गुरुवार, 12 नवंबर 2020

सीतारमण की प्रेस कॉन्फ्रेंस कुछ देर में, इकोनॉमी बूस्टअप के लिए कर सकती हैं 1.5 लाख करोड़ का ऐलान

सरकार एक बार फिर राहत पैकेज का ऐलान कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक, दिवाली से पहले सरकार देश को 1.5 लाख करोड़ रुपए के पैकेज का तोहफा दे सकती है। इस पर आज दोपहर वित्त मंत्री सीतारमण प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगी। इससे पहले बुधवार को सरकार प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव्स (PLI) के तहत 1.46 लाख करोड़ रुपए देने का ऐलान कर चुकी है।

मुश्किल वाले सेक्टर्स पर होगा फोकस
रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार मुश्किल वाले सेक्टर्स पर फोकस करेगी। इसके जरिए वह अर्थव्यवस्था को उबारने की कोशिश करेगी। कैबिनेट ने बुधवार को ही बैठक में 10 सेक्टर्स में प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव्स (PLI) लागू करने की मंजूरी दे दी है। PLI के तहत अगले 5 सालों में 1.46 लाख करोड़ रुपए दिए जाएंगे। सूत्रों के मुताबिक, 57 हजार करोड़ रुपए की अधिकतम इंसेंटिव हासिल करने वाले सेक्टर्स में ऑटो कंपोनेंट्स और ऑटोमोबाइल सेक्टर्स हो सकते हैं।

इसके अलावा, जिन सेक्टर्स को इसका फायदा होगा, उनमें एडवांस सेल केमिस्ट्री, बैटरी, फार्मा, फूड प्रोडक्ट्स और व्हाइट गुड्स शामिल हैं। इस स्कीम के तहत केंद्र सरकार एक्स्ट्रा प्रोडक्शन पर कंपनियों को इंसेंटिव्स और उन्हें एक्सपोर्ट करने की भी मंजूरी देगी। पिछले महीने नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने ऐलान किया था कि सरकार प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव्स लेकर आएगी ताकि घरेलू मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर्स को सपोर्ट किया जा सके।

उन्होंने कहा था कि PLI स्कीम का मकसद देश में पैसा लगाने वाले निवेशकों को इनसेंटिव्स देना है, ताकि घरेलू कंपनियों को भी दुनिया के बराबर लाया जा सके।

दो मुद्दों पर होगा फोकस
अगले राहत पैकेज में दो मुद्दों पर फोकस रहने वाला है। पहला है ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार कैसे दिया जाए, इस पर इस राहत पैकेज में फोकस हो सकता है। इसके लिए सरकार PF (प्रॉविडेंड फंड) के जरिए 10 फीसदी सब्सिडी देने का ऐलान कर सकती है।

दूसरे कदम के तहत सरकार केवी कामत कमेटी द्वारा पहचाने गए दबाव और परेशानी से गुजर रहे सभी 26 सेक्टरों के लिए इमरजेंसी क्रेडिट की व्यवस्था कर सकती है। अलग-अलग सेक्टर के लिए अलग-अलग राहत दी जा सकती है।

कर्मचारी के पीएफ का 10% हिस्सा सरकार देगी
जो नए कर्मचारी होंगे, उनके पीएफ का 10% हिस्सा सरकार देगी और कर्मचारी के लिए जो एम्प्लॉयर का योगदान होता है, उसमें भी सरकार 10% हिस्सा देगी। इसको सरकार प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना के तहत नए रूप में पेश कर सकती है।



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अगले राहत पैकेज में दो मुद्दों पर फोकस रहने वाला है। पहला मुद्दा है रोजगार। ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार कैसे दिया जाए, इस पर इस राहत पैकेज में फोकस हो सकता है।


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लगातार दूसरे दिन पूछताछ के लिए NCB ऑफिस पहुंचीं अर्जुन रामपाल की गर्लफ्रेंड, कल अभिनेता से कल हो सकती है पूछताछ

एक्टर अर्जुन रामपाल की गर्लफ्रेंड गैब्रिएला डेमेट्रिएडिस से गुरुवार लगातार दूसरे दिन नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो फिर से पूछताछ करेगा। गैब्रिएला एनसीबी ऑफिस पहुंच चुकी हैं। उनसे पूछताछ खत्म हो जाने के बाद एनसीबी अर्जुन रामपाल को शुक्रवार या शनिवार को समन देकर बुलाएगा। गुरुवार को गैब्रिएला अपने घर से एनसीबी ऑफिस जाने के लिए अर्जुन रामपाल के साथ निकली थीं लेकिन एनसीबी ऑफिस वे अकेले पहुंचीं। फिलहाल उनसे एनसीबी अधिकारियों की पूछताछ जारी है।

एनसीबी ऑफिसर समीर वानखेड़े ने बताया कि गैब्रिएला को दोबारा बुलाया है। क्योंकि जांच अभी पूरी नहीं हुई। NCB सूत्रों के मुताबिक, इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस से मिले सुराग के बाद टीम गैब्रिएला तक पहुंचीं। इससे पहले गैब्रिएला को बुधवार सुबह 11 बजे एनसीबी ऑफिस में बुलाया था, लेकिन वह करीब 12.30 के एनसीबी ऑफिस पहुंचीं। उनसे शाम को करीब 6 बजे तक पूछताछ हुई। सूत्र बताते हैं कि एनसीबी को उनकी ओर से संतोषजनक जवाब नहीं मिले थे, इसलिए गुरुवार को उन्हें फिर बुलाया गया है। एनसीबी के हाथ इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस रिपोर्ट भी आ गई है, इसी को दिखाकर गैब्रिएला से सवाल किए जाएंगे।

घर से निकलने के दौरान अर्जुन रामपाल भी अपनी गर्लफ्रेंड के साथ थे।

छापेमारी में मिली थीं प्रतिबंधित दवाएं
रिपोर्ट्स के मुताबिक, अर्जुन रामपाल के घर पर छापेमारी के दौरान कुछ प्रतिबंधित दवाएं मिली थीं। एनसीबी के अधिकारियों का कहना है कि अर्जुन और गैब्रिएला को यह जवाब देना होगा कि उनके पास ये दवाएं कहां से आई हैं और क्या इसके लिए उनके पास कोई लीगल प्रिस्क्रिप्शन है या नहीं। इसके अलावा उनके घर से कुछ मोबाइल फोन और लैपटॉप सीज किए गए हैं।

जांच एजेंसी ने सोमवार को रामपाल के ड्राइवर को भी हिरासत में लेकर कई घंटे तक पूछताछ की थी। अभिनेता के घर सोमवार सुबह छापा मारा गया था।

NCB ने पिछले महीने गैब्रिएला डेमेट्रियड्स के भाई अगिसिलाओस को गिरफ्तार किया था। अगिसिलाओस के पास चरस और अल्प्राजोलम टैबलेट मिली थी। NCB ने उसे लोनावाला से गिरफ्तार किया था। उससे मिले सुराग के आधार पर अब अर्जुन रामपाल के घर पर छापा मारा। दैनिक भास्कर ने 1 अक्टूबर को ही अर्जुन रामपाल के ड्रग्स कनेक्शन के बारे में बता दिया था।

NCB ने ड्रग पैडलर्स की चेन ट्रैक की

जांच एजेंसी के मुताबिक, अगिसिलाओस ड्रग्स सप्लाई करता था। बताया जा रहा है कि जांच एजेंसी ने उसकी सप्लाई चेन से जुड़े सबूत भी जुटाए हैं। इस चेन में शामिल दूसरे ड्रग पैडलर्स को भी आरोपी बनाया गया है। बता दें कि ड्रग्स के केस में अब तक रिया चक्रवर्ती समेत लगभग 26 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। रिया चक्रवर्ती को अक्टूबर के महीने में कोर्ट से जमानत मिली थी। उन्होंने 28 दिन न्यायिक हिरासत में गुजारे। रिया से पहले उनके भाई शोविक चक्रवर्ती को गिरफ्तार किया गया था। वे अभी भी कस्टडी में हैं और उनकी बेल अर्जी एक बार फिर से खारिज कर दी गई है।



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गैब्रिएला डेमेट्रिएडिस अपने वकील के साथ एनसीबी ऑफिस में पूछताछ के लिए पहुंची हैं।


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स्कॉर्पीन क्लास की 5वीं पनडुब्बी वागीर लॉन्च, इस तरह की छह में से पांच पनडुब्बियां मिल चुकी हैं

मुंबई के मझगांव डॉक पर स्कॉर्पीन क्लास की 5वीं पनडुब्बी वागीर गुरुवार को नौसेना में शामिल हुई। रक्षा राज्य मंत्री श्रीपद नाइक ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इसका लोकार्पण कराया। भारत प्रोजेक्ट-75 के तहत स्कॉर्पीन क्लास की पांच पनडुब्बी तैयार कर चुका है। छठी पनडुब्बी आईएनएस वागशीर पर काम एडवांस स्टेज में पहुंच चुका है।

मझगांव डॉक शिप बिल्डर्स लिमिटेड और फ्रांस की कंपनी नेवल ग्रुप (डीसीएनएस) के सहयोग से स्कॉर्पीन क्लास सबमरीन के प्रॉजेक्ट पर काम चल रहा है। दोनों कंपनियों के बीच 6 सबमरीन तैयार करने लिए 2005 में करार हुआ था।

सबमरीन की खासियत
इन सबमरीन से नौसेना की ताकत काफी बढ़ जाएगी। यह सभी स्कॉर्पीन सबमरीन एंटी-सरफेस वॉरफेयर, एंटी-सबमरीन वॉरफेयर, खुफिया जानकारी जुटाना, माइन बिछाने और एरिया सर्विलांस का काम कर सकती हैं।

शाही अंदाज में पनडुब्बी को नौसेना में शामिल किया गया।

पहली सबमरीन 3 साल पहले मिली थी
दिसंबर 2017 में नौसेना को पहली स्कॉर्पीन क्लास की सबमरीन मिली थी। इस सीरीज की पहली पनडुब्बी का नाम INS कलवरी है। INS खंडेरी (जनवरी 2017) और INS करंज (31 जनवरी 2018) पहले ही भारतीय नौसेना में शामिल हो चुकी हैं। यह दोनों एडवांस स्टेज की सबमरीन हैं।



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Vagir Launch, 5th submarine of Scorpene class, five of six submarines have been found


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24 घंटे में करीब 5 हजार एक्टिव केस कम हुए, इनमें से 4351 अकेले महाराष्ट्र में, 16 राज्यों में मरीज बढ़े

देश के कुछ राज्यों में एक्टिव केस में हो रही बढ़ोतरी चिंता का सबब बन गया है। बुधवार को देश में 4 हजार 988 एक्टिव केस बढ़े, इनमें से अकेले महाराष्ट्र में ही 4 हजार 351 मरीज कम हुए। 17 राज्यों में एक्टिव केस कम हुए हैं तो 16 राज्यों में बढ़े हैं। सबसे ज्यादा 1244 मरीज दिल्ली में बढ़े हैं।

बुधवार को देश में कुल 48 हजार 285 केस आए, 52 हजार 704 मरीज ठीक हो गए, 550 की मौत हो गई। अब तक कुल 86.84 लाख केस आ चुके हैं। 80.64 लाख मरीज ठीक हो चुके हैं, 1.28 लाख मरीजों की मौत हो चुकी है, जबकि 4.89 लाख का इलाज चल रहा है।

कोरोना अपडेट्स

  • पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए बुधवार को बड़ा फैसला किया। यहां 2021 में 10वीं और 12वीं के स्टूडेंट्स बिना परीक्षा पास किए जाएंगे।
  • दिल्ली हाईकोर्ट ने लोगों के जमावड़े और ट्रांसपोर्ट से जुड़ी पाबंदियों में ढील देने पर केजरीवाल सरकार को फटकार लगाई है। अदालत ने सरकार से पिछले दो हफ्ते में कोरोना की रोकथाम के लिए किए गए उपायों पर स्टेटस रिपोर्ट भी मांगी।
  • दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में कोरोना की तीसरी लहर ज्यादा दिन तक चल सकती है। इसमें पिछली बार से ज्यादा केस आ सकते हैं।
  • हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने भी प्रदेश सरकार से पूछा है कि राज्य में कोरोना से बिगड़ रहे हालात पर आप क्या कदम उठा रहे हैं? जवाब शुक्रवार को दाखिल करना है।

पांच राज्यों का हाल

1. मध्यप्रदेश

राज्य में बुधवार को 883 कोरोना मरीज मिले। 691 लोग रिकवर हुए और 13 संक्रमितों की मौत हो गई। अब तक 1 लाख 79 हजार 951 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 8328 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 1 लाख 68 हजार 568 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण के चलते अब तक 3055 मरीजों की मौत हो चुकी है।

2. राजस्थान

बुधवार को राज्य में 2080 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए। इसी के साथ मरीजों का आंकड़ा अब 2 लाख 17 हजार 151 हो गया है। इनमें 16 हजार 993 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 1 लाख 98 हजार 139 लोग ठीक हो चुके हैं। अब तक संक्रमण के चलते 2019 मरीजों की मौत हो चुकी है।

3. बिहार

पिछले 24 घंटे के अंदर 702 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए। इसी के साथ मरीजों का आंकड़ा अब 2 लाख 24 हजार 977 हो गया है। इनमें 6392 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 2 लाख 17 हजार 422 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण से जान गंवाने वालों की संख्या अब 1162 हो गई है।

4. महाराष्ट्र

राज्य में बुधवार को 4907 नए मरीज मिले। 9164 लोग रिकवर हुए और 125 संक्रमितों की मौत हो गई। अब तक राज्य में 17 लाख 31 हजार 833 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 88 हजार 70 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 15 लाख 97 हजार 255 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण से अब तक 45 हजार 560 लोगों की मौत हो चुकी है।

5. उत्तरप्रदेश

राज्य में बुधवार को संक्रमण के 1848 नए केस आए। 2112 मरीज ठीक हुए और 20 की मौत हो गई। अब तक 5 लाख 3 हजार 159 लोग संक्रमित हो चुके हैं। इनमें से 22 हजार 562 मरीजों का इलाज चल रहा है। 4 लाख 73 हजार 316 संक्रमित ठीक हो चुके हैं, जबकि 7281 की मौत हो चुकी है।



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24 घंटे में करीब 5 हजार एक्टिव केस कम हुए, इनमें से 4351 अकेले महाराष्ट्र में, 16 राज्यों में मरीज बढ़े

देश के कुछ राज्यों में एक्टिव केस में हो रही बढ़ोतरी चिंता का सबब बन गया है। बुधवार को देश में 4 हजार 988 एक्टिव केस बढ़े, इनमें से अकेले महाराष्ट्र में ही 4 हजार 351 मरीज कम हुए। 17 राज्यों में एक्टिव केस कम हुए हैं तो 16 राज्यों में बढ़े हैं। सबसे ज्यादा 1244 मरीज दिल्ली में बढ़े हैं।

बुधवार को देश में कुल 48 हजार 285 केस आए, 52 हजार 704 मरीज ठीक हो गए, 550 की मौत हो गई। अब तक कुल 86.84 लाख केस आ चुके हैं। 80.64 लाख मरीज ठीक हो चुके हैं, 1.28 लाख मरीजों की मौत हो चुकी है, जबकि 4.89 लाख का इलाज चल रहा है।

कोरोना अपडेट्स

  • पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए बुधवार को बड़ा फैसला किया। यहां 2021 में 10वीं और 12वीं के स्टूडेंट्स बिना परीक्षा पास किए जाएंगे।
  • दिल्ली हाईकोर्ट ने लोगों के जमावड़े और ट्रांसपोर्ट से जुड़ी पाबंदियों में ढील देने पर केजरीवाल सरकार को फटकार लगाई है। अदालत ने सरकार से पिछले दो हफ्ते में कोरोना की रोकथाम के लिए किए गए उपायों पर स्टेटस रिपोर्ट भी मांगी।
  • दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में कोरोना की तीसरी लहर ज्यादा दिन तक चल सकती है। इसमें पिछली बार से ज्यादा केस आ सकते हैं।
  • हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने भी प्रदेश सरकार से पूछा है कि राज्य में कोरोना से बिगड़ रहे हालात पर आप क्या कदम उठा रहे हैं? जवाब शुक्रवार को दाखिल करना है।

पांच राज्यों का हाल

1. मध्यप्रदेश

राज्य में बुधवार को 883 कोरोना मरीज मिले। 691 लोग रिकवर हुए और 13 संक्रमितों की मौत हो गई। अब तक 1 लाख 79 हजार 951 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 8328 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 1 लाख 68 हजार 568 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण के चलते अब तक 3055 मरीजों की मौत हो चुकी है।

2. राजस्थान

बुधवार को राज्य में 2080 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए। इसी के साथ मरीजों का आंकड़ा अब 2 लाख 17 हजार 151 हो गया है। इनमें 16 हजार 993 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 1 लाख 98 हजार 139 लोग ठीक हो चुके हैं। अब तक संक्रमण के चलते 2019 मरीजों की मौत हो चुकी है।

3. बिहार

पिछले 24 घंटे के अंदर 702 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए। इसी के साथ मरीजों का आंकड़ा अब 2 लाख 24 हजार 977 हो गया है। इनमें 6392 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 2 लाख 17 हजार 422 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण से जान गंवाने वालों की संख्या अब 1162 हो गई है।

4. महाराष्ट्र

राज्य में बुधवार को 4907 नए मरीज मिले। 9164 लोग रिकवर हुए और 125 संक्रमितों की मौत हो गई। अब तक राज्य में 17 लाख 31 हजार 833 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 88 हजार 70 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 15 लाख 97 हजार 255 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण से अब तक 45 हजार 560 लोगों की मौत हो चुकी है।

5. उत्तरप्रदेश

राज्य में बुधवार को संक्रमण के 1848 नए केस आए। 2112 मरीज ठीक हुए और 20 की मौत हो गई। अब तक 5 लाख 3 हजार 159 लोग संक्रमित हो चुके हैं। इनमें से 22 हजार 562 मरीजों का इलाज चल रहा है। 4 लाख 73 हजार 316 संक्रमित ठीक हो चुके हैं, जबकि 7281 की मौत हो चुकी है।



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अमेरिका में 10 दिन में रिकॉर्ड 10 लाख से ज्यादा नए केस, न्यूयॉर्क में फिर प्रतिबंध लागू

दुनिया में कोरोना मरीजों का आंकड़ा मंगलवार को 5.24 करोड़ के पार हो गया। 3 करोड़ 66 लाख से ज्यादा लोग ठीक हो चुके हैं। अब तक 12 लाख 88 हजार से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं।

अमेरिका में संक्रमण बेहद तेजी से बढ़ रहा है। बुधवार को यहां नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बना। एक दिन में एक लाख 36 हजार मामले सामने आए। बीते 10 दिन में अमेरिका में 10 लाख से ज्यादा (11,29,463) मामले सामने आए। चीन में कुछ दिनों की राहत के बाद गुरुवार को फिर 15 नए मामले सामने आए।

न्यूयॉर्क में प्रतिबंध
अमेरिका में एक दिन में एक लाख 36 हजार नए मामले सामने आए। कुल मरीजों की संख्या कुछ दिन पहले ही एक करोड़ पार कर चुकी है। खास बात ये है कि 10 दिन से लगातार यहां हर रोज एक लाख से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। इस बीच, न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रू कूमो ने राज्य में नए प्रतिबंधों का ऐलान कर दिया। कूमो ने कहा- ऐसा किए बिना हम संक्रमण को कम नहीं कर सकते। अब यहां प्राईवेट पार्टियां नहीं की जा सकेंगी। बिजनेस को लेकर भी आज नई गाइडलाइन्स जारी की जा सकती हैं। अकेले न्यूयॉर्क में गुरुवार को 1628 मामले सामने आए। 21 लोगों की मौत हुई।

इटली में भी राहत नहीं
इटली दुनिया का 10वां देश बन गया है जहां 10 लाख से ज्यादा लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। यहां अब तक 42 हजार 953 लोगों की मौत हो चुकी हैं। यहां सरकार की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि अस्पताल लगातार फुल हो रहे हैं और यही हालात रहे तो नए मरीजों को जल्द ही पड़ोसी देशों के अस्पतालों में शिफ्ट करना पड़ेगा। इस बारे में यूरोपीय देश पिछले महीने समझौता कर चुके हैं। यूरोपीय देशों में इटली पहला ऐसा देश है, जहां संक्रमण सबसे पहले पहुंचा। डॉक्टरों ने कहा है कि अगर सख्त कदम नहीं उठाए गए तो मरने वालों का आंकड़ा एक महीने में 10 हजार तक बढ़ सकता है।

बुधवार को इटली के कूमो शहर में मौजूद एक हेल्थ वर्कर। देश में कुल संक्रमितों का आंकड़ा 10 लाख से ज्यादा हो चुका है।

चीन में नए केस
चीन में कुछ दिन की राहत के बाद एक बार फिर नए मामले सामने आने लगे हैं। बुधवार को यहां 15 नए मामले सामने आए। इसके एक दिन पहले यानी मंगलवार को 17 केस सामने आए थे। सरकार की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि कुछ इलाकों की पहचान कर ली गई है, जहां से संक्रमण के मामले ज्यादा सामने आ रहे हैं। यहां प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। हालांकि, इसके पहले टेस्टिंग बढ़ाई जा रही है। चीन में अब तक 86 हजार 299 केस सामने आ चुके हैं।

रूस ने कहा- हमारी दवा 92% से ज्यादा असरदार
कोरोना वैक्सीन को लेकर अमेरिका के बाद रूस से गुड न्यूज है। वैक्सीन ''स्पूतनिक वी'' तैयार करने वाले नेशनल रिसर्च सेंटर RDIF ने दावा किया कि उनकी वैक्सीन मरीजों पर 92% से ज्यादा असरदार है। सेंटर ने फेज-3 का ट्रायल पूरा कर लिया है। इसके पहले अमेरिकी कंपनी फाइजर ने भी दावा किया था कि उनकी वैक्सीन 90% से ज्यादा असरदार है। रूसी वैक्सीन के ट्रायल में 40 हजार वॉलंटियर को शामिल किया गया था। इनमें से 16 हजार को वैक्सीन लगाई गई। इसके बाद 21 दिन तक उसका असर देखा गया। 20 कन्फर्म केस में वैक्सीन के दूसरे डोज ने 92% तक असर दिखाया। यह ट्रायल बेलारूस, यूएई, वेनेजुएला के अलावा भारत में दूसरे और तीसरे फेज में चल रहा है।



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अमेरिका के टेक्सास में बुधवार को एक हाईवे टेस्टिंग के बाहर मौजूद हेल्थ वर्कर। अमेरिका में बुधवार को एक दिन में 1.36 लाख रिकॉर्ड संक्रमितों की पहचान हुई।


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नई संसद इमारत, बुलेट ट्रेन में किसी की रुचि नहीं है, हमें अभी नौकरी और वैक्सीन चाहिए

हमारे प्रधानमंत्री और हाल ही चुनाव हारे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प में कुछ रोचक समानताएं हैं। यही समानताएं उन्हें एक बार साथ लाई थीं, जिसने भारत-अमेरिका संबंधों को कुछ बेहतर किया। लेकिन ट्रम्प को बेहतर शब्द पसंद नहीं है। इसलिए उन्होंने ऐसी चीजें भी कीं जो अमेरिका में रह रहे भारतीयों की जिंदगी मुश्किल बना दे।

बतौर राष्ट्रपति ट्रम्प ने हर चीज को व्यापार के चश्मे से देखा क्योंकि वे वास्तव में बिजनेसमैन ही थे। जब उन्हें ईरान या चीन को सजा देनी थी तो उन पर व्यापार प्रतिबंध लगा दिए। जब दोस्तों की मदद करनी थी तो कॉर्पोरेट टैक्स घटा दिए। मोदी गुजरात से हैं और गुजरातियों को व्यापार समुदाय मानते हैं। इसलिए वे भी व्यापार को राजनीति के आधार की तरह देखते हैं। वे उसे विकास कहते हैं।

वे अन्य जरूरी चीजों की कीमत पर भारत के भविष्य को विकास के चश्मे से देखते हैं। इसलिए उनकी नए भारत की योजना में नोटबंदी और जीएसटी जैसी चीजें आती हैं, जो आम आदमी और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाती हैं। उनके 6 साल के कार्यकाल में अमीर और अमीर हो गए और छोटे व्यापार नष्ट होते गए।

मोदी यह नहीं समझ पाए कि जो काला धन पैदा करते हैं, वे आम मध्यमवर्गीय लोग नहीं, बल्कि अमीर हैं। और अमीर नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक किसी को भी हरा सकते हैं। ट्रम्प और मोदी में एक और समानता है। वे दोनों मजबूत बहुसंख्यक वोटों के बल पर सत्ता में आए। मोदी दक्षिणपंथी हिन्दू वोट के साथ अतिवादी तत्वों के समर्थन से और ट्रम्प दक्षिणपंथी श्वेत वोट व कुछ लोगों के अनुसार रूस के समर्थन से (शायद यही कारण है कि पुतिन दुनिया के उन कुछ नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने जो बाइडेन को जीत की बधाई नहीं दी)। न भारत और न ही अमेरिका यह समझ पाया कि यह रूढ़िवादी वोट बैंक कितना मजबूत था, जबकि हम इस बहकावे में थे कि आखिरकार उदारवादी मत और मुखर मीडिया ही राष्ट्रीय रातनीति का नतीजा तय करती है।

इसमें आश्चर्य नहीं कि 2017 में हिलेरी क्लिंटन को 30 लाख पॉपुलर वोट्स ज्यादा मिलने के बावजूद ट्रम्प जीते। दूसरी तरफ मोदी, जिनका चुनाव अभियान तब तेज हुआ जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए-2 सरकार के घोटाले सामने आए थे, वे आसानी से सत्ता में आ गए क्योंकि लोगों को बदलाव चाहिए था।

अमेरिका में वोटर यह समझ गए कि उदारवादी कितने भी कमजोर क्यों न लगते हों, वे झूठे, आडंबरपूर्ण और किसी भी मामले में सलाह न मानने वाले ट्रम्प से तो बेहतर ही होंगे। हालांकि ट्रम्प होशियार थे। उनकी प्रेसिडेंसी आसानी से गंवाने की कोई योजना नहीं थी। वे अब भी बाइडेन को कानूनी तरीकों से रोकने के सारे तरीके आजमा रहे हैं।

आखिर ट्रम्प ने एक महाभियोग, 26 यौनिक दुराचार के आरोपों और करीब 4000 मुकदमों से खुद को बचाया है। उन्होंने अपने टैक्स रिटर्न सार्वजनिक करने से भी इनकार कर दिया था। रोचक यह है कि उन्होंने अमेरिका से ज्यादा आयकर चीन में चुकाया है।

दूसरी तरफ मोदी ने दोनों चुनाव आसानी से जीते। फिर भी उनकी समस्याएं कुछ समान हैं। ट्रम्प की तरह उनकी टीम में भी हुनर की ज्यादा कीमत नहीं है। मोदी के प्रशंसक चाहे ऐसा मानते हों, लेकिन वे न तो होशियार अर्थशास्त्री हैं और न ही महामारी विशेषज्ञ। उन्हें सौम्य शक्ति व संस्कृति का महत्व भी ज्यादा समझ नहीं आता, जिसमें भारत अच्छा है।

इसलिए वे किसी अच्छे गुजराती व्यापारी की तरह केवल विकास की बात करते हैं, जैसे भारत की सभी समस्याओं का हल यही हो। लेकिन विकास अकेले नहीं हो सकता। इसके निरुपण के लिए उन्हें अच्छे विचारकों और विश्लेषकों की जरूरत है।

जी हां, मोदी चुनाव जिता सकते हैं। जैसे अभी बिहार में किया। लेकिन इसका क्या फायदा। लोग अब भी उन सुधारों का इंतजार कर रहे हैं, जिसका उन्होंने वादा किया था। अगर कांग्रेस वाकई नाकारा थी तो भाजपा शासन के 6 वर्षों में आपके और मेरे जीवन में कोई वास्तविक अंतर क्यों नहीं दिखता?

डिजिटल हो जाना हर समस्या का हल नहीं हो सकता। नोटबंदी ने भ्रष्टाचार खत्म नहीं किया। जीएसटी ने करोड़ों छोटे व्यापारियों का जीवन दयनीय बना दिया। सच यह है कि सख्त शासन का पालन कमजोरों को ही परेशान करता है। एकाधिकार बढ़ रहे हैं। बैंकों को बड़े बिजनेस घराने लूट रहे हैं।

वास्तविक बदलाव आम आदमी की जिंदगी को आसान बनाने से आता है। और यह तब होगा जब सरकार हर चीज में दखलअंदाजी बंद करे। हम साम्यवादी देश नहीं हैं। हमें सरकार से डरने की जरूरत नहीं है। मोदी ने खुद कम शासन का वादा किया था। लेकिन आज सरकार हमारे जीवन के हर पहलू में दखलअंदाजी करती है।

हम अभी बुरी स्थिति में हैं। महामारी और अर्थव्यवस्था की स्थिति पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। यह मोदी का अच्छा वक्त है कि वे दिखाएं कि उनमें दोनों को संभालने का कौशल है। बाकी चीजें इंतजार कर लेंगी। नई संसद इमारत, बुलेट ट्रेन में किसी की रुचि नहीं है। हमें अभी नौकरी और वैक्सीन चाहिए। ताकि हम सामान्य जीवन की ओर लौट सकें।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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प्रीतीश नंदी, वरिष्ठ पत्रकार व फिल्म निर्माता


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सामाजिक और आर्थिक बदलाव, वास्तव में सुधार के लिए राजनीति आम जनता के हाथों में सबसे कारगर उपाय है

एक वर्ग में राजनीति को एक अपशब्द के रूप में देखा जाता है। किसी मुद्दे पर राजनीति करना बुरा काम करने के बराबर है। हालांकि सामाजिक और आर्थिक बदलाव, वास्तव में सुधार के लिए राजनीति आम जनता के हाथों में सबसे कारगर उपाय है। इसकी एक झलक पिछले कुछ हफ्तों में हमें बिहार से मिली है। चुनाव के चलते सभी राजनैतिक दल लोगों के बीच जा रहे हैं।

एक राजनैतिक पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने नौकरियों और बेरोज़गारी को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया। घोषणापत्र में वादे न सिर्फ़ दिलचस्प, बल्कि आकर्षक भी थे। उदाहरण के लिए, 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा था। राजद के नेताओं के अनुसार, इनमें से लगभग 4 लाख सरकारी नौकरियां पहले से स्वीकृत हैं लेकिन किसी कारणवश रिक्त पड़ी हैं। बाकी नए पद सृजित करने का वादा था।

इनमें से कई नौकरियां सरकारी मूल सेवाओं में होने की संभावना है। जैसे कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, शिक्षक, नर्स, डॉक्टर, अन्य स्वास्थ्यकर्मी, ट्रैफिक पुलिस, इत्यादि। इन सब सेवाओं की देश में और खासकर बिहार में सख्त कमी है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मापदंड के अनुसार, प्रति हजार व्यक्ति एक डॉक्टर होना चाहिए। इसके विपरीत, बिहार में एक डॉक्टर पर 3000 से ज्यादा लोग निर्भर हैं।

इसमें निजी डॉक्टर भी शामिल हैं। जहां दुनियाभर में स्वास्थ्य सेवाओं में सरकारी भूमिका श्रेष्ठ होती है, भारत में स्वास्थ्य में निजी सेक्टर की भूमिका हद से ज्यादा बड़ी है। दुनिया में स्वास्थ्य पर कुल खर्च में, निजी खर्च का हिस्सा 20% से कम है। भारत में निजी खर्च 60% से ज्यादा है। बाकी मूल सेवाओं की भी सख्त कमी है।

घोषणा पत्र का मुख्य वादा, सरकारी नौकरियों में बहाली और नई नौकरियों का सृजन इसलिए आकर्षक है क्योंकि इससे दो काम एक साथ किए जा सकते हैं। मूल सेवाओं की कमी को पूरा करना और बेरोज़गारी की समस्या का आंशिक समाधान।

मैनिफेस्टो का दूसरा वादा था कि ‘कॉन्ट्रैक्ट’ प्रथा खत्म की जाएगी और ‘समान काम, समान वेतन’ के सिद्धांत को लागू किया जाएगा। हालांकि ‘इक्वल रिम्यूनरेशन एक्ट 1976’ ने इस सिद्धांत को महिला-पुरुष को एक समान काम के लिए सामान वेतन की कानूनी स्वीकृति दी हुई है।

लेकिन सरकारी स्कूलों में दशकों से दो तरह के शिक्षक हैं, स्थायी और कॉन्टैक्ट। इनमें दो तरह का फर्क है, स्थायी शिक्षकों के वेतन भी ज्यादा हैं और उनकी नौकरी भी पक्की है (उन्हें आसानी से निरस्त नहीं किया जा सकता)। कॉन्ट्रैक्ट टीचर की लंबी समय से मांग रही है कि उनकी नौकरी पक्की की जाए।

पक्की नौकरी के लाभ गिनाने की ज़रूरत नहीं। यदि आपकी नौकरी सुरक्षित है, तो मन लगाकर काम पर ध्यान दे सकते हैं, न कि हर समय दूसरी नौकरी की तलाश में जिएंगे। वास्तव में पक्की नौकरी वाले बहुत से (सब नहीं) लोग इसका दुरुपयोग करते हैं। उनके लिए स्थायी होने का मतलब है मनमर्जी से काम पर जाना, मनमर्जी से काम करना। गौरतलब है कि पक्की नौकरी वाले ऐसे भी बहुत हैं जो लगन से काम करते हैं। यानी इसके दुरुपयोग के पीछे कुछ और कारण भी/ ही हैं।

घोषणा पत्र ने एक और अहम मांग को आवाज़ दी। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं एवं आशा दीदी की मांगें। अांगनवाड़ी सेवाओं की अहमियत कुछ शब्दों में गिनाना आसान नहीं। छः साल से कम उम्र के बच्चे को अच्छा पोषण, प्री-स्कूल शिक्षा, मूल स्वास्थ्य सेवाएं (टीकाकरण इत्यादि) प्राप्त होना जरूरी इसलिए है क्योंकि रिसर्च के अनुसार, उनका भविष्य इस उम्र में निर्धारित होता है।

इन सेवाओं को बच्चों तक पहुंचने के लिए सरकारी तंत्र इन तीन कार्यकर्ताओं (स्वास्थ्य विभाग की नर्स के साथ) पर पूरी तरह से निर्भर है। पाठकों को जानकार शायद आश्चर्य हो कि आशा दीदी को कई राज्यों में वेतन नहीं, केवल दो-तीन हजार रुपए मानदेय मिलता है; इन तीनों को समय पर भुगतान नहीं होता।

यह लोगों के जरूरी मुद्दों और उनसे जुड़ी पेचीदगी की एक झलक है। इन सब पर चर्चा करने का मौका इसलिए मिल रहा है, क्योंकि एक पार्टी ने चुनाव के चलते इनपर राजनीति करने का फैसला किया था। दु:ख की बात यह नहीं कि इन मुद्दों पर राजनीति हो रही है। दु:ख की बात यह है कि इन पर केवल चुनाव में राजनीति हो रही है।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)



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रीतिका खेड़ा, अर्थशास्त्री दिल्ली आईआईटी में पढ़ाती हैं


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घर के विवाद घर में ही रहेंगे तो समाज में परिवार का मान-सम्मान बना रहेगा

कहानी- महाभारत युद्ध की कहानी है। युद्ध का 17वां दिन था। युधिष्ठिर और कर्ण आमने-सामने थे। इस युद्ध में युधिष्ठिर लगभग हार ही गए थे, किसी तरह कर्ण से बचकर अपने शिविर में आ गए। पीछे से अर्जुन भी बड़े भाई का हाल जानने पहुंचे।

युधिष्ठिर हार से दुःखी थे, इसी दुख में उन्होंने अर्जुन के गांडीव धनुष पर व्यंग्य करते हुए कहा कि तुम और तुम्हारे गांडीव के होते हुए भी मैं कर्ण से हार गया, अपमानित हुआ। धिक्कार है तुम्हारे धनुष और तुम पर।

ये बात सुनते ही अर्जुन गुस्सा हो गए, उन्होंने तलवार निकाल ली। वे अपने बड़े भाई युधिष्ठिर की हत्या करने के लिए भी तैयार हो गए। ये दृश्य श्रीकृष्ण भी देख रहे थे। उन्होंने अर्जुन से पूछा कि ये क्या कर रहे हो?

अर्जुन ने कहा कि बहुत साल पहले ही मैंने संकल्प ले लिया था कि अगर कोई मेरे गांडीव धनुष का अपमान करेगा तो मैं उसकी हत्या कर दूंगा। श्रीकृष्ण जानते थे कि ये लड़ाई अगर बाहर चली गई, तो पांडव हार भी सकते हैं। सेना का मनोबल टूट सकता है।

श्रीकृष्ण ने भाइयों के विवाद को खत्म करने का रास्ता तुरंत खोज लिया। वे अर्जुन से बोले कि पार्थ, शास्त्र कहते हैं कि अपने बड़े को तू करके बोला जाए, उनके प्रति अपमान भरी भाषा का उपयोग किया जाए, तो ये उनकी हत्या करने जैसा ही होगा। तुम अपने बड़े भाई को तू करके बोल दो, आलोचना कर दो।

श्रीकृष्ण की बात मानकर अर्जुन ने 13 बार तू करके युधिष्ठिर की आलोचना की। अर्जुन ने कहा कि तूने जुआ खेला, तेरे कारण हम जुए में हारे, तेरे कारण द्रोपदी का चीरहरण हुआ, तेरे ही कारण सारी परेशानियां आईं। इस तरह अर्जुन का मन शांत हुआ और उसका संकल्प भी पूरा हो गया। बात वहीं शिविर में ही खत्म हो गई। श्रीकृष्ण थे, तो ये विवाद बाहर नहीं आया और दो भाइयों के झगड़े से परिवार को कोई नुकसान नहीं हुआ।

सीख - श्रीकृष्ण हमें यही समझा रहे हैं कि परिवार में मतभेद तो होंगे, लेकिन आपस में बैठकर विवाद सुलझा लेना चाहिए। अगर ये बात नहीं मानी गई और मतभेद घर से बाहर उजागर हो गए तो परिवार की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाएगी। यदि ये बात घर में रही, सुलझा ली गई तो यही प्रयास लाख का हो जाएगा।

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हमेशा अपने कामों में कुछ न कुछ प्रयोग करते रहना चाहिए, नए तरीके आपकी सफलता के महत्व को बढ़ा देते हैं

पांच बातें ऐसी हैं जो हमारे जीवन में अशांति और विनाश लेकर आती हैं, इन गलत आचरणों से बचकर ही रहें

जब लोग तारीफ करें तो उसमें झूठ खोजिए, अगर आलोचना करें तो उसमें सच की तलाश कीजिए

जीवन साथी की दी हुई सलाह को मानना या न मानना अलग है, लेकिन कभी उसकी सलाह का मजाक न उड़ाएं

कन्फ्यूजन ना केवल आपको कमजोर करता है, बल्कि हार का कारण बन सकता है

लाइफ मैनेजमेंट की पहली सीख, कोई बात कहने से पहले ये समझना जरूरी है कि सुनने वाला कौन है



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aaj ka jeevan mantra by pandit vijay shankar mehta, motivational story from mahabharata, family management tips in hindi


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सब्जियों को मिक्स करके बनाएं घंटे तकरारे, सूखे मसाले डालकर चावल के साथ सर्व करें



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Mix vegetables and prepare for hours, add dried spices and serve with rice


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सरकारी नियंत्रण से चलेंगे नेटफ्लिक्स, अमेजन जैसे OTT प्लेटफॉर्म; क्या वेब सीरीज पर भी चलेगी सेंसर की कैंची?

केंद्र सरकार ने ऑनलाइन न्यूज पोर्टल और ऑनलाइन ऑडियो-विजुअल कंटेंट प्रोवाइड करने वाले सभी प्लेटफॉर्म्स को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की निगरानी के दायरे में शामिल कर लिया है। इसका असर यह होगा नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, हॉट स्टार जैसे ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म के कंटेंट पर सरकार की निगरानी रहेगी। केंद्र सरकार ने इस संबंध में बुधवार को नोटिफिकेशन जारी किया है।

इस फैसले के बाद आशंका जताई जा रही है कि इन प्लेटफॉर्म पर चलने वाले कंटेंट पर भी सेंसर की कैंची चल सकती है। दरअसल, इस तरह के प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट को लेकर कोई कानून नहीं था। इस वजह से इन प्लेटफॉर्म्स पर आने वाले कंटेंट या फिल्मों को हटाने में सरकार के अधिकार सीमित हो रहे थे।

अदालतों में याचिकाएं दाखिल हो रही थीं और इन प्लेटफॉर्म्स के कंटेंट की निगरानी की मांग उठ रही थी। केंद्र सरकार के फैसले के बाद अब इस बात पर बहस छिड़ गई है कि OTT प्लेटफॉर्म्स का क्या होगा? एक स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक, OTT प्लेटफॉर्म 2024 तक 28% की सालाना दर से बढ़ेंगे।

आशंका भी जताई जा रही है कि वेब सीरीज या फिल्म पर रोक लगाने का अधिकार भी केंद्र सरकार को मिल जाएगा। नोटिफिकेशन के बाद अब यह कानून बन जाएगा और यह प्लेटफॉर्म सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत रहेंगे। हालांकि, इससे पहले सभी OTT प्लेटफॉर्म इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत संचालित हो रहे थे, लेकिन किसी तरह का रेगुलेशन नहीं था। एक अनुमान के मुताबिक, OTT प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल को देखते हुए इसका मार्केट रेवेन्यू 2025 के अंत तक 4 हजार करोड़ तक हो सकता है। 2019 के अंत तक भारत में 17 करोड़ लोग ऐसे थे, जो OTT प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर रहे थे।

OTT प्लेटफॉर्म क्या है?

  • OTT प्लेटफॉर्म यानी ओवर-द टॉप प्लेटफॉर्म। यह एक तरह से ऑडियो और वीडियो होस्टिंग और स्ट्रीमिंग की सेवाएं देते हैं, जो पहले कंटेंट होस्टिंग प्लेटफॉर्म के तौर पर शुरू हुए थे। इसके बाद इन सभी प्लेटफॉर्म ने प्रोडक्शन से जुड़े कंटेंट, शॉर्ट फिल्म, फीचर फिल्म, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज बनाना शुरू कर दिया।
  • यह सभी प्लेटफॉर्म अपने यूजर को अलग-अलग तरह का कंटेंट देते हैं। यूजर्स के OTT प्लेटफॉर्म एक्सपीरियंस को देखकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से अलग-अलग तरह के कंटेंट देखने का सुझाव दिया जाता है।
  • अधिकतर प्लेटफॉर्म मुफ्त में कंटेंट प्रदान करते हैं और कुछ सालाना/मासिक शुल्क भी लेते हैं। इस तरह के प्लेटफॉर्म कुछ चुनिंदा फिल्म प्रोडक्शन हाउस, जो पहले से फिल्म बना चुके हैं, उनके साथ मिलकर प्रीमियम कंटेंट (ऐसे कंटेंट जिन्हें देखने पर चार्ज लगता है) तैयार करते हैं और उसे स्ट्रीम करते हैं।

OTT प्लेटफॉर्म के लिए क्या कानून है?

  • भारत में OTT प्लेटफॉर्म को रेगुलेट करने के लिए न कोई कानून है और न ही कोई नियम। यह मनोरंजन का नया माध्यम है, जो कोरोना लॉकडाउन के दौरान तेजी से फला-फूला। TV, प्रिंट और रेडियो तो अलग-अलग कानूनों के तहत आते हैं, लेकिन OTT प्लेटफॉर्म एक तरह से सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म है, जिसके लिए अब तक कोई रेगुलेशन नहीं है। द इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI) के पास OTT प्लेटफॉर्म को लेकर सेल्फ-रेगुलेटरी मॉडल है।
  • ऑनलाइन क्यूरेटेड कंटेंट प्रोवाइडर्स (OCCP) ने ओटीटी प्लेटफॉर्म को लेकर डिजिटल क्यूरेटेड कंटेंट कंपलेंट काउंसिल बनाने का प्रस्ताव रखा था। हालांकि, इस प्रस्ताव पर मंत्रालय ने उस वक्त कोई ध्यान नहीं दिया था। न तो स्वीकार किया था और न ही खारिज किया था।

रेगुलेशन में आने से क्या होगा?

  • कानून बनने के बाद अब सभी OTT प्लेटफॉर्म को नए कंटेंट को रिलीज करने से पहले सूचना और प्रसारण मंत्रालय (I&B मंत्रालय) से सर्टिफिकेट लेना जरूरी होगा। अगर मंत्रालय को कंटेंट पर कोई आपत्ति होगी तो वह उसे बैन भी कर सकता है। हालांकि, अभी सरकार ने अपनी तरफ से गाइडलाइन जारी नहीं की है।
  • सरकार के इस कदम से OTT प्लेटफॉर्म को दिक्कत हो सकती है और वे इस पर अपना विरोध भी दर्ज कर सकते हैं। अक्सर इस तरह के प्लेटफॉर्म पर राजनीति के विषय से जुड़ी फिल्में और डॉक्यूमेंट्री बनती हैं तो सरकार के दबाव में उसे ऐसा कंटेंट हटाना पड़ सकता है। अब बस यह देखना होगा, कि मंत्रालय इस संबंध में क्या निर्देश देता है।
  • सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बुधवार को संकेत दिए कि OTT प्लेटफॉर्म्स पर रेगुलेशन के संबंध में एक या दो दिन में कोई स्पष्ट गाइडलाइन जारी हो सकती है। यह गाइडलाइन जारी होने के बाद ही पता चलेगा कि वेब सीरीज और अन्य कंटेंट पर सेंसर की कैंची चलेगी या कंटेंट बिना किसी रोक-टोक के ऐसे ही मिलते रहेगा, जो आज मिल रहा है।


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Netflix, Amazon Prime Video OTT Platforms & Digital News Platforms Under IB Ministry; Know Everything


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1969 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ही कांग्रेस ने पार्टी से निकाल दिया था, पढ़िए क्यों?

बात 1969 की है। इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। उस समय कांग्रेस में कुछ बुजुर्ग नेताओं का सिंडिकेट हावी था। इंदिरा गांधी की भूमिका राम मनोहर लोहिया के शब्दों में 'गूंगी गुड़िया' से ज्यादा नहीं थी। पार्टी में उनको सुनने वाले बहुत कम थे।

इंदिरा चाहती थीं कि वीवी गिरि को राष्ट्रपति बनना चाहिए पर पार्टी में सक्रिय सिंडिकेट ने नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था। तब इंदिरा गांधी ने बगावत कर दी और रेड्डी हार गए। मोरारजी देसाई को वित्त मंत्री पद से हटाने के बाद से ही सिंडिकेट के नेता इंदिरा से नाराज थे। रेड्डी की हार ने उन्हें और परेशान कर दिया। उन्हें लगता था कि अगर प्रधानमंत्री ही पार्टी के नेता को सपोर्ट नहीं करेंगी तो कौन करेगा।

कांग्रेस के उस समय के अध्यक्ष एस निंजालिंगप्पा के खिलाफ सिग्नेचर कैम्पेन शुरू हो गया। इंदिरा भी अलग-अलग राज्यों में जाकर कांग्रेसियों को अपने पक्ष में लामबंद कर रही थीं। इंदिरा समर्थकों ने स्पेशल कांग्रेस सेशन बुलाने की मांग की ताकि नया प्रेसीडेंट चुना जा सके। गुस्से में निंजालिंगप्पा ने इंदिरा को ओपन लेटर लिखा और इंटरनल डेमोक्रेसी खत्म करने का आरोप लगाया। इंदिरा ने भी निंजालिंगप्पा की बैठकों में भाग लेना बंद कर दिया।

1 नवंबर को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की दो जगहों पर मीटिंग हुईं। एक प्रधानमंत्री आवास में और दूसरी कांग्रेस के जंतर-मंतर रोड कार्यालय में। तब कांग्रेस कार्यालय में हुई मीटिंग में इंदिरा को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निकाल दिया गया और संसदीय दल से कहा गया कि वो अपना नया नेता चुन लें। इंदिरा ने फौरन दोनों संसद के दोनों सदनों के सदस्यों की मीटिंग बुलाई, जिसमें कांग्रेस के 429 सांसदों में से 310 ने भाग लिया।

इंदिरा ने कांग्रेस के दो टुकड़े कर दिए। इंदिरा की पार्टी का नाम रखा गया कांग्रेस (R) और दूसरी पार्टी हो गई कांग्रेस (O)। तब इंदिरा ने सीपीआई और डीएमके की मदद से कांग्रेस (O) के अविश्वास प्रस्ताव को गिरा दिया।

पहले गोलमेज सम्मेलन की शुरुआत

पहले गोलमेज सम्मेलन में शामिल हुए प्रतिनिधि।

भारत को आजादी भले ही 1947 में मिली हो, उस समय स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व कर रही कांग्रेस कार्यसमिति ने फरवरी 1930 में ही पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का फैसला कर लिया था। जब दांडी मार्च के बाद महात्मा गांधी ने नमक कानून तोड़ा तो ब्रिटिश सरकार सक्रिय हुई और उसने भारत में संवैधानिक सुधारों के लिए राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस या गोलमेज सम्मेलन आयोजित किए।

इन गोलमेज सम्मेलनों की शुरुआत 12 नवंबर 1930 को हुई और लंदन में यह बातचीत 19 जनवरी 1931 तक चली। इसकी अध्यक्षता ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने की थी, जिसमें 89 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। यह पहली ऐसी बातचीत थी, जिसमें ब्रिटिश शासकों ने कथित तौर पर भारतीयों को समानता का दर्जा दिया था। कांग्रेस के प्रमुख नेता उस समय जेल में थे और महात्मा गांधी के साथ-साथ जवाहरलाल नेहरू ने भी सम्मेलन का बहिष्कार करने की घोषणा की थी।

भारत और दुनिया में 12 नवंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैं:

  • 1781: अंग्रेजों ने नागापट्टनम पर कब्जा किया।
  • 1847ः ब्रिटेन के डॉक्टर सर जेम्स यंग सिम्पसन ने बेहोशी की दवा के रूप में पहली बार क्लोरोफार्म का इस्तेमाल किया।
  • 1861: महान स्वतंत्रता सेनानी और बड़े समाज सुधारक मदनमोहन मालवीय का निधन।
  • 1925ः अमेरिका और इटली ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए।
  • 1936ः केरल के मंदिर सभी हिंदुओं के लिए खुले।
  • 1956ः मोरक्को, सूडान और ट्यूनीशिया संयुक्त राष्ट्र में शामिल हुए।
  • 1995ः नाइजीरिया राष्ट्रमंडल की सदस्यता से निलंबित हुआ।
  • 2002ः संयुक्त राष्ट्र ने स्विटजरलैंड के संघीय ढांचे के आधार पर साइप्रस के लिए एक नई शांति योजना तैयार की।
  • 2009ः भारत में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अतुल्य भारत अभियान को वर्ल्ड ट्रेवल अवॉर्ड-2009 से नवाजा गया।


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रांची में मुसलमानों ने पत्थर मारकर तोड़ा शिवलिंग? वीडियो गलत दावे के साथ वायरल

क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर CCTV की एक फुटेज वायरल हो रही है। इसमें मंदिर पर एक युवक पत्थर फेंकता दिख रहा है। वीडियो रांची का बताया जा रहा है और इसे सोशल मीडिया पर साम्प्रदायिक एंगल से शेयर किया जा रहा है।

ऑप इंडिया वेबसाइट की रिपोर्ट में भी हिंदू मंदिर पर अराजक तत्वों के हमले का दावा किया गया है।

और सच क्या है ?

  • वायरल वीडियो के की-फ्रेम को गूगल पर रिवर्स सर्च कर हमने मामले की सच्चाई जांचनी शुरू की। हमें न्यूज लॉन्ड्री वेबसाइट पर 9 नवंबर, 2020 की एक रिपोर्ट मिली।
  • न्यूज लॉन्ड्री की रिपोर्ट के मुताबिक, मंदिर पर पत्थर मारने वाला शख्स मानसिक रूप से विक्षिप्त है। कुछ संगठन जबरन इस मामले में स्थानीय मुस्लिमों पर निशाना साध रहे हैं।
  • गूगल पर अलग-अलग की-वर्ड सर्च कर इस मामले से जुड़ी अन्य रिपोर्ट्स खंगालनी शुरू कीं। हमें दैनिक भास्कर वेबसाइट पर 5 दिन पुरानी रिपोर्ट मिली। जिससे पता चलता है कि मामला, रांची के अपर बाजार की रंगरेज गली में बने शिव मंदिर से जुड़ा है।
  • दैनिक भास्कर संवाददाता से बातचीत में कोतवाली प्रभारी डीएसपी यशोधरा ने बताया कि पत्थर मारने वाला एक विक्षिप्त है। सीसीटीवी के फुटेज में वह मंदिर में पत्थर फेंकते हुए दिखाई दे रहा है। इसके अलावा वह वहां की नालियों के स्लैब को भी उठाकर फेंक रहा था। पुलिस उसकी तलाश में जुट गई है।
  • इस मामले से जुड़ी किसी भी मीडिया रिपोर्ट में पत्थर फेंकने वाले शख्स के नाम का जिक्र नहीं है। साफ है कि पत्थर फेंक रहे शख्स के मुस्लिम समुदाय का होने का दावा मनगढ़ंत है। इस मामले में झूठा दावा कर कुछ लोग साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं।


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Muslims broke the Shivling by pelting stone, here's latest updates


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बास्केटबॉल नेशनल प्लेयर थे, वही खेलते चोट लगी, एकेडमी से निकाला, सदमे में पिता नहीं रहे

सेना में ऑफिसर बनकर देश की सेवा करना ज्यादातर युवाओं का सपना होता है। वे युवा इसे पूरा भी करते हैं, लेकिन कई ऐसे भी होते हैं, जो दहलीज पर पहुंचकर भी मंजिल से दूर रह जाते हैं। हर साल कुछ बच्चे NDA और OTA से ट्रेनिंग के दौरान बोर्ड आउट हो जाते हैं। उन्हें तो न कोई मेडिकल सपोर्ट मिलता है और न ही इनके परिवार को कोई सुविधा।

पेंशन के नाम पर एक्स ग्रेशिया मिलता है, जो डिसेबिलिटी के हिसाब से होता है। यह अमाउंट भी कम होता है। 2015 में इसको लेकर एक कमेटी भी बनी। जिसमें सुझाव दिया गया कि एक्स ग्रेशिया का नाम बदलकर डिसेबिलिटी पेंशन कर दिया जाए, लेकिन अभी तक इस ड्राप्ट पर साइन नहीं हुआ है। आज इस कड़ी में पढ़िए अमित कुमार की कहानी...

बिहार के भोजपुर जिले के रहने वाले अमित कुमार की पढ़ाई सैनिक स्कूल तिलैया से हुई। पढ़ाई के साथ-साथ स्पोर्ट्स में भी उनकी रुचि रही। वो बास्केटबॉल के नेशनल प्लेयर रहे। इसी वजह से उनकी एकेडमिक फीस माफ कर दी गई। 2010 में पहले ही प्रयास में उन्होंने NDA क्वालीफाई किया। देशभर में 30वां स्थान मिला। रैंक अच्छी होने की वजह से इंडियन नेवल एकेडमी (INA) के लिए उनका चयन हो गया।

अभी ट्रेनिंग के चंद महीने ही हुए थे कि अमित एक हादसे का शिकार हो गए। ट्रेनिंग के दौरान बास्केट बॉल खेलते वक्त उनके घुटने में चोट लगी और उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। करीब 6 महीने तक वो अस्पताल में रहे। इसके बाद उन्हें 2011 में INA से बोर्ड आउट कर दिया गया।

ट्रेनिंग के दौरान अमित कुमार अपने सीनियर्स के साथ।

अमित और उनके परिवार के लिए ये सबसे बड़ा सेट बैक था। जवान बेटा जो सेना में ऑफिसर बनने वाला था, वो खाली हाथ घर लौट आया था। अमित के पिता धनबाद में एक सरकारी कर्मचारी थे। बेटे की जॉब से उनको जो हिम्मत मिली थी, अब वो भी टूट गई थी।

वो इस संकट से उबरते कि उससे पहले ही कैंसर की वजह से उनके पिता की मौत हो गई। अमित के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया। कोई और सोर्स ऑफ इनकम भी नहीं थी। 20 साल के अमित जो खुद के लिए संघर्ष कर रहे थे, उनके ऊपर 4 बहनों की शादी और एक छोटे भाई की पढ़ाई-लिखाई का भार आ गया।

ट्रेनिंग के दौरान सिर में चोट लगी, 6 महीने कोमा में रहे, होश आया तो पता चला कि वो बोर्ड आउट हो गए हैं

अमित कहते हैं, 'मेरे सामने दोहरी मुसीबत थी। एक तरफ परिवार की जिम्मेदारी और दूसरी तरफ खुद के लिए नई शुरुआत करना, फिर से पढ़ाई करना। मुझे फाइनेंशियल दिक्कत थी इसलिए नेवी चीफ को पत्र लिखा। उनसे कहा कि मुझे कम से कम कोई सैटल्ड नौकरी तो दी जाए, ताकि मैं परिवार की जिम्मेदारियों को निभा सकूं। कुछ महीनों बाद भी जब कोई जवाब नहीं मिला तो आरटीआई फाइल की। वहां से उन्हें 30 फीसदी डिसेबिलिटी के साथ एक्स ग्रेशिया और एक्स सर्विस मैन का स्टेटस दिया गया, लेकिन इतने से परिवार का खर्च चलाना मुश्किल था।'

2010 में पहले ही प्रयास में अमित ने NDA क्वालिफाई किया। उन्हें इंडियन नेवल एकेडमी ज्वाइन करने का मौका मिला था।

अमित के पिता कोल इंडिया में थे तो उनकी मौत के बाद अमित को एक जॉब ऑफर की गई। ये ग्रुप डी की जॉब थी, जो वो करना नहीं चाहते थे, लेकिन हालात ही कुछ ऐसे थे कि उन्हें वो नौकरी करनी पड़ी। वो रात में जॉब करते थे और दिन में कॉलेज जाकर पढ़ाई करते थे।

2014 में उन्होंने धनबाद के एक कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने 2015 में CAPF के लिए एग्जाम दिया। उसमें उनका चयन भी हो गया, मेडिकल भी उन्होंने पास कर लिया, लेकिन फाइनल मेरिट बनने से पहले UPSC ने उन्हें यह कहकर अयोग्य करार दे दिया कि आप एक्स सर्विसमैन नहीं हो। जबकि, इंडियन नेवी ने लिखित रूप से अमित को एक्स सर्विसमैन का स्टेटस दिया था।

इस बात को लेकर अमित 2016 में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से मिले। उन्होंने अमित को भरोसा दिलाया और एक फाइल बनाकर डिपार्टमेंट को भेजी, लेकिन कई दफ्तरों में चक्कर काटने के बाद भी उनकी फाइल को अप्रूवल नहीं मिला। हर जगह से उन्हें निराशा ही हाथ लगी।

अपनी बहनों के साथ अमित कुमार। वो 6 बहन और दो भाई हैं। चार की शादी अमित ने की है।

ट्रेनिंग में बॉक्सिंग करते वक्त चोट लगी, बोर्ड आउट होना पड़ा, कई महीने डिप्रेशन में रहे, सुसाइड की कोशिश की

अभी अमित धनबाद में रहते हैं। उनके सभी बहनों की शादी हो गई है। अमित के छोटे भाई की भी नौकरी लग गई है। इससे उन्हें थोड़ी हिम्मत मिली है, लेकिन अपने करियर को लेकर वो आज भी संघर्ष कर रहे हैं। वो कहते हैं कि सेना ये मानती है कि चोट उसकी वजह से लगी है तो फिर वो हमारी जिम्मेदारी क्यों नहीं उठाती।

वो कहते हैं कि देश की पैरामिलिट्री में चोट लगने पर जॉब की सुविधा है तो हमारे लिए क्यों नहीं हो सकती। एक्स सर्विस मैन का भी लाभ नहीं मिलता है। जिस बच्चे का ऑफिसर की पोस्ट के लिए चयन होता है, वो बिना अपनी गलती के खाली हाथ लौट आता है, इससे बड़ी मुसीबत क्या होगी। हम फिजिकल प्रॉब्लम के साथ- साथ मेंटली किस स्ट्रेस से गुजरते हैं, ये सरकार क्यों नहीं समझती।



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अमित कुमार को ट्रेनिंग के दौरान बास्केटबॉल खेलते वक्त उनके घुटने में चोट लगी और उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।


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धनतेरस के दिन जन्मे थे जुड़वां बेटे, तब से हर साल दिवाली मना रहा है मुस्लिम परिवार

हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के भोपाल में जेल पहाड़ी स्थित जेल परिसर में रहने वाली इकबाल फैमिली की। ठीक 14 साल पहले कार्तिक महीने में आने वाली धनतेरस के दिन उनके यहां जुड़वां बेटे जन्मे थे। दीपोत्सव की राेशनी से जगमगा रहे शहर में इस मुस्लिम परिवार के घर भी रौनक छा गईं। यही वह पल था, जब इकबाल फैमिली ने तय कर लिया कि अब से हर बार दिवाली वैसे ही मनाएंगे, जितनी शिद्दत से ईद मनाते हैं।

प्यार से घर में बेटों को हैप्पी और हनी बुलाते हैं। इस साल भी धनतेरस के पहले पूरा कुनबा दिवाली की तैयारियों में जुट गया था। सफाई कर ली गई है क्योंकि श्रीगणेश और लक्ष्मीजी की पूजा भी तो करनी है। दोनों बेटों के साथ इकबाल की दो बेटियां मन्नत और साइना भी दिवाली के रंग में रंगी रहती हैं।

हमारे यहां मजहब में कोई भेदभाव नहीं

जुड़वा बेटों की मां रेशू अहमद कहती हैं- हमारे यहां जुड़वां बेटों का जन्म धनतेरस के दिन हुआ था इसलिए भी यह दिन हमारे लिए खास है। हिंदुस्तान में वैसे ही सांप्रदायिक सौहार्द की परंपरा रही है, यही वजह है कि हम तारीख के बजाय तिथि से धनतेरस पर दोनों बेटों का जन्मदिन मनाते आ रहे हैं।

घर में कुरान के साथ गीता और भगवान की प्रतिमाएं भी

परिवार बताते हैं कि हमारे घर में कुरान के साथ गीता भी है। गणेश जी, लक्ष्मी जी, दुर्गा जी, शंकर जी और दुर्गा मां की फोटो और प्रतिमाएं हैं। दिवाली की रात घर में पूजन करने के बाद मुंहबोले भाई रामपाल उनका परिवार और हमारा परिवार मिलकर दिवाली मनाता है। आतिशबाजियां भी करते हैं।

इकबाल खुद बनाते हैं घर के बाहर रंगोली

रेशू कहती हैं- मेरे पति इकबाल दिवाली के लिए रंगोली खुद बनाते हैं। मेरी जिम्मेदारी गुजिया और अन्य मिठाइयों बनाने की होती है। हमारे यहां मजहब में कोई भेदभाव नहीं होता।

घर में ही बनाई पूजा करने की जगह

बहनें मन्नत और साइना ने बताया हमने घर में छोटी सी पूजा की जगह बनाई। जहां सारे देवी-देवताओं के चित्र और प्रतिमाएं हैं। हम जिस तरह नमाज अदा करते हैं, वैसे ही पूजा भी करते हैं। हमारे लिए दोनों मजहब एक जैसे ही हैं।



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भोपाल जेल पहाड़ी स्थित जेल परिसर में रहने वाले इकबाल अपने परिवार के साथ दीपावली पर पूजा करने के बाद जमकर आतिशबाजी भी करते हैं।


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मेहमानों के स्वागत में कुछ ऐसा करें जो उन्हें पसंद हो, अपनापन महसूस कराएं; 5 चीजों से बढ़ेगी बॉन्डिंग

हैरी गुनेस. फेस्टिव सीजन में घरों में मेहमानों का आना लगा रहता है। ऐसे में उनको लेकर हमारा व्यवहार कैसा हो? हम उन्हें कैसे डील करें? और उनका ध्यान कैसे रखें? यह किसी चुनौती से कम नहीं। साइकोथेरेपिस्ट माइक डाउन के मुताबिक, मेहमानों को लेकर हम जितना सहज रहेंगे, हम उनकी देखरेख उतनी ही अच्छी कर पाएंगे।

आमतौर पर हम मेहमानों को लेकर काफी अलर्ट हो जाते हैं। उनको एक्स्ट्रा कम्फर्ट और स्पेशल फील कराने के लिए ढेरों तैयारियां करने लगते हैं। यही वजह है कि हम मेहमानों को लेकर तनाव महसूस करते हैं। जिसके चलते मेहमान भी हमारे घर पर आकर असहज महसूस करने लगते हैं।

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मेहमानों के प्रति हमारा व्यवहार वैसा ही होना चाहिए जैसा परिवार के लोगों के साथ होता है। ऐसा करने से आप और आपके मेहमान जल्दी घुल-मिल जाएंगे।

फेस्टिव सीजन में मेहमान आएं तो ट्रीट करने के लिए ये 5 तरीके अपनाएं

1: कुछ ऐसा करें जो आपको भी पसंद हो और मेहमानों को भी

कुछ अलग करने के बजाए मेहमानों के लिए कुछ ऐसा करें जो आप और आप के मेहमानों में कॉमन हो। ऐसा करने से में मेहमान को अपनापन महसूस होगा और आपके और आपके परिवार के साथ वे जल्दी घुल-मिल जायेंगे।

2: खुद पर कंट्रोल जरूरी

मेहमानों की देखरेख के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है खुद पर कंट्रोल। हमें वह सब कुछ करने से बचना चाहिए जो मेहमानों को पसंद न हो या जिससे मेहमान असहज हो जाएं।

3: मेहमानों से कुछ सीखें

  • जब भी हमारे घर पर कोई मेहमान आता है तो उस को एंटरटेन करने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम उससे कुछ सीखने का प्रयास करें। यह तरीका बहुत कारगर है और फायदेमंद भी।
  • हर आदमी का अलग-अलग जॉब, करियर, बिजनेस और एजुकेशनल बैकग्राउंड होता है। ऐसे में उसके साथ बैठकर उसके प्रोफेशन के बारे में बात करने से हमें कुछ सीखने को मिलेगा। ऐसा करने से मेहमान को कम्फर्ट भी महसूस होगा।

4: किसी बात को पर्सनली न लें

  • आमतौर पर मेहमानों के आने से बहुत सारी चीजों से समझौते करना पड़ता है। बहुत एडजेस्ट करना पड़ता है। ऐसे में हमें किसी बात को पर्सनली लेने से बचना चाहिए।
  • इसके लिए हमें अपनी भावनाओं को कंट्रोल करना पड़ेगा। समझौते की गुंजाइश रखनी पड़ेगी और इन सबके बावजूद अपने व्यवहार को सरल और सामान्य रखना पड़ेगा।
  • इस बात का विशेष ध्यान रहे कि हमारे समझौते हमारे व्यवहार में न दिखें। अगर ऐसा होता है तो हम करेंगे भी और उसका कोई फायदा भी नहीं मिलेगा। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, हमारा व्यवहार बोलता है। इसलिए पर्सनली लेने से बचें और व्यवहार को सामान्य रखें।

5: एन्जॉय करने पर फोकस करें

मेहमानों को कम्फर्ट और अच्छा महसूस कराने के लिए उनके साथ एंजॉय करना एक बेहतर और कारगर उपाय है। जितना ज्यादा हो सके मेहमानों के साथ एंजॉय करने की कोशिश करें।



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Diwali Festival Guest 2020: How to Treat/Welcome Guests in Your Home? Know Everything About


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1969 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ही कांग्रेस ने पार्टी से निकाल दिया था, पढ़िए क्यों?

बात 1969 की है। इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। उस समय कांग्रेस में कुछ बुजुर्ग नेताओं का सिंडिकेट हावी था। इंदिरा गांधी की भूमिका राम मनोहर लोहिया के शब्दों में 'गूंगी गुड़िया' से ज्यादा नहीं थी। पार्टी में उनको सुनने वाले बहुत कम थे।

इंदिरा चाहती थीं कि वीवी गिरि को राष्ट्रपति बनना चाहिए पर पार्टी में सक्रिय सिंडिकेट ने नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था। तब इंदिरा गांधी ने बगावत कर दी और रेड्डी हार गए। मोरारजी देसाई को वित्त मंत्री पद से हटाने के बाद से ही सिंडिकेट के नेता इंदिरा से नाराज थे। रेड्डी की हार ने उन्हें और परेशान कर दिया। उन्हें लगता था कि अगर प्रधानमंत्री ही पार्टी के नेता को सपोर्ट नहीं करेंगी तो कौन करेगा।

कांग्रेस के उस समय के अध्यक्ष एस निंजालिंगप्पा के खिलाफ सिग्नेचर कैम्पेन शुरू हो गया। इंदिरा भी अलग-अलग राज्यों में जाकर कांग्रेसियों को अपने पक्ष में लामबंद कर रही थीं। इंदिरा समर्थकों ने स्पेशल कांग्रेस सेशन बुलाने की मांग की ताकि नया प्रेसीडेंट चुना जा सके। गुस्से में निंजालिंगप्पा ने इंदिरा को ओपन लेटर लिखा और इंटरनल डेमोक्रेसी खत्म करने का आरोप लगाया। इंदिरा ने भी निंजालिंगप्पा की बैठकों में भाग लेना बंद कर दिया।

1 नवंबर को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की दो जगहों पर मीटिंग हुईं। एक प्रधानमंत्री आवास में और दूसरी कांग्रेस के जंतर-मंतर रोड कार्यालय में। तब कांग्रेस कार्यालय में हुई मीटिंग में इंदिरा को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निकाल दिया गया और संसदीय दल से कहा गया कि वो अपना नया नेता चुन लें। इंदिरा ने फौरन दोनों संसद के दोनों सदनों के सदस्यों की मीटिंग बुलाई, जिसमें कांग्रेस के 429 सांसदों में से 310 ने भाग लिया।

इंदिरा ने कांग्रेस के दो टुकड़े कर दिए। इंदिरा की पार्टी का नाम रखा गया कांग्रेस (R) और दूसरी पार्टी हो गई कांग्रेस (O)। तब इंदिरा ने सीपीआई और डीएमके की मदद से कांग्रेस (O) के अविश्वास प्रस्ताव को गिरा दिया।

पहले गोलमेज सम्मेलन की शुरुआत

पहले गोलमेज सम्मेलन में शामिल हुए प्रतिनिधि।

भारत को आजादी भले ही 1947 में मिली हो, उस समय स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व कर रही कांग्रेस कार्यसमिति ने फरवरी 1930 में ही पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का फैसला कर लिया था। जब दांडी मार्च के बाद महात्मा गांधी ने नमक कानून तोड़ा तो ब्रिटिश सरकार सक्रिय हुई और उसने भारत में संवैधानिक सुधारों के लिए राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस या गोलमेज सम्मेलन आयोजित किए।

इन गोलमेज सम्मेलनों की शुरुआत 12 नवंबर 1930 को हुई और लंदन में यह बातचीत 19 जनवरी 1931 तक चली। इसकी अध्यक्षता ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने की थी, जिसमें 89 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। यह पहली ऐसी बातचीत थी, जिसमें ब्रिटिश शासकों ने कथित तौर पर भारतीयों को समानता का दर्जा दिया था। कांग्रेस के प्रमुख नेता उस समय जेल में थे और महात्मा गांधी के साथ-साथ जवाहरलाल नेहरू ने भी सम्मेलन का बहिष्कार करने की घोषणा की थी।

भारत और दुनिया में 12 नवंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैं:

  • 1781: अंग्रेजों ने नागापट्टनम पर कब्जा किया।
  • 1847ः ब्रिटेन के डॉक्टर सर जेम्स यंग सिम्पसन ने बेहोशी की दवा के रूप में पहली बार क्लोरोफार्म का इस्तेमाल किया।
  • 1861: महान स्वतंत्रता सेनानी और बड़े समाज सुधारक मदनमोहन मालवीय का निधन।
  • 1925ः अमेरिका और इटली ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए।
  • 1936ः केरल के मंदिर सभी हिंदुओं के लिए खुले।
  • 1956ः मोरक्को, सूडान और ट्यूनीशिया संयुक्त राष्ट्र में शामिल हुए।
  • 1995ः नाइजीरिया राष्ट्रमंडल की सदस्यता से निलंबित हुआ।
  • 2002ः संयुक्त राष्ट्र ने स्विटजरलैंड के संघीय ढांचे के आधार पर साइप्रस के लिए एक नई शांति योजना तैयार की।
  • 2009ः भारत में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अतुल्य भारत अभियान को वर्ल्ड ट्रेवल अवॉर्ड-2009 से नवाजा गया।


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