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सड़क पर चूल्हा जल रहा है, रोटी पक रही है, लोग पंगत में खा रहे हैं। बगल में दूध और चाय भी उबल रही है। नहाने के लिए पानी के टैंकर लगे हैं। मुफ्त में दवाइयां बांटी जा रही। इस बीच डॉक्टरों की टीम लगातार हेल्थ चेकअप भी करती जा रही है। ऊपर से स्कूली बच्चे और युवाओं की फौज, बुजुर्गों में जोश भर रही है...
ये दिल्ली की सड़कें हैं। और ये नजारा वहीं का है, जहां 10 दिन से किसान डेरा डाले हैं। उनकी तैयारी भी पूरी है और देश-दुनिया से हर तबके का समर्थन भी मिल रहा है। देखना ये है कि यह लड़ाई खत्म कब और किस मुहाने पर होती है। बहरहाल देखते हैं इसे तस्वीरों के सहारे...
पुणे के रहने वाले योगेश शिंदे एक आईटी बेस्ड मल्टीनेशनल कंपनी में एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट थे। 14 साल के करियर में 5 साल लंदन-जर्मनी समेत तमाम देशों में पोस्टिंग रही। एक दिन उन्होंने सोचा कि आखिर वो अपने देश के लिए क्या कर रहे हैं? इसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ अपने देश में ही बिजनेस करने का निर्णय लिया।
साल 2016 में उन्होंने बैंबू इंडिया की शुरुआत की, आज उनकी कंपनी बांस से ऐसे तमाम प्रोडक्ट बनाती है जो प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने में सहयोग देते हैं। योगेश कहते हैं ‘साल 2016 में जब हमने कंपनी शुरू की थी तो पहले साल हमारा टर्नओवर 52 लाख रुपए का था। वहीं पिछले फाइनेंशियल ईयर में हमारा टर्नओवर 3.8 करोड़ रुपए रहा।’
वो कहते हैं ‘मैं जानता हूं कि 3.8 करोड़ रुपए टर्नओवर होना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन हमारा विजन अलग है। हमने अपने बैंबू प्रोडक्ट के जरिए 13 दिसम्बर तक 13.5 लाख किलोग्राम प्लास्टिक वेस्ट होने से बचाया है। हमारे पास देश के 2500 किसानों की टीम है और 200 से ज्यादा सपोर्ट स्टाफ है। सही मायने में यही हमारा टर्नओवर है।’
14 साल के करियर में कभी भारतीय कंपनी में नौकरी नहीं की, इसका मलाल था
योगेश कहते हैं कि मेरी कहानी बिल्कुल एक मिडिल क्लास फैमिली के यंगस्टर्स के जैसी ही है। मैंने सरकारी स्कूल से पढ़ाई की, फिर पुणे यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया और जिस तरह एक आईटी इंजीनियर की जर्नी होती है, वैसी ही रही।
मैंने 14 साल की आईटी सेक्टर की नौकरी की। अपने 14 साल के उस करियर में योगेश ने कभी भी भारतीय कंपनी में नौकरी नहीं की। इसके चलते उनके दिल में एक मलाल भी था कि वो अपने देश के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं। साल 2013 में जब वो भारत वापस आए तो तमाम विषयों पर रिसर्च करना शुरू कर दिया।
इसमें जीरो वेस्ट फार्मिंग, मेडिसिनल प्लांट की खेती के बारे में भी पता किया। लेकिन इन सेक्टर्स में कोई न कोई काम कर रहा था। इसके बाद योगेश ने बांस के बारे में रिसर्च करना और पढ़ना शुरू किया, तो पता चला कि भारत बांस उत्पादन में दूसरा सबसे बड़ा देश है। बांस ट्री नहीं ग्रास है और ये विश्व में सबसे तेजी से बढ़ने वाला ग्रास है।
फिर पता चला कि बांस उत्पादन में दूसरा सबसे बड़ा देश होने के बाद भी हम सिर्फ चार प्रतिशत ही एक्सपोर्ट कर रहे हैं। इससे योगेश को बैंबू फॉर प्लास्टिक का आइडिया आया। और उन्होंने तय किया कि वो बांस से ऐसे प्रोडक्ट बनाएंगे जो प्लास्टिक को रिप्लेस कर सकेंगे। धीरे-धीरे उन्होंने गिफ्टिंग आइटम, बैंबू स्पीकर, डेस्क आर्गनाइजर तैयार किया।
पॉलीथीन के बाद टूथब्रश विश्व का दूसरा सबसे बड़ा प्लास्टिक पोल्यूटेड कंटेंट है
योगेश कहते हैं ‘मैं जानता था कि लोगों की प्लास्टिक की आदत बदलने और ज्यादा लोगों तक पहुंचने के लिए दैनिक जीवन में इस्तेमाल होने वाली चीजों का विकल्प तैयार करना होगा। इसके बाद हमने बैंबू टूथब्रश पर काम शुरू किया। इस दौरान पता चला कि ये पॉलीथीन के बाद टूथब्रश विश्व का दूसरा सबसे बड़ा प्लास्टिक पोल्यूटेड कंटेंट है और इसकी रिसाइकलिंग आसान नहीं है। भारत में ही हर महीने 20 करोड़ टूथब्रश का इस्तेमाल होता है। तब मुझे समझ में आया कि इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता है। इसके बाद हमने इस पर रिसर्च की और बैंबू से एक टूथब्रश बनाकर मार्केट में उतारा।’
योगेश कहते हैं ‘हमने ‘बैंबू फॉर प्लास्टिक’ थीम पर काम किया। हमारी टैगलाइन भी ‘टू मेक इनोवेटिव प्रोडक्ट्स, टू रिप्लेस प्लास्टिक प्रोडक्ट’ थी। अप्रैल 2016 में जब हम कंपनी का नाम रखने, उसे मार्केट में लाने के बारे में प्लानिंग कर रहे थे तो हमने सोचा कि देश को 15 अगस्त 1947 में आजादी मिली थी और अब उसे प्लास्टिक से आजादी दिलानी थी। इसलिए हमने साल 2016 में 15 अगस्त के दिन को ही चुना। वहीं 18 सितंबर को इंटरनेशनल बैंबू डे के दिन हम कई अवेयरनेस प्रोग्राम करते हैं।’
दीया मिर्जा, जूही चावला, श्रद्धा कपूर, रणदीप हुड्डा जैसे सेलेब्स भी यूज करते हैं बैंबू प्रोडक्ट
योगेश का मानना है कि प्लास्टिक हमारी हैबिट बन चुका है इसलिए अपनी हैबिट बदलना लोगों के लिए काफी मुश्किल है। वो कहते हैं ‘प्लास्टिक खराब नहीं, वो हमारे लिए ब्लेसिंग है लेकिन ये शुगर की तरह है। अगर सही मात्रा में लेंगे ताे एनर्जी देगा लेकिन ज्यादा मात्रा में लेने पर डायबिटीज हो जाती है। हमें प्लास्टिक का ऐसी जगहों पर ही इस्तेमाल करना है, जहां कोई और विकल्प नहीं हो सकता।’
योगेश के मुताबिक दीया मिर्जा, जूही चावला, श्रद्धा कपूर और रणदीप हुड्डा... ये ऐसे नाम हैं, जो खुद उनकी कंपनी के बनाए बैंबू प्रोडक्ट ऑर्डर करके इस्तेमाल कर रहे हैं और अपने दोस्तों को भी बांट रहे हैं। योगेश कहते हैं ‘इन सेलेब्स ने आज तक हमसे एक पैसा नहीं लिया और ना ही कभी फ्री में प्रोडक्ट मंगाया और अपने सोशल मीडिया हैंडल्स पर हमारे प्रोडक्ट के बारे में पोस्ट किया। इन सेलेब्स ने ‘वोकल फॉर लोकल’ को सही साबित किया।
याेगेश बताते हैं ‘मेरे परिवार में अभी मेरे पेरेंट्स हैं, दोनों रिटायर्ड टीचर हैं, अब अपनी रिटायरमेंट लाइफ एंज्वाय कर रहे हैं। मेरी वाइफ मेरी कंपनी के सभी ई-कॉमर्स और फाइनेंस सेक्शन को हैंडल करती हैं। मेरे दो बच्चे हैं। बेटा कॉलेज में है बेटी स्कूल में है। मेरी बेटी कंपनी के लिए मॉडलिंग का काम करती है। हमारे सभी पोस्टर्स में मेरी बेटी ही दिखेगी। क्योंकि हमें लो बजट में ही सब चीजें करनी होती हैं तो कभी एम्पलाई के बच्चे, कभी अपने बच्चों को ही हम बतौर मॉडल इस्तेमाल करते हैं।’
साढ़े 8 हजार रुपए की बैंबू स्पीकर बनाने वाली मशीन खरीदकर बिजनेस शुरू किया
वो बताते हैं ‘जब मैंने नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया तब बच्चों की पढ़ाई चल रही थी, घर की ईएमआई भी चल रही थी। लेकिन परिवार को मुझ पर भरोसा था, हमने तय किया था कि एक साल काम करेंगे और अगर कुछ अच्छा नहीं हुआ तो वापस अपनी जॉब में लाैट जाऊंगा। हमें अपने काम के लिए बैंक से लोन नहीं मिला तो हमने अपना घर गिरवी रखकर बिजनेस शुरू किया।
जब बिजनेस शुरू किया तो बैंबू स्पीकर बनाने वाली पहली मशीन साढ़े 8 हजार रुपए की ली थी। इसके बाद जैसे-जैसे आमदनी हुई तो वही पैसा बिजनेस में लगाया, आज हमारी कंपनी की नेटवर्थ 2.5 करोड़ रुपए है। अभी हमारी कंपनी में 32 डायरेक्ट एम्पलाई हैं और 100 से ज्यादा लोग हमारे लिए कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं।’
योगेश के मुताबिक, बैंबू इंडस्ट्री में चार स्टेज हाेती हैं। पहली स्टेज बैंबू नर्सरी और प्लांटेशन है, इसमें किसान अपने खेत में नर्सरी या बांस लगाकर उसकी खेती करते हैं। दूसरी स्टेज प्री-प्रोसेसिंग यूनिट होती है, इसमें मार्केट की डिमांड के मुताबिक रॉ मटीरियल उपलब्ध कराया जाता है।
तीसरी स्टेज प्रोडक्ट डिजायन, डेवलपमेंट एंड प्रोडक्शन है, इसमें रॉ मटीरियल से लेकर हाईएंड प्रोडक्ट तब बनाए जाते हैं। वहीं चौथी स्टेज अवेयरनेस, सेल्स एंड मार्केटिंग है, इसमें बैंबू प्रोडक्ट्स के अवेयरनेस से लेकर उसकी मार्केटिंग तक पर काम किया जाता है।
योगेश कहते हैं कि मौजूदा सरकार ने बैंबू को ट्री कैटेगरी से हटाकर ग्रास कैटेगरी में रखा है, जिससे अब इसे काटने और इसके ट्रांसपोर्टेशन के लिए किसी भी तरह की अनुमति नहीं लेनी होती है। यह बैंबू इंडस्ट्री के लिए काफी फायदेमंद है। लेकिन बैंबू इंडस्ट्री में आते समय इन चार स्टेज में से आपको तय करना है कि आप क्या करना चाहते हैं। इसमें चारों काम एक साथ करना काफी मुश्किल होता है।
आज से 28 साल पहले 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में लाखों कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया था। अयोध्या की बाबरी मस्जिद को लेकर सैकड़ों साल से विवाद चला आ रहा था। भाजपा नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण के लिए 1990 में आंदोलन शुरू किया था।
5 दिसंबर 1992 की सुबह से ही अयोध्या में विवादित ढांचे के पास कारसेवक पहुंचने शुरू हो गए थे। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने विवादित ढांचे के सामने सिर्फ भजन-कीर्तन करने की इजाजत दी थी। लेकिन अगली सुबह यानी 6 दिसंबर को भीड़ उग्र हो गई और बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया। कहते हैं कि उस समय 1.5 लाख से ज्यादा कारसेवक वहां मौजूद थे और सिर्फ 5 घंटे में ही भीड़ ने बाबरी का ढांचा गिरा दिया गया था। शाम 5 बजकर 5 मिनट पर बाबरी मस्जिद जमींदोज हो गई।
इसके बाद देशभर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। इन दंगों में 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। मामले की FIR दर्ज हुई और 49 लोग आरोपी बनाए गए। आरोपियों में लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, चंपत राय, कमलेश त्रिपाठी जैसे भाजपा और विहिप के नेता शामिल थे। मामला 28 साल तक कोर्ट में चलता रहा और इसी साल 30 सितंबर को लखनऊ की CBI कोर्ट ने सभी आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। फैसले के वक्त तक 49 में से 32 आरोपी ही बचे थे, बाकी 17 आरोपियों का निधन हो चुका था।
इसके अलावा पिछले साल 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने जमीन के मालिकाना हक को लेकर फैसला दिया था। इस फैसले के तहत जमीन का मालिकाना राम जन्मभूमि मंदिर के पक्ष में सुनाया। मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन अलग से देने का आदेश दिया। इसी साल 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन किया था।
आज ही के दिन हुआ था डॉ. अंबेडकर का निधन
भीमराव रामजी अंबेडकर, जिन्हें लोग बाबासाहेब अंबेडकर के नाम से भी जानते थे। 6 दिसंबर 1956 को उनका निधन हो गया था। डॉ. अंबेडकर ही थे, जिन्होंने हमारे देश का संविधान बनाया था। आज उन्हीं के बनाए संविधान पर हमारा देश चल रहा है। संविधान निर्माता होने के साथ-साथ डॉ. अंबेडकर हमारे देश के पहले कानून मंत्री भी थे।
डॉ. अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था। वो 14 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। गरीब परिवार में जन्मे अंबेडकर ने छुआछूत का जमकर विरोध किया। इसी ने उन्हें दलितों का नेता भी बना दिया।
उन्हें बंबई (अब मुंबई) यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया। बाद में उन्होंने अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी और लंदन यूनिवर्सिटी से मास्टर्स डिग्री हासिल की। उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पीएचडी भी की।
आजादी के बाद उन्हें कानून मंत्री बनाया गया। साथ ही कॉन्स्टीट्यूशन ड्राफ्टिंग कमेटी का चेयरमैन भी अपॉइन्ट किया गया। डॉ. अंबेडकर को डायबिटीज की शिकायत थी। 6 दिसंबर 1956 को नींद में ही उनका निधन हो गया।
भारत और दुनिया में 6 दिसंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैं:
1917 : फिनलैंड ने खुद को रूस से स्वतंत्र घोषित किया।
1921 : ब्रिटिश सरकार और आयरिश नेताओं के बीच हुई एक संधि के बाद आयरलैंड को एक स्वतंत्र राष्ट्र और ब्रिटिश राष्ट्रमंडल का स्वतंत्र सदस्य घोषित किया गया।
1946 : भारत में होमगार्ड की स्थापना।
1956 : भारतीय राजनीति के मर्मज्ञ, विद्वान शिक्षाविद् और संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर का निधन।
1978 : स्पेन में 40 साल के तानाशाही शासन के बाद देश के नागरिकों ने लोकतंत्र की स्थापना के लिए मतदान किया। यह जनमत संग्रह संविधान की स्वीकृति के लिए कराया गया।
2007 : ऑस्ट्रेलिया के स्कूलों में सिख छात्रों को अपने साथ कृपाण ले जाने और मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने की इजाजत मिली।
हरियाणा के गृह मंत्री (स्वास्थ्य मंत्रालय का भी पोर्टफोलियो) अनिल विज कोवैक्सिन के तीसरे फेज के ट्रायल्स में शामिल होने के 15 दिन बाद ही कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं। शनिवार को सोशल मीडिया पर उन्होंने खुद इसकी जानकारी दी। यह भी कहा कि जो लोग मेरे संपर्क में आए हैं, वे भी कोरोना टेस्ट करवा लें।
यह वैक्सीन हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक और इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने मिलकर बनाया है। इसके साथ ही इस समय देशभर में 25 जगहों पर अंतिम फेज के क्लिनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं।
इससे पहले मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा भी शुक्रवार को वैक्सीन का पहला डोज लगवाने के लिए भोपाल में ट्रायल साइट पर पहुंचे थे। पर डॉक्टरों ने गाइडलाइन का हवाला देकर उन्हें वैक्सीन लगाने से मना कर दिया। दरअसल, उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को पहले ही कोरोना हो चुका है। इस आधार पर उन्हें वॉलंटियर बनने के लिए निर्धारित गाइडलाइन के अनुसार अयोग्य करार दिया गया।
विज के इंफेक्ट होने के बाद कई तरह की बातें हो रही हैं। यह कैसे हो गया? जिन लोगों ने ट्रायल्स में वैक्सीन लगवाया है, उनकी सरकार निगरानी कैसे करती है? इसकी प्रक्रिया क्या होती है? ऐसे ही और भी सवाल…
तो चलिए ऐसे ही सवालों और उनके जवाबों से गुजरते हैं...
सवालः क्या वैक्सीन की ट्रायल्स में शामिल वॉलंटियर्स को कोरोना हो सकता है?
जवाबः हां। यह कोई पहली बार थोड़े ही हुआ है। फाइजर, मॉडर्ना, ऑक्सफोर्ड/एस्ट्राजेनेका और साथ ही स्पूतनिक वैक्सीन के फेज-3 ट्रायल्स में शामिल लोग भी कोरोना पॉजिटिव निकले हैं। यदि ट्रायल्स में शामिल वॉलंटियर्स को कोरोना होगा ही नहीं तो उसका असर कैसे पता चलेगा। यह जरूर है कि इस बार मंत्री कोरोना पॉजिटिव हुए हैं, इस वजह से वैक्सीन को शक की नजर से देखा जाने लगा है।
सवालः वॉलंटियर को कोरोना हुआ, इसका वैक्सीन के असर से क्या लेना-देना है?
जवाबः बहुत लेना-देना है। सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि ट्रायल्स होते कैसे हैं। चलिए भारत बायोटेक के कोवैक्सिन की ही बात कर लेते हैं, जिसके ट्रायल्स में विज शामिल हुए थे। फेज-3 के ट्रायल्स में 25,800 वॉलंटियर शामिल होने हैं। इनमें से आधों को असली वैक्सीन लगेगा और आधों को प्लेसेबो यानी सलाइन का पानी। फिर सभी पेशेंट्स की निगरानी होगी।
अगर प्लेसेबो वाले ग्रुप में कोरोना के पेशेंट्स कम निकले तभी तो वैक्सीन का असर सामने आ सकेगा। यानी जब दोनों ही ग्रुप्स की तुलना होगी, तभी पता चलेगा कि यह वैक्सीन कितनी असरदार है। उदाहरण के लिए, फाइजर ने 44 हजार वॉलंटियर्स को फेज-3 ट्रायल्स में शामिल किया था। कुछ महीने में 170 वॉलंटियर कोरोना पॉजिटिव हो गए। इनमें से 162 लोगों को प्लेसेबो दिया था, जबकि 8 लोग वैक्सीन वाले ग्रुप से थे। इसी से तय हुआ कि वैक्सीन 95% तक असरदार है।
सवालः तो विज को क्या लगा था प्लेसेबो या वैक्सीन?
जवाबः यह तो किसी को भी नहीं पता। वैक्सीन का ट्रायल कर रहे डॉक्टरों को भी नहीं। इसे ही डबल ब्लाइंड और रैंडमाइज्ड ट्रायल्स कहते हैं। किस वॉलंटियर को प्लेसेबो दिया है और किसे वैक्सीन, इसकी जानकारी न तो वैक्सीन लगाने वालों को है और न ही बाकी लोगों को। यह डेटा बेहद गोपनीय रहता है। अंतिम नतीजे सामने आने के बाद ही पता चलता है कि वास्तविक स्थिति क्या थी। जिन्हें कोरोना हुआ, उन्हें वैक्सीन लगाई गई थी या सिर्फ प्लेसेबो दिया गया था।
सवालः तो अब भारत बायोटेक इस मसले पर क्या कह रहा है?
जवाबः अनिल विज मंत्री हैं, इसलिए भारत बायोटेक ने सफाई दी है। कंपनी ने बयान जारी कर कहा कि कोवैक्सिन के असर की जांच के लिए ही तो क्लिनिकल ट्रायल्स हो रहे हैं। 28 दिन के अंतर से दो डोज दिए जाते हैं। दूसरा डोज देने के 14 दिन बाद ही वैक्सीन का असर पता चलता है।
भोपाल के पीपुल्स मेडिकल कॉलेज में चल रहे ट्रायल के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ. राघवेंद्र गुमास्ता का कहना है कि वॉलंटियर्स को वैक्सीन के दोनों डोज देने के बाद एक साल तक ऑब्जर्वेशन और फॉलोअप किया जाएगा। इसमें पहले 28 दिन तक हर रोज फीडबैक लिया जाता है। दूसरा डोज देने के एक महीने बाद तक हर सात दिन में फीडबैक और फॉलोअप लिया जाएगा।
इसके बाद हर महीने उन्हें अस्पताल बुलाकर उनकी जांच की जाएगी। दरअसल, वैक्सीन ट्रायल में जिन वॉलंटियर्स को डोज दिया जा रहा है। उनकी एक साल तक निगरानी होगी। इस प्रोसेस में तीन महीने के लिए एक नोटबुक वॉलंटियर्स को दी गई है, जिसमें वह हर रोज अपना रुटीन लिखेंगे। इसके आधार पर वैक्सीन के असर का एनालिसिस किया जाएगा।
सवालः और अगर ट्रायल्स के दौरान गड़बड़ी सामने आए तो क्या होता है?
जवाबः इसके लिए CDSCO-DCGI की लंबी-चौड़ी गाइडलाइन है। मरीज को साइट के मुख्य जांचकर्ता या एक्टिव फॉलोअप के दौरान अपनी समस्या बतानी होती है। उस समस्या के आधार पर पहला फैसला उस साइट के मुख्य जांचकर्ता का होता है। यानी जिन 25 जगहों पर कोवैक्सिन के ट्रायल्स चल रहे हैं, वहां हर एक जगह पर एक मुख्य जांचकर्ता और एथिक्स कमेटी रहती है। मुख्य जांचकर्ता इस घटना की जानकारी एथिक्स कमेटी, CDSCO-DCGI, डेटा सेफ्टी मॉनिटरिंग बोर्ड और स्पॉन्सर को देता है।
एक बार अपनी सरकार को बचाने में कामयाब हो चुके राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ताजा बयान ने सियासत में सनसनी फैला दी है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि सरकारें गिराने का खेल फिर शुरू हो गया है। राजस्थान से पहले महाराष्ट्र का भी जिक्र किया है कि अब उसकी बारी है। उनके इस बयान को BJP के साथ गहलोत का सचिन पायलट के खिलाफ 'गेम प्लान' भी माना जा रहा है।
इस बयान के आते ही भाजपा उखड़ गई और गहलोत पर नैतिक साहस और मनोबल खो देने की बात कही। भाजपा ने यह कहने की कोशिश की है कि गहलोत से सरकार तो संभल नहीं रही है इसलिए भेड़िया आया..भेड़िया आया वाली हरकतें कर रहे हैं। हालांकि, पायलट गुट की ओर से कोई सख्त प्रतिक्रिया नहीं सुनने को मिली है।
अचानक बयान लेकिन मायने बिल्कुल साफ
दरअसल, गहलाेत ने एक बयान से दो निशाने साधे हैं। पहला BJP पर। दरअसल पार्टी की A और B (सरकार और संगठन) दोनों ही टीमें बिहार चुनाव के बाद फ्री हो गई हैं। बंगाल चुनाव में अभी समय है। ऐसे में महाराष्ट्र् की सियासी हलचल भांपते ही गहलोत ने बीजेपी को जोड़तोड़ का आरोप लगाकर फिर से कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है।
गहलोत सरकार पिछली बार वाला ही फॉर्मूला अपनाते दिख रही है। तब सरकार को लड़खड़ाते देख कुछ ऐसे फैक्ट्स 'सही जगह' भिजवाए थे, जिससे बीजेपी बैकफुट पर आ गई थी।
दूसरा अप्रत्यक्ष निशाना पायलट पर भी है। गहलोत ने ऐसे वक्त पर बयान जारी किया है, जब मंत्रिमंडल में बदलाव, राजनीतिक नियुक्तियां और प्रदेश कांग्रेस की नई टीम फाइनल होने की संभावना बन रही हैं। ऐसे में राजस्थान में सरकार और संगठन में पायलट फिर से दखल न दे सकें, वे यह मैसेज भी कांग्रेस आलाकमान को देना चाहते हैं। वे यह भी बताने की कोशिश कर रहे हैं कि किस तरह पिछली बार मैंने ही सरकार बचाई।
पायलट के दोस्त सिंधिया का भी जिक्र
गहलोत ने अपने बयान में खासतौर पर राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी जिक्र किया है। सिंधिया और पायलट दोस्त हैं। जब गहलोत-पायलट में टकराव था, तब भी भाजपा में शामिल हो चुके सिंधिया का नाम उछला था।
सर्दियों में हमारा शरीर ठंड से बचने के लिए खुद की कैलोरी बर्न करता है। इसके चलते इस मौसम में शरीर को सामान्य से ज्यादा कैलोरी की जरूरत पड़ती है। सर्दियों में हमारा डाइजेशन सामान्य से बेहतर काम करता है यानी इस मौसम में हम अपनी डाइट बढ़ा सकते हैं।
हालांकि, इस मौसम में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इस मौसम में बीमार पड़ने की आशंका ज्यादा होती है। जयपुर में मेडिकल न्यूट्रीशियनिस्ट सुरभि पारिक कहती हैं कि इस मौसम में ठंडी चीजों को खाने से बचना चाहिए और खाने में ज्यादा से ज्यादा एंटीऑक्सीडेंट फूड को शामिल करना चाहिए।
ऐसे में सवाल यह है कि सर्दियों में हमें क्या खाना चाहिए? एक्सपर्ट्स के मुताबिक, सर्दी के मौसम में डाइट में एनर्जेटिक और गर्म चीजों को शामिल करना चाहिए। आपको कुछ ही दिनों में अपने आप में काफी अंतर दिखने लगेगा।
सर्दियों में पानी को लेकर लोगों में भ्रम
हैदराबाद स्थित ICMR के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (NIN) के मुताबिक, एक एडल्ट को 24 घंटे में 4 से 5 लीटर, 8 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को 3 से 4 लीटर और 5 से 8 साल के बच्चों को 2 से 3 लीटर पानी पीना जरूरी है।
लेकिन, सर्दियों में प्यास कम लगने की वजह से हमारा पानी पीना औसतन आधा हो जाता है। डॉ. सुरभि कहती हैं कि सर्दियों में भले ही प्यास न लगती हो, लेकिन हमें उतना पानी जरूर पीना चाहिए जितना ICMR ने रिकमेंड किया है। सर्दियों में भी शरीर में पानी की कमी के चलते कई समस्याएं हो सकती हैं।
1- खजूर में विटामिन और मिनरल की भरपूर मात्रा
ठंड के मौसम में खजूर बड़े काम की चीज है। इसमें विटामिन A और B की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसकी तासीर भी गर्म होती है, सर्दियों में इसे खाने से शरीर में गर्माहट बनी रहती है।
इसके अलावा खजूर में फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम समेत फाइबर भी काफी मात्रा में होता है।
ये सभी न्यूट्रिशन हमारे शरीर के लिए जरूरी हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इसे रात में डिनर के साथ और सुबह नाश्ते के साथ ले सकते हैं।
2- गुड़ से मिलता है आयरन, नहीं होता एनीमिया
गुड़ हमारे शरीर के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है, इस कारण आज भी कई लोग अपनी डाइट में इससे बनी हुई चीजें शामिल करते हैं। गुड़ में भी भरपूर आयरन, मैग्निशियम समेत कई न्यूट्रिशन होते हैं।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, आप इसे खाने में किसी भी तरह से शामिल कर सकते हैं। आप चाहें तो इससे बना हुए स्नैक्स खाएं या सीधे गुड़ ही खाएं। गुड़ भी गर्म होता है। यह हमें सर्दी से बचाता है।
3- सर्दियों में तमाम तरह की बीमारियों से बचाता है तिल
तिल की भी तासीर गर्म होती है, इसलिए इसे ठंड में ही ज्यादा खाया जाता है। इसमें मोनो-सैचुरेटड फैटी एसिड के साथ भारी मात्रा में एंटी-बैक्टीरियल मिनरल्स होते हैं। यह सर्दियों में न सिर्फ हमारे शरीर को गर्म रखता है, बल्कि हमें वायरल से भी बचाता है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, तिल वो लोग न खाएं जिन्हें हाइपरटेंशन, मोटापे और हार्ट की समस्या है। इसमें पाया जाने वाला सैचुरेटड फैटी एसिड उनकी समस्या को बढ़ा सकता है। लेकिन नॉर्मल लोगों के लिए यह सर्दियों में बहुत फायदेमंद है।
4- गाजर में लगभग सभी तरह के विटामिन
गाजर दिल, दिमाग, नस के साथ-साथ हेल्थ के लिए भी फायदेमंद है। गाजर में विटामिन A, B,C,D,E,G और K पाए जाते हैं, जिससे हमारी बॉडी को काफी सारे न्यूट्रिएंट्स मिल जाते हैं।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, एक गाजर हमें हमारे दैनिक खपत से 300 % ज्यादा विटामिन-A दे सकती है।
5- मूंगफली में प्रोटीन की भरपूर मात्रा
मूंगफली में प्रोटीन और हेल्दी फैट के साथ कई विटामिन और मिनरल्स पाए जाते हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, 100 gm कच्ची मूंगफली में 1 लीटर दूध के बराबर प्रोटीन होता है।
इससे तेल (Peanut Oil), आटा (Peanut Flour) और प्रोटीन (Peanut Protein) के अलावा भी कई चीजें बनती हैं और इससे बनी हुई चीजों का उपयोग डेजर्ट, केक, कनफेक्शनरी, स्नैक्स और सॉस बनाने में भी किया जाता है।
आज से ठीक 6 साल, 9 महीने और 10 दिन पीछे चलते हैं। उस दिन तारीख थी 20 फरवरी 2014। नरेंद्र मोदी उस समय प्रधानमंत्री नहीं थे। सिर्फ प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। गुजरात के अहमदाबाद में उनकी रैली थी। यहां उन्होंने एक कविता पढ़ी- ‘सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं बिकने दूंगा।’ ये कविता बहुत लंबी है, जिसे लिखा है प्रसून जोशी ने। इस कविता को मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी कई बार दोहरा चुके हैं।
अब लौटते हैं मुद्दे पर। आज उन्हीं नरेंद्र मोदी की सरकार है और उन्हीं की सरकार में सबसे ज्यादा सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी बेची गई। मोदी सरकार अब देश की दूसरी सबसे बड़ी फ्यूल रिटेलर कंपनी भारत पेट्रोलियम (BPCL) में 53.3% हिस्सेदारी बेचने की तैयारी में है। इसके जरिए सरकार को 40 हजार करोड़ रुपए मिलने का अनुमान है।
मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल में सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी या शेयर बेचकर जितनी रकम जुटाई गई है, उतनी रकम 23 सालों में भी नहीं जुटी। इस पूरी प्रक्रिया को कहते हैं डिसइन्वेस्टमेंट या विनिवेश।
क्या होता है डिसइन्वेस्टमेंट?
इन्वेस्टमेंट या निवेश क्या होता है, जब किसी कंपनी या संस्था में पैसा लगाया जाता है। इसका उल्टा होता है डिस-इन्वेस्टमेंट या विनिवेश, यानी किसी कंपनी या संस्था से अपना पैसा निकालना। जब सरकार किसी सरकारी कंपनी से अपनी कुछ हिस्सेदारी बेचकर उससे रकम जुटाती है, तो इस प्रक्रिया को कहते हैं डिस-इन्वेस्टमेंट।
अक्सर विनिवेश और निजीकरण को एक ही मान लिया जाता है। लेकिन दोनों में काफी अंतर होता है। निजीकरण में सरकार अपनी 51% से ज्यादा की हिस्सेदारी किसी निजी कंपनी को बेच देती है, जबकि विनिवेश में सिर्फ कुछ हिस्सा ही बेचा जाता है। विनिवेश की प्रक्रिया में सरकार का कंपनी पर मालिकाना हक बना रहता है। लेकिन निजीकरण में सरकार का कोई मालिकाना हक नहीं रह जाता।
हालांकि, कई बार विनिवेश का फायदा भी होता है। कई सरकारी कंपनियां ऐसी होती हैं, जिन पर करोड़ों खर्च होने के बाद भी कोई मुनाफा नहीं होता। इस वजह से सरकार ऐसी कंपनियों से अपनी हिस्सेदारी या शेयर बेच देती है। ताकि सरकार का पैसा न लगे। सरकार का पैसा यानी हमारा और आपका पैसा।
सरकार को विनिवेश की जरूरत क्यों पड़ती है?
होता ये है कि सरकार देश चलाती है और देश चलाने की लिए जरूरत होती है पैसों की। ये पैसा सरकार टैक्स के जरिए वसूलती है, लेकिन इतनी रकम से डेवलपमेंट वर्क नहीं हो पाता। इसके लिए सरकार पैसा जुटाने के लिए सरकारी कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बेचती और रकम जुटाती है। इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब किसी घर में खर्च चलाना मुश्किल होता है, तो लोग घर का सामान बेचते हैं। ऐसा ही सरकार भी करती है।
BPCLकी हिस्सेदारी क्यों बेच रही है सरकार?
अब सवाल उठता है कि आखिर सरकार BPCL की हिस्सेदारी क्यों बेच रही है। दरअसल, 2020-21 के लिए सरकार ने विनिवेश के जरिए 2.10 लाख करोड़ रुपए जुटाने का टारगेट रखा था। लेकिन कोरोना की वजह से अभी तक सरकार सिर्फ 6,311 करोड़ रुपए ही जुटा सकी है। BPCL के जरिए सरकार को 40 हजार करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद है।
इसके अलावा पिछले 4 साल से BPCL का प्रॉफिट कम होता ही जा रहा था। 2018-19 में कंपनी को 7,132 करोड़ रुपए का फायदा हुआ था, जो 2019-20 में घटकर 2,683 करोड़ रुपए हो गया।
मोदी सरकार में अब तक कितनी कंपनियों की हिस्सेदारी बिक चुकी है?और सरकार ने इससे कितना कमाया?
मई 2014 में केंद्र में पहली बार मोदी सरकार आई। तब से लेकर अब तक मोदी सरकार में 121 कंपनियों की हिस्सेदारी बिक चुकी है। इससे सरकार ने 3.36 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा कमाई की है। ये आंकड़ा किसी सरकार में विनिवेश के जरिए जुटाई गई रकम का सबसे ज्यादा हिस्सा है।
1991 में जब देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था, तब सरकार ने सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचकर रकम जुटाने के लिए डिस-इन्वेस्टमेंट करने का फैसला लिया था। उसके बाद से अब तक के करीब 30 सालों में सरकार डिसइन्वेस्टमेंट के जरिए 4.89 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा जुटा चुकी है। सबसे ज्यादा रकम मोदी सरकार में ही जुटाई गई है।
क्या हो रहा है वायरल: सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हो रही है। इसमें कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो जमीन पर बैठे दिख रहे हैं। ट्रूडो के आसपास सिख समुदाय के कुछ लोग भी बैठे हैं।
दावा किया जा रहा है कि कनाडा के प्रधानमंत्री भारत में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में धरने पर बैठ गए हैं।
और सच क्या है?
कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो एक बयान जारी कर भारत में हो रहे किसानों के प्रदर्शन का समर्थन कर चुके हैं। लेकिन, इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली जिससे पुष्टि होती हो कि ट्रूडो धरने पर बैठे हैं।
वायरल फोटो को गूगल पर रिवर्स सर्च करने से सर्च रिजल्ट में हमारे सामने न्यूज एजेंसी ANI की 24 नवंबर 2015 की एक रिपोर्ट आई। 6 साल पुरानी रिपोर्ट में ट्रूडो की वही फोटो है, जिसे हाल का बताकर शेयर किया जा रहा है।
कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो 2015 में भारतीय मूल के कनाडाई नागरिकों के साथ दिवाली मनाने पहुंचे थे। इस अवसर पर ट्रूडो मंदिरों और गुरुद्वारों में भी गए थे, फोटो तभी की है। साफ है कि सोशल मीडिया पर 6 साल पुरानी दिवाली की फोटो को गलत दावे के साथ शेयर किया जा रहा है।
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 3 टी-20 की सीरीज का दूसरा मुकाबला आज सिडनी क्रिकेट ग्राउंड में खेला जाएगा। टीम इंडिया ऑस्ट्रेलिया में भले ही वनडे सीरीज हार चुकी है, लेकिन टीम का टी-20 में रिकॉर्ड काफी बेहतर है। भारत पिछले 12 साल से ऑस्ट्रेलिया में कोई द्विपक्षीय टी-20 सीरीज नहीं हारा है।
यदि आज का मुकाबला भारतीय टीम जीतती है, तो ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ओवरऑल 9 में से चौथी सीरीज जीतेगी।
4 साल पहले ऑस्ट्रेलिया को उसी के घर में क्लीन स्वीप किया था
भारतीय टीम को फरवरी 2008 में ऑस्ट्रेलिया से उसी के घर में टी-20 सीरीज में हार का सामना करना पड़ा था। पिछली बार 2018 में जब भारत ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया था, तब सीरीज 1-1 से बराबर रही थी। वहीं, 4 साल पहले भारत ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 3-0 से क्लीन स्वीप किया था।
हेड-टु-हेड
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच यह 9वीं टी-20 सीरीज खेली जा रही है। पिछली 8 सीरीज में से भारत ने 3 और ऑस्ट्रेलिया ने 2 सीरीज जीती है, जबकि 3 ड्रॉ रही हैं। ऑस्ट्रेलिया में दोनों टीम के बीच अब तक 4 सीरीज खेली गई, जिसमें 1-1 से बराबरी का मामला रहा है। दो सीरीज ड्रॉ खेली गईं।
ओवरऑल मैचों की बात करें, तो दोनों टीम के बीच अब तक 21 टी-20 खेले हैं। इसमें भारत ने 12 और ऑस्ट्रेलिया को सिर्फ 8 में ही जीत मिली है, जबकि एक मैच बेनतीजा रहा है। ऑस्ट्रेलिया में दोनों टीमें 10 बार आमने-सामने आई हैं, जिसमें टीम इंडिया ने 6 टी-20 जीते और 3 हारे हैं। एक मैच बेनतीजा रहा है।
मौसम और पिच रिपोर्ट
सिडनी में आसमान साफ रहेगा। अधिक तापमान 30 डिग्री और न्यूनतम तापमान 17 डिग्री रहने की संभावना है। सिडनी क्रिकेट ग्राउंड पर पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। टॉस जीतने वाली टीम पहले बॉलिंग करना चाहेगी। यह चेज करने वाली टीम का सक्सेस रेट 50% है।
चोटिल जडेजा का बाहर होना टीम इंडिया को बड़ा झटका
पहले टी-20 में ऑलराउंडर रविंद्र जडेजा ने 23 बॉल पर 44 रन की नाबाद मैच जिताऊ पारी खेली थी। इसी मैच में वे हैम-स्ट्रिंग की शिकायत के बाद सीरीज से बाहर हो गए हैं। फॉर्म में चल रहे जडेजा मिडिल ऑर्डर की मजबूती थे। वनडे सीरीज के आखिरी मैच में भी उन्होंने 66 रन की नाबाद पारी खेलकर टीम को जिताया था। टीम के पास उनका विकल्प मौजूद नहीं है।
सिडनी के मैदान पर कोहली का रिकॉर्ड सबसे बेहतर
मौजूदा दोनों टीम में शामिल बैट्समैन की बात करें तो भारतीय कप्तान विराट कोहली का प्रदर्शन शानदार है। उन्होंने इस मैदान पर 2 टी-20 खेले और दोनों में फिफ्टी लगाई है। दूसरे नंबर पर शिखर धवन हैं, जिन्होंने 2 मैच में 67 रन बनाए हैं। हालांकि, पिछले कैनबरा मैच में दोनों कुछ खास नहीं कर सके थे। धवन एक और कोहली 9 रन बनाकर आउट हो गए थे।
बॉलिंग में चहल और बुमराह को मौका मिल सकता है
पहले मैच में चोटिल जडेजा की जगह कन्कशन सब्सटिट्यूट के तौर पर युजवेंद्र चहल को शामिल किया गया था। नियम के मुताबिक, उन्होंने बॉलिंग की और 3 विकेट लेकर टीम को जीत भी दिलाई। दूसरे मुकाबले में कप्तान कोहली उन्हें प्लेइंग इलेवन में शामिल कर सकते हैं। उनके अलावा बॉलिंग का दारोमदार टी नटराजन और जसप्रीत बुमराह पर भी रहेगा। यह नटराजन का डेब्यू मैच था, जिसमें उन्होंने 3 विकेट झटके थे। बुमराह पिछला मैच नहीं खेले थे। उम्मीद है कि उन्हें मोहम्मद शमी की जगह मौका मिल सकता है।
ऑस्ट्रेलिया के लिए स्टार्क, एगर और जम्पा की-बॉलर्स
मेजबान ऑस्ट्रेलिया के लिए सिडनी के मैदान पर तेज गेंदबाज मिचेल स्टार्क, एश्टन एगर और स्पिनर एडम जम्पा की-प्लेयर साबित होंगे। मौजूदा खिलाड़ियों में इस मैदान पर तीनों का प्रदर्शन शानदार है। इस मामले में टॉप-5 में भारत के जसप्रीत बुमराह अकेले बॉलर शामिल हैं। पहले टी-20 में ऑस्ट्रेलिया के लिए मोइसेस हेनरिक्स ने 3 और स्टार्क ने 2 विकेट लिए थे।
भारतीय टीम बैट्समैन: विराट कोहली (कप्तान), लोकेश राहुल (विकेटकीपर), मयंक अग्रवाल, शिखर धवन, श्रेयस अय्यर, मनीष पांडे, संजू सैमसन (विकेटकीपर)। बॉलर: जसप्रीत बुमराह, युजवेंद्र चहल, दीपक चाहर, मोहम्मद शमी, टी नटराजन, नवदीप सैनी, शार्दूल ठाकुर। ऑलराउंडर: हार्दिक पंड्या, वॉशिंगटन सुंदर।