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सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में सामने आए ड्रग कनेक्शन में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की टीमें शुक्रवार सुबह रिया चक्रवर्ती के घर पहुंचीं। बताया जा रहा कि उनके घर की तलाशी ली जा रही है। उधर, सुशांत के पूर्व कर्मचारी सैमुअल मिरांडा के घर पर भी एनसीबी की टीम का सर्च ऑपरेशन चल रहा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एनसीबी की 2 टीमें सुबह 6:30 बजे रिया के घर पहुंची थीं। जांच एजेंसी के अफसर केपीएस मल्होत्रा ने बताया कि ड्रग्स मामले में यह जांच चल रही है।
ड्रग्स मामले में अब तक 5 लोगों की गिरफ्तारी
एनसीबी ने ड्रग्स कनेक्शन के मामले में अब तक 5 लोगों को गिरफ्तार किया है। गुरुवार को ड्रग्स कनेक्शन में गिरफ्तार जैद विलात्रा को कोर्ट में पेश किया गया था। एनसीबी ने कोर्ट से 10 दिन की रिमांड मांगी थी, लेकिन उन्हें 9 दिन की रिमांड मिली। जैद को एक सितंबर को मुंबई से गिरफ्तार किया था।
एनसीबी ने ड्रग्स के मामले में अब्दुल बासित परिहार को भी गिरफ्तार कर लिया है। एनसीबी के सूत्रों को मुताबिक, बासित और जैद का संबंध सुशांत की गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती के सहयोगी सैमुअल मिरांडा से भी रहा है।
कोरोनावायरस के बीच 6 महीने बाद ऑस्ट्रेलिया आज अपना पहला टी-20 खेलेगी। टीम को इंग्लैंड के खिलाफ उसी के घर में 3 टी-20 की सीरीज खेलना है। सभी साउथैंप्टन में खेले जाएंगे। पहला मैच 4, दूसरा 6 और तीसरा 8 सितंबर को होगा। इस साल टी-20 रैंकिंग में पहली बार टॉप पर पहुंचा ऑस्ट्रेलिया अब तक इंग्लैंड में कोई टी-20 सीरीज नहीं जीता है। उसके पास दूसरे स्थान पर काबिज इंग्लैंड को उसी के घर में हराने का मौका है।
दोनों देशों के बीच इंग्लैंड में अब तक 5 टी-20 सीरीज हुईं, जिसमें ऑस्ट्रेलिया 3 में हारा और 2 ड्रॉ रहीं। वहीं, दोनों टीमों के बीच 2 साल पहले हुआ पिछला टी-20 भी ऑस्ट्रेलिया हारा था। ऐसे में ऑस्ट्रेलियाई टीम के पास जीत से खाता खोलते हुए इंग्लैंड में पहली सीरीज जीत की ओर कदम बढ़ाने का मौका है।
दोनों टीमों के बीच इंग्लैंड में पहली बार 3 टी-20 की सीरीज
दोनों टीमें, इंग्लैंड में पहली बार 3 टी-20 की सीरीज खेलेंगी। इससे पहले 2013 में 2 टी-20 की सीरीज हुई थी। तब दोनों टीमों ने एक-एक मैच जीता था।
ऑस्ट्रेलिया ने पिछले 11 में से 9 टी-20 जीते
ऑस्ट्रेलिया इस साल पहली बार टी-20 रैंकिंग में शीर्ष पर पहुंचा है। उसने पिछले 11 में से 9 टी-20 जीते हैं। पिछले साल उसने श्रीलंका और पाकिस्तान को अपने घर में हराया था, जबकि इस साल फरवरी में दक्षिण अफ्रीका को उसी के घर में शिकस्त दी थी। उधर, इंग्लैंड ने मार्च 2019 से अब तक 15 टी-20 खेले हैं। इसमें उसे 9 में जीत, जबकि 4 में हार मिली। एक मुकाबला टाई, तो एक बेनतीजा रहा।
टॉप ऑर्डर में वॉर्नर की वापसी से ऑस्ट्रेलिया मजबूत
टॉप ऑर्डर में वॉर्नर की वापसी से ऑस्ट्रेलिया टीम की बल्लेबाजी बहुत मजबूत हुई है। पिछले डेढ़ साल के रिकॉर्ड पर नजर डालें, तो वॉर्नर ने 9 पारियों में 142 के स्ट्राइक रेट से 415 रन बनाए हैं। वॉर्नर के अलावा स्टीव स्मिथ भी टीम के लिए रन मशीन साबित हुए हैं। उन्होंने इस दौरान 6 पारी में 147 से ज्यादा की स्ट्राइक रेट से 250 रन बनाए। वहीं, कप्तान एरॉन फिंच ने भी 11 पारियों में 154 की स्ट्राइक रेट से 326 रन बनाए।
इंग्लैंड के मोर्गन और बेंटन पर नजर
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टी-20 सीरीज में इंग्लैंड को अपने कप्तान इयोन मोर्गन और टॉम बेंटन से उम्मीद होगी। पाकिस्तान के खिलाफ पिछली सीरीज में यही दो बल्लेबाज इंग्लैंड के टॉप स्कोरर रहे। बेंटन ने 3 मैच में 137 रन बनाए, जबकि मोर्गन ने 90 रन।
हेड टू हेड
दोनों देशों के बीच अब तक 16 टी-20 हुए हैं। इसमें ऑस्ट्रेलिया ने 9 और इंग्लैंड ने 6 जीते हैं। एक मैच बेनतीजा रहा। इंग्लैंड में भी ऑस्ट्रेलिया का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। ऑस्ट्रेलिया ने यहां 6 टी-20 खेले हैं। इसमें उसे सिर्फ एक में जीत मिली है, जबकि 4 मैच हारा है। एक मुकाबला बेनतीजा रहा। इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया के बीच अब तक 8 टी-20 सीरीज हुई है। इसमें से तीन इंग्लैंड और दो ऑस्ट्रेलिया जीता है, जबकि तीन सीरीज ड्रॉ रही।
पिच और मौसम रिपोर्ट: साउथैंप्टन में मैच के दौरान बादल छाए रहेंगे। तापमान 9 से 20 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। पिच से बल्लेबाजों के लिए अच्छी रह सकती है। यहां टॉस जीतने वाली टीम पहले बल्लेबाजी करना पसंद करेगी। इस मैदान पर अब तक 5 टी-20 मैच हुए हैं। इसमें तीन बार पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती है।
दुनिया में कोरोनावायरस के अब तक 2 करोड़ 64 लाख 58 हजार 155 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें 1 करोड़ 86 लाख 51 हजार 057 मरीज ठीक हो चुके हैं, जबकि 8 लाख 72 हजार 507 लोगों की मौत हो चुकी है। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं। ब्राजील में संक्रमितों का आंकड़ा अब 40 लाख से ज्यादा हो चुका है। हेल्थ मिनिस्ट्री ने भी इसकी पुष्टि की है। दूसरी तरफ, अमेरिका ने अक्टूबर में वैक्सीन लाने की तैयारी की है। इसके लिए राज्यों को प्लान तैयार करने के आदेश जारी किए गए हैं।
ब्राजील: हर दिन बढ़ता संक्रमितों का आंकड़ा
ब्राजील अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा संक्रमण प्रभावित देश है। यहां मरीजों का आंकड़ा गुरुवार रात 40 लाख के पार हो गया। 24 घंटे के दौरान यहां कुल 43 हजार 773 नए मामले सामने आए। इसके साथ ही 834 लोगों की मौत भी हो गई। सरकार ने कहा है कि हेल्थ मिनिस्ट्री संक्रमण रोकने की पूरी कोशिश कर रही है। हेल्थ मिनिस्ट्री ने अपने बयान में माना कि स्लम एरिया में किए गए उपाय बहुत कारगर साबित नहीं हुए हैं। इनकी वजह से संक्रमितों का आंकड़ा बढ़ रहा है।
फ्रांस: यहां संक्रमण का दूसरा दौर
फ्रांस यूरोपीय देशों में सबसे ज्यादा दूसरी लहर से परेशान है। यहां गुरुवार को लगातार दूसरे दिन 7 हजार से ज्यादा मामले सामने आए। हेल्थ मिनिस्ट्री के सूत्रों ने कहा- हमारा फोकस अब उन क्लस्टर्स पर है, जहां पहले और दूसरे दौर में सबसे ज्यादा संक्रमित पाए गए हैं। इन इलाकों की पहचान की जा रही है। सरकार इन इलाकों में आवाजाही पर कुछ प्रतिबंध लगा सकती है। हालांकि, फ्रांस में कई जगह लोग सरकार के प्रतिबंधों का विरोध कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि लॉकडाउन से संक्रमण रोकने में मदद नहीं मिली।
पैटिन्सन पॉजिटिव
हॉलीवुड अभिनेता रॉबर्ट पैटिन्सन भी कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं। इसके पहले द रॉक के नाम से मशहूर ड्वेन पॉजिटिव हुए थे। कल उन्होंने खुद इसकी जानकारी दी थी। रॉबर्ट के पॉजिटिव होने की वजह से फिलहाल, बैटमैन का प्रोडक्शन रोक दिया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि अभिनेता को काफी थकान और शरीर में दर्द महसूस हो रहा था। इसके बाद उनका टेस्ट किया गया। इसकी रिपोर्ट गुरुवार रात पॉजिटिव आई।
अमेरिका : वैक्सीन की तैयारी
अमेरिकी नागरिकों के लिए खुशखबरी है। यहां हेल्थ मिनिस्ट्री ने अक्टूबर में वैक्सीन लॉन्च करने की तैयारी कर ली है। संघीय अधिकारियों की तरफ से एक आदेश जारी किया गया है। इसमें राज्यों से कहा गया है कि वे अपने यहां वैक्सीनेशन की तैयारियां पूरी कर लें। आदेश के मुताबिक, सबसे पहले वैक्सीन उन लोगों को लगाया जाएगा जिनको कोरोना संक्रमित होने का ज्यादा खतरा है। इसके बाद यह दूसरे लोगों को उपलब्ध कराया जाएगा।
मैक्सिको : सबसे ज्यादा हेल्थ वर्करों की मौत
मैक्सिको में संक्रमण बढ़ता जा रहा है। सरकार ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट शुरू कर दिया है। इसमें भी लोगों की थर्मल स्क्रीनिंग की जा रही है। इसके अलावा चेक प्वॉइंट बनाए गए हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट ने मैक्सिको की चिंता बढ़ा दी। इसमें कहा गया है कि दुनिया में सबसे ज्यादा हेल्थ वर्कर्स की मौत मैक्सिको में हुई। इसके मुताबिक अब तक 1320 हेल्थ वर्कर्स संक्रमण की वजह से जान गंवा चुके हैं। अमेरिका में 1077 और ब्रिटेन में 649 हेल्थ वर्कर्स की मौत हो चुकी है।
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में सामने आए ड्रग कनेक्शन में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की टीमें शुक्रवार सुबह रिया चक्रवर्ती के घर पहुंचीं। बताया जा रहा कि उनके घर की तलाशी ली जा रही है। उधर, सुशांत के पूर्व कर्मचारी सैमुअल मिरांडा के घर पर भी एनसीबी की टीम का सर्च ऑपरेशन चल रहा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एनसीबी की 2 टीमें सुबह 6:30 बजे रिया के घर पहुंची थीं। जांच एजेंसी के अफसर केपीएस मल्होत्रा ने बताया कि ड्रग्स मामले में यह जांच चल रही है।
ड्रग्स मामले में अब तक 5 लोगों की गिरफ्तारी
एनसीबी ने ड्रग्स कनेक्शन के मामले में अब तक 5 लोगों को गिरफ्तार किया है। गुरुवार को ड्रग्स कनेक्शन में गिरफ्तार जैद विलात्रा को कोर्ट में पेश किया गया था। एनसीबी ने कोर्ट से 10 दिन की रिमांड मांगी थी, लेकिन उन्हें 9 दिन की रिमांड मिली। जैद को एक सितंबर को मुंबई से गिरफ्तार किया था।
एनसीबी ने ड्रग्स के मामले में अब्दुल बासित परिहार को भी गिरफ्तार कर लिया है। एनसीबी के सूत्रों को मुताबिक, बासित और जैद का संबंध सुशांत की गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती के सहयोगी सैमुअल मिरांडा से भी रहा है।
from Dainik Bhaskar /national/news/sushant-singh-rajput-death-probe-news-and-updates-4-sep-2020-narcotics-bureau-team-127684383.html
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फोटो मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले की है। यहां की बौकना पंचायत ने ग्रामीणों के विरोध के बावजूद मगढार नदी के बीच में मुक्तिधाम का निर्माण कर दिया। इसलिए मुक्तिधाम में साल में छह महीने पानी बहता रहता है। दो साल पहले बने इस स्थान पर अब तक एक भी ग्रामीण का अंतिम संस्कार नहीं किया गया है। इस बात की शिकायत गांव के उपसरपंच ने जनपद सीईओ, एसडीएम, जिला पंचायत सीईओ से की पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
मजदूरों के लिए सतलुज किनारे बनाया क्वारैंटाइन सेंटर
ये है हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के रिकांगपिओ में नेशनल हाईवे-5 पर सतलुज नदी के किनारे बनाया गया क्वारैंटाइन सेंटर। आम दिनों में यहां से रेत और बजरी का खनन किया जाता है। दूसरे राज्यों से आने वाले मजदूरों के लिए यह व्यवस्था ठेकेदारों ने की है। इनमें नेपाल, बिहार से आए मजदूर रह रहे हैं जिन्हें 14 दिन इन टैंटों में क्वारैंटाइन होना होगा। यहां लगाए गए 20 टैंटों में 60 मजदूर रह रहे हैं। हर टैंट में 3-4 मजदूर रह रहे हैं। यहां फिलहाल बारिश नहीं हो रही है। अगर बारिश होती है तो सतलुज में पानी बढ़ने से सेंटर तक पानी आ सकता है।
रोडवेज ने दूसरे राज्यों से मांगी एनओसी
हरियाणा राज्य परिवहन की बसें जल्द ही सभी पड़ोसी राज्यों तक जाएंगी। इसके लिए तैयारियां तेजी से चल रही हैं। हरियाणा राज्य परिवहन विभाग ने प्रदेश के पड़ोसी राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, नई दिल्ली को ई मेल के जरिए लिखा है कि वे अपने राज्यों में रोडवेज की बसों के संचालन की अनुमति प्रदान करें। इससे पहले भी विभाग की ओर से इस तरह का पत्राचार किया जा चुका है, लेकिन पड़ोसी राज्यों ने एनओसी नहीं दी थी।
सूखे कुएं में चार दिन भूखा-प्यासा रहा युवक
फोटो राजस्थान के दौसा जिले के समीप भांडारेज मोड़ की है। जसोता निवासी महेंद्र कुमार बावरिया ने बताया कि 4 दिन पहले वह रास्ते में पानी भर जाने के कारण रात में डंडे के सहारे सड़क की ओर जा रहा था, तभी पैर फिसल से 20 फुट गहरे सूखे कुएं में गिर पड़ा। सुनसान जगह के कारण ग्रामीणों को युवक के गिरने का पता ही नहीं चला।
गुरुवार सुबह दिगंबर कॉलेज के समीप रहने वाले मूर्तिकारों का परिवार मकान की छत पर गया। इस दौरान कुएं से आवाज सुनाई दी तो आस-पड़ोस के लोगों को जानकारी दी। पुलिस को सूचना दी गई। पुलिस ने ग्रामीणों के सहयोग से उसे बाहर निकाला और जिला अस्पताल में भर्ती कराया।
कोविड के चलते देर से यात्रा शुरू
श्री हेमकुंड साहिब की पवित्र यात्रा वीरवार को गुरुद्वारा श्री गोविंद घाट (जिला चमौली) से पांच प्यारों की अगुवाई में शुरू हुई। इस बार यात्रा को कोविड के चलते देर से शुरू किया गया है। यात्रा हर साल मई माह में शुरू हो जाती थी जो अक्टूबर तक चलती है। यात्रा में शामिल होने आने वालों के लिए कोविड निगेटिव टेस्ट के अलावा ई-पास जरूरी किया गया है। अगर किसी श्रद्धालु के पास ई-पास व कोविड निगेटिव सर्टिफिकेट न हुआ तो उसे किसी समय भी क्वारैंटाइन किया जा सकता है। पवित्र यात्रा के लिए ट्राईसिटी सहित पूरे देश की संगत यहां से जाती है।
मेक्सिको दूतावास से दो पर्यटक पहुंचे ओरछा
कोरोना काल के चलते पिछले 5 महीने से पर्यटन नगरी ओरछा में मंदी और बेरोजगारी की मार झेल रहे पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों के चेहरे पर गुरुवार को खुशी दिखाई दी। जब उन्हें पता चला कि पुरातत्व विभाग भोपाल द्वारा ओरछा के पुरातत्वीय स्मारकों को खोले जाने के आदेश जारी हो गए हैं। साथ ही गुरुवार को मेक्सिको से ओरछा घूमने पहुंचे विदेशी पर्यटकों को देख लोगों में एक बार फिर उम्मीद की नई किरण जगी है।
तीरंदाज दीपिका के पिता अब भी चलाते हैं ऑटो
ये हैं पद्मश्री और नंबर-1 तीरंदाज दीपिका कुमारी के पिता शिवनारायण महतो। अब तक इन्होंने अपना पुराना काम ऑटो चलाना नहीं छोड़ा है। गुरुवार को उनकी ऑटो में आगे की सीट पर एक पुलिसवाला बैठ गया। रातू रोड पर दुर्गा मंदिर के पास ट्रैफिक पुलिस ने रूटीन चेकिंग के दौरान उन्हें रोका। इनकी सादगी देखिए...पुलिसवाले के सामने हाथ जोड़ लिए। जब पुलिस अफसर को पता चला कि वह दीपिका के पिता हैं तो बिना कुछ कहे उन्हें जाने दिया।
कोरोना से बचें, तभी आएगी चैन की नींद
चंडीगढ़ सेक्टर-17 में इमारतों को उनके ओरिजनल लुक में लाने पर काम चल रहा है। कोरोना से बचने के लिए पूरी एहतियात के साथ यह काम किया जा रहा है। वीरवार को एक मजदूर दोपहर को लंच टाइम में शटरिंग के बीच में थोड़ी देर के लिए चैन की नींद सो रहा था। यह सभी के लिए एक सीख भी है। क्योंकि हम मास्क लगाकर, उचित दूरी बरतकर और जिंदगी में अनुशासन रखकर कोरोना से दूरी बनाकर रख सकते हैं। इसलिए अच्छा खाएं। डाइट का पूरा ध्यान रखें। फिर चाहे कोरोना कितना भी फैले, हम बचे रहेंगे और चैन की नींद भी आती रहेगी।
from Dainik Bhaskar /national/news/the-act-of-panchayat-in-chhatarpur-madhya-pradesh-muktidham-built-in-the-river-remains-submerged-in-water-for-6-months-hemkud-sahibs-journey-begins-monuments-of-orchha-will-open-from-today-127684449.html
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आज का दिन बेहद खास है। 1998 में गूगल की औपचारिक शुरुआत हुई थी। वैसे, यह कहानी स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से शुरू हुई थी और वह भी 1995 में। लैरी पेज नए-नए वहां पहुंचे थे और सर्गेई ब्रिन को उन्हें आसपास का माहौल दिखाने की जिम्मेदारी दी थी।
वह दिन था और आज का दिन है। दोनों की दोस्ती ने पूरी दुनिया को देखने का अंदाज ही बदल दिया है। दोनों ने googol नाम से पेज लिस्ट करने का सोचा था। लेकिन, स्पेलिंग मिस्टेक की वजह से Google नाम से डोमेन रजिस्टर हुआ। इस तरह, 4 सितंबर 1998 से गूगल इंक की औपचारिक शुरुआत हुई। एक और दिलचस्प कहानी है।
पेज और ब्रिन अपने ब्रेनचाइल्ड को 1998 में ही याहू को एक मिलियन डॉलर में बेचने निकले थे। ताकि पढ़ाई को वक्त दे सके। लेकिन, याहू ने रुचि नहीं दिखाई। चार साल बाद याहू खुद 3 बिलियन डॉलर में गूगल को खरीदने का प्रस्ताव लेकर आया था। आज गूगल 400 बिलियन डॉलर से भी बड़ी कंपनी है।
दुनिया के सामने आया था डूबा हुआ टाइटैनिक
आपने टाइटैनिक के बारे में जरूर सुना होगा। फिल्म भी देखी होगी। 10 अप्रैल 1912 को इंग्लैंड के साउथैंप्टन से पहली ही यात्रा पर निकला था। लेकिन, बदकिस्मत रहा। चार दिन बाद ही एक हिमशिला से टकराकर डूब गया। डेढ़ हजार लोग मारे गए थे। 1985 में यानी 73 साल बाद 4 सितंबर को ही पनडुब्बी आर्गो ने समुद्री सतह से ढाई किमी की गहराई पर इस जहाज के मलबे की तस्वीर खींची थी। 1997 में इस पर हॉलीवुड में फिल्म बनी थी, जो सुपरहिट रही थी।
रोल-फिल्म कैमरा पेटेंट से कोडक का जन्म
आज हम सभी के पास मोबाइल कैमरा है या डिजिटल कैमरा। लेकिन, यहां तक पहुंचने में कैमरे ने एक लंबा सफर तय किया है। 1988 में आज ही के दिन जॉर्ज ईस्टमैन को रोल-फिल्म कैमरे का पेटेंट मिला था। इसने फोटोग्राफी की दुनिया ही बदल दी। इसकी मदद से ऐसे कैमरे बने जिसमें पहले से रोल लगे होते थे।
इससे 100 फोटोग्राफ्स तक खींचे जा सकते थे। ईस्टमैन ने आज ही के दिन कोडक को भी रजिस्टर किया था। ईस्टमैन कोडक कंपनी ने इन 132 सालों में बहुत उतार-चढ़ाव देखे। 2012 में दिवालिया होने के कगार पर पहुंच चुकी कंपनी अब नए सिरे से अपने बाजार को विस्तार दे रही है।
इतिहास के पन्नों में आज के दिन को इन घटनाओं की वजह से भी याद किया जाता है…
1665: मुगलों और छत्रपति शिवाजी महाराज के बीच पुरंदर में संधि पर हस्ताक्षर हुए।
1781ः स्पेन के निवासियों ने अमेरिका में लॉस एंजिल्स की स्थापना की।
1888ः महात्मा गांधी ने इंग्लैंड के लिए समुद्री यात्रा शुरू की।
1967ः 6.5 तीव्रता वाले भूकंप की चपेट में आया महाराष्ट्र का कोयना बांध, जिसमें 200 से ज्यादा लोगों की मौत।
1999: ईस्ट तिमोर में जनमत संग्रह हुआ। 78.5% जनता ने इंडोनेशिया से आजादी मांगी।
2000ः श्रीलंका के उत्तरी जाफना की बाहरी सीमाओं पर श्रीलंका सेना तथा लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम के बीच संघर्ष में 316 लोगों की मौत।
2005ः नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला गिरफ्तार।
2006ः ऑस्ट्रेलिया की मशहूर टीवी पर्सनैलिटी और पर्यावरणविद स्टीव इरविन का निधन।
आपको याद होगा, पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब "परीक्षा पे चर्चा" कर रहे थे तो एक महिला ने अपने नौवीं में पढ़ने वाले लड़की की शिकायत की थी। उन्होंने कहा था कि मेरा बेटा पहले अच्छा पढ़ता था। लेकिन पिछले कुछ दिन से ऑनलाइन गेम्स पर ज्यादा वक्त देता है। इस पर मोदी ने तुरंत कहा था, "पबजी वाला है क्या?"
यहीं, पबजी वालों को अब मोदी सरकार से नाराजी है। उनका लोकप्रिय गेम पबजी 118 प्रतिबंधित ऐप्स की सूची में आ गया है। इधर बैन की घोषणा हुई और उधर यह मैसेज वायरल हो गया कि पबजी में चीनी कंपनी टेन्सेंट की हिस्सेदारी सिर्फ 10% है। पबजी वह 10% हिस्सेदारी बेच देगा और एक हफ्ते में लौट आएगा।
खैर, यह गेमर्स का दावा है, हकीकत तो कुछ और ही है। खैर, इस तरह की कई बातें हो रही हैं पबजी के बारे में। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि आप इस लोकप्रिय गेम के बारे में जाने, जिसने भारतीयों को इस कदर दीवाना बना रखा था।
सबसे पहले, यह पबजी आखिर है क्या?
पबजी असल में प्लेयर्स अननोन्स बैटलग्राउंड्स (Player Unknown's Battlegrounds) है। यह जापानी थ्रिलर फिल्म बैटल रोयाल से प्रभावित है, जिसमें सरकार छात्रों के एक ग्रुप को खतरनाक मिशन पर भेज देती है।
पबजी में करीब 100 खिलाड़ी एक साथ किसी टापू पर पैराशूट से छलांग लगाते हैं। हथियार खोजते हैं। एक-दूसरे को मारते रहते हैं। और जो जीत जाता है, उसे कथित तौर पर "चिकन डिनर" मिलता है।
इस वीडियो गेम को दक्षिण कोरियाई कंपनी ब्लूहोल के लिए ब्रेंडन ग्री ने 2017 में बनाया था। जब यह गेम चीन पहुंचा तो ब्लूहोल ने टेनसेंट को पार्टनर बनाया। उसने ही पबजी का मोबाइल वर्जन बनाया है।
चीनी मार्केट में यह गेम इंस्टेंट हिट रहा। लेकिन, चीन सरकार से शुरुआत में मंजूरी नहीं मिलने से पैसा नहीं बना सका। दूसरी ओर, चीन सरकार ने कहा कि इस गेम की लत युवा पीढ़ी के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।
पबजी के दुनियाभर में 50 करोड़ डाउनलोड्स हुए हैं। 5 करोड़ डेली एक्टिव यूजर हैं, जो रोज ही यह गेम खेलते हैं। माइनक्राफ्ट, फोर्टनाइट, लीग ऑफ लीजेंड्स, काउंटर-स्ट्राइक, वर्ल्ड ऑफ वारक्राफ्ट और क्लैश ऑफ क्लैन्स है भी लोकप्रिय गेम्स हैं, लेकिन पबजी जैसा कोई और नहीं है।
भारत में गूगल का प्ले स्टोर हो या एपल ऐप स्टोर, पबजी हमेशा से मोस्ट डाउनलोडेड गेम्स की लिस्ट में टॉप करता आया है। एक तरह से यह इस लिस्ट का स्थायी फीचर ही है।
ऑनलाइन एनालिटिक्स फर्म सेंसर टॉवर के अनुसार दुनियाभर में पबजी खेलने वालों में सबसे ज्यादा 25% भारतीय है। आंकड़ों में 17.5 करोड़ डाउनलोड्स हुए हैं। चीन में पबजी के कुल 17% यूजर है, वहीं अमेरिका में 6% प्लेयर।
क्वार्ट्ज ने 2018 में एक हजार पबजी प्लेयर्स पर स्टडी की। पाया कि उसमें 62% प्लेयर तो भारतीय हैं। भारत में लॉकडाउन के दौरान पबजी को सबसे ज्यादा खेला गया। मई में 22 लाख लोगों ने इसे खेला।
पबजी मोबाइल की कमाई का जरिया इन-गेम आइटम्स जैसे स्किन, आउटफिट आदि हैं। उन्हें प्लेयर इन-गेम करेंसी (यूसी) का इस्तेमाल कर खरीद सकते हैं। इन-गेम पर्चेज से ही पबजी को कमाई होती है।
पबजी की कमाई को समझना है तो उसे दो हिस्सों में बांटना होगा। पबजी मोबाइल से होने वाली कमाई का बड़ा हिस्सा टेनसेंट (चीन) को जाता है, लेकिन यदि आप कंप्यूटर पर खेल रहे हैं तो कोरियाई कंपनी को वह मिलता है।
अलग-अलग रिपोर्ट्स देखें तो भारत से अकेले 7 मिलियन डॉलर यानी करीब 52 करोड़ रुपए हर महीने कमाता है पबजी मोबाइल। हालांकि, पबजी मोबाइल ने 2019 में 9,541 करोड़ रुपए कमाए।
पबजी मोबाइल की कमाई का 72% हिस्सा ऐपल के ऐप स्टोर से आया जबकि गूगल प्ले से सिर्फ 28% हिस्सा उसे मिला। यदि हम डाउनलोड्स की बात करें प्ले स्टोर ने जरूर इसमें बाजी मारी है। इसमें बड़ी हिस्सेदारी भारत में एंड्रॉइड फोन पर पबजी डाउनलोड्स की है।
तब तो उसे भारत आना ही होगा?
गेमिंग एनालिस्ट के मुताबिक, भारत में डाउनलोड्स भले ही सबसे ज्यादा हो, टेनसेंट को भारत से उतना प्रॉफिट नहीं मिल पाया। दुनियाभर में बदनामी अलग मिल रही है। ऐसे में उसके यहां लौटकर आने की संभावना काफी कम है।
पबजी ने मई में 226 मिलियन डॉलर का रेवेन्यू कमाया और यह दुनियाभर का सबसे ज्यादा कमाई करने वाला गेम साबित हुआ। पिछले साल मई में जो इसने कमाई की थी, उससे इस साल की कमाई 41% ज्यादा रही।
सेंसरटॉवर के अनुसार, टेनसेंट के पबजी मोबाइल ने रेवेन्यू का बड़ा हिस्सा चीन से करीब 53 प्रतिशत कमाया। इसके बाद 10.2 प्रतिशत अमेरिका और 5.5 प्रतिशत सऊदी अरब से। ऐसे में भारत से कमाई बहुत ज्यादा नहीं है।
— गोल्डन क्रो विनर वरिष्ठ युवा पत्रकार पोपटलाल (@GoldenCrowWiner) September 3, 2020
ऑनलाइन गेमिंग की कमाई का बेस क्या है?
पिछले दस साल में ऑनलाइन गेमिंग मार्केट ने तेजी से अपना जाल फैलाया है। यह तेजी से उभरता मार्केट बन गया है। गेमिंग मार्केट में इन-ऐप पर्चेज होता है, जिसे समझे बिना इस मार्केट को समझना मुश्किल हो सकता है।
ऑनलाइन गेमिंग मार्केट में डाउनलोड्स पर खर्च नहीं होता। बल्कि गेम खेलते समय आप जो खरीदारी करते हैं, वह ही इन कंपनियों की कमाई है। खासकर, जब आपको कोई गेम अच्छा लगता है तो आप उसकी एसेसरीज खरीदते हैं।
सीधे शब्दों में कहें तो पहले तो आपको गेम अच्छा लगता है। फिर एडिक्टिव होने की वजह से इसकी लत लग जाती है। फिर धीरे-धीरे आप उसकी दुनिया में खोने लगते हैं और एसेसरीज पर भी पैसा खर्च करने लगते हैं।
इसके अलावा पबजी से जुड़े मर्केंडाइज भी लोकप्रियता हासिल करते जा रहे हैं। बच्चों को पसंदीदा कैरेक्टर, टी-शर्ट, कप-प्लेट, कपड़े पसंदीदा आते हैं। इससे भी यह गेमिंग कंपनियां पैसा कमाती हैं।
वैसे, गेमर्स अभी पबजी के सदमे में हैं। अभी मोबाइल में गेम ब्लॉक नहीं हुआ है। इस वजह से जिनके मोबाइल में यह है, वह इसे खेले जा रहे हैं। भारत में पबजी ने लाइव गेम स्ट्रीमिंग इंडस्ट्री को ताकत दी है।
इसने ऐसे कंटेंट क्रिएटर्स दिए हैं जो अच्छा पैसा कमा रहे हैं। सीरियस गेमर्स के लिए यह बैन बहुत चौंकाने वाला और धक्का देने वाला है। हालांकि, ई-स्पोर्ट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की माने तो इस बैन का फायदा भारतीय ऐप्स को होगा।
पबजी मोबाइल के लोकप्रिय विकल्पों में क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन, साइबर हंटर और रूल्स ऑफ सरवाइल भी बैन हो गए हैं। लेकिन गारेना फ्री फायर, कॉल ऑफ ड्यूटी के साथ-साथ अन्य गेमिंग ऐप्स डाउनलोड कर सकते हैं।
कॉल ऑफ ड्यूटी वैसे तो अमेरिकी वीडियो गेम पब्लिशर एक्टविजन की प्रॉपर्टी है। लेकिन इसका मोबाइल वर्जन टेनसेंट की ही सब्सिडियरी टिमी स्पोर्ट्स ने किया है। लिहाजा, इस पर भी टिके रहना मुश्किल है।
दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर सड़क किनारे कुछ झुग्गियां नजर आती हैं। घुमंतू जनजाति के करीब दो दर्जन परिवार इन झुग्गियों में रहते हैं। महेंद्र और उनका परिवार भी इनमें से एक है। ये सभी लोग खिलौने बेचने का काम करते हैं। पास में ही बना एक ट्रैफिक सिग्नल इन लोगों की कर्मभूमि है।
सिग्नल पर लगी जो बत्ती लाल होते ही ट्रैफिक को रुकने का इशारा देती है, वही लाल बत्ती इन लोगों के लिए काम शुरू करने का इशारा होती है। रेड सिग्नल पर जितनी देर गाड़ियां रुकती हैं, उतना ही समय महेंद्र और उनके परिवार को मिलता है कि वे गाड़ी में बैठे लोगों को खिलौने खरीदने को मना सकें।
महेंद्र का छह साल का बेटा, जिसकी खुद की उम्र खिलौनों से खेलने की है, वह भी तपती धूप में नंगे पैर गाड़ियों के पीछे दौड़ता हुआ खिलौने बेचने में अपने पिता की मदद करता है। इन खिलौनों की बिक्री ही महेंद्र के परिवार को आजीविका देती है और आत्मनिर्भर बनाती है।
लेकिन, ये वो खिलौने नहीं हैं जिनसे देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कही है। बल्कि ये चीन से आने वाले वे खिलौने हैं जिनका भारतीय बाजार में जबरदस्त दबदबा है।
महेंद्र नहीं जानते कि जो खिलौने वो बेचते हैं, उनका उत्पादन कहां होता है। उन्हें नहीं मालूम कि देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ में क्या कहा है। वे ये भी नहीं जानते कि ‘मन की बात’ जैसा कोई रेडियो कार्यक्रम भी है या आत्मनिर्भर भारत जैसी कोई योजना भी। वे सिर्फ इतना जानते हैं कि ये खिलौने पुरानी दिल्ली के सदर बाजार में थोक के भाव मिलते हैं और इन्हें सड़क पर बेचने से उनके परिवार का पेट भर जाता है।
दिल्ली का सदर बाजार एशिया के सबसे बड़े थोक बाजारों में शामिल है। इसी बाजार का तेलीवाड़ा इलाका खिलौनों के थोक व्यापार के लिए मशहूर है। यहां सिर्फ खिलौनों के थोक विक्रेता ही नहीं बल्कि कई उत्पादक और इंपोर्टर भी हैं, जिनसे खिलौने खरीदने के लिए देश के कोने-कोने से व्यापारी यहां पहुंचते हैं।
इनमें बड़े दुकानदार भी होते हैं और महेंद्र जैसे छोटे-छोटे फेरी वाले भी। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के हालिया एपिसोड में भारतीय खिलौनों को बढ़ावा देने की जो बात कही है, उसकी जानकारी महेंद्र जैसे लोगों को भले ही न हो लेकिन सदर बाजार के व्यापारियों के माथे पर इससे बल पड़ने लगे हैं।
वह इसलिए कि भारत में खिलौनों का जो बाजार है, उसमें करीब 80 प्रतिशत की हिस्सेदारी चीन से आयात होने वाले खिलौनों की ही है। बीते कई सालों से सदर बाजार में खिलौनों का थोक व्यापार करने वाले पुनीत सूरी कहते हैं, 'भारतीय खिलौनों का फ़िलहाल चीन के खिलौनों से कोई मुकाबला ही नहीं है। चीनी खिलौने क्वालिटी में हमारे खिलौनों से कहीं ज़्यादा बेहतर हैं और दाम में कहीं कम। वैसे खिलौने अगर भारत में बनने लगे तो हमें तो ख़ुशी ही होगी भारतीय माल बेचने में।'
टॉय एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, भारत में हर साल चीन से करीब चार हजार करोड़ रु के खिलौने आयात किए जाते हैं। इन्हीं खिलौनों का बाजार मूल्य देखा जाए तो यह तीन गुना तक बढ़ जाता है लिहाजा चीन से आए खिलौनों का कुल व्यापार करीब 12 हजार करोड़ रु का हो जाता है।
जबकि भारतीय खिलौनों की बात करें तो उनका कुल व्यापार एक हजार करोड़ रु का भी नहीं है। खिलौनों के बाजार में चीन के इस दबदबे को कम करने के लिए मोदी सरकार ने बीते सालों में कुछ प्रयास किए हैं। लेकिन, ये सभी प्रयास विफल रहे और हर बार इनका नुकसान भारतीय व्यापारियों को ही उठाना पड़ा।
‘माइल स्टोन इपेक्स’ कंपनी के मालिक रमित सेठी बताते हैं, ‘2017 में ये सरकार सर्टिफिकेशन के नए नियम लेकर आई। इसके चलते हम जैसे व्यापारियों को लगभग हर उत्पाद पर एक लाख रुपए अतिरिक्त भार उठाना पड़ा। फिर सरकार ने चीन से आयात होने वाले खिलौनों पर इंपोर्ट ड्यूटी 20 फीसदी से बढ़ाकर सीधे 60 फीसदी कर दी।
तीन गुना बढ़ी इस इंपोर्ट ड्यूटी का भार भी हम जैसे इंपोर्टर पर ही पड़ा क्योंकि जो माल हम चीन से लेते हैं उनका भारत में कोई विकल्प ही नहीं है। खिलौने ही नहीं, इलेक्ट्रॉनिक में तो लगभग हर माल चीन से ही आ रहा है। जो नेता हवाई भाषण देते हुए चीन के बॉयकॉट की बात कहते हैं सबसे पहले उन्हें ही अपना माइक तोड़ देना चाहिए जिससे वो भाषण दे रहे होते हैं क्योंकि वो भी चीन का ही होता है।’
मौजूदा सरकार से यह नाराजगी रमित सेठी जैसे लगभग सभी खिलौना व्यापारियों की है। 1951 से खिलौनों का व्यापार कर रहे सिंधवानी ब्रदर्स के अजय कुमार कहते हैं, ‘खिलौनों का व्यापार सबसे पहले 90 के दशक में प्रभावित हुआ था, जब उदारवादी नीतियां अपनाई गई और विदेशी खिलौने भारतीय बाजारों में तेजी से आना शुरू हुए। उसके बाद इस व्यापार में सबसे ज़्यादा नुकसान इसी सरकार के दौरान हुआ है।’
अजय बताते हैं कि ‘पहले नोटबंदी ने खिलौनों के व्यापार को बड़ी चोट दी। नोटबंदी नवंबर में हुई थी जब सॉफ़्ट टॉय का सीजन शुरू होता है और वैलेंटाइन तक चलता है। उस साल पूरा सीजन मारा गया। फिर जीएसटी ने खिलौनों पर लगने वाले टैक्स को पांच फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी और इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों में तो 18 फीसदी तक कर दिया। उसके बाद खिलौनों पर इंपोर्ट ड्यूटी दो सौ पर्सेंट बढ़ा दी गई और अब बीआईएस सर्टिफिकेशन खिलौना व्यापारियों की कमर तोड़ने जा रहा है।’ बीआईएस यानी ‘ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्ज़’।
यह एक सर्टिफिकेशन है, जो भारतीय खिलौना व्यापारियों के लिए नई मुसीबत साबित हो रहा है। मोदी सरकार ने देश में बिकने वाले सभी खिलौनों के लिए बीआईएस सर्टिफिकेशन अनिवार्य करने का फैसला लिया है। इस फैसले से सिर्फ़ वे व्यापारी ही परेशान नहीं हैं जो चीन से खिलौने आयात करते हैं बल्कि भारत में खिलौनों का उत्पादन करने वाले व्यापारी भी नाखुश हैं।
केके प्लास्टिक्स के मालिक कृष्ण कुमार पाहवा कहते हैं, ‘एक तरफ मोदी जी भारतीय खिलौनों और भारतीय व्यापारियों को बढ़ाने की बात करते हैं और दूसरी तरफ बीआईएस जैसी शर्तें लगाकर व्यापारियों की कमर तोड़ने का काम कर रहे हैं। भारत में खिलौने बनाने वाले अधिकतर छोटे-मोटे व्यापारी ही हैं। उनके लिए बीआईएस की शर्तें पूरी करना मुमकिन नहीं है, क्योंकि इसके लिए हर व्यापारी को एक अलग लैब बनवानी होगी।
भारतीय खिलौनों के कारखाने बहुत छोटी-छोटी जगहों पर चलते हैं, उनमें लैब की जगह कहां से निकलेगी और इसका खर्च भी छोटे व्यापारी नहीं उठा सकेंगे।’ केंद्र सरकार ने खिलौना व्यापारियों के लिए बीआईएस सर्टिफिकेशन इसी एक सितंबर से अनिवार्य कर दिया था। लेकिन, व्यापारियों के भारी विरोध के चलते फ़िलहाल इसे एक महीने के लिए टाल दिया गया है।
खिलौना व्यापारी इसका विरोध इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि इससे खिलौनों की लागत बहुत बढ़ जाएगी। साथ ही उनका ये भी सवाल है कि ये सर्टिफिकेशन सिर्फ खिलौनों के लिए ही क्यों लागू किया जा रहा है, अन्य उत्पादों के लिए क्यों नहीं?
भारतीय उत्पादकों की शिकायत है कि सरकार ने बीते सालों में ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जिससे भारतीय खिलौनों को बढ़ावा मिल सके। यदि ऐसा हुआ होता तो भारतीय बाजार पर चीन की पकड़ कमजोर की जा सकती थी। लेकिन, बिना अपनी पकड़ मज़बूत किए चीन से आयात को रोकने या मुश्किल करने का नुकसान भारतीय व्यापारियों को ही उठाना पड़ रहा है। बीआईएस को भी ऐसा ही कदम माना जा रहा है जो चीन को नुकसान करने की जगह भारतीय व्यापारियों को ही नुकसान कर रहा है।
1942 से भारत में खिलौनों का व्यापार करने वाली ‘मासूम प्लेमेट्स प्राइवेट लिमिटेड’ के मालिक कार्तिक जैन कहते हैं,‘बीआईएस के पीछे की मंशा अच्छी हो सकती है। खिलौने सुरक्षित हों ये कौन नहीं चाहेगा? लेकिन बीआईएस इस हड़बड़ी में लागू नहीं होना चाहिए जैसे इस सरकार के बाकी फैसले रहे हैं। नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक, सबकी मंशा अच्छी ही थी लेकिन सबने नुकसान ही किया है। ऐसा ही बीआईएस के मामले में भी दिख रहा है। इस हड़बड़ी में लागू होने से कई छोटे व्यापारी ये धंधा छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे।’
कार्तिक जैन बीआईएस के इस तरह लागू किए जाने को संदेह से देखते हुए कहते हैं, ‘ये भी कमाल का संयोग है कि पिछले ही साल मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस रीटेल ने खिलौनों के चर्चित ब्रांड हेमलेज को खरीदा और उसके बाद से ही ऐसी नीतियां बनने लगी कि खिलौनों के व्यापार में बाकियों के लिए बने रहना बेहद मुश्किल होने लगा। ऐसा ही संयोग टेलीकॉम में भी हुआ था। अंबानी जी आए तो एयरटेल, वोडाफोन किसी का भी टिकना मुश्किल हो गया।
हेमलेज ब्रिटेन की एक मल्टीनेशनल कंपनी है जिसे दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी खिलौनों की कम्पनी भी माना जाता है। मई 2019 में मुकेश अंबानी की रिलायंस रीटेल ने इसे 620 करोड़ रुपए में खरीदा था। रमित सेठी कहते हैं, हेमलेज जो भी खिलौने बना रही हैं, वो सब चीन के माल से बन रहे हैं। अब हेमलेज को अंबानी जी ने खरीद लिया तो इससे चीन का माल स्वदेशी तो नहीं बन जाएगा।’
मुकेश अंबानी का खिलौनों के व्यापार में आना, खिलौनों पर बीआईएस की शर्तें लागू होना और प्रधानमंत्री का 'मन की बात' में खिलौनों के व्यापार का जिक्र करना, इनके एक साथ होने को संदेह से देखते हुए टॉय एसोसिएशन से जुड़े एक व्यापारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘भारत में खिलौनों का बहुत बड़ा बाजार है और इसमें 80 प्रतिशत से ऊपर चीन का माल बिकता है। ऐसे बाजार में सरकार की मदद से अंबानी जैसे बड़े व्यापारियों के लिए तो एकाधिकार बना लेने की गुंजाइश मौजूद है।
सरकार के फैसलों से इशारा भी यही मिल रहा है कि खिलौनों के व्यापार का पूरा खेल एक आदमी के इशारों पर हो रहा है।’ प्रधानमंत्री मोदी ने 'मन की बात' में भारतीय खिलौनों को बढ़ावा देने की जो बात कही, उससे भारतीय उत्पादक खुश क्यों नहीं हैं? इस सवाल के जवाब में बीते 25 सालों से भारतीय खिलौने बना रहे अनिल तनेजा कहते हैं, ‘मोदी जी की कथनी और करनी में बहुत अंतर है।
बात वो हमें बढ़ाने की कहते हैं लेकिन फैसले उनके सारे हमें गिराने वाले रहे हैं। आगे के लिए अभी ऐसी कोई योजना नहीं है जिससे भारतीय खिलौना उत्पादकों को कोई राहत या बढ़ावा मिलता दिख रहा हो। बाक़ी 'मन की बात' में कुछ भी बोलना अलग बात है। बोलते तो मोदी जी अच्छा-अच्छा ही हैं।’
पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की सीमा यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर 29 और 30 अगस्त की रात भारतीय सैनिकों ने बड़ी जीत हासिल की है। उन्होंने एलएसी पर पहाड़ों की चोटियों पर कब्जा करने की कोशिश कर रही चीनी सेना को न केवल रोका बल्कि पैंगॉन्ग सो झील के दक्षिणी किनारे पर चोटियों पर पोजिशन भी ले ली है। इन चोटियों पर कब्जा करने का भारतीय सेना और देश की सुरक्षा के लिए बहुत महत्व है और इसे ही समझा रहे हैंरिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ-
पिछले दिनों भारत ने चीन को पैंगॉन्ग सो झील के दक्षिणी किनारे के पहाड़ों की चोटियों पर कब्जा करने से रोका है। अब सवाल यह उठता है कि इन चोटियों का क्या महत्व है? दरअसल, पैंगॉन्ग सो झील इलाके की बनावट ऐसी है कि जो भी सेना दक्षिणी किनारे के पास के इन पहाड़ों की चोटियों पर कब्जा कर लेती है, वह पूरे इलाके पर प्रभुत्व रखती है।
यदि आपका इन चोटियों पर कब्जा है तो आप वहां से कई मील दूर तक नजर रख सकते हैं। यहां होना हमारी मिलिट्री के लिए बहुत बड़ा एडवांटेज है। हम यहां से न केवल चीनी सेना की हरकतों पर नजर रख सकते हैं, बल्कि उसे दुस्साहस करने या आगे बढ़ने से रोकने के लिए समय पर कार्रवाई कर सकते हैं।
यही कारण है कि चीनी सेना जल्द से जल्द इन चोटियों पर कब्जा कर लेना चाहती थी। लेकिन, इसकी भनक हमारी सेना को लग गई और हमारी सेना ने समय रहते उनसे पहले चोटियों पर कब्जा कर लिया। यह हमारी सेना का सही समय पर और साहसिक एक्शन था।
सर्दियों में इस इलाके में जाना बेहद मुश्किल
हर साल हम देखते हैं कि हमेशा गर्मियों में ही एलएसी के विवादित हिस्से पर दोनों सेनाओं के बीच झड़प या टकराव होता है। दरअसल, सर्दियों में यह इलाके पूरी तरह से बर्फ से ढंके होते हैं। इससे इन इलाकों में पहुंच पाना नामुमकिन तो नहीं लेकिन दुष्कर जरूर हो जाता है।
इस वजह से इस तरह के ऑपरेशंस के लिए गर्मियों का ही वक्त रहता है। यह समय भी जल्द खत्म होने ही वाला है। जिस तरह की परिस्थिति बन रही है और गतिविधियां चल रही है, उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि दोनों सेनाओं को अपनी यूनिट्स को लॉजिस्टिक सपोर्ट देना होगा।
फिलहाल एडवांटेज हमारी सेना के पास
इस समय तो हमारी सेना के पास एडवांटेज है, क्योंकि हमारे ज्यादातर सैनिक लद्दाख में पोजिशन लेकर बैठे हैं। हमने सर्दियों के लिए लॉजिस्टिक सप्लाई भी पहुंचा दिया है। चीनी सैनिक आम तौर पर गर्मियों के बाद पीछे हट जाते हैं। वे अब भी डटे हुए हैं तो उन्होंने सर्दियों के लिए रसद की व्यवस्था कर ली होगी या कर रहे होंगे।
इसी तरह हमारे सैनिक इन ऊंचाइयों के आदी हैं। यह हमारी सेना के लिए एडवांटेज है। चीन इस मुद्दे को लेकर कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से लगता है कि एक तरफ तो वह बातों में उलझाने की कोशिश कर रहा है और दूसरी तरफ नए ठिकाने से टकराव की कोशिश कर रहा है।
सबसे बड़ी महाशक्ति बनना चाहता है चीन
चीन के मंसूबे साफ है। उसे 2049 तक अमेरिका की जगह लेनी है। यानी महाशक्ति के रूप में स्थापित होना है। यह शांतिपूर्ण तरीके से हो ही नहीं सकता। इस वजह से उसने बेशर्म और बेरहम हथकंडे अपनाने शुरू किए हैं। चीन ने कई देशों के साथ मोर्चे खोल रखे हैं, जैसे- जापान, अमेरिका, दक्षिण चीन सागर के छह दक्षिण-पूर्वी देश। उसके घर में ही हांगकांग, झिन्जियांग और तिब्बत जैसे विवादित मसले हैं। ताईवान एक कॉमन डिनॉमिनेटर रहा है। भारत के साथ उसका विशेष रिश्ता है।
भारत को छोड़ किसी से सीमा का संघर्ष नहीं बचा
चीन की सीमा 14 देशों से सटी हुई है। उसने भारत को छोड़कर बाकी सभी देशों से सीमा को लेकर मुद्दे सुलझा लिए हैं। भारत और चीन कई मामलों में प्रतिस्पर्धी हैं, फिर चाहे बात इकोनॉमी की हो, महासागर की या रीजनल ऑर्डर, अंतरिक्ष, साइबर, मल्टीनेशनल अरेंजमेंट्स और सबसे महत्वपूर्ण पीओके और अक्साई चिन की। भारत के साथ अनसुलझा सीमा विवाद प्रेशर पॉइंट बन जाता है? हर तीन-चार साल में कोई न कोई झड़प हो ही जाती है- 2013 में देपसांग, 2014 में चुमार, 2017 में दोलाम प्लेट्यू।
अब, भारत किसी से डरने वाला नहीं है
और इन गर्मियों में चीन ने क्या किया? टेक्टिकल लेवल पर, चीन ने सीमा पर हमारे इलाके में सड़क बनाने पर आपत्ति उठाई। वहीं, खुद के इलाके में सड़कों का जाल बिछा दिया। इससे उसके पास अपनी सेना को जल्द से जल्द कहीं भी पहुंचाना आसान हो गया है।
भारत ने बहुत बाद में यानी करीब 2005 में सड़कें बनाने का काम शुरू किया था। चीन नहीं चाहता कि मोबिलिटी का यह अंतर खत्म हो। पिछले कुछ महीनों के घटनाक्रम और झड़पों को दोहराए बिना यह कहना तार्किक होगा कि चीन को समझ आ गया है कि भारत उसकी गीदड़-भभकियों में आने वाला नहीं।
भारत ही दिखा रहा है चीन के खिलाफ आक्रामकता
दक्षिण चीन सागर से सेनकाकु द्वीपों तक, हांगकांग से झिंजियांग तक, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापारिक युद्धों से लेकर समुद्र को आजाद करने के मुद्दे तक, बहुत से देश कहीं न कहीं चीन से परेशान हुए हैं। वे अपने-अपने घरों में महामारी से लड़ रहे हैं और उसके लिए भी चीन को ही दोषी ठहरा रहे हैं।
इसके बाद भी, भारत ही इकलौता ऐसा देश है जिसने चीन के खिलाफ दम-खम दिखाया है। जबकि पश्चिम के किसी देश ने कुछ खास नहीं किया है। भारत ने चीनी ऐप्स बैन किए, कम्युनिकेशन और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में चीन के निवेश पर प्रतिबंध लगाया, चीनी एफडीआई की गहराई से जांच-पड़ताल शुरू की है।
साथ ही, सीमा पर चीन की नापाक हरकतों के खिलाफ मजबूती से खड़ा रहा और गलवान में चीनी पीएलए को लहूलुहान भी किया है, भले ही वह कितना भी मुश्किल रहा हो। चीन ने कभी उम्मीद नहीं की थी कि सीमा पर उसके दुस्साहस के खिलाफ भारत इस तरह खड़ा होगा। तीन साल पहले दोलाम प्लेट्यू में भी चीन को उम्मीद नहीं थी कि भूटान की मदद के लिए भारत इस तरह खड़ा होगा।
मोदी ने लद्दाख से दिया चीन को कड़ा संदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लद्दाख का दौरा कर मजबूत कदम उठाया था और यह कहकर चीन को जवाब दिया कि "अब विस्तारवाद का जमाना चला गया, यह जमाना विकासवाद का है। इतिहास गवाह है कि विस्तारवादी ताकतों को या तो पीछे हटना पड़ा है या वह खुद-ब-खुद तबाह हो गई हैं।” इस पर यह भी ध्यान रखना चाहिए कि मोदी के विस्तारवाद वाले बयान पर चीन ने ही तुरंत प्रतिक्रिया दी थी।
भारतीय सेना अपनी सीमा की रक्षा करने में सक्षम है। भारतीय सैनिकों की बहादुरी पर हम भरोसा कर सकते हैं और पिछले कई वर्षों में हमने सेना के जवानों की बहादुरी देखी भी है। हालांकि, उन्हें बेहतर उपकरण चाहिए, बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर चाहिए और सभी संबंधित संस्थाओं/संगठनों के बीच बेहतर समन्वय चाहिए। हमारी सीमा और हमारे जीवन की रक्षा करने के लिए अपने बहादुर सिपाहियों को बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना भी भारत का दायित्व है।
करीब-करीब तीन महीने पहले न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट आई थी। इसमें चीनी सरकार की एक इंटरनल रिपोर्ट के हवाले से बताया गया था कि दुनियाभर में एंटी-चाइना सेंटीमेंट्स 1989 में थियानमेन चौक पर हुए नरसंहार के बाद सबसे ज्यादा है। इसका कारण था कोरोनावायरस।
कोरोनावायरस की वजह से चीन में तो कुछ खास नुकसान नहीं हुआ, लेकिन भारत समेत दुनिया के कई देशों पर इसका बहुत बुरा असर पड़ा है। कुछ हफ्ते पहले ही चीन के वुहान से तस्वीरें आईं थीं, जिसमें लोग पूल पार्टी करते नजर आ रहे थे।
एक तरफ दुनिया में पिछले 7 महीनों से लोग पार्टी तो दूर, अपने दोस्तों-रिश्तेदारों से भी नहीं मिल पा रहे हैं, दूसरी तरफ जिस चीन के वुहान से कोरोना शुरू हुआ, वहां अब पार्टियां होने लगीं हैं। वो भी हजारों लोगों की भीड़ के साथ।
हो सकता है कि इन पार्टीज की फोटो देखकर चीन को लेकर आपकी चिढ़ और बढ़ गई हो, लेकिन एक कारण और है, जो एंटी-चाइना सेंटीमेंट्स को बढ़ावा देने के लिए काफी है और वो है जीडीपी के आंकड़े।
इस साल की जून तिमाही में भारत की जीडीपी में 23.9% की गिरावट आई है। सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन और जापान जैसे देशों की जीडीपी भी अप्रैल से जून तिमाही में गिर गई। लेकिन, सिर्फ चीन ही ऐसा देश है, जिसकी जीडीपी इस तिमाही में बढ़ी है।
चीन के नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टेटिस्टिक्स डिपार्टमेंट के मुताबिक, अप्रैल से जून तिमाही के बीच चीन की जीडीपी में 3.2% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जबकि, इससे पहले जनवरी से मार्च तिमाही में चीन की जीडीपी 1992 के बाद पहली बार गिरी थी। इस तिमाही में 6.8% की गिरावट आई थी।
आखिर इसका कारण क्या है? इस पर क्रिसिल के चीफ इकनॉमिस्ट डीके जोशी दो बड़े कारण गिनाते हैं। पहला तो ये कि चीन में कोरोनावायरस को रोकने के लिए टोटल लॉकडाउन नहीं लगा और दूसरा कि वहां कोरोना पर जल्द ही काबू पा लिया गया।
चीन की जीडीपी बढ़ने के दो बड़े कारण
पहला : टोटल लॉकडाउन नहीं लगाया
दुनियाभर में कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए टोटल लॉकडाउन लगाया गया। लेकिन, जिस चीन से ये सब निकला, वहां टोटल लॉकडाउन लगा ही नहीं। वुहान में पहला केस आने के 7 हफ्ते बाद सिर्फ वहां ही लॉकडाउन लगाया गया। 76 दिन बाद 8 अप्रैल को वुहान से लॉकडाउन हटा दिया।
चीन में सिर्फ उन्हीं इलाकों में लॉकडाउन लगा, जहां कोरोना के मरीज मिल रहे थे। मसलन, जिस इलाके में एक भी कोरोना का मरीज मिलता, तो उसे पूरी तरह लॉकडाउन कर वहां के हर नागरिक का कोरोना टेस्ट किया जाता।
दूसरा : कोरोना काबू में, जून तिमाही में 2 हजार से भी कम मामले आए
चीन में कोरोना की शुरुआत पिछले साल दिसंबर के आखिर में हो गई थी। उसके बाद जनवरी और फरवरी में यहां हालात सबसे ज्यादा खराब रहे। 31 मार्च तक वहां 81 हजार से ज्यादा केस आ चुके थे। ये जनवरी से मार्च की तिमाही थी, जिसमें चीन की जीडीपी 6.8% गिर गई थी।
लेकिन, उसके बाद कोरोना संक्रमित नए मरीजों की संख्या कम होती चली गई। अप्रैल से जून तक चीन में सिर्फ 1977 मरीज ही मिले। जबकि, दुनियाभर में कोरोना मार्च से फैलना शुरू हुआ। इसके उलट चीन में इस पर काबू पा लिया गया।
दूसरी तिमाही में चीन का एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बढ़ा, मेन्युफैक्चरिंग सेक्टर में ग्रोथ हुई
दूसरी तिमाही में चीन की जीडीपी में 3.2% की ग्रोथ दर्ज की गई। चीन के नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टेटिस्टिक्स डिपार्टमेंट के मुताबिक, जून तिमाही में चीन के मेन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 4.4% की ग्रोथ रही, जबकि जनवरी से मार्च तिमाही में इसमें 2.5% की गिरावट आई थी।
इसके अलावा जून तिमाही में चीन के एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई। जनवरी से मार्च तिमाही में चीन का एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट 6.5% तक गिर गया था। हालांकि, जून तिमाही में भी इसमें गिरावट आई, लेकिन महज 0.2% की।
भारत में दुनिया का सबसे सख्त लॉकडाउन था, इससे जीडीपी गिरी
कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए सबसे पहले 22 मार्च को देश में एक दिन का जनता कर्फ्यू लगाया गया । उसके बाद 25 मार्च से 31 मई के बीच चार बार लॉकडाउन लगा। पहला लॉकडाउन 25 मार्च से 14 अप्रैल के बीच लगा था, जो सबसे सख्त था।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के कोविड-19 गवर्नमेंट रिस्पॉन्स ट्रैकर के मुताबिक, भारत में जितना सख्त लॉकडाउन लागू किया गया था, उतनी सख्ती दुनिया के किसी देश ने नहीं दिखाई।
जीडीपी गिरने के पीछे एक्सपर्ट इसे भी एक बड़ी वजह मानते हैं। डीके जोशी कहते हैं कि भारत में सख्त लॉकडाउन की वजह से सब कुछ बंद हो गया, जिस वजह से इस तिमाही में जीडीपी गिर गई।
इसके अलावा जून तिमाही में भारत में सिर्फ एग्रीकल्चर सेक्टर ही ऐसा था, जिसमें 3.4% की ग्रोथ रही। बाकी सभी सेक्टर में गिरावट आई। ऐसा इसलिए क्योंकि लॉकडाउन में सबकुछ बंद था।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने जीवन के अधिकतर मौकों पर खुद को एक सुपरमैन के रूप में पेश करते रहे हैं। एक ऐसा व्यक्ति, जिसके पास अथाह ताकत है जो कम सोता है, शायद ही कभी बीमार पड़ता है और जवानी के दिनों में खेल के मैदान में भी शानदार था। एक बार उन्होंने अपने डॉक्टर के हवाले से कहा था कि वह राष्ट्रपति बनने वाले अब तक के सबसे स्वस्थ व्यक्ति हैं।
74 साल के ट्रम्प अब दूसरी बार मैदान पर हैं। उनका सामना 77 साल के जो बाइडेन से है। इनमें से जो भी चुना जाएगा, वह अभी तक का सबसे ज्यादा उम्र वाला राष्ट्रपति होगा। अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनावों में उम्मीदवारों की सेहत के सवाल ने कभी-कभी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन, इस साल यह ज्यादा बड़ा मुद्दा बन रहा है।
ट्रम्प ने कहा है कि बाइडेन दवाओं पर चल रहे
राष्ट्रपति ट्रम्प लगातार कहते रहे हैं कि बाइडेन डिमेंशिया जैसी किसी बीमारी से जूझ रहे हैं। ट्रम्प ने पिछले हफ्ते बिना किसी सबूत के दावा किया था कि बाइडेन दवाओं पर चल रहे हैं। ट्रम्प ने चार साल पहले यही रणनीति डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन के खिलाफ भी अपनाई थी।
मंगलवार रात को ट्रम्प ने फॉक्स न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि डिबेट से पहले उन्हें और बाइडेन को ड्रग टेस्ट कराना चाहिए। उन्होंने 2016 में क्लिंटन को भी यही चैलेंज दिया था। क्लिंटन की तरह बाइडेन ने भी ट्रम्प के इस चैलेंज को नकार दिया है।
ट्रम्प ने चुपचाप खुद का इलाज करवाया
हाल ही में ट्रम्प की मानसिक और शारीरिक स्थिति पर सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में उनके लिए अपने विपक्षी जो बाइडेन की सेहत पर सवाल उठाना मुश्किल हो गया है। ट्रम्प ने इस हफ्ते एक क्रिटिक्स के ट्वीट पर जवाब देकर इस मुद्दे को फिर से गरमा दिया है। कहा जाता है कि ट्रम्प को हल्के दौरे (मिनी स्ट्रोक्स) पड़ते हैं।
वह पिछले साल नवंबर में चुपचाप मैरीलैंड के वाल्टर रीड नेशनल मिलिट्री सेंटर के हॉस्पिटल में एडमिट रहे थे। ट्रम्प ने इस दावे को नकारा है। उन्होंने इस पर कभी सीधा जवाब नहीं दिया, इससे और सवाल उठे। ट्रम्प की यह ट्रिप हमेशा सवालों के घेरे में रहेगी।
जब पानी पीना तक मुश्किल पड़ गया
हास्पिटल विजिट के कुछ महीनों बाद ट्रम्प वेस्ट प्वाइंट में मिलिट्री एकेडमी के समारोह में हिस्सा लेने पहुंचे। इस दौरान वह पानी का गिलास तक सही से नहीं पकड़ पा रहे थे। पानी पीने के लिए उन्हें दोनों हाथों से गिलास पकड़ना पड़ा। साथ ही उन्हें डर था कि अगर वी सीढ़ियां चढ़े तो गिर सकते हैं, इसलिए उन्होंने रैंप का इस्तेमाल किया।
न्यूयॉर्क टाइम्स के रिपोर्टर माइकल एस श्मिट ने अपनी किताब 'डोनाल्ड ट्रम्प वर्सेस यूनाइटेड स्टेट्स' में लिखा है कि समारोह के दौरान माइक पोम्पियो को स्टैंडबाई पर रखा गया था ताकि अगर ट्रम्प को एनेस्थीसिया की जरूरत पड़े तो वह स्थिति संभाल लें।
खबर आई तो आगबबूला हुए ट्रम्प
माइकल एस श्मिट की किताब को पढ़ने के बाद पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के कार्यकाल के दौरान व्हाइट हाउस में प्रेस सेक्रेटरी रहे जो लॉकहर्ट ने ट्वीट किया, "क्या डोनाल्ड ट्रम्प को दौरे आते हैं, जिसको अमेरिकी जनता से छिपाया जा रहा है?" ट्रम्प ने अगली सुबह जब यह खबर देखी तो गुस्से से आगबबूला हो गए।
उन्होंने ट्वीट कर इन खबरों को नकारा। इसके साथ ही उन्होंने व्हाइट हाउस के फिजीशियन को अपना ट्वीट फॉलो करने और इस बात को कन्फर्म करने के लिए कहा कि वह ठीक हैं। इसके बाद ट्रम्प के कैंपेन ने बाइडेन की सेहत को मुद्दा बनाना शुरू किया। उन्होंने बाइडेन के बारे में कहा कि वह वास्तव में बीमार हैं।
ओवरवेट हैं ट्रम्प
पिछले हफ्ते ही न्यूयॉर्क टाइम्स के साथ एक इंटरव्यू में बिना पूछे ही वह अपनी सेहत की जानकारी देने लगे। उन्होंने कहा, "मैं अच्छा महसूस करता हूं। मुझे लगता है कि मैं चार साल पहले की तुलना में ज्यादा बेहतर महसूस करता हूं।"
पिछली बसंत मे ट्रम्प का वजन 244 पाउंड (करीब 110 किलो) था। वह ओवरवेट हैं। ट्रम्प चीजबर्गर को स्वस्थ भोजन के रूप में पसंद करते हैं। गोल्फ के अलावा वह किसी भी एक्सरसाइज से नफरत करते हैं, उनका मानना है कि इससे ऊर्जा खत्म होती है।
2018 में हुए कोरोनरी कैल्शियम सिटी स्कैन से पता चलता है कि उनमें 70 की उम्र में करीब सभी लोगों में होने वाली हृदय समस्या है। जिसे कोलेस्ट्राल को कम करते और बेहतर डाइट लेकर सही किया जा सकता है।
क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो रहा है। इसमें दावा किया जा रहा है कि 21 सितंबर से देश भर में 9वीं से 12वीं के छात्रों के लिए स्कूल खुल जाएंगे।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 29 अगस्त को अनलॉक-4 की गाइडलाइंस जारी की थीं। दावा है कि इस गाइडलाइंस में ही स्कूल खोलने की अनुमति दी गई है।
सच क्या है?
स्कूल खुलने का दावा अनलॉक-4 की गाइडलाइंस के हवाले से किया जा रहा है। इसकी सच्चाई जांचने के लिए हमने गृह मंत्रालय की ऑफिशियल वेबसाइट पर दी गई गाइडलाइन चेक कीं।
गाइडलाइन के मुताबिक, 30 सितंबर तक रेगुलर क्लास बंद रहेंगी। 21 सितंबर से सिर्फ वे स्टूडेंट्स टीचर से गाइडेंस लेने के लिए स्कूल जा सकेंगे, जो कंटेनमेंट जोन में नहीं रहते। पैरेंट्स की लिखित मंजूरी भी लेनी होगी।
इससे कि 21 सितंबर से कुछ शर्तों के साथ 9वीं-12वीं के स्टूडेंट्स को टीचर का गाइडेंस लेने के लिए स्कूल जाने की अनुमति मिली है। यानी, वायरल मैसेज में आधा सच बताकर लोगों को भ्रमित किया जा रहा है, जबकि इसमें स्कूल खुलने जैसा कुछ नहीं है।