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जम्मू कश्मीर में मंगलवार सुबह भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। जानकारी के मुताबिक, भूकंप का केंद्रताजिकिस्तान की राजधानी दुशान्बे बताया जा रहा है। रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता6.8 मापी गई।इसका केंद्रदुशान्बे से 341 किमी पूर्व-दक्षिणपूर्व में बताया जा रहा है।
इससे पहले जनवरी में ताजिकिस्तान में कारकेन्जा के पास 5.5 तीव्रता का भूकंप आया था।
सोमवार को गुजरात में भी झटके महसूस किए गए थे
सोमवार को गुजरात में राजकोट से 83 किलोमीटर दूर सोमवार को 12.57 बजेभूकंप के झटके महसूस किए गए। रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 4.4 थी। इसके कुछ घंटे बाद भुज में भी आफ्टर शॉक आए। इनकी तीव्रता 4.1 मापी गई। रविवार को भी गुजरात में झटके महसूस किए गए थे।रविवार से लेकर सोमवार तक गुजरात के अलग-अलग अलग इलाकों में 14 बार आफ्टर शॉक महसूस किए गए थे।
रविवार को आए भूकंप सबसे ज्यादा असर भीकच्छ में ही देखा गया था। 19 साल पहले यानी 26 जनवरी 2001 को भी कच्छ के भुज में 7.7 तीव्रता का भूकंप आया था। इसमें 13 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।
अब तक का सबसे बड़ारिकॉर्ड किया गया भूकंप चीली में आया
अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड किया गया भूकंप 22 मई 1960 को चिली में आया था। यह 9.5 मेग्नीट्यूड तीव्रता का भूकंप था। चिली के बाद दूसरा सबसे बड़ा भूकंप 28 मार्च 1964 में यूनाइटेड स्टेट्स में रिकॉर्ड किया गया था। ये 9.2 मेग्नीट्यूड का था, इससे प्रिंस विलियम साउंड, अलास्का का क्षेत्र काफी प्रभावित हुआ था।
6 की तीव्रता वाला भूकंप भयानक होता है
भूगर्भ वैज्ञानिकों के मुताबिक, भूकंप की असली वजह टेक्टोनिकल प्लेटों में तेज हलचल होती है। इसके अलावा उल्काप्रभाव और ज्वालामुखी विस्फोट, माइन टेस्टिंग और न्यूक्लियर टेस्टिंग की वजह से भी भूकंप आते हैं। डॉ. अरुण ने बताया कि रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता मापी जाती है। इस स्केल पर 2.0 या 3.0 की तीव्रता का भूकंप हल्का होता है, जबकि 6 की तीव्रता का मतलब शक्तिशाली भूकंप होता है।
जम्मू-कश्मीर में शोपियां जिले के तुर्कवंगम इलाके में सुरक्षा बलों ने 3 आतंकियों को मार गिराया है। सर्च ऑपरेशन अभी जारी है। सिक्योरिटी फोर्सेज ने जम्मू-कश्मीर में पिछले महीने से ऑपरेशन छेड़ रखा है। इस महीने 28 आतंकी मारे जा चुके हैं।
— Kashmir Zone Police (@KashmirPolice) June 16, 2020
16 दिन में 9 एनकाउंटर 1 जून: नौशेरा सेक्टर में घुसपैठ की कोशिश करते हुए 3 पाकिस्तानी आतंकियों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया। 2 जून: पुलवामा के त्राल इलाके में 2 आतंकी मारे गए। 3 जून: पुलवामा के ही कंगन इलाके में सुरक्षा बलों ने 3 आतंकियों को ढेर कर दिया। 5 जून: राजौरी जिले के कालाकोट में एक आतंकवादी मारा गया। 7 जून: शोपियां के रेबन गांव में 5 आतंकी मारे गए। 8 जून: शोपियां के पिंजोरा इलाके में 4 आतंकी ढेर। 10 जून: शोपियां के सुगू इलाके में 5 आतंकी ढेर 13 जून: कुलगाम के निपोरा इलाके में 2 आतंकी मारे गए। 16 जून: शोपियां के तुर्कवंगम एरिया में 3 आतंकी ढेर।
फोटो गुजरात के सूरत की है। अहमदाबाद के बाद सर्वाधिक कोरोना पीड़ित शहर सूरत में लोग महामारी को भगाने के लिए मन्नत रखने लगे हैं। यहां के एक व्यापारी ने तापी नदी को रोज 500 किलो बर्फ से ठंडा करने की मन्नत रखी है। बर्फ डालते हुए व्यापारी केएक कर्मचारी ने कहा कि हमारे सेठ की ओर से एक हफ्ते में 3500 किलो बर्फ अर्पित की जा चुकी है।
देश की राजधानी में पानी की किल्लत
फोटो देश की राजधानीदिल्ली की है। राजधानी में एक तरफ कोरोना संक्रमण तेजी से पैर पसार रहा है तोवहीं दूसरी ओर भीषण गर्मी सेकई इलाकों में लोगों को पीने के पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। यहांइलाकों में टैंकर से पानी की सप्लाई की जा रही है। टैंकर आते ही मुहल्लों में लोगोंं की लाइन लग जाती है।
एक भी बूंद नगिरे इसलिए खुद से ज्यादा बर्तनों को संभाला
फोटो राजस्थान केझुंझुनूं की है।गर्मियों की शुरुआत के साथ ही क्षेत्र मेंपानी का संकट गहरानेलगा है।सोमवार को रीको एरिया में ऐसी ही तस्वीर नजर आई। पानी का इंतजाम हुआ तो एक परिवार ने अपने घर केसारे बर्तन भर लिए और एक ट्रैक्टर वाले की मदद से घर पहुंचे। इस दौरान परिवारजनों ने ध्यान रखा की पानी की एक बूंद भी बर्बाद न हो।
ट्रक नेदो ऑटो को रौंदा, 9 की माैत, 17 घायल
फोटो बिहार के गया जिले केविशुनपुर के समीप नेशनल हाईवे-2 पर हुए भीषण सड़क हादसे की है।यहां एक तेज रफ्तार ट्रक ने दो ऑटो को रौंद दिया।हादसे में नौ लोगों की मौतजबकि17 लाेग घायलहुए। लेकिन चमत्कार ही कह सकते हैं कि शवों के ढेर में एक बच्चा पूरी तरह सुरक्षित रहा। दोनों ऑटो में सवारलोग तिलक समारोह से वापस घर लौट रहे थे।
तीरंदाज दीपिका की शादी 30 जून को
फोटो रांची के रातू की है। यहां अंतरराष्ट्रीय धनुर्धरदीपिका कुमारी की शादी की रस्में शुरू हो गई हैं। सोमवार को कोलकाता में अंतरराष्ट्रीय धनुर्धर अतनु दास के आवास में तिलक की रस्म हुई। तिलक की रस्म भाई ने अदा कीं। दीपिका की शादी 30 जून को कोलकाता के अतनु दास के साथ होनी है। शादी रातू स्थित दीपिका के आवास में होना तय हुआ है।
कार में बिना मास्क केबैठे थे 12 बराती
फोटो मध्यप्रदेश के इंदौर की है। यहां डकाच्या से बरात लेकर बड़ा गणपति आ रहे दूल्हे धर्मेंद्र निराले को दुल्हन पक्ष के पहले ही निगम वालों को ‘2100 रुपएकोरोना नेग’ देना पड़ा। निगम के स्वास्थ्य अधिकारी विवेक गंगराड़े ने बताया, एक टवेरा में बिना मास्क 12 बराती थे। निगम की टीम को देख दूल्हे ने मुंह पर रुमाल बांधा। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करने पर 1100 और मास्क न लगाने पर 1000 का चालान बनाया।
काेराेना काल: शादी में 50 लोग हुए शामिल
फोटो पंजाब के फिरोजपुर की है।कोरोना नेआम जन-जीवन के साथ हीशादी-विवाह पर भी असरडाला है। छावनी के कुम्हार मंडी निवासी विनोद कुमार ने बताया कि उनके बेटे शिवम की शादी ठाणे की रहने वाली अंकिता के साथ 12 मई काे हाेनी थी।लाॅकडाउनके चलते नहीं हाे पाई जबकि यह शादी एक वर्ष पहले ही तय की गई थी। इसके बाद परिजनाें ने 15 जून का दिन तय किया और प्रशासन से अनुमति ली। प्रशासन ने शादी में 50 लोगों के शामिल हाेने की अनुमति दी।
सोशल डिस्टेंसिंग की बानगी पेश करती शादी
फोटो राजस्थान के भीलवाड़ा की है।कोरोना संक्रमण से बचने के लिए शादी में सोशल डिस्टेंसिंग केपालनकायहां अनूठाउदाहरण देखने को मिला। शहर केबापूनगर में हुई इस शादी मेंदूल्हा राजेश औरदुल्हन खुशबू समेत परिजन मास्क लगाए रहे। फेरों के लिए वेदी टेबल पर रखी। क्योंकि नीचे बैठने पर सोशल डिस्टेंसिंग रख पाना मुश्किल हो रहा था।
हॉस्पिटैलिटी सेक्टर लौट रहा पटरी पर
फोटो पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के एक होटल की है।लगभग दो महीनेबंद रहने के बाद फिर से देशभर के होटल खुलने लगेहैं। इससे हॉस्पिटैलिटी सेक्टर के फिर से पटरी पर लौटने की उम्मीद है। ग्राहकों को लुभाने के लिए होटल संचालक होटलों को डिसइन्फैक्ट कर रहे हैं।
औसत से कम बारिश पर भी ओवरफ्लो हो जाएंगें बांध
फोटो राजस्थान के कोटा की है। पिछले सालऔसत से अधिक बारिश और लॉकडाउन के दौरान पानी की खपत कम होनेके चलते पहली बारिश में ही हाड़ौती के चारों प्रमुख बांध लबालब हो गए हैं। असर ये हुआ है कि इस बार पहली बारिश में ही बांध पूरी तरह भर गए हैं। अगर इस बार कम बारिश भी होती है तो भीयह बांध ओवरफ्लो हो जाएंगे।
लोडेश्वर बांध से 5 किमीदूर अंधेरी माता मंदिर दिखने लगा
फोटो राजस्थान केसागवाड़ा क्षेत्र केलोडेश्वर बांध की है।लाॅकडाउन के बाद प्रदूषण घटा तो यहां से विराट के मशहूर दक्षिण शैली से निर्माणाधीन वागड़ के एकमात्र अंधेरी माता मंदिर की दाे मंजिलें साफ दिखने लगी। मंदिर में भगवान शिव और शक्ति का आदमकद संयुक्त विग्रह है। मंदिर की ऊंचाई 101 फीट है। इस तरह के मंदिर दक्षिण भारत में ही हाेते है। बांध से इसकी दूरी करीब 5 किलोमीटर है।
भारी बारिश से रावल-शेल नदी उफान पर
फोटो गुजरात के गिर-सोमनाथ जिले की है। सोमवार का यहां हुई भारी बारिश के बाद रावल-शेल नदी उफान पर आ गई।गुजरात के दो जिलों में डेढ़ घंटे में 5 इंच पानी बरसा।नदी का पानी कई बस्तियों में घुस गया। इस कारण कुछ गांव से संपर्क भीटूट गया। दीया-अमन के कुनबे का हो रहा विस्तार
फोटो पंजाब के जीरकपुर की है। यहां के छतबीड़ जू में जन्मी व्हाइट टाइग्रेस दीया ने अमन के साथ मिलकर अपना कुनबा बढ़ाया है। इस जोड़ी ने 7 साल बाद जू को तीन खूबसूरत टाइगर दिए हैं। 17 नवंबर 2019 को चार शावकों का जन्म हुआ था, जिनमें से एक नहीं बचा। बाकी तीन शावक- दो फीमेल, एक मेल अब 7 महीने के हो चले हैं।
from Dainik Bhaskar /local/delhi-ncr/news/children-chilling-the-river-by-pouring-snow-to-exorcise-corona-in-surat-child-left-alive-amidst-heaps-of-dead-bodies-in-gaya-127414995.html
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जम्मू-कश्मीर में शोपियां जिले के तुर्कवंगम इलाके में सुरक्षा बलों ने 3 आतंकियों को मार गिराया है। सर्च ऑपरेशन अभी जारी है। सिक्योरिटी फोर्सेज ने जम्मू-कश्मीर में पिछले महीने से ऑपरेशन छेड़ रखा है। इस महीने 28 आतंकी मारे जा चुके हैं।
— Kashmir Zone Police (@KashmirPolice) June 16, 2020
16 दिन में 9 एनकाउंटर 1 जून: नौशेरा सेक्टर में घुसपैठ की कोशिश करते हुए 3 पाकिस्तानी आतंकियों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया। 2 जून: पुलवामा के त्राल इलाके में 2 आतंकी मारे गए। 3 जून: पुलवामा के ही कंगन इलाके में सुरक्षा बलों ने 3 आतंकियों को ढेर कर दिया। 5 जून: राजौरी जिले के कालाकोट में एक आतंकवादी मारा गया। 7 जून: शोपियां के रेबन गांव में 5 आतंकी मारे गए। 8 जून: शोपियां के पिंजोरा इलाके में 4 आतंकी ढेर। 10 जून: शोपियां के सुगू इलाके में 5 आतंकी ढेर 13 जून: कुलगाम के निपोरा इलाके में 2 आतंकी मारे गए। 16 जून: शोपियां के तुर्कवंगम एरिया में 3 आतंकी ढेर।
from Dainik Bhaskar /national/news/jammu-and-kashmir-three-terrorists-eliminated-in-an-encounter-at-turkwangam-of-shopian-127414899.html
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बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत अब इस दुनिया में नहीं हैं। रविवार को उन्होंने मुंबई स्थित अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी आत्महत्या की पुष्टि हो चुकी है। लेकिन, उन्होंने खुदकुशीक्यों की? इसका कारण अभी पता नहीं चल सका है।
सुशांत की आत्महत्या की खबर आने के बाद सोशल मीडिया पर मेंटल हेल्थ को लेकर चर्चा भी होने लगी हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि, सुशांत पिछले 6 महीने से डिप्रेशन में थे और अपना इलाज करवा रहे थे।
भारत में 19 करोड़ लोग मानसिक बीमारी से जूझ रहे
हमेशा से ही मेंटल हेल्थ बहुत गंभीर विषय रहा है, लेकिन इस पर कभी उतना खास ध्यान नहीं दिया गया। पिछले साल दिसंबर में साइंस जर्नल द लैंसेट की एक रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 2017 तक 19.73 करोड़ लोग (कुल आबादी का 15%) किसी न किसी मानसिक बीमारी से जूझ रहे थे। यानी, हर 7 में से 1 भारतीय बीमार है। इनमें से भी 4.57 करोड़ डिप्रेशन और 4.49 करोड़ एंजाइटी का शिकार हैं।
मानसिक बीमारी से तंग आकर हर साल 8 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं
डब्ल्यूएचओ के आंकड़े बताते हैं कि हर साल 8 लाख लोग मानसिक बीमारी से तंग आकर आत्महत्या कर लेते हैं। इसके अलावा हजारों लोग ऐसे भी होते हैं, जो आत्महत्या की कोशिश करते हैं।
आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह डिप्रेशन
आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह डिप्रेशन और एंजाइटी है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनियाभर में 26 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। 15 से 29 साल की उम्र के लोगों में आत्महत्या की दूसरी सबसे बड़ी वजह डिप्रेशन ही है।
भारत में इसके आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिकभारत में हर साल एक लाख लोगों में से 16.3 लोग मानसिक बीमारी से लड़ते-लड़ते आत्महत्या कर लेते हैं। इस मामले में भारत, रूस के बाद दूसरे नंबर पर है। रूस में हर 1 लाख लोगों में से 26.5 लोग सुसाइड करते हैं।
वहीं, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2013 से लेकर 2018 के बीच 52 हजार 526 लोगों ने मानसिक बीमारी से तंग आकर आत्महत्या कर ली।
डिप्रेशन की वजह से वर्ल्ड इकोनॉमी को हर साल 75 लाख करोड़ का नुकसान
मानसिक बीमारी का असर न सिर्फ हमारे अपने जीवन पर बल्कि हमारे काम, हमारे दोस्त-रिश्तेदारों से संबंध, हमारे सामाजिक जीवन पर भी पड़ता है। डिप्रेशन और एंजाइटी (चिंता) दो बड़े रोग हैं, जिससे सबसे ज्यादा लोग पीड़ित हैं।
डब्ल्यूएचओ की मानें तो डिप्रेशन और एंजाइटी की वजह से हर साल वर्ल्ड इकोनॉमी को 1 ट्रिलियन डॉलर यानी 75 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होता है। इसके बावजूद, दुनियाभर की सरकारें मेंटल हेल्थ पर अपने हेल्थ बजट का 2% से भी कम खर्च करती है।
हमारे देश में मेंटल हेल्थ को लेकर क्या व्यवस्था? 1) खर्च : 2018-19 के बजट में मेंटल हेल्थ को लेकर 50 करोड़ रुपए रखे थे। 2019-20 में घटकर 40 करोड़ रुपए हो गए। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, 2017 में हर भारतीय की मेंटल हेल्थ पर सालभर में सिर्फ 4 रुपए खर्च होते थे। 2) हेल्थ प्रोफेशनल : नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे 2015-16 के मुताबिक, देश में 9 हजार साइकेट्रिस्ट हैं जबकि, हर साल करीब 700 साइकेट्रिस्ट ग्रेजुएट होते हैं। हमारे देश में हर 1 लाख आबादी पर सिर्फ 0.75 साइकेट्रिस्ट है, जबकि इतनी आबादी पर कम से कम 3 साइकेट्रिस्ट होना चाहिए। इस हिसाब से देश में 36 हजार साइकेट्रिस्ट होना चाहिए। 3) अस्पताल बेड : हमारे देश में न सिर्फ साइकेट्रिस्ट बल्कि बेड की भी कमी है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, 2017 में देश के मेंटल अस्पतालों में हर 1 लाख आबादी पर 1.4 बेड थे, जबकि हर साल 7 मरीज भर्ती होते थे। जबकि, सामान्य अस्पतालों में हर एक लाख आबादी पर 0.6 बेड हैं और इनमें हर साल 4 से ज्यादा मरीज आते हैं।
महंगा इलाज और मजाक उड़ने का डर; नतीजा- लोग इलाज ही नहीं करवाते
हमारे देश में अगर कोई मेंटल हेल्थ से चुपचाप जूझता है, तो उसके दो कारण हैं। पहला महंगा इलाजऔर दूसरा मजाक उड़ना।
एक अनुमान के मुताबिक, अगर आप डिप्रेशन से जूझ रहे हैं, तो साइकेट्रिस्ट के हर सेशन के लिए 1 हजार से 5 हजार रुपए तक चुकाने पड़ते हैं। हर महीने कम से कम ऐसे तीन सेशन होते हैं। सेशन के खर्च के अलावा दवाइयों का खर्च भी बहुत होता है। वहीं, एंजाइटी के लिए भी हर सेशन के लिए 3 हजार रुपए की फीस लगती है।
कॉर्पोरेट में काम करने वाले 42.5% कर्मचारी डिप्रेशन-एंजाइटी से जूझ रहे
2015 में एसोसिएट चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने कॉर्पोरेट कर्मचारियों पर एक सर्वे किया था। इस सर्वे में शामिल 42.5% कर्मचारियों ने डिप्रेशन या एंजाइटी से जूझने की बात मानी थी। इतना ही नहीं, 38.5% कर्मचारी रोज 6 घंटे से भी कम नींद लेते हैं।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, कर्मचारियों में डिप्रेशन और एंजाइटी की वजह से देश की इकोनॉमी को 2012 से लेकर 2030 के बीच 1 ट्रिलियन डॉलर (आज के हिसाब से 75 लाख करोड़ रुपए) का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
पुणे में कोरोना पॉजिटिव मरीजों के अंतिम संस्कार पर विवाद शुरू हो गया है।कोरोना संक्रिमतोंकी मौत होने के बाद उनका परिवार शवछोड़कर भाग रहा है। इस परेशानी से बचने के लिएपुणे नगर निगम ने अलग-अलग धर्म के शवों के अंतिम संस्कार का जिम्मा उनसे संबंधित एनजीओ को सौंप दिया।
हिंदू कोरोना मरीज की मौत के बाद उसके अंतिम संस्कार का जिम्माएसए इंटरप्राइज को दिया है। जबकि मुस्लिम मरीज के शव को दफनाने का कामपॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) कोऔर ईसाई डेड बॉडीजका काम अल्फा के पासहै।लेकिन विपक्ष ने मुस्लिम एनजीओ को राष्ट्रविरोधी बताकर उसका विरोध शुरू कर दिया।
परिवार वाले शव छोड़कर चले जाते हैं
नगर निगम की स्वास्थ्य अधिकारी कल्पना बलिंवत बताती हैं कि शवों के अंतिम संस्कार का काम इन संस्थाओं को देने के पीछे वजह यह थी किकोरोना से मरने वालों की लाशें परिवार वालेछोड़कर भाग जाते थे, फोन स्विच ऑफ कर देते थे।एनओसी देने के लिए भी अस्पताल नहीं आते थे। पूरा विभाग दिन-रात परिवार को मनाने में ही लगा रहता था।
शहर में 25 रेड जोन,हजारों मरीज और दर्जनभर अस्पतालों की व्यवस्था को देखना आसान नहीं था। यही नहीं निजी अस्पताल वाले हॉस्पिटल खोलने के लिए तैयार नहीं थे। उनसे बातचीत करना भी अपने आप में चुनौती था।
एक श्मशान में केयर टेकर कोरोना मरीज के शव को देखकर भाग गया
कल्पना के मुताबिक, हद तो तब हो गई जब एक श्मशान घाट में एक केयरटेकर कोविड पॉजिटिव बॉडी देखकर भाग गया। दरअसल पीपीई किट में लिपटी डेड बॉडी असामान्य दिखाई देती है, जबकि उसे फूलों में लिपटी बॉडी देखने की आदत है।
वो बताती हैं कि एक बार नायडू अस्पताल में एक महिलाकी मौत हुई तो उसके बेटे ने शवलेने के लिए आने से इनकार करदिया। उसे बुलाने के चक्कर में 12 घंटे तक शव पड़ा रहा। इन हालातों से जूझते हुए पुणे निगम कमिश्नर ने घोषणा कर दी कि किसी भी मजहब के कोविड पॉज़िटिव की मौत होगी तो निगम पुलिस की मौजूदगी में उसका अंतिम संस्कार कर देगा। घोषणा के बाद पीएफआई, एसए इंटरप्राइजऔर अल्फा आगे आए कि वे लोग अपने-अपने मजहब के लोगों का अंतिम संस्कार खुद करेंगे।
नगर निगम ने वॉट्सऐप ग्रुप बनाया
इसके बाद निगम ने एक वॉट्सऐपग्रुप बनाया। इसमें सभी कोविड अस्पताल, अंतिमसंस्कार करने वाली तीनों संस्थाएं, एंबुलेंस और निगम अधिकारी को जोड़ा गया। किसी भी कोविड पॉजिटिव की मौत के बाद इस ग्रुप में मैसेज आता है, फौरन तीनों संस्थाएं अपने-अपने मजहब के अनुसार मुस्तैद हो जाती हैं।
हिंदू डेड बॉडीजका जिम्मा संभालने वाले अरुण शिवशंकर बताते हैं कि जैसे हीमैसेज आता है हम लोग एंबुलेंस बुलाते हैं। पुलिस की मौजूदगी में परिवार से एनओसी ली जाती है।यदि परिवार की इच्छा हो तो वह अपने वाहन से श्मशान घाट आ जाते हैं। हालांकि ज्यादातर मामलों में कोई नहीं आता।
बॉडी को सबसे पहले सैनिटाइज करते हैं
अरुण के मुतबाकि, सबसे पहले बॉडी को सैनिटाइजकरके पीपीई किट में पैक किया जाता है। फिर एंबुलेंस को सैनिटाइजकरके बॉडी उसमें रखते हैं। इसके बादसंस्था वाले श्मशान घाट पर बॉडी उतारते हैं और गाइडलाइंस और मज़हब के मुताबिक दाह संस्कार करते हैं।
परमिशन कैंसिल होने पर पीएफआई कोर्ट जाएगी
दो महीने से व्यवस्था ठीक चल रही थीलेकिन कुछ दिन पहले महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एक ट्वीट किया कि सरकार ने मुंबई में मुस्लिम कोविड पॉजिटिव डेड बॉडीजके जनाजे का काम राष्ट्रविरोधी संस्था पीएफआई को दिया है। राज्य में मुद्दा राजनीतिक रंग लेने लगा। आनन-फानन में पुणे निगम ने पीएफआई की परमिशन रद्द कर दी। अब पीएफआई इसे लेकर अदालत जाने की तैयारी कर रहा है।
अरुण बताते हैं कि पुणे में इस काम के लिए 12 लोग रखे गए हैं। उन्होंने बताया किमुझे अभी दो महीने के लड़के को दफनाने जाना है। कोई तो आ सकता था बच्चे के परिवार से, दो महीने के बच्चे को हम अनजान लोगों के हवाले कर दिया। मां-बाप क्वारैंटाइन में होने की बात कहकरआने से इनकार कर रहे हैं। वे अगर आना चाहें तो पुलिस की मदद से आ सकते हैं, या फिर उनकाकोई रिश्तेदार आ सकता था।
पुणे में कोरोना से रोज 10 से 12 मौतें
पुणे में कोरोना से हर दिन 10 से 12 मौतें हो रही हैं। एक दिन25 मौतें हुईं। उस दिन पूरी रात अरुणजांगम अपनी टीम के साथ शवोंका अंतिम संस्कार करते रहे। वेबताते हैं रात भर काम करने के बावजूद अगले दिन के लिए पांच शव बच गए थे।
कोई तैयार नहीं था तब हमने काम शुरू किया: पीएफआई
पीएफआईपुणे के अध्यक्ष राज़ी बताते हैं कि उन्होंने कोविड पॉज़िटिव मरीजों के शवों को दफनाने का काम उस वक्त शुरूकिया जब पूरे पुणे में कोई डेड बॉडी को हाथ लगाने के लिए भी तैयार नहीं था। वेबताते हैं कि एक बॉडी को दफनाने के लिए हम लोग रात में कब्रिस्तान गए तो वहां ताला लगा था।
केयरटेकर के बेटे ने चाबी बहुत दूर से हमारी ओर फेंकी। हमने उससे पास आने के लिए बोलातो कहने लगाहम दूर ही ठीक हैं। राज़ी का कहना है कि नगर निगम के अधिकारियों को उन पर भरोसा है, वे उनके काम से भी खुश हैं।
पीएफआई अब तक 140 शवों को दफना चुकी
पीएफआई अभी तक 140 बॉडीदफना चुकी है। उनका कहना है कि हमें देशद्रोही बोलकर हमारी परमिशन रद्द कर दी गई। डेड बॉडी को अस्पताल से लाना, गड्ढाखोदना, उसमें बॉडी रखना सब पीएफआई के लोग करते थे। इस काम के लिए उन्हेंबाकायदा ट्रेनिंग दी गई थी।
कोरोनावायरस महामारी के बीच तपती सड़क पर कभी नंगे पांव चलते श्रमिक तो कभी बेटे को सूटकेस पर औंधे मुंह लिटाए एक मां की दिल को झकझोरने वालीतस्वीरसामने आई। इनकी मदद के लिए तमाम लोगों ने अपने कदम भी बढ़ाए। उनमें से अंबेडकरनगर के रहने वाले धर्मवीर सिंह बग्गा और गोंडा के हाफिज मलिक भी एक हैं। दोनों अपने स्तर से लोगों की मदद कर रहे हैं। एक रिपोर्ट...
कहानी-01:पति के जुनून में पत्नी ने दिया साथ, बेटे की शादी के लिए बचाए पैसों से गरीबों की मददकी
अंबेडकरनगर जिले में किछौछा शरीफ दरगाह कौमी एकता के लिए मशहूर है। लेकिन इन दिनों यहां रहने वाले धर्मवीर सिंह बग्गा की हर जुबान पर चर्चाहै। बग्गा काफी दिनों से समाजसेवा करते आ रहे हैं। लेकिन, कोरोना काल में धर्मवीर ने खुद की जमा पूंजी से सरकारी गाड़ियों को सैनिटाइज करना शुरू किया।
धर्मवीर का हौसला देख उनकी पत्नी भी उनके मिशन में शामिल हो गईं। उन्होंने बेटे की शादी के लिए बचाए 22 लाख रुपये धर्मवीर बग्गा को दे दिए। बग्गा अभी तक 520 गांव में 1 लाख 10 हजार से ज्यादा हैंड सैनिटाइजर की बोतल बांट चुके हैं। अभी तक इस मिशन में उनके 30 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं।
धर्मवीर बग्गा बताते हैं कि मेरे पास ऊपर वाले का दिया सब कुछ है। हमारा एक पेट्रोल पंप है और भी छोटा मोटा बिजनेस है। इसे अब मेरा बेटा अंकित संभालता है। धर्मवीर की 2 बेटियां भी हैं। वह बताते हैं कि 2003 में समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ रहे विशाल वर्मा का मैं चुनाव प्रभारी था। इस दौरान वोट के लिए गांव-गांव भटकना पड़ता था। एक बार मैं एक गांव के प्रधान के साथ था तो सामने के घर से एक दंपत्ति के लड़ाई झगड़े की आवाजें आ रही थी। जब रहा न गया तो मैं घर में गया और लड़ाई का कारण पूछा तो पता चला कि उनकी बेटी है और उसकी शादी के पैसे नही थे उनके पास।
धर्मवीरअब तक 900 गरीब बेटियों की शादी कर चुके
मैंने उनसे पूछा कितना लगेगा तो उन्होंने बताया कि 3500 में शादी हो जाएगी। तब मैंने सोचा क्या इतनी गरीबी है कि इतने रुपए भी लोग नहीं जुटा पा रहे हैं। मैंने उन्हें 3500 रुपए दिए और घर चला आया। पत्नी हरनीत कौर से बात की फिर हमने गरीब बच्चियों की शादी कराने का निर्णय लिया। अब तक सामूहिक विवाह कार्यक्रम के तहत अपने खर्च पर हमने 900 बेटियों की शादी की है।
धर्मवीर बताते हैं कि 2007 में पैसे का अभाव था, इसलिए सामूहिक विवाह में कुछ अड़चनें आ रही थी तो पत्नी ने मुझसे पूछा क्या है? आज आप मायूस हैं तो मैंने कहा कुछ नहीं। कई बार जोर देने के बाद बताया कि इस बार शादी में पैसे की दिक्कत आ रही है तो पत्नी बोली मैं खाना ला रही हूं। आप खाना खा लीजिए उससे दूर हो जाएगी।
खाने के साथ मेरी पत्नी मेरी बेटियों की 60-60 हजार की दो एफडीआर लेकर आईं और बोली कि इसे तुड़वाकर शादी कराइए।उन्होंने बताया कि मेरे मना करने के बावजूद वह नहीं मानी और बोला कि वह भी तो किसी की बेटी हैं। कभी अपने ऊपर भी परेशानी आ सकती है।
कोरोना संकट में दो लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया
बग्गा ने बताया कि वह लावारिस शवों का अंतिम संस्कार भी करते हैं। कोरोना संकट के बीच भी उन्होंने 2 शवों का अंतिम संस्कार किया है। जबकि उनके परिवार के लोग नदारद रहे। यही नही बग्गा फूड बैंक भी चलाते हैं।
कहानी-02: भाई के कहने पर मुंबई से ट्रेन से भेज रहे हैं प्रवासी मजदूरों को, अब तक 6000 की हुई मदद
देश भर में जब लॉकडाउन हुआ तो किसी ने नही सोचा था कि प्रवासी मजदूरों के इतने बुरे हालात होंगे। ऐसे में संवेदनशील व्यक्ति भी मदद के लिए सामने आए। मुंबई से सबसे ज्यादा चर्चा एक्टर सोनू सूद की रही। वहीं, ऐसे भी कुछ लोग रहे जो बगैर चर्चा ही मजदूरों को उनके घर भेजते रहे। उन्ही लोगों में शामिल हैं, यूपी के गोंडा के रहने वाले हाफिज मलिक।
हाफिज बताते हैं कि मेरे बड़े भाई अब्दुल कलाम मलिक गोंडा के गौरा विधानसभा से चुनाव लड़ चुके हैं। हम लोग वहीं के रहने वाले भी हैं। जब मजदूरों को समस्या आई तो स्थानीय लोगों ने भाई से संपर्क किया। मैं मुंबई में ही अपना बिजनेस करता हूं। भाई ने मुझे कहा कि आसपास रहने वाले मजदूरों का ध्यान रखो। कोई भूखा न रहे।
मैंने मजदूरों को खाना खिलाना, राशन किट, सैनिटाइजर और मास्क बांटना शुरू किया। फिर मैंने फेसबुक पर मैसेज डाला कि जो कोई गोंडा या आसपास के इलाकों में अपने घर जाना चाहता है तो वह मुझसे संपर्क कर सकता है। मैंने अपना नम्बर भी डाला। लोगों ने मुझसे संपर्क किया तो मैंने उनका आधार कार्ड लेकर उनको भेजने की व्यवस्था की।
हफीज के मुताबिक जब ट्रेन चलनी शुरू हुई तो जितने लोगों की व्यवस्था बनती गई उन्हें भेजता गया।23 मई को तकरीबन 800 लोगों को भेजा। इसी तरह 26 मई की ट्रेन से भी बड़ी संख्या में मजदूरों को भेजा। इसके अलावा प्राइवेट बसों से भी लोगों को यूपी पहुंचाया। हालांकि घर भेजने में मैंने किसी से कोई भेदभाव नही किया।
गोंडा, संतकबीरनगर, गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, बहराइच, बलरामपुर, लखनऊ और वाराणसी तक के लोग मेरे द्वारा भेजे गए हैं। हालांकि बीते 6 जून से अब लोगों को भेजना बन्द कर दिया है लेकिन कोई जरूरतमंद आता है तो उसे टिकट खरीदकर जरूरदेता हूं। फिलहाल भूखों को खाना खिलाने के काम चल रहा है।
धारावी देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में बसा एशिया का सबसे बड़ा स्लम है। यह लेदर, गारमेंट्स, प्लास्टिक, ब्रांडेड कपड़ों और एल्यूमिनियम की मैन्यूफैक्चरिंग के लिए मशहूर है। यहां उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमबंगाल और दक्षिण भारत के लगभग सवा आठ लाख प्रवासी रहते हैं।
किसी वक्त धारावी में फैला कोरोना मुंबई के लिए चुनौती बनता जा रहा था, लेकिन बीते एक हफ्ते से यहांकोरोना नियंत्रण में है। धारावी अब धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ना चाहती है लेकिन इसे दौड़ाने का जिम्मा जिन कंधो पर होता है वह मजदूर वर्ग अब यहां नहीं है।
प्रवासी मजदूरों के जाने से कारखाने बंद
कोरोना की वजह से यहां रहने वाले लाखों मजदूर अपने घर लौट चुके हैं। प्रवासी मजदूरों की कमी से यहां के कल-कारखाने सूने हो गए हैं। वे मजदूरों की बाट जोह रहे हैं। वे दुकान खोलना चाहते हैं, अपना कारोबार शुरू करना चाहते हैं लेकिन उनके पास कामगार नहीं हैं।
धारावी 2 लाख लोगों को रोजगार देती है
टाटा इंस्टीटयूट ऑफ सोशल साइंस के डीन मनीष झा बताते हैं कि धारावी लगभग 2 लाख लोगों को रोजगार देती है। यहां करीब 25,000 स्मॉल स्केल यूनिट्स हैं। इनका औसतन 100 करोड़ के आसपास का सालाना टर्नओवर रहता है।
धारावी में एक रेडीमेट गारमेंट के कारखाने की मालकिन रेहाना खान बात करते- करते रोने लगती हैं। कहती हैं- मेरे ‘दो बेटे और दो बहुएं हैं,सब कुछ शानदार चल रहा था। लॉकडाउन में मजदूर गांव चले गए तो कारखाना बंद हो गया। अब हालत यह है कि घर में राशन की भी दिक्कत आने लगी है। इतने सालों में पहली बार ऐसा हुआ कि मेरे दोनों बेटों और बहुओं में मारपीट की नौबत तक आ गई। रेहाना के पास दस कारीगर थे। दो महीने तक उन्हें अपने पास रखा भी लेकिन वे नहीं रुके।
यहां के नगर सेवक बब्बू खान के पास रेडीमेट गारमेंट के दस कारखाने हैं। वे बताते हैं कि मैं यहां माल तैयार करवाकर दादर केहोलसेल मार्केट में बेचता था और विदेशों में भी एक्सपोर्ट करता था। मेरा सालाना टर्नओवर दो करोड़ के आसपास है। लॉकडाउन खुल चुका है,कारखानें दोबारा शुरू करना चाहता हूं लेकिन मेरे पास एक भी मजदूर नहीं है। वे कहते हैं कि यहां से प्रवासी मजदूर जिन हालातों में गए हैं, उन्हें समझ नहीं आता कि किस मुंह से वापस आने के लिए कहूं।
धारावी से दुबई, यूके लेदर का सामान एक्सपोर्ट होता है
बिहार के सीतामढ़ी के रहने वाले अबूला शेख के पास धारावी मेंलेदर के दो कारखानें हैं। इनका सालाना टर्नओवर लगभग तीन करोड़ रुपएहै। लगभग 35 मजदूर इनके यहां काम करते थे। शेख बताते हैं कि मेरे यहां कारखाना खोलने वाला तक कोई नहीं है। हमारे यहां सेदुबई, यूके,अमेरिका और सउदी अरब में लेदर के सामान का एक्सपोर्ट होता था। देश में भी कई कॉरपोरेट कंपनियों को हम सामान सप्लाई करते थे। लेकिन कोरोना के बाद कारखाना खोलना भी चाहे तो हमारे पास कारीगर नहीं है। जब तक वे लौटेंगे तब तक पता नहीं हम बचेंगे या नहीं।
कोरोना के डर से मजदूर नहीं लौट रहे
धारावी गारमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष कलीम अहमद अंसारी लगातार मजदूरों से बात कर रहे हैं। वह बताते हैं कि जो मजदूर गांव लौट कर गए हैं उनके पास अभी रोजगार नहीं है।वे वापस आना चाहते हैं लेकिन कोरोना केडर से नहीं आ रहे हैं। जबकोरोना खत्म होगातब वे वापस आएंगे।
30 साल से दूध का कारोबार कर रहे कैलाश डेयरी के विपिन बताते हैं कि उनके यहां 25 लोग काम करते थे। वे लोग एक साथ रहते थे और कॉमन टॉयलेट यूज़ करते थे, जो खतरनाक साबित हो सकता था। इसलिए उन्होंने मजदूरों को उनके घर जौनपुर भेज दिया। वे कहते हैं कि जबतक मजदूर वापस नहीं आते हैं उनका काम शुरू नहीं हो पाएगा।
धारावी के पास ही माटूंगा रोड पर दक्षिण भारतीय गणेश यादव का अरोरा सिंगल स्क्रीन सिनेमाहॉल है। लॉकडाउन खुलने के बाद भी सिनेमा खोलने का उनका कोई इराद नहीं है। उनका कहना है कि सरकार की नई गाइडलाइनके अनुसार अब सिनेमा में मुनाफा नहीं रह जाएगा।उनके पास सिनेमा हॉल चलाने वाले लोग भी नहीं हैं। दक्षिण भारतीय लोग यहां इडली बनाने का कारोबार करते थे। वे अब अपने गांव चले गए हैं। हालांकि उम्मीद है कि वे लौटकर आएंगे।
गोवंडी अंडरगारमेंट्स मैन्यूफैक्चरिंग के लिए मशहूर
धारावी के पास ही एक और इंडस्ट्रीयल एरिया है गोवंडी। जो माइग्रेंट्स के चले जानेसे सुनसान पड़ा है। गोवंडी अंडरगारमेंट्स मैन्यूफैक्चिरंग के लिए जाना जाता है। यहां मछली का कारोबार करने वाले विक्की सिंह बताते हैं कि 60 फीसदी मजदूर गांव जा चुके हैं।
उनसे वापस आने के लिए कहा जा रहा है तो वे एडवांस पेमेंट मांग रहे हैं। हमें अपना कारोबार चलाने के लिए उन्हें पेमेंट करना ही होगा। पास में ही सईद आरजूहुसैन की दुकान है। वे बताते हैं कि दो महीने पहले ही उन्होंने 80,हजार रुपए देकरभाड़े पर गोदाम लिया था। जो बंद पड़ा है।
मुंबई के मशहूर दिल्ली दरबार होटल के मालिक ज़फर भाई बताते हैं कि उनके पास 20 शेफ थे जो यूपी के बहराइच जिले के थे। लॉकडाउन में सभी अपने गांव चले गए। अब वे होटल खोल रहे हैं। उन्होंने मजदूरों को वापस लाने के लिएट्रेन का टिकट कराया है।
गोवंडी से विधायक अबू आज़मी का कहना है कि मजदूर इसलिए गए क्योंकि यहां उनके घर छोटे थे, सोशल डिस्टेंसिंग नहीं हो सकती थी, उनके पास रोजगार नहीं था, खाने के लिए राशन नहीं था, कम से कम गांव में लोग एक दूसरे की मदद कर देते हैं और कोई भूखा नहीं मरता। घर भी खुले होते हैं। उनका कहना है कि मजदूरों के जाने से यहां की इंडस्ट्री पर साफ असर दिख रहा है। जब तक कोरोना पर नियंत्रण नहीं होता है तब तक उनका लौटना संभव नहीं है।
प्रवासी श्रमिकों को उनके घर पहुंचाना चैलेंजिंग था: रमेश बाबुराव
प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाना आसान नहीं था। धरावी के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक रमेश बाबुराव नांगरे बताते हैं कि उनके पास 200 पुलिसकर्मियों का स्टाफ है। इनमें से 55 साल से ऊपर के 120 पुलिसकर्मी ऑफ डयूटी पर थे, 33 पुलिसकर्मी कोरोना पॉज़िटिव हो गए थे।
मेरे पास सिर्फ 80 पुलिसकर्मी थे। वे बताते हैं कि जब केंद्र सरकार ने ट्रेनें चलाने की मंजूरी दी तो प्रवासी श्रमिकों को उनके घर तक पहुंचाना धरावी पुलिस के लिए चैलेंजिंग टास्क था।
इसके लिए हमने 30-30 लोगों का एक ग्रुप बनाया और हर ग्रुप का एक लीडर भी बनाया। जैसे ही हम 30 लोगों को स्टेशन छोड़ते फिर अगले ग्रुप को फोन करके बुलाते थे। उनका ग्रुप लीडर उन्हें कतार में खड़ा करता था। लोग दो- दो घंटा धूप में खड़े रहकर भी अपनी बारी का इंतज़ार करते थे।
वे बताते हैं कि जाने वाले लोग इतने थे कि हमारे पास बसें कम पड़ रही थीं। एक बस लौटकर भी नहीं आती थी कि दूसरी कतार में लग जाती थी। लेकिन लोगों ने हौसला बनाए रखा। क्या जाने वाले वापिस आएंगे? इस सवाल पर नांगरे कहते हैं कि वे हर हाल में वापस आएंगे। उन्होंने बताया कि कई लोगों फोन कर बताते हैंकि गांव में और भी बुरा हाल है। कोरोना संक्रमण खत्म होने के बाद वे वापस लौटेंगे।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार (14 जून) को दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैजल और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ करीब डेढ़ घंटे मीटिंग की थी। दिल्ली में कोरोना संक्रमण की रफ्तार कोथामने के उद्देश्य से हुई इस मीटिंग मेंकोरोना टेस्ट बढ़ाने काफैसला लिया गया था। बैठक में राजधानी में 2 दिन में कोरोना टेस्ट दोगुनाऔर 6 दिन में तीन गुना किए जाने का लक्ष्य रखा गया।
यह फैसलाइसलिए आया क्योंकि पिछले हफ्ते (7 से 13 जून) दिल्ली में कोरोना टेस्ट का पॉजिटिविटी रेट 31.08% रहाथा। यानी यहां कोरोना के 100 टेस्टमें 31 लोग पॉजिटिव मिल रहे थे। लद्दाख के बाद देशभर में यह सबसे ज्यादा है। लद्दाख में यह रेट 34.8% है।
डब्लूएचओ के मुताबिक, पॉजिटिविटी रेट ज्यादा होने का मतलब है कि राज्य में सिर्फ बीमार लोगों का ही टेस्ट हो रहा है। ऐसे में बड़ी संख्या में संक्रमित लोगों की पहचान नहीं हो पाती और कम्यूनिटी में संक्रमण किस हद तक फैल चुका है, इसका भी अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। डब्यूएचओ टेस्ट पॉजिटिविटी रेट को 5% से कम रखने का सुझाव देता है। भारत में पिछले हफ्ते 10 राज्यों में टेस्ट पॉजिटिविटी रेट 5% से ज्यादा रहा है। यानी इन राज्यों में संक्रमण का असल स्तर जानने के लिए टेस्ट बढ़ाए जाने की जरूरत है।
एक अच्छी बात यह भी है कि देश के 24 राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों में यह दर 5% से कम है। इसमें पूर्वोत्तर और दक्षिणके राज्यों का प्रदर्शन उत्तर भारतीय राज्यों से ज्यादा बेहतर है।
टेस्ट की तुलना में संक्रमित ज्यादा बढ़ रहे, इसलिए पॉजिटिविटी रेट भी बढ़ा
भारत में पिछले हफ्ते 9.82 लाख टेस्ट हुए। 2 महीने पहले की तुलना में यह 8 गुना ज्यादा हैं। लेकिन कोरोना संक्रमितों के मामले इस दौरान 13 गुना बढ़ गए। इस कारण देश की टेस्ट पॉजिटिविटी रेट में भी इजाफा हुआ। 2 महीने पहले भारत में टेस्ट पॉजिटिविटी रेट 5% के नीचे था, वह अब 8% परपहुंच गया है।
10 सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों को देखें तो सभी में कोरोना टेस्ट तो बढ़े हैं लेकिन इनमें से 7 में संक्रमितों की संख्या टेस्ट के मुकाबले ज्यादा बढ़ी है। यानी इन सात राज्यों में पॉजिटिविटी रेट में इजाफा हुआ है। हरियाणा में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। यहां दो महीने में पॉजिटिविटी रेट चार गुना बढ़ाहै।
आबादी के लिहाज से लद्दाख में सबसे ज्यादा, बिहार में सबसे कम टेस्ट
केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख में प्रति 10 लाख पर 38 हजार लोगों का टेस्ट हो रहा है। यह देश में सबसे ज्यादा है। जम्मू-कश्मीर, दिल्ली और तमिलनाडु भी टॉप-10 में शामिल है। वहीं, बिहार में प्रति 10 लाख महज 1034 टेस्ट हो रहे हैं। यह सबसे कम है। उत्तर प्रदेश और झारखंड आबादी के लिहाज से कम टेस्ट करने के मामले में दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं।
ब्राजील में पॉजिटिविटी रेट सबसे ज्यादा, भारत छठे नंबर पर
56 लाख से ज्यादा टेस्ट के साथ भारत चौथा सबसे ज्यादा टेस्ट करने वाला देश है। भारत में फिलहाल हर दिन करीब डेढ़ लाख टेस्ट हो रहे हैं और औसतन रोज 300 संक्रमित मिल रहे हैं। जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के डेटा के मुताबिक, भारत में टेस्ट पॉजिटिविटी रेट 8.73% है और यह डब्लूएचओ के बेंचमार्क (5%) से काफी ज्यादा है।
देश में टेस्टिंग कैपेसिटीबढ़ाने की जरूरत है। डेटा के मुताबिक, ब्राजील में पॉजिटिविटी रेट सबसे ज्यादा है। यहां हर 100 टेस्ट में 36 से ज्यादा सैम्पल कोरोना पॉजिटिव मिल रहे हैं। भारत टेस्ट पॉजिटिविटी रेट में छठे नंबर पर है।
देश में कोरोना के मरीज बढ़ने के साथ टेस्टिंग भी बढ़ी है।इस सबके बीच जो सबसे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण है कोरोना जांच की गलत रिपोर्ट। देश में ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें निगेटिव रिपोर्ट वाले को पॉजिटिव बता दिया गया। यही नहीं, साढ़े चार हजार रुपए देकर प्राइवेट क्लीनिक में टेस्ट करवाने के बावजूद लोगों को उनकी रिपोर्ट नहीं मिल रही।
ऐसा ही एक मामला मुंबई का है। एक परिवार ने 12 लोगों की जांच के लिए 36 हजार रुपए निजी लैब में भरे लेकिन उन्हें आज तक रिपोर्ट नहीं मिली। बस फोन पर कहा गया कि आपकी फैमिली के 6 लोग कोरोना पॉजिटिव थे। हालांकि इनमें से किसी में कोरोना का एक भी लक्षण नहीं था और सभी स्वस्थहैं औरक्वारैंटाइन पीरियड भी पूरा कर चुके हैं।
वहीं, दूसरे मामले में एक प्राइवेट लैब ने जिस व्यक्ति को पॉजिटिव बताया, दूसरी जगह से टेस्ट करवाने पर वह निगेटिव निकला। इस दौरान उसे जो तनाव झेलना पड़ा उसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।
अब्बू चल बसे लेकिन हमें अब तक नहीं पता कि उन्हें कोरोना था भी या नहीं...
मुंबई के मुंब्रा में रहने वाले समीर खान ने बताया किमेरे अब्बू (सलीम खान) का हफ्ते में तीन बार डायलिसिस कराना होता था। 1 मई को हमेशा की तरह सेंटर पर डायलिसिस करवाने गए थे, वहां सभी मरीजों का टेम्प्रेचर चेक किया जा रहा था, अब्बू का भी किया गया।
टेम्प्रेचर सामान्य से ज्यादा आया तो डॉक्टर ने कहा कि अगली बार डायलिसिस के लिए आने से पहले कोरोना का टेस्ट करवा लेना। यदि नहीं करवाया तो डायलिसिस नहीं करेंगे।
उन्होंने शिवाजी हॉस्पिटल में टेस्ट करवाने की पर्ची बनाई थी। हमने 4 मई को टेस्ट करवाया लेकिन उसी दिन अब्बू की मौत हो गई।
पहले हफ्ते में उनका तीन बार डायलिसिस होता था लेकिन कोरोना के चलते पिछले तीन-चार महीनों से 2 बार ही बमुश्किल हो पा रहा था। उनकी मौत होते ही पूरी कॉलोनी में ये अफवाह उड़ गई की अब्बू की मौत कोरोना से हुई है।
बिना रिपोर्ट के पॉजिटिव बता दिया
7 मई को थाने से कुछ पुलिसकर्मी आए और उन्होंने कहा कि तुम सब कोरोना पॉजिटिव हो इसलिए तुम्हें क्वारैंटीन होना होगा। हमने कहा कि हमारी तो जांच नहीं हुई और अब्बू की रिपोर्ट अभी तक हमें मिली ही नहीं।
इसके बावजूद वो लोग हमें थाने लेकर चले गए। वहां मौजूद डॉक्टर ने रिपोर्ट के बारे में पूछा। उन्हें बताया कि अब्बू की रिपोर्ट तो अभी मिली ही नहीं और हमारा टेस्ट नहीं हुआ तो उन्होंने हमें वापस घर भिजवा दिया।
चार-पांच दिन बाद फिर पुलिसकर्मी घर आए तो हमने उन्हें कहा कि अभी तक हमारी जांच नहीं हुई है। हम प्राइवेट लैब में जांच करवा लेते हैं इसके बादआपके साथ जाएंगे।
10 मई को हमने एक प्राइवेट लैब में जांच करवाई और 11 मई को उन्होंने हमें फोन पर बताया कि 12 में से 6 सदस्य की रिपोर्टपॉजिटिव हैऔर बाकी की निगेटिव। हमने 36 हजार रुपए जांच के लिए दिए थे। हमें यह सुनकर हैरत हुई क्योंकि हम तो एक ही घर में सब रह रहे थे। एक साथ खाना-पीना सब चल रहा था। फिर ऐसा कैसे हुआ। तो हमने उनसे रिपोर्ट ईमेल करने को कहा तो उन्होंने रिपोर्ट देने से इनकार कर दिया और फोन रख दिया।
फिर थाने से लोग आए और जिनकी रिपोर्ट पॉजिटिव थी, उन्हें क्वारैंटाइन सेंटर ले गए। हम भी बहुत टेंशन में आ गए थे। अब्बू गुजर गए थे। इसलिए भी डर बहुत ज्यादा था।
हमें मलेरिया की दवाएं खिला रहे थे
हमें वहां मलेरिया और टाइफाइड की दवाएं दी गईं। मैंने अपने फैमिली डॉक्टर को फोन पर दवाई का फोटो भेजा था तो उन्होंने बताया कि ये तो मलेरिया की दवाई हैं।
हम में से किसी में भी कोरोना के लक्षण नहीं थे। बुखार तक नहीं था। सब एक साथ थे। 11 मई की रात हमें क्वारैंटाइन सेंटर ले जाया गया था। 19 मई को हमें कहदिया गया कि अब आप लोग ठीक हो गए, कल सुबह घर चले जाना और 14 दिनों तक घर में ही रहना। हमने ऐसा ही किया।
दो-दो बार जांच हुई ,लेकिन हमें कोरोना की रिपोर्ट एक बार भी देखने को नहीं मिला। किसी में कोई लक्षण नहीं। 8 दिन सेंटर पर रखा और छोड़ दिया। अब्बू की रिपोर्ट हमें अभी तक भी नहीं मिली। यदि हमें कोरोना होता तो किसी की तो तबियत खराब होती। किसी को तो बुखार आता। किसी के साथ भी ऐसा नहीं हुआ। रिपोर्ट देखी ही नहीं। अब पता नहीं हमें क्वारैंटाइन क्यों किया गया।
मुझे नींद आना बंद हो गई थी, टेंशन ने पांच किलो वजन कम कर दिया
मुंबई की एडवोकेट वंदना शाह ने बताया कि, मुझे अपनी एक छोटी सी सर्जरी करवानी थी। डॉक्टर ने कहा कि सर्जरी के पहले कोरोना टेस्ट करवा लीजिए। डॉक्टर के कहने पर मैंने एक प्राइवेट लैब में साढ़े चार हजार रुपए देकर कोरोना टेस्ट करवाया। 13 मई को सैंपल दिया था। लैब ने कहा था कि 24 से 48 घंटे के अंदर रिपोर्ट ईमेल पर भेज देंगे। लेकिन उन्होंने रिपोर्ट भेजी नहीं।
15 मई को कोरोना पॉजिटिव होने का पता चला
15 मई को उन्होंने बीएमसी को बताया कि मैं कोरोना पॉजिटिव हूंजबकि मेरी तबियत खराब नहीं थी। इसी बीच बीएमएसी वाले मेरे घर आ गए। उन्होंने घर को सील कर दिया। न दूध, न सब्जी, न दवाई। सब एकदम से बंद हो गया।
17 मई को मुझे ईमेल पर कोरोना की रिपोर्ट मिली। इसमें टेस्ट की तारीख भी गलत लिखी थी, समय भी गलत था और रिपोर्ट 5 दिन बाद दी गई थी। मुझे कोरोना के कोई लक्षण भी नहीं थे इसलिए मुझे रिपोर्ट पर ही शक हुआ।
इसी बीच मेरी पूरी लाइन में यह बात फैल गई और लोग कहने लगे कि इन्हें क्वारैंटाइन सेंटर भेज दीजिए, वरना यहां खतरा हो सकता है। मैं बहुत टेंशन में आ गई। पति और बच्चे से दूरी बना ली। मुझे नींद आना बंद हो गई। रात-रातभर जाग रही थी।
गलत रिपोर्ट के लिए लैब को 99 लाख रुपए हर्जाने का नोटिस भेजा
मुझे रिपोर्ट पर शक था तो मैंने पांच दिन बाद ही दोबारा टेस्ट करवाया। इस बार मैंने बीएमसी के जरिए सरकारी लैब में जांच करवाई तो रिपोर्ट निगेटिव आई। मैंने गलत रिपोर्ट देने वाली एसआरएल लैब को 99 लाख रुपए हर्जाने का नोटिस भेजा है। इनकी एक गलत रिपोर्ट के कारण मैं किस हालात से गुजरी हूं, यह बता भी नहीं सकती।
बच्चे से बेवजह अलग रहना पड़ रहा
राजस्थान के भरतपुर में रहने वाले रवि कुमार ने बताया कि, मेरी मां को यूरिन इंफेक्शन था। हम उन्हें मणिपाल हॉस्पिटल लेकर गए। वहां कोरोना टेस्ट हुआ तो उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई।इसके बाद 29 मई को मेरी, पत्नी और मेरे साढ़े चार साल के बच्चे की जांच भी की गई। 3 जून को हमारी रिपोर्ट आई। इसमें पत्नी और मैं तो निगेटिव आए लेकिन बच्चे को पॉजिटिव बताया गया।
जब मैंने रिपोर्ट देखी तो उसमें बच्चे की उम्र 45 साल लिखी थी। नाम जलेश के बजाए गणेश लिखा था। मुझे रिपोर्ट पर शक हुआ। बच्चे में किसी तरह के कोरोना के लक्षण भी नहीं थे। पूरी तरह से स्वस्थ था।
उन्होंने बच्चे को घर में ही आइसोलेट कर दिया। मेरामन नहीं माना तो मैंने 7 जून को फिर बच्चे की जांच करवाई तो रिपोर्ट नेगेटिव आई। तब जाकर कहीं मेरी जान में जान आई।
इन्होंने गलत रिपोर्ट के आधार पर बच्चे को होम आईसोलेट कर दिया। इस दौरान पत्नी और मैं कितना टेंशन में आ गए थे, यह किसी को बताना भी मुश्किल है। हम दोनों दिनरात बच्चे बारे में ही सोचते रहते थे। उसके पास भी नहीं जा पा रहे थे। जबकि वो पूरी तरह स्वस्थनजर आ रहा था।
अब मम्मी भी घर आ चुकी हैं। वो अलग कमरे में हैं। मैं और पत्नी अलग कमरे में हैं। बच्चे को उन लोगों ने 16 जून तक अलग कमरे में रखने का बोला था, रिपोर्ट निगेटिव आ चुकी है फिर भी हम कल तक उसे अलग रख रहे हैं क्योंकि मन में तरह-तरह के सवाल आ रहे हैं।
पापा अलग कमरे में हैं। एक गलत रिपोर्ट ने मानसिक तौर पर इतना परेशान कर दिया कि शब्दों में इस बारे में क्या कहूं, समझ ही नहीं आता।