मंगलवार, 23 जून 2020

नवादा: पुल बनना तो दूर 77 साल में एक नाव तक नहीं चली; सरगुजा: एक गांव के 70 लोग तिब्बत बॉर्डर पर, गांववालों ने लगाए शांति मंत्र के झंडे

फोटोबिहार में नवादा जिले के गोसाई बिगहा गांव की है। यहां मानसूनी बारिश आते ही जिंदगी जुगाड़ पर ‘तैरने’ लगती है। दरअसल, यहां से सकरी नदी गुजरती है, जो 60 हजार ग्रामीणों के जीवन का मुख्य हिस्सा है। लोगों को क्षेत्र के मुख्यालय गोविंदपुर जाने के लिए नदी पार करनी होती है। सिर्फ इंसान ही नहीं, दिनचर्या की सामग्री, दो पहिया वाहनों और मवेशियों को ले जाने के लिए भी चचरी वाली नाव का सहारा लेना पड़ता है। यहां के बुजुर्ग बताते हैं- साल बदलते हैं लेकिन समस्या नहीं। जो समस्या बचपन में थी, वो 77 साल बादभी है।नतो पुल बने और नही नाव चली। लिहाजा, ग्रामीणों को आज भी जुगाड़ का सहारा ले रहे हैं।

मैनपाट के 70 जवान भारत-तिब्बत बाॅर्डर पर तैनात

यह छत्तीसगढ़ में सरगुजा जिले का मैनपाट गांव। चीन द्वारा पैदा किए गए तनाव के बाद से यहां घरों में ऐसे झंडे लहरा रहे हैं, जिन पर लिखा है- ‘हमारे जवान सुरक्षित रहें, बाॅर्डर में तनाव खत्म हो और युद्ध के हालात बनते हैं तो भारत की जीत हो।’ ऐसा इसलिए- क्योंकि यहां के 70 जवान भारत-तिब्बत बॉर्डर पर तैनात हैं। चीन ने 1962 में जब तिब्बत पर कब्जा किया था, तो तिब्बतियों को भारत में शरण मिली थी। इस गांव में पूर्वी तिब्बत के 3 हजार लोगों को शरण मिली। तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा यहां दो बार आ चुके हैं। यहां तिब्बती कैंप और बौद्ध मंदिर भी हैं।

रस्सी बांधकर लोगों और पशुओं कोकिया रेस्क्यू

फोटोऐतिहासिक बंदरगाह मांडवी की है। यहां रविवार और सोमवार को 48 घंटे में 15 इंच बारिश होने से अतिवृष्टि जैसे हालात बन गए। पहली बारिश में नदी, तालाब सब लबालब हो गए। शहर के रुक्मावती में बाढ़ आ गई। निचले इलाके रामेश्वर में पानी भरने पर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। रस्सी बांधकर लोगों और पशुओं को रेस्क्यू किया गया।

कयाघाट के नजदीक एनीकट पर बहाव तेज फिर भी आ-जा रहे हैं लोग

फोटो छत्तीसगढ़ केरायगढ़ जिले की है।शहर में सोमवार को जमकरबारिश हुई। सुबह से ही बादल छाए रहे। दिन भर बादल रुक-रुककर और रात 8 बजे के बाद झमाझम बारिश शुरू हुई। ऐसे मेंकयाघाट के नजदीक एनीकट पर बहाव तेज होने के बादभी लोगआ-जा रहे हैं। मौसम विभाग के अनुसार अगले 24 घंटे हल्की बारिश का अनुमान है।

छत्तीसगढ़ के सबसे भव्य जलप्रपात में बढ़ा पानी

नजारा छत्तीसगढ़ केइन्द्रावती नदी पर स्थित चित्रकोट जलप्रपात काहै। इसकीऊंचाई लगभग90 फीट है। इस जलप्रपात की विशेषता यह है कि वर्षा के दिनों में यह मिट्‌टी का रंग लिए हुए होता है, तो गर्मियों में चांदनी रात में यह बिल्कुल सफेद दिखाई देता है। अभी मानसून के शुरू होते ही अब इस रंग बदलने लगा है और धीरे-धीरे यह मिट्‌टी के रंग की ओर बढ़ रहा है। यह जलप्रपात छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा, सबसे चौड़ा और सबसे ज्यादा जल की मात्रा प्रवाहित करने वाला जलप्रपात है। लेकिन अभी कोरोना से बचाव के लिए भीड़ बढ़ने के डर से यहां पर्यटकों के लिए गेट बंद रखे गए हैं।

टनल की खूबसूरती में चार चांद लगाती हरियाली

दृश्य राजस्थान केबूंदी का है।पहाड़ों को छेदकर निकली टनल यूं तो आम दिनों में भी खूबसूरत लगती है, पर जब बारिश में पहाड़ हरियाली से लदजाते हैं तो टनल की खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं। बहुत जल्द बूंदी में भी मानसून का पदार्पण होनेवाला है, लगता है मानो बूंदी की धरा ने मानसून के ग्रेट वेलकम के लिए ग्रीन कारपेट बिछा दिया हो। महीनेभर से रुक-रुककर हो रही बारिश ने इस बार बूंदी को तपने ही नहीं दिया तो हरियाली भी बाग-बाग हो उठी। हैंगिंग ब्रिज कोटा का तो यह ट्विन टनल बूंदी का गौरव है। इन्हें देखने के लिए सैलानी आते हैं।

चौमासी बौछारों में बस दो दिन की ही दूरी

फोटो राजस्थान के जयपुर की है। यहांआसमान में सोमवार शाम बादलों का बड़ा झुंड आ जमा। ये मानसून के शीघ्र आगमन का संदेश लाया है। यानी- अब गर्मी की विदाई का वक्त आ गया है। चौमासी मानसून राजस्थान से 48 घंटे और जयपुर से अधिकतम 72 घंटे की दूरी पर है। माैसम विभाग के अनुसार 2013 के बाद पहली बार मानसून तय तारीख को आएगा। जयपुर मेंमानसून एंट्री की तय तिथि 29 जून है, जबकि इस बार इससे गुरुवार तक प्रवेश की पूरी संभावना बन रही है।



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Nawada: The bridge was not built even in 77 years by a boat; Surguja: 70 people from one village on Tibet border, villagers put flags of peace mantra


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ओलिंपियन दीपिका और अतानु की 12 साल पहले दोस्ती हुई, सात साल बात नहीं की; अब 30 जून को शादी करेंगे

ओलिंपियन तीरंदाज दीपिका कुमारी और अतानु दास 30 जून को रांची में शादी करने जा रहे हैं। दोनों पिछले 12 साल से तीरंदाजी से जुड़े हैं। शुरू में अच्छे दोस्त थे। इसके बाद दोस्ती टूट गई। 7 साल तक एक-दूसरे से बात तक नहीं की। साथ-साथ निशाने लगाते हुए एक बार फिर दोस्ती शुरू हुई और आखिर अब ये दोनों शादी के बंधन में बंधने जा रहे हैं।

दोनों खिलाड़ी अगले साल टोक्यो में होने वाले ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई कर चुके हैं। दीपिका झारखंड की जबकि अतानु दास पश्चिम बंगाल के हैं। कोरोना के बीच शादी के बारे में क्यों सोचा, इंटर-कास्ट मैरिज के लिए परिवार वाले कैसे राजी हुए। इन सब बातों पर पूर्व वर्ल्ड नंबर-1 तीरंदाजदीपिका कुमारी से बातचीत के मुख्य अंश:

सवालः कोरोना के समय ही शादी प्लान करने का कोई कारण?

जवाबः कोरोना में जिंदगी एक तरह से थम सी गई थी। फिर भी जीना तो पड़ेगा ही, तो हमने सोचा इस समय शादी करना ठीक रहेगा। पहले टोक्यो ओलिंपिक के बाद शादी का प्लान था। अब ओलिंपिक भी एक साल टल गया है। फिर न कोई कैंप चल रहा है और न ही कोई टूर्नामेंट हो रहा है। शादी में गाइडलाइन का पूरा ध्यान रखा जाएगा। 50 से ज्यादा लोग शादी में शामिल नहीं होंगे। सिर्फ फैमिली मेंबर और खास दोस्तों को ही बुलाया जाएगा।

सवालः एक समय ऐसा भी था, जब अतानु से आपकी दोस्ती टूट गई थी?

जवाबःमैं और अतानु 2008 से अच्छे दोस्त थे। 2010 में हमारी दोस्ती टूट गई। हर कैंप में, टूर्नामेंट में साथ रहते थे। साथ-साथ खेलते थे लेकिन सात साल तक हमने आपस में बात तक नहीं की। इसके बाद 2017 में मैक्सिको वर्ल्ड चैंपियनशिप के दौरान फिर बातचीत शुरू हुई और दोस्ती फिर से आगे बढ़ी। 2018 में हमने आखिरकार शादी का फैसला किया।

सवालः आपकी इंटर कास्ट मैरिज है। इसके लिए परिवार वाले कैसे राजी हुए?

जवाबःअतानु के परिवार में तो सब राजी थे, लेकिन मेरे परिवार और गांव में शुरू में लोग इंटर-कास्ट के लिए राजी नहीं थे। फिर मैंने मम्मी-पापा को समझाया। मेरे खेल की वजह से गांववालों से भी मुझे बहुत प्यार मिला है। बस जरूरत थी उनकी सोच बदलने की। उन्हें भी समझाया, फिर कोई परेशानी नहीं हुई।

सवालः लॉकडाउन के दौरान आपने किस तरह से समय बिताया?

जवाबःलॉकडाउन में घर में ही प्रैक्टिस कर रही थी। प्रैक्टिस ज्यादा नहीं की, बल्कि बंगाली खाना बनाना ज्यादा सीख रही थी। वैसे भी मुझे कुकिंग का शौक है। शादी के बाद घूमने का प्लान नहीं बनाया है। खेल के कारण विदेश बहुत घूमी हूं। मैं लद्दाख और जम्मू-कश्मीर देखना चाहूंगी। वहां के केसर के बैंगनी फूलों के बगीचे और बर्फ से घिरी पहाड़ियां मुझे पसंद हैं।

सवालः खेलप्रेमियों को आपसे ओलिंपिक मेडल की बहुत उम्मीदें हैं?

जवाबःजिंदगी में काफी कुछ हासिल किया है। सिर्फ और सिर्फ एक ही कमी है वह है ओलिंपिक मेडल। उम्मीद है टोक्यो ओलिंपिक में यह कमी भी पूरी हो जाएगी।



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दीपिका और अतानु 2008 से अच्छे दोस्त थे। अब दोनों का रिश्ता प्यार में बदल गया है।


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आईओसी रेवेन्यू का 90% खेल और खिलाड़ी के विकास पर खर्च करती है, हर दिन औसतन 26 करोड़ रु. खिलाड़ियों और संस्थाओं को देती है

इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी (आईओसी) एक नॉन-प्राॅफिट ऑर्गनाइजेशन है। यह समर और विंटर ओलिंपिक गेम्स का आयोजन करती है। इसके फाइनेंशियल प्लान की रिपोर्ट की बात की जाए तो आईओसी जितना रेवेन्यू जनरेट करती है, उसका 90% खेल और खिलाड़ियों के विकास पर खर्च कर देती है।

वह हर दिन करीब 26 करोड़ रुपए खेल और संस्थाओं की मदद के लिए देती है। आईओसी ने 2013 से 2016 के बीच करीब 43 हजार 330 करोड़ रुपए का रेवेन्यू जनरेट किया। इसमें सोच्चि विंटर ओलिंपिक (2014) और रियो ओलिंपिक (2016) की कमाई भी शामिल है। इसमें50% फंड वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) को आईओसी से मिलता है जबकि बाकी 50% अन्य देशों से।

  • 1170 करोड़ रुपए दिए हैं पिछले तीन यूथ ओलिंपिक के आयोजन के लिए आईओसी ने। ब्यूनस आयर्स (2018 गेम्स) में 4 हजार खिलाड़ी उतरे थे।
  • 420 करोड़ रुपए दिए आईओसी ने पिछले दो यूथ विंटर गेम्स के आयोजन के लिए। 2016 में हुए गेम्स में 1100 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था।

पिछले चार ओलिंपिक में आईओसी ने 60 फीसदी योगदान बढ़ाया
आईओसी ओलिंपिक की मेजबानी करने वाले शहर का आर्थिक दबाव कम करने के लिए 2.5 बिलियन डॉलर (करीब 19 हजार करोड़ रुपए) देती है। एथेंस 2004 से लेकर रियो 2016 या तूरिन 2006 विंटर गेम्स से प्योंगचेंग 2018 तक आईओसी ने मेजबान देशों को देने वाली राशि 60% तक बढ़ा दी।

4 समर गेम्स में नेशनल ओलिंपिक कमेटी को कुल 12 हजार करोड़ दिए
आईओसी दुनियाभर की नेशनल ओलिंपिक कमेटी (एनओसी) को भी गेम्स में हिस्सा लेने के लिए राशि देती है। आईओसी ने पिछले चार समर गेम्स में एनओसी को 1.59 बिलियन डॉलर (12 हजार करोड़ रुपए) दिए हैं। वहीं, पिछले 5 विंटर गेम्स में 852 मिलियन डॉलर (6 हजार 476 करोड़ रुपए) दिए थे।

स्कॉलर्स खिलाड़ियों ने 33 गोल्ड सहित 101 मेडल जीते थे
आईओसी ओलिंपिक एकता के लिए 3800 करोड़ रुपए देता है। इससे दुनियाभर के 20 हजार खिलाड़ी जुड़े हैं। इन्हें स्कॉलरशिप भी मिलती है। रियो ओलिंपिक 2016 में 815 ओलिंपिक स्कॉलर्स ने हिस्सा लिया था। इन्होंने 33 गोल्ड, 26 सिल्वर, 42 ब्रॉन्ज सहित कुल 101 मेडल जीते थे।



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Olympic Day Olympic Day News IOC spends 90% of its revenue on sports and player development, an average of Rs 26 crore per day. Gives players and institutions


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चीन के मामले में मोदी के पास विकल्पों की पुरानी थाली है, जिसमें नेहरू ने सबसे बुरा विकल्प चुना था

माओ ने 1959-62 में जैसा नेहरू के साथ किया था, उसी तरह शी जिनपिंग ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए उनके सार्वजनिक जीवन की सबसे बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। आने वाले दिनों में मोदी को ऐसे कदम उठाने पड़ेंगे, जो देश की रणनीतिक किस्मत और खुद उनकी राजनीतिक विरासत को तय करेंगे।

लद्दाख में चीन के उकसावे पर उनका क्या जवाब होगा, इसका अनुमान कठिन है। लेकिन तीन संकेत उभरते हैं। आज जब वे रणनीतिक और राजनीतिक विकल्प तौल रहे हैं, तब उनके दिमाग में क्या सवाल उठ रहे होंगे, इसका अंदाजा हम लगा सकते हैं। वे चुनौती का जवाब नेहरू की तरह देना तो कतई नहीं चाहेंगे।

शी जिनपिंग ने पसंद का समय चुनकर उन्हें चुनौती दी है, वैसे ही जैसे 1962 में माओ ने किया था। इसलिए मोदी पर दबाव है कि देश-दुनिया को कैसे दिखाएं कि हम 1962 वाले नेहरू नहीं हैं। नेहरू ने फैसला किया था (मैंने फौज से कहा है, चीनियों को भगाओ), जो साहसी भले दिखा हो मगर हकीकत से दूर था। इसलिए इतिहास उन्हें साहसी, सख्त नेता के रूप में याद नहीं करता।

आज मोदी को कई तरह की बढ़त हासिल हैं। नेहरू के बड़े आलोचक उनके मंत्रिमंडल में मौजूद थे। मोदी के साथ ऐसी समस्या नहीं है। विपक्ष कमजोर है। सेना तब के मुकाबले मजबूत है। लेकिन नेहरू की एक कमजोरी मोदी के साथ भी जुड़ी है: विशाल सार्वजनिक छवि और पतली चमड़ी। शी ने यह कमजोरी भांप ली है।

चीनियों ने देख लिया है कि मोदी के लिए घरेलू राजनीति में ‘चेहरा’ कितना महत्वपूर्ण है। उन पर एक सख्त, निर्णायक, जोखिम लेने वाला नेता दिखते रहने का दबाव है। लेकिन यह सब चीन के मामले में आसान नहीं लगता।

क्या इतिहास और भूगोल ने भारत की किस्मत में दो मोर्चों पर लड़ना लिख दिया है? क्या वह इन दो में से एक के साथ सुलह करके ‘त्रिशूल’ की चुभन से बच सकता है? अगर ऐसा हो तो वह किसे चुने? तीसरे, अगर उसके पास कोई उपाय नहीं है, तब तक वह मूलतः गुटनिरपेक्ष रह सकता है?

1962 में नेहरू ने गुटनिरपेक्षता को परे रखकर मदद के लिए अमेरिका को आवाज़ लगाई थी। मदद मिली, जाहिर है कीमत देकर। दिसंबर में सरदार स्वर्ण सिंह दबाव में कश्मीर मसले पर ज़ुल्फिकार अली भुट्टो से वार्ता कर रहे थे। यह पश्चिमी देशों से मदद पाने के एवज में करना पड़ा था। स्वर्ण सिंह अटक गए, नेहरू पीछे हटे, केनेडी की हत्या हो गई और अमेरिका के साथ जो अवसर बन रहा था वह खत्म हो गया।

इंदिरा गांधी तेज थीं। 1971 में बांग्लादेश के रूप में जो अवसर बना, तो उन्हें पता था कि वे तभी कामयाब होंगी जब भारत चीन के दबाव से मुक्त होगा। उन्होंने सोवियत संघ के साथ संधि की। इसने उन्हें युद्ध निपटाने के लिए कुछ सप्ताह दे दिए।

राजीव गांधी, नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. मनमोहन सिंह के पास वह राजनीतिक पूंजी नहीं थी जैसी मोदी के पास है। इन सबने ‘त्रिशूल’ को तोड़ने के लिए पाकिस्तान से सुलह की कोशिश की थी। मोदी ने भी नवाज़ शरीफ के साथ नाटकीय शुरुआत की मगर जल्दी कदम खींच लिए। आगे उन्होंने और उनकी पार्टी ने पाकिस्तान विरोध को सियासी सूत्र बना लिया।

मोदी ने भी पूर्ववर्तियों की तरह ‘त्रिशूल’ से मुक्त होने की कोशिश की लेकिन वे उनसे अलग चीन की ओर झुके। उसके साथ व्यापार घाटा 60 अरब डॉलर पहुंच गया तो भी इससे मुंह फेरे रहे। सारा गणित यह था कि चीन को एहसास दिलाया जाए कि भारत के साथ सुलह-शांति में उसका ही हित है।

शी ने अब दिखा दिया है कि विश्व का ‘डिप्टी सुपरपावर’ रणनीतिक हितों को व्यापार सरप्लस से नहीं तौलता। पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए उसके साथियों, पूरब में चीन और पश्चिम में अरब जगत को साथ लेने का विचार रचनात्मक और दुस्साहसी था। लेकिन शी ने पेशकश ठुकरा दी।

अब मोदी के पास वही तीन विकल्प बचे हैं- किसी सुपरपावर का हाथ थाम लो, दो पड़ोसियों में से एक से सुलह कर लो या ‘एकला चलो’ गाते हुए दोनों मोर्चों पर लड़ते रहो। इनमें पहले दो विकल्पों का मेल कैसा रहेगा?

सीमा समस्या को सुलझाना या एलएसी का निर्धारण करना उसके लिए फायदेमंद नहीं है। इन दो प्रतिद्वंदियों के बीच अमन तभी मुमकिन है जब सुपरपावर चाहेगा। भारत के लिए चीन वह सुपरपावर नहीं है। अब सवाल यह है कि क्या मोदी उस स्थिति की ओर लौटेंगे, जहां भारत ज्यादा ताकतवर शक्ति के रूप में पाकिस्तान से शांति की मांग करे?

पाकिस्तानी राज्यतंत्र के सुधार में विश्व समुदाय की भी दिलचस्पी है। अगर आप उस दिशा में बढ़ेंगे तो अपनी घरेलू राजनीति में जरूरी बदलाव करने होंगे। तब यह प्रश्न उभरेगा कि आपके रणनीतिक विकल्प आपकी चुनावी राजनीति से तय होते हैं या इसका उलटा है?

मोदी के सामने विकल्पों की वही पुरानी थाली है। नेहरू ने सबसे बुरा विकल्प चुना, इंदिरा ने सही विकल्प चुना मगर कुछ ही समय के लिए, मनमोहन सिंह ने तीसरा विकल्प आजमाने की कोशिश की थी लेकिन उनके पास न तो समय था और न राजनीतिक पूंजी थी।

(ये लेखक अपने विचार हैं)



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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’


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अमेरिका में कोरोना की दूसरी लहर के बीच ट्रम्प की लापरवाही भरी नीतियों से खतरा बढ़ रहा है

जब अमेरिका में कोराना का इतिहास लिखा जाएगा, तब इतिहासकार शायद लिखेंगे कि राष्ट्रपति ट्रम्प की सबसे बड़ी गलती यह नहीं थी कि वे 2020 की शुरुआत में वायरस से लड़ने की सही रणनीति नहीं बना पाए, जब इसकी रणनीति पर बहस हो रही थी। वे तो यह लिखेंगे कि ट्रम्प जून 2020 में तब असफल रहे, जब सही रणनीति स्पष्ट और आसान थी।

इसमें शक नहीं कि वायरस रहस्यमयी है। लेकिन अब इसके बारे में हम इतना तो जानते ही हैं, जिससे लॉकडाउन के बाद के इस चरण को कम खतरनाक और आर्थिक रूप से ज्यादा व्यवहार्य बना सकें। हम जानते हैं कि जिन देशों में सभी मास्क पहन रहे हैं, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं, वहां लोग कम संक्रमित हो रहे हैं और कर रहे हैं।

शीर्ष सरकारी विशेषज्ञ डॉ एंथनी फॉची ने बताया है कि इन आसान तरीकों के साथ में टेस्टिंग, संक्रमण की चेन को ट्रेस करने और संक्रमितों को क्वारेंटाइन करने से लॉकडाउन के बाद फिर से बढ़ रही मरीजों की संख्या को कम कर सकते हैं।

और इधर अमेरिका में ऐसे राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने मास्क पहनने की अवज्ञा को उदारवादियों के खिलाफ चुनौतीपूर्ण साहसिक कार्य में बदल दिया, जिन्होंने वेस्ट पॉइंट के 1100 कैडेट्स को कैंपस वापस बुलाकर दो हफ्तों के लिए क्वारेंटाइन करवाया, ताकि वे उनके ग्रैजुएशन समारोह को संबोधित करते हुए फोटो खिंचवा सकें, जिन्होंने बार और रेस्टोरेंट खोलने वाले गवर्नरों की तारीफें कीं और जिन्होंने टुल्सा में शनिवार को बड़ी रैली की योजना बनाई, जहां सबसे जरूरी एहतियात यह था कि आपको एक कानूनी घोषणापत्र देना होगा कि ‘आप स्वेच्छा से कोविड-19 होने का जोखिम उठा रहे हैं और इसके लिए डोनाल्ड ट्रम्प को जिम्मेदार नहीं ठहराएंगे।’

यह बहुत भयानक है, जैसे ट्रम्प रोज सुबह उठकर खुद से पूछते हों: आज किस स्वास्थ्य विशेषज्ञ की सलाह को नकारा दूं? कोरोना का फैलाव रोकने वाले कौन-से आसान तरीकों को नजरअंदाज करूं? आज कौन-से नीम-हकीम वाले इलाज को मैं बढ़ावा दूं?

हमारा लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा जानें और आजीविकाएं बचाने वाली टिकाऊ रणनीति होना चाहिए। और मैं हैरान हूं कि जो भी जान व नौकरियां बचाने की बात कर रहा है, उसे संवेदनाशून्य पूंजीवादी बता रहे हैं। अब 4 करोड़ अमेरिकी बेरोजगार हैं। अगर यही स्थिति रही तो इसके मानसिक और शारीरिक दुष्प्रभाव भयावह होंगे।

लेकिन ट्रम्प एहतियात की बात किए बगैर चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा अमेरिकी काम पर लौटें। यह बेहद मूर्खतापूर्ण है। क्योंकि अगर लोग बहुत से रिश्तेदारों, दोस्तों और सहकर्मियों को बीमार होते, मरते देखेंगे तो वे बाहर जाकर काम नहीं करेंगे, फिर ट्रम्प कुछ भी कहें।

ट्रम्प जन स्वास्थ्य पर जो प्रतिक्रिया दे रहे हैं, वह विज्ञान आधारित नहीं है, उनकी राजनीतिक जरूरतों पर आधारित है। कोविड-19 का फिर से बढ़ना, अस्पतालों में भीड़, साथ में पुलिस द्वारा हत्याओं के विरोध में अश्वेतों का प्रदर्शन, उसके साथ बेहद बेरोजगारी के साथ थके हुए राष्ट्र को दूसरे लॉकडाउन में भेजने का आदेश, यह सब एक साथ हो तो ध्यान देना जरूरी है।

आज एक असली राष्ट्रपति को गवर्नरों से क्या करने को कहना चाहिए? जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. डारिया लॉन्ग और डॉ. डेविड काट्ज द्वारा हाल ही में प्रस्तावित दिशानिर्देशों के आधार पर लोगों को पूरी सुरक्षा के साथ काम पर वापस लाने की तैयार की जाए।

काट्ज ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘आंकड़े बता रहे हैं कि वायरस युवाओं और स्वस्थ लोगों की तुलना में गंभीर रूप से बीमार और बुजुर्गों के लिए ज्यादा घातक है। यह भी स्पष्ट है कि बेरोजगारी के नतीजों और स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों के बारे में चिंताजनक अनुमान भी सही साबित हो रहे हैं।

हम नशा, घरेलू हिंसा और मानसिक रोगों के मामले बढ़ते हुए देख रहे हैं। हम यह भी जानते हैं कि यह वायरस हमेशा आसानी से नहीं फैलता। कई लोग कम एक्सपोजर या इस वायरस के लिए शरीर की प्रतिरोधकता या दोनों के चलते संक्रमित नहीं भी हो रहे हैं।’

काट्ज तर्क देते हैं, ‘अब हमारे पास कुछ करने के लिए पर्याप्त जानकारी है। हमें कमजोरों और बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने चाहिए। फिर बाकी लोग अपना काम शुरू कर सकते हैं। लेकिन जो नीतियां अभी हैं, उससे जोखिम बढ़ जाएगा।’ सबकुछ सामान्य होने के लिए कोरोना के खिलाफ व्यापक रोगप्रतिरोधक क्षमता की जरूरत है, जो केवल दो तरीकों से मिल सकती है।

पहला, वैक्सीन है जो सुरक्षित, असरकारी हो। उम्मीद है कि वैक्सीन सितंबर तक आ जाए, लेकिन नहीं आती है तो हम अर्थव्यवस्था को रोके नहीं रख सकते। काट्ज कहते हैं, ‘दूसरा तरीका है प्राकृतिक हर्ड इम्यूनिटी, जो उन लोगों को मिलेगी जिन्हें गंभीर संक्रमण का खतरा नहीं है, जो जरूरी सुरक्षा उपायों के साथ सामान्य जीवन की ओर लौट सकते हैं।

इस बीच हमें उनकी रक्षा भी करनी होगी जो असुरक्षित हैं। इसी तरह के विचारशील, जोखिम कम करने वाले तरीकों से ही हमें वायरस से अधिकतम सुरक्षा और न्यूनतम नुकसान के साथ हर्ड इम्यूनिटी मिलेगी।’
लेकिन हमारा मौजूदा बेतरतीब तरीका तो संकट की भीख मांग रहा है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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थाॅमस फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में नियमित स्तंभकार


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अच्छी खबरः सस्ता होगा घरेलू ब्रॉडबैंड, केंद्र सरकार लाइसेंस फीस घटाकर 1 रुपए करने की तैयारी में

आने वाले समय में घर पर ब्रॉडबैंड लगवाना सस्ता हो सकता है। सरकार घरेलू ब्राॅडबैंड पर लाइसेंस फीस प्रति घर 1 रुपए करने पर विचार कर रही है। फिलहाल, ब्राॅडबैंड सर्विस देने वाली कंपनियों से लाइसेंस फीस के तौर पर उनकी समायोजित सकल आय (एजीआर) का 8% हिस्सा लिया जाता है। इस कदम का सीधा फायदा रिलायंस जियो और एयरटेल जैसी कंपनियों को होगा।

दूरसंचार मंत्रालय सहित सभी संबंधित मंत्रालयों से इस सुझाव पर राय मांगी गई है। सरकार को उम्मीद है कि टेलीकॉम कंपनियां यह फायदा ग्राहकों तक पहुंचाएंगी और ब्रॉडबैंड सर्विस सस्ती होगी। कोरोना काल में वर्क फ्रॉम होम का कल्चर भी बढ़ा है। लिहाजा ब्रॉडबैंड कनेक्शन सस्ता होता है तो घर से काम करना भी सस्ता हो जाएगा।

प्रस्ताव में 2019 की इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है। इसके मुताबिक अगर फिक्स्ड लाइन ब्रॉडबैंड की पहुंच 10% बढ़ती है तो इससे संबंधित देश की जीडीपी में 1.9% की बढ़ोतरी होती है।

सरकार को मिलते हैं 880 करोड़ रु.
एजीआर की 8% लाइसेंस फीस की माैजूदा दर के आधार पर सरकार को 880 करोड़ रुपए मिलते हैं। इस मामले से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि ऐसे किसी नियम से सरकार को पांच साल में 5,927 करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है।

लेकिन, आम लोगों के बीच डिजिटल एक्सेस बढ़ने से जॉब के मौके बढ़ेंगे और यह किसी भी नुकसान की भरपाई के लिए काफी होगा। इस नियम से जियो इन्फोकॉम, भारती एयरटेल और वोडाफोन जैसी कंपनियों को फायदा होगा। कॉमर्शियल उपभोक्ताओं को ब्रॉडबैंड सर्विस मुहैया कराने के एवज में ली जाने वाली लाइसेंस फीस में कोई कटौती नहीं की जाएगी।

ब्राॅडबैंक मार्केट में किसकी कितनी हिस्सेदारी

कंपनी हिस्सेदारी
रिलायंस जियो 56.58%
भारती एयरटेल 20.59%
वोडाफोन-आइडिया 18.05%
बीएसएनएल 3.49%
एट्रिया कन्वर्जेंस 0.24%
अन्य 1.04%

सोर्स :ट्राई



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सरकार को उम्मीद है कि टेलीकॉम कंपनियां यह फायदा ग्राहकों तक पहुंचाएंगी और ब्रॉडबैंड सर्विस सस्ती होगी


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दुनिया में सबसे ज्यादा संक्रमित अमेरिका में मास्क का विरोध, जान से मारने की धमकी मिलने के बाद स्वास्थ्य अधिकारी नौकरी छोड़ रहे हैं

कोरोना महामारी से दुनियाभर के 90 लाख संक्रमितों में से सबसे ज्यादा 23 लाख अमेरिका में है। फिर भी यहां कोरोना रोकथाम के उपायों के खिलाफ लाखों लोग उठ खड़े हुए हैं। वे न सिर्फ मास्क का विरोध कर रहे हैं, बल्कि सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को भी नहीं मान रहे। अनिवार्य रूप से मास्क पहनने का आदेश जारी करने वाले स्वास्थ्य अधिकारियों को धमकी भी मिल रही हैं।

दक्षिण कैलिफोर्निया के ऑरेंज काउंटी मेंस्वास्थ्य अधिकारी डॉ. निकोल क्विक ने 10 जून को इसलिए इस्तीफा दे दिया क्योंकि उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलीं। डॉ क्विक की गलती ये थी कि उन्होंने सार्वजनिक स्थानों पर लोगों के लिए मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया था। कुछ घंटों बाद ही इसका विरोध शुरू हो गया। कुछ नाराज स्थानीय लोगों ने पोस्टर्स बनाए जिसमें उनकी तुलना हिटलर से की गई।

ये फोटोओकलाहोमा के टुल्सा की है। यहां ट्रम्प की रैली में शामिल होने आए लोग बिना मास्क के थे। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी नहीं किया।

धमकियां मिलने के बादडॉ. निकोल को सुरक्षा दी गई

ऑरेंज काउंटी के एक्जीक्यूटिव ऑफिसर फ्रैंक किम ने बताया कि सार्वजनिक मीटिंग और सोशल मीडिया पर लगातार मिल रही धमकियों के कारण उन्हें (डॉ क्विक को) सुरक्षा दी गई है। जनता में ये आक्रोश चौंकाने वाला है, क्योंकि इस क्षेत्र में 1.17 लाख लोग कोरोना महामारी के कारण मारे जा चुके हैं। जबकि 21 लाख पॉजिटिव पाए गए हैं। कैलिफोर्निया के ही सैंटा एना इलाके में मास्क समर्थकों के साथ धक्का-मुक्की की गई और नारे लगे- ‘हे हे हो हो मास्क को जाना होगा’।

पुलिस भी लगातार चेतावनी जारी कर रही

कैलिफोर्निया के स्वास्थ्य अधिकारियों के संगठन मेंएक्जीक्यूटिव डायरेक्टर कैट डेबुर्क ने भास्कर को बताया कि आम जनता में वैक्सीन को लेकर नाराजगी तो थी लेकिन इस कदर बढ़ जाएगी कि अधिकारियों को पुलिस सुरक्षा में घूमना पड़ेगा, ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया।

सैन डिएगो में अधिकारियों को चेतावनी जारी करनी पड़ी क्योंकि कई जगहों पर लोग भीड़ में बिना मास्क पहने पार्टी कर रहे थे। न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी जैसे राज्यों को छोड़ दें, तो बाकी सभी राज्यों में लोग न तो मास्क पहन रहे हैं, न ही जरूरी दूरी बनाकर रह रहे हैं। वहीं दक्षिण-पश्चिम मध्य राज्यों में बार और रेस्त्रां सुरक्षा नियम मानने को तैयार नहीं हैं। यही स्थिति शॉपिंग मॉल, थियेटर और समुद्र तटों पर भी है।

लोगों का मानना: ट्रम्प जिम्मेदार, जो खुद मास्क नहीं पहनते
लोगों का मानना है कि मास्क न पहनने की लापरवाही के पीछे अमेरिका के गैरजिम्मेदार नेतृत्व का हाथ है। ट्रम्प कई बार महामारी का मजाक उड़ा चुके हैं, वो खुद भी मास्क पहने नहीं दिखे। अब वे संक्रमित इलाकों में रैलियां कर रहे हैं। एक दिन पहले ओकलाहोमा के टुल्सा में रैली हुई, जहांं हफ्तेभर में कोरोना संक्रमितों और भर्ती मरीजों, दोनों की संख्या दोगुनी हो गई है।

रैली में 60 हजार लोग थे, ज्यादातर बिना मास्क के थे। रैली में ट्रम्प ने देश में कोरोना टेस्ट घटाने की बात कही, उन्होंने कहा कि इस संबंध में अधिकारियों को कहा गया है। ट्रम्प के इस बयान पर विशेषज्ञों ने आपत्ति जताई है। विशेषज्ञों का कहना है कि देश में संक्रमित वास्तव में बढ़ रहे हैं, राष्ट्रपति को इसकी चिंता होनी चाहिए।



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ट्रम्प कई बार महामारी का मजाक उड़ा चुके हैं, वो खुद भी मास्क पहने नहीं दिखे। अब वे संक्रमित इलाकों में रैलियां कर रहे हैं।


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वैज्ञानिकों ने तीन साल में 19% समुद्र की सतह को मापा, बचा हिस्सा इतना बड़ा कि उसमें दो मंगल ग्रह आसानी से समा सकते हैं

भविष्य में जलवायु में कैसा परिवर्तन आएगा, इसका अनुमान लगाने के लिए वैज्ञानिक समुद्र का अध्ययन कर रहे है। 2017 में निप्पॉन फाउंडेशन ने जेबको सीबेड 2030 प्रोजेक्ट की शुरुआत की। इसके तहत दुनियाभर के समुद्र की गहराई को मापने का लक्ष्य तयकिया गया।

अब तीन साल बाद वैज्ञानिकों ने दुनिया के 19% समुद्र को मापने का काम पूरा कर लिया है। लेकिन, उनके हिस्से में जो काम बचा है वह क्षेत्र इतना बड़ा है कि इसमें दो मंगल ग्रह आसानी से समा सकते हैं। पृथ्वी का व्यास 12,750 किमी है जबकि मंगल का 6,790 किमी। वैज्ञानिकों ने पिछले तीन साल में समुद्र की सतह का पांचवां हिस्सा यानी 1.45 करोड़ वर्ग किमी मापने का काम पूरा कर लिया है।

गहराई मापने के लिए स्पेसक्राफ्ट अल्टीमीटर उपकरण इस्तेमाल करते

सीबेड प्रोजेक्ट के डायरेक्टर जेमी मैकमाइकल फिलिप्स का कहना है कि समुद्र की अथाह गहराई को मापने के लिए हम एक विशेष प्रकार का स्पेसक्राफ्ट अल्टीमीटर उपकरण इस्तेमाल करते हैं। इस तकनीक का इस्मेमाल हम पानी के अंदर केबल लाइन बिछाने के लिए, समुद्र में नेवीगेशन और मत्स्य प्रबंधन या फिर मछुआरों की जान बचाने के लिए करते हैं। समुद्र तल के नीचे दुनिया की सबसे बड़ी विविधता मौजूद है, जो जमीन से बहुत बड़ी है।

समुद्री सतह के अध्ययन के साथ हम समुद्री पानी के बहाव और पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करने वाले महासागरों का जलवायु परिवर्तन पर होने वाले प्रभाव की रिसर्च कर रहे हैं। हम यह पता कर रहे हैं कि भविष्य में कहां समुद्री पानी बढ़ेगा ताकि हम इसकी सतह की सही तरीके से मैपिंग कर सकें।

ब्रिटिश-अमेरिकी कंपनी ओशन इंफिनिटी ने समुद्री सतह को मापने के लिए एक रोबोटिक जहाज बनाया है, जो समुद्री किनारे से लेकर दूरस्थ स्थानों को नापने का काम भी करेगा। इससे समुद्र में केबल बिछाने वाली कंपनियों को आसानी होगी। जेबको एक इंटर गवर्नमेंटल संस्थान है, जो दुनिया में मिलजुल कर समुद्र की गहराई मापने का काम कर रही है।

अल्ट्रासोनिक तरंगें पैदा कर मापी जाती है समुद्री सतह की गहराई
वैज्ञानिक समुद्र की गहराई का पता लगाने के लिए अल्ट्रासोनिक तरंगों को समुद्र के अंदर भेजते हैं, जो सतह से टकराकर परावर्तित हो जाती है। इन तरंगों को प्राप्त करके उनके जाने और वापस आने में लगे समय को आधा करके उसे समुद्र के पानी में ध्वनि के वेग के मान से गुणा करके समुद्र की गहराई मापी जाती है।



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वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि भविष्य में कहां समुद्री पानी बढ़ेगा ताकि इसकी सतह की सही तरीके से मैपिंग की जा सके।


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महाराष्ट्र ने 5 हजार करोड़ के चीनी करार रोके; गोवा में भी ऐसी तैयारी, 7 राज्यों में चीन का निवेश, सबसे ज्यादा 28 हजार करोड़ रु. गुजरात में

लद्दाख में चीनी सेना के साजिशन हमले में 20 भारतीय जवानों की शहादत के खिलाफ देशभर में आक्रोश लगातार बढ़ रहा है। महाराष्ट्र सरकार ने सोमवार को चीन की कंपनियों के साथ 5,020 करोड़ रु. के तीन बड़े समझौते रोक दिए हैं। वहीं, गोवा सरकार ने 1,400 करोड़ की लागत से जुआरी नदी पर बन रहे 8 लेन के पुल के प्रोजेक्ट से चीनी कंसल्टेंट कंपनी को हटाने के संकेत दिए हैं।

दूसरी तरफ, करीब 7 करोड़ छोटे दुकानदारों के संगठन कैट ने सोमवार को दिल्ली के करोल बाग में चीनी सामान की होली जलाई। महाराष्ट्र के उद्योग मंत्री सुभाष देसाई ने कहा कि केंद्र सरकार से मशविरे के बाद ही समझाते रोके गए हैं। विदेश मंत्रालय ने भविष्य में भी चीनी कंपनियों के साथ कोई समझौता नहीं करने को कहा है।

महाराष्ट्र में 16 हजार करोड़ के समझौते हुए थे

हाल में हुए ऑनलाइन इवेंट मैग्नेटिक महाराष्ट्र 2.0 में विभिन्न कंपनियों के साथ 16 हजार करोड़ के समझौते हुए थे। पुणे के तालेगांव में ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट स्थापित करने के लिए ग्रेट वॉल मोटर्स के साथ 3,770 करोड़, फोटोल (चीन) और पीएमआई इलेक्ट्रो के साथ 1,000 करोड़ और हेंगलु इंजीनियरिंग के साथ 250 करोड़ रु. के समझौते हुए थे, जिन पर सरकार ने रोक लगा दी। हालांकि, इन्हें रद्द करने के बारे में अभी कुछ नहीं कहा है।

2010 में चीन ने 1 हजार करोड़ रु. निवेश किए थे, अब दो साल में ही 85 हजार करोड़ रु. लगाए

चिंता की 2 बातें
1. दूसरे देशों के जरिए होने वाला चीनी निवेश पकड़ में नहीं आ पाता
भारत के टेक्नोलॉजी सेक्टर में चीन के कुल निवेश का अंदाजा लगाना मुश्किल है, क्योंकि कई निवेश हांगकांग, सिंगापुर या किसी तीसरे देश के जरिए हुए हैं। उदाहरण के लिए शाओमी चीनी कंपनी है, लेकिन भारत के सरकारी आंकड़ों में इसका जिक्र नहीं है। क्योंकि, शाओमी की सब्सिडियरी कंपनी ने सिंगापुर से 3500 करोड़ रु. निवेश किए हैं।

2. सभी चीनी टेक्नोलॉजी कंपनियां डेटा चोरी करअपनी सरकार को देती हैं'
चीन में अलीबाबा जैसी निजी कंपनियों पर भी सरकारी नियंत्रण है। ब्रूकिंग्स इंडिया में प्रकाशित अनंत कृष्णन के शोध के मुताबिक, चीनी कंपनियों का भारत में निवेश डराने वाला है, क्योंकि चीनी सरकार सर्विलांस से लेकर सेंसरशिप तक जैसे सभी काम इन्हीं कंपनियों से कराती है। इसीलिए यूरोपीय देशों ने चीनी कंपनियों पर कुछ प्रतिबंध लगाए हैं, जो भारत में नहीं हैं।

टेक्नोलॉजी सेक्टर में सबसे ज्यादा निवेश

भारत में सबसे बड़ी डील फुसान ग्रुप ने की थी। इसने साल 2017 में ग्लैंड फार्मा में 8,284 करोड़ रु. में 74% हिस्सेदारी खरीदी। इसके अलावा अधिकतर निवेश टेक्नोलॉजी सेक्टर में है। 2017 में ई-कॉमर्स और फिन-टेक सेक्टर के स्टार्टअप में चीन ने 53,200 करोड़ रु. लगाए।

देश में कार्यरत 30 बड़े स्टार्टअप में से 18 में लगा है चीन का पैसा
देश में 75 से ज्यादा कंपनियों में चीनी निवेश हैं। 30 यूनिकॉर्न (1 अरब डॉलर यानी 7600 करोड़ रु. से अधिक वैल्यू के स्टार्टअप) में से 18 में चीनी निवेश है। यानी इनमें 60% स्टार्टअप में चीन की सरकारी और निजी कंपनियों का पैसा लगा हुआ है।

ये कंपनियां चीनी नहीं, पर पैसा चीन का भी

स्नैपडील, स्विगी, ओला, पेटीएम डॉट कॉम, फ्लिपकार्ट, बिग बास्केट, जोमैटो, हाइक, पेटीएम मॉल, ओयो, बायजू, मेक माई ट्रिप, पॉलिसी बाजार, क्विकर आदि।



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Maharashtra stopped Chinese agreements worth 5 thousand crores; Such preparation also in Goa, China's investment in 7 states, maximum 28 thousand crores. In gujarat


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पुलवामा में सुरक्षाबलों के साथ एनकाउंटर में 2 आतंकी मारे गए, घर में करीब 5 दहशतगर्दों के छिपे होने का शक 

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच मंगलवार तड़के मुठभेड़ शुरू हुई। इसमें अब तक दो आतंकी मारे गए हैं। फिलहाल एनकाउंटर जारी है और दोनों ओर से गोलीबारी हो रही है।

न्यूज एजेंसी के मुताबिक, सुरक्षाबलों को पुलवामा के बंदजू इलाके में करीब 5 आतंकियों के छिपे होने की सूचना मिली थी। इसके बाद पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने इलाके में तलाशी अभियान चलाया। इस दौरान आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी।



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जम्मू-कश्मीर में पिछले दिनों कई आतंकी मारे गए हैं। (फाइल)


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महाराष्ट्र ने 5 हजार करोड़ के चीनी करार रोके; गोवा में भी ऐसी तैयारी, 7 राज्यों में चीन का निवेश, सबसे ज्यादा 28 हजार करोड़ रु. गुजरात में

लद्दाख में चीनी सेना के साजिशन हमले में 20 भारतीय जवानों की शहादत के खिलाफ देशभर में आक्रोश लगातार बढ़ रहा है। महाराष्ट्र सरकार ने सोमवार को चीन की कंपनियों के साथ 5,020 करोड़ रु. के तीन बड़े समझौते रोक दिए हैं। वहीं, गोवा सरकार ने 1,400 करोड़ की लागत से जुआरी नदी पर बन रहे 8 लेन के पुल के प्रोजेक्ट से चीनी कंसल्टेंट कंपनी को हटाने के संकेत दिए हैं।

दूसरी तरफ, करीब 7 करोड़ छोटे दुकानदारों के संगठन कैट ने सोमवार को दिल्ली के करोल बाग में चीनी सामान की होली जलाई। महाराष्ट्र के उद्योग मंत्री सुभाष देसाई ने कहा कि केंद्र सरकार से मशविरे के बाद ही समझाते रोके गए हैं। विदेश मंत्रालय ने भविष्य में भी चीनी कंपनियों के साथ कोई समझौता नहीं करने को कहा है।

महाराष्ट्र में 16 हजार करोड़ के समझौते हुए थे

हाल में हुए ऑनलाइन इवेंट मैग्नेटिक महाराष्ट्र 2.0 में विभिन्न कंपनियों के साथ 16 हजार करोड़ के समझौते हुए थे। पुणे के तालेगांव में ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट स्थापित करने के लिए ग्रेट वॉल मोटर्स के साथ 3,770 करोड़, फोटोल (चीन) और पीएमआई इलेक्ट्रो के साथ 1,000 करोड़ और हेंगलु इंजीनियरिंग के साथ 250 करोड़ रु. के समझौते हुए थे, जिन पर सरकार ने रोक लगा दी। हालांकि, इन्हें रद्द करने के बारे में अभी कुछ नहीं कहा है।

2010 में चीन ने 1 हजार करोड़ रु. निवेश किए थे, अब दो साल में ही 85 हजार करोड़ रु. लगाए

चिंता की 2 बातें
1. दूसरे देशों के जरिए होने वाला चीनी निवेश पकड़ में नहीं आ पाता
भारत के टेक्नोलॉजी सेक्टर में चीन के कुल निवेश का अंदाजा लगाना मुश्किल है, क्योंकि कई निवेश हांगकांग, सिंगापुर या किसी तीसरे देश के जरिए हुए हैं। उदाहरण के लिए शाओमी चीनी कंपनी है, लेकिन भारत के सरकारी आंकड़ों में इसका जिक्र नहीं है। क्योंकि, शाओमी की सब्सिडियरी कंपनी ने सिंगापुर से 3500 करोड़ रु. निवेश किए हैं।

2. सभी चीनी टेक्नोलॉजी कंपनियां डेटा चोरी करअपनी सरकार को देती हैं'
चीन में अलीबाबा जैसी निजी कंपनियों पर भी सरकारी नियंत्रण है। ब्रूकिंग्स इंडिया में प्रकाशित अनंत कृष्णन के शोध के मुताबिक, चीनी कंपनियों का भारत में निवेश डराने वाला है, क्योंकि चीनी सरकार सर्विलांस से लेकर सेंसरशिप तक जैसे सभी काम इन्हीं कंपनियों से कराती है। इसीलिए यूरोपीय देशों ने चीनी कंपनियों पर कुछ प्रतिबंध लगाए हैं, जो भारत में नहीं हैं।

टेक्नोलॉजी सेक्टर में सबसे ज्यादा निवेश

भारत में सबसे बड़ी डील फुसान ग्रुप ने की थी। इसने साल 2017 में ग्लैंड फार्मा में 8,284 करोड़ रु. में 74% हिस्सेदारी खरीदी। इसके अलावा अधिकतर निवेश टेक्नोलॉजी सेक्टर में है। 2017 में ई-कॉमर्स और फिन-टेक सेक्टर के स्टार्टअप में चीन ने 53,200 करोड़ रु. लगाए।

देश में कार्यरत 30 बड़े स्टार्टअप में से 18 में लगा है चीन का पैसा
देश में 75 से ज्यादा कंपनियों में चीनी निवेश हैं। 30 यूनिकॉर्न (1 अरब डॉलर यानी 7600 करोड़ रु. से अधिक वैल्यू के स्टार्टअप) में से 18 में चीनी निवेश है। यानी इनमें 60% स्टार्टअप में चीन की सरकारी और निजी कंपनियों का पैसा लगा हुआ है।

ये कंपनियां चीनी नहीं, पर पैसा चीन का भी

स्नैपडील, स्विगी, ओला, पेटीएम डॉट कॉम, फ्लिपकार्ट, बिग बास्केट, जोमैटो, हाइक, पेटीएम मॉल, ओयो, बायजू, मेक माई ट्रिप, पॉलिसी बाजार, क्विकर आदि।



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अच्छी खबरः सस्ता होगा घरेलू ब्रॉडबैंड, केंद्र सरकार लाइसेंस फीस घटाकर 1 रुपए करने की तैयारी में

आने वाले समय में घर पर ब्रॉडबैंड लगवाना सस्ता हो सकता है। सरकार घरेलू ब्राॅडबैंड पर लाइसेंस फीस प्रति घर 1 रुपए करने पर विचार कर रही है। फिलहाल, ब्राॅडबैंड सर्विस देने वाली कंपनियों से लाइसेंस फीस के तौर पर उनकी समायोजित सकल आय (एजीआर) का 8% हिस्सा लिया जाता है। इस कदम का सीधा फायदा रिलायंस जियो और एयरटेल जैसी कंपनियों को होगा।

दूरसंचार मंत्रालय सहित सभी संबंधित मंत्रालयों से इस सुझाव पर राय मांगी गई है। सरकार को उम्मीद है कि टेलीकॉम कंपनियां यह फायदा ग्राहकों तक पहुंचाएंगी और ब्रॉडबैंड सर्विस सस्ती होगी। कोरोना काल में वर्क फ्रॉम होम का कल्चर भी बढ़ा है। लिहाजा ब्रॉडबैंड कनेक्शन सस्ता होता है तो घर से काम करना भी सस्ता हो जाएगा।

प्रस्ताव में 2019 की इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है। इसके मुताबिक अगर फिक्स्ड लाइन ब्रॉडबैंड की पहुंच 10% बढ़ती है तो इससे संबंधित देश की जीडीपी में 1.9% की बढ़ोतरी होती है।

सरकार को मिलते हैं 880 करोड़ रु.
एजीआर की 8% लाइसेंस फीस की माैजूदा दर के आधार पर सरकार को 880 करोड़ रुपए मिलते हैं। इस मामले से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि ऐसे किसी नियम से सरकार को पांच साल में 5,927 करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है।

लेकिन, आम लोगों के बीच डिजिटल एक्सेस बढ़ने से जॉब के मौके बढ़ेंगे और यह किसी भी नुकसान की भरपाई के लिए काफी होगा। इस नियम से जियो इन्फोकॉम, भारती एयरटेल और वोडाफोन जैसी कंपनियों को फायदा होगा। कॉमर्शियल उपभोक्ताओं को ब्रॉडबैंड सर्विस मुहैया कराने के एवज में ली जाने वाली लाइसेंस फीस में कोई कटौती नहीं की जाएगी।

ब्राॅडबैंक मार्केट में किसकी कितनी हिस्सेदारी

कंपनी हिस्सेदारी
रिलायंस जियो 56.58%
भारती एयरटेल 20.59%
वोडाफोन-आइडिया 18.05%
बीएसएनएल 3.49%
एट्रिया कन्वर्जेंस 0.24%
अन्य 1.04%

सोर्स :ट्राई



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सरकार को उम्मीद है कि टेलीकॉम कंपनियां यह फायदा ग्राहकों तक पहुंचाएंगी और ब्रॉडबैंड सर्विस सस्ती होगी


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2500 साल में पहली बार भगवान मंदिर से बाहर निकलेंगे लेकिन भक्त घरों में रहेंगे, कुल 9 दिन का उत्सव, 7 दिन मौसी के घर रहेंगे जगन्नाथ

मंगलवार को आखिरकार रथयात्रा के लिए बने रथों के पहिए खींचे जाएंगे। लगभग तीन महीनों से चल रही उधेड़बुन की स्थिति अब साफ हो गई है। 2500 साल से ज्यादा पुराने रथयात्रा के इतिहास में पहली बार ऐसा मौका होगा, जब भगवान जगन्नाथ की रथयात्रानिकलेगी, लेकिन भक्त घरों में कैद रहेंगे। कोरोना महामारी के चलते पुरी शहर को टोटल लॉकडाउन करके रथयात्रा को मंदिर के 1172 सेवक गुंडिचा मंदिर तक ले जाएंगे।

2.5 किमी की इस यात्रा के लिए मंदिर समिति को दिल्ली तक का सफर पूरा करना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद मंदिर समिति के साथ कई संस्थाओं ने सरकार से मांग की कि रथयात्रा के लिए फिर प्रयास करें। सुप्रीम कोर्ट में 6 याचिकाएं लगाई गईं। अंततः फैसला मंदिर समिति के पक्ष में आया और पुरी शहर में उत्साह की लहर दौड़ गई। फैसला आते ही, सेवकों ने रथशाला में खड़े रथों को खींचकर मंदिर के सामने ला खड़ा किया।

मंगलवार को रथयात्रा पूरी कर भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर मुख्य मंदिर से ढाई किमी दूर गुंडिचा मंदिर जाएंगे। यहां सात दिन रुकने के बाद आठवें दिन फिर मुख्य मंदिर पहुंचेंगे। कुल नौ दिन का उत्सव पुरी शहर में होता है। मंदिर समिति पहले ही तय कर चुकी थी कि पूरे उत्सव के दौरान आम लोगों को इन दोनों ही मंदिरों से दूर रखा जाएगा। पुरी में लॉकडाउन हटने के बाद भी धारा 144 लागू रहेगी।

भगवान जगन्नाथ का रथ 15 दिन देरी से बनना शुरू हुआ था, लेकिन कारीगरों ने ज्यादा समय काम करके रिकॉर्ड 40 दिन में पूरा कर दिया।
  • दुनिया की सबसे बड़ी रसोई की रिप्लिका गुंडिचा मंदिर में

भगवान जगन्नाथ के लिए जगन्नाथ मंदिर में 752 चूल्हों पर खाना बनता है। इसे दुनिया की सबसे बड़ी रसोई का दर्जा हासिल है। रथयात्रा के नौ दिन यहां के चूल्हे ठंडे हो जाते हैं। गुंडिचा मंदिर में भी 752 चूल्हों की ही रसोई है, जो जगन्नाथ की रसोई की ही रिप्लिका मानी जाती है। इस उत्सव के दौरान भगवान के लिए भोग यहीं बनेगा।

रथों के निर्माण के लिए मंदिर परिसर में ही अलग से रथखला बनाई गई थी। आमतौर पर रथ मंदिर के सामने वाली सड़क पर ही बनाए जाते हैं, लेकिन इस बार कोरोना के चलते इसके लिए अलग से व्यवस्था की गई थी।

भास्कर नॉलेज

  • 16 पहियों वाला 13 मीटर ऊंचा जगन्नाथ का रथ, इसके 3 नाम

भगवान जगन्नाथ का रथ- इसके तीन नाम हैं जैसे- गरुड़ध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष आदि। 16 पहियों वाला ये रथ 13 मीटर ऊंचा होता है। रथ के घोड़ों का नाम शंख, बलाहक, श्वेत एवं हरिदाश्व है। ये सफेद रंग के होते है। सारथी का नाम दारुक है। रथ पर हनुमानजी और नरसिंह भगवान का प्रतीक होता है। रथ पर रक्षा का प्रतीक सुदर्शन स्तंभ भी होता है। इस रथ के रक्षक गरुड़ हैं। रथ की ध्वजा त्रिलोक्यवाहिनी कहलाती है। रथ की रस्सी को शंखचूड़ कहते हैं। इसे सजाने में लगभग 1100 मीटर कपड़ा लगता है।

बलभद्र का रथ- इनके रथ का नाम तालध्वज है। रथ पर महादेवजी का प्रतीक होता है। इसके रक्षक वासुदेव और सारथी मातलि हैं। रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं। त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा व स्वर्णनावा इसके अश्व हैं। यह 13.2 मीटर ऊंचा और 14 पहियों का होता है। लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है। रथ के घोड़े नीले रंग के होते हैं।

सुभद्रा का रथ- इनके रथ का नाम देवदलन है। रथ पर देवी दुर्गा का प्रतीक मढ़ा जाता है। इसकी रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन हैं। रथ का ध्वज नदंबिक कहलाता है। रोचिक, मोचिक, जीता व अपराजिता इसके अश्व होते हैं। इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचूड़ा कहते हैं। ये 12.9 मीटर ऊंचा और 12 पहियों वाला रथ लाल, काले कपड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों से बनता है। रथ के घोड़े कॉफी कलर के होते हैं।

रथयात्रा के रथ को मंदिर के 1172 सेवक ही खींचेंगे। इन सभी का कोरोना टेस्ट भी पहले ही कर लिया गया था, जिनमें सभी की रिपोर्ट नेगेटिव आई थी। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि एक रथ को 500 लोग से ज्यादा ना खींचे।
  • पुरी के कई नाम

पुरी एक ऐसा स्थान है, जिसे हजारों वर्षों से कई नामों जैसे- नीलगिरी, नीलाद्रि, नीलांचल, पुरुषोत्तम, शंखश्रेष्ठ, श्रीश्रेष्ठ, जगन्नाथ धाम, जगन्नाथ पुरी - से जाना जाता है।

  • गुंडिचा मंदिर में ही बनी थी जगन्नाथ की पहली प्रतिमा

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को निकाली जाती है। यह यात्रा गुंडिचा मंदिर तक जाकर पुन: आती है। ऐसी मान्यता है कि इसी गुंडिचा मंदिर में देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्राजी की प्रतिमाओं का निर्माण किया था। इसलिए गुंडिचा मंदिर को ब्रह्मलोक या जनकपुरी भी कहा जाता है।

रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ कुछ समय इस मंदिर में बिताते हैं। इस समय गुंडिचा मंदिर में भव्य महोत्सव मनाया जाता है। इसे गुंडिचा महोत्सव कहते हैं। गुंडिचा मंडप से रथ पर बैठकर दक्षिण दिशा की ओर आते हुए श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्राजी के जो दर्शन करता है, वे मोक्ष के भागी होते हैं।

रथयात्रा के समय जिन रस्सियों से रथ खींचा जाता है वो केरल से बनकर आती हैं। करीब 15 दिन पहले ही केरल से ये रस्सियां पुरी पहुंची गई थीं।
  • रथयात्रा की कहानीः मालव के राजा को पहली बार दिए थे दर्शन

पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकालने की परंपरा काफी पुरानी है। इस रथयात्रा से जुड़ी कई किवंदतियां भी प्रचलित हैं। उसी के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकालने की परंपरा राजा इंद्रद्युम ने प्रारंभ की थी। यह कथा संक्षेप में इस प्रकार है-

कलयुग के प्रारंभिक काल में मालव देश पर राजा इंद्रद्युम का शासन था। वह भगवान जगन्नाथ का भक्त था। एक दिन इंद्रद्युम नीलांचल पर्वत पर गया तो उसे वहां देव प्रतिमा के दर्शन नहीं हुए। निराश होकर जब वह वापस आने लगा, तभी आकाशवाणी हुई कि शीघ्र ही भगवान जगन्नाथ मूर्ति के स्वरूप में पुन: धरती पर आएंगे। यह सुनकर वह खुश हुआ।

एक बार जब इंद्रद्युम पुरी के समुद्र तट पर टहल रहा था, तभी उसे समुद्र में लकड़ी के दो विशाल टुकड़े तैरते हुए दिखाई दिए। तब उसे आकाशवाणी की याद आई और उसने सोचा कि इसी लकड़ी से वह भगवान की मूर्ति बनवाएगा। तभी भगवान की आज्ञा से देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा वहां बढ़ई के रूप में आए और उन्होंने उन लकड़ियों से भगवान की मूर्ति बनाने के लिए राजा से कहा। राजा ने तुरंत हां कर दी।

तब बढ़ई रूपी विश्वकर्मा ने यह शर्त रखी कि वह मूर्ति का निर्माण एकांत में करेंगे, यदि कोई वहां आया तो वह काम अधूरा छोड़कर चले जाएंगे। राजा ने शर्त मान ली। तब विश्वकर्मा ने गुण्डिचा नामक स्थान पर मूर्ति बनाने का काम शुरू किया। एक दिन भूलवश राजा बढ़ई से मिलने पहुंच गए।

उन्हें देखकर विश्वकर्मा वहां से अन्तर्धान हो गए और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी रह गईं। तभी आकाशवाणी हुई कि भगवान इसी रूप में स्थापित होना चाहते हैं। तब राजा इंद्रद्युम ने विशाल मंदिर बनवा कर तीनों मूर्तियों को वहां स्थापित कर दिया।

भगवान जगन्नाथ ने ही राजा इंद्रद्युम को दर्शन देकर कहा कि वे साल में एक बार अपनी जन्मभूमि अवश्य जाएंगे। स्कंदपुराण के उत्कल खंड के अनुसार, इंद्रद्युम ने आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को प्रभु को उनकी जन्मभूमि जाने की व्यवस्था की। तभी से यह परंपरा रथयात्रा के रूप में चली आ रही है।



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रथयात्रा को लेकर देर रात तक मंदिर के सामने तैयारियां चलती रहीं। शाम से ही रथों को रथखला से खींचकर मंदिर के सामने लाया गया।


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भारत का ओलिंपिक में 100 साल का सफर पूरा, इन 5 बड़ी कामयाबियों ने भारतीय खेल को बदला

आज 73वां अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक दिवस मनाया जा रहा है। इसकी शुरुआत 23 जून 1948 से हुई थी। हालांकि, पहला आधुनिक ओलिंपिक 1896 में ग्रीस के एथेंस में खेला गया था। इन गेम्स में भारत ने अपना 100 साल का सफर पूरा कर लिया है। देश ने पहली बार आधिकारिक टीम 1920 के ओलिंपिक में भेजी थी। यह गेम्स पहले वर्ल्ड वॉर के बाद बेल्जियम के एंटवर्प में हुए थे।

भारत ने अब तक 26 मेडल जीते हैं। इसमें 9 गोल्ड, 5 सिल्वर और 12 ब्रॉन्ज शामिल हैं। देश को हॉकी में 11 और शूटिंग में 4 पदक मिले हैं। इसके अलावा रेसलिंग में 5, बैडमिंटन-बॉक्सिंग में 2-2 और टेनिस-वेटलिफ्टिंग में 1-1 पदक जीता है।

1900 में ब्रिटिश मूल के पिचार्ड ने भारत की ओर से मेडल जीता था
वैसे तो 1900 के पेरिस ओलिंपिक में ब्रिटिश शासन वाले भारत की ओर से पहली बार नार्मन पिचार्ड गेम्स में शामिल हुए थे। उन्होंने 200 मीटर रेस और 200 मी. हर्डल्स रेस (बाधा दौड़) में दो रजत पदक जीते थे। कई इतिहासकार इस मेडल को भारत के खाते में नहीं गिनते, क्योंकि पिचार्ड ब्रिटिश मूल के थे। जबकि अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति इसे भारत के खाते में गिनती है। हालांकि,आधिकारिक भारतीयटीम भेजने के लिहाज से देखा जाए तोभारत के 100 साल अब पूरे हुए हैं।

टोक्यो ओलिंपिक के लिए 100 से ज्यादा भारतीय एथलीट्स जाएंगे
अपने इस सफर में भारत अगले साल 23 जुलाई से 8 अगस्त तक होने वाले टोक्यो ओलिंपिक में पूरी तैयारी के साथ उतरने वाला है। यह गेम्स इसी साल होने थे, लेकिन कोरोनावायरस के कारण एक साल के लिए टाल दिए गए। भारत की ओर से 100 से ज्यादा खिलाड़ियों का दल टोक्यो भेजने की तैयारी है। इनमें से देश को बैडमिंटन, रेसलिंग, बॉक्सिंग और शूटिंग में मेडल मिल सकते हैं।

भारत ने अब तक 15 व्यक्तिगत ओलिंपिक मेडल जीते

खिलाड़ी मेडल खेल कब कहां
केडी जाधव ब्रॉन्ज रेसलिंग 1952 हेलसिंंगी (फिनलैंंड)
लिएंंडर पेस ब्रॉन्ज टेनिस 1996 अटलांटा (जॉर्जिया)
कर्णम मल्लेश्वरी ब्रॉन्ज वेटलिफ्टिंग 2000 सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)
राज्यवर्धन सिंह राठौड़ सिल्वर शूटिंग 2004 एथेंस(ग्रीस)
अभिनव बिंद्रा गोल्ड शूटिंग 2008 बीजिंग(चीन)
सुशील कुमार ब्रॉन्ज रेसलिंग 2008 बीजिंग(चीन)
विजेंदर सिंह ब्रॉन्ज बॉक्सिंग 2008 बीजिंग(चीन)
सुशील कुमार सिल्वर रेसलिंग 2012 लंदन(इंग्लैंड)
विजय कुमार सिल्वर रेसलिंग 2012 लंदन(इंग्लैंड)
एमसी मैरीकॉम ब्रॉन्ज बॉक्सिंग 2012 लंदन(इंग्लैंड)
साइना नेहवाल ब्रॉन्ज बैडमिंटन 2012 लंदन(इंग्लैंड)
योगेश्वर दत्त ब्रॉन्ज रेसलिंंग 2012 लंदन(इंग्लैंड)
गगन नारंंग ब्रॉन्ज शूटिंग 2012 लंदन(इंग्लैंड)
पीवी सिंधु सिल्वर बैडमिंटन 2016 रियो(ब्राजील)
साक्षी मलिक ब्रॉन्ज रेसलिंग 2016 रियो(ब्राजील)
  • इन 5 बड़ी कामयाबियों ने भारतीय खेल को बदला
भारत को ओलिंपिक में पहला मेडल हॉकी टीम ने दिलाया। टीम ने 1928 के गेम्स में गोल्ड जीता था।

शुरुआत के दो ओलिंपिक 1920 और 1924 में खाली हाथ रहने के बाद भारत ने 1928 में पदक का खाता खोला था, वह भी सीधे गोल्ड के साथ। देश को यह पहला पदक हॉकी ने दिलाया। इस कामयाबी का असर यह हुआ कि हॉकी में भारत ने 1956 तक लगातार 6 गोल्ड जीते। 1960 में सिल्वर, 1964 में गोल्ड, 1968 और 1972 में ब्रॉन्ज के बाद 1980 में 8वां गोल्ड जीता। आजादी के बाद देश का राष्ट्रीय खेल हॉकी ही रहा है। देश का बच्चा-बच्चा हॉकी खेलता था।

1980 में भारत को हॉकी में 8वां गोल्ड मिला, इसके बाद 1983 में क्रिकेट में वनडे वर्ल्ड कप जीतने के साथ ही ज्यादातर लोगों का झुकाव हॉकी से हटने लगा। यही कारण है कि 1980 के बाद भारत को इस खेल में कोई ओलिंपिक नहीं मिला। अब टोक्यो ओलिंपिक में भारत गोल्ड की प्रबल दावेदार है। आज वर्ल्ड रैंकिंग में हॉकी टीम चौथे नंबर पर काबिज है।

1952 हेलसिंंकी ओलिंपिक में केडी जाधव ने रेसलिंग में पहला व्यक्तिगत मेडल दिलाया था।

भारत के लिए दूसरी सबसे बड़ी सफलता 1952 हेलसिंकी (फिनलैंड) में मिली। इस साल हॉकी में गोल्ड के अलावा देश को पहली बार व्यक्तिगत इवेंट में पदक मिला। रेसलर कासाबा दादासाहेब जाधव ने फ्रीस्टाइल के 57 किग्रा इवेंट में ब्रॉन्ज दिलाया। इसका असर यह हुआ कि सुशील कुमार समेत एक से बढ़कर एक रेसलर सामने आए।

रेसलिंग में सुशील ने 2009 बीजिंग ओलिंपिक में ब्रॉन्ज और 2012 लंदन गेम्स में सिल्वर जीता था। इनके अलावा लंदन में योगेश्वर दत्त और 2016 रियो ओलिंपिक में साक्षी मलिक ने ब्रॉन्ज जीता था। साक्षी ओलिंपिक मेडल जीतने वाली देश की पहली महिला रेसलर हैं। अब टोक्यो ओलिंपिक में बजरंग पुनिया, दीपक पुनिया और विनेश फोगाट पर नजर रहेगी।

लिएंडर पेस ने टेनिस में मेडल दिलाया।

1996 को अटलांटा ओलिंपिक में लिएंडर पेस ने भारत के लिए टेनिस में कांस्य जीता था। भारतीय टेनिस में यह नए युग की शुरुआत थी। इस कामयाबी के बाद भारत को सानिया मिर्जा, महेश भूपति जैसेस्टार मिले। पेस ने डबल्स और मिक्स्ड डबल्स में 18 ग्रैंड स्लैम खिताब जीते हैं। उन्हें 1996-97 में राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। हालांकि, देश के टेनिस में दूसरा ओलिंपिक पदक नहीं मिल सका, लेकिन इसकी उम्मीद अभी भी बरकरार है।

मौजूदा रैंकिंग के आधार पर टोक्यो ओलिंपिक में रोहन बोपन्ना और दिविज शरण की भारतीय जोड़ी खेल सकती है। भारत की ये जोड़ी अब तक हर बार सफल रही है। इन दोनों ने 2018 एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल भी जीता था। वहीं, महिलाओं में सानिया मिर्जा और अंकिता रैना की जोड़ी के खेलने की संभावना भी ज्यादा है।

देश के लिए महिलाओं में पहला मेडल वेटलिफ्टर मल्लेश्वरी ने जीता।

ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में हुआ 2000 का ओलिंपिक भारतीय महिला एथलीट्स के लिए सबसे खास रहा था। इसमें भारत के लिए महिलाओं में पहला पदक कर्णम मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग में जीता था। हालांकि, अब तक वेटलिफ्टिंग में दूसरा पदक नहीं मिल सका है, लेकिन मल्लेश्वरी के बाद 4 महिला खिलाड़ियों ने देश को मेडल दिलाया है। इनमें मैरीकॉम, साइना नेहवाल, पीवी सिंधु और साक्षी मलिक शामिल हैं।

शूटर अभिनव बिंद्रा ने देश को पहला व्यक्तिगत गोल्ड दिलाया।

2008 बीजिंग ओलिंपिक में शूटर अभिनव बिंद्रा ने देश को पहला और एकमात्रव्यक्तिगत गोल्ड दिलाया। इससे पहले भारत को सिर्फ हॉकी टीम ने ही 8 गोल्ड दिलाए थे। इस कामयाबी का क्रेडिट 2004 के एथेंस गेम्स में शूटर राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को मिली सफलता को दे सकते हैं। तब राज्यवर्धन ने देश को पहला व्यक्तिगत सिल्वर मेडल दिलाया था।

इसके बाद शूटिंग में अभिनव, गगन नारंग और अब मनु भाकर जैसे कई शानदार खिलाड़ी सामने आए। शूटिंग से अब टोक्यो ओलिंपिक में सबसे ज्यादा मेडल जीतने की उम्मीदें भी लगी हैं।



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गोलीबारी के जरिए घुसपैठियों को भारत भेजने की कोशिश में पाकिस्तान, गांव तक दाग रहा मोर्टार के गोले, मुंहतोड़ जवाब दे रही हमारी सेना

गलवान में भारत और चीन के बीच हुई हिंसक झड़प को पाकिस्तान मौके के तौर पर देख रहा है। 15 जून के बाद से ही सीमा पार से गोलीबारी काफी बढ़गई है और घुसपैठ की कोशिशें की जा रही हैं। हमारे सैनिक दुश्मन के हर हमले का माकूल जवाब दे रहे हैं। इसी बीच सोमवार सुबह हवलदार दीपक कार्कीदुश्मन से लड़ते हुए शहीद हो गए।

5 जून से लेकर अब तक हमारे 4 सैनिकशहीद हो चुके हैं। हमारी सेना के जवान हाई अलर्ट पर हैं। फॉरवर्ड एरिया में भारतीय सेना की यूनिट्स तैनात हैं। जवान पाकिस्तान के हर मूवमेंट पर नजर गढ़ाए हुए हैं। सोमवार शाम 6.15 बजे भी पाकिस्तान की ओर से सीजफायर का उल्लंघन किया गया।

एलओसी पर भारतीय सेना हाई अलर्ट पर है। दुश्मन के हर वार का जवाब दिया जा रहा है।

लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर चीन के साथ तनाव जारी है। इसी बीच 740 किमी लंबी लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) पर पाकिस्तान के साथ भी तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है। गलवान में भारत और चीन के सैनिकों के बीच 15-16 जून की रात हिंसक झड़प हुई थी, तब से ही पाकिस्तान ने भी गोलीबारी बढ़ा दी।

उड़ी से लेकर नौशेरासेक्टर तक में पाकिस्तान की तरफ से कई बार गांवों में भी गोलीबारी की जा रही है। 20 जून को बीएसएफ जवानों ने एक ड्रोन को मार गिराया था। इस ड्रोन के जरिए आतंकवादियों तक गोला-बारूद और हथियार पहुंचाए जा रहे थे।

पहले से ही तैनात थे पाकिस्तानीसैनिक
रिपोर्ट्स के मुताबिक, एलओसी के राजौरी और पुंछ सेक्टर के करीब पाकिस्तानी आर्मी ने काफी पहले से ही जवानों को तैनात किया था, जिनके पास हैवी कैलिबर बंदूकें थीं। भारत और चाइना के बीच हुई झड़प के बाद पाकिस्तानी सेना जानबूझकर नागरिक क्षेत्रों में मोर्टार के गोले दागने लगी और सिविलयन एरिया के साथ ही सैन्य क्षेत्रों को भी निशाना बनाने की कोशिश कर रही है। पिछले एक हफ्ते में पाकिस्तानीसेना ने खासतौर पर दक्षिण में पीर पंजाल और उत्तर कश्मीर में भारतीय सेना को उकसाने का काम किया है।

कश्मीरी गेट, बालाकोट, शाहपुर किरनी, खारी करमा, नोहेरा और मनकोट सेक्टर में गोलीबारी की ज्यादा घटनाएं सामने आ रही हैं। जून में एलओसी पर सीमा उल्लंघन की 140 घटनाएं हुईं। हर रोज सात से आठ बार सीजफायर उल्लंघन किया गया। वहीं जनवरी से लेकर अभी तक पाकिस्तान से लगी सीमा पर सीजयफायर उल्लंघन के 250 से भी ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। इस बीच भारी-भरकम हथियारों से लैस चार घुसपैठियों को भारतीय सेना ने मार गिराया।

एक महिला की मौत हुई, दो दर्जन परिवारों को शिफ्ट किया
सीमा पर हुई इन झड़पों में कई नागरिकों के घरों को भी नुकसान पहुंचा है। पाकिस्तान की ओर से मोर्टार के गोले दागे गए। कुपवाड़ा और बारामूला में भी पिछले कई दिनों से तनाव बना हुआ है। उड़ी सेक्टर के तहत आने वाले गांव में पिछले हफ्ते एक महिला की मौत हो गई, जबकि दो दर्जन से ज्यादा परिवारों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया है।

गांव के लोगों का कहना है कि 1999 के बाद से उन्होंने क्षेत्र में इतनी भारी गोलीबारी नहीं देखी थी। सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों के लोग लगातार बंकर निर्माण की मांग कर रहे हैं। लॉकडाउन लगने के पहले एलओसीसे लगने वाले जिलों की सीमा में 6581 बंकर का निर्माण पूरा कर लिया गया था। इनमें 5867 इनडिविजुअल और 714 कम्युनिटी बंकर हैं। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर बॉर्डर एरिया के लिए 14,460 बंकर निर्माण को स्वीकृति दी है। इसके लिए 415.73 करोड़ रुपए दिसंबर 2017 में स्वीकृत किए गए थे।

15 जून से पाकिस्तान की ओर से सीजफायर उल्लंघन लगातार बढ़ते जा रहा है।

अंदर घुसने की कोशिश में आंतकवादी
गोलीबारी के बीच पाकिस्तानी सेना हथियारों से लैस घुसपैठियों को छोटे समूह में भी भारतीय सीमा में पहुंचाने की कोशिश में है। इंटेलीजेंस एजेंसियोंके मुताबिक, भारी हथियारों से लैस घुसपैठिए छोटे समूहों में सीमा के नजदीक ही डेरा जमाए हुए हैं, और भारत में घुसना चाह रहे हैं। करीब 250 आतंकियों को सीमा के करीब लाया गया है, ताकि उन्हें किसी भी तरह भारत में भेजा जा सके।

इधर कश्मीर घाटी में ऑपरेशन ऑल आउट की बड़ी सफलता के चलते कम से कम 114 आतंकवादियों का सफाया हुआ है। इसमें लश्कर-ए-तैयबा का कमांडर, जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिद्दीन और अंसार गजवा-तुल-हिंद (एजीएच) हिंद को सेना द्वारा बेअसर कर दिया गया।

15 जून से कमोबेश हर दिन हो रहीं घटनाएं

  • 15 जून को पाकिस्तान ने सुंदरबनी और नौशेरा सेक्टर में भारी गोलीबारी की।
  • 16 जून को नॉर्थ कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के तंगधार सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पास पाकिस्तान ने बिना किसी उकसावे के सीजफायर तोड़ा और मोर्टार के गोले दागे।
  • 20 जून को तड़के पाकिस्तान ने रामपुर सेक्टर में एलओसी के पास सीजफायर का उल्लंघन किया और मोर्टार के गोले दागे,गोलीबारी भी की। सेना केप्रवक्ता के मुताबिक, गोलीबारी में चार से पांच नागरिक घायल हो गए थे।
  • 21 जून को सुबह 6.15 बजे एलओसी से सटे पुंछ जिले के बालाकोट सेक्टर में पाकिस्तान की ओर से फायरिंग की गई और मोर्टार भी दागे गए।
  • 22 जून को पुंछ जिले के कृष्णा घाटी सेक्टर और राजौरी के नौशेरा सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पास पाकिस्तान की ओर से मोर्टार दागे गए। इसी बीच, नौशेरा सेक्टर में अग्रिम चौकी पर तैनात सेना का एक जवान शहीद हो गया।


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एलओसी के राजौरी और पुंछ सेक्टर के करीब पाकिस्तानी आर्मी ने काफी पहले से ही जवानों को तैनात किया था।


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