गुरुवार, 8 अक्टूबर 2020

भुवनेश्वर और मार्श के चोटिल होने से सनराइजर्स की मुश्किलें बढ़ीं, सीजन में दो ही मैच जीत सकी; पंजाब लगातार 4 मैच हारकर सबसे नीचे

आईपीएल के 13वें सीजन का 22वां मैच सनराइजर्स हैदराबाद और किंग्स इलेवन पंजाब के बीच आज दुबई में खेला जाएगा। भुवनेश्वर कुमार और मिशेल मार्श के चोटिल होकर टूर्नामेंट से बाहर होने से हैदराबाद टीम का बैलेंस बिगड़ गया है। उसने सीजन में अब तक 2 मैच ही जीते हैं। हालांकि लीग में पंजाब की हालत भी ठीक नहीं है। वह 5 में से पिछले 4 मैच हारकर पंजाब पॉइंट्स टेबल में सबसे नीचे है।

दोनों के बीच खेले गए पिछले 5 मैचों की बात करें, तो हैदराबाद ने 3 और पंजाब की टीम ने 2 मुकाबले जीते हैं। पिछले सीजन में दोनों टीमों के बीच हुए 2 मुकाबलों में दोनों ने 1-1 मैच जीते थे।

वॉर्नर और बेयरस्टो पर अहम जिम्मेदारी
हैदराबाद के कप्तान डेविड वॉर्नर और ओपनर जॉनी बेयरस्टो पर टीम को अच्छी शुरुआत दिलाने की जिम्मेदारी होगी। मनीष पांडे अब तक कुछ खास नहीं कर पाए हैं। ऐसे में युवा खिलाड़ियों पर दबाव कम करने के लिए इन तीनों बल्लेबाजों को ऊपर से रन बनाने होंगे।

राशिद खान पर गेंदबाजी का जिम्मा
भुवनेश्वर कुमार और मिशेल मार्श के चोटिल होने से टीम के लिए बॉलिंग का जिम्मा फिरकी गेंदबाज राशिद खान पर आ गया है। राशिद ने पिछले कुछ मैचों में लय में लौटते नजर आए हैं। पिछले मुकाबले में मुंबई के खिलाफ राशिद ने 4 ओवर में 22 रन देकर एक विकेट लिया था। ऐसे में इस मैच में भी टीम को उनसे काफी उम्मीद होगी।

राहुल और मयंक के अलावा पंजाब के बाकी बल्लेबाज नहीं चल रहे
सीजन में अब तक सबसे ज्यादा रन बनाने के मामले में पंजाब के कप्तान लोकेश राहुल और मयंक अग्रवाल टॉप-3 में हैं। लेकिन ग्लेन मैक्सवेल, सरफराज खान समेत मिडिल ऑर्डर बैट्समैन की खराब फॉर्म टीम के लिए चिंता का विषय बनी हुई है।

डेथ ओवर में पंजाब की गेंदबाजी कमजोर
पंजाब के गेंदबाज शुरुआती ओवरों में तो शानदार गेंदबाजी कर रहे हैं, लेकिन डेथ ओवरों में उनकी गेंदबाजी टीम को बड़ा स्कोर डिफेंड करने से नहीं रोक पा रही है। मोहम्मद शमी ने 5 मैचों में 8 और शेल्डन कॉटरेल ने 5 मैचों में 5 विकेट लिए हैं। रवि बिश्नोई ने अपनी धारदार गेंदबाजी से सभी प्रभावित किया है।

मुंबई-हैदराबाद के महंगे प्लेयर्स
हैदराबाद के सबसे महंगे खिलाड़ी डेविड वॉर्नर हैं। उन्हें फ्रेंचाइजी सीजन का 12.50 करोड़ रुपए देगी। इसके बाद टीम के दूसरे महंगे खिलाड़ी मनीष पांडे (11 करोड़) हैं। वहीं, पंजाब में कप्तान लोकेश राहुल 11 करोड़ और ग्लेन मैक्सवेल 10.75 करोड़ रुपए कीमत के साथ सबसे महंगे प्लेयर हैं।

पिच और मौसम रिपोर्ट
दुबई में मैच के दौरान आसमान साफ रहेगा। तापमान 24 से 39 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां स्लो विकेट होने के कारण स्पिनर्स को भी काफी मदद मिलेगी। टॉस जीतने वाली टीम पहले बल्लेबाजी करना पसंद करेगी। दुबई में इस आईपीएल से पहले यहां हुए पिछले 61 टी-20 में पहले बल्लेबाजी वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 55.74% रहा है।

  • इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 61
  • पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 34
  • पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 26
  • पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 144
  • दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 122

हैदराबाद ने 2 बार खिताब जीता
हैदराबाद ने भी अब तक तीन बार (2018, 2016, 2009) में फाइनल खेला और दो बार (2016, 2009) जीत हासिल की। वहीं, पंजाब अब तक आईपीएल का खिताब नहीं जीत पाई है। पंजाब एक बार ही 2014 में फाइनल में पहुंच पाई है।

आईपीएल में हैदराबाद का सक्सेस रेट पंजाब से ज्यादा
आईपीएल में हैदराबाद का सक्सेस रेट 53.09% है। हैदराबाद ने अब तक 113 मैच खेले हैं, जिसमें से उसने 60 मैच जीते हैं और 53 हारे हैं। वहीं, पंजाब का सक्सेस रेट 45.58% है। पंजाब ने अब तक 181 मैच खेले हैं, जिसमें में से उसने 83 जीते हैं और 98 हारे हैं।



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पहली बार एयरफोर्स डे की परेड में आसमान में कलाबाजियां खाते नजर आएगा राफेल, 19 हेलिकॉप्टर समेत 56 एयरक्राफ्ट शामिल होंगे

इंडियन एयरफोर्स डे की 88वीं परेड में राफेल जेट भी शामिल होगा। यह पहला मौका होगा जब राफेल इस परेड में शामिल होगा। उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद स्थित हिंडन एयरबेस पर मंगलवार को राफेल को परेड में शामिल करने के लिए रिहर्सल किया गया।

इंडियन एयरफोर्स की स्थापना 8 अक्टूबर 1932 को हुई थी। इसलिए, हर साल 8 अक्टूबर को एयरफोर्स डे मनाया जाता है। इस दिन देश के अलग-अलग हिस्सों में एयरफोर्स की तरफ से कई कार्यक्रम और परेड आयोजित की जाती हैं।

परेड में कुल 56 एयरक्राफ्ट हिस्सा लेंगे

परेड में कुल 56 एयरक्राफ्ट हिस्सा लेंगे। इनमें 19 हेलिकॉप्टर और 7 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट भी शामिल होंगे। फ्लाइ पास्ट में राफेल के अलावा, लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस, जगुआर, मिग-29, मिग-21, सुखोई-30 भी उड़ान भरेंगे। एयरफोर्स के हेलिकॉप्टर के बेड़े में से एमवाई 17 वी 5, एलएएच मार्क-4, चिनूक, एमआई-35, और अपाचे भी परेड में शामिल होंगे।

आसमान में करतब दिखाएगा राफेल
एयरफोर्स डे परेड में राफेल फाइटर जेट आसमान में ऊंची उड़ान भरते नजर आएगा। इंडियन एयरफोर्स के मुताबिक, राफेल 4.5 जनरेशन का फाइटर जेट है। इसकी खूबियों में ट्विन-इंजन ओम्नीरोल, एयर सुप्रीमेसी, इंटरडिक्शन, एरियल रिकोनाइसेंस, ग्राउंड सपोर्ट, इन डीप स्ट्राइक, एंटी शिप न्यूक्लियर डिटरेंस शामिल हैं। इसके जरिए कई तरह के हथियारों से दुश्मनों पर हमला किया जा सकता है।

29 जुलाई को भारत आए थे 5 राफेल
2 इंजन वाले राफेल फाइटर जेट में 2 पायलट बैठ सकते हैं। यह जेट एक मिनट में 60 हजार फुट की ऊंचाई तक जा सकता है।इसी साल 29 जुलाई को फ्रांस से 5 राफेल जेट भारत आए थे। इसे 10 सितंबर को इंडियन एयरफोर्स के बेड़े में शामिल किया गया था। अभी भारत को 36 राफेल विमान मिलने हैं, जिनमें 18 अंबाला और 18 बंगाल के हासीमारा एयरबेस पर रखे जाएंगे। हासीमारा एयरबेस चीन और भूटान सीमा के करीब है।



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इसी साल 29 जुलाई को फ्रांस से 5 राफेल जेट भारत आए थे। इसे 10 सितंबर को इंडियन एयरफोर्स के बेड़े में शामिल किया गया था।-फाइल फोटो


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रिया अब जेल से बाहर और सुशांत के खातों का चिट्‌ठा खुला, हाथरस मामले में आया नया मोड़ और कोरोना पर अच्छी खबर

अच्छी खबर! पिछले 19 दिनों में देश में कोरोना के 1.10 लाख एक्टिव केस कम हुए हैं। 17 सितंबर को देश में सबसे ज्यादा 10.17 लाख एक्टिव केस थे, जो अब घटकर 9.7 लाख हो गए हैं। चलिए शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...

आज इन 4 इवेंट्स पर रहेगी नजर
1. दुबई: आईपीएल में आज किंग्स इलेवन पंजाब और सनराइजर्स हैदराबाद आमने-सामने होंगे। टॉस शाम सात बजे होगा। मैच साढ़े सात बजे शुरू होगा।
2. महाराष्ट्र: कंगना रनोट की पिटीशन पर बॉम्बे हाईकोर्ट फैसला सुना सकता है।
3. झारखंड: अनलॉक-5 के तहत गुरुवार से खुलेंगे सभी धार्मिक स्थल। कोरोना गाइडलाइन का करना होगा पालन।
4. आज एयरफोर्स डे पर फ्लाई पास्ट हाेगा।

अब कल की 6 महत्वपूर्ण खबरें
1. हाथरस केस: पीड़ित के भाई और आरोपी के बीच 104 बार बातचीत हुई
हाथरस गैंगरेप केस में नई कहानी सामने आई है। इसके मुताबिक, मुख्य आरोपी संदीप और युवती के भाई के बीच फोन पर 13 अक्टूबर 2019 से मार्च 2020 तक 104 बार बातचीत हुई। दोनों के घर 200 मीटर की दूरी पर ही हैं। 62 कॉल संदीप ने तो 42 कॉल पीड़िता के भाई की तरफ से एक-दूसरे को किए गए। -पढ़ें पूरी खबर

2. रिया को 9 शर्तों के साथ जमानत
ड्रग्स मामले में गिरफ्तार एक्ट्रेस रिया चक्रवर्ती को बॉम्बे हाईकोर्ट से 9 शर्तों के साथ बुधवार को जमानत मिल गई। हाईकोर्ट ने कहा- रिया ड्रग डीलर्स का हिस्सा नहीं हैं। ऐसा कोई प्रमाण नहीं है, जिसके आधार पर यह माना जाए कि जमानत मिलने के बाद वे कोई अपराध कर सकती हैं। सुशांत के लिए ड्रग्स खरीदने का ये मतलब नहीं कि वे ड्रग्स डीलर्स के नेटवर्क का हिस्सा हैं। -पढ़ें पूरी खबर

3. सुशांत के बैंक खातों का फोरेंसिक ऑडिट
सुशांत सिंह राजपूत के बैंक खाते की फोरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट में भी कुछ भी संदिग्ध नहीं मिला है। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, सुशांत के सभी बैंक खातों में 5 साल में 70 करोड़ का लेन-देन हुआ, जिसमें से सिर्फ 55 लाख रुपए ही रिया चक्रवर्ती से जुड़े हैं। ज्यादातर पैसा यात्रा, स्पा और गिफ्ट खरीदने पर खर्च किया गया था। -पढ़ें पूरी खबर

4. पॉजिटिव खबर: अचार का बिजनेस शुरू किया, तीन साल में टर्नओवर एक करोड़
निहारिका ने लंदन से मार्केटिंग स्ट्रेटेजी एंड इनोवेशन में मास्टर्स किया। इंडिया लौटीं। गुड़गांव में एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब किया। फिर 2017 में उन्होंने अचार बनाने का स्टार्टअप लॉन्च किया। आज 50 एकड़ में उनका फार्म है। हर साल 30 टन से ज्यादा का प्रोडक्शन होता है। कंपनी का टर्नओवर एक करोड़ रु है। -पढ़ें पूरी खबर

5. मीटर की दूरी पर संक्रमण का रिस्क 10 गुना ज्यादा
क्या आपको पता है कि कितनी दूरी कोरोना से बचने के लिए जरूरी है? इसे लेकर पहले दिन से ही वैज्ञानिकों के मत अलग-अलग रहे हैं। अब एक्सपर्ट्स सोशल डिस्टेंसिंग के लिए नया फॉर्मूला दे रहे हैं। उनका कहना है कि 2 मीटर की दूरी 1 मीटर से 10 गुना तक ज्यादा सुरक्षित है। पढ़ें खास रिपोर्ट। -पढ़ें पूरी खबर

6. भास्कर डेटा स्टोरी: महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामले सबसे ज्यादा
हाथरस मामले के बाद महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध और उनकी सुरक्षा एक बार फिर चर्चा में है। लेकिन, आंकड़े देखें तो महिलाओं के खिलाफ अपराध का हर तीसरा मामला घरेलू हिंसा से जुड़ा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की क्राइम्स इन इंडिया 2019 रिपोर्ट बताती है कि ऐसे अपराध 2018 से 2019 में 7.3% बढ़ गए।
-पढ़ें पूरी खबर

अब 8 अक्टूबर का इतिहास
1932: भारतीय वायुसेना का गठन हुआ।
1965: लंदन की 481 फीट ऊंची डाकघर मीनार को खोला गया। यह इंग्लैंड की उस समय की सबसे ऊंची इमारत थी।
2008ः अमेरिकी प्रेसिडेंट बुश ने भारत के न्यूक्लियर मार्केट में अमेरिकी बिजनेस को मंजूरी देने वाले कानून पर साइन किए।

आखिर में जिक्र हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार और उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद का। आज ही के दिन 1936 में उनका निधन हुआ था।



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Riya now out of jail and Sushant's accounts opened, new twist in Hathras case and good news on Corona


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यहां रहने वाले हर मर्द दलाल और औरत को देह बेचने वाली समझती जाती है, कभी राजा-महराजा अपनी औलादों को यहां तहजीब सिखाने भेजते थे

शाम के पांच-साढ़े पांच बज रहे हैं। सड़क के दोनों तरफ छोटे-छोटे मकान बने हैं। कुछ मकानों के बाहर बोर्ड लगा है और उस पर लिखा है, ‘फैमली डेरा है। बिना परमिशन अंदर आना मना है।’ वहीं कुछ घरों के बाहर टंगे बोर्ड पर लिखा है, ‘सपना कुमारी और माही कुमारी, नर्तकी एवं गायिका। प्रदर्शन रात्रि 9 बजे तक।’ सड़क उखड़ी हुई है। शायद इसी बारिश में उखड़ गई है। इस उखड़ी हुई सड़क से आने-जाने वाले लोग सामने देखने की जगह दाएं-बाएं देखते हुए आगे बढ़ रहे हैं।

इनकी नजरें घरों की खिड़की, छतों और गेट के बाहर बैठी लड़कियों और महिलाओं को देखने की जुगत कर रही हैं। लड़कियों ने अपने चेहरे पर डार्क मेकअप लगाया हुआ है। होठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक, आंखों में गहरा काजल और चेहरे पर फाउंडेशन लगाए हुए महिलाएं लगभग हर एक घर के बाहर बैठी हैं।

बिहार के सबसे बड़े और सबसे पुराने रेड लाइट एरिया चतुर्भुज स्थान की हर शाम ऐसी ही होती है। शायद यही वजह है कि फुल मेकअप में बैठी महिलाओं को इन घूरती आंखों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। वो या तो आपस में बतिया रही हैं या अपने-अपने स्मार्ट फोन पर कुछ देख रही हैं।

जिस सड़क पर ये दृश्य है, उसे शुक्ला रोड कहते हैं। इसके पश्चिमी छोर पर चार भुजाओं वाले भगवान का मंदिर है, जिसकी वजह से इस जगह को चतुर्भुज स्थान कहते हैं। सड़क के पूर्वी छोर पर पर गरीब स्थान मंदिर है। ये भगवान शिव का मंदिर है और सावन में यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। इन दो मंदिरों के बीच आबाद हैं वो ढाई हजार परिवार, जिनके पुरखे कभी कला के उपासक माने जाते थे, जो कभी बड़े-बड़े दरबारों में अपना हुनर दिखाते थे और जहां बड़े से बड़े राजा-महाराज अपने बच्चों को तहजीब सिखाने के लिए भेजा करते थे।

कुछ मकानों के बाहर ऐसे बोर्ड लगे हैं, जिन पर लिखा है, फैमली डेरा बिना पूछे अंदर आना मना है।

वक्त बदला, पीढ़ियां बदलीं और इस इलाके की पहचान भी बदल गई। बड़े-बड़े कोठों की दीवारें दरकने लगीं। नाच-गाना बंद होता चला गया और देह व्यापार ने अपना अड्डा जमा लिया और चतुर्भुज स्थान को ‘रेड लाइट’ एरिया कहा जाने लगा। सड़क के पूर्वी छोर की पान की दुकान पर मिले 30 साल के रफीक कहते हैं, ‘इस समाज को मुख्य धारा में जोड़ने का कभी प्रयास ही नहीं हुआ। सबने बस लूटा-खसोटा। हमारा भी ताल्लुक इसी गली से है। मैट्रिक के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी, क्योंकि क्लास में सबको मालूम चल गया था कि हम शुक्ला रोड में रहते हैं। कभी आते होंगे यहां राजा, महाराजा और होता होगा नृत्य-संगीत। हमने जब से होश संभाला है, तब से तो यहां केवल अत्याचार ही देखा है। इस गली में रहने वाले हर मर्द को दलाल और हर औरत को देह बेचने वाली समझा जाता है।”

रफीक जब ये बातें कह रहे हैं तो उनके चेहरे पर उभरे गुस्से और उनकी बातों से झलक रहे निराशा के भाव को साफ-साफ महसूस किया जा सकता है। वैसे तो देश से रजवाड़ों, बड़े घरानों और जमींदारों के खत्म होने के साथ ही चतुर्भुज स्थान की पहचान भी बदलने लगी लेकिन असल मार तब पड़ी जब टीवी, फिल्म और इंटरनेट आया। लेकिन कोरोना की वजह से लगे तीन महीने लंबे लॉकडाउन ने तो इन्हें पूरी तरह से तबाह कर दिया। अपने घर के बाहर मोबाइल पर गाना सुन रही शबनम लाख मिन्नतों के बाद बात करने के लिए तैयार होती हैं। वो कहती हैं, “तबाही तो अभी भी जारी है। हमें कार्यक्रम करने की इजाजत नहीं मिली है। घर में नाच-गाना कर सकती हैं, बस। आप लोगों के गए होंगे केवल तीन महीने। हमारा तो पूरा साल ही चला गया।” इतना कहकर शबनम अपने घर के अंदर चली जाती हैं और पर्दा खिंच लेती हैं। ये इस बात का संकेत है कि हमारे वहां होने से उन्हें दिक्कत हो रही है।

यहां से निकलते-निकलते रफीक कहते हैं, “जिन तीन महीनों की आप बात कर रहे हैं वो तो इनके लिए कयामत के दिन थे। अगर जिला प्रशासन ने राशन का इंतजाम नहीं किया होता तो भूख से मर जाते ये परिवार।”

इन दो-ढाई हजार परिवारों को शासन-प्रशासन शहर में अपराध की मुख्य वजह मानता रहा है। खुद को संभ्रांत मानने वाले परिवार इधर से गुजरना भी ठीक नहीं समझते। इनकी नजर में ये ऐसी मछलियां हैं, जिनसे पूरा तालाब गंदा हो रहा है। शायद यही वजह है कि मुगलों के वक्त से आबाद इस बस्ती में पहली बार 1994 में सुधार का काम शुरू होता है। शुरुआत एड्स जागरूकता अभियान के तहत कंडोम बांटने से हुई थी।

साल 1997 तक यहां दस आंगनबाड़ी केंद्र खुल गए। महिलाओं और बच्चियों को अनौपचारिक शिक्षा देने के लिए दस सेंटर भी खुल गए। किशोरी चेतना केंद्र का गठन हुआ और इसके तहत इलाके की सौ लड़कियों को पढ़ाया-लिखाया जाने लगा, लेकिन साल 2000 आते-आते ये सारे काम बंद भी हो गए। जयप्रकाश नारायण के सिपाही और सर्वोदयी नेता परमहंस प्रसाद सिंह इन सारे प्रयासों को जमीन पर उतारने में लगे थे। इनके मुताबिक मजबूत इच्छा शक्ति ना होने की वजह से और तत्कालीन जिलाधिकारी के बदल जाने की वजह से सब बंद हो गया।

वक्त के साथ यहां नाच-गाना बंद होता चला गया और देह व्यापार ने अपना अड्डा जमा लिया।

वो बताते हैं, “तब राजबाला वर्मा यहां की जिलाधिकारी थीं। वो इस इलाके को खाली करवाना चाहती थीं। मैंने उनसे कहा कि ये लोग कहीं तो रहेंगे ही। जहां रहेंगे, वहां स्थिति खराब हो जाएगी। इनको और इनके बच्चों को मेन स्ट्रीम से जोड़ने की जरूरत है। डंडे से नहीं, योजना से काम लेना होगा। ये बात उन्हें जम गई। इसी के बाद सारे काम शुरू हुए। उन्होंने कई सरकारी योजनाओं को इस मोहल्ले की तरफ मोड़ दिया। इससे पहले इन्हें किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता था। कुछ साल बाद उनका तबादला हो गया। बाद में जो जिलाधिकारी आए, उन्होंने कई दूसरे एनजीओ को काम दे दिया और फिर एक बार इनके नाम पर लूट-खसोट शुरू हो गई।”

ऐसी जानकारी है कि बाद के वर्षों में मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में आजीवन सजा काट रहे ब्रजेश ठाकुर का एक एनजीओ ही इस मोहल्ले में काम कर रहा था। इन कामों को जमीन पर आजतक किसी ने नहीं देखा और ना ही महसूस किया। सुधार के तमाम काम कागजों पर ही होते रहे।

इलाके में ‘बाबा' के नाम से पहचाने जाने वाले अमरेन्द्र तिवारी कहते हैं, ‘आज की राजनीति बहुत आगे निकल गई है। उसे पता है कि वोट कैसे और कहां से मिलना है? कई समुदाय हाशिए पर पड़े हैं। उसमें इनकी क्या औकात! पटना और दिल्ली में सत्ता बदलने पर इनके जीवन में बहुत फर्क नहीं पड़ता। इन्हें फर्क पड़ता है कि जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक की कुर्सी पर बैठा इंसान कैसा है?

अंधेरा हो चुका है। ज्यादातर घरों के आगे पीली रोशनी फेंकते बल्ब जल रहे हैं। मेरे सामने, सड़क की दूसरी तरफ बने हवेलीनुमा घर के बाहर चार-पांच महिलाएं बैठी हैं। कांच की रंग-बिरंगी चूड़ियां लिए एक चूड़ीहार उनके पास बैठा है और औरतों की कलाई में चूड़ी पहना रहा है। तभी सड़क से गुजर रहे एक 20-22 साल के लड़के ने मोबाइल से फोटो खींची। एक औरत ने देख लिया तो बोलीं, “क्या बाबू, काहे ले रहे हो फोटो? हम इस समाज में शांति से नहीं जी सकतीं क्या?”



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They have no meaning with election-ruling-opposition, every man living in this street is considered as a broker, every woman is a body vendor


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यूट्यूब से आया आइडिया तो पड़ोसियों से उधार लेकर, घर में एक कमरे से शुरू किया मसाला पैकिंग का काम, हर महीने 45 हजार कमाई

जयपुर के अमित कुमार पारीक के पास कोई कामकाज नहीं था। दिनरात यही सोचते रहते थे कि आखिर ऐसा क्या करें, जिससे दो पैसे आना शुरू हों। पड़ोस में ही पवन पारीक की दुकान है। उनकी दुकान पर मसाले के पैकेट्स आया करते हैं। उन्हें देखकर अमित अक्सर पवन से कहता था कि, यार मैं इनकी मार्केटिंग का काम शुरू कर लेता हूं। वो यूट्यूब पर भी बिजनेस आइडिया तलाशते रहते थे। एक दिन उन्हें कामकाजी डॉटकॉम नाम के एक यूट्यूब चैनल पर मसाला पैकिंग के काम को करने का तरीका पता चला। अमित ने चैनल में दिए नंबर पर फोन लगाया तो उन्होंने अमित को कंसल्टेशन देने के साथ ही उसे जयपुर के दो लोगों के नंबर दिए, जो ब्लिस्टर पैकिंग मशीन की सप्लाई करते हैं।

अमित ने यह मशीन रिश्तेदारों और दोस्तों से पैसे उधार लेकर खरीदी थी।

अमित उनके पास पहुंच गए। उन्होंने बताया कि, यह मशीन 65 हजार रुपए की है। एक घंटे में सवा सौ से डेढ़ सौ पीस तैयार करती है। अब मुसीबत ये थी कि अमित के पास महज 10 हजार रुपए थे और मशीन 65 हजार की थी। उन्होंने अपने रिश्तेदारों और कुछ दोस्तों से पैसे उधार लिए और मशीन खरीद ली। मशीन के साथ कम्प्रेशर भी आया था। अब पैकिंग मटेरियल खरीदना था। इसमें ब्लिस्टर (जिसमें मटेरियरल भरा जाना था) और उसे पैक करने के लिए पेपर की जरूरत थी। अमित ने तय किया कि वो अपने बेटे नाम से पेपर प्रिंट करवाएंगे।

एक पेपर की प्रिंटिंग कॉस्ट 2 रुपए 55 पैसे पड़ रही थी। वहीं, एक ब्लिस्टर शीट की कीमत साढ़े चार रुपए थी। यहां भी तब मुसीबत आ गई, जब मैन्युफैक्चरर ने कहा कि कम से कम चार-चार हजार पीस का ऑर्डर देना होगा, तभी काम कर पाएंगे। इससे कम में मशीन चलाना महंगा पड़ता है। अमित ने फिर कुछ लोगों से पैसे की मदद मांगी। पूरा मटेरियल खरीदने में 30 से 35 हजार रुपए का खर्चा आया। इस तरह काम शुरू होने के पहले करीब 95 हजार रुपए लग गए।

इस तरह से प्रोडक्ट्स को पैक करके डिलीवरी देते हैं।

अब पैकिंग मशीन और पेपर तो आ गया था, लेकिन उसमें जो मटेरियल भरना है, वो नहीं आया था। अमित ने लौंग, इलायची, सौंठ, काली मिर्च, बादाम, किशमिश जैसे ग्यारह प्रोडक्ट्स पैक करने का सोचा था। मटेरियल में अमित की मदद की उनके एक और पड़ोसी अग्रवाल जी ने। उन्होंने अमित को उधारी पर मटेरियल दिलवाया और यह भी बताया कि कितना भरना है, क्योंकि उनकी किराने की दुकान थी और उन्हें इसका अनुभव था। फिर अमित ने घर में ही पैकिंग का काम शुरू कर दिया। अमित के माता-पिता और बेटा भी उनके साथ में काम में हाथ जुटाते हैं। पत्नी घर का कामकाज करती हैं। मां ब्लिस्टर में मटेरियल भरती हैं। अमित मशीन में उसे पैक करते हैं। बेटा पैकेट एक जगह पर रखता है।

प्रोडक्ट बेचने मार्केट नहीं गए

खास बात ये थी कि वो कभी अपने प्रोडक्ट्स को बेचने के लिए मार्केट में नहीं गए, बल्कि उन्होंने आसपास यह बता दिया कि मेरे पास ये प्रोडक्ट्स तैयार हैं और किसी को मार्केटिंग करना हो तो बताना। शुरू में एक, दो सेल्समैन आए। उनसे यह बात हुई कि एक पैकेट पर आपको 10 रुपए का कमीशन मिलेगा। अमित कहते हैं मैंने पैकेट इस हिसाब से तैयार किया था कि पांच से सात रुपए का फायदा मुझे मिले और दस रुपए डोर टू डोर जाकर प्रोडक्ट बेचने वाले सेल्समैन के पास बचें। शुरू के दो-तीन महीने तक सौ-सवा सौ पैकेट ही बिका करते थे। फिर धीरे धीरे बढ़ना शुरू हुए। लॉकडाउन में तो बहुत काम मिला। पैकेट की संख्या चार सौ तक पहुंच गई थी। लेकिन, अभी कामकाज डाउन है। सौ से सवा सौ पैकेट ही बिक रहे हैं।

अब अमित स्क्रब तैयार करने की मशीन भी ला चुके हैं। उन्होंने अपना प्रोडक्ट मार्केट में उतार दिया है।

अमित कहते हैं, पिछले डेढ़ साल में औसत कमाई की बात करें तो हर माह 40 से 45 हजार रुपए की कमाई हुई है। अमित ने अब बर्तन साफ करने वाले स्क्रब की मशीन भी खरीद ली है, जो साढ़े तीन लाख रुपए की आई है। इसमें स्क्रब तैयार करेंगे। इसकी पैकिंग मसाले वाली मशीन से ही हो जाती है। कहते हैं, जिनसे पैसे लिए थे उनके पैसे वापस कर दिए। अब मेरे पास की खुद की मशीनें हैं। घर से काम करता हूं। स्क्रब का काम एक माह पहले ही शुरू हुआ है, अब मटेरियल मार्केट में जाना शुरू होगा, तब इसका रिस्पॉन्स पता चलेगा। कहते हैं, मसाला पैकिंग का काम मैं सुबह के दो घंटे में निपटा लेता हूं। एक घंटे में सौ से सवा सौ पैकेट तैयार हो जाते हैं। फिर सेल्समैन इन्हें घर से ही ले जाते हैं। बाकी टाइम बिजनेस को कैसे आगे बढ़ाना है, इसमें लगाता हूं।

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अमित ने बिजनेस अपने घर से ही शुरू किया। पूरा परिवार काम में हाथ बंटाता है।


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JEE एडवांस टॉपर चिराग फेलोर ने खुद बताया- आईआईटी की जगह क्यों चुना एमआईटी, कैसे वहां पूरा हो सकता है मंगल ग्रह पर जाने का सपना

देश के 23 आईआईटी में एडमिशन के लिए हुई JEE एडवांस का रिजल्ट सोमवार को घोषित हुआ और इसमें पुणे के चिराग फेलोर 396 में से 352 स्कोर कर टॉपर बने। भारत में आईआईटी में जाना लाखों लोगों का सपना होता है, लेकिन चिराग ने किसी आईआईटी को नहीं बल्कि एमआईटी यानी मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी को चुना।

इसे लेकर सोशल मीडिया पर अच्छी-बुरी दोनों तरह की रिएक्शन आई। वे ऐसा करने वाले पहले स्टूडेंट नहीं है। इससे पहले भी आईआईटी की जगह एमआईटी चुनने वालों की लंबी फेहरिस्त है। खैर, हमने चिराग से ही जानना चाहा कि इसकी वजह क्या है? साथ ही उन विषयों पर भी जवाब लिया, जो JEE मेन्स और JEE एडवांस की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स के लिए काम का हो सकता है।

सबसे पहले, चिराग ने एमआईटी क्यों चुनी?

चिराग का कहना है कि इसकी मुख्य तौर पर दो वजह है। पहली, एमआईटी में फर्स्ट ईयर स्टूडेंट्स भी फेकल्टी की लीडरशिप में रिसर्च शुरू कर सकते हैं। आईआईटी में यह सुविधा नहीं है। दूसरा, एमआईटी के 95 पूर्व छात्रों/फेकल्टी मेंबर्स को अलग-अलग विषयों का नोबेल पुरस्कार मिल चुका है। इनमें से कुछ प्रोफेसरों से सीधा संपर्क और पढ़ने का मौका एमआईटी में मिल सकता है, आईआईटी में नहीं।

क्या जो विषय एमआईटी में मिला, वह आईआईटी में नहीं मिलता?

चिराग कहते हैं कि उन्हें फिजिक्स लेना था। एस्ट्रो-फिजिक्स में करियर बनाना है। इसरो या नासा जाना है। ताकि मंगल ग्रह पर खोज में अपना योगदान दे सकें। आईआईटी में सारे टॉपर कंप्यूटर या इलेक्ट्रॉनिक्स ही चुनते हैं। ऐसे में एस्ट्रो-फिजिक्स में जो स्कोप एमआईटी में मिल सकता है, वह आईआईटी में नहीं मिल सकता। फिर एमआईटी में दुनियाभर के बेस्ट स्टूडेंट्स पहुंचते हैं, उनके साथ पढ़ने का अलग मजा है।

क्या एमआईटी में एडमिशन की कोई और भी वजह थी?

चिराग ने कहा कि बात यहां सिर्फ एस्ट्रो-फिजिक्स की नहीं है। JEE मेन्स और JEE एडवांस एक एंट्रेंस एग्जाम है, जिसे पास करने के बाद आईआईटी या एनआईटी में एडमिशन मिल जाता है। एमआईटी में ऐसा नहीं होता। वहां स्टूडेंट्स के ओवरऑल परफॉर्मंस को परखा जाता है। वह क्या और क्यों करना चाहता है, वह अपने लक्ष्य को लेकर कितना सीरियस है, इन बातों को भी देखा जाता है। ऐसा नहीं कि सिर्फ एक एग्जाम के परफॉर्मंस से जज कर एडमिशन दे दिया।

एमआईटी में एडमिशन के लिए क्या करना पड़ा?

चिराग ने बताया कि mitadmission.org पर अप्लाय करना होता है। उसमें को-करिकुलर एक्टिविटीज के साथ-साथ हर एक बात बतानी होती है। उसके बेसिस पर ही सिलेक्शन कमेटी स्क्रूटनी करती है। सिलेक्टेड कैंडीडेट्स का इंटरव्यू होता है और उसके बाद एडमिशन के लिए फाइनल सिलेक्शन होता है। भारत से पांच-दस स्टूडेंट्स अंडरग्रेजुएट कोर्सेस के लिए जाते ही हैं।

जब एमआईटी में एडमिशन भी हो गया था तो JEE एडवांस दी ही क्यों?

चिराग का इस पर कहना है कि यह एक टफ एग्जाम है। इसमें भाग लेना है, यह चार साल पहले यानी वे नौवीं में थे तभी डिसाइड कर लिया था। एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में जमकर पढ़ाई की और अपने आपको मजबूत किया। मैं तो कहता हूं कि जो JEE मेन्स या JEE एडवांस की तैयारी कर रहे हैं, उन्हें इसके लिए बार-बार कोशिश करनी होगी। बोरियत दूर भगाने के लिए रास्ते निकालने होंगे। मैं चेस खेलता था, खाना खाने के बाद टेबल-टेनिस भी खेलता था। ताकि लगातार पढ़ाई से बोरियत महसूस न हो और मैं फ्रेश माइंड से पढ़ाई पर फोकस कर सकूं।

JEE की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स के लिए क्या सबक है?

मैं तो इतना ही कहूंगा कि मैंने परीक्षा की तैयारी के दौरान स्मार्टफोन का इस्तेमाल नहीं किया। डिस्ट्रेक्शन को कम से कम रखा। लेकिन, अब सारा काम जूम पर या किसी और टूल से हो रहा है तो ऐसे में यह तो नहीं कह सकते कि स्मार्टफोन न रखें। इतना जरूर कहना चाहूंगा कि डिस्ट्रेक्शन दूर करें। पढ़ाई पर पूरा फोकस करें। बोरियत लगे तो इंटरनेट पर कुछ नया सीखें। यह बहुत काम आने वाला है।

...क्या कहना है विशेषज्ञों का

इंटरनेशनल मैग्जीन आंत्रप्रेन्योर में यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड में स्ट्रैटेजी एंड आंत्रप्रेन्योरशिप में माइकल डी. डिग्मैन चेयर अनिल के. गुप्ता का कहना है कि सब जगह अंडरग्रेजुएट्स का वक्त तो क्लासरूम्स और प्रोजेक्ट्स में ही चला जाता है। लेकिन ग्रेजुएट प्रोग्राम, पीएचडी प्रोग्राम और फेकल्टी रिसर्च की बात आती हैं तो आईआईटी पीछे छूट जाता है। एमआईटी जैसी यूनिवर्सिटी में फेकल्टी पर पढ़ाने का दबाव भी काफी कम होता है, जिससे उन्हें रिसर्च के लिए भरपूर वक्त मिलता है। आईआईटी में टीचर्स का ज्यादातर वक्त क्लासरूम में ही चला जाता है। वहीं, आईआईटी-इंदौर के पीआरओ कमांडर सुनील कुमार का कहना है कि हालात काफी बदल गए हैं। पिछले कुछ वर्षों में आईआईटी में रिसर्च तेजी से बढ़ा है। इस पर फोकस भी बढ़ गया है।

रैंकिंग में आईआईटी पीछे क्यों?

कुछ महीने पहले सात प्रमुख आईआईटी (बॉम्बे, दिल्ली, गुवाहाटी, कानपुर, खड़गपुर, मद्रास और रूडकी) ने तय किया था कि टाइम्स हायर एजुकेशन (THE) वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में भाग नहीं लेंगे। इसके लिए उन्होंने संयुक्त बयान भी जारी किया था। उनका कहना था कि उन्हें इस रैंकिंग की पारदर्शिता पर भरोसा नहीं है। आईआईटी दिल्ली के डायरेक्टर ने पिछले साल कहा था कि यदि दिल्ली-एनसीआर में सबसे ज्यादा टेक स्टार्टअप्स/यूनीकॉर्न्स हैं, तो उसमें आईआईटी दिल्ली की भूमिका जरूर है। यदि भारतीयों के बनाए 24 यूनीकॉर्न्स में से 14 आईआईटी-दिल्ली के पूर्व छात्रों की देन है तो हम कुछ तो अच्छा कर रहे होंगे।



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JEE Advanced Topper Chirag Felor himself told why MIT chose IIT instead, how can there be a dream of going to Mars?


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88वां इंडियन एयर फोर्स डे आज; पहली बार रफाल भी शामिल होगा फ्लाई पास्ट में

औपचारिक रूप से 8 अक्टूबर 1932 को अपने ऑपरेशंस शुरू करने वाली भारतीय वायुसेना आज अपना 88वां स्थापना दिवस मना रही है। पहली बार वायुसेना ने एक अप्रैल 1933 को उड़ान भरी थी। पहला ऑपरेशन वजीरिस्तान में कबाइलियों के खिलाफ था। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान इसे विस्तार दिया गया। इस दौरान बर्मा में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। 1945 में यह रॉयल इंडियन एयर फोर्स कहलाई, लेकिन 1950 में गणराज्य बनते ही रॉयल शब्द हटा दिया गया।

इंडियन एयर फोर्स की जिम्मेदारी भारत को सभी संभावित खतरों से बचाना है और साथ ही आपदाओं में राहत एवं बचाव कार्यों की भी है। वायुसेना कई युद्धों में शामिल रही है- दूसरा विश्वयुद्ध, भारत-चीन युद्ध, ऑपरेशन कैक्टस, ऑपरेशन विजय, करगिल युद्ध, भारत-पाकिस्तान युद्ध, कॉन्गो संकट।

आज एयरफोर्स पांच ऑपरेशनल और दो फंक्शनल कमांड्स में बंटी हुई है। हर कमांड का नेतृत्व एयर मार्शल की रैंक के एयर ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ करते हैं। ऑपरेशनल कमांड का उद्देश्य जिम्मेदारी के क्षेत्र में एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल करते हुए मिलिट्री ऑपरेशन को अंजाम देना है। फंक्शनल कमांड की जिम्मेदारी युद्ध के लिए तैयार रहने की है। फ्लाइट इंटरनेशनल के मुताबिक इंडियन एयर फोर्स में 1,721 एयरक्राफ्ट हैं, जिनमें Su-30MKI, जगुआर, मिराज-2000, अपाचे और चिनूक शामिल हैं। 8 अक्टूबर को होने वाले फ्लाई पास्ट में पहली बार रफाल भी शामिल होने वाला है।

दुनिया का पहला इंटरनल पेसमेकर इम्प्लांट हुआ

आर्ने लार्सन, जिन्हें पहला इंटरनल पेसमेकर लगाया गया था।

स्वीडन में आर्ने लार्सन को 8 अक्टूबर 1952 को इंटरनल पेसमेकर लगाया गया था। यह पहला इंटरनल पेसमेकर इम्प्लांट था। तीन घंटों में इसने काम करना बंद कर दिया था। अगले दिन फिर सर्जरी करनी पड़ी थी। लार्सन 2001 तक जीवित रहे और उनकी कई सर्जरी हुईं, जिनमें 25 से ज्यादा यूनिट्स बदली गईं।

दुनिया की पहली ट्रांसकॉन्टिनेंटल एयर रेस

1919 में पहली बार ट्रांसकॉन्टिनेंटल एयर रेस शुरू हुई थी। इसमें सैन फ्रांसिस्को से 15 और न्यूयॉर्क से 48 मिलाकर कुल 63 एयरप्लेन शामिल हुए थे। इन विमानों को 5,400 मील का राउंड-ट्रिप पूरा करना था। लेफ्टिनेंट बेल्विन मैनार्ड तीन दिन 21 घंटों में न्यूयॉर्क लौटे थे और उन्होंने यह चैम्पियनशिप जीती थी।

आज की तारीख को इन घटनाओं के लिए भी जाना जाता है-

  • 1856ः ब्रिटेन और चीन के बीच द्वितीय अफीम युद्ध शुरू हुआ।
  • 1860ः एलएंडएसएफ के बीच टेलीग्राफ लाइन शुरू की गई।
  • 1936ः हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार एवं उपन्यासकार प्रेमचंद का निधन हुआ।
  • 1952ः इंग्लैंड में हैरो और वेल्डस्टोन रेल दुर्घटना में 112 लोग मारे गए।
  • 1965ः लंदन में डाकघर टॉवर खोला गया।
  • 1973ः ब्रिटेन का पहला स्‍वतंत्र रेडियो स्‍टेशन एलबीसी शुरू हुआ।
  • 1996ः ओटावा में हुए सम्मेलन में लगभग 50 देश बारूदी सुरंगों पर विश्वव्यापी प्रतिबंध लगाने पर सहमत हुए।
  • 2000ः वोजोस्लाव कोस्तुनिका यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति बने।
  • 2001ः अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने होमलैंड सुरक्षा कार्यालय की स्थापना की।
  • 2001ः इटली में मिलान के लिनाटे एयरपोर्ट पर सेसना ने गलत टर्न लिया और वह टेक-ऑफ करने जा रहे एसएएस एयरलाइन से टकरा गया। इस हादसे में 118 लोग मारे गए थे।
  • 2003ः चीन ने सिक्किम को भारत के हिस्से के तौर पर स्वीकार किया।
  • 2004ः भारतीय गेहूं पर मौनसेंटो का पेटेन्ट रद्द हुआ।
  • 2005ः पीओके, अफगानिस्तान में भूकंप की वजह से 80 हजार से ज्यादा लोग मारे गए।
  • 2007ः बांग्लादेश के पूर्व गृहमंत्री मोहम्मद नसीम को 13 साल कैद की सजा हुई।
  • 2008ः अमेरिकी प्रेसिडेंट बुश ने भारत के न्यूक्लियर मार्केट में अमेरिकी बिजनेस को मंजूरी देने वाले कानून पर साइन किए।
  • 2009ः अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास के बाहर सुसाइड कार बम हमला हुआ, जिससे 17 लोगों की मौत हो गई।
  • 2009ः महाराष्ट्र के भामरागढ़ तालुका में नक्सली हमले में 17 भारतीय पुलिस जवान शहीद।


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नीतीश ने दो चुनाव हारने के बाद राजनीति छोड़ ठेकेदारी करने का मूड बनाया था; खुद बताया था कि क्यों नहीं लड़ते विधानसभा चुनाव

बात 1977 के विधानसभा चुनाव के वक्त की है। नालंदा जिले की हरनौत सीट से एक 26 साल का लड़का जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ रहा था। इस चुनाव में जनता पार्टी ने 214 सीटें जीतीं और 97 हारी। इन 97 हारी सीटों में हरनौत भी थी। इस सीट से हारने वाले 26 साल के उस युवा नेता का नाम था नीतीश कुमार। वही, नीतीश कुमार जो बाद में केंद्रीय मंत्री और फिर बिहार के मुख्यमंत्री बने।

नीतीश को पहले चुनाव में जिससे हार मिली थी, उनका नाम था भोला प्रसाद सिंह। भोलाप्रसाद सिंह वही नेता थे, जिन्होंने चार साल पहले ही नीतीश और उनकी पत्नी को कार में बैठाकर घर तक छोड़ा था।

नीतीश पहली हार को भूलकर 1980 में दोबारा इसी सीट से खड़े हुए, लेकिन इस बार जनता पार्टी (सेक्युलर) के टिकट पर। इस चुनाव में भी नीतीश को हार मिली। वो निर्दलीय अरुण कुमार सिंह से हार गए। अरुण कुमार सिंह को भोला प्रसाद सिंह का समर्थन हासिल था।

इस हार के बाद नीतीश इतने निराश हो गए कि उन्होंने राजनीति छोड़ने का मूड बना लिया। इसकी एक वजह ये भी थी कि नीतीश को यूनिवर्सिटी छोड़े 7 साल हो गए थे और शादी हुए भी काफी समय हो चुका था। लेकिन, इन तमाम सालों में वो एक पैसा भी घर नहीं लाए थे। इन सबसे तंग आकर नीतीश राजनीति छोड़कर एक सरकारी ठेकेदार बनना चाहते थे। वो कहते थे ‘कुछ तो करें, ऐसे जीवन कैसे चलेगा?’ हालांकि, वो ऐसा नहीं कर पाए।

तीसरी बार में विधायक बन ही गए

लगातार दो चुनाव हारने के बाद नीतीश 1985 में तीसरी बार फिर हरनौत से खड़े हुए। लेकिन, इस बार लोकदल के उम्मीदवार के रूप में। इस चुनाव में नीतीश 21 हजार से ज्यादा वोटों से जीते। उन्होंने कांग्रेस के बृजनंदन प्रसाद सिंह को हराया। नीतीश ने आखिरी बार 1995 में विधानसभा चुनाव लड़ा था। हालांकि, उन्होंने बाद में इस सीट से इस्तीफा दे दिया और 1996 के लोकसभा चुनाव में खड़े हुए।

पहले विधानसभा और फिर लोकसभा पहुंचे

1985 में पहली बार विधायक बनने के बाद नीतीश 1989 के लोकसभा चुनाव में बाढ़ से जीतकर लोकसभा पहुंचे। उसके बाद 1991 में लगातार दूसरी बार यहीं से लोकसभा चुनाव जीते। नीतीश 6 बार लोकसभा के सांसद रहे हैं। तीसरी बार 1996, चौथी बार 1998, 5वीं बार 1999 में लोकसभा चुनाव जीते।

नीतीश ने अपना आखिरी लोकसभा चुनाव 2004 में लड़ा। उस चुनाव में नीतीश बाढ़ और नालंदा दो जगहों से खड़े हुए थे। हालांकि, बाढ़ सीट से वो हार गए और नालंदा से जीत गए। ये नीतीश का आखिरी चुनाव भी था। इसके बाद से नीतीश ने कोई चुनाव नहीं लड़ा है।

तो इसलिए विधानसभा चुनाव नहीं लड़ते नीतीश

पहले नीतीश के मुख्यमंत्री बनने की बात। 2000 के विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला। तब नीतीश अटल सरकार में कृषि मंत्री थे। चुनाव के बाद भाजपा के समर्थन से नीतीश ने पहली बार 3 मार्च 2000 को बिहार के मुख्यमंत्री की शपथ ली। हालांकि, बहुमत नहीं होने के कारण उन्हें 7 दिन में इस्तीफा देना पड़ा और राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं।

नीतीश जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब वो न तो विधानसभा के सदस्य थे और न ही विधान परिषद के। नवंबर 2005 में नीतीश दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। इस बार भाजपा-जदयू गठबंधन के पास बहुमत था। अगले साल नीतीश पहली बार विधान परिषद के सदस्य बने।

नवंबर 2005 से लेकर अब तक नीतीश लगातार बिहार के सीएम रहे हैं। हालांकि, मई 2014 से फरवरी 2015 के बीच जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री रहे हैं।

2018 में नीतीश तीसरी बार विधान परिषद के सदस्य बने हैं और 2024 तक रहेंगे। उन्होंने 1995 के बाद कोई विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है। 2015 के विधानसभा चुनाव के वक्त जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि वो किसी एक सीट पर अपना ध्यान नहीं लगाना चाहते।

(रेफरेंसः संकर्षण ठाकुर की किताब ‘अकेला आदमी (कहानी नीतीश कुमार की)’



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Bihar Election 2020; Nitish Kumar Political Career Update | Reason Why Bihar CM Nitish Kumar Not To Contest Bihar Assembly Election


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सब त एक ही रंग में रंगे हैं, चुनाव बाद न रंग उतरता है, हर बार आजमाते हैं, लेकिन सब त वादा खिलाफ ही निकलते हैं

जगहः पटना
समयः सुबह 6 बजे

यह जगदेव पथ है। पटना का नव विकसित इलाका। शहर का नया विस्तार इसी इलाके में ज्यादा हो रहा है। यही रास्ता आगे दानापुर भी जाता है। यूपी की ओर भी यही ले जाता है।

ऊपर-ऊपर जितनी तेजी से फ्लाई ओवर आपको ले जाता है, आम दिनों में फ्लाई ओवर के नीचे की रफ्तार उतनी ही कम हो जाती है। ये शहर के जाम का नया पॉइंट भी तो है। हालांकि, इन दिनों कोरोना के भय ने भीड़ थोड़ा थाम रखी है। जू या हवाई अड्डे की ओर से आएंगे तो फ्लाई ओवर जहां उतरता है, उससे वापस चार पिलर बाद सुबोध और चन्दन की चाय का स्टाल है। यहां सुबह-सुबह ही रौनक आ जाती है। पुल का मुहाना तो है ही, बगल में सब्जी मंडी, दूसरी तरफ मजदूरों की मंडी और ऑटो-टेम्पो-टैक्सी वालों का अस्थाई ठहराव होने के कारण इन चाय दुकानों का भगोना कभी ठंडा नहीं पड़ता, न यहां की चर्चाएं।

मंगलवार की सुबह 6 बजे भी यह दुकानें पूरे रंग में थीं।

ये एक बुजुर्ग हैं। शायद दिहाड़ी मजदूर। उम्र 60 के आसपास। नेताओं की वादा-खिलाफी से काफी नाराज लगे। बोले- 'सब त एक ही रंग में रंग जाते हैं। हम लोग हर बार आजमाते हैं, लेकिन सब वादा-खिलाफ ही निकल जाता है।' पास में चुपचाप उनकी बात सुन रहा एक युवक बोला- ‘आप त बहुत चुनाव देखे हैं। आपका अनुभव सही ही है। युवक के कंधे पर बैग देखकर यही लग रहा कि वह किसी मार्केटिंग कंपनी में काम करता होगा। शायद राजेश नाम है। बोला- 'पटना राजधानी है और इससे पूरे बिहार के विकास का अंदाजा लगा लीजिए। अब आप कैसे देखते हैं, ये आप पर निर्भर है।'

रात में हुई बारिश के कारण मौसम में घुली हल्की ठंडक में चाय की चुस्की के साथ चली बतकही गर्मी भर रही है। कई चुपचाप सिर्फ सुन रहे, तो कई बहस का हिस्सा बने हुए हैं।

चाय के ठेले पर हाथ से टेक लगाकर खड़ा युवक बोला - ‘चुनाव आते ही राजनीति की बात होने लगती है। इस पर तो हमेशा चर्चा होनी चाहिए। अगर हम नेताओं के काम की चर्चा हर दिन ऐसे ही करते रहें तो शायद चुनाव में फैसला करना आसान हो जाएगा।’ पास में बैठे युवक ने चाय का गिलास हाथ से रखते हुए बातचीत में एंट्री मारी- ‘क्या खाक साल भर चर्चा होगी! सरकार तो ध्यान भटकाए रखती है। इस कारण से किसी का ध्यान काम और विकास पर जाता ही नहीं है।’ युवक की बातों ने मानो वहां चाय पी रहे युवाओं की दुखती रग पर ही हाथ रख दिया हो। बगल वाली चाय दुकान की बेंच से एक आवाज आई- ‘जब कोरोना, छंटनी और बेरोजगारी पर बात होनी चाहिए तो सब थाली और शंख बजाता है। जनता ही बुड़बक है। कोई पूछा कि अब कोई काहे नहीं भाषण देता कोरोना पर...सबको मंदिर और चुनाव की पड़ी है। आदमी मर रहा है तो मरे।’

लोगों की बतकही सुन चायवाला बोलता है- आप लोग त दुकाने विधानसभा बना दिए हैं।

तभी एक एम्बुलेंस आकर रुकती है और चालक उतरकर दुकानदार से चाय मांगता है। चेहरे से थका-थका सा दिख रहा एम्बुलेंस चालक चाय वाले का पुराना परिचित है। चायवाले ने सवाल किया 'रोशन, कहां से सुबह-सुबह।' रोशन का जवाब था... 'जाने तो एक मरीज को लेकर दो घंटे से घूम रहा हूं। कहीं भर्ती नहीं हो पाया। कोरोना के डर से कोई प्राइवेट अस्पताल भर्ती नहीं कर रहा था। परिवार वालों ने जुगाड़ लगाया तो आईजीआईएमएस में भर्ती हो सका।' स्वास्थ्य सेवा के बहाने वह चुनाव की चर्चा में जुड़ गया। बोला, बिहार में स्वास्थ्य सेवा का बुरा हाल है। कोरोना का नाम सुन कुछ लोगों ने दूरी बनानी चाही तो बोला- 'घबराइए नहीं, पूरा सैनिटाइज हो के आ रहे हैं!'

रोशन की बातों से उत्साहित बाकी मजदूर भी बोल पड़े...‘साहब इ कोरोना त गरीबों को मार रहा है...।’ लगभग 50 साल का दिखने वाला एक मजदूर बोला, 'रोजी-रोटी से लेकर सब कुछ चौपट हो गया है। कोरोना का ऐसा डर है कि कोई हम लोगों से काम तक नहीं कराता। घर में जाने तक नहीं देता है। अब चुनाव क फेरा लग गया है। अउरो काम नहीं निकलेगा। सरकार कहती है कोरोना कंट्रोल में है, सब कहते हैं अभी और बुरा हाल होगा। अब आप ही लोग बताइए क्या किया जाए। अभी तो हम पेट की आग से मर रहे हैं। जब बीमारी होगी तो कहां जाएंगे भगवान ही मालिक है।'

मैली लुंगी और पीली कुर्ती पहने एक बुजुर्ग शायद दुलारे नाम है, बोले- 'सब आफत गरीबों पर ही फूटती है। चाहे वह कोरोना हो या फिर गरीबी या बेरोजगारी हो।'

दुकान पर बढ़ती भीड़ के बीच बहुत देर से यह सब सुन रहा दुकानदार सुबोध बोला- ‘आप लोग त दुकाने विधानसभा बना दिए हैं। यहां चुनाव की बात में धंधा ही खराब हो जाता है।’ इतना बोलते हुए उसने दो बेंच नए ग्राहकों के लिए खाली करा ली हैं। मुस्कराते हुए बोला- ‘चुनाव के दिन मुहर लगाइए और ऐसे प्रत्याशी को जिताइए जो वादा करके पूरा करने वाला हो।’ बगल वाली टपरी से आवाज आई है, ‘अब मुहर नहीं लगती बटन दबता है भाई...’ इस टिप्पणी पर सब हंस देते हैं। कुछ लोग उठ जाते हैं। बेंचों पर कुछ नए चेहरे काबिज हो चुके हैं। बतकही का यह राउंड पूरा हो चुका है।



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Bihar Election 2020; Patna Locals Political Decision On Coronavirus And Nitish Kumar Govt Work | Know What Patna Voters Of Have To Say


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हाथरस पीड़िता के परिवार से मिलने पहुंचे राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने हंसते हुए फोटो क्लिक कराई? वायरल फोटो का सच डेढ़ साल पुराना है

क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की एक फोटो ‌वायरल हो रही है। दावा किया जा रहा है कि राहुल और प्रियंका ने हाथरस में ये फोटो क्लिक कराई है।

फोटो शेयर करते हुए सोशल मीडिया यूजर राहुल और प्रियंका पर जमकर निशाना साध रहे हैं।

और सच क्या है ?

  • फोटो को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से हमें 1 साल से ज्यादा पुरानी कई मीडिया रिपोर्ट्स में यही फोटो मिली। इससे ये तो साफ हो गया कि वायरल हो रही फोटो का हाथरस की घटना से कोई संबंध नहीं है।
  • पड़ताल के अगले चरण में हमने ये पता लगाना शुरू किया कि आखिर वायरल फोटो किस ईवेंट की है। Prokerala वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, ये फोटो 27 अप्रैल, 2019 की है। जब राहुल और प्रियंका चुनाव प्रचार के दौरान कानपुर एयरपोर्ट पहुंचे थे।
  • राहुल गांधी ने अपने फेसबुक पेज पर 27 अप्रैल, 2019 को प्रियंका वाड्रा के साथ एक लाइव वीडियो भी शेयर किया था। वीडियो से स्पष्ट हो रहा है कि वायरल फोटो भी उसी वक्त की है।

  • इन सबसे स्पष्ट है कि हंसते हुए पोज देते राहुल और प्रियंका की पुरानी फोटो को हाथरस मामले से जोड़कर शेयर किया जा रहा है।


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Fact Check: Rahul Gandhi and Priyanka Vadra clicked the laughing photo when they came to meet the family of the Hathras victim? The truth of the viral photo is one and a half years old


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तर्क है कि किसान कम पढ़े-लिखे होते हैं, तो उन्हें कानूनों की समझ नहीं, जानिए इस बिल पर क्या कहते हैं, पंजाब-हरियाणा के ‘पढ़े-लिखे किसान’

पंजाब और हरियाणा में किसानों के प्रदर्शन लगातार जारी हैं। सरकार की तरफ से यह आरोप लगाया जा रहा है कि आंदोलन कर रहे किसानों को विपक्षी दलों द्वारा बहकाया गया है और नए कानूनों को लेकर उनके मन में झूठे डर बैठा दिए गए हैं। कई लोगों का यह भी तर्क है कि चूंकि अधिकतर किसान अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे हैं लिहाजा उन्हें कानूनों की समझ ही नहीं है। ऐसे आरोपों के जवाब में पंजाब और हरियाणा के ‘पढ़े-लिखे किसान’ इस मामले पर क्या राय रखते हैं, यह जानने कि लिए हमने कुछ ऐसे किसानों से बात की जिन्होंने बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल की है।


‘कॉंट्रैक्ट फार्मिंग किसानों के हित में नहीं’

नए कानूनों में कॉंट्रैक्ट फार्मिंग को सबसे विवादास्पद मानते हुए प्रदीप कहते हैं, ‘किसानों का विरोध प्रदर्शन बिलकुल जायज़ है। निजी कंपनियां सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना मुनाफ़ा देखती हैं। उन्हें किसानों की भलाई से कोई लेना-देना नहीं है। यह ये क़ानून पूरी किसानी को ही धीरे-धीरे निजी हाथों में सौंपने जा रहे हैं।’

प्रदीप अपना अनुभाव साझा करते हुए कहते हैं, ‘कॉंट्रैक्ट फार्मिंग के नुकसान मैं ख़ुद झेल चुका हूँ। तीन साल पहले मैंने राशि सीडज नाम की एक कंपनी के लिए बीज तैयार करने का कॉंट्रैक्ट लिया था। पहले साल इसमें फ़ायदा भी हुआ। मुझे लगभग प्रति एकड़ चार हजार रुपए की बचत हुई। ये देखकर मैंने अगले साल 22 एकड़ में बीज उपजाए। लेकिन उस साल प्रति एकड़ मुनाफ़ा चार हजार से घटकर ढाई हजार तक आ गया।

इसके बाद भी मुझे लगा कि अगर मैं और ज़्यादा जमीन पर बीज उपजाऊ तो दो-ढाई हजार प्रति एकड़ के हिसाब भी अच्छी बचत हो सकती है। तो इस साल मैंने कुल 54 एकड़ ज़मीन पर बीज उपजाए। लेकिन जब हम बीज लेकर कंपनी के पास पहुंचे तो कहा गया कि आधे बीज अच्छी क्वालिटी के नहीं हैं। कंपनी ने वो वापस कर दिए।’

प्रदीप कहते हैं, ‘अब कॉंट्रैक्ट के हिसाब से मैं कोर्ट जा सकता हूँ लेकिन मैं अपनी बाकी खेती देखूं या कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटता रहूँ। कोर्ट की स्थिति हम सबने देखी है कि वहां फैसला होने में कितना समय लगता है। जब मुझ जैसा पढ़ा-लिखा आदमी भी कोर्ट जाने से बच रहा है तो वो किसान जो पढ़ा-लिखा भी नहीं है वो कैसे कंपनियों से निपटेगा।

पढ़े-लिखे लोग भी कॉंट्रैक्ट पर साइन करने से पहले ध्यान नहीं देते हैं। एक मोबाइल ऐप्लिकेशन ही जब हम लोग डाउनलोड करते हैं तो क्या टर्म्ज एंड कंडिशन पढ़ते हैं? हम सब बिना पढ़े ही ‘एग्री’ करके आगे बढ़ जाते हैं। ऐसा ही कोई बीमा लेते हुए भी करते हैं और बैंक के तमाम अन्य कामों में भी। तो एक आम किसान कैसे कॉंट्रैक्ट की बारीकियों को समझेगा। वो मजबूरन साइन करेगा और बड़ी कंपनियों के रहमों-करम पर काम करने को मजबूर होगा।


‘किसान और आढ़ती का रिश्ता सिर्फ खेती तक सीमित नहीं। आढ़ती किसान का एटीएम है जो इन कानूनों से टूट जाएगा’

कमलजीत कहते हैं, ‘नए क़ानून आने के बाद मंडी से बाहर फसल की ख़रीद टैक्स फ्री हो जाएगी। ऐसे में मंडी के अंदर टैक्स भरकर कोई व्यापारी क्यों फसल ख़रीदेगा। लिहाज़ा सरकारी मंडियां धीरे-धीरे टूटने लगेंगी और इसके साथ ही आढ़ती भी टूट जाएंगे।

किसान और आढ़ती का रिश्ता सिर्फ़ खेती तक सीमित नहीं है। फसल के अलावा भी तमाम जरूरतों के लिए किसान आढ़ती पर ही निर्भर है। घर में शादी से लेकर किसी आपात स्थिति तक में किसान अपने आढ़ती से ही पैसा लेता है और फसल होने पर चुकाता है। अब अगर फसल मंडी से बाहर बिकेगी तो आढ़ती भी किसान को पैसा क्यों देगा।

सरकार भले ही कह रही है कि मंडी व्यवस्था बनी रहेगी लेकिन किसान बेवकूफ नहीं है जो सड़कों पर बैठा विरोध कर रहा है। वो समझता है कि जब मंडी से बाहर बिक्री बिना टैक्स के होगी तो मंडी होकर भी किसी काम की नहीं राह जाएगी। इससे होगा ये कि शुरुआत के सालों में शायद किसान को मंडी के बाहर बेहतर दाम मिल जाए लेकिन जब दो-तीन साल में मंडियां पूरी तरह ख़त्म हो जाएंगी तो व्यापारी अपनी इच्छा से दाम तय करने लगेंगे।’


‘जो किसान आज भी लकीर के फकीर बने हुए हैं, उन्हें ही नए कानूनों से समस्या है’


अजय बोहरा इन कानूनों के बारे में कहते हैं, ‘मुझे इन कानूनों में कुछ भी ग़लत नहीं लगता। इससे किसानों के लिए नए दरवाजे खुल ही रहे हैं, बंद नहीं हो रहे। लेकिन किसानों में जागरूकता की बहुत भारी कमी है। अधिकतर किसान एक ही लकीर पर चलते हैं और इसी का फ़ायदा राजनीतिक दल भी उठाते हैं।’

अजय मानते हैं कि जो किसान पारंपरिक तरीकों से इतर काम करने को तैयार हैं, उनके लिए नए क़ानून कई मौके लेकर आया है। वे कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि ये पूरा आंदोलन नागरिकता क़ानून के विरोध जैसा ही आंदोलन है। जिस तरह से नागरिकता क़ानून का फर्क हमारे देश के नागरिकों पर न होकर विदेश से आने वाले लोगों पर होना था लेकिन फिर भी देश के कई लोग उसके विरोध में इसलिए थे कि उनके मन में डर बैठ गया था वैसे ही इन कानूनों को लेकर भी हो रहा है।’

वे आगे कहते हैं, ‘हम लोग जो जैविक खेती कर रहे हैं वो पहले से ही मंडी के बाहर बिकती है और उसका सही दाम भी बाहर ही मिलता है। हमारे साथ जो हजारों किसान जुड़े हुए हैं वे नए तरीकों से फसल उपजा रहे हैं और उनकी निर्भरता मंडियों पर कम हो रही है। इसलिए हमसे जुड़े किसी भी किसान के लिए ये नए क़ानून कोई बड़ा मुद्दा नहीं हैं।

जो किसान जैविक खेती से या नए तरीकों से आत्मनिर्भर बन रहे हैं और कर्ज के कुचक्र से निकल रहे हैं उनके लिए ये क़ानून कोई परेशानी नहीं हैं। इनसे उन किसानों को जरूर परेशानी है जो सालों से एक ही तरीक़े की खेती और उसके सिस्टम में फंसे हुए हैं।’


‘नए प्रयोग करने को तैयार किसानों के लिए ये कानून बहुत अच्छे हैं। लेकिन एमएसपी पर कानून की मांग जायज है’

अरुण बताते हैं, ‘जिन किसानों ने बीते 15-20 सालों में अपनी खेती को डिवर्सिफाई किया है, जो विविधता लेकर आए हैं उन्हें इन कानूनों से दिक्कत नहीं है। वह इसलिए है क्योंकि ऐसे किसानों की आढ़तियों और मंडियों पर पहले जैसी निर्भरता नहीं रह गई है।’

साल 2018 में हरियाणा का ‘बेस्ट फार्मर’ ख़िताब जीत चुके अरुण इन कानूनों के बारे में कहते हैं, ‘कोई भी नया बदलाव जब होता है तो उसका विरोध होता ही है। राजीव गांधी के दौर में जब कम्प्यूटर आया तो उसका भी विरोध हुआ लेकिन क्या आज हम कम्प्यूटर के बिना अपने जीवन की कल्पना भी कर सकते हैं? ऐसा ही विरोध अब इन कानूनों का हो रहा है जबकि ये कानून किसानों के लिए बहुत बड़े बाजार का दरवाज़ा और मौके खोल रहे हैं। नए प्रयोग करने को तैयार किसानों के लिए ये वरदान साबित हो सकते हैं।’

अरुण मानते हैं कि इन किसान आंदोलनों के पीछे राजनीतिक कारण ज़्यादा है। वे कहते हैं, ‘किसान अक्सर अपने नेताओं के पीछे एकजुट रहते हैं और किसान नेताओं का सीधे-सीधे राजनीतिक पार्टियों से मेल-जोल होता है। साल में अधिकतर समय किसान खाली रहते हैं इसलिए उनके पास राजनीति करने का भरपूर समय भी होता है।’

नए कानूनों से किसानों के डर को आधारहीन मानने के बावजूद भी अरुण चौहान ये जरूर मानते हैं कि एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) को लेकर किसानों की मांग जायज़ है। वे कहते हैं, ‘किसान अगर ये मांग कर रहे हैं कि एमएसपी तय करने के लिए भी क़ानून बना दिया जाए और इससे कम की खरीद को अपराध माना जाए तो ये मांग बिलकुल सही है। सरकार की मंशा जब साफ़ है तो यह लिखने में क्या बुराई है। एमएसपी का जिक्र अगर कानून में हो जाए तो इन कानूनों में कोई भी बुराई मुझे नजर नहीं आती।’



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नए कानून पर पंजाब और हरियाणा के पढ़े-लिखे किसानों की राय।


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हत्या और जान से मारने की धमकी जैसे 38 केस; संपत्ति 5 साल में ढाई गुना बढ़ी, एक करोड़ का टैक्स तो पत्नी भर रहीं

पटना जिले की मोकामा सीट। बाहुबली अनंत सिंह यहां से चार बार से विधायक हैं। 2015 में निर्दलीय लड़े थे। इस बार राजद ने उन्हें टिकट दिया है। पिछली बार भी नॉमिनेशन के वक्त वो जेल में थे और इस बार भी। जेल से कुछ समय के लिए कड़ी सुरक्षा में बाहर निकले और नामांकन दाखिल किया। उन्होंने जो एफिडेविट दाखिल किया है उसके मुताबिक उनकी संपत्ति और क्रिमिनल केस लगातार बढ़ रहे हैं।

संपत्तिः 5 साल में ढाई गुना बढ़ी संपत्ति

आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी, जो अक्सर घर के बुजुर्ग देते हैं, ‘तुम दिन दुगनी, रात चौगुनी तरक्की करो।’ अनंत सिंह पर ये कहावत सटीक बैठती है। अनंत सिंह जबसे विधायक बने हैं, तब से संपत्ति के मामले में तो उन्होंने वाकई दिन दुगनी, रात चौगुनी तरक्की की है।

2005 में अनंत सिंह ने पहली बार चुनाव लड़ा था। उस समय उनके पास 3.40 लाख रुपए की संपत्ति थी। जो 2010 में बढ़कर 38.84 लाख रुपए हो गई। 2015 में फिर बढ़कर 27.99 करोड़ रुपए हो गई और 2020 में तो और बढ़कर 68.55 करोड़ रुपए हो गई। हिसाब लगाया जाए तो 15 साल में अनंत सिंह की संपत्ति 2 हजार गुना बढ़ी है।

इतना ही नहीं पिछले दो साल से अनंत सिंह और उनकी पत्नी नीलम देवी 1 करोड़ रुपए से ज्यादा का तो इनकम टैक्स ही भर रहे हैं। 2019-20 में अनंत सिंह ने 8.86 लाख रुपए और नीलम देवी ने 1.20 करोड़ रुपए का आईटीआर फाइल किया था। जबकि 2018-19 में अनंत सिंह ने 8.39 लाख रुपए और उनकी पत्नी ने 1.01 करोड़ रुपए का टैक्स चुकाया था।

उनकी पत्नी नीलम देवी के पास 2015 में एक भी गाड़ी नहीं थी। और अब उनके पास दो एसयूवी हैं। एक 25.33 लाख रुपए की इनोवा क्रिस्टा है और एक 32.52 लाख रुपए की फॉर्च्यूनर सिग्मा। जबकि, अनंत सिंह के पास अभी भी एक स्कॉर्पियो ही है, जिसकी कीमत 6 लाख रुपए है।

हाथी-घोड़े-गाय-भैंस जैसे कई जानवर पाल रखे हैं, कीमत सिर्फ 2 लाख

अनंत सिंह को सिर्फ बाहुबल के लिए ही नहीं, बल्कि शौक के लिए भी जाना जाता है। उन्हें घोड़ों का बहुत शौक है। कहते हैं कि अगर उन्हें कोई घोड़ा पसंद आ जाए, तो उसे खरीदे बिना चैन नहीं लेते। इसको ऐसे भी समझिए कि एक बार अनंत सिंह को लालू प्रसाद का एक घोड़ा पसंद आ गया। वो उसे खरीदना तो चाहते थे, लेकिन उन्हें ये भी पता था कि लालू उन्हें ये घोड़ा नहीं बेचेंगे। तो उन्होंने किसी दूसरे से वो घोड़ा खरीदवाया और बाद में उस घोड़े पर बैठकर मेला घूमने गए।

चलिए ये तो हो गई शौक की बात। अब वापस एफिडेविट पर लौटते हैं। उनके एफिडेविट के मुताबिक, उनके पास 1.90 लाख रुपए के हाथी, घोड़े, गाय और भैंस हैं। 2015 में 1.70 लाख रुपए के हाथी-घोड़े थे।

बताया तो ये भी जाता है कि उन्होंने घर पर ही अजगर भी पाल रखे हैं। हालांकि, एफिडेविट में इसके बारे में जानकारी नहीं दी गई है।

इनके ऊपर 38 केस, इनमें मर्डर, किडनैपिंग जैसे मामले शामिल

अनंत सिंह ने 2015 में अपने ऊपर 16 क्रिमिनल केस होने की जानकारी दी थी। जबकि, इस बार उन्होंने बताया है कि उनके ऊपर 38 मामले चल रहे हैं। इनमें मर्डर, जान से मारने की धमकी देना, किडनैपिंग, हथियार रखना जैसे मामले शामिल हैं।

उनके ऊपर हत्या के 7 मामले, हत्या की कोशिश के 11 मामले, जान से मारने की धमकी देने के 9 मामले दर्ज हैं। इनके अलावा किडनैपिंग और डकैती के भी मामले चल रहे हैं। कुछ मामले आर्म्स एक्ट के तहत भी दर्ज हैं। इसके साथ ही तीन मामले आचार संहिता के उल्लंघन के भी हैं।



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Bihar Election 2020: Mokama Bahubali MLA Anant Singh Property | Anant Singh Latest News | Anant Singh Wife Neelam Devi Asset Details and Criminals Cases


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वैज्ञानिकों ने जेनेटिकली मोडिफाइड गाय बनाई, इसकी स्किन पर काले की जगह ग्रे चकत्ते विकसित किए; ये कम गर्मी अवशोषित करेंगे और इन्हें नुकसान कम होगा

जानवरों को जलवायु परिवर्तन से बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने जीन एडिटिंग का तरीका चुना है। प्रयोग गायों पर किया गया है। आमतौर पर इनके शरीर पर काले चक्कते दिखते हैं, लेकिन वैज्ञानिकों ने जीन एडिटिंग तकनीक से इसका रंग ग्रे कर दिया है। यह प्रयोग करने वाले न्यूजीलैंड के रुआकुरा रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों का दावा है कि जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ने पर तापमान बढ़ेगा। ऐसे में गायों के शरीर पर यह ग्रे रंग गर्माहट को कम अवशोषित करेगा और उन्हें नुकसान कम पहुंचेगा।

क्या है जीन एडिटिंग
जीन एडिटिंग की मदद से डीएनए में बदलाव किया जाता है। आसान भाषा में समझें, तो भ्रूण के जीन का डिफेक्टेड, गड़बड़ या गैरजरूरी हिस्सा हटा दिया जाता है ताकि अगली पीढ़ी में इसका गलत असर न दिखे। इस तकनीक की मदद से आनुवांशिक रोगों में सुधार की उम्मीद बढ़ जाती है।

ऐसे तैयार हुई जेनेटिकली मोडिफाइड गाय

वैज्ञानिकों ने लैब में बछड़े के 2 भ्रूण तैयार किए। जीन एडिटिंग के जरिए भ्रूण के जीन का वो हिस्सा हटा दिया, जो काले रंग के चकत्ते के लिए जिम्मेदार है। फिर इस भ्रूण को गाय में ट्रांसफर कर दिया। गाय ने दो बछड़ों को जन्म दिया। 4 महीने के बाद दो में से एक बछड़े की मौत हो गई। एक बछड़े के शरीर पर ग्रे रंग के चकत्ते थे।

जलवायु परिवर्तन का क्या होगा असर
वैज्ञानिकों का दावा है कि काला रंग सूर्य की रोशनी से निकली गर्माहट को अधिक अवशोषित करता है। जब सूर्य की किरणें जानवरों पर पड़ती हैं तो काले चकत्ते वाला हिस्सा इन्हें अधिक अवशोषित करता है और ये हीट स्ट्रेस का कारण बनती हैं। हीट स्ट्रेस का बुरा असर जानवरों में दूध की मात्रा और बछड़ों को पैदा करने की क्षमता पर पड़ता है।

हीट स्ट्रेस कितना खतरनाक

रिसर्च कहता है कि गर्मियों के महीने में डेयरी फार्म के जानवर 25 से 65 डिग्री फारेनहाइट तापमान तक गर्मी सहन कर लेते हैं। लेकिन जब तापमान 80 डिग्री फारेनहाइट तक पहुंच जाता है, तो हीट स्ट्रेस बढ़ जाता है। नतीजा, ये चारा खाना कम कर देते हैं। इसके कारण दूध का उत्पादन घट जाता है। हीट स्ट्रेस के कारण जानवरों की फर्टिलिटी पर भी बुरा असर पड़ता है। न्यूजीलैंड के वैज्ञानिकों की टीम इन्हीं समस्याओं का समाधान करने की कोशिश में जुटी हैं।



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नए जेनेटिकली मोडिफाइड बछड़ों में ग्रे चकत्तों के कारण हीट कम अवशोषित होगी और हीट स्ट्रेस का खतरा कम होगा।


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जब कोई मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा करता है, तो ज्यादातर भारतीय कहते हैं- आप फालतू बातें कर रहे

भारत में जिंदगी कठिन है। आपको जन्म देते समय मां को अच्छा अस्पताल पाने से लेकर, आपके स्कूल-कॉलेज में एडमिशन लेने, नौकरी पाने, घर खरीदने और बारिश में बचने से तक आम आदमी की जिंदगी बेहद कठिन है। इस वजह से हताशा, निराशा, गुस्सा, दु:खी होना, भारतीय जिंदगी का हिस्सा है।

जब कोई मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा करता है, अथवा डिप्रेशन या एंग्जायटी से जूझ रहे लोगों का ध्यान रखने की बात करता है तो अधिकांश भारतीय कहते हैं, आप फालतू बातें कर रहे हैं। इसे भारतीय ऐसे ही जिंदगी का हिस्सा समझते हैंं। फिर अगर यह समस्या भी हो तो इलाज कैसे हो? इसकी शिकायत करने वाला कमजोर, अनुपयुक्त अथवा हारने पर बहाना बनाने वाला कहलाता है।

भारत की इन भावनाओं को बिना समझे, हमारे मौजूदा मानसिक स्वास्थ्य राजदूत अपना संदेश जारी रखे हैं। वे कहते हैं, ‘मानसिक स्वास्थ्य अन्य बीमारी के ही समान हैं’ या ‘मेरे साथ दोहराओ कि डिप्रेशन हकीकत है।’ इससे भारतीय चौंक जाते हैं। उनके लिए तो बीमारी का मतलब डेंगू, टीबी, कैंसर या मधुमेह है। इसकी बड़ी वजह है कि मानसिक स्वास्थ्य के भारतीय राजदूत सिर्फ अमेरिकी मॉडल की नकल कर रहे हैं।

वे उनके स्लोगन तक इस्तेमाल करते हैं। यह भारत में नहीं चलता। यही वजह है कि सुशांत सिंह राजपूत द्वारा मनो-चिकित्सीय दवाएं लेने, उसकी समस्या का इलाज कर रहे डॉक्टरों की गवाही व डॉक्टरों की कई टीमों द्वारा उसकी मौत को आत्महत्या बताने के बावजूद पूरे मामले पर चर्चा में हम मानसिक स्वास्थ्य पर बात से इनकार कर देते हैं। इस कॉलम का उद्देश्य इस मसले पर कोई ठोस राय देना नहीं है।

बेहतर होगा कि जांच पूरा होने दी जाए। क्योंकि, सुशांत की मौत की एक राष्ट्रीय प्रतिध्वनि है, इसलिए यह मानसिक स्वास्थ्य के विस्तृत मुद्दे पर चर्चा का सही समय है। पहली बात मानसिक स्वास्थ्य महत्वपूर्ण है। डब्लूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में हर चार में से एक व्यक्ति को कभी न कभी मानसिक स्वास्थ्य की दिक्कत होती है। देश में भी सरकार प्रायोजित निमहांस के अध्ययन के मुताबिक देश में हर 10 में से एक व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य व हर 20 में एक को डिप्रेशन की शिकायत है। इसलिए भारतीयों का कहना कि हमारी दादी-नानी तो डिप्रेस नहीं होती थीं, हकीकत से मुंह चुराना है।

जिंदगी में सभी कभी न कभी परेशान, निराश या व्यग्र होते हैं। यह कोई विकार नहीं है। विकार तब होता है, जब ये भावनाएं तेज होती हैं, खत्म नहीं होतीं और जिंदगी प्रभावित होने लगती है। ऐसा तब होता है, जब ये भावनाएं हफ्तों, महीनों, सालों रहती हैं। इसकी तीव्रता और अवधि ही इसे विकार बनाती है। ऐसे लोगों पर ध्यान देने की जरूरत होती है, जिससे उन्हें मदद मिले। अधिकतर भारतीय कहते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य तो कुछ है ही नहीं। यह कहना भी गलत है कि मानसिक स्वास्थ्य की समस्या अन्य बीमारियों जैसी है।

मानसिक स्वास्थ्य की समस्या को डिसऑर्डर (विकार) कहते हैं, बीमारी नहीं। कई बार यह डिसऑर्डर ही होता है, अगर यह केवल जिंदगी की गुणवत्ता प्रभावित करे। लेकिन, अगर आप काम नहीं कर पाते, खुशी महसूस नहीं करते, घुलमिल नहीं पाते तो मदद की जरूरत हो सकती है। हालांकि अन्य बीमारियों से अलग, मानसिक स्वास्थ्य की दिक्कत में मदद कई तरीकों से आ सकती है। संक्रामक रोगों में हम एंटीबायोटिक लेकर स्वस्थ हो जाते हैं। मानसिक स्वास्थ्य समस्या के लिए ध्यान एक विकल्प है।

विशेषज्ञ थेरेपिस्ट भी मदद करते हैं। वे पता लगा सकते हैं कि इस हालत की वजह क्या है: खराब नौकरी, भारी नुकसान, कोई रिश्ता या करिअर जिससे दूर होने की जरूरत है ताकि समस्या हल हो। कई बार सिर्फ थेरेपी काम नहीं करती, तो ध्यान कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिक ध्यान अलग है। वह दिमाग की केमेस्ट्री पर काम करता है। इसलिए यह गहन निगरानी में ही हो। इलाज समय लेता है, दवा लक्षणों को मैनेज करती हैं, बीमारी को नहीं।

आप अचानक इन्हें लेना बंद नहीं कर सकते। कई दवाओं का दुरुपयोग हो सकता है, वहीं कई से आत्महत्या के विचार जैसे दुष्प्रभाव होते हैं। चर्चा के लिए यह विषय बहुत बड़ा है और मैं विशेषज्ञ भी नहीं हूं। मनोवैज्ञानिक इलाज कोई रामबाण नहीं है और इसमें खतरे भी हैं। यही बात मानसिक बीमारी के समर्थकों को बतानी चाहिए। दवा कई बार जरूरी होती है, लेकिन इसे अंतिम विकल्प के तौर पर बहुत सावधानी से लेना चाहिए।

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में मानसिक स्वास्थ्य पर एक महत्वपूर्ण चर्चा छूट गई है। कोविड-19 व आर्थिक दबाव की वजह से इससे जुड़ी समस्याओं में बढ़ोतरी होगी। जबकि हमें मानसिक स्वास्थ्य पर ऐसी स्थिति बनाने की जरूरत है, जिससे लोग खुलकर इस पर बात करें। भारत को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील बनाना सुशांत को एक बेहतर श्रद्धांजलि होगी और मुझे विश्वास है कि उन्होंने खुद इसे कभी खत्म न होने वाली साजिश की कहानियों की तुलना में ज्यादा महत्व दिया था। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



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चेतन भगत, अंग्रेजी के उपन्यासकार।


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राजनीतिक फुटबॉल बना दिया दुष्कर्म को, इसका हल नहीं ढूंढा; दुष्कर्मियों को ऐसी सजा दी जानी चाहिए, जो भावी अपराधियों की हड्डियों में कंपकंपी दौड़ा दे

हाथरस की दलित कन्या के साथ चार नर-पशुओं ने जो कुकर्म किया है, उसने निर्भया कांड के घावों को हरा कर दिया है। यह दुष्कर्म और हत्या दोनों है। मैं तो यह कहूंगा कि कई मामलों में निर्भया-कांड से भी अधिक दु:खद और भयंकर स्थिति का निर्माण हो रहा है। यदि यह कोरोना महामारी का वक्त नहीं होता तो लाखों लोग सारे देश में सड़कों पर निकल आते और सरकारों को लेने के देने पड़ जाते।

यह ठीक है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मुस्तैद किया। इसके बाद योगी ने तुरंत सारे मामले की जांच के लिए विशेष कमेटी बिठा दी, लेकिन सारे मामले में हाथरस की पुलिस और डॉक्टरों के रवैए ने सरकार की प्रतिष्ठा को भी दांव पर लगा दिया है।

14 सितंबर को अपने गांव की दलित कन्या के साथ उच्च जाति के चार नर-पशुओं ने दुष्कर्म किया, उसकी जुबान काटी और उसके दुपट्टे से उसको घसीटा। हाथरस के अस्पताल में उसका ठीक से इलाज नहीं हुआ। आखिरकार 29 सितंबर को उसने दिल्ली के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया। हाथरस की पुलिस ने लगभग एक हफ्ते तक इस जघन्य अपराध की रपट तक नहीं लिखी। फिर पुलिस ने आधी रात को उस कन्या का शव आग के हवाले कर दिया।

उसके परिजन ने इसकी कोई अनुमति नहीं दी थी और उनमें से वहां कोई उपस्थित भी नहीं था। अब यदि हाथरस के कनिष्ठ पुलिस वालों को मुअत्तिल कर दिया गया है तो यह मामूली कदम है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपेक्षा है कि वे इन पुलिसवालों पर इतनी कठोर कार्रवाई करेंगे कि वह सारे देश के पुलिसवालों के लिए एक मिसाल बन जाए। इन पुलिसवालों का अपराध दुष्कर्मियों से कम नहीं है। यह स्थिति उत्तर प्रदेश सरकार के लिए खतरा पैदा कर देगी, बल्कि सारी भाजपा सरकारों के भविष्य को भी खटाई में डाल सकती है।

सबसे शर्मनाक बात यह कि पीड़िता की डॉक्टरी जांच के बाद कहा जा रहा है कि उसके साथ दुष्कर्म के प्रमाण नहीं मिले। क्या दुष्कर्म के प्रमाण 11 दिन तक टिके रह सकते हैं? उस युवती ने खुद दुष्कर्म की बात कही और उन नर-पशुओं के नाम बताए। मरने के पहले उसने जो बयान दिया, उस पर संदेह कर रहे हैं? उसके परिवार को नजरबंद कर दिया। उनके मोबाइल पुलिसवालों ने जब्त कर लिए, ताकि वे बाहरी लोगों से बात न कर सकें।

एक टीवी चैनल की साहसी महिला पत्रकारों ने हंगामा खड़ा न किया होता तो उस दलित परिवार से शायद कोई भी नहीं मिल पाता। अब उन दुष्कर्मियों पर मुकदमा चलेगा और उसमें, हमेशा की तरह बरसों लगेंगे। जब उन्हें सजा होगी, मामले को लोग भूल जाएंगे, जैसा निर्भया के मामले में हुआ था। उन अपराधियों को मौत की सजा जरूर हुई, लेकिन वह लगभग निरर्थक रही, क्योंकि जैसे अन्य मामलों में सजा-ए-मौत होती है, वैसे ही वह भी हो गई।

लोगों को सबक क्या मिला? क्या दुष्कर्मियों के दिलों में डर पैदा हुआ? क्या उस सजा के बाद दुष्कर्म की घटनाएं देश में कम हुईं? क्या हमारी मां-बहनें पहले से अधिक सुरक्षित महसूस करने लगीं? नहीं, बिल्कुल नहीं। निर्भया के हत्यारों को चुपचाप लटका दिया गया। जंगल में ढोर नाचा, किसने देखा? इन हत्यारों, इन ढोरों को ऐसी सजा दी जानी चाहिए, जो भावी अपराधियों की हड्डियों में कंपकंपी दौड़ा दे।

अब इस दलित कन्या के दुष्कर्मियों और हत्यारों को मौत की सजा अगले एक सप्ताह में ही क्यों नहीं दी जाती? उन्हें जेल के अंदर नहीं, हाथरस के सबसे व्यस्त चौराहे पर लटकाया जाना चाहिए। उनकी लाशों को कुत्तों से घसिटवाकर जंगल में फिंकवा दिया जाना चाहिए। इस सारे दृश्य का भारत के सारे टीवी चैनलों पर जीवंत प्रसारण किया जाना चाहिए, तभी उस दलित कन्या की हत्या का प्रतिकार होगा। उसे सच्चा न्याय मिलेगा और दुष्कर्मियों की रुह कांपने लगेगी।

अभी हाथरस में हुए दुष्कर्म का खून सूखा भी नहीं है कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि प्रांतों से भी नृशंस दुष्कर्मों की नई खबरें आती जा रही हैं। हाथरस में हुए दुष्कर्म ने भारत को सारी दुनिया में बदनाम कर दिया है। लंदन के कई अंग्रेज सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजकर सख्त कार्रवाई की मांग की है।

हाथरस में विपक्षी दलों के नेता पीड़िता के परिवार से मिलने के नाम पर अपनी राजनीति गरमा रहे हैं और भाजपा के नेता या तो मौन धारण किए हुए हैं या सारे मामले को शीर्षासन कराने की कोशिश में लगे हुए हैं। कांग्रेसी यदि हाथरस में नौटंकी रचा रहे हैं तो जयपुर में भाजपाई भी करतब दिखा रहे हैं।

देश में दुष्कर्म की दर्जनों घटनाएं रोज सामने आती हैं और सैकड़ों छिपी रहती हैं। राजनीतिक दल दुष्कर्म को लेकर एक-दूसरे की सरकारों को कठघरे में खड़े करने से बाज नहीं आते, लेकिन वे इस राष्ट्रव्यापी बीमारी को जड़ से उखाड़ने की तरकीब नहीं खोजते। दुष्कर्म की बेमिसाल सजा, जैसी मैंने बताई है, उसके इलाज की उत्तम दवा है ही, लेकिन पारिवारिक संस्कार व शिक्षा में मर्यादा की सीख भी जरूरी है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



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डॉ. वेदप्रताप वैदिक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष।


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