महाराष्ट्र की भाग्यलक्ष्मी के रूप में प्रसिद्ध कोयना डैम 60 साल का हो गया है। हालांकि, इस प्रोजेक्ट के लिए अपनी जमीन और मकान देने वाले आज भी पुनर्वास का इंतजार कर रहे हैं। बांध के लिए जमीन देने वालों की तीसरी पीढ़ी अब युवा हो चुकी है और अब इसने सरकार के खिलाफ यलगार का ऐलान कर दिया है। 8 जून से करीब10,000 लोग कोरोना संकटकाल के बीच अपने घरों के बाहर पूरे दिन बैठकर प्रदर्शन कर रहे हैं। इसे अनिश्चितकालीन आंदोलन बताया है।
5 जिलों के 100 से ज्यादा गांव इसमें शामिल
आंदोलन में 5 जिले- पुणे, सातारा, सांगली, रत्नागिरी और रायगढ़ के करीब 100 से ज्यादा गांव के 10 हजार से ज्यादा लोग शामिल हैं। एक परिवार के सभी सदस्य दिन में घर के बाहर बैठकर प्रदर्शन करते हैं। दिन में परिवार का एक सदस्य खाना बनाने के लिए ही यहां से अंदर जा सकता है। कोरोना संक्रमण को देखते हुए प्रदर्शन कर रहे ज्यादातरलोग मास्क लगाकर रहते हैं। इस दौरान कोई किसी के घर आता-जाता नहीं है। ज्यादातर लोग फोन और वॉट्सऐप के जरिए से एक दूसरे से कनेक्ट हैं।
सरकार के और भी प्रोजेक्ट हो सकते हैं प्रभावित: डॉ. पाटणकर
इस आंदोलन की अगुवाई श्रमिक मुक्ती दल के नेता डॉ. भारत पाटणकर, हरिश्चंद्र दलवी, मालोजी पाटणकर, महेश शेलार, सचिन कदम, चैतन्य दलवी, सीताराम पवार, रामचंद्र कदम, अर्जुन सपकाल कर रहे हैं। प्रदर्शन कर रहे लोगों ने नारा दिया है- 'न भूमि दी, न पानी दिया और न ही दिया काम', 'हमें जमीन दो, पानी दो।'श्रमिक मुक्ति दल के नेता डॉ. भरत पाटणकर ने कहा- "महाराष्ट्र सरकार को बांध पीड़ितों की मांगों के संबंध में तत्काल निर्देश देकर कार्रवाई करनी चाहिए। कोयना बांध राज्य की जीवन रेखा है और पर्यावरण के हिसाब से भी महत्वपूर्ण है। 60 साल बाद भी अगर इसके विस्थापितों का पुनर्वासन नहीं हुआ तो आने वाले समय में लोग ऐसी परियोजनाओं के लिए अपनी जमीन नहीं देंगे। उद्धव सरकार को जल्द इस संबंध में कोई निर्णय लेना चाहिए।"
फडणवीस सरकार ने पुनर्वास के लिए बनाई थी टास्क फोर्स
इससे पहले महाराष्ट्र के पूर्वमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने साल 2018 में कोयना परियोजना से प्रभावित लोगों की समस्या के संदर्भ में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में प्रकल्प कृति दल (टास्क फोर्स) स्थापित किया था। इसका उद्देश्य पीड़ितों का जल्द पुनर्वास करना था। इसके तहत पीड़ितों की समस्या के लिए वॉर रूमों की स्थापना, पीड़ितों को बंजर भूमि की बजाय उपजाऊ भूमि देना, परियोजना प्रभावित लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना, पानी और बिजली की आपूर्ति, और गांवों में पर्यटन के लिए बोटिंग शुरू करना सरकार का मकसद था। हालांकि, जब तक यह लागू हो पाता भाजपा की सरकार चली गई और यह मामला फिर ठंडे बसते में चला गया।
संजय निरुपम ने लगाया था घोटाले का आरोप
साल 2018 में कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने इस मुद्दे को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर 1767 करोड़ रुपये के भूमि घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया था। आरोप के मुताबिक, बांध की 24 एकड़ जमीन एक बड़े बिल्डर को मात्र 3.60 करोड़ रुपये में दी गई थी। निरुपम ने आरोप लगाया था कि कोयना बांध परियोजना के विस्थापितों के पुनर्वास की आड़ में यह घोटाला किया गया है। निरुपम ने कहा था कि इस परियोजन के 10 हजार विस्थापितों में से सिर्फ 8 लोगों को मुंबई से सटे खारघर इलाके में जमीन दी गई है।
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