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जम्मू-कश्मीर में अनंतनाग जिले के सिरहामा में गुरुवार सुबह दो आतंकी मारे गए। दोनों आतंकी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हुए थे। यहां उनकी सुरक्षाबलों के साथ बुधवार से एनकाउंटर चल रही है। उनके पास से भारी मात्रा में गोला-बारूद और हथियार बरामद किए गए हैं। इलाके में सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है।
एक दिन पहले पुलवामा में एक आतंकी मारा गया था
इससे पहले गुरुवार को पुलवामा जिले में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में एक आतंकवादी मारा गया था। मुठभेड़ त्राल क्षेत्र के मगहमा में हुई थी। उधर, बडगाम जिले में सीआरपीएफ पार्टी पर आतंकी हमले में एक जवान शहीद हुआ था।
अगस्त और में कश्मीर में मुठभेड़ में मारे गए दहशतगर्द
17 सितंबर को श्रीनगर के बटमालू में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में 3 आतंकी मारे गए थे।
29 अगस्त को पुलवामा के जदूरा इलाके में सुरक्षाबलों ने शनिवार तड़के तीन आतंकियों को मार गिराया। सेना का एक जवान शहीद हो गया।
28 अगस्त को शोपियां के किलूरा इलाके में सुरक्षाबलों ने चार आतंकियों को मार गिराया। एक को गिरफ्तार किया गया। ये अल बद्र आतंकी संगठन से जुड़े थे।
19 अगस्त को दक्षिण कश्मीर के शोपियां में सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच दो मुठभेड़ हुई थीं। इस दौरान एक आतंकवादी मारा गया था। इसी दिन हंदवाड़ा के गनीपोरा में दो आतंकी मारे गए थे।
17 और 18 अगस्त को बारामूला के करीरी इलाके में मुठभेड़ हुई थी। इस दौरान 3 आतंकियों को सुरक्षाबलों ने ढेर किया था। इनमें लश्कर के दो कमांडर सज्जाद उर्फ हैदर और उस्मान शामिल थे। हैदर बांदीपोरा हत्याओं का मुख्य साजिशकर्ता था। वह युवाओं को आतंकी संगठन में भर्ती करता था। विदेशी आतंकी उस्मान ने भाजपा नेता वसीम बारी, उसके पिता और भाई की हत्या की थी।
‘सरकार किसानों को बिचौलियों से मुक्ति दिलाना चाहती है और बिचौलियों को खत्म करने के लिए ही नए कानून बनाए गए हैं।’ अखबार में छपी इन पंक्तियों को पढ़ते हुए राकेश कुमार गुस्से से भर जाते हैं और अखबार एक तरफ पटक देते हैं। उन्हें गुस्सा इसलिए आया, क्योंकि जिन बिचौलियों को खत्म करने की बात अखबार में लिखी गई है, वे उन्हीं कथित बिचौलियों में से एक हैं।’
60 साल के राकेश कुमार एक आढ़ती हैं और यही उनका पुश्तैनी काम है। पंजाब के मानसा जिले की पुरानी मंडी में करीब 70 साल पहले उनके दादा ने आढ़त का काम शुरू किया था। आज उनके आप-पास के करीब 300 किसान जुड़े हुए हैं जिनका पूरा बही-खाता उनके पास दर्ज है।
राकेश कहते हैं, ‘किसानों और आढ़तियों का रिश्ता दशकों पुराना है। उनके बिना हमारा गुजारा नहीं हो सकता और हमारे बिना उनका गुजारा नहीं है। दोनों दीया और बाती की तरह हैं जो एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। ये भाजपा सरकार आज हमें बिचौलिया बताकर खत्म करने की बात कर रही है, लेकिन यही लोग जब विपक्ष में थे तो इनकी बड़ी नेता सुषमा स्वराज ने संसद में हमारे और किसानों के रिश्ते की जम कर तारीफ की थी।’
दिवंगत भाजपा नेता सुषमा स्वराज के जिस बयान की बात राकेश कर रहे हैं, वह इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। 2012 में विदेशी पूंजी निवेश का विरोध करते हुए सुषमा स्वराज ने लोक सभा में कहा था, ‘ग्रामीण अर्थव्यवस्था कहती है कि बैंकों के एटीएम तो आज आए हैं, आढ़ती किसान का पारंपरिक एटीएम है।
किसान को बेटी की शादी करनी हो, बुआ का भात भरना हो, बहन का छुछक देना हो, बच्चे की पढ़ाई करानी हो, बाप की दवाई करानी हो, किसान सिर पे साफा बांधता है और सीधा मंडी में आढ़ती के यहां जाकर खड़ा हो जाता है। मैं पूछना चाहती हूं क्या वॉलमार्ट और टेस्को उसे (किसान को) उधार देगा? क्या उसे संवेदना होगी बेटी की शादी या बहन का भात भरने की?
उसे तो धोती और साफे वाले किसान से बदबू आएगी। कौन किसान से सीधा खरीदेगा? अरे नई एजेंसियां खड़ी होंगी, नए बिचौलिये खड़े हो जाएंगे। इसलिए ये कहना कि बिचौलिये को आप समाप्त कर देंगे, ये बात सिरे से गलत है।’ सुषमा स्वराज की कही यही बातें आज उन भाजपा नेताओं के लिए मुश्किल खड़ी कर रही हैं जो दावा कर रहे हैं कि नए कानून लागू होने से बिचौलिये खत्म हो जाएंगे।
मानसा आढ़तिया एसोसिएशन के अध्यक्ष मुनीश बब्बू दानेवालिया कहते हैं, ‘सबसे पहले तो हमें बिचौलिया शब्द से ही आपत्ति है। अगर हम बिचौलिये हैं तो ये तमाम पेट्रोल पंप वाले क्या हैं जो कमिशन पर काम करते हैं। ये सभी गैस एजेंसी वाले क्या बिचौलिये नहीं हैं? इनकी ही तरह हमारा काम भी कमिशन एजेंट का है। बल्कि आढ़त का काम तो इनसे कहीं ज्यादा पुराना और पारंपरिक है।’
आढ़त की व्यवस्था देश के कई राज्यों में है, लेकिन इसका सबसे मजबूत स्वरूप हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में देखा जा सकता है। इन राज्यों में किसान लगभग पूरी तरह से ही आढ़तियों पर निर्भर होते हैं। यहां किसानों की सारी उपज आढ़तियों से होकर ही बिकती है और किसानों का सारा खर्च भी आढ़तियों से लिए गए पैसे से चलता है।
किसान की जमीन के आधार पर आढ़ती उन्हें पैसा देते हैं। पंजाब की बात करें तो यहां औसतन एक किले (एकड़) जमीन पर किसान को आढ़ती से पचास हजार तक की रकम मिलती है। इसी रकम से फिर किसान खेती की लागत में पैसा लगाता है और अपने बाकी खर्चे चलाता है। छह महीने बाद जब फसल तैयार होती है तो किसान फसल लेकर आढ़ती के पास आता है जिसे बेचकर आढ़ती अपना पैसा वसूलता है और फिर अगली फसल के लिए किसान को पैसा देता है।
यही कारण है कि अनाज की सारी बिक्री आढ़तियों के जरिए ही होती है। अनाज मंडियों में आढ़तियों की दुकान होती हैं जहां से कोई भी सरकारी या गैर-सरकारी एजेंसी फसल खरीदती हैं। इस खरीद पर एजेंसियों को टैक्स भी चुकाना होता है। ये टैक्स हर राज्य में अलग-अलग है। पंजाब में यह टैक्स साढ़े आठ फीसदी है, जिसमें से तीन फीसदी रुरल डेवलपमेंट टैक्स है, तीन फीसदी मार्केट सेस और ढाई फीसदी आढ़तियों का कमीशन।
इसी पूरे कमीशन को खत्म करने की बात अब नए कानून में कही जा रही है। नई व्यवस्था में प्रावधान है कि आगे से फसल की खरीद मंडी से बाहर भी की जा सकेगी और बाहर होने वाली खरीद पर खरीददार को कोई टैक्स नहीं चुकाना पड़ेगा। ऐसे में आढ़तियों का डर वाजिब है कि अगर मंडी से बाहर बिना किसी टैक्स के खरीद का विकल्प होगा तो कोई भी व्यक्ति मंडी में टैक्स चुकाकर क्यों खरीदने आएगा। लिहाजा मंडी व्यवस्था धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी और इसके साथ ही आढ़ती और उनसे जुड़े लाखों लोगों का काम-धंधा हमेशा के लिए बंद हो जाएगा।
ये डर सिर्फ आढ़तियों को ही नहीं बल्कि किसानों को भी है। मानसा के किसान बीरबल सिंह कहते हैं, ‘आढ़तियों के बिना हमारा गुजारा भी नहीं है। एक बार तो हम अपनी फसल बेच कर पैसा खा लेंगे लेकिन फिर आगे का क्या होगा। अभी तो हमें रात-बेरात कभी भी कोई जरूरत आ पड़ती है तो हम आढ़ती से पैसा ले लेते हैं। क्या प्राइवेट कंपनियां हमें ऐसे पैसा देंगी? किसानों के लिए आढ़ती उनकी जड़ के जैसे हैं। अगर जड़ ही उखड़ जाएगी तो हम कैसे पनप सकेंगे।’
बीरबल सिंह ये इसलिए कह रहे हैं क्योंकि किसानों की खेती की प्रक्रिया आढ़ती से उधार लेने से ही शुरू होती है। वह इसलिए क्योंकि किसानों के पास जमीन तो हैं लेकिन पैसा नहीं है। ऐसे में किसान को न सिर्फ खेती के लिए पैसे की जरूरत होती है बल्कि फसल पकने और बिक जाने तक के सारे खर्चों के लिए उसे आढ़ती पर निर्भर रहना पड़ता है। कुछ बड़े किसानों को छोड़ दें तो लगभग यही स्थिति सभी किसानों की है।
भारत में 86 फीसदी किसानों के पास दो हेक्टेयर से भी कम जमीन है। ऐसे में छोटे किसानों को चिंता है कि आढ़ती कमजोर होंगे तो वह पूरी व्यवस्था कमजोर हो जाएगी, जिससे उनका काम पीढ़ियों से चला आ रहा है। इसलिए किसान आंदोलन में शामिल तमाम किसान सिर्फ अपने एमएसपी की लड़ाई नहीं लड़ रहे बल्कि आढ़तियों को बचाने की लड़ाई भी लड़ रहे हैं। लेकिन इससे इतर ये भी सच है कि आढ़त व्यवस्था अपने-आप में किसानों के लिए किसी दुष्चक्र में फंसे रहने से कम नहीं है।
आढ़ती किसानों को जो पैसा देते हैं उस पर ब्याज वसूला जाता है। यह ब्याज अमूमन 12 फीसदी से लेकर 18 फीसदी तक होता है। खेती के अलावा अन्य जरूरतों के लिए भी किसान आढ़ती से पैसा लेता है। जैसा कि दिवंगत सुषमा स्वराज ने कहा था, बेटी की शादी से लेकर बच्चे की पढ़ाई करानी हो और बाप की दवाई तक हर चीज के लिए किसान आढ़ती के पास जाता है।
आढ़ती ये पैसा किसान को देता भी है लेकिन ये सब ब्याज पर दिया जाता है। फिर किसान की जब फसल बिकती है तो आढ़ती पहले अपना पैसा और ब्याज वसूलते हैं, जो अमूमन किसान द्वारा लिए गए कर्ज से कम ही रह जाता है। लिहाजा किसान फिर से अगली फसल के लिए आढ़ती से कर्ज लेने को मजबूर होता है।
पंजाब किसान यूनियन के राज्य कमिटी सदस्य सुखदर्शन नत्त कहते हैं, ‘पहले तो आढ़तियों की ये व्यवस्था और भी बुरी थी। आढ़ती तीस फीसदी से लेकर 48 फीसदी तक ब्याज किसानों से वसूला करते थे। किसान यूनियनों ने लंबी लड़ाई लड़ी तब जाकर ये ब्याज कम हुआ है।’
वे आगे बताते हैं कि हैं कि इस तरह से ब्याज पर पैसा देना गैर-कानूनी है लेकिन दोनों पक्ष सहमत रहते हैं इसलिए यह व्यवस्था चलती रहती है। इस व्यवस्था को तोड़ने और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के कुछ विकल्प पहले भी तलाशे गए लेकिन ये कामयाब नहीं हो सके।
छोटे किसानों को बैंकों से तीन लाख रुपए तक का लोन सिर्फ चार फीसदी ब्याज पर देने की व्यवस्था बनी ताकि किसान आढ़ती पर निर्भर न रहे। लेकिन सिर्फ इतने से किसान का काम नहीं चलता। कोई न कोई खर्च ऐसा आ ही जाता है कि उसे वापस आढ़ती के पास जाना पड़ता है लिहाजा ये व्यवस्था बनी रहती है।
किसानों को मजबूत करने के लिए ये भी व्यवस्था बनी कि अनाज की बिक्री का पैसा आढ़ती की बजाय सीधे किसान के खाते में डाला जाए। लेकिन ऐसा होने पर आढ़तियों ने किसानों की चेक बुक ही अपने पास रखना शुरू कर दिया, लिहाजा ये तरीका भी विफल रहा। हालांकि पहले के मुकाबले किसानों की आढ़तियों पर निर्भरता कम जरूर हुई है।
सुखदर्शन नत्त बताते हैं, ‘आज से लगभग बीस साल पहले की अगर बात करें तो उस वक्त पंजाब में करीब 70 फीसदी किसानों पर आढ़तियों का कर्ज होता था और सिर्फ 30 फीसदी किसानों पर बैंक का। लेकिन आज ये आंकड़ा बिलकुल उलट चुका है। हालांकि अब भी आढ़त व्यवस्था में कई तरह की खामियां हैं, लेकिन उनसे निपटने का तरीका ये तो बिलकुल नहीं है जो मोदी सरकार इन कानूनों को लागू करके कर रही है।
हमारी लड़ाई इस बात की नहीं है कि आढ़ती ही खत्म कर दिए जाएं। हमारी लड़ाई है कि किसान मजबूत हो। लेकिन सरकार के इस फैसले से तो दोनों ही मारे जाएंगे इसीलिए इस आंदोलन में किसान और आढ़ती सब साथ खड़े हैं। बल्कि ये आंदोलन सिर्फ किसान या आढ़तियों का नहीं तमाम जानता का कॉरपोरेट के खिलाफ आंदोलन है। इस व्यवस्था से तो किसान की जमीन ही नहीं बचेगी तो क्या किसान रह जाएगा और क्या आढ़ती।’
लगभग यही डर उन तमाम लोगों को भी है जो आढ़तियों के साथ मुनीम या अन्य तरह का काम करते हैं और उनको भी जो मंडियों में मजदूरी का काम कर रहे हैं। मूल रूप से हरदोई के रहने वाले दिनेश कुमार कहते हैं, ‘मैं बीते 28 साल से पंजाब में एक आढ़ती के पास मुनीम का काम कर रहा हूं। मेरी ही तरह लगभग हर आढ़ती के पास दो-तीन मुनीम काम करते हैं। हमसे कहीं गुना ज्यादा संख्या उन मजदूरों की है जो आढ़तियों से जुड़े हैं या जो मंडियों में मजदूरी करते हैं। मंडियां कमजोर होंगी तो सिर्फ आढ़तियों को फर्क नहीं पड़ेगा, हम जैसे लाखों लोगों के पेट पर लात पड़ जाएगी।’
शिप्रा शांडिल्य...90 के दशक में फैशन इंडस्ट्री में ये एक चमकता नाम था, लेकिन 19 साल तक फैशन इंडस्ट्री में काम करने के बाद अचानक एक दिन उस चमचमाती दुनिया को छोड़कर गांव का रुख किया। पिछले सात सालों से वे ग्रामीण इलाकों में ही रहकर यहां के लोगों के साथ ही काम कर रही हैं। शिप्रा ने बनारस और आसपास के गांव की महिलाओं को जोड़कर एक फर्म बनाई, जिसका नाम रखा प्रभूति एंटरप्राइजेज। अब वे इसके जरिए करीब 12 तरह के अलग-अलग फूड प्रोडक्ट्स तैयार करती हैं। शुरुआत गाय के शुद्ध देसी घी से की थी और फिर रागी, बाजरा जैसे मोटे अनाजों के नॉन प्रिजर्वेटिव कुकीज भी बनाने लगीं।
अपनी बेकरी में गांव की 15 महिलाओं को रोजगार देकर शिप्रा उन्हें आत्मनिर्भर बना रही हैं, साथ ही 450 से अधिक छोटे किसानों से भी सीधे संपर्क में हैं, जो उन्हें हर महीने 30 हजार लीटर गाय का दूध उपलब्ध कराते हैं। जल्द ही आसपास के जिलों के 700 किसानों को भी जोड़ने की प्लानिंग है।
शिप्रा बताती हैं कि ‘इसमें करीब 10 लाख रुपए का इंवेस्टमेंट हुआ, जिसमें आठ लाख रुपए मुद्रा योजना के तहत लोन लिया। पिछले फाइनेंशियल ईयर में 24 लाख रुपए का टर्नओवर रहा, जिसे अगले साल में चार गुना करने का प्लान है।’
आध्यात्म की ओर रुझान हुआ तो अहसास हुआ कि फैशन इंडस्ट्री में बहुत गंदगी है
अपने शुरुआती दिनों के बारे में शिप्रा बताती हैं, ‘मेरे पिताजी बीएसएफ में थे, उस समय हम नोएडा में रहते थे। मैंने 12वीं तक की पढ़ाई के बाद डिस्टेंस से पढ़ाई की। मैंने हमेशा किताबों में पढ़ा और सक्सेसफुल लोगों से सुना था कि पैशन को ही प्रोफेशन बनाना बेहतर रहता है। तो मैंने 12वीं के बाद पत्राचार से फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा कोर्स किया। कोर्स के बाद मेरे पास जॉब ऑफर भी था, लेकिन मुझे अपना काम करना था तो गैराज में ही अपना एक छोटा सा स्टोर बनाकर शुरुआत की।
शिप्रा ने 1992 में फैशन डिजाइनिंग की फील्ड में काम शुरू किया। कुछ ही सालों में वे कामयाब फैशन डिजाइनर बन गईं। कम समय में ही शिप्रा को पैसा और शोहरत दोनों मिल गए। डिजाइनिंग के बाद शिप्रा ने कई सालों तक डाई के सेक्टर में भी काम किया। इसके लिए वह अलग-अलग शहरों में रहीं और वहां काम सीखा भी और सिखाया भी।
इस बीच शिप्रा का रुझान आध्यात्म की ओर भी हुआ और उन्हें अहसास होने लगा कि फैशन इंडस्ट्री दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषित इंडस्ट्री में से एक है। साथ ही यहां बड़े पैमाने पर कारीगरों का शोषण होता है, उन्हें उनके काम का सही दाम तक नहीं मिलता है। फिर एक वक्त आया जब शिप्रा को लगा कि अब उन्हें कुछ और करने की जरूरत है। 19 साल बाद 2011 में वे नाेएडा का अपना जमा जमाया बिजनेस छोड़कर बनारस आ गईं। शिप्रा बताती हैं, ‘जब मैं गांव आई तो सब मुझे पागल ही समझते थे।’
बनारस आकर तय किया कि ऐसा बिजनेस करूंगी जिससे लोगों को खुशी मिले
शिप्रा बताती हैं कि ‘जब मैं बनारस आई तो सोचा कि यहां कोई ऐसा काम करूंगी जिसमें पर्यावरण का नुकसान न हो और न ही किसी का शोषण हो। मैं नहीं चाहती थी कि बिजनेस से आने वाले पैसे लाेगों के मानसिक और पर्यावरणीय प्रदूषण से नहीं, बल्कि उनकी खुशियों से आएं।
2013 में यहां महिलाओं के हुनर को देखा कि वे कैसे जपमाला और कई तरह-तरह की माला तैयार करती हैं। शिप्रा ने सोचा कि जिस माला से लोग भगवान का ध्यान करते हैं वो माला सड़क किनारे मिलती है। इसके बाद उन्होंने ‘माला इंडिया’ के नाम से एक बिजनेस शुरू किया। इस बिजनेस में शिप्रा ने करीब 100 महिलाओं को जोड़ा। इन प्रोडक्ट्स को भारत समेत विदेशों तक भी पहुंचाया। लेकिन कस्टम के नियमों में बदलाव के बाद एक्सपोर्ट का खर्च बढ़ गया तो शिप्रा ने महसूस किया कि इस बिजनेस में ज्यादा फायदा नहीं हो सकेगा।
गाय के देसी घी की इतनी डिमांड आई कि सप्लाई कम पड़ने लगी
शिप्रा ने तय किया कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे गांव में रहने वाले हर एक परिवार को जोड़ा जा सके और वे लोग बिना लागत के ही काम शुरू कर सकें। इसी सोच के साथ 2019 में शिप्रा ने प्रभूति एंटरप्राइजेज की शुरुआत की। शिप्रा कहती हैं कि ‘ मैंने सोचा कि ऐसी क्या चीज़ है जो हर ग्रामीण घर में होती है? पता चला कि ज्यादातर किसान परिवार गाय-भैंस तो रखते ही हैं। तो मैंने घर पर बने शुद्ध घी को मार्केट तक पहुंचाने का निर्णय लिया।
इसके लिए शिप्रा ने 55 हजार की लागत से दूध से क्रीम निकालने वाली एक मशीन खरीदी, जहां किसान दूध से क्रीम निकाल लेते और फिर इस क्रीम से पारम्परिक तरीके से शुद्ध देसी घी तैयार करना शुरु किया। इसमें बीएचयू के केमिकल इंजीनियर डिपार्टमेंट ने भी सपोर्ट किया। शुरुआत में जान-पहचान के लोगों से इस घी का फीडबैक लिया फिर इसे काशी घृत नाम देकर बाजार में उतारा। बाजार में ऑर्गेनिक शॉप्स पर इस घी को अच्छा रिस्पांस मिला।
शिप्रा हर महीने करीब 100 किलो देसी घी तैयार करती हैं लेकिन इसकी डिमांड बहुत ज्यादा है। अब वे आस-पास के जिलों के किसानों को भी जोड़ रही हैं ताकि उन्हें ज्यादा मात्रा में गाय का दूध मिल सके, जिससे वे घी तैयार कर मार्केट में सप्लाई कर सकें। 30 लीटर दूध की क्रीम से एक किलो घी तैयार होता है। फिलहाल शिप्रा, तीन तरह के घी (सामान्य देसी घी, ब्राह्मी घी, शतावरी घी) बना रही हैं। इस घी की कीमत 1450 रुपए से लेकर 2460 रुपए प्रति किलो तक है।
किसानों को उनकी उपज से ही काम देकर तैयार कराती हैं मल्टीग्रेन कुकीज
बनारस से सटे गांवों के किसान रागी, ज्वार भी उगाते हैं। शिप्रा ने सोचा कि क्यों न इन किसानों को उनकी अपनी उपज से ही कुछ काम दिया जाए। इस तरह घी के बाद इन अनाजों के कुकीज बनाने का आइडिया आया। घी के अलावा वे नारियल, ओट्स, रागी, हल्दी आदि के कुकीज भी बना रही हैं। इन कुकीज में किसी भी तरह के एडिटिव, प्रिजर्वेटिव और ग्लूटन का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
इनमें छह तरह के कुकीज वीगन डाइट वालों के लिए भी बनाए गए हैं। हर महीने करीब 50 किलाे कुकीज तैयार की जाती है, इन कुकीज की कीमत 1300 रुपए से लेकर 1500 रुपए प्रति किलो तक है। घी और कुकीज की पैकिंग के लिए कांच के एयरटाइट जार का इस्तेमाल किया जाता है।
मार्केट डिमांड देखकर ही बिजनेस प्लान पर काम करें
शिप्रा कहती हैं कि कोई भी बिजनेस शुरू करने से पहले यही देखा जाए कि मार्केट में किस चीज की डिमांड है, उसी हिसाब से अपने बिजनेस प्लान पर काम करें। शिप्रा की योजना है कि उनके प्रोडक्ट्स पूरे देश में पहुंचें और वे ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को रोजगार दे सकें।
शिप्रा कहती हैं, जरूरी नहीं है कि आपके पास पैसे हों तभी आप बिजनेस शुरू कर सकते हैं। सरकार की तमाम योजनाएं हैं, बस इसे सही तरीके से समझकर इसके लिए आवेदन करने की जरूरत है। शिप्रा कहती हैं कि ‘अगर कोई भी व्यक्ति अपने बिजनेस की शुरुआत करना चाहता है तो हम उसकी हर तरह से नि:शुल्क मदद करते हैं।’
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद बॉलीवुड में ड्रग्स की जांच कर रहा नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) आज एक्ट्रेस रकुलप्रीत सिंह से पूछताछ करेगा। रकुलप्रीत गुरुवार को बेंगलुरु से मुंबई लौट आईं। NCB ने आज दीपिका पादुकोण की मैनेजर करिश्मा प्रकाश और करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शन के डायरेक्टर क्षितिज रवि प्रसाद को भी बुलाया है। उधर, NCB ने मुंबई में 3 जगहों पर छापे मारे हैं। इस बारे में ज्यादा डिटेल नहीं मिल पाई है।
3 एक्ट्रेस से कल पूछताछ होगी
दीपिका पादुकोण, सारा अली खान और श्रद्धा कपूर से कल पूछताछ होगी। तीनों पर ड्रग्स लेने के आरोप हैं। बताया जा रहा है कि ड्रग्स केस में गिरफ्तार रिया चक्रवर्ती ने पूछताछ में कई एक्ट्रेस के नाम लिए हैं। दीपिका और उनकी मैनेजर के वॉट्सऐप चैट में भी ड्रग्स की बातचीत सामने आई है। उधर, दीपिका और सारा गुरुवार को गोवा से मुंबई लौट आईं। सूत्रों के मुताबिक, दीपिका के पति रणवीर ने NCB से अपील की है कि पूछताछ के दौरान वे दीपिका के साथ रहना चाहते हैं। रणवीर ने कहा है कि दीपिका को कभी-कभी घबराहट होती है। इसलिए पूछताछ के वक्त उनके साथ रहने की परमिशन दी जाए।
राखी सावंत का दावा- स्लिम दिखने के लिए कई एक्टर्स ड्रग्स लेते हैं
राखी ने दावा किया है कि कई एक्टर्स ऐसे ड्रग्स लेते हैं, जिनसे उन्हें भूख न लगे। राखी ने बताया, ‘मैंने देखा है कि कई एक्टर खुद को स्लिम और जवान बनाए रखने के लिए ड्रग्स लेते हैं। ज्यादातर वीड (गांजा) इस्तेमाल करते हैं। कई बड़े एक्टर चरस भी पीते हैं।
from Dainik Bhaskar /national/news/narcotics-control-bureau-summon-to-rakul-preet-singh-in-drugs-case-today-deepika-padukone-will-join-tomorrow-127752089.html
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चुनाव आयोग आज दोपहर 12.30 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहा है। इसमें बिहार विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान हो सकता है। साथ ही मध्य प्रदेश में 27 सीटों पर उपचुनाव की घोषणा भी हो सकती है।
देश में गुरुवार को कोरोना संक्रमण के 82214 मामले आए। 77488 लोग ठीक हुए और 1144 लोगों की मौत हुई। छह दिन के बाद संक्रमितों की संख्या ठीक हुए मरीजों से ज्यादा रही। हालांकि, राहत की बात रही कि यह लगातार पांचवां दिन था, जब संक्रमितों की संख्या 90 हजार से कम रही।
देश में अब तक 58 लाख 16 हजार 103 केस आ चुके हैं। इनमें से 47 लाख 52 हजार 991 मरीज ठीक हो चुके हैं। मरने वालों की संख्या अब 92 हजार 270 हो गई है। ये आंकड़े covid19india.org के मुताबिक हैं।
कोरोना अपडेट्स
दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को डेंगू हो गया है। उन्हें एलएनजेपी हॉस्पिटल से मैक्स अस्पताल के आईसीयू में शिफ्ट किया गया है। 14 सितंबर को उन्होंने कोरोना से संक्रमित होने की पुष्टि की थी। इससे पहले दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन भी संक्रमित हो चुके हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को कहा कि दिल्ली कोरोना की दूसरी लहर के पीक से गुजर चुकी है। सितंबर में 4000 केस आना महामारी की दूसरी लहर का संकेत है।
ऑक्सीजन लेवल कम होने के बाद असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई को आईसीयू में शिफ्ट किया गया। 85 साल के गोगोई 25 अगस्त को कोरोना संक्रमित पाए गए थे।
कर्नाटक के कांग्रेस विधायक बी नारायण (61) राव की गुरुवार को कोरोना से मौत हो गई। वे बीदर जिले के बसवकल्याण से विधायक थे।
पांच राज्यों का हाल
1. मध्यप्रदेश
राज्य में गुरुवार को 2304 नए संक्रमित मिले, जबकि 2327 ठीक हुए। वहीं, 45 मरीजों ने दम तोड़ दिया। यहां अब तक 1 लाख 15 हजार 361 केस मिल चुके हैं। नए संक्रमितों में मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया, हरदीप सिंह डंग और भीकनगांव से कांग्रेस विधायक झूमा सोलंकी भी शामिल हैं। इन्हें मिलाकर अब तक सरकार के 13 मंत्री और पक्ष-विपक्ष के 44 विधायक संक्रमित हो चुके हैं।
2. राजस्थान
राज्य में गुरुवार को संक्रमण के 1981 मामले मिले और 1965 लोग ठीक हुए। 27 जिले ऐसे हैं, जिनमें एक हजार से ज्यादा रोगी मिल चुके हैं। बाकी छह जिले- हनुमानगढ़ में 773, प्रतापगढ़ में 746, करौली में 799, सवाई माधोपुर में 820 और दौसा में 895 केस हैं। जयपुर में सबसे ज्यादा 19 हजार पॉजिटिव मिल चुके हैं।
3. बिहार
बिहार में गुरुवार को 1203 संक्रमित मिले। वहीं, 1154 लोग ठीक हुए। राज्य में अब तक कोरोना के 1 लाख 74 हजार 266 केस आए हैं, 1 लाख 59 हजार 700 मरीज ठीक हो चुके हैं। 28 सितंबर से 9 से 12 तक के स्टूडेंट्स शिक्षकों से मार्गदर्शन के लिए स्कूल जा सकेंगे। इसके लिए पैरेंट्स की अनुमति जरूरी है। इस दौरान प्रार्थना सत्र, खेलकूद और अन्य गतिविधि नहीं होगी। स्कूल स्टाफ की संख्या 50% से ज्यादा नहीं होगी।
4. महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में गुरुवार को 19 हजार 164 संक्रमित मिले और 17 हजार 184 लोग रिकवर हुए। वहीं, 459 लोगों की मौत हुई। अब तक 12 लाख 82 हजार 963 लोग संक्रमित हो चुके हैं। इनमें 9 लाख 73 हजार 214 लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 2 लाख 74 हजार 993 का इलाज चल रहा है।
5. उत्तरप्रदेश
राज्य में गुरुवार को 4591 नए केस सामने आए, 4922 मरीज ठीक हो गए, जबकि 67 संक्रमितों की मौत हो गई। प्रदेश में अब तक 3 लाख 74 हजार 277 केस आ चुके हैं। इनमें 3 लाख 7 हजार 611 ठीक हो चुके हैं, 61 हजार 300 मरीजों का इलाज चल रहा है। वहीं, 5366 मरीजों की मौत हो चुकी है।
सीमा विवाद को लेकर भारत-चीन के बीच अगले राउंड की बातचीत जल्द हो सकती है। इससे पहले विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि डिसएंगेजमेंट एक मुश्किल (कॉम्प्लेक्स) प्रोसेस है, इसके लिए दोनों तरफ से सहमति के साथ आगे बढ़ने की जरूरत होगी। मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि अब इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि एलएसी पर मौजूदा स्थिति को बदलने की एकतरफा कोशिश नहीं हो पाए।
भारतीय सीमा से 1150 किमी दूर चीन ने हथियार तैनात किए
पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर तनाव को कम करने के लिए आर्मी और डिप्लोमेटिक लेवल पर बातचीत चल रही हो, पर पीठ पीछे चीन चाल चलने से बाज नहीं आ रहा है। चीन ने भूटान से लगे डोकलाम के पास अपने एच-6 परमाणु बॉम्बर और क्रूज मिसाइल को तैनात किया है। चीन इन हथियारों की तैनाती अपने गोलमुड एयरबेस पर कर रहा है, जो भारतीय सीमा से सिर्फ 1150 किलोमीटर दूर है।
सीमा विवाद सुलझाने के लिए भारत-चीन के कॉर्प्स कमांडर अब तक 6 बार मीटिंग कर चुके हैं। कोर कमांडरों की बैठक के बाद भले ही दोनों पक्ष एलएसी पर मौजूदा स्थिति को बनाए रखने की कोशिश में हैं, पर भारत सतर्क है। भारतीय सेना ने तय किया है चीन के पीछे हटने के साफ संकेत मिलने तक पैंगॉन्ग की ऊंची पहाड़ियों पर हमारे जवान डटे रहेंगे।
दूसरी तरफ विदेश मंत्री एस जयशंकर का कहना है कि भारत और चीन एक अजीब (अन्प्रेसिडेन्टिड) स्थिति में हैं। इस बीच सीमा विवाद एक बड़ा मुद्दा है। यह बात अहम है कि दोनों देश एक-दूसरे की जरूरतों को भी समझते हैं। भारत-चीन को मिलकर समाधान तलाशना चाहिए। विदेश मंत्री ने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की वर्चुअल कॉन्फ्रेंस में ये बात कही।
अमेरिका ने फिर मदद का ऑफर दिया, नोबेल पर नजर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने गुरुवार को कहा, मैं जानता हूं कि भारत और चीन सीमा विवाद को लेकर मुश्किल में हैं, लेकिन उम्मीद है कि वे विवाद सुलझा लेंगे। इसमें हम कोई मदद कर सकें तो अच्छा लगेगा।
कयास लगाए जा रहे हैं कि ट्रम्प की नजर शांति के नोबेल प्राइज पर है। इसलिए, वे भारत-चीन के मामले में दखल का ऑफर एक बार रिजेक्ट होने के बाद फिर से दोहरा रहे हैं। नॉर्वे की संसद के एक सदस्य ने ट्रम्प को नोबेल के लिए नॉमिनेट किया है। यूएई और इजरायल के बीच डिप्लोमेटिक रिश्तों में मदद करने की वजह से ट्रम्प के नाम का प्रपोजल रखा गया है।
from Dainik Bhaskar /national/news/necessary-to-ensure-stability-on-ground-mea-on-sino-india-border-standoff-in-eastern-ladakh-127752048.html
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देश में गुरुवार को कोरोना संक्रमण के 82214 मामले आए। 77488 लोग ठीक हुए और 1144 लोगों की मौत हुई। छह दिन के बाद संक्रमितों की संख्या ठीक हुए मरीजों से ज्यादा रही। हालांकि, राहत की बात रही कि यह लगातार पांचवां दिन था, जब संक्रमितों की संख्या 90 हजार से कम रही।
देश में अब तक 58 लाख 16 हजार 103 केस आ चुके हैं। इनमें से 47 लाख 52 हजार 991 मरीज ठीक हो चुके हैं। मरने वालों की संख्या अब 92 हजार 270 हो गई है। ये आंकड़े covid19india.org के मुताबिक हैं।
कोरोना अपडेट्स
दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को डेंगू हो गया है। उन्हें एलएनजेपी हॉस्पिटल से मैक्स अस्पताल के आईसीयू में शिफ्ट किया गया है। 14 सितंबर को उन्होंने कोरोना से संक्रमित होने की पुष्टि की थी। इससे पहले दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन भी संक्रमित हो चुके हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को कहा कि दिल्ली कोरोना की दूसरी लहर के पीक से गुजर चुकी है। सितंबर में 4000 केस आना महामारी की दूसरी लहर का संकेत है।
ऑक्सीजन लेवल कम होने के बाद असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई को आईसीयू में शिफ्ट किया गया। 85 साल के गोगोई 25 अगस्त को कोरोना संक्रमित पाए गए थे।
कर्नाटक के कांग्रेस विधायक बी नारायण (61) राव की गुरुवार को कोरोना से मौत हो गई। वे बीदर जिले के बसवकल्याण से विधायक थे।
पांच राज्यों का हाल
1. मध्यप्रदेश
राज्य में गुरुवार को 2304 नए संक्रमित मिले, जबकि 2327 ठीक हुए। वहीं, 45 मरीजों ने दम तोड़ दिया। यहां अब तक 1 लाख 15 हजार 361 केस मिल चुके हैं। नए संक्रमितों में मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया, हरदीप सिंह डंग और भीकनगांव से कांग्रेस विधायक झूमा सोलंकी भी शामिल हैं। इन्हें मिलाकर अब तक सरकार के 13 मंत्री और पक्ष-विपक्ष के 44 विधायक संक्रमित हो चुके हैं।
2. राजस्थान
राज्य में गुरुवार को संक्रमण के 1981 मामले मिले और 1965 लोग ठीक हुए। 27 जिले ऐसे हैं, जिनमें एक हजार से ज्यादा रोगी मिल चुके हैं। बाकी छह जिले- हनुमानगढ़ में 773, प्रतापगढ़ में 746, करौली में 799, सवाई माधोपुर में 820 और दौसा में 895 केस हैं। जयपुर में सबसे ज्यादा 19 हजार पॉजिटिव मिल चुके हैं।
3. बिहार
बिहार में गुरुवार को 1203 संक्रमित मिले। वहीं, 1154 लोग ठीक हुए। राज्य में अब तक कोरोना के 1 लाख 74 हजार 266 केस आए हैं, 1 लाख 59 हजार 700 मरीज ठीक हो चुके हैं। 28 सितंबर से 9 से 12 तक के स्टूडेंट्स शिक्षकों से मार्गदर्शन के लिए स्कूल जा सकेंगे। इसके लिए पैरेंट्स की अनुमति जरूरी है। इस दौरान प्रार्थना सत्र, खेलकूद और अन्य गतिविधि नहीं होगी। स्कूल स्टाफ की संख्या 50% से ज्यादा नहीं होगी।
4. महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में गुरुवार को 19 हजार 164 संक्रमित मिले और 17 हजार 184 लोग रिकवर हुए। वहीं, 459 लोगों की मौत हुई। अब तक 12 लाख 82 हजार 963 लोग संक्रमित हो चुके हैं। इनमें 9 लाख 73 हजार 214 लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 2 लाख 74 हजार 993 का इलाज चल रहा है।
5. उत्तरप्रदेश
राज्य में गुरुवार को 4591 नए केस सामने आए, 4922 मरीज ठीक हो गए, जबकि 67 संक्रमितों की मौत हो गई। प्रदेश में अब तक 3 लाख 74 हजार 277 केस आ चुके हैं। इनमें 3 लाख 7 हजार 611 ठीक हो चुके हैं, 61 हजार 300 मरीजों का इलाज चल रहा है। वहीं, 5366 मरीजों की मौत हो चुकी है।
चुनाव आयोग आज दोपहर 12.30 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहा है। इसमें बिहार विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान हो सकता है। साथ ही मध्य प्रदेश में 27 सीटों पर उपचुनाव की घोषणा भी हो सकती है।
कोविड-19 अकेला वायरस नहीं है, जो देश में तेजी से फैल रहा है। हवा में भी नफरत घुली हुई है, जो सोशल मीडिया के माध्यम से और भी तेजी से फैल रही है। पिछले दिनों सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश के निधन पर एक पूर्व आईपीएस अफसर एन. नागेश्वर राव ने सोशल मीडिया पर लिखा: ‘अच्छा हुआ मुक्ति मिली। आप भगवा वस्त्रधारी एक हिंदू विरोधी थे। आपने हिंदुत्व को भारी क्षति पहुंचाई....’ अनेक यूजर्स की आपत्ति के बाद सोशल मीडिया साइट ने इस टिप्पणी को हटाया।
नागेश्वर राव कोई सामान्य पुलिस ऑफिसर नहीं हैं। 2018 में वह सीबीआई के कार्यकारी निदेशक भी रह चुके हैं और इस साल जुलाई में रिटायर होने से पहले तक वह अग्निशमन और होम गार्ड्स के महानिदेशक थे। इतने उच्च पद पर रहे व्यक्ति द्वारा ऐसी गंदी टिप्पणी संभवत: समय का संकेत है। संविधान के पालन की शपथ लेने वाले और कभी कानून-व्यवस्था को कायम करने के लिए अधिकृत लोगों द्वारा अब नफरत की विचारधारा को ओढ़ा जा रहा है और अग्निवेश जैसों की मौत की इच्छा की जा रही है।
इससे भी खराब यह था कि राव नफरत की बात का बचाव करते रहे। इससे पत्रकार-कार्यकर्ता गौरी लंकेश की 2017 में हुई हत्या की याद ताजा हो गई। तब सूरत के एक व्यापारी निखिल दधीच ने भद्दी टिप्पणी की थी। यह सोशल मीडिया के भंवर में बिना नोटिस हुए गुजर जाती, लेकिन एक असहज सच यह था कि दधीच को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी फॉलो करते थे।
राव और दधीच अकेले नहीं हैं। हजारों अज्ञात सोशल मीडिया हैंडल, पेज और समूह हैं, जो लोगों और समुदायों के बीच घृणा फैलाने के लिए बने हैं। सोशल मीडिया यूनिवर्स की अपनी आचार संहिता है, जहां पर अक्सर बोलने की आजादी और नफरत की भाषा के बीच की लाइन धुंधली पड़ जाती है। तकनीक से संचालित सोशल मीडिया की नफरत समाचार वातावरण में भी निर्बाध रूप से पहुंच रही है। इसलिए सिर्फ सोशल मीडिया को ही नफरत के लिए जिम्मेदार ठहराना इस वायरस की प्रकृति से भागना होगा।
नफरत वह संक्रमण है जो तब संक्रामक होता है, जब उसे सामान्य माना जाता है और हाल के वर्षों में ठीक यही हुआ है। अल्पसंख्यक विरोधी सुर अब एक तरह से सामान्य माने जाने लगे हैं। जब एक केंद्रीय मंत्री चुनाव रैली में खुलेआम नारा देते हैं कि ‘देश के गद्दारों को’ तो भीड़ कहती है ‘गोली मारो...’। लेकिन, मंत्री पर लगाम लगाने के लिए बहुत ही थोड़ी कोशिश होती है। जब नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे लोगों को उनके कपड़ों से पहचानने को कहा जाता है तो यह धार्मिक पूर्वाग्रह को दर्शाता है।
यह नफरत की कथा किस तरह से सामान्य हो रही है, सुदर्शन टीवी का मामला इसका ताजा उदाहरण है। जिसमें इस चैनल ने एक नफरत वाले स्लोगन ‘यूपीएससी जिहाद’ के नाम से एक सीरीज का प्रोमो चलाकर कथित तौर पर सिविल सेवा पर कब्जे को लेकर ‘मुस्लिम साजिश’ की बात कही थी।
मुस्लिम समुदाय के खिलाफ प्रथम दृष्ट्या बने ऐसे कार्यक्रम के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने इस दिखावटी तर्क के साथ प्रसारण की अनुमति दे दी कि वह कार्यक्रम को ‘प्री-सेंसर’ नहीं करना चाहता। जबकि स्पष्ट नियम है कि अगर कोई कार्यक्रम नफरत को बढ़ावा देता है या दुर्भावना पैदा करता है तो मंत्रालय उसे रोक सकता है। मंत्रालय की दुविधा के बाद पहले हाईकोर्ट और उसके बाद सुप्रीम को दखल देना पड़ा और कार्यक्रम के आगे के प्रसारण को रोकना पड़ा।
यही नहीं सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए पर्याप्त नियमन व्यवस्था मौजूद है, लेकिन यदि कोर्ट कोई गाइडलाइन या नियमन व्यवस्था बनाना चाहता है तो उसे डिजिटल मीडिया और समाचार पोर्टल से शुरू करना चाहिए। एक टीवी चैनल को नियमों का उल्लंघन करने से रोकने में नाकाम मंत्रालय अब कोर्ट में कह रहा है कि असल मुद्दा अनियंत्रित डिजिटल दुनिया है। संभवत: मंत्रालय किसी भी सरकार विरोधी वेबसाइट पर कार्रवाई करना चाहता है, जो अभी उसके दायरे से बाहर है।
मुख्यधारा के चैनलों का क्या करें, जो चुपचाप रोज सांप्रदायिक जहर व फेक न्यूज की ड्रिप लगा रहे हैं? महाराष्ट्र के पालघर में कुछ माह पहले दो साधुओं की हत्या का ही उदाहरण लें। हकीकत जाने बिना ही कुछ चैनलों ने इसे हिंदू-मुस्लिम विवाद कहना शुरू कर दिया।
जब हकीकत सामने आई कि सांप्रदायिक एंगल पूरी तरह गलत था और अफवाह की वजह से आदिवासियों ने साधुओं को अपहर्ता समझ लिया था। क्या किसी चैनल ने अपने दर्शकों को भ्रमित करने के लिए माफी प्रकाशित की? नफरत से कमाई करने वाले समाचार प्रदाताओं पर कार्रवाई होनी चाहिए। केवल तभी हम हमें बांटने वाले इस वायरस के खिलाफ वैक्सीन हासिल कर सकेंगे।
हमने शुरुआत एक पुलिस अधिकारी की कहानी से की थी, इसका समापन भी पुलिस वाले से करते हैं। करीब एक साल से मुझे एक सीनियर आईपीएस ऑफिसर व्हाट्सएप मैसेज भेज रहे हैं। जो आज के दौर में प्रचलित कटु इस्लामो-फोबिया का प्रतिध्वनित कर रहे हैं। यह ऑफिसर किसी समय उस शहर के प्रभारी थे, जहां मुस्लिम जनसंख्या बहुत थी। क्या तब आश्चर्य होना चाहिए, जब कानून व्यवस्था कायम करने वाले सांप्रदायिक दंगे के समय कानून की उल्टी दिशा में नजर आते हैं? (ये लेखक के अपने विचार हैं)
आईपीएल के रोमांच पर बॉलीवुड के विवाद भारी पड़ते दिख रहे हैं। वहीं, बिहार में भी राजनीतिक उठापटक तेज होती जा रही है। चलिए शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...
आज इन 4 इवेंट्स पर नजर रहेगी 1. भारतीय किसान यूनियन ने किसान बिल के विरोध में भारत बंद बुलाया है। 2. IPL में चेन्नई सुपरकिंग्स और दिल्ली कैपिटल्स आमने-सामने होंगे। टॉस शाम 7 बजे होगा। मैच साढ़े सात बजे से शुरू होगा। 3. रकुलप्रीत सिंह से नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो पूछताछ करेगा। 4. कंगना रनोट का ऑफिस तोड़े जाने के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट में आज भी सुनवाई जारी रहेगी।
अब कल की 6 महत्वपूर्ण खबरें 1. कोहली की फिटनेस, मोदी की रेसिपी
फिट इंडिया मूवमेंट का एक साल पूरा होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को जानी मानी हस्तियों से बात की। क्रिकेटर विराट कोहली से चर्चा में मोदी ने पूछा कि क्या कैप्टन को भी योयो टेस्ट से गुजरना होता है? इस पर कोहली ने कहा, ‘इस टेस्ट में अगर मैं भी फेल हुआ तो सिलेक्शन नहीं हो पाएगा।’ वहीं, न्यूट्रिशन एक्सपर्ट रुजुता दिवेकर से बातचीत में मोदी ने अपनी एक रेसिपी बताई। उन्होंने कहा कि वे सहजन (मुनगा या ड्रमस्टिक) के पराठे खाते हैं। -पढ़ें पूरी खबर
2. बीएमसी तो बहुत तेज है
बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को कंगना रनोट का ऑफिस तोड़े जाने के मामले में सुनवाई की। हाईकोर्ट ने कहा कि तोड़ी गई प्रॉपर्टी को यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता। सुनवाई के दौरान बेंच ने बीएमसी पर तंज कसा कि आप तो बहुत तेज हैं, फिर आपको और वक्त क्यों चाहिए? इस पर कंगना ने ट्वीट किया, ‘माननीय हाईकोर्ट, मेरी आंखों में आंसू आ गए।’ -पढ़ें पूरी खबर
3. बीएसई का मार्केट कैप 5 दिन में 10 लाख करोड़ घटा
शेयर बाजार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। भारी बिकवाली के बीच गुरुवार को बीएसई 1172.44 अंक तक नीचे चला गया था। बाद में 1114.82 अंक या 2.96% नीचे बंद हुआ। बीते 5 दिनों में बीएसई में लिस्टेड कंपनियों का मार्केट कैप 10 लाख करोड़ रुपए घटकर 148 लाख करोड़ पर आ गया है। -पढ़ें पूरी खबर
4. ड्रग्स केस में आगे क्या होगा?
ड्रग्स केस में वॉट्सऐप चैट सामने आने के बाद दीपिका पादुकोण से कल यानी शनिवार को पूछताछ होगी। इस मामले में वॉट्सऐप चैट को एविडेंस के तौर पर मंजूर किया जा सकता है। यदि जांच में यह साबित हो जाए कि एक्ट्रेस ड्रग्स सिंडीकेट का हिस्सा हैं तो सजा जरूर मिलेगी। उन्हें माफी भी मिल सकती है। 2012 में फरदीन खान भी इसी आधार पर कोर्ट से माफी ले चुके हैं कि वे आगे कभी ड्रग्स नहीं लेंगे। -पढ़ें पूरी खबर
5. राजनीति में जाने वाले 10 डीजीपी की कहानी
बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय इन दिनों छाए हुए हैं। उन्होंने रिटायरमेंट से पांच महीने पहले ही वीआरएस लिया है। उनका दावा है कि उन्हें 14 अलग-अलग सीटों से चुनाव लड़ने का ऑफर मिला है। वे इकलौते डीजीपी नहीं हैं, जो राजनीति में आए हैं। 1980 के दशक में बिहार के भागलपुर में आंख फोड़वा कांड को लेकर सियासत काफी गरमाई थी। वहां के एसपी रहे विष्णु दयाल राम बाद में झारखंड के डीजीपी बने और अब पलामू से सांसद हैं। -पढ़ें पूरी खबर
6. IPL में रोहित का नया रिकॉर्ड
मुंबई इंडियंस के कप्तान रोहित शर्मा आईपीएल में किसी भी टीम के खिलाफ सबसे ज्यादा रन बनाने वालों की लिस्ट में सबसे ऊपर हो गए हैं। रोहित ने बुधवार को अबु धाबी में कोलकाता नाइट राइडर्स के खिलाफ 54 गेंद पर 80 रन बनाए। रोहित केकेआर के खिलाफ 26 मैच में 904 रन बना चुके हैं। यह किसी भी बल्लेबाज का एक टीम के खिलाफ सबसे ज्यादा रन बनाने का रिकॉर्ड है। -पढ़ें पूरी खबर
अब 25 सितंबर का इतिहास
1524 - वास्कोडिगामा आखिरी बार वायसराय बनकर भारत आए।
1911 - फ्रांस के जंगी जहाज लिब्रीटे में टूलॉन हार्बर पर ब्लास्ट में 285 लाेगों की मौत।
1916 - भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म।
2010 - हिंदी के साहित्यकार कन्हैयालाल नंदन का निधन।
जाने माने रॉकेट साइंटिस्ट सतीश धवन 1920 में आज ही के दिन जन्म हुआ। पढ़ें, उन्हीं की कही एक बात...
आईपीएल के 13वें सीजन का 7वां मैच चेन्नई सुपरकिंग्स (सीएसके) और दिल्ली कैपिटल्स (डीसी) के बीच आज दुबई में खेला जाएगा। चेन्नई का इस सीजन में तीसरा मैच है, जबकि दिल्ली के लिए यह दूसरा मैच होगा। दिल्ली के खिलाफ चेन्नई का पलड़ा हमेशा भारी रहा है। पिछले 5 मुकाबलों में चेन्नई ने 4 मैच जीते हैं। पिछले सीजन में दोनों के बीच खेले गए 3 मुकाबलों में चेन्नई ने दिल्ली को शिकस्त दी थी। दोनों टीमों के बीच दुबई में यह पहला मैच होगा।
धोनी के बैटिंग ऑर्डर पर उठे थे सवाल
राजस्थान के खिलाफ पिछले मैच में धोनी के 7 नंबर पर बल्लेबाजी करने उतरे थे। धोनी से पहले सैम करेन, रविंद्र जडेजा और केदार जाधव को बल्लेबाजी करने भेजा गया था। मैच में चेन्नई को 16 रन से हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद बैटिंग ऑर्डर को लेकर धोनी को आलोचना झेलनी पड़ी थी।
रायडू और ब्रावो के खेलने पर संशय
चेन्नई के लिए अंबाती रायडू और ड्वेन ब्रावो के खेलने को लेकर संशय बना हुआ है। रायडू हैम स्ट्रिंग की परेशानी की वजह से राजस्थान के खिलाफ पिछला मुकाबला नहीं खेले थे। वहीं ब्रावो इस सीजन के शुरुआती दोनों मैच से बाहर रहे थे। ऐसे में इन दोनों खिलाड़ियों के इस मैच में खेलने पर संशय बना हुआ है।
इन रिकॉर्ड्स पर रहेगी नजर
सबसे ज्यादा छक्के लगाने के मामले में दूसरे नंबर पर आने के लिए एमएस धोनी को 2 छक्कों की जरूरत है।
100 छक्के का आंकड़ा छूने के लिए शिखर धवन को 4, जबकि ऋषभ पंत को 6 छक्के की जरूरत है।
आज जीती तो 3 टीमों के खिलाफ 15+ मैच जीतने वाली दूसरी टीम होगी सीएसके
तीन बार की चैम्पियन (2018, 2011, 2010) सीएसके यदि यह मैच जीत लेती है, तो 3 टीमों के खिलाफ 15 से ज्यादा मैच जीतने वाली दूसरी टीम बन जाएगी। इसके पहले मुंबई इंडियंस ही ऐसा कर सकी है।
दोनों टीम के महंगे खिलाड़ी
सीएसके में कप्तान धोनी सबसे महंगे खिलाड़ी हैं। टीम उन्हें एक सीजन के 15 करोड़ रुपए देगी। उनके बाद टीम में केदार जाधव का नाम है, जिन्हें इस सीजन में 7.80 करोड़ रुपए मिलेंगे। वहीं, दिल्ली में ऋषभ पंत 15 करोड़ और शिमरॉन हेटमायर 7.75 करोड़ रुपए कीमत के साथ सबसे महंगे प्लेयर हैं।
हेड-टु-हेड
आईपीएल में चेन्नई और दिल्ली के बीच धोनी की टीम का ही पलड़ा भारी रहा है। दोनों के बीच अब तक 21 मुकाबले खेले गए। चेन्नई ने 15 और दिल्ली ने 6 मैच जीते हैं। पिछले सीजन में दिल्ली एक बार भी चेन्नई को नहीं हरा पाई थी।
यूएई में दिल्ली का खराब रिकॉर्ड, चेन्नई ने 5 में से 4 मैच जीते
लोकसभा चुनाव के कारण आईपीएल 2009 में साउथ अफ्रीका और 2014 सीजन के शुरुआती 20 मैच यूएई में हुए थे। तब यूएई में दिल्ली का रिकॉर्ड बेहद खराब रहा था। टीम ने तब यहां 5 में से 2 मैच जीते और 3 हारे थे। वहीं चेन्नई ने यूएई में 5 में से 4 मैच जीते थे।
दिल्ली ने सुपर ओवर में पंजाब को हराया था
इस सीजन में दिल्ली ने अपना पिछला मुकाबला पंजाब के खिलाफ दुबई में ही खेला था। जिसका फैसला सुपर ओवर में निकला था। सुपर ओवर में दिल्ली ने पंजाब को सिर्फ 3 रन पर ही रोक दिया था।
पिच और मौसम रिपोर्ट
दुबई में मैच के दौरान आसमान साफ रहेगा। तापमान 27 से 39 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां स्लो विकेट होने के कारण स्पिनर्स को भी काफी मदद मिलेगी। टॉस जीतने वाली टीम पहले बल्लेबाजी करना पसंद करेगी। इस आईपीएल से पहले यहां हुए पिछले 61 टी-20 में पहले बल्लेबाजी वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 55.74% रहा है।
इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 61
पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 34
पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 26
पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 144
दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 122
दिल्ली अकेली टीम, जो अब तक फाइनल नहीं खेली
दिल्ली अकेली ऐसी टीम है, जो अब तक फाइनल नहीं खेल सकी। हालांकि, दिल्ली टूर्नामेंट के शुरुआती दो सीजन (2008, 2009) में सेमीफाइनल तक पहुंची थी। दिल्ली कैपिटल्स में युवा खिलाड़ियों पर अपनी टीम को जीत दिलाने का दारोमदार रहेगा। कप्तान श्रेयस अय्यर, ऋषभ पंत और पृथ्वी शॉ जैसे युवा बल्लेबाज टीम में की-प्लेयर हैं।
सीएसके का आईपीएल में सक्सेस रेट राजस्थान से ज्यादा
आईपीएल का पहला खिताब (2008) जीतने वाली राजस्थान रॉयल्स ने लीग में अब तक 148 मैच खेले, जिसमें 76 जीते और 70 हारे हैं। 2 मुकाबले बेनतीजा रहे। वहीं, सीएसके ने अब तक 167 में से 101 मैच जीते और 65 हारे हैं। एक मुकाबला बेनतीजा रहा है। रॉयल्स की जीत सक्सेस रेट 51.35% और सीएसके का सबसे ज्यादा 60.47% रहा।
इस समय देशभर में जिस तरह कोरोना के केस बढ़ रहे हैं, उसी रफ्तार से डेंगू के केस भी रिपोर्ट हो रहे हैं। दोनों के ही लक्षण करीब-करीब एक से हैं। ऐसे में लोगों को और सरकारी मशीनरी को भी यह पहचान करने में दिक्कत हो रही है कि वे किसकी जांच कराएं- डेंगू की या कोविड-19 की? इसी तरह मलेरिया और चिकनगुनिया के केस भी सामने आने लगे हैं। इनमें भी बुखार और सिरदर्द जैसे लक्षण कोविड-19 की तरह ही है।
इस बीच, ब्राजील में हुई एक स्टडी ने डेंगू और कोरोनावायरस के संबंधों का खुलासा किया है। स्टडी में दावा किया गया है कि जिन इलाकों में डेंगू का प्रकोप ज्यादा था, वहां लोगों के शरीर में कोविड-19 से लड़ने के लिए पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडी भी पाई गई है। ऐसे में यह चर्चा भी चल पड़ी है कि डेंगू कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ा हथियार भी बन सकता है।
पहले जानते हैं कि ब्राजील की स्टडी क्या है और यह क्या कहती है?
अमेरिका और भारत के बाद कोविड-19 से तीसरे सबसे ज्यादा प्रभावित देश ब्राजील में यह स्टडी की गई। इसमें कोविड-19 के प्रसार और डेंगू के बीच संबंधों को स्थापित किया गया है। इस रिपोर्ट में दावा किया है कि डेंगू होने पर वह एक स्तर तक कोविड-19 होने के खतरे को कम करता है।
ड्यूक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मिगुएल निकोलेलिस के नेतृत्व में की गई इस स्टडी को अब तक किसी जर्नल में प्रकाशित नहीं किया गया है। इसमें 2019 और 2020 में डेंगू के प्रसार और कोविड-19 के जियोग्राफिक डिस्ट्रिब्यूशन की तुलना की गई है।
निकोलेलिस ने पाया कि जिन जगहों पर कोविड-19 इंफेक्शन की दर कम थी, वहां 2019 या 2020 में डेंगू का प्रकोप ज्यादा था। स्टडी कहती है कि यह डेंगू के फ्लेविवायरस सीरोटाइप्स और SARS-CoV-2 के इम्युनोलॉजिकल क्रॉस-रिएक्टिविटी की संभावना बताती है।
निकोलेलिस ने बताया कि इससे पहले की गई स्टडी में जिन लोगों के खून में डेंगू के एंटीबॉडी पाए गए, वे कोविड-19 के लिए पॉजिटिव भी निकले हैं। हालांकि, उन्हें कभी भी कोविड-19 का इंफेक्शन नहीं हुआ था।
निकोलेलिस ने कहा कि यह संकेत देता है कि दोनों वायरस के बीच इम्युनोलॉजिकल इंटरेक्शन हुआ है,जिसकी किसी ने भी कल्पना नहीं की थी। दोनों ही वायरस बिल्कुल ही अलग फैमिली से हैं। कनेक्शन साबित करने के लिए और स्टडी की आवश्यकता होगी।
निकोलेलिस की टीम ने डेंगू और कोविड-19 के बीच इसी तरह का संबंध लैटिन अमेरिका, एशिया और प्रशांत महासागर व हिंद महासागर के कई द्वीपों पर पाया है। निकोलेलिस ने यह भी कहा कि उनकी यह स्टडी एक दुर्घटना के तौर पर सामने आई। वे यह पता कर रहे थे कि ब्राजील में केस बढ़ने में मुख्य भूमिका हाईवे ने निभाई।
हमारे यहां डेंगू की फिलहाल क्या स्थिति है?
इस समय मानसून होने के बाद उत्तर भारत के ज्यादातर इलाकों में डेंगू के केस लगातार बढ़ रहे हैं। साथ ही मलेरिया और चिकनगुनिया के भी केस सामने आ रहे हैं। दिल्ली में अब तक डेंगू के ढाई सौ से ज्यादा केस सामने आ चुके हैं। इसी तरह पंजाब, हरियाणा समेत पूरे उत्तर भारत में डेंगू के केस की संख्या हजार के आसपास पहुंच चुकी है।
दिल्ली में कोविड-19 के प्रकोप के बीच डेंगू के खिलाफ #10Hafte10Baje10Minute अभियान शुरू हो गया है। खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसकी बागडोर संभाली और घर की सफाई कर फोटो ट्विटर पर पोस्ट की। नेशनल वेक्टर बोर्न डिसीज कंट्रोल प्रोग्राम के अनुसार, 2019 में 1,36,422 डेंगू केस सामने आए थे। इसमें 132 लोगों की मौत हुई थी। 2016-2019 तक भारत में हर साल 1 लाख से दो लाख डेंगू के केस मिले हैं।
आम तौर पर सितंबर के अंत तक डेंगू के केस बढ़ते हैं और अक्टूबर-नवंबर में अपने पीक पर रहते हैं। ऐसा हर साल होता है क्योंकि इन महीनों में दिन का तापमान 20 डिग्री के आसपास रहता है जो डेंगू के मच्छरों को पनपने के लिए अनुकूल है।
डेंगू के ख़िलाफ़ महाअभियान में आज दूसरे रविवार को मैंने फिर से अपने घर की चेकिंग की और इकट्ठा हुए साफ़ पानी को बदला। इसमें सिर्फ़ 10 मिनट का वक्त लगा, आप भी अपने घर की चेकिंग जरूर करें। डेंगू हारेगा और दिल्ली एक बार फिर जीतेगी। #10Hafte10Baje10Minute
हर रविवार, डेंगू पर वार pic.twitter.com/MOZTkQGhNy
ज्यादातर विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 और डेंगू दोनों में शुरुआती लक्षण एक जैसा है- तेज बुखार, सिरदर्द और शरीर दर्द। ऐसे में इनकी पहचान थोड़ी मुश्किल है। साथ ही दोनों के इलाज का तरीका भी बिल्कुल अलग है।
मध्यप्रदेश में कोविड-19 स्टेट कोऑर्डिनेटर डॉ. लोकेंद्र दवे ने कहा कि इस समय महामारी को देखते हुए हम पहले कोविड-19 का टेस्ट कराते हैं। जब वह निगेटिव आता है तो उसके बाद डेंगू, मलेरिया और अन्य वेक्टर-बोर्न बीमारियों की जांच करा रहे हैं।
दोनों के संबंधों पर डॉ. दवे का कहना है कि इन दोनों ही नहीं, बल्कि अन्य वेक्टर-बोर्न बीमारियों में भी लक्षण तकरीबन एक-से ही हैं। लेकिन इनके रिलेशन पर फिलहाल कुछ भी बात करना जल्दबाजी होगी। इस पर और स्टडी होने की आवश्यकता है।
बिहार में एक तरफ एनडीए में जदयू और लोजपा के बीच खींचतान चल रही है, तो दूसरी तरफ महागठबंधन में भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा। महागठबंधन में टेंशन की वजह राष्ट्रीय लोक समता पार्टी यानी रालोसपा है। बताया जा रहा है रालोसपा सीटों को लेकर नाराज है। रालोसपा ने 40 से ज्यादा सीटें मांगी हैं, जबकि राजद उसे 10 से 12 सीटें ही देना चाहती है। इसके बाद चर्चा है रालोसपा महागठबंधन से अलग हो सकती है।
रालोसपा पहले एनडीए का हिस्सा थी, लेकिन अगस्त 2018 में अलग हो गई थी। 2015 का चुनाव भी रालोसपा ने एनडीए के साथ मिलकर ही लड़ा था। लेकिन, 2019 का लोकसभा चुनाव उसने राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में शामिल होकर लड़ा। 2019 में रालोसपा ने बिहार की 5 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सकी थी।
2013 में बनी रालोसपा पहले एनडीए का हिस्सा थी
उपेंद्र कुशवाहा पहले जदयू में थे, लेकिन नीतीश से अनबन के चलते उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी। जिसके बाद उन्होंने 3 मार्च 2013 को रालोसपा बना डाली। यही वजह थी कि कुशवाहा ने पार्टी शुरू करते वक्त अपना एक ही मकसद बताया था और वो था बिहार से नीतीश के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को उखाड़ फेंकना।
लेकिन, जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया तो नीतीश एनडीए से अलग हो गए और उपेंद्र जिस एनडीए की सरकार को उखाड़ फेंकने की बात कर रहे थे, उस एनडीए के साथ हो गए।
2014 के लोकसभा चुनाव में रालोसपा 3 सीटों पर लड़ी और तीनों ही जीत गई। उसके बाद 2015 के विधानसभा चुनाव में भी रालोसपा एनडीए के साथ मिलकर ही लड़ी। इस चुनाव में रालोसपा को 23 सीटें मिलीं, जिसमें से वो सिर्फ दो सीट ही जीत सकी।
उपेंद्र के लिए जुलाई 2017 में स्थितियां तब बदलनीं शुरू हो गईं, जब नीतीश एक बार फिर एनडीए का हिस्सा हो गए। एनडीए में रहते हुए उपेंद्र कुशवाहा लगातार नीतीश का विरोध करते रहे और आखिरकार अगस्त 2018 में रालोसपा एनडीए से अलग हो गई।
महागठबंधन से नाराजगी के बाद अब एक बार फिर ऐसी चर्चा है कि रालोसपा फिर से एनडीए के साथ जा सकती है। हालांकि, यह भी उतना ही सच है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा के रिश्ते कभी ठीक नहीं रहे हैं।
रालोसपा ने अपने पहले जो दो चुनाव एनडीए के साथ मिलकर लड़े थे, उसमें जदयू साथ नहीं थी। और जब नीतीश 2017 में दोबारा एनडीए में लौटे तो सालभर में ही रालोसपा एनडीए से अलग हो गई।
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्रा कहते हैं कि रालोसपा महागठबंधन में जितनी सीटें चाहती है, उतनी उसे मिल नहीं रहीं। ऐसे में वो एनडीए में जा सकती है। हालांकि, एनडीए में भी उसे शायद ही उसके मन मुताबिक सीटें मिल पाएं। नीतीश से कुशवाहा के खराब रिश्ते भी इसकी एक बड़ी वजह होगी।
बिहार में कुशवाहा वोटर कितना मायने रखते है?
नीतीश कुर्मी और उपेंद्र कोइरी जाति से आते हैं। बिहार में कोइरी कुल आबादी में 6 से 7% के आसपास है। रालोसपा के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष नागमणि अक्सर कहा करते थे कोइरी नंबरों के मामले में कुर्मियों से काफी मजबूत हैं।
कोइरी पूरे बिहार में मौजूद हैं। ये अलग बात है कि कहीं भी निर्णायक भूमिका में नहीं आ पाते। अशोक मिश्रा बताते हैं, 'उपेंद्र कुशवाहा बिहार में कुशवाहा के पेटेंट नेता हैं। अगर उपेंद्र को नजरअंदाज किया जाता है, तो कुशवाहा भी नाराज हो जाते हैं।' उनका मानना है कि उपेंद्र जिस भी गठबंधन में जाते हैं, उसे कुशवाहा के ज्यादा से ज्यादा वोट जरूर मिलेंगे।
अगर रालोसपा किसी भी गठबंधन में नहीं जाती और अकेले लड़ती है तो किसे नुकसान होगा? इस सवाल पर अशोक मिश्रा कहते हैं कि अगर उपेंद्र कुशवाहा अकेले चुनाव लड़ते भी हैं, तो भी किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकते। ऐसा इसलिए क्योंकि कुशवाहा वोटरों में अकेले इतना दम नहीं है कि वो एक भी विधानसभा सीट को अलग से प्रभावित कर सके।
अशोक मिश्रा कहते हैं, बिहार में कई जातियों के अलग-अलग नेता बन गए हैं। उपेंद्र कुशवाहा कभी एक जगह टिककर नहीं रहे, इसलिए अभी तक वे कुशवाहों के नेता भी ठीक तरह से नहीं बन पाए हैं।