंग और रिमोट वर्किंग से लेकर आयुर्वेद तक, जानिए इस साल हमने क्या सीखा

कहते हैं कि वक्त से बेहतर शिक्षक कोई नहीं हो सकता। साल 2020 भी कुछ ऐसा ही रहा। साल के साथ आए कोरोना से हमने बहुत कुछ खोया, लेकिन कुछ नई चीजें भी सीखीं। कुछ पुरानी चीजों का महत्व भी समझा, जिसे हम जानते तो थे, लेकिन नजरअंदाज करते थे।

दिल्ली यूनिवर्सिटी में साइंस एंड ह्यूमन बिहेवियर के प्रोफेसर डॉक्टर धीरज पाठक कहते हैं कि इंसान मुश्किलों और आपदाओं से सबसे ज्यादा सीखता है। निश्चित तौर पर कोरोना महामारी एक बहुत बड़ी समस्या है, लेकिन इससे पहले भी आपदाएं आईं हैं, हर आपदा से हमने सीखा भी है और अपने जीने के तरीके में बदलाव भी किया है। अहम यह है कि हम नई लर्निंग को कितने दिनों तक याद रखेंगे? ह्यूमन बिहेवियर की नजर से देखा जाए तो इंसान बस बड़ी चीजों को याद रखता है, लेकिन छोटी चीजों को भूल जाता है। कोरोना ने हमें छोटी-छोटी चीजों का महत्व सिखाया है, जिसे हमें भूलना नहीं चाहिए।

इन 5 चीजों के लिए 2020 को बोल सकते हैं थैंक्स
तमाम निगेटिविटी के बीच कुछ चीजें ऐसी हैं, जिनके लिए हम 2020 के लिए शुक्रगुजार भी हो सकते हैं। कोरोना के चलते इस साल बहुत सी चीजें डिजिटल हो गई हैं। डिजिटल हो जाने से चीजें आसान, सस्ती और पारदर्शी भी हुई हैं।

  1. डिजिटल पेमेंट बढ़ गया : फिजिकल टच के डर से लोगों ने कैश में लेन-देन बंद कर दिया और इसके चलते डिजिटल पेमेंट ने कैश की जगह ले ली। भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, सिर्फ रिटेल में 70% से ज्यादा पेमेंट डिजिटल हो चुका है। इससे लेनदेन आसान और तेज हुआ है और हमारी जिंदगी को और गति मिली है।
  2. रिमोट या ऑनलाइन वर्किंग : सोशल डिस्टेंसिंग को मेंटेन करने के लिए सर्विस सेक्टर 'वर्क फ्रॉम होम' हुआ। देश में कई कंपनियों ने अगले कई सालों तक के लिए वर्क फ्रॉम होम को मंजूरी दे दी। कुछ कंपनियां इसे एक स्थाई विकल्प के तौर पर देख रही हैं। जो लोग कई किलोमीटर का सफर करके या घर से दूर रहकर जॉब करने को मजबूर थे, उन्हें 2020 में रिमोट वर्किंग का एक विकल्प मिला।
  3. ई-लर्निंग/पाठशाला : जब भी कोई आपदा या समस्या आती है तो उसका सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ता है। स्कूल बंद हो जाते हैं और बच्चों की पढ़ाई डिस्टर्ब होने लगती है। लेकिन, इस साल कोरोना के चलते जब स्कूल लगभग बंद ही रहे, तो बच्चों के लिए विकल्प तलाशा जाने लगा और तभी ई-लर्निंग सामने आई। इस बात के लिए बच्चे 2020 को थैंक्स कह सकते हैं। आगे भी यह विकल्प उनकी पढ़ाई को ब्रेक नहीं होने देगा।
  4. वर्चुअल वेडिंग : इस साल शादियों का सीजन भी कोरोना की भेंट चढ़ गया। बहुत सी शादियां कैंसिल हो गईं, लेकिन इस बीच वर्चुअल वेडिंग के अनोखे आइडिया को इजाद किया गया। पूरी दुनिया में करीब 12 हजार शादियां ऑनलाइन हुईं।
  5. वर्चुअल ट्रैवलिंग : इस साल कोरोनावायरस के चलते दुनिया ठहर सी गई थी। लोग महीनों तक घर में ही रहे। कहीं भी आने-जाने की मंजूरी तब तो बिलकुल नहीं थी, जब लॉकडाउन चल रहा था। इस बीच ट्रैवलिंग कंपनियों ने वर्चुअल ट्रैवलिंग का आइडिया इजाद किया। यह भी आने वाले समय में ट्रैवलिंग का ऑप्शन साबित होगा।

4 चीजें जो हमने 2020 से सीखीं

  1. साफ-सफाई की अहमियत : घर और अपने आसपास साफ-सफाई जरूरी है। यह हम सभी जानते हैं, लेकिन इसके बावजूद बहुत लोग साफ-सफाई को लेकर लापरवाह होते हैं और इसे नजरअंदाज करते हैं। इस साल कोरोना के चलते हमने साफ-सफाई के महत्व को समझा और इसे लेकर गंभीर हुए।
  2. हाथों को ज्यादा धोना : हाथ हम सभी धुलते हैं, लेकिन ज्यादातर लोग ऐसा खाना खाने के वक्त ही करते हैं। आमतौर हम हाथों को धुलने को लेकर इतना ध्यान नहीं देते। कुछ भी छूने के बाद, या किसी से मिलने के बाद कोई शायद ही हाथों को सैनिटाइज करता हो। लेकिन इस साल हम सब सिर्फ हाथ धुलते रहे।
  3. योग और एक्सरसाइज का महत्व : नियमित योग और एक्सरसाइज हम में से बहुत कम लोग किया करते थे। इससे हम न केवल स्वस्थ रहते हैं, बल्कि पॉजिटिव भी। हमारा इम्यून सिस्टम भी मजबूत रहता है। यह साल कोरोना के साये में बीता, सभी अपनी इम्यून सिस्टम और स्वास्थ्य को लेकर गंभीर थे। इसके चलते योग और एक्सरसाइज एक ट्रेंड के तौर पर सेट हुए।
  4. आयुर्वेद और परंपराओं की तरफ लौटे : क्या आप काढ़ा, गर्म पानी, गिलोय, काली-मिर्च और हल्दी दूध पहले पीते थे? लेकिन, आज हम में से बहुत लोग ऐसा कर रहे हैं। डॉक्टर भी बेहतर इम्यून सिस्टम के लिए ऐसी चीजों को लेने की बात कह रहे हैं। 2020 में हमने अपनी परंपराओं के महत्व को समझा और बहुत तेजी से उन्हें अपनाया भी है।


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लॉकडाउन के विरोध में फ्रांस की सड़कों पर उतरे लाखों लोग? जानें वायरल फोटो का सच

क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हो रही है। इसमें सड़क पर लाखों लोगों की भीड़ दिख रही है।

दावा किया जा रहा है कि फ्रांस के पेरिस में सरकार ने कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए जब लॉकडाउन लगाया, तो लाखों लोग इसके विरोध में सड़क पर उतर आए। फोटो 18 दिसंबर, 2020 की बताई जा रही है।

और सच क्या है

  • इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि पेरिस में लाखों लोग लॉकडाउन के विरोध में सड़क पर प्रदर्शन कर रहे हैं।
  • वायरल फोटो को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से हमें CNN की 2 साल पुरानी रिपोर्ट मिली। इस रिपोर्ट में हमें वही फोटो मिली, जिसे कोरोना महामारी से जोड़कर शेयर किया जा रहा है।
  • 2018 में हुआ फीफा वर्ल्ड कप फ्रांस की फुटबॉल टीम ने जीता था। वायरल फोटो इसी जीत के जश्न की है। सोशल मीडिया पर इस फोटो को गलत दावे के साथ शेयर किया जा रहा है।


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Millions of people took to the streets of France to protest against the lockdown?


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पढ़िए, दि इकोनॉमिस्ट की चुनिंदा स्टोरीज सिर्फ एक क्लिक पर

1. कोरोना ने अमेरिका और यूरोप की बड़ी तेल कंपनियों के कारोबार को बुरी तरह प्रभावित किया है। बीते 12 महीनों में उनकी हालत बहुत अधिक बिगड़ी है। पश्चिमी देशों की पांच बड़ी कंपनियों के बाजार मूल्य में 25 लाख करोड़ रुपए से अधिक गिरावट आई है। दुनियाभर में निवेशक ऊर्जा के साफ-सुथरे स्रोतों में पैसा लगाने की वकालत लंबे समय से कर रहे हैं। कैसे ऊर्जा की दुनिया बदल रही है, जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख...

2. अमेरिका में खेतों के मालिक मूल अमेरिकियों की बजाय अफ्रीकी गुलाम क्यों पसंद करते थे? वेस्टइंडीज के जमींदार किसी यूरोपीय की तुलना में अफ्रीकी गुलाम के लिए तीन गुना अधिक पैसा क्यों देते थे? कैसे ईसा पूर्व 218 में हनीबल ने रोम पर हमला किया था, लेकिन मलेरिया के कारण वह जीत नहीं पाया था? जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख...

3. पिछले साल एशिया में अमीर देशों के संगठन ओसीईडी देशों के तीस लाख लोग रह रहे थे। लेकिन, कोरोना वायरस महामारी और अन्य कारणों से अपने देश लौटने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। एशिया से लौटे लोग अब अपने देश में स्थायी तौर पर बस रहे हैं। 50% से अधिक कंपनियों ने अपने कर्मचारी वापस बुलाए हैं। क्या असर पड़ेगा इस पलायन का दुनिया पर? जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख...



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भारत ‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए उपयुक्त है? हमारे पार्टी सिस्टम पर इसके असर के बारे में सोचना जरूरी

हाल ही में पीठासीन अधिकारियों की एक बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर एक देश, एक चुनाव यानी लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की वकालत की। वे यह इच्छा पहले भी जता चुके हैं, पर इस बार उन्होंने अधिक आक्रामकता से इसकी वकालत की है। उन्होंने कहा, ‘यह बहस का मुद्दा नहीं है, भारत की जरूरत है।’ कुछ वर्ष पहले इस पर पत्रकारों, विश्लेषकों और साझेदारों में काफी बहस हुई थी, जहां सभी ने व्यावहारिकता, वैधता और भारत के पार्टी सिस्टम पर असर के मुद्दे के आधार पर प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में तर्क पेश किए थे।

पक्ष में दिए गए तर्कों में खर्च का कम होना और सरकार द्वारा विकास कार्यों में तेजी लाना शामिल था। इस दो तर्कों पर शायद ही कोई असहमति हो, लेकिन क्या एकसाथ चुनाव के लिए ये दो फायदे ही काफी हैं? या भारत में पार्टी सिस्टम पर इसके असर के बारे में भी सावधानीपूर्वक सोचना जरूरी है?

इसके व्यावहारिक होने पर सवाल है कि भारत जैसे संघीय देश में इसे कैसे लागू कर सकते हैं, जहां राज्यों की अपनी चुनी हुई सरकारें होती हैं, जिनकी संवैधानिक शक्तियां होती हैं। एक समस्या यह भी है कि तब क्या होगा, जब किसी राज्य में सरकार कार्यकाल पूरा होने से पहले ही गिर जाएगी। तब क्या राज्यपाल शासन लागू होगा और चुनाव अगली बारी आने पर होंगे?

अभी हर राज्य का अपना चुनाव चक्र है, ऐसे में उस राज्य सरकार का क्या होगा, जिसे कुछ ही वर्ष पहले चुनाव के माध्यम से चुना गया है? क्या संविधान संशोधन के बाद किसी राज्य को राज्यपाल शासन में लंबे समय तक रखने का प्रावधान बनाना लोकतांत्रिक सिद्धांत के खिलाफ नहीं होगा?

लेकिन इन मुद्दों से परे, पार्टी सिस्टम (बहुदल पद्धति) की प्रकृति पर इसका असर बड़ा मुद्दा है। इसकी संभावना है कि कुछ पार्टियां, मुख्यत: राष्ट्रीय पार्टियां, राज्य व राष्ट्रीय राजनीति, दोनों में दबदबा बना लें। कुछ मजबूत क्षेत्रीय पार्टियां भले ही राज्य में बची रहें, लेकिन कई छोटी पार्टियां धीरे-धीरे भारत के राजनीतिक मानचित्र से गायब हो जाएंगी। प्रमाण बताते हैं कि जब कभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ होते हैं, बड़ी संख्या में मतदाता समान पार्टी को वोट देते हैं। यहां तक कि जब लोकसभा चुनाव होने के 6 महीने बाद विधानसभा चुनाव होते हैं, तब भी मतदाता समान पार्टी को वोट देते हैं, हालांकि इसमें कुछ अपवाद भी हैं। राष्ट्रीय पार्टियां लाभ की स्थिति में रहती हैं। दबदबे वाली क्षेत्रीय पार्टी को भी लाभ मिलता है, लेकिन छोटी क्षेत्रीय पार्टियों को नुकसान होता है।

एकसाथ चुनाव होने पर छोटी क्षेत्रीय पार्टियां इसलिए गायब हो जाएंगी, क्योंकि मतदाताओं की पसंद इससे प्रभावित होगी कि पार्टियां राष्ट्रीय राजनीति में कैसी भूमिका निभा रही हैं। एकसाथ चुनाव का मतलब होगा राष्ट्रीय दलों के प्रभुत्व का विस्तार और क्षेत्रीय पार्टियों की राजनीतिक जगह धीरे-धीरे कम होना।

प्रमाण बताते हैं कि अब तक 111 बार ऐसा हुआ है, जब विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ हुए, जिनमें 387 राष्ट्रीय पार्टियां चुनाव लड़ीं। इनमें से 263 पार्टियों (69%) के लिए लोकसभा और विधानसभा चुनावों के वोट शेयर में 3% से कम का अंतर रहा, वहीं 19% पार्टियों के लिए दोनों चुनावों में वोट शेयर का अंतर 3 से 6 फीसदी रहा। प्रमाण यह भी बताते हैं कि भले ही विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव के 6 महीने बाद हुए हों, मतदाताओं ने जबर्दस्त ढंग से दोनों चुनावों में समान पार्टी को वोट दिए। ऐसी 501 राष्ट्रीय पार्टियों के आंकड़े इकट्‌ठा किए गए, जो 6 महीने के अंतर से दोनों चुनावों के मामले में फिट बैठती हैं, उनमें 68% मामलों में राष्ट्रीय पार्टियों का वोट प्रतिशत ज्यादा रहा या थोड़ा ही कम हुआ। लोगों द्वारा प्रभावी क्षेत्रीय पार्टी को चुनने के मामले में भी स्थिति ज्यादा नहीं बदली।

जब एकसाथ चुनाव हुए तो 79% क्षेत्रीय पार्टियों का वोट शेयर ज्यादा हुआ या थोड़ा ही कम हुआ, जहां वोट शेयर में 3% का अंतर रहा। ऐसे ही जब विधानसभा चुनाव 6 महीने के अंतर से हुए, तो दोनों चुनाव लड़ने वाली 75% क्षेत्रीय पार्टियों के वोट शेयर में 3% से कम अंतर था।

क्षेत्रीय पार्टियों के विरुद्ध तर्क दिए जाते हैं, कुछ तो यहां तक कहते हैं कि भारत में राजनीतिक पार्टियों की संख्या सीमित कर देनी चाहिए। मेरे विचार में, क्षेत्रीय पार्टियां ऐसे कई भारतीयों को मंच प्रदान करती हैं, जो सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में दशकों से खुद को वंचित महसूस करते हैं। इससे ऐसे लोगों को राजनीति में भूमिका निभाने का अवसर मिलता है, फिर भले ही ये छोटी क्षेत्रीय पार्टियां सफल हो या न हों। एकसाथ चुनावों से छोटी क्षेत्रीय पार्टियां नुकसान की स्थिति में आ जाएंगी और अंतत: उन राजनीतिक दलों का दबदबा और बढ़ेगा, जिनका पहले से ही प्रभुत्व है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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संजय कुमार, सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएडीएस) में प्रोफेसर और राजनीतिक टिप्पणीकार


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