शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

ICMR के पूर्व वैज्ञानिक बोले- एंटीजन टेस्ट के नतीजे 40% तक गलत, इससे संक्रमित पकड़ में नहीं आते

देश में कोरोना संक्रमण एक बार फिर तेज होने लगा है। इसे देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को मुख्यमंत्रियों से कहा कि एंटीजन टेस्ट के बजाय RT-PCR टेस्ट ज्यादा कराएं। जबकि, दूसरी ओर ऐसा बिलकुल भी नहीं हो रहा। बिहार-तेलंगाना जैसे राज्य 80% से ज्यादा एंटीजन टेस्ट कर रहे हैं।

वहीं, दिल्ली-महाराष्ट्र-तमिलनाडु जैसे राज्यों में नए केस ज्यादा बढ़ रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह क्या है, इस बारे में भास्कर ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. रमण गंगाखेड़कर से बात की। उन्होंने कहा कि एंटीजन टेस्ट की रिपोर्ट 40% तक गलत आती है यानी 10 में से 4 संक्रमित इससे पकड़ में नहीं आते। यही सबसे बड़ा खतरा है। इसलिए लक्षण वाले मरीजों का RT-PCR टेस्ट जरूरी है, लेकिन ज्यादातर राज्य ऐसा नहीं कर रहे। डॉ. गंगाखेड़कर से बातचीत के प्रमुख अंश...

सवाल: आईसीएमआर ने टेस्ट को लेकर प्रोटोकॉल बनाया है। क्या राज्य इसका पालन कर रहे हैं?
जवाब:
मुझे नहीं लगता कि प्रोटोकॉल का पालन हो रहा है। सभी राज्य एंटीजन टेस्ट बढ़ा रहे हैं, जबकि यह स्पष्ट है कि यदि एंटीजन टेस्ट में लक्षण वाले मरीज की रिपोर्ट निगेटिव आए तो बिना देरी किए उसका आरटीपीसीआर हो। लेकिन, इसका सख्ती से पालन नहीं हो रहा है। यह समाज के लिए ठीक नहीं है।

सवाल: इससे क्या और कितना खतरा है?
जवाब:
बीमारी के बावजूद जांच रिपोर्ट निगेटिव आती है तो उस व्यक्ति से बीमारी फैलती रहेगी। यह बेहद खतरनाक है।

सवाल: टेस्ट को लेकर डब्ल्यूएचओ क्या मानता है?
जवाब:
आरटीपीसीआर और एंटीजन, दोनों तरह के टेस्ट होने चाहिए। दोनों का उद्देश्य अलग-अलग है। लक्षण दिखने पर तुरंत टेस्ट करना है तो एंटीजन टेस्ट होना चाहिए। क्योंकि, आरटीपीसीआर की रिपोर्ट आने में 24 घंटे लग जाते हैं। हालांकि, आईसीएमआर ने यह भी स्पष्ट कर रखा है कि जितना संभव हो, आरटीपीसीआर टेस्ट ही कराने चाहिए।

सवाल: कुछ राज्यों में प्रोटोकॉल का पालन नहीं हो रहा। लेकिन, वहां मरीज भी कम हैं। ऐसा कैसे संभव है?
जवाब:
इसे समझने का आसान तरीका है। यदि किसी राज्य में पर्याप्त संख्या में जांच हो रही है और वहां अस्पताल के बिस्तर खाली हैं तो इसका मतलब है कि सरकार जो कह रही है, वह सही है। रिकॉर्ड में मरीज कम हैं, लेकिन बेड भरे हुए हैं तो इसका मतलब है वहां टेस्ट कम हो रहे हैं।

सवाल: कुछ राज्यों में दूसरी लहर आ चुकी, कहीं 5 महीने बाद भी नहीं आई, क्या यह तार्किक है?
जवाब:
हमारा देश बहुत बड़ा है। यहां हर जगह एक जैसी स्थिति नहीं हो सकती। इसलिए पीक कहीं पहले आएगा तो कहीं बाद में। जहां अभी मरीज कम हैं, वहां मरीज आने वाले समय में बढ़ेंगे। चाहे वह बिहार हो या यूपी।

सवाल: कंपनियों ने दावा किया है कि उनकी वैक्सीन 95% तक प्रभावी है। लेकिन, कोई भी कंपनी यह नहीं बता रही कि वैक्सीन कितने समय तक इम्यूनिटी देगी। ऐसा क्यों है?
जवाब:
वैक्सीन कितने समय तक इम्यूनिटी देगी, यह पहले कहना मुश्किल है। क्योंकि, यह बीमारी अभी 10 महीने ही पुरानी है। वैक्सीन की अवधि को समझने के लिए दो से तीन साल का समय जरूरी होता है। इसलिए कोई भी कंपनी अभी यह दावा नहीं कर रही कि वैक्सीन कितने समय तक असरदार रहेगी।

सवाल: कोरोना से मौत की दर अब पहले की तुलना में कम हुई है, इसका क्या कारण मानते हैं?
जवाब:
शुरुआती दौर में बीमारी और इलाज की समझ नहीं थी। न तो पीपीई किट्स थीं और न ही पर्याप्त संख्या में एन-95 मास्क। क्या ट्रीटमेंट देना है, यह भी मालूम नहीं था। मरीज भर्ती होता था तो सीधे वेंटिलेटर की बात होती थी और उसे वेंटिलेटर सपोर्ट दे दिया जाता था। मौत की एक वजह यह भी थी। समय के साथ अनुभव से पता चला कि ऑक्सीजन सपोर्ट और मरीज को पेट के बल लिटाने से ही बेहतर इलाज संभव है।



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डॉ. रमण गंगाखेड़कर ने कहा कि वैक्सीन की अवधि को समझने के लिए दो से तीन साल का समय जरूरी होता है। इसलिए कोई भी कंपनी अभी यह दावा नहीं कर रही कि वैक्सीन कितने समय तक असरदार रहेगी। (फाइल फोटो)


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‘अल्पसंख्यकों के विरुद्ध युद्ध’ की बात न करें, ऐसी बातें सिर्फ बहुसंख्यकों के खिलाफ चल रहे गंभीर युद्ध से ध्यान हटाती हैं

मुझे हाल ही में मेरे एक मित्र प्रभु गुप्तारा से रोचक ईमेल मिला। उन्होंने मुझसे और अन्य उदारवादी नेताओं से यह गुहार लगाई कि हम ‘अल्पसंख्यकों’ को नागरिक स्वतंत्रताएं और मानव अधिकार न मिलने की बीन बजाना बंद कर दें। प्रभु ईसाई हैं और वे हिन्दुत्व के तर्क की पुरातन शैली का सहारा नहीं ले रहे हैं।

इसके विपरीत, उन्होंने कहा कि हमारी मौजूदा सत्तारूढ़ सरकार के बड़े हिस्से द्वारा किया जा रहा हमला ‘अल्पसंख्यकों के विरुद्ध है, यह सही है, लेकिन उसकी भीड़ हमारे बहुसंख्यकों के खिलाफ भी लगातार युद्ध लड़ रही है।’

वे पूछते हैं, ‘क्या केवल अल्पसंख्यक ही स्वतंत्र भारत की प्रगति के मुख्य लाभार्थी हैं, या ये वास्तव में बहुसंख्यक हैं? हमारे संविधान के लाभ, हमारे सुप्रीम कोर्ट, शिक्षा तंत्र, अर्थव्यवस्था के लाभ स्वाभाविक रूप से बहुसंख्यकों तक ही पहुंचते हैं और केवल अल्पसंख्यकों तक नहीं।’

जब अधिकार देने से इनकार किया जाता है, असहमति को हल्के में लिया जाता है, सामाजिक कार्यकर्ता जेल में डाल दिए जाते हैं या उनकी आजादी सीमित कर दी जाती है, तब अल्पसंख्यकों की तुलना में बहुसंख्यक कहीं ज्यादा पीड़ित होते हैं।

अगर अल्पसंख्यक हमारे देशभर में फैली सांप्रदायिक कट्टरता का शिकार होते हैं, तो बहुसंख्यक भी शिकार होते हैं। जैसा प्रभु ने आगे कहा, ‘क्या गौरी लंकेश अल्पसंख्यक थीं? नरेंद्र दाभोलकर? एस.आर. दारापुरी? जज लोया? स्वानी अग्निवेश?’

जब बॉलीवुड पर हमला होता है, तब क्या इसके सिनेमाई उत्पादों को बहुसंख्यक प्यार नहीं देते हैं? अगर जेएनयू के खिलाफ नफरत फैलती है या सख्ती होती है, तो क्या इस संस्थान को बहुसंख्यकों द्वारा संरक्षण नहीं दिया जाता है?

प्रभु का तर्क यह है कि आज की प्रतिगामी और विभाजनकारी नीतियों के आलोचकों को ‘अल्पसंख्यक’ शब्द का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए, जब ‘युद्ध हमारे बहुसंख्यकों के नाम पर लड़ा जा रहा है, जबकि यह बहुसंख्यकों के विरुद्ध है।’

मैं उनका तर्क स्वीकार करता हूं, लेकिन मैं बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के मूल विचार पर ही सवाल उठाता रहा हूं। मेरी हाल ही में आई नई किताब, ‘द बैटल ऑफ बिलॉन्गिंग’, जो राष्ट्रवाद, देशभक्ति और भारतीय होने के मायने पर आधारित कृति है, उसमें मैं इस कथन पर वापस आया हूं कि भारत में हम सभी अल्पसंख्यक हैं।

किताब में मैंने इस तथ्य पर बात की है कि कई लोग ‘बहुसंख्यक समुदाय’ शब्द को उछालने में आनंद पाते हैं, लेकिन अक्सर ही यह बहुत भ्रामक होता है। लिंग, जाति, भाषा और इनके अलावा भी बहुत कुछ ऐसा है, जो अक्सर खुद को ‘बहुसंख्यक समुदाय’ का सदस्य बताने वाले व्यक्ति को तुरंत ही अल्पसंख्यक बना देता है।

अगर माइकल इग्नाटीफ के मशहूर कथन को उल्टा कर कहूं तो, ‘हम खून यानी संबंध से कहीं ज्यादा, संबद्धता वाले देश हैं।’ बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक की हमारी धारणाएं चुनावी राजनीति का नतीजा हैं क्योंकि चुनावी बहुमत पाने की इच्छा ही ज्यादातर आज के राजनीतिक बहुसंख्यकवाद को चलाती है।

पुराना फॉर्मूला यह था कि आप अल्पसंख्यकों के गठबंधन से बहुमत बनाते थे। अब सत्तारूढ़ पार्टी हिन्दू पहचान का शोर करती है, जो जाति, धर्म, भाषा व लिंग के अंतरों को सम्मिलित कर देती है और ऐसा कर उन्होंने बहुसंख्यक आधार की इच्छा के चलते अल्पसंख्यकों को हाशिये पर ला दिया।

हिन्दुत्व नेताओं ने कोशिश की है कि वे ‘गौरवान्वित हिन्दू’ होने को भारतीय होने से ज्यादा महत्वपूर्ण बना दें। फिर भी, जैसा मैंने तर्क दिया है, भारतीय राष्ट्रवाद अब एक दुर्लभ प्राणी है। यह देश अपने नागरिकों पर कोई संकीर्ण अनुरूपता लागू नहीं करता। आप बहुत कुछ हो सकते हैं और एक चीज भी। आप अच्छा मुस्लिम, अच्छे केरल निवासी और अच्छे भारतीय, यह सब एक साथ हो सकते हैं। यही तो हमारे बहुलवाद की शक्ति है।

बहुलवाद मुख्यरूप से विभिन्न समुदायों के सह-अस्तित्व के बारे में है, जो कि केवल एक रोमांटिक विचार नहीं है, बल्कि सदियों से हमारे रहने का तरीका है और शायद इस देश की सबसे बड़ी ताकत है। बहुसंख्यकवाद को भ्रम है कि वह बहुसंख्यकों की बात करता है, जबकि वह हमें बांटता है।

वह समरूपता चाहता है और इसलिए एकता को कमजोर करता है। मतभेदों का दबाने की बजाय उन्हें स्वीकार कर एकता बनाए रखना ज्यादा आसान है। तो, मैं प्रभु से सहमत हूं कि हमें समावेशी राष्ट्रीयता को प्रोत्साहित करने के लिए बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक की बात करना बंद कर देना चाहिए।

हमें इस पर फिर जोर देना चाहिए कि पहचान का ऐसा तुच्छ राजनीतिकरण वास्तव में बहुसंख्यकों को एक करने की जगह बांटता है। और मेरे जैसे नेताओं को मतदाताओं को याद दिलाना चाहिए कि उनकी सांप्रदायिक पहचान से कहीं ज्यादा जरूरी ऐसे मुद्दे हैं जो उनकी रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करते हैं।

आखिर में प्रभु के ही शब्दों में कहूं तो अब हम ‘अल्पसंख्यकों के विरुद्ध युद्ध’ की बात न करें, क्योंकि ऐसी बातें सिर्फ हमारे बहुसंख्यकों के खिलाफ चल रहे कहीं ज्यादा गंभीर युद्ध से ध्यान हटाती हैं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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शशि थरूर, पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद


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नए होनहार युवा, राजनीति या व्यवस्था को बारीकी से परख रहे हैं, यह स्वागत योग्य है, चूंकि उनका भविष्य, इससे जुड़ा है

एक चुनाव, हमारी व्यवस्था में नियमित, न थमने वाला सिलसिला है। बिहार में चुनाव हुए। बंगाल में आसन्न हैं। अन्य राज्य क्रम में हैं। पर साथ ही विधायिका, नई-नई चुनौतियों का समाधान ढूंढने वाली श्रेष्ठ संस्था बने, यह अपेक्षा भी जनमानस में बढ़ी है। इस बदलाव के दौर में जन आकांक्षाओं के प्रति लगातार संवेदनशील रहना जन प्रतिनिधियों के लिए चुनौती है।

मैं 2014 में सांसद बना। बिहार के एक कॉलेज में आमंत्रण था। वहां एक मेधावी छात्र ने मुझे अपनी एक जिज्ञासा बताई। उसने पूछा, ‘हमने लोकतांत्रिक प्रक्रिया ‘वेस्ट मिनिस्टर मॉडल’ (लोकतंत्र का पश्चिमी मॉडल) अपनाया है। ब्रिटेन, अमेरिका, वगैरह की तरह। ‘वेस्ट मिनिस्टर मॉडल’, डेकोरम, प्रोसिजर, डिसेंसी और डिग्निटी से चलता है। हमारे यहां विधायिका क्या इस तरह चलती है? क्या आप सब इस मर्यादा से बंधे हैं?’

अपनी इस जिज्ञासा के बाद उसने कहा कि हमारे देश की समृद्ध परंपरा से आप माननीय सदस्य वाकिफ होंगे ही? हमारे यहां शास्त्रार्थ की परंपरा रही है। यह प्रायः अलिखित, मर्यादित तथा समृद्ध परंपरा से बंधी व्यवस्था है। शास्त्रार्थ या संवाद की कसौटी तय हुई, जिन्होंने मानव, समाज, व्यवस्था, जीवन के मकसद, दर्शन को समझने व विकास में मदद की। राज्य-संचालन में इसकी भूमिका रही। जीवन-दर्शन तय करने के काम इन मंचों पर हुए।

उन्होंने बौद्ध पीठों, जहां त्रिपिटिक रचे गए, की याद दिलाई। दुनिया के पहले लोकतांत्रिक गणराज्य लिच्छिवियों का उल्लेख किया। भगवान बुद्ध ने कहा भी है कि लिच्छवी सभाओं में आम सहमति से सभी निर्णय करते हैं। जब तक उनकी यह समृद्ध परंपरा बनी रहेगी, उनके राज्य का कोई नुकसान नहीं कर सकता। जनक के दरबार में अष्टावक्र की बातें, महाभारत के कुरूवंश में कृष्ण के संवाद याद दिलाए।

मिथिला में शंकराचार्य-मंडन मिश्र के बीच हुए शास्त्रार्थ की चर्चा की। कहा कि ईसा सदी की शुरुआत में जैन परंपरा में, महावीर और बुद्ध के समय भारत में शास्त्रार्थ, संवाद और डिबेट का जो स्तर था, उसमें आत्मानुशासन था। जहां धर्म, दर्शन, नैतिक जीवन व शासन के महत्वपूर्ण पक्षों पर श्रेष्ठ शास्त्रार्थ होते थे। उनके मैनुअल बने थे। 150 एडी के गौतम अक्षपाद के न्यायसूत्र में तीन तरह के संवाद का उल्लेख है।

पहला, श्रेष्ठ संवाद वह है, जिसमें तार्किक बातें की जाएं, साक्ष्य के साथ। फिर कहा संविधान में विधायिका गठन के मूल में यह अपेक्षा है कि इसमें देश की समस्याओं की जड़ में हम ईमानदारी से, आपसी संवाद से हल ढूंढ सकें। क्या विधायिका के सदस्य के रूप में यह काम करते हैं? फिर बताया, विधायिका में बैठे लोगों के आचरण का असर क्या होता है? फिर कहा, गीता को धार्मिक ग्रंथ मानें या न मानें, पर उसमें उद्धृत कथनों से दुनिया सीखती है। उसमें एक श्लोक है-

यद्यदाचरति श्रेष्ठ स्तत्तदेवतरो जनः
स यत्प्रमाणः कुरूते लोकस्तदनुवर्त ते।

यानी, महान (लोकतंत्र में बड़े पदों पर आसीन रहनुमा) लोग जो भी करते हैं, वही चीज दूसरे अपनाते हैं। वह जीवन में जो भी मानक (स्टैंडर्ड) अपनाते हैं, सामान्य लोग उसी रास्ते पर चलते हैं। ईमानदार आत्मस्वीकारोक्ति है कि यह सवाल अब भी यक्ष प्रश्न के रूप में सामने रहता है। महाभारत में भी उल्लेख है, ‘महाजनो येन गताः सो पंथा’। यानी समाज के अगुआ लोग जिस रास्ते जाते हैं, अन्य लोग वही राह अपनाते हैं।

लोक कहावत भी है, यथा राजा, तथा प्रजा। इतिहास में उल्लेख है कि प्राचीन भारत में बड़े पैमाने पर औपचारिक संवाद-डिबेट होते थे। राज्याश्रय में भी ऐसे आयोजन होते थे। धार्मिक, दार्शनिक, नैतिक संहिता गढ़ने या तय करने के लिए। वाद्यविद्या के अनेक मैनुअल बने थे।

इन्हीं संवादों या डिबेटों से तर्कशास्त्र की भारतीय परंपरा या शोध-मनन की धारा समृद्ध हुई। वृहद्कारण्य उपनिषद में राजा जनक का उल्लेख है। वे न सिर्फ ऐसे आयोजन कराते थे या राजाश्रय देते थे, बल्कि हिस्सा भी लेते थे। इसमें ऋषि-संत व महिलाएं भी भाग लेती थीं।

उपनिषदकाल में ऐसे आयोजनों के उल्लेख हैं। दूसरी-तीसरी शताब्दी तक तो बौद्ध भिक्षुओं के सफल वाद-विवाद आयोजन के लिए प्रशिक्षण होता था। विभिन्न समूहों ने अपने-अपने विचार-विमर्श के लिए मैनुअल बनाए। मूल रूप से संस्कृत में तैयार इस तरह कि नियम पुस्तिकाएं अब उपलब्ध नहीं हैं।

पर पुराने बौद्ध साहित्य, चीनी स्रोतों, पाली ग्रंथों में इनके उल्लेख हैं। मसलन चरक संहिता में वाद-विवाद के सिद्धांतों की चर्चा है। न्यायसूत्र में ‘वादे-वादे जयते तत्व बोध’ यानी सत्य का अनुसंधान वाद-विवाद, संवाद से ही होता है, मान्यता है। सांसद, विधायक से लेकर पंचायत प्रतिनिधियों के लिए अब अपनी भूमिका को इस संदर्भ में परखने का भी अवसर है।

अब पुराने मानस से हम चलें, तो तेजी से बदल रहे समाज-लोक चेतना में हमारी साख कैसे बेहतर होगी? जनता की अपेक्षाएं कई स्तरों पर राजनीति-नेतृत्व से लगातार बढ़ रही हैं। नए होनहार युवा, राजनीति या व्यवस्था को बारीकी से परख रहे हैं। यह स्वागत योग्य है, चूंकि उनका भविष्य, इससे जुड़ा है। राजनीतिक दलों या विधायिका से जुड़े लोगों को इस बदलती लोक चेतना के प्रति सजग रहना होगा।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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हरिवंश, राज्यसभा के उपसभापति


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राजस्थान के भीलवाड़ा में बिछ गई ओले की चादर, हिमाचल में 227 सड़कें बंद, बिजली के 701 ट्रांसफार्मर ठप

पश्चिमी विक्षाेभ के चलते प्रदेश में एकाएक बदले माैसम के मिजाज ने सर्दी बढ़ा दी है, जिसके बाद कई राज्यों में कड़ाके की ठंड पड़ने लगी है।

जयपुर. गुरुवार रात राजस्थान की राजधानी जयपुर सहित एक दर्जन से अधिक शहराें में जमकर बारिश हुई। बारिश के बाद चली जबरदस्त शीतलहर से एकाएक ठिठुरन बढ़ा गई। कई शहराें में दिन का तापमान 2 से 3 डिग्री तक लुढ़क गया। बूंदी, सवाई माधाेपुर और चित्ताैडगढ़ में 17 मिमी तक बारिश हुई। मौसम विभाग ने 3-4 दिन शीतलहर की संभावना जताई है।

इससे दिन और रात का तापमान 2 से 4 डिग्री

मावठ हाेने से रबी की फसल काे सबसे ज्यादा फायदा हाेगा। वहीं माैसम विभाग ने अागे माैसम शुष्क रहने के साथ ही अगले 3-4 दिन जबरदस्त शीतलहर चलने की संभावना जताई है, इससे दिन व रात का तापमान 2 से 4 डिग्री सेल्सियस तक नीचे जाने का अनुमान है।

शिमला. बर्फबारी के कारण प्रदेश में जन जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। बर्फबारी से दो नेशनल हाईवे समेत 227 सड़कों पर वाहनों की आवाजाही ठप है। सड़कों के अवरुद्ध होने से परिवहन व्यवस्था चरमरा गई है। बर्फबारी के कारण प्रदेशभर में 701 विद्युत ट्रांसफार्मर ठप हो गए हैं। शिमला के डाेडरा क्वार और राेहडू सब डिविजन में सबसे ज्यादा 567, सिरमौर में 80, कुल्लू में 29 और चम्बा में 15 ट्रांसफार्मर ठप हैं। इससे संबंधित क्षेत्राें में लाेगाें काे बिजली की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

तस्वीर हिमाचल के कुफरी की है।

कुल्लू जिला में आईपीएच की 41 स्कीमें बर्फबारी के कारण प्रभावित हुई हैं। अधिकतम तापमान में 6 डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट दर्ज की गई है। शिमला का अधिकतम तापमान 8 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया है, वहीं न्यूनतम तापमान 2 डिग्री सेल्सियस रिकाॅर्ड किया गया है। सुंदरनगर का अधिकतम तापमान 12 और न्यूनतम 8, भूंतर का अधिकतम तापमान 6.7 और न्यूनतम 5, धर्मशाला का अधिकतम तापमान 9.2 और न्यूनतम 5.2, साेलन का 17 और 6.6, कुफरी का 3.5 और 0.7 डिग्री सेल्सियस रिकाॅर्ड किया गया है।

छत्तीसगढ़ में छह डिग्री तक गिरा पारा, जगदलपुर में दिन का पारा 22.80

रायपुर. छत्तीसगढ़ में गुरुवार को ठंडी हवा चली। इसके असर से दिन के तापमान में तीन से छह डिग्री की गिरावट आई। रायपुर में जहां दिन का अधिकतम तापमान 26 डिग्री रहा, वहीं जगदलपुर में पारा 22.8 डिग्री पर आ गया। रायपुर में तापमान सामान्य से तीन व जगदलपुर में छह डिग्री कम रहा। जगदलपुर व पेंड्रारोड में हल्की बारिश हुई। शुक्रवार को प्रदेश के सभी संभागों में हल्की बारिश हो सकती है। शनिवार को बादल के छंटने से मौसम खुल जाएगा और ठंड हल्की बढ़ेगी।

तस्वीर राजधानी रायपुर के माना के पास की है। यह तस्वीर सुबह 9 बजे की है, जिस समय बादल छाए हुए थे, सूरज के दर्शन तक नहीं हुए थे और ठिठुरन थी।

रायपुर में रात का तापमान 18.4 डिग्री पर पहुंच गया, जो सामान्य से तीन डिग्री ज्यादा था। बादल के कारण प्रदेशभर में रात के तापमान में वृद्धि हुई। रायपुर में भी जब सुबह लोगों की नींद खुली तो आसमान पर बादल छाए थे। ठंडी हवा भी चल रही थी। दिनभर ठंडी हवा चलने से ठंड का भी अहसास हुआ।



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भीलवाड़ा में कई जगह ओलाें के साथ बरसात भी हुई। यहां नीबू के आकार के ओले गिरे और जम तक गए।


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अहमदाबाद में लगी उम्मीद की वैक्सीन; पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर किसानों ने की आंदोलन की बुआई और कश्मीर में आतंकी हमला

नमस्कार!

प्रधानमंत्री मोदी ने संविधान दिवस के बहाने एक बार फिर वन नेशन-वन इलेक्शन के प्लान पर जोर देने की बात कही। वहीं, तमिलनाडु में निवार तूफान ने न सिर्फ 101 कच्चे घरों को नुकसान पहुंचाया बल्कि 3 लोगों की जान भी ले ली। बहरहाल, शुरू करते हैं न्यूज ब्रीफ।

सबसे पहले देखते हैं, बाजार क्या कह रहा है…

  • BSE का मार्केट कैप 173.51 लाख करोड़ रुपए रहा। करीब 59% कंपनियों के शेयरों में बढ़त रही।
  • 2,940 कंपनियों के शेयरों में ट्रेडिंग हुई। इसमें 1,732 कंपनियों के शेयर बढ़े और 1,022 कंपनियों के शेयर गिरे।

आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर

  • कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की बैठक आज नई दिल्ली में होगी।
  • राजस्थान के 5 जिलों में आज से 3 दिन तक के लिए शीतलहर का अलर्ट है।
  • कंगना रनौत और BMC वाले मामले पर बॉम्बे हाईकोर्ट आज फैसला सुना सकती है।
  • कोरोना के बीच ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई टीम इंडिया आज सिडनी में 3 वनडे की सीरीज का पहला मैच खेलेगी।

देश-विदेश

किसानों पर पुलिस ने वॉटर कैनन चलाई

किसान बिलों के विरोध में पंजाब-हरियाणा के किसान 26 से 28 नवंबर तक ‘दिल्ली मार्च’ निकाल रहे हैं। हरियाणा बॉर्डर पर गुरुवार को हिंसक प्रदर्शन हुआ। प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेडिंग नदी में फेंक दी और पथराव किया। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर पानी की बौछार की और आंसू गैस के गोले दागे।

अहमदाबाद में वैक्सीन का ट्रायल शुरू

देश में भारत बायोटेक कंपनी की वैक्सीन ट्रायल के लिए अहमदाबाद के सोला सिविल अस्पताल पहुंची। 1000 लोगों पर यहां ट्रायल शुरू होगा। टेस्टिंग के लिए वॉलेंटियर्स को हर महीने वैक्सीन की 2 खुराक देकर निगरानी की जाएगी। ट्रायल के लिए यहां स्टूडेंट्स से लेकर बिजनेसमैन तक पहुंच गए हैं।

कश्मीर में आतंकी हमला, 2 जवान शहीद

कश्मीर के HMT इलाके में गुरुवार को आतंकवादियों ने सुरक्षा बलों पर हमला किया। इसमें दो जवान शहीद हो गए। यह हमला मुंबई हमले की 12वीं बरसी पर किया गया। जम्मू-कश्मीर में 2 दिन बाद यानी 28 नवंबर से जिला विकास परिषद के चुनाव भी होने हैं। हमले के बाद आतंकी कार से भाग गए।

देश में कोरोना के एक दिन में 7.5 हजार एक्टिव केस बढ़े

देश में बीते 24 घंटे में 44 हजार 699 नए केस आए, 36 हजार 582 मरीज ठीक हुए और 518 की मौत हो गई। इस तरह इलाज करा रहे मरीजों की संख्या, यानी एक्टिव केस में 7586 की बढ़ोतरी हो गई। यह 19 अगस्त के बाद सबसे ज्यादा है। तब 8847 मरीज बढ़े थे।

जर्मनी में 20 दिसंबर तक लॉकडाउन बढ़ाया गया

कोरोना के चलते जर्मनी ने 20 दिसंबर तक के लिए आंशिक लॉकडाउन बढ़ा दिया है। चांसलर एंजेला मर्केल ने कहा कि अगर कोरोना के नए मामलों में कमी नहीं आई है, तो हम पाबंदियों को जनवरी तक बढ़ा सकते हैं। जर्मनी में अब तक कुल 9.83 लाख संक्रमित हो चुके हैं जबकि 15 हजार मौतें हो चुकी हैं।

भास्कर डेटा स्टोरी

सबसे ज्यादा गांजा फूंकने में दिल्लीवाले तीसरे नंबर पर

बॉलीवुड में ड्रग्स कनेक्शन सामने आने के बाद से ही गांजा सुर्खियों में है। NCB ने कॉमेडियन भारती सिंह और उनके पति हर्ष लिंबाचिया को गांजा रखने के आरोप में ही गिरफ्तार किया था। बाद में दोनों को जमानत मिली। मगर आंकड़ों के अनुसार, दुनिया के टॉप 10 शहरों में गांजा फूंकने के मामले में दिल्लीवाले तीसरे और मुंबई वाले 6वें नंबर पर हैं।

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पॉजिटिव खबर

लोगों ने पुरानी किताबें-फर्नीचर डोनेट कर लाइब्रेरी बनाई

अहमदाबाद के दाणीलीमडा इलाके में शाहीन फाउंडेशन नाम की संस्था ने एक लाइब्रेरी शुरू की है। खास बात यह है कि इसमें एक भी रुपया खर्च नहीं हुआ। पुराने फर्नीचर और किताबों से इसकी शुरुआत की गई थी। आज यहां 2 हजार से ज्यादा किताबें और 10 कंप्यूटर हैं। स्टूडेंट्स यहां मुफ्त में पढ़ाई कर सकते हैं।

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सुर्खियों में और क्या है...

  • देश में कुल लिस्टेड करीबन 4 हजार कंपनियों ने जुलाई से सितंबर की दूसरी तिमाही में 1.5 लाख करोड़ रुपए का लाभ हासिल किया है।
  • महान फुटबॉलर डिएगो मैराडोना का 60 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन हो गया। दो हफ्ते पहले ही उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली थी।
  • दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय को कोरोना संक्रमण की पुष्टि होने के बाद मैक्स हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। उनकी हालत स्थिर है।


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कोरोना ने उड़ा दी नींद, अब तो ले आओ वैक्सीन



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Corona blows peace and sleep, bring vaccine from anywhere


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बुढ़ापे में पति-पत्नी को एक-दूसरे की देखभाल बच्चों की तरह करनी चाहिए

कहानी- महात्मा गांधी के जीवन की एक घटना है। वे उस समय विदेश गए थे। उनके साथ पत्नी कस्तूरबा भी थीं। वहां गांधीजी के सम्मान में एक कार्यक्रम रखा गया था। जो व्यक्ति कार्यक्रम का संचालन कर रहा था, वह ये बात जानता था कि गुजराती में मां जैसी महिला को 'बा' कहा जाता है।

मंच संचालक ने घोषणा की, 'गांधीजी के साथ उनकी मां भी आई हुई हैं, हम उनका भी सम्मान करते हैं।'

वहां मौजूद लोग ये सुनकर घबरा गए। तुरंत मंच संचालक को एक चिट्ठी भेजी गई कि आपने गांधीजी की पत्नी को उनकी मां कह दिया है, भूल का सुधार करें। चिट्ठी देखकर संचालक भी घबरा गया।

फिर गांधीजी के संबोधन की बारी आई। गांधीजी भी मजाकिया स्वभाव के थे। उन्होंने कहा, 'मंच संचालक भाई ने भले ही संबोधन में गलती की है, लेकिन उनकी बात बिल्कुल सच है। उन्होंने बा को मेरी मां बताया है। सच तो ये है कि इस उम्र में कस्तूरबा मेरी देखभाल ठीक इसी तरह करती हैं, जैसे कोई मां अपने बच्चे की देखभाल करती हैं।' इसके बाद कार्यक्रम में गांधीजी ने इस रिश्ते की व्याख्या बहुत अच्छे तरीके से की थी।

सीख- गांधीजी से जुड़ी ये घटना हमें संदेश दे रही है कि अगर पति-पत्नी बूढ़े हो गए हैं तो बच्चों की तरह ही एक-दूसरे का ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि, शरीर थक चुका है, दोनों ने एकसाथ लंबी यात्रा की है, जैसे गांधीजी के साथ कस्तूरबा ने की थी। इससे दोनों के बीच प्रेम और समर्पण बना रहता है। यही सुखी दांपत्य का जीवन मंत्र है।



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डबल लॉकडाउन के बाद अब प्री-वेडिंग शूट के लिए कपल्स और बर्फबारी का मजा लेने कश्मीर आ रहे टूरिस्ट्स

कश्मीर में टूरिज्म धीरे धीरे पटरी पर लौट रहा है। जैसे जैसे सर्दी बढ़ रही है, वैसे ही यहां आने वाले सैलानियों की संख्या भी बढ़ रही है। पिछले हफ्ते ही यहां बर्फबारी शुरू हुई है और टूरिस्ट आने शुरू हो गए हैं। यह कश्मीर के लिए अच्छी खबर है। क्योंकि, टूरिज्म यहां की इकोनॉमी की बैकबोन है।

चंडीगढ़ की रहने वाली शालिनी और उसके मंगेतर सोनू ने प्री-वेडिंग शूट के लिए कश्मीर का चुनाव किया। दोनों का मानना है कि इससे खूबसूरत जगह उनके लिए कोई और नहीं हो सकती। दोनों मंगलवार को डल झील पहुंचे और वहां पर फोटो शूट किया। शालिनी कहती हैं, 'मुझे कश्मीर का मौसम बेहद पसंद है। डल झील देखना मेरा ड्रीम था, जो पूरा हो गया।

फोटोग्राफी के लिए कश्मीर से बेहतर कोई जगह नहीं

शालिनी के साथ 8 लोग और कश्मीर आए हैं। कोरोना के खतरे को लेकर उनका कहना है कि जिंदगी को वायरस के डर से बांधा नहीं जा सकता। फोटो शूट के लिए उनके साथ आए राजकुमार कहते हैं- एक फोटोग्राफर के पॉइंट ऑफ व्यू से कश्मीर से बेहतर जगह नहीं हो सकती। हमारे लिए पूरे साल में दो महीने ही कमाई होती है। पिछले साल लॉकडाउन के चलते बहुत नुकसान उठाना पड़ा।

प्री एंड पोस्ट-वेडिंग शूट के लिए ज्यादातर कपल कश्मीर आना पसंद करते हैं।

सालभर से बंद था टूरिज्म से जुड़ा बिजनेस

पिछले साल 5 अगस्त को आर्टिकल 370 हटाने से पहले सरकार ने बाहरी लोगों के लिए कश्मीर छोड़ने की एडवाइजरी जारी की थी। उस समय 5.2 लाख से ज्यादा मजदूर और स्टूडेंट यहां से चले गए थे। इससे कश्मीर की इकोनॉमी को बहुत नुकसान उठाना पड़ा। आर्टिकल 370 हटने के बाद कश्मीर में महीनों तक फोन और इंटरनेट सर्विस बंद रही। सरकार ने तीन महीने बाद एडवाइजरी वापस ले ली, लेकिन टूरिस्ट वापस नहीं लौटे।

कोरोना के चलते घाटी में डबल लॉकडाउन रहा

मोहम्मद इस्माइल उन सैकड़ों लोगों में शामिल हैं, जो डल झील में शिकारा चलाने का काम करते हैं। ये लोग अभी भी खाली बैठे हैं। वे कहते हैं- मैं बचपन से शिकारा चला रहा हूं, लेकिन इतना बुरा दौर पहले कभी नहीं देखा। पिछले साल अगस्त में कश्मीर छोड़ने वाले सैलानियों के फोटो उन्हें परेशान करते हैं। उम्मीद थी कि जल्द ही सब-कुछ वापस पटरी पर लौटेगा, लेकिन तभी मार्च में कोरोना के चलते लॉकडाउन लग गया। इस्माइल जैसे हजारों लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया।

कश्मीर में पिछले हफ्ते ही बर्फबारी शुरू हुई है, इसके साथ ही सैलानियों का यहां पहुंचना शुरू हो गया है।

सरकारी मदद का ऐलान नाकाफी रहा

जम्मू-कश्मीर सरकार ने शिकारा चलाने वालों के लिए तीन महीने तक हजार रुपए देने की घोषणा की थी। इस्माइल कहते हैं- एक हजार रु में क्या होने वाला है। हम पूरा पैकेज चाहते हैं, जिससे हमारी जरूरतें पूरी हो सकें। शिकारा चलाने वालों के साथ हजारों की संख्या में कैब ड्राइवर और टूर ऑपरेटर भी दोहरे लॉकडाउन की मार झेल रहे हैं।

45 साल के रियाज अहमद ने अमरनाथ यात्रा को देखते हुए एक टूरिस्ट कैब खरीदी थी। उन्होंने जतन करके 10 लाख रुपए जुटाए थे। बैंक से 9 लाख रुपए का लोन भी लिया। उन्हें उम्मीद थी कि यात्रा शुरू होने के बाद उनका बिजनेस चलेगा और अच्छी कमाई होगी। लेकिन लगातार दो लॉकडाउन से उनके मंसूबों पर पानी फिर गया।

बेरोजगार हो गए श्रीनगर के 200 टैक्सी ड्राइवर

रियाज कहते हैं- कमाई ठप होने से मैं 20 हजार रुपए की EMI नहीं भर सका। यह मेरे लिए सबसे बुरा दौर रहा। पहले हर दिन 2500 रुपए के करीब कमाई हो जाती थी। लेकिन, 5 अगस्त 2019 के बाद एक रुपए की भी आमदनी नहीं हुई। श्रीनगर के बुलेवार्ड रोड पर 200 से ज्यादा टैक्सी चलती हैं। इनमें से ज्यादातर 5 अगस्त के बाद से बिना काम के ही हैं। एक टैक्सी ड्राइवर के मुताबिक यहां की टैक्सियों से करीब 5 लाख रुपए का रेवेन्यू जेनरेट होता था, जो अब शून्य है।

राजू एक कैब ड्राइवर हैं। वह कहते हैं- एक साल से ज्यादा वक्त बाद हम टूरिस्ट को लेकर कश्मीर आए हैं। अच्छा लग रहा है कि अब सैलानी धीरे-धीरे यहां आ रहे हैं। हम चाहते हैं कि बिजनेस वापस बहाल हो। कोरोना से बचने के लिए वैक्सीन जरूरी है। लॉकडाउन कोई सॉल्यूशन नहीं है।

पिछले साल आर्टिकल 370 के हटने और फिर कोरोना के चलते कश्मीर के टूरिज्म को काफी नुकसान हुआ है।

इकोनॉमी को 17 हजार 800 करोड़ का नुकसान

कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (KCCI) की पिछले साल दिसंबर में जारी रिपोर्ट के मुताबिक, कश्मीर की इकोनॉमी को साल 2019 में अगस्त से अक्टूबर के बीच 17 हजार 800 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ । करीब 4.9 लाख नौकरियां छूटी हैं। टूरिज्म सेक्टर में ही 9 हजार 191 करोड़ रु का नुकसान हुआ और 1 लाख 40 हजार 500 लोगों की नौकरी गई है।

लोगों की मदद कर रहे स्थानीय संगठन

हाउसबोट वेलफेयर ट्रस्ट, एक चैरिटी है जो करीब 600 नाव चलाने वालों को हर महीने मदद करती है। दो हाउस बोट्स और एक गेस्ट हाउस के मालिक तारिक पल्टू चैरिटी के लिए वॉलंटियर के तौर पर काम करते हैं। वे बताते हैं कि हमारे ट्रस्ट से जुड़े लोग कश्मीर के बाहर और दूसरे देशों में सेटल्ड हैं। हम लोग रात में फूड पैकेट्स बांटते थे।

तारिक कहते हैं कि कश्मीर टूरिस्ट बिजनेस से जुड़े लोगों के लिए अच्छी खबर है कि अब लोग यहां आ रहे हैं। हालांकि, कोरोना के बढ़ते मामलों से डर भी है कि फिर से इस रफ्तार पर ब्रेक न लग जाए। सरकार को कश्मीर में टूरिज्म बहाल करने के लिए पहल करनी चाहिए। अवेयरनेस प्रोग्राम शुरू करने चाहिए, ताकि लोगों को लगे कि कश्मीर उनके लिए सेफ है।



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We want tourism back here, vaccine is necessary to avoid corona, lockdown is not a solution


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पुरानी किताबों और फर्नीचर से बनाई लाइब्रेरी, यहां किताबों के साथ इंटरनेट भी मुफ्त मिलता है

अहमदाबाद के दाणीलीमडा इलाके में शाहीन फाउंडेशन ने एक लाइब्रेरी की शुरुआत की है। इस लाइब्रेरी की खास बात यह है कि इसे बनाने में एक रुपया भी खर्च नहीं हुआ है। पुराने फर्नीचर और किताबों से इसकी शुरुआत हुई थी। आज यहां 2 हजार से ज्यादा किताबें और 10 कंप्यूटर हैं। कोई भी स्टूडेंट यहां मुफ्त में अपने काम की किताबें पढ़ सकता है। ऑनलाइन पढ़ाई के लिए यहां इंटरनेट की मुफ्त सुविधा भी दी जाती है।

यह लाइब्रेरी पिछले दो सालों से चल रही है। शुरुआत में एक एनजीओ ने स्टूडेंट्स की मदद के लिए लोगों से पुरानी किताबें और फर्नीचर मांगा था। लोगों ने भी दान देना शुरु किया। किसी ने अपनी पुरानी किताबें दान में दीं, तो किसी ने घर का पुराना फर्नीचर। लाइब्रेरी में आर्किटेक्चर, साइंस, नीट, एलएलबी, कॉमर्स सहित कांप्टीटिव एग्जाम्स की 2 हजार से ज्यादा किताबें हैं।

स्टूडेंट्स लाइब्रेरी में बैठकर किताबें पढ़ सकते हैं और जरूरत होने पर घर भी ले जा सकते हैं।

कंप्यूटर भी दान में मिले
शाहीन फाउंडेशन के ट्रस्टी हमीद मेमण ने भास्कर से बातचीत में कहा- मैं फ्री क्लासेज चलाता हूं। जरूरतमंद स्टूडेंट्स की मदद के लिए ही यह लाइब्रेरी शुरू की थी। हायर एजुकेशन की किताबें महंगी होती हैं। कई बच्चों के लिए इन्हें खरीदना मुश्किल होता है। स्टूडेंट्स की यह मुश्किल आसान करने के लिए आसपास के लोगों से किताबें मांगी। लाइब्रेरी के लिए कुछ फर्नीचर भी लोगों ने ही दिया। यहां मौजूद 10 कंप्यूटर भी दान में ही मिले हैं। इसमें किसी ने सीपीयू दिया, तो किसी ने मॉनिटर। इन्हीं कंप्यूटर से अब स्टूडेंट्स ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं।

पुस्तकों के साथ शाहीन फाउंडेशन स्टूडेंट्स को कंप्यूटर और फ्री इंटरनेट की सुविधा भी देता है।

लायब्रेरी से पढ़ाई कर कई स्टूडेंट्स ग्रेजुएट हुए
स्टूडेंट्स चाहें, तो यहां बैठकर आराम से किताबें पढ़ सकते हैं। जरूरत होने पर किताबें घर भी ले जा सकते हैं। यहां साइंस, इंजीनियरिंग, मेडिकल, नीट, एलएलबी की अच्छी और महंगी किताबें मौजूद हैं। अभी तक 50 से ज्यादा बच्चे यहां से पढ़कर ग्रेजुएट हो चुके हैं। रेगुलर पढ़ाई के लिए आने वाली दो लड़कियां कांस्टेबल भी बन चुकी हैं। यहां से ग्रेजुएट होने वाले स्टूडेंट और यहां आने वाले लोग लाइब्रेरी के लिए मदद करते हैं। वे अब कई लेखकों की किताबें दान कर रहे हैं। अभी कोरोना के चलते बच्चों को इकट्ठा होने की इजाजत नहीं है। स्टूडेंट्स यहां से किताबें घर ले जा सकते हैं।

लाइब्रेरी में आर्किटेक्चर, साइंस, नीट, एलएलबी, कॉमर्स समेत 2 हजार से ज्यादा किताबें हैं।

स्टूडेंट्स के लिए फ्री इंटरनेट
किताबों के साथ शाहीन फाउंडेशन स्टूडेंट्स को फ्री इंटरनेट भी दिया जा रहा है। इंटरनेट से स्टूडेंट्स ऑनलाइन पढ़ाई कर सकते हैं। लोग अब की-बोर्ड, माउस, स्पीकर, यूपीएस जैसी चीजें भी दान कर रहे हैं। इससे कई गरीब और मिडिल क्लास के स्टूडेंट्स को फायदा मिल रहा है, जो अपने दम पर इन चीजों को खरीद नहीं सकते।



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अहमदाबाद के दाणीलीमडा इलाके की लाइब्रेरी में किताबें तो मुफ्त में मिलती ही हैं, यहां इंटरनेट भी फ्री दिया जाता है।


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हम रोजाना 12 घंटे की शिफ्ट कर रहे हैं, 4 लोगों के साथ रूम शेयर करना पड़ता है, बिल भी अब हमें ही देना पड़ेगा

दिल्ली में कोरोनावायरस को लेकर स्थिति गंभीर होती जा रही है। पूरे देश में कोरोना संक्रमण के सबसे अधिक मामले दिल्ली में ही सामने आ रहे हैं। गुरुवार को दिल्ली में 6224 नए मामले सामने आए जबकि कुल 61381 टेस्ट किए गए थे। सौ से ज्यादा मौतें भी दर्ज की गईं। इस समय दिल्ली में 38 हजार से अधिक सक्रिय मामले हैं जबकि अब तक 8621 मौतें कोरोना संक्रमण की वजह से हो चुकी हैं।

दिल्ली के छावला इलाके में राधा स्वामी सत्संग ब्यास के कैंपस में दुनिया का सबसे बड़ा कोविड केंद्र संचालित किया जा रहा है। सरदार पटेल कोविड केयर सेंटर की कमान भारत के अर्धसैनिक बल आईटीबीपी के हाथों में हैं। दिल्ली में कोरोना के बढ़ते दबाव को देखते हुए यहां एक हजार अतिरिक्त बेड और तैयार किए जा रहे हैं। आईटीबीपी के महानिदेशक एसएस देशवाल ने कहा है कि सरदार पटेल कोविड केयर केंद्र की क्षमता को दो हजार बेड से बढ़ाकर तीन हजार बेड की जा रही है।

सरदार पटेल कोविड केयर सेंटर के कमांडिंग ऑफिसर एपी जोशी के मुताबिक, अभी यहां पांच सौ संक्रमित ही भर्ती हैं जबकि ऑक्सीजन सपोर्ट वाले पांच सौ ऑक्सीजन बेड लगाए जा रहे हैं। मरीजों की कम संख्या के सवाल पर वो कहते हैं, 'यह सेंटर गर्मियों के लिहाज से तैयार किया गया था। उसी हिसाब से सुविधाएं तैयार की गईं थीं। अब यहां सर्दियों के इंतेजाम किए जा रहे हैं।' दिल्ली में बढ़ते कोविड के मामले ने स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बढ़ा दिया है। इसके साथ ही काम करने वाले कर्मचारियों पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है।

दिल्ली के छावला इलाके में राधा स्वामी सत्संग ब्यास के कैंपस में दुनिया का सबसे बड़ा कोविड केंद्र संचालित किया जा रहा है।

आईटीबीपी कैंप में तैनात अधिकतर डॉक्टर, नर्स और अन्य मेडिकल स्टाफ केंद्रीय बलों से जुड़े हैं और बाहरी शहरों से यहां आए हैं। अब तक ये कैंप के पास ही होटलों में रह रहे थे और इनके किराए का भुगतान सरकार की ओर से किया जा रहा था। लेकिन एक नए आदेश के तहत 15 नवंबर के बाद से स्टाफ से कहा गया है कि वो होटल के बिलों का भुगतान स्वयं करें।

इस आदेश की वजह से कोविड सेंटर में काम कर रहे स्टाफ तनाव में हैं। एक हेड कांस्टेबल जो मेडिकल नर्स के तौर पर काम कर रही हैं, वो कहती हैं, 'हम रोजाना बारह घंटे से अधिक की शिफ्ट कर रहे हैं। इसके साथ अब होटल के बिल देने का भी दबाव है। अब तक हमारा बिल सरकार दे रही थी। इससे हमें मानसिक तनाव भी हो रहा है।'

वो कहती हैं, 'जिस होटल में हमें रखा गया है वहां एक कमरे का बिल 1750 रुपए प्रतिदिन है, हमें चार लोगों को एक रूम में रहना पड़ रहा है। तब भी ये हमारे रोजाना के बजट से बाहर है।'

एपी जोशी कहते हैं, "अब तक स्टाफ के रहने के बिलों का भुगतान सरकार की तरफ से हो रहा था। बीच में कुछ दिक्कत आई थी। स्टाफ को चिंता करने की जरूरत नहीं है। उन्हें पूरे पैसों का भुगतान कर दिया जाएगा। लेकिन मेडिकल स्टाफ का कहना है कि उन्हें जिन होटलों में रखा जा रहा है उनका किराया उनके यात्रा भत्ते से अधिक है ऐसे में उन्हें अपनी जेब से पैसे देने पड़ेंगे।"

सरदार पटेल कोविड केयर सेंटर में कैमिस्ट के तौर पर तैनात आईटीबीपी के एक कर्मचारी कहते हैं, '15 नवंबर के बाद से हमसे बिल खुद देने के लिए कहा गया है। हमने सस्ते होटल में रहना चाहा तो हमें डिसीप्लीनरी एक्शन का डर दिखाकर रोक दिया गया। ये महंगे होटल हमारे बजट से बाहर हैं। अभी हमें अपनी जेब से पैसा देना पड़ रहा है। बाद में जब हमें यात्रा भत्ते से पैसा मिलेगा भी तो पूरा नहीं मिल पाएगा क्योंकि होटल का रेट हमारे ग्रेड से ज्यादा है।'

तस्वीर तब की है जब कोविड केयर सेंटर का हाल जानने दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल यहां पहुंचे थे।

वो कहते हैं, 'अगर होटल के पैसे हमें ही देने हैं तो हमें ये तय करने दिया जाए कि किस होटल में रहना है। क्योंकि अभी जिन होटलों में हमें रखा जा रहा है वो हमारे टीए-डीए क्लास से ऊपर हैं। हमसे ये भी कहा गया था कि बिल चुकाने के लिए हमारे खाते में 24 नवंबर तक पचास हजार रुपए दिए जाएंगे लेकिन वो सिर्फ अधिकारियों को दिए गए हैं, इंस्पेक्टर रैंक तक के किसी कर्मचारी को नहीं दिए गए हैं।'

सितंबर में जब मैंने यहां से रिपोर्ट की थी तो यहां स्टाफ में जीरो इंफेक्शन था। यानी यहां तैनात मेडिकल स्टाफ और आईटीबीपी के अधिकारी संक्रमण से दूर थे। अब यहां स्थितियां बदली हैं। यहां के कमांडिंग आफिस प्रशांत मिश्र समेत कई अधिकारी संक्रमित होने के बाद क्वारैंटाइन में हैं।

कोविड सेंटर में तैनात एक अन्य कर्मचारी कहते हैं, 'पहले परिस्थितियां हमारे लिए बेहतर थीं तो हम भी पूरी सेवा कर पा रहे थे। कमांडिंग ऑफिसर के पॉजिटिव होकर क्वारैंटाइन में जाने के बाद से यहां हालात बदले हैं। अब स्टाफ भी तनाव में हैं।' सरदार पटेल कोविड केयर सेंटर के संचालन में केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम सहयोग कर रहे हैं। यहां राधा स्वामी सत्संग ब्यास की ओर से मरीजों और स्टाफ को खाना दिया जा रहा है।

लेकिन मेडिकल स्टाफ का आरोप है कि अब उन्हें मुफ्त मिलने वाले खाने के बजाए होटल का खाना खाने के लिए कहा जा रहा है जिसका बिल उन्हें भुगतना पड़ता है। मेडिकल नर्स कहती हैं, 'यूं तो हम फ्रंटलाइन पर हैं और कोरोना वॉरियर हैं लेकिन हमें दी गईं सुविधाएं अब वापस ले ली गई हैं। इससे हमारा मनोबल टूट रहा है।'

वहीं कैमिस्ट कहते हैं, 'शुरुआत में हम बहुत हौसले से काम कर रहे थे। लेकिन अब पहले जैसी सुविधाएं ही हमें नहीं मिल रही हैं। हमें तीन महीने के लिए बुलाया गया था। अब ना ही हमें वापस जाने दिया जा रहा है और ना ही छुट्टी दी जा रही है। ये सब नहीं हैं तो कम से कम सुविधाएं तो बेहतर हो।' वहीं एपी जोशी कहते हैं, 'जो भी समस्याएं आ रही हैं उनका समाधान कर दिया गया है। किसी कर्मचारी को अपने पास से कोई पैसा खर्च करना नहीं होगा। सभी का पूरा पैसा दे दिया जाएगा।'



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सरदार पटेल कोविड केयर सेंटर की कमान भारत के अर्धसैनिक बल आईटीबीपी के हाथों में हैं।


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ठंड में ट्रिप का है प्लान तो बेहतर तैयारी जरूरी, जानें 5 बेस्ट डेस्टिनेशन कौन-सी और कैसी हो तैयारी?

सर्दियों का मौसम आ चुका है। इस मौसम में लोग घूमना ज्यादा पसंद करते हैं। लेकिन इस बार कोरोना भी है। इसलिए इस दौरान ट्रैवल कर रहे हैं तो आपकी तैयारियां और भी अच्छी होनी चाहिए। जैसे- वेदर कंडीशन और कोविड स्टेटस। ऐसी जगहों पर जानें से बचें, जहां कोरोना का संक्रमण ज्यादा है। वेदर स्टेटस आपकी तैयारियों के लिए जरूरी है। बेहतर प्लानिंग के बाद ही आप विंटर ट्रिप के लिए निकलें।

लेकिन सवाल यह कि कोरोना के दौर में देश में किन जगहों पर ट्रिप के लिए जाया जा सकता है। तो उसके लिए हमने 5 जगहों की तलाश की है। इन जगहों पर कोरोना का असर कम है। साथ ही सर्दियों में घूमने के लिहाज से यहां की रेटिंग 5 में से 4 है। इन जगहों में औली उत्तराखंड, गुलमर्ग जम्मू कश्मीर, शिलॉन्ग मेघालय, दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल और तवांग अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं।

बेहतर प्लानिंग जरूरी

ट्रैवल से पहले एक ठोस प्लान जरूरी है। यह आपको ट्रैवल के दौरान डाइवर्ट नहीं होने देता। आपको यह नहीं सोचना पड़ता है कि कहां जाना है और कहां नहीं? बेहतर प्लानिंग से न केवल आपका समय सही ढंग से यूटिलाइज होगा बल्कि पैसे भी कम खर्च होंगे। जबकि बगैर प्लानिंग के ट्रैवल पर निकलने से हम ज्यादा समय खर्च करके भी जगहों को सही ढंग से एक्सप्लोर नहीं कर पाते और कई बार आउट ऑफ बजट भी हो जाते हैं।

ठंड में टूर और ट्रैवल के लिए टॉप 5 डेस्टिनेशन

1- औली, उत्तराखंड

उत्तराखंड के चमोली में हिमालय की पहाड़ियों पर स्थित औली स्की के लिए एक बेहतर डेस्टिनेशन है। यह समुद्र तल से 2500 मी० (8200 फीट) से 3050 मी० (10,010 फीट) तक की ऊंचाई पर स्थित है। औली जोशीमठ से सड़क या रोप-वे के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। यहां से नंदादेवी, कमेट और दूनागिरी जैसे पहाड़ों की चोटियों का शानदार व्यू मिलता है। आमतौर पर जनवरी से मार्च तक औली की ढलानों पर लगभग 3 मी. गहरी बर्फ की चादर बिछी होती है।

2- गुलमर्ग, जम्मू कश्मीर

गुलमर्ग जम्मू कश्मीर के बारामूला जिले में धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला एक खूबसूरत हिल स्टेशन है। यह फूलों के प्रदेश के नाम से भी फेमस है। लगभग 2,730 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गुलमर्ग, की खोज 1927 में अंग्रेजों ने की थी। यह स्कीइंग का हब माना जाता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्कीइंग भी यहीं स्थित है। आप श्रीनगर तक फ्लाइट और उसके बाद बस या कैब से 13 किलोमीटर का सफर करके यहां पहुंच सकते हैं।

3- शिलॉन्ग, मेघालय

शिलॉन्ग मेघालय की राजधानी हैं। यह देश का पहला ऐसा हिल स्टेशन है, जहां चारों तरफ से जा सकते हैं। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई लगभग 1 हजार 491 मीटर और गुवाहाटी से शिलांग की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है। शिलॉन्ग हिल स्टेशन को होम ऑफ क्लाउड भी कहा जाता है।

शानदार पहाड़ियों के कारण इसे “स्कॉटलैंड ऑफ ईस्ट” भी कहा जाता है। यहां जाने के लिए सबसे पहले आपको फ्लाइट या ट्रेन से गुवाहाटी पहुंचना होगा। उसके बाद बस या कैब से 100 किलोमीटर सफर करके आप शिलॉन्ग पहुंच सकेंगे।

4- दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग का विलक्षण पर्वतीय स्थल, पन्ना ग्रीन टी प्लांटेशन के खंडों के साथ ढलुआ पहाड़ी रिज पर फैला हुआ फेमस टूरिस्ट साइट है। यहां सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी राजसी कंचनजंगा है। कंचनजंगा पर शानदार धूप और सूर्यास्त देखने के लिए टूरिस्ट पास की चोटियों पर जाते हैं। आप यहां पहुंचने के लिए न्यू जलपाईगुड़ी तक ट्रेन और बागडोगरा तक प्लेन का सहारा ले सकते हैं। न्यू जलपाईगुड़ी से 70 और बागडोगरा से 58 किलोमीटर बस या कैब का सफर कर दार्जलिंग पहुंच सकते हैं।

5- तवांग, अरुणाचल प्रदेश

अरुणाचल प्रदेश का विचित्र शहर तवांग, एक प्राचीन और अछूता टूरिस्ट प्लेस है, जहां प्रकृति के कई रंग देखने को मिलते हैं। यहां हरियाली वाले घने जंगल से उभरती बर्फीली चोटियां और उनके बीच से गुजरती बर्फीली दर्राएं हैं। बर्फ की चादर ओढ़े पर्वत श्रृंखलाओं के बीच सुरम्य बौद्ध मठों का शहर तवांग, आपको एक साहसी पर रोमांचकारी यात्रा का अनुभव कराता है। यहां पर पहुंचने के लिये आपको पर्वतों को लांघते हुए कई टेढ़े मेढ़े पहाड़ी रास्तों और घुमावदार दर्राओं से गुजरना पड़ता है। जिसमें एक सेला पास भी है, जो दुनिया के सबसे ऊंचा मोटरेबल रोड है।



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Plan for a trip in the cold, so better preparation is necessary, know which is the best destination and how should be the preparation?


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दुनिया में सबसे ज्यादा गांजा फूंकने के मामले में दिल्लीवाले तीसरे और मुंबईवाले 6वें नंबर पर

एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत से जुड़ा ड्रग एंगल बढ़ता ही जा रहा है। शनिवार को ही नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने कॉमेडियन भारती सिंह और उनके पति हर्ष लिंबाचिया को गांजा रखने के आरोप में गिरफ्तार किया था। हालांकि, सोमवार को दोनों को जमानत भी मिल गई। भारती और उनके पति के पास से NCB को 86.5 ग्राम गांजा मिला था। दोनों ने ड्रग्स लेने की बात भी कबूली थी।

गांजा फूंकने में दिल्ली और मुंबई दुनिया में टॉप-10 में

जर्मनी की मार्केट रिसर्च फर्म ABCD ने दुनिया के 120 देशों के 2018 के आंकड़ों के आधार पर एक लिस्ट बनाई थी। इस लिस्ट में बताया था कि दुनिया के किस शहर में सबसे ज्यादा गांजा फूंका जाता है। ABCD के मुताबिक, दुनियाभर में सबसे ज्यादा गांजा न्यूयॉर्क में फूंका जाता है। यहां के लोग हर साल 70 हजार 252 किलो गांजा फूंक जाते हैं। दूसरे नंबर पर पाकिस्तान का कराची शहर है, जहां सालभर में 38 हजार 56 किलो गांजे की खपत होती है।

दुनिया में सबसे ज्यादा गांजा फूंकने वाले टॉप-10 शहरों में दिल्ली और मुंबई भी आते हैं। दिल्लीवाले हर साल 34 हजार 708 किलो और मुंबईवाले 29 हजार 374 किलो गांजा फूंकते हैं।

5 साल में NCB ने 14.74 लाख किलो गांजा पकड़ा

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो यानी NCRB का आंकड़ा बताता है कि 2019 में 3.42 लाख किलो से ज्यादा गांजा पकड़ा है। इसमें 35 हजार 310 लोगों की गिरफ्तारी भी हुई, जिसमें 35 हजार 26 पुरुष और 284 महिलाएं थीं।

वहीं, पिछले 5 साल की बात करें तो 2015 से लेकर 2019 के बीच NCB ने 14.74 लाख किलो गांजा पकड़ा। इसमें सबसे ज्यादा 3.91 लाख किलो गांजा 2018 में पकड़ा गया था।

ड्रग्स भी दो तरह के होते हैं। एक होते हैं नारकोटिक यानी नींद लाने वाले ड्रग्स। जैसे- चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन, कोकिन, मॉर्फिन वगैरह। दूसरे होते हैं साइकोट्रोपिक यानी दिमाग पर असर डालने वाले ड्रग्स। जैसे- LSD, MDMA, अल्प्राजोलम, कैटामाइन जैसे ड्रग्स।

ड्रग्स की वजह से हर दिन देश में 23 लोग जान गंवा रहे

ड्रग्स की लत अगर एक बार लग जाए, तो उसे पीछा छुड़ा पाना बहुत मुश्किल होता है। अगर ये मिलता है तो भी जान जाने का खतरा है और नहीं मिलता तो भी। NCRB का डेटा बताता है कि देश में हर दिन ड्रग्स की वजह से 23 लोगों की जान जाती है। पिछले साल 7 हजार 860 लोगों ने ड्रग्स की वजह से सुसाइड कर लिया। इसके अलावा 704 लोग ड्रग के ओवरडोज की वजह से मारे गए। यानी, 2019 में 8 हजार 564 लोगों की जान ड्रग्स ने ले ली। इस हिसाब से हर दिन 23 लोग ड्रग्स की वजह से जान गंवा रहे हैं।



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Maharashtra Madhya Pradesh: Bharti Singh Haarsh Limbachiyaa Ganja Drug Case NCB Update | 14.74 Lakh Kg Of Weed Cannabis Caught In Five Years


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तेज बाउंसर ने ले ली थी 25 साल के क्रिकेटर की जान, पिच को भी कर दिया था रिटायर

आज कोहली ब्रिगेड सिडनी क्रिकेट ग्राउंड पर कोरोना वायरस के बाद पहली बार इंटरनेशनल वनडे मैच खेलने जा रही है। ऑस्ट्रेलिया की भी कोरोना वायरस के बाद यह पहली घरेलू सीरीज है। जिस ग्राउंड पर यह मैच खेला जाएगा, उसके नाम एक काला इतिहास जुड़ा है।

ऑस्ट्रेलिया का 25 साल का खिलाड़ी, जिसका 5 दिन बाद यानी 30 नवंबर को जन्मदिन था। नाम फिलिप ह्यूज। करियर बेहद छोटा, लेकिन शानदार। 26 फरवरी 2009 को अपने पहले टेस्ट मैच से डेब्यू करने वाले फिलिप ने 26 टेस्ट, 25 वनडे और एक टी-20 मैच खेला। टेस्ट में उनके नाम 3 शतक और 1535 रन हैं। वनडे में 4 शतक और 826 रन हैं। अचानक से फिलिप की बात क्यों?

घटना 25 नवंबर 2014 की है। सिडनी के ग्राउंड पर साउथ ऑस्ट्रेलिया और न्यू साउथ वेल्स के बीच मैच चल रहा था। क्रीज पर थे फिलिप और बॉलिंग कर रहे थे सीन एबॉट। एक तेज लेकिन शॉर्ट पिच गेंद सरसराती हुई आई, जो फिलिप के हैलमेट के पीछे सिर में जा लगी। वो वहीं गिर पड़े। दो दिन कोमा में रहने के बाद 27 नवंबर 2014 को सेंट विंसेंट अस्पताल में उनकी मौत हो गई। वह 'इंड्यूस्‍ड कोमा' में चले गए थे।

इस घटना ने पूरे क्रिकेट जगत को शॉक कर दिया था। बताते हैं कि खुद बॉलर सीन एबॉट इस घटना के बाद गहरे सदमे में थे। ह्यूज की मौत के बाद एबॉट भी हॉस्पिटल में थे और लगातार उनकी आंखों से आंसू आ रहे थे। इस घटना के बाद क्रिकेट जगत में बदलाव आया। बॉलर अपनी गेंदों से बल्लेबाजों को सीधा निशाना बनाने से बचने लगे।

बैटिंग हैलमेट को पहले से और मजबूत बनाया गया। उनमें सुधार किए गए। हैलमेट बनाने वाली कंपनियों ने हैलमेट में बदलाव किया। हैलमेट के बैक रिम के नीचे एक गार्ड जोड़ा गया। फिलिप की मौत के बाद सिडनी क्रिकेट ग्राउंड की सात नंबर पिच को भी रिटायर कर दिया गया।

भारत के 8वें प्रधानमंत्री वीपी सिंह का निधन हुआ था

तस्वीर 7 नवंबर 1990 की है। जब वीपी सिंह की सरकार 11 महीने बाद गिर गई थी। वह सदन में विश्वास मत साबित नहीं कर पाए थे।

27 नवंबर 2008 को भारत के 8वें प्रधानमंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह का निधन हुआ था। 31 दिसंबर 1984 को वीपी सिंह राजीव गांधी सरकार में वित्तमंत्री थे। उन्होंने विदेशी बैंक में भारतीयों के जमा धन की जांच कराने के लिए फेयर फैक्स की मदद ली थी।

इसी बीच साल 1987 में स्वीडन ने बोफोर्स तोप सौदे में दलाली की खबर प्रकाशित की। इसमें उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम था। संसद में हंगामा हुआ। इस मुद्दे को खुद वीपी सिंह भी उठाने से पीछे नहीं हटे। नतीजा यह हुआ कि वीपी सिंह को पार्टी से निष्कासित कर दिया।

इस घटना के बाद राजीव गांधी की सरकार भी ज्यादा नहीं चल सकी और गिर गई। 1989 के लोकसभा में बीजेपी और लेफ्ट की मदद से वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने। वीपी सिंह का जन्म 26 जून 1931 को यूपी के इलाहाबाद में हुआ था। 11 महीने तक वह भारत के प्रधानमंत्री रहे। 9 जून 1980 से 28 जून 1982 तक यूपी के मुख्यमंत्री रहे।

भारत और दुनिया में 27 नवंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैं:

  • 1795: पहले बांग्ला नाटक का मंचन हुआ था।
  • 1888: प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर का जन्म हुआ था।
  • 1895: अल्फ्रेड नोबेल ने नोबेल पुरस्कार की स्थापना की।
  • 1881: प्रसिद्ध इतिहासकार काशी प्रसाद जायसवाल का जन्म हुआ था।
  • 1907: प्रसिद्ध कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन का जन्म हुआ था।
  • 1940: मार्शल आर्ट के महानायक ब्रूस ली का जन्म हुआ था।
  • 1947: पेरिस में पुलिस ने कम्युनिस्ट समाचार-पत्र के कार्यालय पर कब्जा किया था।
  • 1966: उरुग्वे ने संविधान अपनाया था।
  • 2002: प्रसिद्ध प्रगतिशील कवि शिवमंगल सिंह सुमन का निधन हुआ था।


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