गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

कोहरे की चादर में लिपटा बिहार, अलर्ट जारी, राजस्थान के कोटा में दिसंबर का 9 साल पुराना रिकॉर्ड टूटा

उत्तर भारत के कई हिस्सों में बुधवार का न्यूनतम तापमान सामान्य से नीचे रहा। बिहार घने कोहरे की चपेट में है। पटना के न्यूनतम तापमान में 6.8 डिग्री सेल्सियस की कमी आई। राजस्थान के कोटा में दिसंबर में अधिकतम तापमान का 9 साल का रिकाॅर्ड टूट गया। यहां अधिकतम तापमान 32.5 रिकाॅर्ड किया गया। वहीं इंदौर सहित मध्य प्रदेश के तापमान में फिर बढ़ोतरी हुई है। मौसम वैज्ञानिक इसकी वजह बंगाल की खाड़ी से आई नमी बता रहे हैं।

घने कोहरे की चपेट में बिहार

बिहार में अगले दो दिनों तक काेहरे की चादर बिछी रहेगी। खासकर दिन के 10 बजे तक कोहरा ज्यादा घना होगा। इससे दृश्यता भी प्रभावित होगी। कोहरे के चलते विमानों व ट्रेनों का परिचालन भी प्रभावित हो रहा है। मौसम विज्ञान केंद्र, पटना ने कोहरे से संबंधित अलर्ट भी जारी किया है। इधर, दो दिनों में दिन के तापमान में 6.8 डिग्री सेल्सियस की कमी आई है, जिससे राजधानी में ठंड बढ़ गई है।

वैज्ञानिक सुधांशु कुमार का कहना है कि अधिकतम और न्यूनतम तापमान के बीच का अंतर लगातार घटता जा रहा है, जिससे ठंड में बढ़ोतरी हो रही है। बुधवार को पटना के अधिकतम और न्यूनतम तापमान के बीच मात्र 5.4 डिग्री सेल्सियस का अंतर रह गया।

कोटा में 9 साल का रिकाॅर्ड टूटा, अधिकतम पारा 32.5 डिग्री

बुधवार काे राजस्थान के कोटा में दिसंबर में अधिकतम तापमान का 9 साल का रिकाॅर्ड टूट गया। बुधवार काे शहर का अधिकतम तापमान 32.5 और न्यूनतम 13.3 डिग्री रिकाॅर्ड किया गया। इससे पहले दिसंबर 2011 में अधिकतम पारा 32.8 डिग्री दर्ज किया गया था। विजिबिलिटी 1500 मीटर रही। सुबह धुंध बनी रही। वहीं सुबह 8:30 बजे का पारा 18.2, सुबह 11:30 बजे 29.2, दाेपहर 2:30 बजे 31.8 और शाम 5:30 बजे गिरकर 28.4 डिग्री रिकाॅर्ड किया गया।

इंदौर में रात में ठंडक, लेकिन न्यूनतम पारा सामान्य से 3 डिग्री ज्यादा

बंगाल की खाड़ी से नमी आने की वजह से इंदौर सहित मध्य प्रदेश में तापमान में फिर बढ़ोतरी हुई है। इसका असर लगभग छह दिन रहेगा। बादलों की वजह से दिन के तापमान में कुछ कमी आ सकती है, लेकिन रात का पारा औसत से एकाध डिग्री अधिक ही रहेगा।

ठंड के लिहाज से दिसंबर सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन इस महीने और सीजन में पारा केवल 11.2 डिग्री के ही न्यूनतम स्तर तक गया है। कड़ाके की ठंड के लिए अभी इंतजार ही करना होगा। 20 दिसंबर के बाद ही मौसम सर्द होने के आसार हैं। प्रदेश के प्रमुख शहर भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर में भी अधिकतम तापमान 30 से 31 डिग्री के बीच ही रिकॉर्ड हुआ।



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बिहार में कोहरे के चलते विमानों व ट्रेनों का परिचालन भी प्रभावित हो रहा है।


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किसानों ने फिर लगाया देशभर में आंदोलन का दांव, राजस्थान में कांग्रेस के हाथ से फिसले गांव

नमस्कार!
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोरोना के मरीजों और होम क्वारैंटाइन किए गए संदिग्धों के घर के बाहर क्वारैंटाइन के पोस्टर नहीं लगाए जाने चाहिए। इसके लिए नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत अधिकारी का आदेश जरूरी है। कोर्ट ने कहा था कि घर के बाहर पोस्टर लगने के बाद मरीजों से अछूतों जैसा बर्ताव होता है।
बहरहाल, शुरू करते हैं न्यूज ब्रीफ।

सबसे पहले देखते हैं, बाजार क्या कह रहा है

  • BSE का मार्केट कैप 182.81 लाख करोड़ रुपए रहा। इसमें 55% कंपनियों के शेयरों में बढ़त रही।
  • 3,147 कंपनियों के शेयरों में ट्रेडिंग हुई। इसमें 1,753 कंपनियों के शेयर बढ़े और 1,225 कंपनियों के शेयर गिरे।

आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोपहर एक बजे दिल्ली में संसद भवन की नई बिल्डिंग का भूमि पूजन करेंगे।
  • जम्मू-कश्मीर में DDC चुनाव के लिए आज 5वें चरण की वोटिंग होगी। यहां 8 चरणों में चुनाव होने हैं, जो 28 नवंबर से 19 दिसंबर तक चलेंगे।

कृषि कानून सुधारों पर केंद्र और किसानों में बिगड़ी बात

कृषि कानूनों में सुधारों का केंद्र का प्रस्ताव किसानों ने बुधवार को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि सरकार नया प्रपोजल भेजती है, तो विचार किया जाएगा। किसान नेताओं ने कहा कि देश में आंदोलन तेज किया जाएगा। अंबानी और अडानी के प्रोडक्ट, भाजपा नेताओं का बायकॉट होगा। 12 दिसंबर को देशभर में टोल प्लाजा फ्री किए जाएंगे और दिल्ली-जयपुर हाईवे को ब्लॉक किया जाएगा। इस ऐलान के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने गृह मंत्री अमित शाह के साथ 2 घंटे बैठक की।

राजस्थान में गांवों की परीक्षा में कांग्रेस फेल

राजस्थान की 636 जिला परिषद सीटों और 222 पंचायत समितियों के लिए 4371 सदस्यों के चुनाव के नतीजे बुधवार को आए। राज्य में कांग्रेस की सरकार और किसान आंदोलन के बावजूद इन चुनाव में भाजपा को बढ़त मिली। जिला परिषद की 353 और पंचायत समिति की 1989 सीटों पर भाजपा की जीत हुई। जिला प्रमुख और प्रधान का चुनाव आज, उप जिला प्रमुख और उप प्रधान का चुनाव 11 दिसंबर को होगा।

गांवों को वाई-फाई से जोड़ेगी सरकार

केंद्र सरकार ने इकोनॉमी को बढ़ावा देने के लिए बुधवार को तीन बड़ी योजनाओं की घोषणा की। इनमें एक पब्लिक वाई-फाई नेटवर्क एक्सेस स्कीम 'पीएम वाणी' है। इसका मकसद गांव-गांव तक वाई-फाई नेटवर्क पहुंचाना है। दूसरी योजना अरुणाचल प्रदेश में 4जी नेटवर्क और लक्षद्वीप में फाइबर केबल पहुंचाना है। इसके साथ ही आत्मनिर्भर रोजगार योजना को भी मंजूरी दी गई है।

सोनू सूद ने जरूरतमंदों के लिए प्रॉपर्टी गिरवी रखीं

एक्टर सोनू सूद ने 10 करोड़ रुपए का लोन लेने के लिए अपनी 8 प्रॉपर्टी गिरवी रख दी हैं। सोनू का मकसद लोन की रकम से जरूरतमंदों की मदद करना है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सोनू ने मुंबई के जुहू इलाके में दो दुकानें और छह फ्लैट्स गिरवी रखकर लोन के लिए अप्लाई किया है। सोनू ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि वे बुजुर्गों के घुटनों की सर्जरी करवाना चाहते हैं।

पार्थिव पटेल ने इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास लिया

सबसे कम उम्र में बतौर विकेटकीपर टेस्ट डेब्यू करने वाले पार्थिव पटेल (35) ने इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास ले लिया है। क्रिकेट में उनका 18 साल का करियर रहा। उन्होंने 2002 में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट से डेब्यू किया था। तब पार्थिव की उम्र 17 साल 153 दिन थी। उन्होंने आखिरी टेस्ट जनवरी 2018 और आखिरी वनडे 8 साल पहले 2012 में खेला था।

US का दावा- चीन में हिंदू लड़कियों की मार्केटिंग करता है पाकिस्तान

एक अमेरिकी डिप्लोमैट के मुताबिक, पाकिस्तान हिंदू और ईसाई लड़कियों को चीन में दासी बताकर उनकी मार्केटिंग करता है। यह आरोप सैमुअल ब्राउनबैक ने लगाया है। वे यूएस एडमिनिस्ट्रेशन में रिलीजियस फ्रीडम डिपार्टमेंट के बड़े अफसर हैं। सैमुअल के मुताबिक, अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं को चीन के लोगों से शादी के लिए मजबूर किया जाता है।

आज की पॉजिटिव खबर
15 साल नेगेटिविटी में रहने के बाद चॉकलेट बिजनेस से पॉजिटिविटी फैला रहीं

मुंबई की शालिनी गुप्ता जब 9 साल की थीं, तो उनकी स्किन पर सफेद दाग नजर आने लगे। उन्हें ल्यूकोडर्मा था। यह पता चलते ही फैमिली का व्यवहार बदल गया। 15 साल तक शालिनी घुट-घुटकर जीती रहीं। फरवरी 2019 में उन्होंने सेल्फ डेवलपमेंट की ट्रेनिंग ली। इसके बाद चॉकलेट पसंद करने वालीं शालिनी ने तय किया कि वे ऐसा काम करेंगी, जिसमें चॉकलेट भी हो और पॉजिटिविटी भी।

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भास्कर एक्सप्लेनर
वैक्सीनेशन के बाद भी मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत क्यों?

दुनिया अब कोरोना की वैक्सीन की ओर बढ़ रही है। ब्रिटेन में मंगलवार को इसकी शुरुआत भी हो गई। लेकिन वैक्सीन लगने के बाद होगा क्या? वैक्सीन कितनी इफेक्टिव होगी? इससे किस तरह से लोग प्रोटेक्ट होंगे? क्या वैक्सीन लगने के बाद हमारी पुरानी लाइफ लौट आएगी, जिसमें न मास्क होगा, न सैनेटाइजर और न सोशल डिस्टेंसिंग? जानिए इन सवालों के जवाब।

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सुर्खियों में और क्या

  • इंडियन नेवी ने इजराइल से स्मैश 2000 प्लस फायर कंट्रोल सिस्टम खरीदने के सौदे को मंजूरी दे दी है। इसे राइफल पर फिट किया जा सकेगा। इससे छोटे ड्रोन्स को निशाना बनाया जा सकता है।
  • जम्मू-कश्मीर में पुलवामा के टिकेन इलाके में बुधवार तड़के सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में 3 आतंकी मारे गए। बताया जा रहा है कि ये सभी आतंकी संगठन अल बद्र से जुड़े थे।
  • मध्यप्रदेश में छतरपुर के पुरवा गांव में बारातियों से भरी कार कुएं में गिर गई। इसमें ड्राइवर समेत छह लोगों की मौत हो गई। सड़क किनारे खुदे कुएं में बाउंड्री नहीं थी।
  • संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में चीनी वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है। इसकी इफेक्टिवनेस 86% आई है। ट्रॉयल के शुरुआती डेटा के आधार पर यह दावा किया गया है।


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विरोध के लिए हाइवे चाहिए, इसकी 4 लेन और बढ़वाइए



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बचपन में ल्यूकोडर्मा हुआ, 15 साल नेगेटिविटी में रहीं; अब चॉकलेट बिजनेस से फैला रहीं पॉजिटिविटी

आज की कहानी मुंबई की 26 साल की शालिनी गुप्ता की है। शालिनी 9 साल की थीं तो उनकी स्किन पर सफेद दाग नजर आने लगे। माता-पिता को लगा कि ये कोई बीमारी है। वे शालिनी को डॉक्टर के पास ले गए। वहां पता चला कि शालिनी को कोई बीमारी नहीं बल्कि ल्यूकोडर्मा है। यह एक तरह की स्किन कंडीशन है।

इसके बाद शालिनी की जिंदगी ही बदल गई। उन्हें लेकर परिवार का बर्ताव भी बदल गया। करीब 15 साल तक शालिनी ने घुट-घुटकर जीती रहीं। पिछले साल फरवरी में शालिनी ने सेल्फ डेवलपमेंट की ट्रेनिंग ली। उन्होंने तय किया वे जिसे समाज कमी मानता है वे उसे ही अपनी ताकत बनाएंगी। शालिनी ने फैसला लिया कि वे ऐसा काम करेंगी, जिसमें पॉजिटिविटी हो।

आखिरकार शालिनी ने 2019 में अपने बिजनेस ‘पॉजिटिव चॉकलेट बाय शालिनी’ की शुरुआत की। शालिनी के मुताबिक, मेरी कोशिश है कि मैं लोगों को खुद से प्यार करना सिखाऊं। मेरे इस बिजनेस का मकसद है- स्प्रेड लव विथ चॉकलेट। मैं डार्क चॉकलेट बनाती हूं। यह सेहत के लिए भी फायदेमंद होती है।

मेरी ख्वाहिश है कि मैं लोगों में पॉजिटिविटी ला सकूं इसलिए हर चॉकलेट पीस के साथ एक पेपर स्लिप पर अपने हाथों से पॉजिटिव मैसेज लिखकर देती हूं।’

ल्यूकोडर्मा के कारण बचपन में शालिनी के शरीर पर सफेद दाग हो गए थे।

अपने शुरुआती जीवन के बारे में शालिनी ने बताया कि मुझे ल्यूकोडर्मा हुआ, उस वक्त मैं नानी के घर रहती थी। डॉक्टर के पास से नानी के घर पहुंची तो परिवार का बर्ताव पूरी तरह बदला नजर आया।

घर में नानी बैठी हुई थीं। उन्होंने आवाज देकर पानी मांगा। वहां कोई नहीं था तो मैं उठकर गई और नानी को पानी का गिलास देने लगी। उन्होंने कहा कि मैं तेरे हाथ से पानी नहीं पीयूंगी। तब मुझे बहुत धक्का लगा। आखिर इसमें मेरी क्या गलती है जो मुझसे ऐसे भेदभाव किया जा रहा है। कल तक जो नानी मुझसे प्यार करती थीं, वहीं आज मेरे हाथ का पानी पीने से मना कर रही हैं।

शालिनी बताती हैं कि ल्यूकोडर्मा की पहचान होने के बाद उनके मम्मी-पापा ने भी उन्हें शादियों और किसी पब्लिक प्रोग्राम में ले जाना बंद कर दिया। उन्हें लगता था कि लोग क्या सोचेंगे।

वह कहती हैं कि ल्यूकोडर्मा का पता चलने के बाद से मेरा डॉक्टर्स के यहां आना-जाना शुरू ​हो गया था। एलोपैथी से लेकर आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक डॉक्टर्स के पास जाना लगा रहा। आए दिन मैं किसी न किसी डॉक्टर के क्लीनिक के बाहर लाइन में बैठकर अपने नंबर का इंतजार करती थी। मुझे सिर्फ इस बात का इंतजार रहता था कि कब डॉक्टर मुझे चेक करे और मैं अपनी जान छुड़ाकर वहां से भागूं।

एक वक्त में 24 गोलियां लेनी पड़ती थीं

शालिनी कहती हैं कि मैं छठवीं क्लास में पढ़ती थी तो एक ही वक्त पर 24 गोलियां लेनी होती थी। मुझे दवाइयां खाना पसंद नहीं था लेकिन पैरेंट्स के दबाव में वह सब करना पड़ता था। इन दवाइयों के साथ बहुत सारे रेस्ट्रेक्शन लगने लगे। पैरेंट्स कहते थे कि चॉकलेट नहीं खाना, टमाटर नहीं खाना, दही नहीं खाना, नॉनवेज नहीं खाना है।

उस वक्त मुझे बहुत से परहेज करने होते थे। मुझे सबसे ज्यादा दुख चॉकलेट नहीं खाने का था। चॉकलेट ऐसी चीज होती है जो बचपन में हर बच्चे की फेवरेट होती है। किसी बच्चे से अगर चॉकलेट छीन लो तो उस पर क्या बीतती है यह कोई बच्चा ही जान सकता है।

पैरेंट्स रोकते थे, इसलिए छिपकर खाईं चॉकलेट

शालिनी ने बताया कि उस वक्त मुझे पांच रुपए पॉकेटमनी मिलती थी, ताकि स्कूल ब्रेक के दौरान भूख लगे तो कुछ खा सकूं। घर आकर मम्मी पूछती थीं कि क्या खाया तो मैं झूठ बोल देती थी कि वड़ा पाव खाया या जूस पी लिया। मैं पैसे बचाकर चॉकलेट खाती थी। कभी अपनी फैमिली के सामने चॉकलेट नहीं खा पाई।

शालिनी कहती हैं कि लोग क्या सोचेंगे, इसकी वजह से मुझे काफी परेशानियां झेलनी पड़ीं। मुझे कई साल तक घर में ही बंद रहना पड़ा।आखिरकार एक वक्त आया जब मैंने घर में कैद रहने का विरोध जताना शुरू किया। मैंने कहा कि मुझे भी बाहर जाना है और खुलकर अपनी लाइफ जीनी है।

तब मेरे पैरेंट्स को भी समझ आया कि ये कोई बीमारी नहीं बल्कि एक स्किन कंडीशन है। धीरे-धीरे मैं बाहर निकलने लगी, पैरेंट्स भी साथ लेकर जाने लगे।

शालिनी कहती हैं- मैं सिर्फ चॉकलेट का बिजनेस नहीं करना चाहती थी, इसके साथ-साथ मुझे पॉजिटिविटी भी फैलानी थी।

वह कहती हैं कि मम्मी हमेशा से चाहती थीं कि मैं चार्टर्ड अकाउंटेंसी करूं। इसलिए मैंने सीए की पढ़ाई शुरू कर दी। दो साल पहले मैंने महसूस किया कि मैं सीए तो अपनी मम्मी की वजह से कर रही हूं। ये मुझे कभी करना ही नहीं था। मैंने कोई और विकल्प भी एक्सप्लोर ही नहीं किया था।

इसलिए मैंने अपनी पर्सनैलिटी पर काम करना शुरू किया और समझा कि आखिर मैं क्या करना चाहती हूं। तब मुझे समझ आया कि मेरा सबसे बड़ा पैशन चॉकलेट है।

चॉकलेट बिजनेस शुरू करने के बारे में शालिनी कहती हैं कि जो चीज मेरी सबसे फेवरेट थी, उसे कई साल तक मुझसे दूर रखा गया। मैंने सोचा क्यों न मैं उसी को लेकर कुछ करूं। मैं सिर्फ चॉकलेट का बिजनेस नहीं करना चाहती थी, इसके साथ-साथ मुझे पॉजिटिविटी भी फैलानी थी।

शालिनी कहती हैं कि कुछ लोग तो सफेद दाग को अभी भी छुआछूत की बीमारी मानते हैं। वह कहती हैं ‘ अगर आपको कोई चीज पसंद है तो उसे पीछे मत छोड़िए, उसे लेकर आगे बढ़िए, बिना ये सोचे कि लोग क्या कहेंगे और क्या सोचेंगे।’



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In childhood, leukoderma occurred for 15 years in negativity; Now Positivity is spreading from its chocolate business


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अपनी तारीफ खुद न करें, हमारे अच्छे काम कोई दूसरा बताएगा तो कामयाबी बड़ी हो जाएगी

कहानी- श्रीरामचरित मानस में हनुमानजी माता सीता का पता लगाने के लिए लंका पहुंचे। वहां विभीषण को श्रीराम के पक्ष में किया, सीता को श्रीराम का संदेश दिया, लंका दहन किया, रावण को अपना पराक्रम दिखाया। इतने बड़े काम करने के बाद हनुमानजी सकुशल श्रीराम के पास लौट आए।

इतनी बड़ी सफलता के बाद भी वे श्रीराम के सामने मौन खड़े थे। वे जानते थे कि अपनी तारीफ खुद नहीं करनी चाहिए। उस समय जामवंत और सुग्रीव ने उनकी तारीफ की और श्रीराम को वह सब बताया, जो हनुमानजी ने लंका में किया था।

पूरी बात सुनने के बाद श्रीराम ने भी हनुमानजी की प्रशंसा की, तो उन्होंने भगवान के चरण पकड़ लिए कहा, 'प्रभु ऐसा न करें, आप तो मेरी रक्षा करें।' हनुमानजी ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि प्रशंसा सुनने पर कहीं अहंकार न आ जाए।

उस समय किसी ने हनुमानजी से पूछा, 'जब श्रीराम प्रशंसा कर रहे थे, तो आपने उनके पैर क्यों पकड़ लिए थे?'

तब हनुमानजी ने समझाया, 'जब भी कोई आपकी तारीफ करे, आपकी लोकप्रियता बढ़े तो भगवान, माता-पिता, गुरू, राष्ट्र के साथ ही जिन्होंने हमारी मदद की है, उनके चरणों में हमारी सफलता को अर्पित करना चाहिए।'

सीख- हमें जब भी कोई बड़ी सफलता मिले और लोग हमारी प्रशंसा करते हैं, तो हमें विनम्रता से उसे स्वीकार करना चाहिए। जिन लोगों ने हमारी मदद की है, उनका आभार जरूर मानें। अपनी तारीफ खुद करने से बचें, वरना हमारे स्वभाव में अहंकार बढ़ने लगेगा। ये काम दूसरों को करने देना चाहिए।



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लोगों की जान बचाने के लिए प्रेग्नेंसी में भी डटी रहीं हेल्थ वर्कर्स, अब इन्हें हटाने की तैयारी में सरकार

बात अप्रैल-मई की है। कोरोना मरीजों के इलाज के लिए सरकार कॉन्ट्रैक्ट पर हेल्थ वर्कर्स को अपॉइन्ट कर रही थी। 11 मई को रीवा जिले में मेरी ज्वॉइनिंग हुई। मेरा काम अलग-अलग इलाकों में जाकर सैंपलिंग करना था। इसमें हर रोज दो से तीन कोरोना पॉजिटिव आते थे। मेरे घरवाले परेशान थे। उनका कहना था कि इन हालातों में ड्यूटी करने की जरूरत क्या है? लेकिन मैंने सोचा था कि कोरोना में ड्यूटी कर रही हूं, तो हो सकता है कि सरकार आगे हमारे लिए कुछ करे। यह कहना है जयश्री मिश्रा का।

जयश्री 27 नवंबर को संक्रमित हो गईं। 26 नवंबर तक उन्होंने सैंपलिंग का काम किया था। ड्यूटी के दौरान ही उन्हें फीवर आया। बहुत थकान होने लगी। सुबह जांच करवाई, तो पॉजिटिव आईं। हालत ज्यादा खराब थी, इसलिए वो दस दिनों तक आईसीयू में रहीं। अब हॉस्पिटल से उनकी छुट्टी हो चुकी है। जिस दिन बुखार आया था, उसके अगले दिन 28 नवंबर को उन्हें पता चला कि अब सरकार उनकी सेवाएं नहीं लेना चाहती। उनका कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर दिया गया है।

जयश्री का दर्द ये है कि जब हमने कोरोना मरीजों को बचाने में अपनी जान तक दांव पर लगा दी, तो सरकार एकदम से हमारा साथ क्यों छोड़ रही है। अभी तो हमारे पास दूसरी नौकरी भी नहीं है। जहां काम करते थे, वो भी क्या पता अब रखेंगे या नहीं।

जयश्री की हालत इतनी खराब थी कि उन्हें दस दिनों तक आईसीयू में रहना पड़ा।

मप्र में 6213 हेल्थ वर्कर्स हुए थे अपॉइन्ट
देशभर में राज्य सरकारों ने कोविड-19 के चलते हेल्थ वर्कर्स को कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्त किया था। मप्र में यह नियुक्तियां अप्रैल-मई में की गई थीं। तब 6213 हेल्थ वर्कर्स को कॉन्ट्रैक्ट पर अपॉइन्ट किया गया था। शुरुआत में इनके साथ 3 महीने का करार हुआ था। यही हेल्थ वर्कर्स थे, जो अलग-अलग अस्पतालों में सेवाएं दे रहे थे। सैंपलिंग कर रहे थे। लैब में काम कर रहे थे। मरीजों को चेक कर रहे थे।

आयुष डॉक्टर्स को सरकार 25 हजार, स्टाफ नर्स को 20 हजार, एएनएम को 12 हजार, फार्मासिस्ट को 15 हजार और लैब टेक्नीशियन को 15 हजार रुपए सैलरी दे रही थी। तीन महीने की अवधि के बाद सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट को बढ़ा दिया। जो बढ़ते-बढ़ते अक्टूबर तक आ गया। अब 50% स्टाफ का कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर दिया गया है और बाकी का 31 दिसंबर तक खत्म किया जा सकता है। 4 दिसंबर को हेल्थ वर्कर्स ने राजधानी में प्रदर्शन भी किया था और मांग की थी कि स्थाई नियुक्ति दी जाए या संविदा पर रखा जाए। सरकार का कहना है कि अभी नियुक्ति के लिए बजट नहीं है।

तीन महीने की प्रेग्नेंसी थी, तब ज्वॉइन किया
कोरोना के दौर में कई हेल्थ वर्कर्स ऐसी भी थीं, जो प्रेग्नेंट थीं। फिर भी उन्होंने कोरोना वार्ड में नौकरी के लिए हामी भरी, क्योंकि हर किसी को उम्मीद थी कि सरकार आगे उन्हें संविदा नियुक्ति दे सकती है या कॉन्ट्रैक्ट बढ़ा सकती है। ऐसी ही एक स्टाफ नर्स प्रियंका पटेल हैं। प्रियंका ने 4 अप्रैल को सीधी जिले के कोविड सेंटर में ज्वॉइन किया था। इसके बाद कोविड केयर सेंटर में इनकी नियुक्ति हुई। ज्वॉइनिंग के वक्त प्रियंका को 3 महीने की प्रेग्नेंसी थी।

हमने पूछा कि प्रेग्नेंसी के बावजूद आप कोरोना में ड्यूटी के लिए तैयार हो गईं? तो बोलीं, 'परिवार ने तो मना किया था। मुझे लगा कि जब लोगों की जान खतरे में है, तो उन्हें बचाने के लिए हम जो कर सकते हैं, वह हमें करना चाहिए।'

2 अक्टूबर तक प्रियंका की ड्यूटी चली और 3 अक्टूबर को डिलेवरी हुई। कोविड के पहले प्रियंका नर्सिंग कॉलेज में पढ़ा रहीं थीं। कहती हैं कि ड्यूटी के दौरान कई बार मेरा बीपी लो हुआ। सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत होती थी। तीसरे फ्लोर तक चढ़ना पड़ता था। पति प्राइवेट जॉब में हैं, इसलिए नौकरी करना मेरे लिए जरूरी है। प्रियंका का कॉन्ट्रैक्ट अभी खत्म नहीं हुआ है, लेकिन 31 दिसंबर तक खत्म हो सकता है।

मप्र में कई हेल्थ वर्कर्स का कॉन्ट्रैक्ट 30 नवंबर को खत्म कर दिया गया है। बाकी का 31 दिसंबर तक खत्म किया जा सकता है।

जब पद खाली पड़े हैं, तो नियुक्तियां क्यों नहीं
रीवा जिले में आयुष मेडिकल ऑफिसर शशांक शर्मा की भी कांट्रेक्चुअल नियुक्ति हुई है। वे कहते हैं कि 30 नवंबर को सरकार ने एएनएम कैडर खत्म कर दिया। अब जिले में एक और संभाग में दो फार्मासिस्ट रखे जा रहे हैं। बाकी सभी को निकाल दिया।

उन्होंने बताया कि कोरोना में जब कोई काम के लिए आगे नहीं आ रहा था, तब हम लोग आए। अब सरकार अचानक बाहर फेंक रही है। भोपाल गए, तो वहां हम पर लाठियां बरसाई गईं। शर्मा की चिंता ये भी है कि प्रदेश में जब स्वास्थ्य विभाग में हजारों पद खाली पड़े हैं, तो कोरोना वॉरियर्स को नियुक्ति देकर स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को मजबूत क्यों नहीं किया जा रहा। हालांकि सरकार की तरफ से इन लोगों को यही कहा गया है कि अभी नियुक्ति के लिए बजट नहीं है।

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मैकेनाइजेशन और मोटिवेशन; इनसे आंदोलन फसल नहीं, नस्ल बचाने की लड़ाई बन गया

बड़े व्यावसायिक घराने व्यवसाय की प्रगति के लिए ‘M-2’ रणनीतियां लागू करते हैं। मैनेजमेंट की इन्हीं रणनीतियों से सबक लेकर सिंघु बॉर्डर पर धरना दे रहे किसानों ने भी अपनी ‘M-2’ रणनीति बना ली है। किसानों के लिए ‘M-2’ का अर्थ है मैकेनाइजेशन और मोटिवेशन (मशीनीकरण और प्रेरणा)। इससे इनके आंदोलन को लंबी उम्र मिलती है। आंदोलन के केंद्र में मशीनों का इस्तेमाल खाना पकाने, हेल्थ, सैनिटाइजेशन के मैनेजमेंट और बिजली के लिए किया जा रहा है।

सिंघु बॉर्डर पर हजारों किसान जमा हैं। हाथ से रोटी बनाकर सभी का पेट एकसाथ भर पाना मुश्किल काम है। ऐसे में रोटियों के लिए मशीनें लगा दी गई हैं।

M-2 स्ट्रैटजी को 00 प्वाइंट में समझिए

1. खाना

अभी तक भोजन, खासतौर पर रोटी वॉलंटियर हाथों से पकाते थे। लेकिन, दो दिन से यहां रोटी बनाने की ढेरों मशीनें आ गई हैंं। बस सूखा आटा मशीन के मुंह में डालो और पकी हुई रोटी आपको मिल जाती है। इन मशीनों की क्षमता हर घंटे कम से कम 6,000 रोटियां तैयार करने की है और ये दिनभर काम कर रही हैं।

2. स्वास्थ्य-सफाई

धरना दे रहीं महिलाएं पीरियड्स के दौरान परेशान न हों, इसके लिए उन्हें ब्रांडेड सेनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। सैकड़ों वॉलंटियर्स पीठ पर मच्छर मारने की फॉगिंग मशीन लादे एनएच-44 पर 300 से 500 मीटर की दूरी पर मौजूद हैं। सुबह के समय, सोनीपत जिले के नगरीय निकाय के कर्मचारियों के साथ वॉलंटियर्स के दल सड़कों से कचरा साफ करने में जुट जाते हैं। व्यक्तिगत साफ-सफाई को देखते हुए हाईवे पर अलग-अलग जगह वाॅशिंग मशीनें लगी हुई हैं, जहां कुछ ही घंटों में प्रदर्शनकारियों के कपड़े धोकर और प्रेस करके देने के लिए वॉलंटियर मुस्तैद हैं।

मोबाइल मौजूदा दौर की सबसे जरूरी चीज है। आंदोलन में कम्युनिकेशन का तार न टूटे इसकी भी पूरी व्यस्था है। जगह-जगह चार्जिंग प्वाइंट लगाए गए हैं।

3. पावर सप्लाई

ट्यूब वाॅटर पंप का संचालन करने वाली मोबाइल सोलर वैन को मोबाइल फोन चार्ज करने और बैटरी बैंक के रूप में तब्दील कर दिया गया है और वे हाईवे पर जगह-जगह सुबह से शाम तक तैनात हैं। लंगरों, खाना पकाने के स्थानों और दूसरी जगहों पर रात में रोशनी करने के लिए बैटरियों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें ट्रैक्टरों से चार्ज किया जाता है। मैनेजमेंट के सिद्धांतों को लागू करने से प्रदर्शनकारियों को बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने में मदद मिली है, ताकि वे अनिश्चितकाल तक प्रदर्शन जारी रख सकें। वर्तमान परिस्थितियों में ये बात तर्कसंगत लगती है, लेकिन पर्याप्त मोटिवेशन यानी प्रेरणा के बगैर ये काम नहीं हो सकता। किसान किसी भी मैनेजमेंट गुरु से ज्यादा बेहतर ये बात जानते हैं।

आंदोलन का जोश ठंडा न पड़े, इसके लिए जोशीले गीत गाए जाते हैं। डीजे का इंतजाम किया गया है और युवाओं में जोश भरा जा रहा है।

4. देखकर प्रेरणा

जब युवा ट्रैक्टरों पर लगे डीजे पर ‘हल छड के पालेया जे असीं हथ हथियारां नू...’ (यदि किसान ने हल छोड़कर हथियार उठा लिए...) या ‘फसलां दे फैसले किसान करुगा’ (फसलों के फैसले किसान करेगा) जैसे प्रेरक गीतों को सुनते हैं, तो अचानक युवा प्रदर्शनकारियों की बॉडी लैंग्वेज में बदलाव देखा जा सकता है। ऐसे सैकड़ों गीत युवाओं को प्रेरणा देने के लिए सुनाए जा रहे हैं।

भगत सिह की किताबें, कवि सुरजीत पातर की तस्वीरें। टी-शर्ट पर जोश दिलाने वाले स्लोगन। हर तरह से आंदोलन को और मजबूत करने की कोशिश की जा रही है।

5. देखकर प्रेरणा

क्वालिटी पेपर पर छपी क्रांतिकारी भगत सिंह, लाल सिंह दिल, कवि सुरजीत पातर जैसे हस्तियों की तस्वीरें बांटी जा रही हैं। लोगों ने टी-शर्ट पर तस्वीरें छपवा रखी हैं। तो इनकी तस्वीरों वाली ताश की गड्डियां भी बांटी जा रही हैं। हाइवे के किनारे की दीवारों पर भी युवा प्रेरक पेंटिंग उकेर रहे हैं। हर शाम को ऐतिहासिक फिल्में दिखाई जा रही हैं।

6. भौतिक प्रेरणा

सूर्योदय होते ही 10वें गुरु गोबिंद सिंह की प्रिय- निहंग सेना के सैनिक ऊंचे घोड़ों पर सवार होकर एनएच-44 पर गश्त करते हैं, तो युवाओं में प्रेरणा की लहर दौड़ जाती है और वे रजाई छोड़ बाहर आ जाते हैं। दोपहर में 3 बजे यही समूह पारंपरिक हथियारों के साथ सिखों के मार्शल आर्ट ‘गतका’ का प्रदर्शन करता है। लोग बड़ी संख्या में इनके करतब देखने के लिए जमा होते हैं और युवा खुद को ऊर्जा से भरा हुआ महसूस करते हैं। इस प्रदर्शन के दौरान युद्ध कहानियों की कमेंट्री भी होती रहती है, जिनमें इन हथियारों का उपयोग किया गया था।

यही वो तरीके हैं, जिनके जरिए हरियाणा के 75 वर्षीय सुक्खा सिंह जैसे किसान हफ्तों से धरने पर डटे हुए हैं। सुक्खा सिंह कहते हैं ‘ये फसलों की नहीं, नस्लों को बचाने की लड़ाई है।’

(मनीषा भल्ला और राहुल कोटियाल के इनपुट के साथ)



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किसानों का आंदोलन लंबा चले और जोश भी न ठंडा पड़े, इसके लिए स्ट्रैटजी है। मैकेनाइजेशन से सुविधाएं सुलभ करवाना और मोटिवेशन से जोश भरना। सिंघु बॉर्डर पर ये स्ट्रैटजी साफ दिखती है।


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पेट्रोल पंप मालिक प्रदर्शनकारियों को डीजल-पेट्रोल मुफ्त दे रहे हैं, कमरे-वॉशरूम भी खोल दिए

किसी भी काम में सफलता केवल तभी मिलती है, जब आपके आसपास के लोकल यानी स्थानीय लोग आपके व्यवसाय या गतिविधि को समर्थन देते हैं। निश्चित रूप से स्थानीय लोग आपके व्यवसाय को समर्थन तभी देते हैं, जब आप उनके लिए आजीविका के अवसर खोलते हैं। लेकिन, दिलचस्प रूप से दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे किसानों के लिए लोकल लोग वोकल बन गए हैं, यानी उन्हें समर्थन दे रहे हैं, बावजूद इसके कि उनकी रोजमर्रा की कमाई में भारी नुकसान हो रहा है।

एनएच-44 के किनारे-किनारे बनीं सैकड़ों दुकानों और मॉल के दुकानदारों के लिए दिल्ली से चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर के बीच यात्रा करने वाले ‘हाइवे कस्टमर’ हैं, जो अक्सर उनकी दुकानों पर शॉपिंग के लिए रुकते हैं।

यह एक बहुत ही गुलजार अर्थव्यवस्था थी, जो 14 दिनों से शांत है और इन दुकानों में तब से एक भी ग्राहक नहीं आया है। इन दिनों दुकानदारों ने जो ग्राहक देखे हैं, वे इन्हीं प्रदर्शनकारियों में से हैं, जो कभी कपड़े या जूते खरीदने आ जाते हैं।

स्थानीय लोगों ने खाना-पीना ही नहीं, जरूरत की चीजों का भी जिम्मा संभाला है। उनका कहना है कि आंदोलन में सभी का फायदा है।

उदाहरण के लिए हाइवे से लगे खत्री मार्केट को ही ले लीजिए, जो धरनास्थल के नजदीक है। इस मार्केट में तमाम ब्रांडेड प्रोडक्ट्स के फैक्ट्री आउटलेट हैं। हर शोरूम में रोजाना 30 से 70 हजार का बिजनेस हो जाता था। यही नहीं, रोजाना 7 हजार रुपए तक कमाने वाले टायर पंक्चर और ट्रक रिपेयर मैकेनिक मोहम्मद शफीकुर और ढाबा चलाने वाले सतपाल जैसे लोगों के गल्ले में पिछले दो दिनों से एक पैसा भी नहीं आया है। लेकिन, वे प्रदर्शनकारियों के साथ हैं और कहते हैं, ‘हम सबके साथ हैं, क्योंकि इसमें सभी का फायदा है।’

मल्टी-ब्रांडेड शोरूम मालिक कप्तान सिंह की रोजाना की औसत बिक्री 50 हजार रु.थी, लेकिन अब लगभग बंद है। इनमें से अधिकांश लोगों के मन में प्रदर्शनकारियों के प्रति सहानुभूति है, क्योंकि इनके परिवार का कोई न कोई सदस्य खेती से जुड़ा हुआ है और इनके मन में भी वही चिंताएं हैं। दिलचस्प बात ये है कि पेट्रोल पंप के मालिक भी न केवल कुछ किसानों को मुफ्त में डीजल और पेट्रोल दे रहे हैं, बल्कि उन्होंने अपने पंप पर बने कमरे और वॉशरूम प्रदर्शनकारियों, खासतौर पर महिलाओं के लिए 24 घंटे खुले रखे हैं।

बीमारों के लिए एंबुलेंस की व्यस्था भी लोकल लोगों ने की है। ढाबों ने पार्किंग में आंदोलनकारियों के आराम के लिए पंडाल लगाए हैं।

ढाबे वालों ने अपने पार्किंग एरिया में बड़े-बड़े पंडाल लगा रखे हैं ताकि प्रदर्शनकारी रात में आराम कर सकें। हाइवे के आसपास रहने वाले स्थानीय लोगों ने भी अपने घरों के एक-दो कमरे बुजुर्गों और महिलाओं-बच्चों के लिए खोल रखे हैं। इसके बावजूद कि हाइवे की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है, सिंघु बॉर्डर के लोकल लोग प्रदर्शनकारी किसानों के समर्थन के लिए वोकल बने हुए हैं।

(मनीषा भल्ला और राहुल कोटियाल के इनपुट के साथ)



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ये सिंघु के एक पेट्रोल पंप की फोटो है। किसानों के ठहरने की व्यवस्था शेड के नीचे की गई है। महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों का खास ख्याल रखा जा रहा है।


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अब एजुकेशन सिर्फ स्कूल-कॉलेज के भरोसे नहीं, ऐसा होगा भारत में शिक्षा का भविष्य

साल 2020 का मार्च का महीना था। कोविड-19 ने भारत में तेज रफ्तार से पैर पसारने शुरू कर दिए थे। लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही देशभर के करीब 13 लाख स्कूल, 52 हजार हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूट और हजारों कोचिंग सेंटर्स के दरवाजे एक झटके में बंद हो गए। नतीजतन भारत के करीब 25 करोड़ स्कूली स्टूडेंट, 4 करोड़ कॉलेज स्टूडेंट और करीब 1.5 करोड़ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले स्टूडेंट घरों में कैद हो गए, लेकिन सीखने-सिखाने का सिलसिला तो नहीं रुकना चाहिए।

यहीं पर धमाकेदार एंट्री मारी 'एडटेक' यानी एजुकेशन टेक्नोलॉजी ने।

भारत के लिए एडटेक कोई नया शब्द नहीं है। एडटेक का मतलब है ऑनलाइन पढ़ाई यानी शिक्षा को डिजिटल माध्यमों जैसे मोबाइल, टैबलेट या लैपटॉप के जरिए दूर-दराज के इलाकों में घर बैठे स्टूडेंट तक पहुंचाना। पिछले कुछ सालों में ये सेक्टर लगातार चर्चा में है और बढ़ रहा है, लेकिन कोविड-19 की वजह से यह दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ने वाले सेक्टर में से एक बन गया। कोविड-19 के दौरान एडटेक इस्तेमाल करने वालों और इस सेक्टर में निवेश करने वालों की संख्या में पहले के मुकाबले काफी इजाफा देखने को मिला है।

यहां सवाल उठता है कि क्या एडटेक सेक्टर में बूम सिर्फ मौजूदा कोविड-19 से पैदा हुए हालात की वजह से है या इसमें आगे की संभावनाएं भी हैं? भारत में शिक्षा का भविष्य कैसा होगा और उसमें एडटेक की क्या भूमिका रहेगी? हम यहां इन्हीं सवालों का जवाब देने की कोशिश करेंगे।

उदारीकरण ने एजुकेशन को संभाला और संवारा

शुरू से शुरू करते हैं। बात 1990 के दशक की है। भारत में उदारवादी अर्थव्यवस्था लागू होने से लोगों के जीवन स्तर में सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे थे। एजुकेशन सेक्टर भी इससे अछूता नहीं रहा। महज 10 सालों में भारत में कॉलेज और उनमें आवेदन करने वालों की संख्या दोगुनी हो गई। इस दशक में करीब 30 करोड़ नए साक्षर जुड़े, जो पिछले 20 सालों से भी ज्यादा थे। उस दौरान आईटी सेक्टर तेजी से बढ़ रहा था। दिल्ली-मुंबई स्थित बड़े संस्थानों से पढ़े स्टूडेंट्स को देश-विदेश में अच्छी नौकरियां मिल रही थीं। भारत की आर्थिक रफ्तार के साथ शिक्षा के लिए लोगों की भूख भी बढ़ रही थी। इस सबके बावजूद 21 सदी की शुरुआत तक एडटेक का कहीं जिक्र नहीं था। साल 2005 तक भारत की महज 5% आबादी तक ही इंटरनेट की पहुंच थी।

भारत ने दुनिया को दिया एडटेक का कॉन्सेप्ट

साल 2005 की बात है। बेंगलुरु के आईटी एक्सपर्ट के गणेश के दिमाग में एक आइडिया आया। उस वक्त अमेरिका में लोकल ट्यूशन की फीस करीब 40 डॉलर प्रति घंटा होती थी, जिसे बहुत सारे स्टूडेंट अफोर्ड नहीं सकते थे। गणेश एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाना चाहते थे, जिससे ये फीस कम हो सके। यहीं से ट्यूटर विस्टा (TutorVista) का जन्म हुआ। उन्होंने 100 डॉलर सालाना की फीस पर अनलिमिटेड विषयों के ट्यूशन का ऑफर दिया। उनका आइडिया चल निकला और एक वक्त ऐसा भी आया, जब उनके प्लेटफॉर्म पर 60 लाख लोग आने लगे। इस तरह से गणेश ने एडटेक सेक्टर के बीज डाल दिए। इसी तरह 2005 में ही एक और टेक्निकल एजुकेशन बेस्ड कंपनी एडुकॉम्प (EduComp) भी शुरू की गई।

बायजू की शुरुआत से एडटेक सेक्टर को मिली दिशा

2009-10 का दौर आया। भारत में एमबीए का चलन तेजी से बढ़ रहा था। उस दौरान दक्षिण भारत के एक कस्बे में रविंद्रन बायजू नाम के एक इंजीनियर लड़के ने अपने कुछ दोस्तों को एमबीए एग्जाम की तैयारी में मदद करने की सोची। रविंद्रन के ट्यूशन का तरीका इतना अच्छा था कि धीरे-धीरे उसकी लोकप्रियता बढ़ने लगी। रविंद्रन बायजू कई शहरों में कोचिंग देने लगा, लेकिन हर जगह एक साथ मौजूद रहना संभव नहीं था। यहीं से रविंद्रन को एक आइडिया आया और उसने CAT के लिए ऑनलाइन वीडियो बेस्ड लर्निंग प्रोग्राम तैयार किया। इसके बाद साल 2015 में उसने अपना फ्लैगशिप प्रोडक्ट Byju’s – द लर्निंग एप लॉन्च किया। यह रविंद्रन बायजू के करियर और भारत में एडटेक इंडस्ट्री के भविष्य के लिए गेम चेंजर साबित हुआ। आज बायजू एडटेक सेक्टर में दुनिया का सबसे बड़ा यूनिकॉर्न है।

डिजिटल इंडिया मुहिम और रिलायंस जियो के सस्ते इंटरनेट की सौगात मिली तो एडटेक इंडस्ट्री को पंख लग गए। महज 5-6 साल के छोटे वक्त में ही भारतीय एडटेक सेक्टर ने तमाम ग्लोबल स्टैंडर्ड हासिल कर लिए हैं। चाहे बात फंडिंग की हो, स्टार्ट-अप्स की हो या फिर शहरों की, भारत दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले एडटेक के क्षेत्र में आगे खड़ा है।

कोविड-19 के दौरान एडटेक ने बदला गियर

कोविड-19 की वजह से जब कई सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुए, उस वक्त एडटेक सेक्टर ने छलांग मारी। महज 6-8 महीने के कम वक्त में भी एडटेक भारत का सबसे पसंदीदा सेक्टर बन गया। ये दावा करने के पीछे कई पुख्ता वजहें हैं...

कोविड-19 से पहले 2022 तक एडटेक सेक्टर का अनुमानित बाजार 2.8 बिलियन डॉलर था, लेकिन कोविड-19 की वजह से मिले बूम के बाद अब 2022 का अनुमानित बाजार 3.5 बिलियन डॉलर हो गया है।

2019 की पहली छमाही में एडटेक सेक्टर की फंडिंग 158 मिलियन डॉलर थी, जो 2020 की पहली छमाही में पांच गुना बढ़कर 714 मिलियन डॉलर हो गई।

मौजूदा आर्थिक हालात को देखते हुए किसी सेक्टर में पांच गुना बढ़ोतरी बहुत ज्यादा है। इसका सीधा मतलब है कि निवेशक एडटेक क्षेत्र में लंबे समय तक बड़ी पारी खेलना चाहते हैं।

कोविड-19 के दौरान एडटेक फर्क के ट्रैफिक में बढ़ोतरी

Udemy.com 9%
Coursera.org 7%
Doubnut.com 3%
Byjus.com 3%
  • बार्क इंडिया नील्सन की रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान एडटेक फर्म पर औसत समय बिताने में 30% की बढ़ोतरी देखने को मिली।
  • कोविड-19 के दौरान एडटेक ऐप्स डाउनलोड करने के मामले में 88% का इजाफा रिकॉर्ड किया गया।
  • कोविड-19 के दौरान एडटेक फर्म के सब्सक्राइबर बेस में भी उछाल आया। एक शोध के मुताबिक, के-12 सेगमेंट का सब्सक्राइबर बेस 45 मिलियन से बढ़कर 90 मिलियन हो गया। इसके अलावा 83 प्रतिशत उछाल पेड यूजर बेस में आया है।

एडटेक फर्म कोर्सेरा के भारत में मैनेजिंग डायरेक्टर राघव गुप्ता का कहना है कि लॉकडाउन के 6 महीने में हमने ग्लोबल स्तर पर 650% की ग्रोथ और भारत में 1400% से ज्यादा की ग्रोथ रिकॉर्ड की है। जनवरी में कोर्सेरा के भारत में 50 लाख यूजर थे, जो अगस्त तक 80 लाख हो गए।

एडटेक फर्म ग्लोबल शाला की संस्थापक और सीईओ अनुशिका जैन का कहना है कि कोविड ने इस मॉडल को खूब बढ़ावा दिया है। अब हर व्यक्ति जानता है कि आभासी पढ़ाई कैसे होती है। हालांकि, अभी भी बहुत सारे संस्थान एक रात में ऑनलाइन नहीं हो सकते, हम इस गैप को भरने के लिए तैयार हैं।

सरकार कैसे कर रही एडटेक इंडस्ट्री को मदद

साल 2009 में भारत सरकार ने बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून पारित किया। इस कानून का मकसद था कि 6-14 साल के 100% बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मिले। 10 सालों में यह कानून काफी प्रभावी रहा है और अब देश में प्राइमरी शिक्षा सभी के लिए उपलब्ध है। अब सरकार के सामने अगली बड़ी चुनौती प्राइमरी के बाद पढ़ाई छोड़ने वालों को लेकर है। इस दिशा में किए जा रहे सरकार के प्रयासों से एडटेक सेक्टर को भी मदद मिल रही है।

सरकार ने 2020-21 के बजट में डिपार्टमेंट ऑफ स्कूल एजुकेशन और लिटरेसी को 8.56 बिलियन डॉलर आवंटित किए हैं और इस साल ग्रास इनरोलमेंट रेशियो (GER) का टारगेट 30% रखा है।

सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में 100% FDI का रास्ता भी साफ कर दिया। जुलाई 2020 में गूगल ने CBSE के साथ मिलकर 22 हजार शिक्षकों को ट्रेनिंग देने का ऐलान किया था। इंटीग्रेटेड लर्निंग एक्सपीरियंस की वजह से आने वाले दिनों में वर्चुअल क्लासरूम का ज्यादा इंगेजिंग हो सकेंगे।

शिक्षा के सुधार में एक बड़ा बदलाव 2018 में हुआ जब टर्शियरी एजुकेशन सिस्टम ने UGC के नियमों के तहत ऑनलाइन डिग्री सर्टिफिकेट की शुरुआत की। ओपन ऑनलाइन कोर्स के लिए सरकार ने SWAYAM नाम का प्लेटफॉर्म लॉन्च किया।

मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्स (MOOC) के जरिए 82 अंडरग्रेजुएट, और 42 पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स जुलाई 2020 में जोड़े गए हैं। अब 400 से ज्यादा ऑनलाइन कोर्स मुफ्त में ऑफर किए जा रहे हैं, इनमें आईआईटी जैसे संस्थान भी शामिल हैं। मई 2020 में कॉलेज एंट्रेस टेस्ट की तैयारी के लिए नेशनल टेस्ट अभ्यास नाम का ऐप डाउनलोड किया गया। इसके अलावा दीक्षा और आईआईटी पीएएल जैसे कदम भी उठाए गए। ये सभी इनीशिएटिव प्रधानमंत्री ई-विद्या अभियान के तहत उठाए गए हैं।

इसके अलावा नई शिक्षा नीति 2020 के कई नियम भी एडटेक सेक्टर को बढ़ावा देने वाले साबित हो सकते हैं।

अपग्रैड के को-फाउंडर रॉनी स्क्रूवाला का कहना है कि कंपनी सरकार की नई नीति को ध्यान में रखते हुए व्यापार तीन गुना बढ़ाएगी। यह बड़ा अवसर है। यह विश्वविद्यालयों, छात्रों और नियोक्ताओं की मानसिकता को भी बदलेगा और ऑनलाइन शिक्षा को वैलेडिटी भी देगा। यह एक इंडस्ट्री के लिए बड़ी सफलता है।

भारत और दक्षिण एशिया में गूगल की एजुकेशन हेड बानी धवन का कहना है कि NEP ने पहले ही भारत के लिए ऐसा आधार बना दिया है, जिससे जापान, इंडोनेशिया और सिंगापुर का मॉडल अपनाया जा सके। धवन का कहना है कि कोविड महामारी के दौरान भारत सरकार ने भी कई स्तर पर बैठक और बातचीत की है, जिससे इंटरनेट कनेक्टिविटी और शिक्षकों की स्किल को सुधारने पर काम किया जा सके। कंप्यूटेशनल थिंकिंग और कोडिंग का बढ़ता चलन नए लर्निंग प्लेटफॉर्म की मांग पैदा कर रहे हैं।

एडटेक सेक्टर के सामने चुनौतियां

  • भारत में शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची का विषय है यानी शिक्षा के बारे में केंद्र और राज्य दोनों को कानून बनाने का अधिकार है। इसके अलावा सीबीएसई, आईसीएसई और राज्यों के अलग-अलग बोर्ड के नियम-कानून भी हैं। कानून एक जैसे न होने की वजह से एडटेक सेक्टर को इससे जूझना पड़ता है। कई बार ये नियम-कानून रुकावट भी बन सकते हैं।
  • एडटेक से जुड़ी बातों को लेकर स्पष्ट गाइडलाइन्स का अभाव है। मसलन- डेटा प्राइवेसी, ऑनलाइन सर्टिफिकेट की मान्यता, एफडीआई वगैरह। इन अनिश्चितताओं की वजह से निवेशक भी पूरे मन से निवेश करने में घबराते हैं।
  • छोटे शहर, कस्बे और ग्रामीण इलाके, जहां भारत की अधिकांश आबादी रहती है। वहां इंटरनेट कनेक्टिविटी की बड़ी समस्या है। अभी उस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर भी नहीं है। ये सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकती है, क्योंकि आप ई-लर्निंग ऑफलाइन नहीं कर सकते।

कोविड-19 के पार एडटेक का संसार

अब आते हैं इस सवाल पर कि क्या कोविड-19 के बाद भी एडटेक सेक्टर इसी गति से आगे बढ़ेगा? इसके दो जवाब हो सकते हैं। पहला- अगर कोविड-19 की वैक्सीन आने में देरी होती है या वैक्सीन उतनी प्रभावी नहीं होती तो बच्चों को समुचित रूप से स्कूल भेजना मुश्किल होगा। इस स्थिति में एडटेक ही एक सहारा होगा, क्योंकि यह सुलभ, जरूरत के अनुरूप और सस्ता माध्यम है।

दूसरा- क्या हम उस स्तर की टेक्नोलॉजी तक पहुंच गए हैं कि स्कूल और कॉलेज की जगह एडटेक फर्म ले सकें? शायद नहीं। अभी भी भारत के अधिकांश घरों में समुचित इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल गैजेट्स मौजूद नहीं हैं। इसके अलावा बच्चों के टोटल विकास के लिए भी स्कूल और क्लासरूम जरूरी हैं।

आखिर में यही कहा जा सकता है कि एडटेक इंडस्ट्री भारत में निश्चित रूप से कोविड-19 के बाद भी विकास करेंगी, लेकिन ये स्कूल-कॉलेज का विकल्प बन पाएंगी या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा।



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The Future Of Education in India: How Edtech Industry growing? BYJUS UDEMY Unacademy Online Learning


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वैक्सीन लगने के बाद भी मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत क्यों होगी?

कोरोना से लड़ते-लड़ते दुनिया वैक्सीनेशन की ओर बढ़ गई है। मंगलवार को ब्रिटेन में इसकी शुरुआत भी हो गई, लेकिन वैक्सीन लगने के बाद होगा क्या? वैक्सीन कितनी इफेक्टिव होगी? इससे किस तरह से लोग प्रोटेक्ट होंगे? क्या वैक्सीन लगने के बाद हमारी पुरानी लाइफ लौट आएगी, जिसमें न मास्क होगा, न सैनेटाइजर और न सोशल डिस्टेंसिंग? अब ये सवाल हर किसी के मन में हैं। आइये जानते हैं इसी तरह के सवालों के जवाब...

वैक्सीन लगने के बाद क्या होगा?

ये वैक्सीन न्यू मैसेंजर RNA यानी mRNA तकनीक से बनाई गई है। इसे लोगों की बांह पर इंजेक्ट किया जाएगा। वैक्सीन लगते ही ये तेजी से हमारे ब्लड में एब्जॉर्ब हो जाएगी। जहां ये हमारे इम्यून सिस्टम को एंटीबॉडी बनाने में मदद करेगी। तीन हफ्ते के अंदर इसके दो डोज दिए जाने के बाद वैक्सीनेटेड इंसान के शरीर में बनी एंटीबॉडी उसे कोविड-19 की चपेट में आने से बचाएंगी। ये वैक्सीन अब तक 95% असरदार साबित हुई है।

वैक्सीन लगने के बाद कुछ लोगों को सिर में दर्द या थकान की शिकायत हो सकती है। फाइजर ने अपने ट्रायल के दौरान पाया था कि वैक्सीन का दूसरा डोज लगने के बाद 3.8% वॉलेंटियर्स ने थकान की शिकायत की। वहीं, 2% वॉलेंटियर्स ने सिर में दर्द होने की बात बताई। जिन वॉलेंटियर्स पर वैक्सीन के विपरीत प्रभाव दिखाई दिए थे, उनमें से ज्यादातर बुजुर्ग थे।

ये वैक्सीन किस तरह का प्रोटेक्शन देगी?

अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने मंगलवार को फाइजर की इस वैक्सीन का रिव्यू किया। 53 पेज के अपने रिव्यू में FDA ने कहा कि पहला डोज लगते ही कोविड-19 के गंभीर संक्रमण का खतरा टल जाता है। पहले डोज के बाद और दूसरे डोज से पहले कोरोना होने का खतरा कम हो जाता है। वैक्सीन की दूसरी डोज लगने के कम से कम सात दिन बाद कोरोना होने का खतरा लगभग खत्म हो जाता है। एडमिनिस्ट्रेशन ने अपनी रिपोर्ट में इस वैक्सीन को हाइली इफेक्टिव बताया है।

क्या वैक्सीन लगने के बाद मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत नहीं होगी?

  • फाइजर के इस वैक्सीन ट्रायल में इस बात पर फोकस किया गया कि कितने वैक्सीनेटेड लोग कोरोना संक्रमित हुए। यानी, वैक्सीन लगने के बाद भी ऐसी आशंका है कि वैक्सीनेटेड इंसान संक्रमित हो जाए और उसमें कोरोना के लक्षण नहीं दिखाई दें। ऐसा होने पर वो एक साइलेंट वायरस ट्रांसमिटर की तरह हो जाएगा, जो दूसरों को संक्रमित करेगा। खासतौर पर अगर वो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करता है और मास्क पहनना छोड़ देता है।

  • सैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के इम्यूनॉलजिस्ट मिचेल तल ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, 'बहुत से लोग ऐसा सोचते हैं कि उनको वैक्सीन लग जाएगी, तो उन्हें मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की जरूरत नहीं होगी, लेकिन ऐसा नहीं है। वैक्सीन लगने के बाद भी वो कोरोना कैरियर बन सकते हैं।'

  • दरअसल, कोरोना जैसे रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन में वायरस के शरीर में दाखिल होने का सबसे आसान रास्ता नाक होती है। अगर वैक्सीनेटेड इंसान दोबारा कोरोना के संपर्क में आता है तो उसके शरीर में बनी एंटीबॉडी और उसकी इम्यून सेल्स वायरस को नाक में ही रोक देंगी और वायरस उसके शरीर के बाकी किसी हिस्से में नहीं जा पाएगा। लेकिन, नाक में मौजूद वायरस सांस लेने या छींकने पर दूसरों को संक्रमित कर सकता है।

क्या वैक्सीन लगने के बाद भी बिना मास्क वाली लाइफ नहीं लौटेगी?

अब तक ऐसा कोई सबूत नहीं है कि ये वैक्सीन कोरोना के संक्रमण को फैलने से भी रोकती है इसलिए ऐसा ही कह सकते हैं। एक और बात अब तक जितनी भी वैक्सीन के ट्रायल हुए हैं या जो वैक्सीन इमरजेंसी यूज के लिए अप्रूव हुई हैं, उनमें से कोई भी 100% इफेक्टिव नहीं है। वैज्ञानिक वैक्सीन लगने के बाद भी हाथ धोने, मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की सलाह दे रहे हैं।

ब्रिटेन की सरकार ने भी लोगों से अलर्ट रहने को कहा

ब्रिटेन सरकार के चीफ साइंस एडवाइजर पैट्रिक वालेंस ने देश के लोगों को लापरवाही से बचने की सलाह दी है। ‘द टेलीग्राफ’ अखबार से बातचीत में पैट्रिक ने कहा- यह बात सही है कि हम वैक्सीन लाने वाले पहले देश बन गए हैं। यह बहुत बड़ी कामयाबी है, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि हम लापरवाह हो जाएं। मेरा मानना है कि हमें अगली सर्दियों में भी मास्क पहनना पड़ सकता है और इसके लिए तैयार रहना चाहिए। वैक्सीनेशन के साथ अगर लोग सावधानी रखेंगे तो यह उनके लिए ही बेहतर होगा। इसके साथ ही प्रतिबंध लागू रहेंगे, क्योंकि इनका कोई विकल्प नहीं है।



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Pfizer Biontech Coronavirus Vaccine; Why Wearing a Mask and Social Distancing Matter Even After COVID Vaccine


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कुछ डिफरेंट खाने का मन है तो गाजरी कोफ्ते ट्राय करें, कोफ्तों को डीप फ्राई करके भूने मसाले में डालें



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जिन्होंने डायनामाइट जैसा विनाशकारी विस्फोटक खोजा, उन्हीं के नाम पर शांति का पुरस्कार दिया जाता है

आज ही के दिन 1896 में डायनामाइट की खोज करने वाले वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल का निधन हुआ था। उनके निधन के पांच साल बाद 1901 में 10 दिसंबर को ही पहली बार नोबेल सम्मान दिए गए थे। दरअसल, अल्फ्रेड के भाई लुदविग की 1888 में मौत हुई। तब एक फ्रेंच अखबार ने अनजाने में छाप दिया कि अल्फ्रेड नोबेल का निधन हो गया। इसके साथ अखबार ने उनकी कड़ी आलोचना करते हुए उन्हें 'Merchant Of Death' यानी 'मौत का सौदागर' बताया।

इसी बात ने अल्फ्रेड को परेशान कर दिया और वो शांति के काम में लग गए। उन्होंने अपनी मौत के एक साल पहले वसीयत लिखी, जिसमें उन्होंने संपत्ति का सबसे बड़ा हिस्सा ट्रस्ट बनाने के लिए अलग कर दिया। उन्हीं के सम्मान में 1901 से हर साल 10 दिसंबर को नोबेल पुरस्कार दिया जाता है। तब से अब तक कई जानी-मानी हस्तियों के ये पुरस्कार मिल चुके हैं।

2014 में भारत के कैलाश सत्यार्थी को भी नोबेल शांति पुरस्कार मिला था, लेकिन क्या आप जानते हैं कि तानाशाह एडोल्फ हिटलर को भी 1939 में इन पुरस्कारों के लिए नॉमिनेट किया गया था। उन्हें नॉमिनेट करने वाले ने मजाक के तौर पर ऐसा किया था। लेकिन, हिटलर के नॉमिनेशन के बाद विवाद बढ़ते ही ये नॉमिनेशन वापस ले लिया गया। सोवियत तानाशाह स्टालिन को 1945 और 1948 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया।

जब कुंबले ने कपिल को पीछे छोड़ा
आज ही के दिन 2004 में अनिल कुंबले ने कपिल देव के टेस्ट में 434 विकेट के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ा था। कुंबले में ढाका में बांग्लादेश के खिलाफ हुए टेस्ट के पहले ही दिन दो विकेट लेकर ये कारनामा किया। उन्होंने अपने टेस्ट करियर में कुल 619 टेस्ट विकेट लिए। यह आज भी भारतीय रिकॉर्ड है। कुंबले से ज्यादा विकेट सिर्फ श्रीलंका के मुथैया मुरलीधरन (800) और ऑस्ट्रेलिया के शेन वॉर्न (708) ने लिए हैं।

अनिल कुंबले ने टेस्ट करियर में 619 विकेट लिए, जबकि वनडे में उन्होंने 337 और टी-20 में 45 विकेट लिए हैं।

भारत और दुनिया में 10 दिसंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैं:

  • 1868: दुनिया की पहली ट्रैफिक लाइट लंदन में लगाई गई। इसका इन्वेंशन जेपी नाइट ने किया था जो एक रेलवे सिग्नल इंजीनियर थे।
  • 1878: स्वतंत्रता सेनानी सी राजगोपालाचारी का जन्‍म हुआ था।
  • 1950: यूएन से आज के दिन को मानव अधिकार दिवस घोषित किया।
  • 1958: अमेरिका की पहली डोमेस्टिक जेट पैसेंजर फ्लाइट बोइंग 707 ने न्यूयॉर्क से मयामी तक उड़ान भरी। ढाई घंटे की उड़ान में 111 यात्री सवार थे।
  • 1982: समुद्र से जुड़े कानून बताने वाली ट्रीटी पर दुनिया के 117 देशों ने साइन किए।
  • 2000: पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को दस साल के लिए पाकिस्तान से निर्वासित कर दिया गया। शरीफ उस वक्त किडनैपिंग, हाइजैकिंग और करप्शन के मामलों में सजा काट रहे थे।
  • 2001: भारतीय सिनेमा के दिग्गज कलाकारों में शुमार अशोक कुमार का निधन हुआ था।
  • 2002: अमेरिका की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइन्स कंपनी यूनाइटेड एयरलाइन्स दीवालिया घोषित हो गई।


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Today History: Aaj Ka Itihas India World December 10 Update | Swedish Scientist Alfred Nobel Death , Freedom fighter Chakravarti Rajagopalachari Birth Date


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स्लो मेटाबॉलिज्म बीमारी की वजह बन सकता है, जानिए इसे मजबूत करने के तरीके

सर्दियों के मौसम में बच्चों को स्वस्थ रखना किसी चुनौती से कम नहीं। इस मौसम में बच्चों को सर्दी, जुकाम और बुखार के अलावा गले में खराश जैसी दिक्कतें होने लगती हैं। सर्दियों में बच्चों का मेटाबॉलिज्म स्लो और इम्यून सिस्टम थोड़ा कमजोर हो जाता है।

रायपुर में डायटिशियन डॉक्टर निधि पांडे कहती हैं कि मेटाबॉलिज्म स्लो होने से बच्चों में कब्ज की समस्या भी होने लगती है। इसके चलते वीकनेस हो जाती है। बच्चों को आगे चल कर चश्मा लग जाता है। इन समस्याओं से बचने के लिए बच्चों के शरीर को गर्म रखना जरूरी है। उनके शरीर में गर्माहट बनाए रखने के लिए उनकी डाइट में गर्म चीजों को शामिल करें।

फिजिकल एक्टिविटी और धूप सबसे ज्यादा जरूरी

  • एक्सपर्ट्स के मुताबिक, बच्चों का मेटाबॉलिज्म मेंटेन रखने के लिए फिजिकल एक्टिविटी सबसे ज्यादा जरूरी है। उन्हें सुबह जल्दी उठा कर धूप में खेलने के लिए छोड़ दें।

  • बच्चों को पसीना होगा, जिससे उनके शरीर का सारा टौक्सिक बाहर निकल जाएगा। यह एक नैचुरल तरीका है, जिससे मेटाबॉलिज्म मेंटेन रखा जा सकता है।

मेटाबॉलिज्म स्लो होने से कई समस्याएं हो सकती हैं

डॉ. निधि कहती हैं कि बच्चों में मेटाबॉलिज्म स्लो होने के कई नुकसान हैं। इसके चलते उनका इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है, जो कई बीमारियों की वजह बनता है।

गुड़ बड़े काम की चीज

सवाल यह है कि बच्चों को मेटाबॉलिज्म को कैसे मेंटेन किया जाए? उनकी डाइट में किन चीजों को शामिल किया जाए? एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अगर बच्चा 1 साल का हो चुका है तो उसकी डाइट में गुड़ को शामिल किया जा सकता है। आप उन्हें गुड़ किसी भी फॉर्म में दे सकते हैं। इससे बच्चों का इम्यून सिस्टम मजबूत रहता है। गुड़ खाने से बच्चों में कब्ज या गैस जैसी समस्याएं भी नहीं होतीं।

बच्चों को दें गर्म करने वाली चीजें

सर्दियों में अगर आप अपने बच्चे की शरीर में गर्माहट बनाए रहेंगे तो उनमें सर्दी, जुकाम, गले में खराश और खासी जैसी समस्याएं नहीं होंगी। खाने में ऐसी चीजों को शामिल करें, जो उनके शरीर में गर्माहट को बनाए रखे। इसके लिए आप उन्हें किसी भी फॉर्म में गर्म तासीर वाली चीजें दे सकते हैं।

अंडे से भी मेटाबॉलिज्म मजबूत होता है

  • मेटाबॉलिज्म के लिए जिंक बहुत जरूरी है। अंडे में भारी मात्रा में जिंक पाया जाता है। जिंक बच्चों को बीमारियों से उबरने में मदद करता है। अगर बच्चे के शरीर में जिंक मौजूद है तो वह बीमार होकर भी जल्दी ठीक हो सकता है। अंडे से प्रोटीन की भी कमी पूरी होती है।

  • एक्सपर्ट्स के मुताबिक, शरीर बीमारियों से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाता है, लेकिन अगर शरीर में जिंक की मात्रा कम है तो एंटीबॉडी या तो कम बनेगी या फिर कमजोर। ऐसे में सर्दियों के मौसम में बच्चों में जिंक कि कमी न होने दें। अंडा जिंक का सबसे अच्छा स्रोत है।

पत्तेदार सब्जियां जरूरी

फोलेट, ल्यूटेन, विटामिन C और विटामिन A जैसे न्यूट्रिशन मजबूत मेटाबॉलिज्म के लिए सबसे ज्यादा जरूरी हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, सर्दियों में आने वाली सीजनल सब्जियों से इन न्यूट्रिशन की कमी पूरी की जा सकती है। बच्चे बहुत मुश्किल से सब्जियों को खाते हैं इसलिए उन्हें आप किसी दूसरे फॉर्म में भी सब्जियां दे सकते हैं। कम तेल से बने पालक का पराठा इसका सबसे अच्छा उदाहरण है।

गाजर इम्यून सिस्टम के लिए कारगर

  • वैसे तो गाजर हर समय मिल सकती है, लेकिन सर्दियों में यह एक सीजनल सब्जी मानी जाती है। इसमें लगभग हर तरह का विटामिन पाया जाता है। एक गाजर आपके बच्चे को इतना विटामिन A दे सकती है, जो उसके एक दिन की जरूरत से 300% ज्यादा होगा।

  • इसे बच्चों को जरूर दें। अगर वे इसे खाने में आनाकानी कर रहे हैं तो आप इसे दूसरे फॉर्म में भी दे सकते हैं। जैसे जूस, हलवा और सलाद।

बच्चों के लिए ड्राई फ्रूट जरूरी

ड्राई फ्रूट में कई तरह के न्यूट्रिशन होते हैं साथ ही यह शरीर में गर्माहट को भी बनाए रखते हैं। आप ड्राई फ्रूट को भी कई फॉर्म में दे सकते हैं। ऐसा करने से सर्दियों के मौसम में बच्चों में मेटाबॉलिज्म को मेंटेन किया जा सकता है।



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Metabolism becomes slow in cold, may cause disease, learn ways to strengthen it


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भारत बंद में सब्जी उगाने वाले किसानों ने ही सड़क पर सब्जियां फेंकीं? जानें वायरल फोटो का सच

क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हो रही है, इसमें सड़क पर सब्जी फैली हुई दिख रही है। बताया जा रहा है कि फोटो 8 दिसंबर की है, जिस दिन दिल्ली सीमा पर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने भारत बंद का ऐलान किया था। फोटो के साथ शेयर किए जा रहे मैसेज में दावा किया जा रहा है कि किसानों ने बाजार में जबरन दुकानदारों की सब्जियां सड़क पर फेंक भारत बंद कराया।

और सच क्या है?

  • दैनिक भास्कर की रिपोर्ट से पता चलता है कि प्रदर्शनकारी किसानों ने भारत बंद के दौरान 4 घंटे चक्काजाम भी किया था। हालांकि, इस रिपोर्ट में ऐसा कहीं भी उल्लेख नहीं है कि बंद के दौरान दुकानदारों से जबरदस्ती की गई।
  • भारत बंद से जुड़ी किसी भी मीडिया रिपोर्ट में हमें वो फोटो नहीं मिली, जिसके आधार पर किसानों पर दुकानदारों से जबरदस्ती करने का आरोप लगाया जा रहा है।
  • वायरल फोटो को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से हमें 5 मई की सोशल मीडिया पोस्ट में भी यही फोटो मिली। इससे साफ हो गया कि फोटो कम से कम 7 महीने पुरानी है और इसका 9 दिसंबर को हुए भारत बंद से कोई संबंध नहीं है।

  • अलग-अलग की-वर्ड गूगल सर्च करने से भी हमें किसी ऐसे विश्वसनीय सोर्स पर वायरल फोटो नहीं मिली। जिससे पता चल सके कि फोटो किस जगह और किस घटना की है। लेकिन, ये साफ हो गया कि फोटो का हाल में चल रहे किसानों के प्रदर्शन से कोई संबंध नहीं है।


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Farmers throw vegetables on the road in Bharat Band


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नए कानूनों से सुधार की बजाय, मंडी व्यवस्था के खत्म होने का डर है

किसानी से संबंधित तीन नए कानूनों को लेकर किसान फिर से सड़कों पर आ गए हैं। किसानी और किसानों का मुद्दा कई सालों से बड़ा मुद्दा रहा है। वर्ष 2017 में तमिलनाडु के किसान कई दिनों तक दिल्ली में प्रदर्शन करते रहे। फिर 2018-19 में महाराष्ट्र के 35,000 किसान मुंबई तक पैदल पहुंचे। आज पंजाब और हरियाणा के किसान अपने ट्रैक्टर-ट्रॉली पर दिल्ली पहुंचे हैं।
पंजाब और हरियाणा से इतनी भारी संख्या में प्रदर्शन अद्भुत है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि दोनों राज्यों को वर्तमान के सरकारी ढांचे से बड़ी मदद मिली है। दोनों राज्य देश के ग़रीब राज्यों में थे। सरकारी खरीद और न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति से इन राज्यों में खुशहाली आई। आज आय के मानक पर पंजाब और हरियाणा सबसे अमीर राज्यों में से हैं। वहां गरीबी की दर भी बहुत कम है।
वर्तमान की नीतियों में त्रुटियां हैं। जैसे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार द्वारा केवल गेहूं और चावल की खरीद की जाती है। इन नीतियों से किसानी को नुकसान भी हुआ है। उदाहरण के लिए, पंजाब में धान उगाने से पानी का स्तर गिरा है। लेकिन किसानों की मांग यह है कि सरकार वर्तमान ढांचे में सुधार लाए।

नए कानूनों से सुधार की बजाय, मंडी व्यवस्था के खत्म होने का डर है। उदाहरण के लिए, चूंकि एक कानून में निजी कंपनी, बिना किसी कर दिए, सरकारी मंडी से बाहर कृषि उत्पाद खरीद सकती हैं, तो डर यह है कि सरकारी मंडी निजी मंडी के मुकालबे अप्रतिस्पर्धात्मक हो जाएगी, और अंत में खत्म कर दी जाएगी।
एक सवाल बार-बार उठा है कि केवल पंजाब और हरियाणा के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। इससे निष्कर्ष यह निकाला जा रहा है कि या तो केवल वे ही प्रभावित हैं या उन्हें गुमराह किया जा रहा है। किसी ने गैर- ज़िम्मेदाराना बयान दिया कि वे ‘खालिस्तानी’ हैं। इन अपशब्दों से पहुंची चोट का विरोध किसान बैनर से कर रहे हैं।

टिकरी बॉर्डर पर ‘हम किसान हैं, आतंकवादी नहीं’ बैनर सबसे ज्यादा दिखता है। बेशक पंजाब और हरियाणा के किसान सबसे ज्यादा दिख रहे हैं। दोनों राज्य दिल्ली से सटे हुए हैं। चूंकि इन किसानों को इस व्यवस्था का लाभ मिला है, उन्हें यह समझ है कि इसके जाने से नुकसान हो सकता है। लेकिन यह अवधारणा सही नहीं कि केवल पंजाब-हरियाणा के किसानों को आपत्ति है। कई राज्यों में किसान सड़कों पर उतरे हुए हैं।
2000 के दशक के मध्य तक गेहूं और धान की खरीद का 80 प्रतिशत पंजाब-हरियाणा से आता था। तब से, मध्य प्रदेश ने गेहूं खरीद में बड़ा योगदान किया है (2019-20 में 40 प्रतिशत)। धान में छत्तीसगढ़ और ओडिशा से खरीदी तेज़ी से बढ़ी है (लगभग 30%)। यह बदलाव पिछले 10-15 सालों में आया है, लेकिन आम चर्चा में इसे मान्यता नहीं मिली है।

आम चर्चा में ज्यादातर पुरानी कहानी चल रही है, जिसके अनुसार सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य की नीति से केवल पंजाब और हरियाणा के बड़े किसानों का फायदा हुआ है। अन्य राज्यों में मंडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था पिछले 10-15 सालों से ही कारगर हुई है, और वहां पंजाब-हरियाणा के विपरीत, छोटे किसानों को फायदा हुआ है।
सरकारी मंडी में बड़ी संख्या में मज़दूर काम करते हैं। आमतौर पर वे भूमिहीन और दलित हैं। हालांकि सरकारी खरीद की नीति से उनका सीधा वास्ता नहीं है लेकिन मंडी के अस्तित्व को खतरा यानी उनकी आजीविका को खतरा। वह यह भी देख रहे हैं कि वर्तमान में निजी भंडार में मज़दूर कम, मशीन ज्यादा लगी हुई हैं, तो उनका रोज़गार ख़तरे में है।
सरकार से तीनों ‘काले’ कानून वापस लेने की किसानों की मांग को कई लोग बेजा करार दे रहे हैं। लेकिन वे भूल गए कि लोकसभा में इन कानूनों को ध्वनि मत से पास किया गया (हालांकि विपक्ष की मांग थी कि वोटों का विभाजन हो)। राज्यसभा में भी नियमों का उल्लंघन हुआ। संसदीय समिति को भेजना तो दूर की बात रह गई। यह भी सवाल उठा था कि क्या केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर कानून लाने का संवैधानिक हक है भी? आज की परिस्थिति उस अलोकतांत्रिक रवैये का परिणाम है। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)



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रीतिका खेड़ा, अर्थशास्त्री, दिल्ली आईआईटी में पढ़ाती हैं।


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