बुधवार, 7 अक्टूबर 2020

बाइडेन ने कहा- अगर ट्रम्प को अब भी कोरोना है तो मैं डिबेट में हिस्सा नहीं लूंगा; राष्ट्रपति को संक्रमण न होने का सबूत देना पड़ सकता है

डोनाल्ड ट्रम्प भले ही कोविड-19 संक्रमित होने के बाद तीन दिन हॉस्पिटल में रहे हों और फिर व्हाइट हाउस लौट आए हों, लेकिन उनकी मुश्किलें कम नहीं हो रहीं। 15 अक्टूबर को होने वाली दूसरी प्रेसिडेंशियल डिबेट से पहले डेमोक्रेट कैंडिडेट जो बाइडेन ने इसके लिए नई शर्त रख दी है। बाइडेन ने कहा है कि वे बहस में तभी हिस्सा लेंगे, जब यह तय हो जाएगा कि ट्रम्प संक्रमण से उबर चुके हैं। दूसरी तरफ, ट्रम्प के एक और एडवाइजर स्टीफन मिलर भी कोविड-19 पॉजिटिव हो गए हैं।

बाइडेन ने क्या कहा
15 अक्टूबर को मियामी में होने वाली दूसरी प्रेसिंडेशियल डिबेट के पहले बाइडेन ने अहम बयान दिया। मंगलवार रात इस डेमोक्रेट कैंडिडेट ने कहा- मुझे लगता है कि अगर उन्हें (ट्रम्प को) अब भी संक्रमण है तो फिर हमें डिबेट नहीं करनी चाहिए। खास बात ये है कि सोमवार रात मेरीलैंड के वॉल्टर रीड मिलिट्री हॉस्पिटल से लौटने के बाद ट्रम्प के कैम्पेन मैनेजर ने साफ कर दिया था कि राष्ट्रपति दूसरी बहस में शिरकत के लिए पूरी तरह तैयार हैं। लेकिन, बाइडेन के शर्त की बाद यह मामला फंसता नजर आ रहा है। ट्रम्प को सबूत देना पड़ सकता है कि वे कोरोना संक्रमण से मुक्त हो चुके हैं।

डॉक्टरों से सलाह लेंगे बाइडेन
बाइडेन ने भी पिछले दिनों टेस्ट कराया था। उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई थी। मंगलवार रात को मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा- मुझे उम्मीद है कि राष्ट्रपति बहुत जल्द ठीक हो जाएंगे। लेकिन, मुझे लगता है कि अगर अब भी उन्हें संक्रमण है तो फिर हमें डिबेट नहीं करनी चाहिए। मैं इस बारे में क्लीवलैंड क्लीनिक और डॉक्टरों से बातचीत करने वाला हूं। इस बारे में जो गाइडलाइंस तय की गई हैं, उन्हें सख्ती से लागू करना चाहिए। कई लोग संक्रमित हो रहे हैं और यह बहुत बड़ी परेशानी बन चुकी है। इसलिए मैं इस बारे में सलाह लूंगा और जो सही होगा, वही करूंगा।

यानी कुछ तय नहीं
बाइडेन की डिबेट पर टिप्पणी का मतलब यह भी हुआ कि 15 और 22 अक्टूबर को होने वाली दूसरी और तीसरी डिबेट खतरे में पड़ सकती है। बाइडेन इस बारे में कमीशन ऑफ प्रेसिडेंशियल डिबेट यानी सीपीडी से बातचीत कर सकते हैं। कानूनी तौर पर भी वे ऐसा कर सकते हैं। ट्रम्प तीन दिन हॉस्पिटल में रहे थे और सोमवार को ही डिस्चार्ज हुए थे। अमेरिका में सीडीसी (सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल) की गाइडलाइंस के मुताबिक, हल्के लक्षण वाले मरीजों को भी 10 तक तक निगरानी में रहना होता है। अगर संक्रमित गंभीर स्थिति में था तो उसे 20 दिन तक निगरानी में रखा जाता है।

आज वाइस प्रेसिडेंशियल डिबेट
पहली और एकमात्र वाइस प्रेसिडेंशियल डिबेट आज साल्ट लेक सिटी में होगी। उपराष्ट्रपति माइक पेन्स और डेमोक्रेट कैंडिडेट कमला हैरिस इसमें शामिल होंगे। दोनों के सामने प्रोटेक्शन ग्लासेस यानी शीशे लगाए जा सकते हैं। दोनों कैंडिडेट्स के बीच 12 फीट की दूरी होगी। पहले यह 7 फीट ही तय की गई थी। पेन्स ने पहले ग्लासेस लगाने का विरोध किया था। बाद में इसके लिए तैयार हो गए।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Donald Trump Coronavirus Infected Vs Joe Biden US Presidential Debate | Here's Latest US Election 2020 News From The New York Times


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3dd6DKI
https://ift.tt/2Gw5wd2

ई नगर विकास मंत्री का शहर है, कब्बे इसे स्मार्ट बन जाना था, लेकिन लाइन बहुत लम्बी है, सो अभी तक नम्बरे नहीं आया

शहर- मुजफ्फरपुर
स्थान- गोबरसही चौक से थोड़ा आगे
समय- शाम के 4 बजे के आसपास

स्मार्ट सिटी बनाएंगे... मरीन ड्राइव बनाएंगे... हथेली पर सरसों उगाएंगे... इनकी फसल लहलहाएगी, काट के खाएंगे भी सब और किसी को दिखइबे नही करेगा। ई नगर विकास मंत्री का शहर है। कहते हैं लोग कि कब्बे इसे स्मार्ट बन जाना था, लेकिन लाइन बहुत लम्बी है, सो अभी तक नम्बरे नहीं आया। तभी न हर चौक-चौराहा को झील बनाकर छोड़ दिया है, ताकि लोगों को झील वाले शहर में होने का अहसास होता रहे… ये आक्रोश मुजफ्फरपुर के एक युवक का है, जो लॉकडाउन में किसी दूसरे शहर से आया और नौकरी चले जाने के कारण यहीं फंसकर रह गया है। नाम ठीक-ठीक याद नहीं, लेकिन शायद अजय बताया था। यह एक चाय की दुकान पर चल रही बातचीत की एक झलक है।

मुजफ्फरपुर शहर में यूं तो चाय की तमाम दुकानें हैं, लेकिन गोबरसही चौक से थोड़ा आगे बढ़ते ही इस चाय की दुकान पर होने वाली जुटान और बहस की पूरे शहर में चर्चा होती है। आप इसे शहर की चाय दुकानों का प्रतिनिधि भी मान सकते हैं। लोग कहते हैं कि मड़ई में चलने वाली इस चाय की दुकान की खासियत है कि ये मौसमी हवा भले न झेल पाए, चुनावी मौसम में यहां से निकलने वाली हवाओं का देर तक असर रहता है।

पांच अक्टूबर का दिन है। शाम के चार-साढ़े चार बजे होंगे। बड़े से बर्तन में चाय उबल रही है और दुकान के बाहर रखी बेंच पर चाय की चाह रखने वाले कई लोग बैठे हैं। बगल में रखे अखबार को उठाकर और पहला पन्ना देखने के बाद किनारे रखते हुए बुजुर्ग कहते हैं, ‘ठीक कह रहे हो तुम। जायज है तुम्हारा गुस्सा।’ तभी एक आवाज आती है,‘चुनाव आ गया है, अब सब ठीक हो जाएगा (आवाज में खासा तंज और तल्खी है)।’

तभी एक बुजुर्ग बोल पड़ते हैं- ‘लग ही नहीं रहा है कि चुनाव है। न नेता तैयार और न ही जनता!’ इस टिप्पणी को एक दूसरे 30-35 साल के युवक ने लपक लिया है- ‘जनता तो तैयार है चाचा। ठीक से हिसाब के मूड में है। दस साल से सुरेश शर्मा विधायक छथिन, तीन साल से नगर विकास मंत्री भी हो गेलखिन, लेकिन काम कुछ न। खाली हवा-पानी पर साल बित गेलइ (खाली बातों में साल बिता दिया)।’

सुरेश शर्मा दो बार से लगातार विधायक हैं और 2017 से नगर विकास मंत्री बने, लेकिन लोग नाराज हैं कि उनके वादे कभी इरादों में नहीं बदल पाए। शहर स्मार्ट सिटी की लिस्ट में तो आ गया, लेकिन रैंकिंग में इसका पायदान हमेशा नीचे चला जाता है।

किसी ने चुनाव, चिराग और सरकार की बात छेड़ी तो मुंह से मास्क सरकाते हुए एक युवक बोला, ‘सब तय है। दस साल से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे-बैठे नीतीश जी का मन ऊबिया गया है। अबकी त बीजेपी अकेले सरकार बनाएगी।’

इस अति आत्मविश्वासी टिप्पणी ने चाय की दुकान पर खड़े लगभग हर व्यक्ति को उसकी तरफ घुमा दिया। इस एक बात ने अचानक माहौल बना दिया है। प्लास्टिक के कप में चाय निकालते हुए दुकान वाले ने चुटकी ली, ‘का भईया? जैसे कण-कण में भगवान वास करते हैं, वैसे ही मोदी जी भी एमपी से एमएलए तक के चुनाव में बसते हैं का?’ इस सवाल का जवाब उस नौजवान ने तपाक से दिया, ‘जा रे मर्दे! चाय वाला हो के दोसर ‘चाय वाला’ के ही टांग खींच रहा है।’

इस सवाल-जवाब ने वहां खड़े-बैठे हर व्यक्ति को हंसा दिया है।

माहौल थोड़ा शांत हुआ तो बगल में अपने टोटो (बैटरी रिक्शा) की अगली सीट पर बैठकर आराम से चाय पी रहे और इस बार पहली दफा अपना वोट डालने जा रहे लड़के ने टोका, ‘ना मोदी जी, ना नीतीश जी अबकी त महागठबंधने के मौका मिले के चाही। तेजस्वी युवा हैं। कहिया तक पुरनिया लोग बिहार के युवाओं के लिए योजना बनाते रहेंगे?’

वो इतने पर ही चुप होने के मूड में नहीं था। आगे बोला, ‘बड़का मोदी को काहे देखते हैं? छोटका मोदी को देखिए। जब पटना दहा था तो वो हाफ पैंट पहनकर सड़क किनारे खड़े थे। मोबाइल पर फोटो देखे थे हम। बताइए? जब बाढ़ में उपमुख्यमंत्री का ई हाल है तो समूचे बिहार का क्या हाल होगा? नीतीश जी, दस साल से मुख्यमंत्री हैं तो सुशील मोदी भी तो उपमुख्यमंत्री हैं। अगर भाजपा चुनाव जीत जाएगी तो दिल्ली से मोदी जी बिहार थोड़े आ जाएंगे। आएंगे का?’

चर्चा का चक्र घूम फिरकर फिर उन बुजुर्ग के पास आ चुका है, जिन्होंने इसकी शुरुआत की थी। सबकी सुनने और सबको कहने देने के बाद वो बोले, ‘कौन आवेगा, कौन जाएगा, ये तो समय बताएगा। पहले नेता और गठबंधन तो तय हो जाए। अभी खेला शुरू हुआ नहीं और आप लोग विजेता टीम की घोषणा कर रहे हैं। पहले टीमों को अपने खिलाड़ी तय करने दीजिए। थोड़ा माहौल बने। प्रचार हो। धमक चढ़े तब ना कि ऐसे ही अपने मन से कुछो बोलते रहना है?’

माथा खुजाते हुए बुजुर्ग आगे कहते हैं, ‘ऊ अंग्रेजी में एकठो कहावत है ना? क्या कहते हैं? हां याद आया…जस्ट वेट एंड वॉच। जनता को अभी यही करना चाहिए।’



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Muzaffarpur (Bihar) Assembly Election 2020 Update | What Muzaffarpur Voters Of Have To Say On BJP MLA Suresh Kumar Sharma


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2HVTJF8
https://ift.tt/34uSaG2

19 दिन में 1.10 लाख एक्टिव केस कम हुए, 24 घंटे में 24 राज्यों में नए केस से ठीक होने वाले ज्यादा; अब तक 67.54 लाख संक्रमित

देश में कोरोना के आंकड़ों ने फिर राहत दी है। 71869 नए केस आए, जबकि 81945 मरीज ठीक हो गए, 990 की मौत हुई। 24 राज्यों में नए मरीजों की तुलना में ठीक होने वालों की संख्या ज्यादा रही। बीते 19 दिनों में 1.10 लाख एक्टिव केस कम हुए हैं। 17 सितंबर को देश में सबसे ज्यादा 10.17 लाख एक्टिव केस थे, जो अब घटकर 9.7 लाख हो गए हैं।

देश में अब तक 67.54 लाख केस आ चुके हैं। इनमें से 57.41 लाख मरीज ठीक हो चुके हैं, जबकि 1.04 लाख लोग इस बीमारी से जान गंवा चुके हैं।

48% मौतें देश के 25 जिलों में हुईं
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार को बताया कि देश में संक्रमण से अब तक 48% मरीजों की मौत आठ राज्यों के 25 जिलों में हुई हैं। इनमें भी 15 जिले महाराष्ट्र के हैं। कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और गुजरात के 2-2, जबकि पंजाब, उत्तरप्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के 1-1 जिले हैं। मतलब कोरोना से हुई मौतों का सबसे ज्यादा असर इन्हीं जिलों में हुआ है। केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को डेथ रेट 1% से कम करने की कोशिश करने को कहा है।

केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने बताया कि महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, उत्तरप्रदेश और तमिलनाडु समेत 10 राज्य ऐसे हैं, 77% एक्टिव केस हैं। इनमें भी तीन राज्य ऐसे हैं जहां 50% एक्टिव केस हैं। एक्टिव केस पिछले दो हफ्ते से लगातार कम हो रहे हैं। यह एक अच्छा संकेत है।

पीक घोषित किया तो लोग लापरवाह हो जाएंगे
स्वास्थ्य मंत्रालय का यह भी कहना है कि डब्ल्यूएचओ के पैमाने पर देखें तो देश में कोरोना का पीक आ चुका, अब दूसरी लहर रोकने के लिए सावधानी बरतना जरूरी है। देश में 22 सितंबर से 5 अक्टूबर तक लगातार 14 दिन एक्टिव केस बढ़ने की दर शून्य से नीचे रही। डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार, दुनिया के सभी देशों में इसी आधार पर पीक घोषित हुआ था। हालांकि, मंत्रालय का कहना है कि आंकड़ों के आधार पर पीक घोषित किया तो लोग लापरवाह हो सकते हैं। त्योहारी सीजन में हमें और ज्यादा एहतियात बरतने की जरूरत है।

पांच राज्यों का हाल

1. मध्यप्रदेश
मंगलवार को 1570 केस आए, 2161 मरीज ठीक हुए, जबकि 25 संक्रमितों की मौत हो गई। राज्य में अब तक 1 लाख 38 हजार 668 केस आ चुके हैं, 1 लाख 18 हजार 39 लोग ठीक हो चुके हैं, 18 हजार 141 संक्रमितों का इलाज चल रहा है, जबकि 2488 मरीजों की मौत हो चुके हैं।

2. राजस्थान
मंगलवार को 2121 केस आए, 2027 मरीज ठीक हुए, जबकि 15 मरीजों की मौत हो गई। राज्य में अब तक 1 लाख 48 हजार 316 केस आ चुके हैं। 1 लाख 25 हजार 448 मरीज ठीक हो चुके हैं, 2194 का इलाज चल रहा है, जबकि 1574 मरीज जान गंवा चुके हैं। राज्य में अब तक 32.45 लाख से ज्यादा टेस्टिंग हो चुकी है।

3. बिहार
मंगलवार को 1265 केस आए, 1255 लोग ठीक हुए और 61 की मौत हो गई। राज्य में अब तक 1 लाख 90 हजार 123 लोग केस आ चुके हैं। इनमें से 1 लाख 77 हजार 929 मरीज ठीक हो चुके हैं, जबकि 925 संक्रमितों की मौत हो चुकी है। 11 हजार 268 मरीजों का इलाज चल रहा है।

4. महाराष्ट्र
मंगलवार को 12 हजार 158 केस आए, 17 हजार 141 मरीज ठीक हुए और 370 की मौत हो गई। राज्य में अब तक 14 लाख 65 हजार 911 केस आ चुके हैं। इनमें से 11 लाख 79 हजार 726 ठीक हो चुके हैं, 2 लाख 37 हजार 23 मरीजों का अभी इलाज चल रहा है, जबकि 38 हजार 717 मरीजों की मौत हो चुकी है।

5. उत्तरप्रदेश
मंगलवार को 3663 केस आए, 4432 मरीज ठीक हो गए, 61 की मौत हो गई। राज्य में अब तक 4 लाख 20 हजार 937 केस आ चुके हैं, 3 लाख 70 हजार 753 मरीज ठीक हो चुके हैं, 44 हजार 31 का इलाज चल रहा है, जबकि 61 हजार 53 की मौत हो चुकी है। राज्य में 17 सितंबर के बाद से 23 हजार 235 एक्टिव केस (करीब 38%) कम हुए हैं।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Coronavirus Outbreak India Cases LIVE Updates; Maharashtra Pune Madhya Pradesh Indore Rajasthan Uttar Pradesh Haryana Punjab Bihar Novel Corona (COVID 19) Death Toll India Today Mumbai Delhi Coronavirus News


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3iCYKiH
https://ift.tt/3jDIL5j

19 दिन में 1.10 लाख एक्टिव केस कम हुए, 24 घंटे में 24 राज्यों में नए केस से ठीक होने वाले ज्यादा; अब तक 67.54 लाख संक्रमित

देश में कोरोना के आंकड़ों ने फिर राहत दी है। 71869 नए केस आए, जबकि 81945 मरीज ठीक हो गए, 990 की मौत हुई। 24 राज्यों में नए मरीजों की तुलना में ठीक होने वालों की संख्या ज्यादा रही। बीते 19 दिनों में 1.10 लाख एक्टिव केस कम हुए हैं। 17 सितंबर को देश में सबसे ज्यादा 10.17 लाख एक्टिव केस थे, जो अब घटकर 9.7 लाख हो गए हैं।

देश में अब तक 67.54 लाख केस आ चुके हैं। इनमें से 57.41 लाख मरीज ठीक हो चुके हैं, जबकि 1.04 लाख लोग इस बीमारी से जान गंवा चुके हैं।

48% मौतें देश के 25 जिलों में हुईं
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार को बताया कि देश में संक्रमण से अब तक 48% मरीजों की मौत आठ राज्यों के 25 जिलों में हुई हैं। इनमें भी 15 जिले महाराष्ट्र के हैं। कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और गुजरात के 2-2, जबकि पंजाब, उत्तरप्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के 1-1 जिले हैं। मतलब कोरोना से हुई मौतों का सबसे ज्यादा असर इन्हीं जिलों में हुआ है। केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को डेथ रेट 1% से कम करने की कोशिश करने को कहा है।

केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने बताया कि महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, उत्तरप्रदेश और तमिलनाडु समेत 10 राज्य ऐसे हैं, 77% एक्टिव केस हैं। इनमें भी तीन राज्य ऐसे हैं जहां 50% एक्टिव केस हैं। एक्टिव केस पिछले दो हफ्ते से लगातार कम हो रहे हैं। यह एक अच्छा संकेत है।

पीक घोषित किया तो लोग लापरवाह हो जाएंगे
स्वास्थ्य मंत्रालय का यह भी कहना है कि डब्ल्यूएचओ के पैमाने पर देखें तो देश में कोरोना का पीक आ चुका, अब दूसरी लहर रोकने के लिए सावधानी बरतना जरूरी है। देश में 22 सितंबर से 5 अक्टूबर तक लगातार 14 दिन एक्टिव केस बढ़ने की दर शून्य से नीचे रही। डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार, दुनिया के सभी देशों में इसी आधार पर पीक घोषित हुआ था। हालांकि, मंत्रालय का कहना है कि आंकड़ों के आधार पर पीक घोषित किया तो लोग लापरवाह हो सकते हैं। त्योहारी सीजन में हमें और ज्यादा एहतियात बरतने की जरूरत है।

पांच राज्यों का हाल

1. मध्यप्रदेश
मंगलवार को 1570 केस आए, 2161 मरीज ठीक हुए, जबकि 25 संक्रमितों की मौत हो गई। राज्य में अब तक 1 लाख 38 हजार 668 केस आ चुके हैं, 1 लाख 18 हजार 39 लोग ठीक हो चुके हैं, 18 हजार 141 संक्रमितों का इलाज चल रहा है, जबकि 2488 मरीजों की मौत हो चुके हैं।

2. राजस्थान
मंगलवार को 2121 केस आए, 2027 मरीज ठीक हुए, जबकि 15 मरीजों की मौत हो गई। राज्य में अब तक 1 लाख 48 हजार 316 केस आ चुके हैं। 1 लाख 25 हजार 448 मरीज ठीक हो चुके हैं, 2194 का इलाज चल रहा है, जबकि 1574 मरीज जान गंवा चुके हैं। राज्य में अब तक 32.45 लाख से ज्यादा टेस्टिंग हो चुकी है।

3. बिहार
मंगलवार को 1265 केस आए, 1255 लोग ठीक हुए और 61 की मौत हो गई। राज्य में अब तक 1 लाख 90 हजार 123 लोग केस आ चुके हैं। इनमें से 1 लाख 77 हजार 929 मरीज ठीक हो चुके हैं, जबकि 925 संक्रमितों की मौत हो चुकी है। 11 हजार 268 मरीजों का इलाज चल रहा है।

4. महाराष्ट्र
मंगलवार को 12 हजार 158 केस आए, 17 हजार 141 मरीज ठीक हुए और 370 की मौत हो गई। राज्य में अब तक 14 लाख 65 हजार 911 केस आ चुके हैं। इनमें से 11 लाख 79 हजार 726 ठीक हो चुके हैं, 2 लाख 37 हजार 23 मरीजों का अभी इलाज चल रहा है, जबकि 38 हजार 717 मरीजों की मौत हो चुकी है।

5. उत्तरप्रदेश
मंगलवार को 3663 केस आए, 4432 मरीज ठीक हो गए, 61 की मौत हो गई। राज्य में अब तक 4 लाख 20 हजार 937 केस आ चुके हैं, 3 लाख 70 हजार 753 मरीज ठीक हो चुके हैं, 44 हजार 31 का इलाज चल रहा है, जबकि 61 हजार 53 की मौत हो चुकी है। राज्य में 17 सितंबर के बाद से 23 हजार 235 एक्टिव केस (करीब 38%) कम हुए हैं।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Coronavirus Outbreak India Cases LIVE Updates; Maharashtra Pune Madhya Pradesh Indore Rajasthan Uttar Pradesh Haryana Punjab Bihar Novel Corona (COVID 19) Death Toll India Today Mumbai Delhi Coronavirus News


from Dainik Bhaskar /national/news/coronavirus-outbreak-india-cases-live-news-and-updates-07-october-2020-127789018.html
https://ift.tt/30FrcdG

शोपियां जिले के सगुन इलाके में सुरक्षाबलों ने 2 आतंकी मार गिराए, 12 घंटे तक एनकाउंटर चला

जम्मू-कश्मीर के शोपियां जिले के सगुन इलाके में सुरक्षाबलों ने बुधवार को 2 आतंकी मार गिराए। एनकाउंटर मंगलवार से चल रहा था। आतंकियों के छिपे होने की सूचना पर सिक्योरिटी फोर्सेज ने सर्च ऑपरेशन शुरू किया था। पुलिस ने आतंकियों को सरेंडर करने का मौका दिया, लेकिन मंगलवार शाम 7.30 बजे उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी।

पिछले हफ्ते पुलवामा में 2 आतंकी मारे गए थे
पुलवामा जिले के अवंतीपोरा के संबूरा इलाके में 27 सितंबर को आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच एनकाउंटर हुआ था। सुरक्षाबलों ने 2 आतंकी मार गिराए थे। आतंकियों की फायरिंग में एक पुलिसकर्मी घायल हो गया था। वहीं सोमवार को पुलवामा जिले के पंपोर में आतंकियों के हमले में CRPF के 2 जवान शहीद हो गए थे।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
एनकाउंटर वाली लोकेशन के आस-पास सुरक्षाबल मोर्चा संभाले हुए।


from Dainik Bhaskar /national/news/two-terrorists-killed-in-an-encounter-with-security-forces-in-sugan-area-of-shopian-127788955.html
https://ift.tt/34Av3Kh

रिया की जमानत अर्जी पर बॉम्बे हाईकोर्ट आज फैसला सुना सकता है, एक महीने से जेल में बंद एक्ट्रेस 20 अक्टूबर तक ज्यूडिशियल कस्टडी में हैं

ड्रग्स मामले में गिरफ्तार एक्ट्रेस रिया चक्रवर्ती की जमानत अर्जी पर बॉम्बे हाईकोर्ट आज फैसला सुना सकता है। कोर्ट ने पिछले हफ्ते फैसला रिजर्व रख लिया था। एक महीने से जेल में बंद रिया ने लोअर कोर्ट से 2 बार अर्जी खारिज होने के बाद हाईकोर्ट में अपील की थी। उधर, सेशन कोर्ट ने मंगलवार को रिया की ज्यूडिशियल कस्टडी 14 दिन और यानी 20 अक्टूबर तक बढ़ा दी।

सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच के सिलसिले में सामने आए ड्रग्स केस में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने 8 सितंबर को रिया को गिरफ्तार किया था। उन्हें भायखला जेल में रखा गया है। रिया के साथ उनके भाई शोविक और सुशांत के हाउस मैनेजर रहे सैमुअल मिरांडा की जमानत अर्जियों पर भी हाईकोर्ट आज फैसला सुना सकता है।

NCB की दलील- रिया ड्रग्स सिंडिकेट की एक्टिव मेंबर
NCB ने रिया और उनके भाई शोविक की जमानत का विरोध किया है। जांच एजेंसी ने कोर्ट में दिए एफिडेविट में कहा कि रिया और शोविक ड्रग्स सिंडिकेट के एक्टिव मेंबर हैं और कई हाई सोसाइटी लोगों और ड्रग्स सप्लायर्स से जुड़े हैं। इन पर धारा 27A लगाई गई है, इसलिए इन्हें जमानत नहीं मिलनी चाहिए। NCB ने कहा कि रिया ने ड्रग्स खरीदने की बात कबूल की है। उन्होंने माना कि ड्रग्स खरीदने के लिए मिरांडा, दीपेश सावंत और शोविक से कहा था।

रिया के वकील की दलील- सुशांत पहले से ड्रग्स लेते थे
एक्ट्रेस के वकील सतीश मानशिंदे ने अदालत में कहा था कि रिया के सुशांत की लाइफ में आने से पहले ही वे ड्रग्स लेते थे। सुशांत को ड्रग्स की लत थी। यह बात 3 एक्ट्रेस कह चुकी हैं। रिया की तरह ही श्रद्धा कपूर और सारा अली खान ने कहा है कि सुशांत 2019 से पहले से ड्रग्स लिया करते थे।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने रिया को 8 सितंबर को गिरफ्तार किया था। लोअर कोर्ट से उनकी जमानत अर्जी 2 बार खारिज हो चुकी। (फाइल फोटो)


from Dainik Bhaskar /national/news/bombay-high-court-likely-to-pronounce-order-on-bail-plea-of-rhea-chakraborty-in-drug-case-127789005.html
https://ift.tt/3nmSwqJ

पूरा देश एक मंडी है; बाजार बड़ा होगा तो यहां धांधलियां भी मोटी होंगी; कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग भी एक धोखा है

जाने कौन-सी धुन में रहती है यह सरकार! अब खेती और उसकी उपज के निजीकरण पर उतारू है। मंडियां बिकने को हैं। सुनने वाला कोई नहीं। कुल मिलाकर इस केंद्र सरकार को राजनीति के सिवाय कुछ नहीं आता।

दरअसल, केंद्र में बैठी जिस सरकार को राज्यों में सरकारें बनाने-गिराने का शौक़ हो, छोटे दलों को दोस्त बनाकर उन्हें मटियामेट करने की जिज्ञासा हो, वह आम आदमी, किसान या गरीब का भला करते सिर्फ दिखाई देना चाहती है। असल में कॉर्पोरेट जगत का भला करने के सिवाय उसके पास कोई चारा नहीं होता। क्योंकि तमाम तोड़-फोड़ की ऊर्जा उसे वहीं से मिलती है।

किसानों की फसल बिक्री, कॉन्ट्रेक्ट फ़ार्मिंग आदि से जुड़े हाल में लाए गए तीन विधेयक निश्चित रूप से किसानों के खिलाफ हैं। कोई ग्राउंड पर जाकर देखना ही नहीं चाहता। बंद कमरों में बैठकर क़ानून बनाने वाले लोगों को कैसे पता होंगी असल दिक्कतें?

कोई भी किसान कहीं भी फसल बेच सकता है

ताजा कृषि विधेयकों पर उठे तमाम सवालों का सरकार के पास एक ही जवाब है - अब पूरा देश एक मंडी है। कोई भी किसान, कहीं भी अपनी फसल बेच सकता है। जहां ज़्यादा भाव मिले वहां बेच सकता है। किसानों का इससे भला होगा। भला कैसे होगा, यह न सरकार को पता है, न उसकी ओर से जवाब देने वाले मंत्रियों, सिपहसालारों को।

किसानों की आशंका यह है कि सरकारी ख़रीद बंद हो जाएगी। हालांकि यह आशंका भी ठीक नहीं है लेकिन इतना तय है कि सरकारी मंडियां अपनी ख़रीद की मात्रा कम ज़रूर करेंगी। मंडियां खुलते ही बंद हो जाएंगी। कौन कॉर्पोरेट वहां किन किसानों के नाम से फसल बेच गया, पता ही नहीं चलेगा।

अब मोटी धांधलियां शुरू होंगी

मंडियों में अभी छोटी धांधलियां होती हैं, अब मोटी धांधलियां शुरू हो जाएंगी। सरकार कहती है कहीं भी फसल बेचने की सुविधा मिलने से किसानों को अच्छे दाम मिलेंगे। अगर यह सही है, तो सरकारी मंडियों के बाहर की हर ख़रीद पर भी सरकार समर्थन मूल्य को अनिवार्य क्यों नहीं करती?

किसान चाहता यही है कि ख़रीद कहीं भी हो, निजी या सरकारी, हर जगह समर्थन मूल्य की अनिवार्यता लागू कर दी जाए लेकिन किसानों का भला सोचने वाली सरकार को यह सीधी सी बात समझ में नहीं आती या वह समझना ही नहीं चाहती। अगर किसान का भला ही सोचना है तो ऐसी फसल लाइए जिस पर भारी बारिश का असर न हो या कम बारिश के कारण भी उपज में कमी न आए। लेकिन यह कोई नहीं करना चाहता। पेड़ कोई नहीं लगाना चाहता। सब के सब फसल काटने आ जाते हैं।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग भी बड़ा धोखा है

जहां तक कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का सवाल है, यह भी बड़ा धोखा ही है। फसल बोने से पहले कोई कॉर्पोरेट आपसे सौदा कर लेगा और फिर उसी को सारी फसल देनी होगी। इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन कोई विवाद होता है, जो कि होता ही है तो उसका निबटारा एसडीएम या कलेक्टर स्तर पर होगा। अब एसडीएम कॉर्पोरेट का पक्ष लेगा, या गरीब किसान का, यह भगवान ही जाने।

कहीं भी फसल बेचने से क्या लाभ होगा, यह सवाल भी अब तक आशंकाओं से घिरा हुआ है। एक राज्य का किसान किसी दूसरे राज्य के आढ़तिए या कंपनी को फसल बेचेगा तो भाड़ा कौन भुगतेगा? अगर किसान पर यह बोझ नहीं आएगा तो ऐसा कौन व्यापारी है जो ऊंचे दाम पर फसल भी ख़रीदे और भाड़ा भी भुगते! अगर भाड़ा नहीं भुगते और वह व्यापारी इसी राज्य में फसल का हवाला कर देता है तो भी उसकी फसल को ऊंचे दाम पर ख़रीदेगा कौन? जबकि इस राज्य में कम दाम पहले से ही चल रहे हों तब।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
The whole country is a market, now there will be thick rigging


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2HU3HXB
https://ift.tt/3lhWdfu

जिस एमएसपी को लेकर किसान नाराज हैं, उससे जुड़े पांच सच आपको जरूर जानना चाहिए

केंद्र सरकार के तीन किसान विरोधी कानूनों के चलते किसान के गुस्से का लावा फिर फूट पड़ा है। लेकिन सरकार मासूमियत से पूछती है: आप नाराज क्यों हैं? एमएसपी की व्यवस्था जस की तस है। उसे हमने छुआ ही नहीं है। पत्रकार पूछते हैं: अगर सरकार एमएसपी हटा नहीं रही तो किसान परेशान क्यों हैं? एमएसपी के बारे में सरकारें पाखंड करती हैं, और जनता दिग्भ्रमित रहती है। इससे किसान लुटता रहता है।
दरअसल साठ के दशक में जब देश में कृषि में हरित क्रांति की शुरुआत हुई तब सरकार को महसूस हुआ की किसान नए किस्म की खेती तब तक नहीं करेंगे जब तक उन्हें इसमें सही दाम मिलने का भरोसा ना हो। इसलिए सरकार ने बुवाई से पहले सरकारी दाम की घोषणा करनी शुरू की। इसे ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ या मिनिमम सपोर्ट प्राइस कहा जाने लगा।

साधारण किसान इसे फसल खरीद के सरकारी रेट के रूप में जानता है। पिछले 50 साल से खरीफ और रबी की फसल की बुवाई से कुछ हफ्ते पहले सरकार आने वाली फसल के लिए 23 उत्पादों की एमएसपी की घोषणा करती है। मोदी सरकार के आने के बाद बाकी सब चीजों की तरह इसे हर बार गाजे-बाजे के साथ ऐसे पेश किया जाता है मानो इतिहास में पहली बार यह घोषणा हुई हो।

एमएसपी फसल का वाजिब दाम नहीं है
एमएसपी के बारे में पहला सच यह है कि यह किसान की फसल का वाजिब दाम नहीं है। जैसे सरकार स्वयं कहती है, यह न्यूनतम मूल्य है। किसान को मेहनत का जितना कम से कम मेहनताना मिलना ही चाहिए, उसका सूचकांक है। यह देश का दुर्भाग्य है कि यह न्यूनतम भी किसान के लिए एक सपना बन गया है।

दूसरा सच यह है कि इस न्यूनतम दाम की गिनती भी ठीक ढंग से नहीं होती। आज से 15 साल पहले स्वामीनाथन आयोग ने एमएसपी की सही गिनती का फार्मूला बताया था। आयोग का सुझाव था कि किसी किसान की संपूर्ण लागत पर 50% बचत जोड़कर एमएसपी तय होनी चाहिए। यानी कि अगर गेहूं की लागत ₹1600 प्रति क्विंटल है तो उसकी एमएसपी ₹2400 प्रति क्विंटल होनी चाहिए।

कांग्रेस सरकारों ने इस सिफारिश को नजरअंदाज कर दिया। बीजेपी ने इसे लागू करने के नाम पर डंडी मार दी। संपूर्ण लागत की बजाय आंशिक लागत को पैमाना बनाकर उसका ड्योढ़ा घोषित कर दिया। देशभर के किसान आंदोलनों ने बीजेपी के इस फॉर्मूले को खारिज कर दिया।
तीसरा सच यह है कि यह एमएसपी भी देश के अधिकांश किसानों को नसीब नहीं होती। सरकार सिर्फ 23 फसलों में एमएसपी घोषित करती है। फल सब्जियों की एमएसपी घोषित ही नहीं होती। घोषणा के बाद सरकार सिर्फ दो-ढाई फसल में सचमुच न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देती है।

राशन के दुकान में देने के लिए गेहूं और धान की खरीददारी करती है सरकार

गेहूं और धान की खरीद सरकार इसलिए नहीं करती है कि किसान को दाम मिले, बल्कि इसलिए कि सरकार को राशन की दुकान में गेहूं-चावल देना है। इनके अलावा देश के विभिन्न इलाकों में एकाध फसल की कुछ अच्छी खरीद हो जाती है, वह भी किसान आंदोलन के बाद। सात साल पहले शांताकुमार समिति का अनुमान था कि देश के केवल 6% किसानों को ही एमएसपी मिल पाती है।

आज वास्तविक आंकड़ा 15- 20% होगा। जहां सरकारी खरीद होती भी है वहां कई पेंच हंै। किसान सरकारी पोर्टल पर रजिस्टर करे, कागज दाखिल करे, फसल की गुणवत्ता साबित करे। सरकार ने अधिकतम पैदावार की सीमा भी बांध रखी है। अगर खरीद हो गई तो पेमेंट देर में होता है। झक मारकर किसान कम दाम में आढती को बेचकर जान छुड़ाता है।
चौथा सच यह है कि इस आधी अधूरी व्यवस्था को भी खतरा है। मोदी सरकार शुरू से ही एमएसपी से पिंड छुड़ाने के चक्कर में है। 2015 में शांताकुमार कमेटी सिफारिश कर चुकी है कि एफसीआई को सरकारी खरीद बंद कर देनी चाहिए।

पिछले साल सरकार लिखकर हरियाणा व पंजाब को कह चुकी है कि उन्हें गेहूं व चावल की सरकारी खरीद कम करनी चाहिए। इस साल पहली बार धान की खरीद पर प्रति एकड़ अधिकतम सीमा बांधी गई है। इसलिए किसान को पहले से शक था कि एमएसपी को खतरा है। इन तीन कानूनों से खतरा और बढ़ गया है।
पांचवां बड़ा सच यह है कि सरकार चाहे तो इस व्यवस्था को दुरुस्त कर सकती है। किसान आंदोलन की मांग है कि सरकार एमएसपी को कानूनी दर्जा दे। यानी कि कॉन्ट्रैक्ट खेती और सरकारी मंडी के कानूनों में यह लिख दिया जाए कि कोई भी खरीद एमएसपी से नीचे मान्य नहीं होगी।

वहीं एमएसपी की गारंटी को सरकारी खरीद के अलावा अन्य कई व्यवस्थाओं से भी सुनिश्चित किया जा सकता है। सरकार बाजार में सीमित दखल देकर दाम बढ़ा सकती है, या किसान के घाटे की भरपाई कर सकती है। लेकिन ऐसी किसी भी व्यवस्था में सरकार का खर्चा होगा।

सच यह है कि सरकार किसान को न्यूनतम दाम की गारंटी देने के लिए जेब से खर्च करने को तैयार नहीं है। और जबानी जमा खर्च से किसान को दाम मिल नहीं सकता। यह बात अब किसान को समझ आ गई है और एमएसपी के पाखंड का पर्दाफाश करने के लिए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति ने 14 अक्टूबर को एमएसपी अधिकार दिवस की घोषणा की है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
योगेन्द्र यादव, सेफोलॉजिस्ट और अध्यक्ष, स्वराज इंडिया।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/34vf7Zz
https://ift.tt/2SAkpxu

मां का दूध पीने वाले शिशु ज्यादा सुरक्षित; सूरत में संक्रमित 241 माताओं से सिर्फ 13 नवजात को कोरोना

(सूर्यकांत तिवारी) परिस्थितियां कैसी भी हो, मां हमेशा अपने बच्चों की रक्षा करती है। कोरोना काल में भी यह बात साबित हुई है। मां इस महामारी में भी बच्चों के लिए ढाल बन रही है। मां का दूध रक्षा कवच बना हुआ है। मां भले ही कोरोना पॉजिटिव रही हो, लेकिन उसका बच्चे को संक्रमण नहीं लगा।

कोरोना काल के दौरान गुजरात में सूरत के दो सरकारी अस्पताल में 241 कोरोना पॉजिटिव गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी हुई। इनमें से मात्र 13 के नवजात ही कोरोना पॉजिटिव पैदा हुए। प्रोटोकाल के अनुसार अन्य नवजातों का टेस्ट हुआ। लेकिन कोरोना के कोई भी लक्षण उनमें नहीं मिले और न ही अब तक इन बच्चों को कोई समस्या हुई है।

वहीं 228 बच्चे कोरोना निगेटिव मिले। इस दौरान कोरोना पॉजिटिव मां का इलाज होता रहा। बच्चे दूध पीते रहे, लेकिन किसी भी बच्चे को कोई समस्या नहीं हुई। कुछ दिन के बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया। कोरोना काल में सिविल और स्मीमेर अस्पताल में 7 हजार डिलीवरी हो चुकी हैं। ज्यादातर बच्चे निगेटिव हैं। अब तक जितने भी संक्रमित हुए, उनमें से किसी की भी मौत नहीं हुई।

स्मीमेर अस्पताल के गायनिक विभाग के एचओडी डॉ. अश्विन वाछानी ने बताया कि मां भले भी कोरोना पॉजिटिव हो, पर उसके दूध में इतनी ताकत है कि बच्चे को मामूली समस्या भी नहीं होती। इस बात की पुष्टि कोरोना काल के आंकड़े भी कर रहे हैं।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
कोरोना काल में सिविल और स्मीमेर अस्पताल में 7 हजार डिलीवरी हो चुकी हैं। ज्यादातर बच्चे निगेटिव हैं।


from Dainik Bhaskar /national/news/babies-who-drink-breast-milk-are-safer-only-13-newborns-corona-from-241-mothers-infected-in-surat-127788893.html
https://ift.tt/36DTSaF

रिया की जमानत पर फैसला आज; बिहार में लोजपा पर भाजपा सख्त और मास्क को ठुकराते ट्रम्प के आगे कोरोना का हर नियम छोटा

2020 के लिए फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार रोजर पेनरोज, रीनहार्ड गेंजेल और एंड्रिया गेज को दिया जाएगा। वहीं, हाथरस गैंगरेप मामले में यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जो फोरेंसिक रिपोर्ट सौंपी, उसमें रेप के सबूत नहीं मिलने का जिक्र है। चीफ जस्टिस ने कहा- यह घटना भयावह और असाधारण थी। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...

आज इन 3 इवेंट्स पर रहेगी नजर

1. IPL में सीजन का 21वां मैच चेन्नई और कोलकाता के बीच अबु धाबी में शाम साढ़े सात बजे से खेला जाएगा। टॉस शाम सात बजे होगा।

2. ड्रग्स केस में गिरफ्तार रिया की जमानत अर्जी पर बॉम्बे हाईकोर्ट फैसला सुनाएगी।

3. एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा ने अनुराग कश्यप पर यौन शोषण के आरोप लगाने वाली एक्ट्रेस पायल घोष पर एक करोड़ 10 लाख रुपए का मानहानि का केस किया। इस पर आज बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई।

अब कल की 7 महत्वपूर्ण खबरें

1. हाथरस केस की अगले हफ्ते सुनवाई, सरकारी रिपोर्ट में रेप के सबूत नहीं

हाथरस मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। यूपी सरकार ने कोर्ट में फोरेंसिक रिपोर्ट सौंपी। इसमें रेप के सबूत नहीं मिलने का जिक्र है। वहीं, चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा, "हाथरस की घटना भयानक और चौंकाने वाली थी। हम नहीं चाहते कि बार-बार दलीलें दोहराई जाएं। यह असाधारण मामला है। हम सुनिश्चित करेंगे कि जांच सही तरीके से हो।"

-पढ़ें पूरी खबर

2. रिया की जमानत पर हाईकोर्ट का फैसला आज

मंगलवार को मुंबई की सेशन कोर्ट ने एक्ट्रेस रिया चक्रवर्ती की न्यायिक हिरासत 14 दिन और बढ़ा दी। ड्रग्स केस में गिरफ्तार रिया की जमानत अर्जी पर बॉम्बे हाईकोर्ट आज फैसला सुना सकती है। एक्ट्रेस ने लोअर कोर्ट से 2 बार अर्जी खारिज होने के बाद हाईकोर्ट में अपील की थी। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने रिया को 8 सितंबर को गिरफ्तार किया था।

-पढ़ें पूरी खबर

3. बिहार एनडीए में वही रहेगा, जो नीतीश को नेता मानेगा: भाजपा

भाजपा और जदयू की जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीएम नीतीश कुमार ने बताया कि जदयू के जिम्मे 122 सीटें दी गई हैं। हम पार्टी को इसी में 7 सीटें दी हैं। भाजपा के खाते में 121 सीटें हैं और वीआईपी को इन्हीं सीटों में से हिस्सा दिया जाएगा। वहीं, लोजपा के सवाल पर सुशील मोदी ने कहा- बिहार एनडीए में वही रहेगा, जो नीतीश जी को एनडीए का नेता स्वीकार करेगा।

-पढ़ें पूरी खबर

4. ट्रैक्टर चलाकर पहुंचे राहुल को पुलिस ने रोका

कृषि कानूनों का विरोध कर रही कांग्रेस की ट्रैक्टर रैली मंगलवार को हरियाणा बॉर्डर पर पहुंची। राहुल गांधी ट्रैक्टर चलाकर पहुंचे, लेकिन पुलिस ने उनकी रैली को रोक दिया। यहां धक्का-मुक्की भी हुई और राहुल धरने पर बैठ गए। उन्होंने कहा कि जब तक जाने नहीं दिया जाता, वो एक घंटे, 5 घंटे, 24 घंटे, 100 घंटे, एक हजार घंटे या 5 हजार घंटे इंतजार करेंगे। बाद में राहुल को 100 कार्यकर्ताओं के साथ जाने की मंजूरी मिली।

-पढ़ें पूरी खबर

5. व्हाइट हाउस पहुंचते ही ट्रम्प ने मास्क हटाया

तीन दिन पहले कोरोना पॉजिटिव पाए गए डोनाल्ड ट्रम्प इलाज के बाद सोमवार रात हॉस्पिटल से व्हाइट हाउस पहुंचे। उन्होंने कहा- कोरोना से डरने की जरूरत नहीं है। हालांकि, उनके डॉक्टर ने कहा है कि राष्ट्रपति को सेहत का बहुत ध्यान रखना होगा, क्योंकि खतरा टला नहीं है। व्हाइट हाउस में ट्रम्प ने मास्क भी हटा दिया। राष्ट्रपति ट्रम्प समेत 15 अफसर और सांसद संक्रमित पाए गए हैं। अमेरिकी मीडिया के मुताबिक, ट्रम्प कोरोना के हर नियम को तोड़ रहे हैं और गलत पब्लिक मैसेज दे रहे हैं।

-पढ़ें पूरी खबर

6. चाय बेचना शुरू की, अब सालाना 1.8 करोड़ रु कमा रहे

दिल्ली के रहने वाले जगदीश कुमार न्यूजीलैंड में हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में काम कर रहे थे। लाखों में सैलरी थी। 15 साल तक उन्होंने यहां काम किया। फिर लगा कि बस बहुत हो गया, अब अपने वतन लौटना चाहिए। 2018 में वे भारत आ गए। यहां आकर उन्होंने NRI चायवाला शुरु किया। आज उनके पास चाय की 45 वैरायटी हैं। इससे सालाना वे 1.8 करोड़ रु कमा रहे हैं।

-पढ़ें पूरी खबर

7. 15 अक्टूबर से खुलेंगे मल्टीप्लेक्स, SOP जारी

मल्टीप्लेक्स खोलने के लिए सरकार ने मंगलवार को स्डैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रॉसिजर (SOP)जारी की। कंटेनमेंट जोन को छोड़कर बाकी इलाकों में 15 अक्टूबर से 50% कैपेसिटी के साथ मल्टीप्लेक्स और सिनेमा हॉल शुरू किए जा सकेंगे। दो लोगों के बीच की सीट खाली रखनी होगी। कोरोना अवेयरनेस पर फिल्म दिखाना भी जरूरी होगा। हर शो के बाद पूरा हॉल सैनिटाइज होगा।

-पढ़ें पूरी खबर

अब 7 अक्टूबर का इतिहास

1919: गांधीजी की 'नवजीवन' पत्रिका प्रकाशित।

1942: अमेरिका और ब्रिटिश सरकार ने संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की घोषणा की।

1952: चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी बना।

आखिर में जिक्र मदर टेरेसा का। उन्होंने आज ही के दिन 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी। पढ़िए उन्हीं की एक बात...



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Riya's bail decision today; Every rule of corona shortened in front of Trump by BJP tough and rejecting mask on LJP in Bihar


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/30FO5gU
https://ift.tt/3iKZ7bb

15 साल पहले भाजपा से बैर के चलते रामविलास ने नीतीश को सीएम नहीं बनने दिया, अब बेटे चिराग बोले, 'नीतीश तेरी खैर नहीं'

मोदी से कोई बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं। आजकल बिहार की राजनीति में इसकी चर्चा खूब हो रही है। शायद, ऐसा पहली बार हो रहा है जब कोई पार्टी गठबंधन से अलग होकर भी उसी गठबंधन की एक पार्टी को खुलकर सपोर्ट कर रही है। दरअसल, लोजपा ने इस बार एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। वह जदयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारेगी, लेकिन भाजपा के खिलाफ नहीं।

लोजपा सुप्रीमो चिराग पासवान ने कहा है कि इस बार बिहार में भाजपा और लोजपा की सरकार बनेगी, उन्हें नीतीश कुमार का नेतृत्व पसंद नहीं है। लोजपा के इस फैसले को लेकर सियासी गलियारों में कयासबाजी शुरू हो गई है। कोई इसे भाजपा का माइंड गेम बता रहा है तो कोई लोजपा के अस्तित्व की लड़ाई। लेकिन, इससे हटकर भी एक कहानी है जिसकी नींव आज से करीब 15 साल पहले रखी गई थी।

दरअसल 70 के दशक में बिहार के तीन युवा नेता लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और राम विलास पासवान राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर उभरे थे। तीनों दोस्त भी थे, तीनों की पॉलिटिकल फ्रेंडशिप की गाड़ी आगे भी बढ़ी लेकिन, रफ्तार पकड़ती उससे पहले ही ब्रेक लग गया। 1994 में नीतीश ने जनता दल से अलग होकर समता पार्टी बना ली तो 1997-98 में लालू और पासवान के रास्ते अलग हो गए।

तस्वीर साल 2000 की है। तब नीतीश और राम विलास साथ मिलकर चुनाव लड़े थे।

2000 के विधानसभा चुनाव में नीतीश और पासवान ने साथ मिलकर लालू का मुकाबला किया, लेकिन कुछ खास हाथ नहीं लगा। जैसे तैसे राज्यपाल की कृपा से नीतीश मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन 7 दिन के भीतर ही उन्हें इस्तीफा देना। और राज्य में फिर से राजद की सरकार बनी। इसके बाद नवंबर 2000 में पासवान ने लोजपा नाम से खुद की पार्टी बनाई। 2002 में गुजरात दंगा हुआ तो पासवान एनडीए से अलग हो गए।

2005 विधानसभा चुनाव से पहले लालू प्रसाद यादव को घेरने की मोर्चाबंदी हो रही थी। भाजपा और जदयू गठबंधन तो मैदान में थे ही, उधर नई नवेली लोजपा भी राजद को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। वजह थी दलित- मुसलमानों का वोट बैंक और मुख्यमंत्री की कुर्सी।

नीतीश कुमार ने राम विलास पासवान को साथ मिलकर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया लेकिन शर्त रख दी कि सीएम वही बनेंगे। पासवान मान तो गए लेकिन उन्होंने भी एक शर्त रख दी कि आपको भाजपा का साथ छोड़ना होगा, जो नीतीश को नागवार गुजरा और गठबंधन नहीं हो पाया।

फरवरी 2005 में चुनाव हुए। लालू कांग्रेस के साथ, नीतीश भाजपा के साथ और राम विलास पासवान अकेले चुनावी मैदान में उतरे। जब चुनाव के नतीजे घोषित हुए तो किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला लेकिन, सत्ता की चाबी रह गई राम विलास पासवान के पास। संपर्क लालू ने भी किया और नीतीश भी बार-बार गुजारिश करते रहे, लेकिन पासवान ने पेंच फंसा दिया। न खुद सीएम बने न किसी को बनने दिया। आखिरकार विधानसभा भंग हो गई और राष्ट्रपति शासन लग गया।

6 महीने बाद अक्टूबर 2005 में चुनाव हुए। लालू, नीतीश और पासवान तीनों यार फिर से अलग-अलग लड़े, लेकिन इस बार बिहार की जनता ने क्लियर कट मेजोरिटी नीतीश भाजपा गठबंधन की झोली में डाल दी थी।पासवान और लालू के पास लेकिन किंतु परंतु के सिवा कुछ खास बचा नहीं था, पासवान 203 सीटों पर लड़ने के बाद भी 29 से घटकर महज 10 सीटों पर सिमट कर रह गए।

मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने लोजपा के दलित वोट बैंक में सेंधमारी शुरू कर दी। बिहार में करीब 16 फीसदी दलित हैं, जिनमें 4-5 फीसदी पासवान जाति के हैं। नीतीश ने बिहार के 22 दलित जातियों में से 21 को महादलित में कन्वर्ट कर दिया। अब बिहार में सिर्फ पासवान जाति ही दलित रह गई।

वोट बैंक की बानगी देखिए कि 2015 में जब जीतन राम मांझी ने पासवान जाति को महादलित में जोड़ा तो नीतीश ने वापस सीएम बनते ही फैसले को पलट दिया। हालांकि, नीतीश ने 2018 में पासवान जाति को भी महादलित कैटेगरी में जोड़ दिया।

जिन जातियों को नीतीश ने महादलित में जोड़ा था वो लोजपा की झोली से निकलकर नीतीश के वोट बैंक में शिफ्ट हो गईं। राम विलास और उनकी पार्टी दलितों के नाम पर बस पासवान जाति की पार्टी बनकर रह गई। इसका असर उसके बाद के हुए चुनावों में भी दिखा। लोजपा का ग्राफ दिन पर दिन गिरता गया। 2010 में लोजपा को जहां तीन सीटें मिलीं, वहीं 2015 में महज दो सीटों से ही संतोष करना पड़ा।

बिहार में 243 सीटों में से 38 सीटें रिजर्व हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में 14 सीटें राजद को, 10 जदयू और पांच-पांच सीटें कांग्रेस और भाजपा को मिली। लोजपा के खाते में एक भी सीट नहीं गई।

इस समय राम विलास पासवान राजनीति में थोड़ा कम सक्रिय हैं, उन्होंने पार्टी की कमान चिराग पासवान को सौंप दी है। इस बार के चुनाव का दारोमदार चिराग के कंधों पर ही है। वोटिंग से पहले एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने से लोजपा को कितना फायदा होगा वो तो 10 नवंबर को ही साफ हो पाएगा। लेकिन, इस फैसले को लेकर अभी बिहार में सियासी पारा उफान पर है।

नीतीश की सख्ती के बाद मंगलवार को भाजपा बचाव की मुद्रा में दिखी और लोजपा से कहा कि वह पीएम मोदी की तस्वीर का इस्तेमाल चुनाव प्रचार में नहीं करें। हालांकि, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो नीतीश कुमार को सत्ता से बाहर करने के लिए भाजपा का माइंड गेम बता रहे हैं।

भाजपा प्रदेश प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल कहते हैं, 'भाजपा पूरी मजबूती के साथ नीतीश कुमार के साथ खड़ी है। एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ना ये लोजपा का अपना फैसला है। इसमें हमारी कोई भूमिका नहीं है। हम भला क्यों चाहेंगे कि कोई साथी हमें छोड़कर जाए।'

चिराग पासवान ने घोषणा की है कि चुनाव बाद भाजपा का मुख्यमंत्री होगा और लोजपा उसे सपोर्ट करेगी। इसको लेकर वो चुटकी लेते हुए कहते हैं कि 2015 में जब हमारे साथ मिलकर वो सिर्फ दो सीट जीत सके तो इस बार अकेले कितनी सीट जीतेंगे, पहले ये बात वो साफ कर दें फिर सरकार बनाने का दावा करेंगे।

राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं, 'चुनाव से पहले ही एनडीए का खेल खत्म हो गया। चिराग को पता चल गया है कि अब नीतीश कुमार की वापसी नहीं होने वाली है। इसलिए वे पहले ही साइड हो गए।'

वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के ऐसे विधायक या नेता जिनका टिकट काटकर जदयू को दिया जाएगा, अगर वे लोजपा से लड़ते हैं तो इसका नुकसान जदयू और एनडीए को उठाना पड़ सकता है।

यह भी पढ़ें :

लोजपा के कारण भाजपा की फजीहत / नीतीश ने कसी नकेल तो सीएम आवास दौड़ी भाजपा, निकलकर सिर्फ दो लाइनें कहीं-बिहार एनडीए में सिर्फ वही रहेगा जो नीतीश को नेता माने



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
बिहार के सीएम नीतीश कुमार और लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान। इस बार चिराग एनडीए से अलग होकर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2SEy5Y1
https://ift.tt/33DSnrg

कश्मीर से कब्र खोदकर 53 दिन बाद घर पहुंचे उन तीन बेटों के शव, जिन्हें आतंकवादी समझकर सेना ने एनकाउंटर कर दिया था

पिछले 53 दिन 53 सालों से भी बड़े थे, ऐसा कहना था उन परिवारों का जिनके बेटे 'फेक एनकाउंटर' में मारे जाने के बाद उनके शव के लिए 53 दिनों का इंतजार करना पड़ा। "हमें 10 अगस्त को तो पता चल गया था कि हमारे बेटों को धोखे से मार दिया गया है, मगर उनके शव कहां दफनाए गए ये मालूम नहीं था। आखिर 10 अगस्त से लेकर 3 अक्टूबर तक की इस 53 दिन की लड़ाई और जद्दोजहद के बाद जब शव कब्र से निकाले गए तो तीनों परिवारों का सब्र टूट गया।

2 अक्टूबर रात को 10 बजे उत्तरी कश्मीर के क्रीरी में कब्र खोदने का काम शुरू हुआ और 3 अक्टूबर सुबह पांच बजे जब गोलियों से छलनी तीन शव निकले तो उस वक्त तीनों लड़कों के परिवारों के एक-एक सदस्य वहां मौजूद थे। वहां वो समाजसेवी गुफ्तार अहमद भी खड़े थे जिनकी कोशिशों की बदौलत परिवारों को अपने बेटों के शव मिले हैं। गुफ्तार कहते हैं, ‘शव देख परिवार वाले जोर से बिलख पड़े, उन्हें देखकर मेरे होश उड़ गए। तीन बेकसूर युवकों को आतंकी बताकर कोई कैसे मार सकता है?’

तीनों मृतकों के जब शव निकाले गए तब उनके परिवारों के एक-एक सदस्य वहां मौजूद थे।

अनजान आतंकियों के शवों की तरह इन्हें बारामुला से उडी जाने वाले हाईवे पर क्रीरी में दफना दिया गया था। जहां मुठभेड़ में मारे गए उन आतंकियों को दफनाया जाता है, जिनकी पहचान नहीं हो पाती। जिन परिवारों के बेटे घर से रोजी रोटी कमाने कश्मीर गए थे, उनके जाने के 79 दिनों बाद गोलियों के छलनी शव उनके घर पहुंचे।

इबरार अहमद, उसके मौसी और मामा के बेटे, मोहम्मद इबरार और इम्तियाज अहमद 18 जुलाई 2020 को दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले में हुए एक मुठभेड़ में मारे गए थे। मगर 10 अगस्त को परिवारों को पता चला कि उनके बेटों का फेक एनकाउंटर किया गया है। उसके बाद उनके शवों को उत्तरी कश्मीर के बारामुला में दफनाया गया था। जहां से पुलिस और प्रशासन की मदद से खोदकर निकाला फिर जम्मू के राजौरी में परिवारों को सौंपा गया। 3 अक्टूबर को तीनों को दोबारा उनके पैतृक गावों में सुपुर्दे खाक किया गया।

जिस परिवार के सात लोगों ने सेना में सेवा की हो, उन्हीं के परिवार से तीन लोग सेना के 'फेक एनकाउंटर' में मारे जाएं तो भला उस परिवार का सेना पर कैसा भरोसा? जम्मू से 160 किलोमीटर दूर भारत-पाक नियंत्रण रेखा से सटे राजौरी के छोटे से गांव तरकसी में इन दिनों कुछ ऐसा ही माहौल है।

इबरार अहमद, मोहम्मद इबरार और इम्तियाज अहमद 18 जुलाई 2020 को दक्षिण कश्मीर के शोपियां ज़ले में हुए एक मुठभेड़ में मारे गए थे।

"मुझे कितनी भी दौलत मिल जाए, पर मेरा बेटा तो वापस नहीं आ सकता, "मोहम्मद युसूफ चौहान का बेटा इबरार अहमद बमुश्किल 25 साल का था। वो कहते हैं, "हमारे लिए सबसे दुःख की बात यह है के जिस सेना में हमारे परिवार के सात लोगों ने अपना जीवन दिया, उस सेना की वर्दी हमारे लिए खुदा जैसी थी। मगर जैसे हमारे तीन बच्चों को उसी सेना के कुछ गलत लोगों ने बिना जाने पहचाने आतंकी बता कर मार दिया, उससे अब हमारे परिवार से सेना में कोई कैसे जायेगा?"

अभी तक परिवार में इबरार के पिता के बड़े भाई ऑनरेरी कैप्टन मदद हुसैन, उनके छोटे भाई लांस नायक मोहम्मद बशीर (करगिल युद्ध में थे), इबरार के कजिन सूबेदार जाकिर हुसैन, सिपाही जफर इकबाल अभी भी सेना में हैं। इबरार का एक 15 महीने का बेटा भी है।

परिवार का कहना है कि वह काम करने कुवैत जाने वाला था और उसकी हवाई जहाज की टिकट भी बन चुकी थी। मगर तभी कोरोना के कारण लॉकडाउन हो गया और अंतर्राष्ट्रीय उड़ाने बंद हो गयीं। इबरार ने अपने बड़े भाई जावेद को पीएचडी करवाने के बाद सऊदी अरब भी भेजा और दो छोटी बहनों की शादी भी करवाई।

अब वह खुद भी विदेश जाना चाहता था, ताकि परिवार मजदूरी से ऊपर पाए। कभी भी घर में आराम से नहीं बैठने वाले इबरार ने अपने मामा के बेटे मृतक इम्तियाज से संपर्क किया क्योंकि इम्तियाज पहले भी शोपियां में मजदूरी कर चुका था।

मृतकों का शव जब उनके घर पहुंचा। 3 अक्टूबर को तीनों को दोबारा उनके पैतृक गावों में सुपुर्दे खाक किया गया।

इम्तियाज शोपियां के एक लम्बड़दार (पंचायत सदस्य) युसूफ को जानता था और इन तीनों ने शोपियां जाकर कुछ महीनों मजदूरी करने की सोची। वहीं इबरार ने घर पर कहा के अंतर्राष्ट्रीय उड़ाने शुरू होते ही वह आ जाएगा और उसके बाद कुवैत चला जाएगा।

इबरार के पिता कहते हैं उनके बेटों की हत्या का दर्द भी हाथरस की बेटी के दर्द से कम नहीं है। "हम लोग रोज़ टीवी और सोशल मीडिया में हाथरस के बारे में देख सुन रहे हैं, हमारे साथ भी तो गलत हुआ है, हम चाहते हैं के हाथरस की बेटी को इंसाफ मिले और हमारे बेटों को भी। सभी बेकसूर थे, मगर हमें सिर्फ इतना संतोष है के यहां हमें प्रशासन और पुलिस का सहयोग शव पाने और मामले की जांच शुरू होने में मिल रहा है। जम्मू कश्मीर पुलिस ने शोपियां में मामले की जांच शुरू कर दी है, दो लोगों को पूछताछ के लिए गिरफ्तार भी किया है।"



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
मृतक इबरार के पिता यूसूफ चौधरी, इबरार के 15 महीने के बच्चे के साथ।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3nzxZPY
https://ift.tt/2SAd40U

पिता अचार बनाकर रिश्तेदारों को गिफ्ट करते थे, बेटी लंदन से पढ़कर आई तो उसका बिजनेस शुरू कर दिया, तीन साल में एक करोड़ पहुंचा टर्नओवर

निहारिका भार्गव दिल्ली में पली बढ़ी, लंदन से मार्केटिंग स्ट्रेटेजी एंड इनोवेशन में मास्टर्स किया। एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी लगी, अच्छी खासी सैलरी भी थी। लेकिन, उनका मन नौकरी में नहीं लगा और एक साल बाद ही जॉब छोड़ दी। 2017 में उन्होंने अचार बनाने का एक स्टार्टअप लॉन्च किया।

आज 50 एकड़ में उनका खुद का फार्म है, जहां अचार में लगने वाले सभी प्रोडक्ट ऑर्गेनिक तरीके से उगाए जाते हैं। हर साल 30 टन से ज्यादा का प्रोडक्शन हो रहा है। पिछले साल उनकी कंपनी का टर्नओवर एक करोड़ रु रहा है।

27 साल की निहारिका ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के बाद 2015 में लंदन से मार्केटिंग स्ट्रेटेजी एंड इनोवेशन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की। उसके बाद वापस इंडिया आ गई और गुड़गांव में एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करने लगीं।

नौकरी छोड़ने के बाद 2017 में निहारिका ने अचार बनाने का एक स्टार्टअप लॉन्च किया।

निहारिका कहती हैं, 'मैं हमेशा से खुद का बिजनेस शुरू करना चाहती थी लेकिन, अचार तैयार करने का काम करूंगी, ये कभी नहीं सोचा था। पापा को अचार बनाने का शौक था, वे अचार तैयार करके रिश्तेदारों को गिफ्ट करते थे। उनके बनाए अचार की काफी डिमांड रहती थी।

वो बताती हैं, 'एक दिन पापा से मैंने कहा कि आप इसका बिजनेस क्यों नहीं करते। तब पाप हंसने लगे, बोले अब जो मुझे करना था वो कर लिया, अब आगे तुम्हें करना है। मुझे काम तो अच्छा लगा पर इसका बिजनेस चलेगा कि नहीं इसको लेकर थोड़ा डाउट था। क्योंकि अचार तो लगभग सभी घरों में तैयार होता है।

निहारिका ने इसके बाद अचार के मार्केट को लेकर रिसर्च करना शुरू किया। कई लोगों से बात की तो पता चला कि शुद्ध और घर पर तैयार किए हुए अचार की डिमांड काफी ज्यादा है। बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिन्हें बाजार का अचार पसंद नहीं है, वे मजबूरी में खरीदते हैं। फिर क्या था उन्होंने पापा के पैशन को अपने प्रोफेशन में बदल दिया और उनसे अचार बनाना सीखने लगी।

निहारिका की टीम में 15-20 लोग काम करते हैं। इनमें से ज्यादातर महिलाएं हैं जो अचार तैयार करने का काम करती हैं।

वो कहती हैं, 'शुरुआत में दिल्ली और उसके आसपास जो एक्जिबिशन लगते थे वहां हम अपने अचार का स्टॉल लगाते थे। लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिला। इसके बाद लोकल मार्केट में भी हमने अचार देना शुरू कर दिया।

इस बीच मैं मध्यप्रदेश के खजुराहो गई, जहां पापा ने फार्मिंग के लिए जमीन ले रखी थी, लेकिन कुछ खास काम वहां नहीं हो रहा था। मुझे वो जगह बहुत पसंद आई। मैंने सोचा कि क्यों न अचार में लगने वाले सभी प्रोडक्ट खुद के ही खेत में उगाया जाए। इससे अपना बिजनेस भी बढ़ेगा और लोगों को शुद्ध अचार भी मिलेगा।

निहारिका बताती हैं, 'अपने फार्म पर हमने आम, आंवला, नींबू, हल्दी, अदरक, मिर्च सहित कई प्लांट्स लगाए जिनका अचार बनाने में उपयोग होता है। वहां कुछ लोगों को काम पर भी रखा। इनमें कुछ महिलाएं भी थीं जो अचार बनाने का काम करती थीं। वहां से अचार तैयार करके दिल्ली लाते थे और मार्केट में बेचते थे। धीरे- धीरे डिमांड बढ़ने लगी। दूसरे शहरों से भी लोग फोन आने लगे। इसके बाद 2017 में हमने द लिटिल फार्म नाम से गुड़गांव में एक कंपनी खोली और ऑनलाइन प्रोडक्ट्स बेचना भी शुरू कर दिया।'

अभी निहारिका 50 एकड़ जमीन पर ऑर्गेनिक फार्मिंग कर रही हैं। जिसमें फल, सब्जियां और मिर्च- मसाले से लेकर वो सबकुछ उगाती हैं जिसका उपयोग अचार बनाने में होता है।

वो बताती हैं कि हमने अचार बनाने के लिए बाहर से कहीं ट्रेनिंग नहीं ली, मुझे पापा ने ही सिखाया है। अभी भी मैं सीख रही हूं। अचार कैसे बेहतर और हेल्दी हो इसको लेकर हम लोग लगातार रिसर्च और एक्सपेरिमेंट करते रहते हैं।

अभी निहारिका 50 एकड़ जमीन पर ऑर्गेनिक फार्मिंग कर रही हैं। जिसमें फल, सब्जियां और मसाले से लेकर वो सबकुछ उगाती हैं जिसका उपयोग अचार बनाने में होता है। वो कोई भी चीज बाजार का यूज नहीं करती हैं। वो सिंथेटिक सिरका या कोई प्रिजर्वेटिव्स अपने अचार में नहीं मिलती है। साधारण नमक की जगह वो सेंधा नमक का इस्तेमाल करती हैं ताकि लोगों का गला खराब नहीं हो।

वो इस समय 50 से ज्यादा वैरायटी के अचार बेचती हैं। इनमें सबसे ज्यादा आम और गुड़ के अचार की डिमांड होती है। इसमें शक्कर की जगह गुड़ मिला होता है। इसके साथ ही वो मसाले, तेल, सॉस, मिर्च पाउडर जैसी चीजें भी बेचती हैं।

अभी उनकी टीम में 15-20 लोग काम करते हैं। इनमें से 13 लोग खजुराहो में फार्मिंग और अचार तैयार करने का काम करते हैं, जिसमें 10 महिलाएं हैं। बाकी लोग गुड़गांव में मार्केटिंग और पैकेजिंग का काम देखते हैं।

ये पॉजिटिव खबरें भी आप पढ़ सकते हैं...

1. तीन साल पहले कपड़ों का ऑनलाइन बिजनेस शुरू किया, कोरोना आया तो लॉन्च की पीपीई किट, 5 करोड़ रु पहुंचा टर्नओवर

2. मेरठ की गीता ने दिल्ली में 50 हजार रु से शुरू किया बिजनेस, 6 साल में 7 करोड़ रु टर्नओवर, पिछले महीने यूरोप में भी एक ऑफिस खोला

3. पुणे की मेघा सलाद बेचकर हर महीने कमाने लगीं एक लाख रुपए, 3 हजार रुपए से काम शुरू किया था

4. इंजीनियरिंग के बाद सरपंच बनी इस बेटी ने बदल दी गांव की तस्वीर, गलियों में सीसीटीवी और सोलर लाइट्स लगवाए, यहां के बच्चे अब संस्कृत बोलते हैं



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
दिल्ली की रहने वाली निहारिका अचार बेचने का बिजनेस करती हैं। उन्होंने लंदन से पढ़ाई की है।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/36CBTkP
https://ift.tt/2SEzcHb

जानिए कब और कैसे खुलेंगे स्कूल, कैसी होंगी परीक्षाएं? स्टूडेंट्स और टीचर्स के लिए कितना बदल जाएगा स्कूल?

केंद्र सरकार ने राज्यों को 15 अक्टूबर से स्कूल खोलने की इजाजत दे दी है। स्कूलों को किस तरह खोला जाए और वहां किस तरह की व्यवस्थाएं होनी चाहिए, इस पर 5 अक्टूबर को 54 पेज की गाइडलाइन जारी की है।

केंद्र ने यह भी साफ किया है कि स्कूल कब से खोलना है, यह फैसला राज्य सरकारों का होगा। वैसे, ज्यादातर राज्य सरकारों ने कलेक्टरों को यह अधिकार दिया है कि कोरोना संक्रमण को देखते हुए स्कूल खोलने का फैसला लें।

किस राज्य में कब खुलेंगे स्कूल?

  • केंद्र सरकार ने गाइडलाइंस में 15 अक्टूबर के बाद फेजवाइज स्कूल खोलने की मंजूरी दी है। लेकिन, अंतिम फैसला पूरी तरह से राज्यों का होगा। इसका मतलब है कि हर राज्य में स्कूल खोलने की अलग से तारीख जारी होगी। कुछ राज्य यह अधिकार जिलों को देने जा रहे हैं।
  • दिल्ली सरकार ने तय किया है कि अक्टूबर में स्कूल नहीं खोले जाएंगे। इसी तरह, यूपी सरकार ने यह फैसला जिलों पर छोड़ा है, जहां कलेक्टर कोविड-19 की सिचुएशन देखकर फैसला लेंगे। मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों ने अब तक स्थिति साफ नहीं की है।

किन क्लासेस को सबसे पहले खोला जाएगा?

  • केंद्र सरकार की नई गाइडलाइंस में कुछ साफ नहीं है। यह फैसला राज्य सरकारें ले सकती हैं। इतना जरूर कहा गया है कि अगर संभव हो तो क्लास 1 से 5 तक के स्टूडेंट्स के लिए स्कूल बैग की पाबंदी ना रखी जाए।
  • केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सितंबर में क्लास 9 से 12 तक के स्टूडेंट्स को स्कूलों में टीचर्स से मिलने की इजाजत दी थी। इसी तरह का प्रेफरेंस राज्य सरकारें अनलॉक 5.0 के पीरियड में दे सकती हैं और शुरुआत में बड़ी क्लासेस के लिए स्कूल खोल सकती हैं।
  • अगर कोई राज्य चाहता है कि छोटे बच्चों के लिए स्कूल पहले खोले जाएं तो इसमें केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को कोई परेशानी नहीं होगी। वैसे, यह जरूर है कि यदि कोई बच्चा घर पर रहकर ऑनलाइन क्लासेस लेना चाहे तो स्कूलों को उसे इसकी इजाजत देनी होगी।

अटेंडेंस का क्या होगा? क्या स्कूल खुलने पर बच्चों के लिए स्कूल जाना जरूरी होगा?

  • नहीं। केंद्रीय गृह मंत्रालय और शिक्षा मंत्रालय की गाइडलाइंस में साफ कहा गया है कि स्टूडेंट्स को क्लास अटेंड करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकेगा। अटेंडेंस की भी पाबंदी नहीं होगी। यह पूरी तरह से पैरेंट्स की सहमति पर तय होगा।
  • जिन स्कूलों में ऑनलाइन एजुकेशन की व्यवस्था नहीं होगी, वहां टीचर्स को स्टूडेंट्स और पैरेंट्स से बात करनी होगी और यह निश्चित करना होगा कि बच्चों की पढ़ाई सही दिशा में आगे बढ़ रही है। इतना ही नहीं, स्कूलों को परफेक्ट अटेंडेंस अवॉर्ड देने से भी मना किया गया है।

क्या स्टूडेंट्स को परीक्षा देनी होंगी? परीक्षाओं का क्या होगा?

  • शिक्षा मंत्रालय की गाइडलाइंस के मुताबिक, स्कूल खोलने के कम से कम दो-तीन हफ्तों तक किसी तरह का असेसमेंट नहीं होगा। जब वे परीक्षाएं लेंगे तो सभी कक्षाओं के लिए पेन और पेपर टेक्स्ट फॉर्मेट में परीक्षा लेने से बचेंगे।
  • रोल-प्ले, कोरियोग्राफी, क्लास क्विज, पहेलियों और गेम्स, ब्रोशर डिजाइनिंग, प्रेजेंटेशंस, जर्नल्स, पोर्टफोलियो के आधार पर असेसमेंट किया जाए। इनका इस्तेमाल आम तौर पर होने वाली पेन और पेपर टेक्स्ट फॉर्मेट एग्जाम के स्थान पर किया जाए।

स्कूल में बच्चों की सुरक्षा कैसे होगी?

  • बच्चे स्कूल में तभी आएंगे, जब उनके पैरेंट्स लिखित मंजूरी देंगे। यदि पैरेंट्स चाहते हैं कि उनके बच्चे घर पर रहकर पढ़ाई करें तो स्कूलों को इसकी मंजूरी देनी होगी। इसी तरह, बच्चा बीमार है तो पैरेंट्स इसकी जानकारी स्कूल को देंगे।
  • स्कूल कैम्पस की लगातार साफ-सफाई करने के निर्देश दिए गए हैं। वहीं, ऐसी जगहों को डिसइन्फेक्ट करने को कहा है, जहां बच्चों का आना-जाना ज्यादा होता है। बच्चों को मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग फॉलो करने को लेकर सेंसिटाइज करने को कहा है।
  • क्लासरूम में और स्कूल में एंट्री-एग्जिट के समय सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए शिफ्ट में क्लास का सुझाव दिया है। जिन क्लासेस में बच्चे ज्यादा है, वहां ऑड-ईवन बेसिस पर भी स्टूडेंट्स को बुलाने की सिफारिश की है।


आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
School Reopening Date Updates For India For State Wise; All You Need To Know Education Ministry Guidelines In Detail In Simple Words


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/36FWrc7
https://ift.tt/36DX8Tj

Popular Post