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प्रवासियों और गरीबों की आवाज उठाने के लिए कांग्रेस आज 11 बजे से देशभर में स्पीक अप इंडिया कैंपेन शुरू करेगी। कांग्रेस का कहना है कि तीन घंटे चलने वाली इस ऑनलाइन कैंपेन में सोशल मीडिया के सभी प्लेटफॉर्म के जरिए जनता से बात की जाएगी। इसमें पार्टी के 50 लाख कार्यकर्ता और समर्थक हिस्सा लेंगे।
'आपदा में गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित'
कांग्रेस का कहना है कि प्रवासी, छोटे उद्योग और खुदरा व्यापारी परेशान हैं। काम-धंधे ठप होने से बहुत से लोगों के बेरोजगार होने का रिस्क बढ़ गया है। किसी भी आपदा में सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब लोग होते हैं। ऐसे लोगों के लिए ही स्पीक अप इंडिया कैंपेन चलाया जाएगा।
'गरीब परिवारों को 10 हजार रुपए की मदद तुरंत मिले'
कांग्रेस कीमांग है कि प्रवासियों सेकिराया लिए बिना सरकार उन्हें सम्मान के साथ घर पहुंचाए। हर गरीब परिवार को 6 महीने तक 7 हजार 500 रुपए दिए जाएं, लेकिन उन्हें 10 हजार की मदद तुरंत मिलनी चाहिए। छोटे उद्योगों को भी जल्द से जल्द मदद की जरूरत है।मनरेगा के तहत रोजगार गारंटी बढ़ाकर 200 दिन करनी चाहिए।
देश में कोराना संक्रमितों की संख्या 1 लाख 58 हजार 73 हो गई। बुधवार को एक दिन में सबसे ज्यादा 7261 मरीज मिले। इससे पहले 24 मई को 7111 कोरोना पॉजिटिव मिले थे। 18 मई को मरीजों का आंकड़ा 1 लाख और अगले 8 दिन यानी 27 मई को डेढ़ लाख हो गया। अब हर दिन औसतन 7000 संक्रमित बढ़ने का अनुमान है। ऐसे में यह संख्या अगले 5 दिन में (2 जून तक) 2 लाख के पार हो सकती है।
महाराष्ट्र संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य है। यहां बुधवार को 2190 मामले सामने आए। इसके अलावा तमिलनाडु में 817,गुजरात में 376, राजस्थान में 280, पश्चिम बंगाल में 183, जम्मू-कश्मीर में 162, कर्नाटक में 135 मरीज मिले।ये आंकड़े Covid19.Org और राज्य सरकारों से मिली जानकारी के आधार पर हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक देश में कोरोना मरीजों की संख्या 1 लाख 51 हजार 767 है। 83 हजार 04 एक्टिव मरीज यानी इनका अस्पताल में इलाज चल रहा है। 64 हजार 425 ठीक भी हुए हैं, जबकि 4337 की मौत हुई है।
5 दिन जब सबसे ज्यादा मामले
तारीख
केस
26 मई
6,387
24 मई
7111
23 मई
6665
22 मई
6570
19 मई
6154
पांच राज्योंका हाल
मध्यप्रदेश:राज्य में बुधवार को 237 कोरोना मरीज मिले, जबकि 8 की मौत हुई।राजभवन में रह रहे 6 कर्मचारियों की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। इसके बाद गर्वनर हाउस को कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया गया।
महाराष्ट्र: राज्य में बुधवार को 2190 मरीज मिले, जबकि रिकॉर्ड 105 मरीजों की मौत हुई। यहां कोरोना से अब तक 1897 लोगों की मौत हुई है।वहीं, मुंबई में बुधवार को 1044 संक्रमित मिले और 32 लोगों की जान गई। यहां 1097 मरीज दम तोड़ चुके हैं।
उत्तरप्रदेश:राज्य में बुधवार को 267 मरीज मिले। इसमें हापुड़ में 29, अयोध्या मेें 23, जौनपुर में 17, मेरठ और मुरादाबाद में 13-13, मुजफ्फरनगर में 11, संभल में 10 मरीज मिले। उत्तरप्रदेश में मंगलवार को 227 मरीज मिले थे, जबकि 8 की मौत हुई थी।
राजस्थान:यहां बुधवार को संक्रमण के 280 मामले सामने आए और दो मौतें हुईं। इसमें झालावाड़ में 64, जयपुर में 42, जोधपुर में 33, पाली में 21, कोटा में 18, सीकर में 13 कोरोना पॉजिटिव मिले। राज्य में दो संक्रमितों की मौत भी हुई।इससे पहले मंगलवार को संक्रमण के 236 मामले सामने आए थे।
बिहार:राज्य में बुधवार को 38 नए मरीज मिले। एक डीएम की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। वह उत्तर बिहार में तैनात हैं। बिहार में सरकारी अधिकारी में संक्रमण का यह दूसरा मामला है। इससे पहले नालंदा में एक आईएएस संक्रमित पाए गए थे। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से बड़ी संख्या में प्रवासी घर लौट रहे हैं। 3 मई के बाद आने वाले प्रवासियों में 1900 संक्रमित मिले हैं, जो राज्य के कुल संक्रमित का लगभग 66% है।
from Dainik Bhaskar /national/news/coronavirus-outbreak-india-live-today-news-updates-delhi-maharashtra-kerala-rajasthan-cases-novel-corona-covid-19-death-toll-127348578.html
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रह-रह आंखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी, आगे और बढ़े तो शायद दृश्य सुहाने आएंगे...
ख्यात कवि और शायर दुष्यंत ने कविता की ये पंक्तियां शायद ऐसे ही किसी दृश्य की परिकल्पना कर लिखी होंगी। तस्वीर बुधवार दोपहर तीन बजे तहसील क्षेत्र से क्लिक की गई। 45.2 डिग्री तापमान के बीच सड़क पर कर्फ्यू सा सन्नाटा था। ऐसे में एक वृद्ध दिव्यांग जरूरतमंद पेट के लिए आग सी तपती सड़क पर पेट पलायन करते हुए आगे बढ़ रहा था, ताकि दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो सके। सूनी सड़क पर बुजुर्ग इसी उम्मीद के साथ आगे बढ़ रहा था कि आगे शायद कुछ लोग मिलें जो उसकी मदद कर सकें।
बच्चे 44 डिग्री तन झुलसा देने वाली तेज धूप में नंगे पांव
तस्वीर राजस्थान के सिरोही की है। जिलेभर में गर्मी अपना रौद्र रुप दिखा रही है। बुधवार को केरल से प्रवासियों को लेकर पिंडवाड़ा रेलवे स्टेशन पर पहुंची स्पेशल ट्रेन से उतरे प्रवासियों के भीषण गर्मी से हाल बेहाल नजर आए। ट्रेन से अपनी मां के साथ उतरे दो बच्चे 44 डिग्री तन झुलसा देने वाली तेज धूप में नंगे पांव प्लेटफार्म पर चल रहे थे। चेहरे पर गर्मी से जल से पैरों के भाव साफ नजर आ रहे थे।
पिता का दर्द-बेटे ने कहा था मन नहीं लग रहा, घर आ रहा हूं...अब कभी नहीं आएगा
तस्वीर रांची की है। बुधवार सुबह 10:30 बजे गोवा के करमाली से श्रमिक स्पेशल ट्रेन हटिया पहुंची तो पता चला कि एस-15 में सफर कर रहे एक 19 वर्षीय युवक की मौत हो चुकी है। चौंकाने वाला ये है कि युवक की तबीयत मंगलवार रात बिलासपुर के पास बिगड़ी थी। रात 1 बजे के आस-पास उसकी मौत हुई। ट्रेन बिलासपुर से हटिया के बीच 70 स्टेशन क्रॉस कर गई, किसी ने न ट्रेन रोकी ना प्रशासन को सूचित किया।
कंधे पर उठा 'हिन्दुस्तान’
बीकानेर का लालगढ़ रेलवे स्टेशन। प्लेटफाॅर्म पर बिहार के मधुबनी जाने काे तैयार श्रमिक स्पेशल। बदहवास-से ट्रेन की ओर बढ़ रहे युवक के कंधे वाले बड़े थैले पर नजर टिक गई। ब्रांडनेम छपा था-हिंदुस्तान फीड्स। नजर मिली ताे आंखाें की मायूसी साफ दिख गई। यूं ही पूछ लिया-कहां जा रहे हाे? बगैर एक पल साेचे कह गया ‘अपने देस’। ‘हिंदुस्तान’ काे कंधाें पर उठाए उसने थके कदमाें में पूरी जान झाेंकी और ट्रेन की तरफ तेजी से बढ़ गया।
ईद के दिन निकला था बस में, भरी गर्मी में तबीयत बिगड़ गई, मौत
रायपुर के टाटीबंध में एक मज़दूर की मौत हो गई। इसका नाम हिफजुल रहमान (29) था। ईद के दिन मुंबई से बस में बैठकर हावड़ा के लिए निकला था। छत्तीसगढ़ की सीमा पर बस बदलकर रायपुर पहुंचा था। 44-45 डिग्री पारा में बस के इस सफर ने उसकी ताकत इतनी छीन ली, कि जब वो रायपुर पहुंचा, तो सड़क के किनारे पहले बैठ गया, फिर सिर को पकड़ा और फिर लेट गया। इसके बाद उठ ही नहीं सका। इस दौरान अपने साथियों से बार-बार कहता रहा, भाई, घर कब पहुंचेंगे।
मजदूर की नेपाल में मौत, शव गांव नहीं आ पाया तो परिवार ने मिट्टी का पुतला बना निभाई रस्में
तस्वीर झारखंड के गुमला की है। नेपाल के परासी जिले में एक ईंट भट्ठे में 23 मई को सिसई के एक मजदूर खद्दी उरांव की मौत हो गई। 22 मई को उसकी तबीयत बिगड़ी। साथ काम करने वाला छोटा भाई विनोद उरांव और अन्य साथी 23 मई को अस्पताल ले गए, मगर इलाज नहीं हो सका। खद्दी का शव सिसई में उसके गांव छारदा लाना संभव नहीं था। छोटे भाई ने नेपाल में ही दाह-संस्कार कर दिया। गांव में खद्दी की पत्नी व बच्चे अंतिम दर्शन नहीं कर पाए। भाई बासुदेव उरांव ने बताया कि गांव में परिवार ने मिट्टी का पुतला बना उसी का विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया।
मुश्किलों के जाल में जिंदगी
तस्वीर चंडीगढ़ की है। जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए गांव छोड़ शहर आए। काम-धंधे सेट किए, लेकिन कोरोना आया तो सब बिखर गया। जहां काम करते थे, वे बेगाने हो गए। अब एक ही रास्ता बचा था। ट्रेन पकड़ चल दिए अपने गांव की ओर। चंडीगढ़ से रोज हजारों लोग बिहार-यूपी जा रहे हैं। ये कहते हैं कि गांव में जिंदगी आसान थोड़ी है। और मुश्किलें आएंगी। लेकिन जाना ही पड़ेगा, क्योंकि यहां तो फिलहाल जिंदगी ज्यादा ही उलझ गई है।
मां के आंचल का सहारा
अमृतसर के महाराजा रिजॉर्ट में स्क्रीनिंग करवाने पहुंचा प्रवासी परिवार गर्मी में अपने बच्चे के पैरों को पानी से साफ करते हुए ताकि बच्चे को गर्मी से बचाया जा सके।
सड़क पर डामर पिघलने लगा
नाैतपा के तीसरे दिन बुधवार काे भी राजस्थान सहित उत्तर भारत के अधिकांश हिस्साें में आसमां से आग बरसती रही। चूरू में पारा दूसरे दिन बुधवार काे भी 50 डिग्री के करीब रहा। यहां 0.4 डिग्री की गिरावट के साथ बुधवार काे दिन का तापमान 49.6 डिग्री रहा। इस गिरावट ने चूरू काे दुनिया के सबसे गर्म शहर से ताे दूसरे नंबर पर पहुंच दिया, लेकिन देश में सबसे गर्म शहराें में टाॅप पर शुमार रहा। यहां सड़कों का डामर पिघलने लगा।
न कांधा, न मुखाग्नि, चिता के भी 100 फीट दूर से दर्शन
तस्वीर राजस्थान के बांसवाड़ा जिले की है। जहां चार दिन पहले कोरोना संक्रमित महिला 65 वर्षीय वनिता भावसार की मौत हो गई। उनका मेडिकल प्रोटोकाल के अनुसार अंतिम संस्कार किया गया। काेराेना वायरस ने महिला के परिजनों को मौत से बड़ा दर्द दिया है। न मुखाग्नि और न कोई अंतिम क्रिया। सीधे अस्पताल से प्लास्टिक किट की पैकिंग में महिला के शव काे कागदी श्मशान घाट लाया गया। चिता भी परिजनों को करीब 100 फीट दूर से देखने की अनुमति मिली। महिला का छाेटा बेटा कुवैत में है, वह आ नहीं सका। ऐसे में बड़ा बेटा अंतिम दर्शन के नाम पर वीडियो कॉल से उसे आगे की लपटें ही दिखा पाया।
from Dainik Bhaskar /national/news/to-extinguish-the-stomach-fire-migrating-on-the-scorching-road-the-journey-of-laborers-suffering-from-the-scorching-heat-and-the-little-ones-took-up-hindustan-127348544.html
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प्रवासियों और गरीबों की आवाज उठाने के लिए कांग्रेस आज 11 बजे से देशभर में स्पीक अप इंडिया कैंपेन शुरू करेगी। कांग्रेस का कहना है कि तीन घंटे चलने वाली इस ऑनलाइन कैंपेन में सोशल मीडिया के सभी प्लेटफॉर्म के जरिए जनता से बात की जाएगी। इसमें पार्टी के 50 लाख कार्यकर्ता और समर्थक हिस्सा लेंगे।
'आपदा में गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित'
कांग्रेस का कहना है कि प्रवासी, छोटे उद्योग और खुदरा व्यापारी परेशान हैं। काम-धंधे ठप होने से बहुत से लोगों के बेरोजगार होने का रिस्क बढ़ गया है। किसी भी आपदा में सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब लोग होते हैं। ऐसे लोगों के लिए ही स्पीक अप इंडिया कैंपेन चलाया जाएगा।
'गरीब परिवारों को 10 हजार रुपए की मदद तुरंत मिले'
कांग्रेस कीमांग है कि प्रवासियों सेकिराया लिए बिना सरकार उन्हें सम्मान के साथ घर पहुंचाए। हर गरीब परिवार को 6 महीने तक 7 हजार 500 रुपए दिए जाएं, लेकिन उन्हें 10 हजार की मदद तुरंत मिलनी चाहिए। छोटे उद्योगों को भी जल्द से जल्द मदद की जरूरत है।मनरेगा के तहत रोजगार गारंटी बढ़ाकर 200 दिन करनी चाहिए।
अमेरिका में खराब मौसम की वजह से स्पेसएक्स की लॉन्चिंग टालनी पड़ी। इसे 27 मई की रात को दो बजकर तीन मिनट पर नासा के केनेडी स्पेस सेंटर से दो अमेरिकी एस्ट्रोनॉट्स के साथ उड़ान भरनी थी, लेकिन 16 मिनट पहले मिशन को रोक दिया गया। अब 30 मई को इसे अंतरिक्ष में भेजा जाएगा।
2011 के बाद यह पहला मौका था जब अमेरिका अपने देश से स्वदेशी रॉकेट की मदद से अमेरिकी एस्ट्रोनॉट्स को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) भेजने वाला था। दरअसल, नासा एलन मस्क की निजी कंपनी स्पेस एक्स के ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट के जरिए अंतरिक्ष यात्रियों को आईएसएस भेजने जा रहा है। स्पेस एक्स का क्रू ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट फॉल्कन रॉकेट के ऊपर लगाया गया है। इससे अमेरिकी एस्ट्रोनॉट्स रॉबर्ट बेनकेन और डगलस हर्ले मौजूद रहेंगे। दोनों पहले भी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की यात्रा कर चुके हैं।
20 साल साल से मिशन पर काम चल रहा है
नासा 2000 के दशक की शुरुआत से ही अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर क्रू की आवाजाही का काम छोड़ने की योजना बना रहा है। इसी के तहत, उसने एक प्रोग्राम शुरू किया। इसमें निजी फर्मों को शामिल किया।
अमेरिका ने 2011 में यान भेजने बंद कर दिए थे। इसके बाद अमेरिकी अंतरिक्ष अभियानों को रूस की उड़ानों का सहारा लेना पड़ा। इसका खर्च लगातार बढ़ता जा रहा था। इसके बाद नासा ने स्पेस एक्स को बड़ी आर्थिक मदद देकर अंतरिक्ष मिशन के लिए मंजूरी दी।
इसके बाद अमेरिकी कारोबारी एलन मस्क की स्पेसएक्स एयरोस्पेस सेक्टर की दिग्गज कंपनी बोइंग के साथ आगे आई। एलन मस्क ने स्पेसएक्स कंपनी को 2002 में बनाया था। इसका मकसद अंतरिक्ष में ट्रांसपोर्टेशन की लागत को कम करना है। साथ ही मंगल ग्रह पर इंसानी बस्तियां बनाना भी है। एलन मस्क की इस कंपनी ने 2012 में पहली बार अंतरिक्ष में अपना कैप्सूल भेजा।
12 दिन अंतरिक्ष में रहकर 16 सूर्योदय देखेंगे, 71-71 करोड़ रु. दिए
कोरोनावायरस के संक्रमण के बीच दोनों अंतरिक्ष यात्रियों को यात्रा से पहले 15 दिनों तक क्वारैंटाइन में रखा गया। दोनों यात्री 12 दिन तक अंतरिक्ष में रहेंगे। इसके लिए दोनों पर71-71 करोड़ रु. खर्च किए हैं। इस दौरान वे 16 सूर्योदय देख सकेंगे।
दुनिया में अब तक 57 लाख 88 हजार 782 लोग संक्रमित हैं। 24 लाख 97 हजार 593 लोग ठीक हुए हैं। मौतों का आंकड़ा 3 लाख 57 हजार 425 हो गया है। वहीं, ब्राजील में 24 घंटे में 1086 लोगों ने दम तोड़ा है। यहां मौतों का आंकड़ा 25 हजार 687 हो गया है, जबकि मरीजों की संख्या 4 लाख 14 हजार से ज्यादा हो गई है।
कोरोनावायरस : 10 सबसे ज्यादा प्रभावित देश
देश
कितने संक्रमित
कितनी मौतें
कितने ठीक हुए
अमेरिका
17,45,803
1,02,107
4,90,130
ब्राजील
4,14,661
25,697
1,66,647
रूस
3,70,680
3,968
1,42,208
स्पेन
2,83,849
27,118
1,96,958
ब्रिटेन
2,67,240
37,460
उपलब्ध नहीं
इटली
2,31,139
33,072
1,47,101
फ्रांस
1,82,913
28,596
66,584
जर्मनी
1,81,895
8,533
1,62,800
तुर्की
1,59,797
4,534
1,22,793
भारत
1,58,086
4,522
67,749
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अमेरिका: 24 घंटे में करीब 1500 मौतें
अमेरिका में 24 घंटे में लगभग 1500 मौतें हुई हैं, जबकि 20 हजार से ज्यादा नए मामले मिले हैं। यहां मौतों का आंकड़ा एक लाख 2 हजार से ज्यादा हो गया है। वियतनाम, इराक, अफगानिस्तान और कोरिया की 44 साल की लड़ाई में जितनी जान गई, 3 महीने में करीब उतनी ही मौतें अमरिका में हुई हैं।
तुर्की: 1035 मामले सामने आए
तुर्की में 1035 नए मामले सामने आने के साथ ही देश में संक्रमितों की संख्या 1 लाख 59 हजार 797 हो गई है। स्वास्थ्य मंत्री फाहरेतिन कोजो ने बुधवार को बताया कि पिछले 24 घंटों में 34 और लोगों की मौत हुई है। अब तक यहां 4431 लोग जान गंवा चुके हैं। 24 घंटे में 1286 मरीज स्वस्थ्य हुए हैं। एक दिन में यहां कोरोना के 21,043 टेस्ट किए गए हैं। अब तक कुल 18 लाख 94 हजार 650 टेस्ट हो चुके हैं।
चिली: 82,289 संक्रमित
चिली में अब तक 82,289 मामले सामने आए हैं और यहां 841 लोगों की मौत हुई है। 24 घंटे में 4328 मरीज मिले, जबकि 35 लोगों की जान जा चुकी है। अब तक यहां 33,540 मरीज स्वस्थ्य हुए हैं। मामले बढ़ने के कारण स्वास्थ्य मंत्री जेमी मनालिच ने राजधानी सैंटियागो और महानगर क्षेत्र में लॉकडाउन 29 मई से आगे बढ़ाने की घोषणा की।
तेलंगाना सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट यदाद्री के लक्ष्मी-नृसिंह मंदिर का काम लॉकडाउन में भी नहीं रुका। हालांकि, इसके पीछे का कारण था यदाद्री भुवनगिरी जिले में कोई कोरोना पॉजिटिव केस का ना होना। मंदिर के नव-निर्माण का काम तेजी से चल रहा है। इसकी कुल लागत करीब 1800 करोड़ रुपए है, पहले फेज में लगभग एक हजार करोड़ रुपए के काम हो रहे हैं। दूसरे फेज में मंदिर को और भव्य रूप दिया जाएगा।
यदाद्री लक्ष्मी-नृसिंह मंदिर को तेलंगाना कातिरुपति मंदिर कहा जा रहा है,क्योंकिआंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद तेलंगाना के पास तिरुपति जैसा कोई भव्य मंदिर नहीं था। मंदिर के लोकार्पण को लेकर भी काफी बड़े पैमाने पर योजना बनाई जा रही है। इसकी तारीख की घोषणा खुद मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव करेंगे।
लोकार्पण में राष्ट्रपति और पीएम को बुलाने की योजना
मार्च में एक भव्य यज्ञ के साथ इस मंदिर का लोकार्पण होना था। तेलंगाना सीएम केसीआर ने भी घोषणा की थी कि इसके लोकार्पण समारोह को हर तरह से भव्य रूप दिया जाएगा। इसमें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसी हस्तियों को भी आमंत्रित किया जाएगा। लेकिन, कोरोना के चलते कुछ देरी हो रही है। हैदराबाद से करीब 60 किमी दूर यदाद्री भुवनगिरी जिले में मौजूद लक्ष्मी-नृसिंह मंदिर का रिकॉर्ड 4साल में कायाकल्प किया जा रहा है।
इसके लिए इंजीनियरों और आर्किटेक्ट्स ने करीब 1500 नक्शों और योजनाओं पर काम किया। 2016 में इसकी योजना को मंजूरी मिली थी। लॉकडाउन के दौरान भी यहां सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए काम हुआ। प्रवासी मजदूरों के भी रुकने के लिए व्यवस्था की गई थी।
स्कंद पुराण में मिलता है यदाद्री मंदिर का उल्लेख
यदाद्री लक्ष्मी-नृसिंह मंदिर का उल्लेख 18 पुराणों में से एक स्कंद पुराण में मिलता है। हजारों साल पुराने इस मंदिर का क्षेत्रफल करीब 9 एकड़ था। मंदिर के विस्तार के लिए 300 करोड़ में 1900 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया। मंदिर में 39 किलो सोने और करीब 1753 टन चांदी से सारे गोपुर (द्वार) और दीवारें मढ़ी जाएंगी। संभवतः इसे फेज 2 में किया जाएगा। इसकी लागत करीब 700 करोड़ रुपए होगी। मंदिर का डिजाइन हैदराबाद के प्रसिद्ध आर्किटेक्ट और साउथ फिल्मों के आर्ट डायरेक्टर आनंद साईं ने तैयार किया है।
27 किलो सोने से मढ़ा जाएगा मुख्य शिखर
यदाद्री मंदिर का मुख्य शिखर जो गर्भगृह के ऊपर होगा, उसे सोने से मढ़ा जाएगा। करीब 32 लेयर वाले इस शिखर को सोने से मढ़ने के लिए एजेंसियों की मदद ली जा रही है। इसमें शिखर पर पहले तांबे की परत चढ़ाई जाएगी। फिर सोना मढ़ा जाएगा। अनुमान है कि इसमें करीब 27 किलो सोना लगेगा। मंदिर में करीब 39 किलो सोना है।
1000 साल तक मौसम की मार झेल सकने वाले पत्थर
मंदिर के निर्माण के लिए जिन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है, वे हर तरह के मौसम की मार झेल सकते हैं। लगभग 1000 साल तक ये पत्थर वैसे ही रह सकेंगे, जैसे कि अभी हैं.. इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है।
आम से लेकर खास तक के लिए सुविधाएं
यदाद्री मंदिर पहाड़ी पर मौजूद है। यह तेलंगाना के लिए ड्रीम प्रोजेक्ट है। इसके लिए तेलंगाना की केसीआर सरकार ने 1800 करोड़ रुपए की मंजूरी दी थी। इस मंदिर के पूरा होने के बाद सरकार यहां भारी संख्या में पर्यटकों के आने की उम्मीद कर रही है। मंदिर तक पहुंचने के लिए हैदराबाद सहित सभी बड़े शहरों से जोड़ने के लिए फोरलेन सड़कें तैयार की जा रही हैं। मंदिर के लिए अलग से बस-डिपो भी बनाए जा रहे हैं।
इसमें यात्रियों से लेकर वीआईपी तक सारे लोगों की सुविधाओं का ध्यान रखते हुए कई तरह की व्यवस्थाएं होंगी। यात्रियों के लिए अलग-अलग तरह के गेस्ट हाउस का निर्माण किया गया है। वीआईपी व्यवस्था के तहत 15 विला भी बनाए गए हैं। एक समय में 200 कारों की पार्किंग की सुविधा भी रहेगी।
156 फीट ऊंची तांबे की हनुमान प्रतिमा
यदाद्री मंदिर के पास ही मुख्य द्वार के रूप में भगवान हनुमान की एक खड़ी प्रतिमा का निर्माण किया जा रहा है। इस मंदिर में लक्ष्मी-नृसिंह के साथ ही हनुमान का मंदिर भी है। इस कारण हनुमान को मंदिर का मुख्य रक्षक देवता माना गया है। इस प्रतिमा को करीब 25 फीट के स्टैंड पर खड़ा किया जा रहा है। प्रतिमा कई किमी दूरी से दिखाई देगी।
भगवान नृसिंह के इस मंदिर में तीन रूप
स्कंद पुराण में कथा है कि महर्षि ऋष्यश्रृंग के पुत्र यदा ऋषि ने यहां भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। उनके तप से प्रसन्न विष्णु ने उन्हें नृसिंह रूप में दर्शन दिए थे। महर्षि यद की प्रार्थना पर भगवान नृसिंह तीन रूपों ज्वाला नृसिंह, गंधभिरंदा नृसिंह और योगानंदा नृसिंह में यहीं विराजित हो गए। दुनिया में एकमात्र ध्यानस्थ पौराणिक नृंसिंह प्रतिमा इसी मंदिर में है।
भगवान नृसिंह की तीनों प्रतिमाएं एक गुफा में हैं। साथ में माता लक्ष्मी भी हैं। करीब 12 फीट ऊंची और 30 फीट लंबी इस गुफा में भगवान की तीनों प्रतिमाएं मौजूद हैं। इसके साथ ही आसपास हनुमान और अन्य देवताओं के भी स्थान हैं। मंदिर का पुनर्निर्माण वैष्णव संत चिन्ना जियार स्वामी के मार्गदर्शन में शुरू हुआ है। मंदिर का सारा निर्माण कार्य आगम, वास्तु और पंचरथ शास्त्रों के सिद्धांतों पर किया जा रहा है, जिनकी दक्षिण भारत के खासी मान्यता है। इस गुफा में एक साथ 500 लोग दर्शन कर सकेंगे।
खबर हैदराबाद से है। एक दिहाड़ी मजदूर मदन कुमार सिंह ने अपने घर के पास रहने वाली एक औरत सेशु के जरिए 22 हजार रुपए में अपने बच्चे का सौदा किया था। 23 मई को सौदा हुआ और 24 मई को पुलिस ने बच्चा बेचने वाले मजदूर, खरीदने वाले दंपतीऔर बिचौलिये सेशु तीनों को गिरफ्तार कर लिया।फिलहाल बच्चा शिशु विहार में है और तीनों लोगों को नोटिस देकर छोड़ा गया है।
मदन और सेशु एक ही इलाके में रहते हैं। सेशु की बहन का चार बार अबॉर्शन हो चुका है। सेशु को जब मजदूर मदन के घर बच्चा पैदा होने की खबर लगी तो उसने अपनी बहन और मदन की बात करवाई।मदन पहले तो गरीबी के चलते बच्चा यूं ही सौंपने को राजी हो गया था,लेकिन बाद में उसने बच्चे के बदले पैसे मांगे। सेशु की बहन के पति ने कर्जलेकर मदन से बच्चा खरीदने के लिए 22 हजार रुपए जुटाए थे।
पति शराब पीता है, उसने बिना बताए सौदा कर दिया था
पुलिस के जरिए हम सबसे पहले मदन कुमार की पत्नी सरिता तक पहुंचे। सरिता ने बताया, "वारंगल के पास अपने गांव से मैं 9 महीने पहले पति केसाथ काम-धंधे की तलाश में हैदराबाद आई थी। मेरा पति लेबर है। मैंने भी बच्चा पेट में होने के चौथे महीने तक घरों में झाडू-पोंछा लगाया,क्योंकि पति बहुत शराब पीता है। जितना कमाता है, वो सब शराब में उड़ा देता है। उसको 500 रुपए रोज मिलता था, लेकिन वो सबकी शराब पी जाता है।"
सरिता ने कहा-घर में खाने-पीने की भी दिक्कत है। कभी खाने को मिलता है, कभी नहीं मिलता। एक दिन पति ने घर के पास में ही रहने वाली सेशु से बच्चा 22 हजार रुपए में बेचने की बात कर ली। सेशु की कोई दूर की बहन है। उसको बच्चा नहीं हो रहा था। उसने कहा वो बच्चे को पाल लेगी। पति ने उनसे कहा कि हमें ऑटो से वारंगल के पास अपने गांव भी छुड़वा देना। मुझे दो-तीन बाद बताया। मैंने बहुत कहा कि बच्चा मत बेच। मैं पाल लूंगी,लेकिन वो नहीं माना।"
"23 मई की रात में मदन नेबच्चा सेशु और उसकी बहन को दे दिया। सुबह वो मुझे लेकर गांव जाने लगा। तभी मैंने चिल्लाना शुरू कर दिया। पड़ोसियों को पता चला तो उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया। फिर पुलिस ने सबको पकड़ लिया।"
बच्चा खरीदने के पैसे नहीं थे, कर्ज लेकर जुटाए 22 हजार रु
बच्चा खरीदने वाली देवी की बहन पद्मा ने बताया- मदन ने हमसे कहा था कि मेरा एक सात साल का बच्चा है। मैं दूसरे को नहीं पाल सकता। मैंने उसे कहा कि हमारी दूर की बहन है देवी। उसको बच्चा नहीं है। वो पाल लेगी। पहले उसने कहा कि ऐसे ही बच्चा ले जाओ। बाद में बोला 50 हजार रुपए में बच्चा दूंगा। हमने मना कर दिया तो फिर वो 22 हजार रुपए में बच्चा देने को राजी हो गया। बोला मुझे ऑटो से गांव तक भी छुड़वाना।
पद्मा ने कहा, "देवी का पति ऑटो चलाता है। उसने 20 हजार कर्ज लिया था। ये पैसे उसे हर हफ्ते 2 हजार जमा कर चुकाने थे। उसने पैसा 23 तारीख को रात मेंमदन को दे दिया। मदन ने सुबह गांव तक छोड़ने की बात भी कही थी। इस पर हमने कहा कि गांव तक नहीं छोड़ पाएंगे, क्योंकि पुलिस बहुत है। तो उसने कहा जहां तक छोड़ सकते हो, वहां तक छोड़ दो। ये लोग निकलने ही वाले थे कि इतने में पुलिस आ गई और सबको पकड़ लिया। पुलिस में मामला जाने के बाद से हम दोनों बहनों का काम छिन गया। मेरे पांच बच्चे हैं। अब खाने-पीने को भी नहीं है। देवी के पति ने कर्जा लिया था, अब वो भी फंस गया। बच्चा भी नहीं मिला। पैसा और बच्चा दोनों पुलिस के पास हैं। हमारी भूख से मरने जैसी हालत हो गई।"
20 रु.के स्टाम्प पर एग्रीमेंट बनाया गया
घटना स्थल पर सबसे पहले पहुंचने वाले और इस पूर मामले की जांच कर रहे जैदीमेटला पुलिस स्टेशन के सेक्टर पांच के एसआई के मनमाधव राव ने बताया, "मदन कुमार सिंह (32) और सरिता (30) दोनों मजदूरी करते हैं। ये लोग बटुकम्मा बांदा में एक किराये के कमरे में रहते हैं। दो महीने पहले इनके घर बच्चा हुआ था। डिलीवरी पास में ही रहने वाली एक बुजुर्ग महिला वेंकट अम्मा ने घर पर ही करवाई थी। यहीं पर अगली गली में सेशु नाम की महिला रहती है। उसने वेंकट अम्मा को बताया कि वारंगल में रहने वाली उसकी बहन देवी का चार बार गर्भपात होचुका है और अब डॉक्टर ने बोल दिया है कि वो मां नहीं बन पाएगी।"
मनमाधव राव ने कहा-मदन ने वेंकट अम्मा को कहा कि उसके लिए बच्चा गोद लेना है कोई हो तो बताना। वेंकट अम्मा ने उसे बताया कि दो महीने पहले ही एक मजदूर के घर में बच्चा हुआ है। उसका एक बच्चा पहले से है। वो दूसरा नहीं पाल पाएंगे। इसके बाद सेशु ने यह बात अपनी बहन देवी को बताई। उसने बच्चे के लिए सेशु को उस मजदूर से बात करने का बोला।
देवी का भाई अरविंद, सेशु और वेंकट अम्मा ने 23 जनवरी की रात मदन कुमार को 22 हजार रुपए दिए और बच्चा ले लिया। देवी के भाई अरविंद ने 20 रुपए के स्टॉम्प पर लिखा पढ़ी की। स्टाम्प में सिर्फ एक ही लाइन लिखी गई कि हम 22 हजार रुपए लेकर बच्चा ले रहे हैं। इसके बाद वो बच्चे को सेशु के घर ले गए। अगले दिन सुबह मदन अपनी पत्नी को लेकर घर से निकल रहा था तभी पत्नी ने रोना शुरू कर दिया।
मदन की पत्नीचीख-चीखकर कहने लगीकि मुझे बच्चा वापिस चाहिए। यह सुनकर आसपास के लोग इकट्ठा हो गए। उन्होंने सेशु को बच्चा लौटाने का कहा, लेकिन उसने मना कर दिया। पुलिस अब देख रही है कि मामले में किसके खिलाफ क्या एक्शन हो सकता है। जांच होने के बाद चार्जशीट बनाई जाएगी। पुलिस का मानना है कि मदन ने शराब के नशे में बिना सोचे-समझे पैसों के लालच में आकर बच्चा बेचने की कोशिश की।
टिड्डी। वजन महज 2 ग्राम।खाती भी इतना ही है। लेकिन, जब यही टिड्डी लाखों-करोड़ों की तादाद में झुंड बनाकर हमला कर दे, तो चंद मिनटों में ही पूरी की पूरी फसल बर्बाद कर सकती है। फसलों को बर्बाद करने वाली टिड्डों की ये प्रजाति रेगिस्तानी होती है, जो सुनसान इलाकों में पाई जाती है।
टिड्डी एक बार फिर चर्चा में है। क्योंकि, अब टिड्डी दल ने भारत में घुसपैठ शुरू कर दी है। अब तक राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में 50 हजार हेक्टेयर से ज्यादा की फसल टिड्डी दल ने खराब कर दी है। उत्तर प्रदेश के भी कुछ हिस्सों में टिड्डी दल पहुंच गया है।और दिल्ली की तरफ भी आ सकता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि टिड्डियों का झुंड हवा की दिशा में उड़ता है।
एक दिन में 150 किमी तक उड़ सकती है टिड्डी
एक्सपर्ट का मानना है कि अगर हवा दिल्ली की तरफ चली तो अगले कुछ दिनों में टिड्डियां दिल्ली पहुंच जाएंगी। अगर दिल्ली में टिड्डियों का हमला होता है, तो ये बहुत खतरनाक भी होगा,क्योंकि यहां का ग्रीन कवर 22% है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, एक टिड्डी दिनभर में 100 से 150 किमी तक उड़ सकती और 20 से 25 मिनट में ही पूरी फसल बर्बाद कर सकती है। इन्हीं सब कारणों से इसे 27 साल बाद सबसे बड़ा टिड्डी हमला माना जा रहा है।
1993 में 7.18 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन आने वाले डायरेक्टोरेट ऑफ प्लांट प्रोटेक्शन, क्वारैंटाइन एंड स्टोरेज के मुताबिक, 1812 से भारत टिड्डियों के हमले झेलते आ रहा है।
1926 से 31 के दौरान टिड्डियों के हमले में 10 करोड़ रुपए की फसल बर्बाद हुई थी।इसके बाद 1940 से 1946 और 1949 से 1955 के बीच भी टिड्डियों का हमला हुआ। इसमें दोनों बार 2-2 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। 1959 से 1962 के बीच टिड्डी दल ने 50 लाख रुपए की फसल तबाह की।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 1962 के बाद टिड्डियों का कोई ऐसा हमला नहीं हुआ, जो लगातार तीन-चार साल तक चला। लेकिन, 1978 में 167 और 1993 में 172 झुंड ने हमला कर दिया था। इसमें 1978 में 2 लाख रुपए और 1993 में 7.18 लाख रुपए की फसल बर्बाद हो गई थी।
1993 के बाद भी 1998, 2002, 2005, 2007 और 2010 में भी टिड्डियों के हमले हुए थे, लेकिन ये बहुत छोटे थे।
टिड्डियों का झुंड 35 हजार लोगों का खाना एक दिन में खा जाताहै
किसान इंसानों के खाने के लिए फसल उगाते हैं और टिड्डियां इन फसल को खा लेती हैं। नतीजा भुखमरी होती है।
यूनाइटेड नेशन के अंतर्गत आने वाले फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (एफएओ) के मुताबिक, रेतीले इलाकों में पाई जाने वाली टिड्डियां सबसे खतरनाक होती हैं।
ये 150 किमी की रफ्तार से उड़ सकती हैं। एक किमी के दायरे में फैले झुंड में 15 करोड़ से ज्यादा टिड्डियां हो सकती हैं। इन टिड्डियों का 1 किमी के दायरे में फैला झुंड एक दिन में 35 हजार लोगों का खाना चट कर जाती हैं।
टिड्डियों का एक झुंड 1 किमी के दायरे से लेकर सैकड़ों किमी के दायरे तक फैला हुआ हो सकता है। 1875 में अमेरिका में 5 लाख 12 हजार 817 स्क्वायर किमी का झुंड था। मतलब इतना बड़ा कि उसमें दो उत्तर प्रदेश समा जाएं। उत्तर प्रदेश का एरिया 2 लाख 43 हजार 286 स्क्वायर किमी है।
पाकिस्तान से भारत आती हैं टिड्डियां
आमतौर पर भारत में टिड्डियों का हमला राजस्थान, गुजरात और हरियाणा में होता है। ये रेगिस्तानी टिड्डे होते हैं, इसलिए इन्हें ब्रीडिंग के लिए रेतीला इलाका पसंद आता है। इन टिड्डों का ब्रीडिंग पीरियड जून-जुलाई से अक्टूबर-नवंबर तक होता है।
एफएओ के मुताबिक, एक टिड्डी एक बार में 150 अंडे तक देती है। ऐसा कहा जाता है कि टिड्डियां बड़ी तेजी से बढ़ती हैं। इनकी पहली पीढ़ी 16 गुना, दूसरी पीढ़ी 400 गुना और तीसरी पीढ़ी 16 हजार गुना से बढ़ जाती है।
आमतौर पर टिड्डियां ऐसी जगह पाई जाती हैं, जहां सालभर में 200 मिमी से कम बारिश होती है। इसलिए ये पश्चिमी अफ्रीका, ईरान और एशियाई देशों में मिलती हैं। रेगिस्तानी टिड्डियां आमतौर पर पश्चिमी अफ्रीका और भारत के बीच 1.6 करोड़ स्क्वायर किमी के क्षेत्र में रहती हैं।
भारत में टिड्डियां पाकिस्तान के जरिए आती हैं। पाकिस्तान में ईरान के जरिए आती हैं। इसी साल फरवरी में टिड्डियों के हमलों को देखते हुए पाकिस्तान ने नेशनल एमरजेंसी घोषित कर दी थी। इसके बाद 11 अप्रैल से भारत में भी टिड्डियों का आना शुरू हो गया।
इस साल की शुरुआत में टिड्डियों ने अफ्रीकी देश केन्या में भयंकर तबाही मचाई थी। 70 साल में पहली बार ऐसा खतरनाक हमला हुआ था।
वर्ल्ड बैंक ने इस साल के आखिर तक टिड्डियों के हमले की वजह से केन्या को 8.5 अरब डॉलर यानी 63 हजार 750 करोड़ रुपए का नुकसान होने का अनुमान लगाया है। केन्या के अलावा इस साल इथियोपिया और सोमालिया में भी 25 साल का सबसे खतरनाक हमला हुआ है।
फसलों को टिड्डियों से बचाने के लिए डीजे तक बजा रहे लोग
फसलों को टिड्डियों से बचाने का वैज्ञानिक तरीका तो किटनाशकों का छिड़काव है। लेकिन, हमारे किसान अपने तरीके भी आजमाते हैं। इस साल पहली बार छत्तीसगढ़ में भी टिड्डियों का हमला होने का अंदेशा है। लिहाजा, लोगों ने पहले ही उन्हें भगाने के लिए डीजे बुक करवा लिए हैं।
कई जगहों पर किसान टिड्डियों को भगाने के लिए थालियां पीटते हैं। तेज गाने बजाते हैं। आग जलाते हैं। यहां तक कि खेतों में बीच-बीच में ट्रेक्टर भी चलाते हैं।
उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग की कई तस्वीरें और वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं।इनमें से कुछ तस्वीरें तो हाल के दिनों की ही हैं। लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे वीडियो और तस्वीरें शेयर की जा रहीहैंजो या तो पुरानीहैं या जिनका उत्तराखंड से कोई संबंधनहीं है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावतसहित कई अधिकारियों ने लोगों को अफवाहों से बचने की सलाह दी है।
उत्तराखंड के जंगलों में लगी की खबरें पूरी तरह झूठी भी नहीं हैं। 25 मई तक राज्य के 71 हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आ चुके हैं और इसमें दो महिलाओं की मौत भी हो चुकी है। वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, ‘बीते सालों की तुलना में जंगलों में लगी आग का आंकड़ा अब तक काफी कम है। पिछले साल इस वक्त तक लगभग डेढ़ हजार हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आ चुके थे। इस साल यह आंकड़ा सिर्फ 71 हेक्टेयर है।’
जंगलमें आग को लेकर फेक न्यूज भीफैलती है
Fake news of forest fire 2020 in Uttarakhand are being circulated on social media. After verification of such images it has been found that these images are fake. Few such images are being uploaded by us. It is our request to kindly do not spread fake news. pic.twitter.com/B9GBK8DgaL
— Uttarakhand Forest Department @Official (@Uttkhand_Forest) May 27, 2020
उत्तराखंड में हर साल जंगलों में लगने वाली आगमें इस साल आई कमी के बारे में पूछने पर वन विभाग के विशेषज्ञ तीन मुख्य कारण बताते हैं। पहला, इस साल हुई भारी वर्षा के चलते जंगलों में नमी ज़्यादा है। अब तक भी पहाड़ के कई इलाकों में बरसात जारी है जो जंगल की आग को नियंत्रित करने का सबसे बड़ा कारण है।
लॉकडाउन के कारण भी आग लगने की घटनाएं कम
दूसरा कारण जो विशेषज्ञ बताते हैं वो है देशभर में हुए लॉकडाउन के चलते मानव गतिविधियों का बेहद सीमित होना। चूंकि, जंगलों में लगने वाली आग के पीछे अधिकतर मानव गतिविधियों का प्रत्यक्ष या परोक्ष हाथ होता है, लिहाजा इस साल लॉकडाउन के चलते जब मानव गतिविधियां सीमित रहीं तो इसका प्रभाव वनाग्नि में आई कमी के रूप में भी देखा गया।
तीसरा कारण बताते हुए वन विभाग के अधिकारी कहते हैं, ‘सतर्कता के चलते भी वनाग्नि की घटनाओं में कमी आई है। गर्मियों की शुरुआत से पहले ही विभाग आग से बचने की तैयारी शुरू कर देता है। साथ ही आग लगने पर विभाग की प्रतिक्रिया भी अब पहले की तुलना में काफी तेज हुई है।
— IFS Association Uttarakhand (@UttarakhandIFS) May 27, 2020
जंगलों में हर सालआग क्यों लगती है?
उत्तराखंड में क़रीब 38 हजार वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। वन अधिकारियों के अनुसार इसमें से 15 से 20 प्रतिशत चीड़ के जंगलों वाला इलाका है। इन्हीं जंगलों में आग लगने की सबसे ज्यादा घटनाएं होती हैं। चीड़ की पत्तियां इस आग में घी का काम करती हैं। यह पत्तियां जिन्हें पाईन नीडल भी कहा जाता है, मार्च से गिरना शुरू होती हैं और करीब 15 लाख मीट्रिक टन बायोमास बनकर पूरे जंगल में बिछ जाती है।
इसके दो नुकसान हैं। एक तो यह पत्तियां जहां भी गिरती हैं वहां कोई अन्य पेड़-पौधा नहीं उग पाता। दूसरा, इन पत्तियों में रेजिन होता है जिसके चलते ये बेहद ज्वलनशील होती हैं और हल्की चिंगारी मिलने पर भी भभक कर जलने लगती हैं। हवा के साथ यह आग अनियंत्रित फैलती और देखते ही देखते पूरे जंगल को चपेट में ले लेती है।
पौड़ी गढ़वाल जिले में बुधवार को भी आग लगी थी
Uttarakhand: Forest fire broke out in Srinagar of Pauri Garhwal district today. Forest officer Anita Kunwar says, "5-6 hectares of forest have been affected. Fire could not be controlled due to wind. More teams will be called to extinguish it." pic.twitter.com/iJveQaHNK6
विशेषज्ञ मानते हैं जंगल में आग लगने की शुरुआत के पीछे दस में से सात बार किसी इंसान का ही हाथ होता है। जंगल में बारूद की तरह बिछी चीड़ की पत्तियों को पहली चिंगारी इंसान ही किसी न किसी कारण देते हैं। कई बार स्थानीय लोग जान-बूझ कर ऐसा करते हैं ताकि बरसात के बाद उन्हें अपने जानवरों के लिए नई घास मिल सके। कई बार जंगल में फेंकी गई बीड़ी-सिगरेट या खेतों में जलाई जाने वाली अतिरिक्त घास भी उस चिंगारी का काम कर जाती है जिससे पूरा जंगल जलने लगता है।
वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि कई बार यह आग बिजली की तारों से भी पैदा होती है। आंधी आने पर जब जंगलों से गुजरती बिजली की तार आपस में टकराती हैं तो उसने पैदा हुआ स्पार्क भी इस आग का कारण बन जाता है।
पहले की तुलना में वनाग्नि की घटनाएं क्यों बढ़ी हैं?
उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने का सिलसिला नया नहीं है। यहां सालों से ऐसा होता रहा है। लेकिन पहले की तुलना में आग ज्यादा विकराल होती इसलिए दिख रही हैं क्योंकि लोगों का जंगल से रिश्ता लगातार घट रहा है। वन अधिनियम लागू होने से पहले गांव के लोग जंगल पर सीधे निर्भर होते थे तो इसकी देखभाल भी वे अपनी जिम्मेदारी समझते थे। लेकिन नए कानून के बाद लोगों की हक-हकूक सीमित कर दिए गए, उनकी निर्भरता कम हुई तो यह जिम्मेदारी का सामूहिक एहसास भी घट गया।
उत्तराखंड में बढ़े पलायन को भी वनाग्नि की बढ़ती घटनाओं के पीछे एक कारण माना जाता है। पहले जब गांव आबाद थे तो गर्मियां शुरू होने से पहले लोग खुद ही सामूहिक रूप से जंगलों की सफाई किया करते थे ताकि उन्हें आग से बचाया जा सके। अब चूंकि पलायन के चलते गांव ही खाली हो गए हैं तो यह जंगल की सफाई करने वाला कोई नहीं है।
हर साल लगने वाली वनाग्नि को रोकने के लिए वन विभाग क्या कर रहा है?
उत्तराखंड वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि प्रदेश स्तर पर इस दिशा में लगातार काम किया जा रहा है। लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल फरवरी महीने में ‘वन अग्नि सुरक्षा सप्ताह’ मनाया जाता है। इस दौरान वन विभाग के अधिकारी गांव-गांव में जाकर पंचायत प्रतिनिधियों की मदद से लोगों को वनाग्नि से बचने के बारे में बताते हैं।
हर साल प्री फायर प्लानिंग होती है
इसके अलावा हर साल गर्मी शुरू होने से पहले प्री-फायर प्लानिंग भी विभाग करता है जिसके तहत फायर लाइन सही की जाती हैं। फायर लाइन यानी जंगलों में ऐसे बफर इलाके बनाना जो आग के फैलते क्रम को तोड़ सकें। ऐसे में आग यदि लगती भी है तो फायर लाइन से आगे नहीं बढ़ पाती। अधिकारी बताते हैं कि वन विभाग हर साल महिला मंगल दल और वन पंचायतों के साथ मिलकर ये काम कर रहा है।
इससे बचने का स्थायी समाधान क्या है?
प्रदेश के रुद्रप्रयाग ज़िले में इस समस्या के समाधान का एक मॉडल तैयार हुआ है। यहां कोट मल्ला नाम का एक गांव है, जहां के रहने वाले जगत सिंह ‘जंगली’ ने वनाग्नि से छुटकारा पाने का कारगर समाधान निकाला है। जगत सिंह ने अपने गांव के पास मिश्रित वन तैयार किया है। इसमें हर तरह के पेड़ होने के चलते मिट्टी में नमी कहीं ज्यादा होती है और चीड़ का मोनोकल्चर को नुकसान करता है, उससे निजात मिल जाती है।
वन विभाग के अधिकारी कहते हैं, ‘मिट्टी में नमी की मात्रा को बढ़ाना एक स्थायी समाधान हो सकता है। ऐसा होने पर मिश्रित वन तैयार हो सकते हैं जहां कभी आग लगने की घटनाएं नहीं होती। इसके अलावा लोगों की सामूहिक जिम्मेदारी भी बेहद जरूरी है। वन क्षेत्र इतना बड़ा है और विभाग के संसाधन इतने सीमित कि लोगों के सहयोग के बिना वनाग्नि पर पूरी तरह नियंत्रण संभव नहीं है।’
ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक अब फ्लू की वैक्सीन से कोरोना को मात देने की तैयारी में जुटे हैं। विक्टोरिया राज्य में इंसानों पर इसका ट्रायल शुरू हो चुका है। वैक्सीन का नाम NVX-CoV2373 है और इसे अमेरिकी कम्पनी नोवावैक्स ने बनाया है।
ऐसा कहा जा रहा है कि पूरे दक्षिणी गोलार्धमें ये किसी कोरोना वैक्सीन का पहला ट्रायल है और यह समझने की कोशिश की जा रही है किकोरोनावायरस पर इसका असर कितना होता है।
4 पॉइंट : ऐसे काम करेगी वैक्सीन
स्पाइक प्रोटीन पर वार करेंगी इम्यून कोशिकाएं
कंपनी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, वैक्सीन इम्यून सिस्टम की कोशिकाओं पर दबाव बनाएगी ताकि ये वायरस से लड़ें। ट्रायल में इस्तेमाल हो रही वैक्सीन की खास बात है कि यह पूरे वायरस को टार्गेट करने की बजाय कोरोना के स्पाइक प्रोटीन पर वार करेगी। वायरस का यही हिस्सा संक्रमण के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है।
प्रोटीन के टुकड़ों को वायरस समझकर खत्म करेंगी
शोधकर्ताओं का कहना है कि वैक्सीन के कारण कोरोना का प्रोटीन छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटेगा, जिसे नैनो पार्टिकल्स कहते हैं। शरीर की इम्यून कोशिकाएं इन कणों को छोटा वायरस समझकर सक्रिय होंगी और पकड़ेंगी।
मेट्रिक्स-एम इम्यून कोशिकाओं को सिग्नल भेजेगा
शोधकर्ताओं के मुताबिक, वैक्सीन में मेट्रिक्स-एम नाम के नैनो पार्टिकल्स रहेंगे यह शरीर में खतरा देखते ही इम्यून कोशिकाओं को सिग्नल देंगे। यह कोशिकाओं को बार-बार अलर्ट व एक्टिव करेंगे ताकि ये प्रोटीन के टुकड़ों को खत्म कर सकें।
इंफ्लुएंजा की वैक्सीन पर आधारित
कोरोना पर जिस वैक्सीन का ट्रायल किया जा रहा है वह इंफ्लूएंजा वायरस पर आधारित है, जिसे नैनोफ्लू कहते हैं। इसे नोवावैक्स कम्पनी ने ही बनाया था। पिछले साल अक्टूबर में इसके तीसरे चरण का ट्रायल 2650 वॉलंटियर्स पर किया गया था।
कुत्तों को सबसे वफादार जानवर माना जाता है, चीन में इससे जुड़ामामला सामने आया है। यहां वुहान में 7 साल का कुत्ता शिआओ बाओ चर्चा में है। वह तीन महीने तक कोरोना से जूझ रहे अपने मालिक का वुहान हॉस्पिटल में इंतजार करता रहा। उसके मालिक की मौत भर्ती होने के 5 दिन बाद ही हो गई थी। लेकिन इस बात से बेखबर शियाओ हॉस्पिटल की लॉबी में तीन महीने तक मालिक से मिलने की उम्मीद लगाए बैठा रहा।