मंगलवार, 3 नवंबर 2020

क्या हैं रेड, ब्लू और स्विंग स्टेट्स, डेमोक्रेट और रिपब्लिकन्स की नीतियों में क्या फर्क; 5 पॉइंट्स में समझें

अमेरिका में 3 नवंबर को (भारतीय समयानुसार आज रात) राष्ट्रपति चुनाव है। यहां अर्ली वोटिंग सिस्टम के चलते मतदान पहले से जारी है। अमेरिका में फेडरल इलेक्शन सिस्टम तो है, लेकिन राज्यों के पास भी चुनाव से संबंधित अधिकार हैं। इस बार मुकाबला वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेट पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन के बीच है। दोनों की उम्र 70 साल से ज्यादा है। यहां हम आपको अमेरिकी चुनाव से जुड़ी खास जानकारी दे रहे हैं। अकसर, कुछ शब्द सुने जाते हैं। मसलन- रेड स्टेट, ब्लू स्टेट, स्विंग स्टेट। इनके अलावा दोनों पार्टियों की जानकारी भी यहां आपके लिए।

रेड स्टेट्स
आसान शब्दों में समझें तो रिपब्लिक पार्टी के दबदबे या कहें प्रभाव वाले राज्यों को रेड स्टेट कहा जाता है। इसकी वजह यह है कि रिपब्लिकन पार्टी का फ्लैग रेड यानी लाल है। इसके समर्थक आपको अकसर इसी रंग के कैप या टी-शर्ट्स में दिख जाएंगे। 2016 से डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति हैं। वे रिपब्लिकन पार्टी के सदस्य हैं। इस बार वे दूसरे कार्यकाल के लिए मैदान में हैं। अमेरिका के कुल 50 राज्यों में से फिलहाल 26 राज्यों में रिपब्लिकन पार्टी की सरकारें और गवर्नर हैं। यानी 26 रेड स्टेट हैं।

ब्लू स्टेट्स
जिन राज्यों में डेमोक्रेटिक पार्टी का प्रभाव ज्यादा है, उन्हें ब्लू स्टेट कहा जाता है। इसके फ्लैग में ब्लू यानी नीला रंग है। फिलहाल, 24 राज्यों में इसकी सरकारें और गवर्नर हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी ने इस बार जो बाइडेन को मैदान में उतारा है। इसके पहले बराक ओबामा इसी पार्टी से दो बार राष्ट्रपति बने। खास बात ये है कि ओबामा के दौर में बाइडेन वाइस प्रेसिडेंट थे। पार्टी उन्हें अनुभवी नेता और ट्रम्प के मुकाबले ज्यादा बेहतर कैंडिडेट बताती है जो देश में बराबरी की बात करता है।

स्विंग स्टेट्स
कुछ राज्यों को स्विंग स्टेट्स कहा जाता है। नाम से ही जाहिर होता है कि ऐसे राज्य जहां वोटर्स का मूड बदलने की संभावना होती है, वे स्विंग स्टेट्स कहलाते हैं। जैसे, ओहिया या फिर फ्लोरिडा। अकसर, हर चुनाव में स्विंग स्टेट्स बदलते रहे हैं। जैसे इस चुनाव में माना जा रहा है कि एरिजोना, पेन्सिलवेनिया और विस्कॉन्सिन स्विंग स्टेट्स साबित हो सकते हैं। इन राज्यों की वजह से बाइडेन और ट्रम्प की टक्कर दिलचस्प हो सकती है। चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में दोनों कैंडिडेट इन्हीं राज्यों पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं।
स्विंग स्टेट्स को बैटल ग्राउंड या पर्पल स्टेट्स भी कहा जाता है। पर्पल यानी नीले और लाल को मिलाया जाने वाला रंग। चुनावी लिहाज से इसके मायने कि यहां कोई भी जीत सकता है।

डेमोक्रेट पार्टी
डेमोक्रेट पार्टी अमेरिका की सबसे पुरानी पार्टी है। करीब 200 साल (8 जनवरी 1828 से) पुरानी यह पार्टी औपचारिक गठन से पहले फेडरल पार्टी के तौर पर भी जानी गई। शुरुआती दौर में कुछ मुद्दों पर यह पूंजीवाद की समर्थक नजर आई। लेकिन, 20वीं सदी में पार्टी की नीतियों में बदलाव साफ तौर पर नजर आया। मोटे तौर पर यह आधुनिक उदारवाद की समर्थक मानी जाती है। मजबूत केंद्र सरकार चाहती है। माइनोरिटीज और महिला अधिकारों का समर्थन करती है। इसके अलावा हेल्थ, एजुकेशन, लेबर और एनवॉयरमेंट पर लिबरल पॉलिसीज यानी उदारवादी नीतियों का समर्थन करती है।

रिपब्लिकन पार्टी
1854 में रिपब्लिकन पार्टी की स्थापना हुई। इसे GOP भी कहा जाता है। इसका अर्थ है- ग्रैंड ओल्ड पार्टी। डोनाल्ड ट्रम्प इसी पार्टी के सदस्य हैं। मूल रूप से इसकी नीतियां अमेरिकी परंपराओं या रूढ़िवाद की समर्थक हैं। इसकी विचारधारा के मुताबिक, सरकारों को नागरिकों के जीवन में ज्यादा दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए। टैक्स कम करने पर जोर देती है। अबॉर्शन और इमीग्रेशन पर रोक लगाने की समर्थक है। इस पार्टी के ज्यादातर समर्थक अमेरिका को सर्वश्रेष्ठ मानने वाले श्वेत हैं। ये गन कल्चर का विरोध नहीं करते। पिछले कुछ साल से इस पार्टी में युवा और कट्टरपंथी गुट श्वेत गुट उभरे। इन पर नस्लवादी हिंसा के आरोप लगते रहे हैं।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
What are the differences between the policies of the Red, Blue and Swing States, Democrats and Republicans; Understand in 5 points


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2HTE7Ca
https://ift.tt/2TN358T

पॉपुलर वोट और इलेक्टोरल कॉलेज समेत अमेरिकी चुनाव से जुड़ी 5 बातें, जो आपको समझनी चाहिए

अमेरिका में 3 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव है। भारतीय समयानुसार मंगलवार रात फाइनल वोटिंग शुरू होगी। रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेट पार्टी के जो बाइडेन मैदान में हैं। ट्रम्प जीतेंगे या बाइडेन बाजी मारेंगे? यह वक्त बताएगा। लेकिन, व्हाइट हाउस तक पहुंचने की इस यात्रा में कुछ अहम पड़ाव आते हैं। यहां हम आपको इन अहम पांच पड़ावों के बारे में बता रहे हैं।

प्राइमरी
इसे आप अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का पहली पायदान कह सकते हैं। संविधान इस पर मौन है। लिहाजा, पार्टियां और राज्य सरकारें इसे आयोजित करती हैं। एक तरह से देखें तो यह प्रक्रिया चुनाव से दो साल पहले ही शुरू हो जाती है। नेता अपनी पार्टी की तरफ से नॉमिनेशन करते हैं। फिर वहां की जनता इस पर मुहर लगाती है। कुछ राज्यों में सीक्रेट बैलट से कैंडिडेट तय होता है तो कुछ में ओपन बैलट से। फर्क यह है कि सीक्रेट बैलट में सिर्फ पार्टी मेंबर वोटिंग करते हैं और ओपन बैलट में जनता भी सीधे वोट डाल सकती है। दरअसल, ये लोग अपना एक प्रतिनिधि (डेलिगेट्स) चुनते हैं। ये डेलिगेट पार्टी कन्वेंशन (सम्मेलन) में प्रेसिडेंट कैंडिडेट नॉमिनेट करते हैं। अब 44 राज्यों में प्राइमरी इलेक्शन होते हैं। 2016 के बाद 10 राज्य कॉकस से प्राइमरीज पर शिफ्ट हुए।

कॉकस
यह राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनने का पुराना तरीका है। इसे आयोवा कॉकस भी जाता है। अब सिर्फ 6 राज्यों में इसका इस्तेमाल होता है। कॉकस को बहुत आसान भाषा में समझें तो पहली चीज तो यह है कि इसका आयोजन सीधे पार्टियां करती हैं। राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं होती। पार्टियां ही नियम और मतदाता तय करती हैं। यहां डेलिगेट चुनने के लिए बैलट का इस्तेमाल नहीं होता। पार्टी मेंबर्स कई उम्मीदवारों में से एक को हाथ उठाकर चुनते हैं।

कन्वेंशन
आसान शब्दों में आप इसे पार्टी सम्मेलन कह सकते हैं। इसमें पार्टी प्रतिनिधि (डेलिगेट्स) हिस्सा लेते हैं। यानी वो लोग जो प्राइमरीज या कॉकस से चुनकर आए हैं। वे यहां मतदान के जरिए उस कैंडिडेट को चुनते हैं जो राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनेगा। राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार पार्टी सांसदों से सलाह करके उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय करता है। हर राज्य से चुने गए डेलिगेट्स की संख्या अलग होती है। यह आबादी पर निर्भर करती है। कैलिफोर्निया में सबसे ज्यादा 415 डेलिगेट्स हैं।

पॉपुलर वोट
अमेरिका में मतदाता पहले इलेक्टर्स चुनते हैं। इनसे इलेक्टोरल कॉलेज बनता है। ये इलेक्टोरल कॉलेज राष्ट्रपति चुनता है। सवाल ये कि फिर पॉपुलर वोट क्या होता है? इसे सीधे तौर पर समझिए। दरअसल, जनता यानी मतदाता अपना प्रतिनिधि इलेक्टर चुनते हैं। फिर ये इलेक्टर राष्ट्रपति चुनता है। अब ये जरूरी नहीं कि जनता जिसे इलेक्टर चुन रही है, वो उसके पसंद के कैंडिडेट यानी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को ही वोट दे। मसलन, 2016 में ट्रम्प को 62,984,825 (46.4% वोट्स) और हिलेरी को 65,853,516 (48.5% वोट्स) मिले। जाहिर है, हिलेरी जनता की पहली पसंद थीं। लेकिन, इलेक्टोरल वोट ने ट्रम्प को जिता दिया।

इलेक्टोरल कॉलेज
इस पर काफी बहस होती है। कुछ लोग अब इसे गलत भी ठहराने लगे हैं। पॉपुलर वोट के जरिए 50 राज्यों में 538 इलेक्टर्स चुने जाते हैं। इनसे इलेक्टोरल कॉलेज बनता है। राष्ट्रपति बनने के लिए 270 इलेक्टरल कॉलेज वोट चाहिए। जिस राज्य की जितनी ज्यादा आबादी, उसके उतने ज्यादा इलेक्टोरल वोट। हर राज्य से दोनों सदनों के लिए जितने सांसद चुने जाते हैं, उतने ही उसके इलेक्टर्स होंगे। कैलिफोर्निया में 55 तो व्योमिंग में सिर्फ 3 इलेक्टर्स हैं। 2016 में ट्रम्प को 306 इलेक्टर्स का समर्थन मिला। हिलेरी के लिए आंकड़ा 232 पर सिमट गया। वे चुनाव हार गईं।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
डेमोक्रेट जो बाइडेन और रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रम्प।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3kVQUCH
https://ift.tt/3p1yNxM

लाइफ मैनेजमेंट की पहली सीख, कोई बात कहने से पहले ये समझना जरूरी है कि सुनने वाला कौन है

कहानी- बात 127 साल पहले की है। शिकागो का आर्ट इंस्टिट्यूट और हॉल। कोलंबस में 7000 श्रोता मौजूद थे। एक से एक अंग्रेज वक्ता अपनी बात कहकर जा चुके थे। सम्मेलन का पहला दिन और दूसरा सत्र आरंभ हुआ था। कार्यक्रम के संचालक बैरोज ने घोषणा की कि विवेकानंद फ्रॉम इंडिया यानी भारत से विवेकानंद आए हैं और बोलेंगे। हॉल में सन्नाटा छा गया। किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि कोई भारतीय व्यक्ति से आएगा और बोलेगा। सबके मन में सवाल था।

उसी समय विवेकानंद की आवाज में दो शब्द भाइयों और बहनों निकला, पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। उसके बाद विवेकानंद बोलते गए और लोग सुनते गए। बाद में विवेकानंदजी से पूछा गया कि इतना प्रभावशाली दृश्य आपने कैसे पैदा किया?

तब उन्होंने कहा कि धर्म, अध्यात्म, भौतिकता, परिश्रम और प्रबंधन, मैंने इनका तालमेल बैठाया। जब ये एक साथ मिलकर प्रभावशाली वाणी में उतरते हैं, तब इतिहास ऐसे दृश्य देखता है।

सबक- जो प्रयोग और प्रस्तुति विवेकानंद ने दी। वह हमें ये समझाती है कि पुरानी बातों की अच्छाई को भी नए जीवन से जोड़कर उसकी उपयोगिता बताना एक कला है। अब प्रतिस्पर्धा इतनी हो गई है कि आपको हर दिन कुछ नया करना होगा और उस नए में आपका प्रबंधन, प्रजेंटेशन, पहनावा और वाणी बहुत महत्वपूर्ण है।

ये भी पढ़ें...

जब कोई आपकी तारीफ करे तो यह जरूर देखें कि उसमें सच्चाई कितनी है और कितना झूठ है

आज का जीवन मंत्र:अकेली महिला समाज में असुरक्षित क्यों है? क्यों नारी देह आकर्षण, अधिकार और अपराध का शिकार बनती जा रही है?

कार्तिक मास आज से - जीवन के तीन खास पहलुओं को पूरी तरह से जीने का महीना है कार्तिक, दीपावली के पांच दिन पांच भावनाओं के प्रतीक हैं



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
aaj ka jeevan mantra, life management tips by pandit vijay shankar mehta, ujjain, we should remember these tips before saying anything


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2HXTpWE
https://ift.tt/3mJD9Yk

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावः जानिए कैसे अमेरिकन देसी तय करेंगे अबकी बार किसकी सरकार?

इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में अमेरिकन देसी यानी भारतीय अमेरिकियों की रुचि सामान्य से ज्यादा है। एक तो भारतीय मूल की कमला हैरिस को डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडेन ने रनिंग मेट चुना है। फिर डोनाल्ड ट्रम्प और नरेंद्र मोदी की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है, लेकिन बात बस इतनी नहीं है।

चार साल पहले 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में ट्रम्प का फुटेज सामने आया था, यह कहते हुए कि अबकी बार ट्रम्प सरकार। जाहिर है, वे सीधे-सीधे भारतीय अमेरिकियों पर निशाना साध रहे थे। कहीं न कहीं, भारतीय-अमेरिकी उनकी जीत में निर्णायक रहे भी। तभी तो ट्रम्प के ‘फोर मोर ईयर्स’ कैम्पेन में मोदी की ह्यूस्टन रैली का फुटेज जोड़ा गया है। भारत के लिए तो ट्रम्प से पहले के राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पार्टी डेमोक्रेटिक भी करीब की रही है। तभी तो बाइडेन ने न केवल भारतीय मूल की कमला हैरिस को रनिंग मेट बनाया, बल्कि भारतीय अमेरिकियों के लिए अलग से चुनाव घोषणापत्र भी जारी किया।

6 तारीखों से जानिए अमेरिका में राष्ट्रपति कैसे चुनते हैं; हमारे यहां से कितना अलग है सिस्टम?

क्या महत्व रखते हैं अमेरिकी चुनावों में भारतीय-अमेरिकन?

  • इतना समझ लीजिए कि नंबरों से इसका कोई संबंध नहीं है। कार्नेगी एनडाउमेंट रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में 19 लाख भारतीय मूल के वोटर हैं। यानी कुल वोटर्स का 0.82% हिस्सा। आप कहेंगे कि यह कैसे रिजल्ट प्रभावित कर सकते हैं? जवाब के लिए आपको अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया को समझना होगा। यहां सबसे ज्यादा वोट पाने वाला कैंडीडेट नहीं जीतता, बल्कि वह राष्ट्रपति बनता है, जिसके पास इलेक्टोरल कॉलेज के कम से कम 270 इलेक्टर का साथ होता है।
  • अमेरिकी चुनावों में देसी अमेरिकियों का दूसरा महत्व है- उनकी कमाई। अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडियन ओरिजिन (AAPI) के मुताबिक, 2018 में भारतीय अमेरिकी वोटर्स की सालाना आय 1.39 लाख डॉलर थी। गोरे, हिस्पैनिक और अश्वेत वोटर्स की औसत सालाना आय 80 हजार डॉलर से कम थी। साफ है कि भारतीय समुदाय अमेरिका के प्रभावशाली तबके में आता है। लॉस एंजिलिस टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 प्रेसिडेंशियल कैम्पेन के लिए भारतीय-अमेरिकियों ने दोनों प्रमुख पार्टियों को 3 मिलियन डॉलर से अधिक का डोनेशन किया है। यह हॉलीवुड से मिले डोनेशन से भी ज्यादा है।

अमेरिका ने फिर लगाया रूसी हैकर्स पर साइबर हमलों का आरोप; जानिए चुनावों से पहले इन आरोपों का क्या मतलब है?

तो क्या सिर्फ कमाई की वजह से देसी अमेरिकियों का महत्व है?

  • नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। दरअसल, अमेरिका में बैलटग्राउंड स्टेट्स या स्विंग स्टेट्स ही मोटे तौर पर ट्रम्प और बाइडेन की जीत-हार तय करेंगे। 2016 में भी इन्हीं स्टेट्स ने नतीजा तय किया था। विनर-टेक्स-ऑल सिस्टम की वजह से इन स्टेट्स में यदि किसी पार्टी को एक वोट भी ज्यादा मिला तो वहां के सभी इलेक्टर उसी पार्टी के होंगे।
  • 2016 के चुनावों में रिपब्लिकन कैंडीडेट ट्रम्प की जीत और डेमोक्रेट हिलेरी क्लिंटन की हार तय हुई थी सिर्फ 77,744 वोट्स से। इस तरह दुनिया के सबसे ताकतवर व्यक्ति के चुनाव में कुछ चुनिंदा राज्यों के कुछ हजार वोटर निर्णायक हो गए। ट्रम्प ने 3 स्टेट्स- मिशिगन (10,704 वोट्स से), विसकॉन्सिन (22,748 वोट्स से) और पेनसिल्वेनिया (44,292 वोट्स से) में जीत हासिल की और उन्हें इसके बदले 46 इलेक्टर वोट्स मिले थे। यदि यह क्लिंटन को मिलते तो उनके पास 538 इलेक्टोरल कॉलेज वोट्स में 274 वोट्स होते और वह प्रेसिडेंट होतीं।

कब तक होगी वोटिंग, क्या वास्तव में वोटिंग फ्रॉड हो रहा है; जानें ऐसे 16 सवालों के जवाब

बैटलग्राउंड या स्विंग स्टेट्स में भारतीय अमेरिकियों की क्या भूमिका है?

  • अमेरिका में कुछ स्टेट्स रिपब्लिकन के प्रभुत्व वाले हैं और कुछ स्टेट्स डेमोक्रेट्स के। कुछ स्टेट्स ऐसे हैं, जिधर खड़े होते हैं, उसका ही पलड़ा भारी कर देते हैं। इन स्टेट्स को ही बैटलग्राउंड या स्विंग स्टेट्स कहते हैं। काफी हद तक इन स्टेट्स पर ही किसी कैंडीडेट की जीत-हार तय होती है। इनमें जीत-हार का अंतर भी काफी कम होता है।
  • 6 स्टेट्स ऐसे हैं, जहां बराक ओबामा 2012 में जीते, लेकिन 2016 में ट्रम्प को उनका साथ मिला। इन 6 स्टेट्स में फ्लोरिडा (इलेक्टोरल वोट्स 29), पेनसिल्वेनिया (20), ओहियो (18), मिशिगन (16), विसकॉन्सिन (10), और आईओवा (6) शामिल हैं। इनमें फ्लोरिडा, पेनसिल्वेनिया, मिशिगन और विसकॉन्सिन में भारतीय अमेरिकी वोटर्स की प्रभावी संख्या है।
  • YouGov और कैम्ब्रिज एन्डाउमेंट सर्वे के मुताबिक, 72% भारतीय अमेरिकी बाइडेन को वोट डालेंगे, जबकि 22% डोनाल्ड ट्रम्प को। यदि हम मानते हैं कि सब फैक्टर 2016 जैसे ही रहेंगे तो भारतीय अमेरिकियों का 72% सपोर्ट बाइडेन को प्रेसिडेंट बनाने में मददगार साबित होगा। मिशिगन में बाइडेन को 90 हजार, विसकॉन्सिन में 26,640 वोट्स और पेनसिल्वेनिया में 1,12,320 वोट्स भारतीयों के मिलेंगे। यानी डेमोक्रेट्स इनके दम पर 2016 की हार को 2020 में जीत में बदल सकते हैं।


आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Donald Trump Vs Joe Biden; Know Why Indian Americans Vote Matter In US Presidential Election 2020


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/34S7pdo
https://ift.tt/2HVwT0r

मां फैक्ट्री सुपरवाइजर थीं, बेटा चौराहे पर पर्चे बांटता, फिर खड़ी की 20 लाख टर्नओवर की कंपनी

22 साल के शौर्य गुप्ता का कुछ ही दिनों पहले ग्रैजुएशन कम्पलीट हुआ है। महज 17 साल की उम्र से उन्होंने खुद का काम शुरू कर दिया था। अभी उनकी कंपनी का 20 से 22 लाख रुपए का टर्नओवर है और वो 8 लोगों को रोजगार दे रहे हैं। कॉलेज में पढ़ाई के साथ शौर्य ने ये सब कैसे किया? जानिए शौर्य की कहानी, उन्हीं की जुबानी...

शौर्य कहते हैं- बचपन में ही सिर से पिता का साया उठ गया था। मां ने बड़ी मुश्किलों से पाला। वो एक फैक्ट्री में देखरेख का काम संभालती थीं। हम उसी फैक्ट्री में एक छोटे से घर में रहते थे। मां का एक ही सपना था कि, हम दोनों जुड़वां भाइयों को कैसे भी अच्छी एजुकेशन देना है। इसीलिए विपरीत हालातों के बावजूद उन्होंने हमारा एडमिशन नोएडा के प्राइवेट स्कूल में करवाया ताकि पढ़ाई अच्छी हो जाए।

अपनी टीम के साथ शौर्य। मां ने बिजनेस करने का मना किया था लेकिन उन्होंने सोचकर रखा था कि करना तो बिजनेस ही है।

उन्होंने बताया कि मां बचपन से ही कहा करती थीं कि मैं सिर्फ अच्छा पढ़ा-लिखा और खिला सकती हूं, बाकी तुम्हें अपनी जिंदगी खुद बनानी है। कुछ कमाओगे तो खा पाओगे, वरना सड़क पर घूमना पड़ेगा। मां की ये बातें सुनकर हम दोनों भाइयों के दिल में ये बात तो घर कर गई थी कि बड़ा आदमी तो बनना ही है और अपना ही कुछ करना है।

शौर्य कहते हैं- हम दोनों पढ़ाई में हमेशा एवरेज रहे, लेकिन क्रिएटिव मामलों में हमारा दिमाग खूब चलता था। 10वीं में अच्छे मार्क्स आए थे तो मां ने साइंस सब्जेक्ट दिलवा दिया, लेकिन मैंने उन्हें बिना बताए ही स्ट्रीम चेंज करके कॉमर्स कर ली। मुझे बिजनेस में ही इंटरेस्ट था। मैं यही सोचता रहता था कि कौन सा बिजनेस करूं? कैसे करूं? कुछ करने का पागलपन इतना था कि दोनों भाइयों ने स्कूल टाइम में ही एक दोस्त के साथ मिलकर वेबसाइट बना ली थी। हालांकि, उससे कुछ अर्निंग नहीं हुई और कुछ दिनों में वो बंद भी हो गई।

"12वीं में मेरे मार्क्स कम आए तो मुझे कॉमर्स के अच्छे कॉलेज में एडमिशन ही नहीं मिल रहा था। बीए में एडमिशन मिल रहा था। मां ने कहा, बीए कर लो, लेकिन मुझे कॉमर्स के अलावा कुछ नहीं पढ़ना था। मैंने किसी कॉलेज में एडमिशन ही नहीं लिया और 12वीं के बाद ही नौकरी की तलाश में लग गया। रोज इधर-उधर घूमता था कि कहीं तो काम मिले। सैकड़ों इंटरव्यू दे दिए। कंसल्टेंसी वालों ने पैसे भी लिए लेकिन नौकरी नहीं मिली। तभी मुझे पता चला कि जॉब के नाम पर फ्रॉड चल रहा है।"

79 साल की उम्र में शुरू किया चाय मसाले का बिजनेस, रोज मिल रहे 800 ऑर्डर, वॉट्सऐप ग्रुप से की थी शुरुआत

वो कहते हैं- मैं नौकरी के लिए इतनी सारी कंपनियों में घूम चुका था कि मुझे पता था कहां वैकेंसी है और वहां किससे मिलना है? मैं अपने दोस्तों को बताया करता था कि तुम फलां कंपनी में जा सकते हो, वहां वैकेंसी है। इस दौरान मैं खुद भी कंपनियों के चक्कर लगा ही रहा था। तभी एक दिन एक कंपनी से फोन आया कि आपके कैंडीडेट का सिलेक्शन हो गया है। आप अपने 2500 रुपए ले जा सकते हैं। अपनी कंसल्टेंसी की डिटेल लेकर आ जाइएगा। मैं उनकी बात सुनकर शॉक्ड हो गया। उन्होंने फिर पूछा कि आप कंसल्टेंसी से हो न। मैंने उन्हें हां बोल दिया।

शौर्य ने बताया- अगले दिन मैं उस कंपनी में पेमेंट लेने पहुंचा तो उन्होंने कहा कि आपको अपनी कंपनी की डिटेल देना होगी। कंपनी अकाउंट में ही पैसे ट्रांसफर हो पाएंगे। बस यहीं से मेरे मन में आइडिया आया कि बाहर लोग इंटरव्यू कंडक्ट करवाने के कैंडीडेट से पैसे ले रहे हैं और यहां तो कंपनी खुद कैंडीडेट को भेजने के पैसे दे रही है तो क्यों न यही काम किया जाए। मैंने जॉबखबरी के नाम से अपनी कंसल्टेंसी खोलने का प्लान बनाया और रजिस्ट्रेशन करवा लिया। इसी बीच एक कॉलेज में मुझे बीबीए में एडमिशन भी मिल गया।

ग्रैजुएशन के पहले ही कंपनी खड़ी कर ली थी। अब 8 लोगों को नौकरी दे रहे हैं।

वो बताते हैं- मैं कैंडीडेट्स को जोड़ने के लिए पैम्पलेट बांटने लगा। एक बार चौराहे पर पैम्पलेट बांटते हुए एक दोस्त ने देख लिया। उसने मां और भाई को बता दिया। घर में बहुत डांट पड़ी, लेकिन मैंने सोच लिया था कि अब यही काम करना है। मैं कॉलेज जाता था और वहां से लौटकर पैम्पलेट बांटता था। दीवारों पर पर्चे चिपकाता था और कंपनियों में जाकर रिक्रूटमेंट संबंधित डिटेल जुटाता था। बहुत दिनों से ऐसा करते रहा। कई महीनों बाद एक और कैंडीडेट मुझे मिला। उसे एक कंसल्टेंसी में भेजा। वहां से मुझे पेमेंट मिला। फिर धीरे-धीरे कैंडीडेट्स मिलने लगे। चार कंपनियों में मेरे कॉन्टैक्ट थे, जहां मैं कैंडीडेट्स को भेज रहा था।

शौर्य ने कहा, "महीने के 18-20 हजार रुपए आने लगे तो मैंने सोचा कि एक एम्प्लॉई हायर कर लेता हूं, क्योंकि मैं कॉलेज भी जाता था। 15 हजार की सैलरी में एक लड़की को काम पर रख लिया। 5 हजार रुपए के किराये में एक छोटा सा ऑफिस रेंट पर ले लिया। हालांकि, उसने कोई मदद नहीं की और दो माह में ही काम बंद हो गया। कुछ महीनों बाद फिर काम शुरू किया। फिर दो लड़कियों को हायर किया, लेकिन वो मुझे बिना बताए कैंडीडेट्स से ही कमीशन लेने लगीं। बाद में पता चला तो उन दोनों हो हटा दिया और काम फिर बंद सा हो गया। तीसरी बार फिर शुरूआत की। एक आठवीं पास लड़की को हायर किया, जिससे कैंडीडेट्स से कॉल पर डिटेल लेनी थी। इस बार असफल नहीं हुआ। हमें अच्छा काम मिलने लगा।"

कहते हैं, मैंने खुद की कमाई से कुछ ही दिनों पहले नई कार खरीदी है।

वो बताते हैं कि मैं दिनभर कॉलेज में रहता था। ऑफिस से काम चल रहा था। एक के बाद तीन एम्ल्पॉई और रखे। लॉकडाउन के पहले तक हमारी कंपनी का टर्नओवर 20 से 22 लाख रुपए पर पहुंच गया है। 8 लोगों का स्टाफ मेरे पास है। स्टाफ को सैलरी और किराया देने के बाद मैं 80 से 90 हजार रुपए बचा लेता हूं। कुछ माह पहले खुद के पैसों से कार भी खरीद ली।

उन्होंने कहा, "हाल ही में मेरा ग्रैजुएशन कम्पलीट हुआ है। अब हम बिजनेस ट्रेनिंग पर भी काम शुरू कर रहे हैं। कैंडीडेट्स में स्किल्स की बहुत कमी है, उनकी कमियों को दूर करेंगे और प्लेसमेंट भी करवाएंगे। दूसरों को बस यही मैसेज देना चाहता हूं कि आपके अंदर आग है तो उसे बुझने मत दो। लोग डराएंगे, लेकिन आप ने खुद को झोंक दिया तो सफलता जरूर मिलेगी।"

ये भी पढ़ें :

1. तीन दोस्तों ने लाखों की नौकरी छोड़ जीरो इन्वेस्टमेंट से शुरू की ट्रेकिंग कंपनी, एक करोड़ टर्नओवर

2. मुंबई में गार्ड को देख तय किया, गांव लौट खेती करूंगा; अब सालाना टर्नओवर 25 लाख रुपए

3. लॉकडाउन में दोस्त को भूखा देख कश्मीरी ने शुरू की टिफिन सर्विस, 3 लाख रु. महीना टर्नओवर



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
शौर्य को मां ने साइंस सब्जेक्ट दिलवाया, पर उन्होंने स्ट्रीम बदलकर कॉमर्स कर ली, क्योंकि उन्हें बिजनेस ही करना था।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/328TrSB
https://ift.tt/34Rvgd7

तेजस्वी की राघोपुर समेत 8 सीटों पर 4 बजे तक वोटिंग, 2015 में इनमें से 50 सीटों पर जदयू-भाजपा जीती थीं

बिहार में चुनाव है। तीन फेज में वोटिंग होनी है। आज दूसरे फेज की 94 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। 1,463 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें 1,316 पुरुष और 146 महिलाएं हैं। जबकि, एक ट्रांसजेंडर है। तीसरे फेज की वोटिंग 7 नवंबर को होगी। नतीजे 10 नवंबर को आएंगे।

कोरोना के चलते चुनाव आयोग ने वोटिंग का समय एक घंटे बढ़ाया है। 94 में से 86 सीटों पर सुबह 7 से शाम 6 बजे तक वोट पड़ेंगे। बाकी बची 8 सीटों पर सुबह 7 से 4 बजे तक ही वोटिंग होगी। इसमें तेजस्वी यादव की राघोपुर सीट भी शामिल है।

जिन 94 सीटों पर आज वोट डाले जाएंगे। 2015 में उनमें से 50 सीटें जदयू और भाजपा ने जीती थी। 33 सीटों पर राजद को जीत मिली थी। पार्टी के लिहाज से देखें तो 2015 में सबसे ज्यादा 33 सीटें राजद को, 30 सीटें जदयू को और 20 सीटें भाजपा को मिली थीं।

दूसरे फेज की 5 बड़ी बातें

  1. सबसे ज्यादा 27 उम्मीदवार महाराजगंज और सबसे कम 4 उम्मीदवार दरौली सीट पर।
  2. सबसे ज्यादा 52 सीटों पर राजद, 44-44 पर भाजपा और लोजपा चुनाव लड़ रही है। जदयू 34 और कांग्रेस 22 सीटों पर मैदान में है।
  3. 41 हजार 362 पोलिंग स्टेशन बनाए गए हैं। 60 हजार 240 EVM का इस्तेमाल होगा।
  4. वोटर के लिहाज से पीरपैंती सबसे बड़ी विधानसभा है। यहां 3.34 लाख वोटर हैं। इनमें 1.78 लाख पुरुष, 1.56 लाख महिला और 12 ट्रांसजेंडर हैं।
  5. चेरिया बेरियारपुर वोटर के लिहाज से सबसे छोटी विधानसभा है। यहां 2.48 लाख वोटर हैं। इनमें 1.30 लाख पुरुष, 1.17 लाख महिलाएं और 22 ट्रांसजेंडर हैं।


आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Tej Pratap Yadav: Bihar Election Phase 2 Voting Percentage Updates, Bihar Election Voting News | Tejashwi Yadav Pushpam Priya; Polling In 94 Seats Today, Test For JDU BJP RJD Congress


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/35Vs27X
https://ift.tt/3l5yz6t

बेसन भरवां भिंडी बनाना है आसान, इसे लंबाई में चीरा लगाते हुए काटें ताकि एक ओर से ये जुड़ी रहे



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Besan stuffed ladyfinger is easy to make, cut it lengthwise by making an incision so that it is attached on one side


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2TKEBgH
https://ift.tt/34ODK4K

भारतीय डॉक्टर बोलीं- पूरी रात हाथ-पैर गंवा चुके सैनिक आते हैं, वो युद्ध में लौटने की जिद करते हैं

वो 18-20 साल का जवान था। उसका शरीर 40 फीसदी से अधिक जला हुआ था। हमने उसे बचाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन सुबह चार बजे उसने दम तोड़ दिया। एक और जवान की जिंदगी जंग में चली गई। बहुत अफसोस होता है इतनी कम उम्र के लोगों को इस तरह जाते देखते हुए।'

उपासना दत्त भारतीय मूल की मेडिकल स्टूडेंट हैं और इस समय आर्मीनिया के येरेवान के अस्पताल में तैनात हैं। उनके अस्पताल में अब सिर्फ युद्ध में घायल लोग ही आ रहे हैं। वो कहती हैं, 'यहां चौबीसों घंटे घायलों को लाया जा रहा है। बहुत से युवा सैनिक यहां लाए जा रहे हैं, जिन्होंने या तो अपनी आंखें गंवा दी हैं या कोई अंग। कई बहुत बुरी तरह से जले हुए होते हैं।'

27 सितंबर को आर्मीनिया-अजरबैजान के बीच विवादित क्षेत्र नागार्नो काराबाख पर नियंत्रण को लेकर छिड़ी जंग में मरने वालों की तादाद अब हजारों में है। तीन बार संघर्ष विराम हुआ है और नाकाम रहा है। आर्मीनिया के अस्पताल में इन दिनों जिंदगी कैसी है, यह बताते हुए उपासना कहती हैं, 'जब मैंने अस्पताल में काम शुरू किया था, तब मैंने नहीं सोचा था कि मैं इस देश में युद्ध की गवाह बनूंगी। यह एक सामान्य अस्पताल था, जो बाद में कोविड अस्पताल बना दिया गया था। फिर जंग छिड़ गई और एक ही रात में इसे युद्ध अस्पताल बना दिया गया।'

उपासना दिन भर अस्पताल में काम करने के बाद स्वयं सहायता समूहों के साथ काम करती हैं और सैनिकों के लिए सामान तैयार करती हैं।

उपासना बताती हैं, 'पहले सर्जरी दो-तीन घंटे चलती थी। कोई बहुत लंबा ऑपरेशन होता था तो छह घंटे तक चलता था। अब हमारे पास ऐसे घायल आ रहे हैं जिनकी सर्जरी आठ-आठ घंटे चलती हैं। कई बार रात के एक-दो बजे तक ऑपरेशन चलते रहते हैं। डॉक्टरों के पास पानी पीने तक का समय नहीं होता। ये डॉक्टरों के लिए, नर्सों के लिए और वहां मौजूद लोगों के लिए बहुत थकाने वाला होता है।

युद्ध में घायल सैनिक किस मनोस्थिति में होते हैं? उपासना कहती हैं, 'कुछ ऐसे सैनिक होते हैं, जिनकी एक आंख जा चुकी होती है, लेकिन वो ठीक होकर फिर से युद्ध के मैदान में लौटने की बात करते हैं। कई घायल सैनिक एक हाथ या पैर गंवा चुके होते हैं, लेकिन फिर भी वो यही कहते हैं कि ठीक होते ही उन्हें फिर से लड़ाई में जाना है।'

22 दिन बाद जब पाक ने सौरभ का शव लौटाया तो परिवार पहचान नहीं पाया, चेहरे पर न आंखें थीं न कान, बस आईब्रो बाकी थी

हर कोई है युद्ध से प्रभावित

क्या युद्ध की शुरुआत के मुकाबले अब हालात कुछ बेहतर हुए हैं? उपासना कहती हैं, 'एक महीने बाद अब हालात और बदतर हो गए हैं। हर बीतते दिन के साथ हालात और खराब हो रहे हैं। जिनके परिजन या फिर रिश्तेदार जंग में लड़ रहे हैं, वो युद्ध से सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं और कहीं ना कहीं अवसाद में हैं। इसका असर हम पर भी होता है, क्योंकि हम उनसे मिलते हैं और उन्हें देखते हैं।'

येरेवान शहर में हर तरफ युद्ध में जान गंवाने वाले सैनिकों की तस्वीरें लगी हैं। उन सैनिकों की तस्वीरें भी हैं, जो युद्ध के मैदान में लड़ रहे हैं। उपासना कहती हैं, ' इन हंसती हुई तस्वीरों के पीछे युद्ध की त्रासदी छुपी है। हम जानते हैं कि ये सैनिक और इनके परिजन किन हालातों से गुजर रहे हैं।' शहर में लगे पोस्टरों पर उन सैनिकों के नाम भी लिखें हैं, जिन्होंने जान गंवा दी है। नाम के आगे उनकी उम्र लिखी होती है। अधिकतर की उम्र 18-20 साल है।

उपासना बताती हैं कि बहुत से युवा सैनिक यहां लाए जा रहे हैं, जिन्होंने या तो अपनी आंखें गंवा दी हैं या शरीर का कोई अंग।

बच्चों ने अपने खिलौने बेच दिए

येरेवान की गलियों में आर्तसाख से आए लोगों ने पारंपरिक रोटियों की दुकानें सजाई हैं। हरी सब्जियों से बनने वाली इन रोटियों को बेचकर वो युद्ध में भेजने के लिए पैसा जुटा रहे हैं। बच्चे अपने खिलौने बेचकर पैसे जुटा रहे हैं। गलियों में कुछ बच्चे ऐसे भी हैं, जो पेंटिंग करके युद्ध में लड़ रहे सैनिकों के लिए पैसे जुटा रहे हैं। शहर के इर्द-गिर्द ऐसे कैंप हैं, जहां जाकर लोग सैनिकों के लिए खाना बना सकते हैं। लोग बढ़-चढ़कर इनमें हिस्सा ले रहे हैं।

उपासना भी एक समूह का हिस्सा हैं, जो सैनिकों को भेजने के लिए बैंडेज तैयार करता है। उपासना दिन भर अस्पताल में काम करने के बाद स्वयं सहायता समूहों के साथ काम करती हैं और सैनिकों के लिए सामान तैयार करती हैं।

'शहर के कई अलग-अलग इलाकों में एनजीओ की ओर से बड़े-बड़े डिब्बे रखे गए हैं, जिनमें लोग अपने कपड़े, दवाइयां और बहुत सी चीजें दान कर रहे हैं। जो लोग सीमा पर अपने घर गंवा रहे हैं, उनकी मदद के लिए भी पैसे और सामान इकट्ठा किया जा रहा है।'

यहां के बच्चे अपने खिलौने बेचकर युद्ध में सैनिकों की मदद के लिए पैसे जुटा रहे हैं।

उपासना बताती हैं, 'खबरों में और सोशल मीडिया पर हमें हर दिन मारे जाने वाले आर्मीनियाई सैनिकों की संख्या पता चलती है। इनमें से अधिकतर की उम्र 18-20 साल होती है। कुछ 22-25 साल के भी होते हैं। सीमा पर बहुत से डॉक्टर भी मारे जा रहे हैं। ये लोग घायल सैनिकों का इलाज करने अपनी मर्जी से लड़ाई के मैदान में पहुंचे हैं। आर्मीनिया में बहुत लोगों ने अपनी मर्जी से अपने देश के लिए हथियार उठाए हैं।'

महिलाओं के लिए युद्ध कितना मुश्किल

वो कहती हैं, 'जब युद्ध की घोषणा होती है तो आमतौर पर महिलाएं बच्चों के साथ अंडरग्राउंड हो जाती हैं, लेकिन यहां आर्मीनिया में महिलाएं हर मोर्चे पर लड़ रही हैं। वो अपनी मर्जी से सीमा पर जा रही हैं। यहां की हजारों महिलाओं ने हथियार उठाए हैं। प्रधानमंत्री की पत्नी ने ट्रेनिंग ली है और वो भी युद्ध के मैदान में गई हैं।' जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ रहा है। आम लोगों में डर भी बढ़ रहा है। उपासना कहती हैं, 'आर्मीनिया में हर किसी को इस बात का भी डर है कि यदि युद्ध को अभी नहीं रोका गया तो दूसरा नरसंहार भी हो सकता है।'

वो कहती हैं,' मैं युद्ध से बिलकुल भी डरी हुई नहीं हूं। मुझे बस इस बात का डर है कि भारत में मेरे परिजन हर सेकंड मेरी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। इसके अलावा मैं बस इतना ही कहूंगी कि आर्मीनिया में औरतें आदमियों से ज्यादा मजबूत हैं। मुझे भरोसा है कि मैं मजबूत बनी रहूंगी और आर्मीनिया और सच की जीत को देखूंगी।'



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
We have injured people whose surgeries last for eight-eight hours, many times operations up to two in the night.


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3jSTIzg
https://ift.tt/2HYZcLk

मोदी के भाषणों में पांच साल पहले भी जंगलराज-पलायन-भ्रष्टाचार ही मुद्दा था, फिर आखिर बदला क्या?

पिछले पांच साल में बिहार की राजनीति में बहुत कुछ बदला। सत्ता के साथी बदले, गठबंधन के साथी बदले, जो तब सरकार में थे आज खिलाफ हैं और जो सरकार के खिलाफ थे आज वही सरकार की खूबियां गिनाते नहीं थक रहे हैं। लेकिन, इन सब के बाद भी कुछ नहीं बदला तो वो हैं चुनावी मुद्दे। खासकर के पीएम मोदी के मुद्दें। जिन मुद्दों को पीएम पांच साल पहले अपनी सभाओं में उठाए थे आज भी उन्हीं मुद्दों के सहारे वो एनडीए को सत्ता के सिंहासन पर बैठने की भरपूर कोशिश में जुटे हैं।

जंगलराज : आज 15 साल के जंगलराज की बात हो रही है तब 25 साल का मुद्दा था

जंगलराज ये एक ऐसा चुनावी मुद्दा है जिसके बिना बिहार में चुनाव का होना मुमकिन ही नहीं है। पांच साल पहले पीएम मोदी ने लगभग हर सभा में इस मुद्दे को उठाया था। मजेदार बात यह रही कि तब सिर्फ राजद और कांग्रेस ही नहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी निशाने पर थे।

मुंगेर की सभा में पीएम ने कहा था कि जंगलराज में इन लोगों ने सबसे बड़ा जो उद्योग लगाया था वो था अपहरण उद्योग। सूरज ढलने से पहले मां अपने बच्चों को कहीं जाने नहीं देती थी कि अपहरण हो जाएगा। लोग नई गाड़ी खरीदने के बाद तत्काल पुरानी कर देते। क्योंकि, शोरूम से बाहर निकलते ही नई गाड़ी देखकर कोई लूट ले जाता था।

इस चुनाव में भी मोदी जंगलराज को मुद्दा बना रहे हैं। अंतर बस इतना है कि आज 15 साल के जंगलराज की बात हो रही है तब 25 साल का मुद्दा था। उन्होंने कहा था कि 25 साल में इन लोगों ने दो-दो पीढ़ियों को तबाह कर दिया। हाल ही में मुजफ्फरपुर में मोदी ने कहा कि जंगलराज में किडनैपिंग इंडस्ट्री का कॉपी राइट इन्हीं लोगों के पास है। वहीं छपरा में मोदी ने कहा कि पहले फिरौती का कारोबार होता था। जिस राज्‍य में हर मां पहले कहती थी कि घर के भीतर ही रहो, बाहर मत निकलो, बाहर लकड़सूंघवा घूम रहा है। इस बार तो मोदी तेजस्वी को जंगलराज का युवराज कह रहे हैं।

पलायन और रोजगार: बिहार की पानी और जवानी दोनों इन लोगों ने बर्बाद कर दिया

पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार मंच पर एक सभा के दौरान।

2015 के चुनाव में बिहारी की बदहाली और युवाओं के पलायन के मुद्दे को लेकर मोदी महागठबंधन को टारगेट करने से नहीं चूकते थे। तब एक सभा में उन्होंने कहा था कि बिहार की पानी और जवानी दोनों इन लोगों ने बर्बाद कर दिया। युवा पीढ़ी को पलायन के लिए मजबूर कर दिया। इस चुनाव में भी पलायन और रोजगार मोदी के लिए मुद्दा है। उन्होंने पटना में एक सभा में कहा कि सरकारी नौकरी की तो बात छोड़िए इनके आने के बाद प्राइवेट कंपनियां भी यहां आने से डर जाएंगी। हालांकि पिछले 15 साल के दौरान पलायन की रफ्तार कितनी बढ़ी इसपर उन्होंने कुछ नहीं कहा। इस बार कोरोनाकाल में बिहारी प्रवासी मजदूरों के पलायन की सबसे ज्यादा चर्चा हुई है।

परिवारवाद : निशाने पर तब भी लालू थे, आज भी लालू का ही परिवार है

लोकसभा चुनाव में गांधी परिवार और बिहार चुनाव में लालू परिवार पर परिवारवाद का आरोप लगाने से मोदी नहीं चूकते। पिछले चुनाव में भी उन्होंने इसे मुद्दा बनाया था और इस चुनाव में भी लालू का परिवार उनके निशाने पर हैं। समस्तीपुर में मोदी ने कहा कि सिर्फ और सिर्फ अपने-अपने परिवार के लिए काम कर रही इन पारिवारिक पार्टियों ने आपको क्या दिया? बड़े-बड़े बंगले बने, तो किसके बने? महल बने, तो किसके बने? बड़ी-बड़ी करोड़ों की गाड़ियां आईं, गाड़ियों का काफिला बना, तो किसका बना। उनके बच्चे ही हर जगह जाएंगे तो आप कहां जाएंगे?

पीएम की रैलियों का स्ट्राइक रेट:पिछले चुनाव में मोदी ने जहां सभा की, वहां NDA 27% सीटें ही जीत पाई, 6 जिलों में खाता नहीं खुला

भ्रष्टाचार : लालू और कांग्रेस के साथ-साथ नीतीश भी निशाने पर थे
इस मुद्दे को 2015 के चुनाव में मोदी ने जोर शोर से उठाया था। चारा घोटाला सहित तमाम घोटालों का जिक्र किया था। इस चुनाव में भी ये मुद्दा हावी है। दरभंगा की सभा में पीएम ने कहा कि इनके राज में कमीशनखोरी का बोलबाला था। जो लाेग नौकरी को भी करोड़ों रुपए कमाने का जरिया बना लें, उससे लोगों को सावधान रहने की जरूरत है। पहले सरकार में रहने वालों का मंत्र रहा है कि पैसा हजम, परियोजना खत्म। उन्हें कमीशनखोरी शब्द के साथ इतना प्रेम था कि कनेक्टिविटी पर कभी ध्यान ही नहीं दिया।

आरक्षण : तब बैकफुट पर थे आज फ्रंटफुट पर खेल रहे हैं

तब नीतीश कुमार महागठबंधन का हिस्सा थे। अभी वे एनडीए में हैं।

2015 के चुनाव में आरक्षण सबसे बड़ा मुद्दा बना था। संघ प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान के बाद विपक्ष ने इसे सियासी हथियार बना लिया। मोदी को सामने आकर बचाव करना पड़ा था। छपरा में उन्होंने कहा था कि आरक्षण कोई छीन नहीं सकता है। इस बार भी पीएम ने दरभंगा से छपरा तक की रैली में आरक्षण के मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने सवर्ण गरीबों के लिए जो 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की है, उसका लाभ समाज के युवाओं को मिलना तय है. इसके साथ ही सरकार ने दलित, पिछड़े, अति-पिछड़े भाई बहनों के लिए आरक्षण को जो अगले 10 साल तक के लिए बढ़ा दिया है।

गाली : ये तब भी मुद्दा था अब भी है

पिछले चुनाव में मोदी ने कहा था कि ये लोग मोदी को गाली देने से थकते नहीं हैं। हर सुबह वे उठते हैं। डिक्शनरी में एक नई गाली ढूंढ़ते हैं और मुझ पर फेंक देते हैं। और अब जब डिक्शनरी की गलियां खत्म हो गई तो इनलोगों ने अब फैक्ट्री खोल ली है। इस बार भी छपरा में एक सभा के दौरान पीएम ने कहा कि वे इतने बौखला गए हैं कि अब उन्‍होंने मोदी को भी गाली देने लगे हैं। ठीक है मुझे गाली दे दीजिए, जो मन आए बोलिए, ल‍ेकिन अपना गुस्‍सा बिहार के लोगों पर मत उतारिए।

बिजली : तब नीतीश निशाने पर थे, आज उनकी ही वाहवाही होती है
पिछले चुनाव में मोदी लगभग हर सभा में बिजली का जिक्र करते थे। तब उनके टारगेट पर लालू से ज्यादा नीतीश थे। तब मोदी कहते थे कि नीतीश कुमार ने सबको बिजली देने का वादा किया था। उन्होंने कहा था कि सबको बिजली नहीं दिया तो वोट मांगने नहीं आऊंगा। वे भीड़ से पूछते थे क्या इन्होंने बिजली दिया, क्या इन्हें वोट मांगने का हक है। इसबार भी बिजली चुनावी मुद्दा है लेकिन नीतीश की जगह महागठबंधन और लालू परिवार निशाने पर हैं। मुजफ्फरपुर में मोदी ने कहा कि अब लालटेन काल का अंधेरा छट चुका है। गरीबों को बिजली मिल रही है। लोग एलईडी बल्ब की ओर बढ़ रहे हैं और जंगलराज वाले अभी भी लालटेन ही जलाना चाहते हैं।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
जिन मुद्दों को मोदी 5 साल पहले भुना रहे थे, इस बार चुनावी रैलियों में भी उन्हीं का जिक्र कर रहे हैं।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2HYi1yx
https://ift.tt/328TZrD

फेजवाइज इलेक्शन में वोटिंग के दिन रैली करते हैं मोदी, जानिए इसका असर कितना?

इसे मोदी का स्टाइल कहें या इलेक्शन की स्ट्रैटजी, लेकिन पिछले पांच साल से जहां फेजवाइज इलेक्शन हुए हैं, वहां वोटिंग के दिन मोदी कहीं न कहीं रैली करते ही हैं। ऐसा अक्सर देखने में आया है। जैसे आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में होंगे। यहां उनकी सहरसा और फारबिसगंज में 2 रैलियां हैं। आज ही 94 सीटों पर वोटिंग भी है।

ऐसा ही 28 अक्टूबर को भी हुआ। इस दिन भी मोदी बिहार में थे और इसी दिन 71 सीटों पर वोटिंग भी थी। भास्कर ने लोकसभा चुनाव और दो विधानसभा चुनावों का एनालिसिस कर ये जानने की कोशिश की कि मोदी की इस स्ट्रैटजी का क्या असर होता है।

बिहार विधानसभा चुनाव 2015

जब रैली की, तब दो फेज में 104 सीटों पर वोट पड़ रहे थे, भाजपा को 25 मिलीं

2015 में बिहार में 5 फेज में विधानसभा चुनाव हुए। पहले फेज यानी 12 अक्टूबर और चौथे फेज यानी 1 नवंबर को 104 सीटों के लिए वोटिंग की गई। दोनों ही दिन मोदी ने कैमूर, जहानाबाद, मधुबनी, कटिहार, मधेपुरा में रैलियां की थीं। असर ये हुआ कि जिन 104 सीटों पर रैलियों के दिन वोटिंग जारी थी, उनमें से भाजपा को 25 हासिल हुईं।

पहला फेज: मोदी ने इस दिन कैमूर और जहानाबाद में रैलियां कीं। इसी दिन 49 सीटों पर वोटिंग हुई थी। जिसमें से भाजपा सिर्फ 5 सीट ही जीत सकी। कैमूर और जहानाबाद में दूसरे फेज में वोटिंग हुई थी। जिसमें से भाजपा कैमूर की सभी चारों सीटें जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन जहानाबाद की तीनों सीटें हार गई थी।

चौथा फेज: मोदी ने इस दिन मधुबनी, कटिहार और मधेपुरा में रैली की। इसी दिन 55 सीटों पर वोटिंग थी। इनमें से भाजपा ने 20 सीटें जीती थीं। मधुबनी, कटिहार और मधेपुरा में 5वें फेज में वोटिंग हुई। भाजपा मधुबनी की 10 में से सिर्फ एक सीट जीत पाई। कटिहार में भी 7 में से 2 सीट ही जीत सकी। जबकि, मधेपुरा की चारों सीटों पर हार गई थी।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017

जब रैली की, तब 6 फेज में 363 सीटों पर वोट पड़ रहे थे, भाजपा को 287 मिलीं

2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा की 403 सीटों के लिए 7 फेज में चुनाव हुए थे। पहले फेज की वोटिंग 11 फरवरी और आखिरी फेज की वोटिंग 8 मार्च को हुई। मोदी ने 6 दिन तभी रैलियां कीं, जिस दिन वोटिंग थी।

पहला फेजः 11 फरवरी को वोटिंग थी। मोदी ने इस दिन बदायूं में रैली की। इस दिन 73 सीटों पर वोटिंग थी। इनमें से भाजपा ने 66 सीटें जीतीं।

दूसरा फेजः 15 फरवरी को वोटिंग थी। मोदी ने इस दिन कन्नौज में रैली की। इस दिन 67 सीटों पर वोटिंग थी। इनमें से भाजपा ने 50 सीटें जीतीं।

तीसरा फेजः 19 फरवरी को वोटिंग थी। मोदी ने इस दिन फतेहपुर में रैली की। इस दिन 70 सीटों पर वोटिंग थी। इनमें से भाजपा ने 56 सीटें जीतीं।

चौथा फेजः 23 फरवरी को वोटिंग थी। मोदी ने इस दिन बहराइच और बस्ती में रैली की। इस दिन 54 सीटों पर वोटिंग थी। इनमें से भाजपा ने 41 सीटें जीतीं।

5वां फेजः 27 फरवरी को वोटिंग थी। मोदी ने इस दिन मऊ में रैली की। इस दिन 50 सीटों पर वोटिंग थी। इनमें से भाजपा ने 42 सीटें जीतीं।

6वां फेजः 4 मार्च को वोटिंग थी। मोदी ने इस दिन जौनपुर और वाराणसी में रैली की। इस दिन 49 सीटों पर वोटिंग थी। इनमें से भाजपा ने 32 सीटें जीतीं।

लोकसभा चुनाव 2019

जब रैली की, तब 77 सीटों पर वोटिंग हुई थी, इनमें से भाजपा 55 सीटें जीती

2019 में हुए लोकसभा चुनाव में 7 फेज में वोटिंग हुई थी। इनमें से 13 राज्य ऐसे थे, जिनमें एक से ज्यादा फेज में वोटिंग हुई थी। पहले फेज की वोटिंग 11 अप्रैल को और आखिरी फेज की वोटिंग 19 मई को हुई थी। इस चुनाव में मोदी ने 6 दिन तभी रैलियां की थीं, जिस दिन वोटिंग थी।

पहला फेजः 11 अप्रैल को वोटिंग थी। मोदी ने इस दिन असम और बिहार में रैली की। इसी दिन असम की 5 और बिहार की 4 सीटों पर वोटिंग भी थी। इनमें से भाजपा ने असम की 4 और NDA ने बिहार की चारों सीटें जीतीं।

दूसरा फेजः 18 अप्रैल को वोटिंग थी। मोदी ने इस दिन गुजरात, कर्नाटक और केरल में रैलियां की थीं। गुजरात और केरल में तो एक ही फेज में वोटिंग थी। जबकि, 18 अप्रैल को कर्नाटक की 14 सीटों पर वोटिंग थी। इनमें से भाजपा ने 11 सीटें जीतीं।

तीसरा फेजः 23 अप्रैल को वोटिंग थी। मोदी ने इस दिन गुजरात, ओडिशा और पश्चिम बंगाल पहुंचे। इसी दिन गुजरात की सभी 26, ओडिशा की 6 और पश्चिम बंगाल की 5 सीटों पर वोटिंग थी। इनमें से भाजपा ने गुजरात की सभी 26, ओडिशा और पश्चिम बंगाल की 2-2 सीटें जीती थीं। हालांकि, इस दिन मोदी गुजरात में वोट डालने गए थे।

चौथा फेजः 29 अप्रैल को वोटिंग थी। मोदी ने इस दिन पश्चिम बंगाल और झारखंड में रैलियां कीं। इसी दिन पश्चिम बंगाल की 7 और झारखंड की 3 सीटों पर वोटिंग थी। इनमें से भाजपा ने पश्चिम बंगाल और झारखंड की 3-3 सीटें जीती थीं।

5वां फेजः 6 मई को वोटिंग थी। मोदी ने इस दिन पश्चिम बंगाल और झारखंड में रैली की। इसी दिन पश्चिम बंगाल की 7 और झारखंड की 4 सीटों पर वोटिंग थी। इनमें से भाजपा ने झारखंड की सभी 4 और पश्चिम बंगाल की तीन सीटें जीतीं।

6वां फेजः 12 मई को वोटिंग थी। मोदी ने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में रैली की। इसी दिन उत्तर प्रदेश की 14 और मध्य प्रदेश की 8 सीटों पर वोटिंग थी। इनमें से भाजपा ने उत्तर प्रदेश की 11 और मध्य प्रदेश की आठों सीटें जीतीं।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Narendra Modi Election Rally Analysis Update | Bihar Chunav Rally 2020 Vs Uttar Pradesh Election Campaign 2017 Vs Lok Sabha 2019


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2I1Z91G
https://ift.tt/3oPgs6Q

पढ़िए आजाद होने के बाद भारत ने दुनियाभर के देशों को पहला संदेश क्या दिया?

आजाद भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर जवाहर लाल नेहरू ने 3 नवंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) को संबोधित किया था। पेरिस में तीसरे UNGA में कई विषयों पर बोलते हुए नेहरू ने इस अंतरराष्ट्रीय संगठन को भविष्य की राह दिखाई थी। उन्होंने कहा था कि नफरत और हिंसा से दुनिया की समस्या का समाधान नहीं निकलने वाला। इसके लिए आर्थिक समस्याओं को दूर करना होगा।

आज अक्सर यूनाइटेड नेशंस के प्रभाव और प्रासंगिकता पर सवाल उठते हैं, लेकिन नेहरू का भाषण ध्यान में रखने की आवश्यकता है। नेहरू ने UN में अपने पहले भाषण में कहा था कि मैं ऐसे देश से आया हूं, जिसने लंबे, शांतिपूर्ण संघर्ष के बाद आजादी पाई है। हमारे महान नेता (महात्मा गांधी) ने संघर्ष के दिनों में हमें सिखाया कि अच्छे उद्देश्य को हासिल करना है, तो रास्ते भी अच्छे होने चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि युद्ध का डर क्यों होना चाहिए? आइए, हम अपने आपको हर तरह की आक्रामकता के खिलाफ तैयार करें। यूनाइटेड नेशंस यहां किसी भी डर और चोट से बचाने के लिए है, लेकिन हम सभी को आक्रामकता के विचार को त्यागना होगा, फिर चाहे वह शब्द से हो या काम से।

लाईकाः सोवियत डॉग कॉस्मोनट

सोवियत सैटेलाइट में बैठी लाईका।

1957 में 3 नवंबर को ही सोवियत संघ ने स्पूतनिक 2 लॉन्च किया, जिसमें लाईका नाम के एक कुत्ते को भी अंतरिक्ष में पृथ्वी की कक्षा में भेजा गया था। इस तरह लाईका ने इतिहास रच दिया। वह स्पेस में जाने वाली पहली जीवित प्राणी बनीं। लाईका 6 किलो की थी। वह दो साल की मिक्स ब्रीड फीमेल डॉग थी। सोवियत स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम के लिए उसे सड़कों से उठाया गया था। छोटी जगहों पर मेल डॉग्स के मुकाबले फीमेल डॉग्स बेहतर ढंग से एडजस्ट कर सकते हैं, इस वजह से लाईका को चुना गया। उसे सैटेलाइट में जीवित रहने की स्किल भी सिखाई गई थी। उसे लेकर गया सैटेलाइट 14 अप्रैल 1958 को पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते समय नष्ट हो गया था। हालांकि, वह कितने समय जीवित रही, यह एक बड़ा रहस्य है। रूसी भाषा में लाईका भौंकने को कहा जाता है, और वहीं से इसका नाम पड़ा। मॉस्को में 2008 में लाईका की मूर्ति के साथ एक छोटा सा स्मारक भी बनाया गया है।

वन वर्ल्ड ट्रेड सेंटर का लॉन्च

वन वर्ल्ड सेंटर, जिसे फ्रीडम टॉवर भी कहा जाता है।

न्यूयाॅर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर ट्विन टावर पर 11 सितंबर 2001 को हुए अलकायदा के आतंकी हमले ने अमेरिका को गहरा आघात दिया, लेकिन यह देश साहस दिखाते हुए इस त्रासदी से जल्द उबरा और आतंक के जवाब में उसी जगह 3 नवंबर 2014 में वन वर्ल्ड ट्रेड सेंटर नाम की ऊंची इमारत खड़ी कर दी। वन वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को न्यूयॉर्क के मैनहट्टन में 9/11 हमले वाली उसी जगह पर बनाया गया है, जहां ट्विन टावर थे। इस इमारत की ऊंचाई 541 मीटर है और गुंबद के उच्च शिखर तक ऊंचाई 546 मीटर है। 104 मंजिल हैं। हमले के 13 साल बाद इसका निर्माण पूरा हुआ। इस निर्माण पर 3.9 अरब डाॅलर खर्च हुए। वन वर्ल्ड ट्रेड सेंटर इमारत को मजबूत बनाने के लिए इसके पिलर जमीन में 200 फुट गहराई तक ले जाए गए हैं। इस बिल्डिंग में 10 हजार मजदूरों ने बम निरोधक 20 मंजिला बेस सेट तैयार किया। भवन की 102वीं मंजिल पर ऑब्जर्वेशन डेक है। इसके व आसपास के इलाके में सुरक्षा के लिए 200 पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं।

भारत और विश्व इतिहास में 3 नवंबर की प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं:

  • 1493ः क्रिस्टोफर कोलंबस ने डोमिनिका द्वीप की खोज की।
  • 1762ः ब्रिटेन और स्पेन के बीच पेरिस की संधि हुई।
  • 1903ः पनामा को कोलंबिया से आजादी मिली।
  • 1962ः चीन के हमले के मद्देनजर भारत में गोल्ड बाॅन्ड स्कीम की घाेषणा की गई।
  • 1984ः भारत में सिख विरोधी दंगों में तीन हजार से ज्यादा लोग मारे गए।
  • 1988ः वायु सेना ने आगरा से एक पैराशूट बटालियन समूह को लिया।
  • 2000ः भारत सरकार ने डायरेक्ट-टू-होम (D2H) प्रसारण सेवा सभी के लिए शुरू की।
  • 2001ः अमेरिका ने लश्कर व जैश-ए-मोहम्मद पर प्रतिबंध लगाया।


आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Today History for November 3rd/ What Happened Today | Nehru adressed UNGA For the First Time Representing Independent India | The Story of Laika, a Female Dog To create History | One World Trade Centre Inaugurated


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3oQJovj
https://ift.tt/2JvM4hL

बिहार चुनाव में सोनू सूद ने तेजस्वी यादव के लिए वोट मांगा? जानें वायरल फोटो का सच

क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर अभिनेता सोनू सूद की एक फोटो वायरल हो रही है। जिसमें वे एक पोस्टर हाथ में लिए दिख रहे हैं। पोस्टर पर लिखा है- मतदान करें पलायन मुक्त बिहार के लिए। तेजस्वी भव: बिहार।

फोटो के आधार पर दावा किया जा रहा है कि सोनू सूद ने बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव के लिए वोट मांगा। सोनू सूद लॉकडाउन के दौरान पलायन कर रहे बिहारी मजदूरों की मदद करने को लेकर काफी चर्चा में रहे थे।

और सच क्या है ?

  • दावे की पुष्टि के लिए हमने सबसे पहले अभिनेता सोनू सूद का ऑफिशियल ट्विटर हैंडल चेक किया। जिससे पता चल सके कि उन्होंने पिछले दिनों तेजस्वी यादव के समर्थन में कुछ पोस्ट किया है या नहीं।
  • सोनू सूद का 28 अक्टूबर का एक ट्वीट हमें मिला। जिसमें उन्होंने बिहार के वोटरों से दिमाग लगाकर वोट देने की अपील की है। साथ ही पलायन का मुद्दा भी उठाया है। हालांकि, इस ट्वीट में सोनू ने तेजस्वी को वोट देने की अपील नहीं की है।
  • गूगल पर अलग-अलग की-वर्ड सर्च करने से भी हमें इंटरनेट पर ऐसी कोई खबर नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि सोनू सूद ने तेजस्वी यादव के लिए वोट मांगा है।
  • फोटो को ध्यान से देखने पर साफ हो रहा है कि किसी दूसरे पोस्टर के ऊपर बिहार चुनाव का पोस्टर लगाकर एडिटिंग की गई है।
  • वायरल हो रही फोटो को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से कुछ सोशल मीडिया पोस्ट में हमें सोनू की यही फोटो मिली। इसमें सोनू बिहार चुनाव का पोस्टर नहीं, बल्कि एक पेंटिंग रखे हुए हैं। फोटो देखने पर साफ हो रहा है कि ये एडिटेड नहीं है।

  • दैनिक जागरण वेबसाइट की रिपोर्ट में भी हमें सोनू सूद की यही फोटो मिली। इस फोटो में सोनू बिहार चुनाव का पोस्टर नहीं, एक पेंटिंग हाथ में लिए हुए हैं।
  • जमशेदपुर के कलाकार अर्जुन दास ने सोनू सूद द्वारा लॉकडाउन में मजदूरों के हित में किए प्रयासों को कैनवास पर उकेरा था। अर्जुन ने मुंबई जाकर सोनू को अपनी वही पेंटिंग उपहार में दी थी। साफ है कि इसी फोटो को एडिट कर झूठ फैलाया जा रहा है।


आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Fact Check: Sonu Sood campaigned for Tejashwi Yadav during the Bihar election? Know the truth of photo getting viral on social media


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2JvLvEF
https://ift.tt/326IVeM

इस दिन बनेंगे 4 राजयोग सहित आधा दर्जन शुभ योग; पिछले 100 सालों में नहीं बनी ऐसी ग्रह स्थिति

इस साल करवा चौथ पर 4 राजयोग सहित करीब आधा दर्जन शुभ योग बन रहे हैं। काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र का कहना है कि इससे पहले करवा चौथ पर इतने शुभ योग पिछले 100 सालों में नहीं बने। 4 नवंबर बुधवार को करवा चौथ यानी सौभाग्य पर्व पर शिव, अमृत और सर्वार्थसिद्धि योग बन रहे हैं। वहीं, शंख, गजकेसरी, हंस और दीर्घायु नाम के राजयोग भी बन रहे हैं।

करवा चौथ पर जब चंद्रमा और पति की पूजा की जाएगी, उस दौरान गोचर कुंडली में बृहस्पति दांपत्य जीवन के भाव में अपनी ही राशि के साथ रहेगा। ये स्थिति सौभाग्य बढ़ाने वाली रहेगी, जिससे ये पर्व और भी शुभ हो जाएगा।

चतुर्थी और बुधवार का संयोग
इस बार सौभाग्य पर्व पर बुधवार और चतुर्थी के संयोग में होने वाली गणेश पूजा का फल और बढ़ जाएगा। इस बार करवा चौथ व्रत मृगशिरा नक्षत्र में किया जा रहा है। इस नक्षत्र का स्वामी मंगल होने से ये व्रत समृद्धि बढ़ाने वाला रहेगा। इस दिन सूर्योदय भी चतुर्थी तिथि में होगा और चंद्रोदय भी। पिछले कुछ सालों में कई बार ऐसा हुआ है, जब चतुर्थी तिथि 2 दिन तक रही और व्रत को लेकर असमंजस की स्थिति बनी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा।

शुभ संयोग का असर
पं. मिश्रा बताते हैं कि करवा चौथ पर तिथि, वार, नक्षत्र और ग्रहों का महासंयोग बनने से व्रत और पूजा का पूरा फल मिलेगा। जिससे सौभाग्य के साथ समृद्धि भी बढ़ेगी। इस करवा चौथ पर व्रत से पति-पत्नी में प्रेम बढ़ेगा और घर में सुख-समृद्धि बढ़ेगी। शुभ संयोगों में पूजा होने से महिलाओं को रोग और शोक से छुटकारा मिल सकता है। इतने सारे शुभ संयोग होने से ये पर्व मनोकामनाएं पूरी करने वाला रहेगा।

महाभारत काल से चली आ रही परंपरा
हिंदू कैलेंडर का आठवां महीना कार्तिक होता है। पुराणों में इस महीने के लिए कहा गया है कि ये सौभाग्य और समृद्धि बढ़ाने वाला है। इस महीने के चौथे ही दिन करवा चौथ व्रत किया जाता है। पं. मिश्रा के मुताबिक महाभारत काल से ये व्रत किया जा रहा है। कृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने अर्जुन के लिए इस व्रत को किया था।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Karwa Chauth 2020 Shubh Sanyog For Good Luck Grah Nakshatra And Planets Position


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3oQknAq
https://ift.tt/35VsJOB

प्ले-ऑफ में जगह पक्की करने के लिए सनराइजर्स को जीत जरूरी, हारी तो कोलकाता की एंट्री तय

IPL के 13वें सीजन का 56वां मैच आज मुंबई इंडियंस और सनराइजर्स हैदराबाद के बीच शारजाह में शाम 7:30 बजे से खेला जाएगा। मुंबई पहले ही प्ले-ऑफ में जगह बना चुकी है। हैदराबाद की नेट रनरेट मुंबई के बाद सबसे अच्छा है। ऐसे में उसे टॉप-4 में अपनी जगह पक्की करने के लिए हर हाल में इस मैच को जीतना होगा।

अगर वह इस मैच में जीत दर्ज नहीं कर पाई, तो लीग में उसका सफर यहीं समाप्त हो जाएगा और कोलकाता नाइट राइडर्स प्ले-ऑफ में जगह बना लेगी।

रोहित शर्मा खेल सकते हैं
चोट की वजह से 4 मैचों में बाहर बैठे कप्तान रोहित शर्मा इस मैच खेल सकते हैं। उनकी गैर-मौजूदगी में कीरोन पोलार्ड अपनी टीम की कप्तानी संभाल रहे थे। रोहित को किंग्स इलेवन पंजाब के खिलाफ चोट लगी थी।

मुंबई टॉप पर, हैदराबाद 5वें स्थान पर
पॉइंट्स टेबल की बात करें, तो मुंबई ने 13 मैचों में से 9 जीते और 4 हारे हैं। 18 पॉइंट्स के साथ वह टॉप पर है। वहीं, हैदराबाद ने 13 में से सिर्फ 6 जीते और 7 हारे हैं। 12 पॉइंट्स के साथ वह 5वें स्थान पर है।

पिछले मुकाबले में मुंबई ने हैदराबाद को हराया था
पिछली बार जब दोनों टीमें आमने-सामने आईं थीं, तब मुंबई ने हैदराबाद को 34 रन से हराया था। शारजाह में ही खेले गए सीजन के 17वें मैच में मुंबई ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 5 विकेट पर 208 रन बनाए थे। जवाब में हैदराबाद 7 विकेट पर 174 रन ही बना पाई थी।

डिकॉक-किशन मुंबई के टॉप स्कोरर
मुंबई के लिए सबसे ज्यादा रन बनाने के मामले में क्विंटन डिकॉक पहले और ईशान किशन दूसरे स्थान पर हैं। डिकॉक ने सीजन में अब तक 418 और किशन ने 395 रन बनाए हैं। इसके बाद सूर्यकुमार यादव ने 374 रन बनाए हैं।

वॉर्नर-पांडे हैदराबाद के टॉप स्कोरर
हैदराबाद के कप्तान डेविड वॉर्नर ने सीजन में अपनी टीम के लिए सबसे ज्यादा 444 रन बनाए हैं। इसके बाद मनीष पांडे का नंबर है, उन्होंने सीजन में अब तक 380 रन बनाए हैं। जॉनी बेयरस्टो ने भी सीजन में 345 रन बनाए हैं।

मुंबई के गेंदबाज फॉर्म में
मुंबई के गेंदबाज पूरे सीजन में शानदार फॉर्म में रहे हैं। सीजन में जसप्रीत बुमराह ने 23, ट्रेंट बोल्ट ने 20 और राहुल चाहर ने 15 विकेट लिए हैं। वहीं, जेम्स पैटिंसन ने भी सीजन में 11 बल्लेबाजों को पवेलियन का रास्ता दिखाया है।

हैदराबाद की गेंदबाजी का जिम्मा राशिद खान पर
हैदराबाद की गेंदबाजी की जिम्मेदारी राशिद खान पर रहेगी। राशिद ने सीजन में अब तक 18 विकेट लिए हैं। इसके अलावा टी नटराजन ने 14 और संदीप शर्मा ने 10 विकेट लिए हैं।

मुंबई-हैदराबाद के महंगे प्लेयर्स
मुंबई में कप्तान रोहित शर्मा सबसे महंगे खिलाड़ी हैं। टीम उन्हें एक सीजन का 15 करोड़ रुपए देगी। उनके बाद टीम में हार्दिक पंड्या का नंबर आता है, उन्हें सीजन के 11 करोड़ रुपए मिलेंगे। वहीं, हैदराबाद के सबसे महंगे खिलाड़ी डेविड वॉर्नर हैं। उन्हें फ्रेंचाइजी सीजन का 12.50 करोड़ रुपए देगी। इसके बाद टीम के दूसरे महंगे खिलाड़ी मनीष पांडे (11 करोड़) हैं।

मौसम रिपोर्ट
शारजाह में आसमान साफ रहेगा। तापमान 22 से 33 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। शारजाह में पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां स्लो विकेट होने के कारण स्पिनर्स को भी काफी मदद मिलेगी। शारजाह में टॉस जीतने वाली टीम पहले बल्लेबाजी करना पसंद करेगी। शारजाह में पिछले 13 टी-20 में पहले बल्लेबाजी वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 69% रहा है।

  • इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 13
  • पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 9
  • पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 4
  • पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 149
  • दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 131

मुंबई ने सबसे ज्यादा 4 बार खिताब जीता
आईपीएल इतिहास में मुंबई ने सबसे ज्यादा 4 बार (2019, 2017, 2015, 2013) खिताब जीता है। पिछली बार उसने फाइनल में चेन्नई को 1 रन से हराया था। मुंबई ने अब तक 5 बार फाइनल खेला है। वहीं, हैदराबाद ने 2 बार (2009 और 2016) खिताब अपने नाम किया।

आईपीएल में मुंबई का सक्सेस रेट हैदराबाद से ज्यादा
मुंबई ने आईपीएल में अब तक 200 मैच खेले हैं। 118 में उसे जीत मिली है, जबकि 82 में उसे हार का सामना करना पड़ा है। लीग में मुंबई का सक्सेस रेट 59.00% है। वहीं, हैदराबाद ने अब तक लीग में 121 मैच खेले हैं। 64 में उसे जीत मिली है, जबकि 57 में उसे हार का सामना करना पड़ा है। लीग में हैदराबाद का सक्सेस रेट 53.30% है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
IPL 2020 MI vs SRH Head To Head Record; Predicted Playing DREAM11, IPL Match Preview Update


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2GqJAQC
https://ift.tt/35XeNDN

Popular Post