Corona News, Corona Latest News, Corona Update, Latest News Updates, Breaking News, Hindi News Corona, National News, International News, Coronavirus India, COVID-19 tracker, Today's Headlines, World News, Aajtak ki News, Hindi news (हिंदी समाचार) website, watch and read live tv coverages, Latest Khabar, Breaking news in Hindi of India, World, business,पढ़ें आज तक के ताजा समाचार देश और दुनिया से, जाने व्यापार, बॉलीवुड, खेल और राजनीति के ख़बरें
हाथरस में दलित युवती के साथ गैंगरेप और मौत की घटना के बाद उत्तर प्रदेश में जातीय दंगे भड़काने की साजिश का खुलासा हुआ है। इंटेलीजेंस से मिले इनपुट के आधार पर पुलिस का दावा है कि घटना के बाद रातों-रात एक वेबसाइट 'जस्टिस फॉर हाथरस' बनाई गई। इसके जरिए मुख्यमंत्री योगी के गलत बयान प्रसारित किए गए, ताकि माहौल बिगड़े। रविवार रात पुलिस ने वेबसाइट और इससे जुड़ी लोकेशन पर छापेमारी की। लखनऊ के हजरतगंज कोतवाली में केस भी दर्ज कराया गया। इसमें प्रदेश में जातीय और सांप्रदायिक उन्माद फैलाने, अफवाहों और फर्जी सूचनाओं के जरिए अशांति फैलाने करने की साजिश रचने जैसे आरोप लगाए गए हैं।
पीएफआई पर दंगा भड़काने का आरोप
वेबसाइट पर स्क्रीनशॉट में ब्रेकिंग न्यूज लिखकर मुख्यमंत्री की फोटो के साथ बाकायदा उनका फर्जी बयान जारी किया गया। ये स्क्रीनशॉट वॉट्सऐप समेत अन्य सोशल मीडिया के अकाउंट पर शनिवार को तेजी से वायरल किए गए। एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार ने कहा कि पॉपुलर फ्रंट फॉर इंडिया (पीएफआई) समेत कुछ अन्य संगठन प्रदेश में माहौल बिगाड़ने की लगातार साजिश कर रहे हैं। इस मामले में उनकी भूमिका की गहनता से जांच की जा रही है।
मुख्यमंत्री ने कहा- जिन्हें विकास अच्छा नहीं लग रहा, वे दंगा कराना चाहते हैं
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जिसे विकास अच्छा नहीं लग रहा, वे देश और प्रदेश में जातीय, सांप्रदायिक दंगा भड़काना चाहते हैं, इसकी आड़ में विकास रुकेगा। दंगे की आड़ में लोगों को राजनीतिक रोटियां सेंकने का मौका मिलेगा, इसलिए नए-नए षड्यंत्र करते रहते हैं।
चौकी प्रभारी भूपेंद्र सिंह ने दर्ज कराया केस
लखनऊ के डीसीपी सोमेन वर्मा ने बताया कि चौकी प्रभारी (नरही) भूपेंद्र सिंह की शिकायत पर हजरतगंज कोतवाली में एफआईआर दर्ज की गई है। आरोपियों की तलाश जारी है। साइबर सेल की टीम को भी जांच में लगाया गया है। जिस चैनल का स्क्रीनशॉट वेबसाइट पर लगाया गया, उससे भी जांच की गई। न्यूज चैनल ने इसका खंडन किया है। मुन्ना यादव नाम के बने अकाउंट से फेसबुक पर सीएम का एक फर्जी बयान पोस्ट किया गया था। इसमें सीएम की फोटो भी लगाई गई थी।
वेबसाइट बनाई गई, बाद में बंद कर दिया
पुलिस का कहना है कि साजिश में पीएफआई समेत कुछ और संगठनों की भूमिका की भी पड़ताल की जा रही है। ऐसी ही फर्जी पोस्ट वायरल कर पीड़ित की जीभ काटने, अंग भंग करने और सामूहिक दुष्कर्म से जुड़ी तमाम अफवाहें उड़ाकर प्रदेश में नफरत फैलाने की कोशिश की गई। ऐसी अफवाहें फैलाने के लिए कई वैरिफाइड सोशल मीडिया अकाउंट का भी इस्तेमाल किया गया। जांच एजेंसियां वैरिफाइड अकाउंट का भी ब्योरा तैयार कर रही हैं।
इंस्पेक्टर (हजरतगंज) अंजनी कुमार पांडेय ने बताया कि मुन्ना यादव के खिलाफ अफवाह फैलाने, धोखाधड़ी, कूट रचना, सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन अधिनियम, कॉपीराइट अधिनियम, सीएम की तस्वीर का गलत प्रयोग करने के साथ-साथ आइटी एक्ट और कॉपीराइट एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया है।
यूपी सरकार ने पीएफआई पर बैन के लिए केंद्र को लिखा था पत्र
पीएफआई संगठन के जरिए पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की आवाज को उठाने का दावा किया जाता है। इसकी स्थापना 2006 में हुई थी। दावा किया जाता है कि वर्तमान में देश के 23 राज्यों तक पीएफआई पहुंच चुका है। पिछले साल नागरिकता संशोधन कानून बनने के बाद पीएफआई पर लखनऊ समेत कई शहरों में दंगा भड़काने का आरोप लगा था। तब यूपी सरकार ने इस पर बैन लगाने के लिए केंद्र सरकार को पत्र भी लिखा था।
अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत मामले में एम्स की फॉरेंसिक रिपोर्ट सामने आने के बाद शिवसेना मुखर हो गई है। सोमवार को पार्टी के मुखपत्र सामना ने संपादकीय में एक्टर की मौत पर सवाल उठाने वालों पर निशाना साधा। एम्स ने अपनी रिपोर्ट में इसे आत्महत्या बताया है। संपादकीय में शिवसेना ने सुशांत के लिए लिखा- 'सीबीआई जांच में पता चला कि सुशांत एक चरित्रहीन और चंचल कलाकार था।'
शिवसेना ने मामले में राजनीतिकरण का आरोप लगाया। लिखा- बिहार चुनाव में प्रचार के लिए कोई मुद्दा नहीं है। इसलिए नीतीश कुमार और वहां के नेताओं ने इस मुद्दे को उठाया। इसके लिए राज्य के पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर को वर्दी में नचाया और आखिरकार यह महाशय नीतीश कुमार की पार्टी में शामिल हो गए, जिससे उनकी खाकी वर्दी का वस्त्र हरण हो गया। मुंबई पुलिस सुशांत की जांच नहीं कर सकती इसलिए सीबीआई को बुलाओ, ऐसा चिल्लाने वाले एक सीधा-सा सवाल नहीं पूछ पाए कि 40-50 दिन से सीबीआई क्या कर रही है? सुशांत केस को भुनाकर महाविकास आघाड़ी की सरकार और मुंबई पुलिस का ‘मीडिया ट्रायल’ किया गया।
शिवसेना ने पूछा- क्या अब एम्स की रिपोर्ट को भी नकारेंगे?
सामना में एम्स की रिपोर्ट पर लिखा गया- ‘ठाकरी’ भाषा में कहें तो सुशांत आत्महत्या केस के बाद कई गुप्तेश्वरों को महाराष्ट्र द्वेष का गुप्तरोग हो गया था, लेकिन 100 दिन खुजाने के बाद भी हाथ क्या लगा? ‘एम्स’ सच्चाई बाहर लाया है। अभिनेता सुशांत ने फांसी लगाकर आत्महत्या ही की है। उसका खून नहीं हुआ है। सबूतों के साथ ऐसा सच ‘एम्स’ के डॉक्टर सुधीर गुप्ता सामने लाए हैं। डॉक्टर गुप्ता शिवसेना के स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख नहीं हैं। उनका मुंबई से संबंध भी नहीं है। डॉ. गुप्ता ‘एम्स’ के फॉरेंसिक विभाग के प्रमुख हैं। इसी ‘एम्स’ में गृह मंत्री अमित शाह उपचार के लिए भर्ती हुए और ठीक होकर घर लौटे। जिस ‘एम्स’ पर देश के गृह मंत्री को विश्वास है, उस ‘एम्स’ ने सुशांत मामले में जो रिपोर्ट दी है, उसे अंधभक्त नकारेंगे क्या?
कुत्तों की तरह भौंकने वाले चैनलों को महाराष्ट्र से माफी मांगनी चाहिए
शिवसेना ने लिखा- ‘सुशांत की दुर्भाग्यपूर्ण मौत को 110 दिन हो गए। इस दौरान मुंबई पुलिस की खूब बदनामी की गई। मुंबई पुलिस की जांच पर जिन्होंने सवाल उठाए, उन राजनेताओं को और कुत्तों की तरह भौंकने वाले चैनलों को महाराष्ट्र से माफी मांगनी चाहिए। इन सभी ने जान-बूझकर महाराष्ट्र की प्रतिष्ठा पर कलंक लगाने का प्रयास किया है। यह एक षड्यंत्र ही था। महाराष्ट्र सरकार को चाहिए कि वो उन पर मानहानि का दावा करे।’
असफलताओं के बाद ड्रग्स के रास्ते पर चला गया सुशांत
शिवसेना ने सुशांत पर भी निशाना साधा। लिखा, ‘किसी युवक की इस तरह से मौत होना बिल्कुल अच्छा नहीं है। सुशांत विफलता और निराशा से ग्रस्त था। जीवन में असफलता से वह खुद को संभाल नहीं पाया। इसी कश्मकश में उसने मादक पदार्थों का सेवन करना शुरू कर दिया और एक दिन फांसी लगाकर सुसाइड कर लिया। मुंबई पुलिस मामले में बड़ी बारीकी से जांच कर रही थी। मुंबई पुलिस दुनिया की सर्वोत्तम पुलिस टीम है। लेकिन, मुंबई पुलिस कुछ छिपा रही है, किसी को बचाने का प्रयास कर रही है, ऐसा धुआं उड़ाया गया। उस दौरान सिर्फ बिहार ही नहीं, बल्कि देशभर के कई गुप्तेश्वरों का गुप्तरोग बढ़ गया।’
कंगना पर निशाना- किस बिल में छिपी है?
सामना ने कंगना को लेकर तंज कसा। लिखा- सुशांत की मौत को जिन्होंने भुनाया, मुंबई को पाकिस्तान और बाबर की उपमा दी, वह अभिनेत्री अब किस बिल में छिपी है? हाथरस में एक युवती से बलात्कार करके उसे मार डाला गया। वहां की पुलिस ने उस युवती के शरीर का अपमान करके अंधेरी रात में ही लाश को जला डाला। इस पर उस अभिनेत्री ने आंखों में ग्लिसरीन डालकर भी दो आंसू नहीं बहाए।
सामना में लिखा- सुशांत के पटना निवासी परिवार का उपयोग स्वार्थी और लंपट राजनीति करने के लिए केंद्र सरकार ने इसकी जांच जिस तेज गति से सीबीआई को दी, उसे देखते हुए ‘बुलेट ट्रेन’ की गति भी मंद पड़ गई होगी। मुंबई पुलिस ने इस मामले में जिस नैतिकता और गुप्त तरीके से जांच की, वह केवल इसलिए ताकि मृत्यु के बाद तमाशा न बने। लेकिन सीबीआई ने मुंबई आकर जब जांच शुरू की, तब पहले 24 घंटे में ही सुशांत का ‘गांजा’ और ‘चरस’ केस सामने आ गया। सीबीआई जांच में पता चला कि सुशांत एक चरित्रहीन और चंचल कलाकार था। बिहार की पुलिस को हस्तक्षेप करने दिया गया होता तो शायद सुशांत और उसके परिवार की रोज बेइज्जती होती।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) दिल्ली ने JEE एडवांस 2020 का रिजल्ट जारी कर दिया है। 1.6 लाख से ज्यादा कैंडिडेट्स ने इस परीक्षा में शामिल होने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था। आवेदन करने वालों में 96% परीक्षा में शामिल हुए थे।
कैंडिडेट्स JEE एडवांस की ऑफिशियल वेबसाइट पर लॉग इन कर अपना स्कोर कार्ड चेक कर सकते हैं।
इन 5 स्टेप्स से चेक करें रिजल्ट
सबसे पहले ऑफिशियल वेबसाइट jeeadv.ac.in पर लॉग इन करें।
होमपेज पर, "JEE एडवांस्ड 2020 रिजल्ट" पर क्लिक करें।
अब मांगी गई सभी जानकारी दर्ज करें।
JEE एडवांस्ड का रिजल्ट स्क्रीन पर डिस्प्ले हो जाएगा।
रिजल्ट डाउनलोड करें और भविष्य के लिए प्रिंट आउट लेना न भूलें।
JEE एडवांस का रिजल्ट घोषित होने के बाद से ही देश भर के 23 IITs में एडमिशन की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। JEE एडवांस के रिजल्ट के बाद IITs कटऑफ जारी करेंगे। 6 अक्टूबर से कैंडिडेट्स अपने कटऑफ स्कोर के अनुसार IITs में एडमिशन के लिए काउंसलिंग में हिस्सा ले सकते हैं। काउंसलिंग पोर्टल पर पहुंचने के लिए यहां क्लिक करें।
from Dainik Bhaskar /career/news/iit-delhi-released-the-result-the-process-of-admission-in-23-iits-will-start-from-october-6-127782392.html
https://ift.tt/34q1kU3
सोमवार को कारोबार के पहले दिन शेयर बाजार में शानदार खरीदारी है। बीएसई 425.72 अंक ऊपर 39,122.77 पर और निफ्टी 118.10 अंक ऊपर 11,535.05 के स्तर पर कारोबार कर रहा है। बाजार में आईटी और बैंकिंग शेयरों में शानदार तेजी है। इंडसइंड बैंक के शेयर में 5% से ज्यादा की बढ़त है।
स्टॉक्स अपडेट
टाटा समूह की कंपनियों में भी शानदार तेजी है। टाटा स्टील का शेयर 5% की बढ़त के साथ कारोबार कर रहा है। टीसीएस के शेयर में भी 3% से ज्यादा की बढ़त है। निफ्टी में सिप्ला और गेल के शेयरों में 1-1 फीसदी की गिरावट है। सुबह बीएसई 259.73 अंक ऊपर 38,956.78 पर और निफ्टी 70.85 अंक ऊपर 11,487.80 के स्तर पर खुला था।
गुरुवार को शेयर बाजार का हाल
गुरुवार को फाइनेंशियल, ऑटो और बैंकिंग शेयरों में शानदार तेजी देखने को मिली थी। इंडसइंड बैंक का शेयर 12.44% ऊपर बंद हुआ था। अंत में बीएसई सेंसेक्स 629.12 अंक ऊपर 38,697.05 पर और निफ्टी 169.40 अंक ऊपर 11,416.95 के स्तर पर बंद हुआ था। 2 अक्टूबर यानी शुक्रवार को गांधी जयंती के कारण घरेलू शेयर बाजार बंद था।
बीते हफ्ते मार्केट कैप
बीते सप्ताह घरेलू शेयर बाजारों में तेजी का माहौल रहा थी, जिसके कारण बीएसई की टॉप-10 मोस्ट वैल्यूएबल कंपनियों में से 8 कंपनियों के मार्केट कैप में 1.45 लाख करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हुई थी। इसमें टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस) और एचडीएफसी बैंक के मार्केट कैप में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई थी। इस लिस्ट में टॉप पर रिलायंस इंडस्ट्रीज है, जिसका मार्केट कैप 15.18 लाख करोड़ रुपए है। वहीं, टीसीएस का मार्केट कैप बीते हफ्ते 37.69 हजार करोड़ रुपए बढ़कर 9.83 लाख करोड़ हो गया। बीएसई में 1308.39 अंक यानी 3.49% की तेजी दर्ज की गई। बीएसई में लिस्टेड कंपनियों का कुल मार्केट 156 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच गया।
दुनियाभर के बाजारों में रही गिरावट
शुक्रवार को ग्लोबल मार्केट में गिरावट देखने को मिली। अमेरिकी बाजार डाउ जोंस 0.48% गिरावट के साथ 134.09 अंक नीचे 27,682.80 पर बंद हुआ था। वहीं, नैस्डैक भी 2.83% नीचे 11,255.70 के स्तर पर बंद हुआ था। दूसरी तरफ, एसएंडपी 500 इंडेक्स 0.96% फिसलकर 3,348.44 के स्तर पर बंद हुआ था।
यूरोपियन शेयर मार्केट में शुक्रवार को मिलाजुला असर देखने को मिला। ब्रिटेन के FTSE और फ्रांस के CAC इंडेक्स में हल्की बढ़त रही, जबकि जर्मनी और रूस के शेयर मार्केट गिरावट के साथ बंद हुए थे। एशियाई बाजारों में आज जापान का निक्केई इंडेक्स 1.22% ऊपर कारोबार कर रहा है।
09:30 AM निफ्टी आईटी इंडेक्स में 397 अंकों की तेजी है। टीसीएस का शेयर 3.39% ऊपर कारोबार कर रहा है।
भारत में कोरोना की टेस्टिंग का आंकड़ा आठ करोड़ के करीब है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) का कहना है कि हर राज्य में रोजाना 10 लाख की आबादी पर 140 से ज्यादा टेस्ट किए जा रहे हैं। ये डब्ल्यूएचओ की तय मिनिमम लिमिट से करीब छह गुना है। आईसीएमआर ने कहा कि कई राज्यों में राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा जांच की जा रही हैं।
देश में रविवार को कोरोना संक्रमण के 74 हजार 770 केस आए और 902 मरीजों की मौत हो गई। राहत की बात रही कि 76 हजार 713 मरीज ठीक हो गए। मौत का आंकड़ा भी बीते 35 दिन में सबसे कम रहा। इससे पहले 31 अगस्त को 816 मरीजों की मौत हुई थी। अब तक 66.22 लाख केस आ चुके हैं। 55.83 लाख संक्रमित ठीक हो चुके हैं, जबकि 1.02 लाख मरीजों की मौत हो चुकी है।
जुलाई 2021 तक देश के 25 करोड़ लोगों तक वैक्सीन पहुंचेगी: डॉ. हर्षवर्धन
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने रविवार को कहा कि केंद्र सरकार देश के हर एक नागरिक तक वैक्सीन पहुंचाने की तैयारियां कर रही है। इस पर एक हाई लेवल कमेटी काम कर रही है। उन्होंने कहा, ''सरकार का लक्ष्य है जुलाई 2021 तक 20-25 करोड़ भारतीयों तक कोविड-19 वैक्सीन पहुंचाई जा सके। हमारा फोकस है कि हम तब तक वैक्सीन की 40 से 50 करोड़ डोज हासिल कर सकें। इसकी प्लानिंग पर काम चल रहा है।''
पांच राज्यों का हाल
1. मध्यप्रदेश
रविवार को राज्य में संक्रमण के 1,720 नए मामले सामने आए। 2,120 लोगों को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। 35 मरीजों की मौत हो गई। राज्य में अब तक 1 लाख 35 हजार 638 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 1 लाख 13 हजार 832 लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 19 हजार 372 मरीजों का इलाज चल रहा है। संक्रमण के चलते अब तक 2,434 लोग जान गंवा चुके हैं।
2. राजस्थान
रविवार को राज्य में संक्रमण के 2,184 नए मामले सामने आए, 2,090 लोग ठीक हुए और 15 संक्रमितों की मौत हो गई। अब तक 1 लाख 44 हजार 30 लोग संक्रमित हो चुके हैं। 1 लाख 21 हजार 331 मरीज ठीक हो चुके हैं, जबकि 21 हजार 154 मरीजों का अभी इलाज चल रहा है। संक्रमण के चलते 1,545 लोगों की मौत हो चुकी है।
3. बिहार
राज्य में रविवार को कोरोना के 1,261 मामले सामने आए, 1,314 लोग ठीक हो गए और 3 मरीजों की मौत हो गई। राज्य में अब तक 1 लाख 87 हजार 951 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। 1 लाख 75 हजार 109 लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 11 हजार 926 मरीजों का अभी इलाज चल रहा है।
4. महाराष्ट्र
राज्य में कोरोना मरीजों की संख्या 14 लाख 43 हजार 409 हो गई है। इनमें 11 लाख 49 हजार 603 लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 2 लाख 55 हजार 281 मरीजों का अभी इलाज चल रहा है। संक्रमण की चपेट में आने से 38 हजार 84 मरीजों की मौत हो चुकी है। रविवार को राज्य में 12,548 नए केस बढ़े, जबकि 15,048 लोग ठीक हो गए। 326 मरीजों की मौत हो गई।
5. उत्तरप्रदेश
रविवार को यूपी में 3,840 लोग संक्रमित मिले और 5,226 लोगों को ठीक होने के बाद डिस्चार्ज कर दिया गया। 52 मरीजों ने दम तोड़ दिया। 4 लाख 14 हजार 466 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 3 लाख 62 हजार 52 लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 46 हजार 385 मरीजों का अभी इलाज चल रहा है। कोरोना से अब तक 6,029 लोगों की मौत हो चुकी है।
क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि मोदी सरकार कोरोना काल में ऑनलाइन एजुकेशन के लिए स्टूडेंट्स को रोजाना 10 जीबी मुफ्त इंटरनेट उपलब्ध करा रही है। वायरल मैसेज के साथ एक लिंक है, स्टूडेंट्स से कहा जा रहा है कि लिंक पर क्लिक करने के बाद ही उन्हें मुफ्त डेटा मिलेगा।
मैसेज है : Due to Corona Virus Schools and Colleges have been closed and because of this, the Education of Students has been affected, So Government is providing Free Internet (10GB Per Day) to all the Students.
So that Students can complete their Education and also give Exams with the help of Internet and Online Classes.
You can fill the form to get your Free Internet Pack (10GB Per Day) from this link.
👉 https://bit.ly/Register-For-Free-Internet-10GB
🙏🙏 Request: 🙏 For the convenience of people, share this message as much as possible so that they can get the benefit of this facility.
और सच क्या है ?
वायरल मैसेज में लिखा है कि : कोरोनावायरस के चलते स्कूल-कॉलेज बंद हैं। जबकि गृह मंत्रालय ने अनलॉक-5 की गाइडलाइन में 15 अक्टूबर से स्कूल खोलने की अनुमति दे दी है। यूजीसी ने भी 1 नवंबर से खोलने की अनुमति दे दी है। इससे स्पष्ट होता है कि मैसेज लॉकडाउन के समय का (पुराना) है।
इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली जिससे पुष्टि होती हो कि सरकार स्टूडेंट्स को मुफ्त इंटरनेट उपलब्ध करा रही है।
मैसेज के साथ वायरल हो रही लिंक पर क्लिक करने से जो वेबपेज खुलता है। उसके यूआरएल से ही स्पष्ट हो रहा है कि ये कोई सरकारी वेबसाइट नहीं है। सरकारी वेबसाइट के यूआरएल पर आखिर में gov.in होता है। जबकि इसमें ऐसा नहीं है।
एमएचआरडी और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ऑफिशियल वेबसाइट पर भी हमें मुफ्त इंटरनेट डेटा उपलब्ध कराए जाने से जुड़ा कोई अपडेट नहीं मिला। केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का ट्विटर हैंडल चेक करने पर ऐसी कोई घोषणा हमें नहीं मिली।
6 महीने पहले भी इंटरनेट पर फ्री इंटरनेट उपलब्ध कराने का दावा करता हुआ मैसेज वायरल हुआ था। केंद्र सरकार के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल पीआईबी फैक्ट चेक से इसे फेक बताया गया था।
दावा: एक व्हाट्सऐप मैसेज का दावा है कि कोरोना महामारी के कारण 17 मई 2020 तक लॉकडाउन की वजह से मोबाइल कंपनियों नें सभी मोबाइल यूजर्स को फ्री इन्टरनेट देने का ऐलान किया है|#PIBFactcheck:यह दावा बिलकुल झूठा है और दिया गया लिंक फर्जी है| दूरसंचार विभाग ने ऐसा कोई ऐलान नहीं किया है| pic.twitter.com/gVEiIIqCgx
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प संक्रमित होने के बावजूद कोरोनावायरस को गंभीरता से नहीं ले रहे। अपना इलाज जारी होने के बावजूद वह रविवार दोपहर वॉल्टर हीड अस्पताल के बाहर नजर आए। काली रंग की एसयूवी में ट्रम्प मास्क लगाकर पिछली सीट पर बैठे थे। उन्होंने अस्पताल के बाहर मौजूद अपने समर्थकों का हाथ हिलाकर अभिवादन किया। यह सबकुछ बस एक मिनट में हो गया। ऐसा करने से पहले उन्होंने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट कर इसकी जानकारी भी दी थी।
मास्क को लेकर गैर जिम्मेदारी दिखाने के कारण पहले से ही ट्रम्प से विपक्षी पार्टियां और हेल्थ एक्सपर्ट नाराज हैं। इलाज के बीच अस्पताल से बाहर निकलने पर उनकी एक बार फिर आलोचना हो रही है। विपक्षी डेमोक्रेट्स का कहना है कि ट्रम्प ने यह दिखाने की कोशिश की है कि वे संक्रमित होने के बावजूद बिल्कुल ठीक हैं।
हेल्थ एक्सपर्ट ने ट्रम्प की इस हरकत पर नाराजगी जाहिर की
वॉल्टर हीड अस्पताल के फिजिशियन डॉ जेम्स फिलिप्स ने ट्वीट किया- ट्रम्प के साथ गाड़ी में मौजूद सभी लोगों को अब 14 दिनों के लिए क्वारैंटाइन होगा। वे बीमार पड़ सकते हैं, उनकी मौत तक हो सकती है। अपनी राजनीतिक नौटंकी के लिए ट्रम्प ने दूसरे लोगों की जान को खतरा में डाला है। यह पूरी तरह से पागलपन है। राष्ट्रपति की एसयूवी न सिर्फ बुलेटप्रूफ है, बल्कि यह केमिकल हमले से बचने के लिए सील भी है। ऐसे में इसके अंदर कोरोना संक्रमण फैलने का ज्यादा खतरा है।
ट्रम्प के साथ एसयूवी में हमेशा मौजूद होते हैं सिक्रेट एजेंट्स
अमेरिकी राष्ट्रपति की गाड़ी में उनकी सुरक्षा के लिए हमेशा सिक्रेट सर्विस के एजेंट्स मौजूद होते हैं। ट्रम्प ने गाड़ी का इस्तेमाल कर और सेल्फ क्वारैंटाइन के नियमों को तोड़कर उनकी जान को खतरा में डाला है। विपक्षी पार्टी डेमोक्रेट्स का कहना है कि यह सब कुछ नहीं बल्कि चुनाव को देखते हुए ट्रम्प का एक फोटो ऑपरेशन है। इस बीच, ट्रम्प की पत्नी और फर्स्ट लेडी मेलानिया ट्रम्प ने अपने सभी दौरे कैंसल कर दिए हैं। उन्होंने कहा है कि संक्रमण दूसरों में न फैले इसलिए उन्होंने यह फैसला किया है।
‘राष्ट्रपति हैं, इसलिए हॉस्पिटल भेजा’
ट्रम्प के अस्पताल से निकलने से पहले उनके पर्सनल फिजिशियन ने कहा था- प्रेसिडेंट बिल्कुल ठीक हैं। इलाज का असर हो रहा है। इससे हमारी टीम खुश है। अगले 24 घंटे में उनका बुखार उतर जाएगा। ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट भी नॉर्मल हो जाएगा। कोनले से जब पूछा गया कि सब ठीक था तो ट्रम्प को हॉस्पिटल लाने की जरूरत क्यों पड़ी? इस पर जवाब मिला- क्योंकि, वे अमेरिका के राष्ट्रपति हैं।
ट्रम्प शुक्रवार को संक्रमित मिले थे
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और पत्नी मेलानिया ट्रम्प कोरोना शुक्रवार को पॉजिटिव पाए गए थे। इसके बाद दोनों को क्वारैंटाइन कर दिया गया था। इससे एक दिन पहने ट्रम्प की सीनियर एडवाइजर होप हिक्स संक्रमित पाई गईं थीं। पिछले दिनों उन्होंने राष्ट्रपति के साथ कई यात्राएं की थीं। इसके बाद राष्ट्रपति और उनकी पत्नी का भी कोरोना टेस्ट किया गया था। शुक्रवार को इसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी।
बिहार का गया शहर। शाम के आसपास का वक्त। जीबी रोड से सटे पूरब की दिशा में मीर अबू सलेह रोड का चौराहा। मौसम में उमस भरी गर्मी है। चौराहे के आसपास निजी चिकित्सकों के क्लीनिक होने की वजह से मरीजों और तीमारदारों की लगातार चहलकदमी। सड़क पर वाहनों की आवाजाही इस कोरोना काल में भी कम नहीं है।
चौराहे के निकट ही एक छोटा सा साइबर कैफे है। उसी के बाहर कुछ लोग बड़े आराम से बैठ आपस में थोड़ी ऊंची आवाज में चुनावी बहस में जुटे हैं। इनकी बहस सुन कर मैं भी फोटो कॉपी कराने के बहाने साइबर कैफे के निकट खड़ा हो जाता हूं। बहस में पहले से शामिल एक युवक हाथ में खैनी रगड़ते हुए नीतीश कुमार की प्रशंसा के पुल बांध रहा है- 'भाईजी मानो या न मानो पर ये बात तो सच है कि नीतीश कुमार की सरकार सभे वर्ग के लिए काम कर रही है। यही वजह है कि नीतीश जइसन चेहरा कोई दूसर पार्टी में नहीं है। उनके जैसा सीएम कंडिडेट कोई नहीं है।'
उसकी बात काटते हुए एक दूसरा व्यक्ति पास की दुकान से आकर बोलता है, दूसर पार्टी के तो बात ही न कीजिए। भाजपा, राजद, लोजपा सब के हालत खराब है। भाजपा के पास प्रदेश में कोई दमदार फीगर ही नहीं है। इ झूठे नीतीश से सटल चल रही है। आऊ दूसर राजनीतिक पार्टी तो अपने खानदान के झमेला में उलझल है। बाकी दूसर में कोई दमे नहीं है। भाजपा को तो नीतीश कुमार का साथ छोड़ ही देना चाहिए। अकेले चुनाव लड़ेंगे, तभिये भाजपा को फायदा होगा।
इस बीच सबसे पहले बोलने वाला युवक मोबाइल को पैंट की जेब के हवाले करते हुए बोल पड़ा- ‘भाई इसको मजबूरी कहो या कुछ और नीतीश जइसा चेहरा अभी कोई दूसरा नहीं है। अइसे में हम पब्लिक क्या करेंगे। कोई दूसरा बढ़िया नेता हो तभिए न कुछ सोचें भी।’
बहस में पहले से शामिल युवक कहता है कि ‘भाजपा और जदयू गया शहर के लिए अब तक का किया है, कुछ सोचे हैं। बीते 30 साल से भाजपा का एक ही कंडिडेट शहर से जीतता चला आ रहा है। लेकिन विकास के नाम पर शहर को अब तक क्या मिला। बताइये। 15 बनाम 15 की बात तो खूब होती है, लेकिन पहले की छोड़िये, यही बताइये कि बीते 15 साल में शहर में ऐसा क्या नया हुआ, जिसका उदाहरण दिया जा सके, बोलिये। जे हाल 15 साल पहिले था वही आजो है। है कि न सुदर्शन चाचा।'
अब सुदर्शन चचा की बारी थी। काफी देर से सबकी सुन रहे सुदर्शन चचा बोल पड़े- ‘हां हो, इ बात तो सहिये तुम कह रहे हो। सरकारी स्तर पर अब तक शहर में विकास के नाम पर कुछो नया नहीं हुआ है। विकास तो खाली नालंदा शहर और उसी के आसपास सिमट के रह गया है भाई।’ तभी दूसरा युवक कहता है- ‘भाजपा के जे कंडिडेट है, ओकर जाति के लोग शहर में सबसे अधिक है। इसके बाद ही दूसर जाति (कायस्थ) का नंबर आता है। इ मालूम है कि नहीं आप लोगों को। ऐसे में जीतेगा कौन, तोहर जाति के कंडिडेट! इतना सुनते ही बहस में शामिल लोग कुछ पल के लिए चुप हो जाते हैं!
लेकिन अगले ही पल ये सारी बातें सुन रहे एक अधेड़ बोल उठते हैं- ‘अइसा नहीं है। किसी न किसी पार्टी को तो अच्छा छवि वाला नेता लाना ही होगा। तभिए जदयू-भाजपा के इ गठजोड़ का खेला बिगड़ेगा।’ वहीं खड़ा एक अन्य व्यक्ति बोल उठता है- ‘देखिये न, भाजपा में सुशील मोदी बड़का नेता बनते हैं, लेकिन आजतक पब्लिक के चहेता नहीं बन सके, काहे! खाली अपना उल्लू सीधा करने में लगल रहते हैं। उनकरा से तो अप्पन वार्ड के साफ-सफाई का काम भी न हो सका। मोहल्ला डूब गया (उनका इशारा पटना की बाढ़ की तरफ था)।
ऊ का विकास के काम करेंगे भाई। केकर नाम तू सब ले रहे हो।
सबकी बात पर विराम लगाते हुए एक बुजुर्ग ने बातें खत्म करते हुए हस्तक्षेप किया है- ‘देखो भाई लोग, जिसको जीतना है वही जीतेगा। हमलोग बस अपना काम करें, चुनाव के दिन जाके जरूर से वोट गिराएं’। इतना सुनते ही दुकान बंद कर बहस का आनंद ले रहे साइबर कैफे के मालिक (शायद शिवजलम सिंह) कहते हैं कि चल भाई लोग अब घर चले के चाही।
भारत में कोरोना की टेस्टिंग का आंकड़ा आठ करोड़ के करीब है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) का कहना है कि हर राज्य में रोजाना 10 लाख की आबादी पर 140 से ज्यादा टेस्ट किए जा रहे हैं। ये डब्ल्यूएचओ की तय मिनिमम लिमिट से करीब छह गुना है। आईसीएमआर ने कहा कि कई राज्यों में राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा जांच की जा रही हैं।
देश में रविवार को कोरोना संक्रमण के 74 हजार 770 केस आए और 902 मरीजों की मौत हो गई। राहत की बात रही कि 76 हजार 713 मरीज ठीक हो गए। मौत का आंकड़ा भी बीते 35 दिन में सबसे कम रहा। इससे पहले 31 अगस्त को 816 मरीजों की मौत हुई थी। अब तक 66.22 लाख केस आ चुके हैं। 55.83 लाख संक्रमित ठीक हो चुके हैं, जबकि 1.02 लाख मरीजों की मौत हो चुकी है।
जुलाई 2021 तक देश के 25 करोड़ लोगों तक वैक्सीन पहुंचेगी: डॉ. हर्षवर्धन
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने रविवार को कहा कि केंद्र सरकार देश के हर एक नागरिक तक वैक्सीन पहुंचाने की तैयारियां कर रही है। इस पर एक हाई लेवल कमेटी काम कर रही है। उन्होंने कहा, ''सरकार का लक्ष्य है जुलाई 2021 तक 20-25 करोड़ भारतीयों तक कोविड-19 वैक्सीन पहुंचाई जा सके। हमारा फोकस है कि हम तब तक वैक्सीन की 40 से 50 करोड़ डोज हासिल कर सकें। इसकी प्लानिंग पर काम चल रहा है।''
पांच राज्यों का हाल
1. मध्यप्रदेश
रविवार को राज्य में संक्रमण के 1,720 नए मामले सामने आए। 2,120 लोगों को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। 35 मरीजों की मौत हो गई। राज्य में अब तक 1 लाख 35 हजार 638 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 1 लाख 13 हजार 832 लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 19 हजार 372 मरीजों का इलाज चल रहा है। संक्रमण के चलते अब तक 2,434 लोग जान गंवा चुके हैं।
2. राजस्थान
रविवार को राज्य में संक्रमण के 2,184 नए मामले सामने आए, 2,090 लोग ठीक हुए और 15 संक्रमितों की मौत हो गई। अब तक 1 लाख 44 हजार 30 लोग संक्रमित हो चुके हैं। 1 लाख 21 हजार 331 मरीज ठीक हो चुके हैं, जबकि 21 हजार 154 मरीजों का अभी इलाज चल रहा है। संक्रमण के चलते 1,545 लोगों की मौत हो चुकी है।
3. बिहार
राज्य में रविवार को कोरोना के 1,261 मामले सामने आए, 1,314 लोग ठीक हो गए और 3 मरीजों की मौत हो गई। राज्य में अब तक 1 लाख 87 हजार 951 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। 1 लाख 75 हजार 109 लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 11 हजार 926 मरीजों का अभी इलाज चल रहा है।
4. महाराष्ट्र
राज्य में कोरोना मरीजों की संख्या 14 लाख 43 हजार 409 हो गई है। इनमें 11 लाख 49 हजार 603 लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 2 लाख 55 हजार 281 मरीजों का अभी इलाज चल रहा है। संक्रमण की चपेट में आने से 38 हजार 84 मरीजों की मौत हो चुकी है। रविवार को राज्य में 12,548 नए केस बढ़े, जबकि 15,048 लोग ठीक हो गए। 326 मरीजों की मौत हो गई।
5. उत्तरप्रदेश
रविवार को यूपी में 3,840 लोग संक्रमित मिले और 5,226 लोगों को ठीक होने के बाद डिस्चार्ज कर दिया गया। 52 मरीजों ने दम तोड़ दिया। 4 लाख 14 हजार 466 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 3 लाख 62 हजार 52 लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 46 हजार 385 मरीजों का अभी इलाज चल रहा है। कोरोना से अब तक 6,029 लोगों की मौत हो चुकी है।
पहाड़ शहरों के नहीं हो सकते तो क्या हुआ, शहर वाले तो पहाड़ों के हो सकते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी इन दिनों लिखने में मशगूल हैं ऐसे प्रोफेशनल्स जो लॉकडाउन में अपने फ्लैटों में सिमटकर रह गए थे। इनमें आईटी पेशेवर, लेखक, कंटेंट क्रिएटर, ग्राफिक डिजाइनर, फोटोग्राफर, व्लॉगर, ब्लॉगर, रिमोट वर्कर, फ्रीलांसर शामिल हैं।
ये वो लोग हैं जो शहरों में कंक्रीट के मायाजाल से मुक्त होने की अपनी बेताबी के संग पिछले छह सात महीनों से जीते-जीते आजिज आ चुके थे। और अब अनलॉक होते ही अपने वर्क स्टेशनों को कहीं दूर किसी हिल स्टेशन पर, किसी पहाड़ की ओट में, वादियों में, नदी या समुद्रतट पर ले जाने को आतुर हैं।
लॉकडाउन से उपजी इस छटपटाहट में बिजनेस के मौके सूंघने वाले भी कम नहीं हैं। देश जब घरबंदी से बाहर निकलने की उल्टी गिनती गिन रहा था तो ट्रैवल की दुनिया 'वर्केशन' की ज़मीन तैयार कर रही थी। देखते ही देखते हिमाचल और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में कितने ही होम स्टे, कॉटेज-होटल मालिकों ने मिलकर इस सपने को साकार कर दिखाया।
''मैंने अपने परिवार संग इस साल गर्मियों में हिल स्टेशन पर बिताने का मन बनाया था। उत्तराखंड के हिल स्टेशन रानीखेत से सटे गांव मजखाली में एक सर्विस अपार्टमेंट करीब ₹30 हजार में बुक करने ही वाले थे कि लॉकडाउन लग गया।
अब अनलॉक के बाद हमने सोचा कि महीने भर के लिए न सही, कुछ दिनों के लिए चला जाए तो पता चला कि वहां कितने ही विला और कॉटेज सितंबर में ही ‘सोल्ड आउट’ की तख्ती टांग चुके हैं। जिस अपार्टमेंट में हम जाने वाले थे, उसे लॉन्ग टर्म होमस्टे का रूप देकर मालिक ने किराया बढ़ाकर करीब ₹90 हजार कर दिया है।''
यह कहना है नोएडा की एक प्राइवेट फर्म में फाइनेंस मैनेजर आशीष जोशी का। उत्तराखंड सरकार के साथ जहां लगभग 1200 होमस्टे रजिस्टर्ड हैं (2019 तक) और इनमें कुल-मिलाकर साढ़े पांच हजार बेडों की सुविधा उपलब्ध है। अनलॉक के बाद की फिज़ा के हिसाब से खुद को तैयार करने के लिए ये अपनी कमर कसने में लग चुके हैं।
उत्तराखंड और हिमाचल में करीब 110 होमस्टे होमस्टेज़ ऑफ इंडिया से जुड़े हैं और इसकी को-फाउंडर शैलज़ा सूद दासगुप्ता ने पिछले दो महीनों के दौरान लगभग दो दर्जन लॉन्ग स्टे बुकिंग की हैं। शैलज़ा ने बताया, ''आमतौर पर यंग कपल्स या यार-दोस्त मिलकर लंबे समय की बुकिंग कर रहे हैं। गुड़गांववासी जितेंद्र हाल में चंबा में एक महीना बिताकर लौटा है और उसे ₹45 हजार में महीने भर का वर्केशन का यह ऑप्शन बहुत पसंद आया है।''
लॉकडाउन ने ज़मानेभर के दफ्तरों और उनके खूंटे से बंधे कर्मचारियों को यह समझाने में ज्यादा वक़्त नहीं लगाया कि भरोसेमंद बिजली सप्लाई और हाइ स्पीड इंटरनेट का सहारा हो तो कहीं से भी काम किया जा सकता है। इस बीच, होमस्टे मालिकों ने अपनी रणनीति बदली और कभी ट्रैवलर्स को लुभाने के लिए जो ‘डिस्कनेक्ट’ और ‘डिजिटल डिटॉक्स’ का मंत्र सौंपा करते थे वहीं बदले हालातों में, कामकाजी पेशेवरों की जरूरतों को देखते हुए इंटरनेट सुविधा से उन्हें लुभा रहे हैं। यहां तक कि जिन जगहों पर हाइ स्पीड वाइ-फाइ मुमकिन नहीं है वहां वैकेशनर्स के लिए डॉन्गल्स मुहैया कराए जा रहे हैं।
कहां जा रहे हैं टूरिस्ट लंबे स्टे के लिए
देवभूमि उत्तराखंड में जिलिंग, पंगोट, मुक्तेश्वर, मजखाली, नैनीताल के आसपास, भीमताल, बिनसर, नौकुचियाताल, सातताल, शीतलाखेत टूरिस्टों को लुभा रहे हैं। इनका बड़े शहरों से सात से आठ घंटे की ड्राइविंग दूरी पर होना एक बड़ी वजह हो सकती है। शहरों से दूर होने के बावजूद इन जगहों पर आधुनिक जीवनशैली के मुताबिक सुविधाओं की कमी नहीं है। आधुनिक कैफे, लाइब्रेरी, हाइकिंग और ट्रैकिंग ट्रेल्स आसपास हों तो सोने पे सुहागा।
उधर, हिमाचल ने हाल में जबसे टूरिस्टों पर से सारी पाबंदियां हटायी हैं तो चंबा, पालमपुर, धर्मसाला, कसोल, शिमला, मनाली, तीर्थन जैसे ठिकानों पर चहल-पहल बढ़ी है। इको-टूरिज़्म की पैरवी करने वाली ट्रैवल कंपनी ‘इकोप्लोर’ की संस्थापक प्रेरणा प्रसाद भी मानती हैं कि ट्रैवल की दुनिया के फिर खुलने के बाद से ही लंबे समय के लिए ‘अवे फ्रॉम होम’ वर्क स्टेशनों के तौर पर मुफीद होमस्टे तेजी से लोकप्रिय हुए हैं।
लेकिन, इतने लंबे समय तक घर जैसी सुख-सुविधाएं किराए पर लेने का खर्च कम नहीं होता। अक्सर बजट एकोमोडेशन में यह खर्च बीस-तीस हज़ार रु होता है तो कोई भी डिसेंट स्टे महीने भर के लिए 80-90 हज़ार रुपए से कम में नहीं मिलता। इस खर्च में रहना, खाना-पीना और घर जैसे रहन-सहन की सुविधाएं शामिल होती हैं।''
वर्केशन हो या वैलनेस की ख्वाहिश, घर के काम की माथापच्ची से रिहाई और बीते आठ महीनों से वैकेशन से महरूम जिंदगी को वापस ढर्रे पर लाने की चाहत ने कितने ही पेशेवरों को पहाड़ों की गोद में अस्थायी ‘घर’ बसा लेने को प्रेरित किया है।
जनवरी 1977 की बात है। देश में आपातकाल लागू था और विपक्ष के तमाम बड़े नेता जेलों में कैद कर दिए गए थे। लाल कृष्ण आडवाणी भी इनमें से एक थे, जो उस दौरान बैंगलोर सेंट्रल जेल में क़ैद थे। इस जेल प्रवास के दौरान आडवाणी नियमित रूप से डायरी लिखा करते थे। यही डायरी आगे चलकर उनकी चर्चित किताब ‘ए प्रिजनर्स स्क्रैप बुक’ के रूप में प्रकाशित हुई।
इस किताब में 18 जनवरी 1977 की घटना का जिक्र करते हुए आडवाणी लिखते हैं, ‘करीब साढ़े पांच बजे जब में अपने कमरे में लौटा तो मैंने देखा कि मेज़ पर चिट्ठियों का एक ढेर लगा हुआ है। वो छह सौ से भी ज़्यादा चिट्ठियां थी। लगभग सभी विदेश से आई थी और एमनेस्टी इंटरनेशनल के सदस्यों और समर्थकों द्वारा भेजी गई थी। इनमें से अधिकतर क्रिसमस और नए साल की बधाई के ग्रीटिंग थे। लेकिन, सभी में एक-दो पंक्तियां ऐसी लिखी थी, जिससे हम सभी को दमन के खिलाफ लड़ने की हिम्मत, आत्मविश्वास और उम्मीद मिली।’
लाल कृष्ण आडवाणी उस वक्त भारतीय जनसंघ के सबसे बड़े नेता हुआ करते थे। वही भारतीय जनसंघ जिससे आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी बनी और जिसकी आज देश में बेहद मज़बूत सरकार है। लेकिन, एमनेस्टी इंटरनेशनल की जो गतिविधियां उस दौर में जनसंघ के नेताओं को हिम्मत और उम्मीद दिया करती थी, वही गतिविधियां अब भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को अखरने लगी हैं।
#NEWS: Amnesty International India Halts Its Work On Upholding Human Rights In India Due To Reprisal From Government Of Indiahttps://t.co/W7IbP4CKDq
बीते कई दशकों से देश में मानवाधिकार के मुद्दों पर काम करने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने हाल ही में यहां अपना काम बंद करने की घोषणा की है। संस्था ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार झूठे मामले बनाकर उनका काम लगातार मुश्किल कर रही है। बीती 10 सितंबर को एमनेस्टी इंटरनेशनल के सभी बैंक खातों को फ्रीज कर दिया गया था, जिसके बाद संस्था ने अपना काम बंद करने की घोषणा की।
केंद्र सरकार का कहना है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल ने विदेशी पैसा लेते हुए नियमों का उल्लंघन किया है। सरकार का दावा है कि संस्था ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम और विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन किया है जिसके चलते उस पर कार्रवाई हुई है।
दूसरी तरफ एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक अविनाश कुमार कहते हैं कि संस्था के खातों पर रोक लगाया जाना कोई आकस्मिक घटना नहीं है। बीते दो साल से केंद्र सरकार लगातार अलग-अलग माध्यमों से संस्था का उत्पीड़न कर रही थी।
वे यह भी मानते हैं कि हाल के दौर में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जिस बेबाकी से दिल्ली दंगों में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए हैं और जिस तरह से कश्मीर में मानवाधिकार हनन के मामलों पर बोला है, उससे केंद्र सरकार को सबसे ज़्यादा परेशानी हुई है।
वैसे ये पहला मौका नहीं है जब एमनेस्टी इंटरनेशनल के खिलाफ इस तरह की कोई कार्रवाई हुई है। यूपीए सरकार के कार्यकाल में भी इस संस्था पर कई तरह के सवाल उठ चुके हैं और नियमों का उल्लंघन करते हुए विदेशी पैसा लेने और विदेशी एजेंडे पर काम करने के आरोप लग चुके हैं।
साल 2009 में एमनेस्टी इंटरनेशनल को तब देश में अपना काम बंद करना पड़ा था, जब संस्था का एफसीआरए लाइसेन्स रद्द कर दिया गया था। इसके बाद 2012 में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत में अपना काम दोबारा शुरू किया था।
एमनेस्टी इंटरनेशनल के साथ काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार महताब आलम बताते हैं, ‘ये बात सही है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल के पास एफसीआरए लाइसेंस नहीं है। किसी भी एनजीओ को विदेशी पैसा लेने के लिए यह लाइसेंस जरूरी होता है। लेकिन, एमनेस्टी इंटरनेशनल साल 2012 से ही भारतीय दानदाताओं के पैसे से चल रहा है और यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है। संस्था की वेबसाइट पर ही पूरा ब्यौरा मौजूद है कि उसकी कितनी शाखाएं यहां चल रही हैं और इनका पैसा कहां से आता है।’
महताब आगे कहते हैं, ‘वित्तीय मामलों में किसी भी अंतरराष्ट्रीय संस्था को फंसाना सरकारों के लिए हमेशा से बेहद आसान तरीका रहा है। एमनेस्टी इंटरनेशनल पहली ऐसी संस्था नहीं है। इससे पहले भी पर्यावरण पर काम करने वाली या मानवाधिकार मुद्दों पर काम करने वाली संस्थाओं ओ इस तरह के आरोप लगाकर बंद करने के प्रयास सरकारें करती रही हैं।'
मानवाधिकार के मुद्दों पर देशी-विदेशी कई संस्थाएं काम कर रही हैं। ऐसे में सिर्फ एमनेस्टी इंटरनेशनल को ही सरकार क्यों निशाना बना रही है? इस सवाल के जवाब में महताब आलम कहते हैं, 'इसके दो प्रमुख कारण समझ में आते हैं। पहला तो जिस तरह से इस संस्था ने दिल्ली दंगों और कश्मीर के मामले में काम किया है वह सरकार पर कई गम्भीर सवाल खड़े करता है। दूसरा, एमनेस्टी इंटरनेशनल एक प्रतिष्ठित संस्था है, जिसकी रिपोर्ट्स को दुनिया भर में बेहद गम्भीरता से लिया जाता है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल अपनी जो रिपोर्ट जारी करती है, उसमें भले ही नया कुछ न हो लेकिन वो तथ्यात्मक रूप से बेहद मजबूत होती हैं। उनकी रिपोर्ट में उठाए गए सवाल अकाट्य होते हैं और इसलिए सरकार को परेशान करते हैं। बीते दो सालों में जिस तरह से एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट्स कश्मीर के सवालों को उठाया है उससे दुनिया भर में भारत की वो छवि बनी है जो केंद्र सरकार को पसंद नहीं।’
एमनेस्टी इंटरनेशनल पर कभी विकास विरोधी होने, कभी एंटी-नेशनल होने तो कभी भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने के आरोप लगते रहे हैं। इस संस्था ने जब कुडनकुलम में न्यूक्लियर प्लांट का विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं के हक में आवाज़ उठाई तो इस पर विदेशी एजेंडा चलाने के आरोप लगे, संस्था ने जब बड़े पूंजीपतियों द्वारा आदिवासियों की जमीन अधिग्रहित करने का मामला उठाया तो इसे विकास-विरोधी कहा गया और संस्था ने जब मृत्यदंड का विरोध करते हुए अजमल कसाब की फांसी पर रोक की मांग की तो इसे एंटी-नेशनल कहा गया।
लेकिन, तमाम विरोध के बावजूद भी संस्था को ऐसे कई लोगों का समर्थन मिलता रहा जो मानवाधिकार कि रक्षा को सबसे ऊपर मानते आए हैं। समय-समय पर राजनीतिक कारणों से विपक्ष भी हमेशा एमनेस्टी इंटरनेशनल के साथ ही खड़ा दिखा है।
भाजपा जब विपक्ष में थी तो एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा तत्कालीन सरकार की ग़लत नीतियों को उजागर करने पर वह अधिकतर संस्था के साथ दिखा करती थी। ठीक वैसे ही जैसे आज कांग्रेस के कई नेता एमनेस्टी इंटरनेशनल के पक्ष में दिखाई देते हैं जबकि उन्होंने अपनी सरकार रहते हुए कई बार एमनेस्टी इंटरनेशनल पर यही तमाम आरोप लगाए थे।
आपातकाल के दौरान एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जयप्रकाश नारायण, मोररजी देसाई और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे तमाम नेताओं की रिहाई के लिए अभियान चलाए। ये अभियान तत्कालीन इंदिरा सरकार को पसंद नहीं थे लेकिन जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो प्रधानमंत्री नियुक्त हुए मोररजी देसाई ने एमनेस्टी इंटरनेशनल के प्रयासों की खुलकर प्रशंसा की थी।
ठीक ऐसे ही अभियान अब एमनेस्टी इंटरनेशनल भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ़्तार किए गए कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए भी चला रही थी। ये अभियान आज के विपक्ष को तो सही लगते हैं लेकिन सत्ताधारी पार्टी और केंद्र सरकार को ऐसे अभियान देश के आंतरिक मामलों में दख़ल नज़र आते हैं।
इन तमाम पहलुओं के बावजूद भी एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसी संस्थाओं का होना और बने रहना बेहद अहम है। यही कारण है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्रीय गृह सचिव से जवाब तलब किया है।
आयोग ने कहा है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल एक प्रतिष्ठित संस्था है जो दुनिया भर में मानवाधिकार के मामलों पर काम कर रही है। संस्था ने जो आरोप केंद्र सरकार पर लगाए हैं, उन पर केंद्रीय गृह मंत्रालय से सफाई मांगते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने छह हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है।