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अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने दावा किया है कि उसे चंद्रमा पर पर्याप्त रूप से पानी मिला है। यह पृथ्वी से दिखने वाले साउथ पोल के एक गड्ढे में अणुओं के रूप में नजर आया है। इस खोज से वैज्ञानिकों को भविष्य में चांद पर इंसानी बस्ती बनाने में मदद मिल सकती है। हालांकि, भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ISRO का चंद्रयान-1 ग्यारह साल पहले 2009 मे ही चंद्रमा पर पानी होने के सबूत दे चुका है।
चांद पर पानी की ताजा खोज NASA की स्ट्रैटोस्फीयर ऑब्जरवेटरी फॉर इंफ्रारेड एस्ट्रोनॉमी (SOFIA) ने की है। यह पानी सूरज की किरणें पड़ने वाले इलाके में मौजूद क्लेवियस क्रेटर में मिला है।
NASA ने कहा- पहले पुष्टि नहीं हुई थी
NASA के मुताबिक चांद की सतह के पिछले परीक्षणों के दौरान हाइड्रोजन की मौजूदगी का पता चला था, लेकिन तब हाइड्रोजन और पानी के निर्माण के लिए जरूरी अवयव हाइड्रॉक्सिल (OH) की गुत्थी नहीं सुलझा पाए थे। अब पानी मौजूद होने की पुष्टि हो चुकी है। NASA ने अपनी खोज के नतीजे नेचर एस्ट्रोनॉमी के नए अंक में जारी किए हैं।
सहारा रेगिस्तान से 100 गुना कम पानी
SOFIA ने चंद्रमा की सतह पर जितना पानी खोजा है उसकी मात्रा अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान में मौजूद पानी से 100 गुना कम है। चांद पर पानी कम मात्रा में होने के बावजूद सवाल उठ रहे हैं कि चांद पर वायुमंडल नहीं है फिर भी पानी कैसे बना?
ISRO के चंद्रयान ने पहले ही खोज लिया था पानी
22 अक्टूबर 2008 को लॉन्च किए गए भारतीय मिशन चंद्रयान-1 ने भी चांद पर पानी होने के सबूत दिए थे। यह पानी चंद्रयान-1 पर मौजूद मून इंपैक्ट प्रोब ने तलाशा था। इसे ऑर्बिटर के जरिए नवंबर 2008 में चंद्रमा के साउथ पोल पर गिराया गया था। सितंबर 2009 में ISRO ने बताया कि चांद की सतह पर पानी चट्टान और धूलकणों में भाप के रूप में फंसा है, यानी पानी काफी कम है।
मून इंपैक्ट प्रोब पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम का आइडिया था
चंद्रयान-1 के साथ मून इंपैक्ट प्रोब भेजने का आइडिया पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने दिया था। उनका कहना था कि जब चंद्रयान ऑर्बिटर चांद के इतने करीब जा ही रहा है कि तो क्यों न इसके साथ एक इम्पैक्टर भी भेजा जाए। इससे चांद के बारे में हमारी खोज को विस्तार दिया जा सकेगा।
देश में कोरोना के एक्टिव केस, यानी इलाज करा रहे मरीजों की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है। सोमवार को इसमें 28 हजार 132 की कमी आई। यह अब तक की दूसरी सबसे बड़ी गिरावट है। इससे पहले 21 सितंबर को सबसे अधिक 28 हजार 653 एक्टिव केस कम हुए थे।
कुल संक्रमितों की बात करें तो यह आंकड़ा 79 लाख 44 हजार 128 हो गया है। सोमवार को 35 हजार 932 मामले सामने आए। 98 दिन बाद ऐसा है, जब 40 हजार से कम केस रिपोर्ट हुए। इससे पहले 21 जुलाई को 39 हजार 170 लोग संक्रमित पाए गए थे। अच्छी बात यह है कि अब तक 71 लाख 98 हजार 660 लोग ठीक भी हो चुके हैं।
सोमवार को 482 मरीजों की मौत हुई। 113 दिन में दूसरी बार मौत का आंकड़ा 500 से कम रहा। इससे पहले 5 जुलाई को 421 मौतें दर्ज की गई थीं। देश में कोरोना से अब तक 1 लाख 19 हजार 535 मरीजों की मौत हो चुकी है।
टॉप-5 संक्रमित देशों में भारत का रिकवरी रेट सबसे अच्छा
रिकवरी के मामले में भारत दुनिया के पांच सबसे संक्रमित देशों में टॉप पर है। भारत में रिकवरी रेट 90% से ज्यादा है। मतलब हर 100 मरीज में 90 लोग ठीक हो रहे हैं। बेहतर रिकवरी के मामले में ब्राजील दूसरे नंबर पर है। यहां का रिकवरी रेट 89.65% और रूस का 74.84% है। सबसे खराब हालत फ्रांस की है। यहां अब तक 9.69% मरीज ही रिकवर हो पाए हैं।
कोरोना अपडेट्स
भारत बायोटेक ने सोमवार से कोवैक्सीन का फाइनल ट्रायल भुवनेश्वर में शुरू कर दिया। इसके लिए द इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (IMS) , SMU समेत देश के 21 अस्पतालों को चुना गया है। इन्हीं अस्पतालों में वैक्सीन का फाइनल ट्रायल होगा।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में हुई एक स्टडी के अनुसार, वायु प्रदूषण के चलते देश में कोरोना से चल रही लड़ाई कमजोर पड़ सकती है। वैज्ञानिकों को कोविड-19 और प्रदूषण के बीच कोई सीधा कनेक्शन तो नहीं मिला, लेकिन उनका कहना है कि लंबे समय तक अधिक प्रदूषण में रहने से फेफड़ों में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
मिजोरम सरकार ने राजधानी आइजोल में मंगलवार सुबह 4:30 से 3 नवंबर की सुबह 4:30 बजे तक लॉकडाउन लगा दिया है। इस दौरान जरूरी सेवाएं जारी रहेंगी। मिजोरम में 284 एक्टिव केस हैं। इनमें से 215 आइजोल में हैं।
देश में बीते एक हफ्ते में रिकॉर्ड 1.18 लाख एक्टिव केस कम हुए हैं। हर रोज औसतन 12 हजार एक्टिव केस घट रहे हैं।
पांच राज्यों का हाल
1. मध्यप्रदेश
राज्य में सोमवार को 720 नए मरीज मिले, 1095 लोग रिकवर हुए और 5 मरीजों की मौत हो गई। अब तक 1 लाख 67 हजार 969 लोग संक्रमित पाए जा चुके हैं। इनमें 10 हजार 857 संक्रमितों का अभी इलाज चल रहा है, जबकि 1 लाख 54 हजार 222 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण से अब तक 2890 लोगों की मौत हो चुकी है।
2. राजस्थान
पिछले 24 घंटे में 1805 लोग संक्रमित पाए गए, 2226 लोग रिकवर हुए और 14 मरीजों की मौत हो गई। संक्रमितों का आंकड़ा अब 1 लाख 88 हजार 48 हो गया है। इनमें 16 हजार 233 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 1 लाख 69 हजार 962 लोग ठीक हो चुके हैं। कोरोना ने अब तक 1853 लोगों की जान ले ली है।
3. बिहार
राज्य में सोमवार को 513 कोरोना संक्रमित मिले। 1087 लोग रिकवर हुए और 9 मरीजों की मौत हो गई। अब तक 2 लाख 12 हजार 705 लोग संक्रमित पाए जा चुके हैं। इनमें 9 हजार 639 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 2 लाख 2 हजार 7 मरीजों का अभी इलाज चल रहा है। संक्रमण के चलते अब तक 1058 मरीजों की मौत हो चुकी है।
4. महाराष्ट्र
राज्य में पिछले 24 घंटे में रिकॉर्ड मरीजों की संख्या में गिरावट देखी गई। 3645 लोग संक्रमित पाए गए, जबकि 9905 लोग रिकवर हुए। 84 मरीजों की मौत हुई। 16 लाख 48 हजार 665 लोग अब तक संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 1 लाख 34 हजार 137 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 14 लाख 70 हजार 660 लोग ठीक हो चुके हैं। 43 हजार 348 मरीजों की अब तक मौत हो चुकी है।
5. उत्तरप्रदेश
राज्य में मरीजों का आंकड़ा 4 लाख 72 हजार 68 हो गया है। पिछले 24 घंटे में 1798 नए मरीज मिले। 2441 लोग ठीक हुए और 20 मरीजों की मौत हो गई। अभी 26 हजार 654 मरीज ऐसे हैं जिनका इलाज चल रहा है, जबकि 4 लाख 38 हजार 512 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण के चलते अब तक 6902 मरीजों की मौत हो चुकी है।
पटना में बायपास रोड पर ढाबे वाली चाय की दुकान। टेलीविजन के पर्दे पर नीतीश कुमार बोल रहे हैं और लिए हुए हैं लालू प्रसाद के बेटों को निशाने पर। नीतीश बोल रहे हैं कि ‘उन लोगों’ को बस अपने परिवार की चिंता रहती है...।
बड़ी देर से पर्दे पर नजरें गड़ाए राजू ने कहा- ‘ठीके त कह रहे हैं नीतीश कुमार।’ प्रकाश ने भी हामी में सिर हिलाया, लेकिन विनय ने दखल देते हुए कहा, ‘छोड़ ना... लालू प्रसाद पहले ही कह दिए हैं कि हमरा बेटा सब लालटेने उठाएगा। तीर, कमल के साथ कभीओ नहीं जाएगा।’ प्रकाश बोला- ‘हां, छुपाछिपी नहीं करते थे लालू प्रसाद। एक बार तो सत्ता जाने लगी तो पत्नी को ही मुख्यमंत्री बनवा दिए थे।’
विनय ने कहा- ई सब से क्या होता है। सबसे बड़ी पार्टी बिहार में कौन है? जानते हो कि नहीं। सब एक स्वर में बोले- राजद।
विनय ने बात को और ज्यादा साफ करते हुए कहा, ‘लोकतंत्र संख्या बल से चलता है। यहां वोट देने की परंपरा है। जिसको ज्यादा वोट, उसकी सरकार। बिहार में जो जाति में ज्यादा, उसको ज्यादा वोट।’
प्रकाश बोला- ‘हां, लेकिन गठबंधन की राजनीति ने इसको ध्वस्त कर दिया। सबसे बड़ी पार्टी कोई और, सरकार किसी और की। इसलिए गठबंधन में बड़ा जोर है गुरु।’ तीनों चाय की चुस्की के साथ राजनीति का मजा भी ले रहे थे।
विनय ने सवाल दागा- ‘इस बार पुष्पम प्रिया जैसी नई नवेली कंडिडेट भी हैं, जो एक दिन एकाएक अखबार के फ्रंट पेज से बिहार की राजनीति में प्रवेश करती हैं, और पहली राजनीतिक घोषणा भी करती हैं कि वह बिहार की मुख्यमंत्री पद की दावेदार हैं। ई बिहारे में न हो सकता है।’
राजू बोला- ‘हां, इस बार का चुनाव बिहार में गजब का है। एक तो महामारी ऐसी नहीं देखी आज तक और ऊपर से मास्क के साथ वोटिंग कराने की जिद है।’
प्रकाश ने कहा, ‘पता नहीं चुनाव के बाद कोरोना का क्या होगा, और फैल गया तो बवाले हो जाएगा। छह महीना बढ़ाइए देते समय तो क्या घट जाता। चुनाव ड्यूटी में आए जवानों में भी फैल गया तो क्या होगा, किसी को फिकर है?’
राजू ने बीच में रोकते हुए कहा- ‘लोकतंत्र की परिभाषा जानते हो कि नहीं! नहीं जानते हो तो सुन लो- यह जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता का शासन है’।
प्रकाश ने कहा, ‘लेकिन हम तो यही जानते हैं कि यह मूर्खों का शासन है।’
विनय ने कहा, ‘हम बताते हैं ई ऐसे काहे बोल रहा है। ई कहना चाहता है कि अनपढ़ों का शासन है लोकतंत्र।’ प्रकाश ने कहा, ‘देखो कई बार ऐसा होता है राजनीति में कि बहुत पढ़ा-लिखा भी बेईमान हो जाता है और कोई बहुत कम पढ़ा-लिखा भी जनतंत्र का बहुत बड़ा पहरेदार। इसलिए भी राजनीति में चुनाव जीतने के लिए पढ़ाई वाली डिग्री की बाध्यता नहीं है।’
तीनों दोस्तों के पास चाय की लगभग अंतिम चुस्की बची थी। अब बात समेटने की बारी थी। वह भी खत्म हो गई। पैसे देने की बारी आई तो राजू ने पैसे दिए।
दुकानदार सुकेश ने सवाल किया- ‘आप तीनों देखते रहिएगा... ई बेर चुनाव का परिणाम हिला देगा सब को। माहौल टाइट है सरकार का। आप ही लोग बताइए- दो-चार साल में जनता जितनी परेशान हुई, उतनी कभी हुई थी क्या? कोरोना त सब कसर ही पूरा कर दिहिस।’
राजू, प्रकाश और विनय कुछ कहना चाहते थे तभी सुकेश ने तेज आवाज में कहा, 'जो नौकरी देगा, वही वोट लेगा, बाकी हम कुछ नहीं जानते हैं। पैसा कहां से लाइएगा, ई हम सब का टेंशन है क्या?' तीनों दोस्त चुप हो गए। इनकी चाय तो खत्म हो चुकी था, लेकिन बहस शायद आगे बढ़ने को थी।
पीछे से आवाज आई- ‘कहावत सुने हैं न...नाऊ-नाऊ केतना बाल...। त देखते रहिए, अब तो वोटिंग भी शुरू होइए रहा है...10-12 दिन में नतीजो आ जायेगा...20-25 दिन में सरकारो बनिए जाएगी। त देख लेते हैं कौन और केकरा वादा में केतना दम बा...।’ हम इस अंतहीन बहस की इस लाइन को पीछे छोड़ आगे बढ़ गए हैं।
देश में कोरोना के एक्टिव केस, यानी इलाज करा रहे मरीजों की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है। सोमवार को इसमें 28 हजार 132 की कमी आई। यह अब तक की दूसरी सबसे बड़ी गिरावट है। इससे पहले 21 सितंबर को सबसे अधिक 28 हजार 653 एक्टिव केस कम हुए थे।
कुल संक्रमितों की बात करें तो यह आंकड़ा 79 लाख 44 हजार 128 हो गया है। सोमवार को 35 हजार 932 मामले सामने आए। 98 दिन बाद ऐसा है, जब 40 हजार से कम केस रिपोर्ट हुए। इससे पहले 21 जुलाई को 39 हजार 170 लोग संक्रमित पाए गए थे। अच्छी बात यह है कि अब तक 71 लाख 98 हजार 660 लोग ठीक भी हो चुके हैं।
सोमवार को 482 मरीजों की मौत हुई। 113 दिन में दूसरी बार मौत का आंकड़ा 500 से कम रहा। इससे पहले 5 जुलाई को 421 मौतें दर्ज की गई थीं। देश में कोरोना से अब तक 1 लाख 19 हजार 535 मरीजों की मौत हो चुकी है।
टॉप-5 संक्रमित देशों में भारत का रिकवरी रेट सबसे अच्छा
रिकवरी के मामले में भारत दुनिया के पांच सबसे संक्रमित देशों में टॉप पर है। भारत में रिकवरी रेट 90% से ज्यादा है। मतलब हर 100 मरीज में 90 लोग ठीक हो रहे हैं। बेहतर रिकवरी के मामले में ब्राजील दूसरे नंबर पर है। यहां का रिकवरी रेट 89.65% और रूस का 74.84% है। सबसे खराब हालत फ्रांस की है। यहां अब तक 9.69% मरीज ही रिकवर हो पाए हैं।
कोरोना अपडेट्स
भारत बायोटेक ने सोमवार से कोवैक्सीन का फाइनल ट्रायल भुवनेश्वर में शुरू कर दिया। इसके लिए द इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (IMS) , SMU समेत देश के 21 अस्पतालों को चुना गया है। इन्हीं अस्पतालों में वैक्सीन का फाइनल ट्रायल होगा।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में हुई एक स्टडी के अनुसार, वायु प्रदूषण के चलते देश में कोरोना से चल रही लड़ाई कमजोर पड़ सकती है। वैज्ञानिकों को कोविड-19 और प्रदूषण के बीच कोई सीधा कनेक्शन तो नहीं मिला, लेकिन उनका कहना है कि लंबे समय तक अधिक प्रदूषण में रहने से फेफड़ों में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
मिजोरम सरकार ने राजधानी आइजोल में मंगलवार सुबह 4:30 से 3 नवंबर की सुबह 4:30 बजे तक लॉकडाउन लगा दिया है। इस दौरान जरूरी सेवाएं जारी रहेंगी। मिजोरम में 284 एक्टिव केस हैं। इनमें से 215 आइजोल में हैं।
देश में बीते एक हफ्ते में रिकॉर्ड 1.18 लाख एक्टिव केस कम हुए हैं। हर रोज औसतन 12 हजार एक्टिव केस घट रहे हैं।
पांच राज्यों का हाल
1. मध्यप्रदेश
राज्य में सोमवार को 720 नए मरीज मिले, 1095 लोग रिकवर हुए और 5 मरीजों की मौत हो गई। अब तक 1 लाख 67 हजार 969 लोग संक्रमित पाए जा चुके हैं। इनमें 10 हजार 857 संक्रमितों का अभी इलाज चल रहा है, जबकि 1 लाख 54 हजार 222 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण से अब तक 2890 लोगों की मौत हो चुकी है।
2. राजस्थान
पिछले 24 घंटे में 1805 लोग संक्रमित पाए गए, 2226 लोग रिकवर हुए और 14 मरीजों की मौत हो गई। संक्रमितों का आंकड़ा अब 1 लाख 88 हजार 48 हो गया है। इनमें 16 हजार 233 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 1 लाख 69 हजार 962 लोग ठीक हो चुके हैं। कोरोना ने अब तक 1853 लोगों की जान ले ली है।
3. बिहार
राज्य में सोमवार को 513 कोरोना संक्रमित मिले। 1087 लोग रिकवर हुए और 9 मरीजों की मौत हो गई। अब तक 2 लाख 12 हजार 705 लोग संक्रमित पाए जा चुके हैं। इनमें 9 हजार 639 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 2 लाख 2 हजार 7 मरीजों का अभी इलाज चल रहा है। संक्रमण के चलते अब तक 1058 मरीजों की मौत हो चुकी है।
4. महाराष्ट्र
राज्य में पिछले 24 घंटे में रिकॉर्ड मरीजों की संख्या में गिरावट देखी गई। 3645 लोग संक्रमित पाए गए, जबकि 9905 लोग रिकवर हुए। 84 मरीजों की मौत हुई। 16 लाख 48 हजार 665 लोग अब तक संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 1 लाख 34 हजार 137 मरीजों का इलाज चल रहा है, जबकि 14 लाख 70 हजार 660 लोग ठीक हो चुके हैं। 43 हजार 348 मरीजों की अब तक मौत हो चुकी है।
5. उत्तरप्रदेश
राज्य में मरीजों का आंकड़ा 4 लाख 72 हजार 68 हो गया है। पिछले 24 घंटे में 1798 नए मरीज मिले। 2441 लोग ठीक हुए और 20 मरीजों की मौत हो गई। अभी 26 हजार 654 मरीज ऐसे हैं जिनका इलाज चल रहा है, जबकि 4 लाख 38 हजार 512 लोग ठीक हो चुके हैं। संक्रमण के चलते अब तक 6902 मरीजों की मौत हो चुकी है।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले वहां के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ और रक्षा मंत्री मार्क एस्पर सोमवार को दिल्ली पहुंचे। वे मंगलवार को तीसरी 2+2 मंत्री बैठक में हिस्सा लेंगे, जिसमें भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह शामिल होंगे। इससे पहले सोमवार को रक्षा मंत्री राजनाथ ने एस्पर से हैदराबाद हाउस में मुलाकात की।
मुलाकात के बाद राजनाथ ने संतुष्टि जताते हुए कहा कि यह सफल रही। उन्होंने कहा कि यह बैठक दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को व्यापक स्तर पर ले जाने के उद्देश्य से हुई है। 2+2 वार्ता पहले से तय थी। लेकिन, भारत-चीन और अमेरिका-चीन की बीच पैदा हुई ताजा कड़वाहट को देखते हुए इसे चीन की घेराबंदी के तौर पर देखा जा रहा है। सोमवार को राजनाथ सिंह और एस्पर की बैठक के बाद एस. जयशंकर और पोम्पियो के बीच बैठक हुई। जयशंकर ने कहा कि बैठक में दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों की मतबूती पर बात हुई।
2+2 वार्ता क्या? यह दो देशों के रक्षा और विदेश मंत्रालयों में होती है। पहले भी 2 बैठकें हो चुकी हैं।
एजेंडा क्या? प्रशांत क्षेत्र में चीन की दखलंदाजी और लद्दाख में उसका आक्रामक व्यवहार वार्ता में शामिल होंगे। इसे देखते हुए बेका समझौता हो सकता है।
बेका क्या?: बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बेका) से भारत मिसाइल हमले के लिए विशेष अमेरिकी डेटा का इस्तेमाल कर सकेगा। इसमें किसी भी क्षेत्र की सटीक भौगोलिक लोकेशन होती है।
बेका एग्रीमेंट के लिए यही सबसे अनुकूल समय, चीन पर साफ बात करनी होगी
इस बार बेका पर आगे बढ़ने की संभावना है। चीन के साथ हमारे रिश्ते जिस मोड़ पर आ चुके हैं, उसमें बेका समझौता काफी अहम हो जाता है। इसीलिए 2+2 वार्ता के केंद्र में बेका है। समझौता हुआ तो दोनों देश जियोस्पेशियल क्षेत्र में सहयोग बढ़ाएंगे। करगिल युद्ध के समय अमेरिका ने यह कहकर हमारे जीपीएस बंद कर दिए थे कि यह करार शांतिकाल के लिए था। हालांकि, उसके बाद रक्षा क्षेत्र में हम दो समझौते लेमोआ और कोमकासा कर चुके हैं।
अब हमारे मंत्रियों को यह ध्यान रखना होगा कि समझौता युद्धकाल के लिए भी लागू हो। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हैं, इसलिए केवल सैद्धांतिक सहमति बनने से मामला लटक सकता है। जॉर्ज बुश के राष्ट्रपति रहते हुए भी एक बार ऐसी स्थिति बनी थी। लेकिन, तब विपक्षी पार्टियों ने कहा था कि हम चीन के साथ चलना चाहते हैं। आज बदले हालात में हमें अमेरिका को साफ कहना होगा कि ईरान के मसले पर चीन को बाहर रखना जरूरी है, वर्ना भारत बुरी तरह से घिर जाएगा। क्योंकि, चीन पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नेपाल में जड़े जमाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है।
नमस्कार!
जैसे-जैसे कोरोना के एक्टिव मामले रोज घटते जा रहे हैं, फ्री वैक्सीन के वादे बढ़ते जा रहे हैं। बिहार के बाद अब मोदी सरकार के एक मंत्री ने पूरे देश के लिए भी फ्री वैक्सीन का वादा कर दिया है। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...
सबसे पहले देखते हैं, बाजार क्या कह रहा है…
BSE का मार्केट कैप 158.60 लाख करोड़ रुपए रहा। 59% कंपनियों के शेयरों में गिरावट।
2,860 कंपनियों के शेयरों में ट्रेडिंग हुई। 990 कंपनियों के शेयर बढ़े और 1,698 कंपनियों के गिरे।
आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर
प्रधानमंत्री मोदी ‘स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि स्कीम’ के तहत उत्तर प्रदेश के स्ट्रीट वेंडर्स से बातचीत करेंगे। 3 लाख वेंडर्स को कर्ज दिया जाएगा।
IPL में हैदराबाद और दिल्ली के बीच शाम साढ़े सात बजे से मैच।
मोदी शाम 4:45 बजे नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन विजिलेंस एंड एंटी करप्शन को संबोधित करेंगे।
आर्मी कमांडर्स की कॉन्फ्रेंस में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह संबोधित करेंगे।
देश-विदेश
पूरे देश के लिए बिहार जैसा वादा
केंद्रीय मंत्री प्रताप सारंगी का कहना है कि देश के सभी लोगों को कोरोना की वैक्सीन फ्री दी जाएगी। सारंगी ने ओडिशा के बालासोर में चुनावी सभा के बाद यह बात कही। यहां 3 नवंबर को विधानसभा उपचुनाव हैं। उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री देश के सभी लोगों को फ्री वैक्सीन का ऐलान कर चुके हैं। हर आदमी पर करीब 500 रुपए का खर्च आएगा।
इस वादे के मायने: सरकार ने वैक्सीन के लिए 50 हजार करोड़ रुपए का फंड रखने का फैसला किया है। स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन भी कह चुके हैं कि जुलाई 2021 तक 20-25 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाई जाएगी, लेकिन सारंगी जो दावा कर रहे हैं, प्रधानमंत्री मोदी ने सीधे तौर पर ऐसा कोई बयान नहीं दिया है। सारंगी के बयान पर सरकार भी चुप है।
मध्य प्रदेश में रैलियां हो सकेंगी
मध्य प्रदेश में उपचुनाव के दौरान 9 जिलों में रैलियां हो सकेंगी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने पिछले दिनों राज्य में फिजिकल रैलियों पर रोक लगा दी थी और वर्चुअल रैली कराने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसी आदेश पर सोमवार को स्टे लगा दिया। साथ ही रैलियों में भीड़ बढ़ने पर राजनीतिक दलों को फटकार भी लगाई कि आपको खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि इस हालात के लिए जिम्मेदार कौन है?
चिराग को बिहार में भाजपा पर भरोसा
कोरोना के बीच हो रहा बिहार चुनाव शायद इतना दिलचस्प नहीं होता, अगर चिराग पासवान एनडीए से अलग नहीं होते। भास्कर को दिए इंटरव्यू में चिराग कह रहे हैं कि बिहार में भाजपा-लोजपा की सरकार बनेगी और 100% बनेगी। भाजपा के सीएम को उनकी पार्टी सपोर्ट करेगी। तेजस्वी के बारे में चिराग ने कहा कि उन पर कभी वर्क ही नहीं किया तो उनके बारे में क्या बोलूं?
भाजपा के लिए उम्मीदों के चिराग: चिराग ने पहले खुद को मोदी का हनुमान बताया। अब कह रहे हैं कि वे भाजपा के साथ सरकार बना सकते हैं। यानी सीधे तौर पर मैसेज दे रहे हैं कि चुनाव के बाद अगर जदयू को सीटें कम मिलीं और नीतीश को छोड़कर भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में आ गई तो लोजपा उसका साथ देगी।
कंगना vs उद्धव
महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने रविवार को दशहरा रैली के संबोधन में कंगना का नाम लिए बिना कहा था कि आप यहां रोजगार के लिए आते हैं और मुंबई को बदनाम करते हैं। इस पर कंगना ने कहा- उद्धव ठाकरे! तुमने कल अपने भाषण में मुझे गाली दी। मुझे नमक हराम कहा। नारी सशक्तीकरण के ठेकेदारों ने भी कुछ नहीं कहा। आपकी बातों से पता चलता है कि एक सेल्फ मेड सिंगल वुमन से आप कैसे बात करते हैं। मुख्यमंत्री, आप नेपोटिज्म (भाई-भतीजावाद) के खराब प्रोडक्ट हैं।
US में रिकॉर्ड प्री-पोल वोटिंग
कोरोना ने अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के लिए होने वाली वोटिंग का ट्रेंड भी बदल दिया है। वोटर भीड़ भरे पोलिंग बूथ पर जाने से बचना चाह रहे हैं। यही वजह है कि प्री-पोल वोटिंग ने इस बार नया रिकॉर्ड बना दिया है। चुनाव के 9 दिन पहले ही 5.9 करोड़ वोट डाले जा चुके हैं, जबकि 2016 में कुल प्री-पोल बैलट्स ही 5.7 करोड़ थे।
ओरिजिनल
पॉजिटिव खबर
दिल्ली की रहने वाली सुप्रिया दलाल सरकारी स्कूल में टीचर हैं। डेढ़ साल पहले उन्होंने ऑर्गेनिक सब्जियों की खेती शुरू की। अब 5 एकड़ जमीन पर 17 तरह की सब्जियां उगा रही हैं। 300 से ज्यादा कस्टमर्स हैं। हर महीने 3 लाख रुपए की आमदनी भी हो रही है।
लखीसराय के नजदीक एक गांव है लाखोचक। यहां 1925 में दो समुदायों के बीच संघर्ष हुआ था। यह दो दिन तक चला था। गोलियां चली थीं। कोई कहता है कि इस संघर्ष में 8 लोग मारे गए, कोई कहता है कि 80 लोग मारे गए। माना जाता है कि इसी घटना ने बिहार के जातीय समीकरणों पर असर डाला।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से दो हफ्ते पहले रूस पर हैकिंग और साइबर हमलों के आरोप लग रहे हैं। सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या वाकई में रूस हैकिंग के जरिए अमेरिकी चुनाव में छेड़छाड़ कर रहा है और कोई देश किसी दूसरे देश की चुनाव प्रक्रिया को कैसे प्रभावित कर सकता है?
सुर्खियों में और क्या है...
1. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने लोकप्रियता बनाए रखने के लिए अब इस्लामोफोबिया का सहारा लिया है। उन्होंने इस्लाम के प्रति नफरत को मुद्दा बनाकर फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग को एक चिट्ठी लिखी है। इसमें उन्होंने इस्लामोफोबिया से जुड़ी पोस्ट हटाने की मांग की है। 2. पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे दूसरी शादी करने जा रहे हैं। वे जून में पहली पत्नी मीनाक्षी साल्वे से कानूनी रूप से अलग हो गए थे। 65 साल के साल्वे 56 साल की कैरोलिन ब्रोसार्ड से 28 अक्टूबर को शादी करेंगे। कैरोलिन लंदन में रहती हैं और आर्टिस्ट हैं। 3. बिजनेस टायकून कुमार मंगलम बिड़ला की बेटी और गायिका अनन्या बिड़ला अमेरिका में नस्लभेद का शिकार हुई हैं। अनन्या और उनके परिवार को वॉशिंगटन के स्कोपा इटैलियन रूट्स रेस्त्रां ने परिवार समेत बाहर निकाल दिया। रेस्त्रां के वेटर ने अनन्या और उनकी मां से बदसलूकी की।
कासगंज का एक छोटा सा गांव हैं निजामपुर। आसपास के गांवों के ही बहुत से लोगों को इसका नाम तक नहीं पता। हां, ये सबको पता है कि यहां एक दलित दूल्हा घोड़ी पर चढ़कर बारात लेकर आया था। वहां जाने का रास्ता बताते हुए पड़ोस के गांव की एक अम्मा कहती हैं, 'अच्छा वो घोड़ी वाले दूल्हा की बारात जहां आई थी, अरे तब तो पुलिस ही पुलिस थी।'
गांव की तरफ जा रही एक पतली सड़क से लगे खेत में सतपाल सिंह अपने परिवार के साथ बाजरे की फसल काटते हुए मिले। दो साल पहले जुलाई 2018 में जब उनकी बेटी की बारात आनी थी तो गांव के ठाकुरों ने दलितों के खेतों का पानी बंद कर दिया था। तब उनकी फसलें सूख गईं थीं। उनके दामाद संजय जाटव ने घोड़ी पर चढ़कर बारात लाने की जिद पकड़ ली थी, जिसे ठाकुरों ने अपनी आन-बान के खिलाफ मान लिया था। अदालत के दखल के बाद संजय जाटव पुलिस सुरक्षा में घोड़ी पर चढ़कर बारात लेकर आए। उस दिन कई ठाकुर गांव से ही चले गए थे।
सतपाल सिंह कहते हैं, 'तब तो बंदी कर दी थी। खेतों में पानी भी नहीं दिया था। गांव के ठाकुर कहते थे, घोड़ी पर बारात चढ़ने नहीं देंगे। ना पहले कभी चढ़ी है, ना आगे चढ़ेगी और अगर बारात घोड़ी पर चढ़ी तो मारा तोड़ी होगी। सरकार ने बारात चढ़वाई और हमारा सहयोग भी किया। एक साल तक हमारे लिए गांव में सुरक्षा भी रही।'
सतपाल का बेटा बिट्टू जाटव कहता है, 'हमारा ज्यादा बोलना सही नहीं है। अब गांव में सब शांति है, किसी तरह का कोई तनाव या विवाद नहीं है। सभी प्यार से रह रहे हैं।' तो क्या इसके बाद गांव में कुछ बदला? इस पर बिट्टू जाटव कहते हैं, 'बड़े-बड़े अधिकारी गांव आए, लेकिन जिस तरह का विकास होना था, नहीं हुआ। कई लोगों के पास रहने लायक घर नहीं है। शौचालय नहीं है। पक्की सड़कें नहीं हैं। ये सब काम गांव में होने चाहिए थे।'
गांव में घुसते ही दलितों के 10-12 घर हैं। कुछ कच्चे हैं और कुछ बस बिना प्लास्टर की पक्की दीवारों पर छत डालकर बना लिए गए हैं। एक घर के बाहर एक दुबली-पतली महिला गोद में कुपोषित बच्चा लिए खड़ी है। मुझे देखते ही औरतें घरों से बाहर निकल आती हैं। अब माहौल कैसा है, इस पर एक दलित महिला कहती है, 'पहले ठाकुर शराब पीकर आते थे, चमरा-पमरा कहते थे। अब कुछ नहीं कहते हैं, बढ़िया तरह से रहते हैं। जब से बारात चढ़ी है हमारी, पहले जैसी परेशानी नहीं है।'
वो कहती हैं, 'पहले तो रास्ते में मारते थे, घर में मारते थे, बालक-बच्चे खेत में मिल जाते थे तो वहां घेर लेते थे, थप्पड़ भी मार देते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। हम साफ कहते हैं, अब जाटव भी कमजोर नहीं हैं। अगर अब वो मारेंगे तो खुद भी थप्पड़ खाएंगे। अब पहले वाली बात नहीं है। कुएं से आवाज कुआं जैसी ही आएगी। अब पुराने बुड्ढे नहीं हैं, नए लड़के हैं। अगर यहां नहीं रहने देंगे, कहीं और जाकर खा-कमा लेंगे, लेकिन अब झुकेंगे नहीं।'
दलितों के छोटे घरों के बगल ठाकुरों के बड़े घर और भी बड़े लगते हैं। जब मैं यहां पहुंची तो ठाकुर समुदाय में एक जवान व्यक्ति की बीमारी से मौत हो गई थी। गांव में गम का माहौल था, जिसमें दलित भी शामिल थे। जैसे-जैसे मौत की खबर गांव में फैलती है, लोग अपने काम-धंधे बंद कर देते हैं। खेतों में काम कर रही दलित महिलाएं भी गांव लौट आती हैं।
दलितों के मोहल्ले में एक कमरे के एक छोटे से घर में बाहर टीन पड़ी है। बरामदे में पड़ी चारपाई में चादर के झूले में एक दुधमुंहा बच्चा झूल रहा है। इस घर में रहने वाली सुनीता कहती हैं, 'सरकार की ओर से गैस सिलेंडर मिला है। शौचालय भी जैसा-तैसा ही सही, पर बना है, लेकिन घर नहीं मिला। कई बार लिखा-पढ़ी हुई, लेकिन कुछ हुआ नहीं।'
बारात को लेकर हुए विवाद गांव की प्रधान कांति देवी कहती हैं, 'कुछ लोगों ने विरोध किया था, लेकिन प्रशासन के दखल के बाद समझाकर मामला शांत करा दिया गया था। बेटी चाहे दलित की हो या ठाकुर की, सभी बेटियां बराबर हैं और जिसके जैसे दिल चाहे, वो वैसे अपनी बारात निकाले। जाटव हो या मेहतर, सबकी बारात धूमधाम से निकले।'
गांव के माहौल के बारे में बात करते हुए कांति देवी कहती हैं, 'जब विवाद था, तब था, अब सब बढ़िया है। ठाकुरों के बिना दलितों का काम नहीं चल सकता और दलितों के बिना ठाकुरों का। सब एक-दूसरे पर निर्भर हैं। हमें तो सब बढ़िया दिख रहा है, लेकिन किसी के दिल में कुछ और हो तो कह नहीं सकते।'
यहां से करीब 30 किलोमीटर दूर हाथरस जिले में संजय जाटव का गांव है। दलित दूल्हे के नाम से चर्चित संजय जाटव को अब सब जानते हैं। स्थानीय राजनीति में सक्रिय संजय इन दिनों अपने गांव बसई में आंबेडकर पार्क का उद्घाटन कराने में जुटे हैं।
आंबेडकर की मूर्ति के नीचे खड़े होकर वो कहते हैं, 'आजादी के बाद से कोई दलित कासगंज के निजामपुर में घोड़ी पर बैठकर बारात लेकर नहीं गया था। जब मैंने बारात चढ़ाने की बात कही तो ठाकुरों ने विरोध किया। मैंने भी घोड़ी चढ़ने की जिद पकड़ ली और घोड़ी चढ़ने के लिए जिला प्रशासन से लेकर जिला अदालत और सुप्रीम कोर्ट तक गया। 6 महीने के संघर्ष के बाद मैं घोड़ी चढ़ा। अब बहुत कुछ बदल गया है।' संजय जब बोल रहे थे, गांव के बच्चे और बूढ़े उन्हें बड़ी गौर से देख रहे थे। मानों कोई नेता बोल रहा हो। वो संविधान और उसमें सभी को मिले बराबरी के अधिकार की बात कर रहे थे।
बसई गांव में संजय जाटव का मोहल्ला भी किसी दूसरे दलित मोहल्ले जैसा ही है। टेढ़ी-मेढ़ी खरंजे की सड़क। खुली बह रहीं गंदी नालियों से लगे छोटे-छोटे घर। कई घरों की तो चारदीवारी तक नहीं है। मैं जब संजय के साथ उनके घर की ओर बढ़ रही थीं, औरतें-बच्चे घरों से झांक-झांक कर देख रहे थे। संजय के चाचा कहते हैं, 'इसने अपना बहुत नाम बना लिया है।' क्या उन्हें संजय के घोड़ी चढ़ने के बाद से किसी तरह का डर लगता है? इस पर वो कहते हैं, 'अब डर नहीं लगता। जो करना था कर लिया, आगे जो होगा देखा जाएगा।'
गांव का एक ठाकुर युवक, जिसके छोटे भाई ने संदिग्ध परिस्थितियों में आत्महत्या कर ली थी, इंसाफ की लड़ाई में मदद मांगने के लिए संजय के घर आया है। संजय उसकी मांग को हर स्तर पर उठाने का भरोसा देते हैं। मैं उस ठाकुर से पूछती हूं, क्या गांव में दलित-ठाकुर अब सब बराबर हैं। वो संजय की ओर देखकर हिचकते हुए कहता है, 'हां, अब सब बराबर ही हैं।'
गांव के बाहर बड़ा सा पूजा पंडाल बना है। मेला लगा है। चाट-पकौड़ी से लेकर हर सामान बिक रहा है। इस मेले से थोड़ा आगे बढ़ने पर एक रास्ता दाईं तरफ मुड़ता है। मोड़ पर ही एक बड़ा सा गेट बना है। गेट पर कुछ लिखा नहीं हुआ है, लेकिन इसके बगल में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत बनी सड़क पर लगे बोर्ड पर गांव का नाम लिखा है, लाखोचक।
लखीसराय शहर से करीब 8 किलोमीटर दूरी पर बसे इस गांव का एक इतिहास है। एक ऐसा इतिहास, जिसे बिहार के इतिहासकार पहली जातीय हिंसा की लड़ाई मानते हैं, लेकिन इलाके के लोग ‘युद्ध’ कहते हैं। बिहार का एक ऐसा इकलौता ‘युद्ध’ जो यहीं रहने वाले दो समुदायों के बीच हुआ। दो दिन तक चला। गोलियां चलीं। आठ से दस लोग मारे गए।
एक ऐसा ‘युद्ध’ जो अपनी जाति को सुरक्षित रखने के लिए किया गया। एक ऐसा ‘युद्ध’ जिसने राज्य में जातीय गोलबंदी को मजबूत कर दिया। एक ऐसा ‘युद्ध’ जिसने भूमिहार और यादव जैसी दो प्रमुख जातियों के बीच एक दूरी पैदा कर दी, जो आज भी चुनावों के वक्त साफ-साफ दिखती है।
इस संघर्ष के बारे में जो इतिहास की किताबों में दर्ज है, वो आपको आगे बताएंगे। अभी तो आप लाखोचक गांव में हुए विकास की कहानी सुनिए। यादव बहुल इस गांव तक आते ही सड़क उखड़ जाती है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत गांव में जो सड़क गई है और जिसका बोर्ड गांव के बाहर लगा है, वो दस दिन पहले ही बनी है। मुख्यमंत्री की सात निश्चय योजना के तहत हर घर तक पानी पहुंचाने के लिए नल लग गए हैं, लेकिन पानी नहीं आ रहा है।
27 साल के सतीश कुमार यादव कहते हैं, “कैसा विकास? अपने गांव तक बिजली लाने के लिए हमने चंदा जमाकर के घूस दी। सड़क आप देख ही रहे हैं। लखीसराय से एकदम झकाझक सड़क आई है, लेकिन गांव से पांच सौ मीटर पहले ही खत्म हो गई। गांव के अंदर जाने वाली सड़क भी पूरी नहीं बनी है।”
पास ही खड़े 70 साल के सत्यनारायण प्रसाद यादव ने एक साथ कई सवाल उछाल दिए हैं, 'कुछ नहीं है गांव में। आप क्यों आए हैं? चुनाव खराब करने आए हैं क्या? किसने भेजा है?' ये सवाल केवल सत्यनारायण प्रसाद के नहीं हैं। कई लोग जानना चाह रहे हैं कि हमारे यहां आने की वजह क्या है। असल में ये यादव बहुल गांव है। इस गांव के आसपास स्थित दूसरे दस गांव भी यादव बहुल हैं।
गांव तक बहुत कम ही लोग आते हैं। सत्यनारायण यादव को हमने पूरी तसल्ली से अपने आने की वजह बताई, फिर भी वो संतुष्ट नहीं हुए। ये कहते हुए आगे बढ़ गए कि जिसने आपको भेजा है, उसे कह दीजिएगा कि हम लोग अबरी लालू यादव के लड़के को वोट देंगे। किसी के भेजने-वेजने से कुछ नहीं होगा।
लाखोचक गांव, लखीसराय जिले के सूर्यगढ़ा विधानसभा में आता है। 28 अक्टूबर को यहां वोट डाले जाएंगे। फिलहाल इस विधानसभा सीट पर राजद का कब्जा है। इस चुनाव में NDA की तरफ से यहां जदयू मैदान में है और सामने राजद है। जदयू के बागी उम्मीदवार जो अब लोजपा के चुनाव चिन्ह पर मैदान में हैं, जदयू उम्मीदवार के लिए मुश्किलें बढ़ा रहे हैं।
राजद विधायक और उम्मीदवार प्रह्लाद यादव अपने सहयोगी दलों कांग्रेस एवं वाम दल का समर्थन प्राप्त कर रहे हैं। जदयू उम्मीदवार रामानंद मंडल वीआईपी के सहारे चुनावी बैतरणी पार करने की जुगत में हैं। ऐसी खबर है कि यहां भाजपा के ज्यादातर कार्यकर्ता चुनावी कार्यक्रम से खुद को अलग रखे हुए हैं। वे यहां जदयू से बागी हुए लोजपा प्रत्याशी रविशंकर प्रसाद सिंह उर्फ अशोक सिंह का समर्थन कर रहे हैं।
आज इतने साल बाद लाखोचक में ऐसा कोई नहीं है, जो उस जातीय भिड़ंत की कहानी सुना सके। कोई नहीं है, जो बता सके कि तब क्या हुआ? क्यों हुआ था और क्या-क्या हुआ था? गांव में कुछ युवा और बुजुर्ग घटना के बारे में ये जरूर कहते हैं, हां…दादा बताते थे। युद्ध हुआ था। भूमिहार और यादवों में। कई दिनों तक चला था। इससे ज्यादा कुछ पता नहीं है।'
जिस कहानी को गांव वाले भूल गए हैं। जो किस्सा अब इन्हें ही याद नहीं, उसे इतिहास की किताबों ने सहेज कर रखा है। स्वतंत्र लेखक प्रसन्न चौधरी और पत्रकार श्रीकांत की किताब ‘बिहार सामाजिक परिवर्तन के कुछ आयाम’ में इस घटना का विस्तार से जिक्र है। साल था 1925। बिहार में निचली समझी जाने वाली जातियां एक जगह जुटती थीं और सभी एक साथ जनेऊ धारण करते थे। इसे बिहार में ऊंची समझी जाने वाली जातियों ने खुद के लिए एक चुनौती समझा। कई जगह पर छिटपुट घटनाएं हुईं, लेकिन सबसे बड़ी घटना 26 मई 1925 को लखीसराय के लाखोचक गांव में घटी।
इस दिन जनेऊ धारण करने के लिए आसपास के कई गांवों से यादव बड़ी संख्या में यहां जुटे हुए थे। प्रसिद्ध नारायण सिंह इलाके के बड़े जमींदार थे और जाति से भूमिहार थे। वो इसके खिलाफ थे। उनके नेतृत्व ने करीब हजारों भूमिहारों ने यादवों पर हमला कर दिया। इस किताब में उस दिन की घटना कुछ यूं दर्ज है, 'उत्तर-पश्चिम दिशा से करीब 3000 बाभनों की भीड़ गोहारा बांधे बस्ती की तरफ बढ़ रही थी। हाथी पर अपने कुछ लोगों के साथ बैठे विश्वेश्वर सिंह भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे। आजू-बाजू में घुड़सवार थे, जिसमें एक खुद जमींदार प्रसिद्ध नारायण सिंह थे। भीड़ लाठी, फरसा, गंडासा, तलवार और भाले से लैस थी।'
इस दिन पुलिस ने 118 राउंड फायरिंग की। पुलिस के सब इंस्पेक्टर और एसपी बुरी तरह घायल हुए। इस घटना में 8 से लेकर 80 लोगों के मारे जाने की बात कही जाती है। ऐसा माना जाता है कि लाखोचक की ये घटना बिहार के इतिहास में पहली जातीय हिंसा या जातीय आधार पर बड़े हमले जैसी घटना है। इस घटना ने राज्य की जातीय संरचना को, यहां की व्यवस्था को और आगे चलकर राजनीति को बहुत हद तक प्रभावित किया है। शायद यही वजह है कि आज सालों बाद भी बिहार की दो जातियां यादव और भूमिहार दो अलग-अलग छोर पर खड़ी दिखती हैं।
दिल्ली की रहने वाली सुप्रिया दलाल सरकारी स्कूल में टीचर हैं। खाली समय में वह खेती करती हैं। डेढ़ साल पहले उन्होंने ऑर्गेनिक सब्जियों की खेती शुरू की है। आज वो 5 एकड़ जमीन पर 17 तरह की सब्जियां उगा रही हैं। 300 से ज्यादा उनके कस्टमर्स हैं। हर महीने 3 लाख रुपए की आमदनी भी हो रही है।
सुप्रिया कहती हैं- मैंने कभी फार्मिंग के बारे में नहीं सोचा था। यह मेरे लाइफ में अचानक से ही आई और अब मेरी लाइफस्टाइल में शामिल हो गई। 2016 में दिल्ली सरकार ने स्कूली शिक्षकों के लिए एक नई व्यवस्था शुरू की। इसके तहत ऐसे लोग जो प्रोफेशनल ग्रोथ चाहते हैं और इनोवेटिव सोच रखते हैं, उनके लिए अलग से एक प्रोजेक्ट लॉन्च किया। किस्मत से मेरा भी उसमें सेलेक्शन हो गया।
सुप्रिया बताती हैं कि इस प्रोजेक्ट में शामिल होने के बाद फिक्स्ड टाइमिंग की बाध्यता खत्म हो गई। हमें सहूलियत के हिसाब से ऑनलाइन लेक्चर लेने और वर्कशॉप करने की छूट मिल गई। इस प्रोजेक्ट में हम लोग अक्सर कई रिलेवेंट टॉपिक पर वर्कशॉप और लर्निंग प्रोग्राम कराते रहते हैं।
सुप्रिया बताती हैं कि मुझे ऑर्गेनिक फार्मिंग पर कुछ सेशन अटेंड करने को मिला। इससे काफी कुछ सीखने को मिला। उस समय मुझे पता चला कि हम जो बाहर से सब्जियां और खाने की चीजें खरीद रहे हैं, उसमें कितना केमिकल है। अपने परिवार को, अपने बच्चे को जो खाना हम खिला रहे हैं, वो उनके हेल्थ के लिए कितना खतरनाक है।
उन्होंने कहा, "मैंने मन ही मन सोच लिया कि कम से कम जरूरत की चीजें तो खुद उगाई ही जा सकती हैं। क्यों न इसके लिए कोशिश की जाए। मैंने कुछ लोगों से बात की, मैं चाह रही थी कि कम्युनिटी फार्मिंग की जाए, लेकिन मेरे साथ आने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। फार्मिंग का कोई एक्सपीरियंस तो नहीं था मुझे, लेकिन गार्डेनिंग का शौक था। मैंने कुछ रिसर्च की, कुछ लोगों से बात भी की। सबसे ज्यादा यूट्यूब से हेल्प ली। जो लोग ऑर्गेनिक खेती करते हैं, उनके वीडियोज देखे।"
"दिल्ली से थोड़ी दूरी पर कराला में हमारी थोड़ी जमीन थी। वहां अप्रैल 2019 में एक एकड़ जमीन से ऑर्गेनिक फार्मिंग की शुरुआत की। सबसे पहले मैंने सब्जियां लगाई। पहले ही साल अच्छा रेस्पॉन्स रहा। इसके बाद मैंने खेती का दायरा बढ़ा दिया। अभी पांच एकड़ जमीन पर खेती कर रही हूं। 17 तरह की सब्जियां उगा रही हूं। अब मैंने मल्टीलेयर फार्मिंग की भी शुरुआत की है। 10 लोग मेरी टीम में काम करते हैं।"
वो कहती हैं- मेरे लिए काम आसान नहीं था। घर के लोगों ने भी विरोध किया। उनका कहना था कि देश में बहुत से लोग ऑर्गेनिक खेती करते हैं, हमें खुद उगाने की क्या जरूरत है। हम खरीद भी तो सकते हैं, लेकिन मैंने मन बना लिया था कि खुद से ही करनी है। जब काम करने लगी तो पति ने भी इसमें मेरी मदद की। वो आज भी भरपूर सहयोग करते हैं, मैं बाहर रहती हूं तो वो घर पर बच्चों की देखरेख करते हैं।
सुप्रिया बताती हैं कि मार्केटिंग के लिए मुझे ज्यादा दिक्कत नहीं उठानी पड़ी। मेरा फ्रेंड सर्कल बड़ा था। कई लोगों से पहले से ही जान-पहचान थी। उन्हें अपने काम के बारे में और प्रोडक्ट के बारे में जानकारी दी। मेरी सारी सब्जियां हाथों हाथ बिक जाती हैं। मंडी या मार्केट में ले जाने की भी जरूरत नहीं पड़ती। अभी हमने फार्म टू होम नाम से एक वॉट्सऐप ग्रुप बनाया है। 300 से ज्यादा लोग इससे जुड़े हैं। जिसकी जो जरूरत होती है, वह ग्रुप में शेयर कर देता है। हम उसके घर सामान भिजवा देते हैं। अभी 100 के करीब हमारे रेगुलर कस्टमर हैं।
वो कहती हैं कि हम सिर्फ सब्जियां ही नहीं, बल्कि हर वो चीज सप्लाई करते हैं, जो किसी के किचन की जरूरत होती है। जो चीज मैं अपने खेत में उगाती हूं, उसके साथ ही बाकी चीजें में दूसरे किसानों के यहां से लाती हूं और अपने ग्राहकों तक पहुंचाती हूं।
सुप्रिया बताती हैं कि आगे मैं एग्रो टूरिज्म को लेकर काम करने वाली हूं ताकि लोगों को दिल्ली जैसे शहर में भी प्योर ऑर्गेनिक और हेल्दी फूड खाने को मिले। साथ ही बड़े लेवल पर ट्रेनिंग सेंटर भी खोलना चाहती हूं ताकि जो लोग इस क्षेत्र में आना चाहते हैं, उन्हें इसके बारे में जानकारी मिल सके। वो कहती हैं कि कोरोना के चलते मुझे यह फायदा हुआ कि मैं ज्यादा समय फार्मिंग को देने लगी।
अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट ने 20 अक्टूबर को 6 रूसी सैन्य अफसरों पर ग्लोबल साइबर हमलों का आरोप लगाया। फिर 22 अक्टूबर को एडवायजरी जारी कर कहा कि रूसी हैकर्स ने स्टेट और लोकल सरकारों के नेटवर्क को निशाना बनाया और दो सर्वर से डेटा चुराया है।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों से दो हफ्ते पहले इन आरोपों से चुनाव प्रक्रिया पर संदेह पैदा हो रहे हैं। यह डर भी बढ़ गया है कि वोटिंग प्रक्रिया में छेड़छाड़ हो सकती है। ऐसे में नतीजों पर भरोसा करना मुश्किल हो जाएगा। क्या वाकई में रूस हैकिंग के जरिए अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया में छेड़छाड़ कर रहा है? कोई देश किसी अन्य देश की चुनाव प्रक्रिया को कैसे प्रभावित कर सकता है?
रूस पर हैकिंग के आरोपों में कितना दम है?
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों से ढाई महीने पहले सीनेट की खुफिया मामलों की कमेटी की रिपोर्ट आई थी। इसमें कहा गया था कि रूस ने रिपब्लिकन पार्टी के राजनीतिक मामलों के प्रबंधक पॉल मैनफोर्ट और विकीलीक्स के जरिए 2016 के चुनाव को प्रभावित किया था। इस चुनाव में ट्रम्प को डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रत्याशी हिलेरी क्लिंटन के मुकाबले अप्रत्याशित जीत हासिल हुई थी।
रिपब्लिकन पार्टी के बहुमत वाले सीनेट की रिपोर्ट में कहा गया है- 2016 में विकीलीक्स ने ट्रम्प को मिली रूसी मदद में अहम भूमिका निभाई। इस कैम्पेन को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन खुद देख रहे थे। कंप्यूटर नेटवर्क हैक करवाकर ऐसी जानकारियां फैला रहे थे, जिनसे हिलेरी को नुकसान हो।
सीनेट की इस रिपोर्ट से पहले अमेरिकी चुनाव में रूसी दखल की जांच स्पेशल इन्वेस्टीगेटर रॉबर्ट मूलर ने भी की थी, लेकिन दो साल की जांच के बाद वह रूसी हस्तक्षेप के सबूत नहीं जुटा पाए थे। नतीजे पर पहुंचे बगैर उन्होंने जांच बंद कर दी थी।
FBI की नई एडवायजरी क्या कहती है?
रूस के सरकारी समर्थन वाले हैकिंग ग्रुप की गतिविधियों पर इस बार फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (FBI) और डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी की साइबर सिक्योरिटी एजेंसी ने एडवायजरी जारी की है।
एडवायजरी में यह तो नहीं बताया कि किसे टारगेट किया, लेकिन यह जरूर कहा है कि हैकर्स ने अमेरिकी नीतियों और सरकारी कामकाज को प्रभावित करने के उद्देश्य से जानकारी हासिल करने की कोशिश की है।
अमेरिका में वोटर्स को कैसे कंफ्यूज किया जा रहा है?
हाउ टू लूज द इंफर्मेशन वारः रशिया, फेक न्यूज एंड द फ्यूचर ऑफ कॉन्फ्लिक्ट की लेखिका नीना जैंकोविक का कहना है कि रूस ने 2016 में वोटर्स को कंफ्यूज किया। इस बार तो उसे इसकी जरूरत भी नहीं पड़ी।
ट्रम्प तो खुद दावा कर रहे हैं कि मेल-इन वोटिंग फ्रॉड है। उन्होंने डेमोक्रेट्स पर मेल-इन वोटिंग से चुनाव चुराने का आरोप लगाया है। उन्होंने नॉर्थ कैरोलिना में वोटर्स को दो बार वोट करने को प्रेरित किया, जो गैरकानूनी है।
सितंबर में होमलैंड सिक्योरिटी डिपार्टमेंट के मेमो ने कहा कि रूस ई-मेल वोटिंग की आलोचना कर रहा है। वोटिंग प्रोसेस शिफ्ट कर रहा है। कोरोना महामारी के बीच यह दुष्प्रचार चुनाव प्रक्रिया से भरोसा हटाने के लिए है।
प्रायमरी में रूसी सरकारी मीडिया और प्रॉक्सी वेबसाइट्स ने बैलट डिलीवरी से जुड़ी कहानियां गढ़ीं। रूसी मीडिया और प्रॉक्सी वेबसाइट्स ने यूनिवर्सल मेल-इन वोटिंग की आलोचना की। इस दलील को ट्रम्प ने भी आगे बढ़ाया।
मॉस्को ने अमेरिका में नस्लीय राजनीति और पुलिस बर्बरता का कोल्ड वॉर के दौरान भी लाभ उठाया, लेकिन इस बार यह एक प्रमुख मुद्दा है। पुलिस बर्बरता के खिलाफ पहले ही आंदोलन गरमाया था।
अमेरिका में एक धड़ा मानता है कि 2016 के चुनावों में रूस ने हस्तक्षेप किया, जबकि एक धड़ा मानता है कि यह ट्रम्प के खिलाफ साजिश है। एक सेग्मेंट मानता है कि मेल-इन वोटर फ्रॉड के जरिए चुनाव है।
एक ग्रुप को लगता है कि यूनाइटेड स्टेट्स पोस्टल सर्विस के जरिए मेल-इन वोटिंग को प्रभावित कर सकता है। एक सेग्मेंट अब भी क्वारैंटाइन में है, जबकि दूसरे को लगता है कि कोविड-19 एक अफवाह है और इसे ट्रम्प को नुकसान पहुंचाने के लिए प्रचारित किया जा रहा है।
रूस से किसे ज्यादा खतरा, ट्रम्प को या बाइडेन को?
यदि पिछले चुनावों की बात करें तो एक्सपर्ट्स के मुताबिक, रूसी हस्तक्षेप का फायदा ज्यादातर ट्रम्प को मिला था और हिलेरी की हार में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडेन भी यही डर दोहरा रहे हैं।
एक इंटरव्यू में बाइडेन ने कहा कि अमेरिका की सुरक्षा और अलायंसेस के लिए रूस ही सबसे बड़ा खतरा है। अपने पूरे कैम्पेन में बाइडेन रूस की आलोचना करते रहे हैं। कुछ हफ्तों पहले व्लादिमीर पुतिन को बाइडेन के कमेंट्स पर जवाब देना पड़ा था।
बाइडेन ने 29 सितंबर की क्लीवलैंड में हुई पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट में ट्रम्प को पुतिन का पपी कहकर पुकारा था। बाइडेन का कहना है कि ट्रम्प ने सभी तानाशाहों को गले लगाया और दोस्तों को परेशान किया।
2016 में रूस ने कैसे किया था अमेरिकी चुनावों में हस्तक्षेप?
अमेरिकी एक्सपर्ट्स का दावा है कि रूस का लक्ष्य चुनाव प्रक्रिया को लेकर वोटर्स को कंफ्यूज करना है। यह सिर्फ कंप्यूटर या नेटवर्क की हैकिंग नहीं है, बल्कि लोगों के दिमाग को हैक करना है।
अविश्वास का माहौल बनाना है। 2016 में भी उसने ऐसा ही किया था। इस बार भी वह इसके लिए कोशिश कर रहा है। इसमें उसकी मदद करने में अमेरिकी भी पीछे नहीं है। प्रेसीडेंट ट्रम्प के बयान भी कंफ्यूजन बढ़ा ही रहे हैं।
रॉबर्ट मूलर ने इंटरनेट रिसर्च एजेंसी की गतिविधियों की पड़ताल की। सीनेट कमेटी ने भी ऐसा ही किया। 2016 में रूसी मिलिट्री इंटेलिजेंस (GRU) से जुड़े हैकर्स ने डेमोक्रेटिक नेशनल कमेटी (DNC) और डेमोक्रेटिक कैम्पेन कमेटी (DCCC) के कंप्यूटर नेटवर्क में घुसपैठ की।
हैकर्स ने पर्सनल ई-मेल्स और अन्य दस्तावेज हासिल किए, फिर उन्हें ऑनलाइन पब्लिश किया। पहले तो फेक नाम से और फिर विकीलीक्स के जरिए। पहला लीक जुलाई 2016 में आया, ठीक डेमोक्रेटिक कन्वेंशन से पहले। कोशिश थी कि डेमोक्रेट्स की एकता खत्म हो सके।
सीनेट कमेटी ने यह भी पाया कि रूसी हैकर्स ने 2016 में सभी 50 राज्यों में वोटर और रजिस्ट्रेशन डेटाबेस को भी हैक किया। इसके कोई सबूत नहीं हैं कि वोट को चेंज किया गया, लेकिन इलिनोइस समेत कुछ जगहों पर कमेटी ने पाया कि रूस ने वोटर का डेटा बदला या डिलीट किया।
आपको पता है न्यूजीलैंड में 34.87 लाख वोटर हैं, जहां महीनेभर पहले चुनाव हुए हैं। अब आप सोचेंगे कि बिहार में न्यूजीलैंड की बात क्यों? ऐसा इसलिए ताकि आप समझ सकें कि बिहार में जो चुनाव होने जा रहा है, वो कोरोना के दौर का सबसे बड़ा चुनाव है।
बिहार में कुल 7.29 करोड़ वोटर हैं। पहले फेज की जिन 71 सीटों पर आज वोटिंग होनी है, वहां 2.14 करोड़ से ज्यादा वोटर हैं। यानी न्यूजीलैंड से 6 गुना ज्यादा। अब तो आप समझ ही गए होंगे कि क्यों बिहार चुनाव सबसे बड़ा चुनाव है। अप्रैल में दक्षिण कोरिया में भी एक चुनाव हुआ था। यहां भी कुल 4.39 करोड़ वोटर थे।
कोरोना के इस दौर में होने जा रहे पहले चुनाव में वोट डालना भी जरूरी है और अपनी सेहत का ध्यान रखना भी। आप वोट भी डाल सकें और सेहत भी सही बनी रहे, इसके लिए चुनाव आयोग ने कुछ गाइडलाइन बनाई है। मसलन, वोटिंग से पहले ही पोलिंग बूथ सैनेटाइज किया जाएगा। पोलिंग बूथ पर सोशल डिस्टेंसिंग बनी रहे, इसके लिए 6-6 फीट की दूरी पर सर्कल बनाए जाएंगे। क्योंकि आज पहले फेज की वोटिंग है, तो जाहिर है कि आप भी वोट डालने जा ही रहे होंगे। लेकिन, वोटिंग पर जाने से पहले जान लें कि चुनाव आयोग की गाइडलाइन क्या-क्या है?
टिम हर्रेरा. कोरोना ने दुनिया को तबाह कर दिया। चार करोड़ से ज्यादा लोग बीमार हुए। तमाम देशों की इकोनॉमी ठहर गई। लाखों लोगों की नौकरियां चलीं गईं। स्कूल-कॉलेज आज तक बंद हैं। करीब 7 महीने से तमाम लोग तनाव और डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। ऐसे में जरूरत है खुद को मोटिवेट करने की।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर डेनियल्ले कहते हैं कि हम खुद को अभी भी उसी तरह से ट्रीट कर रहे हैं, जैसे महामारी से पहले करते आए हैं। यह तनाव और डी-मोटिवेट होने की सबसे बड़ी वजह है। अभी तनाव से बचने और मोटिवेट रहने के लिए हमें खुद को नए माहौल के मुताबिक ढलना होगा, नए तरीके से सोचना होगा।
उन्होंने कहा- आप जितना ज्यादा इंगेज रहेंगे, कम सोचेंगे और खुश रहेंगे, उतना ही ज्यादा मोटिवेट रहेंगे। मोटिवेट रहने के लिए आप परिवार और दोस्तों का भी सहारा ले सकते हैं।
इन 4 तरीकों से खुद और दोस्तों को रखें मोटिवेट
1- समय के साथ खुद को बदलें
हमें जबरदस्ती समान्य महसूस नहीं करना चाहिए, बल्कि बदले हुए माहौल में सही तरीके से ढलने की कोशिश करनी चाहिए। जब तक हम बदलाव से दूर भागते रहेंगे, तब-तक हम खुद को नए माहौल में ढाल नहीं सकेंगे। यह विरोधाभास हमारे स्वभाव में भी दिखेगा, जो हमें परेशान कर सकता है।
डॉ. डेनियल्ले कहते हैं कि हमें अपनी उम्मीदों को भी बदले हुए माहौल के हिसाब से ढाल लेना चाहिए। यह बिलकुल नहीं सोचना चाहिए कि आप अभी कुछ नहीं कर रहे हैं। ऐसा सोचने से हम और ज्यादा डी-मोटिवेट होंगे।
2- परिवार और दोस्तों का सहारा लें
हमें हर परिस्थिति को फेस करने के लिए खुद को फ्लेक्सिबल बनाना चाहिए, लेकिन दो फैक्टर हमारी फ्लेक्सिब्लिटी को प्रभावित कर सकते हैं। पहली हमारी बॉडी लैंग्वेज और दूसरी हमारी मानसिकता। इन दोनों को किसी भी माहौल में ढालना बेहद अहम होता है। अगर हम ऐसा कर लेते हैं तो हम फ्लेक्सिबल हो सकते हैं।
हमें स्ट्रेस से भी डील करना आना चाहिए, क्योंकि जब भी लाइफ में मुश्किलें आएंगी, हमें तनाव होना स्वाभाविक है। आप चाहें तो अपनी मुश्किलों को परिवार और दोस्तों से शेयर कर सकते हैं। ऐसा करने से आपको सोशल सपोर्ट मिलेगा, जो आपके तनाव को कम करने में मददगार होगा और आप मोटिवेट भी होंगे।
3- खुश रहने की वजह ढूंढें
नो हार्ड फीलिंग के राइटर लिज फॉसलिन लिखते हैं- अगर आप एंग्जाइटी या तनाव से परेशान हैं तो हर वो छोटी-छोटी चीजें करें, जिनसे आपको खुशी मिलती हो।
उन्होंने लिखा है- आप एन्जॉय करने के लिए मानसिक तौर पर तैयार हैं तो आपको बाहर जाने या कुछ बड़ा करने की जरूरत नहीं है। हर इंसान के पास खुश होने की वजह होती है, अगर वह चाहे तो उसे ढूंढ भी सकता है। ये तरीके तनाव और एंग्जाइटी का सामना कर रहे लोगों के लिए किसी दवा से कम नहीं हैं और शायद सबसे ज्यादा कारगर भी हैं।
7 महीने में बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन मोटिवेट होने का एलिमेंट अभी भी पुराना है। हमें इसे बदलने और समझने की जरूरत है। कम सोचना सबसे जरूरी काम है। ज्यादा सोचने से करियर, जॉब और फैमिली को लेकर मन में असुरक्षा के भाव आने लगते हैं। इसी से तनाव पैदा होता है।
सोचना कम करने के लिए सबसे कारगर उपाय है कि आप ज्यादा से ज्यादा खुद को व्यस्त रखें। खुद को कुछ इस तरह का टास्क भी दे सकते हैं, जो आपको पूरे दिन व्यस्त रखे।
4- लाइफस्टाइल को बदलें
हम अब अपनी लाइफ उस तरह से नहीं जी सकते हैं, जिस तरह महामारी से पहले जीते आए हैं। दुनिया दूसरे तरीके से ही सही, लेकिन चल रही है। आप हाथ पर हाथ रखे बैठे रहेंगे और खुद को मोटिवेट नहीं करेंगे तो सिर्फ तनाव को गले लगाएंगे। अब हमें अपनी लाइफस्टाइल को बदलना चाहिए।
डॉ. डेनियल्ले कहते हैं कि यह चुनौती भरा काम जरूर है, लेकिन हमारे पास और कोई विकल्प भी नहीं है। हमें तनाव कम करने के लिए लाइफ में और ज्यादा अनुशासन लाना होगा। छोटी सी भी लापरवाही हम पर और भारी पड़ सकती है। एक छोटा सा ब्रेक हमारे तनाव और डिप्रेशन का कारण भी बन सकता है।
भाजपा ने सितंबर 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था। इसके बाद पटना के गांधी मैदान में 27 अक्टूबर को हुंकार रैली की गई थी। इसमें बड़ी संख्या में लोग जुटे थे। इसी दौरान 7 धमाके हुए। 2 ब्लास्ट रेलवे स्टेशन पर हुए और 5 गांधी मैदान पर। इसमें 6 लोगों की मौत हुई और करीब 66 लोग घायल हुए।
2014 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर यह एक बड़ी रैली थी। बिहार में नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री थे और उन्होंने जून में NDA से बाहर होने का फैसला किया था। दरअसल, मोदी को BJP/NDA का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी और इसी बात को लेकर नीतीश नाराज चल रहे थे। प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने के बाद मोदी की यह पटना में पहली रैली थी। इस वजह से इस पर पूरे देश की नजरें थीं।
पिछले साल यानी ब्लास्ट के 6 साल बाद नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) ने इस बम ब्लास्ट के एक आरोपी को हैदराबाद से गिरफ्तार किया था। हैदराबाद से पकड़े गए इस आतंकी का नाम अजहरुद्दीन उर्फ केमिकल अली है। इंडियन मुजाहिदीन (IM) के इस आतंकी को हैदराबाद एयरपोर्ट से उस वक्त गिरफ्तार किया गया, जब वह विदेश जाने की कोशिश में था।
आर्मेनिया की संसद में गोलीबारी
कुछ हथियारबंद हमलावरों ने 1999 में आर्मेनिया की संसद में सांसदों पर गोलीबारी शुरू कर दी थी। इस हमले में आर्मेनिया के प्रधानमंत्री वाजगेन सर्ग्सयान और स्पीकर कारेन देमिरच्यान मारे गए थे। बागी हमलावरों का दावा था कि उनके निशाने पर प्रधानमंत्री थे। आर्मेनियाई सैनिकों ने संसद भवन को चारों ओर से घेर लिया था, तब जाकर हमलावरों ने सरेंडर किया था।
इतिहास में आज के दिन को इन घटनाओं के लिए भी याद किया जाता है:
1605: मुगल साम्राज्य के तीसरे शासक अकबर का फतेहपुर सीकरी में निधन हुआ।
1676: पोलैंड और तुर्की ने वारसा की संधि पर हस्ताक्षर किए।
1795ः अमेरिका और स्पेन ने सैन लोरेंजो की संधि पर हस्ताक्षर किए।
1811: सिलाई मशीन के आविष्कारक आइजैक मेरिट सिंगर का जन्म हुआ।
1904ः स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी जितेंद्र नाथ दास उर्फ जतिन दास का कलकत्ता में जन्म हुआ।
1905: नार्वे स्वीडन से अपना गठजोड़ समाप्त करके स्वतंत्र हो गया।
1910: रूस और चीन के साथ कई वर्षों के युद्ध के बाद जापान को 1910 में इन दोनों देशों पर जीत मिली।
1920: लीग ऑफ नेशन का मुख्यालय जिनेवा में स्थानांतरित किया गया।
1924ः उज्बेक एसएसआर 1924 को सोवियत संघ में मिला।
1952ः सिंगर अनुराधा पौडवाल का जन्म हुआ।
1982ः चीन ने अपनी जनसंख्या एक अरब से ज्यादा होने का ऐलान किया।
1991: तुर्कमेनिस्तान की उच्च परिषद ने सोवियत संघ से इस देश की स्वतंत्रता को मंजूरी दी गई।
1995ः यूक्रेन में कीव स्थित चेर्नोबिल परमाणु संयुत्र सुरक्षा खामियों के कारण पूरी तरह बंद किया गया।
2003ः चीन में भूकंप से 50,000 से अधिक लोग प्रभावित। बगदाद में बम धमाकों से 40 की मौत।
क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हो रही है। फोटो में सड़क पर Modi Go Back लिखा दिख रहा है। दावा किया जा रहा है कि फोटो बिहार की है। जहां चुनाव प्रचार के दौरान लोगों ने इस तरह पीएम मोदी पर अपना गुस्सा जाहिर किया।
वायरल फोटो को सबसे पहले हमने गूगल पर रिवर्स सर्च किया। इससे पता चला कि यही फोटो 10 महीने पहले भी सोशल मीडिया पर अलग-अलग हैंडल्स से पोस्ट की जा चुकी है। यानी साफ है कि फोटो का बिहार में होने जा रहे विधानसभा चुनावों से कोई संबंध नहीं है।
पत्रकार मयूख रंजन घोष ने 11 जनवरी, 2020 को यही फोटो ट्वीट की है। इस ट्वीट से पता चलता है कि फोटो कोलकाता की है।
This is one of the busiest roads in Kolkata. #Esplanade. Lakhs and lakhs of people commute, jam packed traffic r seen. Just look at this place tonight. Roads turned into graffitis, no traffic, all roads blocked, students protesting overnight.
इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली, जिससे पुष्टि हो सके कि वायरल हो रही फोटो कोलकाता की ही है। इसके बाद हमने फोटो के बैकग्राउंड में मिलने वाले क्लू के जरिए पड़ताल की।
फोटो के बैकग्राउंड में बिल्डिंग पर Metro Channel Control Post Hare Street लिखा हुआ देखा जा सकता है।
गूगल मैप से भी यही पुष्टि होती है कि Hare Street कोलकाता का ही मेट्रो स्टेशन है। साफ है कि बिहार चुनाव से जोड़कर शेयर की जा रही फोटो असल में पश्चिम बंगाल की है।
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर की दूसरी पारी का एक साल आज पूरा हो गया। उन्होंने हर दफा शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा पर चुनावी वादे किए। लगभग 6 साल में प्रदेश के मुखिया के वादे जमीन पर कितने सच हुए, यह जानने के लिए भास्कर उनके गांव बनियानी पहुंचा। पता चला कि सिर्फ बातें होती रहीं, काम नहीं। बनियानी रोहतक में है।
सफाई के लिए एक गली का नंबर कई दिन बाद आता है तो गांव के अस्पताल में एम्बुलेंस नहीं है, जो पहले हुआ करती थी। पुलिस सिर्फ दिखावे के लिए आती है, नियमित गश्त नहीं हो रही है। स्कूल बिल्डिंग कंडम हो चुकी है, नई अब तक बन नहीं पाई है। गांव का कथित डस्टबिन घोटाला पिछले समय पूरे हरियाणा में सुर्खियों में आ चुका है। मुख्यमंत्री के गांव के यह हालात बता रहे हैं कि पूरे हरियाणा के गांवों की तस्वीर क्या होगी।
स्वास्थ्य: अस्पताल है लेकिन एम्बुलेंस नहीं
गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है, लेकिन सिर्फ नाम का। पहले एम्बुलेंस थी अब वह भी नहीं है। अधिकतर मरीजों को कलानौर या रोहतक रेफर करना पड़ता है। हालात ये हैं कि यहां शुगर जैसी मामूली जांच भी नहीं हो पाती। खांसी-बुखार जैसी बीमारियों के लिए गोलियां दे दी जाती हैं। गांव वालों का कहना है कि स्वास्थ्य सुविधा पर हर चुनाव में जिस तरह के वादे किए गए, उन पर अमल नहीं कराया जा सका।
सफाई: कर्मचारी बदल गए, लेकिन हालात नहीं
गांव के सुनील, अशोक बताते हैं- नालियां ओवरफ्लाे हैं। कूड़े के ढेर चौराहों पर नजर आते हैं। हालांकि, पिछले साल चुनाव घोषित होते ही मुख्यमंत्री खट्टर गांव में आए थे। ग्रामीणों ने सफाई कर्मचारी को हटाने की मांग की थी। डिप्टी कमिश्नर ने नए सफाई कर्मचारी तैनात किए थे। हकीकत यह है कि वे पूरी तरह गांव की साफ-सफाई नहीं कर रहे हैं। सरपंच के पति बंसी विज कह रहे हैं कि जब तक लोग साफ-सफाई जागरूक नहीं होंगे, समस्या बनी ही रहेगी।
सुरक्षा: नशेड़ियों और आदतन बदमाशों से तंग हैं लोग
गांव के मुख्य मार्ग पर कई बार वारदातें हो गईं। जन्माष्टमी के दिन घटना का शिकार हुए राकेश ने कहा कि काम से लौटते वक्त नशेड़ियों ने रोका और बाइक की चाबी, मोबाइल छीन लिया। जेब से 12 हजार रुपए निकाले और बंधक बनाकर दूर तक ले गए। बाइक लौटा दी, लेकिन पैसे नहीं लौटाए। अन्य के साथ भी ऐसी घटनाएं हुई हैं। ग्रामीण राजेश ने कहा 2016 में हमला हुआ था। मामला बड़े लेवल पर उठा तो हाईकोर्ट के आदेश पर 11 लोगों को तड़ीपार किया गया था, लेकिन वे गांव में ही घूमते रहते हैं। मुझ पर और पिता पर 2-3 बार हमले हो चुके हैं। सरपंच खुद ऐसे लोगों को संरक्षण देते हैं।
शिक्षा : स्कूल बिल्डिंग नए सिरे से बनेगी तब लगेगी कक्षा
यहां 12वीं तक स्कूल तो है, लेकिन भवन जर्जर हो चुका है। नए सिरे से उसे बनवाने के लिए पुरानी बिल्डिंग का कुछ हिस्सा तोड़ना पड़ा। काम बीएंडआर विभाग द्वारा कराया जा रहा है। निर्माण अभी तक 50 से 60% ही हो पाया है। सरपंच की ओर से कहा जा रहा है कि 80% काम हो चुका है।
बारी-बारी से होती है सफाई, बुलावे पर आ जाती है एंबुलेंस: सरपंच
गांव की सरपंच के पति बंसी विज ने कहा कि 8500 की आबादी वाले गांव में चार ही कर्मचारी हैं। गलियों में सफाई का नंबर बारी-बारी से आता है। अस्पताल ठीक है और डाक्टर भी हैं। एम्बुलेंस बुलावे पर आ जाती है। पुलिस गश्त के लिए अफसरों से बात करूंगा। मैंने किसी को शह नहीं दी। स्कूल भवन जल्द बन जाएगा। डस्टबिन घोटाले का आरोप गलत है। आचार संहिता वगैरह के चलते यह काम बीडीपीओ को सौंप दिया गया था। उनके आदेश पर गांव में डस्टबिन आए थे, जो स्टॉक में हैं।