शनिवार, 3 अक्टूबर 2020

सिर्फ लड़की की इज्जत उसके शरीर में होती है, लड़के की इज्जत का शरीर से कोई लेना-देना नहीं?

गांव की सरकारी कन्या पाठशाला से निकलकर शहर की बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का वो पहला साल था। मां की चिंताएं कुछ और रही होंगी, जो एक दिन मौका पाकर उन्होंने मुझे बाजार जाते हुए रास्ते में ये कहानी सुनाई। 'प्रभा की सहेली की शादी टूट गई, अरेंज मैरिज थी। लड़का यहीं इलाहाबाद में कंपटीशन की तैयारी कर रहा था। दोनों मिलने लगे, वो उसके कमरे पर भी जाने लगी। फिर सबकुछ हो गया होगा उनके बीच। बाद में लड़के ने शादी करने से मना कर दिया। बोला, 'तुम शादी से पहले मेरे साथ कर सकती हो तो किसी के भी साथ कर सकती हो।' बताओ, क्या इज्जत रह गई लड़की की।'

पूछना तो मैं ये चाहती थी कि शादी से पहले सबकुछ तो लड़का भी कर चुका था। उसकी इज्जत नहीं गई क्या? लेकिन पूछा नहीं, मुंह बंद करके कहानी सुनी, हामी में सिर हिलाया। मां को लगा, उन्होंने जातक कथाओं की तरह जवानी की दहलीज पर कदम रख रही बेटी को बिना सेक्स शब्द उच्चारे जीवन का पहला जरूरी सबक सिखा दिया है। सबक ये कि सिर्फ लड़की की इज्जत उसके शरीर में होती है। लड़के की इज्जत का शरीर से कोई लेना-देना नहीं। लड़का शमी का पेड़ है। सदा पाक-पवित्र है। लड़की गूलर का फूल, जरा हाथ लगा नहीं कि भरभराकर झर जाएगी।

हाथरस में 19 साल की लड़की के साथ हुए नृशंस बलात्कार के बाद भारत के पूर्व चीफ जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने ट्विटर पर एक पोस्ट लिखी, जिसमें एक लाइन थी- 'सेक्स पुरुष की प्राकृतिक जरूरत है।' फिर उन्होंने खराब अर्थव्यवस्था, बढ़ती बेरोजगारी के कारण लड़कों की वक्त पर शादी न हो पाने और उनके सेक्स से वंचित रह जाने को बढ़ते बलात्कार की एक वजह बताया। हालांकि, वो साथ-साथ ये सफाई देते चले कि वो बलात्कार की वकालत नहीं कर रहे। लेकिन, इस बात की वकालत जरूर करते दिखे कि "सेक्स सिर्फ मर्द की प्राकृतिक जरूरत है, औरत की नहीं।"

अगर समाज ऐसा होता कि घर-खानदान की, बाप-दादा की और खुद लड़की की इज्जत उसके शरीर में न होती तो क्या इतनी शर्मिंदगी, इतना अपमान, इतना दुख उसके हिस्से में आता, जितना कि आया है। क्या मर्द एक दूसरे को नीचा दिखाने, एक-दूसरे से प्रतिशोध लेने के लिए उनकी औरतों को निशाना बनाते। याद है पाकिस्तान की मुख्तारन माई। दुश्मनी उसके भाई से थी, बदला लेने के लिए चार लोगों ने मुख्तारन के साथ सामूहिक बलात्कार किया। 10 लोग घेरा बनाकर खड़े तमाशा देखते रहे। इज्जत लड़के की लेनी थी लेकिन, लड़के की इज्जत तो उसकी बहन के शरीर में रखी थी। जहां थी, वहां से लूट ली।

ये कहते हुए भी मैं थक सी रही हूं क्योंकि मैं कुछ भी ऐसा नहीं कह रही, जो हजारों बार पहले नहीं कहा जा चुका। लेकिन, दुनिया है कि बदलती नहीं, मर्दवाद है कि जाता नहीं, इज्जत है कि बचती नहीं और दुख है कि कम होता ही नहीं। मेरे साथ ऐसा कोई हादसा कभी नहीं हुआ, लेकिन अपने शरीर में धरी इज्जत को ताउम्र मैं भी बचाती आई हूं। हर वक्त चौकन्नी, अपनी देह को संभालती, ढंकती, छिपाती, बुरी नजरों से बचाती।

अमेरिकी लेखक और फिल्म निर्माता जेक्सन कार्ट्ज ने एक बार अपने एक टेड टॉक में कहा था कि हम कहते हैं कि पिछले साल कितनी औरतों के साथ बलात्कार हुआ, हम ये नहीं कहते कि पिछले साल कितने मर्दों ने औरतों के साथ बलात्कार किया। हम बताते हैं कि पिछले साल कितनी स्कूल की बच्चियों के साथ छेड़खानी हुई। हम ये नहीं कहते कि पिछले साल कितने लड़कों ने स्कूल की लड़कियों के साथ छेड़खानी की।

आप देख रहे हैं कि इस भाषा में कहां दिक्कत है। वही दिक्कत जो हमारे समाज, हमारे घर, हमारी सोच में है। गलती किसी और की है, बताई किसी और की जा रही है। जिम्मेदारी किसी और की है, डाली किसी और पर जा रही है।

फर्ज करिए कि एनसीआरबी औरतों के साथ होने वाली हिंसा और बलात्कार का आंकड़ा इस तरह पेश करने लगे। पिछले साल 43,877 मर्दों ने औरतों के साथ बलात्कार किया। उनमें से 33,000 विक्टिम के भाई, मामा, चाचा, काका, मौसा, फूफा थे। पिछले साल 972 लड़कों ने लड़कियों पर एसिड फेंका। 42000 लड़कों ने लड़कियों के साथ छेड़खानी की। 18,000 लड़कों ने अपनी गर्लफ्रेंड का पोर्न वीडियो बनाया। 14,000 मर्दों ने अपनी पत्नी और प्रेमिका की हत्या की।

औरतों के साथ हुआ नहीं है, मर्दों ने किया है

एक जरा से फेर से पूरी बात बदल जाती है। उसका अर्थ बदल जाता है, उसकी जिम्मेदारी बदल जाती है। बात तो वही है, बस कहने के तरीके से तय होता है कि जिसने अपराध किया, वो दोषी है या जिसके साथ हुआ, वो। इज्जत बलात्कार करने वाले लड़के की जाती है, या उसका शिकार होने वाली लड़की की। हमें अपनी बेटियों को सिखाना चाहिए कि बलात्कार से कैसे बचो या अपने बेटों को कि बलात्कार नहीं करो।

हमें अपनी बेटियों को सिखाना चाहिए कि प्रेग्नेंट नहीं होना या अपने बेटों को सिखाना चाहिए कि लड़की को प्रेग्नेंट कर अपनी जिम्मेदारी से भाग मत जाना। अपनी बेटियों को सिखाना चाहिए कि मर्दों से दबकर रहना या बेटों को सिखाना चाहिए कि औरत को दबाकर मत रखना।

यूं तो होना इसे वैसा ही सामान्य ज्ञान चाहिए था, जैसे कि धरती गोल है और समंदर गीला कि स्त्री उतनी ही मनुष्य है, जितना कि पुरुष। किसी भी मनुष्य की इज्जत उसके शरीर में नहीं होती। प्रेम, करुणा, ईमानदारी और दायित्व-बोध ही पैमाना है इज्जत और बेइज्जती सबकुछ मापने का और पैमाना दोनों के लिए बराबर है। और जब तक इतनी बुनियादी बात हम नहीं समझ लेते, न कानून के भरोसे बलात्कार की संस्कृति को बदल पाएंगे, न लड़कियों के लिए एक बेहतर समाज बना पाएंगे।

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Only the girl has respect in her body. The honor of the boy has nothing to do with the body?


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क्लर्क की नौकरी छोड़ 10 साल पहले 45 हजार रु से शुरू किया योग सेंटर, आज 80 करोड़ रु नेटवर्थ, 51 देशों में 5 लाख शिष्य बने

पं. राधेश्याम मिश्रा के जीवन में योगा बाय च्वाइस नहीं आया। ये बाय फोर्स या मजबूरी से आया था। 23 साल की उम्र में खुद सीवियर अस्थमा के मरीज थे और जिंदगी से जंग लगभग हार चुके थे। डॉक्टरों ने भी कह दिया था कि 3-4 महीने से ज्यादा की जिंदगी नहीं बची है। लेकिन, तभी एक संन्यासी जीवन में आए, उनका नाम था ब्रह्मचारी कृष्ण चैतन्य, उन्होंने योग करने की सलाह दी और खुद अपनी देखरेख में कुछ हफ्तों तक योग कराया।

नतीजा था, वजन जो 48 किलो रह गया था, बढ़कर 54 हो गया। उम्मीद जागी, योग में भरोसा भी बढ़ा। फिर और दिल लगाकर योग किया। अस्थमा को हराया। फिर मुंबई की द योगा इंस्टीट्यूट, सांताक्रूज के अपने गुरु डॉ. जयदेव योगेंद्र से गुरु-शिष्य परंपरा में दो साल तक इसका अध्ययन किया।

ये बात 1993-94 की है। 1996 में विक्रम यूनिवर्सिटी में नौकरी लग गई थी लेकिन, मन योग की तरफ ही भागता था। पार्ट टाइम लोगों को योग सिखाना शुरू किया। 2009 से योग को अपना जीवन बना लिया, नौकरी छोड़ी और पूर्णकालिक योग टीचर बन गए। उज्जैन में एक छोटे सेंटर से शुरुआत कर पं. मिश्रा ने एक दशक में 51 देशों में 5 लाख लोगों को योग सिखाया।

22 देशों में उनके 336 योगा ट्रेनिंग सेंटर्स हैं। इनमें से 41 अकेले ब्राजील में हैं। ब्राजील में एक बड़ा आश्रम और एक आश्रम मध्य प्रदेश में इंदौर के पास चोरल में है। इस एक दशक की यात्रा में 45 हजार रुपए से शुरू किया गया योग सेंटर अब करीब 80 करोड़ की नेटवर्थ में बदल चुका है।

पं. मिश्रा कई तरह से योग विधाएं सिखाते हैं, उनका 24 मिनट योगा फॉर 24 ऑवर एनर्जी काफी लोकप्रिय है।

पं. मिश्रा बताते हैं कि जब योग सीख लिया था, उसका चमत्कार खुद के शरीर पर देखा। अस्थमा जैसी बीमारी को मात दी। तब सोचा था कि इस विधा के जरिए दुनिया से जो मिला है, वो लौटाना है। लेकिन, तब प्रयास छोटे थे। वहां के कामों से फुरसत कुछ कम मिलती थी, लेकिन जब मिलती तब योग सिखाने निकल जाता था। जो बुलाए, जहां बुलाए। बिना यो सोचे कि इससे मुझे क्या मिलने वाला है। सिलसिला चलता रहा। मैं पार्ट टाइमर योग टीचर बन गया था। लेकिन, नौकरी की अपनी जिम्मेदारियां थीं, सो कई बार दिक्कतों का सामना भी किया।

योग के साथ भारतीय परंपराओं के साथ जीवन जीने पर पं. मिश्रा काफी जोर देते हैं।

समय गुजरता गया। धीरे-धीरे लोगों की मांग बढ़ती गई। मेरे पास समय कम होने लगा। नौकरी के साथ योग को जारी रखना मुश्किल सा हो गया था। 2008-2009 में तो लोगों की मांग और बढ़ गई। खासतौर पर विदेशों से ज्यादा लोग आने लगे। 2009 में योगा सिखाने के लिए यूरोप गया। वहां कई लोगों ने भारी रुचि दिखाई। जब विदेश से लौटा तो इस पूरे दौरे की कमाई कुल जमा 45 हजार थी। मैंने इसी से योग शिविर शुरू करने की पहल की।

शिविर शुरू करने के लिए एक हॉल लिया, कुछ जरूरी चीजें खरीदीं और जो पैसा बचा, उससे कुछ लिटरेचर छपवाया। 2010 का वो पहला योग शिविर जीवन का एक बड़ा टर्निंग पाइंट साबित हुआ, जो छह हफ्तों का था। उज्जैन के कई लोग जुड़ गए। कोई 3000 फॉलोअर उस समय तक हो गए थे। इनमें से 100 लोगों को जोड़कर फिर योगा लाइफ सोसाइटी उज्जैन को ग्लोबल बनाने की शुरुआत की।

इंदौर के पास चोरल में योग सिखाते पं. मिश्रा। विदेशों से कई लोग यहां योग सीखने आते हैं।

सीखने वाले कई थे, सिखाने वाला मैं अकेला। तो तय किया कि ज्यादा लोगों तक पहुंचने के लिए टीचर्स भी ज्यादा लगेंगे। हमने उज्जैन से ही टीचर्स ट्रेनिंग कोर्स शुरू किया। अपने टीचर्स तैयार किए। खुद के योगा में डूबने का परिणाम ये हुआ कि पूरा परिवार ही योग को समर्पित हो गया। पत्नी सुनीता 2010 में, बेटी स्वर्धा 2015 में और बेटा वाचस 2016 में योग टीचर बन गए। वे भी अपने-अपने स्तर पर योग सीखा रहे हैं।

लोगों को योग से जोड़ रहे हैं। इस दौरान विदेशों से लगातार योग सीखने वालों की संख्या बढ़ रही थी। इस एक दशक में कोई 56 में से 51 देशों में उन्होंने योगा क्लासेस कीं। यहां लोग उनसे जुड़े। 22 देशों में योगा लाइफ सोसाइटी के सेंटर्स शुरू हुए, करीब 336 सेंटर्स चल रहे हैं। पूरी दुनिया में 3016 योगा टीचर्स उनके सिखाए हुए हैं।

सत्यधारा योगा लाइफ आश्रम में योगा क्लासेस में लोगों को प्रकृति को निकट से महसूस करने का मौका दिया जाता है।

पं. मिश्रा के मुताबिक ब्राजील में योग की खासी डिमांड आ रही थी। 2016-17 में ब्राजील के पोर्तो अलेंग्रे शहर में सत्यधारा योगा लाइफ आश्रम खोला। यहां आश्रम के अलावा 41 योगा ट्रेनिंग सेंटर भी हैं। इसके बाद तय किया कि अब अपने देश में कुछ करना है। उज्जैन से कोई 100 किमी दूर खंडवा रोड पर चोरल में आश्रम खोलने का मन बनाया। 2018 में यहां जमीन ली। रिकॉर्ड 4 महीने में आश्रम बनकर तैयार हो गया।

वे बताते हैं कि पहले मैं भारत के बाद यूएस में एक आश्रम बनाने की योजना बना रहा था, लेकिन कोरोना काल में अब तय किया है कि अब चोरल के आश्रम को ही अब योगा लाइफ सोसाइटी का इंटरनेशनल हेड क्वार्टर बनाकर पूरी दुनिया के योग प्रेमियों को यहां लाना है।



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पं. मिश्रा बताते हैं कि जब योग सीख लिया था, उसका चमत्कार खुद के शरीर पर देखा। अस्थमा जैसी बीमारी को मात दी।


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कोरोना के दौर में अच्छी खबर! इस बार देरी से आया लेकिन जमकर बरसा मानसून, कई रिकॉर्ड बने; लगातार दूसरे साल सामान्य से ज्यादा बारिश

इस बार दक्षिण-पश्चिमी मानसून ने चार महीने में कई नए रिकॉर्ड बनाए हैं। पूरे देश में लॉन्ग पीरियड एवरेज (एलपीए) के अनुपात में 109% बारिश हुई है। मौसम विभाग के मुताबिक यह लगातार दूसरा साल है जब देश में सामान्य से अधिक बारिश हुई है।

कोरोनाकाल में अच्छी बारिश होना एक तरह से मंदी के संकट से उबरने के संकेत भी है। फसल अच्छी होगी तो कृषि क्षेत्र की जीडीपी में भागीदारी बढ़ेगी। निश्चित तौर पर फेस्टिव सीजन में इससे मार्केट में खरीदारी भी बढ़ेगी। आर्थिक विशेषज्ञ उम्मीद जता रहे हैं कि वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में जो 24 प्रतिशत की गिरावट आई थी, उसका असर दूसरी (जुलाई-सितंबर) और तीसरी (अक्टूबर-दिसंबर) तिमाही में खत्म हो जाएगा।

कैसे पता चला कि बारिश सामान्य से अधिक हुई?

  • मौसम विभाग का अपना फार्मूला है, जिससे वह बताता है कि बारिश सामान्य हुई या उससे कम या ज्यादा। पूरे देश में 1961 से 2010 तक एक जून से 30 सितंबर के बीच चार महीने हुई बारिश का औसत यानी लॉन्ग पीरियड एवरेज (87.7 सेमी) बेस बनाया जाता है। 2020 में 95.4 सेमी बारिश हुई है यानी यह सामान्य से 109% अधिक है।

सामान्य से अधिक या कम बारिश का फार्मूला क्या है?

  • मौसम विभाग के अनुसार यदि मानसून लॉन्ग पीरियड एवरेज का 96%-104% होता है तो इसे सामान्य बारिश कहा जाता है। इसी तरह यदि बारिश लॉन्ग पीरियड एवरेज का 104% से 110% के बीच होती है तो इसे सामान्य से अधिक, 110% से अधिक होने पर एक्सेस या अधिक बारिश हुई, ऐसा कहते हैं। इसी तरह यदि बारिश 90-96 के बीच होती है तो इसे सामान्य से कम कहा जाता है।

अर्थव्यवस्था के लिए क्या महत्व है अच्छी बारिश का?

  • देश में सालभर जितनी बारिश होती है, उसका 70 प्रतिशत पानी दक्षिण-पश्चिम मानसून में बरसता है। अब भी हमारे देश में 70 से 80 प्रतिशत किसान सिंचाई के लिए बारिश के पानी पर निर्भर है। ऐसे में उनकी पैदावार पूरी तरह से मानसून के अच्छे या खराब रहने पर निर्भर करती है।
  • एग्रीकल्चर सेक्टर की भारतीय अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी 14% है। वहीं, हमारे देश की आधी आबादी को कृषि क्षेत्र ही रोजगार देता है। अच्छी बारिश का मतलब है कि आधी आबादी की आमदनी फेस्टिव सीजन से पहले अच्छी हो सकती है। जिससे उनकी खर्च करने की क्षमता भी बढ़ेगी।
  • अच्छी बारिश की वजह से खरीफ की पैदावार भी अच्छी हुई। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 11.17 लाख हैक्टेयर में खरीफ की फसलें की बुवाई हुई है। पिछले साल 10.66 लाख हैक्टेयर में बुवाई हुई थी। यानी पिछली बार से इस बार बुवाई ज्यादा हुई है।

किस डिविजन या राज्य में सबसे ज्यादा और कहां सबसे कम बारिश हुई?

  • देश में चार में से तीन महीने- जून (118%), अगस्त (127%) और सितंबर (104%) में सामान्य से अधिक बारिश हुई। जुलाई में (90%) जरूर इस बार सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई।
  • मौसम विभाग ने पूरे देश को चार डिविजन में बांट रखा है। पूर्व व उत्तर-पूर्व, मध्य भारत और दक्षिण भारत में सामान्य से अधिक बारिश हुई। वहीं, उत्तर-पश्चिम के इलाकों में सामान्य से कम बारिश दर्ज हुई है।
  • 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सामान्य बारिश हुई है जबकि नौ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सामान्य से बहुत अधिक बारिश हुई है। बिहार, गुजरात, मेघालय, गोवा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और लक्षद्वीप में सामान्य बारिश हुई है।
  • सिक्किम में सबसे ज्यादा बारिश हुई है। हालांकि, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर में कम बारिश हुई है। लद्दाख में भी तुलनात्मक रूप से कम बारिश हुई है।

क्या-क्या रिकॉर्ड बनाए हैं बारिश ने इस बार?

  • 30 साल में तीसरी सबसे ज्यादा बारिशः 1990 के बाद लॉन्ग पीरियड एवरेज के अनुपात में सबसे अच्छी बारिश 1994 में हुई थी, जब एलपीए का 112% बारिश हुई थी। इसके बाद 2019 में 110% और इस साल 109% बारिश हुई है।
  • 60 साल बाद लगातार दो साल सामान्य से अधिक बारिशः आंकड़ों पर नजर दौड़ाए तो 2019 और 2020 में लगातार दो साल एलपीए के अनुपात में 9% या उससे अधिक बारिश हुई है। आखिरी बार 1958 (एलपीए के मुकाबले 110%) और 1959 (एलपीए के मुकाबले 114%) में ऐसा ही हुआ था।
  • 44 साल में सबसे ज्यादा बारिश अगस्त में: अगस्त-2020 ने देश ने बारिश का 44 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया। इस बार यह एलपीए का 124% रहा। अगस्त 1976 में एलपीए के मुकाबले 128.4% बारिश हुई थी। इसी तरह 36 साल में पहली बार अगस्त-सितंबर के बीच सबसे ज्यादा (130% ) क्युमुलेटिव बारिश हुई है।

ज्यादा बारिश होने की वजह क्या रही?

  • इस साल मानसून एक जून को केरल पहुंच गया था। निसर्ग तूफान ने इसे आगे बढ़ने में मदद की। इस साल मानसून 26 जून को ही पूरे देश को कवर कर चुका था। आम तौर पर 8 जुलाई को ऐसा होता है लेकिन इस बार 12 दिन पहले हो गया। विड्रॉल भी देर से शुरू हुआ। पश्चिम राजस्थान और पंजाब से मानसून की विदाई 28 सितंबर को शुरू हुई यानी सामान्य से 11 दिन लेट।
  • अगस्त में पांच बार लो प्रेशर एरिया बने। इसकी वजह से मध्य भारत में अच्छी बारिश हुई। आम तौर पर अगस्त में 15 लो-प्रेशर दिन होते हैं। इस बार 28 दिन लो-प्रेशर की स्थिति बनी। इससे ओडिशा, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, दक्षिण गुजरात और दक्षिण राजस्थान में की नदियों में 2-3 बार बाढ़ की स्थिति बनी।
  • पिछले 19 में से 18 वर्षों में पूर्वोत्तर में एलपीए से कम बारिश हुई है। सिर्फ 2007 में ही एलपीए के मुकाबले 110% बारिश हुई थी। यह संकेत देता है कि रीजन में बारिश लगातार कम हो रही है। 1950 से 1980 तक इसी तरह के संकेत मिले थे।


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जीप स्कैम में इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी; अमेरिका में थैंक्स गिविंग डे की औपचारिक घोषणा; ब्रिटेन भी बना परमाणु हथियार संपन्न देश

भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 3 अक्टूबर का दिन अहम है। 1977 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जीप स्कैम में गिरफ्तार किया गया था। उस समय मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार थी और गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह थे। इंदिरा गांधी पर चुनाव प्रचार में इस्तेमाल की गई जीपों की खरादारी में भ्रष्टाचार का आरोप था। रायबरेली में इंदिरा के लिए 100 जीपें खरीदी गई थीं, जिसका भुगतान कांग्रेस ने नहीं बल्कि उद्योगपतियों ने किया था। साथ ही सरकारी पैसे का भी इस्तेमाल किया गया था।

वैसे, यह भी कहते हैं कि इमरजेंसी में जिस तरह इंदिरा गांधी ने विरोधियों को परेशान किया, उनसे कई नेता नाराज थे। वे चाहते थे कि जिस तरह उन्हें जेल भेजा गया, वैसा ही इंदिरा के साथ भी किया जाएं। चरण सिंह तो इसके लिए अड़ ही गए थे, जबकि मोरारजी देसाई कोई भी गैरकानूनी कदम नहीं उठाना चाहते थे। तब, तीन अक्टूबर को इंदिरा गांधी के खिलाफ सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की और गिरफ्तार भी किया।

उन्हें बड़कल लेक गेस्ट हाउस में हिरासत में रखना था, लेकिन उन्हें किंग्सवे कैम्प की पुलिस लाइन में बनी ऑफिसर्स मेस में रखा गया। 4 अक्टूबर की सुबह मजिस्ट्रेट कोर्ट में पेश किया तो सामने आया कि इंदिरा के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। तब तकनीकी आधार पर उन्हें बरी कर दिया गया।

जनता पार्टी की इस राजनीतिक भूल को 'आपरेशन ब्लंडर' कहा जाता है। इंदिरा को इसका नुकसान नहीं बल्कि फायदा हुआ। नफरत का माहौल सहानुभूति में बदला और 1980 के चुनावों में इंदिरा ने जोरदार वापसी की।

1952 में ब्रिटेन ने परमाणु बम टेस्ट किया

ऑपरेशन हरीकैन के नाम से पहचान रखने वाला यह टेस्ट पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में मोंटेबेलो आइलैंड में किया गया था। इस ऑपरेशन ने उस समय यूके को दुनिया का तीसरा परमाणु हथियार संपन्न देश बना दिया था। उस समय तक सिर्फ यूनाइटेड स्टेट्स और सोवियत यूनियन के पास ही परमाणु हथियार थे।

1863: नेशनल थैंक्स गिविंग डे की औपचारिक शुरुआत

अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने 1863 में 3 अक्टूबर को ही नवंबर के आखिरी गुरुवार को थैंक्स गिविंग डे के तौर पर तय किया था। तब से अमेरिका में इस दिन छुट्टी होती है। इस साल थैंक्स गिविंग डे 26 नवंबर को है। इसकी शुरुआत फसल का सीजन खत्म होने पर अच्छी पैदावार के लिए ईश्वर का धन्यवाद अदा करने के लिए हुई थी। अब यह अमेरिका के सबसे बड़े शॉपिंग फेस्ट के तौर पर मनाया जाता है।

1999ः वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार

21 अन्य पार्टियों के साथ भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 545 में से 296 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल कर बहुमत हासिल किया। कांग्रेस को 114 सीटें मिली थी। अटलजी के नेतृत्व में पहली बार किसी गठबंधन सरकार ने पांच साल पूरे किए और एक मिसाल पेश की। इसके बाद 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार ने देश पर शासन किया।

इतिहास में आज की तारीख को इन घटनाओं के लिए भी याद किया जाता हैः

  • 1657: फ्रांसीसी सैनिकों ने मैड्रिड पर कब्जा किया।
  • 1831: मैसूर (अब मैसुरु) पर ब्रिटेन ने कब्जा किया।
  • 1880: पहले मराठी संगीत नाटक संगीत शाकुन्तल का पुणे में मंचन किया गया।
  • 1932: इराक को यूके से आजादी मिली। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1920 में यूके ने इराक पर कब्जा किया था।
  • 1978ः कोलकाता में पहले और दुनिया में दूसरे टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ।
  • 1984ः भारत की सबसे लंबी दूरी की ट्रेन हिमसागर एक्सप्रेस कन्याकुमारी से जम्मूतवी के लिए रवाना हुई।
  • 1995ः चीन एवं इंग्लैंड के बीच हांगकांग के सुगम हस्तांतरण पर सहमति बनी।
  • 1996ः पाकिस्तानी बल्लेबाज शाहिद अफरीदी ने वनडे-इंटरनेशनल मैच में 37 गेंदों में शतक बनाकर इतिहास रचा।
  • 2003ः पाकिस्तान ने हत्फ-मिसाइल का परीक्षण किया।
  • 2005ः भारत और पाकिस्तान ने डील पर हस्ताक्षर किए कि दोनों एक-दूसरे को बैलिस्टिक मिसाइल टेस्ट की योजना के बारे में बताएंगे।
  • 2008ः टाटा ग्रुप ने सिंगुर (पश्चिम बंगाल) में हिंसक प्रदर्शनों के बाद दुनिया की सबसे सस्ती कार बनाने का कारखाने लगाने की योजना ड्रॉप कर दी।
  • 2013ः कोर्ट ने लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में पांच साल की जेल की सजा सुनाई।
  • 2014ः पटना में दशहरे पर बिजली का तार गिरने की अफवाह से मची भगदड़ में 32 लोगों की मौत हुई।


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बजट बनाते वक्त इमरजेंसी फंड का ध्यान रखें, होटल के बजाए हॉस्टल में रहने के बारे में सोचें; वेकेशन से पहले खुद से करें 3 सवाल

कोरोनावायरस महामारी अभी थमी नहीं है, पर लोगों ने जोखिम उठाकर घर से बाहर निकलना शुरू कर दिया है। कई लोग घर में रहते हुए इतने परेशान हो गए हैं कि वे माहौल सामान्य होने के बाद कहीं भी घूमने जाना चाहते हैं। इसी सिलसिले में कई राज्यों ने पर्यटकों को लेकर एसओपी भी जारी किए हैं और सफर के शौकीनों को आमंत्रित भी कर रहे हैं।

हालांकि, अभी यह तय नहीं है कि वैक्सीन कब तक हमारे बीच आएगी? और कोरोना का ये दौर कब खत्म होगा? ऐसे में नए पर्यटकों के पास अपने नए सफर की प्लानिंग करने और बजट बनाने का काफी वक्त है। इस खाली समय का फायदा उठाएं और घर में रहकर तनाव लेने के बजाए अपनी फ्यूचर ट्रिप के बारे में सोचें। क्योंकि अगले तीन महीने फेस्टिव सीजन भी हैं। ऐसे में अगर आपको भी टूरिज्म का नया शौक लगा है, तो कुछ टिप्स और जानकारियां आपकी मदद कर सकती हैं।

रहना, खाना और ट्रांसपोर्ट कैसे प्लान करें?

  • यदि आप नियमित पर्यटक हैं तो आपने जाने-माने ट्रैवलर डॉक्टर वरुण वागीश का नाम सुना होगा। हॉलिडिफाई वेबसाइट के मुताबिक, वरुण ने एक कसे हुए बजट में ट्रैवलिंग करने के लिए एक मास्टर प्लान बनाया है। वे अपने बजट को तीन हिस्सों में बांटते हैं- रहना, खाना और ट्रांसपोर्ट।
  • इस मास्टर प्लान की मदद से वे कई बार घूमने के दौरान दिन में सैकड़ों से लेकर हजारों रुपए की सेविंग कर लेते हैं। उनका तरीका अपनाएं। वे महंगे होटलों में रुकने के बजाए हॉस्टल चुनते हैं, रेस्टोरेंट के बजाए सुपरमार्केट से चीजें खरीदकर खाते हैं और फ्लाइट के बजाए ट्रेन और रास्तों पर लिफ्ट लेते हैं।

अब जानते हैं कैसे तैयार करें ट्रैवल बजट?
ट्रैवल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ट्रैवलिंग से पहले खर्चों को तीन हिस्सों में बांटना अच्छा तरीका हो सकता है।
1. तैयारियों का खर्च
इसमें अपने उन खर्चों को शामिल करें, जो आप सफर से पहले या सफर की तैयारियों में करने वाले हैं। जैसे- जरूरी चीजें खरीदना, पुरानी चीजों की रिपेयरिंग।

  • ट्रैवल इंश्योरेंस: सफर के दौरान इंश्योरेंस जरूरी चीज नहीं है, लेकिन यह एक अच्छा उपाय हो सकता है। खासतौर से लंबे सफर और इस कोरोना दौर में। इंश्योरेंस की तैयारी से पहले आपको थोड़ी रिसर्च करना चाहिए। रिसर्च की मदद से आप अपने और सफर के साथी के लिए बेहतर ऑप्शन खोज पाएंगे।
  • वैक्सीन: कहीं भी जाने से पहले उस जगह के बारे में जानना आपकी हेल्थ के लिए भी सुरक्षित होगा। आमतौर पर वैक्सीन सस्ती होती हैं और आपको यह दूसरी जगहों पर कई परेशानियों से बचाती हैं। कहीं भी जाने से पहले टीका लगवाने पर विचार करें और अपने हेल्थ एक्सपर्ट की सलाह लें।
  • शॉपिंग: ट्रैवलिंग के मामले में यह सबसे बड़े और जरूरी कामों में से एक माना जाता है। कहीं भी जाने से पहले यह देख लें कि आपको वहां किन चीजों की जरूरत होगी और आपके पास पहले से क्या मौजूद है। उदाहरण के लिए नए बैग पैक, कैमरा टूल्स।
  • ट्रांसपोर्टेशन: यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप सफर पर कहां जा रहे हैं। कहीं भी जाने से पहले अगर आप ट्रांसपोर्टेशन के खर्चों का ध्यान रखेंगे, तो यह बजट संभालने के लिहाज से मददगार होगा। सफर की प्लानिंग के दौरान ही टिकट पर होने वाले खर्च की जानकारी ले लें।

2. सफर के दौरान होने वाले खर्च
बजट के इस हिस्से में उन खर्चों को शामिल करें, जो आप सफर के दौरान करने वाले हैं। जैसे- रहना, खाना।

  • कहां रहेंगे: ट्रैवलिंग और वेकेशन का सबसे बड़ा खर्च इसे ही माना जाता है। हालांकि, अपनी सुविधाओं से पहले बजट को ध्यान में रखते हुए आप इसे कम कर सकते हैं। प्लानिंग के दौरान ही ट्रैवल करने वाले शहर के होटल और हॉस्टल की जानकारी ले सकते हैं। इसकी मदद से आप कम से कम खर्चों में कहीं भी रह सकते हैं।
  • खाना और दूसरी एक्टिविटीज: खाने को लेकर खर्च का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी काम है। हालांकि, यह खर्च भी आपकी मंजिल पर ही निर्भर करता है। यह जरूरी है कि आप जहां भी जा रहे हैं, वहां की खास डिश या ड्रिंक का मजा जरूर लेंगे, लेकिन इसकी मात्रा का ख्याल रखें।
  • खरीदारी: यह इस बात पर निर्भर करता है कि सफर कर रहे शहर से कितनी चीजें खरीदेंगे। अगर आप जरूरत से ज्यादा चीजें खरीदते हैं, तो इससे आपका बजट प्रभावित होगा। इसके अलावा अगर आप विदेश की ट्रिप प्लान कर रहे हैं तो कस्टम ड्यूटी रेग्युलेशन की जानकारी भी ले लें।

3. इमरजेंसी फंड्स

  • सबसे आखिरी और सबसे जरूरी बात है इमरजेंसी फंड बनाना। कई बार होता है कि सफर के दौरान आप लापरवाही या गलती के कारण डेबिट/क्रेडिट कार्ड, पर्स या दूसरी जरूरी चीजें खो देते हैं। ऐसे में यह पैसा आपके काम मुश्किल के वक्त आएगा।
  • इसके अलावा अपने बजट को लेकर एकदम टाइट न रहें। अगर आपने 10 दिन की प्लानिंग की है तो कम से कम 12-15 दिनों का पैसा अपने साथ रखें। इस तरह आप किसी तरह की इमरजेंसी का सामना आसानी से कर पाएंगे।

कैसे करें मुफ्त या सस्ती ट्रैवलिंग?

  • लंबे समय से पर्यटन कर रहे लोगों को मुफ्त में यह कम खर्च में सफर करने के तरीके पता होते हैं, लेकिन पहली बार वेकेशन प्लान कर रहे लोग भी थोड़ा जागरूक होकर अपना खर्च कम कर सकते हैं। प्लानिंग के दौरान ही थोड़ा रिसर्च करने से आपको कई आर्थिक फायदे हो सकते हैं।
  • सस्ती ट्रैवलिंग के लिए अलग-अलग ऐप्स और वेबसाइट्स पर जाकर थोड़ा सर्च करें। कई बार अच्छे ऑफर की वजह से आपकी ट्रैवलिंग और सेविंग दोनों हो जाती हैं।
  • इसके बाद आता मुफ्त का फायदा। कई बार ऑफ सीजन या दूसरे मौकों पर ट्रैवल एजेंट या वेबसाइट रहना-खाना और सीमित जगहों पर मुफ्त में घूमने का मौका देती हैं। ऐसे में बुकिंग करते वक्त थोड़ी रिसर्च और पुराने ट्रैवलिंग ब्लॉग्स जरूर पढ़ें।

जब तक घर में हैं तब तक इंटरनेट पर ही घूम लें दुनिया
घर पर ही रहकर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करें। इंटरनेट पर कई वर्चुअल टूर के ऑप्शन मौजूद हैं, जिसके जरिए आप दुनिया की कई मशहूर जगहों को जान सकेंगे और कई लोगों के लिए यह नया अनुभव भी हो सकता है।

  • दुनिया के सात अजूबे: मॉडर्न टेक्नोलॉजी की मदद से आप घर बैठे ही दुनिया के सात अजूबों (द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना, पेट्रा, ताज महल, कोलोजियम, माचु पिच्चु, क्राइस्ट द रिडीमर और चिचेन इत्जा) का नजारा अपनी डिवाइस पर देख सकते हैं। इसके लिए कई गूगल जैसी ऑनलाइन सर्विसेज उपलब्ध हैं।
  • म्यूजियम की सैर: बीते कुछ वर्षों में गूगल ने हजारों म्यूजियम के साथ पार्टनरशिप की है। इसमें संग्रहालयों में सुरक्षित कर रखी गई नायाब चीजों की हाई क्वालिटी फोटोज हैं। इसके जरिए आप दुनिया के दूर-दराज के कई म्यूजियम की सैर कर सकते हैं।
  • नेशनल पार्क्स: ट्रैवलिंग के दौरान कई लोगों की सबसे पसंदीदा जगह नेशनल पार्क्स होती है। अब इंटरनेट के जरिए भी ट्रेवलर्स वर्चुअल नेशनल पार्क्स का मजा हाई क्वालिटी साउंड के साथ ले सकते हैं। इसके लिए गूगल ने भी खास नेशनल पार्क्स के ऑडियो-विजुअल टूर्स की सेवा दी है।

तनाव से लड़ने का बड़ा हथियार है ट्रैवलिंग
राजस्थान के उदयपुर स्थित गीतांजलि हॉस्पिटल में असिस्टेंट प्रोफेसर और साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर शिखा शर्मा कहती हैं, "ट्रैवलिंग से हमारा मूड खुश होता है। क्योंकि इस दौरान हम नए लोगों से मिलते हैं, नई जगहों को जानते हैं और नए अनुभव होते हैं।"



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While making the budget keep in mind the emergency fund, think about staying in hostels instead of hotels; Do 3 questions yourself before vacation


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नेता सब कपड़ा जइसा पार्टी बदल रहा है, कार्यकर्ता सब को बुझाइए नहीं रहा है कि किसका झंडा ढोएं, किसका बैनर उठाएं

शहरः पटना
स्थानः लंगर टोली
समयः दोपहर के दो बजे।

आसमान काले बादलों से घिरा है। अचानक बारिश होने लगती है। मैं एक चाय की दुकान में घुस जाता हूं। दुकान छोटी है लेकिन उसके आगे तिरपाल लगा है। उसी के नीचे दो बेंच लगी हैं। वहां चार-पांच लोग और हैं, बारिश से बचने की कोशिश में। बारिश तेज हो चुकी है। उधर सड़क पर बूंदों की टपटप है, इधर बातों में राजनीति की बारिश के साथ टपटप शुरू हो चुकी है। फिर कुछ देर तक शांति रहती है।

अचानक एक अधेड़ बोलता है, 'बरसात का भी कोई ठीक नहीं है, कब शुरू होगा कब खतम होगा, पते नहीं चलता है। एकदम नेता जइसा हो गया है। किस पार्टी में रहेगा, थाहे नहीं लगे देता है। नेता सब अइसे पार्टी बदल रहा है, जइसे कोई कपड़ा बदलता है।'

अधेड़ की बात बीच में ही रोककर एक युवक बोल उठा, 'सही कह रहे हैं, इलेक्शन क घोषणा के पहले तो सब पार्टी बदलिए रहा था, अभियो बदल रहा है। रोजे मिलन समारोह हो रहा है। हमको लगता है, हमहुं कौनो पार्टी ज्वाइने कर लें।'

मैं उन्हें थोड़ा उकसाता हूं, कहां कोई पार्टी बदल रहा है जी! अगर इक्का-दुक्का नेता बदल भी लिया तो उससे क्या होगा। पहले वाला अधेड़ बोलता है. क्या बात कर रहे हैं? आपको पता भी है, केतना नेता राजद से जदयू में गया? केतना जदयू से राजद में! कल्हे न इलियास हुसैन का बेटा जदयू में गया है। कुशवाहा का नेता भूदेव चौधरी राजद में चला गया। ई सब आया राम-गया राम हो गया है! देखिएगा इलेक्शन बाद फिर पार्टी बदल लेगा।

बेंच पर गहरे पावर का चश्मा लगाए एक बुजुर्ग अखबार पढ़ रहे थे। लगता है सबकी बात भी सुन रहे थे। अचानक बोल पड़ते हैं, आप ही लोग सबका मन बढ़ा के रखे हैं। दल बदलने वाले नेता का कोई सिद्धांत होता है क्या? नेता जानता है कि जात के नाम पर तो सब वोट देवे करेगा, चाहे कोई पार्टी में रहें। वहां खड़े-खड़े चाय पी रहा एक अन्य युवक बोल उठता है, ऐसा मत कहिए चचा, हमलोग भी तौले के नेता को वोट देते हैं। लेकिन ई नेतवे सब जीते के बाद दगा दे देता है। जिस पार्टी में फायदा नजर आता है, उसी में घुस जाता है। पब्लिक तो हैरान रहबे करता है, पार्टी का कार्यकर्ता सब भी पसोपेश में रहता है कि किस नेता का झंडा ढोएं, किसका बैनर उठाएं।

सबकी बात सुन रहा और तसले में कलछी घुमाता चाय वाला अब तक खामोश है। शायद उसे भीड़ और इस राजनीतिक बतकही में अपनी दुकानदारी की चिंता खाए जा रही है। कल ही बोल रहा था, अब ई चुनाव बेला में चाय कम बिकेगी, बातें जियादे।

लेकिन आज की बहसनुमा बरसात में उसकी बोली भी शामिल हो चुकी है... बोल पड़ता है, ‘अब पार्टी कहां रह गया है भइया, अब तो गठबंधन और महागठबंधन हो गया है। यादे नहीं रहता है कि कौन पार्टी किस गठबंधन में है, कौन नेता किधर है। ई सब डगरा के बइगन हो गए हैं। देख नहीं रहे कि चिराग कइसे छान-पगहा तोड़ाए पे उतारू है। कुशवाहा जी क कौनो थाहे न बुझात आ।

चाय वाला अभी और कुछ बोलता कि इससे पहले बारिश रुक चुकी है। लोग निकलने लगे हैं। ये चाय चर्चा तो यहीं खत्म हो गई है। बुजुर्ग अभी भी अखबार पर नजरें गड़ाए हैं। चाय वाले की कलछी फिर अपना काम करने लगी है।



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Patna (Bihar) Assembly Election 2020 Voters News | Political Discussion At Tea Shop On Upcoming Vidhan Sabha Chunav


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मोदी सरकार की आलोचना करने पर भारतीय सेना के अधिकारी को गिरफ्तार किया गया? जानिए वायरल मैसेज की सच्चाई

क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल तरणजीत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया है। दावा है कि तरणजीत सिंह को मोदी सरकार की आलोचना करने पर राष्ट्र द्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।

और सच क्या है?

  • इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली, जिससे पुष्टि होती हो कि हाल ही के दिनों में भारतीय सेना के किसी भी अधिकारी को राष्ट्रद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
  • अलग-अलग की वर्ड सर्च करने से ANI की एक रिपोर्ट हमें मिली। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय सेना ने खुद एक बयान जारी कर सोशल मीडिया पर किए जा रहे इस दावे को फेक बताया है।
  • भारतीय सेना ने अपने बयान में कहा है कि पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तानी सेना एक फेक सोशल मीडिया कैंपेन चला रही है। इसमें सेना के वरिष्ठ अधिकारी तरणजीत सिंह के खिलाफ गलत दावे किए जा रहे हैं। ये सभी दावे निराधार हैं।


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Indian army officer arrested for criticizing Modi government? Know the truth of viral messages


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कोरोना के डर से शहर खाली और गली-मोहल्ले सूने हुए, मरघट जागे तो मौत की दहशत हर दिन बढ़ती गई

2 अक्टूबर का दिन अब इसलिए भी याद रखा जाएगा कि इस दिन भारत में कोरोना से मरने वालों की संख्या ने एक लाख का आंकड़ा छू लिया। डर और डगमगाती जिंदगी की उम्मीदों के बीच हमारे यहां कोरोना अपने पीक पर है। माहौल ऐसा है कि लगता है हर कोई बेबस और लाचार है। वैक्सीन से बड़ी उम्मीदें है लेकिन उसके पहले के मंजर खौफनाक हैं।

मार्च में पहली मौत से लेकर अक्टूबर तक एक लाख मौतों के गम की तस्वीरें कुछ ऐसी हैं जो देखी नहीं जाती। लेकिन, हम मजबूरी में इसलिए दिखा रहे कि आप कोई लापरवाही न करें और न अपनों को करने दें। नीचे की 10 तस्वीरों और उनमें छुपे दर्द को महसूस करते हुए समझ लीजिए कि जब तक वैक्सीन नहीं आता, मास्क ही आपका वैक्सीन है।

तस्वीर जून के महीने की रांची की है। गोवा के करमाली से श्रमिक स्पेशल ट्रेन जब झारखंड के हटिया पहुंची तो पता चला कि एस-15 में सफर कर रहे 19 वर्षीय युवक की एक दिन पहले सफर में मौत हो चुकी है। पूरे सफर में 70 स्टेशन क्रॉस कर गई, किसी ने न ट्रेन रोकी ना प्रशासन को सूचित किया। ​​​​

तस्वीर झारखंड के गुमला की है। नेपाल के परासी जिले में एक ईंट भट्‌ठे में 23 मई को गरीब मजदूर खद्दी उरांव की इलाज न मिलने से मौत हो गई। छोटे भाई ने नेपाल में ही दाह-संस्कार कर दिया। पत्नी- बच्चे अंतिम दर्शन नहीं कर पाए तो परिवार ने मिट्‌टी का पुतला बनाकर ऐसे अंतिम संस्कार किया।

तस्वीर छत्तीसगढ़ के धमतरी की है। मई में यहां के एक बुजुर्ग मोहन लाल साहू का शनिवार को निधन हो गया। उनके बेटे की पहले ही मौत हो चुकी है। कोरोना की बंदिशों के बीच घर की बेटी और बहू ने घर के बुजुर्ग को कांधा दिया और श्मशान घाट लेकर पहुंचीं। लॉकडाउन के कारण कम लोगों को ही अंतिम संस्कार में शामिल होने दिया गया।

फोटो मई के महीने में रायपुर की है- ईद के दिन मुंबई से बस में बैठकर हावड़ा के लिए निकला था 29 साल का हिफजुल रहमान। बीच में अपने साथियों से बार-बार पूछता रहा, भाई, घर कब पहुंचेंगे? 45 डिग्री गर्मी में बस के सफर ने उसे बेदम कर दिया। जब वो रायपुर पहुंचा, तो सड़क किनारे बैठ गया, सिर को पकड़ा और ऐसा लेटा कि फिर उठ ही नहीं सका।

तस्वीर जयपुर के आदर्श नगर श्मशान घाट की है। कभी यहां 10 से अधिक मृतकों की अस्थियां भी नहीं रखी जाती थीं, लेकिन कोरोना में संख्या 300 तक हैं। अलमारियों के बाद जमीन पर अस्थियों के ढेर लग गए। उत्तराखंड सरकार की तरफ से हरिद्वार जाने के लिए बसों की छूट देने के बाद अस्थियों को विसर्जित किया गया।

तस्वीर राजस्थान के पाली की है। यहां कोरोना संक्रमिताें की मौत के बाद उनकी देह की राख तथा अस्थियों को गंदगी मेंं दफना दिया गया। मृतकों की अस्थियों को सम्मानपूर्वक विसर्जित करने के बजाय उनको शहर की प्रदूषित बांडी नदी में जेसीबी से गड्ढा खुदवाकर कीचड़ और गंदगी में ही दफन कर दिया गया।

तस्वीर छत्तीसगढ़ के महासमुंद की है। मई में गुजरात से ओडिशा जा रही श्रमिक स्पेशल ट्रेन में एक यात्री की मौत हो गई। साथ में सफर कर रहे उसके बेटे को मजबूरी में महासमुंद में ही अंतिम संस्कार करना पड़ा। बेटे अनिल ने पिता के शव को मुखाग्नि देकर अपनी मां और परिजन को वीडियो कॉल कर पिता के अंतिम दर्शन कराए।

तस्वीर राजस्थान के बांसवाड़ा जिले की है। यहां मई में कोरोना संक्रमित 65 वर्षीय महिला की मौत हो गई। अस्पताल से प्लास्टिक पैकिंग में शव काे सीधे श्मशान घाट ले जाया गया। परिजन को चिता 100 फीट दूर से देखने दी गई। महिला का छाेटा बेटा कुवैत से नहीं आ सका, जबकि बड़ा बेटा अंतिम दर्शन के नाम पर वीडियो कॉल में छोटे को मां का चेहरा नहीं, सिर्फ आगे की लपटें ही दिखा पाया।

तस्वीर मप्र-गुजरात बॉर्डर पर बसे गांव की है। अलिराजपुर में 4 दिन से बीमार एक युवक की मौत हो गई। ग्रामीण शव लेकर मुक्तिधाम लेकर पहुंचे। चिता के लिए लकड़ियां जमा करते समय उसके पिता ने भी अचानक दम तोड़ दिया तो प्रशासन ने कोरोना के डर से दोनों का दाह संस्कार रुकवा दिया। 10 घंटे बाद कोरोना सैंपल लिए, तब जाकर अंतिम संस्कार हुआ।
तस्वीर महाराष्ट्र के सतारा जिले के कराड़ की है। यहां एक कोरोना पीड़ित की मौत के बाद उसे दफनाने के लिए जब कब्र खोदने को लोग तैयार नहीं हुए तो जेसीबी मशीन से कब्र खोदी गई। जब ताबूत को कोई हाथ लगाने को तैयार न हुआ तो उसे भी रस्सियों से कब्र में उतारा गया। रुखसत करने आए परिजन न तो जाने वाले का चेहरा देख पाए और न ही एक-दूसरे का।


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तस्वीर अगस्त के महीने की रायपुर की है। यहां तेजी से बढ़ी कोरोना मरीजों की मौतों के बाद मॉरचुरी में शव रखने की जगह नहीं बचीं तो शवों को स्ट्रेचर पर बाहर निकाल कर खुले में रख दिया गया। स्थिति ऐसी हो गई कि अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट पहुंची 10 लाशों को लौटाना पड़ गया।


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लालू-पासवान के बेटे ही नहीं, ये 20 बेटे-बेटियां भी लड़ सकते हैं चुनाव, खुद को भावी सीएम बताने वाली पुष्पम प्रिया भी इनमें

बिहार की राजनीति में जब परिवारवाद की बात आती है, तो सबसे पहले लालू यादव और उनके बेटों का नाम आता है। लेकिन, यहां की राजनीति में परिवारवाद कई दशकों से हावी है। अभी भी बिहार के कई विधायक और सांसद ऐसे हैं, जो परिवारवाद की राजनीति का हिस्सा हैं। इस चुनाव में भी कम से कम 20 ऐसे बेटे-बेटियां हैं, जो अपनी किस्मत आजमा सकते हैं।

सबसे दिलचस्प लालू प्रसाद और राबड़ी देवी की बेटों तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव कि सियासी लड़ाई देखना होगा, जो परिवार के साथ ही राजद की लाज बचाने के लिए खासी मशक्कत कर रहे हैं।

केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे चिराग भी चुनाव लड़ने को तैयार हैं। पार्टी के परफार्मेंस का सारा दारोमदार उन पर है। चिराग अभी जमुई से सांसद हैं। लेकिन माना जा रहा है कि जमुई की सुरक्षित विधानसभा सिकंदरा से वे चुनाव लड़ सकते हैं। यह भी संयोग ही है कि लालू प्रसाद यादव और राम विलास पासवान दोनों ही इस बार बेटों को राह दिखाने को मैदान में नहीं होंगे।

लालू प्रसाद के बड़े बेटे और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव 2015 में वैशाली के महुआ से चुनाव जीते थे। लेकिन इस बार उनको ऐसी सीट की तलाश है जहां यादव मतदाताओं का बोलबाला हो। इसलिए वे हसनपुर से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। वे 22 और 23 सितंबर को हसनपुर गए भी थे और वहां रोड शो भी किया था।

हसनपुर सीट पर 1967 से विधानसभा में यादवों का ही कब्जा रहा। साल 2015 में यहां से राजद और जदयू के संयुक्त उम्मीदवार राजकुमार राय चुनाव जीते थे। तेजप्रताप यादव की सीट इसलिए काफी दिलचस्प होगी कि उनकी पत्नी ऐश्वर्या को जदयू तेजप्रताप के खिलाफ उतार सकता है। ऐश्वर्या के पिता चंद्रिका राय पहले ही जदयू ज्वाइन कर चुके हैं। तेज प्रताप और ऐश्वर्या के बीच रिश्ते की खटास जगजाहिर है।

पुष्पम प्रिया चौधरी ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से मास्टर्स की डिग्री की है।

सबसे चर्चित चेहरा पुष्पम प्रिया चौधरी, जदयू नेता की बेटी हैं
बिहार की राजनीति में इन दिनों जो सबसे चर्चित और युवा चेहरा है, वो है पुष्पम प्रिया चौधरी का। पुष्पम प्रिया उस समय चर्चा में आई थीं, जब उन्होंने देश के सभी बड़े अखबारों में फुल पेज का विज्ञापन दिया था और खुद को भावी मुख्यमंत्री बता दिया था।

पुष्पम प्रिया भी परिवारवाद का ही हिस्सा हैं। उनके पिता विनोद चौधरी हैं, जो जदयू नेता रहे हैं और विधान परिषद के सदस्य भी रह चुके हैं। पुष्पम प्रिया के पास राजनीतिक विरासत जरूर है, लेकिन उनका कोई सियासी अनुभव नहीं है।

हालांकि, मार्च से ही उन्होंने अपना कैंपेन शुरू कर दिया था। उन्होंने प्लूरल्स पार्टी बनाई है और उनका कहना है कि उनकी पार्टी सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। पुष्पम प्रिया खुद दो सीटों से चुनाव लड़ने जा रही हैं। इनमें एक पटना की बांकीपुर सीट है। जबकि, दूसरी सीट के बारे में उन्होंने अभी तक नहीं बताया है।

निशानेबाज श्रेयसी भी उतर सकती हैं चुनावी राजनीति में
पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह और पूर्व सांसद पुतुल देवी की बेटी अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज श्रेयसी सिंह भी अब परिवार की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए तैयार है। चर्चा है कि वह भी इस बार विधानसभा चुनाव लड़ेंगी। पूर्व सांसद आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद और बेटे चेतन आनंद हाल ही में राजद में शामिल हुए हैं। चर्चा है कि चेतन भी चुनाव लड़ सकते हैं। पूर्व मंत्री नरेन्द्र सिंह के दोनों बेटे अजय सिंह और सुमित सिंह भी चुनाव लड़ेंगे। दोनों पहले भी विधायक रह चुके हैं। पूर्व सांसद दिवंगत तस्लीमुद्दीन के बेटे शहबाज आलम भी चुनाव लड़ेंगे ही।

ये दस युवा भी पिता की विरासत संभालने की तैयारी में
केन्द्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे शाश्वत चौबे, पूर्व केन्द्रीय मंत्री कांति सिंह के बेटे ऋषि यादव, कुछ महीने पहले राजद छोड़ जदयू में गए राधाचरण सेठ के बेटे कन्हैया प्रसाद, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सदानंद सिंह के बेटे शुभानंद, रामदेव राय के बेटे शिवप्रकाश गरीबदास, पूर्व मंत्री उपेन्द्र प्रसाद वर्मा के बेटे जय कुमार वर्मा, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदनमोहन झा के बेटे माधव झा, पूर्व कन्द्रीय मंत्री रामकृपाल यादव के बेटे अभिमन्यु भी चुनाव लड़ सकते हैं। पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी के बेटे राजद के टिकट से पिछली बार विधान सभा गए थे। इस बार भी वे चुनाव लड़ेंगे। सिक्किम के राज्यपाल गंगा प्रसाद की विरासत संभाल रहे उनके पुत्र संजीव चौरसिया फिर से विधान सभा जाने के लिए विधान सभा चुनाव लड़ेंगे।

फिलहाल तीन पूर्व सीएम के परिजन ही सियासत में
तीन पूर्व सीएम के परिजन ही अभी सियासत में हैं। दरोगा प्रसाद राय के बेटे चंद्रिका राय, डॉ. जगन्नाथ मिश्रा के बेटे नीतीश मिश्रा और लालू-राबड़ी परिवार तो है ही। पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिंह के बेटे निखिल कुमार और भागवत झा आजाद के बेटे कीर्ति आजाद लोकसभा चुनाव लड़ते रहे हैं।



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Lalu prasad Yadav son tejashwi tejpratap chirag paswan contest in bihar assembly election 2020


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भाजपा यहां कभी 100 का आंकड़ा पार नहीं कर सकी; पिछले 5 चुनाव से क्षेत्रीय पार्टियां ही किंग या किंगमेकर बनीं

1977 का बिहार विधानसभा चुनाव कई मायनों में अलग था। अलग इसलिए क्योंकि दो साल के आपातकाल के बाद देश में और बिहार में चुनाव हो रहे थे। अलग इसलिए भी क्योंकि पहली बार कांग्रेस बिहार में दूसरे नंबर की पार्टी बनी थी। आजादी के बाद से लेकर 1972 तक हर बार बिहार में कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी बनती रही। हालांकि, 1967 और 1969 में कांग्रेस बिहार में सरकार बनाने से चूक जरूर गई थी।

इसके बाद 1980 और 1985 में राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। 1985 का चुनाव ही कांग्रेस के लिए आखिरी चुनाव था, जब उसने 100 से ज्यादा सीटें जीतीं। उस चुनाव में कांग्रेस को 196 सीटें मिली थीं। लेकिन, 1990 के चुनाव में दूसरी बार कांग्रेस सीटों के लिहाज से दूसरे नंबर पर आ गई। और यहीं से उसका पतन भी शुरू हुआ। या यूं कहें कि 1990 से ही बिहार में क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा शुरू हुआ और राष्ट्रीय पार्टियां सिर्फ सहयोगी की भूमिका में आ गई।

1990 और 1995 के चुनाव में बिहार में जनता दल की सरकार बनी। जनता दल उस समय तक राष्ट्रीय पार्टी होती थी, लेकिन ये बिखरते-बिखरते पहले क्षेत्रीय पार्टी बनी और फिर खत्म ही हो गई। 2000 से लेकर 2015 तक यहां 5 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं और हर बार सबसे बड़ी पार्टी क्षेत्रीय पार्टी ही थी। सबसे बड़ी पार्टी ही किंग या किंगमेकर रही। भाजपा यहां 9 चुनाव लड़ चुकी है, लेकिन आज तक 100 का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी। भाजपा ने बिहार में अब तक सबसे ज्यादा 91 सीटें 2010 के चुनाव में जीती थीं।

पिछले 5 चुनाव से क्षेत्रीय पार्टियां ही किंग और किंगमेकर
2000 से लेकर 2015 तक यहां 5 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं और हर बार क्षेत्रीय पार्टियां या तो किंग बनी हैं या फिर किंगमेकर। 2000 के चुनाव में राजद सबसे बड़ी पार्टी बनी और उसी की सरकार बनी। फरवरी 2005 में भी राजद ही सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन उस समय भाजपा-जदयू गठबंधन में थी और वो बहुमत से चूक गई थी। लिहाजा किसी की सरकार नहीं बन सकी।

अक्टूबर 2005 में 88 सीटें जीतकर जदयू सबसे बड़ी पार्टी बनी और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। 2010 में भी जदयू 115 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी और भाजपा के सहयोग से सरकार बनाई। 2015 में राजद ने सबसे ज्यादा 80 सीटें जीतीं और महागठबंधन की सरकार बनी, जिसमें जदयू और कांग्रेस शामिल थी। जुलाई 2017 में नीतीश कुमार की जदयू महागठबंधन से अलग हो गई और भाजपा के सहयोग से सरकार बनाई।

भाजपा कभी 100 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई
1980 में बनी भाजपा ने बिहार में पहला विधानसभा चुनाव भी इसी साल लड़ा। इस चुनाव में 246 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से 21 ही जीत सके थे। उसके बाद से अब तक भाजपा यहां 9 चुनाव लड़ चुकी है, लेकिन कभी भी 100 से ज्यादा सीटें नहीं जीत सकी है।

भाजपा ने बिहार में अब तक सबसे ज्यादा 91 सीटें 2010 के चुनाव में जीती थीं। बिहार में भाजपा सरकार में सहयोगी जरूर है, लेकिन कभी अकेले दम पर सरकार नहीं बना सकी है। यहां उसने जदयू से गठबंधन कर रखा है।2015 में जदयू से भाजपा से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हो गई थी। इसका नतीजा ये हुआ कि भाजपा की सीटें घट गईं और वो सिर्फ 53 सीटें ही जीत सकी। हालांकि, बाद में जुलाई 2017 में नीतीश कुमार भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बने।



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bihar assembly election 2020 performance of national parties and state parties in bihar election


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74 साल के ट्रम्प के लिए संक्रमण से उबरने के बाद भी कैम्पेन में हिस्सा लेना आसान नहीं होगा; जरूरत पड़ने पर वाइस प्रेसिडेंट माइक पेन्स संभालेंगे कामकाज

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और पत्नी मेलानिया कोरोना पॉजिटिव पाए जा चुके हैं। चुनाव में पांच हफ्ते से भी कम वक्त बचा है। लिहाजा, ट्रम्प के लिए यह मुश्किल दौर है। सवाल ये है कि क्या वे संक्रमण से उबरने के बाद भी कैम्पेन में हिस्सा ले पाएंगे। अगर वे कामकाज नहीं कर पाए तो फिलहाल उनकी जिम्मेदारी उप राष्ट्रपति माइक पेन्स निभाएंगे। अगर पेन्स भी पॉजिटिव हो जाते हैं तो सीनेट स्पीकर नैंसी पेलोसी यह जिम्मेदारी निभाएंगी।

लापरवाह रवैये का खामियाजा
ट्रम्प कई महीनों या कहें महामारी की शुरुआत से ही इसकी गंभीरता को नजरअंदाज करते दिखे। इसे मामूली फ्लू बताते रहे। मास्क को भी गंभीरता से नहीं लिया। जबकि, अमेरिका में मौतों का आंकड़ा 2 लाख से ज्यादा हो गया है। वे कहते रहे- वायरस जल्द ही गायब हो जाएगा, इस पर काबू पा लिया गया है। वैज्ञानिकों का मजाक भी उड़ाया। जिस दिन राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। 1 हजार लोगों को साथ ले गए। रैलियों में हजारों लोग जुटे। न राष्ट्रपति ने मास्क लगाया और न समर्थकों ने।

मेडिकल एडवाइज भी नहीं मानी
ट्रम्प जिंदगी के 80वें दशक में हैं। रिसर्च बताते हैं कि 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को संक्रमण का खतरा बहुत ज्यादा है। अमेरिका में जिन लोगों की संक्रमण से मौत हुई, उनमें हर 10 में से 8 व्यक्ति 65 साल या इससे ज्यादा उम्र के थे। ट्रम्प अपनी सेहत के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं देते। नवंबर में वे वॉशिंगटन के मिलिट्री मेडिकल सेंटर गए थे। तब कुछ कयास लगाए गए थे। उनकी लंबाई 1.9 मीटर (6.2 फीट) है। लेकिन, इसके लिहाज से वजन (110.2 किलोग्राम) ज्यादा है। हाई कोलेस्ट्रॉल की दिक्कत है। लेकिन, उनके डॉक्टर राष्ट्रपति की सेहत ‘बेहतरीन’ बताते हैं।

व्हाइट हाउस ने क्या किया
व्हाइट हाउस का ज्यादातर स्टाफ वर्क फ्रॉम होम है। जो ऑफिस आ रहे हैं, उन्हें मास्क लगाना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होता है। ट्रम्प और पेन्स के अलावा जो उनके संपर्क में रोज आते हैं, उनका भी डेली बेसिस पर टेस्ट किया जाता है। लेकिन, पिछले कुछ दिनों से व्हाइट हाउस का ज्यादातर स्टाफ मास्क नहीं लगा रहा। कम से कम जब राष्ट्रपति मौजूद हैं तो वे मास्क बिल्कुल नहीं लगाते, क्योंकि ट्रम्प खुद भी यही करते हैं। अब अगर, ट्रम्प में संक्रमण के लक्षण पाए जाते हैं या वे ज्यादा बीमार होते हैं तो हालात खराब हो जाएंगे।

संविधान क्या कहता है
अमेरिकी संविधान के 25वें संशोधन के मुताबिक, अगर राष्ट्रपति की सेहत ठीक न हो और इस वजह से वे काम न कर पा रहे हैं तो अस्थायी तौर पर उनके पावर्स यानी शक्तियां वाइस प्रेसिडेंट को ट्रांसफर हो जाती हैं। पहली बार यह कानून 1967 में बना। 1985 में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की सर्जरी हुई। उन्होंने कुछ वक्त के लिए अपने पावर्स तब के उप राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को सौंप दिए। जब बुश राष्ट्रपति बने तो 2002 और 2007 में दो बार उन्होंने अपनी शक्तियां उप राष्ट्रपति डिक चेनी को सौंपीं।

व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैली मैकेनी के मुताबिक, हम राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति दोनों को स्वस्थ रखेंगे। फिलहाल, वे स्वस्थ ही हैं और ऐसे ही रहेंगे। अमेरिकी इतिहास में सिर्फ दो राष्ट्रपति पद पर रहते हुए गंभीर रूप से बीमार हुए। पहले थे- जॉर्ज वॉशिंगटन। उन्हें इन्फ्लूएंजा हुआ था। दूसरे वुडरो विल्स। उन्हें भी यही बीमारी हुई थी।

चार राष्ट्रपति मारे गए
अमेरिकी इतिहास में चार राष्ट्रपति ऐसे हुए, जिनका निधन पद पर रहते हुए और प्राकृतिक कारणों से हुआ। ये थे- विलिमय हेनरी हैरिसन, जेचेरी टेलर, वॉरेन जी. हार्डिंग और फ्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट। अब्राहम लिंकन, जेम्स ए. गारफील्ड, विलियम मैक्केनले और जॉन एफ कैनेडी की कार्यकाल के दौरान हत्या कर दी गई थी। हालांकि, रीगन (1981) के बाद ट्रम्प पहले ऐसे राष्ट्रपति हैं जो पद पर रहते हुए इतनी गंभीर बीमारी से पीड़ित हुए।



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Donald Trump COVID-19 Positive: Here's Latest News and Updates on US Election 2020 From The New York Times.


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हिमाचल में 10 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी दुनिया की सबसे लंबी अटल टनल का मोदी आज उद्घाटन करेंगे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को हिमाचल के रोहतांग में अटल टनल का उद्घाटन करेंगे। करीब 10 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी यह दुनिया की सबसे लंबी टनल है। इसकी लंबाई 9.2 किमी है। इसे बनाने में 10 साल का वक्त लगा। इससे मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम हो जाएगी और चार घंटे की बचत होगी। इसका नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखा गया है।

इससे क्या फायदा होगा?

  • टनल से मनाली और लाहुल-स्पीति घाटी 12 महीने जुड़े रहेंगे। भारी बर्फबारी की वजह से इस घाटी का छह महीने तक संपर्क टूट जाता है।
  • टनल का साउथ पोर्टल मनाली से 25 किमी दूर स्थित है। वहीं, नार्थ पोर्टल लाहुल घाटी में सिसु के तेलिंग गांव के नजदीक है।
इस टनल का निर्माण 2010 में शुरू हुआ था।

10.5 मीटर चौड़ी, 10 मीटर ऊंची टनल की खासियत

  • 2958 करोड़ रुपए खर्च आया।
  • 14508 मीट्रिक स्टील लगा।
  • 2,37,596 मीट्रिक सीमेंट का इस्तेमाल हुआ।
  • 14 लाख घन मीटर चट्टानों की खुदाई हुई।
  • 500 मीटर की दूरी पर इमरजेंसी एक्जिट।
  • 150 मीटर की दूरी पर 4-जी की सुविधा।

पहले यह रिकॉर्ड चीन के नाम था
अटल टनल से पहले यह रिकॉर्ड चीन के तिब्बत में बनी सुरंग के नाम था। यह ल्हासा और न्यिंग्ची के बीच 400 किमी लंबे हाईवे पर बनी है। इसकी लंबाई 5.7 किमी है। इसे मिला माउंटेन पर बनाया गया है। इसकी ऊंचाई 4750 मीटर यानी 15583 फीट है। इसे बनाने में 38500 करोड़ रुपए खर्च हुए। यह 2019 में शुरू हुई।

24 दिसंबर 2019 को इस टनल का नाम दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर अटल टनल रखने का फैसला किया था।


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PM Modi Narendra Modi inaugurates worlds longest high-altitude Atal Tunnel


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