शनिवार, 26 सितंबर 2020

तालिबान ने अफगानिस्तान के जिस कोचिंग सेंटर को तबाह किया था, वहां धमाके में बची शमसीया यूनिवर्सिटी एंट्रेंस में टॉपर

(फातिमा फैजी और मुजीब मशाल) काबुल की 18 साल की शमसीया अलीजादा ने अफगानिस्तान में एक नया इतिहास रच दिया। उसने दो लाख स्टूडेंट्स के बीच गुरुवार को घोषित हुए नेशनल यूनिवर्सिटी प्रवेश परीक्षा में सबसे ज्यादा अंकों के साथ टॉप किया। उन्होंने सबसे कम उम्र में यह उपलब्धि हासिल करने वाली स्टूडेंट बनने का गौरव हासिल किया। शमसीया को यह जानकारी उसकी मां ने दी, जो उस वक्त टीवी पर खबरें देख रही थीं।

शमसीया कहती हैं, ‘‘मैंने मां को पिछले कई सालों से मुस्कुराते हुए नहीं देखा था। यह मुस्कान मेरे लिए काफी मायने रखती है, क्योंकि मैं ही जिद पर अड़ी थी कि मुझे हर हाल में यूनिवर्सिटी में पढ़ना है। मां नहीं चाहती थीं कि मैं आगे पढ़ने बाहर निकलूं और खतरा मोल लूं। मैं जिस कोचिंग सेंटर में पढ़ने जाती थी, वहां 2018 में तालिबानी आत्मघाती दस्ते ने हमला किया था। तब सेंटर के हॉल में करीब 200 लोग पढ़ रहे थे।’’

‘‘हमले में करीब आधे से ज्यादा स्टूडेंट्स ने अपनी जान गंवाई। मैंने कई दोस्तों को इस हमले में खो दिया। यह वहीं सेंटर था, जहां हमने मिलकर एक सपना देखा था कि अच्छी शिक्षा लेकर हम सब गरीबी और जुल्म के खिलाफ लड़ेंगे। पलभर में सबकुछ खाक हो गया। अलजेब्रा और गणित के समीकरण के साथ व्हाइट बोर्ड पर छितराए खून के धब्बों के सिवाय उस समय हमें कुछ नहीं दिखाई-सुनाई नहीं दे रहा था। मैंने फिर भी हिम्मत नहीं छोड़ी। आगे पढ़ाई जारी रखी और नतीजा सामने है।’’

1990 में तालिबान ने गर्ल्स एजुकेशन पर पाबंदी लगा दी थी

अफगानिस्तान में शमसीया भावनात्मक रूप से भले ही रातों-रात सेलिब्रिटी बन गई हो, लेकिन उसकी यह उपलब्धि सरकार को लड़कियों को शिक्षा दिलाने के अधिकार को याद दिलाता है। यहां सरकार तालिबान के साथ शांतिवार्ता में जुटी है। तालिबानियों के साथ संघर्ष में हर रोज कई युवा मारे जा रहे हैं।

1990 में तालिबानी हुकूमत के दौरान यहां लड़कियों की शिक्षा पर पाबंदी लगा दी गई थी। अफगानिस्तान में हालांकि शिक्षा की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है। यहां महिलाओं की साक्षरता दर सिर्फ 24.2% है। 90 लाख स्टूडेंट्स में करीब 40% लड़कियां हैं।

तालिबान के निशाने पर होता है हजारा समुदाय

अफगानिस्तान के गजनी प्रांत की रहने वाली शमसीया हजारा समुदाय की हैं। पिता कोयले की खदान में काम करते हैं। पांच सदस्यों का उसका परिवार बेहतर शिक्षा के लिए काबुल आकर बस गया। पढ़ाई के साथ मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग ले रही शमसीया का कहना है कि मुझे उम्मीद है कि दोनों पक्ष अपना वादा पूरा करेंगे। अब यहां कोई मारा नहीं जाएगा। मुझे भरोसा है कि तालिबान अफगान महिलाओं को अपने सपने पूरे करने का मौका देगा। तालिबान हजारा समुदाय के लोगों को इसलिए निशाना बनाता है, क्योंकि ये शिया हैं, जबकि तालिबानी सुन्नी और पश्तून हैं।



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अफगानिस्तान के गजनी प्रांत की रहने वाली शमसीया हाजरा समुदाय की हैं।


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जो अमेरिकन अंग्रेजी नहीं बोलते उनमें कोरोना होने का खतरा 5 गुना ज्यादा, 31 हजार कोविड-19 मरीजों पर हुई रिसर्च में दावा

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कोरोना और भाषा के बीच कनेक्शन ढूंढ़ा है। इनकी रिसर्च कहती है कि जो अमेरिकन अंग्रेजी नहीं बोलते उन्हें कोरोना होने के खतरा ज्यादा है। अमेरिका के ऐसे लोग जिनकी पहली भाषा स्पेनिश या कम्बोडियन है, उनमें कोरोना का संक्रमण होने का खतरा 5 गुना ज्यादा है।

यह दावा यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसिन ने अपनी रिसर्च में किया है। रिसर्च के लिए 300 मोबाइल क्लीनिक और 3 हॉस्पिटल्स में आए कोरोना मरीजों की जांच के आंकड़े जुटाए गए थे।

किस भाषा में कितने मरीज मिले, ऐसे समझें

  • कोरोना के 31 हजार मरीजों पर 29 फरवरी से 31 मई 2020 के बीच रिसर्च की गई। इनमें 18.6 फीसदी गैर-अंग्रेजी भाषाई थे जबकि मात्र 4 फीसदी अंग्रेजी बोलने वाले अमेरिकन थे।
  • रिसर्चर्स के मुताबिक, जिनकी पहली भाषा कम्बोडियन थी उस समूह में संक्रमित मरीजों का आंकड़ा 26.9 फीसदी था, जबकि स्पेनिश और एम्फेरिक बोलने वालों में यही आंकड़ा 25.1 फीसदी था।
  • अंग्रेजी बोलने वालों में सिर्फ मात्र 5.6 फीसदी अमेरिकन संक्रमित हुए। इसके अलावा जो कई तरह की भाषा बोल लेते थे उस समूह में 4.7 फीसदी मरीज संक्रमित हुए।
  • चीनी भाषा बोलने वालों में यह आंकड़ा 2.6 फीसदी था। अरेबिक और साउथ कोरिया बोलने वालों के समूह में 2.8 फीसदी और 3.7 फीसदी मरीजों की रिपोर्ट पॉजिटिव थी।

ब्रिटेन की रिसर्च : यहां अश्वेत-अल्पसंख्यक ज्यादा संक्रमित हुए
नेशनल हेल्थ सर्विसेज (एनएचएस) के अस्पतालों के मई के आंकड़े बताते हैं कि ब्रिटेन में कोरोनावायरस का संक्रमण और इससे मौतों का सबसे ज्यादा खतरा अश्वेत, एशियाई और अल्पसंख्यकों को है। संक्रमण के जो मामले सामने आए उनमें यह ट्रेंड देखने को मिला। अस्पतालों से जारी आंकड़ों के मुताबिक, गोरों के मुकाबले अश्वेतों में संक्रमण के बाद मौत का आंकड़ा दोगुना है। अश्वेत, एशियाई और अल्पसंख्यकों को यहां बेम (BAME) कहते हैं जिसका मतलब है- ब्लैक, एशियन एंड माइनॉरिटी एथनिक।

एक हजार लोगों में 23 ब्रिटिश और 43 अश्वेतों की मौत
'द टाइम्स' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एनएचएस के अस्पतालों ने जो आंकड़ा जारी किया है उसके मुताबिक, 1 हजार लोगों पर 23 ब्रिटिश, 27 एशियन और 43 अश्वेत लोगों की मौत हुई। एक हजार लोगों में 69 मौतों के साथ सबसे ज्यादा खतरा कैरेबियाई लोगों को था, वहीं सबसे कम खतरा बांग्लादेशियों (22) को था।



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Americans who don't speak English are nearly FIVE TIMES more likely to test positive for coronavirus - but less likely to get tested in the first place, study finds


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अमेरिकी कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन के ट्रायल्स के अच्छे नतीजे, सिंगल डोज से इम्यून सिस्टम मजबूत हुआ; दुनिया में 3.27 करोड़ केस

दुनिया में संक्रमितों का आंकड़ा 3.27 करोड़ से ज्यादा हो गया है। ठीक होने वाले मरीजों की संख्या 2 करोड़ 47 लाख 67 हजार 549 से ज्यादा हो चुकी है। अब तक 9 लाख 92 हजार 914 मौतें हो चुकी हैं। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं। अमेरिकी फार्मास्युटिकल कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन भी कोरोना वैक्सीन डेवलप कर रही है। फिलहाल, इसके ट्रायल्स चल रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसके सिंगल डोज के नतीजे काफी अच्छे रहे हैं और इससे इम्यून सिस्टम मजबूत हुआ है।

रिपोर्ट में कहा गया है- सेफ्टी प्रोफाइल और इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिहाज से सिंगल डोज के टेस्ट किए गए। इससे अगले क्लीनिकल ट्रायल्स में मदद मिलेगी। इस वैक्सीन का नाम Ad26.COV2.S है। यह कोविड संक्रमण से बचाने में कारगर साबित होगी।

Ad26.COV2.S अमेरिका में तैयार हो रही चौथी ऐसी वैक्सीन है, जिसके क्लीनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प वादा कर चुके हैं कि साल के आखिरी तक अमेरिका में 10 करोड़ वैक्सीन उपलब्ध होंगे। उनका कहना है कि 3 नवंबर को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से पहले वैक्सीन बाजार में उपलब्ध होगा।

ब्राजील : रियो कार्निवाल टला
ब्राजील और दुनिया में मशहूर रियो डि जेनेरियो को फिलहाल टाल दिया गया है। 100 साल में यह पहला मौका है जब रियो कार्निवाल टला है। हालांकि, इस बात की संभावना बेहद कम है कि इसे इस साल आयोजित किया जा सकेगा। ब्राजील में करीब 46 लाख लोग संक्रमित हैं जबकि मौतों का आंकड़ा एक लाख 40 हजार से ज्यादा हो चुका है। रियो कार्निवाल का आयोजन सांबा स्कूल करता है। उसने एक बयान जारी कर कहा- हम कोविड-19 की वजह से यह आयोजन टाल रहे हैं। इस बात की संभावना काफी कम है कि वैक्सीन आने के पहले इसका आयोजन किया जा सकेगा।

ब्राजील की राजधानी रियो में हर साल होने वाला रियो कार्निवाल इस साल नहीं होगा। इसका ऑर्गनाइजर सांबा स्कूल ने कहा- 100 साल में पहली बार रियो कार्निवाल टाला जा रहा है। जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती, तब तक आयोजन संभव नहीं है। (फाइल)

पेरू : इमरजेंसी 31 अक्टूबर तक बढ़ी
संक्रमण की दूसरी लहर को लेकर लैटिन अमेरिकी देश पेरू ने सख्त रवैया अपनाया है। यहां राष्ट्रीय आपातकाल 31 अक्टूबर तक के लिए बढ़ा दिया गया है। प्रेसिडेंट मार्टिन विजकारा ने कहा- इस बात की संभावना है कि यह इमरजेंसी साल के आखिर तक बनी रहे। फिलहाल, हम इसे 31 अक्टूबर तक बढ़ा रहे हैं। पेरू की हेल्थ मिनिस्ट्री ने एक बयान में कहा- हम जानते हैं कि लोगों को कुछ प्रतिबंधों से काफी परेशान होना पड़ रहा है। लेकिन, कोविड-19 से बचने का फिलहाल यही उपाय है कि हम हर सावधानी बरतें। मास्क और सैनिटाइजेशन का खास ध्यान रखें।

पेरू में राष्ट्रपति ने हेल्थ इमरजेंसी 31 अक्टूबर तक बढ़ा दी है। साथ ही ये भी कहा है कि इसे साल के आखिर तक बढ़ाया जा सकता है। (फाइल)

ऑस्ट्रेलिया : एक और इस्तीफा
विक्टोरिया प्रांत के हेल्थ मिनिस्टर जेनी मिकाकोस ने इस्तीफा दे दिया है। जेनी पर आरोप था कि उन्होंने क्वारैंटीन फेसेलिटीज के लिए होटलों को कॉन्ट्रैक्ट दिए। लेकिन, इसमें कई स्तरों पर धांधली हुई। इसके अलावा इन्फेक्शन कंट्रोल के मामले में उनकी नाकामयाबी को मीडिया ने लगातार उजागर किया। ऑस्ट्रेलिया इस वक्त संक्रमण की दूसरी लहर का सामना कर रहा है। सरकार ने साफ कर दिया है कि फिलहाल प्रतिबंधों में किसी तरह की ढील नहीं दी जाएगी।

ऑस्ट्रेलिया में संक्रमण की दूसरी लहर चल रही है। कुछ हिस्सों में प्रतिबंधों का विरोध हुआ तो सरकार ने सुरक्षाबल तैनात कर दिए। विक्टोरिया के हेल्थ मिनिस्टर ने इस्तीफा दे दिया है। उन पर कुछ कॉन्ट्रैक्टर्स को फायदा पहुंचाने के आरोप हैं। (फाइल)

फिनलैंड में संक्रमितों की पहचान की नई कोशिश
हेलसिंके एयरपोर्ट पर फिनलैंड सरकार ने संक्रमितों की पहचान के लिए स्निफर डॉग्स तैनात कर दिए हैं। इसके लिए इस डॉग यूनिट को स्पेशल मेडिकल ट्रेनिंग दी गई है। जानकारी के मुताबिक, ये स्निफर डॉग यूनिट 10 मिनट में 100 फीसदी सही तरीके से संक्रमितों की पहचान कर सकेगी। फिलहाल, इस यूनिट को यूनिवर्सिटी ऑफ हेलसिंके की देखरेख में ट्रायल के तौर पर तैनात किया गया। कुछ दिनों बाद इसकी समीक्षा की जाएगी। अगर नतीजे सही रहे तो यह प्रॉसेस जारी रहेगा। बता दें कि इसके पहले ये स्निफर डॉग यूनिट मलेरिया और कैंसर जैसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों की पहचान कर चुकी है।

एयरपोर्ट पर आने वाले यात्रियों को एक कपड़ा दिया जाएगा। इससे वे अपना गला और चेहरा पोछेंगे। कपड़े को एक बॉक्स में रखा जाएगा। एक अलग बूथ में डॉग हैंडलर इस बॉक्स को कई अन्य बॉक्स के साथ रखेगा। डॉग इसमें से कोरोनावायरस वाले बॉक्स की पहचान करेगा। एक बार में एक डॉग एक बॉक्स की पहचान करेगा।



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अमेरिका में चार कोरोनावायरस वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं। इनमें एक वैक्सीन जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी का है। (प्रतीकात्मक फोटो)


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संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में आज मोदी बोलेंगे, आतंकवाद और कोरोना महामारी से निपटने के उपायों पर हो सकता है फोकस

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज शाम संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) की 75वीं बैठक को ऑनलाइन संबोधित करेंगे। कार्यक्रम में आज जिन्हें बोलना है, उनमें मोदी का नंबर पहला है। यह भाषण पहले से रिकॉर्ड किया होगा। कोरोना महामारी की वजह से इस बैठक में दुनियाभर के नेता वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शामिल हो रहे हैं। मोदी कोरोना महामारी से निपटने के उपायों, आतंकवाद, परमाणु ऊर्जा और संयुक्त राष्ट्र में सुधारों पर फोकस कर सकते हैं।

इमरान ने भारत पर कई आरोप लगाए
यूएनजीए में शुक्रवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की स्पीच हुई थी। इस दौरान उन्होंने भारत की जमकर आलोचना ही। आरएसएस पर आरोप लगाया कि वह भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने में जुटा है। यह भी आरोप लगाया कि बाबरी मस्जिद को ढहाया गया, 2002 के गुजरात दंगों में मुस्लिमों को मारा गया। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को भी उन्होंने गलत बताया। जिस वक्त इमरान बोल रहे थे उस समय यूएन के असेंबली हॉल में मौजूद भारतीय विदेश सेवा के 2010 बैच के अफसर मिजितो विनितो उठकर बाहर चले गए। (पूरी खबर यहां पढ़ें)

चार दिन पहले मोदी ने संयुक्त राष्ट्र को नसीहत दी थी
प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा की 75वीं सालगिरह पर हो रहे कार्यक्रम में यूएन को नसीहत दी थी। उन्होंने कहा था, “हम पुरानी व्यवस्था के साथ आज की चुनौतियों से मुकाबला नहीं कर सकते। बड़े सुधार नहीं हुए तो यूएन पर भरोसा खत्‍म होने का खतरा है। उन्‍होंने कहा कि आज की दुनिया आपस में जुड़ी हुई है, इसलिए हमें ऐसा बहुपक्षीय व्यवस्था चाहिए, जिसमें आज की वास्तविकता झलकती हो, सभी की आवाज सुनी जाती हो, जो वर्तमान चुनौतियों से निपटता हो और मानव कल्याण पर फोकस करता हो।’’

भारत यूएन सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है
भारत को इसी साल जून में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य चुना गया। महासभा में शामिल 193 देशों में से 184 देशों ने भारत का समर्थन किया था। भारत दो साल के लिए अस्थाई सदस्य चुना गया है। भारत के साथ आयरलैंड, मैक्सिको और नॉर्वे भी अस्थाई सदस्य चुने गए। भारत इससे पहले 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92 और 2011-12 में संयुक्त राष्ट्र महासभा का अस्थायी सदस्य चुना गया था।

सुरक्षा परिषद में कुल 15 देश
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुल 15 देश हैं। इनमें पांच स्थायी सदस्य हैं। ये हैं- अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन। 10 देशों को अस्थाई सदस्यता दी गई है। हर साल पांच अस्थायी सदस्य चुने जाते हैं। अस्थाई सदस्यों का कार्यकाल दो साल होता है।



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मंगलवार को मोदी ने यूएन को नसीहत दी थी। उन्होंने कहा था- हम पुरानी व्यवस्था के साथ आज की चुनौतियों से मुकाबला नहीं कर सकते। -फाइल फोटो


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करन जौहर बोले- न ड्रग्स लेता हूं, न इसे प्रमोट करता हूं; करन की कंपनी के प्रोड्यूसर से एनसीबी 20 घंटे से पूछताछ कर रहा, आज गिरफ्तारी संभव

ड्रग्स मामले में धर्मा प्रोडक्शन के 2 लोगों से पूछताछ के बीच करन जौहर की सफाई आई है। उन्होंने ट्विटर के जरिए स्टेटमेंट जारी किया है। करन का कहना है, "मैं न तो ड्रग्स लेता हूं और न ही इसे प्रमोट करता हूं। मेरे और मेरे परिवार के बारे में, साथियों और धर्मा प्रोडक्शन के बारे में जो बातें की जा रही हैं, वे बकवास हैं।"

उधर, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) करन के प्रोडक्शन हाउस धर्मा प्रोडक्शन से जुड़े प्रोड्यूसर क्षितिज रवि प्रसाद को हिरासत में लेकर पिछले 20 घंटे से पूछताछ कर रहा है। क्षितिज के घर पर शुक्रवार को NCB ने छापा भी मारा था। सूत्रों के मुताबिक, उनके घर से थोड़ी ड्रग्स मिली है। NCB आज क्षितिज को गिरफ्तार भी कर सकता है।

क्षितिज के साथ नाम जुड़ने पर करन ने 5 पॉइंट में सफाई जारी की

  • कुछ न्यूज चैनल, प्रिंट/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गलत रिपोर्टिंग की जा रही है कि मैंने 28 जुलाई, 2019 को अपने घर पर पार्टी की थी, उसमें ड्रग्स यूज हुआ था।
  • यह भी कहा जा रहा है कि क्षितिज प्रसाद और अनुभव चोपड़ा मेरे करीबी सहयोगी हैं। मैं साफ कर देना चाहता हूं कि मैं इन्हें पर्सनली नहीं जानता और इन दोनों में से कोई कोई भी मेरा सहयोगी या करीबी नहीं है।
  • अनुभव चोपड़ा मेरी कंपनी धर्मा प्रोडक्शन में कर्मचारी नहीं थे, हालांकि उन्होंने 2011 और 2013 के बीच इंडिपेंडेंटली हमारी कंपनी के साथ दो प्रोजेक्ट पर काम किया था।
  • क्षितिज रवि प्रसाद नवंबर 2019 में धर्मा प्रोडक्शन से जुड़ी कंपनी धर्ममेटिक एंटरटेनमेंट से जुड़े थे। वे एक प्रोजेक्ट के लिए कॉन्ट्रैक्ट बेस पर एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर थे।
  • न तो मैं और न ही धर्मा प्रोडक्शन इसके लिए जिम्मेदार है कि लोग अपनी पर्सनल लाइफ में क्या करते हैं।


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करण जौहर का कहना है कि मेरे और मेरे परिवार के बारे में जो बातें की जा रही हैं, वे बकवास हैं। किसी की पर्सनल लाइफ के लिए हम जिम्मेदार नहीं। (फाइल फोटो)


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बच्चे बीमार मां को लेकर 3 अस्पतालों में 2 दिन भटके; कलेक्टर के दखल से चौथे अस्पताल में ICU बेड मिला, लेकिन बेपरवाह इलाज ने मार डाला

कोरोनाकाल में इंसानियत भी मरती जा रही है। प्राइवेट अस्पताल हों या सरकारी, सभी जगह बेपरवाह सिस्टम अब लोगों को मार रहा है। भोपाल के कोलार की 43 साल की संतोष रजक इसी बेपरवाही का शिकार हो गईं। वे दो दिन अस्पतालों में आईसीयू बेड के लिए भटकीं। जैसे-तैसे बेड मिला तो ठीक से इलाज नहीं हो पाया। अंत में उन्होंने गुरुवार को दम तोड़ दिया। बीते 14 दिन उनकी बेटी प्रियंका और बेटे हर्ष पर क्या-क्या बीती, पढ़ें उन्हीं की जुबानी...

बंसल में एक रात के इलाज का 41 हजार रु. बिल भरा

12 सितंबर की शाम करीब 6 बजे मां को सांस लेने में परेशानी हुई तो हर्ष उन्हें सिद्धांता अस्पताल ले गया। यहां हार्ट अटैक के लक्षण बताए तो हम रात 10 बजे बंसल अस्पताल ले गए। यहां कोरोना का सैंपल लिया गया तो रिपोर्ट पॉजिटिव आई। यहां कोविड आईसीयू बेड नहीं हैं, इसलिए अगले दिन दोपहर तीन बजे हमें एंबुलेंस से जेके अस्पताल भेज दिया गया। बंसल में एक रात के इलाज का हमने 41 हजार रु. बिल भरा। जेके में भी आईसीयू बेड खाली नहीं थे, तो उन्होंने भर्ती नहीं किया।

जेके से हमें हमीदिया भेजा, तो वहां रात 9 बजे तक हम बेड का इंतजार करते रहे, लेकिन बेड खाली नहीं होने का कहकर हमें लौटा दिया। फिर हमने पीपुल्स अस्पताल में फोन लगाया तो पता चला, वहां आईसीयू बेड खाली हैं। हम रात 10:20 बजे पीपुल्स हॉस्पिटल पहुंचे। यहां मरीज को भर्ती करने के पहले पांच दिन के 50 हजार रु. जमा करा गए।

यहां इलाज महंगा पड़ता, इसलिए 14 की सुबह हमने कलेक्टर अविनाश लवानिया को आवेदन किया। उनके दखल के बाद मां को 14 सितंबर को दोपहर में जेपी अस्पताल के आईसीयू में भर्ती किया गया। लेकिन, यहां भी इलाज के नाम पर खानापूर्ति हुई।

मां की डेथ हुई, तब भी किसी ने हाथ नहीं लगाया

यहां रात में अक्सर ऑक्सीजन की सप्लाई बंद हो जाती है, कोई सुनता नहीं है। ऑक्सीजन सिलेंडर खत्म होने पर मरीज के परिजन दूसरे वार्ड से खुद ही लाते हैं। 10 दिन इलाज के बाद जब गुरुवार को मां की डेथ हुई, तब भी किसी ने हाथ नहीं लगाया। हमें आईसीयू में बुलाकर पीपीई किट थमा दी और कहा- खुद पहन लो और अपनी मां को पहना दो। मेरे भाई और परिजनों ने पीपीई किट पहनकर मां को पैकिंग बैग में रखा, फिर उन्हें एंबुलेंस से विश्राम घाट लेकर गए।

जब आईसीयू फुल नहीं तो इनकार क्यों करेंगे

जेपी अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. आरके तिवारी ने कहा कि हमारे यहां का आईसीयू कभी फुल नहीं हुआ फिर मरीज को लेने से इनकार क्यों करेंगे। संतोष रजक के इलाज में कोई लापरवाही नहीं हुई।

हमने उन्हें कोविड सेंटर भेज दिया था

बंसल अस्पताल के मैनेजर लोकेश झा ने कहा कि संतोष रजक 12 सितंबर की रात 21:55 बजे भर्ती हुईं थीं। रात में कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई। हमारे कोविड अस्पताल में आईसीयू बेड खाली नहीं थे। ऐसे में अगले दिन शाम 6:30 बजे उन्हें एंबुलेंस से दूसरे कोविड सेंटर भेजा गया था।

भोपाल में 297, प्रदेश में 2227 नए केस, रिकवरी रेट 1% बढ़ा

राजधानी में शुक्रवार को 297 नए कोरोना संक्रमित मिले। जबकि, तीन मरीजों की इलाज के दौरान मौत हो गई। शहर में एक दिन में मिलने वाले कोरोना मरीजों की संख्या के लिहाज से 297 तीसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। इससे पहले 23 सितंबर को 313 और 19 सितंबर को 307 मरीज मिले थे।



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बेटी ने कहा- मौत के बाद हमें पीपीई किट दे दी, कहा- आप लोग डेड बॉडी को पॉलिथीन में पैक कर लो।


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गूगल-फेसबुक देश से 35 हजार करोड़ रुपए रेवेन्यू कमाते हैं, टैक्स देते हैं जीरो और देश के बिजनेस पर अपनी धौंस अलग जमाते हैं

देश के सबसे बड़े डिजिटल पेमेंट और फाइनेंशियल सर्विस एप पेटीएम 19 सितंबर को उस वक्त चर्चा में आ गया, जब गूगल ने प्लेस्टोर से उसे हटा दिया। हालांकि, 30 करोड़ से अधिक यूजर और 70 करोड़ से अधिक ट्रांजेक्शन रोज करने वाले एप की कुछ घंटों में ही प्लेस्टोर पर वापसी भी हो गई। दैनिक भास्कर ने पेटीएम के फाउंडर-सीईओ विजय शेखर शर्मा से बात की। उनका मानना है कि गूगल-फेसबुक जैसी बड़ी टेक कंपनियों पर देश में अंकुश जरूर होना चाहिए। उनसे बातचीत के प्रमुख अंश...

सवाल- आपको लगता है कि आपके एप को गूगल द्वारा विशेष रूप से टारगेट किया गया था?
जवाब-
मुझे तो यह समझ में नहीं आता कि किस पॉलिसी के तहत उन्हें ऐसा लगा कि यूपीआई कैश बैक देने का जो हमारा प्रोग्राम है, वह गैम्बलिंग है। गैम्बलिंग बता कर फाइनेंशियल एप की विश्वसनीयता को गिरा दिया। हमारे ऊपर लगे यह गलत और झूठे आरोप हैं। आप (गूगल) क्लेम करते हो कि चार-पांच बार बात की है। जबकि सुबह ही कॉल किया कि अपनी मेल देखो- हमने कुछ कर दिया है, इस तरह तो हमें बताया गया। हमें इस बात की कोई भी वार्निंग नहीं दी कि हम एप हटा रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण, दुर्भावनावश, बिजनेस पर अटैक कह सकते हैं।

सवाल- गूगल की क्या दुर्भावना हो सकती है?
जवाब-
सबसे बड़ी बात क्या है कि उनके एप में भी यही सब चीजें चल रही होती हैं। उन्होंने जो ई-मेल भेजा उसमें उन्होंने हमें लिखकर दिया कि आप जो भुगतान करते हो उसके बदले में स्टीकर मिलता है। अब देखिए कि पेमेंट का एप है, तो पेमेंट नहीं करेगा तो क्या करेगा? यह कैसे जुआ हो सकता है? ऐसा नहीं है कि हमने यह अभी शुरू किया है या नया है। हम कैश बैक देते रहे हैं। हमने भी जैसे गूगल पे में स्टीकर आते हैं, वैसे ही दिए हैं।

सवाल- ऐसी डी-लिस्टिंग उन कंपनियों को कैसे प्रभावित करती है जिनका व्यवसाय एप पर ही चलता है?
जवाब-
हम हर दिन लाखों ग्राहक जोड़ते हैं, एप से हटने से नए कस्टमर आने बंद हो गए। बहुत सारे हमारे ग्राहक भ्रमित हो गए। किसी ने अफवाह चला दी कि हमारा एप निकाल दिया है और पैसे निकाल लो। इससे समस्या और बड़ी हो गई। जो कंपनियां अपना बिजनेस मॉडल एप के ऊपर चलाती हैं, उनको यह समझ लेना चाहिए कि आप अपना व्यवसाय भारत के नियम कानून के हिसाब से कर रहे हैं तो उनकी नजर में यह पर्याप्त नहीं हैं। ये हमारे देश के सुपर रेग्युलेटर हो गए हैं। ये बड़ी टेक जाॅइंट कंपनियां बताएंगी कि यहां का बिजनेस कैसे चलेगा? यही सबसे बड़ी समस्या है।

सवाल- क्या वह असर अभी भी जारी है?
जवाब-
डिजिटल भारत के राज की चाबी देश के अंदर नहीं, कैलिफोर्निया में है। हमने 20 हजार करोड़ रुपए देश के डिजिटल इंडिया में निवेश किए हुए हैं। गूगल पे हमारे बाद आया है देश में। गूगल पे उस अपॉर्चुनिटी पर आया जो भारत में हमारे एप ने बनाई। अब हमारे एप को खत्म करने के तरीके ढूंढ़ रहे हैं। यह हमारे एप का मामला भर नहीं है बल्कि भारत की डिजिटल आजादी का भी सवाल है।

सवाल- आपका एप अन्य सभी एप से कैसे अलग है, क्या सेवाएं उपलब्ध हैं?
जवाब-
हमारे एप की शुरुआत हुई थी कि आप अपने वॉलेट से पेमेंट कर सकते हैं- जैसे बिजली के बिल, मोबाइल फोन और अन्य भुगतानों का। हमारा एप एक फाइनेंशियल इन्क्लूजन की सेवा है, जिन लोगों के पास बैंक सेवा नहीं थी उनके पास हम एक पेमेंट का तरीका लेकर गए फिर हम जीराे कॉस्ट अमाउंट वाला बैंक अकाउंट लेकर गए। हम वेब सॉल्यूशन, इंश्योरेंस, लोन आदि की सुविधा दे सकते हैं। वॉलेट सिस्टम डाला, अगर बैंक में पैसे हैं आप उनको ट्रांसफर कर लीजिए जिससे कि आपको कॉन्फिडेंस रहे। वॉलेट सिस्टम किसी और एप के पास नहीं है।

सवाल- गूगल के पास एक भुगतान एप भी है। क्या आपको लगता है कि वे अपनी सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए आपसे भेदभाव किया?
जवाब-
जी, बिल्कुल ऐसा है। हमारा जो प्रतिस्पर्धी है, वह हमारे विरुद्ध अपनी सुपर पॉवर से खेल रहा है। भारत में एप का बिजनेस वाली कंपनियों को यह अवश्य समझ लेना चाहिए कि जब उनका बिजनेस बड़ा होगा तब वे आगे जाकर गूगल आदि टेक्नो जाइंट कंपनियों से अवश्य परेशान होंगे। मेरा मानना है कि हमारी मौजूदा सरकार ऐसी सरकार है जो इसको बचा सकती है क्योंकि इन्होंने डिजिटल को कोर एजेंडा बनाया है। प्रधानमंत्री मोदी जी फेसबुक के मुख्यालय भी गए, कभी भी जीरो रेटिंग इस देश ने परमिट नहीं की। मुझे पूरा भरोसा है कि देश के एप ईकोसिस्टम जो बन रहा है उसकी चाबी बाहर तो सरकार नहीं जाने देगी।

सवाल- गूगल बड़े पैमाने पर काल्पनिक खेलों को भी बढ़ावा देता है और बड़े पैमाने पर राजस्व कमाता है। क्या आप दूसरों को भी ऐसा करने से रोकना गलत है?
जवाब-
गूगल तो ऐसी मशीनरी है कि जो रास्ते में आए उसको दबाते जाओ। जिस तरह का पैसा मिले उसे काट लो। सर्च इंजन में तो एड लगा है ऐसा लोगों ने ट्वीट किया, तो क्या सर्च इंजन बंद किया गूगल ने? वहां तो आप एड लगाते हो और जब हमारे एप पर एड लगता है तो आप कहते हैं कि गैम्बलिंग सेशन है। इससे शर्मनाक बात नहीं हो सकती।

सवाल- क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग को ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करना चाहिए?
जवाब-
न सिर्फ कॉम्पीटिशन कमीशन बल्कि भारत सरकार को भी आगे आना चाहिए। भारत सरकार को कहना चाहिए कि आप यहां पर आईए और आप जो दूर से कंट्रोल करके अपनी चाबियां चलाते हो वह नहीं होगा बल्कि अपनी चाबियां (कंट्रोल) देश में ही रखवानी चाहिए। यूपीआई चलाने में देश की मर्जी नहीं है बल्कि गूगल की मर्जी है। आज तो उन्होंने हमारा एप बंद कर दिया अब वो किस कारण से किसका एप बंद करें उनकी मर्जी। भारत सरकार कर के ऊपर प्रयास कर रही है लेकिन इसके साथ अविलंब रूप से हमारी टेक्नोलॉजी को कंट्रोल करने वाली कंपनियों पर भी नियंत्रण करे।

सवाल- क्या आपको लगता है कि भारत को एक ऐसी संस्था की जरूरत है जो सही मायने में नई अर्थव्यवस्था और स्टार्टअप इकोसिस्टम का समर्थन करती हो?
जवाब-
यह बहुत जरूरी बात है। हमारी देश में कार्य करने वाली ऐसी संस्थाएं जो विदेशी कंपनियों के माऊथपीस बने हुए हैं वो हमारे लिए ज्यादा बड़ी समस्या है। इस देश को ऐसे संगठन की आवश्यकता है जो भारतीय टेक्नॉलाजी कंपनियों को रिप्रजेंट करे।

सवाल- भारतीय कंपनियां अंतरराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिग्गजों द्वारा इस तरह के कदमों को कैसे लड़ सकती हैं जिनके पास बड़े पैमाने पर धन भी है?
जवाब-
छोटा कभी जीतता-हारता नहीं है, बल्कि संगठन में शक्ति है और सरकार में हमारा भरोसा है। जब हम साथ में मिलकर आएंगे तब देश ही नहीं दुनिया भी बदलती है। जब एक व्यक्ति के साथ ऐसा हो रहा है जो सबके साथ होना संभव है। आप अगर यूट्यूब या फेसबुक यूज नहीं करोंगे तो ऐ पैसा कैसे बनाएंगे? हम इस देश का विकास चाहते हैं देश में निवेश चाहते हैं। ये कंपनियां देश से पैसा ले जाती हैं निवेश कहां करती हैं?

सवाल- क्या आपको लगता है कि इस तरह की रणनीति सरकार की आत्मनिर्भर भारत पहल को प्रभावित करती है?
जवाब-
यह समस्या अकेले हमारे एप की नहीं है। यह समझने की बात है कि स्टार्टअप इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, डिजिटल और टेक्नोलाॅजी इन सबको कौन कंट्रोल करता है। आज हमारे एप की बात है कल किसी सरकार विभाग या विंग की हो सकती है। अब तक दसियों स्टार्टअप्स के फाउंडर हमसे बात कर चुके हैं कि हमको भी फोर्सफुली बंद किया।

सवाल- बड़ी टेक कंपनियां ब्रेन-ड्रेन का कारण, यहां से पैसा भी ले जाते हैं
जवाब-
शर्मा ने कहा कि बड़ी टेक कंपनियां जैसे गूगल और फेसबुक देश से 30 से 35 हजार करोड़ रुपए राजस्व कमाती हैं और टैक्स देती हैं जीरो। ये कंपनियां देश के बिजनेस के ऊपर अपनी धौंस जमाती हैं। इन कंपनियों को देश में पूरा-पूरा टैक्स जमा कराना चाहिए। नौकरी अमेरिका में देते हैं। ये लोग ब्रेन ड्रेन और हमारे यहां से पैसा ले जाने का कारण हैं। बिजनेस पर धौंस जताते हैं कि तुम्हारा भविष्य हम तय करते हैं, तुम कुछ नहीं हो।



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Paytm CEO Vijay Shekhar Sharma said / Google-Facebook earns 35 thousand crores revenue from the country, gives tax zero And they put their bullying on the business of the country separately


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गूगल-फेसबुक देश से 35 हजार करोड़ रुपए रेवेन्यू कमाते हैं, टैक्स देते हैं जीरो और देश के बिजनेस पर अपनी धौंस अलग जमाते हैं

देश के सबसे बड़े डिजिटल पेमेंट और फाइनेंशियल सर्विस एप पेटीएम 19 सितंबर को उस वक्त चर्चा में आ गया, जब गूगल ने प्लेस्टोर से उसे हटा दिया। हालांकि, 30 करोड़ से अधिक यूजर और 70 करोड़ से अधिक ट्रांजेक्शन रोज करने वाले एप की कुछ घंटों में ही प्लेस्टोर पर वापसी भी हो गई। दैनिक भास्कर ने पेटीएम के फाउंडर-सीईओ विजय शेखर शर्मा से बात की। उनका मानना है कि गूगल-फेसबुक जैसी बड़ी टेक कंपनियों पर देश में अंकुश जरूर होना चाहिए। उनसे बातचीत के प्रमुख अंश...

सवाल- आपको लगता है कि आपके एप को गूगल द्वारा विशेष रूप से टारगेट किया गया था?
जवाब-
मुझे तो यह समझ में नहीं आता कि किस पॉलिसी के तहत उन्हें ऐसा लगा कि यूपीआई कैश बैक देने का जो हमारा प्रोग्राम है, वह गैम्बलिंग है। गैम्बलिंग बता कर फाइनेंशियल एप की विश्वसनीयता को गिरा दिया। हमारे ऊपर लगे यह गलत और झूठे आरोप हैं। आप (गूगल) क्लेम करते हो कि चार-पांच बार बात की है। जबकि सुबह ही कॉल किया कि अपनी मेल देखो- हमने कुछ कर दिया है, इस तरह तो हमें बताया गया। हमें इस बात की कोई भी वार्निंग नहीं दी कि हम एप हटा रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण, दुर्भावनावश, बिजनेस पर अटैक कह सकते हैं।

सवाल- गूगल की क्या दुर्भावना हो सकती है?
जवाब-
सबसे बड़ी बात क्या है कि उनके एप में भी यही सब चीजें चल रही होती हैं। उन्होंने जो ई-मेल भेजा उसमें उन्होंने हमें लिखकर दिया कि आप जो भुगतान करते हो उसके बदले में स्टीकर मिलता है। अब देखिए कि पेमेंट का एप है, तो पेमेंट नहीं करेगा तो क्या करेगा? यह कैसे जुआ हो सकता है? ऐसा नहीं है कि हमने यह अभी शुरू किया है या नया है। हम कैश बैक देते रहे हैं। हमने भी जैसे गूगल पे में स्टीकर आते हैं, वैसे ही दिए हैं।

सवाल- ऐसी डी-लिस्टिंग उन कंपनियों को कैसे प्रभावित करती है जिनका व्यवसाय एप पर ही चलता है?
जवाब-
हम हर दिन लाखों ग्राहक जोड़ते हैं, एप से हटने से नए कस्टमर आने बंद हो गए। बहुत सारे हमारे ग्राहक भ्रमित हो गए। किसी ने अफवाह चला दी कि हमारा एप निकाल दिया है और पैसे निकाल लो। इससे समस्या और बड़ी हो गई। जो कंपनियां अपना बिजनेस मॉडल एप के ऊपर चलाती हैं, उनको यह समझ लेना चाहिए कि आप अपना व्यवसाय भारत के नियम कानून के हिसाब से कर रहे हैं तो उनकी नजर में यह पर्याप्त नहीं हैं। ये हमारे देश के सुपर रेग्युलेटर हो गए हैं। ये बड़ी टेक जाॅइंट कंपनियां बताएंगी कि यहां का बिजनेस कैसे चलेगा? यही सबसे बड़ी समस्या है।

सवाल- क्या वह असर अभी भी जारी है?
जवाब-
डिजिटल भारत के राज की चाबी देश के अंदर नहीं, कैलिफोर्निया में है। हमने 20 हजार करोड़ रुपए देश के डिजिटल इंडिया में निवेश किए हुए हैं। गूगल पे हमारे बाद आया है देश में। गूगल पे उस अपॉर्चुनिटी पर आया जो भारत में हमारे एप ने बनाई। अब हमारे एप को खत्म करने के तरीके ढूंढ़ रहे हैं। यह हमारे एप का मामला भर नहीं है बल्कि भारत की डिजिटल आजादी का भी सवाल है।

सवाल- आपका एप अन्य सभी एप से कैसे अलग है, क्या सेवाएं उपलब्ध हैं?
जवाब-
हमारे एप की शुरुआत हुई थी कि आप अपने वॉलेट से पेमेंट कर सकते हैं- जैसे बिजली के बिल, मोबाइल फोन और अन्य भुगतानों का। हमारा एप एक फाइनेंशियल इन्क्लूजन की सेवा है, जिन लोगों के पास बैंक सेवा नहीं थी उनके पास हम एक पेमेंट का तरीका लेकर गए फिर हम जीराे कॉस्ट अमाउंट वाला बैंक अकाउंट लेकर गए। हम वेब सॉल्यूशन, इंश्योरेंस, लोन आदि की सुविधा दे सकते हैं। वॉलेट सिस्टम डाला, अगर बैंक में पैसे हैं आप उनको ट्रांसफर कर लीजिए जिससे कि आपको कॉन्फिडेंस रहे। वॉलेट सिस्टम किसी और एप के पास नहीं है।

सवाल- गूगल के पास एक भुगतान एप भी है। क्या आपको लगता है कि वे अपनी सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए आपसे भेदभाव किया?
जवाब-
जी, बिल्कुल ऐसा है। हमारा जो प्रतिस्पर्धी है, वह हमारे विरुद्ध अपनी सुपर पॉवर से खेल रहा है। भारत में एप का बिजनेस वाली कंपनियों को यह अवश्य समझ लेना चाहिए कि जब उनका बिजनेस बड़ा होगा तब वे आगे जाकर गूगल आदि टेक्नो जाइंट कंपनियों से अवश्य परेशान होंगे। मेरा मानना है कि हमारी मौजूदा सरकार ऐसी सरकार है जो इसको बचा सकती है क्योंकि इन्होंने डिजिटल को कोर एजेंडा बनाया है। प्रधानमंत्री मोदी जी फेसबुक के मुख्यालय भी गए, कभी भी जीरो रेटिंग इस देश ने परमिट नहीं की। मुझे पूरा भरोसा है कि देश के एप ईकोसिस्टम जो बन रहा है उसकी चाबी बाहर तो सरकार नहीं जाने देगी।

सवाल- गूगल बड़े पैमाने पर काल्पनिक खेलों को भी बढ़ावा देता है और बड़े पैमाने पर राजस्व कमाता है। क्या आप दूसरों को भी ऐसा करने से रोकना गलत है?
जवाब-
गूगल तो ऐसी मशीनरी है कि जो रास्ते में आए उसको दबाते जाओ। जिस तरह का पैसा मिले उसे काट लो। सर्च इंजन में तो एड लगा है ऐसा लोगों ने ट्वीट किया, तो क्या सर्च इंजन बंद किया गूगल ने? वहां तो आप एड लगाते हो और जब हमारे एप पर एड लगता है तो आप कहते हैं कि गैम्बलिंग सेशन है। इससे शर्मनाक बात नहीं हो सकती।

सवाल- क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग को ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करना चाहिए?
जवाब-
न सिर्फ कॉम्पीटिशन कमीशन बल्कि भारत सरकार को भी आगे आना चाहिए। भारत सरकार को कहना चाहिए कि आप यहां पर आईए और आप जो दूर से कंट्रोल करके अपनी चाबियां चलाते हो वह नहीं होगा बल्कि अपनी चाबियां (कंट्रोल) देश में ही रखवानी चाहिए। यूपीआई चलाने में देश की मर्जी नहीं है बल्कि गूगल की मर्जी है। आज तो उन्होंने हमारा एप बंद कर दिया अब वो किस कारण से किसका एप बंद करें उनकी मर्जी। भारत सरकार कर के ऊपर प्रयास कर रही है लेकिन इसके साथ अविलंब रूप से हमारी टेक्नोलॉजी को कंट्रोल करने वाली कंपनियों पर भी नियंत्रण करे।

सवाल- क्या आपको लगता है कि भारत को एक ऐसी संस्था की जरूरत है जो सही मायने में नई अर्थव्यवस्था और स्टार्टअप इकोसिस्टम का समर्थन करती हो?
जवाब-
यह बहुत जरूरी बात है। हमारी देश में कार्य करने वाली ऐसी संस्थाएं जो विदेशी कंपनियों के माऊथपीस बने हुए हैं वो हमारे लिए ज्यादा बड़ी समस्या है। इस देश को ऐसे संगठन की आवश्यकता है जो भारतीय टेक्नॉलाजी कंपनियों को रिप्रजेंट करे।

सवाल- भारतीय कंपनियां अंतरराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिग्गजों द्वारा इस तरह के कदमों को कैसे लड़ सकती हैं जिनके पास बड़े पैमाने पर धन भी है?
जवाब-
छोटा कभी जीतता-हारता नहीं है, बल्कि संगठन में शक्ति है और सरकार में हमारा भरोसा है। जब हम साथ में मिलकर आएंगे तब देश ही नहीं दुनिया भी बदलती है। जब एक व्यक्ति के साथ ऐसा हो रहा है जो सबके साथ होना संभव है। आप अगर यूट्यूब या फेसबुक यूज नहीं करोंगे तो ऐ पैसा कैसे बनाएंगे? हम इस देश का विकास चाहते हैं देश में निवेश चाहते हैं। ये कंपनियां देश से पैसा ले जाती हैं निवेश कहां करती हैं?

सवाल- क्या आपको लगता है कि इस तरह की रणनीति सरकार की आत्मनिर्भर भारत पहल को प्रभावित करती है?
जवाब-
यह समस्या अकेले हमारे एप की नहीं है। यह समझने की बात है कि स्टार्टअप इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, डिजिटल और टेक्नोलाॅजी इन सबको कौन कंट्रोल करता है। आज हमारे एप की बात है कल किसी सरकार विभाग या विंग की हो सकती है। अब तक दसियों स्टार्टअप्स के फाउंडर हमसे बात कर चुके हैं कि हमको भी फोर्सफुली बंद किया।

सवाल- बड़ी टेक कंपनियां ब्रेन-ड्रेन का कारण, यहां से पैसा भी ले जाते हैं
जवाब-
शर्मा ने कहा कि बड़ी टेक कंपनियां जैसे गूगल और फेसबुक देश से 30 से 35 हजार करोड़ रुपए राजस्व कमाती हैं और टैक्स देती हैं जीरो। ये कंपनियां देश के बिजनेस के ऊपर अपनी धौंस जमाती हैं। इन कंपनियों को देश में पूरा-पूरा टैक्स जमा कराना चाहिए। नौकरी अमेरिका में देते हैं। ये लोग ब्रेन ड्रेन और हमारे यहां से पैसा ले जाने का कारण हैं। बिजनेस पर धौंस जताते हैं कि तुम्हारा भविष्य हम तय करते हैं, तुम कुछ नहीं हो।



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दीपिका, सारा और श्रद्धा से आज NCB पूछताछ करेगा, 15 सवाल किए जा सकते हैं; इस दौरान दीपिका के साथ रणवीर को रहने की इजाजत नहीं

सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच के सिलसिले में सामने आए बॉलीवुड के ड्रग्स कनेक्शन में आज सबसे बड़ी पेशी होगी। दीपिका पादुकोण, सारा अली खान और श्रद्धा कपूर से आज नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) पूछताछ करेगा। इस दौरान रणवीर को दीपिका के साथ रहने की परमिशन नहीं दी गई है। रणवीर ने NCB से कहा था कि दीपिका को कई बार घबराहट होती है, इसलिए पूछताछ के वक्त वे साथ रहना चाहते हैं।

तीनों एक्ट्रेस से 5-5 सवाल किए जा सकते हैं
अभी तक के अपडेट के मुताबिक, दीपिका 10 बजे गेटवे ऑफ इंडिया के पास स्थित NCB के गेस्ट हाउस पहुंचेंगी। उनसे पहले अकेले में और फिर उनकी मैनेजर करिश्मा प्रकाश को सामने बैठाकर भी पूछताछ की जा सकती है। दूसरी तरफ सारा अली खान और श्रद्धा कपूर को NCB के बैलार्ड एस्टेट स्थित हेड ऑफिस में 10.30 बजे बुलाया गया है। तीनों एक्ट्रेस से अलग-अलग 5-5 यानी कुल 15 सवाल किए जा सकते हैं।

दीपिका से ये 5 सवाल किए जा सकते हैं-

1. क्या आपने कभी ड्रग्स ली या खरीदी है? अगर हां, तो कहां से और कैसे?

2. अपना मोबाइल नंबर कन्फर्म कीजिए। करिश्मा प्रकाश और जया साहा के साथ 2017 की चैट आपकी है या नहीं?

3. क्या आप करिश्मा को कब से जानती हैं? आपकी उनसे मुलाकात कैसे हुई, डिटेल बताएं।

4. क्या आपने उन्हें कभी ड्रग्स का इंतजाम करने को कहा था या आपने उन्हें कितनी बार ड्रग्स खरीदने के लिए कहा? आपने ड्रग्स अपने लिए खरीदी या किसी और के लिए?

5. क्या करिश्मा को आपने पेमेंट किया था? अगर हां तो उसका मोड़ क्या था? कोको रेस्टोरेंट में जो पार्टी हुई थी, क्या उसमें किसी तरह की ड्रग्स यूज हुई थी?

सारा अली खान से पूछे जाने वाले संभावित सवाल-

1.अपना मोबाइल नंबर कन्फर्म कीजिए। सुशांत सिंह राजपूत से आपकी मुलाकात कैसे हुई और उनसे आपका क्या रिलेशन था?

2. क्या सुशांत फिल्म केदारनाथ के समय से ड्रग्स ले रहे थे? क्या उनके साथ आपने भी कभी ड्रग्स ली?

3. क्या आप सुशांत के साथ थाईलैंड गईं थीं? वहां आप लोगों ने ड्रग्स ली या आपकी टीम में से किसी और ने ऐसा किया?

4. पावना स्थित फार्म हाउस पर आप सुशांत के साथ कितनी बार गईं थीं? क्या आप किसी ऐसी पार्टी में शामिल हुईं, जिसमें ड्रग्स का इस्तेमाल हुआ?

5. क्या कभी आपने किसी से ड्रग्स खरीदी? करमजीत उर्फ केजे नाम के शख्स को क्या आप जानती हैं? क्या वह कभी आपके पास ड्रग्स लेकर आया?

श्रद्धा कपूर से ये सवाल पूछे जा सकते हैं-

1. सुशांत और रिया से पहली मुलाकात कब और कैसे हुई? क्या आपने रिया या सुशांत को कभी ड्रग्स लेते हुए देखा था?

2. क्या 28 मार्च 2019 को पावना में फिल्म छिछोरे की पार्टी में आप शामिल हुईं थीं? अगर हां, तो क्या उस दिन पार्टी में ड्रग्स का इस्तेमाल हुआ था और क्या आपने भी ड्रग्स ली थी?

3. जया साहा से आपकी मुलाकात कैसे हुई? एसएलबी कौन है, जिससे आप मिलना चाहती थीं और क्यों? क्या उससे मुलाकात हुई, अगर हुई तो कितनी बार?

4. क्या आप सीबीडी ऑयल ड्रग्स लेती हैं या किसी और के लिए मंगवा रही थीं? जया किस जिंदल के जरिए आपको सीबीडी ऑयल भेजने की बात कर रही हैं?

5. क्या आप करमजीत उर्फ केजे को जानती हैं? क्या वह कभी आपके पास ड्रग्स लेकर आया या आपके लिए काम करने वाले किसी शख्स ने उससे कभी ड्रग्स खरीदी?

तीनों एक्ट्रेस के नाम ड्रग्स केस कैसे आए?

दीपिका पादुकोण : वॉट्सऐप के एक ग्रुप चैट में दीपिका, उनकी मैनेजर करिश्मा और सुशांत की टैलेंट मैनेजर जया साहा के बीच 28 अक्टूबर 2017 को ड्रग्स को लेकर हुई बातचीत सामने आई है। दीपिका ने 'हैश' और 'वीड' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए करिश्मा से माल (ड्रग्स) की मांग की थी। सूत्रों के मुताबिक, इस ग्रुप की एडमिन भी दीपिका ही थीं।

सारा अली खान : रिया चक्रवर्ती ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि सारा अली खान फिल्म केदारनाथ के समय से सुशांत के करीब थीं और सुशांत की ड्रग्स पार्टी में शामिल हुईं थीं। इसके अलावा सुशांत के पावना स्थित फार्म हाउस में हुई ड्रग्स पार्टी में भी वे शामिल हुईं थीं। वहां के एक नाव वाले ने भी यही बात कही थी। NCB को भी फार्म हाउस से नशीली चीजें मिली हैं।

श्रद्धा कपूर : जया साहा और श्रद्धा के बीच हुए कुछ चैट सामने आए हैं। इसमें श्रद्धा सीबीडी ऑयल की डिमांड कर रही हैं। सूत्रों के मुताबिक ड्रग पैडलर करमजीत ने श्रद्धा को जानने और उनके घर तक कार से ड्रग्स पहुंचाने की बात कबूली है।

रकुलप्रीत ने रिया से ड्रग्स चैट की बात कबूली
NCB ने रकुलप्रीत से शुक्रवार को 4 घंटे तक पूछताछ की थी। सूत्रों के मुताबिक रकुल ने रिया चक्रवर्ती से ड्रग्स के बारे में चैट करने की बात कबूल की है। हालांकि, खुद ड्रग्स लेने की बात से इनकार कर दिया। रकुलप्रीत का कहना है कि वे कोई भी मेडिकल टेस्ट करवाने और किसी के भी सामने बैठाकर पूछताछ के लिए तैयार हैं।



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Sushant Singh Rajput case: NCB summons Deepika Padukone, Sara Ali Khan, Shraddha Kapoor in drug probe news and updates.


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लाखों की नौकरी छोड़ गुजरात के देवेश कर रहे हैं हल्दी की खेती; सालाना 1.25 करोड़ रु टर्नओवर, यूरोप तक भेजते हैं हल्दी दूध पावडर

गुजरात के आणंद जिले के बोरियावी गांव के देवेश पटेल लाखों की नौकरी छोड़कर ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं। इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग करने वाले देवेश हल्दी, अदरक, अश्वगंधा, नींबू, सब्जियां और अनाज अपने खेतों में उगाते हैं। हाल ही में उन्होंने इम्युनिटी बढ़ाने के लिए हल्दी कैप्सूल लॉन्च किया है, जिसकी काफी डिमांड है। 1.25 करोड़ रु सालाना टर्नओवर है। उनके साथ काफी संख्या में दूसरे भी किसान जुड़े हैं। साथ ही कई विदेशी कंपनियां भी उनके साथ निवेश करना चाहती है। उनके प्रोडक्ट की सप्लाई अमेरिका में भी हो रही है।

देवेश कहते हैं, ‘‘हमारे गांव बोरियावी की हल्दी पूरे देश में फेमस है। कुछ दिन पहले हमने इसका पेटेंट भी कराया है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने चार साल पहले आर्गेनिक खेती शुरू की। चूंकि मेरा परिवार पहले से ही खेती किसानी से जुड़ा रहा है तो मुझे ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। अभी हम 5-7 एकड़ जमीन पर ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं।’’

देवेश के गांव बोरियावी की हल्दी पूरे देश में फेमस है। कुछ दिन पहले उन्होंने इसका पेटेंट भी कराया है।

देवेश बताते हैं कि इस साल मार्च में हमने इम्युनिटी पावर बढ़ाने वाली हल्दी के कैप्सूल लॉन्च किया है। इसके लिए हमने देसी हल्दी को प्रॉसेस कर उसके 150 तत्वों को एक्टिव किया। क्योंकि, अभी जो हल्दी खाई जाती है, उससे सीमित फायदा ही होता है। दूसरा कि इसका उपयोग लोग नियमित रूप से नहीं करते, जिससे कि हल्दी के पोषक तत्वों का पूरा फायदा शरीर को नहीं मिल पाता। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हमने हल्दी के कैप्सूल बनाए। हालांकि, कोरोना के चलते इसकी सप्लाई सिर्फ गुजरात और आसपास के क्षेत्रों तक ही सीमित रही। अब हालात सुधर रहे हैं तो देश भर में इसकी सप्लाई शुरू कर रहे हैं।

ग्लोबल लेवल पर कैप्सूल का मार्केट बनाएंगे
देवेश बताते हैं कि फिलहाल हम रोजाना 5000 कैप्सूल का उत्पादन कर रहे हैं। वैश्विक बाजार में इन कैप्सूल का मार्केट खड़ा करने के लिए न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की कई कंपनियों से बात चल रही है। इस कैप्सूल के लिए हमने 2 साल तक रिसर्च और डवलपमेंट पर काम करने के लिए आणंद कृषि यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों से मार्गदर्शन लिया। इसके बाद कैप्सूल का पेटेंट भी करवाया।

यूरोप के लोग हल्दी का दूध काफी पसंद करते हैं
देवेश बताते हैं कि चॉकलेट पाउडर की तरह हल्दी भी दूध में मिलाकर पी जा सके, हमने ऐसा ही पाउडर बनाया है। यह पूरी तरह से ऑर्गेनिक है और यूरोप के कई देशों में हम एक्सपोर्ट कर रहे हैं।अब इसे भारतीय बाजार में लॉन्च करने की तैयारी चल रही है। इसके लिए उसकी पैकेजिंग और डिजाइन अहमदाबाद में तैयार हो रही है। यह प्रोडक्ट खास तौर पर बच्चों को ध्यान में रखते हुए ही तैयार किया जा रहा है। यूरोप से हमें इसका बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिला है।

देवेश के साथ उनके गांव के कई किसान जुड़े हैं, वे सभी को ऑर्गेनिक खेती के बारे में बताते हैं।

वो बताते हैं कि इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की पढ़ाई के चलते ही मुझे ऑनलाइन मार्केटिंग समझने में मदद मिली। इसकी मदद से मैं सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर काफी अच्छे तरीके से मार्केटिंग कर लेता हूं। कम्युनिकेशन स्किल के चलते इंटरनेशनल कम्युनिटी से डील करना भी आसान हो गया है।

हम ऑर्गेनिक आलू के लिए ग्रोफर और बिग बास्केट जैसी ई-कॉमर्स कंपनियां हमारे संपर्क में हैं। उनसे बातचीत चल रही है और जल्द ही उनके साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए एग्रीमेंट हो सकता है।

विदेशी निवेशकों ने इंटरेस्ट दिखाया
वो कहते हैं कि जर्मनी, अमेरिका, फ्रांस जैसे कई देशों की कंपनियों ने निवेश के लिए रुचि दिखाई है। हालांकि, इसे लेकर हमने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है। आने वाले दिनों में हमें और जमीन खरीदनी की जरूरत पड़ेगी, जिससे ऑर्गेनिक फार्मिंग को और बढ़ाया जा सके। फिलहाल हमारे पास 35 बीघा जमीन है और उसमें से 10 बीघा जमीन का उपयोग तो फार्मिंग के लिए कर रहे हैं। हमारे गांव के काफी लोग विदेशों में रहते हैं और उनकी जमीनें यहीं हैं। इसलिए हम उनसे बात कर रहे हैं। हमारे काम को देखते हुए उनका पॉजीटिव रिस्पॉन्स मिल रहा है।

डुप्लीकेशन बढ़ने का डर
सत्व ऑर्गेनिक का नाम अब फेमस हो चुका है और इसके चलते उसके नाम पर नकली प्रोडक्ट्स भी बाजार में मिल रहे हैं। देवेश पटेल ने बताया कि इस बात को ध्यान में रखते हुए अब हमने पैकेट पर क्यूआर कोड छापने का फैसला किया है। इस कोड को स्कैन करते ही हमारा ऑफिशियल यूट्यूब पेज ओपन हो जाएगा और उस प्रोडक्ट से संबंधित जानकारी ग्राहकों को मिल जाएगी।

देवेश कहते हैं कि हम ऑर्गेनिक आलू के लिए ग्रोफार और बिग बास्केट जैसी ई-कॉमर्स कंपनियां हमारे संपर्क में हैं। उनसे बातचीत चल रही है और जल्द ही उनके साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए एग्रीमेंट हो सकता है।

पतरवेलिया पान के लिए GI टैग
देवेश बताते हैं कि हमें अभी तक हल्दी, अदरक और कैप्सूल के लिए पेटेंट मिल गया है। उसी तरह अब बोरियावी गांव में उगने वाले पतरवेलिया के पान के लिए जियोग्राफिकल आइडेंटिटी (जीआई) टैग लेने की कोशिश कर रहे हैं। पतरवेलिया के पान से गुजरात का एक फेमस रस बनता है। इसके अलावा उसके पकौड़े और सब्जी भी बनती है।



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गुजरात के आणंद जिले के बोरियावी गांव के देवेश पटेल ने इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की है। अब वे लाखों रुपए की नौकरी छोड़कर ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं।


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संक्रमितों का आंकड़ा 59 लाख के पार, लेकिन राहत की बात कि अब एक्टिव केस कम हो रहे, 14 दिन पहले 10.17 लाख थे, अब 9.61 लाख

देश में कोरोना संक्रमितों का आंकड़े अब कुछ राहत दे रहे हैं। बीते आठ में से सात दिनों में नए संक्रमितों से ठीक होने वालों की संख्या ज्यादा रही है। शुक्रवार को भी 85 हजार 465 संक्रमितों की पहचान हुई, जबकि 93 हजार 166 ठीक हो गए। इससे एक्टिव केस लगातार कम हो रहे हैं। 14 दिन पहले 12 सितंबर को 9.73 लाख एक्टिव केस थे, जबकि 25 सितंबर को यह 9.61 लाख हो गए।

देश में अब तक 59 लाख 1 हजार 571 लोग संक्रमित हो चुके हैं। इनमें 48 लाख 46 हजार 168 लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 93 हजार 410 मरीजों की मौत हो चुकी है। ये आंकड़े covid19india.org के मुताबिक हैं।

कोरोना अपडेट्स

  • ओडिशा देश का 8वां राज्य हो गया है, जहां संक्रमितों की संख्या 2 लाख से अधिक हो चुकी है। शुक्रवार को यहां 4208 नए केस मिले। इसी के साथ संक्रमितों की संख्या 2 लाख 1 हजार 96 हो गई है। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में संक्रमितों की संख्या 2 लाख से ज्यादा हो चुकी है।
  • गुरुवार को रिकॉर्ड 14 लाख 92 हजार 409 लोगों की जांच हुई। कोरोना टेस्टिंग का यह आंकड़ा एक दिन में सबसे ज्यादा है। इसके पहले 19 सितंबर को 12 लाख लोगों की जांच हुई थी। 6.89 करोड़ जांच हो चुकी हैं।
  • अब हर 10 लाख की आबादी में मरीजों के मिलने की संख्या बढ़ गई है। अब इतनी आबादी में 4210 लोग संक्रमित मिल रहे हैं। 20 सितंबर तक 4200 मरीज मिल रहे थे। इतनी ही आबादी में मरने वालों की संख्या भी 67 हो गई है।
  • पीजीआई चंडीगढ़ में शुक्रवार से ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की कोरोना वैक्सीन कोवीशील्ड का ट्रायल शुरू हो गया है। यहां वैक्सीन का डोज लेने के लिए 400 वॉलंटियर्स ने रजिस्ट्रेशन कराया है।

पांच राज्यों का हाल

1. मध्यप्रदेश
राज्य में बगैर मास्क वालों पर सख्ती शुरू हो गई है, इसका असर भोपाल की जिला अदालत में शुक्रवार को देखने को मिला। यहां पुलिस ने कैम्पस में मास्क नहीं लगाने वाले पांच लोगों पर 500-500 रुपए का जुर्माना लगाया। शुक्रवार को एमपी नगर पुलिस ने भी 10 लोगों के खिलाफ मास्क नहीं पहनने पर चालानी कार्रवाई की।

2. राजस्थान

शुक्रवार को कोरोना के सबसे ज्यादा 2010 नए मामले सामने आए। 15 मरीजों की मौत हो गई। यहां अब तक 1 लाख 24 हजार 730 केस आ चुके हैं, 1 लाख 4 हजार 288 संक्रमित ठीक हो चुके हैं, 1412 की जान जा चुकी है। 19 हजार 30 मरीजों का इलाज चल रहा है। अब तक करीब 30 लाख टेस्टिंग की जा चुकी हैं। राज्य सरकार ने निजी अस्पतालों में 30% बेड कोरोना संक्रमितों के लिए रिजर्व रखने का निर्देश दिया है।

3. बिहार

शुक्रवार को 1632 संक्रमितों की पहचान हुई। राहत की बात यह कि राज्य में शुक्रवार को ही सबसे ज्यादा 1810 मरीज ठीक भी हुए। तीन संक्रमितों की मौत हो गई। राज्य में अब तक 1 लाख 75 हजार 898 केस आ चुके हैं। इनमें 1 लाख 61 हजार 510 ठीक हो चुके हैं, जबकि 13 हजार 506 का इलाज चल रहा है। संक्रमण के चलते अब तक 881 मरीजों की मौत हो चुकी है।

4. महाराष्ट्र

शुक्रवार को संक्रमण के 17 हजार 794 नए मामले सामने आए। यहां अब अब तक 13 लाख 757 लोग संक्रमित हो चुके हैं। राज्य में पिछले 24 घंटे में 416 लोगों की मौत हुई है। अब तक 34 हजार 761 लोग जान गंवा चुके हैं।

5. उत्तरप्रदेश

शुक्रवार को 4519 केस आए और 6075 लोग ठीक हुए। यह लगातार आठवां दिन था, जब नए मरीजों से ज्यादा ठीक हो गए। राज्य में अब तक 3 लाख 78 हजार 533 लोग संक्रमित पाए जा चुके हैं। इनमें से 82.86%, यानी 3 लाख 13 हजार 686 मरीज ठीक हो चुके हैं। 59 हजार 397 मरीजों का इलाज चल रहा है। संक्रमण के चलते अब तक 5 हजार 450 लोगों की मौत हो चुकी है।



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संक्रमितों का आंकड़ा 59 लाख के पार, लेकिन राहत की बात कि अब एक्टिव केस कम हो रहे, 14 दिन पहले 10.17 लाख थे, अब 9.61 लाख

देश में कोरोना संक्रमितों का आंकड़े अब कुछ राहत दे रहे हैं। बीते आठ में से सात दिनों में नए संक्रमितों से ठीक होने वालों की संख्या ज्यादा रही है। शुक्रवार को भी 85 हजार 465 संक्रमितों की पहचान हुई, जबकि 93 हजार 166 ठीक हो गए। इससे एक्टिव केस लगातार कम हो रहे हैं। 14 दिन पहले 12 सितंबर को 9.73 लाख एक्टिव केस थे, जबकि 25 सितंबर को यह 9.61 लाख हो गए।

देश में अब तक 59 लाख 1 हजार 571 लोग संक्रमित हो चुके हैं। इनमें 48 लाख 46 हजार 168 लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 93 हजार 410 मरीजों की मौत हो चुकी है। ये आंकड़े covid19india.org के मुताबिक हैं।

कोरोना अपडेट्स

  • ओडिशा देश का 8वां राज्य हो गया है, जहां संक्रमितों की संख्या 2 लाख से अधिक हो चुकी है। शुक्रवार को यहां 4208 नए केस मिले। इसी के साथ संक्रमितों की संख्या 2 लाख 1 हजार 96 हो गई है। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में संक्रमितों की संख्या 2 लाख से ज्यादा हो चुकी है।
  • गुरुवार को रिकॉर्ड 14 लाख 92 हजार 409 लोगों की जांच हुई। कोरोना टेस्टिंग का यह आंकड़ा एक दिन में सबसे ज्यादा है। इसके पहले 19 सितंबर को 12 लाख लोगों की जांच हुई थी। 6.89 करोड़ जांच हो चुकी हैं।
  • अब हर 10 लाख की आबादी में मरीजों के मिलने की संख्या बढ़ गई है। अब इतनी आबादी में 4210 लोग संक्रमित मिल रहे हैं। 20 सितंबर तक 4200 मरीज मिल रहे थे। इतनी ही आबादी में मरने वालों की संख्या भी 67 हो गई है।
  • पीजीआई चंडीगढ़ में शुक्रवार से ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की कोरोना वैक्सीन कोवीशील्ड का ट्रायल शुरू हो गया है। यहां वैक्सीन का डोज लेने के लिए 400 वॉलंटियर्स ने रजिस्ट्रेशन कराया है।

पांच राज्यों का हाल

1. मध्यप्रदेश
राज्य में बगैर मास्क वालों पर सख्ती शुरू हो गई है, इसका असर भोपाल की जिला अदालत में शुक्रवार को देखने को मिला। यहां पुलिस ने कैम्पस में मास्क नहीं लगाने वाले पांच लोगों पर 500-500 रुपए का जुर्माना लगाया। शुक्रवार को एमपी नगर पुलिस ने भी 10 लोगों के खिलाफ मास्क नहीं पहनने पर चालानी कार्रवाई की।

2. राजस्थान

शुक्रवार को कोरोना के सबसे ज्यादा 2010 नए मामले सामने आए। 15 मरीजों की मौत हो गई। यहां अब तक 1 लाख 24 हजार 730 केस आ चुके हैं, 1 लाख 4 हजार 288 संक्रमित ठीक हो चुके हैं, 1412 की जान जा चुकी है। 19 हजार 30 मरीजों का इलाज चल रहा है। अब तक करीब 30 लाख टेस्टिंग की जा चुकी हैं। राज्य सरकार ने निजी अस्पतालों में 30% बेड कोरोना संक्रमितों के लिए रिजर्व रखने का निर्देश दिया है।

3. बिहार

शुक्रवार को 1632 संक्रमितों की पहचान हुई। राहत की बात यह कि राज्य में शुक्रवार को ही सबसे ज्यादा 1810 मरीज ठीक भी हुए। तीन संक्रमितों की मौत हो गई। राज्य में अब तक 1 लाख 75 हजार 898 केस आ चुके हैं। इनमें 1 लाख 61 हजार 510 ठीक हो चुके हैं, जबकि 13 हजार 506 का इलाज चल रहा है। संक्रमण के चलते अब तक 881 मरीजों की मौत हो चुकी है।

4. महाराष्ट्र

शुक्रवार को संक्रमण के 17 हजार 794 नए मामले सामने आए। यहां अब अब तक 13 लाख 757 लोग संक्रमित हो चुके हैं। राज्य में पिछले 24 घंटे में 416 लोगों की मौत हुई है। अब तक 34 हजार 761 लोग जान गंवा चुके हैं।

5. उत्तरप्रदेश

शुक्रवार को 4519 केस आए और 6075 लोग ठीक हुए। यह लगातार आठवां दिन था, जब नए मरीजों से ज्यादा ठीक हो गए। राज्य में अब तक 3 लाख 78 हजार 533 लोग संक्रमित पाए जा चुके हैं। इनमें से 82.86%, यानी 3 लाख 13 हजार 686 मरीज ठीक हो चुके हैं। 59 हजार 397 मरीजों का इलाज चल रहा है। संक्रमण के चलते अब तक 5 हजार 450 लोगों की मौत हो चुकी है।



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यूएई में पहली बार नाइट राइडर्स और सनराइजर्स आमने-सामने, दोनों टीमें इस सीजन का अपना पहला मैच हारीं; पिछले 4 मुकाबलों में 2-2 की बराबरी

आईपीएल के 13वें सीजन का आठवां मैच कोलकाता नाइट राइडर्स (केकेआर) और सनराइजर्स हैदराबाद (एसआरएच) के बीच आज अबु धाबी में खेला जाएगा। यह पहला मौका होगा, जब यूएई में दोनों टीमें आमने-सामने होंगी। इस सीजन के पहले मुकाबले में हैदराबाद को रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। वहीं, केकेआर को उसके पहले मुकाबले में मुंबई ने हराया था। फिलहाल पॉइंट टेबल में यही दोनों टीमें हैं, जिनका खाता अब तक नहीं खुल सका है।

पिछले चार मुकाबलों की बात करें, तो हैदराबाद और कोलकाता के बीच बराबरी का मुकाबला रहा है। दोनों ने 2-2 मैच जीते हैं।

दोनों टीमों के सबसे महंगे खिलाड़ी
हैदराबाद के सबसे महंगे खिलाड़ी डेविड वॉर्नर हैं। उन्हें फ्रेंचाइजी सीजन का 12.50 करोड़ रुपए देगी। इसके बाद टीम के दूसरे महंगे खिलाड़ी मनीष पांडे (11 करोड़) हैं। वहीं कोलकाता के सबसे महंगे खिलाड़ी पैट कमिंस हैं। उन्हें सीजन के 15.50 करोड़ रुपए मिलेंगे। इसके बाद सुनील नरेन का नंबर आता है, जिन्हें सीजन के 12.50 करोड़ रुपए मिलेंगे।

केकेआर के लिए कार्तिक, रसेल और नरेन की-प्लेयर्स
कोलकाता को ऑफ स्पिनर और ओपनर बल्लेबाज सुनील नरेन के अलावा आंद्रे रसेल से सबसे ज्यादा उम्मीदें होंगी। 2019 सीजन में रसेल ने आक्रामक बल्लेबाजी करते हुए 52 छक्के लगाए थे। आईपीएल में रसेल का सबसे ज्यादा 186.41 का स्ट्राइक रेट भी रहा है।

वॉर्नर और विलियम्सन हैदराबाद के मजबूत बल्लेबाज
हैदराबाद के पास वॉर्नर के अलावा जॉनी बेयरस्टो, प्रियम गर्ग और मनीष पांडे जैसे धुरंधर बल्लेबाज हैं। वहीं, बॉलिंग में भुवनेश्वर कुमार के अलावा राशिद खान और युवा खलील अहमद भी हैं।

हेड-टु-हेड
दोनों के बीच अब तक 17 मुकाबले हुए हैं। इसमें कोलकाता ने 10 जबकि हैदराबाद ने सात मैच जीते हैं। पिछले दोनों सीजन की बात की जाए तो दोनों टीमों के बीच हुए चार मैच में 2-2 की बराबरी रही है।

पिच और मौसम रिपोर्ट
अबु धाबी में मैच के दौरान आसमान साफ रहेगा। तापमान 28 से 39 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां स्लो विकेट होने के कारण स्पिनर्स को भी काफी मदद मिलेगी। शेख जायद स्टेडियम में टॉस जीतने वाली टीम पहले गेंदबाजी करना पसंद करेगी। यहां हुए पिछले 45 टी-20 में पहले गेंदबाजी करने वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 56.81% रहा है।

  • इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 44
  • पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 19
  • पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 25
  • पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 137
  • दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 128

कोलकाता और हैदराबाद ने 2-2 बार खिताब जीते
आईपीएल इतिहास में कोलकाता ने अब तक दो बार फाइनल (2014, 2012) खेला और दोनों बार चैम्पियन रही है। वहीं, हैदराबाद ने भी अब तक दो बार (2016, 2009) में फाइनल खेला और जीत हासिल की।

आईपीएल में हैदराबाद का सक्सेस रेट 53.21%, यह केकेआर से ज्यादा
लीग में हैदराबाद का सक्सेस रेट कोलकाता से ज्यादा है। हैदराबाद ने आईपीएल में 109 मैच खेले हैं। इसमें उसने 58 मैच जीते और 51 हारे हैं, यानि लीग में उसका सक्सेस रेट 53.21% है। वहीं, कोलकाता ने 179 मैच खेले हैं। इनमें उसने 92 मैच जीते और 87 हारे हैं, यानि लीग में उसका सक्सेस रेट 51.39% है।



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KKR VS SRH Head To Head Record - IPL Dream Playing 11 and Match Preview | Kolkata Knight Riders Vs Sunrisers Hyderabad IPL Latest News and Update


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हमें ऐसी राजनीति चाहिए जो लोगों के घाव भरे, उन्हें साथ लाए, ताकि हकीकत में एक सुरक्षित और मजबूत समाज बने

आज आप जहां भी देखते हैं, आपको राजनीति दिखती है। शिक्षा में राजनीति है। फिल्मों के व्यापार में राजनीति है। नोबेल के पीछे राजनीति है, जो गांधी को नहीं मिलता, लेकिन जिमी कार्टर को मिल जाता है। एनजीओ में भी राजनीति है। योग्य को मैग्सेसे नहीं मिलता, लेकिन चालाक पा लेते हैं। नौकरशाही में राजनीति है। आर्थिक फैसलों के पीछे राजनीति है। गरीबी की भी राजनीति है और संपदा की भी राजनीति है।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि खुद राजनीति की भी राजनीति है। उनकी राजनीति है जो हम पर शासन करते हैं और उनकी भी राजनीति है जो ऐसा चाहते हैं। बिना राजनीति के आपके बीच विवाद नहीं होंगे। और अगर आपके बीच विवाद नहीं होंगे तो आपके पास लोकतंत्र भी नहीं होगा। जिस लोकतंत्र पर हमें आज इतना गर्व है असल में वह विवाद की राजनीति पर ही आधारित है। लेकिन, अगर आप सोचते हैं कि लोकतंत्र की गैरमौजूदगी विवादों को भी खत्म करती है तो आप गलत हैं।

किसी तानाशाही शासन में भले ही राजनीति उतनी न हो, लेकिन विवाद उतने ही होते हैं, बस आप इन्हें खुले में नहीं देख पाते। इसकी वजह है कि जो सत्ता में होता है वह अपने विरोधियों को आसानी से निपटा देता है। क्या लोकतंत्रों में लोगों को निपटाया नहीं जाता? दोनों में ही बराबर हत्याएं होती हैं। तानाशाही में हम हत्याओं पर चर्चा नहीं करते। लोकतंत्र में हम बहस करते हैं कि कौन सही था, मरने वाला या मारने वाला। लेकिन कुछ भी हत्याओं को नहीं रोकता, क्योंकि सच यह है कि हमें मारना पसंद है।

हम एक-दूसरे को फायदे के लिए मारना पसंद करते हैं। हम दूसरी प्रजातियों को मारना पसंद करते हैं। कई बार भोजन के लिए। अधिकांश, सिर्फ हत्या के प्रति प्रेम की वजह से। हम सील को सिर्फ इसलिए मार देते हैं, क्योंकि वह जाल में छेद कर देती है। हम हिरन को इसलिए मार देते हैं, क्योंकि वे फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। हम लोमड़ियों का इसलिए शिकार करते हैं, क्योंकि इसमें आनंद आता है।

भारत में तो हम किसी भी जानवर को नुकसान पहुंचाने वाला बताकर उसे मार देते हैं। उदाहरण के लिए नीलगाय। हम ईश्वर के आगे सिर झुकाते हैं, लेकिन हाथियों के कॉरीडोर को नष्ट करके उन्हें शिकार के लिए आसान बना रहे हैं। बंदरों को इसलिए मारा जाता है, क्योंकि हम उन्हें उत्पाती मानते हैं। चूहे और सांप के भी मंदिर हैं, हम वहां प्रार्थना करते हैं और घर जाकर चूहों और नुकसान न पहुंचाने वाले सांपों को मार देते हैं।

राजनेता कई बार घृणित तरीके अपनाते हैं। जैसे झूठे वादे, धोखा- धमकी और गलत वजहों से दंडित करना। राजनीति सत्ता में बने रहने और भारी संपत्ति का दोहन करने का विज्ञान है। तकनीक राजनेता की कपटी साथी और सोशल मीडिया आकर्षक परगामिनी है।

जब मैं छोटा था तो घर में गांधीजी और टैगोर के चित्र लगे थे। कम पैसा होते हुए भी मेरे माता-पिता टैगोर के 23 संस्करण खरीद कर लाए थे। काउंसलेटों ने हमें किताबें भेंट की, जिससे हमारी उनके बेहतरीन साहित्य से पहचान हुई। आज हम इसे सॉफ्ट पावर की राजनीति कहते हैं। लेकिन इसने जहां मुझे हरमन मेलविले और वाल्ट व्हिटमैन से परिचित कराया, वहीं दोस्तोवस्की और मक्सिम गोर्की से भी। येव्तुशेंको की कविताओं से मैंने बाबी यार में हुए नरसंहार के बारे में जाना। मैंने गुलाग पर सोल्झेनित्सिन को पढ़ा। तब अहसास हुआ कि राजनीति का केंद्र तो सत्ता के अत्याचारों का विरोध करने में है।


इसीलिए मैंने पत्रकारिता के लिए कविता को छोड़ दिया। मैं संसद में भी गया, ताकि पता लगा सकूं कि राजनीति क्या कर सकती है, यह भारत को कैसे बदल सकती है। आज जो सत्ता में हैं और हमारी हर समस्या के लिए नेहरू को दोष देते हैं। वे महात्मा को दोष देने की हिम्मत नहीं कर सकते। यह कोई वाम व दक्षिणपंथियों की लड़ाई नहीं है, जितना सरल हम इसे देखते हैं। यह भारत की आत्मा के लिए लड़ाई है।

क्या हम राजनीतिक फायदे के लिए नफरत, धर्म, जाति या धार्मिक पहचान के इस्तेमाल में विश्वास करते हैं? या हम एक सहानुभूतिपूर्ण समाज के लिए लड़ेंगे, जहां पर उम्मीदें लोगों के दिलों पर शासन करती हो न कि नफरत? राजनीति को संभव बनाने की कला होना चाहिए। लेकिन, महामारी में यह हर मोर्चे पर विफल रही है। हमने शासन की बीमारी देखी है। हमने करोड़ों लोगों की जिंदगी को बर्बाद होते देखा, क्योंकि उन्होंने कुछ नहीं किया, जो बदलाव ला सकते थे।

यह समय संभवत: अलग तरह की राजनीति की ओर देखने का है। ऐसी राजनीति जो लोगों के घावों को भरे, उनको साथ लाए, ताकि हकीकत में एक सुरक्षित और मजबूत समाज बने। 73 साल पहले हमने सिर्फ अहिंसा के दम पर आजादी हासिल कर ली थी। वह अहिंसा को हथियार बनाने की कला थी। यह समय भी किसी अन्य राजनीतिक हथियार की खोज का है। ऐसी सरकार चुनने की कला का जो सच में काम करती हो। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



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प्रीतीश नंदी, वरिष्ठ पत्रकार व फिल्म निर्माता


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हम कैसे मान लें कि निजी व्यापारी आढ़तियों की तरह व्यवहार नहीं करेंगे; एमएसपी पर अधिनियमों में सरकार की चुप्पी चिंता करने वाली है

संसद में लाए गए कृषि से संबंधित तीन बिलों पर दो तरह के सवाल है। मौलिक सवाल है कि इनसे किसका फायदा और नुकसान होगा? साथ ही प्रक्रियात्मक मुद्दे भी अहम हैं। प्रक्रिया को लेकर एक आपत्ति है कि राज्य सभा में जोर-जबरदस्ती, बिना वोटिंग, शोर के बीच इन्हें पारित कर दिया गया।

दूसरी आपत्ति राज्यों को है: कृषि और बाजार संविधान की स्टेट सूची में हैं। इस पर केंद्र द्वारा अध्यादेश और कानून लाने को राज्यों के संवैधानिक हकों पर प्रहार माना जा रहा है। संवैधानिक हक राजस्व के मुद्दे से जुड़ा है। जीएसटी के बाद राज्यों के पास राजस्व के खास स्रोत बचे नहीं है।

जीएसटी के चलते राज्यों के पास कृषि मंडी की अहमियत बढ़ी

वैट राज्यों के लिए अहम स्रोत था जो जीएसटी में शामिल होकर केंद्र के हाथों चला गया। तब से राज्यों के पास कृषि मंडी कर की अहमियत बढ़ गई है। अब इसके खत्म हो जाने का खतरा है। यदि प्रक्रियात्मक पहलू को नजरअंदाज कर दें तो क्या इन बिलों से कृषि और उपभोक्ता का फायदा है? आमतौर पर चर्चा में इन दो पक्षों को आमने-सामने रखने से पूरी तस्वीर सामने नहीं आती।

इस कहानी में, और भी खिलाड़ी हैं: मंडी में किसान से खरीद करने वाले एजेंट, और निजी व्यापारी। निजी व्यापारी भी दो तरह के हैं। छोटे और बड़े कॉर्पोरेट।

मुद्दा निजी बनाम सरकारी मंडी में व्यापार का नहीं है

इस विवाद को समझने के लिए एक अहम आंकड़ा- बहुत लोगों का मानना है कि आज उपज की खरीद-बिक्री सरकारी मंडी द्वारा ही की जाती है। लेकिन 2012 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार यह तथ्य ज्यादातर फसलों के लिए मिथक है। उदाहरण के लिए- मक्का, धान/चावल, बाजरा, ज्वार जैसी फसलों के लिए आधा या उससे भी ज्यादा, निजी व्यापारियों द्वारा खरीदा जाता था। यानी आज भी, बड़ी मात्रा में निजी व्यापार है, इसके बावजूद देश में किसानी की समस्या बरकरार है। यानी मुद्दा निजी बनाम सरकारी मंडी में व्यापार का नहीं है।

यदि निजी मंडी पर सरकार कर नहीं लगा सकती तो सरकारी मंडी और निजी मंडी के बीच बराबरी का मुकाबला नहीं रहेगा। बेशक, देश में मंडियों की कमी है। सरकार का कहना है कि सरकारी मंडियों में आढ़तिया व अन्य लोग किसान को सही दाम नहीं देते और निजी मंडी लाने से, जो लेवी या कर से मुक्त होंगे, किसान और उपभोक्ता को सही दाम मिलेंगे।

यह हो सकता है और नहीं भी। आज ये आढ़तिया खलनायक के रूप में उभर रहे हैं। जो किसान मंडी तक फसल बेचने आते हैं, उन्हें मंडी में आढ़तिए से निपटना होता है। और कुछ हद तक जायज़ भी है। किसान और आढ़तिए के सम्बन्ध में शोषण की गुंजाइश है। आढ़तिए किसान को तुरंत भुगतान करते हैं, सामान के भण्डारण की ज़िम्मेदारी लेते हैं, ज़रुरत पड़ने पर उधार भी देते हैं। फिर इन सेवाओं की कीमत किसान से वसूलते हैं।

हम कैसे मान लें कि जो निजी व्यापारी आएंगे वो आढ़तियों की तरह व्यवहार नहीं करेंगे। किसानों से कम-से-कम दामों में खरीदना और उपभोक्ता से ज्यादा से ज्यादा वसूलना? निजी व्यापारी क्यों समाज सेवा करेंगे जब आढ़तियों ने ऐसा नहीं किया? और यदि निजी व्यापारी बड़ी कंपनी के रूप में छोटे किसान तक पहुंचेगी तो क्या वह छोटे किसान, जो आढ़तिए से अपने हित में मोल-भाव नहीं कर सके, क्या वह बड़ी कंपनी से कर लेंगे?

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर अधिनियमों में सरकार की चुप्पी को लेकर चिंताएं हैं। कुछ का कहना है कि वह रहे न रहे, किसानों को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वैसे भी इन्हे कुछ ही फसलों के लिए घोषित किया जाता है, और उनमें से भी कुछ के लिए वास्तव में खरीद होती है।

एमएसपी के कम लागू होने से यह निष्कर्ष निकालना कि किसानों का इससे कोई फायदा नहीं....गलत होगा। जहां यह लागू है वहां निजी बाजार में बेचने वाले किसानों का भी फायदा होता है क्योंकि निजी व्यापारी को अब कम से कम एमएसपी देनी पड़ती है।

कृषि क्षेत्र में आज स्थिति ठीक नहीं है और मुद्दे गंभीर हैं। कृषि क्षेत्र से करोड़ों लोग जीवनयापन करते हैं। इस पर खुले मन से विचार के बजाय सड़कों पर विरोध के चलते, सरकार अंग्रेज़ी अखबारों विज्ञापन दे रही है जहां 200-400 शब्दों में इन पेचीदा मुद्दों को समेटा जा रहा है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)



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रीतिका खेड़ा, अर्थशास्त्री, दिल्ली आईआईटी में पढ़ाती हैं


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