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कहानी- वेद व्यास ने चार वेदों का संपादन किया, महाभारत की रचना की। उनके बेटे शुकदेव शादी नहीं करना चाहते थे। तब गृहस्थी की समझ लेने के लिए व्यासजी ने उनको राजा जनक के पास भेजा।
राजा जनक बहुत विद्वान थे। उस समय जनक का वैवाहिक जीवन आदर्श था। गृहस्थ होने के बाद भी वे वैरागी स्वभाव के थे। पिता के कहने पर शुकदेव राजा जनक से मिलने चल दिए। रास्ते में वे सोच रहे थे कि एक राजा से मैं क्या बात करूंगा?
कुछ समय बाद शुकदेव जनक के महल के द्वार पर पहुंच गए। वहां द्वारपाल ने शुकदेव को रोक लिया। जब शुकदेव ने कहा कि उन्हें राजा से मिलना है, तो द्वारपाल ने कहा कि पहले आपको हमारे प्रश्न के उत्तर देने होंगे, उसके बाद ही आप राजा से मिल सकते हैं।
जनक के द्वारपाल भी बहुत विद्वान थे। उन्होंने शुकदेव से पूछा कि बताइए सुख और दुख क्या हैं?
शुकदेव भी बुद्धिमान थे। उन्होंने कहा, 'सुख और दुख को अलग-अलग देखना नादानी है। ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जीवन में सुख आएगा, तो कभी दुख भी आएगा। इनका आना-जाना चलता रहता है। सिर्फ देखने का नजरिया महत्वपूर्ण है।'
द्वारपाल ने दूसरा प्रश्न पूछा कि मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु और सबसे बड़ा मित्र कौन है?
शुकदेव ने उत्तर दिया कि मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु और सबसे बड़ा मित्र वह स्वयं ही होता है।
ये उत्तर सुनकर द्वारपाल ने कहा, 'आप विद्वान हैं। आपके उत्तरों में तर्क है। आप राजा जनक से मिल सकते हैं।'
सीख- अपनी तैयारी पूरी गहराई के साथ करनी चाहिए। किसी ज्ञानी से मिलने के लिए हमारा आचरण भी उनके स्तर का ही होना चाहिए। जब आप किसी विद्वान के पास जाएंगे, तो हर कदम आपको परीक्षा देनी होती है। आपको सभी परीक्षाओं में अपनी समझदारी से सफल भी होना है।
इन दिनों दिल्ली में घर से बाहर निकलते ही कुछ देर में आपकी आंखों में जलन और सिर भारी सा होने लगेगा। कई लोगों को तो सांस लेने में तकलीफ तक होने लगती है। इस साल दिल्ली में 10 अक्टूबर तक हवा ठीक-ठाक थी, लेकिन इसके बाद से हवा की क्वालिटी खराब होती चली गई और दिवाली के अगले दिन सबसे खराब स्तर पर पहुंच गई। हर साल अक्टूबर-नवंबर आते-आते दिल्ली की हवा दमघोंटू हो जाती है और बीमार लोगों को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। इसकी एक बड़ी वजह पड़ोसी राज्यों हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में पराली जलाए जाने को माना जाता है।
इस समय किसान खेत से धान की फसल काटकर गेहूं बोने की जल्दी में होते हैं और खेत साफ करने के लिए धान की पराली को आग लगा देते हैं। रविवार शाम हुई बारिश की फुहारों और हवा के बदले रुख ने दिल्ली की हवा को कुछ साफ कर दिया और AQI मॉडरेट स्तर पर पहुंच गया। मंगलवार प्रदूषण के मामले में दिल्ली के लिए एक अच्छा दिन था। एयर क्वालिटी इंडेक्स 130 तक पहुंच गई, जबकि दिन का औसत 170 रहा।
दिल्ली की हवा में हुए इस बेहतर बदलाव के लिए सरकार की कोई नीति नहीं, बल्कि मौसम ही जिम्मेदार है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अगले एक-दो दिनों में दिल्ली की हवा फिर से खराब होने लगेगी। सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉर कास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) विभाग देश के महानगरों में हवा की गुणवत्ता पर नजर रखता है। सफर के मुताबिक, आने वाले दिनों में हवा और खराब होगी।
आग पर निगरानी रखने वाली संस्थाएं डेटा इकट्ठा करने के लिए सैटेलाइट तस्वीरों का इस्तेमाल करती हैं। सफर के डेटा के मुताबिक, 6 नवंबर को पराली जलाए जाने के 4200 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए, लेकिन 17 नवंबर को ये आंकड़ा दस से भी कम था। मौसम विभाग के वैज्ञानिक वीके सोनी का कहना है कि बहुत संभव है कि बादलों ने सैटेलाइट के विजन को रोक दिया हो।
सफर के डेटा के मुताबिक, बीते शुक्रवार को 14% पीएम 2.5 पराली जलाए जाने की वजह से था, जबकि शनिवार को ये बढ़कर 32% हो गया। मंगलवार को दिल्ली की हवा में पराली जलाए जाने की वजह से होने वाला पीएम 2.5 प्रदूषण सिर्फ 3% था यानी न के बराबर। हवा में घुले पीएम 2.5 कण बेहद सूक्ष्म होते हैं और ये फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं।
प्रदूषण रोकने के लिए उठाए गए कदम
दिल्ली-NCR में प्रदूषण पर नजर रखने के लिए बनाए गए वायु गुणवत्ता आयोग ने 9 नवंबर को जारी आदेश में तुरंत 10 कदम उठाने को कहा था। इनमें पर्सनल व्हीकल के इस्तेमाल को कम से कम करना, बेहद जरूरी ना होने पर यात्रा ना करना, वर्क फ्रॉम होम को बढ़ावा देना, धूल को कंट्रोल करने के लिए लगाए गए प्रतिबंधों का सख्ती से पालन कराना, बायोमास और सॉलिड वेस्ट को जलाने पर सख्त पाबंदी लगाना शामिल है।
धूल प्रभावित क्षेत्रों में पानी का छिड़काव करना, अधिक प्रदूषण वाले इलाकों में एंटी स्मॉग गन का इस्तेमाल करना, आतिशबाजी और पराली जलाए जाने को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के प्रतिबंधों को सख्ती से लागू करवाने के दिशा-निर्देश भी आयोग ने दिए थे।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने भी 11 नवंबर को जारी आदेश में हरियाणा और पंजाब सरकारों से पराली और दिल्ली में कचरा जलाए जाने से रोकने के लिए कहा था। CPCB अपने समीर मोबाइल ऐप के जरिए AQI की जानकारी देता है। इस ऐप पर लोग पॉल्यूशन से जुड़े निर्देशों और नियमों के उल्लंघन की शिकायत भी कर सकते हैं। हालांकि, हमने जब इस ऐप को दिल्ली के कई इलाकों में चेक किया, तो कोई शिकायत दर्ज नहीं मिली।
वाहनों का प्रदूषण
नोएडा के जिस इलाके में मैं रहती हूं, वहां तक आते-आते रास्ते में पुलिस के कम से कम पांच बैरीकेड मिलते हैं, जहां मास्क की चेकिंग की जाती है। बैरिकेड लगे होने की वजह से कई जगह वाहन रोकने की स्थिति बन जाती है और जाम सा लग जाता है। इस दौरान वाहनों से धुआं निकलता रहता है।
बैरीकेड पर रुके एक कार सवार कहते हैं, 'बेवजह हो रहे इस प्रदूषण की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। प्रशासन का फोकस जुर्माना वसूलने पर है, समस्या के समाधान पर नहीं। सफर से जुड़े वैज्ञानिक कहते हैं, 'पराली जलाया जाना NCR में होने वाले प्रदूषण का एक कारण तो है, लेकिन सिर्फ यही वजह नहीं है। वाहनों से निकलता धुआं भी हवा में जहरीले तत्व घुलने की बड़ी वजह है।
इस साल पंजाब में जली सबसे ज्यादा पराली
पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर के मुताबिक, इस साल 22 सितंबर से 17 नवंबर के बीच सिर्फ पंजाब में ही पराली जलाए जाने के 74,236 मामले रिकॉर्ड किए गए। 2016 के बाद से ये सबसे ज्यादा है। खरीफ के सीजन में 2016 में पंजाब में आग की 80,879 घटनाएं रिकॉर्ड की गईं थीं। 2017 में आंकड़ा 43,660, 2018 में 49,905 और 2019 में 51,946 था।
कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा पराली जलाए जाने में हुई बढ़ोतरी के पीछे किसानों के गुस्से को देखते हैं। शर्मा कहते हैं, 'पंजाब के किसानों में सरकार की नीतियों को लेकर गुस्सा है। ये भी पराली ज्यादा जलाए जाने की एक वजह हो सकती है।' वहीं, भारतीय किसान यूनियन के नेता हरिंदर सिंह लखोवाल कहते हैं कि कृषि विधेयकों को लेकर किसानों में भड़का गुस्सा ज्यादा पराली जलाए जाने की सबसे बड़ी वजह है।
देवेंद्र शर्मा कहते हैं, 'प्रदूषण की वजह सिर्फ पराली ही नहीं है, बल्कि कई और कारण हैं। किसान जानते हैं कि पराली जलाने से सबसे पहले नुकसान किसान परिवार को ही होता है। किसान जानता है, लेकिन पराली जलाना उसकी मजबूरी है, क्योंकि उसे जल्द से जल्द गेहूं की बुवाई के लिए खेत साफ करना होता है। पंजाब सरकार ने पराली जलाए जाने से रोकने के लिए किसानों को मशीनें बेची हैं। अब तक 74 हजार मशीनें बेची जा चुकी हैं, लेकिन ये समाधान नहीं है।'
शर्मा कहते हैं, 'किसान आर्थिक मदद की मांग करते हैं। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने किसानों को 100 रुपए क्विंटल के हिसाब से इन्सेंटिव देने का आदेश दिया था। लेकिन, सरकारों ने इसे भी लागू नहीं किया।' पंजाब में हर साल 200 लाख टन पराली निकलती है। किसी भी सरकार या निजी कंपनी के लिए इसे मैनेज करना बहुत मुश्किल होगा।
देवेंद्र शर्मा कहते हैं, 'सरकार को ह्यूमन कैपिटल में इन्वेस्ट करना होगा, लेकिन सरकार का जोर मशीनों में इन्वेस्ट करने पर है। अगर सरकार जुलाई-अगस्त में किसानों को सौ रुपए क्विंटल का इन्सेंटिव देने का वादा करती, तो किसान सितंबर तक कुछ ना कुछ इंतजाम कर लेते। नीतियां बनाने वालों को समझना होगा कि गलती उनकी भी है। जब तक प्रभावी नीतियां नहीं बनेंगी, ये समस्या और बढ़ती रहेगी।'
सत्तू... नाम तो सुना ही होगा। सबसे ज्यादा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में फेमस है, इसे खाया भी जाता है और पिया भी जाता है। इसे बिहारी फास्ट फूड भी कह सकते हैं, ऐसा फास्ट फूड, जिसका किसी भी तरह का साइड इफेक्ट नहीं होता। सत्तू से कई तरह के स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाए जाते हैं, इसमें लिट्टी-चोखा से लेकर सत्तू पराठे तो अब देशभर में लोग खाना पसंद करते हैं। बिहार में तो इसके नाम से एक लोक पर्व भी है, जो अप्रैल महीने में मनाया जाता है, नाम है सतुआन। इस स्टोरी में हम सत्तू का जिक्र इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि आज की खुद्दार कहानी में हम जिस शख्स की बात करने जा रहे हैं, उसके जीवन का लक्ष्य सत्तू को दुनिया भर में पहुंचाना है।
बिहार के मधुबनी जिले में रहने वाले सचिन कुमार ने मुंबई में अपनी सेटल्ड नौकरी छोड़कर बिहार के फेमस सत्तू को वर्ल्ड फेमस बनाने के लिए अपने गांव लौटकर एक स्टार्टअप शुरू किया है, नाम है सत्तुज। सचिन इसके जरिए सत्तू को प्रोसेस कर अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट्स बना रहे हैं, इसमें सत्तू पाउडर, रेडीमेड एनर्जी ड्रिंक और लिट्टी-चोखा रेडीमेड मसाला शामिल हैं।
सचिन कहते हैं, ‘हमने अपने वेंडर से पैकेजिंग से लेकर हर चीज फाइनल की थी और हमने उनसे रिक्वेस्ट की थी कि 14 अप्रैल को सतुआन पर्व मनाया जाता है और इस दिन सत्तू खाने और पीने का काफी महत्व होता है। इसलिए अगर हमारे पास पहला स्टॉक आ जाए तो मैं पहला पैकेट अपने मम्मी-पापा को देना चाहता हूं।’
सचिन कहते हैं कि पाउलो कोएल्हो ने अपनी किताब द अल्केमिस्ट में लिखा है कि 'And, when you want something, all the universe conspires in helping you to achieve it.' और इसी का हिंदी वर्जन हमने शाहरुख खान की फिल्म में सुना है कि 'अगर किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हे उससे मिलाने में लग जाती है।' तो मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, किस्मत की बात है कि 14 अप्रैल 2018 को हमारे पास उसका पहला पैकेट आया। फिर हमने इसी दिन अपनी कंपनी गो रूरल फूड बेवरेजेस के तहत अपने ब्रांड सत्तुज की शुरुआत की।
मुम्बई की नौकरी छोड़ सचिन ने गांव आकर सत्तू पर पायलट स्टडी शुरू की
सत्तुज के सफर के बारे में सचिन बताते हैं ‘MBA के दौरान मैंने एंटरप्रेन्योरशिप की पढ़ाई की। मेरी फैमिली का रिटेल का बिजनेस था। उस दौरान मुझे लगा कि हम जो बिजनेस कर रहे हैं, उसमें हम बाहर का सामान लाकर बिहार में बेचते हैं, लेकिन बिहार का एक भी सामान हम बिहार से बाहर नहीं बेच रहे हैं। पढ़ाई के दिनों से ही मन में था कि ऐसा कुछ करें जिससे बिहार का नाम बाहर देशों तक पहुंचे, लेकिन यह सब करना इतना आसान नहीं था।’
MBA कम्प्लीट करने के बाद सचिन को मुंबई में एक अच्छी जगह नौकरी मिल गई। कुछ साल बाद अमेरिका जाने का भी मौका मिला, लेकिन उनका मन नौकरी में नहीं लग रहा था, वो अपने बिहार की जमीन पर कुछ अपना ही करना चाहते थे। 2008 में सचिन नौकरी छोड़कर अपने घर लौट आए। सचिन के इस फैसले से घर में कोई भी खुश नहीं था। इस दौरान वो हमेशा अपने आसपास ऐसा कुछ ढूंढ़ने की कोशिश करते रहे, जिसके जरिए वो बिहार की अलग पहचान बना सकें। उनकी यह तलाश सत्तू पर जाकर खत्म हुई।
2016 से सचिन ने सत्तू पर एक पायलट स्टडी शुरू की। उन्होंने अलग-अलग शहरों में यात्राएं कर यह समझा कि आखिर लोग सत्तू के बारे में कितना जानते हैं। सचिन बताते हैं, ‘इस दौरान हमारे सामने बहुत-सी चौंकाने वाली जानकारियां आईं। किसी को सत्तू बनाना नहीं आता था तो किसी के पास इतना वक्त नहीं होता था कि तमाम चीजें जुटा कर सत्तू बना सके। तब हमने तय किया कि हम मार्केट में सत्तू को रेडी-टू-मेड ड्रिंक के तौर पर लॉन्च करेंगे। हमने एक छोटा ड्रिंक पैक तैयार किया जो ट्रैवलिंग के दौरान आसानी से साथ रखा जा सके।’
यंग जेनरेशन को सत्तू बोरिंग लगता था इसलिए इसकी पैकेजिंग को अलग बनाया
सचिन ने सत्तू की सही प्रोसेसिंग के लिए फूड प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग भी ली, ताकि उनके प्रोडक्ट्स में सभी चीजें सही मात्रा में हो। फिर उन्होंने प्रोडक्ट तैयार कराया और FSSAI सर्टिफिकेशन भी लिया। सचिन कहते हैं, 'हमने सत्तू को नया रूप देने के साथ-साथ इसकी पैकेजिंग को भी अलग बनाया। क्योंकि, नई जेनरेशन को सत्तू काफी बोरिंग लगता था, इसलिए हमने अपने प्रोडक्ट को बाकी ड्रिंक्स जैसे ही पैक किया।'
शुरुआत में सचिन ने सत्तू के तीन फ्लेवर्स बाजार में उतारे, इसमें जल-जीरा, स्वीट और चॉकलेट फ्लेवर शामिल थे। इसकी कीमत 20 रुपये लेकर 120 रुपये तक रखी, पैकिंग सैशे और डिब्बे में की गई। इसके साथ पेपर का एक गिलास और एक चम्मच भी दिया गया। यानी ग्राहक को बस गिलास में पाउडर और पानी को मिलाना और पीना है। सचिन कहते हैं कि यह रेडी मिक्स ड्रिंक ग्लूटेन फ्री, वीगन और प्रिजर्वेटिव फ्री है। ये कार्बोनेटेड ड्रिंक्स का अच्छा और हेल्दी ऑप्शन भी है।
सत्तुज बिहार का पहला स्टार्टअप जिसे IAN और BIA से फंडिंग मिली है
सचिन के इस स्टार्टअप के लिए उन्हें IIM कोलकाता से लोन और इंडियन एंजेल नेटवर्क (IAN) और बिहार इंडस्ट्री एसोसिएशन (BIA) से फंडिंग मिली है। सत्तुज बिहार का पहला स्टार्टअप है जिसे इन दोनों नेटवर्क्स से फंडिंग मिली है।
सचिन बताते हैं, ‘इंडियन एंजेल नेटवर्क के बहुत बड़े इन्वेस्टर हरि बालसुब्रमण्यम से मैं एक इवेंट में मिला था। मैंने वहां हरि सर को एक गिलास सत्तू पिलाया था। 5 मिनट के अंदर ही उन्होंने हमें कमिटमेंट किया कि वो हमारे स्टार्टअप को फंडिंग देंगे। मैंने कभी नहीं सोचा था कि बिना किसी बिजनेस प्रपोजल, पीपीटी, स्लाइड्स के सिर्फ प्रोडक्ट देखकर कमिटमेंट मिल जाएगा और वो भी सत्तू पिलाकर। उन्होंने तुरंत BIA को भी फोन किया, इसके बाद बिहार इंडस्ट्री एसोसिएशन ने भी तय किया कि क्यों न बिहार के स्टार्टअप में इन्वेस्ट किया जाए।’
आज सचिन की कंपनी में 10 लोग काम करते हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और अपनी वेबसाइट के जरिए देश भर में अपने प्रोडक्ट पहुंचा रहे हैं। सचिन ने अपने हर प्रोडक्ट पर मेड इन बिहार लिखा है। पिछले फाइनेंशियल ईयर में सचिन की कंपनी का रेवेन्यू 10 लाख रुपए रहा। वहीं इस साल लॉकडाउन के बावजूद भी उनकी कंपनी ने यह आंकड़ा नवंबर में ही क्रॉस कर लिया है।
साल 2020 जाते-जाते काफी उठापटक में मूड में है। लगभग ढाई सौ बरस पुराने लोकतंत्र अमेरिका में पहली बार महिला उप-राष्ट्रपति बनी। मानो इतना ही काफी न हो, उनके पति ने पत्नी का हाथ बंटाने के लिए नौकरी छोड़ने का ऐलान कर दिया। इधर हमारे यहां भी जानलेवा मंजर दिख रहे हैं। टीवी शो 'कौन बनेगा करोड़पति' के 12वें सीजन में अब तक दो करोड़पति बने। दोनों ही महिलाएं। हॉट सीट पर अमिताभ बच्चन के सामने बैठी वे औरतें अपनी मालूमात के साथ एकदम सहज थीं। जैसे अलग-अलग विषयों की जानकारी रखना उनके लिए सांस लेने जितना स्वाभाविक हो।
उनके पास जवाब थे- सवाल चाहे राजनीति का हो, फिल्म, या फिर किसी मजहब का। जीतकर लौटती उन विजेताओं के चेहरे पर नक्काशीदार घमंड नहीं था, बल्कि भरपूर खेलकर लौटने का सुख था। टीवी पर एपिसोड का प्रोमो आते ही मानो पैर के नीचे सुरसुरी छूट गई। एक के बाद एक खबरें लिखी गईं। पढ़िए तो लगेगा, जैसे उनकी जीत मर्द जात के चेहरे पर तमाचा हो। मानो सोई मर्दानगी को झकझोरा जा रहा हो कि देखो, अब तो औरतें भी जीतने लगीं। मियां, अब तो होश में आओ।
ये पहली दफा नहीं, हर साल बोर्ड के नतीजे आते ही यही हाल होता है। अखबारी हेडलाइंस गाती हैं- लड़कियों ने लड़कों से मारी बाजी... पहली नजर में ये एकदम उजली हेडलाइन है। लड़कियों को मजबूत दिखाती हुई। लेकिन नजरों में जरा-भी तजुर्बा हो तो तुरंत समझ आता है कि ये हेडलाइन लड़कियों की जीत का जश्न कम, लड़कों की हार पर शर्म ज्यादा है। पुरुषों से खचाखच भरा मीडिया औरतों की जीत पर अक्सर उनके निजी दर्द उड़ेलने लगता है।
वैसे देखा जाए तो अब तक पुरुषों की जीत ठीक वैसी ही थी, जैसे मुकाबले में केवल एक खिलाड़ी का उतरना। बिना किसी रुकावट वो जीतता चला गया और इतना जीता कि जीत उसके शरीर का हिस्सा हो गई। गांव के चौराहों से लेकर शहरों के चमचमाते ड्रॉइंग रूम तक हर जगह पुरुष काबिज रहे, जो राजनीति पर चर्चा करते...क्रिकेट के छक्के-चौके पर सीटियां बजाते और किसी कानून पर ज्ञान-गंगा बहाते। इतना ज्ञान कि नील नदी के किनारे पसरे मगरमच्छ को देखकर उसकी नस्ल तक बता दें।
इधर जानकार मर्दों की नासमझ जनानियां पल्लू कमर में खोंचे सरपट यहां से वहां भागतीं कि चौका निपटे तो खेत का काम कर डालें। या फिर खेत खाली हो तो त्यौहार मुंह फाड़े इंतजार करते होते। अब ऐसी औरत जाने भी तो भला क्या! उसका सारा गणित रसोई की घट-बढ़ में चुक जाता। सारा सामान्य ज्ञान फलाने गांव के ढिकाने नातेदारों में खपता। नतीजा, ज्ञानी मर्द ने तपाक से ऐलान कर दिया कि औरतों को न तो देश-दुनिया की मालूमात है, और न राजनीति की। विज्ञान-गणित की तो क्या ही कहें।
फिर वैसा ही हुआ भी। हल्दी-मसालों से महमहाती औरत ने किताबें शादी में मिली रेशमी साड़ी में लपेटकर रख दीं और बिसार दी गईं। बस, तब से यही सिलसिला चला आ रहा है। औरत को पहली नजर में कमजोर ही माना जाता है, जब तक कि वो खुद को साबित न कर दे। इसके उलट, पुरुष को तब तक मजबूत या जानकार माना जाता है, जब तक कि वो इस बात को गलत न साबित कर दे।
ये दोहरापन केवल मर्दों के भीतर नहीं, बदकिस्मती से औरतों के खून में भी खुद अपने ही लिए ये डर बहने लगा। इसे रिसर्च की भाषा में Goldberg paradigm कहते हैं। इसके तहत पूरी दुनिया के मर्दों और औरतों को कुछ पढ़ाया गया। पढ़ाने से पहले बता दिया गया कि लेख फलां पुरुष का है। एक दूसरे ग्रुप को वही लेख फलां महिला का कहकर पढ़ने को दिया गया। पढ़ने के बाद दोनों समूहों की राय एकदम अलग थी। एक ही आर्टिकल को उन लोगों ने शानदार कहा, जिन्हें वो किसी मर्द का लिखा लगा था। वहीं औरत के लिखे पर उन्हीं शब्दों ने बेहद कम नंबर पाए।
यानी मसला जानकारी का नहीं, बल्कि इस बात का है कि काम किसने किया- मर्द ने या औरत ने। खुद को पारदर्शी बताने के फेर में मर्द जमात ने कई शोध किए। जनाना-मर्दाना दिमाग की तस्वीर तक निकाल डाली। भारी-मोटे शब्दों में खूब संभलते हुए बताया कि औरत दरअसल गाने-बजाने, खुशबूदार खाना पकाने और बच्चे संभालने में ही मर्द से बेहतर है। औरत में किडनी, लीवर की तरह ही एक अंग ममता का होता है। वो नर्स बन उल्टियां तो साफ कर सकती है, लेकिन डॉक्टर बन ब्रेन सर्जरी नहीं कर सकती।
दरियादिली से छलछलाते कई मर्दों ने लगभग पुचकारते हुए बताया कि औरत नक्शे भूलती हैं तो ये उनका नहीं, कुदरत का दोष है। उसने औरत को दिमाग ही वैसा नहीं दिया। कुल मिलाकर बची-खुची तार्किक औरतों का पानी उतारने की गरज से ये सारी खोजें हुईं। अब सवाल ये आता है कि अगर औरत के दिमाग का बायां हिस्सा ज्यादा तेज है तो आर्ट गैलरी में पुरुष कलाकारों की भीड़ कैसे है। खुद की किताबें लिख सकने वाली औरत किताबों का विषय बनकर ही क्यों रह गई। सवाल तो ढेर सारे हैं। अनाम औरत कलाकारों के एक ग्रुप गुरिल्ला गर्ल्स ने एक स्टडी की। इसमें पाया गया कि मॉडर्न आर्ट में केवल 4 फीसदी ही महिला कलाकार हैं। इसके बाद भी नंगी तस्वीरों के जखीरे का 76 फीसदी औरतों की तस्वीरों से अटा पड़ा है।
अब धीरे-धीरे ही सही सवालों का कुकुरमुत्ता उगने लगा है। बहुत-धीरे सही, औरतें संदूक खोल रेशमी साड़ी में दबी वो बिसरी किताब निकाल रही हैं। अब आपकी बारी है। जनरल नॉलेज में जीत को औरतों की किस्मत कहने की बजाए खुलकर बधाई दें। गणित या विज्ञान को पुरुषों का विषय कहना बंद कर दें और किडनी के बगल में ममता नाम का अंग आप भी ट्रांसप्लांट करवा लें। तब दायरे दोनों के बढ़ेंगे।
आपका मोबाइल बिल हर महीने अब महंगा हो सकता है। देश की तीन बड़ी टेलीकॉम कंपनियां वोडाफोन-आइडिया, एयरटेल और रिलायंस जियो टैरिफ में 20% की बढ़ोतरी करने की तैयारी में हैं। सबसे पहले वोडाफोन-आइडिया टैरिफ बढ़ा सकती हैं। उसके बाद एयरटेल और जियो भी टैरिफ प्लान महंगा कर सकती हैं। टैरिफ बढ़ने का मतलब ये हुआ कि अगर आप पहले हर महीने मोबाइल बिल पर 100 रुपए खर्च करते थे, तो अब आपको 120 रुपए खर्च करने होंगे। लेकिन सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या हुआ है कि कंपनियां टैरिफ बढ़ाने की तैयारी कर रही हैं? आइए जानते हैं...
ऐसा इसलिए, ताकि यूजर से होने वाली कमाई बढ़ सके
रिलायंस जियो के आने के बाद से टेलीकॉम कंपनियों को बड़ा नुकसान हुआ है। इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि जियो के आने से पहले तक देश में 9 प्राइवेट कंपनियां थीं, लेकिन अब सिर्फ जियो, एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया ही बचीं।
जियो के आने से टेलीकॉम इंडस्ट्री में प्राइस वॉर छिड़ गया। नतीजा ये हुआ कि कंपनियों को अपने टैरिफ की कीमतें घटानी पड़ीं। इससे उनके रेवेन्यू पर तो असर पड़ा ही, साथ ही एक यूजर से होने वाली कमाई भी कम हो गई।
टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) के मुताबिक, जियो के आने से पहले जून 2016 में कंपनियां एक यूजर से हर महीने औसतन 155 रुपए कमाती थीं। इसमें से 126 रुपये कॉलिंग और दूसरी सर्विसेस से, जबकि 29 रुपये इंटरनेट डेटा से कमाती थीं। इसे एवरेज रेवेन्यू पर यूजर (ARPU) कहते हैं। जून 2020 में कंपनियों का औसत ARPU 90 रुपये पहुंच गया है। वह भी इसलिए क्योंकि कंपनियों ने बीच में टैरिफ बढ़ा दिया था। वरना जून 2018 में कंपनियों को ARPU तो 69 रुपये हो गया था।
20% बढ़ोतरी से आप पर और कंपनियों पर क्या असर होगा?
आप यानी यूजर परः जाहिर है 20% टैरिफ बढ़ने से आपका मोबाइल रिचार्ज भी 20% महंगा हो जाएगा। अगर अभी आप महीनेभर में 100 रुपये का रिचार्ज कराते हैं, तो बढ़ोतरी के बाद आपको 120 रुपये का रिचार्ज कराना होगा।
कंपनियों परः 20% टैरिफ बढ़ने से कंपनियों का ARPU बढ़ जाएगा। इससे इनकी कमाई भी बढ़ेगी। जैसे- सितंबर 2020 में जियो का ARPU 145 रुपये रहा। 20% बढ़ोतरी के बाद ये 174 रुपये तक हो सकता है। यानी, जियो एक यूजर से हर महीने औसतन 174 रुपये कमाएगी। सितंबर 2020 तक जियो के पास 40.56 करोड़ यूजर हैं। यानी, उसे 7,057 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई हो सकती है। हालांकि, ये आंकड़ा अनुमानित है और कम या ज्यादा हो सकता है। ये कंपनियां सर्विस पर क्या और कितना चार्ज बढ़ाएंगी, उस हिसाब से ये बढ़ या घट सकता है।
टैरिफ बढ़ाने को क्यों मजबूर हुईं कंपनियां? इसके दो कारण हैं
पहलाः जियो को छोड़ बाकी दो कंपनियां घाटे में
सितंबर तिमाही के आंकड़ों के मुताबिक, जियो ही इकलौती ऐसी टेलीकॉम कंपनी है, जो फायदे में रही। सितंबर तिमाही यानी जुलाई से सितंबर तक उसे 2,844 करोड़ रुपये का फायदा हुआ है। वोडाफोन-आइडिया को इस तिमाही में 7,218 और एयरटेल को 763 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
दूसराः बकाया AGR भी चुकाना है
टेलीकॉम कंपनियों पर बकाया AGR चुकाने के मामले में सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, कंपनियों को अगले 10 साल में बकाया AGR चुकाना है। जबकि, 31 मार्च 2021 तक कुल बकाये का 10% देना है। सितंबर 2020 तक एयरटेल पर 88,251 करोड़ और वोडाफोन-आइडिया पर 1.14 लाख करोड़ रुपये का कर्ज भी है। इन्हीं दोनों कंपनियों के ऊपर सबसे ज्यादा AGR है।
AGR यानी एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू टेलीकॉम कंपनियां सरकार को यूजेज और लाइसेंसिंग फीस के लिए चुकाती हैं।
कोरोना का असर हमारी सेहत के साथ घूमने-फिरने पर भी पड़ा है। फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन इन इंडियन टूरिज्म ऐंड हॉस्पिटैलिटी (FAITH) के मुताबिक सिर्फ टूरिज्म सेक्टर को 15 लाख करोड़ के नुकसान का अनुमान है। कुछ ट्रैवल एजेंसियों ने इसे ट्रैक पर लाने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का फॉर्मूला भी अपनाया, लेकिन ये कामयाब नहीं हुआ।
ऐसे में अब ट्रैवल कंपनियों ने वर्चुअल ट्रैवलिंग की नया तरीका पेश किया है। कंपनियों का मानना है कि इसके जरिए टूरिज्म बढ़ेगा और उन्हें हो रहे नुकसान की भरपाई हो सकेगी।
वर्चुअल ट्रैवलिंग क्या है?
वर्चुअल ट्रैवलिंग का मतलब घर बैठे देश-दुनिया घूमना। आप अपने मोबाइल, स्मार्ट टीवी और लैपटॉप के जरिए दुनिया के किसी भी जगह का लाइव व्यू ले सकते हैं। इसके जरिए गाइड डिजिटली इक्विप्ड होकर आपको जगहों का लाइव-व्यू देता है। साथ ही उस जगह की बारीकियों और खूबियों के बारे में भी जानकारी देता है।
वर्चुअल ट्रैवलिंग कैसे करें?
ऑनलाइन विजिटर बनकर आप वर्चुअल ट्रैवलिंग का आनंद उठा सकते हैं। मोबाइल पर ऐसे कई ऐप मौजूद हैं, जो वर्चुअल ट्रैवलिंग को आसान बनाते हैं।
जानिए वर्चुअल ट्रैवलिंग करने के 5 खास तरीके-
1. डिजनी वर्ल्ड के जरिए
डिजनी वर्ल्ड वर्चुअल ट्रैवलिंग की सर्विस प्रोवाइड कर रहा है। यह आमतौर पर बच्चों की टूर और ट्रैवल साइट्स को अपनी वेबसाइट पर ऑफर करता है। आप इसके वेबसाइट पर साइन-अप कर वर्चुअल ट्रैवलिंग एक्सेस कर सकते हैं।
2. ऑनलाइन म्यूजियम विजिट के जरिए
ब्रिटिश म्यूजियम लंदन समेत दुनिया के कई म्यूजियम में आप ऑनलाइन विजिट कर सकते हैं। वहां पर मौजूद गाइड वेबकैम के जरिए आपको उसकी बारीकियां और खूबियां बताएगा। टूर कंपनी ट्रैवल लेजर अपनी वेबसाइट पर यह सुविधा उपलब्ध करा रही है।
3. गूगल स्ट्रीट व्यू के जरिए
गूगल स्ट्रीट व्यू से आप दुनिया की किसी बाजार और टूरिज्म साइट पर घर बैठे ही विजिट कर सकते हैं। इसके लिए आपको बस एक अच्छे फोन और बेहतर इंटरनेट नेटवर्क की जरूरत होगी। यह ऐप एंड्रॉइड और IOS पर उपलब्ध है।
4. VR ट्रैवल ऐप के जरिए
VR ट्रैवलिंग के कई मोबाइल ऐप्लिकेशन उपलब्ध हैं। इन्हें एंड्रॉइड और IOS पर डाउनलोड किया जा सकता है। आप इन्हें डाउनलोड कर 3D व्यू में दुनिया की 10 हजार ट्रैवल और टूरिस्ट प्लेस पर विजिट कर सकते हैं।
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5. ऑनलाइन होटल, जू और पार्क विजिट के जरिए
दुनिया में ऐसे बहुत होटल, पार्क और जू हैं, जहां इंसान लाइफ में एक बार जरूर विजिट करना चाहता है। ऐसी बहुत सारी वेबसाइट्स हैं, जो ऑनलाइन होटल, जू और पार्क विजिट करा रही हैं। आप घर बैठे बहुत कम पैसों को खर्च कर अपनी यह ख्वाहिश पूरी कर सकते है।
होटल टूर के लिए- anywhere.com
पार्क के लिए- nationalparks.org
वर्चुअल ट्रैवलिंग को ऐसे करें एक्सेस
वर्चुअल ट्रैवलिंग एक नया कॉन्सेप्ट है। इसे एक्सेस करने के लिए बहुत से मोबाइल ऐप और वेबसाइट मौजूद हैं। आप ऐप डाउनलोड कर या वेबसाइट पर जाकर इसके लिए रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं। इसमें रजिस्ट्रेशन करने का प्रॉसेस सोशल मीडिया पर अकाउंट खोलने जैसा आसान है।
टाइम मैग्जीन हर साल दुनिया को बेहतर, स्मार्ट बनाने वाले आविष्कारों की घोषणा करती है। इस बार 100 बेस्ट इनोवेशन चुने गए हैं। इनका चयन मौलिकता, उपयोगिता, महत्वाकांक्षा और प्रभाव जैसे पहलुओं को ध्यान में रखकर किया गया है। इनमें बच्चों की मदद करने वाला रोबोट, टूथपेस्ट का नया ट्यूब, सेहत पर नजर रखने वाले एप सहित कई अनूठे गैजेट शामिल हैं। पेश हैं, दस ऐसे इनोवेशन...
बच्चों का सहायक रोबोट
मॉक्सी रोबोट किसी पड़ोसी के समान है। पिक्सर, जिम हेंसन प्रोडक्शन और शिक्षा, बाल विकास से जुड़े विशेषज्ञों ने इसे डिजाइन किया है। यह 5 से 10 साल के बच्चों को सामाजिक और भावनात्मक व्यवहार सिखाता है। पढ़ने, ड्रॉइंग बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। बड़ों और हमउम्र बच्चों से बात करना सिखाता है। बताता है कि दोस्त को पत्र कैसे लिखा जाए। मॉक्सी बनाने वाली कंपनी एमबॉडीड के सीईओ पावलो परिजनियन कहते हैं कि यह वास्तविक दुनिया में जाने के लिए बच्चों की मदद करता है।
नाखूनों की देखभाल
महामारी के दौर में मेनिक्योर के लिए किसी सैलून में एकाध घंटा बिताना भी बहुत होता है। मेनिमी कंपनी ने घर बैठे यह सुविधा मुहैया कराई है। यूजर को कंपनी की वेबसाइट पर अपने नाखूनों के फोटोज भेजने पड़ते हैं। कंपनी थ्री-डी मॉडलिंग टेक्नोलॉजी से नाखून की पोर में फिट होने वाले जैल पॉलिश स्टिकर भेजती है। मेनिक्योर के लिए स्टिकर को नाखून पर लगाएं और उसका गैरजरूरी हिस्सा अलग कर दें। हर मेनिक्योर दो सप्ताह तक चलता है। अगला मेनिक्योर करने से पहले स्टिकर हटा दीजिए।
रिसाइक्लेबल ट्यूब
कई बार छोटी चीजों से बड़े बदलाव का रास्ता खुलता है। दुनियाभर में टूथपेस्ट के अरबों ट्यूब हर साल फेंके जाते हैं। इनमें से अधिकतर प्लास्टिक और एल्यूमीनियम से बनते हैं। इसलिए इनका दोबारा उपयोग मुश्किल रहता है। टॉम्स मैने के नए ट्यूब में रिसाइकल पॉलीएथिलीन का उपयोग किया गया है। किसी अन्य ट्यूब में अब तक इसका इस्तेमाल नहीं हुआ है। इससे रिसाइकल होने वाली प्लास्टिक बनती हैं। कोलगेट पॉमऑलिव कंपनी अपने टूथपेस्ट में नए ट्यूब का उपयोग शुरू करेगी।
पानी का नया स्रोत
हवा से पानी बनाने की टेक्नोलॉजी का उपयोग बढ़ रहा है। स्काईसोर्स के वीड्यू जनरेटर ने पीने का पानी बनाने वाला मोबाइल जनरेटर वीड्यू पेश किया है। इसमें लकड़ी के टुकड़े, नारियल, मूंगफली के खोल जैसी चीजों को डालकर गर्म करते हैं। इस तरह निकलने वाली भाप को जनरेटर पानी में बदल देता है। बैटरी से चलने वाले पूरे सिस्टम को 40 फुट के कंटेनर में रख सकते हैं। वीड्यू और विश्व खाद्य कार्यक्रम ने इस साल युगांडा में एक शरणार्थी शिविर में जनरेटर लगाया है। तंजानिया में भी यह चल रहा है।
सेहत की रिंग
अमेरिका की नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन के सीजन में खिलाड़ियों और स्टाफ का कोई सदस्य कोरोना वायरस से बीमार नहीं पड़ा है। खिलाड़ी और स्टाफ एक सुरक्षा घेरे में महफूज रहे। एनबीए ने सबकी सेहत पर नजर रखने के लिए औरा रिंग का उपयोग किया है। उंगली में पहनने पर सेंसर से लैस अंगूठी दिल की धड़कन, सक्रियता का स्तर, नींद की स्थिति और शरीर का तापमान बताती है। कंपनी के सीईओ हरप्रीत सिंह बताते हैं कि औरा का एप आपके स्वास्थ्य की पूरी तस्वीर पेश करता है। औरा ने एनबीए के अलावा कुछ अन्य लीग और कंपनियों से एप की सप्लाई का करार किया है।
सुरक्षित साइक्लिंग
दुनियाभर में हजारों साइकल सवार गंभीर दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं। अकेले अमेरिका में 2019 में 60 हजार लोगों को साइकल दुर्घटना के बाद दिमाग में गंभीर चोट आई। कोई भी साइकल हेलमेट सिर में गंभीर चोट से बचाव की गारंटी नहीं देता है। लेकिन, बॉनट्रेजर के नए वेवसैल हेलमेट के अंदर एडजस्ट होने वाला पॉलीमर घेरा रहता है। यह बाहर से लगने वाले किसी भी आघात के प्रभाव को बेअसर करता है। परंपरागत हेलमेट में ऐसी कोई सुरक्षा परत नहीं होती है। वर्जीनिया टेक ने वेवसैल को सर्वोच्च रैंकिंग-पांच स्टार दी है। हेलमेट का मूल्य 99 से लेकर 299 डॉलर तक है।
हाथ के बिना मुंह की सफाई
फ्रांसीसी डेंटिस्ट द्वारा निर्मित विलो के सामने इलेक्ट्रिक टूथब्रश भी फीके लगते हैं। नायलॉन के ब्रिसल वाले सिलिकॉन ब्रश सिस्टम को मुंह में डालने के बाद होंठ बंद कर लीजिए। सिस्टम चालू करने पर मुंह में पानी पहुंच जाएगा और खास फार्मूले का टूथपेस्ट दांतों की सफाई करेगा। सिस्टम स्वयं अपनी धुलाई करता है। ब्रश और टूथपेस्ट मिलकर मसूड़ों की मसाज का अहसास कराते हैं। यह दांतों से मैल की परत को हटाता है। विलो के साथ एक एप जुड़ा है। यह बताता है कि आप दांत साफ करते हैं या नहीं। अगर किसी दिन दांत साफ नहीं कर पाए, तो अगले दिन उसकी भरपाई हो जाती है। दांतों की सफाई का सिस्टम 2021 में आने वाला है।
भविष्य की खेती
ऑर्गेनिक खेती को टेक्नोलॉजी के हिसाब से पिछड़ा मानते हैं। लेकिन, खरपतवार नष्ट करने वाला रोबोट नई कहानी कहता है। फार्म वाइस टाइटन एफटी-35 एक ड्राइवर विहीन ट्रैक्टर है। यह खेतों से बेकार पौधों को हटाने के लिए मशीन लर्निंग और कंप्यूटर विजन का इस्तेमाल करता है। परंपरागत ट्रैक्टर द्वारा बनाए रास्ते पर चलने वाली मशीन खेत में लगी फसलों और खरपतवार की पहचान कर लेती है। यह मिनटों में खरपतवार को उखाड़ फेंकती है। एफटी-35 का अमेरिका में इस्तेमाल शुरू हो गया है।
कुछ इन्वेंशन कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित हैं।
वायरस से बचाव के तरीके...
जीवाणुओं से रक्षा
हर दिन सांस के जरिये संक्रमण फैलाने वाले असंख्य कण हमारे शरीर में पहुंचते हैं। यदि इनमें से कोई फेफड़ों में जाता है, तो हम बीमार पड़ जाते हैं। हार्वर्ड के एरोसॉल विशेषज्ञ डेविड एडवर्ड्स दस साल से इस खतरे को कम करने के लिए हाथ धोने जैसे किसी अन्य उपाय की खोज में लगे हैं। वे सोचते हैं कि फेंड नामक मिश्रण से यह तरीका हासिल किया जा सकता है। कैल्शियम और नमक से बना झाग और धुआं नाक की म्यूकस परत को मजबूत करता है। सूक्ष्म जीवाणुओं को बाहर निकालता है। एक स्टडी में पाया गया कि फेंड का इस्तेमाल करने वाले लोगों की नाक और फेफड़ों में लगभग 75 प्रतिशत कम एरोसॉल कण गए। इस मिश्रण को हाथ धोने, मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ बीमारी रोकने के तरीकों में शामिल कर सकते हैं।
डेटा रिसोर्स सेंटर
कोरोना वायरस महामारी के दौर में जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। उसका कोरोना वायरस रिसोर्स सेंटर महामारी के आंकड़ों का क्लीयरिंग हाउस है। सेंटर के डेटा अरबों बार डाउनलोड किए गए होंगे। इनकी सहायता से सरकारों ने बीमारी से निपटने के लिए जरूरी संसाधन प्रभावित स्थानों पर भेजे होंगे। सेंटर के डेटा को देखकर लोगों ने अपने घर से बाहर जाने के कार्यक्रम तय किए होंगे।
बच्चों को सुलाने वाला क्रिब
छह माह से कम आयु के 60 प्रतिशत बच्चे ही रात भर सो पाते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से चलने वाला क्रेडलवाइस स्मार्ट क्रिब सेंसर के माध्यम से बच्चे की हलचल का पता लगा लेता है। अधिक स्वचालित क्रिब शिशु के रोने पर सक्रिय होते हैं। बच्चे की नींद के समय पर आधारित क्रिब तय करता है कि बच्चे को हिला-डुलाकर कब सुलाया जाए या उसे जागने दिया जाए। सब कुछ सेंसर के हिसाब से चलता है।
जिंदगी भर की दोस्ती
अकेलेपन से जूझते बुजुर्ग मानसिक बीमारियों के घेरे में आ जाते हैं। टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री से जुड़े टॉम स्टीवंस ने अपनी मां की स्थिति को देखकर टेक्नोलॉजी में इसका इलाज खोजा है। स्टीवंस ने भावनात्मक सहारा देने वाला रोबोट टॉमबोट जैनी तैयार कराया है। यह असली कुत्ते के समान व्यवहार करता है। जिम हेंसन की क्रीचर शॉप द्वारा डिजाइन जेनी छह-सात किलो के पपी जैसा लगता है। इसमें दर्जनों सेंसर लगे हैं। पीठ थपथपाने पर पूंछ हिलाता है, आदेश के हिसाब से चलता है और जरूरत पड़ने पर भौंकता है। टॉमबोट जेनी को अपने साथी के स्वास्थ्य की जानकारी देने की सुविधाओं से भी लैस करेंगे। कंपनी 2022 में रोबो डॉग की सप्लाई पांच हजार लोगों को करेगी।
जिंदगी से जुड़े मास्क
कोविड-19 वायरस को फैलने से रोकने का सबसे महत्वपूर्ण साधन फेस मास्क है। यह 2020 के वर्ष को पहचान दिलाने वाला कंज्यूमर प्रोडक्ट है। किसी भी तरह के मास्क को सर्वश्रेष्ठ इनोवेशन की श्रेणी में शामिल किया जा सकता है। लेकिन, यहां तीन मास्क का जिक्र हो रहा है।
1. ब्रीद 99 का बी2 मास्क लचीला है। रबर के टुकड़े जैसे मास्क में दो बदले जाने वाले फिल्टर हैं। ये लगभग 99.6 प्रतिशत कणों को हटा देते हैं। मास्क धो सकते हैं।
2. पेटिट प्ली का एमएसके रिसाइकल प्लास्टिक के धागे से बना है। यह चेहरे के हर कोण पर फिट हो जाता है।
3. आईएमरनबॉक्स के रनमास्क कपड़े और पोलिस्टर से बना है। यह वर्कआउट के समय सुविधाजनक रहता है।
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