रविवार, 18 अक्टूबर 2020

ऊ त समय बताई कि के पछताई और के मिठाई खाई, नीतीश के हल्के में लेवे के गलती न करे केहू, लालू कहले बारन कि एकरा पेट में दांत है

‘का हो? का होई एमरी? का बुझाता? नीतीश फेरू मुख्यमंत्री बनिहें की नाहीं’… अखबार का पन्ना फाड़ के बनाई गई प्लेट में अभी-अभी चूल्हे से निकली खुरमा मिठाई डालते हुए 40-45 साल के व्यक्ति ने सामने वाले सज्जन से सीधा सवाल पूछा! आरा जिले का खुरमा वैसे ही काफी फेमस है। नहीं जानते हैं तो गूगल कर लीजिए। मौका मिले तो छेना की इस सूखी मिठाई का स्वाद जरूर लीजिए। आप ‘वाह’ बोले बिना नहीं रह सकेंगे। रामसुभग सिंह कहते हैं कि उन्होंने तो कितनी ही बहसों को इसी खुरमा के स्वाद के साथ शुरू होते और नतीजे पर पहुंचते देखा है।

असल में सवाल जिनकी तरफ उछाला गया था, वो हौले से मुस्कुरा के रह गए। कुछ बोले नहीं। लेकिन, उनके बगल में प्लास्टिक के छोटे कप में चाय सुड़क रहे एक लड़के से रहा नहीं गया- बोला, ‘व्यक्ति त अच्छा बारन नीतीश। कामो ठीके-ठाक भइल ह। सड़क बनल। आज बिजली रहता, लेकिन 15 साल बहुत होला जी। इतना दिन में तो बच्चा जवान हो जाता है। एहिला कभी-कभी लगता कि परिवर्तन आवे के चाही अबकी।’

बिहार की कई खासियतों में से एक तो यही है कि यहां बात शुरू हुई तो बहुत आगे तक जाती है। कोई भी बात बीच में ही खत्म नहीं होती है। खासकर जब चुनाव का मौसम हो तो बातें रबर की तरह लमरती हैं, यहां। और मामला जब सांस्कृतिक-राजनीतिक नजरिए से ऐतिहासिक विरासत रखने वाले भोजपुर इलाके का हो तो फिर बात ही अलग हो जाती है।

ये बातचीत आरा से सासाराम जाने के रास्ते की है। जगह का नाम है दुल्हिनगंज। कस्बाई बाजार है। बाजार की अधिकतर दुकानें फूस की हैं। चाय, समोसा और मिठाई से लेकर साज श्रृंगार तक की दुकानें हैं। पान की गुमटियां भी हैं। हम एक मिठाई की दुकान में पहुंचे हैं। इरादा तो सिर्फ चाय पीने का था, लेकिन खुरमा की लज्जत के साथ चाल रही बहस ने दुकान पर बैठने को मजबूर कर दिया।

नौजवान की बात समाप्त होते ही करीब 70 साल के बुजुर्ग चाय का कप नीचे रखते हुए बोले, ‘राजनीति में बहुत गिरावट आई है बाबू। मैं तो तमाम चुनाव देख चुका हूं। कई सरकारों को देख चुका हूं। आज जैसी अवसरवादिता कभी नहीं थी। नीतीश से लेकर तेजस्वी तक सब केवल सत्ता में आने के लिए मेहनत कर रहे हैं। राजनीति से सेवाभाव का ह्रास हो गया है।’

शायद वहां मौजूद किसी भी व्यक्ति को इतनी गम्भीर टिप्पणी की उम्मीद नहीं थी। सभा थोड़ी देर के लिए शांत हो गए। बुजुर्ग से पहले अपनी बात कह रहे लड़के ने धीरे से कहा, ‘बतवा त सही कह रहे हैं आप, बाबा। गिरावट त आई है। नेताओं में भी और जनता में भी। देखिए ना, सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार त मुखिया के स्तर पर हो रहा है। लूट मची है। बोरा में पैसा बटोर रहा है मुखिया सब।’

एक पल को ऐसा लगा कि दुल्हिनगंज बाजार की इस राजनीतिक चर्चा का रुख बदल चुका है, लेकिन अभी-अभी दुकान में दाखिल हुआ नौजवान अचानक मोर्चा सम्भालता दिखा। राजनीतिक शुचिता की तरफ जाती बहस में जैसे हस्तक्षेप करते बोला, ‘हर समय ऐसा ही था। कभी भी सतयुग नहीं था। अफसोस मत कीजिए। चुनाव परिणाम के बाद असल अफसोस त नीतीश जी करेंगे। बीजेपी ने अपने चिराग से उन्हें नागपाश में डाल दिया है।’

थोड़ी देर पहले राजनीति में आई गिरावट पर अपनी बात रखने वाले बाबा मुस्कुराए और दुकान से बाहर निकलते हुए बोले, ‘देखत रहीं। ऊ त समय बताई कि के पछताई और के मिठाई खाई, लेकिन नीतीश के हल्के में लेवे के गलती ना करे केहू। लालू यादव कहले बारन कि एकरा पेट में दांत है।’ लालू यादव से पहले, बहुत पहले घाघ कहले हतन- ई ना जनिह जे घाघ निर्बुद्धि। सब कोई कुछ ना कुछ बोल रहल बा। एकगो खाली नीतीशे है, जे घाघ बनल बइठल है।’

इस बयान के बाद बस थोड़ी मुस्कुराहट और थोड़ी खुसुर-पुसर सी ही हुई है। समझा जा सकता है कि यह बाबा की उम्र और अनुभव का सम्मान है। मैं भी बहस का सिरा वहीं छोड़कर आगे बढ़ गया हूं। इस बहस ने भी एक तस्वीर तो दिखाई ही है।



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Tejashwi Yadav Nitish Kumar; Bihar Election 2020 | Dinara Gaya Dulhinganj Locals Voters Political Debate On Tejashwi Yadav Nitish Kumar


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सड़क किनारे अचार बेचकर कैसे करोड़पति बन गईं कृष्णा यादव, आज चार कंपनियों की मालकिन, टर्नओवर 4 करोड़ से ज्यादा

बात आज से करीब 30 साल पुरानी है। बुलंदशहर में रहने वाली कृष्णा यादव का परिवार रोड पर आ चुका था। पति ने गाड़ी का बिजनेस शुरू किया था, जो चला नहीं। हालात ऐसे हो गए कि जिस घर में रह रहे थे वो तक बेचना पड़ा। ये सब तब हुआ जब कृष्णा के तीन छोटे-छोटे बच्चे थे। आज कृष्णा यादव चार कंपनियों की मालकिन हैं, जिनका सालाना टर्नओवर 4 करोड़ से भी ज्यादा है। जानिए रोड पर आने के बाद आखिर उन्होंने कैसे ये सब किया।

पति को 500 रुपए उधार लेकर दिल्ली भेजा था
जब बुलंदशहर में हमारा घर बिक गया तो मैंने तय किया हम ये शहर ही छोड़ देंगे। क्योंकि, अगर वहां रहते तो हर कोई यही पूछता कि तुम्हारी ऐसी हालत कैसे हो गई। कितने लोगों को जवाब देते। बार-बार ये सुनते तो पूरी तरह टूट जाते। इसलिए मैंने पति से कहा कि आप दिल्ली जाओ और वहां कुछ काम ढूंढो। हम कहीं भी खेती-मजदूरी करके जिंदगी बिता लेंगे। पति के पास दिल्ली जाने के भी पैसे नहीं थे, तो मैंने एक रिश्तेदार से पांच सौ रुपए उधार लेकर उन्हें दिल्ली भेजा।

कृष्णा बताती हैं- पति वहां तीन महीने तक घूमते रहे, लेकिन उन्हें कोई काम ही नहीं मिला। तीन महीने बाद मैं भी अपने तीनों बच्चों को लेकर दिल्ली उनके पास चली गई। कहीं काम नहीं मिल रहा था तो हमने सोचा कि किसी से किराये पर खेत ले लेते हैं और खेती करते हैं। क्योंकि, हम दोनों ही किसान परिवार से थे। मैं कभी स्कूल नहीं गई, लेकिन बचपन से मां-दादी के साथ खेतों में खूब काम किया।

कृष्णा यादव ने इस तरह एक छोटे से स्टॉल से शुरुआत की थी। उन्होंने अपने साथ आसपास की कई महिलाओं को भी जोड़ लिया था।

काम नहीं मिला तो सब्जियां उगाना शुरू कीं
हमने नजफगढ़ में किराये पर थोड़ी जमीन ले ली और वहां सब्जियां उगाने लगे। गाजर, मूली, धनिया खूब होने लगीं और सब्जियां बिकने लगीं, जिससे हमारी थोड़ी बहुत कमाई शुरू हुई। सब्जियां इतनी होती थी कि कई बार तो रखे-रखे ही खराब हो जाती थीं। एक बार मैंने दूरदर्शन पर कृषि दर्शन नाम का प्रोग्राम देखा। उसमें किसानों की आय बढ़ाने के कई तरीके बताए जाते थे। उसी में अचार की खेती का जिक्र हुआ था।

उस प्रोग्राम को देखने के बाद मेरे मन में आया कि क्यों न जो सब्जियां बच रही हैं, उनसे अचार तैयार कर बेचा जाए। गांव में हमारे घरों में बचपन से अचार बनता रहा है। मैंने पति से कहा कि आप पता करो कि यहां सरकार कोई ट्रेनिंग करवाती है क्या, जहां मैं अच्छे से अचार बनाना सीख सकूं।

उन्होंने खोजबीन की तो पता चला कि कृषि विज्ञान केंद्र में कोई भी बेरोजगार जाकर नि:शुल्क ट्रेनिंग ले सकता है। सेंटर उजवा नाम की जगह पर था। मैं तुरंत वहां पहुंच गई और बताया कि मुझे अचार बनाने की ट्रेनिंग लेना है। वहां से मैं अचार-मुरब्बा बनाना सीख गई। इसके बाद घर में अचार बनाना शुरू कर दिया।

उन्होंने कहा- शुरू में दो-दो किलो बनाया, लेकिन अचार बिक नहीं रहा था। पति दुकानों पर लेकर गए तो उन्होंने कहा कि हम खुला अचार नहीं खरीदते। वो घर आ गए और उन्होंने गुस्सा भी किया कि अच्छी-खासी सब्जी बिक रही थी, ये अचार के चक्कर में सब्जी भी खराब हो गई। फिर मैंने सोचा क्यों न हम खेत के पास में रोड से ही सब्जियां और अचार बेचें।

मैंने पति को कहा कि आप सड़क किनारे टेबल लगाओ। मैं ताजी सब्जियां आपको दूंगी और वहीं आप अचार भी रखना। बहुत से लोग सड़क से निकलते हैं, हम उन्हें बेचेंगे। उन्होंने ऐसा ही किया। हमने राहगीरों के लिए दो मटके भी रखे। यह बात 90 के दशक की है। तब उस रोड पर बहुत ज्यादा भीड़ नहीं हुआ करती थी।

जो लोग सब्जियों के लिए रुकते थे, हम उन्हें थोड़ा सा अचार सैंपलिंग के लिए देते थे। उनसे कहते थे कि अच्छा लगे तो फिर आप ऑर्डर दीजिएगा।

शुरू में इस तरह से वे अपने प्रोडक्ट्स बेचा करती थीं, अब उनकी चार कंपनियां हैं। जिनमें सैकड़ों कर्मचारी हैं।

जो लोग सब्जियां खरीदते थे, उन्हें टेस्ट के लिए अचार देते थे
कृष्णा बताती हैं- धीरे-धीरे लोग अचार का ऑर्डर देने लगे। मैं अकेली ही अचार तैयार करती थी। सारे मसाले सिलबट्टे में तैयार करती थी। क्योंकि, इतने पैसे नहीं थे कि चक्की में कुछ पिसवा सकें। बच्चे स्कूल से आते थे तो उन्हें भी इसी काम में लगा लेती थी। पति टेबल पर ग्राहकों को देखते थे। यह सिलसिला पांच साल तक चलते रहा। टेबल से ही हमें बुकिंग मिलती थी।

सब्जियां हम खेत में उगाते थे और अचार घर में ही पूरा तैयार करते थे। इससे घर भी अच्छे से चलने लगा और पैसे भी आने लगे। फिर धीरे-धीरे इधर-उधर की दुकानों पर भी थोड़ा बहुत माल जाने लगा। स्थिति संभलने के बाद पति ने फूड डिपार्टमेंट में लाइसेंस के लिए अप्लाई किया और हमें लाइसेंस मिल गया।

"लाइसेंस मिलने के बाद हमने श्री कृष्णा पिकल्स की शुरूआत की। एक दुकान किराये से ली। हम वहां से पैकिंग वाला अचार बेचने लगे। मैंने आसपास रह रही महिलाओं को भी साथ जोड़ लिया था। उन सबको अचार बनाने की ट्रेनिंग दी। धीरे-धीरे हमारा काम बढ़िया चलने लगा।

आज हमारी चार कंपनियां हैं। दो हरियाणा में हैं और दो दिल्ली में हैं। चार करोड़ रुपए से ज्यादा का टर्नओवर है। अचार के साथ ही मसाले, जूस, तेल, आटा भी हम तैयार करते हैं। सैकड़ों लोगों को रोजगार दे रहे हैं। मुझे किसान सम्मान से लेकर नारी शक्ति पुरस्कार तक मिल चुका है।"

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित कई दिग्गज हस्तियां उन्हें सम्मानित कर चुकी हैं।

सपना पूरा जरूर होता है
जो लोग खुद का कुछ करना चाहते हैं, उन्हें यही सलाह देना चाहती हूं कि यदि कोई सपना देखा है तो उसके पीछे पड़े रहो। हार मत मानो। मैं पढ़ी-लिखी नहीं हूं। लेकिन, मैंने बचपन से टीवी पर आने का सपना देखा था। अपने इस काम की बदौलत कई दफा टीवी पर आ चुकी हूं। मेरे कई प्रोग्राम आते हैं। कई जगह मुझे बुलाया जाता है। ये सब आप भी अपनी दम पर हासिल कर सकते हैं, बस कदम बढ़ाने की देर है।

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कृष्णा यादव ने साबित कर दिया कि, शुरूआत भले ही छोटी हो लेकिन कोशिशें इमानदारी से की जाएं तो सफलता मिलकर रहती है।


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आज 75 लाख के पार होंगे केस, 66 लाख मरीज ठीक हुए; मौत का आंकड़ा 15 दिन बाद फिर 1000 के पार; अब तक 74.92 लाख संक्रमित

देश में कोरोनावायरस के मरीजों का आंकड़ा 74.92 लाख हो गया है। आज यह 75 लाख के पार हो जाएगा। अब तक 65.94 लाख मरीज ठीक हो चुके हैं, जबकि 1.14 लाख जान गंवा चुके हैं। शनिवार को 1031 संक्रमितों की मौत हो गई। 2 अक्टूबर के बाद पहली बार एक दिन में मौत का आंकड़ा 1000 के पार गया।

हालांकि, राहत की बात है कि इलाज करा रहे मरीजों की संख्या आठ लाख से नीचे आकर 7.83 लाख पर पहुंच गई है। यह पिछले महीने 16 सितंबर को 10.17 लाख के पीक पर पहुंची थी। शनिवार को 61 हजार 893 केस आए, 72 हजार 583 मरीज ठीक हो गए।

पूरी दुनिया तक वैक्सीन पहुंचाने के प्रयास करने होंगे- पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कोरोनावायरस की स्थिति और वैक्सीन डिस्ट्रीब्यूशन की तैयारियों को लेकर समीक्षा बैठक की। उन्होंने कहा, ''अभी बांग्लादेश, अफगानिस्तान, भूटान, मालदीव, मॉरिशस, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों से वैक्सीन के ट्रायल के लिए समझौते हुए हैं। लेकिन, हमें केवल यहीं तक सीमित नहीं रहना चाहिए। सभी को मिलकर ऐसा प्रयास करना होगा कि वैक्सीन आने पर पूरी दुनिया को इसका फायदा मिल सके।''

कोरोना अपडेट्स

  • महाराष्ट्र सरकार ने दशहरा से जिम और फिटनेस सेंटर फिर खोलने की मंजूरी दे दी है। मार्च से ही कोरोना संकट को देखते हुए इसे बंद कर दिया गया था।
  • जम्मू-कश्मीर सरकार ने राज्य में मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार के लिए 238 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी है। इससे राज्य के अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई की जाएगी।
  • भारत में रूसी वैक्सीन स्पुतनिक वी के दूसरे और तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल की मंजूरी मिल गई है। 16 सितंबर को रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड और डॉ. रेड्‌डी के बीच भारत में स्पुतनिक वी के ट्रायल और डिस्ट्रीब्यूशन को लेकर सहमति बनी थी।
  • मिजोरम में शनिवार को संक्रमण का कोई नया मामला नहीं सामने आया। जबकि पहले से बीमार चल रहे 4 मरीज ठीक हो गए और उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया।

पांच राज्यों का हाल
1. मध्यप्रदेश

राज्य में शनिवार को 1222 नए मरीज मिले, 1434 लोग ठीक हुए और 18 संक्रमितों की मौत हो गई। अब तक 1 लाख 59 हजार 158 लोग संक्रमित पाए जा चुके हैं। इनमें 13 हजार 698 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 1 लाख 42 हजार 707 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण से मरने वालों का आंकड़ा 2753 हो गया है। पिछले 24 घंटे में 26.5 हजार लोगों की जांच हुई।

2. राजस्थान
शनिवार को राज्य में 1992 नए मरीज मिले, 2106 लोग ठीक हुए और 12 संक्रमितों ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। अब तक 1 लाख 71 हजार 281 लोग संक्रमित पाए जा चुके हैं। इनमें 21 हजार 255 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 1 लाख 48 हजार 291 लोग ठीक हो चुके हैं। कोरोना की वजह से 1735 लोगों की जान जा चुकी है।

3. बिहार
राज्य में संक्रमण की चपेट में आकर जान गंवाने वालों का आंकड़ा 1 हजार के करीब पहुंच गया है। अब तक 990 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें 9 संक्रमितों ने पिछले 24 घंटे के अंदर दम तोड़ दिया। शनिवार को 1173 नए मरीज मिले, 1259 लोग रिकवर हुए। अब तक 2 लाख 3 हजार 60 लोग संक्रमित पाए जा चुके हैं। इनमें 10 हजार 554 मरीजों का अभी इलाज चल रहा है, जबकि 1 लाख 91 हजार 515 लोग ठीक हो चुके हैं।

4. महाराष्ट्र
राज्य में शनिवार को 79.4 हजार लोगों की जांच हुई। इनमें 10 हजार 259 लोग संक्रमित पाए गए। पिछले 24 घंटे में 14 हजार 238 लोग रिकवर हुए और 250 मरीजों की मौत हो गई। राज्य में अब तक 15 लाख 86 हजार 321 लोग पॉजिटिव हो चुके हैं। इनमें 1 लाख 85 हजार 486 मरीजों का अभी इलाज चल रहा है, जबकि 13 लाख 58 हजार 606 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण के चलते अब तक 41 हजार 752 मरीजों की मौत हो चुकी है।

5. उत्तरप्रदेश
राज्य में शनिवार को 2725 नए मरीज मिले, 3528 लोग रिकवर हुए और 40 संक्रमितों की मौत हो गई। अब तक 4 लाख 52 हजार 660 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए जा चुके हैं। इनमें 34 हजार 420 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 4 लाख 11 हजार 611 लोग ठीक हो चुके हैं। कोरोना की वजह से अब तक 6629 मरीजों की मौत हो चुकी है।



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सीरम इंस्टीट्यूट का दावा, दिसंबर तक देश के लिए कोरोना टीके की 30 करोड़ तक खुराक बना लेंगे

सीरम इंस्टीट्यूट (एसएसआई) ने कहा कि वह दिसंबर तक कोरोना वैक्सीन के 30 करोड़ डोज बना लेगा। संस्थान के कार्यकारी निदेशक डाॅ. सुरेश जाधव ने कहा कि डीसीजीआई से लाइसेंस मिलते ही टीके लॉन्च कर दिए जाएंगे। सीरम इंस्टीट्यूट ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्रेजेनेका के साथ मिलकर वैक्सीन बना रहा है। डॉ. जाधव ने कहा कि सीरम 5 अलग-अलग उत्पादों पर काम कर रहा है। जो डोज बनेंगे, उनमें से आधे भारत व आधे मिलिंडा-बिल गेट्स की संस्था गैवी के जरिए गरीब देशों की मदद के लिए भेजे जाएंगे।

रूसी वैक्सीन के ट्रायल की सिफारिश: सीडीएससीओ की एक्सपर्ट कमेटी ने भारत में रूसी वैक्सीन स्पुतनिक-5 के दूसरे चरण के ट्रायल की सिफारिश की है। दो दिन में मंजूरी मिल सकती है।

टीका कब मिलेगा?

डाॅ जाधव ने कहा- हम दिसंबर में नियामक डीसीजीआई को तीसरे चरण के ट्रायल का डेटा उपलब्ध करा देंगे। नियामक संतुष्ट होते हैं तो हमें मार्केटिंग प्राधिकार के साथ एक महीने में टीके के आपात इस्तेमाल का लाइसेंस मिल सकता है। फिर हम प्रीक्वालिफिकेशन के लिए डब्ल्यूएचओ जाएंगे। उसके बाद टीके बाजार में आ जाएंगे।

पहले किसे मिलेगा?

सीरम ने कहा- टीका लगाने की प्राथमिकता सूची में सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मी होने चाहिए। दूसरे नंबर पर 60 साल से ऊपर के बुजुर्ग हों। 18 साल से कम उम्र वालों पर बहुत कम परीक्षण चल रहे हैं, इसलिए हो सकता है कि उनका नंबर बाद में आए। 18 से 50 साल के उम्र के नागरिकों को आिखर में टीका लगाया जा सकता है।

अभी यह स्थिति: चार कंपनियों के ट्रायल चल रहे हैं, तीसरे चरण में अकेला सीरम

  • सीरम इंस्टीट्यूट ऑक्सफोर्ड के टीके के तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा है। दिसंबर में ट्रायल के नतीजे आ सकते हैं।
  • भारत बॉयोटेक का दूसरे चरण का ट्रायल जारी है। इसी महीने दूसरे फेज का ट्रायल पूरा होगा। फिर तीसरे चरण का ट्रायल होगा।
  • जायडस कैडिला दूसरे चरण के ट्रायल की तैयारी में है।
  • बॉयोलॉजिकल-ई को पहले फेज के क्लीनिकल ट्रायल की मंजूरी मिल चुकी है। इसी तरह डॉ. रेड्‌डी लैबोरेटरीज रूसी वैक्सीन के दूसरे चरण के ट्रायल की तैयारी में है। मंजूरी मिलनी अभी बाकी है।

हरियाणा-डेढ़ लाख के करीब पहुंचा संक्रमितों का आंकड़ा

हरियाणा में एक दिन में 1177 नए मरीज मिले हैं। 6 मरीजों की मौत हो गई है। करनाल, पंचकूला, पानीपत, भिवानी, फतेहाबाद और सिरसा में एक-एक नई मौत हुई है। अब कुल मौतों का आंकड़ा 1693 हो चुका है। जबकि संक्रमितों की संख्या 1,49,435 हो चुकी है। 24 घंटे में 1318 मरीज ठीक हुए हैं। अब तक 137,176 मरीज स्वस्थ हो गए हैं। 10,566 मरीजों का इलाज चल रहा है। 195 की हालत सीरियस है। प्रदेश में 14 जिले ऐसे हैं, जहां 90%से ज्यादा मरीज ठीक हो चुके हैं। राज्य का औसत रिकवरी रेट 91.79 फीसदी है।

पंजाब में मौतें 4 हजार पार, 8वां राज्य जहां सबसे ज्यादा माैतें, 452 नए केस

कोरोना महामारी से पंजाब में मरने वालों की संख्या 4 हजार पार हो गई है। शनिवार को 22 नई मौतें हुई और 453 लोग संक्रमित हुए। हालांकि दिन में 760 मरीज ठीक होकर भी लौटे। कुल संक्रमितों का आंकड़ा अब 1,27367 हो गया है। इनमें 1,16925 मरीज ठीक हो चुके हैं। वहीं, मृतकों की कुल संख्या अब 4007 पहुंच गई है। देश में 4 हजार से ज्यादा मौतों के मामले में पंजाब 8वें स्थान पर है। सूबे में 6152 एक्टिव मरीज हैं। इनमें 144 ऑक्सीजन सपोर्ट और 22 वेंटिलेटर पर हैं।



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इस बार हम दिवाली पर खर्च करेंगे 1.3 लाख करोड़ रुपए, अनलॉक के बाद सबसे बड़ा फेस्टिव सीजन शुरू

(अनिरुद्ध शर्मा) कोरोना काल की मंदी के बाद बाजारों में रौनक लौट रही है। खरीदार आने लगे हैं। बाजार में कारोबार कोरोना के पहले की तुलना में 60 फीसदी तक पहुंच चुका है। दीपावली तक स्थिति और बेहतर हाे जाएगी। कंफडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) का अनुमान है कि लोगों ने पिछले सात महीनों में खर्चों में भारी कटौती की, नतीजतन देश में आम लोगों के पास करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए की बचत है।

नवरात्र से दीपावली तक एक महीने में 1 लाख करोड़ रुपए की खरीदी होगी। इसमें वाहन, सोना और घरेलू सामान शामिल हैं। वहीं विशेषज्ञों के अनुसार रियल इस्टेट में भी करीब 30 हजार करोड़ रुपए की खरीदी होगी। कैट का अनुमान है कि अब से 31 मार्च, 2021 तक बाजार में 2 लाख करोड़ रुपए की चाल आएगी। कैट के अध्यक्ष बीसी भरतिया कहते हैं कि बीते सात महीनों में लोगों ने बेहद जरूरी चीजों की ही खरीदारी की लेकिन दीपावली जैसे बड़े त्यौहार पर लोग खर्च करेंगे। दीपावली की मांग को देखते हुए पिछले दो महीने से ही फैक्टरियों में दो-दो शिफ्ट में उत्पादन कार्य चल रहा है।

इलेक्ट्राॅनिक : लोग घरों में हैं इसलिए मांग बढ़ी

ऑल इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन के अध्यक्ष मितेश मोदी कहते हैं कि दीपावली में इस बार पिछले साल की तुलना में टीवी, टैब, मोबाइल सरीखे आइटम में 20 से 30 फीसदी तक ज्यादा बिक्री की संभावना है। कोरोना के खत्म न होने के चलते लोगों को लग रहा है कि अभी आने वाले महीनों में भी उन्हें घर में ही मनोरंजन के साधनों के साथ रहना होगा तो वे बड़ा टीवी लेने पर खर्चा करना चाहेंगे।

कपड़े : अब त्योहार पर बिक्री अच्छी रहेगी

वी मार्ट के सीएमडी ललित अग्रवाल ने बताया कि तमाम संकट के बावजूद पिछली दीपावली की तुलना में इस बार कपड़ों की बिक्री 80-90 फीसदी तक रहेगी। दीपावली की खरीदारी पर गांवों के सेंटिमेंट्स का खासा असर रहता है और इस बार किसानों की फसल पर अच्छी आमदनी हुई है, इसका असर शहरों की खरीदारी पर नजर आएगा। सरकार हाल में एलटीसी वाउचर स्कीम लेकर आई है, इसका असर भी रहेगा।

सोना : पिछले साल के मुकाबले 80% व्यवसाय

इंडियन बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन के एसके जिंदल व पृथ्वीराज कोठारी ने कहा कि दीपावली पर सर्राफा बाजार में भारी उत्साह रहेगा। हो सकता है कि वजन में सोना पिछले साल दीपावली की तुलना में इस बार 70-80% ही खरीदा जाए लेकिन मूल्य में यह खरीदारी पिछले साल की दीपावली के कमोबेश बराबर ही रहने के अनुमान है। लोग ज्यादा जेवर न बनवाकर बार व बिस्किट के रूप में ही सोना खरीदेंगे।

ऑनलाइन भी दोगुना खर्च कर सकते हैं

फ्लिपकार्ट, अमेजॉन, स्नैपडील जैसी ई-कॉमर्स साइट्स पर सालाना फेस्टिवल सेल शुरू है। कंसल्टेंसी एजेंसी रेडशीर की सितंबर में आई रिपोर्ट के मुताबिक 2020 के दीपावली के मौके पर करीब 51 हजार करोड़ रु. से अधिक की खरीदारी होगी, जो 2019 में दीपावली पर हुई खरीदारी से दो गुना ज्यादा होगी।



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अब मुसीबत में कंगना, दर्ज हुआ मुकदमा; भारत की 14% आबादी भूखमरी से जूझ रही; मिथुन के बेटे पर मॉडल से रेप का केस दर्ज

देश में नौ राज्य और चार केंद्र शासित प्रदेशों में 90% से ज्यादा कोरोना संक्रमित ठीक हो चुके हैं। वहीं, न्यूजीलैंड में प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न की लेबर पार्टी ने चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की। 24 साल बाद किसी एक पार्टी को अकेले बहुमत मिला। 120 सदस्यों वाली संसद में आर्डर्न की पार्टी को कुल 64 सीटें मिलीं। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...

आज इन 3 इवेंट्स पर रहेगी नजर

1. रविवार को डबल हेडर मुकाबले। हैदराबाद और कोलकाता का मैच अबु धाबी में दोपहर 3.30 बजे से शुरू होगा। वहीं, दुबई में शाम 7.30 बजे से मुंबई और पंजाब आमने-सामने होंगे।

2. देश की पहली मोनोरेल यानी मुंबई मोनोरेल 6 महीने बाद आज से फिर शुरू होगी। हालांकि, शुरू में यह केवल चेंबूर-वडाला-जैकब सर्कल मार्ग पर चलेगी।

3. आज बैडमिंटन के डेनमार्क ओपन का फाइनल होगा। किदांबी श्रीकांत के बाहर होने के साथ टूर्नामेंट में भारतीय चुनौती खत्म हो चुकी है।

अब बात कल की 7 महत्वपूर्ण खबरों की

1. कंगना पर एक और केस दर्ज, हिंदू-मुस्लिम के नाम पर फूट डालने का आरोप

कंगना रनोट के खिलाफ अब एक और FIR दर्ज हो गई है। इस बार उन पर बॉलीवुड में हिंदू-मुस्लिम के नाम पर फूट डालने के आरोप लगे हैं। पिटीशनर साहिल अशरफ अली सैयद की अर्जी पर मुंबई के बांद्रा कोर्ट ने पुलिस को कंगना के खिलाफ केस दर्ज करने के आदेश दिए थे। उनकी बहन रंगोली के खिलाफ भी केस दर्ज करने के ऑर्डर दिए गए थे।

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2. मिथुन के बेटे के खिलाफ केस दर्ज, रेप और जबरन अबॉर्शन के आरोप

मिथुन चक्रवर्ती के बेटे महाअक्षय चक्रवर्ती के खिलाफ मुंबई के ओशिवारा पुलिस स्टेशन में शादी का झांसा देकर रेप करने और अबॉर्शन करवाने का केस दर्ज किया गया है। मिथुन की पत्नी योगिता बाली को भी आरोपी बनाया गया है। फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाली एक एक्ट्रेस-मॉडल ने दोनों के खिलाफ केस दर्ज करवाया है।

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3. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 107 देशों की रैंकिंग में भारत 94वें नंबर पर

107 देशों के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत इस साल 94वें नंबर के साथ सीरियस कैटेगरी में रहा। दुनियाभर में भूख और कुपोषण की स्थिति पर नजर रखने वाली वेबसाइट ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने शुक्रवार को यह रिपोर्ट जारी की, जो शनिवार को सामने आई। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, "भारत का गरीब भूखा है, क्योंकि सरकार सिर्फ अपने कुछ खास मित्रों की जेबें भरने में लगी है।"

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4. अलीबाबा के जैक मा ला रहे हैं दुनिया का सबसे बड़ा आईपीओ

दुनिया का सबसे बड़ा आईपीओ आ रहा है। जैक मा की कंपनी अलीबाबा का एफिलिएट है एंट ग्रुप और यही 35 अरब डॉलर यानी 2.56 लाख करोड़ रुपए का आईपीओ ला रहा है। यह बात इसलिए भी खास है क्योंकि पिछले पांच साल में जितने आईपीओ भारत में आए हैं, उन सभी को मिला दें तो भी यह अकेला उन पर भारी पड़ने वाला है।

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5. 24 की उम्र में शुरू किया स्मार्ट टीवी का बिजनेस, आज 1200 करोड़ रु नेटवर्थ

आईआईएफएल वेल्थ और हुरुन इंडिया ने हाल ही में 40 और उससे कम उम्र वाले सेल्फ मेड अमीरों की लिस्ट जारी की। इसमें एकमात्र महिला हैं 39 साल की देविता सराफ। देविता वीयू ग्रुप की सीईओ और चेयरपर्सन हैं। उन्होंने 24 साल की उम्र में स्मार्ट टीवी का बिजनेस शुरू किया। आज जिसकी नेटवर्थ 1200 करोड़ रु है।

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6. बिहार चुनाव: सब ‘ठीक-ठाक’ सीटों के लिए लड़ रहे, सरकार तो जुगाड़ से ही बनेगी

बिहार 2020...। ये अपनी तरह का पहला चुनाव है, जब हालात इतने साफ हैं और चुनाव इतना खुला हुआ कि सबकुछ साफ दिख रहा है। पहली बार है, जब ये तय है कि कौन किसके खिलाफ लड़ रहा है। लेकिन, ये तय नहीं कि कौन किसे लड़ा रहा है। मसलन, सब ‘ठीक-ठाक’ सीटों के लिए लड़ रहे हैं और सरकार तो जुगाड़ से ही बनेगी।

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7. फेक न्यूज़ एक्सपोज़ : भाजपा सांसद किरण खेर ने रेप को संस्कृति का हिस्सा बताया?

उत्तरप्रदेश, राजस्थान और मध्यप्रदेश समेत देश के कई हिस्सों से रेप की दिल दहला देने वाली घटनाओं के बीच भाजपा नेता किरण खेर का बताकर एक बयान सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है। दावा किया जा रहा है कि किरण खेर ने कहा- बलात्कार हमारी संस्कृति का हिस्सा है, हम इसे नहीं रोक सकते। जानिए इसका सच।

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अब 18 अक्टूबर का इतिहास

1922: ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन की स्थापना हुई।

1998ः भारत और पाकिस्तान परमाणु हथियार के खतरे को रोकने पर सहमत हुए।

2004ः कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन मारा गया।

आखिर में जिक्र हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता ओम पुरी का। आज ही के दिन 1950 में उनका जन्म हुआ था। पढ़िए उन्हीं की एक बात...



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Kangana will have another case registered; India at number 94 in Global Hunger Index; Mithun's son filed a rape case


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इस समुदाय की परंपराएं ही ऐसी हैं कि ज्यादातर लड़कियां ताउम्र कुंवारी रह जाती हैं, ये परिवार बेटी के लिए रिश्ता नहीं खोज सकते

मस्तारा बानो अगले साल 50 की हो जाएंगी। लेकिन आज भी वो अपनी उम्र 32 साल ही बताती हैं। इस उम्मीद के साथ कि शायद ऐसा करने से ही सही, उनके लिए शादी का कोई रिश्ता आ जाए।जीवन के 50 बसंत अकेले ही गुजार देने वाली मस्तारा को डर है कि अगर वे अपनी असल उम्र बताएंगी तो शादी से जुड़ी उनकी आखिरी उम्मीद भी टूट जाएगी।

अधेड़ उम्र के मुहाने पर खड़ी मस्तारा इसी तरह शादीशुदा जिंदगी में दाखिल होने के अपने सपने को जिंदा रखे हुए हैं। मस्तारा जिस पंचायत में रहती हैं वहां सैकड़ों महिलाओं का दर्द भी बिलकुल उनके जैसा ही है। पूरी जिंदगी कुंवारी रहना ही इन महिलाओं की नियति है। यह फैसला अगर इन महिलाओं ने अपनी इच्छा से लिया होता तो इसमें कुछ भी गलत नहीं था।

लेकिन, शेरशाहबादी मुस्लिम समुदाय की परंपराएं ही कुछ ऐसी हैं कि इनमें लगभग हर दस में से दो लड़कियां ताउम्र अविवाहित ही रह जाती हैं। बिहार के सुपौल जिले में नेपाल बॉर्डर से बमुश्किल दस किलोमीटर की दूरी पर कोचगामा पंचायत है। मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र में ज्यादातर मुस्लिम शेरशाहबादी समुदाय के ही हैं। इस पंचायत के साथ ही सीमांचल के कई दूसरे जिलों और नेपाल में भी शेरशाहबादी समुदाय के लोग रहते हैं।

60 साल की जैबुन निशा अपने भाई जिया उल हक के साथ।

कोचगामा के ही रहने वाले महबूब आलम बताते हैं, ‘शेरशाहबादी समुदाय में लड़की के परिजन न तो अपनी बेटी के लिए रिश्ता खोजते हैं और न ही किसी से ऐसा करने को कह सकते हैं। अगर वे ऐसा करते हैं तो यह समझा जाता है कि लड़की में जरूर कोई दोष है जो खुद ही उसके लिए लड़का तलाश रहे हैं। तब लड़की की शादी और भी मुश्किल हो जाती है।’

वे आगे कहते हैं, ‘लड़की वाले सिर्फ रिश्ता आने का इंतजार ही कर सकते हैं। इसलिए जिन लड़कियों के लिए रिश्ता आता है उनकी तो शादी हो जाती है, लेकिन जिनके लिए नहीं आता वो ताउम्र सिर्फ रिश्ते का इंतजार ही करती रह जाती हैं।’

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अबु हिलाल बताते हैं, ‘महिलाओं के अविवाहित रह जाने की यह समस्या तब से मजबूत हुई जब से लोग दहेज के लालच में फंसना शुरू हुए। अब उन्हीं लड़कियों की शादी आसानी से होती है जो या तो खूबसूरत हों या जिनके पास दहेज देने के लिए पैसा हो।

जिन लड़कियों का कद कुछ कम है, रंग गोरा नहीं है या नैन-नक्श अच्छे नहीं हैं उनकी शादी नहीं हो पाती। कई बार ऐसा भी होता है कि दो-तीन बहनों में से लड़के वाले छोटी बहन को पसंद कर लेते हैं। ऐसे में बड़ी लड़की से पहले छोटी की शादी हो जाती है और फिर बड़ी लड़की की शादी लगातार मुश्किल होती चली जाती है।’

शेरशाहबादी समुदाय में अविवाहित महिलाओं की कुल संख्या कितनी है, इसका कोई ताजा आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। लेकिन, हाल ही में आई वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र की चर्चित किताब ‘रुकतापुर’ के अनुसार, सिर्फ कोचगामा पंचायत में ही कुछ साल पहले 35 साल से ऊपर की अविवाहित महिलाओं की संख्या 140 से ज्यादा थी।

एक ही पंचायत में जब यह आंकड़ा इतना बड़ा है तो भारत और नेपाल के कई जिलों में रहने वाली इस कुल आबादी में यह संख्या निश्चित ही हजारों में होगी।

कोचगामा पंचायत के दो बार मुखिया रह चुके और साल 2010 में कांग्रेस से विधानसभा चुनाव लड़ चुके शाह जमाल उर्फ लाल मुखिया बताते हैं कि कुछ साल पहले इस समस्या को सुलझाने के लिए पूरे समुदाय ने एक बैठक बुलाई थी। करीब सात साल पहले भारत और नेपाल के अलग-अलग इलाकों में रह रहे शेरशाहबादी समुदाय के लोगों ने इस बैठक में शामिल होकर तय किया था कि अब लड़की वालों को भी रिश्ता खोजने या इसकी पहल करना शुरू कर देना चाहिए।

लाल मुखिया कहते हैं, ‘इस पहल से काफी असर हुआ। अब ऐसी लड़कियों की संख्या कम है, जिनकी शादी नहीं हो रही हो। अब तो लड़कियां खुद भी लड़के को पसंद कर लेती हैं और उनकी शादी हो जाती है।’ लाल मुखिया की इस बात से गांव के अन्य लोग सहमत नहीं होते। अबु हिलाल कहते हैं, ‘उस बैठक के बाद भी कुछ नहीं बदला है। लोग आज भी लड़की का रिश्ता लेकर नहीं जाते।’

कोचगामा पंचायत में घूमने पर यह भी साफ हो जाता है कि लड़कियों द्वारा खुद ही लड़का खोज लेने की जो बात लाल मुखिया कह रहे हैं, उस पर विश्वास करना बेहद मुश्किल है। आज भी समुदाय की लड़कियों के लिए घर से निकलने पर सौ पहरे हैं, उन्हें काम करने या मजदूरी करने की भी इजाजत नहीं है और वे पढ़ाई भी सिर्फ मदरसों में ही कर सकती है।

द हंगर प्रोजेक्ट के लिए काम करने वाली शाहीना परवीन ने इन महिलाओं की आवाज कई बार उठाई है। शाहीना परवीन मानती हैं कि इस समस्या से निकलने के लिए जो कदम उठाए जाने चाहिए, उनमें से एक अहम कदम लड़कियों को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाना भी है। वे कहती हैं, ‘ये लड़कियां अगर बाहर निकलेंगी, अच्छी पढ़ाई करेंगी और नौकरियां करने लगेंगी तो निश्चित ही इस समस्या से भी निकल जाएंगी।’

लेकिन, ग्रामीण इलाकों में रहने वाले मुस्लिम समुदाय में ऐसा होना बहुत मुश्किल है। वहां तमाम मौलवी लड़कियों को मदरसों तक ही सीमित रखने की वकालत करते हैं और लोग उन्हीं की बात मानते हैं। बल्कि लड़कियों पर भी मौलवी के उपदेशों का ही सबसे मजबूत असर रहता है।

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अबु हिलाल महिलाओं के अविवाहित रह जाने की यह समस्या तब से मजबूत हुई जब से लोग दहेज के लालच में फंसना शुरू हुए।

जो लड़कियां अविवाहित रह जाती हैं वो अपनी पैत्रिक सम्पत्ति पर भी दावा नहीं कर पाती। शिक्षित लड़कियां ही नहीं कर पाती तो अशिक्षित गांव की लड़कियों से यह उम्मीद करना भी बेमानी है। ऐसे में वो लड़कियां हमेशा अपने भाई पर बोझ समझी जाती हैं और माना जाता है कि वे भाई के रहम पर ही पल रही हैं और भाई उन्हें साथ रखकर उन पर अहसान कर रहा है।’

बिहार में जब चुनाव होने जा रहे हैं तो शेरशाहबादी समुदाय की इन हजारों अविवाहित महिलाओं का मुद्दा किसी के लिए भी चर्चा का विषय नहीं है। जिस विधानसभा क्षेत्र में इस समुदाय की बहुलता है, वहां भी इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं है।

शाहीना परवीन कहती हैं, ‘इनमें से अधिकतर महिलाएं कुपोषण और एनीमिया से पीड़ित होती हैं क्योंकि बेहद मुश्किल से इन्हें दो वक्त का खाना भी नसीब होता है। रमजान में जो लोग जो दान-धर्म करते हैं उसके सहारे ही इनका पेट भरता है।

पॉलिसी के स्तर पर आज तक इनके लिए कुछ नहीं किया गया। विधवा महिलाओं को जो पेंशन मिलती है ये महिलाएं उसकी भी हकदार नहीं होती जबकि देखा जाए तो इनका पूरा जीवन विधवा महिलाओं की तरह ही अकेला और बेसहारा रहकर बीतता है।’

ये अविवाहित महिलाएं अपने हालात के लिए अपनी किस्मत के अलावा किसी और को दोषी नहीं मानती। लेकिन, वे सरकार से इतना जरूर चाहती हैं कि जब पूरे देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात हो रही है और आत्मनिर्भर भारत’ का नारा जगह-जगह गूंज रहा है तो सरकार इन्हें भी आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कोई पहल करे।



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The story of Sher Shahbadi Muslim women forced to remain virgin in this area of Bihar


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जो मर्द औरतों को जीवनसाथी चुनने का बुनियादी इंसानी हक देने को तैयार नहीं, वो उन्हें संपत्ति-सत्ता में बराबरी देने की वकालत कैसे करेंगे भला?

हम बात करते हैं औरतों की बराबरी की, लेकिन ये बराबरी कैसे मिलेगी। सिर्फ औरत की इज्जत करने से मिलेगी? बिल्कुल गलत जवाब। सिर्फ इज्जत करने से नहीं मिलेगी। औरतों को बराबरी मिलेगी, सत्ता, नौकरी और संपत्ति में बराबर की भागीदारी से। बराबर काम के लिए बराबर तनख्वाह से, बराबरी के मौके और बराबरी की जगह से।

और जैसे ही इन ठोस अधिकारों की बात करो, अधिकांश मर्दों की प्रतिक्रिया क्या होती है। उन्हें ऐसा लगता है, जैसे किसी ने उनकी गर्दन पर कुल्हाड़ी रख दी है। वो बिलबिलाने लगते हैं। पंजाब सरकार ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण की घोषणा की है और अभी से इनके मुंह बिचकाने शुरू हो गए हैं।

मुंह तो इनका जरा-जरा सी बात पर बिचक जाता है। औरतों को जरा सा कुछ एक्स्ट्रा मिल जाए और फिर देखिए इनका रोना। दिल्ली में जब ऑड-इवन लागू हुआ तो दिल्ली सरकार ने अकेली और साथ में छोटा बच्चा लिए महिलाओं को इस नियम से छूट दी। मेरे दफ्तर में मर्द शिकायत करते पाए गए। औरतों का बढ़िया है। इन पर कोई नियम लागू नहीं होता।

मुझे गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन मैंने आवाज धीमी रखते हुए पांच मंजिला उस दफ्तर में ऊपर से लेकर नीचे तक काम करने वाली कम से कम 30 महिलाओं का नाम गिनाया, जो दफ्तर आने से पहले अपने छोटे बच्चे को स्कूल, क्रैच या उनकी नानी के घर छोड़कर फिर काम पर आती थीं। दफ्तर से लौटते हुए पहले बच्चे को लेतीं, फिर घर जातीं। ये सारी औरतें तलाकशुदा या सिंगल मदर नहीं थीं। लेकिन, बच्चे को संभालने की जिम्मेदारी अकेले उनके ही सिर आई थी।

पूरे दफ्तर में एक भी ऐसा मर्द नहीं था, जो दफ्तर के पहले और बाद में बच्चे की जिम्मेदारी उठाता हो। ऐसे में औरतों को ये सुविधा देना कोई एहसान नहीं, बल्कि उनकी थोड़ी परवाह कर लेना थोड़ा जिम्मेदार, थोड़ा संवेदनशील होना है।

मर्दों ने तो नाक-भौं तब भी सिकोड़ी थी, जब औरतों को दिल्ली की बसों में मुफ्त यात्रा करने की सुविधा दी गई। मर्दों ने कहा- "ये मुफ्तखोर औरतें" इन्हें सबकुछ मुफ्त में चाहिए। यह अंतर्विरोध कितना मारक है कि संसार के 90 फीसदी धन, जमीन, संपदा पर अकेले कब्जा जमाए मर्द एक बस टिकट मिल जाने पर औरतों को मुफ्तखोर बुलाने लगते हैं। पता नहीं, ये महज मूर्खता है या असल में धूर्तता है।

राजनीति में औरतों के लिए आरक्षण का मुद्दा पिछले 45 सालों से लटका हुआ है। आजाद भारत के इतिहास में कोई दूसरा ऐसा बिल नहीं है, जिस पर 45 साल से मर्द नेता एकमत न हो पाए हों। 1974 में पहली बार यह सवाल उठा कि राजनीति में महिलाओं की बराबर भागीदारी को सुनिश्चित करना जरूरी है। समाज में औरतों की स्थिति तभी सुधरेगी, जब सत्ता और नीति निर्धारक पदों पर उनकी मौजूदगी होगी।

1996 में पहली बार देवगौड़ा सरकार के समय संसद में महिला आरक्षण बिल पेश हुआ, जो ज्यादातर मर्द नेताओं को नहीं सुहाया। संसद में जूतमपैजार हो गई। मजे की बात ये थी कि समाज के अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे पिछड़े वर्ग के नेता भी इस बिल के सख्त खिलाफ थे। शरद यादव ने संसद में कहा कि "इससे सिर्फ परकटी महिलाओं को फायदा होगा। उसके बाद 1998, 1999, 2002 और 2003 में दोबारा इसे संसद में पेश किया गया, लेकिन नतीजा सिफर। 2010 में मनमोहन सिंह सरकार के समय राज्य सभा से फाइनली बिल पास हो पाया, लेकिन लोकसभा में फिर भी अटका ही रहा। आज तक अटका है।

आगे भी अटका ही रहेगा, क्योंकि हम औरतों को मर्दों के बाहुबल वाली इस संसद और व्यवस्था से न्याय और बराबरी की बहुत उम्मीद है भी नहीं। जैसे डंडे के बूते जोर-जबर्दस्ती बीजेपी भी संसद में तमाम बिल पास कराती दिख रही है, औरतों की समान भागीदारी सुनिश्चित करने वाले बिल को वो प्यार-मोहब्बत से भी पास करवाकर राजी नहीं है। उसे पड़ी ही नहीं है, किसी को पड़ी नहीं है।

उन्हें तनिष्क का विज्ञापन बंद करवाने की ज्यादा पड़ी है, जिसका एक बहुत सीधा और साफ संदेश ये भी है कि हर बालिग औरत को अपना जीवन साथी अपनी मर्जी से चुनने का अधिकार है, फिर चाहे वह किसी भी जाति और धर्म का क्यों न हो। उसे यह अधिकार भारत का संविधान देता है। लेकिन नहीं, इतनी मामूली सी बात इन मर्दों के दिमाग में नहीं घुसती। जो इतना बुनियादी इंसानी हक देने को तैयार नहीं, वो संपत्ति और सत्ता में औरतों को बराबरी का हक देने की वकालत कैसे करेंगे भला।

नवरात्र चल रहे हैं। घर-घर में बेटियों के चरण धोने, उन्हें पूजने का उपक्रम शुरू हो जाएगा। पूरे नौ दिन देवी दुर्गा के बहाने स्त्री शक्ति का गुणगान होगा। लेकिन, सच सब जानते हैं। लड़कियों को भी ये बात ढंग से पता है कि उनकी इज्जत तभी तक है, जब तक वो देवी हैं, मूर्तियों में विराजमान हैं, श्रद्धा स्वरूपा हैं। जैसे ही वो मूर्ति से बाहर निकलकर हाड़-मांस का इंसान हो जाती हैं, अपना हक मांगती हैं, दुनिया उन्हें नोचने-खाने पर उतारू हो जाती है।

दो मिनट में वो देवी के ओहदे से उतरकर डायन हो जाती है। फेमिनाजी कहलाती है। मर्द उनसे नफरत करते हैं, उन्हें मुफ्तखोर बुलाते हैं। उनके अधिकारों वाले बिल पर सांप की तरह कुंडली मारकर बैठ जाते हैं। लड़कियों, ये दुनिया तुम्हारे लिए नहीं है। तुम इनके झांसे में मत आना। इनके पूजा-पाठ के ढोंग को समझना। असली सवाल करना। असली हक मांगना, तब तक मत आना, जब तक ये मर्दानगी के शिखर से उतरकर इंसानियत की जमीन पर न आ जाएं, मनुष्य न बन जाएं।

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1. बात बराबरी की:सिर्फ लड़की की इज्जत उसके शरीर में होती है, लड़के की इज्जत का शरीर से कोई लेना-देना नहीं?

2. बॉलीवुड की औरतें नशे में डूबी हैं, सिर्फ वही हैं जो ड्रग्स लेती हैं, लड़के सब संस्कारी हैं, लड़के दूध में हॉरलिक्स डालकर पी रहे हैं

3. जब-जब विराट का खेल खराब हुआ, ट्रोलर्स ने अनुष्का का खेल खराब करने में कसर नहीं छोड़ी, याद नहीं कि कभी विराट की जीत का सेहरा अनुष्का के सिर बांधा हो

4. कितनी अलग होती हैं रातें, औरतों के लिए और पुरुषों के लिए, रात मतलब अंधेरा और कैसे अलग हैं दोनों के लिए अंधेरों के मायने



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How can men who are not willing to give basic human rights to women to choose a life partner, advocate for equal rights for women in property-power?


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2007 में बेनजीर के पाकिस्तान लौटते ही आत्मघाती हमले से स्वागत; बिजली का बल्ब बनाने वाले थॉमस एल्वा एडीसन की मौत

दुनिया की बड़ी और प्रतिभाशाली महिला नेताओं में से एक बेनजीर भुट्टो नौ साल का सेल्फ-एक्साइल काटने के बाद 2007 में पाकिस्तान लौटी थी। कुछ ही घंटों बाद उनके कारों के काफिले पर आत्मघाती हमला हुआ और 139 लोगों की मौत हुई थी। बेनजीर पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री थी और उन्होंने सिर्फ 35 साल की उम्र में यह जिम्मेदारी संभाली थी।

1988-90 और 1993-96 में दो बार उन्होंने देश के पीएम की जिम्मेदारी संभाली। भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी ठहराए जाने पर बेनजीर को 1999 में देश छोड़ना पड़ा था। 2007 में जब फौजी ताकत दम तोड़ रही थी और लोग लोकतंत्र के लिए आवाज उठा रहे थे, तब बेनजीर भुट्टो लौटी थीं।

उस समय की परवेज मुशर्रफ सरकार ने वापसी की इजाजत तो दी, लेकिन उन पर जानलेवा हमला होने की आशंका भी जताई थी। उसी साल 27 दिसंबर को रावलपिंडी में अपनी पहली रैली में ही उनकी हत्या कर दी गई।

1931: महान वैज्ञानिक ने ली आखिरी सांस

महान अमेरिकी वैज्ञानिक थॉमस एल्वा एडिसन का जन्म 11 फरवरी 1847 को हुआ था। उनके नाम 1,93 पेटेंट हैं जो बताते हैं कि वे कितने आविष्कारक थे। बचपन में गरीबी से गुजरने वाले महान वैज्ञानिक को बिजली के बल्ब की खोज के लिए जाना जाता है।

एडिसन बल्ब बनाने में 10 हजार बार से अधिक बार असफल हुए। इस पर उन्होंने यह भी कहा था कि मैं कभी नाकाम नहीं हुआ बल्कि मैंने 10,000 ऐसे रास्ते निकाले जो मेरे काम नहीं आए। एडीसन ने 10 साल की उम्र में ही प्रयोग करना शुरू कर दिया था।

प्रयोग करने के लिए पैसे की जरूरत पड़ती तो वे ट्रेन में अखबार और सब्जी भी बेच लेते थे। 1879 से 1900 तक एडिसन अपनी सारी प्रमुख खोजें कर चुके थे और एक अमीर व्यापारी भी बन चुके थे। पहला बल्ब बनाने में 40 हजार डॉलर की लागत आई थी। 40 इलेक्ट्रि‍क लाइट बल्ब जलते देखने के लिए तीन हजार लोगों का हुजूम जुटा था। थॉमस एडिसन का निधन 18 अक्टूबर 1931 हो गया था।

इतिहास में आज को इन घटनाओं के लिए भी याद किया जाता हैः

  • 1386ः जर्मनी में हैडलबर्ग विश्वविद्यालय की स्थापना हुई।
  • 1564ः इंग्लैंड के नाैसैनिक कमांडर जॉन हाॅकिन्स ने दूसरी बार अमेरिका यात्रा शुरू की।
  • 1572ः स्पेन की सेना ने मास्ट्रिच पर हमला कर दिया।
  • 1648ः उत्तर अमेरिकी उपनिवेशों में ‘बोस्टन शूमेकर्स’ पहला श्रम संगठन बना।
  • 1892ः अमेरिका में शिकागो से न्यूयाॅर्क के बीच पहली लंबी दूरी की वाणिज्यिक फोन लाइन को शुरू किया गया।
  • 1898ः अमेरिका ने स्पेन से प्यूर्टो रिको का अपने कब्जे में लिया।
  • 1900ः काउंट बर्नार्ड वॉन बुलो जर्मनी के चांसलर बने।
  • 1922ः ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कंपनी की स्थापना हुई, जिसका नाम बाद में बदलकर ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन किया गया।
  • 1925ः प्रसिद्ध रंगमंच निदेशक और नेशनल स्कूल 'फ ड्रामा के पूर्व निदेशक इब्राहिम अल्काज़ी का जन्म।
  • 1944ः द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी जर्मनी से चेकोस्लोवाकिया की स्वतंत्रता के लिये सोवियत संघ ने लड़ाई शुरू की।
  • 1954ः टेक्सास इंस्ट्रूमेंट्स कंपनी ने पहले ट्रांजिस्टर रेडियो का निर्माण किया।
  • 1972ः पहले मल्टी-पर्पज हेलीकॉप्टर एसए-315 का बेंगलुरु में हवाई परीक्षण।
  • 1976ः विलियम एन लिप्सकोंब जूनियर को रसायन का नोबेल पुरस्कार दिया गया।
  • 1980ः पहली हिमालय कार रैली काे बम्बई (मुंबई) के ब्रेबोर्न स्टेडियम से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया।
  • 1985ः संपूर्ण विश्व में व्यापक विरोध के बावजूद दक्षिण अफ्रीकी सरकार द्वारा अश्वेत कवि बेंजामिन मोलोइस को फांसी।
  • 1991ः दक्षिण पश्चिम एशिया और दक्षिणी पूर्वी यूरोप के मुहाने पर स्थित अजरबैजान ने तत्कालीन सोवियत रूस से स्वतंत्र होने की घोषणा की।
  • 1995ः कोलंबिया के कार्टाजेना में गुट निरपेक्ष देशों का 11वां शिखर सम्मेलन प्रारम्भ।
  • 1998ः भारत और पाकिस्तान परमाणु हथियार के खतरे को रोकने पर सहमत हुए।
  • 2004ः कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन मारा गया।
  • 2012ः सीरिया ने मारेत अल नुमान में सैन्य हवाई हमलों 40 लोग मारे गए।


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Today History for October 18th/ What Happened Today | 2007 Benazir Bhutto returns to Pakistan | 1867 Alaska Becomes a Part of the United States | Veerappan shot dead


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धारा 370 रद्द करने के फैसले को चुनौती देने फिर साथ आए कश्मीर की राजनीति के दिग्गज; क्या यह धारा 370 का फ्यूनरल है जिसका लंबे समय से इंतजार था?

नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) समेत जम्मू-कश्मीर की सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने 15 अक्टूबर को पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला के घर पर बैठक की। उन्होंने संविधान की धारा 370 को रीस्टोर करने और जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश से फिर पहले की तरह राज्य बनाने की मांग करने वाले गुपकार डिक्लेरेशन के लिए अपना कमिटमेंट दोहराया। यह मीटिंग ऐसे वक्त हुई जब कुछ ही घंटों पहले पीडीपी चीफ मेहबूबा की 14 महीने बाद नजरबंदी से रिहाई हुई थी। इस लिहाज से यह काफी महत्वपूर्ण थी। लेकिन, जो बड़ा मुद्दा मीटिंग से निकलकर आया, वह यह था कि इस ग्रुप का नाम बदलकर अब पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन हो गया है।

पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला ने गुरुवार की मीटिंग के बाद कहा कि हम संविधान के दायरे में अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। हम चाहते हैं कि भारत सरकार राज्य के लोगों को 5 अगस्त 2019 के पहले के अधिकार फिर से दें। हमें यह भी लगता है कि इस राज्य के राजनीतिक मुद्दों का हल जल्द से जल्द निकाला जाएं और ऐसा सिर्फ जम्मू-कश्मीर की समस्या से जुड़े सभी लोगों के बीच शांति के साथ बातचीत से ही हो सकता है।

क्या है गुपकार डिक्लेरेशन?

  • करीब 14 महीने पहले, धारा 370 को रद्द करने के एक दिन पहले 4 अगस्त 2019 को श्रीनगर में भी जम्मू-कश्मीर की सभी राजनीतिक पार्टियों की मीटिंग हुई थी। यह मीटिंग फारुक अब्दुल्ला के गुपकार रोड स्थित बंगले में हुई थी और यहां पर जॉइंट स्टेटमेंट जारी हुआ था। कहा था कि वे जम्मू-कश्मीर की आइडेंटिटी, ऑटोनोमी और स्पेशल स्टेटस की सुरक्षा के लिए लड़ते रहेंगे। इसे ही गुपकार डिक्लेरेशन कहा गया।

कश्मीर की पार्टियों को इसकी जरूरत क्यों पड़ी?

  • नई दिल्ली में कश्मीर पर नजर रखने वाले तबके को लग रहा है कि पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन राजनीतिक मजबूरी है। पिछले सालभर यह नेता हिरासत में रहे। इस दौरान उन्हें जमीनी स्तर पर कोई सपोर्ट नहीं मिला। ऐसे में वे इस अलायंस के जरिए अपनी विश्वसनीयता को लोगों के बीच कायम करना चाहते हैं।
  • नई दिल्ली में सरकारी सूत्र यह भी कहते हैं कि कश्मीर में मोटे तौर पर कानून व्यवस्था अच्छा काम कर रही है। आतंकवादियों के जनाजों को लेकर होने वाले टकराव भी खत्म हो गए हैं। इस वजह से कश्मीर के कुछ नेता पहले ही मर चुकी धारा 370 का जनाजा निकालना चाहते हैं। हकीकत यही है कि धारा-370 अब कभी लौटने वाली नहीं है।
मेहबूबा मुफ्ती से मिलने के लिए उनके घर जाते फारुक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला।

क्या चाहते हैं इस नए-नवेले अलायंस के नेता?

  • कहीं न कहीं कश्मीर की मुख्य धारा की क्षेत्रीय पार्टियां अब भी उम्मीद कर रही है कि धारा 370 लौट सकती है। गुपकार डिक्लेरेशन पर साइन करने वालों ने संकेत दिए हैं कि यह लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट में चलेगी।
  • जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के पूर्व राजनीतिक सलाहकार तनवीर सादिक कहते हैं कि मुद्दा यह नहीं है कि पीपुल्स अलायंस केंद्र के खिलाफ आवाज उठा रहा है, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि सभी राजनीतिक पार्टियां साथ में हैं। वह शांति के साथ और संवैधानिक तरीके से वह हासिल करने की कोशिश शुरू कर रही है जो राज्य की जनता से असंवैधानिक और अवैध तरीके से छीना गया है।
  • वह कहते हैं कि हम केंद्र के सामने अपनी दलील नहीं रखने वाले। हम तो सुप्रीम कोर्ट में जाकर संवैधानिक तरीके से लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। हमारा मानना है कि केंद्र ने जो भी किया वह गैरकानूनी, असंवैधानिक और अनैतिक था, इस वजह से इसे बदला जाना चाहिए।

कितना समर्थन है इस अलायंस के नेताओं को?

  • अब्दुल्ला-मुफ्ती के भाईचारे ने कई लोगों को चौंकाया है। पिछले एक साल में एनसी और पीडीपी नेता नजरबंद थे। उनके समर्थन में न कोई बड़ा प्रदर्शन हुआ और न ही कोई लॉकडाउन। इससे यह साफ है कि जमीन पर उनके लिए कोई सपोर्ट नहीं बचा है।
  • उमर अब्दुल्ला के करीबी रहे और टीवी डिबेट्स में एनसी का कई बार प्रतिनिधित्व करते रहे जुनैद अजीम मट्टू भी आज नए ग्रुप को लेकर आशंकित हैं। उन्होंने खुद को इस ग्रुप से बाहर रखा है।
  • श्रीनगर के पूर्व मेयर जुनैद पीडीपी और एनसी दोनों में ही रहे हैं। वे कहते हैं, मेरा मानना है कि गुपकार डिक्लेरेशन दो ऐसी पार्टियों का गिल्ट (अपराध-बोध) है, जिनका नेतृत्व दो परिवार करते हैं। उनका यह सीजफायर खुद को रेलेवंट बनाए रखने की कोशिश है। ताकि वे एक-दूसरे को एक्सपोज न करें।
  • जुनैद कहते हैं, "मेरा भी यकीन है कि जम्मू-कश्मीर से जो छीना गया है, उसे वह वापस मिलना चाहिए। पर मैं यह भी नहीं मानता कि मुफ्ती और अब्दुल्ला रातोरात संत बन गए हैं। अगस्त 2019 से पहले जो भी हुआ, उसके लिए जवाब तो उन्हें देना ही होगा। वे इस सिचुएशन का लाभ उठाकर छुटकारा नहीं ले सकते।'

अब्दुल्ला ने चीन से सपोर्ट मांगा, इसका क्या मतलब है?

  • फारुक अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को रीस्टोर करने में चीन से मदद लेने की बात कही और इस पर भाजपा के तीखे हमले हुए। अब्दुल्ला ने बातचीत के लिए सभी स्टेकहोल्डर्स को बुलाया तो यह भी राजद्रोह की नजर से देखा गया।
  • केंद्र सरकार को लगता है कि यदि सभी स्टेकहोल्डर्स को बातचीत के लिए बुलाएंगे तो उससे पाक-समर्थित भावनाएं बढ़ेंगी। इसका मतलब है कि अब्दुल्ला और उनकी गैंग को पहले चीन चाहिए था और अब पाकिस्तान। आम लोगों की तो बात ही नहीं हो रही।

जम्मू-कश्मीर का भविष्य क्या है?

  • एक्सपर्ट कहते हैं कि कश्मीर की नई राजनीति गुपकार से नहीं गुजरनी चाहिए। एनसी, पीडीपी, कांग्रेस और यहां तक कि भाजपा (पीडीपी-भाजपा गठबंधन) सरकारों ने भी सेपरेटिज्म को ही बढ़ावा दिया है। इससे नई दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में गैप बढ़ता गया। पॉलिसी पैरालिसिस की स्थिति भी बनी।
  • इस बार नई दिल्ली भी पॉलिटिकल आउटरीच के लिए डेस्पिरेट दिख रही है। मौजूदा सिचुएशन में लीडरशिप की नई पीढ़ी उभारने की कोशिश चल रही है। कश्मीर में लीडरशिप की नई पीढ़ी खड़ी करने की तैयारी हो रही है। यह भी देखना होगा कि नई पौध भी राजद्रोह की ओर न चल पड़ें। कश्मीर के पास अब तक सिर्फ धोखे की नहीं बल्कि पॉलिटिकल करप्शन और डबल गेम्स के भी भयावह किस्से रहे हैं।
  • आर्टिकल 370 को रद्द करने से पहले केंद्र के एक टॉप मिनिस्टर ने कहा था कि कश्मीर में अभूतपूर्व सिचुएशन से निकालने के लिए अभूपतूर्व उपाय करने होंगे। अब उपाय किए ही हैं तो कश्मीर को फिर टाइम बम पर न रखा जाएं, जिसका डेटोनेटर पाकिस्तान में हो। नई दिल्ली को ऐसा रास्ता नहीं पकड़ना चाहिए जो गुपकार से न गुजरता हो।

जम्मू-कश्मीर में चुनावों का क्या होगा?

  • इसी तरह जम्मू-कश्मीर में 2018 में पीडीपी-भाजपा सरकार के ब्रेक-अप के बाद चुनाव नहीं हुए हैं। सरकारी सूत्र संकेत दे रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में जल्द ही विधानसभा चुनाव कराए जा सकते हैं।
  • धारा 370 रद्द करने और केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा देने के बाद यह पहला मौका है जब असेंबली इलेक्शन कराए जाएंगे। यह चुनाव 2021 की गर्मियों में कराए जा सकते हैं।


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The stalwarts of Kashmir politics came together to challenge the decision to repeal Article 370; Is this the Funeral of Section 370 that was long awaited?


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सरकार ने बताया- देश में फ्लोरोसिस के 12 लाख मरीज, साफ पानी नहीं पीने से होती है बीमारी; इससे बचने के 7 तरीके

भारत में फ्लोरोसिस एक बड़ी बीमारी है, लेकिन हाल ही में सरकार ने लोकसभा में बताया कि देश में फ्लोरोसिस के मामले घट रहे हैं। फ्लोरोसिस ज्यादा फ्लोराइड वाला पानी पीने से होती है। इससे दांत और हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं। उत्तर प्रदेश में सोनभद्र के 296 गांवों में हजारों लोग इस बीमारी के शिकार हैं, इनमें से हर साल सैकड़ों की मौत होती है। इस इलाके में पीने के पानी में फ्लोराइड की मात्रा जरूरत से ज्यादा पाई जाती है। सरकार पिछले कई सालों से शुद्ध पानी उपलब्ध करवाने का दावा कर रही है, लेकिन अभी तक ऐसा हो नहीं पाया।

इंडिया वाटर पोर्टल के मुताबिक, फ्लोरोसिस होने के बाद किसी भी व्यक्ति के लिए दोबारा सामान्य जिंदगी जीना मुश्किल होता है। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि बेहतर यह है कि फ्लोरोसिस होने ही न दिया जाए। इंडिया साइंस वायर के मुताबिक, सिर्फ दूषित पानी से ही फ्लोरोसिस नहीं होता है, हमें पानी के अलावा भी बहुत सारी चीजों का ध्यान रखना चाहिए।

फ्लोरोसिस से बचने के 7 तरीेके-

1. पानी की जांच

पानी के नमूने में जांच के लिए इस्तेमाल होने वाले कैमिकल को मिलाएं, यदि इससे पानी का रंग पीला हो जाता है, तो इसका मतलब है कि पानी में फ्लोराइड की मात्रा बहुत ज्यादा है। यदि यह गुलाबी हो जाता है तो साफ है कि पानी में फ्लोराइड कम है।

2. खून और यूरिन की जांच

खून में फ्लोराइड की मौजूदगी से पता चलता है कि फ्लोराइड आपके शरीर में प्रवेश कर गया है। अगर यह मात्रा 0.05एमजी/1 है, तो यह सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है। इसलिए खून और यूरिन की जांच कराएं।

3. लक्षण दिखने पर एक्सरे कराएं

एक्सरे की मदद से स्केलेटल फ्लोरोसिस का पता लगाया जा सकता है। हमें खास तौर पर लंबी हड्डियों का एक्सरे कराना चाहिए और उन हड्डियों का भी, जिनमें बीमारी का असर दिखाई देता हो।

4. फिल्टर पानी पीएं

पीने के पानी के लिए फ्लोराइड हटाने वाले फिल्टर का इस्तेमाल करें। एक्टिवेटेड एल्युमिना का इस्तेमाल करने वाले फिल्टर से फ्लोराइड हटाया जा सकता है। आइएनआरइएम फाउंडेशन द्वारा तैयार फिल्टर में जीरो-बी होता है, जो किसी भी बैक्टीरिया को हटा सकता है।

5. बारिश का पानी जमा करें

बारिश के पानी में बहुत कम या न के बराबर फ्लोराइड पाया जाता है। इसलिए हम बरसात के दिनों में छत पर गिरने वाले पानी को एक टैंक में जमा कर सकते हैं। इसे बाद में फिल्टर करके पिया जा सकता है। इसके अलावा यदि बारिश के पानी को कहीं जमा करते हैं, तो जमीन से निकलने वाले पानी की क्वालिटी भी बेहतर होती है।

6. पानी की जांच कराएं

घर में पीने के पानी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले विकल्प जैसे नल, नलकूप, कुआं की फ्लोराइड से जुड़ी जांच कराएं। इससे निकलने वाले पानी को आप फिल्टर करके भी पी सकते हैं।

7. कैल्शियम और विटामिन सी युक्त डाइट

यदि कैल्शियम, मैग्नीशियम और विटामिन-सी युक्त भोजन नहीं कर रहे हैं, तो फ्लोरोसिस की आशंका बढ़ जाती है। डॉक्टर की सलाह से आप मेडिकल सप्लीमेंट भी ले सकते हैं, जिसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, विटामिन डी-3 और जिंक मौजूद हों। विटामिन सी का सप्लीमेंट अलग से ले सकते हैं।

फ्लोरोसिस के लक्षण क्या हैं ?

इंडिया वाटर पोर्टल के मुताबिक, फ्लोरोसिस के लक्षण बहुत ही साफ दिखाई देते हैं। दांतों में अधिक पीलापन, हाथ और पैर का आगे या पीछे की ओर मुड़ जाना, घुटनों के आसपास सूजन, झुकने या बैठने में परेशानी, जोड़ों में दर्द और पेट भारी रहना फ्लोरोसिस के मुख्य लक्षण हैं। ऐसे लक्षण दिखने पर बिना देर किए डॉक्टरों की सलाह लेनी चाहिए।

फ्लोरोसिस होने का कारण सिर्फ पानी ही नहीं

पिछले साल पश्चिम बंगाल के चार फ्लोराइड प्रभावित गांवों में एक सर्वे किया गया। इंडिया साइंस वायर के मुताबिक, इस सर्वे में फ्लोराइड से दूषित पानी पीने के बावजूद लोगों के यूरिन के नमूनों में फ्लोराइड का स्तर पीने के पानी में मौजूद फ्लोराइड की मात्रा से मेल नहीं खाता। इसका मतलब है कि पानी के अलावा अन्य स्रोतों से फ्लोराइड शरीर में पहुंच रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, मिट्टी के साथ-साथ गेहूं, चावल और आलू जैसी खाने की चीजों से भी फ्लोरोसिस हो सकता है।

भारत में फ्लोरोसिस के 12 लाख से ज्यादा मरीज

  • भारत सरकार ने हाल ही में लोकसभा में बताया कि भारत में फ्लोरोसिस के 12 लाख से ज्यादा मरीज हो सकते हैं। लेकिन, फ्लोरोसिस रिस्क वाले इलाके पिछले 10 साल में 80% कम हुए हैं। यानी उन इलाकों में जहां पानी में ज्यादा फ्लोराइड पाई जाती थी, वहां 80% की कमी आई है।
  • सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश के 17 राज्यों में 5 हजार 485 ऐसे इलाके हैं, जो आज भी फ्लोरोसिस जोन हैं। यहां रहने वाले लोगों को फ्लोरोसिस होने का खतरा है। राजस्थान में सबसे ज्यादा 3 हजार इलाके हैं।
  • पूरे देश में फ्लोरोसिस के संभावित इलाकों में से 83% सिर्फ राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु और पंजाब में हैं। ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड के मुताबिक इन राज्यों के फ्लोरोसिस संभावित इलाकों में एक लीटर पीने के पानी में 1 मिलीग्राम फ्लोराइड पाया जाता है।


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What is Fluorosis, Dental Fluorosis | What You Need to Know About Symptoms Of Fluorosis


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अपने लहू से भाजपा को निकालना मुश्किल, चुनाव के बाद क्या होगा… अभी कैसे बता सकता हूं: लोजपा प्रत्याशी राजेंद्र सिंह

17 अक्टूबर को भास्कर ने बताया था कि कैसे दिनारा में लोजपा प्रत्याशी राजेंद्र सिंह के लिए लोजपाई से ज्यादा भाजपाई-संघी लगे हैं, आज उन्हीं की बात सुनिए- “जिस सीट पर मैंने काम किया, उसे जदयू के पास मैंने तो नहीं दिया। अभी लोजपा के बैनर पर लड़ रहे, आगे का पता नहीं।” यहां भी भाजपा-लोजपा-जदयू के भविष्य का अंदाजा लगाना, समझना मुश्किल नहीं। क्यों और क्या कहा, भाजपा के 37 साल पुराने संघी राजेंद्र सिंह ने…पूरा इंटरव्यू।

सवाल: आप 37 सालों से भाजपा में थे। राज्य में पार्टी के उपाध्यक्ष थे। पिछले विधानसभा चुनाव में आप मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में से एक थे। इस बार आपकी ही सीट जदयू को कैसे चली गई?
जवाब:
ये सीट गठबंधन के तहत हुए समझौते की वजह से जदयू को चली गई है, लेकिन हम पिछले पांच सालों से लगातार इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। सेवा का काम कर रहे हैं। हमने इस विधानसभा सीट के 6 हजार लोगों को रोजगार दिलाने का काम। जिस नेशनल हाइवे से आप आए होंगे, उसे संघर्ष करके बनवाने का काम। किसानों के धान का सही मूल्य मिले, इसके लिए काम किया। किसान का धान खेत से खरीदना चाहिए। खलिहान से खरीदना चाहिए। किसान के धान को उचित मूल्य मिलना चाहिए।

पिछले दिनों इलाके में पानी भर गया था तो सरकार की नींद खोलने के लिए अपने सर पर बोझा लेकर हम प्रखंड विकास पदाधिकारी के दफ्तर तक गए थे। लॉकडाउन के दौरान बाहर फंसे हजारों लोगों को हमने घर बुलवाया। उत्तरी बिहार में बाढ़ आई तो भारतीय जनता पार्टी के बैनर तले 400 क्विंटल खाद्य पदार्थ भिजवाने का काम किया। कोरोना में जब लोग अपने घर में थे तो हम बाहर निकलकर काम कर रहे थे।

सवाल: मेरा सवाल वही था। आपने इतना काम किया फिर भी आपकी सीट जदयू के पास क्यों चली गई? आप जैसे सीनियर नेता को टिकट के लिए पार्टी क्यों बदलनी पड़ी?
जवाब:
टिकट क्यों नहीं मिला ये तो वो बताएंगे, जिन्हें देना था। मेरा काम तो है नहीं। वो क्यों नहीं दिए? समझौते में तो सीटें अदली-बदली जाती हैं। मुझसे कहा गया कि सिटिंग का फार्मूला है, लेकिन उसमें भी बदलाव होता है। सब कुछ जानने के बाद भी कि मैं कितना सक्रिय हूं। काम कर रहा हूं। उसके बाद भी मेरी सीट नहीं बदली गई। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि सब कुछ जानने के बाद भी मेरी सीट जदयू को क्यों दे दी गई? मुझे आज भी लगता है कि बदलना चाहिए था।

सवाल: अब तो पार्टी ने आपको 6 साल के लिए निकाल भी दिया है?
जवाब:
वो तो पार्टी का संविधान है। हमने उसे तोड़ा है। पार्टी लाइन से बाहर जाकर चुनाव लड़ रहे हैं तो ये तो होना ही था। ये कोई नया काम तो नहीं है।

सवाल: आपके कार्यकर्ता कह रहे हैं कि चुनाव जीतने के बाद आप भाजपा में फिर शामिल हो जाएंगे। वैसे भी लोजपा और भाजपा में कोई खास अंतर नहीं है। आप इस कानाफूसी पर क्या कहेंगे?
जवाब:
आगे क्या होगा और क्या नहीं होगा, ये कहना तो बड़ा मुश्किल है। लेकिन, अभी तो हम लोग लोक जनशक्ति पार्टी के बैनर पर चुनाव लड़ रहे हैं। यहां की जनता और कार्यकर्ताओं के दबाव के कारण लड़ रहे हैं।

सवाल: चुनाव के वक्त नेताओं का पार्टी बदलना आम सी बात हो गई है। आप तो संघी हैं। क्या ये फैसला लेना आसान था कि जिस पार्टी और विचारधारा को अपना सब कुछ दिया, उसे छोड़कर या उसके खिलाफ ही चुनाव लड़ा जाए?
जवाब:
देखिए, मैंने फैसला लिया ही नहीं है।

सवाल: लोजपा से टिकट तो लिया ही है ना?
जवाब:
मेरे कहने का मतलब कि मैं जिनके लिए पांच साल लड़ा। जिनके सुख-दुःख में शामिल रहा, फैसला तो उन्होंने लिया है और उनकी वजह से मुझे आना पड़ा है।

सवाल: जैसे आपका दावा है कि आपने पिछले पांच साल इस क्षेत्र में खूब मेहनत की है तो आप निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकते थे। लोजपा का चुनाव क्यों?
जवाब:
सब लोगों के कहने से। कार्यकर्ताओं के कहने से ही मैंने लोजपा का चुनाव किया है। ये मेरा व्यक्तिगत फैसला नहीं था।

सवाल: सोशल मीडिया पर चर्चा है कि भले आप लोजपा के बैनर से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन भाजपा का साथ नहीं छोड़ा है। वजह है आपका फेसबुक पेज, जो आज भी आपके भाजपा में होने का भरोसा दिला रहा है। क्या वजह है कि वहां अभी तक लोजपा की मौजूदगी नहीं हुई है?
जवाब:
(हकलाते और हंसते हुए) अरे नहीं-नहीं। अभी तो हम चुनाव की प्रक्रिया में आए हैं। अभी तो आज हमारा पहला वीडियो-ऑडियो बना है। धीरे-धीरे चीजें होंगी। चीजें बदलेंगी। एक दिन में तो होता नहीं सब।

सवाल: ये सब बदलाव ना करके आप चुनाव बाद भाजपा वापस जाने का एक रास्ता रख रहे हैं क्या?
जवाब:
अभी कौन सा संकल्प है। विचारधारा को तो मैंने छोड़ा नहीं है। राम जन्मभूमि हमने छोड़ी नहीं है। मंदिर हमने छोड़ा नहीं है। वैसे इसकी जरूरत नहीं है, लेकिन हम हमेशा धारा 370 की बात करेंगे। हिंदुत्व की बात हमेशा करेंगे। इस देश की जो समस्या है, उस पर बोलते रहेंगे। राष्ट्रवादी ताकतों के साथ हमेशा रहेंगे।

सवाल: आपके हिसाब से राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के नेता नरेंद्र मोदी जी हैं?
जवाब:
हैं भी और हमेशा रहेंगे।

सवाल: बिहार में भी एक मोदी जी हैं। सुशील कुमार मोदी। क्या आप बिहार में उन्हें भाजपा का बड़ा नेता मानते हैं?
जवाब:
नरेंद्र मोदी जी देश के बड़े नेता हैं। उनके सामने विश्व के सारे नेता बौने हैं।

सवाल: मैंने सुशील मोदी जी के बारे में पूछा है?
जवाब:
(मुस्कुराते हुए) मैं नरेंद्र मोदी जी की बात कर रहा हूं।

सवाल: क्या आप मानते हैं कि आपकी सीट जदयू को जाने के पीछे सुशील कुमार मोदी की कोई चाल है?
जवाब:
हम किसी के बारे में नहीं बोल रहे। हमारी किसी से कोई शिकायत नहीं। वो स्वयं तय करें कि किसकी गलती है।

सवाल: आपके साथ लोजपा के कार्यकर्ता और नेता हैं क्या? मुझे तो भाजपा के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता आपका समर्थन करते हुए ज्यादा दिख रहे हैं?
जवाब:
अभी आपने देखा नहीं। यहां लोजपा के हजारों कार्यकर्ता थे। अभी भी लोजपा के जिला अध्यक्ष मेरे बगल में बैठे हैं। अब आपकी दृष्टि का दोष है तो मैं क्या करूं? इसमें मेरा कोई दोष नहीं है।

सवाल: भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता आपके समर्थन में यहां हैं या नहीं?
जवाब: आएं…?

सवाल: राजेंद्र सिंह के समर्थन में भाजपा के नेता कार्यकर्ता हैं या नहीं?
जवाब: देखिए…कोई हम भाजपा से अलग हो गए… एक दिन में भाजपा से अलग हो जाएंगे…कोई मेरा रक्त बदल देगा क्या? कोई मेरा जींस बदल देगा क्या? अभी तक जिसमें 37 साल घुंट-घुंट कर मरे हैं, वो कोई बदल देगा क्या? तो ये चीजें बदलती नहीं हैं। जो है सो है। अभी जिस सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं, वो कर रहे हैं।

सवाल: आपके कार्यकर्ता आपको बिहार का सरयू राय कह रहे हैं। वो तो पार्टी से निकले तो दोबारा पार्टी में नहीं गए?
जवाब: हमारी लड़ाई वो नहीं है। हमारी लड़ाई दिनारा का विकास है। यहां की जनता का विकास है। हमारी लड़ाई व्यक्तिवादी नहीं है। हमारी लड़ाई दिनारा के ढाई लाख मतदाताओं की लड़ाई है। उनके लिए लड़ रहे हैं, अपने लिए नहीं लड़ रहे हैं।



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Rajendra Singh Interview To Dainik Bhaskar | Chirag Paswan Party LJP Dinara Candidate Speaks On Bihar Vidhan Sabha Election 2020


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तेजस्वी डेढ़ साल डिप्टी सीएम रहे, लेकिन कभी गांव नहीं आए, सीएम बनने के बाद लालू ने बदली थी सूरत

राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने बिहार के लिए क्या किया और क्या नहीं, गोपालगंज के फुलवरिया के लोग उसकी चर्चा करने की जगह लालू के जमाने में गांव के लिए किए काम को यादकर आज भी जी रहे हैं। कोई खिलाफ नहीं बोलता, लेकिन लोग यह सच्चाई और उसका दर्द नहीं छिपा पाते कि “नया बिहार, तेजस्वी सरकार” का नारा देने वाले लालू पुत्र इस गांव को पूरी तरह भूल चुके।

40 साल की एक महिला मिलीं, नाम पूछा तो भागने लगीं। रोककर बात की तो भी नाम नहीं बताया, बस भोजपुरी में इतना कहा- “जे कइलन उ लालू जी, बेटवन सब झाकहुं न आइल। जे आज लउकता, उ 20 साल पहिले ओइसने रहे। इ लोग जे कमइलन-बनइलन, लेकिन फुलवरिया झांकहुं ना अइलन।” इन बातों का दर्द यहां हर तरफ दिखता है। अस्पताल है, मगर पिछली सदी की व्यवस्था वाला।

तेजस्वी-तेज प्रताप नहीं आते हैं, मगर लालू से शिकायत नहीं
भास्कर की टीम जब रेफरल अस्पताल में पहुंची तो वहां एक कमरे में दो लोग बातें करते हुए मिले। दोनों सरकारी कर्मचारी थे। इनमें से एक फुलवरिया के ही रहने वाले थे। पहचान उजागर नहीं किए जाने की शर्त पर उन्होंने बात की। बताया कि लालू प्रसाद 2017 में ही अपने गांव आए थे। इसके बाद उन्हें चारा घोटाले में जेल जाना पड़ा। इस विधानसभा चुनाव में वो नहीं हैं। जो बात उनमें है, वो उनके बच्चों में नहीं है।

तेज प्रताप और तेजस्वी यादव तो अपने ददिहाल में आते भी नहीं हैं। यहां के लोगों से संपर्क भी नहीं रखते हैं। गांव के लोगों को तो दोनों भाई पहचानते भी नहीं हैं। तेजस्वी यादव बिहार के उप मुख्यमंत्री बने और तेज प्रताप स्वास्थ्य मंत्री बने, लेकिन फुलवरिया के लिए कुछ नहीं किया। अपने लालू जी वाली बात उनके दोनों बेटों में नहीं है।
लालू के मुख्यमंत्री बनने के पहले तक फुलवरिया में कुछ भी नहीं था। न सड़क थी, न बिजली की कोई व्यवस्था। लोगों के इलाज के लिए न कोई अस्पताल था। बच्चों की पढ़ाई के लिए कोई प्राइमरी स्कूल तक नहीं था। लेकिन, लालू मुख्यमंत्री बने तो सूरत बदल गई।

ये वही घर है, जहां लालू यादव का बचपन गुजरा।

घर से गांव तक लालू ही पहचान, नई पीढ़ी का वास्ता नहीं

यहां लालू प्रसाद के दो पुराने घर हैं। पहले में एक भाई के बेटे और उनका परिवार रहता है। दूसरे घर में दूसरे भाई का बेटा-पोता और परिवार के सदस्य रहते हैं। इस घर के आंगन में ही लालू प्रसाद की मां मरछिया देवी की एक प्रतिमा भी बनी हुई है, जिसका उद्घाटन मुख्यमंत्री रहते राबड़ी देवी ने किया था। लोग बताते हैं कि लालू परिवार में लालू-राबड़ी के अलावा किसी का इस गांव से वास्ता नहीं है। होता तो 2015 में जब तेजस्वी उप मुख्यमंत्री और तेज प्रताप स्वास्थ्य मंत्री बने तो नई सुविधाएं जुड़ जातीं। नया कुछ नहीं होने का दर्द झलकता है, लेकिन बोलने की बारी आती है, तो लोग लालू प्रसाद के किए काम को बताने लगते हैं।

अस्पताल, पुलिस, ब्लॉक, ट्रेन…सब लालू की ही देन

लालू प्रसाद ने मुख्यमंत्री बनने के बाद गांव में सबसे पहले रेफरल अस्पताल बनवाया। यह लालू प्रसाद की मां मरछिया देवी के नाम पर है। इसके बाद फुलवरिया में पुलिस आउट पोस्ट खुलवाई, जो बाद में थाना बन गई। लालू प्रसाद ने ही फुलवरिया को ब्लॉक बनाया। सब रजिस्ट्रार ऑफिस खुलवा दिया। बिजली के लिए सब स्टेशन बनवाया। इसके बाद से पूरे फुलवरिया और आसपास के दूसरे गांव के लोगों को बिजली मिलने लगी।

जब केंद्र में यूपीए की सरकार में लालू प्रसाद रेल मंत्री बने तो फुलवरिया होते हुए उत्तर प्रदेश के भटनी तक एक नई रेल लाइन ही बिछवा दी गई। इस रूट पर हाजीपुर से पंचदेवड़ी तक ट्रेन चलती है।

अपनी मां मरछिया देवी के नाम पर गांव में लालू यादव ने बनवाया था अस्पताल।

पहले बथूआ जाना पड़ता था बच्चों को पढ़ने के लिए
फुलवरिया में एक घर में बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रहे प्राइवेट टीचर इब्राहिम मिले। इसी गांव के रहने वाले हैं। वो बताते हैं कि गांव के अंदर पहले बच्चों के प्राइमरी एजुकेशन की कोई व्यवस्था नहीं थी। अपने कार्यकाल के दौरान लालू ने ही दो सरकारी मिडिल स्कूल खुलवाए। उनके माध्यम से ही अब बगल के मारीपुर गांव में हाई स्कूल खुला है। गांव के अंदर न अच्छी सड़क थी और न ही नाला, लेकिन उनके सीएम बनते ही गांव बदल गया।



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Lalu Prasad Yadav Tejashwi Yadav: Bihar Election 2020 | Dainik Bhaskar Ground Report From RJD Supremo Lalu Yadav Gopalganj Phulwaria Village


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बिहार सरकार के मंत्री ने भाजपा के चुनावी प्रचार के लिए फ्लाईओवर की जिस तस्वीर को मुजफ्फरपुर का विकास बताया, पड़ताल में हैदराबाद की निकली

क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर बिहार विधानसभा चुनावों के लिए जारी किया गया भाजपा का एक चुनावी विज्ञापन शेयर किया जा रहा है। विज्ञापन को बिहार सरकार में मंत्री सुरेश कुमार शर्मा ने अपने ऑफिशियल ट्विटर हैंडल और फेसबुक पेज से शेयर किया है।

विज्ञापन में पीएम मोदी की भी तस्वीर है। साथ ही स्ट्रीट लाइटों से लैस जगमगाता फ्लाईओवर दिख रहा है। नीचे लिखा है - जगमगा रही हैं मुजफ्फरपुर की सड़कें।

और सच क्या है ?

  • वायरल हो रही फोटो को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से तेलंगाना की आईटी मिनिस्ट्री के फेसबुक पेज पर भी हमें यही फोटो मिली। मंत्रालय के फेसबुक पेज पर इसी फोटो को बैरमलगुडा जंक्शन ( Bairamalguda Junction) स्थित आरएचएस फ्लाईओवर का बताया है।

  • यानी सोशल मीडिया पर एक फ्लाईओवर के निर्माण को लेकर दो अलग-अलग राज्यों का दावा है। इस दावे की सत्यता जांचने के लिए हमने ऐसी मीडिया रिपोर्ट्स सर्च कीं, जिनसे पुष्टि हो सके कि आखिर फ्लाईओवर किस जगह का है।
  • इंडियन एक्सप्रेस वेबसाइट की खबर में बैरमलगुडा जंक्शन पर बने फ्लाईओवर के उद्घाटन की खबर है। फ्लाईओवर का फोटो भी है। हालांकि, यहां फ्लाईओवर का ड्रोन फोटो है। बिहार सरकार के मंत्री द्वारा शेयर की गई फोटो और इंडियन एक्सप्रेस की फोटो का हमने मिलान किया।
  • फ्लाईओवर की सतह और बाउंड्री का साइज दोनों तस्वीरों में बिल्कुल एक जैसा है। साथ ही स्ट्रीट लाइट्स के बीच का गैप भी बराबर है।
  • तेलंगाना सरकार में मंत्री केटी रामा राव ने 9 अगस्त को एक ट्वीट किया था। इस ट्वीट में आरएचएस फ्लाईओवर की अलग-अलग ऐंगल से ली गई चार तस्वीरें हैं। एक तस्वीर वह भी है, जिसे बिहार के मुजफ्फरपुर का बताया जा रहा है।
  • Google Earth की इन सैटेलाइट इमेजेस से भी यही पुष्टि होती है कि फ्लाईओवर की जिस फोटो को बिहार का बताया जा रहा है, वो असल में हैदराबाद में है।


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Fact Check: Bihar government minister shares photos of Hyderabad flyover to show development of Muzaffarpur


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व्यापारियों को 1 लाख करोड़ के कारोबार की उम्मीद, लेकिन ग्राहक को नहीं मिलेगा कोई भी ऑफर

त्योहारी सीजन करीब है, लेकिन बाजारों में रौनक गायब है। दिल्ली के चांदनी चौक, करोलबाग, खान मार्केट तो कोलकाता का न्यू मार्केट, धर्मतल्ला सब कुछ सुना है। बाजार में ना ग्राहक हैं, ना कोई त्योहारी तामझाम। अगर कुछ है, तो बिक्री की आस में बैठे कारोबारी और इन कारोबारियों को है दिवाली का बेसब्री से इंतजार। क्योंकि, कोविड-19 के चलते मंदी की मार झेल रहे देश भर के बाजार को अब इस दीवाली से काफी उम्मीदें हैं।

कोरोना महामारी से कारोबार में आई सुस्ती को फेस्टिव सीजन में रफ्तार मिलने की आस से व्यापारी स्टॉक जुटाने में लगे हैं। ताकि, जब ग्राहक आएं तो निराश होकर दुकान से वापस ना चले जाएं। कंफेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने भास्कर को बताया कि इस साल दिवाली में करीब एक लाख करोड़ रुपए तक का कारोबार हो सकता है। पिछले साल 60-70 हजार करोड़ के करीब यह आंकड़ा था।

ऑफलाइन खरीदारी को लेकर इतनी उम्मीदें कैसे?

प्रवीण खंडेलवाल की मानें तो पिछले सात माह से लोगों ने सिर्फ जरूरत का ही सामान खरीदा है। ऐसे में ग्राहकों के पास सेविंग्स हुई है। और तो और, वो मेंटली भी खरीदारी के लिए तैयार हुए हैं। वे बताते हैं कि सालभर ग्राहक दिवाली का इंतजार करते हैं। ऐसे में अधिक शॉपिंग ना भी करें, तब भी खरीदारी तो करेंगे ही। दूसरी तरफ, लॉकडाउन में बढ़े ऑनलाइन फ्रॉड के मामले और ई-कॉमर्स पर फेक सामान के चलते ग्राहकों का भरोसा अब भी ऑफलाइन दुकानों पर भी है।

सरकार के फैसले का भी पड़ेगा असर

ग्राहकों द्वारा खर्च बढ़ाने के लिए सरकार की नई एलटीसी कैश वाउचर योजना के चलते गिरते बाजार को मजबूती मिलेगी। इससे पिछले कई महीनों से निराश बैठे और नुकसान उठा रहे व्यापारियों को थोड़ी राहत मिलने की उम्मीद है। लोगों द्वारा पिछले सात महीनों में की गई बचत, केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में सरकारी कर्मचारियों को एलटीसी को नकद में बदलने की सुविधा और व्यापारियों द्वारा चीन से त्योहारी सीजन पर हर साल होने वाली खरीद का सारा पैसा देश में ही खर्च करने के चलते 31 मार्च 2021 तक देश के बाजारों में लगभग 2 लाख करोड़ रुपए खर्च होने की सम्भावना है। इसको लेकर देश भर के व्यापारी उत्साहित हैं।

चीनी सेंटीमेंट्स का फायदा भारतीय कारोबारियों को होगा

प्रवीण के मुताबिक, भारत-चीन के बीच हुई सैन्य झड़प के बाद चीनी सामान के बहिष्कार की मुहिम देशभर में चलाई गई। इसका व्यापक समर्थन और असर देश भर में दिखाई दे रहा है। हर साल राखी से लेकर दीवाली तक चलने वाले फेस्टिवल सीजन में त्योहारी सामानों का तकरीबन 40 हजार करोड़ का एक्सपोर्ट चीन भारत में करता है। पर इस बार चीन को लेकर भारतीय ग्राहक की सोच पूरी तरह बदल गई है। जिसकी बानगी हाल ही में गुजरे रक्षाबंधन और गणेश चतुर्थी जैसे त्योहारों में देखने को मिली है।

चीन को राखी पर करीब 5,000 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा, तो वहीं गणेश चतुर्थी में 500 करोड़ की चपत खानी पड़ी है। अब ये रकम इस साल त्योहार में भारतीय बाजारों में ही रहेगी। इसका फायदा 7 करोड़ व्यापारियों को होगा।

इस साल दिवाली पर ज्यादातर रिटेलर्स ऑफर्स देने के मूड में नहीं

दिल्ली के चांदनी चौक के एक कारोबारी भरत आहूजा ने बताया कि इस साल दिवाली के लिए खास तैयारी कर रहे हैं। लॉकडाउन के चलते जो सामान बिक नहीं पाया, उसे सस्ते दामों पर बेचना होगा। हालांकि, नए स्टाॅक पर कोई डिस्काउंट नहीं मिलेगा। दुकानदारों को पिछले सात माह में काफी नुकसान झेलना पड़ा है। वे बताते हैं कि ऑनलाइन मार्केट पर ना तो हमारे पीछे किसी निवेशक का हाथ होता है, ना किसी बैंक का सपोर्ट। ऐसे में हम ऑफर्स कहां से दें?

ऑफलाइन कारोबार में 30-40 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई

खान मार्केट (दिल्ली) संगठन के अध्यक्ष संजीव मेहरा ने बताया कि कोरोना के चलते बाजार और व्यापार पूरी तरह से बंद पड़े थे। लॉकडाउन खुलने के बाद से अब तक व्यापार में 30-40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। देश भर में व्यापार अभी तक पटरी पर नहीं लौट पाया है। अब इस दीवाली फेस्टिवल सीजन से बाजार में फुटफॉल और खरीदारी बढ़ने की पूरी संभावना है। हालांकि, खान मार्केट में इस साल दिवाली पर पिछले साल के मुकाबले करीब 40 फीसदी कम सेल होने की आशंका है। रही बात ऑफर्स की तो संजीव बताते हैं कि इस साल फर्नीचर, कपड़े, होम अप्लायंसेस की डिमांड बढ़ेगी, लेकिन ऑफर्स देना संभव नहीं है।

पिछले साल के मुकाबले इस फेस्टिवल में दोगुने फायदे में रहेगा ई-कॉमर्स

रेडसीर (Redseer) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल फेस्टिव सीजन में ई-कॉमर्स की ग्रॉस मर्चेंडाइज वॉल्यूम 7 बिलियन डॉलर (51.52 हजार करोड़ रु.) तक पहुंच सकती है। यह पिछले साल के मुकाबले लगभग दोगुनी होगी। ई-कॉमर्स सेक्टर की बात की जाए तो इस समय दिग्गज कंपनियां अमेजन और फ्लिपकार्ट बिक्री बढ़ाने के लिए ग्राहकों को आकर्षक ऑफर्स दे रही हैं। इसमें अमेजन का ग्रेट इंडियन शॉपिंग फेस्टिवल और फ्लिपकार्ट का बिग बिलियन डेज सेल ऑफर्स मुख्य हैं। फेस्टिव सेल इवेंट में 4 बिलियन डॉलर (करीब 30 हजार करोड़ रुपए) तक की बिक्री हो सकती है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्केट में सस्ता 4जी डेटा होने के कारण ऑनलाइन मार्केट में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई है। इसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी रिलायंस जियो की है। जियो ने ग्राहकों को सबसे कम कीमत में इंटरनेट डेटा देने की शुरुआत की थी। जिसका कारण है कि वर्तमान में भारतीय ई-कॉमर्स मार्केट 50 बिलियन डॉलर (3.68 लाख करोड़ रु.) का हो गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 तक भारत में 48 करोड़ लोगों तक इंटरनेट की पहुंच थी। इसमें से नौ करोड़ लोग ऑनलाइन शॉपर्स हैं।

इस बार लगभग सभी ई-कॉमर्स कंपनियों ने टीयर-2 और टीयर-3 शहरों पर ज्यादा फोकस किया है। इसमें अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैप डील जैसे दिग्गज शामिल हैं। रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि 2020 तक ऑनलाइन शॉपर्स की संख्या 16 करोड़ के पार जा सकती है, जबकि टोटल ई-कॉमर्स बिक्री 38 बिलियन डॉलर (2.80 हजार करोड़ रु.) तक पहुंच सकता है।



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Offline Market Vs Online Market: Businesses expect a turnover of 1 lakh crore, but the customer will not get any offer


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