शनिवार, 15 अगस्त 2020

1947 में 10 ग्राम सोने की कीमत 89 रुपए से भी कम थी, आज इतने में दो लीटर दूध भी नहीं आता; आम आदमी की कमाई 542 गुना बढ़ी

मेरे पास 27 पैसे हैं। मैं इनका क्या करूं? आप कहेंगे ये तो कई साल पहले बंद हो चुके हैं। आप सही कह रहे हैं। इन पैसों की आज भले कोई कीमत नहीं हो लेकिन, आजादी वाले दिन यानी, 15 अगस्त 1947 को मैं इतने पैसे से एक लीटर पेट्रोल खरीद सकता था। आज जितने रुपए में एक लीटर पेट्रोल मिलता है। उतने में उस वक्त मैं 10 ग्राम सोना खरीद सकता था। और इसी एक लीटर पेट्रोल के पैसे से मैं दिल्ली से मुंबई के बीच ट्रेन से चार बार यात्रा कर सकता था।

आज आप एक दिन में 249 रुपए या उससे ज्यादा भी खर्च कर देते हैं। उस वक्त देश के एक नागरिक की सालाना कमाई इतनी ही थी। पिछले 73 साल में देश में बहुत कुछ बदला है। आजादी के वक्त देश में क्या स्थिति थी? आज क्या है? जानें इस रिपोर्ट में...

1. 73 साल में कितनी बढ़ गई देश की आबादी?
1947 में जब हमें अंग्रेजों से आजादी मिली, तो हमारी आबादी पता है कितनी थी? सिर्फ 34 करोड़। आजादी के बाद पहली बार 1951 में जनगणना हुई थी। उस समय हमारी आबादी 34 करोड़ से बढ़कर 36 करोड़ से कुछ ज्यादा हो गई। आजादी के समय हमारा लिटरेसी रेट सिर्फ 12% था, वो भी 1951 तक बढ़कर 18% से ज्यादा हो गया।

आखिरी बार जनगणना 2011 में हुई थी। उस समय तक हमारी आबादी 121 करोड़ को पार गई। लिटरेसी रेट भी बढ़कर 74% आ गया। यानी आजादी के समय हमारे देश में सिर्फ 12% लोग ही पढ़-लिख पाते थे।

इन सबके अलावा आधार जारी करने वाली संस्था यूआईडीएआई भी समय-समय पर आबादी के आंकड़े जारी करती रहती है। इसके ताजा आंकड़े मई 2020 तक के हैं। यूआईडीएआई का डेटा बताता है कि मई 2020 तक देश की आबादी 137 करोड़ से ज्यादा हो गई है। अब अगर हिसाब लगाएं तो पता चलता है कि आजादी के बाद से अब तक हमारी आबादी चार गुनी बढ़ गई है।

अब एक अनुमान ये भी है कि 2050 तक हम दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों की लिस्ट में पहले नंबर पर आ जाएंगे। अभी चीन के बाद दूसरे नंबर पर हैं।

2. 73 साल में कितनी बढ़ी देश की जीडीपी?
किसी भी देश की आर्थिक हालत कैसी है? इसको जानने का सबसे जरूरी पैमाना है जीडीपी। लोग मानते हैं कि जब अंग्रेज भारत आए थे, तब दुनिया की जीडीपी में हमारा हिस्सा 22% से भी ज्यादा था। यानी, उस समय दुनिया की जितनी जीडीपी थी, उसमें से 22% से ज्यादा जीडीपी तो अकेले हमारे देश की ही थी।

जबकि, 18वीं सदी में भारत की जीडीपी दुनिया में सबसे ज्यादा थी, लेकिन धीरे-धीरे हमारी जीडीपी गिरते चली गई। जब अंग्रेज हमें छोड़कर गए, तो हमारी जीडीपी 2.70 लाख करोड़ रुपए थी। उस वक्त दुनिया की जीडीपी में हमारा हिस्सा सिर्फ 3% ही रह गया था।

लेकिन, आजादी के बाद से अब तक हमारी जीडीपी 55 गुना से ज्यादा बढ़ी है। 2019-20 में हमारी जीडीपी 147.79 लाख करोड़ रुपए होने का अनुमान है। आज हम दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बन गए हैं और दुनिया की जीडीपी में हमारा हिस्सा 4% से ज्यादा है।

3. 73 साल में आम आदमी की कमाई कितनी बढ़ी?
आज 249 रुपए में क्या होता है? एक अच्छे प्लान वाला रिचार्ज भी नहीं आता। कुछ लोग तो 249 रुपए से ज्यादा तो दिनभर में ही खर्च कर देते हैं। लेकिन, जब हम आजाद हुए थे, तब हर आदमी की आमदनी सालाना 249 रुपए ही थी।

लेकिन, अच्छी बात ये है कि आजादी से लेकर अब तक आम आदमी की सालाना आमदनी 542 गुना बढ़ गई है। अब देश का हर आदमी सालाना 1 लाख 35 हजार 50 रुपए कमा लेता है। यानी, हर महीने 11 हजार 254 रुपए।

4. 73 साल में देश से कितनी गरीबी मिटी?
अब जाहिर है कि आमदनी बढ़ी है तो गरीबी भी घटी ही होगी। फिर भी आंकड़ों से समझते हैं कि आजादी से अब तक कितनी गरीबी घट चुकी है। जब हम आजाद हुए, तो हमारे देश की 80% आबादी या यूं कहें कि 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे आते थे।

1956 के बाद से गरीबी की संख्या का हिसाब-किताब रखा जाने लगा। बीएस मिन्हास ने योजना आयोग एक रिपोर्ट दी थी। इस रिपोर्ट में उन्होंने अनुमान लगाया था कि 1956-57 में देश की 65% आबादी या फिर 21.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे थे।

सरकार ने भी गरीबी रेखा कि एक परिभाषा तय कर रखी है, जो बताती है कि कौन गरीबी रेखा से नीचे आएगा और कौन नहीं? तो इस परिभाषा में तय ये हुआ है कि शहर में रहने वाला अगर कोई व्यक्ति हर महीने 1000 रुपए से ज्यादा कमा रहा है, तो वो गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा। इसी तरह अगर गांव में रहने वाला कोई हर महीने 816 रुपए से ज्यादा की कमाई कर रहा है, तो वो भी गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा।

अब आंकड़े भी देख लेते हैं। गरीबी रेखा के सबसे ताजा आंकड़े 2011-12 तक के ही मौजूद हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक, देश की 26.9 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। यानी, उस समय तक देश की 22% आबादी ही गरीबी रेखा के नीचे आती थी। इस हिसाब से आजादी से लेकर अब तक देश की 58% आबादी गरीबी रेखा से नीचे आ चुकी है।

5. 73 साल में सोने की कीमत कितनी बढ़ी?
ये तो सबको ही पता है कि हमारे देश को पहले सोने की चिड़िया कहा जाता था। इसका कारण ये था कि हमारे यहां हर घर में सोना होता ही था। आज भी दुनिया के कई देशों की जीडीपी से ज्यादा सोना हमारे घरों और मंदिरों में रखा हुआ है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के पास जो डेटा है, उसके मुताबिक हमारे देश में घरों और मंदिरों में 25 हजार टन सोना है, जिसकी कीमत 75 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा है।

हमारे यहां सोने को इसलिए भी पसंद किया जाता है, क्योंकि इसकी कीमत लगातार बढ़ती ही रहती है और जरूरत पड़ने पर सोना गिरवी रखकर कर्ज भी आसानी से मिल ही जाता है।

अब जरा ये भी जान लीजिए कि जब आजाद हुए तो उस वक्त 10 ग्राम सोने की कीमत क्या थी? तो आपको बता दें कि उस जमाने में 10 ग्राम सोना सिर्फ 88.62 रुपए में ही आ जाता था। जबकि, आज 10 ग्राम सोने की कीमत 54 हजार रुपए से ज्यादा हो गई है।

यानी, उस समय जितने रुपए में हम 10 ग्राम सोना खरीद सकते थे, आज उतने रुपए में दो लीटर दूध भी नहीं मिलता। आज एक लीटर दूध की औसत कीमत 50 रुपए है।

6. 73 साल में पेट्रोल की कीमत कितनी बढ़ी?
सोने के बाद अब पेट्रोल की बात। लेकिन, उससे पहले आपको बताते हैं कि आजादी के वक्त हमारे यहां कितनी गाड़ियां थीं। मिनिस्ट्री ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन का डेटा 1951 से रख रहा है। उस समय देश में 3 लाख के आसपास गाड़ियां रजिस्टर्ड थीं। यानी, आजादी के वक्त ही 3 लाख से कम गाड़ियां हमारे देश में होंगी। लेकिन, अब 30 करोड़ से ज्यादा गाड़ियां रजिस्टर्ड हैं।

इतने सालों में न सिर्फ गाड़ियां, बल्कि पेट्रोल की कीमतें भी बढ़ी हैं। आजादी के वक्त हम सिर्फ 27 पैसे में ही एक लीटर पेट्रोल खरीद सकते थे। लेकिन, आज एक लीटर पेट्रोल 80 रुपए से भी ज्यादा का हो गया है। इस हिसाब से आजादी से लेकर अब तक हमारे यहां पेट्रोल 300 गुना से ज्यादा महंगा हो गया है।

7. 73 साल में कितने रेल यात्री बढ़े? किराया कितना बढ़ा?
16 अप्रैल 1853 वो दिन था, जब हमारे देश में पहली ट्रेन चली थी। जो पहली ट्रेन थी, उसने मुंबई से ठाणे के बीच 33.6 किमी का सफर तय किया था। उसके बाद रेलवे की पटरियां बिछती गईं और धीरे-धीरे रेल ही भारत की लाइफलाइन बन गई। लाइफलाइन इसलिए क्योंकि ट्रेन ही ऐसा जरिया है, जिससे रोजाना करोड़ों यात्री सफर करते हैं।

जब भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारा हुआ, तब भी रेल ही एकमात्र ऐसा जरिया थी, जिससे लोग भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत आ रहे थे। अभी भी जब कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन लगा, तो प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने का काम भी रेल ने ही किया।

इसको लाइफलाइन कहने का एक कारण ये भी है कि इससे सफर करने वाले यात्रियों की संख्या हर साल बढ़ ही रही है। 1950-51 में ट्रेन से सालभर में 128 करोड़ यात्री सफर करते थे, जिनकी संख्या 2018-19 में बढ़कर 843 करोड़ से ज्यादा हो गई। यानी, इतने सालों में ट्रेन से सफर करने वाले यात्रियों की संख्या 6.5 गुना बढ़ गई।

अब यात्रियों की संख्या बढ़ी है। महंगाई बढ़ी है। रेल नेटवर्क बढ़ा है। तो जाहिर है किराया भी बढ़ा ही होगा। तो समझिए कि 1950-51 में रेलवे हर एक किमी पर 1.5 पैसा किराया वसूलती थी, जबकि 2018-19 में हर किमी पर 44 पैसे से ज्यादा किराया लगता है। इस हिसाब से रेलवे का किराया भी 30 गुना बढ़ गया है।

अब किराया बढ़ा है तो रेलवे की कमाई भी बढ़ी ही होगी। तो उसके आंकड़े भी देख ही लीजिए। 1950-51 में रेलवे को यात्रियों से 98 करोड़ रुपए का रेवेन्यू सालभर में मिलता था। और 2018-19 में 50 हजार करोड़ से ज्यादा का रेवेन्यू सालभर में आया।

8. 73 साल में केंद्र सरकार का खर्च कितना बढ़ा?
सब कुछ बढ़ ही रहा है तो केंद्र सरकार के खर्च पर भी नजर डाल ही लेते हैं। जब हम आजाद हुए, तो हमारा पहला बजट आया। आजाद भारत का ये पहला बजट 15 अगस्त 1947 से 31 मार्च 1948 तक के लिए था। इस बजट में सरकार ने 197 करोड़ रुपए रखे थे।

उसके बाद से अब तक हमारे देश के बजट में साढ़े 15 हजार गुना से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। 2020-21 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो बजट पेश किया था, उसमें सरकार ने 30.42 लाख करोड़ रुपए रखे थे। ये पैसा हमारी हेल्थ, हमारी पढ़ाई, हमारे देश की सुरक्षा, तरक्की और बाकी जगहों पर खर्च होगा।

9. 73 साल में डॉलर के मुकाबले कितना कमजोर हुआ रुपया?
अक्सर आपने सुना होगा कि आजादी के वक्त 1 डॉलर की वैल्यू 1 रुपए के बराबर थी। लेकिन, सरकारी आंकड़ों में ऐसा कोई जिक्र कहीं नहीं मिलता है। दुनिया की एक सबसे पुरानी ट्रैवल कंपनी है थॉमस कुक। पुरानी इसलिए क्योंकि 1881 में ये शुरू हुई थी। ये कंपनी फॉरेन एक्सचेंज की सर्विस भी देती है। यानी डॉलर के बदले रुपया और रुपए के बदले डॉलर।

इस कंपनी की वेबसाइट पर जो डेटा मौजूद है, वो बताता है कि आजादी के वक्त 1 डॉलर की वैल्यू 3 रुपए 30 पैसे थी। आज एक डॉलर की वैल्यू 74 रुपए 79 पैसे हो गई है। यानी, आजादी के बाद से अब तक डॉलर के मुकाबले रुपया 23 गुना कमजोर हो गया है।

अब जरा ये भी समझ लीजिए कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होने का कितना असर पड़ता है? क्योंकि इसका असर सिर्फ देश की सरकार ही नहीं, बल्कि आम लोगों को पड़ता है। कैसे? तो ऐसा इसलिए क्योंकि दुनियाभर में कारोबार की एक ही करंसी है और वो है डॉलर। अगर हमें विदेश से कुछ भी खरीदना है, तो उसकी कीमत हमें डॉलर में ही देनी होगी। इससे महंगाई भी बढ़ती है।

इसको ऐसे समझिए कि अगर हमें अमेरिका से कोई सामान खरीदना है और उसकी वैल्यू 1 डॉलर है, तो उसके लिए हमें अमेरिका को करीब 75 रुपए देने पड़ेंगे।

10. 73 साल में फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व कितना बढ़ा?
रुपए के कमजोर होने का असर हमारे फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व पर पड़ता है। दरअसल, होता क्या है कि दुनिया के हर देश के पास दूसरे देश की करंसी का रिजर्व रहता है। इसके जरिए ही कोई भी देश एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट करता है। इसी रिजर्व को फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व कहते हैं।

आजादी के वक्त देश में कितना फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व था, इस बात के आंकड़े तो नहीं मिल सके हैं। लेकिन, 1950-51 के बाद से इसका डेटा रखा जाने लगा है। इसके मुताबिक, उस समय हमारे देश में 1 हजार 29 करोड़ रुपए का फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व था। और 2018-19 में हमारे पास 28.55 लाख करोड़ रुपए का रिजर्व था। यानी, इतने सालों में हमारा फॉरेन करंसी रिजर्व 2.5 हजार गुना से ज्यादा बढ़ गया है।

फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व इसलिए भी जरूरी होता है, क्योंकि ये एक ऐसा खजाना है जो किसी भी आर्थिक संकट से निपटने में मदद करता है। इसके अलावा अगर डॉलर के मुकाबले रुपया ज्यादा होने लगता है, तो आरबीआई रिजर्व डॉलर को बेच देता है।



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मोदी ने आज 86 मिनट का भाषण दिया, यह उनकी तीसरी सबसे बड़ी स्पीच; सबसे लंबा संबोधन 2016 में 96 मिनट का था

74वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को सातवीं बार लाल किले से झंडा फहराया और 86 मिनट तक देश को संबोधित किया। यह उनकी तीसरी सबसे बड़ी स्पीच रही। इससे पहले 2019 में 93 मिनट बोले थे। वहीं, 2016 में 96 मिनट देश को संबोधित किया था। यही इनका अब तक का सबसे लंबा भाषण था। मोदी 7 साल में लाल किले से 9 घंटे 24 मिनट बोल चुके हैं।

2015 में नेहरू का रिकॉर्ड तोड़ा था
प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 में 86 मिनट तक अपनी बात देश के लोगों के सामने रखी थी और पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का रिकॉर्ड तोड़ा था। नेहरू ने लाल किले से 1947 में 72 मिनट का भाषण दिया था।

मनमोहन ने लाल किले से 10 बार देश को संबोधित किया
उधर, मनमोहन सिंह ने लाल किले से 10 बार देश को संबोधित किया। उनका भाषण दो बार ही 50 मिनट का रहा। बाकी आठ बार भाषण का समय 32 से 45 मिनट के बीच ही रहा।

वाजपेयी ने 6 बार देश को संबोधित किया
अपने भाषणों के लिए मशहूर रहे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ज्यादा लंबे भाषण नहीं दिए। उन्होंने छह बार लाल किले से देश को संबोधित किया। उन्होंने 1998 में 17 मिनट, 1999 में 27 मिनट, 2000 में 28 मिनट, 2001 में 31 मिनट, 2002 में 25 मिनट और 2003 में 30 मिनट का भाषण दिया।

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प्रधानमंत्री ने कहा- एलओसी से एलएएसी तक जिस किसी ने आंख उठाई, देश के वीर जवानों ने उन्हें उसी भाषा में जवाब दिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को 74वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित किया। इस दौरान चीन और पाकिस्तान का नाम लिए बिना उन्हें इशारों में संदेश दे दिया कि भारत किसी भी चुनौती से निपटने के लिए तैयार है। मोदी ने लद्दाख का जिक्र किया। कहा- हमारे वीर जवान क्या कर सकते हैं, देश क्या कर सकता है, ये लद्दाख में दुनिया ने देख लिया है।

लद्दाख की गलवन घाटी में 15 जून को भारत और चीन के सैनिकों की हिंसक झड़प हुई थी। इसमें भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन के 40 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे। हालांकि, चीन ने अब तक इसकी पुष्टि नहीं की।

दुश्मन को उसी की भाषा में जवाब देते हैं
मोदी ने अपने भाषण में दुश्मनों को सीधी चेतावनी दी। लद्दाख का जिक्र चीन के लिए तो आतंकवाद का पाकिस्तान के लिए किया। हालांकि, दोनों का ही नाम लेने से परहेज किया। मोदी ने कहा, “जब हम एक असाधारण लक्ष्य लेकर असाधारण यात्रा पर निकलते हैं तो रास्ते में चुनौतियों की भरमार होती है, चुनौतियां भी असामान्य होती हैं। सीमा पर देश के सामर्थ्य को चुनौती देने के प्रयास हुए। लेकिन, एलओसी से लेकर एलएसी तक देश की संप्रभुता पर जिस किसी ने आंख उठाई, देश की सेना ने और हमारे वीर जवानों ने उसी भाषा में जवाब दिया।”

“ भारत की संप्रभुता की रक्षा के लिए पूरा देश एक जोश से भरा हुआ है। संकल्प से प्रेरित है और सामर्थ्य पर आगे बढ़ रहा है। हमारे वीर जवान क्या कर सकते हैं, देश क्या कर सकता है, ये लद्दाख में दुनिया ने देख लिया है। मैं आज मातृभूमि पर न्योछावर सभी वीर जवानों को लाल किले की प्राचीर से आदरपूर्वक नमन करता हूं।’’

दुनिया का भारत पर भरोसा बढ़ा
चीन ने जब गलवन में नापाक हरकत की तो भारत ने उसे कई मोर्चों पर करारा जवाब दिया। आज हालात ये हैं कि चीन दुनिया में अकेला पड़ता जा रहा है और भारत का समर्थन तेजी से बढ़ा है। मोदी ने भी इसका जिक्र किया। कहा- आतंकवाद हो या विस्तारवाद, आज भारत डटकर मुकाबला कर रहा है। दुनिया का भारत पर विश्वास मजबूत हुआ है। पिछले दिनों भारत संयुक्त राष्ट्र में 192 में से 184 वोट हासिल कर अस्थायी सदस्य चुना गया।”

“विश्व में हमने कैसे यह पहुंच बनाई है, यह इसका उदाहरण है। जब भारत मजबूत हो, भारत सुरक्षित हो, तब यह संभव होता है। भारत का लगातार प्रयास है कि अपने पड़ोसी देशों के साथ अपने सदियों पुराने सांस्कृतिक और सामाजिक रिश्तों को और गहराई दें। दक्षिण एशिया में दुनिया की एक चौथाई जनसंख्या रहती है।

क्या हुआ था गलवन में
भारत और चीन के सैन्य अफसरों के बीच मई में एक समझौता हुआ था। इसके मुताबिक दोनों देशों के सैनिकों को अपनी-अपनी जगह से पीछे हटना होगा। वहां मौजूद अस्थायी ढांचे हटाने होंगे। 15 जून की रात भारतीय सैनिक यह देखने के लिए पेट्रोलिंग पॉइंट 15 पहुंचे कि चीनी सैनिक पीछे हटे या नहीं। इस दौरान चीनी सैनिकों ने उन पर हमला बोल दिया। कर्नल संतोष बाबू समेत 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए। 40 से ज्यादा चीनी सैनिक भी मारे गए। लेकिन, चीन ने कभी सार्वजनिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं की।

मई-जून में 6 बार ईस्टर्न लद्दाख में चीन का मुकाबला करनेवाले आईटीबीपी के 21 जवानों को गैलेंट्री मेडल
आईटीबीपी ने पिछले मई और जून के दो महीनों में 5-6 बार लद्दाख के अलग-अलग इलाकों में चीन का मुकाबला करनेवाले आईटीबीपी के 21 अफसर और जवानों को गैलेंट्री मेडल देने की घोषणा की है। स्वतंत्रता दिवस के ठीक एक दिन पहले आईटीबीपी के डीजी देसवाल ने इसकी घोषणा की है।
पूरी खबर पढ़ें: लद्दाख में आईटीबीपी का शौर्य



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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गलवन झड़प के 18 दिन बाद 3 जुलाई को लद्दाख का दौरा किया था। इस दौरान वे नीमू बेस पर जवानों के बीच पहुंचे थे।


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प्रधानमंत्री ने कहा- एलओसी से एलएएसी तक जिस किसी ने आंख उठाई, देश के वीर जवानों ने उन्हें उसी भाषा में जवाब दिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को 74वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित किया। इस दौरान चीन और पाकिस्तान का नाम लिए बिना उन्हें इशारों में संदेश दे दिया कि भारत किसी भी चुनौती से निपटने के लिए तैयार है। मोदी ने लद्दाख का जिक्र किया। कहा- हमारे वीर जवान क्या कर सकते हैं, देश क्या कर सकता है, ये लद्दाख में दुनिया ने देख लिया है।

लद्दाख की गलवन घाटी में 15 जून को भारत और चीन के सैनिकों की हिंसक झड़प हुई थी। इसमें भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन के 40 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे। हालांकि, चीन ने अब तक इसकी पुष्टि नहीं की।

दुश्मन को उसी की भाषा में जवाब देते हैं
मोदी ने अपने भाषण में दुश्मनों को सीधी चेतावनी दी। लद्दाख का जिक्र चीन के लिए तो आतंकवाद का पाकिस्तान के लिए किया। हालांकि, दोनों का ही नाम लेने से परहेज किया। मोदी ने कहा, “जब हम एक असाधारण लक्ष्य लेकर असाधारण यात्रा पर निकलते हैं तो रास्ते में चुनौतियों की भरमार होती है, चुनौतियां भी असामान्य होती हैं। सीमा पर देश के सामर्थ्य को चुनौती देने के प्रयास हुए। लेकिन, एलओसी से लेकर एलएसी तक देश की संप्रभुता पर जिस किसी ने आंख उठाई, देश की सेना ने और हमारे वीर जवानों ने उसी भाषा में जवाब दिया।”

“ भारत की संप्रभुता की रक्षा के लिए पूरा देश एक जोश से भरा हुआ है। संकल्प से प्रेरित है और सामर्थ्य पर आगे बढ़ रहा है। हमारे वीर जवान क्या कर सकते हैं, देश क्या कर सकता है, ये लद्दाख में दुनिया ने देख लिया है। मैं आज मातृभूमि पर न्योछावर सभी वीर जवानों को लाल किले की प्राचीर से आदरपूर्वक नमन करता हूं।’’

दुनिया का भारत पर भरोसा बढ़ा
चीन ने जब गलवन में नापाक हरकत की तो भारत ने उसे कई मोर्चों पर करारा जवाब दिया। आज हालात ये हैं कि चीन दुनिया में अकेला पड़ता जा रहा है और भारत का समर्थन तेजी से बढ़ा है। मोदी ने भी इसका जिक्र किया। कहा- आतंकवाद हो या विस्तारवाद, आज भारत डटकर मुकाबला कर रहा है। दुनिया का भारत पर विश्वास मजबूत हुआ है। पिछले दिनों भारत संयुक्त राष्ट्र में 192 में से 184 वोट हासिल कर अस्थायी सदस्य चुना गया।”

“विश्व में हमने कैसे यह पहुंच बनाई है, यह इसका उदाहरण है। जब भारत मजबूत हो, भारत सुरक्षित हो, तब यह संभव होता है। भारत का लगातार प्रयास है कि अपने पड़ोसी देशों के साथ अपने सदियों पुराने सांस्कृतिक और सामाजिक रिश्तों को और गहराई दें। दक्षिण एशिया में दुनिया की एक चौथाई जनसंख्या रहती है।

क्या हुआ था गलवन में
भारत और चीन के सैन्य अफसरों के बीच मई में एक समझौता हुआ था। इसके मुताबिक दोनों देशों के सैनिकों को अपनी-अपनी जगह से पीछे हटना होगा। वहां मौजूद अस्थायी ढांचे हटाने होंगे। 15 जून की रात भारतीय सैनिक यह देखने के लिए पेट्रोलिंग पॉइंट 15 पहुंचे कि चीनी सैनिक पीछे हटे या नहीं। इस दौरान चीनी सैनिकों ने उन पर हमला बोल दिया। कर्नल संतोष बाबू समेत 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए। 40 से ज्यादा चीनी सैनिक भी मारे गए। लेकिन, चीन ने कभी सार्वजनिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं की।

मई-जून में 6 बार ईस्टर्न लद्दाख में चीन का मुकाबला करनेवाले आईटीबीपी के 21 जवानों को गैलेंट्री मेडल
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ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया में 330 नए मामले सामने आए, फ्रांस में भी तेजी से बढ़ा संक्रमण; दुनिया में 2.13 करोड़ मरीज

दुनिया में कोरोनावायरस संक्रमण के अब तक 2 करोड़ 13 लाख 41 हजार 445 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें 1 करोड़ 41 लाख 38 हजार 304 मरीज ठीक हो चुके हैं। 7 लाख 63 हजार 056 की मौत हो चुकी है। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं। यूरोपीय देशों में एक बार फिर संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। फ्रांस में लगातार तीसरे दिन 2500 से ज्यादा केस सामने आए। ऑस्ट्रेलिया में संक्रमण की दूसरी लहर का देखी जा रही है। यहां एक दिन में 330 मामले सामने आए।

फ्रांस : तेजी से बढ़े मामले
फ्रांस में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। यहां लगातार तीसरे दिन शुक्रवार को 2500 से ज्यादा मामले सामने आए। इतनी तेजी से बढ़ते मामलों की वजह से फ्रांस सरकार भी अलर्ट पर आ गई है। शुक्रवार देर रात हेल्थ मिनिस्ट्री में इमरजेंसी मीटिंग हुई। सख्त उपाय अपनाने पर चर्चा हुई। माना जा रहा है कि आज सरकार की तरफ से ताजा हालात पर बयान जारी किया जाएगा। हेल्थ मिनिस्ट्री के सूत्रों ने कहा- लॉक डाउन खत्म होने के बाद संक्रमण की दूसरी लहर देखी जा रही है। हम कुछ क्षेत्रों में अब सख्त कदम उठाने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

शुक्रवार को लाउवेरे पिरामिड में मौजूद पर्यटक। ज्यादातर के चेहरे पर मास्क नजर आ रहे हैं। फ्रांस में शुक्रवार को लगातार तीसरे दिन 2500 से ज्यादा मामले सामने आए। आज सरकार की तरफ से नई एडवायजरी जारी की जा सकती है।

ऑस्ट्रेलिया : हालात काबू करने में मशक्कत करनी होगी
विक्टोरिया के हेल्थ ऑफिसर ब्रेट सुटन ने शुक्रवार को कहा कि शुक्रवार को राज्य में 330 मामले सामने आए। यह मामला इसलिए चिंता का कारण है क्योंकि सभी मामले स्थानीय संक्रमण के हैं। इसका मतलब ये हुआ कि इन लोगों की वजह से राज्य के कई हिस्सों तक संक्रमण पहुंच चुका होगा। हालांकि, सुटन ने हालात को काबू करने में कामयाबी की उम्मीद जाहिर की। कहा- कुछ कदम उठाए जा रहे हैं और अगर लोग खुद जानकारी देंगे तो बहुत जल्द हम संक्रमण को काबू कर लेंगे।

न्यूजीलैंड : एक व्यक्ति से फैला संक्रमण
न्यूजीलैंड सरकार ने उस व्यक्ति का पता लगा लिया है जो जापान से लौटा था और देश के दो प्रमुख पर्यटन स्थलों रोटोरा और ताउपो गया था। यहां उसके संपर्क में कई लोग आए। इन सभी को ट्रेस किया जा रहा है। हेल्थ मिनिस्ट्री ने कहा- हम इन दो स्थानों पर उसके संपर्क में आए लोगों का पता लगा रहे हैं। उम्मीद है कि पिछली बार लोगों ने जिस तरह की सावधानी बरती थी, इस बार भी ऐसा ही किया जाएगा ताकि संक्रमण रोका जा सके। इन दो शहरों के दो होटलों को भी फिलहाल सील कर दिया गया है।

न्यूजीलैंड ने करीब ढाई महीने पहले कोरोना पर काबू पा लिया था। 102 दिन तक कोई मरीज सामने नहीं आया। लेकिन, अब यहां मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।


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शुक्रवार को ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में एक हेल्थ वर्कर महिला का टेस्ट करती हुई। ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया में शुक्रवार को 330 नए मामले सामने आए।


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मोदी का ऐलान- कोरोना वैक्सीन को हर भारतीय तक कम समय में पहुंचाने की पूरी तैयारी

74वां स्वतंत्रता दिवस कोरोना काल में आया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वायरस की रोकथाम को लेकर बड़ा ऐलान किया है। मोदी ने कहा कि भारत में कोरोना वैक्सीन की टेस्टिंग अलग-अलग चरणों में है। हर भारतीय तक कम समय में वैक्सीन पहुंचाने की पूरी तैयारी है।

हम इसे लगातार अपडेट कर रहे हैं..



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Modi's announcement- Complete preparation to deliver Corona vaccine to every Indian in a short time


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पॉजिटिव पेरेंटिंग अपनाने की जरूरत है, बच्चों के साथ डिक्टेटर बनेंगे तो नुकसान ही होगापेरेंटिंग

स्वतंत्रता दिवस पर भारत रत्न सचिन तेंदुलकर ने दैनिक भास्कर के पाठकों के लिए विशेष लेख लिखा है। पढ़ें, उन्हीं के शब्दों में...

‘‘मेरे बचपन की एक बड़ी सुखद याद उस पल की है, जब पूरा परिवार एक साथ बैठकर टीवी पर कोई फिल्म देख रहा है और ऐसे में जब कोई ऐसा सीन आए, जिसमें हिंसा हो या बड़ा तकलीफदेह हो, तो मां अपने हाथों से मेरी आंखें बंद कर दिया करती थीं। जाहिर है, उनके रोकने से मेरी देखने की उत्सुकता और बढ़ जाती। लेकिन, बड़ी जद्दोजहद के बाद भी मैं उनके हाथों को अपनी आंखों से हटा नहीं पाता था। कितना प्राकृतिक है माता-पिता का बच्चे को तकलीफों से बचाना। ऐसा लगता है कि यह व्यवहार माता-पिता के दिमाग में कोड कर दिया गया है।

विज्ञान ने आज साबित कर दिया है कि बच्चे ने जैसा बचपन बिताया होगा, उसका असर उसके विकास और व्यक्तित्व पर पड़ता ही है। खासतौर पर जीवन के पहले 6 साल बड़े महत्वपूर्ण हैं, जब दिमाग का विकास बहुत तेजी से होता है। यह वही समय है, जो निर्धारित कर देता है कि बच्चा आगे चलकर कितना स्वस्थ और सुखी होगा। नए प्रमाण तो ऐसे भी हैं, जो बताते हैं कि बचपन में नकारात्मक भावनाओं का अनुभव बच्चों के भावनात्मक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

आज पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है। ऐसे अनिश्चितता और भय के माहौल में जब प्री-स्कूल और स्कूल बंद हैं, परिवार अपने घरों में कैद हैं, आवाजाही पर पाबंदियां हैं, नौकरी जाने और आय में कमी की खबरें हैं, वहीं घर से बैठकर काम करने में स्ट्रेस (तनाव) बढ़ गया है। ऐसे में स्वाभाविक है कि माता-पिता काफी तनाव में होंगे।

लेकिन ऐसे ही समय में पैरेंट्स को इस चुनौती से लड़ने के लिए तैयार रहना होगा और किसी भी हालत में अपने तनाव और नकारात्मक भावनाओं को अपने बच्चों तक पहुंचने से रोकना होगा। आज की परिस्थिति में यह बहुत जरूरी है कि पॉजिटिव पेरेंटिंग अपनाई जाए।

यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम सकारात्मक विचार और व्यवहार से ऐसा माहौल तैयार करें जिससे कि हम अपने बच्चों को उंगली पकड़कर इस महामारी जैसी गंभीर चुनौती से लड़ते हुए बाहर लेकर आ सकें। इससे आगे जाकर उनकी मानसिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सकेगी।

यह महामारी एक अवसर है, जब हम अपने बच्चों के साथ एक बॉन्ड बना सकें ताकि हम एक-दूसरे को सपोर्ट कर सकें। ऐसे में डिक्टेटर होने की प्रवृत्ति हमारे बच्चों के लिए बिल्कुल फायदेमंद नहीं है। हमें अपने बच्चों की भावनाओं को समझना चाहिए। उन्हें इतना स्पेस देने की जरूरत है, जिसमें वे खुलकर अपनी भावनाओं और विचारों को व्यक्त कर सकें।

अगर कोई बच्चा जिद कर रहा है या बुरा बर्ताव कर रहा है तो गुस्से से उसका जवाब देने से पहले हमें थोड़ा रुककर एक पल सोचना चाहिए। क्योंकि शायद बच्चे का यह तरीका उसके डर, तनाव और चिंता को जाहिर कर रहा हो, जिसे वह और किसी तरीके से व्यक्त करने में अक्षम हो। किसी भी सूरत में हमें शाब्दिक या शारीरिक सजा देने से बचना चाहिए।

बच्चे कोविड-19 को लेकर कई प्रश्न पूछेंगे और हमें उस स्तर पर जवाब देना होगा, जिसे वे समझ सकें। अगर वे प्रश्न न भी पूछें, तो भी हमें इस परिस्थिति के बारे में उन्हें समझाना चाहिए। अगर एक ही प्रश्न बार-बार पूछें, तो आपको समझना चाहिए कि वे सांत्वना और विश्वास चाहते हैं, इसलिए आपके लिए संयम बरतना जरूरी है।

अगर आपको उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं पता है, तो उसे ढूंढ़ने की कोशिश करें। लाखों-लाख परिवार हैं, जो एक जैसी चिंताओं से जूझ रहे हैं इसलिए ये और भी जरूरी है कि आप अपने बच्चों की देखभाल करने के साथ-साथ आप अपना ख्याल भी रखें क्योंकि आपकी भावनात्मक स्थिरता आपके बच्चे के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपहार हो सकता है।

बच्चों को धैर्य से सुनना, एक प्यार भरी थपकी, एक खुशनुमा झप्पी और प्यार से चूमने जैसा दुलार आपके बच्चे को मजबूत और दयालु व्यक्ति बनाने में मददगार साबित होगा। इससे वह आपको समझ सकेगा और आगे भी किसी को सहारा दे पाएगा। हमारे छोटे-छोटे बच्चे मां-पापा या परिवार के अन्य सदस्यों से इसी तरीके के आश्वासन की आशा रखते हैं।

इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि बाहर की दुनिया में कितनी उथल-पुथल है, बच्चों के लिए तो उनके माता-पिता ही उनके हीरो हैं। इसलिए हम पगड़ी या मुकुट पहनते हों या नहीं, हमें हर रोज, हर समय अपने बच्चों को ये विश्वास दिलाने की जरूरत है कि उनके लिए हम हैं...।”



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Sachin Tendulkar News: Bharat Ratna Sachin Tendulkar Special Lekh For Dainik Bhakar Readers On Independence Day (Swatantrata Diwas) 2020


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पॉजिटिव पेरेंटिंग अपनाने की जरूरत है, बच्चों के साथ डिक्टेटर बनेंगे तो नुकसान ही होगापेरेंटिंग

स्वतंत्रता दिवस पर भारत रत्न सचिन तेंदुलकर ने दैनिक भास्कर के पाठकों के लिए विशेष लेख लिखा है। पढ़ें, उन्हीं के शब्दों में...

‘‘मेरे बचपन की एक बड़ी सुखद याद उस पल की है, जब पूरा परिवार एक साथ बैठकर टीवी पर कोई फिल्म देख रहा है और ऐसे में जब कोई ऐसा सीन आए, जिसमें हिंसा हो या बड़ा तकलीफदेह हो, तो मां अपने हाथों से मेरी आंखें बंद कर दिया करती थीं। जाहिर है, उनके रोकने से मेरी देखने की उत्सुकता और बढ़ जाती। लेकिन, बड़ी जद्दोजहद के बाद भी मैं उनके हाथों को अपनी आंखों से हटा नहीं पाता था। कितना प्राकृतिक है माता-पिता का बच्चे को तकलीफों से बचाना। ऐसा लगता है कि यह व्यवहार माता-पिता के दिमाग में कोड कर दिया गया है।

विज्ञान ने आज साबित कर दिया है कि बच्चे ने जैसा बचपन बिताया होगा, उसका असर उसके विकास और व्यक्तित्व पर पड़ता ही है। खासतौर पर जीवन के पहले 6 साल बड़े महत्वपूर्ण हैं, जब दिमाग का विकास बहुत तेजी से होता है। यह वही समय है, जो निर्धारित कर देता है कि बच्चा आगे चलकर कितना स्वस्थ और सुखी होगा। नए प्रमाण तो ऐसे भी हैं, जो बताते हैं कि बचपन में नकारात्मक भावनाओं का अनुभव बच्चों के भावनात्मक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

आज पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है। ऐसे अनिश्चितता और भय के माहौल में जब प्री-स्कूल और स्कूल बंद हैं, परिवार अपने घरों में कैद हैं, आवाजाही पर पाबंदियां हैं, नौकरी जाने और आय में कमी की खबरें हैं, वहीं घर से बैठकर काम करने में स्ट्रेस (तनाव) बढ़ गया है। ऐसे में स्वाभाविक है कि माता-पिता काफी तनाव में होंगे।

लेकिन ऐसे ही समय में पैरेंट्स को इस चुनौती से लड़ने के लिए तैयार रहना होगा और किसी भी हालत में अपने तनाव और नकारात्मक भावनाओं को अपने बच्चों तक पहुंचने से रोकना होगा। आज की परिस्थिति में यह बहुत जरूरी है कि पॉजिटिव पेरेंटिंग अपनाई जाए।

यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम सकारात्मक विचार और व्यवहार से ऐसा माहौल तैयार करें जिससे कि हम अपने बच्चों को उंगली पकड़कर इस महामारी जैसी गंभीर चुनौती से लड़ते हुए बाहर लेकर आ सकें। इससे आगे जाकर उनकी मानसिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सकेगी।

यह महामारी एक अवसर है, जब हम अपने बच्चों के साथ एक बॉन्ड बना सकें ताकि हम एक-दूसरे को सपोर्ट कर सकें। ऐसे में डिक्टेटर होने की प्रवृत्ति हमारे बच्चों के लिए बिल्कुल फायदेमंद नहीं है। हमें अपने बच्चों की भावनाओं को समझना चाहिए। उन्हें इतना स्पेस देने की जरूरत है, जिसमें वे खुलकर अपनी भावनाओं और विचारों को व्यक्त कर सकें।

अगर कोई बच्चा जिद कर रहा है या बुरा बर्ताव कर रहा है तो गुस्से से उसका जवाब देने से पहले हमें थोड़ा रुककर एक पल सोचना चाहिए। क्योंकि शायद बच्चे का यह तरीका उसके डर, तनाव और चिंता को जाहिर कर रहा हो, जिसे वह और किसी तरीके से व्यक्त करने में अक्षम हो। किसी भी सूरत में हमें शाब्दिक या शारीरिक सजा देने से बचना चाहिए।

बच्चे कोविड-19 को लेकर कई प्रश्न पूछेंगे और हमें उस स्तर पर जवाब देना होगा, जिसे वे समझ सकें। अगर वे प्रश्न न भी पूछें, तो भी हमें इस परिस्थिति के बारे में उन्हें समझाना चाहिए। अगर एक ही प्रश्न बार-बार पूछें, तो आपको समझना चाहिए कि वे सांत्वना और विश्वास चाहते हैं, इसलिए आपके लिए संयम बरतना जरूरी है।

अगर आपको उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं पता है, तो उसे ढूंढ़ने की कोशिश करें। लाखों-लाख परिवार हैं, जो एक जैसी चिंताओं से जूझ रहे हैं इसलिए ये और भी जरूरी है कि आप अपने बच्चों की देखभाल करने के साथ-साथ आप अपना ख्याल भी रखें क्योंकि आपकी भावनात्मक स्थिरता आपके बच्चे के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपहार हो सकता है।

बच्चों को धैर्य से सुनना, एक प्यार भरी थपकी, एक खुशनुमा झप्पी और प्यार से चूमने जैसा दुलार आपके बच्चे को मजबूत और दयालु व्यक्ति बनाने में मददगार साबित होगा। इससे वह आपको समझ सकेगा और आगे भी किसी को सहारा दे पाएगा। हमारे छोटे-छोटे बच्चे मां-पापा या परिवार के अन्य सदस्यों से इसी तरीके के आश्वासन की आशा रखते हैं।

इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि बाहर की दुनिया में कितनी उथल-पुथल है, बच्चों के लिए तो उनके माता-पिता ही उनके हीरो हैं। इसलिए हम पगड़ी या मुकुट पहनते हों या नहीं, हमें हर रोज, हर समय अपने बच्चों को ये विश्वास दिलाने की जरूरत है कि उनके लिए हम हैं...।”



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पीएम मोदी आज सातवीं बार लाल किले से तिरंगा फहराएंगे, अटलजी को पीछे छोड़ देंगे; नेहरूजी ने सबसे ज्यादा 17 बार झंडा फहराया था

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 74वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से शनिवार को सातवीं बार तिरंगा फहराएंगे। इसके साथ ही वे अटल बिहारी वाजपेयी को पीछे छोड़ देंगे। अटलजी पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 6 बार लाल किले पर तिरंगा फहराया था। लाल किले पर सबसे ज्यादा बार तिरंगा फहराने वाले प्रधानमंत्रियों की लिस्ट में मोदी चौथे नंबर पर आ जाएंगे।

प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सबसे ज्यादा 17 बार लाल किले से झंडा फहराया था। दूसरे नंबर पर इंदिरा गांधी हैं, जिन्हें 16 बार यह मौका मिला। जबकि मनमोहन सिंह (10 बार) तीसरे नंबर पर हैं। वहीं, राजीव गांधी ने 5 बार लाल किले से झंडा फहराया था।

पहले स्वतंत्रता दिवस पर 16 अगस्त को फहराया गया था तिरंगा

14-15 अगस्त की रात को भारत को आजादी मिली थी, लेकिन पहले स्वतंत्रता दिवस पर 15 अगस्त को नहीं, बल्कि 16 अगस्त को लाल किले पर तिरंगा फहराया गया था। इसके बाद से ही हर साल लाल किले से तिरंगा फहराने की परंपरा शुरू हुई।

प्रधानमंत्री कार्यकाल कितनी बार तिरंगा फहराया?
जवाहरलाल नेहरू अगस्त 1947 से मई 1964 17 बार : 1947-1963
लाल बहादुर शास्त्री जून 1964 से जनवरी 1966 2 बार : 1964-1965
इंदिरा गांधी जनवरी 1966 से मार्च 1977 और जनवरी 1980 से अक्टूबर 1984 16 बार : 1966-1976 और 1980-1984
मोरारजी देसाई मार्च 1977 से जुलाई 1979 2 बार : 1977-1978
चरण सिंह जुलाई 1979 से जनवरी 1980 1 बार : 1979
राजीव गांधी अक्टूबर 1984 से दिसंबर 1989 5 बार : 1985-1989
वीपी सिंह दिसंबर 1989 से नवंबर 1990 1 बार : 1990
पीवी नरसिम्हा राव जून 1991 से मई 1996 5 बार : 1991-1995
एचडी देवेगौड़ा जून 1996 से अप्रैल 1997 1 बार : 1996
इंद्रकुमार गुजराल अप्रैल 1997 से मार्च 1998 1 बार : 1997
अटल बिहारी वाजपेयी मई 1996 से जून 1996 और मार्च 1998 से मई 2004 6 बार : 1998-2003
मनमोहन सिंह मई 2004 से मई 2014 10 बार : 2004-2013
नरेंद्र मोदी मई 2014 से अब तक 6 बार : 2014-2019

गुलजारीलाल नंदा और चंद्रशेखर ऐसे प्रधानमंत्री, जिन्हें यह मौका नहीं मिला

गुलजारीलाल नंदा दो बार 13-13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने। पहली बार 27 मई से 9 जून 1964 तक और दूसरी बार 11 जनवरी से 24 जनवरी 1966 तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे। वहीं, चंद्रशेखर 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक करीब 8 महीनों तक प्रधानमंत्री रहे। लेकिन, इन दोनों को लाल किले से झंडा फहराने का मौका नहीं मिला।



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Independence Day 2020; Narendra Modi Seventh Prime Minister To Hoist Flag At Red Fort After Atal Bihari Vajpayee And Rajiv Gandhi


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देश की आजादी से लेकर राम मंदिर के श्री गणेश तक हर बड़ा काम अगस्त में ही हुआ, जानिए अगस्त की उन तारीखों को जो यादगार बन गईं

कुछ तारीखें, महीने इतिहास बन जाते हैं। यादगार हो जाते हैं। उनकी अहमियत और मायने आने वाले कल में भी कम नहीं होते हैं। उनमें से एक है अगस्त का महीना। अगस्त में ही अगस्त क्रांति हुई, और हमें आजादी भी मिली। इसी महीने में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 भी हटा और 492 साल के लंबे संघर्ष के बाद राम मंदिर का श्रीगणेश भी अगस्त महीने में ही हुआ। आइए अगस्त की उन तारीखों को जानते हैं, जो इतिहास हैं, जो यादगार हैं, जो कल भी याद की जाएंगी...

2000 से 2020: राम मंदिर का श्रीगणेश और आर्टिकल 370 का द इंड

5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 हटाकर जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया। इसके साथ ही यह राज्य जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख दो केंद्र शासित प्रदेश में बंट गया। यह उस साल की सबसे बड़ी घटना थी।

इस साल अगस्त की सबसे बड़ी घटना 5 अगस्त 2020 को हुई, जब अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास किया गया। यह एक ऐतिहासिक तारीख थी, जिसको लेकर 492 वर्षों तक संघर्ष चला। सड़क से लेकर सदन तक, जिला अदालत से लेकर सुप्रीम अदालत तक। उसके बाद पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया और राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया।

5 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम मंदिर भूमिपूजन का कार्यक्रम हुआ था। पीएम मोदी इसमें शामिल हुए थे। यह साल की सबसे बड़ी ऐतिहासिक घटना है।

अन्य अहम घटनाएं

  • 21 अगस्त 2005 को संघर्ष विराम का समझौता बांग्लादेश और भारत की सीमा सुरक्षा बल के जवानों के बीच हुआ।
  • 4 अगस्त 2008 को सरकार ने भारतीय जहाजरानी निगम (एससीआई) को नवरत्न का दर्जा दिया।
  • 25 अगस्त 2018 को भारत के शॉटपुट एथलीट तेजिंदरपाल सिंह तूर ने जकार्ता ओलंपिक गेम्स में गोल्ड जीता था।

1980 से 2000: टेस्ट ट्यूब बेबी का पहला सफल प्रयोग और मंडल कमीशन का गठन

भारत में पहले टेस्ट ट्यूब बच्चे का जन्म 1986 में 6 अगस्त के दिन ही हुआ था। 6 अगस्त 1986 को आईवीएफ तकनीक से हर्षा चावड़ा का जन्म मुंबई के केईएम अस्पताल में हुआ था। हर्षा इस समय 33 साल की हैं। चार साल पहले 2016 में हर्षा ने एक बेटे को जन्म दिया था। इसके साथ ही 6 अगस्त जम्मू और कश्मीर में अचानक आई बाढ़ से कम से कम 255 लोग मारे गए।

7 अगस्त 1990 को तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने संसद में मंडल कमीशन की रिपोर्ट स्वीकार करने का ऐलान किया। जिसके बाद सरकारी नौकरियों में ओबीसी वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था शुरू हो गई। उस समय देशभर में इसका विरोध भी हुआ था। 50 से ज्यादा लोगों की मौत भी हुई थी।

7 अगस्त 1990 को तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने संसद में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने की घोषणा की थी।

कुछ अहम उपलब्धियां

  • 2 अगस्त 1987 में विश्वनाथन आनंद ने फिलिपींस में आयोजित विश्व जूनियर शतरंज चैंपियनशिप का खिताबी जीता था। ऐसा करने वाले वे पहले एशियाई शतरंज खिलाड़ी थे।
  • 23 अगस्त 1995 को देश का पहला सेलुलर फोन कोलकाता में व्यावसायिक तौर शुरू किया गया।

1960 से 1980: दादरा नगर हवेली का भारत में विलय

11 अगस्त 1961 को दादरा नगर हवेली का भारत में विलय हुआ और इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। गोवा की तरह यह इलाका भी कई साल पुर्तगाली प्रभाव में रहा। नगर हवेली महाराष्ट्र और गुजरात के बीच बसा है, वहीं दादरा गुजरात के भीतरी इलाके में आता है। यह आदिवासी बहुल क्षेत्र है, करीब 62 फीसदी यहां की आबादी आदिवासी है।

24 अगस्त 1969 को वी.वी. गिरि भारत के चौथे राष्ट्रपति बने। इससे पहले उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर जाकिर हुसैन का निधन के बाद कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया था। उसके बाद हुए चुनाव में जीत के बाद वे देश के चौथे राष्ट्रपति बने। उन्हें 1975 में भारत रत्न मिला था।

1940 से 1960: भारत छोड़ो आंदोलन और करो या मरो की हुंकार

9 अगस्त 1942 को गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी। उन्होंने करो या मरो का नारा दिया था।

भारत की आजादी में इस आंदोलन का अहम योगदान रहा। महात्मा गांधी के आह्वान पर 8 अगस्त 1942 को इंडियन नेशनल कांग्रेस कमेटी की बैठक मुंबई में हुई जिसमें अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए एक प्रस्ताव पास किया गया। इसे भारत छोड़ो आंदोलन या अगस्त क्रांति भी कहा जाता है। 9 अगस्त, 1942 पूरे देश में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हो गया। इसी आंदोलन में गांधी जी ने करो या मरो का नारा दिया था।

गांधी जी ने तब कहा था “एक छोटा सा मंत्र है जो मैं आपको देता हूँ। इसे आप अपने ह्रदय में अंकित कर लें और अपनी हर सांस में उसे अभिव्यक्त करें। यह मंत्र है- “करो या मरो”। अपने इस प्रयास में हम या तो स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे या फिर जान दे देंगे।”

पटना सचिवालय पर झंडा फहराने के दौरान 7 छात्रों ने दी शहादत

11 अगस्त 1945 को पटना सचिवालय पर तिरंगा झंडा फहराने के दौरान बिहार के 7 छात्र शहीद हो गए थे। सभी स्कूली छात्र थे, जिनकी उम्र बेहद कम थी।

अगस्त क्रांति में बिहार के युवाओं ने भी अहम भूमिका निभाई थी। बिहार में इस क्रांति को लीड कर रहे थे डॉ राजेंद्र प्रसाद। 11 अगस्त 1945 को बिहार के सात स्कूली छात्रों ने अपनी शहादत देकर पटना सचिवालय पर तिरंगा फहराया था। उनकी याद में पटना विधानमंडल के सामने शहीद स्मारक बना है, जहां इन सात शहीदों की मूर्ति लगी है। इसका शिलान्यास बिहार के पहले राज्यपाल जयरामदास दौलतराम ने किया था।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत

18 अगस्त 1945 को ताइवान के नजदीक हुई एक हवाई दुर्घटना में नेताजी की मौत हो गई। हालांकि, उनकी मृत्यु रहस्यमयी ही रही और अक्सर उसको लेकर सवाल उठते रहे। नेताजी का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ था। 1920 में उन्होंने इंग्लैंड में इंडियन सिविल सर्विस एग्जामिनेशन क्लियर किया था।

लेकिन वे ज्यादा दिन नौकरी नहीं कर पाए, एक साल बाद ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी और आजादी के मैदान में उतर गए। वे क्रांतिकारी मिजाज के नेता थे। वे 1938 और 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने। लेकिन बाद में कांग्रेस की आंतरिक कलह और महात्मा गांधी से मतभेद के बाद 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

भारत का विभाजन माउंटबेटन योजना के आधार पर बने इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 के आधार पर किया गया था, जिसके तहत पाकिस्तान नाम के एक नए देश का जन्म हुआ था।

पाकिस्तान का जन्म और भारत की आजादी

14 अगस्त 1947 को भारत के बंटवारे की लकीर खींची गई थी और इसी दिन पाकिस्तान का जन्म हुआ था। उसी दिन आधी रात को भारत को आजादी मिली थी। अगले दिन यानी 15 अगस्त 1947 से भारत अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त हो गया और तब हम इस दिन को इंडिपेंडेंस डे के रूप में सेलिब्रेट करते हैं।

जो तारीखें इतिहास बन गईं

  • 13 अगस्त 1951 को भारत में बने पहले विमान हिंदुस्तान ट्रेनर 2 ने पहली उड़ान भरी। दो सीट वाले इस विमान का भारतीय वायु सेना और नौ सेना के लिए उत्पादन 1953 में शुरू हुआ।
  • 23 अगस्त 1947 को वल्लभ भाई पटेल को देश का उप प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।
  • 30 अगस्त 1947 को भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए डॉ भीमराव आम्बेडकर के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया गया।
  • 19 अगस्त 1949 को भुवनेश्वर को ओडिशा की राजधानी बनाया गया।
  • 18 अगस्त 1951 को भारत को पहला आईआईटी यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी मिला। कोलकाता के पास खड़गपुर में इस संस्थान का उद्घाटन देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद ने किया।

1920 से 1940 : काकोरी कांड और क्रांतिकारियों का बलिदान

काकोरी कांड भारतीय इतिहास की एक अहम घटना है। 9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने हथियार खरीदने के लिए एक ट्रेन में सरकारी खजाने को लूटा था।

चौरा-चौरी यूपी के गोरखपुर जिले में पड़ता है। फरवरी 1922 में कुछ आंदोलनकारियों ने चौरा-चौरी के एक थाने में आग लगा दी, जिसमें 22-23 पुलिसकर्मी जलकर मर गए। इससे महात्मा गांधी दुखी हुए और असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।

इससे आंदोलन में शामिल रहे कुछ लोगों को निराशा हुई जो आगे चलकर काकोरी कांड में बदल गई। 9 अगस्त 1925 को कुछ क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाने को लूटकर हथियार खरीदने का प्लान बनाया और उसके बाद काकोरी स्टेशन पर एक ट्रेन में इस घटना को अंजाम दिया। कुल 4601 रुपए लूटे गए थे।

इस घटना के बाद देश के कई हिस्सों में बड़े स्तर पर गिरफ्तारियां हुई। 40 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया। काकोरी कांड का मुकदमा लगभग 10 महीने तक लखनऊ की अदालत रिंग थियेटर में चला। जिसके बाद रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को फांसी की सजा सुनाई गई। शचीन्द्रनाथ सान्याल को काले पानी और मन्मथनाथ गुप्त को 14 साल की सजा हुई।

1900 से 1920: असहयोग आंदोलन की शुरुआत और खुदीराम बोस की शहादत

1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद जिस आंदोलन ने अंग्रेजों को सबसे ज्यादा परेशान किया वह था असहयोग आंदोलन। 1 अगस्त 1920 को महात्मा गांधी ने इसकी शुरुआत की थी।

1 अगस्त 1920 को महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी। इस आंदोलन के बाद लाखों कर्मी हड़ताल पर चले गए, छात्रों ने स्कूल-कॉलेजों का बहिष्कार कर दिया। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद असहयोग आंदोलन से पहली बार अंग्रेजी राज की नींव हिल गई। हालांकि, फरवरी 1922 में चौरा-चौरी कांड के बाद महात्मा गांधी ने इसे वापस ले लिया।

11 अगस्त 1908 को क्रांतिकारी खुदीराम बोस को सिर्फ साढ़े 18 साल की उम्र में फांसी दी गई। जब खुदीराम शहीद हुए थे तो देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए, कई दिन तक स्कूल, कॉलेज सभी बन्द रहे। तब देश के युवा ऐसी धोती पहनने लगे, जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था। 17 अगस्त 1909 को मदनलाल ढींगरा को कर्जन वायली की हत्या के मामले में पेंटोनविली कैदखाने में फांसी दी गई।



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Importance of August for India : Special Days, History, Ram Mandir, Article 370 and Independence Day


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हम 15 अगस्त को आजाद हुए, पर लालकिले पर पहली बार तिरंगा 16 अगस्त को फहराया; माउंटबेटन ने भी सलामी दी थी

आज आजादी का दिन है। 15 अगस्त है। एक ऐसा दिन है, जिस पर हर भारतीय को गर्व होता है। इस बार पूरा देश 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इसी दिन 1947 में भारत को अंग्रेजी शासन से आजादी मिली थी। लेकिन ये आजादी कैसे मिली थी, कितने देशभक्तों ने सलाखों के पीछे जिंदगी गुजार दी, कितनों ने फांसी के फंदों को चूम लिया, कितनों ने सीने पर गोलियां खाईं, कितनों ने हंसी के साथ शहादत को गले लगा लिया। और भी न जाने क्या-क्या किया उन वीर, सपूत, देशभक्तों ने हमें आजादी दिलाने के लिए। आज वो दिन आया है, उन महान लोगों को याद करने का, नमन करने का, नतमस्तक होने का।

इसलिए इस आजादी के दिन हमने आपके लिए निकाली हैं, आजादी की लड़ाई की 74 यादगार तस्वीरें, जिनके जरिए आप आजादी की पूरी कहानी को जान पाएंगे, समझ पाएंगे और वीरों को नमन कर पाएंगे।

24 अगस्त 1608 को कारोबार करने के मकसद से अंग्रेजों ने भारत के सूरत बंदरगाह पर कदम रखे थे। धीरे-धीरे यहीं बसते चले गए। हमें गुलाम बनाकर अंग्रेजों ने अपने सारे काम करवाए। इस तस्वीर में एक अंग्रेज भारतीय से अपने नाखून कटवा रहा है।
ये फोटो 1857 के विद्रोह से पहले की है। उस समय अंग्रेज जिस कारतूस का इस्तेमाल करते थे, उसमें गाय और सुअर की चर्बी का इस्तेमाल होता था। इसे दांत से खींचना पड़ता था। ब्रिटिश सेना में शामिल भारतीय सैनिकों ने ऐसा करने से मना कर दिया था। उसी के बाद विद्रोह हुआ।
ये तस्वीर लखनऊ के सिकंदर बाग की है। 1857 में ब्रिटिश सेना में शामिल भारतीय सैनिकों के विद्रोह के बाद सैकड़ों भारतीय सिपाही इस बाग में छिप गए थे। नवंबर 1857 में ब्रिटिश सेना ने बाग पर चढ़ाई कर तकरीबन दो हजार भारतीय सैनिकों को मार दिया था। इस फोटो में जो कंकाल दिख रहे हैं, वो भारतीय सैनिकों के ही हैं।
ये फोटो लखनऊ रेजिडेंसी की है। ये वो जगह है जहां 1857 में अंग्रेजों ने शरण ली थी। 1857 में जब गदर मचा, तो यहां छुपे अंग्रेजों पर हमला हो गया। करीब 5 महीने तक लड़ाई चलती रही। बम, गोला-बारूद और तोप के गोले यहां मारे गए। आज भी ये जगह वैसी ही है।
ये झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की ओरिजिनल तस्वीर है। 1857 के गदर के बाद जब अंग्रेजों ने झांसी पर हमला किया, तो रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें माकूल जवाब दिया। झांसी पर आखिरी कार्रवाई करने वाले ह्यूरोज ने कहा था कि सभी बागियों के बीच वही एक मर्द थीं।
फोटो 1857 के विद्रोह की ही है। जब विद्रोह की आग मेरठ से कानपुर पहुंची, तो उस समय ह्यूज व्हीलर कानपुर का कमांडिंग अफसर था। ये फोटो कानपुर की है। ह्यूज ने कानपुर में दो बैरक बना रखे थे। कानपुर के राजा नाना साहिब ने इन बैरकों पर हमला कर दिया था।
1857 में हुए विद्रोह से अंग्रेज घबरा गए थे। बताया जाता है कि लड़ाई खत्म होने के बाद करीब 10 लाख हिंदुस्तानियों को मारा गया था। एक पूरी पीढ़ी को ही खड़ा होने से रोक दिया गया था। अंग्रेजों ने जगह-जगह लोगों को पकड़-पकड़कर फांसी पर लटका दिया था।
इस फोटो में लाल-बाल-पाल हैं, यानी लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल। 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में बंट गई थी। लाल-बाल-पाल गरम दल के नेता थे। गरम दल हिंसा व क्रांति का समर्थन करता था, जबकि नरम दल का अहिंसा में विश्वास था।
16 अक्टूबर 1905 को लॉर्ड कर्जन ने बंगाल के दो टुकड़े कर दिए। इसे बंग-भंग भी कहा जाता है। विभाजन के बाद बंगाल, पूर्वी बंगाल और पश्चिम बंगाल में बंट गया। पूर्वी बंगाल का कुल क्षेत्रफल 1. 06 लाख वर्ग मील था और राजधानी ढाका थी। जबकि, पश्चिम बंगाल में बिहार, ओडिशा शामिल थे। इसका कुल क्षेत्रफल 1.41 लाख वर्ग मील था। राजधानी कोलकाता थी।
यह खुदीराम बोस की है। महज 18 साल की उम्र में 11 अगस्त 1908 को खुदीराम को फांसी पर चढ़ा दिया गया था। खुदीराम बचपन से ही क्रांतिकारी थे। खुदीराम को मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गई थी। खुदीराम शेर की तरह निर्भीक होकर फांसी के तख्ते पर बढ़े थे।
ये फोटो वर्ल्ड वॉर-1 की है। इस युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से 10 लाख भारतीय सैनिक लड़े थे। उनमें करीब 75 हजार भारतीय सैनिकों को शहादत मिली थी।
पहले विश्वयुद्ध में ब्रिटिश शासकों ने भारतीय सेना की भी मदद ली थी। इस दौरान भारतीय सेना ने यूरोपीय, भूमध्य-सागरीय और मध्य पूर्व के युद्ध क्षेत्रों में अपने डिविजनों और स्वतंत्र ब्रिगेड को योगदान दिया था। लड़ाई में शामिल 9200 सैनिकों को वीरता पदक भी मिला था।
1927 में साइमन कमीशन आयोग बना, जो 7 ब्रिटिश सांसदों का समूह था। अध्यक्ष जॉन साइमन थे। फरवरी 1928 में साइमन कमीशन भारत आया। पूरे देश में इसका जोरदार विरोध हुआ। जगह-जगह "साइमन गो बैक" के नारे लगाए जाने लगे। लाहौर के प्रदर्शन में पुलिस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय घायल हो गए और 18 दिन बाद उनका निधन हो गया।
भगत सिंह की ये फोटो 1927 में ली गई थी, जब उन्हें लाहौर सेंट्रल जेल में रखा गया था। यहां उन्हें जेल की कोठरी नंबर 14 में रखा गया था, जहां फर्श भी पक्की नहीं थी और जगह-जगह घास उगी हुई थी। कोठरी इतनी छोटी थी कि भगत सिंह मुश्किल से उसमें लेट पाते थे।
स्पेशल ट्रिब्युनल कोर्ट ने 7 अक्टूबर 1930 को आईपीसी की धारा 121 और 302 और एक्सप्लोसिव सबस्टेंस एक्ट 1908 की धारा 4(बी) और 6(एफ) के तहत भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की मौत की सजा का ऐलान किया।
ये भगत सिंह का डेथ सर्टिफिकेट है, जिसे 23 मार्च 1931 को जेल निरीक्षक ने जारी किया था। सर्टिफिकेट के मुताबिक, भगत सिंह को एक घंटे तक फांसी के फंदे से लटकाए रखा गया था। ये सर्टिफिकेट पाकिस्तान के पास है और दो साल पहले पाकिस्तान ने इसे सार्वजनिक किया था।
1928 में गुजरात में किसानों के लिए आंदोलन हुआ, जिसे बारडोली सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। गांधीजी और सरदार पटेल की ये तस्वीर इसी आंदोलन की है। उस समय अंग्रेजों ने किसानों का लगान 22% बढ़ा दिया था। आंदोलन के बाद अंग्रेजों को झुकना पड़ा था।
1930 के दशक में गांधीजी ने विदेशी सामान के बहिष्कार की अपील की थी। इसके बाद देशभर में विदेशी सामान जला दिए गए। जगह-जगह भी प्रदर्शन हुए थे।
दांडी मार्च शुरू करने से एक दिन पहले 11 मार्च 1930 को गांधीजी ने भाषण दिया था। इसमें उन्होंने कहा था, "हमने विशेष रूप से एक अहिंसात्मक संघर्ष की खोज में, अपने सभी संसाधनों का उपयोग करने का संकल्प किया है। क्रोध में कोई भी गलत निर्णय न लें।"
ये फोटो 1930 में हुए दांडी मार्च की है, जिसे नमक सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है। उस समय गांधीजी ने साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों का मार्च निकाला था। इस मार्च के बाद अगले कुछ ही महीनों में 80 हजार से ज्यादा भारतीयों को गिरफ्तार किया गया था।
1930 के दशक में देश में विदेशी समानों के बहिष्कार की लहर चली। जगह-जगह इंग्लैंड से आने वाले सामान का बहिष्कार किया जाने लगा था। ये फोटो उसी वक्त की है। एक व्यक्ति सड़क पर इसलिए लेट गया था, क्योंकि बैलगाड़ी पर विदेशी सामान आ रहा था।
12 मार्च 1930 से गांधीजी ने नमक सत्याग्रह की शुरुआत की थी, जिसे दांडी मार्च भी कहा जाता है। ये सत्याग्रह अंग्रेजों के बनाए गए नमक कानून को तोड़ने के लिए था। दरअसल, अंग्रेजों ने नया कानून बनाया था, जिसमें भारतीयों को नमक बनाने की इजाजत नहीं थी। इस सत्याग्रह में लोगों के हाथ में कोई तख्ती या झंडा नहीं था।
ये फोटो उस समय की है जब गांधीजी की अपील पर देशभर में सत्याग्रहियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू किया था।
ये फोटो 7 अप्रैल 1930 की है, इसमें सुभाष चंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू दिख रहे हैं। बोस और नेहरू के बीच वैचारिक मतभेद थे, पर बोस हमेशा छोटे भाई की तरह नेहरू की मदद करते थे। जब कमला नेहरू की तबियत बिगड़ी और नेहरू उन्हें लेकर यूरोप गए, तो नेताजी ने उनकी काफी मदद की थी। कमला नेहरू के अंतिम संस्कार की व्यवस्था भी बोस ने ही की थी।
इस फोटो में गांधीजी के साथ सरोजिनी नायडू हैं। ये फोटो उस वक्त ही है, जब 1931 में लंदन में हो रही राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए गांधीजी और सरोजिनी नायडू जा रहे थे। नायडू गांधीजी को कभी मिकी माउस तो कभी लिटिल मैन कहकर बुलाती थीं। गांधीजी भी उन्हें डियर मीराबाई, डियर बुलबुल और कभी-कभी तो अम्मा जान और मदर भी बुलाते थे।
1930 में जब अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन बढ़ गए, तो लंदन में 1931 में दूसरी राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस रखी गई। पहली राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में गांधीजी शामिल नहीं हुए थे, इसलिए वो फ्लॉप हो गई थी। दूसरी कॉन्फ्रेंस में शामिल होने की बात गांधीजी ने आखिर तक नहीं बताई।
काकोरी कांड और 1929 में हुए बम कांड के बाद से ही पुलिस चंद्रशेखर आजाद को ढूंढ रही थी। 27 फरवरी 1931 को पुलिस ने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया। आखिर में आजाद ने अपनी ही आखिरी गोली से खुद को गोली मार ली और शहीद हो गए।
27 फरवरी 1931 को मुखबिरों ने पुलिस को सूचना दे दी कि चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में हैं। इसके बाद पुलिस ने आजाद को घेर लिया। आखिरी में चंद्रशेखर आजाद ने अपनी ही पिस्तौल की आखिरी गोली खुद को मार ली थी।
ये फोटो 1933 की है, जब गांधीजी ने दूसरा उपवास रखा था। ये उपवास 8 मई से 29 मई तक 21 दिनों के लिए रखा था, जो छुआछूत के विरोध में किया था।
1934 में बंगाल के गवर्नर जॉन एंडरसन को मारने की साजिश रची गई। इसमें भवानी प्रसाद भट्टाचार्यजी, रबिंद्र नाथ बनर्जी, मनोरंजन बनर्जी, उजाला मजूमदार, मधुसूदन बनर्जी, सुकुमार घोष और सुशील चक्रवर्ती शामिल थे। 17 मई को पुलिस ने इन्हें पहले ही गिरफ्तार कर लिया।
इस फोटो में भारतीय संविधान के पितामह डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का परिवार दिख रहा है। फोटो उनके घर "राजगृह" में ली गई थी। तस्वीर में डॉ. अंबेडकर के साथ उनके बेटे यशवंत, पत्नी रमाबाई, भाभी लक्ष्मी बाई, भतीजे मुकुंदराव (बाईं ओर से) है। राजगृह में अंबेडकर फरवरी 1934 में रहने के लिए आए थे।
ये फोटो 1937 की है। बंबई में अंग्रेजों के एक कानून के खिलाफ हड़ताल हो गई थी। विरोध में लोग साइकिल लेकर निकले पड़े थे। हड़ताल के समर्थन में व्यापारियों ने काम बंद कर दिया था और बंबई की 15 मिलें बंद हो गई थीं।
ये फोटो उस समय की है, जब बंबई के एक खाली मैदान में कांग्रेस की मीटिंग चल रही थी। पुलिस इस मीटिंग को बंद करवाने पहुंच गई, लेकिन कार्यकर्ता नहीं माने। जवाब में पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इसमें कई महिलाएं और बच्चे भी घायल हुए थे।
लुकमनी नाम की महिला को उम्रकैद की सजा मिलने के फैसले के खिलाफ जगह-जगह प्रदर्शन हुए थे। विदेशी सामान का बहिष्कार करने पर उन्हें सजा सुनाई गई थी। इस फैसले के खिलाफ बंबई की सड़कों पर महिलाएं उतर आई थीं।
गांधीजी और सुभाषचंद्र बोस की ये तस्वीर 1938 में हरिपुरा में हुए कांग्रेस के अधिवेशन की है। इस अधिवेशन से पहले गांधीजी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सुभाषचंद्र बोस को चुना था। वो कांग्रेस के 55वें अध्यक्ष थे।
24 नवंबर 1939 को दिल्‍ली में वायसराय लॉज के पास जाते समय महात्‍मा गांधी रास्‍ते में पड़े मोहम्‍मद अली जिन्‍ना के घर भी गए थे।
फोटो है फरवरी 1940 की और जगह है पश्चिम बंगाल में मौजूद शांतिनिकेतन। मार्च 1915 में गांधीजी और रबींद्रनाथ टैगोर की मुलाकात शांतिनिकेतन में ही हुई थी। गांधीजी को टैगोर ने ही "महात्मा" की उपाधि दी थी।
फोटो 7 अगस्त 1942 की बंबई में हुई कांग्रेस कमेटी की बैठक की है। उस समय मैदान में 10 हजार लोग बैठे हुए थे। जबकि, 5 हजार लोग मैदान के बाहर खड़े होकर लाउड स्पीकर के जरिए गांधी-नेहरू के भाषण को सुन रहे थे।
अगस्त 1942 में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा आंदोलन शुरू हुआ था, जिसे भारत छोड़ो आंदोलन कहा गया। इसे अगस्त क्रांति भी कहा जाता है। गांधीजी समेत 60 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
8 अगस्त 1942 को बंबई में हुई कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में "भारत छोड़ो" प्रस्ताव पास हुआ और 9 अगस्त से भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ। पर आंदोलन के शुरू होते ही गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया। फिर देश में गांधीजी की रिहाई की मांग को लेकर दंगे भड़क गए।
अगस्त 1942 में गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की। आंदोलन शुरू होने से पहले ही गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन आंदोलन चलता रहा। ब्रिटिश सरकार ने हजारों पुरुषों को गिरफ्तार कर लिया तो महिलाएं सड़कों पर उतर आईं।
गांधीजी हमेशा अहिंसा को ही मानते थे और वो अक्सर अपने समर्थकों से भी हिंसा नहीं करने की अपील करते थे। ये फोटो भी उसी का उदाहरण है। गांधीजी के समर्थक अंग्रेजों के सामने दीवार बनाकर खड़े हो गए थे।
1943 में बंगाल में भयानक अकाल पड़ा था। ये तस्वीर उसी की कहानी बयां कर रही है। सड़कों पर लाशें पड़ी हैं और उनके ऊपर गिद्ध मंडरा रहे हैं। इस अकाल में करीब 30 लाख लोग भूख से तड़प-तड़प कर मर गए थे।
आजादी के लिए सुभाष चंद्र बोस ने दुनियाभर के नेताओं से मुलाकात की थी। इसी सिलसिले में जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर से भी मिले थे। हिटलर ने नेताजी से माफी भी मांगी थी। हुआ ये था कि हिटलर ने अपनी बायोग्राफी "मीन कैम्फ" में भारतीयों के बारे में आपत्तिजनक बातें लिखी थीं। जब नेताजी ने इस बात को उठाया तो हिटलर ने शर्मिंदा होकर माफी मांग ली।
ये फोटो 1944 की है, जिसमें सुभाष चंद्र बोस और जापान के उस समय के प्रधानमंत्री तोजो दिख रहे हैं। हुआ ये था कि 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने आजाद भारत की पहली सरकार बना ली थी। इस सरकार में बोस प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री थे। इस सरकार के 9 देशों के साथ कूटनीतिक संबंध भी थे। जापान तो खुलकर साथ देता था।
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान ही सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का गठन किया। इस फौज का गठन भारत में ही नहीं, बल्कि जापान में भी हुआ था। इसमें 85 हजार सैनिक शामिल थे।
इस फोटो में गांधीजी के साथ खान अब्दुल गफ्फार खान, जिन्हें फ्रंटियर गांधी और बच्चा खान के नाम से भी जाना जाता है। गांधीजी की तरह ही गफ्फार खान भी अहिंसा के रास्ते पर चलते थे। गफ्फार को फ्रंटियर गांधी का नाम गांधीजी के एक दोस्त ने दिया था।
ये सुभाष चंद्र बोस की उस वक्त की फोटो है, जब उन्हें आखिरी बार अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया था। 18 अगस्त 1945 को एक विमान हादसे में नेताजी की मौत हो गई थी। लेकिन, तीन साल पहले फ्रांस की सीक्रेट सर्विस सुरेट की एक रिपोर्ट में सामने आया था कि नेताजी 1945 से 1947 तक ब्रिटेन की कस्टडी में थे और उसके बाद वो वहां से बच निकले थे।
29 जुलाई 1946 को मोहम्मद अली जिन्ना ने ऐलान किया कि 16 अगस्त 1946 को "डायरेक्ट एक्शन डे" होगा। इसी ऐलान पर बंगाल में दंगे भड़के थे। इस तस्वीर में भी मुस्लिम लीग के समर्थक हैं, जो डायरेक्ट एक्शन डे में शामिल थे।
16 अगस्त 1946 को बंगाल में अचानक सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे। इन दंगों में महज 5 दिन में 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे, जबकि 4 हजार से ज्यादा घायल हुए थे। इन दंगों को "ग्रेट कलकत्ता किलिंग" भी कहा जाता है।
आजादी से ठीक एक साल पहले 16 अगस्त 1946 को बंगाल के नोआखली जिले में दंगे भड़क गए थे। इन दंगों में 7 हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया था, उसके बावजूद दंगों पर काबू नहीं पाया जा सका था। बाद में ब्रिटिश सरकार ने दंगे रोकने के लिए सड़कों पर टैंक उतार दिए थे।
ये फोटो नवंबर 1946 में मेरठ में हुए कांग्रेस कमेटी के 55वें सेशन की है। इससे ठीक पहले जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था। उनके बाद आचार्य जेबी कृपलानी अध्यक्ष बने थे और आजादी तक इस पद पर बने रहे।
अंग्रेज ताजमहल घूमने भी अक्सर जाया करते थे। इतिहासकार राजकिशोर राजे अपनी पुस्‍तक ‘तवारीख ए आगरा’ में लिखते हैं कि अंग्रेजों के लिए ताजमहल हमेशा बेहद आकर्षण का केंद्र रहा। वर्ष 1857 के बहादुरशाह जफर के विद्रोह के बाद यहां की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी।
9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक दिल्ली के काउंसिल चैम्बर में हुई थी। सभा के सबसे उम्रदराज डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष चुना गया था। मुस्लिम लीग इस बैठक में शामिल नहीं हुई थी और पाकिस्तान के लिए अलग संविधान सभा की मांग रख दी थी।
ये तस्वीर 8 फरवरी 1947 की है। इसी दिन जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में एक स्वतंत्र गणतंत्र का प्रस्ताव रखा था।
महात्मा गांधी और माउंटबेटन की ये तस्वीर आजादी से चंद दिनों पहले की है। बंटवारे को लेकर माउंटबेटन से सबसे पहले गांधीजी से ही चर्चा की थी। माउंटबेटन अच्छी तरह से जानते थे कि अगर महात्मा गांधी कह देंगे कि बंटवारा नहीं होना चाहिए, तो फिर बंटवारा नहीं हो सकता।
ये फोटो उस दिन की है, जिसने भारत का इतिहास-भूगोल बदलकर रख दिया। ये तारीख है 3 जून 1947। इस दिन माउंटबेटन ने कांग्रेस कमेटी और मुस्लिम लीग के सामने भारत-पाकिस्तान के बंटवारे का प्लान रखा था।
जवाहरलाल नेहरू की ये फोटो आजादी से कुछ दिन पहले की है। उन्होंने आजादी से कुछ समय पहले दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी।
ये फोटो भारत में मोहम्मद अली जिन्ना की आखिरी तस्वीर है। इसके बाद वो हमेशा के लिए पाकिस्तान चले गए थे। 3 जून 1947 को जिन्ना ने ऑल इंडिया रेडियो पर पाकिस्तान के अलग देश बनने की घोषणा की थी।
15 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने थे। उन्हें लॉर्ड माउंटबेटन ने शपथ दिलवाई थी। माउंटबेटन आखिरी वायसराय थे।
ये आजाद भारत की पहली कैबिनेट है। इसमें जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री और सरदार वल्लभ भाई पटेल गृहमंत्री बने थे। इनके अलावा डॉ. अबुल कलाम आजाद, डॉ. जॉन मथाई, सरदार बलदेव सिंह, आरके शणमुखम शेट्टी, बीआर अंबेडकर, जगजीवन राम, राजकुमारी अमृत कौर, सीएच भाभा, रफी अहमद, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और वीएन गाडगिल शामिल थे।
ये फोटो पहले स्वतंत्रता दिवस की है। आजादी से लोग माउंटबेटन से बहुत खुश थे। पहली बार उनकी बग्घी को हजारों-लाखों की भीड़ ने घेर लिया था। उनके साथ पत्नी एडविना और जवाहरलाल नेहरू भी थे। माउंटबेटन ने बग्घी पर ही खड़े होकर तिरंगे को सैल्यूट किया था। उस वक्त भीड़ से आवाज आ रही थी, "माउंटबेटन की जय...पंडित माउंटबेटन की जय।"
ये 15 अगस्त 1947 की सुबह है। आजाद भारत की पहली सुबह। अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद लोग खुशी से सड़कों पर जमा हो गए थे।
तस्वीर पहले स्वतंत्रता दिवस की है। दिल्ली के चांदनी चौक की।
ये तस्वीर बंबई की सड़कों की है। आजादी के अगले दिन बड़ी संख्या में लोग जश्न मनाने सड़कों पर उतर आए थे। ये जश्न पूरे दिन चलता रहा।
15 अगस्त 1947 को सिर्फ भारत ही नहीं, लंदन में भी तिरंगा फहराया था। ये फोटो लंदन स्थित इंडिया हाउस की है, जहां 15 अगस्त 1947 को तिरंगा फहराया गया था। ये तिरंगा नृपेंद्र नाथ शाहदेव ने ब्रिटेन के झंडे को उतारकर फहराया था।
भारत को आजादी तो 15 अगस्त को मिल गई थी, लेकिन लाल किले पर तिरंगा 16 अगस्त को फहराया गया था। ये पहली और आखिरी बार है जब लाल किले पर तिरंगा 15 अगस्त को नहीं, बल्कि 16 अगस्त को फहराया गया।
1947 में जब भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग मुल्क बने, तब दोनों ही मुल्कों के बीच संपत्तियों का बराबर बंटवारा हुआ था। टेबल-कुर्सी तक दोनों देशों के बीच बराबर बांटी गई थीं। यहां तक कि लाइब्रेरी की किताबें भी भारत-पाकिस्तान में बराबर-बराबर बंटी थीं।
ये फोटो कराची के डॉक की है। बंटवारे के बाद वहां से लाखों की तादाद में हिंदू शरणार्थी भारत लौटे थे। 1951 की जनगणना के मुताबिक, बंटवारे के बाद पाकिस्तान से 72.49 लाख हिंदू-सिख भारत लौटे थे।
1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद 1.5 करोड़ लोगों ने पलायन किया था। इसे मानव इतिहास का सबसे बड़ा पलायन माना जाता है। पलायन के दौरान ही करीब 10 से 20 लाख लोग मारे गए थे। हजारों महिलाओं का अपहरण हुआ था।
ये फोटो उन मुसलमानों की है, जो बंटवारे के बाद भारत से पाकिस्तान जा रहे थे। 1951 की जनगणना का डेटा बताता है कि भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद 72.26 लाख मुस्लिम पाकिस्तान चले गए थे। ये मुस्लिम पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान गए थे।
अगस्त 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो करोड़ों की संख्या में लोग इधर से उधर हुए थे। ये फोटो पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से लौट रहे हिंदुओं की है। बंटवारे के बाद औरतें-बच्चे पैदल ही सामान समेटकर ट्रेन की पटरियों के सहारे भारत पहुंच रहे थे।
आजादी के फौरन बाद ही कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। पाकिस्तान ने जब कश्मीर पर हमला किया तो कश्मीर के राजा हरि सिंह ने भारत में विलय को मंजूर कर लिया। भारत-पाक के बीच अक्टूबर 1947 से शुरू हुआ युद्ध 1 जनवरी 1949 को खत्म हुआ था। इस युद्ध में कश्मीर का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया।
30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर गांधीजी की हत्या कर दी। उनका अंतिम संस्कार 31 जनवरी को दिल्ली में यमुना किनारे हुआ था। गांधीजी के छोटे बेटे ने एक इंटरव्यू में बताया था कि करीब दस लाख लोग साथ चल रहे थे और करीब 15 लाख लोग रास्ते में खड़े थे।


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