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अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन स्थल पर कितने लोगों के मौजूद रहने की व्यवस्था की गई है, इसकी पहली जानकारी भास्कर को मिली है। इसके मुताबिक, पूजन स्थल पर 17 लोग रहेंगे। प्रधानमंत्री खुद पूजन करेंगे। उनके बाईं ओर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत बैठेंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ सामने की तरफ रहेंगे। देखें पूरी लिस्ट...
1. प्रधानमंत्री मोदी 2. संघ प्रमुख मोहन भागवत 3. राज्यपाल आनंदीबेन पटेल 4. सीएम योगी आदित्यनाथ 5. गोविंद देव गिरी जी 6. पंडित नारद भटराई 7. नाम तय नहीं 8. नाम तय नहीं 9. श्रीमती सलिल सिंघल- यजमान दिल्ली 10. सलिल सिंघल - यजमान दिल्ली 11. पंडित गंगाधर पाठक 12. पंडित जयप्रकाश त्रिपाठी 13. विश्रुताचार्य जी 14. चंद्रभानु शर्मा 15. इंद्रदेव मिश्र 16. अरुण दीक्षित 17. दुर्गा गौतम
मोदी के लिए पहले ही थाली सजाकर रखी जाएगी
पूजन स्थल पर सोशल डिस्टेंसिंग रखी जाएगी। जब मोदी पूजा कर रहे होंगे, तो न ही मंत्र पढ़कर जल छिड़का जाएगा और न ही कोई आरती के करीब जाएगा। उनके लिए पहले ही थाली सजाकर रख दी जाएगी। सभी मेहमानों के लिए कोरोना निगेटिव सर्टिफिकेट जरूरी किया गया है। निगेटिव रिपोर्ट देखने के बाद ही मेहमानों को एंट्री मिलेगी।
32 सेकंड का मुहूर्त
अयोध्या में राम मंदिर के लिए 32 सेकंड के अभिजीत मुहूर्त में मुख्य भूमि पूजन होगा। मान्यता यह है कि इसी मुहूर्त में भगवान राम का जन्म हुआ था। मोदी इस दौरान 40 किलो चांदी की ईंट नींव के तौर पर रखेंगे। इसी मुहूर्त में वे नौ शिलाओं का पूजन भी करेंगे।
भूमि पूजन के लिए जन्मभूमि तक जिन्हें जाने का सौभाग्य मिलेगा, उन चुनिंदा मेहमानों की लिस्ट में 135 संत और 40 प्रमुख लोग शामिल हैं। कुल 175 ऐसे नाम हैं, जिन्हें देश के उन लोगों में शामिल होने का मौका मिला है, जो राम मंदिर भूमि पूजन के गवाह बनेंगे। 135 जो संत बुलाए गए हैं, वो भारत और नेपाल से हैं और 36 संप्रदायों को मानने वाले हैं। नेपाल के जनकपुर के संतों को भी बुलावा भेजा गया है।
भाजपा के पितृपुरुष लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी कोरोना और उम्र से जुड़े खतरों के मद्देनजर जन्मभूमि नहीं जा पाएंगे। हालांकि श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सचिव चंपत राय की मानें तो आमंत्रण और निमंत्रण की पूरी फेहरिस्त आडवाणी, जोशी और वकील के पाराशरण से मशविरा कर तैयार की गई है।
जो मंच पर होंगे उन पांच लोगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, संघ प्रमुख मोहन भागवत, उत्तरप्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, महंत नृत्य गोपालदास और राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शामिल हैं। राज्यपाल और मुख्यमंत्री को बतौर प्रोटोकॉल ये जगह दी गई है। इनमें से योगी आदित्यनाथ को छोड़ दें तो सभी की उम्र 60+ है। विहिप के अहम नेता अशोक सिंघल के परिवार से उनके भतीजे पवन सिंघल और महेश भागचंदका इस भूमिपूजन के यजमान होंगे यानी पूजा उन्हीं के हाथों होगी।
आमंत्रित अहम लोगों में सबसे पहले बात उमा भारती की जो आडवाणी जी के सबसे करीब हैं और राममंदिर आंदोलन का प्रमुख चेहरा रही हैं। उमा भारती अयोध्या पहुंच गई हैं, लेकिन जन्मभूमि नहीं जाएंगी। वो इसके लिए कोरोना का हवाला दे रही हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी जब लौट जाएंगे तभी वो रामलला के दर्शन करेंगी।
भाजपा से जन्मभूमि जाने वाले नेता
उमा भारती के अलावा जो भाजपा नेता जन्मभूमि जाएंगे उनमें भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, सांसद लल्लू सिंह, भाजपा नेता और जन्मभूमि आंदोलन के अहम किरदार विनय कटियार, उप्र के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद और दिनेश शर्मा, यूपी के कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना और लक्ष्मी नारायण सिंह शामिल हैं। पूर्व राज्यपाल और सीएम कल्याण सिंह और जयभान सिंह पवैया भी इस लिस्ट का हिस्सा हैं। विश्व हिंदू परिषद और आरएसएस से
विहिप के कार्यकारी प्रमुख आलोक कुमार, सदाशिव कोकजे, प्रकाश शर्मा, मिलिंद परांदे, रामविलास वेदांती और जितेंद्र नंद सरस्वती के अलावा विश्व हिंदू परिषद की हाईपावर कमेटी के 40 से 50 लोग इसका हिस्सा हो सकते हैं। वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के अलावा सुरेश भैयाजी जोशी, विहिप के दिनेश चंद, कृष्ण गोपाल, इंद्रेश कुमार वहां आएंगे।
श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के 15 लोग
महंत नृत्य गोपाल दास, स्वामी गोविंद देव गिरी, चंपत राय, नृपेंद्र मिश्र, स्वामी वासुदेव सरस्वती, विमलेंद्र प्रताप मिश्र जो अयोध्या राजपरिवार के प्रमुख हैं, अनिल मिश्र, कमलेश्वर चौपाल, महंत दिनेंद्र दास, वकील के पारासरण, ज्ञानेश कुमार गृहमंत्रालय से, अवनीश अवस्थी उप्र सरकार से और अनुज झा अयोध्या के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट।
कार्यक्रम में शामिल होने वाले संतों में अखाडा परिषद के नरेंद्र गिरी, साध्वी ऋतंभरा, योग गुरु रामदेव, श्री श्री रविशंकर, युगपुरुष परमानंद शामिल हैं। पहला न्यौता हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल को
पहला न्यौता अयोध्या विवाद में मुस्लिम पक्ष के मुद्दई हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी को भेजा गया था। उनके अलावा एक और मुसलमान जिन्हें कार्यक्रम में बुलाया है उनमें पद्मश्री मोहम्मद शरीफ भी शामिल हैं, जिन्होंने 10 हजार से ज्यादा लावारिस लाशों को दफनाया है।
आडवाणी और जोशी के अलावा जिन्हें बुलाया गया और जो आने में असमर्थ हैं उनमें शंकराचार्य और कुछ संत हैं जो चातुर्मास के चलते नहीं आ पा रहे हैं। किसी भी राज्य के मुख्यमंत्रियों को नहीं बुलाया गया है, कारण कोरोना है।
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लेबनान की राजधानी बेरूत में मंगलवार देर रात हुए धमाके में मरने वालों का आंकड़ा बुधवार सुबह 78 हो गया। चार हजार से ज्यादा लोग घायल हैं। इनमें से कई की हालत बेहद गंभीर बताई गई है। इस बीच लेबनान के प्रधानमंत्री ने कहा है कि शिपमेंट में 2750 टन अमोनियम नाइट्रेट था। धमाका किसी भूकंप की तरह था। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 240 किलोमीटर तक धमक महसूस हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार सुबह ट्वीट के जरिए घटना पर दुख जताया।
लेबनान ने क्या कहा
धमाके के बाद लेबनान में डिफेंस काउंसिल की मीटिंग हुई। इसमें राष्ट्रपति भी शामिल हुए। बाद में प्रवक्ता ने कहा- यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है कि एक वेयरहाउस में 2750 टन अमोनियम नाइट्रेट 6 साल तक रखा रहा और किसी ने एहतियाती या सुरक्षा के कदम तक नहीं उठाए। देश में दो हफ्ते के लिए इमरजेंसी लागू कर दी गई है।
पोर्ट चीफ जिम्मेदार
लेबनान के कस्टम विभाग ने घटना के लिए सीधे तौर पर पोर्ट चीफ को जिम्मेदार ठहराया। कस्टम हेड बादरी दहेर ने कहा- मेरा डिपार्टमेंट अमोनियम नाइट्रेट रखने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। धमाका इससे ही हुआ। इस घटना के लिए पोर्ट चीफ हसन कोरेटेम जिम्मेदार हैं। इस बारे में पोर्ट चीफ ने अब तक प्रतिक्रिया नहीं दी है।
Lives lost - homes destroyed - a tired and hungry population - Aid agencies reported 500,000 children going hungry in Beirut area alone - and then this ... #Beirut - months ago people asked for a new leadership they faced a militarized state https://t.co/0Xfnv3HDah
मोदी ने दुख जताया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेरूत में हुए धमाके पर दुख जताया। बुधवार सुबह एक ट्वीट में मोदी ने कहा- बेरूत में हुए धमाके की खबर सुनकर दुखी हूं। कई लोगों ने जान गंवाई और प्रॉपर्टी का भी नुकसान हुआ। ब्लास्ट में मारे गए और घायल हुए लोगों के प्रति हमारी संवेदनाएं हैं।
Shocked and saddened by the large explosion in Beirut city leading to loss of life and property. Our thoughts and prayers are with the bereaved families and the injured: PM @narendramodi
क्या हुआ था मंगलवार रात
राजधानी बेरूत में मंगलवार रात बड़ा धमाका हुआ। तट के पास खड़े एक जहाज में विस्फोट हुआ, जो पटाखों से भरा हुआ था। धमाका इतना भीषण था कि 10 किलोमीटर के दायरे में मौजूद घरों को नुकसान पहुंचा। धमाके से कारें तीन मंजिल तक उछल गईं। बिल्डिंग्स एक पल में धराशायी हो गईं।
पोर्ट में काफी विस्फोटक था
लेबनान के होम मिनिस्टर ने बताया कि पोर्ट में भारी मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट था। लेबनान कस्टम से पूछा जाना चाहिए कि इतनी भारी मात्रा में पोर्ट पर अमोनियम नाइट्रेट क्या कर रहा था? वहीं, दूसरी ओर लेबनान ब्रॉडकास्टर मायाडेन ने कस्टम के निदेशक के हवाले से बताया कि करीब एक टन नाइट्रेट में विस्फोट हुआ है।
ट्रम्प ने कहा- ये हमला
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस धमाके को भयानक हमला करार दिया। कहा- ये बेहद खतरनाक किस्म का हमला नजर आ रहा है। हम इस मुश्किल वक्त में लेबनान सरकार के साथ खड़े हैं। जांच में उनकी मदद करना चाहते हैं।
श्रीलंका में आज संसदीय चुनाव के लिए वोटिंग होगी। महामारी की वजह से प्रचार सोशल मीडिया या डोर टू डोर कैम्पेन तक ही सीमित रहा। फिलहाल, सत्ता पर दो भाईयों का कब्जा है। राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे। गोतबाया ने दो मार्च को संसद भंग करके नए आम चुनाव का ऐलान किया था। महामारी की वजह से दो बार चुनाव टले। मतदान सुबह सात से शाम पांच बजे तक होगा। यहां इस चुनाव से जुड़ी कुछ अहम बातों को सवाल-जवाब के जरिए जानने की कोशिश करते हैं।
Q. कितने सांसद चुने जाएंगे, कार्यकाल कब तक था?
A. कुल 225 सांसद चुने जाते हैं। पिछली संसद का गठन अगस्त 2015 में हुआ था। इसका कार्यकाल अगस्त 2020 तक था। अपनी लोकप्रियता को देखते हुए राष्ट्रपति गोटबाया ने मार्च में ही संसद भंग कर दी। नए चुनाव का ऐलान किया। महामारी की वजह से चुनाव दो बार टला। राष्ट्रपति साढ़े चार साल बाद संसद भंग कर सकता है।
Q. चुनावी गणित क्या है? कितनी मुख्य पार्टियां हैं?
A. राजपक्षे ब्रदर्स की एसएलपीपी और पूर्व राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना की एसएलएफपी दो मुख्य पार्टियां हैं। इनके अलावा एसजेबी, यूएनपी भी बड़ी पार्टियां हैं। एसएलपीपी और यूएनपी गठनबंधन में हैं। इसलिए इनका पलड़ा भारी है। सजित प्रेमदासा की एसजेबी वास्तव में यूएनपी से अलग होकर ही बनी। गांवों में इसकी अच्छी पकड़ है। इसके अलावा कुछ छोटे दल हैं, लेकिन ये कुछ खास क्षेत्रों तक सीमित हैं।
Q. कुल कितने उम्मीदवार मैदान में हैं?
A. 225 सीटों के लिए कुल 7452 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें से 3652 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से हैं। जबकि 3800 निर्दलीय हैं।
Q. श्रीलंका में जातीय समीकरण क्या है?
A. 70 फीसदी सिंहली समुदाय के लोग हैं। ये बौद्ध धर्म मानते हैं। 12 फीसदी हिंदू, 10 फीसदी मुस्लिम और करीब 7 फीसदी ईसाई हैं। कुल आबादी करीब 2.2 करोड़ है।
Q. महामारी के दौर में चुनाव जरूरी क्यों?
A. संसद का कार्यकाल इस महीने अगस्त तक था। लेकिन, राष्ट्रपति गोटबाया ने इस मार्च में ही भंग कर दिया। उस वक्त उन्हें लगता था कि सियासी हवा उनके पक्ष में है। लिहाजा, उनका गठबंधन आसानी से दो तिहाई बहुमत हासिल कर लेगा। लेकिन, महामारी की वजह से चुनाव नहीं हो सके।
Q. मुख्य मुद्दे क्या हैं?
A. तीन-चार बुनियादी मुद्दे हैं। पहला- बेहद खस्ता हाल अर्थव्यवस्था। दूसरा- टूरिज्म सेक्टर का लगभग ठप हो जाना। तीसरा- बेरोजगारी और शिक्षा। चौथा- राष्ट्रीय सुरक्षा।
Q. सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
A. एक लाइन में कहें तो- विदेशी कर्ज। इस छोटे से देश पर करीब 56 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है। यह देश की जीडीपी का 80% है। श्रीलंका पर चीन और एडीबी (एशियन डेवलपमेंट बैंक) का 14%, जापान का 12%, वर्ल्ड बैंक का 11% और भारत का 2% कर्ज है। श्रीलंका साफ कर चुका है कि फिलहाल, वो यह कर्ज चुकाने की हालत में नहीं है।
Q. अर्थ व्यवस्था इतनी क्यों बिगड़ी?
A. 1980 के दशक में सिविल वॉर से श्रीलंका वास्तव में कभी उबर नहीं पाया। बाकी कसर भ्रष्टाचार ने पूरी कर दी। पिछले साल ईस्टर पर बम धमाकों में 250 लोगों की मौत हुई। कमाई का मुख्य जरिया पर्यटन था। यह करीब-करीब ठप हो गया। इसके बाद कोरोनावायरस से हालात बदतर होते गए।
Q. भारत और चीन की इस चुनाव पर नजर क्यों?
A. गोटबाया भाईयों को चीन के करीब माना जाता है। हालांकि, प्रधानमंत्री महिंदा के भारत से संबंध बहुत अच्छे हैं। चीन कर्ज बांटो और कब्जा करो, की नीति के जरिए श्रीलंका में काफी पैर पसार चुका है। हम्बनटोटा पोर्ट को लीज पर लेकर वो भारत के करीब पहुंच रहा है। यह भारत की सुरक्षा के लिए खतरा है। यह चुनाव भारत को अपनी श्रीलंका पर नई रणनीति बनाने का मौका साबित हो सकता है। श्रीलंका ने भारत से 96 करोड़ डॉलर का कर्ज चुकाने के लिए रियायत और मोहलत दोनों मांगी हैं। माना जा रहा है कि इस चुनाव के बाद भारत इस पर फैसला करेगा।
Q. क्या चीन की तरफ झुक रहा है श्रीलंका?
A. पिछले साल भारत, जापान और श्रीलंका ईस्ट कन्टेनर टर्मिनल (ईसीटी) पर समझौता करने वाले थे। लेकिन, बाद में गोटबाया राजपक्षे बने और उन्होंने कहा कि इस प्रोजेक्ट पर फिर विचार किया जाएगा। भारत और जापान इससे नाराज हैं। माना जाता है कि चीन के दबाव में राजपक्षे ने इस प्रोजेक्ट को रोक दिया। 70 करोड़ डॉलर के ईसीटी का मालिकाना हक श्रीलंका के पास ही रहता। लेकिन, इसमें जापान की हिस्सेदारी 51 जबकि भारत की 49 फीसदी थी।
जनरल कैटेगरी के आर्थिक पिछड़ों (ईडब्ल्यूएस) को 10% आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच (5 जजों की बेंच) को रेफर किया जाएगा या नहीं, इस पर आज फैसला आएगा। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और बी आर गवई की बेंच दोपहर करीब 12 बजे इसका ऐलान करेगी। कोर्ट ने 31 जुलाई को सुनवाई के बाद फैसला रिजर्व रख लिया था।
पिटीशन लगाने वालों का क्या कहना है?
ईडब्ल्यूएस को आरक्षण देने के केंद्र के फैसले के खिलाफ कई पिटीशन फाइल हुई थीं। जनहित अभियान और यूथ फॉर इक्विलिटी जैसे एनजीओ ने इसे चुनौती दी थी। उनकी दलील थी कि आर्थिक स्थिति को पूरी तरह रिजर्वेशन का आधार नहीं बनाया जा सकता। इससे कानून का उल्लंघन हुआ। साथ ही रिजर्वेशन की मैक्सिमम 50% लिमिट भी क्रॉस हो गई।
सालाना 8 लाख से कम आय वालों को आर्थिक आधार पर आरक्षण
केंद्र सरकार ने सरकारी नौकरियों और हायर एजुकेशन के लिए एडमिशन में आर्थिक रूप से पिछड़ों को 10% आरक्षण देने का फैसला किया था। इसके लिए परिवार की सालाना आय 8 लाख रुपए से कम होने समेत कई शर्तें रखी गईं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 जनवरी 2019 को ईडब्ल्यूएस को आरक्षण लागू करने की मंजूरी दी थी।
from Dainik Bhaskar /national/news/supreme-court-verdict-on-referring-to-constitution-bench-of-the-issue-of-reservation-for-economically-weaker-sections-127586872.html
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देश में कोरोना मरीजों का आंकड़ा19 लाख के पार हो गया। 7वीं बार केवल दो दिन में ही एक लाख नए मरीज बढ़ गए। अब तक 19 लाख 6 हजार 613 लोग संक्रमित पाए जा चुके हैं। पिछले 24 घंटों में 51 हजार 282 नए मरीज बढ़े। वहीं, इतने ही मरीज 51220 स्वस्थ भी हो गए। ये आंकड़े covid19india.org के मुताबिक है।
5 राज्यों का हाल
मध्यप्रदेश: प्रदेश में कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या बताने में हेराफेरी का खेल जारी है। इसके पुख्ता सबूत भी आम लोगों के सामने आने लगे हैं। एक उदाहरण देखिए, प्रदेश के सहकारिता मंत्री अरविंद सिंह भदौरिया की पत्नी अर्चना कोरोना संक्रमित हैं, इसकी जानकारी रक्षाबंधन के दिन (3 अगस्त) को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोमवार को ट्वीट कर दी। मंत्री की पत्नी के साथ उनका बेटा भी अस्पताल में था। मां-बेटे दोनों के नाम जिला प्रशासन द्वारा मंगलवार सुबह जारी की गई कोरोना पॉजिटिव मरीजों की सूची में हैं।
पिछले 24 घंटे में राज्य में कोरोना के 797 नए मामले सामने आए। इसी के साथ संक्रमितों का आंकड़ा बढ़कर 35,082 हो गया है। इनमें 25,414 लोग ठीक हो चुके हैं जबकि 912 लोगों की मौत हो चुकी है।
प्रदेश में अप्रैल से जून तक कोरोना की रफ्तार धीमी थी, लेकिन जुलाई शुरू होते ही इसमें तेजी आ गई। 1 जून से अनलॉक-1 लागू था, जबकि एक जुलाई से अनलॉक-2, लेकिन जुलाई में जून की तुलना में करीब 14 हजार केस ज्यादा रहे। देश में अप्रैल में संक्रमण दर 10.9% थी, जो 31 जुलाई को 4.1% पर आ गई, लेकिन प्रदेश में यह 4.4% से बढ़कर 8.8% तक पहुंच गई।
राजधानी में पिछले 10 दिन से जारी लॉकडाउन मंगलवार की सुबह खत्म हो गया। जिला प्रशासन ने तय किया है कि इस अनलॉक में भी सख्ती बरकरार रहेगी। सभी बाजार रात 8 बजे तक बंद कर दिए जाएंगे और सुबह 5 बजे तक शहर में कर्फ्यू रहेगा।
राजस्थान: राजस्थान में कोरोना के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। मंगलवार को भी 551 पॉजिटिव केस आए। इनमें भीलवाड़ा में 95, अलवर में 85, कोटा में 73, पाली में 72, बीकानेर में 55, जयपुर में 43, बाड़मेर में 37, उदयपुर में 32, डूंगरपुर में 24, बारां में 17, चूरू में 11, बांसवाड़ा में 3, जैसलमेर में 3, वहीं राज्य में बाहर से आया 1 व्यक्ति संक्रमित मिला। जिसके बाद कुल संक्रमितों की संख्या 46106 पहुंच गई। वहीं, 8 लोगों की मौत भी हो गई। इनमें अजमेर में 3, अलवर में 2, करौली, सीकर और दूसरे राज्य से आए 1-1 व्यक्ति की मौत हो गई।
बिहार: बिहार में कोरोना संक्रमितों की संख्या 60 हजार के पार पहुंच गई है। पिछले 24 घंटे में 38215 सैंपल की जांच हुई, जिसमें कोरोना के 2464 नए मरीज मिले। इसके साथ ही राज्य में संक्रमितों की संख्या 62031 हो गई है। कोरोना के 40760 मरीज स्वस्थ्य हुए हैं। बिहार में कोरोना मरीजों का रिकवरी प्रतिशत 65.71 है। एक्टिव मरीजों की संख्या 65.71 है। पटना के 393 सैंपल की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है।
महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में मंगलवार को कोरोना के 7760 नए मामले सामने आए। इसी के साथ राज्य में कुल मामलों की संख्या अब 4,57,956 है, जिनमें 1,42,151 लोगों का अभी इलाज चल रहा है जबकि 2,99,356 लोग ठीक हो चुके हैं। 16,142 मौतें शामिल हैं। मुंबई में कोरोना के 709 नए मामले सामने आए, 873 रिकवर व डिस्चार्ज हुए और 56 मौतें दर्ज की गईं। शहर में कुल मामलों की संख्या अब 1,18,130 है, जिनमें 90962 रिकवर व डिस्चार्ज, 20326 सक्रिय मामले और 6546 मौतें शामिल हैं। पिछले 24 घंटों में महाराष्ट्र पुलिस के 231 जवान कोरोना संक्रमित पाये गये हैं और तीन संक्रमित पुलिसकर्मियों की मौत दर्ज की गयी है। राज्य में अब तक 7,950 संक्रमित पुलिसकर्मी ठीक होने के बाद अस्पताल से घर जा चुके हैं।
लॉकडाउन के नियमों में बड़ी राहत देते हुए बृहन्मुंबई म्यूनिसपल कॉर्पोरेशन (बीएमसी) ने घोषणा की है कि 5 अगस्त से सभी दुकानें खुल सकेंगी। अब से इन पर ऑड-इवन रूल लागू नहीं होगा। कोरोना संक्रमण के 90 हजार से ज्यादा संक्रमित मरीजों के बीच राज्य सरकार ने पुणे महानगर पालिका के साथ मिलकर तीन जंबो फैसिलिटी बनाने का निर्णय लिया है। इसके लिए पुणे महानगरपालिका को 300 करोड़ रुपये खर्च करने हैं। इस पर भाजपा शासित पुणे महानगरपालिका का कहना है कि उसके पास पैसे नहीं हैं।
उत्तरप्रदेश:
उत्तर प्रदेश में कोरोनावायरस संक्रमण के मामले एक लाख के पार हो गए हैं। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, दिल्ली, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के बाद यूपी देश का छठा राज्य है, जहां संक्रमण के मामले एक लाख के पार पहुंच गए हैं। 24 घंटे में राज्य में कोरोना संक्रमण के कुल 2983 नए मामले सामने आए हैं। इसके साथ ही संक्रमितों की कुल संख्या अब 100310 हो गई है।
मंगलवार को उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद ने बताया कि मामलों में से 57271 मरीज इलाज के बाद पूरी तरह ठीक हो चुके हैं और उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है। राज्य में फिलहाल कोरोना के 41 हजार 222 सक्रिय मामले हैं, जिनका अलग-अलग अस्पतालों में इलाज चल रहा है। कुछ मरीज होम आइसोलेशन में भी हैं। अमित मोहन प्रसाद ने बताया कि कोरोना की चपेट में आकर राज्य में कुल 1817 लोगों की अबतक मौत हुई है।
अमित मोहन प्रसाद ने कहा कि सोमवार को प्रदेश में 66713 सैंपल्स की जांच हुई। अब तक प्रदेश में 26 लाख 89 हजार 973 नमूनों की जांच हो चुकी है। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद अवनीश अवस्थी ने बताया कि पिछले एक सप्ताह में पूरे प्रदेश में प्रतिदिन की औसत टेस्टिंग 92 हजार से ज्यादा रही है। अब उत्तर प्रदेश देश में सबसे अधिक टेस्ट कराने वाला प्रदेश बन गया है।
अब तक आरोग्य सेतु ऐप से अलर्ट जारी होने पर हम 7 लाख 220 लोगों को कॉल करके आगाह कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि अब तक प्रदेश में 58 हजार 947 कोविड हेल्प डेस्क बनाए जा चुके हैं, जिनकी सहायता से अब तक 2 लाख 75 हजार 320 लक्षणात्मक लोगों की पहचान की जा चुकी है।
यूपीएससी ने सिविल सर्विसेज 2019 की फाइनल रिजल्ट मंगलवार दोपहर जारी कर दिया। परीक्षा में इस साल प्रदीप सिंह टॉपर रहे, वहीं गर्ल्स कैटेगरी में यूपी के सुल्तानपुर की प्रतिभा वर्मा ने AIR 3 हासिल कर टॉप 3 में जगह बनाई ।
दैनिक भास्कर की हर्षिता सक्सेना से बातचीत करते हुए वर्तमान में इंडियन रेवेन्यू सर्विस में ऑफिसर के तौर पर काम कर रहीं प्रतिभा ने बताया कि वे बचपन से ही आईएएस अधिकारी बनना चाहती थीं। अपने इसी सपने तक पहुंचने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत और लगन से तैयारी की।
दो साल प्राइवेट सेक्टर में की नौकरी
प्रतिभा की स्कूलिंग अपने होम टाउन सुल्तानपुर से पूरी हुई, जिसके बाद साल 2010 में उन्होंने आईआईटी दिल्ली में बीटेक में एडमिशन लिया। साल 2014 में पास आउट होने के बाद 2 साल तक प्राइवेट सेक्टर में जॉब करने वाली प्रतिभा ने 2016 में रिजाइन कर सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू की।
2017 में वह यूपीएससी के पहले अटेंप्ट में प्रिलिम्स ही क्लियर कर पाईं। इसके बाद साल 2018 में अपने दूसरे अटेंप्ट में उन्होंने ऑल इंडिया रैंक 489 हासिल की इंडियन रेवेन्यू सर्विस ऑफिसर की जॉब हासिल की। इसी साल प्रतिभा ने इंडियन फॉरेस्ट ऑफिसर भी क्लियर कर 13वीं रैंक पाईं।
2018 में बनी इंडियन रेवेन्यू सर्विस ऑफिसर
साल 2018 में इंडियन रेवेन्यू सर्विस ऑफिसर बनने के बाद भी उनके मन में अधूरे सपने को पूरा करने की ललक बाकी थी। आईआरएस में अपनी सर्विस देते हुए उन्हें यह रियलाइज हुआ कि वह एक अच्छी कैंडिडेट हैं, जो इस परीक्षा को क्लियर कर सकती हैं।
दो अटेंप्ट करने के बाद वह जान चुकी थी कि उन्हें किस फील्ड में सुधार की जरूरत है। साथ ही अधूरे सपने की टीस उन्हें खुद के प्रति बेईमान साबित कर रहीं थी। ऐसे में प्रतिभा ने बचपन से ही आईएएस बनने के अपने इस अधूरे सपने को पूरा करने के लिए साल 2019 में एक बार फिर यूपीएससी की परीक्षा देने का फैसला किया।
तीसरे अटेंप्ट में हासिल की तीसरी रैंक
आईएएस बनने के पीछे प्रतिभा का मुख्य उद्देश्य सोसाइटी में सुधार, लोगों की प्रत्यक्ष तौर पर मदद और स्टेटस में बदलाव है। इतना ही नहीं वह मौका मिलने पर देश में एजुकेशन के लिए भी अपना योगदान देना चाहती हैं। देश और समाज की प्रत्यक्ष सेवा के लिए ही प्रतिभा ने तीसरी बार फिर से यूपीएससी की परीक्षा दी, जिसमें इस बार सफलता हासिल करते हुए उन्होंने ऑल इंडिया थर्ड रैंक हासिल कर आखिरकार आईएएस अफसर बनने का अपना सपना पूरा कर लिया।
सरकारी स्कूल में टीचर्स हैं पैरेंट्स
दो भाई, दो बहनों में से एक प्रतिभा के प्रतिभा के माता-पिता सरकारी स्कूल में टीचर्स हैं। उन्होंने बताया कि यूपीएससी की परीक्षा आपकी नॉलेज बढ़ाने के साथ ही बहुत कुछ डिमांड भी करती हैं। ऐसे में अपने लक्ष्य को पाने के लिए लगातार मेहनत करते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर कोई UPSC एग्जाम दे रहा है और उसके अंदर लगन और जज्बा है तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।
492 साल बाद अयोध्या में फिर से राम मंदिर बनने जा रहा है। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूमि पूजन करके इसकी शुरुआत करेंगे। वहीं, 30 साल 8 महीने 27 दिन बाद ये दूसरा मौका होगा, जब राम मंदिर के लिए शिलान्यास होगा।
इन 492 सालों में अयोध्या ने कई पड़ाव देखे। मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनी। मस्जिद टूटी फिर बनी, फिर टूटी। 167 साल पहले मंदिर को लेकर पहली बार अयोध्या में हिंसा हुई तो 162 साल पहले इस विवाद में पहली एफआईआर हुई। 135 साल पहले मामला कोर्ट तक पहुंचा और 8 महीने 27 दिन पहले रामलला के पुन: विराजमान होने का सुप्रीम फैसला आया। ये आंकड़े अपने आप में कई कहानियां कहते हैं।
एक लंबी कानूनी लड़ाई की कहानी, सबसे बड़े विवाद की सबसे बड़ी कहानी, आस्था और विश्वास की कहानी, संघर्ष की कहानी, संयोगों की कहानी और न्याय की जीत की कहानी...इस रिपोर्ट में आंकड़ों के जरिए जानिए इन सभी कहानियों को…
1526 में बाबर इब्राहिम लोदी से जंग लड़ने भारत आया था। दो साल बाद 1528 में बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने 1528 में अयोध्या में एक मस्जिद बनवाई। बाबर के सम्मान में इसे बाबरी मस्जिद नाम दिया। 330 साल बाद 1558 में इस मस्जिद को लेकर विवाद शुरू हुआ। जब विवादित परिसर में हवन, पूजन करने पर एक एफआईआर हुई।
अयोध्या रिविजिटेड किताब के मुताबिक एक दिसंबर 1858 को अवध के थानेदार शीतल दुबे ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि परिसर में चबूतरा बना है। ये पहला कानूनी दस्तावेज है, जिसमें परिसर के अंदर राम के प्रतीक होने के प्रमाण हैं।
इस घटना के 27 साल बाद मामला कोर्ट पहुंच गया। जब महंत रघुबर दास ने फैजाबाद डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में राम जन्मभूमि पर मंदिर बनाने के लिए याचिका लगाई। कोर्ट ने उनकी याचिका रद्द कर दी। 1886 मेंं फैसले के खिलाफ अपील हुई लेकिन याचिका फिर रद्द हो गई।
1949 में 22-23 दिसंबर को विवादित स्थल पर सेंट्रल डोम के नीचे रामलला की मूर्ति स्थापित की गई। 23 दिसंबर को मामले में एफआईआर हुई। परिसर का गेट लॉक कर दिया गया। नगर महा पालिका अध्यक्ष का विवादित क्षेत्र का रिसीवर बनाया गया। 5 जनवरी को नगर महा पालिका अध्यक्ष प्रिय दत्त राम इसके रिसीवर बने। 1950 में एक बार फिर मामला कोर्ट पहुंचा और 2019 तक ये कानूनी लड़ाई अंजाम पर पहुंची।
492 साल के अहम पड़ावों की पूरी कहानी
1528 : बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने अयोध्या में मस्जिद बनवाई। बाबर के सम्मान में इसे बाबरी मस्जिद नाम दिया गया।
1853 : अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय पहली बार अयोध्या में सांप्रदायिक हिंसा भड़की। हिंदू समुदाय ने कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई।
1885: महंत रघुबर दास ने फैजाबाद डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में राम जन्मभूमि पर मंदिर बनाने के लिए याचिका लगाई। कोर्ट ने याचिका रद्द कर दी।
1949 : विवादित स्थल पर सेंट्रल डोम के नीचे रामलला की मूर्ति स्थापित की गई। मामले में एफआईआर हुई। परिसर का गेट लॉक कर दिया गया।
1950 : हिंदू महासभा के वकील गोपाल विशारद और परमहंस रामचंद्र दास ने फैजाबाद जिला अदालत में अर्जी दाखिल कर रामलला की मूर्ति की पूजा का अधिकार देने की मांग की।
1959 : निर्मोही अखाड़े ने विवादित स्थल पर मालिकाना हक जताया।
1961 : सुन्नी वक्फ बोर्ड (सेंट्रल) ने मूर्ति स्थापित किए जाने के खिलाफ कोर्ट में अर्जी लगाई और मस्जिद व आसपास की जमीन पर अपना हक जताया।
1981 : उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने जमीन के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।
8 अप्रैल 1984: दिल्ली के विज्ञान भवन में राम मंदिर निर्माण के लिए एक विशाल धर्म संसद का भी आयोजन किया गया।
1986: लोकल कोर्ट ने पूजा के लिए परिसर का लॉक खोलने की अनुमति दी। इससे विवाद को हवा मिली।
1989: एक जुलाई को रिटायर्ड जज देवकी नंदन अग्रवाल ने फैजाबाद कोर्ट में राम के मित्र के रूप में याचिका लगाई।
1989 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल पर यथास्थिति बरकरार रखने को कहा।
9 नवंबर 1989: मंदिर का शिलान्यास हुआ, दलित समुदाय के कामेश्वर चौपाल ने पहली ईंट रखी। कामेश्वर अब श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य हैं।
1990: लालकृष्ण आडवाणी ने देशभर से राम मंदिर के लिए समर्थन जुटाने के लिए रथ यात्रा शुरू की।
1992 : 6 दिसंबर को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहा दिया गया।
1993: केंद्र ने विवादित इलाके के आसपास के 67.7 एकड़ इलाके को अपने कब्जे में ले लिया।
1994: केंद्र के फैसले के खिलाफ लगी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस्लाम में नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है। इसके लिए मस्जिद का होना जरूरी नहीं है।
2002 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित ढांचे वाली जमीन के मालिकाना हक को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
2003: सुप्रीम कोर्ट ने विवादित क्षेत्र में किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि पर रोक लगाई। आर्कोलियॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट जमा की। इसमें विवादित जगह पर किसी पुराने ढांचे के होने की बात की गई।
2009: लिब्राहन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में 68 लोगों पर कार्रवाई की सिफारिश की। इसमें अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे बड़े भाजपा नेताओं के नाम थे।
2010 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2:1 से फैसला दिया और विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच तीन हिस्सों में बराबर बांट दिया।
2011 : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।
2016 : सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण की इजाजत मांगी।
2017: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कोर्ट के बाहर मामला सुलझाने की सुझाव दिया।
2018 : सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद को लेकर दाखिल विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
जनवरी 2019: सुप्रीम कोर्ट ने केस की सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में 5 जजों की बेंच बनाई।
6 अगस्त 2019 : सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर हिंदू और मुस्लिम पक्ष की अपीलों पर सुनवाई शुरू की।
16 अक्टूबर 2019 : सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई पूरी हुई।
9 नवंबर 2019: सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक माना।
तारीख थी 26 जून 2019। इस दिन अमित शाह गृहमंत्री बनने के बाद पहली बार दो दिन के दौरे पर जम्मू-कश्मीर पहुंचे थे। उस समय कहा गया था कि शाह अमरनाथ यात्रा के लिए सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेंगे।
शाह के लौटने के करीब एक महीने बाद 24 जुलाई को एनएसए अजीत डोभाल सीक्रेट मिशन पर श्रीनगर पहुंचे। उनके लौटते ही घाटी में 10 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती कर दी गई। अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों को जल्द से जल्द घाटी से लौटने की एडवाइजरी जारी की गई। 30 साल में ये पहली बार था जब केंद्र सरकार की तरफ से ऐसी एडवाइजरी जारी हुई थी।
कश्मीर में जब ये सब हलचल हो रही थी, तब कई तरह के कयास भी लग रहे थे। पहला कयास तो यही था कि भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है और सीमा पर कुछ भी हो सकता है। क्योंकि उससे पहले अमरनाथ यात्रा के रूट पर पाकिस्तानी माइन भी मिली थी। सरकार की तरफ से भी जवानों की तैनाती बढ़ाने को लेकर साफ-साफ नहीं कहा गया था।
बाद में देश को लग रहा था कि राज्य के लोगों को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 35ए को हटाया जाएगा, लेकिन मोदी सरकार ने एक कदम और आगे जाते हुए जम्मू-कश्मीर को खास दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को ही निष्प्रभावी कर दिया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया।
5 अगस्त 2019 को अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के उन सभी खंडों को हटा दिया, जिसके तहत कश्मीर को जो अलग स्वायत्तता मिली थी, जो अधिकार मिले थे, सब हटा लिए गए। केवल एक खंड लागू रहा, जो जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाता था।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को भले ही 5 अगस्त 2019 को हटाया गया हो, लेकिन इसकी तैयारी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल से ही शुरू हो गई थी।
मोदी के टॉप एजेंडे में कश्मीर ही था
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का वादा जनसंघ के समय से ही किया जा रहा था। अप्रैल 1980 में बनी भाजपा ने जब 1984 में अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा, तब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का वादा था। उसके बाद से भाजपा ने 10 चुनाव लड़े और इनमें से 9 बार घोषणापत्र में यही वादा किया।
कहा जाता है कि मई 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के दिन ही मोदी ने गृह मंत्री बने राजनाथ सिंह से 9 मिनट राष्ट्रपति भवन में कश्मीर मुद्दे पर चर्चा की थी।
इसके बाद जुलाई 2014 में मोदी ने कश्मीर का दौरा किया। 2014 में ही उन्होंने राज्य के 9 दौरे किए। पहले कार्यकाल में मोदी ने 16 बार जम्मू-कश्मीर का दौरा कर साफ कर दिया कि कश्मीर उनके टॉप एजेंडे में शामिल है। उनके दौरों का मकसद कश्मीर की जनता से सीधे जुड़ना था।
प्रधानमंत्री मोदी हर साल सेना के जवानों के साथ दिवाली मनाने के लिए भी कश्मीर जाते हैं। कश्मीर पर मोदी सरकार ने अटल बिहारी वाजपेयी और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की नीति अपनाई। श्यामा प्रसाद मुखर्जी कहते थे कि एक देश में दो विधान नहीं चलेगा। जबकि, अटल बिहारी वाजपेयी ने कश्मीर मामले को सुलझाने के लिए 'कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत' की नीति अपनाई थी।
मई 2019 में मोदी दूसरी बार फिर प्रधानमंत्री चुने गए। इस बार अमित शाह भी उनकी कैबिनेट में शामिल हुए और गृहमंत्री बने। मोदी सरकार फरवरी 2019 में ही अनुच्छेद 370 से जुड़ा बिल लाने की तैयारी कर रही थी, लेकिन पुलवामा हमले की वजह से इसे टाल दिया गया। उसके बाद जब अमित शाह ने गृहमंत्री का कार्यभार संभाला, तो उनका पहला काम कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना ही था।
पीडीपी से गठबंधन किया, ताकि राज्य में जड़ें मजबूत हो सकें
जब भाजपा और पीडीपी के बीच सरकार बनाने को लेकर गठबंधन हुआ, तो इसका विरोध दोनों पार्टियों में हुआ। मुफ्ती मोहम्मद सईद, जो पीडीपी यानी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के मुखिया थे, उन्होंने खुद इस गठबंधन को उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव का मिलन बताया था। हालांकि, जब गठबंधन बना, तो मुख्यमंत्री भी वही बने थे।
पीडीपी ही नहीं बल्कि, उस समय भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता भी इस गठबंधन के खिलाफ थे, क्योंकि उन्हें अमित शाह के प्लान के बारे में पता नहीं था। कश्मीर में शाह की भरोसेमंद टीम में तीन लोग थे। पहले थे राम माधव, जो भाजपा के महासचिव हैं। दूसरे थे रविंदर रैना, जो भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष थे और तीसरे थे अशोक कौल, जो कश्मीर में भाजपा के महासचिव थे। ये तीनों ही थे, जो इस गठबंधन के आर्किटेक्ट थे।
ऐसा कहा जाता है कि ये अनोखा गठबंधन हुआ ही इसलिए था, ताकि भाजपा को कश्मीर में अपनी जड़ें जमाने में मदद मिल सके। ऐसा हुआ भी। करीब तीन साल तक भाजपा और संघ ने कश्मीर में काम किया। उसके बाद 19 जून 2018 को भाजपा ने गठबंधन तोड़ दिया। ये सब शाह की निगरानी में ही हुआ था। ये पहली बार था जब कश्मीर में शाह की रणनीति कामयाब हुई थी।
इस गठबंधन को तोड़ने के लिए भाजपा ने अजीबो-गरीब तर्क दिया था। भाजपा का कहना था कि ईद के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने कश्मीर में सीजफायर खत्म करने का ऐलान किया था, लेकिन पीडीपी ने इसका विरोध किया था।
दरअसल, 2018 के रमजान में कश्मीर में सीजफायर लागू हुआ था। ये एक तरह का एक्सपेरिमेंट था, जिसे उस वक्त 'रमजान सीजफायर' कहा गया था। इसे इसलिए लागू किया गया था कश्मीर में रमजान के महीने में सुरक्षाबल कोई कार्रवाई नहीं करेंगे, लेकिन कोई हमला होता है तो उससे बचने के लिए जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं।
गठबंधन तोड़ने के बाद क्या हुआ?
इस गठबंधन का सबसे ज्यादा नुकसान पीडीपी को ही हुआ, जबकि भाजपा ने इसका जमकर इस्तेमाल किया। गठबंधन तोड़ने के बाद वहां राज्यपाल शासन लागू हो गया। इससे केंद्र सरकार को कश्मीर में नियुक्तियां करने के दरवाजे खुल गए, जो बाद में अनुच्छेद 370 को हटाने में हथियार की तरह साबित हुए। उस समय कश्मीर में अनुच्छेद 370 की वजह से राष्ट्रपति शासन के बजाय राज्यपाल शासन ही लागू होता था।
सबसे पहले मोदी सरकार ने बीवीआर सुब्रमण्यम को जम्मू-कश्मीर का चीफ सेक्रेटरी नियुक्त किया। एंटी-नक्सल एक्सपर्ट और इंटरनल सिक्योरिटी एक्सपर्ट के. विजय कुमार को कश्मीर भेजा गया। के. विजय कुमार छत्तीसगढ़ कैडर के अफसर थे। उन्होंने मनमोहन सिंह और मोदी दोनों के साथ काम किया था।
इन दोनों के अलावा जम्मू-कश्मीर के पूर्व चीफ सेक्रेटरी बीबी व्यास को उस समय के राज्यपाल एनएन वोहरा का एडवाइजर नियुक्त किया गया।
आखिर में 23 अगस्त 2018 को सत्यपाल मलिक को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया। मलिक भाजपा के सांसद भी रह चुके थे।
आखिरी टास्क था, राज्यसभा में संख्या बल जुटाना
गठबंधन टूट गया। नियुक्तियां भी हो गईं। बिल भी तैयार हो गया। अब सिर्फ एक ही टास्क बचा था और वो था राज्यसभा में कैसे संख्या बल जुटाया जाए? इसके लिए भाजपा के 4 बड़े नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई। इनमें धर्मेंद्र प्रधान, पीयूष गोयल, भूपेंद्र यादव और प्रल्हाद जोशी शामिल थे। इन चारों नेताओं ने अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों से बात की और उन्हें बिल के समर्थन में वोट करने के लिए मनाया।
मोदी सरकार को पहले भी आरटीआई बिल और ट्रिपल तलाक बिल पर राज्यसभा में समर्थन मिल चुका था, तो उसे इस बार भी समर्थन जुटाने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का बिल और दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश में बंटवारे करने वाला बिल राज्यसभा में ही पेश किया गया। वहां से पास होने के बाद अगले दिन इसे लोकसभा में लाया गया था।
अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर के टूरिज्म पर क्या असर पड़ा? ये जानने के लिए पढ़ें
भगवान राम की नगरी अयोध्या सज गई है। आज भूमिपूजन का कार्यक्रम है, जिसमें शामिल होने के लिए पीएम मोदी आ रहे हैं। इस कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत भी शामिल होंगे। इसको लेकर तैयारियां पूरी की जा चुकी है। इससे पहले मंगलवार को नया घाट राम की पैड़ी पर मंगलवार को दीपोत्सव मनाया गया। यहां 3,51,000 दीये जलाए गए। प्रधानमंत्री बुधवार को 12:30 बजे भूमि पूजन करेंगे। यह कार्यक्रम करीब 10 मिनट तक चलेगा।
कारसेवकपुरम : 15 सौ लोगों के लिए बनेगा भोजन
विश्व हिंदू परिषद के कार्यालय कारसेवकपुरम से जन्मभूमि के बीच सरकारी अमला भाग- दौड़ में लगा हुआ है। कारसेवकपुरम के गेट पर 4 से 5 पुलिसवाले बैठे हैं। वायरलेस पर वीआईपी मूवमेंट की खबर लगातार आ रही है। गेट से गाड़ियां अंदर जा रही हैं। भीतर गले मे विहिप की ओर से जारी कार्ड लटकाए स्वयंसेवक किसी इवेंट मैनेजमेंट टीम की तरह मुस्तैद हैं। मेहमानों को कोई दिक्कत न हो उसको लेकर एक हेल्प डेस्क बनाई गई है।
जन्मभूमि के भूमिपूजन के लिए जिन मेहमानों को बुलाया गया हैं, उनके साथ एक-एक स्वयंसेवक को तैनात किया गया है। कार्यालय में जो भी नेताओं और पदाधिकारियों से मिलने आ रहा है, उनका नाम और मोबाइल नम्बर भी नोट किया जा रहा है। काशी से आए वीरेंद्र खुद को विहिप का नेता बताते हैं। वे इसलिए अयोध्या आए हैं कि उन्हें भी जन्मभूमि में जाने के लिए पास मिल जाए। लेकिन नेताओं से मिलने के बाद उन्हें निराशा ही हाथ लगी है। वीरेंद्र अकेले नहीं हैं, उनके जैसे 500 से ज्यादा लोग पास की उम्मीद से आए हैं, लेकिन उन्हें मना कर दिया गया है।
रामकुमार हाथ मे राम नाम का झंडा लिए अलीगढ़ से 9 दिन पहले पैदल चले थे, मंगलवार को ही वो अयोध्या पहुंचे हैं। उन्होंने बताया कि अलीगढ़ में ही वो धनिधर सरोवर है, जहां मान्यता के मुताबिक ताड़का वध हुआ था। वे कहते हैं कि मैंने प्रण लिया था कि जब राममंदिर की आधारशिला रखी जाएगी तब वह जहां भी होंगे वहां से वह पैदल अयोध्या आएंगे और रामलला के दर्शन कर वापस होंगे।
रामकुमार को रुकने के लिए कहीं और व्यवस्था करनी होगी क्योंकि कारसेवकपुरम में पहले ही कई लोग आकर ठहरे हैं। रामकुमार की तरह आने वाले कई लोगो के लिए कारसेवकपुरम में भोजन की व्यवस्था तो है, लेकिन ठहरने की नहीं। यहां 3 अगस्त को 300 लोगों का खाना बना था, 4 अगस्त को 800 के लिए बना और 5 अगस्त को 1500 लोगों का भोजन बनेगा। मानस भवन : जन्मभूमि जाने वाले हर मेहमान का कोरोना टेस्ट होगा
कारसेवकपुरम से लगभग 200 मीटर दूर और जहांं पत्थर तराशे जा रहे हैं, उस कार्यशाला के पीछे है मानस भवन। यहां बड़ा गेट बंद कर सिर्फ छोटा गेट खोला गया है। जन्मभूमि जाने वाले मेहमान यहीं रुके हैं। अंदर जाते ही बड़ा सा हॉल है। भगवा कुर्ता और पीले कुर्ते में स्वयंसेवक अनजान लोगों को रोक रहे हैं। अंदर कुछ लोग कौन किस कमरे में रुकेगा, इसकी व्यवस्था कर रहे हैं। मीडिया के प्रवेश पर फिलहाल रोक है।
जानकारी के मुताबिक, जब तक मेहमान पूजा में शामिल नहीं हो जाते, तब तक उन्हें किसी से नहीं मिलना है। एक सज्जन मुस्कुराकर कहते हैं कि कोरोना का डर है। बताया गया कि यहां 40 कमरे हैं। एक संत के साथ उनका एक सेवक भी है। बाकी विहिप के 14 कार्यकर्ता को-ऑर्डिनेशन के लिए लगाए गए हैं। यहीं पर उनके भोजन की व्यवस्था भी की गई है। इसी तरह वैदेही भवन, जैन मंदिर में भी मेहमानों के रुकने की व्यवस्था की गई है।
बगल में ही कार्यशाला है। इसे भी खास तौर पर सजाया गया है। गेट पर फूलों और झालरों की सजावट है और गेट के अगल-बगल दो हाथी खड़े किए गए हैं। अंदर मंदिर में कीर्तन चल रहा है और जन्मभूमि का लाइव प्रसारण देखने के लिए बड़ी-सी एलईडी स्क्रीन भी लगाई गई है। कई टेलीविजन जर्नलिस्ट अपनी लाइव रिपोर्टिंग यहीं से कर रहे हैं।
हनुमानगढ़ी : 15 साल में पहली बार हटाई गई हनुमानगढ़ी पर लगी बैरिकेडिंग, दुकानदार बोले पहली बार ऐसा इंतजाम देखा
हनुमानगढ़ी पर लगी बैरिकेडिंग को 15 साल बाद हटाया गया है। बगल में कपड़े की दुकान में बैठे रौशन कहते है कि जब अयोध्या में ब्लास्ट हुआ था तब सुरक्षा के लिए यह बैरिकेडिंग लगाई थी। अयोध्या कवरेज पर आने वाले टीवी पत्रकारों के लिए फेवरेट प्लेस माना जाता रहा है। पहले जैसे ही कैमरा ऑन होता था। ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी कैप वगैरह लगाकर मुस्तैद हो जाया करते थे लेकिन आज वह छांव में किनारे बैठे है। पूछने पर कहते है कि कल कार्यक्रम खत्म होने के बाद बैरिकेडिंग फिर लग जाएगी।
हनुमानगढ़ी मंदिर की ओर जाने वाली सड़क से मंदिर के बीच 100 मीटर के रास्ते में पड़ने वाली दुकानों को भी रंगा गया है। मंदिर के सामने भीड़ न के बराबर है। पीएम मोदी भी जन्मभूमि जाने से पहले हनुमान जी का दर्शन करेंगे। प्रसाद की दुकान चलाने वाले बृजमोहन कहते है कि रामनगरी के लोगों को पुलिसिया सख्ती की आदत पड़ चुकी है, लेकिन ऐसा इंतजाम पहली बार देख रहा हूं।
कंठी माला बेचने वाले शंभूदयाल कहते हैं कि हमें 5 अगस्त को जब तक पीएम चले न जाएं तब तक दुकानें खोलने से मना किया गया है। वे कहते हैं कि सामने से पीएम को नहीं देखने का दुख जरूर है लेकिन रामलला का मंदिर बन रहा है यह सबसे बड़ी बात है। टेढ़ी बाजार मोहल्ला : शाम 4 बजे तक घर लौट आएं अयोध्या के लोग, मेहमानों को बुलाने पर लगी रोक
सड़क पर लगी बैरिकेडिंग के पास पेड़ के नीचे मोहल्ले के कुछ लोग बैठ कर भूमिपूजन के बारे में बात कर रहे हैं। राकेश कहते हैं कि मैं ड्राइवर हूं, प्राइवेट गाड़ी चलाता हूं। अभी सोमवार को सवारी लेकर गोरखपुर गया था। लौटा तो पता चला कि पुलिस ने कहा है कि अब कोई अयोध्या के बाहर जाएगा तो घर नहीं लौटेगा, अब कार्यक्रम के बाद ही एंट्री होगी।
राकेश के साथ बैठे रामजी कहते हैं कि पड़ोस के गांव में रहने वाले उनके रिश्तेदार अयोध्या आना चाहते थे, इतनी रौनक जो लगी है। कई मेहमान फोन कर आने के लिए बोल रहे थे। लेकिन, हमने मना कर दिया है। पीएम का स्वागत कैसे करेंगे ? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं कि हम लोग तो फूल लेकर यहां खड़ा होना चाहते हैं, लेकिन बताया जा रहा है कि हमें ऐसा करने नहीं दिया जाएगा। वे कहते हैं कि मौका मिलेगा तो जरूर उन्हें जाते हुए देखेंगे।
लगभग डेढ़ किमी के रास्ते पर 4 से 5 मोहल्लेवालों को घरों में कल शाम तक कैद रहना पड़ेगा। टेढ़ी बाजार चौराहे से ही बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब के घर की ओर जाने वाला रास्ता भी है। यहां हमेशा की तरह पुलिस मुस्तैद है और बैरिकेडिंग लगी हुई है, लेकिन सड़क पर सन्नाटा पसरा हुआ है।
बाराबंकी से अयोध्या तक 4 बार चेकिंग होगी
कार्यक्रम को लेकर एसएसपी अयोध्या दीपक कुमार ने सुरक्षा सख्त कर दी है। 4 अगस्त की रात 12 बजे से सिर्फ भूमिपूजन में बुलाए मेहमानों के अलावा अयोध्या के लोगों को ही आईकार्ड दिखाकर शहर में एंट्री मिलेगी। बाराबंकी से अयोध्या की ओर आने वाली गाड़ियों की 4 जगहों पर चेकिंग हो रही है। अकेले अयोध्या में अफसर जवान मिलाकर 5 हजार फोर्स तैनात किए गए हैं।
राम जन्मभूमि के आस-पास कम उम्र के रंगरूटों को ही तैनात किया जा रहा है। ज्यादातर 45 से कम उम्र के। जबकि उनकी टुकड़ियों के साथ अनुभवी लेकिन कम उम्र के अफसर रहेंगे। शहर की सीमा में आने वाले वाहनों की डिटेल, आधार कार्ड या सरकारी आईकार्ड की डिटेल और मोबाइल नंबर भी पुलिसवाले नोट कर रहे हैं।
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