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(गिरीश शर्मा). इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (आईसीएआर) की रैंकिंग में देश में 21वें और राजस्थान में टॉपर रहने वाली महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी) का 24 दिसंबर को दीक्षांत समारोह होगा। लेकिन यह इतना अनूठा होगा कि देश में अब तक किसी भी यूनिवर्सिटी में नहीं हुआ।
इस वर्चुअल समारोह के लिए ऐसा प्रजेंटेशन तैयार किया गया है, जिसमें गोल्ड मेडल पाने वाले छात्र-छात्राएं कुलपति व अन्य मेहमानों के हाथों पदक पहनते दिखाई देंगे। वे नाम पुकारे जाने पर कुलपति के सामने प्रकट होंगे और मेडल लेते ही गायब हो जाएंगे।
अब तक आईआईटी मद्रास, आईआईटी बॉम्बे व जोधपुर में भी वर्चुअल आयोजन हुए हैं, लेकिन उनमें छात्रों की असल इमेज की जगह एनिमेटेड इमेज थी। इस दीक्षांत समारोह में छात्र व पदक देने वाले मेहमानों की इमेज एनिमेटेड होने के बजाय असली होगी।
कुलपति प्रो. एनएस राठौड़ ने बताया कि समारोह में इस बार 32 छात्र-छात्राओं को स्वर्ण पदक और 712 छात्रों को उपाधियां दी जाएंगी। गोल्ड मेडलिस्ट छात्र के अलावा अन्य डिग्री व मेडल पाने वालों छात्रों के फोटो, नाम आदि स्क्रीन पर डिस्प्ले किए जाएंगे।
अभी एनिमेटेड इमेज से होते रहे हैं दीक्षांत समारोह, पहली बार मिक्स्ड रियलिटी टेक्नोलॉजी से वीडियो जोड़े
सीटीएई के डीन डॉ. अजय शर्मा ने बताया कि इस वर्चुअल दीक्षांत समारोह के लिए मिक्स्ड रियलिटी एनिमेटेड टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया है। मकसद था कि एनिमेटेड के बावजूद बनावटी जैसा कुछ नहीं दिखे। स्क्रीन पर प्ले होने के बावजूद छात्र भी असल होंगे और उन्हें पदक देने वाले मेहमान भी। इसे तैयार करने के लिए समारोह का मंच तैयार किया गया।
कुलपति और अन्य मेहमानों के जरिये ऐसा वीडियो बनाया गया, जैसे वे किसी के गले में मेडल डाल रहे हों। इसके बाद मेडल पाने वाले छात्रों के अलग-अलग वीडियो ऐसे बनाए गए, जैसे वे मेडल पहन रहे हों। फिर उनके नामों की घोषणा, मेडल देने और पहनने की मिक्सिंग की।
from Dainik Bhaskar /local/rajasthan/udaipur/news/such-a-virtual-convocation-in-udaipur-in-which-students-will-appear-in-real-form-will-be-invisible-as-soon-as-they-take-the-medal-128039060.html
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(गुलाम नबी आजाद, वरिष्ठ नेता, कांग्रेस). राजनीति के मोती नहीं रहे। कांग्रेस के वटवृक्ष कहे जाने वाले वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा का 93 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने सोमवार को दिल्ली के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। छत्तीसगढ़ के दुर्ग में मंगलवार को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। कांग्रेस के लिए यह और भी बड़ा सदमा है, क्योंकि हाल ही में अहमद पटेल भी दुनिया छोड़ गए। कांग्रेस और गांधी परिवार के बीच यह दोनों नेता सेतु माने जाते रहे। मोतीलाल वोरा से पहले 25 नवंबर 2020 को अहमद पटेल का भी नई दिल्ली में देहांत हो गया था।
बात तब की है, जब मैं एआईसीसी का महाराष्ट्र प्रभारी था। मुझे वहां ऑब्जर्वर भेजना था। बहुत सारे नाम आए। लेकिन मुझे मोतीलाल वोरा चाहिए थे। मैंने कहा- मुझे वो आदमी चाहिए, जिसकी जेब न हो। उन्होंने मुझसे पूछा- इसका क्या मतलब? मैंने बताया कि इसका मतलब है आप पैसे नहीं लेंगे। किसी से प्रभावित नहीं होंगे। अगर कोई जबरदस्ती जेब में डाल दे तो निकालकर फेंक देंगे। सुनकर वे बहुत हंसे। एक और वाकया है। वरिष्ठ नेता गिरधारी लाल डोगरा का निधन हो गया था। उनका पार्थिव शरीर जम्मू भेजना था। मैं दिल्ली से बाहर था। मैंने वोरा जी से संपर्क किया।
उस समय रात के दो बजे थे। 15 मिनट में एंबुलेंस पहुंच गई और उन्होंने वापस फोन कर मुझे जानकारी दी। वे निर्णय लेने में बहुत तेज थे। राजीवजी जब पीएम थे, मैं एआईसीसी का मप्र प्रभारी था। वोराजी पीसीसी चीफ थे। जब वोराजी को सीएम बनाया गया, तब भी प्रभारी मैं ही था। उम्र के लिहाज से हमारे बीच 24-25 साल का फासला था, लेकिन हमारे बड़े घनिष्ठ संबंध थे। चार दशकों के दौरान उनके साथ पार्टी के बारे में, समाज के बारे में, देश के बारे में चर्चा का अवसर मिला। उनके विचार जानने का मौका मिला। वे बहुत सेक्युलर आदमी थे। पार्टी के लिए, देश के लिए अपनी जान दे सकते थे। उनके जाने से कांग्रेस पार्टी ने एक बड़ा स्तंभ खो दिया।
आखिरी समय तक वे पार्टी की सेवा करते रहे। मैंने पार्टी में और किसी को इतनी उम्र तक इतना सक्रिय नहीं देखा। वे हर बैठक में पहुंचते थे। संसद में वे सिर्फ भाषण नहीं देते थे, सवाल भी उठाते थे। उनके साथ सैकड़ों बैठकों की जाने कितनी यादें हैं। गांधी परिवार के साथ वोराजी, अहमद पटेल व मैंने काफी लंबे समय तक काफी निकटता से काम किया। कभी कभी हम तीनों साथ होते थे। कोई न कोई तो वहां होता ही था। दुर्भाग्य से कुछ दिनों पहले अहमद पटेल चले गए। और अब वोरा जी नहीं रहे। उनके जाने से हम अकेला महसूस कर रहे हैं। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे। उन्हें स्वर्ग में जगह दे।
from Dainik Bhaskar /national/news/vora-did-not-have-pockets-did-not-see-any-leader-in-the-party-so-active-at-this-age-he-used-to-reach-every-party-meeting-azad-128039054.html
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(संजय गुप्ता) . देश में किसानों की सहमति से जमीन लेकर औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने के लिए पहली लैंडपूल स्कीम पीथमपुर में लागू हो रही है। योजना के पहले पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चार गांवों अंबापुरा, सलमपुर, कालीबिल्लौद व रणमलबिल्लौद के 121 किसान 1100 एकड़ जमीन करार कर सरकार को सौंपेंगे।
बदले में किसानों को मुआवजा राशि का 20 फीसदी (95 करोड़ रुपए) खाते में दिए जाएंगे और शेष 80 फीसदी राशि विकसित प्लॉट के रूप में तीन साल में दी जाएगी। बड़ी राहत यह भी है कि यदि किसान को रुपए की जरूरत है तो वह करार के आधार पर ही जमीन किसी को बेचने का सौदा कर सकता है और राशि ले सकता है। जमीन करार खरीदने वाले की हो जाएगी।
बंगाल में अमित शाह के बाद ममता बनर्जी भी बीरभूम में रैली करेंगी। बॉलीवुड ड्रग्स केस में NCB ने अर्जुन रामपाल से दूसरी बार पूछताछ की। ब्रिटेन में कोरोना का नया वैरिएंट मिलने के बाद ब्रिटेन से भारत आने-जाने वाली फ्लाइट्स पर रोक लगा दी गई है। बहरहाल, शुरू करते हैं न्यूज ब्रीफ।
सबसे पहले देखते हैं, बाजार क्या कह रहा है
BSE का मार्केट कैप 178.79 लाख करोड़ रुपए रहा। करीब 77% कंपनियों के शेयरों में गिरावट रही।
3,192 कंपनियों के शेयरों में ट्रेडिंग हुई। 564 कंपनियों के शेयर बढ़े और 2,472 कंपनियों के शेयर गिरे।
आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के 100 साल पूरे होने पर होने वाले कार्यक्रम में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शामिल होंगे।
आज आधी रात से ब्रिटेन से आने-जाने वाली फ्लाइट्स पर 31 दिसंबर तक रोक लगेगी। इससे पहले पहुंचने वाले लोगों का RT-PCR टेस्ट होगा।
जम्मू-कश्मीर में 280 जिला विकास परिषद (DDC) चुनाव की काउंटिंग होगी। यहां पहली बार 8 फेज में चुनाव कराए गए थे।
देश-विदेश
बैटल ऑफ बंगाल
बंगाल में तृणमूल और भाजपा के बीच लड़ाई हर दिन बढ़ती जा रही है। गृह मंत्री अमित शाह के 2 दिन का बंगाल दौरा खत्म होने के अगले ही दिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। अमित शाह के सवालों पर उन्होंने कहा कि गृह मंत्री को झूठ बोलना शोभा नहीं देता है और मैं उनके सवालों का जवाब कल दूंगी। वे वोलीं, ‘भाजपा चीटिंगबाज पार्टी है, राजनीति के लिए वो कुछ भी कर सकती है।’ वहीं ममता ने 29 दिसंबर को बीरभूम में रैली करने का ऐलान भी किया।
सियासत में तलाक
पश्चिम बंगाल में सियासी हलचल जारी है। नेताओं के भाजपा ज्वाइन करने के बीच, सोमवार को बिष्णुपुर लोकसभा सीट से भाजपा सांसद सौमित्र खान की पत्नी सुजाता मंडल खान ने तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन की। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसके कुछ ही देर बाद सांसद सौमित्र ने सुजाता को तलाक का नोटिस भेज दिया। इधर, सुजाता ने कहा कि भाजपा की डर्टी पॉलिटिक्स की वजह से उन्होंने तृणमूल ज्वाइन करने का फैसला लिया है। भाजपा लुभावने सपने दिखाकर दूसरी पार्टियों के नेताओं को अपनी ओर खींच रही है।
किसानों की भूख हड़ताल
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन 26वें दिन भी जारी रहा। किसानों ने सोमवार से भूख हड़ताल शुरू की। दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश बॉर्डर पर जारी प्रदर्शन में 11-11 किसान भूख हड़ताल पर बैठे। 24 घंटे बाद दूसरे 11 किसान इस सिलसिले को आगे बढ़ाएंगे। इधर, रविवार को किसानों ने हरियाणा में 25 से 27 दिसंबर तक टोल फ्री करने का ऐलान किया। इसके 5 घंटे बाद ही सरकार ने बातचीत के न्योते की चिट्ठी भेज दी। इसमें तारीख तय करने के लिए किसानों से ही कहा गया था। किसान आज इस पर फैसला ले सकते हैं।
शेयर मार्केट हुआ धड़ाम
शेयर बाजार में सोमवार को बड़ी गिरावट दर्ज की गई। BSE सेंसेक्स दोपहर में 2037.61 अंकों की गिरावट के साथ दिन के निचले स्तर 44,923.08 अंक पर पहुंच गया था। हालांकि मार्केट क्लोजिंग के समय इंडेक्स 1,406 अंक नीचे 45,553.96 पर बंद हुआ। इससे पहले 4 मई को सेंसेक्स 2002 अंक टूटकर 31,715 पर बंद हुआ था। सोमवार को BSE का टोटल मार्केट कैप 178.79 लाख करोड़ रुपए रहा, जो शुक्रवार को 185.36 लाख करोड़ रुपए था। यानी टोटल मार्केट 6.57 लाख करोड़ रुपए घट गया।
वैक्सीन पर धर्मसंकट
कोरोना से जहां एक तरफ पूरी दुनिया में हड़कंप मचा हुआ है, वहीं कुछ मुस्लिम देशों ने इसकी वैक्सीन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। दरअसल, वैक्सीन को स्टेबलाइज करने के लिए सुअरों (पोर्क) से मिलने वाले जिलेटिन का इस्तेमाल होता है। इसके जरिए स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन में वैक्सीन की सेफ्टी और इफेक्टिवनेस बनी रहती है।AP न्यूज एजेंसी के मुताबिक, अब यही बात इस्लामिक देशों को खटक रही है। इनका कहना है कि इस्लाम में पोर्क और उससे बनी सभी चीज प्रतिबंधित हैं। ये हराम माना जाता है। इसलिए इसके इस्तेमाल से बनी वैक्सीन भी इस्लामिक लॉ के मुताबिक हराम है।
ब्रिटेन में नए कोरोना से भारत में दहशत
ब्रिटेन में कोरोनावायरस का नया वैरिएंट मिलने के बाद बनी स्थिति को देखते हुए सरकार ने ब्रिटेन से भारत आने-जाने वाली फ्लाइट्स पर रोक लगाने का फैसला लिया है। यह बैन 22 दिसंबर रात 11.59 बजे 31 दिसंबर रात 11.59 बजे तक रहेगा। जो लोग आधी रात से पहले तक तक ब्रिटेन की फ्लाइट्स से भारत पहुंचेंगे, उनका एयरपोर्ट पर ही RT-PCR टेस्ट किया जाएगा। ब्रिटेन में मिले वायरस के नए स्ट्रेन को VUI-202012/01 नाम दिया गया है। आशंका है कि यह पहले वाले वायरस से 70% ज्यादा संक्रमण फैलाने वाला है।
एक्सप्लेनर
किसे लगवाना चाहिए कोरोना वैक्सीन?
कोरोना वैक्सीन को लेकर केंद्र सरकार का कहना है कि वैक्सीन लगवाना अनिवार्य नहीं है। यह पूरी तरह से आपकी इच्छा पर निर्भर होगा। हालांकि सरकार ने कहा है कि कोरोना से बचने के लिए और अपने परिवार के सदस्यों, दोस्तों, रिश्तेदारों और को-वर्कर्स में इसका प्रसार रोकने के लिए वैक्सीन लगानी चाहिए। लेकिन, जो कोरोनावायरस पॉजिटिव हो चुके हैं, क्या उन्हें भी वैक्सीन लगानी चाहिए? क्या बच्चों को लगेगी वैक्सीन? ऐसे कई सवालों के जवाब यहां जानिए। पढ़ें पूरी खबर...
पॉजिटिव खबर
आइसक्रीम से 3 महीने में 8 लाख का कारोबार
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी NIFT से ग्रेजुएट प्रेरणा इंटीरियर डिजाइनिंग कंसल्टेंट के रूप में काम करती थी। लॉकडाउन के दौरान काम बंद हो गया। इसी दौरान, 12 साल के बेटे ने आइसक्रीम खाने की जिद की, तो यूट्यूब से आइसक्रीम बनाना सीखा। यह आइसक्रीम बेटे के साथ रिश्तेदारों को भी पसंद आई। इसके बाद जून-जुलाई में प्रेरणा ने इसे मार्केट में सप्लाई करने का फैसला किया। आज दिल्ली और महाराष्ट्र में उनके सैकड़ों ग्राहक हैं। तीन-चार महीनों में ही 8 लाख से ज्यादा का कारोबार हो गया है। पढ़ें पूरी खबर...
बॉलीवुड ड्रग्स केस में पूछताछ
ड्रग्स केस में बॉलीवुड एक्टर अर्जुन रामपाल से सोमवार को NCB टीम ने 6 घंटे तक पूछताछ की है। इससे पहले नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने उन्हें पूछताछ के लिए 16 दिसंबर को तलब किया था। हालांकि, निजी कारणों का हवाला देते हुए अभिनेता ने जांच एजेंसीज से 21 दिसंबर तक का समय मांगा था। रामपाल के घर से जब्त इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस की रिपोर्ट आने के बाद NCB ने उन्हें दूसरी बार तलब किया। NCB ने रामपाल के घर पर 9 नवंबर को छापा मारा था। उनकी गर्लफ्रेंड गैब्रिएला डेमेट्रियाडेस और ड्राइवर से भी पूछताछ की गई थी।
नहीं रहे मोतीलाल वोरा
कांग्रेस के दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा (93) का सोमवार को निधन हो गया। दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। वे दो बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। 2000 से 2018 तक 18 साल तक पार्टी के कोषाध्यक्ष भी रहे थे। वोरा ने 20 दिसंबर ही अपना 93वां जन्मदिन मनाया था। उनका अंतिम संस्कार मंगलवार शाम 4 बजे दुर्ग में होगा। पार्थिव शरीर मंगलवार सुबह 10 बजे दिल्ली से रायपुर पहुंचेगा।
सुर्खियों में और क्या है...
क्रिसमस और न्यू ईयर से पहले महाराष्ट्र सरकार ने सोमवार से सभी नगर निगम वाले इलाकों में नाइट कर्फ्यू लगाने का ऐलान किया। राज्य में 5 जनवरी तक रात 11 से सुबह 6 बजे कर्फ्यू रहेगा।
ब्रिटेन में कोरोनावायरस में म्यूटेशन मिलने के बाद कई देशों ने कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं। इस बीच, ब्रिटेन से निकलने के लिए रविवार को लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी।
देश में एक्टिव मरीजों की संख्या घटकर फिर 3 लाख से कम हो सकती है। इसके पहले 11 जुलाई को 2 लाख 91 हजार एक्टिव मरीज थे। मतलब 163 दिन बाद 3 लाख से कम एक्टिव मरीज होंगे।
कहानी- एक दिन गौतम बुद्ध अपने आश्रम में टहल रहे थे। उस समय उन्होंने एक कोने में अपने एक भिक्षु को तड़पते हुए देखा। भिक्षु को डायरिया हो गया था। कमजोरी की वजह से वह ठीक से सांस भी नहीं ले पा रहा था। उसके आसपास काफी गंदगी भी हो गई थी।
बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद से कहा, 'दवाइयां लेकर आओ, हम इसका उपचार करेंगे।' इसके बाद बुद्ध ने खुद उस भिक्षु की और उसके आसपास की जगह की सफाई कर दी। आनंद दवा लेकर आया तो बीमार भिक्षु को दवाइयां दीं।
वहीं अन्य भिक्षु भी खड़े हुए थे। वे ये सब देख रहे थे। तब भिक्षुओं ने कहा, 'तथागत आपने खुद इसके आसपास की गंदगी क्यों साफ की?'
बुद्ध बोले, 'आप लोग मुझसे सवाल न करें। मैं आप लोगों से ये पूछना चाहता हूं कि आपने अपने ही आश्रम के इस बीमार भिक्षु की सेवा क्यों नहीं की? जबकि आप लोग जानते हैं कि ये अकेला है। यहां न कोई रिश्तेदार आएगा, न कोई अपना आएगा, यहां हम सभी एक-दूसरे के रिश्तेदार-मित्र हैं। फिर इसकी देखभाल क्यों नहीं की?'
शिष्यों के पास बुद्ध के सवाल का कोई जवाब नहीं था। सभी मौन ही खड़े थे और बुद्ध की बातें सुन रहे थे।
बुद्ध फिर बोले, 'बीमार कोई भी हो सकता है। एक बात हमेशा याद रखें, जब आप किसी बीमार की सेवा करते हैं तो ये सेवा परमात्मा की सेवा मानी जाती है।'
सीख- हमारे घर-परिवार में, रिश्तेदारी में, कोई मित्र या कोई अनजाना व्यक्ति बीमार है तो अपने सामर्थ्य के अनुसार उसकी सेवा करने में पीछे नहीं हटना चाहिए। किसी जरूरतमंद बच्चे की शिक्षा का प्रबंध करना, किसी गरीब लड़की की शादी करवाना भी मानवता की सेवा ही है। लेकिन, बीमार की देखभाल करना, सबसे बड़ी सेवा है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (NIFT) से ग्रेजुएट प्रेरणा एक इंटीरियर डिजाइनिंग कंसल्टेंट के रूप में काम कर रही थी। लेकिन, लॉकडाउन में परिवार के साथ समय बिताने के लिए उन्होंने काम करना बंद कर दिया। इसी दौरान उनके 12 साल के बेटे ने आइसक्रीम खाने की जिद की। कोरोना के डर की वजह से वे बाहर जा नहीं सकती थी।
फिर उन्होंने इंटरनेट की मदद से घर पर ही आइसक्रीम बनाना सीखा। आइसक्रीम बेटे के साथ-साथ उनके रिश्तेदारों को भी काफी पसंद आई। कई लोगों ने उन्हें इसे प्रोफेशनली बनाने की सलाह दी। इसके बाद जून-जुलाई में प्रेरणा ने इसे मार्केट में सप्लाई करने का फैसला किया। आज दिल्ली और महाराष्ट्र में उनके सैकड़ों ग्राहक हैं। 3-4 महीनों में ही 8 लाख से ज्यादा का उनका कारोबार हो गया है।
41 साल की प्रेरणा बताती हैं, 'अप्रैल- मई में मैंने बेटे की डिमांड पूरी करने के लिए इंटरनेट पर सर्चिंग शुरू की थी। पहले लगा कि ये मुश्किल है, शायद ही मैं बना पाऊं। क्योंकि इसे बनाने के लिए जो चीजें लगती थीं, उन्हें तब मार्केट से लाना आसान नहीं था। साथ ही वो हेल्थ के लिए भी ठीक नहीं थीं। फिर मैंने सोचा घर पर मौजूद चीजों से ही आइसक्रीम बनाई जाए, देखते हैं क्या आउटपुट निकलता है।'
वो बताती हैं, 'जब आइसक्रीम बनकर तैयार हुई, तो काफी टेस्टी थी। साथ ही हेल्दी भी, क्योंकि उन्होंने किसी आर्टिफिशियल प्रोडक्ट का इस्तेमाल नहीं किया था। पहली बार प्रेरणा ने चॉकलेट फ्लेवर की आइसक्रीम बनाई थी। जब लोगों ने मेरे काम की तारीफ की और इसे बिजनेस के रूप में शुरू करने की सलाह दी, तो मुझे लगा यह मुश्किल टास्क है। बाजार में पहले से ही बहुत सारे ब्रांड्स हैं। उनके बीच खुद को स्थापित करना चुनौती भरा काम था।'
उन्होंने बताया, 'मैंने तय किया कि अब जब शुरुआत हो ही गई है, तो इसे भी आजमा लिया जाए। इसके बाद मैंने दिल्ली के कुछ लोकल मार्केट में अपने प्रोडक्ट भेजे। शुरुआत में ही अच्छा रिस्पॉन्स मिला। मॉडर्न मार्केट ने अच्छी खासी मात्रा में हमारा प्रोडक्ट स्टॉक कर लिया। इसके बाद कुछ ऑर्गेनिक स्टोर्स से डिमांड आई। इस तरह कारवां बढ़ता गया।'
वो बताती हैं, 'हाल ही में मुंबई और पुणे में बड़े-बड़े स्टोर्स ने हमारे प्रोडक्ट लिए हैं। जल्द ही बेंगलुरु में भी हमारा प्रोडक्ट उपलब्ध होगा। इसे लेकर बातचीत हो गई है। इसके साथ ही कई लोगों ने इसकी फ्रेंचाइजी लेने में दिलचस्पी दिखाई है। हमारी पूरी कोशिश है कि आने वाले दिनों में हम बाजार में बड़े-बड़े ब्रांड्स को टक्कर दें और लोगों का भरोसा भी जीतें।'
शुरुआत में प्रेरणा हाथ से ही आइसक्रीम तैयार करती थीं। लेकिन जब डिमांड बढ़ने लगी, तो उन्होंने इसके लिए मशीन मंगवाई। हालांकि अब भी वो हाथ से ही आइसक्रीम तैयार करने को प्रेफरेंस देती हैं। अभी वो हर दिन 45 टब आइसक्रीम तैयार करती हैं। उन्होंने 16 लोगों को रोजगार दिया है। जो उनकी टीम में आइसक्रीम तैयार करने से लेकर ऑर्डर और मार्केटिंग का काम संभालते हैं। इसके साथ ही उनके पति भी भरपूर सपोर्ट करते हैं।
आज प्रेरणा चॉकलेट, कॉफी, वेनिला और नट्स, काले किशमिश, नारियल, बादाम मार्जिपन फ्लेवर में आइसक्रीम बनाती हैं। जो दिल्ली-एनसीआर में लगभग सभी दुकानों पर उपलब्ध है। इसके अलावा, उनके प्रोडक्ट नेचर बास्केट आइसक्रीम के जरिये पुणे और मुंबई में भी बिकता है। उनके आइसक्रीम का प्राइस 75 ML के लिए 95 रु और 500 ML के लिए 650 रु है।
क्यों खास है यह आइसक्रीम
प्रेरणा अपने आइसक्रीम में कोई प्रिजर्वेटिव या स्टेबलाइजर इस्तेमाल नहीं करती हैं। न ही कोई आर्टिफिशियल केमिकल या फ्लेवर। यहां तक कि मिल्क पाउडर भी नहीं। वो लो फैट की वेजिटेरियन चीजों से आइसक्रीम तैयार करती हैं। इसे खाने से कोई साइडइफेक्ट या गला खराब होने जैसी शिकायत नहीं मिलती, जो दूसरी आइसक्रीम खाने से अमूमन होता है। वह कहती हैं कि किसी भी आर्टिफिशियल प्रिजर्वेटिव का इस्तेमाल करने के बाद उनके आइसक्रीम की शेल्फ लाइफ काफी कम हो जाती है। फ्रूट फ्लेवर में बना उनका आइसक्रीम कमर्शियल फ्रीजर में 20 दिनों तक रहता है, जबकि अन्य फ्लेवर 60 दिनों तक।
'कल एक बाबा जी ट्रॉली से गिर गए थे। उनकी आंख फूट गई थी। हमने वॉट्सऐप ग्रुप में पोस्ट डाली तो तुरंत लोग मदद के लिए आ गए। उन्हें कार में डालकर एक लोकल डॉक्टर के पास ले गए। रात में दो लड़के उनके साथ भी सेवा करने के लिए रुके।' इसी तरह से किसान आंदोलन में सोशल मीडिया का इस्तेमाल न सिर्फ फेक न्यूज से फाइट करने के लिए किया जा रहा है, बल्कि छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी इसका इस्तेमाल हो रहा है।
टीकरी बॉर्डर पर किसानों के आंदोलन में शामिल यूथ ने खुद का आईटी सेल डेवलप किया है। जरूरी मैसेज लोगों तक तुरंत पहुंचाने के लिए वॉट्सऐप ग्रुप बनाए गए हैं। सिर्फ टीकरी बॉर्डर पर ही अब तक 10 हजार से अधिक लोगों को ग्रुप में जोड़ा जा चुका है। टीम में शामिल जीत सिंह बोरा के मुताबिक, इसका मकसद आंदोलन से जुड़ी जानकारियों को तुरंत आंदोलन में शामिल लोगों और गांव में रह रहे लोगों तक पहुंचाना है। उनकी टीम 26 नवंबर को यहां पहुंची थी। उस दिन ही बहादुरगढ़ भाईचारे के नाम से एक ग्रुप बनाया गया था। वो अब ऐसे कई वॉट्सऐप ग्रुपों में शामिल हैं।
अनूप सिंह चनौत भी 26 नवंबर को ही आंदोलन में शामिल हुए थे। आम आदमी पार्टी के आईटी सेल में रहे अनूप सोशल मीडिया को बहुत बारीकी से समझते हैं। वो आंदोलन की शुरुआत से ही टीकरी बॉर्डर पर हैं और यहां सोशल मीडिया पर युवाओं की टीम को मजबूत करने में जुटे हैं। अनूप बताते हैं, 'हमें नेशनल मीडिया पर भरोसा नहीं था। हमने अपना आईटी सेल बनाया, जिसमें आंदोलन में आए यूथ को शामिल किया। हमने हर ट्रैक्टर ट्रॉली से संपर्क किया और उसके आधार पर वॉट्सऐप ग्रुप का एक नेटवर्क बनाया। अब तक हम 60 से अधिक ग्रुप बना चुके हैं और जल्द ही ये आंकड़ा ढाई सौ को पार कर जाएगा।'
'वॉट्सऐप ग्रुपों से बॉर्डर पर होने वाले इवेंट की जानकारी तुरंत यहां ट्रालियों पर बैठे लोगों को मिल जाती है। ट्राली में जो लोग हैं, उनके ग्रुपों से गांव-गांव के लोग सीधे जुड़े हैं। एक मिनट में हमारी बात हरियाणा और पंजाब में घर-घर तक पहुंच जाती है।' अनूप कहते हैं, 'किसान आंदोलन के खिलाफ फेक न्यूज और मिसइंफर्मेशन का एक कैंपेन चल रहा है। हम जैसे यूथ इसका मुकाबला कर रहे हैं। हमारी यहां ग्राउंड पर टीमें हैं। इसके अलावा हमारी टीमें घरों और दफ्तरों से भी काम कर रही हैं। हम रोज रात को मीटिंग करते हैं। हमारी टीम का एक सदस्य पांच ग्रुप को हैंडल कर रहा है।'
वो कहते हैं, 'एक बार लीडरशिप से मैसेज क्लियर हो जाने के बाद हम उसे आंदोलन में शामिल लोगों और फिर गांव-गांव तक पहुंचा देते हैं। हम यहां फेक न्यूज और सरकार की तरफ से आंदोलन को बदनाम करने के लिए की जा रही कोशिशों से निपटने के लिए स्ट्रेटजी बनाते हैं।'
जीत सिंह बोरा कहते हैं, 'हम यहां के सीधे वीडियो डालते हैं। घर पर बैठे लोगों के साथ हर जानकारी शेयर हो रही है। लोगों को ये समझ में भी आ रहा है कि हमारी मांगें जायज हैं। हमें राशन से लेकर और किसी भी चीज की जरूरत पड़ती है तो हम सोशल मीडिया पर पोस्ट डालते हैं। पोस्ट डालते ही सबकुछ बॉर्डर पहुंच जाता है।' आंदोलन में शामिल युवा एक दूसरे का कंटेंट फेसबुक और ट्विटर पर शेयर करते हैं ताकि रीच बढ़ सके।
मोनी खालरामना भी फेसबुक पर लाइव करते हैं। वो बताते हैं, 'नेशनल मीडिया किसानों के खिलाफ चीजें दिखा रही हैं। हम सोशल मीडिया के माध्यम से किसानों को जागरुक कर रहे हैं। ग्राउंड लेवल की रिपोर्ट लोगों को दिखाते हैं। जो रिपोर्ट्स किसान आंदोलन के खिलाफ दिखाई जा रही हैं, उसे भी स्पष्ट करते हैं। लोग इस बात को लेकर कंफ्यूज हैं कि किस चैनल पर आंदोलन का सच देखें। आंदोलन की आगे की रणनीति समझने के लिए भी लोग सोशल मीडिया देखते हैं।'
मोनी बताते हैं, 'अमेरिका से एक एनआरआई भाई आज ही हमारे वीडियो देखकर यहां पहुंचे। वो किसानों के लिए खाने-पीने के सामान लेकर पहुंचे थे। हम सोशल मीडिया के माध्यम से किसान नेताओं का मैसेज लोगों तक पहुंचा रहे हैं। इस बड़ी लड़ाई में हम छोटे सिपाही हैं। हम अपने माध्यम से पंजाब-हरियाणा का भाईचारा भी दिखा रहे हैं।'
यहां ट्रालियों में बैठे युवा फेसबुक और ट्विटर पर आंदोलन के खिलाफ की जा रही पोस्ट पर जाकर कमेंट में किसानों का पक्ष रखते हैं। मोबाइल फोन को ये आंदोलनकारी हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। कई बार मोबाइल नेटवर्क में दिक्कत रहती है। इससे निबटने के लिए आसपास ब्रॉडबैंड का इंतजाम भी किया गया है ताकि कंटेंट को तेज रफ्तार से शेयर किया जा सके।
किसानों का अखबार ट्राली टाइम्स
नविकरन नथ पेशे से डेंटिस्ट हैं, लेकिन इन दिनों आंदोलन स्थल पर निकल रहे चार पन्नों के अखबार ट्राली टाइम्स की टीम का हिस्सा हैं। ये अखबार आंदोलन से जुड़ी खबरें प्रकाशित करता है और इसे मुफ्त में आंदोलन स्थल पर बांटा जाता है। नवकिरन के मुताबिक, फिलहाल उनकी टीम सप्ताह में दो बार इस अखबार को निकाल रही है। इसका एक एडिशन छप चुका है और दूसरा प्रिंट में है। पहले एडिशन में अखबार की दो हजार कॉपियां छापी गईं थीं।
नवकिरन कहती हैं, 'दिल्ली के चार बॉर्डर पर बड़ा आंदोलन चल रहा है। हम हर बॉर्डर से खबर लाते हैं और पब्लिश करते हैं। स्टेट मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया आंदोलन के खिलाफ प्रोपेगैंडा कर रहा है। उसका जवाब देने के लिए हम ये अखबार लेकर आए हैं।' इस अखबार को हिंदी और पंजाबी भाषा में प्रकाशित किया जा रहा है। नवकिरन कहती है, 'पंजाबी पढ़ने वाले हिंदी वालों के लिए खबर पढ़ देते हैं, जबकि हिंदी वाले पंजाबी भाषी लोगों के लिए खबर पढ़ देते हैं।'
नवकिरन कहती हैं, 'मीडिया के प्रोपेगैंडा का जवाब मीडिया के जरिए ही दिया जा सकता है। आंदोलन अपना खुद का मीडिया डेवलप कर रहा है। नेशनल मीडिया ने जो भरोसा खोया है, हम उसे फिर से मजबूत कर रहे हैं।'
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोनावायरस वैक्सीन को लेकर Q&A जारी किए हैं। इसमें उन प्रश्नों का जवाब दिया गया है, जिनके बारे में लोगों के मन में जिज्ञासा है। केंद्र सरकार का कहना है कि वैक्सीन लगवाना अनिवार्य नहीं है। यह पूरी तरह से आपकी इच्छा पर निर्भर होगा।
इसके बाद भी सरकार कह रही है कि कोरोना से बचने के लिए और अपने परिवार के सदस्यों, दोस्तों, रिश्तेदारों और को-वर्कर्स में इसका प्रसार रोकने के लिए वैक्सीन लगानी चाहिए। यह आपकी सुरक्षा के लिए है। जो कोरोनावायरस पॉजिटिव हो चुके हैं, क्या उन्हें भी वैक्सीन लगानी चाहिए? सरकार ने तो कह दिया कि लगानी चाहिए, पर क्यों? इसी तरह कई प्रश्न हैं, जिनके जवाब हम आपको यहां दे रहे हैं...
क्या बच्चों को वैक्सीन लगवानी होगी?
इस संबंध में कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं है। भारत में जिन वैक्सीन के ट्रायल्स हुए हैं, उनमें बच्चों को ट्रायल्स से बाहर रखा गया है। ऐसे में वैक्सीन लगाने से उन पर क्या असर होगा, यह अब तक हमें पता नहीं है। इसी तरह बात तो यह भी हो रही है कि गर्भवती महिलाओं और ब्रेस्ट फीडिंग करा रही महिलाओं को भी ट्रायल्स से बाहर रखा गया है। इस वजह से इन्हें वैक्सीनेट करना भी सुरक्षित नहीं है।
अब तक की स्टडी कहती है कि 14 वर्ष तक की उम्र बढ़ने की उम्र होती है। इस दौरान वैक्सीन उनकी ग्रोथ पर असर डाल सकती है। इस वजह से उन्हें ट्रायल्स से बाहर रखा था और अब वैक्सीनेशन से भी बाहर रखा गया है। वैसे भी कोरोनावायरस का असर इस उम्र के बच्चों पर सबसे कम देखा गया है। पूरी दुनिया में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कोरोनावायरस के गंभीर होने या मौत होने के मामले भी बहुत ही कम हैं।
पर यहां यह बताना जरूरी है कि अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (CDC) ने गर्भवती महिलाओं और ब्रेस्ट फीडिंग करवाने वाली यानी लैक्टेटिंग मदर्स को भी वैक्सीनेट करने की सिफारिश की है। उनका कहना है कि इन्हें वैक्सीन लगाना सुरक्षित है। अमेरिका में टीनेजर्स यानी 16 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को भी वैक्सीनेट किया जा रहा है। फिलहाल भारत में इसे लेकर कोई स्टडी नहीं हुई है।
अगर आपको कोरोनावायरस हो चुका है तो आपको वैक्सीन क्यों लगवानी चाहिए?
इस समय जो बातें सामने आई हैं, उनके आधार पर वैक्सीन लगवाना ही अच्छा विकल्प है। जिन्हें कोरोना हो चुका है, उन्हें दोबारा नहीं होगा इस बात की कोई गारंटी नहीं है। जो एंटीबॉडी शरीर में डेवलप हुई है, वह कितने समय तक टिकेगी, कोई कुछ नहीं कह सकता।
अगर किसी पेशेंट में कम मात्रा में एंटीबॉडी बनी है तो वह धीरे-धीरे खत्म हो सकती है। इससे दोबारा कोरोनावायरस होने का खतरा बना रहता है। कुछ लोगों को तो रिपोर्ट भी हुआ है। इस वजह से कोरोना हुआ हो या नहीं, अगर आप या आपका कोई करीबी हाई-रिस्क कैटेगरी में है तो वैक्सीन लगवानी चाहिए।
वैक्सीन लगवाने के कई फायदे भी हैं। यह इम्युनिटी बूस्टर का काम करेगा। हॉस्पिटल में किसी बीमारी का इलाज करवाने या यात्रा करने की नौबत बनी तो बार-बार टेस्टिंग की प्रक्रिया से गुजरना नहीं पड़ेगा। वैक्सीनेशन हो गया है, यह आपको कई सारे काम बिना किसी परेशानी के करने की सहूलियत देगा।
इसी तरह शुरुआत में टेस्टिंग बहुत कम थी। नतीजे भी उतने सटीक नहीं थे, जितने बाद में RTPCR या अन्य टेस्टिंग प्रोसेस से सामने आए। ऐसे में वैक्सीनेशन हो गया होगा तो मन में किसी तरह का संदेह नहीं रहेगा।
सरकार का पूरा फोकस उन लोगों को वैक्सीनेट करने पर है, जिनकी इम्युनिटी कमजोर है। इसी वजह से जिन लोगों की इम्युनिटी अच्छी है, उन्हें शुरुआती फेज में वैक्सीनेशन से अलग रखा गया है। पर यह कैसे पता चलेगा कि आपकी इम्युनिटी स्ट्रॉन्ग है?
वैक्सीन को लेकर प्रायरिटी ग्रुप्स में होने का मतलब क्या है?
सरकार ने तय किया है कि देश की 30 करोड़ आबादी को 2021 में अगस्त तक वैक्सीनेट कर दिया जाएगा। इसमें हेल्थकेयर वर्कर्स, फ्रंटलाइन वर्कर्स (पुलिस, आर्म्ड फोर्सेस, म्युनिसिपल वर्कर्स, टीचर्स जैसे ग्रुप्स) और हाई-रिस्क में शामिल लोगों (50 वर्ष से ज्यादा उम्र के और 50 वर्ष से कम उम्र के ऐसे लोग जिन्हें डाइबिटीज, ब्लड प्रेशर या अन्य परेशानियां हैं) को वैक्सीनेट किया जाएगा।
शुरुआत में वैक्सीन सबके लिए एकदम से उपलब्ध नहीं होने वाली। इसी वजह से सरकार ने प्रायरिटी ग्रुप्स बनाए हैं ताकि जिन्हें सबसे ज्यादा जरूरत है, उनका सबसे पहले वैक्सीनेशन किया जाए। हेल्थकेयर वर्कर्स सबसे ज्यादा रिस्क में हैं। उनका इंफेक्शन और डेथ रेट भी सबसे ज्यादा है। इस वजह से उन्हें सबसे पहले वैक्सीनेशन के प्रायरिटी ग्रुप में रखा गया है। हेल्थकेयर सेक्टर अच्छी तरह काम करता रहे, इसके लिए यह जरूरी भी है।
इम्युनोकॉम्प्रमाइज्ड लोगों को वैक्सीन लगानी चाहिए या नहीं?
इम्युनोकॉम्प्रमाइज्ड लोगों का मतलब है, जिनकी इम्युनिटी उतनी स्ट्रॉन्ग नहीं है, जितनी आम लोगों की होती है। इनमें कैंसर, डाइबिटीज जैसी बीमारियों से जूझ रहे लोग शामिल हैं। अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (CDC) की गाइडलाइंस के मुताबिक इन लोगों को वैक्सीन लगनी चाहिए। इससे ही डेथ रेट को काबू किया जा सकेगा।
किन लोगों को नहीं लगवानी चाहिए वैक्सीन?
विदेशों में जिन लोगों को वैक्सीनेशन प्रोसेस से बाहर रखा गया है, उनमें हेल्थ कंडीशंस और उम्र को फैक्टर बताया गया है। इन लोगों को वैक्सीन लगाने से फेफड़ों के इंफेक्शन सामने आए हैं। इस वजह से अगर किसी को फेफड़ों का इंफेक्शन हुआ है, तो उन्हें वैक्सीनेशन से बाहर रखा है।
इसी तरह एलर्जिक पेशेंट्स को भी वैक्सीनेशन से अलग रखा है। अगर किसी व्यक्ति को इससे पहले किसी वैक्सीन से एलर्जिक रिएक्शन हुआ है तो उसे इस प्रोसेस से बाहर रखा गया है। जिन्हें इंजेक्शन से एलर्जी होती है, उन्हें भी इस कैटेगरी में शामिल किया गया है। यानी उन्हें भी फिलहाल वैक्सीन नहीं लगवानी चाहिए।
कैंसर या किसी और क्रॉनिक बीमारियों से जूझ रहे लोगों को फिलहाल वैक्सीनेशन से दूर रखा गया है। उदाहरण के लिए सिकल सेल एनीमिया के पेशेंट्स को वैक्सीन की प्रक्रिया से बाहर रखा गया है।
आज राष्ट्रीय गणित दिवस है। इस दिन को उस गणितज्ञ के सम्मान में मनाया जाता है, जिसने अनंत की खोज की। एक ऐसे गणितज्ञ का जन्मदिन, जिसने महज 32 साल के जीवन में गणित की 4 हजार से ज्यादा ऐसी प्रमेय (थ्योरम) पर रिसर्च की, जिन्हें समझने में दुनियाभर के गणितज्ञों को भी सालों लगे। यहां तक कि उनकी मॉक थीटा फंक्शन को 2012 में प्रोफेसर केन ओनो ने सही ठहराया, जो ब्रिटेन की सबसे प्रतिष्ठित रॉयल सोसायटी का सबसे कम उम्र का फेलो बना। हम बात कर रहे महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की।
रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु (उस वक्त के मद्रास) में हुआ था। रामानुजन, जिन्हें गणित के अलावा किसी दूसरे सब्जेक्ट में इंट्रेस्ट नहीं था। वे 11वीं में गणित को छोड़ बाकी सभी विषयों में फेल हो गए। अगले साल प्राइवेट परीक्षा देकर भी 12वीं पास नहीं कर पाए।
जिस स्कूल में वो 12वीं में दो बार फेल हुए आज उसका नाम रामानुजन के नाम पर है। 12वीं के बाद घर चलाने के लिए उन्होंने मद्रास पोर्ट कोर्ट में क्लर्क की नौकरी की, लेकिन वहां भी गणित के फॉर्मूले ही गढ़ते रहे। करीब साल भर की नौकरी के दौरान सैकड़ों फॉर्मूले एक रजिस्टर में लिख डाले।
16 साल की उम्र में जानकी अम्माल से शादी हो गई। मगर गणित से प्यार तब भी कम न हुआ। इसी बीच, लेटर के जरिए कुछ फॉर्मूले कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएच हार्डी को भेजे। हार्डी उनसे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने रामानुजन को लंदन बुला लिया। उनके मेंटर बने। दोनों ने मिलकर गणित के कई रिसर्च पेपर पब्लिश किए। उनके रिसर्च को अंग्रेजों ने भी सम्मान दिया। उन्हें रॉयल सोसायटी में जगह मिली। वो ट्रिनिटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी बने।
लेकिन, रामानुजन को लंदन की आबो-हवा रास नहीं आई और उन्हें भारत लौटना पड़ा। उन्हें टीबी हो गई और एक साल की बीमारी के बाद अप्रैल 1920 में उनका निधन हो गया। दुनिया को अपनी गणित से प्रभावित करने वाले रामानुजन को मौत के बाद भी अपने ही लोगों के तिरस्कार का सामना करना पड़ा। उनकी मृत्यु के बाद पंडितों ने मुखाग्नि देने से इसलिए इनकार कर दिया था, क्योंकि उन्होंने समुद्री यात्रा से लौटने के बाद प्रायश्चित के लिए रामेश्वरम् की यात्रा नहीं की थी।
2015 में रामानुजन के जीवन पर 'द मैन हू न्यू इन्फिनिटी' फिल्म भी बनी। फिल्म में देव पटेल ने उनका किरदार निभाया था। ये फिल्म रॉबर्ट कैनिगल की किताब ‘द मैन हू न्यू इन्फिनिटी: अ लाइफ ऑफ द जीनियस रामानुजन’ पर आधारित थी।
भारत और दुनिया में 22 दिसंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैं :
2010: अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने समलैंगिकता से जुड़े कानून पर साइन किया। इसके साथ ही सेना में समलैंगिकों की भर्ती का रास्ता साफ हो गया।
2000: पॉप स्टार मडोना ने गाइ रिची से शादी की। दोनों की शादी आठ साल चली। 2008 में दोनों अलग हो गए।
1975: दो आंखें बारह हाथ, झनक-झनक पायल बाजे, गूंज उठी शहनाई, संपूर्ण रामायण, गुड्डी और आशीर्वाद जैसी फिल्मों में संगीत देने वाले वसंत देसाई का निधन हुआ।
1966: जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) की स्थापना संसद द्वारा की गई। स्थापना के तीन साल बाद 1969 में JNU यूनिवर्सिटी शुरू हुई।
1947: इटली की संसद में नए संविधान को मंजूरी दी गई।
1941: अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रुजवेल्ट और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विस्टन चर्चिल दूसरे विश्व युद्ध के दौरान चर्चा करने के लिए वॉशिंगटन में मिले।
1882: एडवर्ड एच जॉनसन ने लाल, सफेद, नीले बल्बों की मदद से पहली बार क्रिसमस ट्री को सजाया।
1851: भारत में पहली मालगाड़ी रुड़की से पिरन के बीच चलाई गई।
दुनियाभर में अपनी तालीम के लिए मशहूर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) आज 100 साल की हो गई। यूनिवर्सिटी बनाने वाले सर सैयद में एक अलग ही जुनून था। उन्होंने पैसा जुटाने के लिए तवायफों के कोठे से चंदा लिया। खुद लैला-मजनूं के नाटक में लैला बनकर मंच पर उतर आए थे। ऐसे ही कई वाकयों के साथ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का इतिहास बड़ा रोचक है।
यूनिवर्सिटी के 100 साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअल तरीके से इसमें शिरकत कर रहे हैं। लाल बहादुर शास्त्री के बाद मोदी ऐसे पहले पीएम होंगे, जो AMU के प्रोग्राम में अपनी बात रखेंगे। 56 साल बाद ऐसा होगा। हालांकि AMU का एक तबका PM मोदी के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर खफा भी है। आइए जानते हैं यूनिवर्सिटी का इतिहास...
1857 की क्रांति के बाद सर सैयद ने देखा AMU का सपना
AMU के उर्दू डिपार्टमेंट के हेड प्रो. राहत अबरार बताते हैं कि 1869-70 में सर सैयद बनारस में सिविल जज के तौर पर पोस्टेड थे। उस दौरान उनका लंदन आना-जाना लगा रहता था। वहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी देखी हुई थीं। तब उनके जेहन में आया कि एक यूनिवर्सिटी बनाई जाए जो ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट कहलाए। यह सपना उनका जुनून बन चुका था। 9 फरवरी 1873 को उन्होंने एक कमेटी बनाई, जिसने तमाम रिसर्च कर 24 मई 1975 को एक मदरसा बनाने का ऐलान किया। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि उस समय प्राइवेट यूनिवर्सिटी बनाने की परमिशन नहीं मिलती थी। 2 साल बाद, 8 जनवरी 1877 को मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज शुरू हो गया।
यूनिवर्सिटी के लिए अलीगढ़ ही क्यों चुना गया?
प्रो. राहत अबरार बताते हैं कि सर सैयद चाहते थे कि यूनिवर्सिटी वहां बने, जहां का वातावरण सबसे अच्छा हो। इसके लिए डॉक्टर आर जैक्सन की अगुआई में एक तीन सदस्यीय कमेटी बनाई गई। चूंकि उस समय कोई पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड तो था नहीं, तो इन लोगों ने अपनी रिसर्च की। इस कमेटी ने 3 पॉइंट्स पर अपनी रिपोर्ट दी।
नॉर्थ इंडिया में सबसे बढ़िया वातावरण उस समय अलीगढ़ का था। इसका कारण बताया गया कि अलीगढ़ में उस समय जमीन के अंदर पानी का लेवल 23 फीट पर था। उस समय दो चीजों से लोग ज्यादा मरते थे- सैलाब या अकाल। अलीगढ़ के आसपास कोई नदी, झरना या झील नहीं है, जिससे बाढ़ आ सके। वहीं, उस समय पानी का लेवल इतना अच्छा था कि अकाल का भी डर नहीं था।
अलीगढ़ ट्रांसपोर्ट फ्रेंडली था। जीटी रोड बन चुका था और रेलवे ट्रैक भी बिछ गया था। इससे आसपास के जिलों के बच्चे भी आसानी से यूनिवर्सिटी तक पहुंच सकते थे।
इस्लाम में हजरत अली को ज्ञान का द्वार माना गया है। ऐसे में हजरत अली के नाम पर बने इस शहर का चुनाव किया गया। मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने की वजह से यहां मुस्लिम बच्चे भी बहुत हैं।
नाटक में लैला बन गए थे सर सैयद
AMU में हिस्ट्री डिपार्टमेंट के पूर्व चेयरमैन और कोआर्डिनेटर प्रो. नदीम रिजवी बताते हैं कि सर सैयद ने यूनिवर्सिटी बनाने के लिए खूब संघर्ष किया। उन्होंने पैसे इकट्ठा करने के लिए नए-नए तरीके ईजाद किए। उन्होंने यूनिवर्सिटी के लिए भीख मांगी। लोगों के पास जा-जाकर चंदा इकट्ठा किया और नाटक में भी काम किया।
1888 का एक किस्सा बताते हुए प्रोफेसर नदीम रिजवी कहते हैं कि उन्होंने चंदा इकट्ठा करने के लिए अलीगढ़ में एक नुमाइश में अपने कॉलेज के बच्चों का लैला-मजनूं नाटक रखवाया। उस समय लड़कियों का रोल भी लड़के किया करते थे। ऐन वक्त पर लैला बनने वाले लड़के की तबीयत खराब हो गयी, तो सर सैयद खुद पैरों में घुंघरू बांधकर स्टेज पर आ गए। दर्शकों से बोले- मैं अपनी दाढ़ी और उम्र नहीं छुपा सकता, लेकिन आप मुझे लैला ही समझें और चंदा दें। इसके बाद वे नाचने लगे। तब उन्हें वहां के कलेक्टर शेक्सपियर और मौलाना शिबली ने नाचने से रोका था।
तवायफों से चंदा लिया, तो कट्टरपंथी भड़क गए
यूनिवर्सिटी के लिए चंदा लेने के लिए सर सैयद तवायफों के कोठों पर भी पहुंच गए थे। जब इसकी जानकारी कट्टरपंथियों को मिली, तो उन्होंने ऐतराज जताया कि किसी शैक्षणिक संस्थान में कैसे तवायफों का पैसा लगाया जा सकता है। इसका हल निकालते हुए सर सैयद ने कहा कि इस पैसे से टॉयलेट बनाए जाएंगे। फिर मामला शांत हो गया।
सेल्फ हेल्प का कॉन्सेप्ट तैयार किया
प्रो. राहत अबरार कहते हैं कि यूनिवर्सिटी के लिए सर सैयद ने सेल्फ हेल्प का कॉन्सेप्ट तैयार किया। किसी ने 25 रुपए का चंदा दिया, तो उसके नाम पर बाउंड्री वॉल बना दी। किसी ने 250 का चंदा दिया, तो होस्टल या क्लास का नाम रख दिया। 500 रुपए देने वालों के नाम सेंट्रल हाल में लिखने का फैसला हुआ। उस समय हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी सभी ने बढ़-चढ़कर चंदा दिया और आखिरकार 1920 में यूनिवर्सिटी बन गयी।
काशी नरेश को अपना शामियाना खुद लाना पड़ा था
1877 में सर सैयद बनारस में पोस्टेड थे। जब उनका रिटायरमेंट हुआ तो उन्होंने काशी नरेश शम्भू नारायण को कॉलेज में आमंत्रित किया, लेकिन वहां उनकी आवभगत के इंतजाम नहीं थे। ऐसे में बनारस नरेश अपना शामियाना लेकर अलीगढ़ पहुंचे, जहां उन्हें सम्मानित किया गया।
इस कॉलेज का पहला ग्रेजुएट छात्र हिंदू था
प्रो. राहत अबरार बताते हैं कि मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज पहले कलकत्ता यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड था। बाद में वह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से जुड़ा। 1881 में यहां 4 लड़कों ने पोस्ट ग्रेजुएशन का इम्तिहान दिया था। उनमें से तीन फेल हो गए थे। ईश्वरी प्रसाद पहले स्टूडेंट के तौर पर पासआउट हुए थे। बाद में उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया। आगे चलकर वे मशहूर इतिहासकार भी हुए। प्रो. नदीम रिजवी कहते हैं कि 1920 में जब कॉलेज को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) का दर्जा मिला, तो उस समय 300 ही छात्र थे। आज यहां 30,000 छात्र हैं।
यूनिवर्सिटी की पहली चांसलर महिला थीं
1920 में जब कॉलेज को यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया, तब पहली चांसलर बेगम सुल्ताना को बनाया गया। वाइस चांसलर राजा महमूदाबाद को बनाया गया। यह उस समय बड़ी बात थी कि किसी महिला को यूनिवर्सिटी की कमान सौंपी गई थी।
यूनिवर्सिटी में इंदिरा का भी विरोध हुआ
प्रो. नदीम रिजवी कहते हैं कि सरकार और AMU का हमेशा से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ भाजपा सरकार में यहां की स्टूडेंट यूनियन सरकार की नीतियों की आलोचना करती हैं। इंदिरा गांधी के समय मे भी सरकार से खूब टकराव हुआ। इंदिरा गांधी एक बार अलीगढ़ में एक शादी में शामिल होने पहुंची थीं। वे यूनिवर्सिटी में जाने वाली सड़क पर घूमना चाहती थीं, लेकिन स्टूडेंट यूनियन ने उन्हें गेट के अंदर नहीं जाने दिया। आखिरकार उन्हें वापस लौटना पड़ा। हालांकि, वे उस समय प्रधानमंत्री नहीं थीं, लेकिन केंद्र सरकार का उस समय माइनॉरिटी को लेकर कोई इश्यू चल रहा था, जिस पर स्टूडेंट यूनियन अपना विरोध कर रही थीं।
जिन्ना की तस्वीर का विरोध करने वाले सांसद यहीं पढ़े
प्रो. नदीम रिजवी कहते है कि जिन भाजपा सांसद सतीश गौतम ने जिन्ना की तस्वीर पर बवाल मचाया था, वे इसी यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे। उस दौरान उन्होंने उसी तस्वीर के नीचे सैकड़ों भाषण दिए हैं। यह शुरू से ही तय था कि सियासत और AMU कभी साथ नहीं चले।
कितनी बड़ी है यूनिवर्सिटी
15 विभागों से शुरू हुए AMU में आज 108 विभाग हैं। करीब 1200 एकड़ में फैली यूनिवर्सिटी में 300 से ज्यादा कोर्स हैं। यहां आप नर्सरी में एडमिशन लेकर पूरी पढ़ाई कर सकते हैं। यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड 7 कॉलेज, 2 स्कूल, 2 पॉलिटेक्निक कॉलेज के साथ 80 हॉस्टल हैं। यहां 1400 का टीचिंग स्टाफ है और 6000 के करीब नॉन टीचिंग स्टाफ है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के शताब्दी समारोह में शामिल होंगे। PM मोदी वीडियो कॉफ्रेसिंग के जरिए समारोह को संबोधित करेंगे। 5 दशक के इतिहास में पहली बार कोई प्रधानमंत्री AMU में कार्यक्रम में हिस्सा लेगा। इससे पहले 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने AMU के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया था। इस दौरान PM मोदी डाक टिकट भी जारी करेंगे।
पोखरियाल भी ऑनलाइन शामिल होंगे
शताब्दी समारोह में AMU में पूरी तैयारियां कर ली गईं हैं। AMU के PRO उमर पीरजादा ने बताया कि यह हमारी परंपरा रही है कि हम ग्लोबल लीडर को बुलाते हैं। यह तो AMU का शताब्दी समारोह है, इसमें मुख्य अतिथि के रूप में हमारे देश के प्रधानमंत्री शामिल होंगे। साथ ही केंद्र के शिक्षामंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी रहेंगे। यह वर्चुअल मीट के जरिए होगा। प्रधानमंत्री मोदी इस समारोह को यादगार बनाने के लिए एक विशेष डाक टिकट भी जारी करेंगे।
1920 में यूनिवर्सिटी बना कॉलेज
दरअसल, मुहम्मद एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज एक दिसंबर 1920 को राजपत्र अधिसूचना के बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बन गया था। उसी साल 17 दिसंबर को AMU का औपचारिक रुप से एक यूनिवर्सिटी के रुप में उद्घाटन किया गया था।
जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद (DCC) चुनाव के लिए आज काउंटिंग होगी। आर्टिकल 370 हटने के बाद यहां पहली बार हुए चुनाव हुए। गुपकार अलायंस के तहत 6 पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा था। सभी 20 जिला मुख्यालयों पर काउंटिंग सुबह 9 बजे से शुरू होगी।
जम्मू-कश्मीर में DDC की 280, वार्ड की 234 और पंच-सरपंच की 12,153 सीटों के लिए 8 फेज में चुनाव हुए थे। इनमें 51% वोटिंग हुई थी। आज बैलेट बॉक्स खुलते ही तमाम प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला आने लगेगा। 28 नवंबर को पहले फेज की वोटिंग हुई थी, जबकि 19 दिसंबर को 8वें और आखिरी फेज की वोटिंग हुई थी।
सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम होंगे
जम्मू-कश्मीर के राज्य निर्वाचन आयुक्त केके शर्मा ने कहा कि मतगणना के लिए सभी 20 जिला मुख्यालयों पर जरूरी व्यवस्थाएं कर ली गई हैं। सुरक्षा के भी पर्याप्त इंतजाम होंगे, ताकि काउंटिंग में किसी तरह की बाधा न पड़े। उन्होंने कहा, ''रिटर्निंग अधिकारी हर DDC सीट की काउंटिंग प्रोसेस का प्रभारी होगा। पूरी प्रक्रिया की निगरानी की जाएगी और इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग होगी।
भाजपा को कामयाबी की उम्मीद, गुपकार को मिलेगी कड़ी टक्कर
जम्मू-कश्मीर के इतिहास में यह पहली बार है, जब 6 प्रमुख पार्टियों ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा। आर्टिकल 370 हटने के बाद इन पार्टियों ने मिलकर गुपकार अलायंस बनाया है। इसमें डॉ. फारूक अब्दुल्ला की अध्यक्षता वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस, महबूबा मुफ्ती की अगुआई वाली पीडीपी के अलावा सज्जाद गनी लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस, जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट और माकपा की स्थानीय इकाई शामिल है। वहीं, भाजपा और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार उतारे। मौजूदा राजनीतिक समीकरणों के मुताबिक, गुपकार अलायंस कश्मीर में ताकतवर है, जबकि भाजपा की स्थिति जम्मू में काफी मजबूत है।
2018 में हुआ था आखिरी चुनाव
इसके पहले नवंबर-दिसंबर 2018 में पंचायत चुनाव हुआ था। उसमें 33 हजार 592 पंच सीटों पर 22 हजार 214 प्रत्याशी और 4,290 सरपंच पदों पर 3,459 प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की थी। बाकी सीटें खाली रह गई थी, जहां अब उपचुनाव हुए हैं।
एक लड़का जिसकी मुस्कान सबसे जुदा थी, एक नौजवान जिसकी आंखें बोलती थीं, एक बुजुर्ग जिसने मौजूदा भारत को बनते देखा था, एक साधक जिसके आलाप में संगीत घुला था। साल 2020 बड़ा निर्दयी निकला। इसने हमसे कितना कुछ छीन लिया। अब बची हैं तो सिर्फ यादें, किस्से, बातें और विरासत। गुजरते 2020 के साथ हम याद कर रहे हैं ऐसी ही तमाम मशहूर हस्तियों को, जो इस साल हमसे रुखसत हो गईं।
'अगले जन्म में घोड़ा नहीं, इसी जन्म में राष्ट्रपति बनोगे'
प्रणब मुखर्जी से मिलने उनकी बहन अन्नपूर्णा दिल्ली आई थीं। प्रणब दा ने राष्ट्रपति भवन की बग्घी में बंधा घोड़ा देखकर अपनी बहन से कहा- इस आलीशान भवन का आनंद उठाने के लिए अगले जन्म में वे घोड़ा बनना पसंद करेंगे। इस पर उनकी बहन के मुंह से निकला- अगले जन्म में घोड़ा नहीं, तुम इसी जन्म में राष्ट्रपति बनोगे। साल 2012 में प्रणब मुखर्जी भारत के 13वें राष्ट्रपति चुने गए।
प्रणब दा का जन्म बंगाल के बीरभूम जिले के मिराती गांव में हुआ था। आखिरी दिनों में प्रणब दा की ब्रेन सर्जरी की गई थी, जिसके बाद वे कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे। उनके फेफड़ों में संक्रमण भी हो गया था। उन्होंने 31 अगस्त 2020 को 85 साल की उम्र में आखिरी सांस ली।
'मुझे विश्वास है, मैंने आत्मसमर्पण कर दिया है'
"मुझे विश्वास है, मैंने आत्मसमर्पण कर दिया है", ये वो कुछ शब्द हैं, जो इरफान ने 2018 में कैंसर से अपनी लड़ाई के बारे में बताते हुए लिखे थे। इस आत्मसमर्पण के करीब दो साल बाद एक सुबह उनकी सांसें थम गई। वे न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर से जूझ रहे थे।
इरफान ने 'हासिल', 'मकबूल', 'लाइफ इन अ मेट्रो', 'द लंच बॉक्स', 'पीकू', 'तलवार' और 'हिंदी मीडियम' जैसी कई शानदार फिल्मों में काम किया था। 'पान सिंह तोमर' के लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड दिया गया था।
'हमारी कहानी का अंत हुआ'
ऋषि कपूर के निधन के बाद पत्नी नीतू ने उन्हें याद करते हुए फाइनल गुडबाय कहा है। नीतू ने इंस्टाग्राम पर ऋषि की एक तस्वीर शेयर की जिसमें वह हाथों में व्हिस्की का ग्लास थामे मुस्कुराते दिख रहे हैं। नीतू ने इस तस्वीर के कैप्शन में लिखा, 'हमारी कहानी का अंत हुआ'।
कैंसर से जंग लड़ते हुए 30 अप्रैल को 68 साल की उम्र में ऋषि कपूर का निधन हो गया। ऋषि अपने पीछे 5 दशक लंबे एक्टिंग करियर की विरासत छोड़ गए हैं। उन्होंने 1973 में 'बॉबी' से बतौर एक्टर करियर की शुरुआत की और 2019 में उनकी आखिरी फिल्म 'द बॉडी' रिलीज हुई।
एक्टर जिसने चांद पर प्लॉट खरीदा
सुशांत ने 2018 में चांद पर जमीन खरीदी थी। उनका ये प्लॉट ‘सी ऑफ मसकोवी’ में है। दिलचस्प ये है कि उन्होंने अपने प्लॉट पर नजर रखने के लिए एक दूरबीन भी खरीदी थी। उनके पास एडवांस टेलिस्कोप 14LX00 था। 14 जून 2020 को 34 साल के सुशांत अपने कमरे में फांसी पर लटके पाए गए।
पटना में जन्मे सुशांत ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए दिल्ली का रुख किया। वहां उन्होंने पढ़ाई के साथ थिएटर भी करना शुरू कर दिया। थिएटर से टेलीविजन और फिर फिल्मों तक का सफर तय किया। उन्होंने काय पो चे, शुद्ध देसी रोमांस, एमएस धोनी, पीके, केदारनाथ और छिछोरे जैसी फिल्मों में काम किया। सुशांत की आखिरी फिल्म 'दिल बेचारा' उनके निधन के बाद रिलीज हुई।
'दीवाना बनाना है, तो दीवाना बना दे'
जाने-माने शास्त्रीय गायक पंडित जसराज ने एक साक्षात्कार में बताया था, 'हैदराबाद में हर रोज स्कूल जाते समय रास्ते में एक होटल पड़ता था जहां बेगम अख्तर की गाई गजल ‘दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे, वरना तकदीर तमाशा ना बना दे’ सुनाई देती थी। मेरे कदम वहीं रुक जाते थे। आवाज में ऐसी कशिश थी कि मैं आगे बढ़ ही नहीं पाता था।’ पंडित जसराज में संगीत के शुरुआती बीज यहीं पड़ गए थे।
28 जनवरी 1930 को हरियाणा के हिसार में जन्मे पंडित जसराज ने शास्त्रीय संगीत को 80 वर्ष से ज्यादा का समय दिया। उन्हें पद्म विभूषण समेत तमाम सम्मानों से नवाजा गया। अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ ने 11 नवंबर 2006 को खोजे गए एक ग्रह 2006-VP32 का नाम भी 'पंडित जसराज ग्रह' रख दिया। जीवन के आखिरी दिनों में वे अमेरिका के न्यू जर्सी में थे।
उस भविष्यवाणी से सहम गया था पूरा देश
बेजान दारूवाला ने भविष्यवाणी की थी कि संजय गांधी की मौत दुर्घटना से होगी। 3 जून 1980 को संजय गांधी की एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी। इस घटना से पूरा देश सहम गया था। इसी तरह उन्होंने नरेंद्र मोदी की जीत की भी भविष्यवाणी की थी। कोरोना के बारे में दारूवाला का कहना था कि 15 मई के बाद इसका प्रभाव कम होने लगेगा। 29 मई 2020 को उन्होंने आखिरी सांस ली। उन्हें कोरोना ही हुआ था।
बेजान दारूवाला का जन्म 11 जुलाई, 1931 को मुंबई में हुआ था। वे पारसी परिवार से ताल्लुक रखते थे। 2003 में बेजान दारूवाला ने अपनी ज्योतिष वेबसाइट की शुरुआत की थी। उन्होंने देश में ज्योतिष का एक ट्रेंड सेट किया।
'तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन अंजाना'
एसपी बालासुब्रमण्यम ने एक कार्यक्रम में कहा था, 'मेरा लक्ष्य सिंगर बनना नहीं था। यह सिर्फ एक एक्सीडेंट था। मैं बहुत अच्छा गाता था, मैं इस बात से सहमत हूं। लेकिन मैं इंजीनियर बनना चाहता था।' एसपी ने पूरे करियर में 16 भाषाओं में रिकॉर्ड 40 हजार से ज्यादा गाने गाए हैं।
एसपी बालासुब्रमण्यम ने 1981 में 'एक दूजे के लिए' के लिए पहली बार हिंदी में गाना गाया। इसके लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड भी मिला। गाने के बोल थे- तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन अंजाना। 25 सितंबर 2020 को 74 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
'लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना'
मशहूर शायर राहत इंदौरी अपनी जिंदगी का एक किस्सा सुनाते हैं, 'एकबार मुझे किसी ने जिहादी कह दिया। ये सुनकर मैं रातभर सो नहीं सका। एक-एक रोयां नापता रहा कि कहां से जिहादी हूं? तभी मुझे सुबह की अजान सुनाई दी। मुझे एहसास हुआ कि मैं जिहादी तो नहीं लेकिन कुछ अलग जरूर हूं।' इसके बाद राहत इंदौरी ने एक शेर लिखा- 'मैं मर जाऊं तो मेरी एक पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना।'
राहत इंदौरी का जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर में एक कपड़ा मिल कर्मचारी के घर हुआ था। महज 19 साल की उम्र में उन्होंने शायरी शुरू कर दी थी और आखिरी वक्त तक सक्रिय रहे। राहत ने बॉलीवुड के खुद्दार, मुन्नाभाई एमबीबीएस, मर्डर, इश्क जैसी फिल्मों में कई गाने लिखे। वे कोरोना संक्रमित पाए गए थे, जिसके बाद दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।
गांधी परिवार के बाद कांग्रेस का सबसे मजबूत नेता
जंतर-मंतर पर अहमद पटेल का इंटरव्यू कर रही एक रिपोर्टर का मोबाइल किसी ने चुरा लिया। जब रिपोर्टर ने दूसरे मोबाइल पर अपना नंबर ऑन किया तो उसमें सबसे पहला मैसेज अहमद पटेल का था। पटेल ने कहा- 'मेरी वजह से आपका फोन चोरी हो गया, बहुत बुरा हुआ। अब आप कैसे मैनेज करेंगी?' ऐसा कनेक्ट वे पार्टी कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और कॉर्पोरेट्स से रखते थे।
कांग्रेस के कद्दावर नेता अहमद पटेल का 71 साल की उम्र में 25 नवंबर की सुबह निधन हुआ। वे कोरोना संक्रमित भी हुए थे। अपने राजनीतिक करियर के करीब 4 दशकों में वे इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी और इसके बाद सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार रहे।
'मेरे तो नाम में ही राम है'
उन दिनों की बात है, जब राम विलास पासवान NDA के सहयोगी नहीं हुआ करते थे। हिंदुत्व की राजनीति का जिक्र चला, तो पासवान ने अटल बिहारी वाजपेयी से कहा, 'मेरे तो नाम में ही राम है। बीजेपी के पास कहां हैं राम? इस पर वाजपेयी अपने चिर-परिचित अंदाज में बोले- पासवान जी, हराम में भी राम होता है।
रामविलास पासवान का राजनीतिक सफर 1969 में तब शुरू हुआ था, जब वे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर बिहार विधानसभा के सदस्य बने थे। खगड़िया में एक दलित परिवार में 5 जुलाई 1946 को जन्मे रामविलास पासवान राजनीति में आने से पहले बिहार प्रशासनिक सेवा में अधिकारी थे।
महाशय दी हट्टी को बनाया MDH
धर्मपाल सिंह गुलाटी का जन्म 27 मार्च 1923 को पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था। विभाजन के समय उनका परिवार अमृतसर आ गया था। कुछ समय बाद वे परिवार के साथ दिल्ली आ गए थे। जब वे दिल्ली आए थे, तो उनके पास केवल 1500 रुपए थे। उनके सामने रोजगार का संकट था। 1500 रुपए में से 650 रुपए का घोड़ा-तांगा खरीद लिया और रेलवे स्टेशन पर तांगा चलाने लगे।
धर्मपाल गुलाटी की मेहनत की बदौलत MDH आज करीब 2000 करोड़ रुपए का ब्रांड बन गया है। MDH की आज भारत और दुबई में करीब 18 फैक्ट्रियां हैं, जिनमें तैयार मसाला कई देशों में बेचा जाता है। एक भरी-पूरी जिंदगी जीने के बाद 98 साल की उम्र में इस मसाला किंग का देहांत हो गया। उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है।
जिसे राजनीति का दांव सिखाया उससे ही मिली मात
केशुभाई तख्तापलट के चलते दोनों बार मुख्यमंत्री का टर्म पूरा नहीं कर पाए। 2001 में नरेंद्र मोदी ने CM पद की शपथ ली और मीडिया से कहा, 'सूबे की असल कमान केशुभाई के हाथ में ही है। वे ही बीजेपी का रथ हांकने वाले सारथी हैं। मुझे उनकी सहायता के लिए गियर की तरह उनके पास लगा दिया गया है।'
केशुभाई पटेल ने व्यक्तिगत जीवन में काफी तकलीफों का सामना किया। 2006 में उनकी पत्नी लीलाबेन की मौत जिम में लगी आग की चपेट में आने से हुई। 2017 के सितंबर में उनके 60 साल के बेटे प्रवीण की हार्ट अटैक से मौत हो गई। आखिरकार 29 अक्टूबर 2020 को केशुभाई पटेल का भी निधन हो गया।
'मुझे दलाल कह सकते हैं, लेकिन सत्ता दिलाना मेरा टैलेंट है'
अमर सिंह ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था- 'आप सीधे शब्दों में मुझे बिचौलिया या फिर दलाल भी कह सकते हैं, लेकिन मैंने कभी सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने की इच्छा नहीं जताई। मैं संबंधों और सत्ता को सबसे ज्यादा इम्पॉरटेंस देता हूं।' ऐसे ही बयानों ने अमर सिंह की इमेज एक बेबाक नेता के तौर पर बनाई।
अमर सिंह का 1 अगस्त को 64 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार थे और सिंगापुर में उनका इलाज चल रहा था। इसी अस्पताल से कुछ महीने पहले उन्होंने एक वीडियो भी पोस्ट किया था। उसमें उन्होंने अमिताभ बच्चन और उनके परिवार से माफी मांगी थी।
किराए की साइकिल लेकर घूमा करते थे
कांग्रेस के दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा का 21 दिसंबर को निधन हो गया। दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। वे दो बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। 2000 से 2018 तक पार्टी के कोषाध्यक्ष भी रहे थे।
वरिष्ठ संपादक रमेश नैयर ने बताया कि सभी मोतीलाल के परिश्रमी व्यक्तित्व के कायल थे। पत्रकार रहने के अलावा मोतीलाल वोरा ने दुर्ग, राजनांदगांव में पेट्रोल डिस्ट्रीब्यूशन और ट्रांसपोर्ट कंपनियों में भी काम किया। एक समय वे किराए की साइकिल लेकर घूमते थे।