शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

दिल्ली से अच्छी खबर, एक दिन में सिर्फ 1575 मरीज मिले, पिछले महीने यह आंकड़ा रोजाना 7 से 8 हजार था

दिल्ली में कोरोना के नए केस और इलाज करा रहे मरीजों की संख्या में बड़ी गिरावट आई है। गुरुवार को यहां सिर्फ 1575 मरीज मिले, जबकि 3307 ठीक हो गए। 61 संक्रमितों की मौत हो गई। इसके साथ ही इलाज करा रहे मरीजों की संख्या (एक्टिव केस) में 1793 की कमी आई। यहां अब कुल 18 हजार 753 एक्टिव केस हैं। पिछले महीने यह आंकड़ा 44 हजार 456 के साथ तीसरे पीक पर था।

देश में भी कोरोना के नए और एक्टिव केस हर दिन कम हो रहे हैं। गुरुवार को सिर्फ 29 हजार 338 मरीज मिले। यह लगातार 5वां दिन था जब 35 हजार से कम केस आए। इसके साथ ही 37 हजार 595 मरीज ठीक हो गए, 411 की मौत हुई। इससे एक्टिव केस घटकर 3.62 हजार हो गए। ठीक एक महीने पहले 10 नवंबर को 4.89 लाख एक्टिव केस थे।

देश में अब तक 97.97 लाख केस आ चुके हैं। इनमें से 92.90 लाख मरीज ठीक हो चुके हैं, 1.42 लाख की मौत हो चुकी है। ये आंकड़े covid19india.org से लिए गए हैं।

वैक्सीनेशन की तैयारियां तेज

  • देश में कोरोना वैक्सीनेशन प्रायरिटी ग्रुप की लिस्ट तैयार करने से लेकर कोल्ड स्टोरेज यूनिट तक युद्ध स्तर पर तैयारियां की जा रही हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली सरकार ने करीब 2 लाख सरकारी और प्राइवेट हेल्थ वर्कर्स की लिस्ट बना ली है, जिन्हें पहले फेज में कोरोना वैक्सीन दी जानी है।
  • मुंबई में करीब 1 लाख 25 हजार हेल्थ वर्कर्स को वैक्सीन देने का टारगेट है। बृहन्नमुंबई म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन (BMC) ने वैक्सीनेशन के लिए 10 लोगों की टास्क फोर्स बनाई है। करीब 3000 लोगों को वैक्सीन के ट्रांसपोर्टेशन की ट्रेनिंग दी जा रही है।
  • यूनियन होम सेक्रेटरी अजय भल्ला ने गुरुवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के DsGP और पुलिस रिप्रजेंटेटिव, होम गार्ड्स के DsGP, सिविल डिफेंस और फायर सर्विसेज के अधिकारियों के साथ बैठक की। इसमें कोरोना के वैक्सीनेशन के लिए फ्रंटलाइन वर्कर्स की जानकारी ली गई। दूसरी ओर, हेल्थ मिनिस्टर डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि कोरोना की वैक्सीन के लिए रेगुलेटरी नॉर्म्स से समझौता नहीं किया जाएगा।

कोरोना अपडेट्स

  • भारत और नेपाल गुरुवार को दिल्ली और काठमांडू के बीच दोबारा उड़ानें शुरू करने पर राजी हो गए। ये उड़ानें एयर बबल मैकेनिज्म के तहत शुरू होंगी। नेपाल में इंडियन एम्बेसी ने यह जानकारी दी। साथ ही कहा कि शेड्यूल और टिकटिंग के लिए वेबसाइट चेक करें।
  • जुलाई के बाद से भारत ने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी समेत 20 से ज्यादा देशों के साथ ऐसे एयर बबल तैयार किए हैं। इससे पहले कोरोना के कारण अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को सस्पेंड कर दिया गया था।
  • हरियाणा में अगले हफ्ते से सीनियर स्कूलों में क्लास लगना शुरू हो जाएंगी। प्रदेश सरकार ने गुरुवार को यह जानकारी दी। स्टूडेंट्स को क्लास में आने से पहले कोरोना की नेगेटिव रिपोर्ट देनी होगी। यह रिपोर्ट 72 घंटे से पुरानी नहीं होनी चाहिए।

5 राज्यों का हाल
1. दिल्ली

राजधानी दिल्ली में गुरुवार को 1575 नए मरीज मिले। 3307 लोग ठीक हुए और 61 की मौत हो गई। अब तक 6 लाख 1 हजार 150 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 18 हजार 753 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 5 लाख 72 हजार 523 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण से जान गंवाने वालों की संख्या अब 9874 हो गई है।

2. मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश में गुरुवार को 1319 केस आए, 1307 मरीज ठीक हुए और सात संक्रमितों की मौत हो गई। यहां अब तक 2.19 लाख केस आ चुके हैं। इनमें से 2.03 लाख मरीज ठीक हो चुके हैं, जबकि 3373 संक्रमितों की मौत हो चुकी है। अभी 13 हजार 226 मरीजों का इलाज चल रहा है।

3. गुजरात
राज्य में गुरुवार को 1270 नए मरीज मिले। 1465 लोग ठीक हुए और 12 की मौत हो गई। अब तक 2 लाख 24 हजार 81 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 13 हजार 720 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 2 लाख 6 हजार 226 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण से जान गंवाने वालों की संख्या अब 4135 हो गई है।

4. राजस्थान
राज्य में गुरुवार को 1592 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए। 2339 लोग ठीक हुए और 15 की मौत हो गई। संक्रमण की चपेट में अब तक 2 लाख 87 हजार 219 लोग आ चुके हैं। इनमें 19 हजार 30 मरीजों का इलाज चल रहा है। 2 लाख 65 हजार 689 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण से जान गंवाने वालों की संख्या अब 2500 हो गई है।

5. महाराष्ट्र
राज्य में गुरुवार को 3824 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए। 5008 लोग ठीक हुए और 70 की मौत हो गई। अब तक 18 लाख 68 हजार 172 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 71 हजार 910 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 17 लाख 47 हजार 199 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण से जान गंवाने वालों की संख्या अब 47 हजार 972 हो गई है।



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प्रेसिडेंट इलेक्ट बाइडेन के एडवाइडर बोले- क्रिसमस पर कोई पार्टी न करें, बर्लिन में बाजार बंद करने की तैयारी

दुनिया में कोरोना मरीजों का आंकड़ा 7.06 करोड़ के ज्यादा हो गया। 4 करोड़ 91 लाख से ज्यादा लोग ठीक हो चुके हैं। अब तक 15 लाख 87 हजार से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं। अमेरिका में बुधवार को तीन हजार लोगों की संक्रमण से मौत के बाद सरकार पर दबाव बढ़ गया है। यहां प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडेन के एडवाइजर ने लोगों से क्रिसमस पार्टियों से दूर रहने को कहा है। जर्मन सरकार भी दबाव में है। यहां मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन लोग प्रतिबंधों के लिए तैयार नहीं हैं। सरकार अब सख्त रुख अपनाने जा रही है।

इस बार क्रिसमस पार्टियां नहीं
प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडेन के टॉप कोरोनावायरस एडवाइजर ने देश के लोगों को क्रिसमस पार्टियों से दूर रहने को कहा है। बाइडेन ने कुछ दिन पहले अपनी कोरोनावायरस एडवाइजरी बोर्ड बनाया है। इसके हेड डॉक्टर माइकल ओस्टरहोम ने CNN से बातचीत में कहा- इस बार कोई क्रिसमस पार्टी नहीं होनी चाहिए। कम से कम अगले तीन से छह हफ्ते हमें बेहद सतर्क रहना होगा। थैंक्सगिविंग डे की छुट्टियों के दौरान की गई लापरवाही की सजा हम भुगत रहे हैं।

माइकल ने कहा- मेरी बात का यह मतलब बिल्कुल न निकालें की कोरोना तीन से छह हफ्ते में खत्म हो जाएगा। मैं सिर्फ आगाह कर रहा हूं कि मामले और नुकसान इस दौरान बढ़ सकता है। वैक्सीन कब और कैसे मिलेगी, यह कुछ दिन में साफ हो जाएगा। लेकिन, आम लोगों को बड़े पैमाने पर यह मार्च या अप्रैल में मिल पाएगी। हेल्थ केयर वर्कर्स और नर्सिंग होम को यह पहले दी जाएगी। मैं बस इतना चाहता हूं कि अमेरिकी सोशल डिस्टेंसिंग रखें और मास्क पहनें। देश में कोई क्रिसमस पार्टी नहीं होनी चाहिए।

थैंक्सगिविंग डे भारी पड़ा
अमेरिका में बुधवार को एक दिन में सबसे ज्यादा 3260 मौतें हुईं। यह महामारी शुरू होने के बाद का एक दिन में हुई मौतों का सबसे बड़ा आंकड़ा है। इसकी मुख्य वजह पिछले हफ्ते खत्म हुई थैंक्सगिविंग डे की छुट्टियां हैं। इस दौरान लाखों लोग यात्रा पर निकले। खूब पार्टियां और सोशल गैदरिंग हुई। सरकार की वार्निंग को लोगों ने नजरअंदाज कर दिया। मामले भी बढ़े और मौतें भी।

फ्रांस की राह पर चलेगा जर्मनी
फ्रांस ने 6 हफ्ते के सख्त लॉकडाउन के बाद हालात संभाले और दो हफ्ते पहले जहां हर दिन 50 हजार से ज्यादा मामले सामने आ रहे थे, इन्हें 10 या 11 हजार तक सीमित कर लिया। लोगों ने सरकार का सहयोग भी किया। अब जर्मनी की एंजेला मर्केल सरकार बर्लिन से पाबंदियों की शुरुआत करने जा रही है। यहां आज या कल में सभी दुकानें यानी बाजार बंद किए जा सकते हैं। स्कूलों की छुट्टियां बढ़ाई जा सकती हैं। मेयर माइकल मुलर ने इसकी पुष्टि की है। माना जा रहा है कि शुरुआत में प्रतिबंध दो हफ्ते के लिए लगाए जाएंगे। सरकार लॉकडाउन शब्द से परहेज कर रही है।

ब्राजील में हकीकत कुछ और
WHO ने तमाम देशों से संक्रमण को रोकने के लिए सख्त उपाय करने को कहा है। ब्राजील में सरकार गाइडलाइन्स का पालन कराने में नाकाम रही है। हालात यह हैं कि बुधवार को यहां 53 हजार 453 मामले दर्ज किए गए। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि ये तो वे आंकड़े हैं जो सामने आए हैं। हकीकत में संख्या इससे काफी ज्यादा हो सकती है। देश में अब तक कुल 6 लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। 1.78 लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं।

कोरोना प्रभावित टॉप-10 देशों में हालात

देश

संक्रमित मौतें ठीक हुए
अमेरिका 16,039,393 299,692 9,330,865
भारत 9,796,992 142,222 9,290,188
ब्राजील 6,783,543 179,801 5,931,777
रूस 2,569,126 45,280 2,033,669
फ्रांस 2,337,966 56,940 174,658
इटली 17,70,149 61,240 9,58,629
यूके 1,787,783 63,082 उपलब्ध नहीं
स्पेन 17,15,700 46,646 उपलब्ध नहीं
अर्जेंटीना 14,69,919 40,009 13,05,587
कोलंबिया 13,84,610 38,158 12,78,326

(आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं)



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अमेरिका के एल पासो में बुधवार को कोविड-19 से संक्रमण से एक व्यक्ति की मौत हो गई। उसका एक रिश्तेदार उसे अंतिम विदाई देता हुआ।


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दिल्ली से अच्छी खबर, एक दिन में सिर्फ 1575 मरीज मिले, पिछले महीने यह आंकड़ा रोजाना 7 से 8 हजार था

दिल्ली में कोरोना के नए केस और इलाज करा रहे मरीजों की संख्या में बड़ी गिरावट आई है। गुरुवार को यहां सिर्फ 1575 मरीज मिले, जबकि 3307 ठीक हो गए। 61 संक्रमितों की मौत हो गई। इसके साथ ही इलाज करा रहे मरीजों की संख्या (एक्टिव केस) में 1793 की कमी आई। यहां अब कुल 18 हजार 753 एक्टिव केस हैं। पिछले महीने यह आंकड़ा 44 हजार 456 के साथ तीसरे पीक पर था।

देश में भी कोरोना के नए और एक्टिव केस हर दिन कम हो रहे हैं। गुरुवार को सिर्फ 29 हजार 338 मरीज मिले। यह लगातार 5वां दिन था जब 35 हजार से कम केस आए। इसके साथ ही 37 हजार 595 मरीज ठीक हो गए, 411 की मौत हुई। इससे एक्टिव केस घटकर 3.62 हजार हो गए। ठीक एक महीने पहले 10 नवंबर को 4.89 लाख एक्टिव केस थे।

देश में अब तक 97.97 लाख केस आ चुके हैं। इनमें से 92.90 लाख मरीज ठीक हो चुके हैं, 1.42 लाख की मौत हो चुकी है। ये आंकड़े covid19india.org से लिए गए हैं।

वैक्सीनेशन की तैयारियां तेज

  • देश में कोरोना वैक्सीनेशन प्रायरिटी ग्रुप की लिस्ट तैयार करने से लेकर कोल्ड स्टोरेज यूनिट तक युद्ध स्तर पर तैयारियां की जा रही हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली सरकार ने करीब 2 लाख सरकारी और प्राइवेट हेल्थ वर्कर्स की लिस्ट बना ली है, जिन्हें पहले फेज में कोरोना वैक्सीन दी जानी है।
  • मुंबई में करीब 1 लाख 25 हजार हेल्थ वर्कर्स को वैक्सीन देने का टारगेट है। बृहन्नमुंबई म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन (BMC) ने वैक्सीनेशन के लिए 10 लोगों की टास्क फोर्स बनाई है। करीब 3000 लोगों को वैक्सीन के ट्रांसपोर्टेशन की ट्रेनिंग दी जा रही है।
  • यूनियन होम सेक्रेटरी अजय भल्ला ने गुरुवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के DsGP और पुलिस रिप्रजेंटेटिव, होम गार्ड्स के DsGP, सिविल डिफेंस और फायर सर्विसेज के अधिकारियों के साथ बैठक की। इसमें कोरोना के वैक्सीनेशन के लिए फ्रंटलाइन वर्कर्स की जानकारी ली गई। दूसरी ओर, हेल्थ मिनिस्टर डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि कोरोना की वैक्सीन के लिए रेगुलेटरी नॉर्म्स से समझौता नहीं किया जाएगा।

कोरोना अपडेट्स

  • भारत और नेपाल गुरुवार को दिल्ली और काठमांडू के बीच दोबारा उड़ानें शुरू करने पर राजी हो गए। ये उड़ानें एयर बबल मैकेनिज्म के तहत शुरू होंगी। नेपाल में इंडियन एम्बेसी ने यह जानकारी दी। साथ ही कहा कि शेड्यूल और टिकटिंग के लिए वेबसाइट चेक करें।
  • जुलाई के बाद से भारत ने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी समेत 20 से ज्यादा देशों के साथ ऐसे एयर बबल तैयार किए हैं। इससे पहले कोरोना के कारण अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को सस्पेंड कर दिया गया था।
  • हरियाणा में अगले हफ्ते से सीनियर स्कूलों में क्लास लगना शुरू हो जाएंगी। प्रदेश सरकार ने गुरुवार को यह जानकारी दी। स्टूडेंट्स को क्लास में आने से पहले कोरोना की नेगेटिव रिपोर्ट देनी होगी। यह रिपोर्ट 72 घंटे से पुरानी नहीं होनी चाहिए।

5 राज्यों का हाल
1. दिल्ली

राजधानी दिल्ली में गुरुवार को 1575 नए मरीज मिले। 3307 लोग ठीक हुए और 61 की मौत हो गई। अब तक 6 लाख 1 हजार 150 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 18 हजार 753 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 5 लाख 72 हजार 523 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण से जान गंवाने वालों की संख्या अब 9874 हो गई है।

2. मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश में गुरुवार को 1319 केस आए, 1307 मरीज ठीक हुए और सात संक्रमितों की मौत हो गई। यहां अब तक 2.19 लाख केस आ चुके हैं। इनमें से 2.03 लाख मरीज ठीक हो चुके हैं, जबकि 3373 संक्रमितों की मौत हो चुकी है। अभी 13 हजार 226 मरीजों का इलाज चल रहा है।

3. गुजरात
राज्य में गुरुवार को 1270 नए मरीज मिले। 1465 लोग ठीक हुए और 12 की मौत हो गई। अब तक 2 लाख 24 हजार 81 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 13 हजार 720 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 2 लाख 6 हजार 226 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण से जान गंवाने वालों की संख्या अब 4135 हो गई है।

4. राजस्थान
राज्य में गुरुवार को 1592 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए। 2339 लोग ठीक हुए और 15 की मौत हो गई। संक्रमण की चपेट में अब तक 2 लाख 87 हजार 219 लोग आ चुके हैं। इनमें 19 हजार 30 मरीजों का इलाज चल रहा है। 2 लाख 65 हजार 689 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण से जान गंवाने वालों की संख्या अब 2500 हो गई है।

5. महाराष्ट्र
राज्य में गुरुवार को 3824 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए। 5008 लोग ठीक हुए और 70 की मौत हो गई। अब तक 18 लाख 68 हजार 172 लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 71 हजार 910 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 17 लाख 47 हजार 199 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण से जान गंवाने वालों की संख्या अब 47 हजार 972 हो गई है।



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किसानों का नया ऐलान- मांगें पूरी नहीं हुईं तो देशभर में ट्रेनें रोकेंगे, तारीख जल्द बताएंगे

नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन का आज 16वां दिन है। किसान नेता बूटा सिंह ने गुरूवार को कहा कि कानून रद्द करने को लेकर अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ, इसलिए जल्द ट्रेनें रोकने की तारीख का ऐलान करेंगे। किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि खेती राज्यों का विषय है, तो केंद्र इस पर कानून कैसे ला सकता है।

रेलवे ने पंजाब जाने वाली 4 ट्रेनें रद्द कीं
आज सियालदह-अमृतसर और डिब्रूगढ़-अमृतसर ट्रेनें रद्द की गई हैं। 13 दिसंबर को अमृतसर-सियालदह और अमृतसर-डिब्रूगढ़ ट्रेनें कैंसिल की गई हैं।

'भगवान जाने कब हल निकलेगा'
किसान नेता शिवकुमार कक्का से पूछा गया कि हल कब निकलेगा तो उन्होंने कहा, "भगवान जाने कब ऐसा होगा। सर्दी और कोरोना के चलते हमें काफी दिक्कतें आ रही हैं, लेकिन मांगें पूरी होने तक आंदोलन जारी रखेंगे।

सरकार और किसान बातचीत को राजी, दोनों को पहल का इंतजार
दोनों पक्षों को एक-दूसरे की पहल का इंतजार है। कृषि मंत्री ने कहा कि जब बातचीत हो रही है तो आंदोलन को बढ़ाने का ऐलान ठीक नहीं। उधर, किसानों का कहना है कि बातचीत का रास्ता बंद नहीं किया है, सरकार के दूसरे प्रपोजल पर विचार करेंगे।

कृषि मंत्री बोले- सरकार सुधार के लिए तैयार, किसान फैसला नहीं कर पा रहे
केंद्र ने किसानों को साफ संकेत दे दिए हैं कि कृषि कानूनों की वापसी मुश्किल है। अगर कोई चिंता है तो सरकार बातचीत और सुधार के लिए हमेशा तैयार है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि हमने किसानों से कई दौर की बातचीत की। उनके हर सवाल का जवाब लिखित में भी दिया, लेकिन किसान अभी फैसला नहीं कर पा रहे हैं और ये चिंता की बात है।

आंदोलन के बीच कोरोना का खतरा
किसान आंदोलन के बीच सिंघु बॉर्डर पर ड्यूटी कर रहे 2 IPS कोरोना पॉजिटिव आए हैं। इनके अलावा एक DCP और एक एडिशनल DCP भी संक्रमित हो गए हैं।



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नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। फोटो कुंडली बॉर्डर की है।


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घर-परिवार के साथ रहते हुए भी कर सकते हैं भक्ति, परिवार को त्याग कर पूजा-पाठ करना सही नहीं है

कहानी- बात उस समय की है जब ब्रह्माजी ने मनु और शतरूपा को पैदा किया था। ये दोनों ही इंसानों के सबसे पहले माता-पिता माने गए हैं। ब्रह्माजी ने इन्हें प्रकट ही इसलिए किया था, ताकि इनके मिलन से संतान का जन्म हो और सृष्टि आगे बढ़े।

इस सृष्टि की पहली पांच संतानें मनु और शतरूपा से ही पैदा हुई थीं। इनमें आकुति, प्रसुति और देवहुति, ये तीन लड़कियां थीं। दो बेटे थे उत्तानपाद और प्रियव्रत।

देवहुति का विवाह कर्दम ऋषि से हुआ था। इस विवाह से पहले कर्दम ऋषि तप कर रहे थे। तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए। ब्रह्माजी ने कहा, 'तुम क्या वर मांगना चाहते हो?'

कर्दम ऋषि बोले, 'वैसे तो मैं आश्रम में रहता हूं, लेकिन क्या मैं घर बसा सकता हूं?'

ब्रह्माजी ने कहा, 'हां, तुम्हें घर जरूर बसाना चाहिए। तुम्हारे जीवन में एक स्त्री आएगी तो तुम्हारा परिवार आगे बढ़ेगा। तुम्हारा तुम धर्म-कर्म का प्रसार करना चाहते हो और परमात्मा को पाना चाहते हो। भगवान को घर-गृहस्थी बहुत प्रिय है। वे ऐसे लोगों से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं जो परिवार में रहते हुए भक्ति करते हैं।'

सीख- परिवार का पालन करते हुए, दुनिया के सभी अच्छे काम करना चाहिए। भगवान भी ऐसे लोगों पर कृपा बरसाते हैं जो अच्छे करने वाले लोग ही प्रिय हैं। परिवार त्यागकर सिर्फ भक्ति करना सही नहीं है।



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motivational story of manu and shatrupa, aaj ka jeevan mantra by pandit vijayshankar mehta, life management tips


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किसानों पर लाठीचार्ज की घटना ने आम किसान के मन में यह भाव जगा दिया था कि सरकार उनकी बात सुनने को तैयार नहीं

सभी संगठन चाहे वो सरकार हो, कोई निजी व्यवसाय हो या छोटा व्यवसायी, सभी को अपने सपनों को हकीकत में बदलने के लिए प्लानिंग की जरूरत होती है। इसलिए जब वे प्लानिंग करते हैं तो तय करते हैं कि क्या करना है, कैसे करना है और कब करना है। यही तरीका प्रदर्शन करने वाले संगठनों पर भी लागू होता है, यदि उन्हें बड़ी संख्या में समर्थकों के साथ लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन जारी रखना है। जैसा कि दिल्ली के नजदीक सिंघु बॉर्डर पर पिछले 15 दिनों से चल रहा है।

यदि इतने बड़े विरोध प्रदर्शन में हर कोई एक ही स्वर में वही बात दोहरा रहा है बगैर एक भी शब्द बदले तो ये बिलकुल स्पष्ट है कि शीर्ष से नीचे तक संवाद है, जिसमें एक 12 वर्षीय बच्चे से लेकर गृहिणी तक शामिल है। और इस संवाद में निश्चित रूप से दो भावनाएं थीं- ‘डर और उम्मीद’। अपनी जमीन हमेशा के लिए खोने का डर और इसे भविष्य की नस्लों के लिए बचाए रखने की उम्मीद।

दैनिक भास्कर ने एक शीर्षस्थ व्यक्ति से पंजाब के सभी 12,600 गांवों में रहने वाले हजारों-हजार लोगों तक पहुंचने वाले इस संवाद के प्रवाह के चार्ट और इस लक्ष्य को हासिल करने में लगे समय का पता लगाने का फैसला किया।

प्रदर्शनों की शुरुआत 90 दिनों पहले तब हुई, जब हरियाणा के पीपली में नए कानूनों का विरोध कर रहे किसानों पर लाठीचार्ज हुआ। इस घटना ने आम किसान के मन में यह भावना जगा दी कि सरकार उनकी बात सुनने के लिए तैयार नहीं है। इस अंडर-करंट को मुखर रूप से मध्यम और ब्लॉक स्तर के नेताओं ने महसूस किया।

क्योंकि, हर परिवार से कम से कम एक सदस्य किसी न किसी तरह खेती से जुड़ा हुआ है। फिर इन लोगों ने एक जागरूकता कार्यक्रम चलाकर हर ग्रामीण का समर्थन जुटाने का फैसला किया। और यहीं से असल प्लानिंग शुरू हुई कि क्या बोलना है? कैसे बोलना है? और कब बोलना है? लगभग सभी 31 संगठन जो कि समाज के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं, यूनाइटेड फार्मर्स फ्रंट यानी संयुक्त किसान मोर्चा के एक झंडे तले जमा हुए।

थोड़े ही समय में पेट्रोल पंप मालिक संघ, बार एसोसिएशन, शिक्षक संघ, डेयरी एसोसिएशन और पूर्व-सैनिक संघ जैसे सैकड़ों छोटे-बड़े संगठन इनके समर्थन में आ गए। हर पांच ब्लॉक के लिए जिला अध्यक्ष का पद बनाया। हर ब्लॉक में कई समितियां थीं। हर समिति में पांच सदस्य थे और हर समिति को 150 ग्रामीणों की जिम्मेदारी दी गई।

इसके हर गांव से कुशल वक्ताओं की पहचान की गई और उनके सहयोग के लिए कुछ और सदस्य जोड़े। इन लोगों को घर-घर जाकर बैठकर संदेश देने के लिए कहा गया। इन संवादवाहकों ने हर घर से एक व्यक्ति को चुना और उसके भीतर ‘डर और उम्मीद’ की भाषा का संचार किया।

दूसरे राज्यों से आने वाले नियमित प्रवासी मजदूर, भू-स्वामी, छोटे व्यवसायी और खासतौर पर सप्लाई चेन के भूमिहीन खेत मजदूरों को बताया गया कि किस प्रकार नए कानूनों की वजह से अर्थव्यवस्था में ठहराव आएगा और उनकी दैनिक मजदूरी खत्म हो जाएगी।

इसके अलावा इस सामूहिक उद्देश्य के लिए हर घर से कम से कम एक व्यक्ति को भेजने और हर गांव से कम से कम एक ट्रैक्टर देने को कहा गया। इसके बाद अलग-अलग स्तरों पर वॉट्सऐप ग्रुप बनाए गए, जिनके जरिए रोजाना वीडियो के साथ जानकारियों का आदान-प्रदान किया गया। इस प्रकार जीवन के हर क्षेत्र से जुड़ा व्यक्ति एक ही भाषा बोलने लगा।

जब पंजाब में आंदोलन की शुरुआत हुई, संवाद की ये रणनीति अपने पूरे शबाब पर थी और नेताओं ने महसूस किया कि उनकी ‘भाषा’ अंतिम आदमी तक पहुंच गई है। यह वह समय था जब राज्य स्तरीय प्रदर्शन दो माह में भी केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित नहीं कर पाया था।

तब सभी संगठनों के नेता एकमत से इस बात के लिए सहमत हुए कि उन्हें केंद्र सरकार का ध्यान अपनी मांगों की तरफ आकर्षित करने के लिए दिल्ली की तरफ कूच करना चाहिए, और इसकी तारीख तय हो गई। इसलिए, जब गुरुवार को हड़ताल अपने 15 वें दिन पर पहुंची तो न केवल विरोध प्रदर्शन का आकार बढ़ गया, बल्कि इसे सबसे लंबा हाईवे प्रदर्शन बनाने के लिए आते जा रहे लोग भी एक जैसी भाषा बोल रहे हैं।

युवाओं को संगीत से लुभाया

आम भाषा में या व्यंगात्मक शैली में पंजाबी युवाओं को ऐसे समूह के रूप में संदर्भित किया जाता है जिन्हें केवल दो चीजें आती हैं- खाना और नाचना। यह उनकी सांस्कृतिक पहचान है। चाहे इसे उनकी कमजोरी कहें या फिर जीने का तरीका। आप उनके दिल से संगीत अलग नहीं कर सकते।

और यही कारण है कि प्रदर्शनकारियों ने हिम्मत संधू, कंवर ग्रेवाल, जस भाजवा और मनमोहन वारिस जैसे म्यूजिक इंडस्ट्री से जुड़े गायकों से संपर्क साधा, जो युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय थे। क्रांतिकारी गीत लिखने के लिए खासतौर पर गीतकारों को नियुक्त किया गया।

चूंकि इतिहास दावा करता है कि पंजाब ने 18 से ज्यादा बार दिल्ली को जीता है, तो हर गीत में ‘दिल्ली’ शब्द था, जिससे किसान नेताओं का लगता था कि वह युवाओं की भावनाओं को जगा देगा। तो जब ‘किते कही वाले मोडे ते बंदूक ना आ जे, एन्ना दिल्लीए तू खयाल कर लईं (हल वाले कंधे पर बंदूक ना आ जाए, दिल्ली तू इसका ध्यान रखना) जैसे गीत जब लाउडस्पीकर पर बजाए जाते हैं तो एनएच-44 पर खड़े युवा इसके सुर में सुर मिलाने लगते हैं।

और जब ‘लैके मुड़ांगे पंजाब असीं हक दिल्लीए’ (हम अपना हक लेकर ही पंजाब वापस जाएंगे ऐ दिल्ली) जैसे गीत बजते हैं तो हर युवा अपनी छाती ठोकने लगता है। प्रदर्शनकारियों ने युवाओं को लगातार मोटिवेट करने के लिए नए-नए गीत बनाने और ऊंचे सुरों में बजाने जारी रखे हैं। इनके बोलों में प्रदर्शन की रोजमर्रा के घटनाक्रम की भी जानकारी दी जा रही है।

(मनीषा भल्ला के इनपुट के साथ)



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90 days ago when the incident of lathi charge on farmers protesting against the new laws in Haryana aroused the feeling of the common farmer that the government was not ready to listen to him.


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किसान कहते हैं- अब लोकतंत्र का मतलब कॉर्पोरेट का राज, कॉर्पोरेट के द्वारा, कॉर्पोरेट के लिए हो गया

केंद्र से आया प्रस्ताव ठुकराने के साथ ही किसानों ने अदाणी-अंबानी के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है। ‘अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति’ की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि वे ‘सरकार की असली मजबूरी, अदाणी-अंबानी जमाखोरी’ जैसे नारों को अब जन-जन तक पहुंचाने का काम करेंगे और इन दोनों कॉर्पोरेट घरानों के तमाम प्रोडक्ट्स का बॉयकॉट पूरे देश में किया जाएगा।

ये पहली बार नहीं है, जब इस किसान आंदोलन में ये दोनों कॉर्पोरेट घराने प्रदर्शनकारियों के निशाने पर आए हैं। करीब तीन महीने पहले जब यह आंदोलन पंजाब और हरियाणा तक सीमित था, तब भी सरकार के साथ ही अदाणी-अंबानी ग्रुप के खिलाफ प्रदर्शन जारी ही चुके थे। प्रधानमंत्री मोदी पर सीधा निशाना साधते हुए ‘धर्म दा न साइंस दा, मोदी है रिलायंस दा’ जैसे नारे तब भी पंजाब के अलग-अलग शहरों में खूब गूंज रहे थे।

पंजाबी में कहे गए इस नारे का मतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी न तो धर्म से सरोकार रखते हैं और न ही विज्ञान से, वे सिर्फ रिलायंस (कॉर्पोरेट) से सरोकार रखते हैं।

इस नारे के साथ ही सोशल मीडिया से लेकर पंजाब की सड़कों पर भी जो इसी तरह का दूसरा नारा खूब चर्चित हो रहा था, उसमें काफी रचनात्मक तरीके से कहा गया था कि मौजूदा सरकार को सिर्फ एक ही सरगम सुनाई देती है जो कहती है, ‘सा रा ध न अं बा नी का, ध न सा रा अ दा णी का’

किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी और डॉक्टर दर्शन पाल इस आंदोलन के प्रमुख चेहरे हैं।

'सरकार पूरे देश को कॉर्पोरेट के हवाले करने की दिशा में काम कर रही है'

इन दोनों कॉर्पोरेट घरानों का ये विरोध सिर्फ नारों और सोशल मीडिया तक ही सीमित नहीं रहा है बल्कि पंजाब के कई शहरों में प्रदर्शनकारियों ने रिलायंस के पेट्रोल पंप से रिलायंस के तमाम स्टोर्स और अडानी ग्रुप के एग्रो आउटलेट्स का बहिष्कार किया है, मुकेश अंबानी के पुतले जलाए हैं और भारी संख्या में जियो के सिम तोड़े हैं और अपने नंबर किसी अन्य नेटवर्क में पोर्ट करवाए हैं। इसी तरह के विरोध को अब पूरे देश में फैलाने की बात किसान कर रहे हैं।

ऐसे में सवाल उठता है कि किसान तमाम कॉर्पोरेट घरानों में से सिर्फ अदाणी और अंबानी ग्रुप को ही निशाना क्यों बना रहे हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए किसान नेता डॉक्टर दर्शन पाल कहते हैं, ‘ये सरकार पूरे देश को कॉर्पोरेट के हवाले करने की दिशा में काम कर रही है। अदाणी-अंबानी कॉर्पोरेट के सबसे बड़े चेहरे हैं जो पिछले थोड़े ही समय में बहुत तेजी से आगे बढ़े हैं और मुख्य कारण यही है कि राज सत्ता और पूंजी साथ-साथ चल रहे हैं। ये दोनों ही ग्रुप मौजूदा सत्ता के बेहद करीब हैं और ये किसी से छिपा नहीं है।

इसके अलावा इन दोनों घरानों का नाम प्रतीकात्मक रूप से भी इस्तेमाल होता है। हमने इनके अलावा अन्य कॉर्पोरेट घरानों का भी विरोध किया है जिसमें Essar ग्रुप जैसे नाम भी हैं। उनके पेट्रोल पंप का भी बहिष्कार पंजाब में हुआ है। ये विरोध किसी व्यक्ति या एक-दो कॉर्पोरेट घरानों का नहीं बल्कि पूरे कॉर्पोरेट के हवाले जाते संसाधनों का विरोध है। इसलिए हमने सबसे से मांग की है कि कॉर्पोरेट घरानों के तमाम उत्पादों और सेवाओं का बहिष्कार किया जाए।’

प्रदर्शनकारियाें का कहना है 'जिन्हें लगता है किसान आतंकवादी हैं वो अपना खाना खुद ही उगाएं।'

‘जो भी जनता का शोषण कर रहा है हम उसके खिलाफ हैं’

किसानों के दूसरे बड़े नेता गुरनाम सिंह चढूनी अदाणी-अंबानी के खिलाफ विरोध तेज किए जाने के बारे में कुछ और कारण भी गिनाते हैं। वे कहते हैं, ‘इस देश में पहले लोकतंत्र का मतलब होता था लोगों का राज, लोगों के द्वारा, लोगों के लिए। अब ये हो गया है कॉर्पोरेट का राज, कॉर्पोरेट के द्वारा, कॉर्पोरेट के लिए। इस तरह से एक आदमी या चंद लोग ही पूरे देश को हड़प रहे हैं और इसी के खिलाफ हमारा विरोध प्रदर्शन है।’

चढूनी मानते हैं कि अदाणी-अंबानी का नाम मुख्यत: प्रतीक के तौर पर लिया जा रहा है क्योंकि वे इस दौर में कॉर्पोरेट के सबसे बड़े चेहरे हैं। वे कहते हैं, ‘हमारी किसी से व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है। ये आंदोलन बस जनता बनाम कॉर्पोरेट का है और जो भी जनता का शोषण कर रहा है हम उसके खिलाफ हैं।’

किसान नेता डॉक्टर दर्शन पाल और गुरनाम सिंह चढूनी दोनों ही अदाणी और अंबानी ग्रुप के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को प्रतीकात्मक बताते हैं। लेकिन इस आंदोलन के एक अन्य बड़े किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल मानते हैं कि अडानी-अंबानी के विरोध के कई कारण और भी हैं। वे कहते हैं, ‘विरोध में अडानी-अंबानी का ही नाम इसलिए आ रहा है क्योंकि असल में ये सरकार हो वही दोनों चला रहे हैं।

आप बहुत बारीकी में न भी जाएं तो भी देखें कि आज तेल का सेक्टर अंबानी के पास है, संचार उनके पास है, डिफेंस उनके पास है और उनके मुकाबले कोई दूसरा नहीं है। इसी तरह से कोयला अदाणी के पास है, रेलवे में अदाणी लगातार मजबूत हो रहा है, एयरपोर्ट उन्हें मिल रहे हैं. एक-एक करके सारे सेक्टर इन्हीं के पास जा रहे हैं और यही दोनों सरकार को निर्देश देते हैं। सरकार इन्हीं के हिसाब से चलती है इसलिए हमने इन दोनों के खिलाफ ऐसे फैसले लिए हैं।’

अदाणी और अंबानी ग्रुप का पूरी तरह बहिष्कार करने के पीछे कुछ अन्य कारण बताते हुए बलबीर राजेवाल कहते हैं, ‘लोगों को कॉर्पोरेट का ये खेल भी समझना होगा। नेता, अफसर और कॉर्पोरेट मिलकर सारे देश को लूट रहे हैं। इनका अपना पैसा कुछ नहीं होता।

अदाणी और अंबानी जैसे घराने कंपनी फ्लोट करते हैं और हजारों-करोड़ की पब्लिक मनी जमा कर लेते हैं, उसी पूंजी के आधार पर फिर बैंक से करोड़ों का लोन उठाते हैं और फिर उसे चुकाने से मुकर जाते हैं जो पैसा डूबता है वो जनता का है। फिर ये लोन एनपीए घोषित हो जाता है, बैंक को बचाने के लिए सरकार को खर्च करती है वो सारा जनता का पैसा होता है।

ये लड़ाई इसलिए सिर्फ किसानों की नहीं, कॉर्पोरेट के इस चंगुल से पूरे देश को बचाने की लड़ाई है।’



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किसान आंदोलन में ऐसे पोस्टर्स के जरिए किसान प्रधानमंत्री की जगह अब सीधे अंबानी-अडानी से अपील कर रहे हैं।


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सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने नौकरी न मिलने पर घर-घर फल और सब्जी पहुंचाने के लिए शुरू किया शॉप ऑन व्हील

जम्मू के रहने वाले 26 वर्षीय अताउल्लाह बुखारी ने सॉफ्टवेयर इंजीनियर की पढ़ाई की। फिर नौकरी नहीं मिली तो सब्जी और फल बेचने का काम शुरू किया। मगर तरीका बिलकुल नया और हाईटेक था। नतीजा ये रहा कि कम समय में ही अताउल्लाह का स्टार्टअप शॉप ऑन व्हील चर्चित हो गया।

जम्मू के राजौरी जिले के अताउल्लाह का परिवार जम्मू शहर के बठिंडी इलाके में ही रहता है। वह चंडीगढ़ पढ़ाई करने गए, सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनकर लौटे भी मगर कोई खास नौकरी जम्मू में नहीं मिली। तो सोचा कि बाहर जाकर नौकरी तलाश की जाए लेकिन कोरोना ने घर पर ही बैठा दिया। अताउल्लाह के पास न तो नौकरी थी और नौकरी ढूंढने के ऑप्शन। एक दिन अचानक ख्याल आया कि कुछ अपना काम ही शुरू किया जाए।

काम शुरू करने से पहले अताउल्लाह ने नौकरी ढूंढ रहे अपने दो दोस्तों को भी साथ लिया।

अताउल्लाह कहते हैं, ‘जैसे ही अनलॉक हुआ मैंने एक थ्री व्हीलर ऑटो फाइनेंस कराया और उसको ‘शॉप ऑन व्हील’ की तरह डिजाइन करवाया। इतना तो तय था के इन दिनों लोगों को अगर घर बैठे हाइजेनिक तौर पर साफ- सुथरी और अच्छी क्वालिटी की सब्जियां और फल मिलेंगे तो वह जरूर खरीदेंगे। इसलिए मैंने एक एक वेबसाइट www.flyekart.com डिजाइन की।

सितम्बर में काम शुरू करने से पहले दो पढ़े-लिखे मगर रोजगार की तलाश कर रहे दोस्त अब्दुल मतीन और आमिर निसार से बात की तो वो भी साथ काम करने के लिए तैयार हो गए। हम तीनों ने तय किया के चाहे सब्जी महंगी मिले या कम बिके लेकिन हम क्वालिटी से कोई समझौता नहीं करेंगे।

शुरुआत में हमने जम्मू की मशहूर नरवाल मंडी से फल-सब्जियां खरीदकर, कम दाम पर लोगों के घरों तक अच्छी फल-सब्जी पहुंचानी शुरू की। आज हम जम्मू के करीब 100 घरों को ऑनलाइन और वॉट्सऐप ऑर्डर के जरिए सब्जी दे रहे हैं। इसके अलावा हम जम्मू के कई रिहायशी इलाकों और सोसाइटी में जाकर भी फल-सब्जी बेच रहे हैं।'

अताउल्लाह कहते हैं 'हम अभी इस काम में नए हैं तो प्रॉफिट से अधिक लोगों का सेटिस्फेक्शन जरूरी है।'

अताउल्लाह कहते हैं कि उन्होंने आगे की भी प्लानिंग की है। अब वो कई किसानों से भी बात कर रहे हैं ताकि ऑर्गेनिक सब्जियां भी खरीदकर बेच सकें। वहीं जैसे-जैसे डिमांड बढ़ रही है उसके मुताबिक कुछ और लोडिंग कैरियर खरीदकर उसे शॉप ऑन व्हील की तर्ज कर तैयार करके मार्केट में उतारेंगे और धीरे-धीरे इस कॉन्सेप्ट को जम्मू-कश्मीर के अन्य जिलों तक भी लेकर जाएंगे।

अताउल्लाह बताते हैं ‘हम लोगों ने दो लाख रुपए में लोडिंग कैरियर फाइनेंस करवाया और फिर बाकी कुछ खर्च उसकी डिजाइनिंग पर किया। इसके बाद हमने काम शुरू किया तो प्रॉफिट होने लगा। हालांकि हम अभी इस काम में नए हैं तो प्रॉफिट से अधिक लोगों का सेटिस्फेक्शन जरूरी है। हमारी कोशिश है कि इस काम को और आगे लेकर जाएं और अपना अलग मुकाम बनाएं।



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आज अताउल्लाह जम्मू के करीब 100 घरों को ऑनलाइन और व्हाट्सएप ऑर्डर के जरिए सब्जी पहुंचा रहे हैं।


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हाथ में लट्ठ, दिल में हौसला, लड़कियां ऐसे बना रहीं अपनी जगह, बोलीं- सड़क खामोश थी तो संसद आवारा हो गई

सिंघु बॉर्डर पर हाथ में डंडा लिए एक युवती तेज कदमों से चले जा रही है। ये मुक्तसर से आई नवदीप कौर हैं जो अपने समूह के साथ प्रदर्शन में शामिल हैं। कई बार वो डंडा लेकर पुलिस और किसानों के बीच बैरीकेड पर खड़ी हो जाती हैं।

नवदीप से जब मैंने पूछा कि हाथ में लट्ठ क्यों पकड़ा है तो वो कहती हैं, 'जब लड़के लट्ठ उठाते हैं तो कोई सवाल नहीं पूछता, लेकिन मैं लड़की हूं इसलिए ही आप सवाल कर रही हैं। आप देखिए सामने पुलिस है, उसके पास बंदूकें हैं ऐसे में क्या हम अपनी सुरक्षा के लिए लट्ठ भी नहीं उठा सकते।'

सिंघु बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर पर पगड़ीधारी पुरुषों का समंदर सा नजर आता है। इसमें महिलाएं इक्का-दुक्का बूंद की तरह दिखती हैं। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन में जहां कई लाख पुरुष शामिल हैं वहीं महिलाओं की गिनती न के बराबर है। बावजूद इसके महिलाएं इस आंदोलन का चेहरा बन रही हैं।

फिर चाहे अभिनेत्री कंगना के ट्वीट के निशाने पर आने वाली दादी मोहिंदर कौर हों या फिर सिंघु बॉर्डर पर बैठी पांच बुजुर्ग महिलाएं जिनकी फोटो लगभग हर मीडिया संस्थान ने प्रसारित की है।

महिलाओं की कम भागीदारी के सवाल पर नवदीप कहती हैं, 'महिलाओं को अपनी जगह बनानी पड़ती है। इस आंदोलन में भी महिलाओं को अपनी जगह बनानी होगी।'

नवदीप कहती हैं, 'आम धारणा ये है कि पुरुष ही किसान होते हैं। जब हम किसान के बारे में सोचते हैं तो ऐसे पुरुष का चेहरा बनता है जिसके कंधे पर कुदाली है और सर पर पगड़ी है। लेकिन हम कभी ये नहीं सोचते कि एक औरत भी किसान हो सकती है। जबकि औरतें भी कंधे से कंधा मिलाकर खेतों में काम करती हैं।'

कई महिलाएं हैं जो इस छवि को तोड़ रही हैं। सरबजीत कौर पंजाब के लुधियाना से प्रदर्शन में शामिल होने आई हैं। बीस महिलाओं का उनका समूह टिकरी बॉर्डर पर डटा है। सरबजीत कहती हैं, 'हम खेतों में भी खड़े रहते हैं और आज यहां दिल्ली के बॉर्डर पर भी खड़े हैं। मोदी सरकार हमारे बेटों की कमाई छीनना चाहती है तो हम माएं कैसे पीछे रह सकती हैं।'

सरबजीत और उनके साथ आईं महिलाएं ने गेरुए रंग का दुपट्टा पहना हुआ है। वो इस आंदोलन में अपनी भागीदारी को धर्म के कार्य के तौर पर भी देख रही हैं। वो कहती हैं, 'सरकार अगर पीछे हटने को तैयार नहीं है तो हम भी पीछे हटने के तैयार नहीं है। सरकार हमने बनाई है। मोदी की मां ने प्रधानमंत्री पैदा नहीं किया था, जनता ने उसे प्रधानमंत्री बनाया है। प्रधान वही है जो सबके हक बराबर समझे।'

प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की महासचिव रजनी जोशी (बाएं) लुधियाना से प्रदर्शन में शामिल होने आईं सरबजीत कौर (दाएं)।

सरबजीत कहती हैं, 'हम फसल बोना और काटना सब जानते हैं। हमारे पति, हमारे बेटे इतनी ठंड में कमाई करते हैं, जो प्रधानमंत्री अपने दफ्तर में बैठे हैं वो एक दिन हमारी तरह खेत में खड़ा होकर देखें, उन्हें हमारा दर्द समझ आ जाएगा।'

सरबजीत के साथ आईं एक और महिला किसान कहती हैं, 'किसान यहां है तो पीछे महिलाएं ही खेतों और परिवार की देखभाल कर रही हैं। वो घर रहकर भी आंदोलन में शामिल हैं।' प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की महिलाएं भी किसानों के आंदोलन में शामिल है। उत्तराखंड से आईं संगठन की महासचिव रजनी जोशी कहती हैं, 'दुनिया महामारी और आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही है ऐसे समय में सरकार का तीन काले कानून लेकर आना उसके फासीवादी चरित्र को दिखाता है।'

रजनी कहती हैं, 'हम सीधे तौर पर इस आंदोलन में शामिल नहीं है। लेकिन हम ये मानते हैं कि इस आंदोलन की सफलता के लिए महिलाओं की भागीदारी जरूरी है। वो कहती हैं, 'सड़कें मौन रहती हैं तो संसद आवारा हो जाती है। यही दिख रहा है। अब सरकार की नीतियों के खिलाफ एक संघर्ष चल रहा है जिसमें महिलाओं की भागीदारी जरूरी है।' आजादी की लड़ाई, उत्तराखंड आंदोलन, तेलंगाना आंदोलन, शाहीन बाग आंदोलन या फिर बैंगलुरू में महिलाओं का आंदोलन सभी में महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई थी।

किसान आंदोलन में महिलाओं की कम भागीदारी के सवाल पर रजनी कहती हैं, 'पूंजीवादी समाज एक पुरुष प्रधान समाज है। महिलाएं काम तो करती हैं लेकिन उसे पहचान नहीं मिल पाती है। यही इस आंदोलन में दिख रहा है। महिलाओं को घर से निकलने में समय लगता है, क्योंकि परिवार संभालने की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर होती है। जैसे-जैसे आंदोलन आगे बढ़ेगा, अधिक संख्या में महिलाएं इसमें हिस्सा लेंगी।'

वहीं नवदीप कौर कहती हैं, 'हम औरतों से आह्वान करते हैं कि वो भी घरों से बाहर निकले और प्रदर्शन में अपनी मौजूदगी दर्ज कराएं। देश की आधी आबादी महिलाएं हैं, महिलाओं के बिना देश नहीं चलता। हमारी कोशिश है कि और अधिक महिलाएं प्रदर्शन में शामिल हों। आसपास औद्योगिक क्षेत्र में कई महिलाएं काम करती हैं, हम उन्हें भी अपनी लड़ाई में शामिल करने के प्रयास कर रहे हैं।'

मजदूर अधिकार संगठन से जुड़ी और एक फैक्ट्री में काम करने वाली बुशरा कहती हैं 'जब तक महिला किसानों को पुरुषों के बराबर नहीं समझा जाएगा तब तक न्याय नहीं होगा। यदि किसी पुरुष की मौत होती है तो परिवार को मुआवजा मिलता है लेकिन यदि किसी महिला किसान की असमय मौत होती है तो मुआवजा नहीं मिलता।

यही फर्क मिटाने की जरूरत है। जब ये फर्क और फासला मिट जाएगा, तब आंदोलनों में महिलाओं की तादाद भी बढ़ जाएगी।' किसान यूनियन के नेताओं में एक भी महिला नहीं है। अभी तक हुई कई दौर की वार्ता में भी कोई महिला प्रतिनिधि शामिल नहीं हुई है। महिलाओं को अभी यहां भी अपनी जगह बनानी है।



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Lath in the hand, encouragement in the heart, girls are making their own place, she says - If the road was silent then the Parliament turned stray


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माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली मेघा और भावना बोलीं- ऐसा भी वक्त आया, जब मौत सामने थी

आज इंटरनेशनल माउंटेन डे है। हम आपको दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (8,848.86 मीटर) पर चढ़ाई की कहानी बता रहे हैं। ये कहानी वो दो लड़कियां बता रही हैं, जो 2019 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई कर चुकी हैं। पहली हैं मध्य प्रदेश के सिहोर के गांव भोजनगर की मेघा परमार। वो अपने राज्य से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली पहली महिला हैं। दूसरी हैं मध्य प्रदेश के ही छिंदवाड़ा की भावना डेहरिया। माउंट एवरेस्ट की कहानी, उसके शिखर पर चढ़ने वालों की जुबानी...

मेघा और भावना कहती हैं- हम जब हाई एल्टीट्यूड पर पहुंचते हैं तो वहां ऑक्सीजन बहुत कम होती है। हम बेस कैंप पहुंचते हैं, जो 5645 मीटर की ऊंचाई पर होता है। वहां दिल बहुत तेजी से धड़कने लगता है। इस तरह से जैसे कि कई बार 10 मंजिला इमारत की सीढ़ियां चढ़ ली हों, धड़कनें तब कुछ वैसी हो होती हैं। यह पूरी यात्रा दो महीने की होती है। इसमें चार कैंप होते हैं। हर कैंप में चुनौतियां बढ़ती चली जाती हैं।

हमारे जूते दो-दो किलो के होते हैं, जिनमें नीचे क्रैम्पॉन (मेटल की प्लेट, जिसके होने पर पैर फिसलते नहीं) लगे होते हैं। हम क्लाइंबिंग हमेशा रात के समय करते हैं, क्योंकि दिन के समय हिमस्खलन की आशंका होती है, जबकि रात में बर्फ जमी हुई होती है। सबसे कठिन कुंभ ग्लेशियर को पार करना होता है।

ऐसा नहीं होता कि आप एक ही बार में दुनिया के सबसे ऊंचे शिखर पर पहुंच जाओगे। आप पहले जाते हो, फिर वापस आते हो। फिर जाते हो, फिर वापस आते हो। ऐसा लगातार चलता रहता है। बेस कैंप से हम लोग कैंप-1 जाते हैं। फिर वहां से वापस बेस कैंप आते हैं। वहां पैर बहुत थकता है।

पीने के लिए हमेशा पानी नहीं मिल पाता। हर समय अंदर से शरीर टूटता है। सांस नहीं ली जाती। सीढ़ियां पार करते समय, जब वो हिलती हैं तो पैर कांपते हैं। उस समय हिम्मत बढ़ानी होती है कि रुको मत, ये भी हो जाएगा।

एवरेस्ट अभियान के दौरान पर्वतारोहियों को इस तरह की अलग-अलग चुनौतियों का सामना करते हुए शिखर पर पहुंचना होता है।

कैंप-1 पर पहुंचने के बाद वहां बर्फ खोदकर उसे पिघलाते हैं। वही पानी पीते हैं। सूप पीते हैं। पहली बार में बहुत तेज सिर दर्द होता है। कई लोगों को खून की उल्टियां होती हैं। दिमाग के पास ऑक्सीजन नहीं पहुंचती तो विचार आना भी बंद हो जाते हैं। नींद नहीं आती। एक घंटा भी नहीं सो पाते। वहां रात का टेम्प्रेचर माइनस 15 डिग्री तक हो जाता है, लेकिन हम उसको सेफ जोन बोलते हैं, क्योंकि वहां ग्लेशियर पिघलना शुरू नहीं होते।

बेस कैंप तक हम कुकिंग कर सकते हैं। दाल-चावल बना सकते हैं। नॉनवेज खा सकते हैं। इसके ऊपर ये सब बंद हो जाता है। जब हाई एल्टीट्यूड पर होते हैं तो ऐसा फूड खाना होता है, जो कुछ ही सेकंड में पक जाए। इसे खाना भी कुछ ही सेकंड में पड़ता है, क्योंकि कुछ मिनट में ही यह जम जाता है।

दो से तीन दिन के आराम के बाद कैंप-2 के लिए यात्रा शुरू होती है। कैंप-2 की चुनौतियां और ज्यादा हैं। वहां बहुत तेज रफ्तार से हवा चलती है। हम लोग जब गए थे, तब 80 किमी/घंटा की रफ्तार से हवाएं चल रही थीं। हमारे टेंट उड़ रहे थे। रात में हम चार लोग टेंट को पकड़कर बैठे थे कि कहीं वो उड़ न जाए। कई बार गला सूख जाता है। वहां रात काटना बहुत मुश्किल होता है। अगला पड़ाव कैंप-3 होता है।

यहां ऊंचाई बढ़ने के चलते चैलेंज और भी ज्यादा बढ़ जाता है। चेहरे की स्किन निकलने लगती है। कई जगह खून ऊपर आ जाता है। इसके बाद शुरू होती है कैंप-4 यानी डेथ जोन की यात्रा। कैंप-3 के बाद से ही सप्लीमेंट ऑक्सीजन देना शुरू कर दी जाती है, क्योंकि उसके बाद बिल्कुल भी सांस नहीं ली जाती। सबसे ज्यादा मौतें कैंप-4 में ही होती हैं। कोई ऑक्सीजन खत्म होने के चलते तो कोई फिसलकर जान गंवा देता है।

एवरेस्ट अभियान के लिए कम से कम एक साल पहले से ट्रेनिंग शुरू करनी होती है।

वहां 180 किमी प्रतिघंटा की स्पीड से हवा चलती है। आखिरी चढ़ाई के पहले वेदर रिपोर्ट देखते हैं। महीने में तीन या चार दिन ऐसे होते हैं, जिनमें से किसी एक दिन आप चढ़ाई कर सकते हो। कैंप-4 में मौत होना आम बात है। वहां इतनी मौतें हुई हैं, लाशें बर्फ में ढंकी हुई हैं। कई बार लाशों के ऊपर से चलते हुए हमें आगे बढ़ना होता है।

कंटीन्यू मूवमेंट करना पड़ता है, क्योंकि न चलने पर खून जम सकता है। जिससे आपकी मौत हो सकती है। कदमों का तालमेल सही रखना होता है। इन सबके बीच चुनौती ऑक्सीजन को बनाए रखने की होती है। कई लोग सिर्फ इसलिए मर जाते हैं, क्योंकि उनकी ऑक्सीजन की सप्लाई रुक जाती है।

कैंप-4 से गुजरने के दौरान हम लोगों को कई बार लाशों के ऊपर से निकलना पड़ा। कुछ मौके ऐसे भी आए, जब लाशों के सहारे ही आगे बढ़ पाए। आखिरी पड़ाव तक तो शरीर पूरी तरह से टूट गया था। ऐसा लग रहा था जैसे जान ही नहीं बची। बार-बार मन में आ रहा था कि रहने दो, छोड़ दो।

तब आपके दूसरे दिमाग को यह सोचना पड़ता है कि नहीं, करना ही है। इन सब चैलेंज के बीच फाइनली 22 मई को हम एवरेस्ट पर थे। मेघा सुबह 5 बजे एवरेस्ट पर पहुंची थीं, और उसके कुछ ही घंटों बाद भावना भी शिखर पर पहुंच चुकी थीं।

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Madhya Pradesh Megha Parmar Bhawna Dehria Mount Everest Journey; International Mountain Day Today


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सरकार के किस फैसले के खिलाफ हड़ताल पर जा रहे डॉक्टर? क्या आज इलाज नहीं होगा? कोरोना मरीजों का क्या होगा?

आयुर्वेदिक डॉक्टरों को सर्जरी की मंजूरी देने के खिलाफ एलोपैथिक डॉक्टर आज हड़ताल पर रहेंगे। ये हड़ताल इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी IMA ने बुलाई है। सुबह 6 से शाम 6 बजे तक डॉक्टर काम नहीं करेंगे। ऐसे में ये समझना जरूरी है कि डॉक्टर हड़ताल क्यों कर रहे हैं? आयुर्वेदिक डॉक्टरों को सर्जरी की मंजूरी देने में क्या दिक्कत है? डॉक्टरों के हड़ताल पर जाने पर कोरोना मरीजों का क्या होगा? आइए जानते हैं...

आखिर मामला क्या है?
20 नवंबर को सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (CCIM) ने एक नोटिफिकेशन जारी किया। ये नोटिफिकेशन पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई करने वाले आयुर्वेदिक डॉक्टरों को 58 तरह की सर्जरी करने की मंजूरी देता है।

किस तरह की सर्जरी की मंजूरी दी गई है?
CCIM आयुर्वेदिक डॉक्टरों को 58 तरह की सर्जरी करने की मंजूरी देता है। इसमें 39 जनरल सर्जरी है, जिन्हें आयुर्वेद की भाषा में 'शल्य' कहा जाता है। और 19 तरह की सर्जरी नाक, कान, गला, आंख से जुड़ी है, जिसे 'शालक्य' कहा जाता है।

क्या ये पहली बार हुआ है?
नहीं। 2016 में भी सरकार ने ऐसा ही नोटिफिकेशन जारी किया था। आयुर्वेदिक डॉक्टरों की सर्जरी को लेकर इस बार का नोटिफिकेशन पहले से ज्यादा क्लियर है। 2016 के नोटिफिकेशन में कहा गया था कि CCIM ने पीजी कोर्स के लिए जो सिलेबस जारी किया है, उसके तहत स्टूडेंट को सर्जरी की ट्रेनिंग दी जाएगी। इस बार स्पष्ट लिखा गया है कि 58 सर्जरी कर सकते हैं। आयुर्वेदिक कॉलेजों में शुरू से ही शल्य और शालक्य डिपार्टमेंट होते हैं।

दिक्कत किस बात पर है?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने केंद्र सरकार के इस फैसले का खुलकर विरोध किया है। IMA के अध्यक्ष डॉ. राजन शर्मा का कहना है कि इससे 'खिचड़ी मेडिकल सिस्टम' बन जाएगा, जो हाइब्रिड डॉक्टर पैदा करेगा। IMA का कहना है कि अगर इस तरह से शॉर्टकट अपनाए जाएंगे तो फिर NEET का क्या मतलब रह जाएगा? IMA ने CCIM से इस फैसले को वापस लेने की मांग की है।

सरकार का क्या कहना है?
सरकार का कहना है कि यह आयुर्वेद में इस्तेमाल होने वाले टर्म को मॉडर्न मेडिकल टर्म में बदलने की कवायद है। मकसद है कि अलग-अलग मेडिकल फील्ड के लोगों के बीच बेहतर कम्युनिकेशन हो सके। ​​​​​​

अब बात मरीजों की...

हड़ताल वाले दिन इमरजेंसी वाले मरीजों का क्या होगा?
IMA ने 11 दिसंबर को देश भर में होने वाली डॉक्टरों की हड़ताल में सिर्फ OPD को बंद रखने का फैसला किया है। इमरजेंसी को किसी भी तरह से बाधित नहीं होने दिया जाएगा। इमरजेंसी के मरीज अस्पतालों में भर्ती किए जा सकेंगे। जो पहले से भर्ती हैं, उनके इलाज में भी कोई दिक्कत नहीं आएगी।

कोरोना के मरीजों का क्या होगा?
कोरोना की रोकथाम को लेकर स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह से गंभीर है। ऐसे में कोरोना के मरीजों पर इस हड़ताल का कोई भी असर नहीं पड़ने जा रहा है। आम दिनों की तरह ही पूरी सक्रियता से कोरोना के मरीजों की जांच और इलाज की प्रक्रिया जारी रहेगी।



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Doctor Strike December 11 Explained; Why Doctor Are Going On Strike? Everything You Need To Know About Ayurveda Surgery Row


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सर्दियों में बढ़ जाते हैं सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर के केस, जानिए ये क्या है और इससे कैसे बचें?

मौसम बदलने के साथ-साथ हमारे खाने-पीने से लेकर पहनावे तक का रुटीन बदल जाता है। इस सबके चलते हमारे मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हम मानसिक तौर पर परेशान होने लगते हैं। कभी-कभी यह बदलाव हम पर कुछ ज्यादा ही भारी पड़ जाता है। मेडिकल की दुनिया में इसे सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर कहा जाता है।

दिल्ली में सायकायट्रिस्ट डॉक्टर स्नेहा त्रिपाठी कहती हैं कि अभी कोरोना चल रहा है और सर्दी भी आ चुकी है, ऐसे में सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर का जोखिम ज्यादा है। खासतौर पर उनके लिए, जो कोरोना के चलते पहले से ही तनाव, डिप्रेशन या अकेलेपन का शिकार हैं।

क्या होता है सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर?

  • मौसम की वजह से होने वाले बदलावों से हमारी मानसिक स्थिति पर भी असर पड़ता है। इसके चलते गुस्सा, चिड़चिड़ापन और तनाव भी होने लगता है। ये कई बार डिप्रेशन की वजह भी बनता है यानी मौसम बदलने से भी डिप्रेशन हो सकता है।
  • ऐसे मानसिक असंतुलन की वजह से जो तनाव और डिप्रेशन होता है, उसे ही सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर कहते हैं। सर्दियों की शुरुआत में शुरू होने वाला यह डिसऑर्डर यूं तो गर्मी में भी हो सकता है, लेकिन गर्मी की तुलना में इसके मामले सर्दियों में ज्यादा सामने आते हैं। इसके अलावा पुरुषों की तुलना में महिलाओं में इसके लक्षण ज्यादा देखने को मिलते हैं।

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धूप की कमी सबसे बड़ी वजह

सीजनल डिसऑर्डर की कई वजहें होती हैं, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि धूप की कमी इसका सबसे बड़ा कारण है। सर्दियों में कई दिनों तक धूप नहीं निकलती, जिसके चलते शरीर में नेचुरल विटामिन D नहीं पहुंचता। यह लोगों को चिड़चिड़ा बना देता है, लेकिन इसकी और भी बहुत सारी वजहें होती हैं। अगर आपको मौसम बदलने से पहले ही मानसिक या शारीरिक समस्या है तो इसका जोखिम और भी ज्यादा हो जाता है।

सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर के लक्षण

  • सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर के कई लक्षण होते हैं। इसमें मानसिक लक्षण सबसे ज्यादा सामने आते हैं। इसके शारीरिक लक्षण भी हैं, लेकिन एक्सपर्ट्स कहते हैं कि आप मानसिक लक्षणों से छुटकारा पा सकते हैं तो शारीरिक लक्षण अपने आप ही गायब हो जाएंगे।
  • इसमें बहुत ज्यादा मूड डायवर्ट होता है। जिसे हम मूड स्विंग भी कहते हैं। चिड़चिड़ापन जरूरत से ज्यादा होने लगता है। पीड़ित लगातार छोटी-छोटी बातों को लेकर तनाव में रहने लगता है और बात-बात पर गुस्सा आना आम है।
  • इस स्टेज में भूख नहीं लगती, आलस आता है, शरीर सुस्त रहता है, लेकिन नींद भी नहीं आती। जब ये सारी समस्याएं बहुत ज्यादा बढ़ जाती हैं तो ये डिप्रेशन में भी बदल जाती हैं। इससे उबरने में काफी समय लगता है।

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बचने और इलाज का तरीका आसान

इससे बचने के लिए विटामिन D सबसे ज्यादा जरूरी है। विटामिन D शरीर में सेरोटॉनिन का लेवल बढ़ा देता है। यह हमारे शरीर में पाया जाने वाला एक केमिकल होता है, जो हमारे मूड को कंट्रोल या संतुलित रखता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इसकी कमी होने से हम जरूरत से ज्यादा रिएक्ट करने लगते हैं।



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Cases of seasonal affective disorder change in winter, know what happens and how to avoid?


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राज्यसभा में विरोध के बावजूद पास हुआ था नागरिकता बिल, इसके बाद भड़के दंगों में 50 से ज्यादा की जान गई

11 दिसंबर 2019 को यानी आज से एक साल पहले राज्यसभा में एक बिल के पक्ष में 125 और खिलाफ में 99 वोट पड़े थे। यह बिल था नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (Citizen Amendement Act)। अगले दिन 12 दिसंबर 2019 को इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई। देशभर में भारी विरोध के बीच बिल दोनों सदनों से पास होने के बाद कानून की शक्ल ले चुका था। इसे गृहमंत्री अमित शाह ने 9 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया था।

2016 में नागरिकता कानून में बदलाव के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 (CAA) पेश किया गया। इसमें 1955 कानून में कुछ बदलाव किया जाना था। बदलाव थे, भारत के तीन मुस्लिम पड़ोसी देश बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए अवैध गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देना। 12 अगस्त 2016 को इसे संयुक्त संसदीय कमेटी के पास भेजा। कमेटी ने 7 जनवरी 2019 को रिपोर्ट सौंपी। 8 जनवरी 2019 को विधेयक पास हुआ। उस समय राज्यसभा में यह विधेयक पेश नहीं हो पाया।

संसदीय प्रक्रिया का एक नियम है कि अगर कोई विधेयक लोकसभा में पास हो जाता है और राज्यसभा में पास नहीं होता है और इसी बीच अगर लोकसभा कार्यकाल खत्म हो जाता है तो विधेयक प्रभाव में नहीं रहता है। इसे फिर से दोनों सदनों में पास कराना जरूरी होता है। इस वजह से इस कानून को 2019 में फिर से लोकसभा और राज्यसभा में पास कराना पड़ा।

नए कानून में क्या है?
पिछले साल जब देश में CAA कानून बना तो देशभर में विरोध भी जोर पकड़ गया। दिल्ली का शाहीन बाग इस कानून के विरोध से जुड़े आंदोलन का केंद्र बिंदु था। कानून में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के प्रवासियों के लिए नागरिकता कानून के नियम आसान बनाए गए। इससे पहले नागरिकता के लिए 11 साल भारत में रहना जरूरी था, इस अवधि को घटाकर 1 से 6 साल कर दिया गया।

फरवरी 2020 में दिल्ली में CAA के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी। इसमें मुदस्सिर खान की भी मौत हुई। फोटो मुदस्सिर के शव के पास बैठे उनके बेटे की है।

कानून के विरोध में भड़के दंगों में 50 से ज्यादा की जान गई
लोकसभा में आने से पहले ही ये बिल विवाद में था। लेकिन जब ये कानून बन गया, तो उसके बाद इसका विरोध और तेज हो गया। दिल्ली के कई इलाकों में प्रदर्शन हुए। 23 फरवरी 2020 की रात जाफराबाद मेट्रो स्टेशन पर भीड़ के इकट्ठा होने के बाद भड़की हिंसा, दंगों में तब्दील हो गई। दिल्ली के करीब 15 इलाकों में दंगे भड़के। कई लोग जिंदा जला दिए गए, तो कई लोगों को चाकू-तलवार जैसे धारदार हथियारों से हमला कर मार दिया गया। इन दंगों में 50 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। सैकड़ों घायल हुए।

देश के मशहूर कवि प्रदीप का निधन हुआ था

6 फरवरी 1915 को मध्यप्रदेश के उज्जैन के बड़नगर कस्बे में एक शख्स का जन्म हुआ था। इसी के 48 साल बाद 27 जनवरी 1963 में दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी में लता मंगेशकर ने एक गीत गया। जिसके बोल थे 'ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंखों में भर लो पानी'। गीत खत्म होते ही स्टेडियम में मौजूद नेहरू समेत सभी लोगों की आंखें नम थीं।

यह गीत 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की याद में लिखा गया था। गीत लिखने वाले थे कवि प्रदीप। वैसे इनका मूल नाम रामचंद्र नारायण द्विवेदी था। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने उन्हें उपनाम प्रदीप दिया था। उन्हें 1997-1998 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके लेखन के स्तर को इस बात से भी समझा जा सकता है कि उन्होंने हर तरह के गीत लिखे। उनके प्रमुख गीतों मे थे- ऐ मेरे वतन के लोगो, आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं, दे दी हमें आजादी, हम लाए हैं तूफान से, मैं तो आरती उतारूं, पिंजरे के पंछी रे, तेरे द्वार खड़ा भगवान, दूर हटो ऐ दुनिया वालों। 11 दिसंबर 1998 में मुंबई में उनका निधन हो गया।

भारत और दुनिया में 11 दिसंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैं:

  • 1687: ईस्ट इंडिया कंपनी ने मद्रास में नगर निगम बनाया था।
  • 1882: तमिल कवि और पत्रकार सुब्रह्मण्यम भारती का जन्म हुआ था।
  • 1935: भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का जन्म हुआ था।
  • 1922: भारतीय सिनेमा के महान अभिनेता दिलीप कुमार का जन्म हुआ था।
  • 1931: ओशो रजनीश का जन्म हुआ था।
  • 1941: वर्ल्ड वॉर II में जर्मनी और इटली ने अमेरिका के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था।
  • 1946: डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारत की संविधान सभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।
  • 1946: यूरोपीय देश स्पेन को संयुक्त राष्ट्र से निलंबित किया गया।
  • 1964: संयुक्त राष्ट्र के यूनिसेफ की स्थापना हुई।
  • 1969: भारत शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद का जन्म।
  • 1983: जनरल एचएम इरशाद ने खुद को बांग्लादेश का राष्ट्रपति घोषित किया।
  • 2001: चीन को वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन में एंट्री मिली।
  • 2002: 11 दिसंबर को इंटरनेशनल माउंटेन डे घोषित किया। इस दिन यूएन जनरल असेंबली ने रिजोल्यूशन 57/245 अपनाया।
  • 2012: भारत रत्न सम्मानित प्रसिद्ध सितार वादक पंडित रविशंकर का निधन।


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Today History: Aaj Ka Itihas India World December 11 Update | Citizenship Bill Passed Date, Lyricist Kavi Pradeep Death


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मोदी सरकार के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी किसानों के समर्थन में आए? जानें सच

क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह किसानों के समर्थन में भाषण देते दिख रहे हैं।

दावा किया जा रहा है कि वीडियो हाल में चल रहे किसान आंदोलन का है और राजनाथ सिंह जिस सरकार में मंत्री हैं, उसी सरकार के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन में उतर आए हैं। वीडियो में राजनाथ सिंह प्रधानमंत्री की भी आलोचना करते दिख रहे हैं।

और सच क्या है?

  • वीडियो को की-फ्रेम्स में बांटकर हमने गूगल पर रिवर्स सर्च किया। हमें वह पूरा वीडियो बीजेपी के एक सोशल मीडिया हैंडल पर मिला, जिसका एक हिस्सा इस समय वायरल हो रहा है।

  • बीजेपी के सोशल मीडिया चैनल पर ये वीडियो 20 मई, 2013 को अपलोड किया गया है। जाहिर है 7 साल पुराने इस वीडियो का हाल में चल रहे किसान आंदोलन से कोई संबंध नहीं है।
  • द हिंदू वेबसाइट पर हमें 19 मार्च, 2013 की एक रिपोर्ट भी मिली। जिससे पुष्टि होती है कि देश भर के किसानों ने विभिन्न मांगों को लेकर राजधानी में प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में विपक्ष के नेता भी शामिल हुए थे।
  • साफ है कि 7 साल पुराने वीडियो को सोशल मीडिया पर गलत दावे के साथ शेयर किया जा रहा है। हाल में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह नहीं पहुंचे हैं।


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Defense Minister Rajnath Singh also came in support of farmers in Modi government? Learn the truth


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