मंगलवार, 2 जून 2020

रिजर्व रहते थे अमिताभ, आयुष्मान सबसे घुलते-मिलते थे; बिग बी के मेकअप में लगते थे छह घंटे

12 जून को अमिताभ बच्चन औरआयुष्मान खुराना की फिल्म गुलाबो-सिताबो वेब प्लेटफार्मपर रिलीज हो रही है। इसकी शूटिंग लखनऊ के हजरतगंज और उसके आसपास संकरी गलियों में हुई है। अमिताभ ने फिल्म में मिर्जा का किरदार निभाया है। उनका गेटअप ऐसा था कि, शूटिंग के दौरान हजरतगंज में लोग उन्हें पहचान भी नहीं पाते थे। उन्हें ये मेकअप लगाने व उतारने में छह घंटे लगते थे। इस फिल्म में लखनऊ की वरिष्ठ कलाकार अर्चना शुक्ला ने आयुष्मान कीमां का रोल निभाया है। उन्होंने दैनिक भास्कर से बातचीत में फिल्म से जुड़े कुछ किस्से शेयर किए। जैसा उन्होंने बताया वैसा ही लिखा गया है...

पहला किस्सा: अमिताभको मेकअप लगाने और उतारने में लगते थे6 घंटे

अर्चना बताती हैं- "पिछले साल जून में इस शूटिंग शुरू हुई थी और लगभग 50 से 60 दिन का शूट चला था। इस पूरी फिल्म में अमिताभएक खड़ूस बुजुर्ग के रूप में नजर आए हैं। उनका पूरा लुक बदल दिया गया था। इस लुक को देने के लिए विदेश से एक लेडी मेकअप गर्लको भी बुलाया गया था, जो हमेशा अमिताभ के साथ सेट पर रहती थी। उनको मेकअप करने में 3 घंटे और उतारने में भी इतना ही समय लगता था। इसके लिए अमिताभ 3 घंटे पहले सेट पर आते थे।"

"कभी-कभी सेट पर कॉमिक होकर अपनी मेकअप लेडी से अमिताभबोलते थे कि कोई मेरी नाक नहीं छू सकता है और यह मेरी नाक सुबह शाम पकड़ती है। जिस पर सभी हंसते थे। मैं सही बताऊं तो अमिताभ के साथ मेरा सीन भी है। लेकिन, सीन के बाद उनसे कोई बात नहीं हुई। वह बहुत रिजर्व रहते थे। सबसे बड़ी बात जहां सबसे ज्यादा मेकअप बच्चन साहब का होता था वहीं, बाकी कलाकारों का एकदम न के बराबर मेकअप होता था। चूंकि, हम लोगों का रोल भी कुछ ऐसा था कि बहुत मेकअप की जरूरत नहीं थी।"

आयुष्मान खुराना के साथ अर्चना शुक्ला।

दूसरा किस्सा: पहले ही दिन लीक हुआ था खड़ूस बुजुर्ग बने अमिताभ का लुक

"पहले दिन वह जब सेट पर आए तो उनके आगे पीछे 10 तगड़े बाउंसर थे। मुझे याद है वह पहले दिन लुक टेस्ट के लिए आए थे। मेकअप के बाद वह कुर्सी डालकर वैनिटी के बाहर बैठे थे। उस दिन के बाद ही उनकी फोटोज वायरल हुई थी। इसके बाद उन्होंने सेट पर वैनिटी के बाहर बैठना ही छोड़ दिया। दरअसल, डायरेक्टर ने शूट से पहले ही हमें फिल्म की कहानी और फोटोज वीडियो लीक न करने की सलाह दी थी। जिसको हम सब फॉलो कर रहे थे, लेकिन बच्चन साहब की फोटो लीक हो गई। बाद में पता चला कि सेट पर कुछ लोकल फोटोग्राफर भी थे, जिन्होंने फोटो लीक की थी। हालांकि, बाद में अमिताभके ट्विटर हैंडल से भी फोटो ट्वीट हुई थी।"

अर्चना शुक्ला।

तीसरा किस्सा: अमिताभ के साथ फोटो खिंचाने के लिए 3 से 4 घंटेइंतजार

"अमिताभ बच्चन से मेरी मिलने की ख्वाहिश थी। लेकिन,कभी सोचा नहीं था कि उनके साथ काम करूंगी। गुलाबो-सिताबो की लगभग 50 से 60 दिन का शूट में सीन के अलावा अमिताभ से कोई बात नहीं हुई। हालांकि, हम जो लोकल कलाकार थे, वह अपनी यादों के लिए बच्चन साहब और आयुष्मान के साथ फोटो खिंचाना चाहते थे। तय हुआ कि जब शूट का आखिरी दिन होगा तो उस दिन ग्रुप फोटो होगी। चूंकि, हमारी शूट पैकअप से दो दिन पहले खत्म हो गईथी।"

"आखिरी दिन हम लोग जो लोकल कलाकार थे, सब सुबह 8 बजे तक पहुंच गए। उस दिन शहर में दो जगह शूट था तो बच्चन साहब दूसरी लोकेशन पर शूट कर हम जिस लोकेशन पर थे वहां वापस आए फिर वहां शूट शुरू हुआ। शूट खत्म होने के बाद वह वैनिटी टीम में आ गए। हम लोगों ने प्रोडक्शन मैनेजर से कहा कि हम लोगों की अमिताभ के साथ फोटो खिंचवा दे तो उसने कहा वह वैनिटी से निकलें तो आप लोग पकड़ लीजिएगा। मैं इसमें कोई मदद नहीं कर सकता। बहरहाल, मेकअप वगैरह उतारने के बाद जब वह वैनिटी वैन से बाहर आए तो उन्हें तुरंत हम लोगों ने घेर लिया और तड़ातड़ फोटो खींच डाली। जब तक वह कुछ समझते, तब तक हमारा काम हो चुका था। बहरहाल, वह मुस्कुराए और आगे निकल गए।"

अर्चना ने अमिताभ के साथ अचानक फोटो खींची।

चौथा किस्सा: जब फैन का मैसेज सुन परेशान हो गए थे आयुष्मान

"फिल्म में मैं आयुष्मान की मां बनी हूं तो कभी कभी ब्रेक में भी हमारी जो फिल्म में फैमिली है, सब इकट्ठे बैठते थे। इसी दौरान मेरा एक जानने वाला लड़का है, जो कि आरजे है। उसने जब जाना कि मैं आयुष्मान के साथ काम कर रही हूं तो उसने कहा मेरा मैसेज उन तक पहुंचा दीजिए कि मैं आयुष्मान का बहुत बड़ा फैन हूं। मैं उनके लिए कुछ भी कर सकता हूं। यहां तक कि मैं अपनी जान भी दे सकता हूं। जब ये बात मैंने आयुष्मान को बताई तो वह बहुत परेशान हो गया। उसने कहा कि उस लड़के से आप बोलो ऐसा वैसा कुछ न करे। मैं भी बिल्कुल वैसा ही हूं जैसा वह है। मेरे में कुछ खास नहीं है। वह अपना काम कर रहा है और मैं अपना काम कर रहा हूं।

आयुष्मान बहुत ही डाउन टू अर्थ लड़का है। ब्रेक में भी हमसे अपने परिवार की बातें किया करता था। हमारे बारे में सब कुछ जानना चाहता था। ऐसा नहीं है कि वह सिर्फ हमसे ही बात करता वह अन्य कलाकारों से भी बात करता था। वह सबसे सेट पर मजाक वगैरह किया करता था। एक बार मुझे सोने की एक्टिंग करनी थी तो मेरी तबियत खराब थी तो मैं लेटी और मैं खर्राटे लेने लगी। जिसकी आयुष्मान समेत सभी लोगों ने खूब तारीफ की।"

फिल्म के बाल कलाकारों के साथ अर्चना शुक्ला।

पांचवांकिस्सा: बच्चन साहब को कोई पहचान नहीं पाता था

"अमिताभ और आयुष्मान को लेकर लखनऊ में आउटडोर शूट करना बड़ा मुश्किल काम था। इसलिए आउटडोर शूट पर भारी सुरक्षा रहती थी। दोनों तरफ की रोड को ब्लॉक कर दिया जाता था। अगर वहां पब्लिक होती भी तो अमूमन मेकअप की वजह से बच्चन साहब को कोई जल्दी पहचान भी नहीं पाता था। अगर किसी वजह से भीड़ इकट्ठा भी होती थी तो उनके बाउंसर्स तुरंत उनके पास पहुंच कर घेर लिया करते थे।"



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ये तस्वीर लखनऊ में फिल्म गुलाबो सिताबो की शूटिंग के दौरान की है। अमिताभ बच्चन इस किरदार में हजरतगंज में घूमते थे, लेकिन उन्हें कोई पहचान नहीं पाता था। उन्हें इस गेटअप में आने के लिए तीन घंटे लगते थे। इसके बाद तीन घंटे मेकअप उतारने में समय लगता था।


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वायरस से उबरने के बाद महीनों तक भारी थकान और सांस की तकलीफ हो सकती है: ब्रिटेन की सबसे बड़ी एजेंसी की चेतावनी

कोरोना के मरीजों में कई महीनों तक अधिक थकान और सांस लेने की तकलीफ रह सकती है। यह अलर्ट ब्रिटेन की सबसे बड़ी सरकारी स्वास्थ्य एजेंसी नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) ने कोरोना मरीजों के लिए जारी किया है।

एनएचएस के वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोनावायरस का असर शरीर पर लम्बे समय तक रह सकता है। कोरोना से उबरने के बाद शरीर पर इसका बुरा असर कब तक रहेगा, फिलहाल इस पर रिसर्च की जा रही है।

सामान्य जीवन में नहीं लौट सकेंगे
मई में एनएचएस के वैज्ञानिकों ने कोरोना के गंभीर लक्षणों पर चर्चा की थी जिसमें स्ट्रोक, किडनी डिसीज और अंगों की घटती कार्यक्षमता पर बैठक चली थी।

बैठक में एनएचएस के वैज्ञानिकों का कहना था कि कोरोना के उबरने वाले ऐसे मरीजों की संख्या अधिक होगी जो वापस सामान्य जीवन में नहीं लौट सकेंगे।

यह मॉडल पूरे देश में लागू होगा
खासतौर पर कोरोना पीड़ितों के लिए बनाए गए एनएचएस हॉस्पिटल में पिछले सप्ताह, ऐसे मरीज रिकवर हुए जो इलाज के बाद लम्बे समय से कोरोना के असर से जूझ रहे थे।

एजेंसी का कहना है, यही मॉडल देश में अब कोरोना से उबरने वाले मरीजों के लिए अपनाया जाएगा ताकि उनकी मेंटल डिसऑर्डर, सांस लेने में तकलीफ और हृदय रोगों के कॉम्पिकेशन से लड़ने में मदद की जा सके

पिछले हफ्ते भी दी थी चेतावनी
एनएचएस ने पिछले हफ्ते एक अलर्ट जारी करते हुए कहा था कि जिन लोगों के शरीर में किसी तरह का डैमेज हुआ है उन्हें रिकवर करने में हम मदद करेंगे।

एनएचएस के चीफ एग्जीक्यूटिव सिमोन स्टीवेंस का कहना है, हमारा देश महामारी की चरम स्थिति से गुजर रहा है, अब हमें इससे उबरने के बाद दिखने वाले परिणामों से बचाव के तरीकों पर काम करने की जरूरत है।

कोरोना को हराने के बाद ऐसे ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ेगी
सिमोन स्टीवेंस के मुताबिक, कोरोना से उबरने वाले मरीजों को ट्रैकियोस्टॉमी वाउंड, हृदय और फेफड़ों के डैमेज रिपेयर करने वाली थैरेपी, मसल और सायकोलॉजिकल ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ सकती है।

वहीं, कुछ ऐसे मरीज भी हो सकते हैं जिन्हें सोशल सपोर्ट की जरूरत होगी। इसके लिए हमें तैयार रहने की जरूरत है।



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Coronavirus patients can suffer 'extreme tiredness and shortness of breath for months'


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ईरान का आरत 9 माह की उम्र से मेहनत कर रहा, अब मेसी की तरह खेलने का सपना

6 साल की उम्र में सिक्स पैक एब बनाने वाले आरतहोसैनी की खूबियां हैं। ये इंस्टाग्राम स्टार और सॉकर प्लेयर होने के साथ जिम्नास्ट भी हैं। इन्हें अक्सर लोग लड़कीसमझ बैठते हैं। ईरान के बाबोल शहर में रहने वाले आरतअपने सिक्स पैक एब और सॉकर के कारण सोशल मीडिया स्टार बन चुके हैं। जानिए छोटी सी उम्र इतना नाम कमाने वाले लिटिल चैम्पियन की कहानी...

सॉकर प्लेयर को बॉडी ने बनाया स्टार : आरत के पिता मोहम्मद ने इनकी ट्रेनिंग काफी कम उम्र में ही शुरू कर की थी। आरत ने 9 माह की उम्र से जिम्नास्टिक करना शुरू किया और दो साल की उम्र पूरी होने तक अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बन चुका था। आरत को सॉकर खेलना काफी पसंद है लेकिन वे चर्चा में अपनी बॉडी के कारण आए।
सोशल मीडिया स्टार :आरत का जन्म इंग्लैंड के लिवरपूल में हुआ था, अब वह लिवरपूल एकेडमी में स्पोर्ट्स ट्रेनिंग ले रहे हैं। सोशल मीडिया पर अरत की फैन फॉलोइंग काफी बड़ी है। सिर्फ इंस्टाग्राम पर इनके 4 मिलियन फॉलोवर हैं। इनकी लगभग हर एक पोस्ट पर मिलियन लाइक हैं।

इंस्टाग्राम पर डेब्यू:आरत के पिता का कहना है कि बेटे में अनोखे टैलेंट को देखने के बाद आसपास के लोगों ने सलाह दी कि इंस्टाग्राम पर उसका एक पेज बनाना चाहिए। पेज बनने के बाद तेजी से लोगों ने उसे पसंद किया और लाखों फॉलोवर जुड़ गए।

आरोपों का सामना किया :अरत के पिता पर कई बार यह आरोप भी लगे कि वह अपने बेटे से पैसे कमाने के लिए ऐसा करा रहे हैं। जिसका उन्होंने जवाब दिया, उनका कहना है कि बेटा हमेशा से एथलेटिक्स एक्टिविटीज में एक्टिव रहा है। मैंने सिर्फ एक पिता के तौर पर उसकी उन चीजों में मदद की है जो वह करना चाहता है।

लिओनल मेसी के फैन :आरत दीवार पर चढ़ने की कला में भी माहिर हैं। अब उनका सपना है कि बड़े होकर बार्सिलोना सॉकर क्लब के लिए खेलें। उनके पसंदीदा खिलाड़ियों में लिओनल मेसी शामिल हैं, और आरत मेसी की तरह की खेलना चाहते हैं। फोटो साभार: इंस्टाग्राम



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6-Year-Old Instagram Sensation Stuns Internet With His Chiseled Physique


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लद्दाख में चीन के रवैये का अनुमान तभी लग जाना था जब जम्मू-कश्मीर में बदलाव किए गए थे

आजादी के बाद से अब तक अगर हम चीन के साथ संबंध देखें तो ऐसा क्या है कि जिसके आधार पर हम उसे रहस्यमय मानेंगे? 1962 में उसने दो मोर्चों पर हम पर जो हमला किया वह हमारे नेताओं के लिए चौंकाने वाला रहा होगा, लेकिन ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वे भ्रम के शिकार थे।

उसके बाद से 1965 में पाकिस्तान के साथ हमारी 22 दिन की जंग में चीन की ‘उनके चुराए गए याक और भेड़ें लौटा दो’ की धमकी से लेकर इस साल लद्दाख सीमा पर उसकी तथाकथित ‘चौंकाने वाली’ हरकतों तक, भारत के मामले में चीन का हर कदम यही बताता है कि वह रहस्यमय तो बिल्कुल नहीं रहा है, बल्कि उसके हर कदम का पहले से अनुमान लगाया जा सकता है।

नाथु ला (सिक्किम) में 1967 में की गई चोट शायद भारत की प्रतिक्रिया देखने के लिए की गई थी। तब उसे लग रहा था कि 1962 और 1965 की लड़ाई, अकालों, अनाज के लिए विदेशी मदद पर निर्भर रहने, राजनीतिक अस्थिरता और इंदिरा गांधी का कद घटने से भारत अस्थिर हो गया होगा।

लेकिन भारत ने जो जवाब दिया, उससे उसने सबक सीखा और 53 वर्षों तक शांत रहा। क्या इसे चीन के रहस्यमय होने का सबूत मानेंगे? नहीं। उसने हमारी जांच-पड़ताल की और उसे करारा जवाब मिला।

फिर अलग-अलग समय पर विभिन्न तरीकों से गतिविधि करते हुए वह इंतज़ार करता रहा। 1960 के आसपास से अब तक के छह दशकों में चीन भारत के साथ रिश्तों को मर्जी से चलाता रहा है। उसने 1962 तक वो हासिल कर लिया था, जो चाहता था।

सच्चाई यह है कि लद्दाख में सामरिक रूप से जरूरी कुछ छोटे-छोटे टुकड़ों को छोड़कर, उसने लगभग पूरा कब्जा कर लिया था। उसने पूरी तरह से भारत के नियंत्रण में रहे अरुणाचल प्रदेश पर भी मालिकाना हक जताया, लेकिन सैन्य चुनौती नहीं दी। इस क्षेत्र और पूरी दुनिया में सत्ता समीकरण में बदलावों के आधार पर उसके तेवर बदलते रहे।

1986-87 में जब उसने देखा कि राजीव गांधी ने रक्षा बजट को अभूतपूर्व रूप से जीडीपी का 4% कर दिया तो उसने फिर वांगदुंग-सुमदोरोंग चू (अरुणाचल) में हमें आजमाया। उसे फिर करारा जवाब मिला और वह पीछे हट गया। इससे फिर यह सबक मिला कि वह बेवजह गोलियां नहीं चलाएगा, तब तक नहीं जब तक उसे आसानी से जीतने का भरोसा न हो। इससे पता चलता है कि उसकी हरकतों का अनुमान लगा सकते हैं।
आज के संदर्भ में दो हस्तियों से हुई बातचीत प्रासंगिक लगती है।

डॉ. मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री थे, उन्होंने कहा था कि चीन भारत को हमेशा अस्थिर रखने के लिए पाकिस्तान को मोहरा बना रहा है। हमारा भविष्य इस पर निर्भर है कि हम इस ‘त्रिभुजन’ का तोड़ निकालें। उनका सुझाव यह था कि हम पाकिस्तान से अच्छे रिश्ते बनाने की कोशिश करें।

लेकिन आज पाकिस्तान से दुश्मनी मोदी-भाजपा राजनीति का केंद्रीय तत्व बन गया है। यह पाकिस्तान से ज्यादा चीन से सुलह को तरजीह देगी। वैसे, लक्ष्य त्रिभुजन से बचना ही है। दूसरी बात वाजपेयी के साथ हुई थी, जिन्होंने चीन की वार्ता शैली का खुलासा किया था, ‘देखिए, आप-हम वार्ता कर रहे हैं। दोनों समाधान चाहते हैं। मैं कहूंगा कि थोड़ी रियायत कीजिए, आप मना कर देंगे। मैं कहूंगा, कुछ कम रियायत कर दीजिए, आप फिर मना कर देंगे। अंततः आप मान जाएंगे और उस थोड़े को गंवा देंगे। लेकिन चीन कभी ऐसा नहीं करेगा।’

ये दोनों नेता यही स्पष्ट करते हैं कि चीन अपनी बात पर कायम रहता है और उसका अनुमान लगाया जा सकता है। इसलिए उसने लद्दाख में जो किया है, उसका अनुमान हमें पिछले साल 5 अगस्त को ही लग जाना चाहिए था, जब हमने जम्मू-कश्मीर में भारी बदलाव किए थे। हमें मालूम था कि वहां के भौगोलिक पेंच में एक तीसरा पक्ष चीन भी है।

गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में यह बयान देकर कोई भी रास्ता नहीं छोड़ा कि ‘हम अपनी जान की बाज़ी लगाकर भी अक्साई चीन को हासिल करके रहेंगे।’ इसके बाद नए नक्शे आए, ‘सीपीईसी’ (चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) को भारतीय क्षेत्र से बनाने पर और मौसम की रिपोर्ट पर आपत्तियां आईं। लद्दाख-अक्साई चीन में 1962 के बाद से भौगोलिक दृष्टि से यथास्थिति जैसी बनी हुई थी।


मैं यह नहीं जानता चीनी सेना एलएसी के उस ओर है या इस ओर। मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि इसका अनुमान 5 अगस्त 2019 को ही लगा लेना चाहिए था और तैयारी भी तभी कर लेनी चाहिए थी। इन 60 वर्षों में जो कुछ हुआ है, उन्हीं की तरह चीनी कदमों को भी अप्रत्याशित नहीं मान सकते। और जहां तक इन कदमों को उठाने का समय चुनने की बात है, तो उसे बस बर्फ के पिघलने का इंतज़ार था।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)



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शेेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’


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लालच और वैश्वीकरण ने हमें कोविड-19 और दूसरी विपदाओं के लिए जिम्मेदार बना दिया है

हाल के हफ्तों में हमें यह पता चला है कि दुनिया नाजुक है। पिछले 20 सालों में हम लगातार इंसान निर्मित और प्राकृतिक प्रतिरोधों (बफर) व नियमों को लगातार हटाते रहे, जो पर्यावरणीय, भूराजनीतिक या वित्तीय तंत्रों के संकट में पड़ने पर हमारी रक्षा करते थे। तकनीक के भारी इस्तेमाल से हमने ‌वैश्वीकरण को पहले से कहीं तेज, सस्ता व गहरा कर दिया है। कौन जानता था कि चीन के वुहान से अमेरिका के लिए सीधी उड़ानें थीं?

इन बातों को एकसाथ देखें तो आपको ऐसी दुनिया मिलेगी जिसे एेसे झटकों से ज्यादा खतरा है, जिन्हें नेटवर्क्ड कंपनियां और लोग दुनियाभर में फैला सकते हैं। यह कोरोना से और स्पष्ट हो गया है। लेकिन दुनिया को अस्थिर करने वाला यह ट्रेंड पिछले 20 सालों से बन रहा है: 9/11, 2008 की महामंदी, कोरोना और जलवायु परिवर्तन। महामारियां अब सिर्फ जैविक नहीं रह गईं। वे अब भू-राजनैतिक, वित्तीय और वायुमंडलीय हो गई हैं।

इनमें पैटर्न देखिए। मेरे द्वारा उल्लेखित हर संकट के पहले हमें एक ‘हल्का’ झटका मिलता है, जो सावधान करता है कि हमने प्रतिरोध हटा दिया है। हालांकि हर मामले में हमने चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया और संकट ने पूरी दुनिया को घेर लिया। ‘इंडिस्पेंसेबल: व्हेन लीडर्स रियली मैटर’ के लेखक गौतम मुकुंदा कहते हैं, ‘हमने वैश्वीकरण वाले नेटवर्क बना लिए क्योंकि वे हमें ज्यादा दक्ष और उत्पादक बनाकर जिंदगी आसान कर सकते हैं। लेकिन जब आप लगातार प्रतिरोध और स्वयं की अतिरिक्त क्षमता को खत्म करते हैं और कुछ समय की दक्षता पाने या लालच के लिए संरक्षक बढ़ाते जाते हैं, तो आप न सिर्फ तंत्रों को झटके के प्रति कम सहनशील बनाते हैं, बल्कि झटकों को हर ओर फैला देते हैं।’

शुरुआत 9/11 से करते हैं। आप अलकायदा और ओसामा को राजनीतिक रोगाणु की तरह देख सकते हैं। यह रोगाणु कैसेट टेप्स और फिर इंटरनेट के जरिए पाकिस्तान, उत्तर अफ्रीका, यूरोप, भारत और इंडोनेशिया तक फैल गया। पहली चेतावनी 26 फरवरी 1993 को मिली जब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की बिल्डिंग के नीचे एक वैन से धमाका किया गया। इसके बाद जो होता गया, हम सब जानते हैं। अलकायदा का वायरस इराक और अफगानिस्तान से होते हुए रूप बदलता रहा और आईएसआईएस में बदल गया।

फिर 2008 में आई महामंदी। वैश्विक बैंकिंग संकट भी इसी तरह फैला। ‘लॉन्ग टर्म कैपिटल मैनेजमेंट’ नाम के वायरस से इसकी चेतावनी मिली, जो कि 1994 में आया एक हेज फंड था, जिसने बहुत कमाई का लालच दिया। इसे जैसे-तैसे रोका गया। लेकिन हमने कोई सबक नहीं लिया एक दशक बाद आर्थिक महामंदी आ गई। दुर्भाग्य से लालच के लिए कोई हर्ड इम्यूनिटी नहीं है।

कोविड-19 की चेतावनी 2002 में सार्स के रूप में आई थी, पर हम चेते नहीं। सार्स के लिए जिम्मेदार कोरोनावायरस भी चमगादड़ों और पाम सिवेट्स में पाया गया था और इंसानों में इसलिए पहुंचा क्योंकि हम घनी शहरी आबादी पर जोर दे रहे हैं और प्राकृतिक प्रतिरोध खत्म कर रहे हैं।

सार्स चीन से हांगकांग एक प्रोफेसर के जरिए पहुंचा था, जो एक होटल के कमरा नंबर 911 में रुके थे। जी हां 911! बहुत से लोग जलवायु परिवर्तन को गंभीर नहीं मानते हैं। हर मौसम अपनी तीव्रता बढ़ा रहा है। इनसे जुड़े घटनाक्रम लगातार हो रहे हैं और महंगे पड़ रहे हैं। कोविड-19 से अलग हममें वे एंडीबॉडी हैं जो हमें जलवायु परिवर्तन के साथ रहने और उसे कम करने में मदद कर सकती हैं। अगर हम प्राकृतिक प्रतिरोधों को सरंक्षित करें तो भी हमें हर्ड इम्यूनिटी मिल जाएगी।

इन चारों वैश्विक आपदाओं की यात्रा यांत्रिक और अपरिहार्य लग सकती है। लेकिन ऐसा नहीं था। यह केवल विभिन्न विकल्पों, मूल्यों को चुनने के बारे में था, जिन्हें हमारे ‌वैश्वीकरण के युग में अलग-अलग समय पर इंसानों और उनके नेताओं ने चुना या नहीं चुना। तकनीकी रूप से कहें तो वैश्वीकरण निश्चित था। लेकिन हम उसे क्या आकार दें, यह तय नहीं है। वेंचर कैपिटलिस्ट और राजनीतिक अर्थशास्त्री निक हैनेयोर ने मुझसे एक दिन कहा था, ‘रोगाणुओं का आना तय है, लेकिन यह अपरिहार्य नहीं है कि वे महामारियों में बदलें।’

हमने दक्षता के नाम पर प्रतिरोधों को हटाने का फैसला लिया, हमने पूंजीवाद को फैलने दिया और सरकारों की क्षमताएं तब कम कर दीं, जब इनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। हमने महामारी में एक-दूसरे का सहयोग न करने का फैसला लिया, हमने अमेजन के जंगल काटने का फैसला लिया, हमने प्राचीन पारिस्थितिकी तंत्र में घुसपैठ कर वन्यजीवन का शिकार किया।

फेसबुक ने राष्ट्रपति ट्रम्प के भड़काऊ पोस्ट न हटाने का फैसला लिया, जबकि ट्विटर ने ऐसा किया। और बहुत से मुस्लिम धार्मिक नेताओं ने फैसला लिया कि वे भूतकाल को भविष्य को दफनाने देंगे, जबकि होना यह चाहिए कि भविष्य भूतकाल को दफनाए।

जरूरी सबक यह है कि जैसे-जैसे दुनिया आपस में ज्यादा गहराई से गुंथती जा रही है, हर किसी के व्यवहार का महत्व भी बढ़ता जा रहा है। उन मूल्यों का महत्व बढ़ रहा है जिन्हें एक-दूसरे पर निर्भर इस दुनिया में हम लाते हैं। और इसी के साथ ‘गोल्डन रूल’ भी पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। यानी दूसरों के साथ वैसा ही बर्ताव करें, जैसा बर्ताव हम अपने साथ चाहते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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थाॅमस फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में नियमित स्तंभकार


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अनलॉक-1.0 के बाद पटरी पर लौटती जिंदगी में अब हमें अपने जीने के तरीकों को बदलना होगा

जब ‘छूना’ वर्जित हो जाए और जीवन के लिए जरूरी ‘सांस’ भी जोखिमभरी हो जाए तो पूरी मानवता ही मुश्किल में आ जाती है। जब तक वायरस को रोक नहीं लिया जाता, ‘कोरोना के साथ जीने’ वाली स्थिति रहेगी। इसके लिए ‘पॉज’ बटन नहीं, ‘रीसेट’ बटन की जरूरत है। मन और जीने के तरीकों को रीसेट करना होगा।

प्यू रिसर्च सेंटर के एक सर्वे में 91% अमेरीकियों ने कहा कि वायरस ने उनके जीवन को बदल दिया है। करीब 77% रेस्त्रां नहीं जाना चाहते और 66% राष्ट्रपति चुनावों में वोट के लिए लाइन में लगने को लेकर सहज नहीं हैं। यह सब एक सूक्ष्म जीवाणु का असर है। जब देश में संक्रमण का आंकड़ा एक लाख के पार हुआ तो आजादी की एक तड़प दिखी।

इसलिए लॉकडाउन 4.0 पहले से पूरी तरह अलग रहा। यह तड़प बताती है कि हम शायद वायरस का सामना करने के लिए तैयार हैं क्योंकि जीवन बहुत लंबे समय तक बंधन में रहने से कहीं ज्यादा है। इस वायरस के फैलने से एक व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए दूसरे पर निर्भरता का जरूरी अंतरसंबंध सामने आया है।

यही अब हमारे रवैये और व्यवहार का आधार होगा। हमें सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखते हुए, एक दूसरे से सार्थक ढंग से जुड़े रहने और हर संभव मदद करने की जरूरत है। कोरोना के बाद क्लासरूम की जगह घरों ने ले ली है, सेमीनार वेबिनार में बदल गए हैं। एक स्वस्थ डिजिटल लाइफ उभर रही है, हालांकि इन साधनों तक सभी की बराबर पहुंच अभी मुद्दा है। नई आदतें कोरोना के साथ जीने के लिए जरूरी हैं।

लोगों की जिंदगियां बचाते हुए अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार इस समय मुख्य चुनौती है। पिछली शताब्दी के महामंदी के बाद अब वैश्विक अर्थव्यव्स्था ऐसी गंभीर गिरावट देख रही है। उत्पादन के केंद्र और अन्य आर्थिक गतिविधियां, इनमें शामिल लोगों की पूरी सुरक्षा के साथ ही शुरू हों।

कम समय में तेजी से पुराने उत्पादन स्तर को पाने की कोशिश की जगह धीरे-धीरे काम की नीति बेहतर होगी। इस वायरस ने स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर की अपर्याप्तता को सामने लाकर जनस्वास्थ्य पर जरूरी निवेश की आवश्यकता को भी रेखांकित किया है।

वायरस का फैलाव हमारे देश के आपसी सहयोग वाले संघवाद को भी सामने लाया है, जहां केंद्र और राज्य स्तर के नेतृत्व ने एक-दूसरे की बिंदुओं को लॉकडाउन 1.0 से 4.0 तक में समायोजित किया। यही भावना आर्थिक पुनरुद्धार के लिए उठाए जाने वाले कदमों का भी मार्गदर्शन करेगी। ऐसी परिस्थिति का सामना करने में बेहतर नतीजों के लिए शासन के तीसरे स्तर और स्थानीय समुदायों को भी और सशक्त करने की जरूरत है।
इतिहासकार और लेखक युवाल नोआ हरारी ने दुख जताया है कि कोविड-19 को लेकर वैश्विक प्रतिक्रिया आदर्श नहीं रही है। हर देश वायरस के खिलाफ अपनी खुद की लड़ाई लड़ रहा है, जबकि जरूरत सामूहिक वैश्विक प्रतिक्रिया की थी। इससे वे देश प्रभावित हो रहे हैं, जहां संसाधन कम हैं।

वायरस के विस्फोट की वजह से तकनीक तक पहुंच, आय के स्तर और जीविका से जुड़ी असुरक्षा आदि से संबंधित मौजूदा असमानताओं पर भी ध्यान गया है। कुल मिलाकर कोरोना वायरस हमारे लिए ‘शॉक ट्रीटमेंट’ की तरह है। यह हमें सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और वैश्विक दृष्टिकोणों को रीसेट करने के अलावा एक-दूसरे और प्रकृति संग एकता से रहने की भी याद दिला रहा है।



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एम. वैंकैया नायडू, उपराष्ट्रपति


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वापसी के बाद खिलाड़ियों के ट्रेनिंग शेड्यूल में बड़े बदलाव होंगे, सोशल डिस्टेंसिंग के बीच प्रैक्टिस करनी होगी 

कोरोना वायरस के चलते टोक्यो ओलिंपिक एक साल के लिए टल गया है। कई खेलों के बड़े टूर्नामेंट भी स्थगित हो चुके हैं। देश में स्टेडियम और स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स तो खुल गए हैं। लेकिन, खेल गतिविधियां बड़े स्तर पर शुरू नहीं हुई हैं। खिलाड़ियों के लिए यह दौर संकट से कम नहीं है, क्योंकि उन्हें रिदम में लौटने के लिए नए सिरे से तैयारी करनी होगी।

इसके लिए अलग-अलग खेलों के विशेषज्ञों ने खिलाड़ियों की वापसी के लिए स्पेसिफिक ट्रेनिंग प्लान बनाया है, जिसमें फिजिकल ट्रेनिंग के साथ-साथ मेंटल सपोर्ट भी शामिल है। ट्रेनिंग शेड्यूल में सोशल डिस्टेंसिंग और सैनिटाइजेशन को भी शामिल किया गया है। क्रिकेट, एथलेटिक्स, बॉक्सिंग, टेनिस, रेसलिंग, वेटलिफ्टिंग, बैडमिंटन, फुटबॉल और हॉकी के विशेषज्ञों ने बताया कि खिलाड़ियों का शेड्यूल कैसा होगा।

क्रिकेट: ट्रेनिंग के पहले जजमेंट करेंगे, फिर मोटर स्किल्स पर काम करेंगे
काफी दिन तक प्रैक्टिस नहीं करने से क्रिकेटरों के प्रदर्शन और उसके स्तरमें गिरावट आई है। उसे पहले जैसा बनाने के लिए अलग-अलग पार्ट में मेंटल सपोर्ट के साथ फिटनेस ट्रेनिंग देंगे। ऐसा नहीं करने पर खिलाड़ी के मेंटल ब्रेकडाउन होने का खतरा रहता है। ट्रेनिंग के पहले जजमेंट करेंगे और फिर मोटर स्किल्स (स्पीड, स्ट्रेंथ, एंड्यूरेंस) पर काम करेंगे। मसल मेमोरी डेवलप कर खिलाड़ी की गेंद के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाएंगे।
-डॉ. पल्लब दास गुप्ता, हाईपरफॉर्मेंस मैनेजर, साई कोलकाता के क्रिकेट कोच

टेनिस: टेक्निकल और टेक्टिकल लेवल सुधारने पर काम करेंगे
टेनिस ओपन स्पोर्ट्स है। यहां खिलाड़ियों के बीच वैसे भी दूरी रहती ही है। खिलाड़ियों ने पिछले दो माह में रेस्ट के साथ फिजिकल और मेंटल लेवल पर बहुत काम किया है। अब हम उनका टेक्निकल और टेक्टिकल लेवल सुधारने पर काम करेंगे। आने वाले टूर्नामेंट को देखते हुए प्री-कॉम्प्टिीशन फेज, पोस्ट कॉम्प्टिीशन फेज, एक्टिव रेस्ट और पेसिव रेस्ट फेज से ट्रेनिंग देंगे। इससे खिलाड़ी दो हफ्ते में रिदम में आ जाएगा।
- साजिद लोधी, पूर्व कोच, नेशनल जूनियर टेनिस टीम

रेसलिंग: टेक्नीक की ट्रेनिंग अलग-अलग कैटेगरी में बांटकर दी जाएगी
पहलवानों को मेट पर बुल्गारियन और इंडियन डमी के साथ ऑन द मैच तकनीककी प्रैक्टिस कराएंगे। इससे खिलाड़ी बिना कनेक्टिविटी के हिप थ्रो, फ्रंट साल्तो, भारंदाज और वार्मअप थ्रो के साथ प्रैक्टिस पूरी कर फार्म में लौट सके। कोविड-19 के कारण दो माह के लंबे रेस्ट पीरियड में रेसलर फिजिकली रूप से बहुत स्ट्रांग हैं। इसलिए इस पर ज्यादा फोकस करने की जरूरत नहीं है। टेक्नीक की ट्रेनिंग अलग-अलग कैटेगरी में ही बांटकर दी जाएगी।
- प्रदीप शर्मा, कोच, सीनियर नेशनल महिला कुश्ती टीम

बैडमिंटन: स्टेंडिंग स्ट्रोक और मूमेंट ट्रेनिंग से कॉन्फिडेंस वापस लौटेगा
खिलाड़ियों के स्टेंडिंग स्ट्रोक के लिए छोटे-छोटे प्रैक्टिस सेशन बनाए हैं, जिसमें वे कोर्ट पर स्मैश, ड्रॉप शॉट, फोरहैंड और बैक हैंड के साथ कई पोजीशन पर काम करेंगे। ऐसा करने से उनका कॉन्फिडेंस लेवल तो बढ़ेगा ही। साथ ही साथ वे कम समय में मूमेंट ट्रेनिंग भी पूरी कर सकेंगे। पुरानी पोजीशन में लौटने में खिलाड़ियों को एक-दो हफ्ते लगेंगे।
- संजय मिश्रा, भारतीय जूनियर बैडमिंटन टीम के कोच

हॉकी: बेसिक ट्रेनिंग से शुरुआत करेंगे, ताकि स्टिक पर होल्ड आ जाए
लॉकडाउन में आराम के बाद खिलाड़ियों को लय में लाने के लिए स्टॉपिंग, हिटिंग, पुशिंग, रिसीविंग, शूटिंग, पासिंग टाइमिंग और पासिंग एक्यूरेसी जैसी बेसिक ट्रेनिंग से शुरुआत की जाएगी। इसके अलावा आसान स्किल्स के जरिए खिलाड़ियों को प्रैक्टिस मोड में लाया जाएगा, जिससे उसका स्टिक पर होल्ड आ जाए। एकाएक लोड देने पर खिलाड़ी चोटिल हो सकता है।
-शिवेंद्र सिंह चौधरी, कोच हॉकी इंडिया और पूर्व ओलिंपियन

एथलेटिक्स: चेनिंग और शेपिंग मैथड से प्रदर्शन सुधारेंगे
खिलाड़ियों को टीचिंग प्रोगेशन के साथ चेनिंग और शेपिंग मैथड पर काम करना होगा। एंड्यूरेंस स्पोर्ट्स (लॉन्ग डिस्टेंस इवेंट), फील्ड इवेंट (जंपिंग-थ्रो) और स्प्रिंट इवेंट (शॉर्ट डिस्टेंस इवेंट और हर्डल्स) के एथलीट शुरुआती स्टेज में इंटेंसिटी मेंटेन कर तैयारी करेंगे। इसके बाद ही उनका आत्मविश्वास और कॉर्डिनेशन बढ़ेगा। ट्रेनिंग का यह पार्ट सभी के लिए अलग-अलग होगा।
- प्रो. जेपी भूकर, लेवल-2 कोच, वर्ल्ड एथलेटिक्स

बॉक्सिंग: तीन फेज की पीक ट्रेनिंग शुरू की जाएगी
बॉक्सर ने लॉकडाउन के बीच भी घर पर रहकर फिजिकल फिटनेस पर काम किया है। वह रिंग से दूर रहा है। लेकिन, इसका फिटनेस पर असर सिर्फ 5 या 10 प्रतिशत ही आया हाेगा। टूर्नामेंट शेड्यूल आते ही तीन फेज की पीक ट्रेनिंग शुरू हो जाएगी। इसमें विरोधी को ध्यान में रखकर फिटनेस के साथ स्किल और गेम इम्प्रूवमेंट करने पर काम किया जाता है। तीसरे और अंतिम फेज में बॉक्सर फुल पीक पर रहता है, जिसमें उसे खेलना होता है।
- महावीर सिंह, द्रोणाचार्य अवार्डी और नेशनल महिला बॉक्सिंग टीम के कोच

फुटबॉल: खिलाड़ी की ट्रेनिंग की मॉनिटरिंग की जाएगी
खिलाड़ी ने लॉकडाउन में कैसी ट्रेनिंग की है, इसे देखने के बाद ही उसकी नए सिरे से ट्रेनिंग शुरू होगी। पावर ट्रेनिंग, फिजिकल डेवलपमेंट टेक्नीक और गेंद के साथ फिजिकल ट्रेनिंग कर खिलाड़ी को वापस रिदम में लाने की कोशिश की जाएगी। ट्रेनिंग की मॉनिटरिंग भी की जाएगी, ताकि पता चल सके कि किस खिलाड़ी को कब और कैसी ट्रेनिंग करनी है। इसके बाद ही खिलाड़ी मैदान पर गेंद से तालमेल बिठा सकेगा।
- डॉ. प्रदीप दत्ता, फीफा इंस्ट्रक्टर

वेटलिफ्टिंग: हर खिलाड़ी के लिए बनेगा पीरियोडाइसेशन प्रोग्राम
खिलाड़ी का लॉकडाउन से पहले और अभी फिटनेस लेवल क्या है, इसका वैल्यूएशन होगा। इसके बाद उसका लेवल किस-किस कैटेगरी में नीचे गया, उस पर फोकस कर काम किया जाएगा। इसके लिए पीरियोडाइसेशन प्रोग्राम की मदद ली जाएगी। वैसे वेटलिफ्टिंग इंडिविजुअल स्पोर्ट्स है, जिसमें खिलाड़ी को अकेले ही ट्रेनिंग पूरी करनी होती है। अन्य खेलों की तुलना में उस पर ज्यादा इफेक्ट नहीं पड़ा।
- प्रो. विल्फ्रेड वाज, डायरेक्टर ऑफ फिटनेस सेंटर, एलएनआईपीई



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खिलाड़ियों के लिए यह दौर संकट से कम नहीं है, क्योंकि उन्हें रिदम में लौटने के लिए नए सिरे से तैयारी करनी होगी। -प्रतीकात्मक फोटो


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झारखंड के कटहल को लंदन और भिंडी को दुबई भेजने की तैयारी; किसानों की आय तिगुनी होगी, रांची की सब्जियों से होगी शुरुआत

लॉकडाउन की वजह से नुकसान उठाने वाले किसान अपनी सब्जी को विदेश भेज सकेंगे। झारखंड में उपजी सब्जियां कटहल, भिंडी, करेला, गोभी, कद्दू आदिकोसिंगापुर, कतर, सऊदी अरब, लंदन सहित कई यूरोपीय देशों में निर्यात करने की तैयारी है। इससे सब्जी उत्पादक किसानों की आय 3 गुना तक बढ़ जाएगी।

पिछले साल राज्य से भिंडी, बीन्स थोड़ी मात्रा में दुबई व कतर में निर्यात की गई है। गुणवत्ता की वजह से यहां के सब्जियों की मांग ज्यादा है। यहां की सब्जियों की तारीफ कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) की वार्षिक रिपोर्ट में भी की गई है। कृषि बाजार समिति ने पूरी तैयारी कर ली है। दो तीन महीनों में निर्यात शुरू हो जाएगा।

सब्जियों को दूसरे देशों में भेजने के लिए भारत सरकार के वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले प्राधिकरण एपीडा ने भी प्रयास शुरू कर दिए हैं। इसके लिए एक्सपोर्टर कंपनी ऑल सीजन फॉर्म फ्रेश का सहयोग लिया जा रहा है।

समिति के पणन सचिव अभिषेक आनंद ने बताया कि झारखंड में सब्जियों को उगाने का ईको सिस्टम अच्छा होने और फर्टिलाइजर का उपयोग नहीं किए जाने से ये उच्च गुणवत्ता की होती हैं। शुरुआत में रांची व आसपास के क्षेत्रों की सब्जियां एक्सपोर्ट की जाएंगी।

झारखंड में विभिन्न सब्जियों का 40 लाख मीट्रिक टन उत्पादन

1. झारखंड के ड्रम स्टिक (सहजन की फली) और कटहल को पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, दिल्ली में काफी पसंद किया जाता है।
2. झारखंडमें विभिन्न सब्जियों का करीब 40 लाख मीट्रिक टन उत्पादन प्रति वर्ष होता है। झारखंड में सब्जियों की उत्पादकता 14.8 एमटी प्रति हेक्टेयर है।
3. राज्य में आलू, मटर, टमाटर, बैंगन, गोभी, बीन्स, भिंडी, कद्दू, करैला, ब्रोकली, हरी मिर्च, कटहल, ड्रम स्टिक, गिलकी सहित अन्य सब्जियों का भरपूर उत्पादन होता है।

कटहल व गोभी पिछले वर्ष दूसरे राज्य भेजे गए

पिछले साल पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, मुंबई, ओडिशा, हैदराबाद, छत्तीसगढ़ व बिहार में फ्रेंच बीन्स 1250 टन, मटर की फली 1200 टन, फूल गोभी 1800 टन, बंद गोभी 480 टन, शिमला मिर्च 800 टन, हरी मिर्च 600 टन, बैंगन 500 टन, कटहल 2100 टन, कद्दू 1080 टन, खीरा 600 टन व मूली 500 टन के अलावा टमाटर और अन्य सब्जियां भी भेजी गईं।
नोट: ये झारखंड की कृषि बाजार समिति के अनुमानित आंकड़े हैं।



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पिछले साल राज्य से भिंडी, बीन्स थोड़ी मात्रा में दुबई व कतर में निर्यात की गई है। गुणवत्ता की वजह से यहां के सब्जियों की मांग ज्यादा है।


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टेलीकॉम कंपनियां 1 जीबी डेटा 4 से बढ़ाकर 35 रुपए तक, नए सिम 75 रुपए में बेचना चाहती हैं, फ्री एप को भी बंद करने की तैयारी

दिसंबर 2019 में 30% तक कीमत बढ़ाने वाली टेलीकॉम कंपनियां फिर से डेटा की कीमत में इजाफा करना चाहती हैं। टेलीकॉम कंपनियों के संगठन सीओएआई का दावा है कि अभी कंपनियों को घाटा हो रहा है। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज की रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनियां चाहती हैं कि अभी एक जीबी डेटा के अधिकतम 4 रुपए लगते हैं उसकी कीमत 35 रुपए तक हो। यानी करीब 775% अधिक।

इतना ही नहीं, रिपोर्ट में हर सुविधा का एक निश्चित न्यूनतम रेट (फ्लोर प्राइस) फिक्स करने और बढ़ाने को कहा गया है। नई सिम खरीदने पर सबस्क्रिप्शन चार्ज, न्यूनतम फिक्स वॉयस कॉल चार्ज, फ्री एप की सुविधा बंद करने जैसी मांग भी रखी गई है।

टेलीकॉम कंपनियां चाहती है कि कीमत को ट्राई बढ़ाए, जिससे उनके बीच आपसी प्रतिस्पर्धा से नुकसान न हो। हालांकि, कोरोना के कारण इस पर ट्राई ने कोई मीटिंग नहीं की है।

फ्लोर प्राइस से सुनिश्चित होगा कि ये सेक्टर कितना टिकेगाः सीओएआई

सेलुलर ऑपरेटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) के डायरेक्टर जनरल राजन एस मैथ्यूज का कहना है कि टेलीकॉम सेक्टर के ऊपर सबसे ज्यादा वित्तीय दबाब है। ये तथ्य है कि भारतीय टेलीकॉम सर्विस का एवरेज रेवेन्यू प्रति यूजर (एआरपीयू) और टेरिफ दुनिया में सबसे सस्ता है। फ्लोर प्राइस से सुनिश्चित होगा कि ये सेक्टर कितना टिकेगा।

हम इस स्थिति में आ पाएं कि स्पेक्ट्रम और एडजेस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू(एजीआर) की उधारी चुका पाएं। टेलीकॉम इंडस्ट्री चाहती है कि इन सभी मुद्दों पर जल्द निर्णय हो।

टेलीकॉम ऑपरेटर्स को रेट बढ़ाने के लिएअनुमति की जरूरत नहींः ट्राई

रिपोर्ट के अनुसार, रिलायंस जियो 20 रुपए, भारती एयरटेल 30 रुपए एवं वोडाफोन आइडिया लिमिटेड एक जीबी डेटा का 35 रुपए न्यूनतम मूल्य करना चाहती हैं। अभी प्रति जीबी डेटा का अधिकतम चार्ज 4 रुपए है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के सचिव सुनील के गुप्ता ने भास्कर से कहा कि टेलीकॉम ऑपरेटर्स को रेट बढ़ाने के लिए किसी तरह की अनुमति की जरूरत नहीं है।

ये अलग बात है कि वो रेट बढ़ाते हैं, तो उन्हें स्पर्धा का सामना करना पड़ता है। जहां तक मुझे याद है कि सीओएआई का चर्चा के लिए एक पत्र आया था। अभी कई जरूरी काम हैं। समय निश्चित करके उनसे बात की जाएगी। ये तो सोचने की बात है कि तीनों टेलीकॉम कंपनी कहें कि उन्हें घाटा हो रहा है, फिर भी वो घाटा उठाती रहें तो ये समझ से परे है। क्या लंबे समय तक कोई घाटा उठा सकता है? हमें तथ्यों को देखना चाहिए।

  • एयरटेल, वोडाफोन आइडिया का प्रस्ताव है कि सब्स्क्रिप्शन फीस 40-75 रु. के बीच में होना चाहिए। अनलिमिटेड वॉयस कॉल चार्ज 60 रु. प्रतिमाह होना चाहिए। जियो के अनुसार, वॉयस कॉल का न्यूनतम शुल्क यूनिट बेसिस पर हो। ये कम से कम 6 पैसे प्रति मिनट होना चाहिए।
  • फ्लोर प्राइस को एयरटेल दो साल और रिलायंस जियो 3 साल के लिए लागू करने के बाद समीक्षा की बात कह रहे हैं। वहीं आइडिया सालाना समीक्षा चाहती है।
  • जियो ने प्रस्ताव दिया है कि अतिरिक्त सेवाओं का चार्ज लिया जाए, जो कम से कम उसके वास्तविक मूल्य के बराबर हो। इनमें वीडियो ऑन डिमांड एवं अन्य एप भी शामिल हैं, जिन पर मुफ्त का ऑफर है।
  • एयरटेल और वोडाफोन का कहना है कि टैरिफ ऐसे हों कि कम से कम 15% आरओसीई (नियोजित पूंजी पर वापसी) निकल सके। सभी ऑपरेटर्स ने कॉस्ट बेस्ड केल्कुलेशन को पुरातन बताते हुए खारिज कर दिया।
  • बीएसएनएल भी नियमानुसार न्यूनतम दर पर सहमत है। कंपनियों की योजना है कि अगर ट्राई दाम बढ़ाने पर निर्णय नहीं लेती हैं तो वे पैक की वैलिडिटी कम कर सकते हैं।

फायदा: इससे स्पीड और बेहतर होगी
अभी तक कंपनियां आपसी स्पर्धा के कारण एकतरफा टैरिफ नहीं बढ़ा पा रही हैं। प्रस्तावित फ्लोर प्राइस 5 गुना बढ़ा दी जाती है तो सर्विस में भी सुधार होगा, क्योंकि लोग आवश्यकता अनुसार डेटा का इस्तेमाल करेंगे, जिससे बेहतर डेटा स्पीड मिलेगी।

  • रिपोर्ट में बताए गए फ्लोर प्राइस के अनुसार, यह बढ़ाेतरी टेलीकॉम कंपनियों के लिए गेमचेंजर होगी। इससे ये अपने स्ट्रक्चर को नए सिरे से बना सकती हैं। फ्लोर प्राइस में तय दर से नीचे कोई भी कंपनी सस्ता प्लान नहीं दे सकती है।


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रिपोर्ट में टेलीकॉम कंपनियों द्वारा हर सुविधा का एक निश्चित न्यूनतम रेट (फ्लोर प्राइस) फिक्स करने और बढ़ाने को कहा गया है। -प्रतीकात्मक फोटो


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काेराेना मरीजों को रेमडेसिविर दवा देने की इजाजत, कीमत अभी तय नहीं, कंपनी ही यह निर्णय लेगी

भारत में कोरोना मरीजों के इलाज के लिए अमेरिकी कंपनी गिलियाड की दवा रेमडेसिविर के इस्तेमाल की इजाजत दे दी गई है। कंपनी इसे भारत में बना और बेच सकेगी। हालांकि, अभी आपातकालीन इस्तेमाल के तहत सिर्फ अस्पतालों में भर्ती मरीजों काे ही यह दवा दी जाएगी। दवा की कीमत अभी तय नहीं है।

पेटेंटेड हाेने के कारण कंपनी ही इसकी कीमत तय करेगी। भारत से पहले अमेरिका और जापान भी काेराेना मरीजाें पर इसके आपातकालीन इस्तेमाल की इजाजत दे चुके हैं।

रेमडेसिविर इंजेक्शन को भारत में इस्तेमाल करने की मंजूरी दीः सूत्र

स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, सोमवार को सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) ने काेराेना मरीजों के इलाज के लिए रेमडेसिविर इंजेक्शन को भारत में इस्तेमाल करने की मंजूरी दी। सीडीएससीओ की एक्सपर्ट कमेटी ने पिछले सप्ताह ही इस दवा काे इस्तेमाल के पहले क्लीनिकल ट्रायल से छूट दी थी।

गिलियाड ने भारत की दो दवा कंपनियों सिपला और हिटेरो से दवा के यहां निर्माण का समझौता किया है। दोनों कंपनियों ने भी सीडीएससीओ से दवा बनाने और बेचने की इजाजत मांगी है।देश में अभी कोरोना मरीजों को हाइड्राेक्सीक्लाेराेक्वीन और एजिथ्रोमाइसिन का काॅम्बिनेशन दिया जा रहा है।

यही दवा ठीक है या काॅम्बिनेशन में बदलाव की जरूरतः नीति आयोग

नीति आयोग के सदस्य सह कोविड टास्क फोर्स के चेयरमैन डॉ. वीके पॉल की अध्यक्षता वाली टीम रिव्यू कर रही है कि यही दवा ठीक है या काॅम्बिनेशन में बदलाव की जरूरत है।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन का बच्चों पर भी ट्रायल हाेगा
ऑक्सफाेर्ड यूनिवर्सिटी में तैयार की जा रही काेराेनावायरस की वैक्सीन का इस महीने बच्चाें पर भी ट्रायल किया जाएगा। वयस्काें पर हुए ट्रायल में छिटपुट साइड इफेक्ट ही दिखे थे। अब जून में शुरू हाेने वाले एडवांस्ड स्टेज के ट्रायल में 10,260 लाेगाें काे यह वैक्सीन लगाई जाएगी। इनमें से कई 5 से 12 साल तक की उम्र के बच्चे भी हैं।

ऑक्सफाेर्ड काेविड-19 वैक्सीन के लिए प्रवक्ता ने कहा कि आने वाले हफ्ताें में बच्चाें पर दवा के असर के बारे में अलग से जानकारी दी जाएगी। बच्चाें काे ट्रायल में शामिल करना इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्याेंकि कई देशाें में स्कूल खुल चुके हैं और भारत सहित कई देश आने वाले कुछ दिनाें में स्कूल खाेलने की तैयारियाें पर विचार कर रहे हैं।



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अभी आपातकालीन इस्तेमाल के तहत सिर्फ अस्पतालों में भर्ती मरीजों काे ही यह दवा दी जाएगी। दवा की कीमत अभी तय नहीं है। - प्रतीकात्मक फोटो


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ऑस्ट्रेलियाः हर गरीब को 7.5 लाख रुपए दे रही सरकार, लेकिन इनकी फर्जी पहचान बताकर पैसा चुरा रहे ऑनलाइन धोखेबाज

ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में रहने वाली एंगेली बैसेट पति के साथ बैंक पहुंचीं, तो पता चला कि उनके खाते से 15 लाख रुपए निकालने की कोशिश की गई है। बैंक ने बताया कि उनकी पहचान और दस्तावेज वेरिफाई किए गए थे। इससे वे और उनके पति हैरान रह गए और बताया कि उन्होंने ये नहीं किया है।

इस पर पेमेंट तुरंत रोक दिया गया और वे धोखाधड़ी का शिकार होने से बच गए। लेकिन, ऑस्ट्रेलिया में एंगेली जैसे हजारों लोग हैं, जो इस फ्रॉड का शिकार हो रहे हैं। एंगेली के मुताबिक, उन्हें लगता है कि सरकार को और ज्यादा सावधान और सख्त होने की जरूरत है, क्योंकि यह पैसा हमारे बजाय सरकार का ही है।

सरकार ने गरीबों की मदद के लिए लॉन्च की योजना

दरअसल, सरकार ने कोरोना संकट के दौरान कमजोर हुई लोगों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उन्हें मदद देने की योजना लॉन्च की है। पैसा जल्द पहुंचे इसके लिए इसे फास्ट रिलीज सुपर एन्युएशन स्कीम शुरू की है। इसके तहत हर गरीब या जरूरतमंद को करीब 7.5 लाख रुपए दिए जा रहे हैं।

अपराधियों नेसरकारी वेबसाइट से मिलती-जुलती साइट्स बना ली

अपराधियों की नजर इन्हीं पैसों पर है, जिसके लिए वे नए-नए तरीके आजमा रहे हैं। इसकी खामियों का फायदा उठाकर वे करोड़ों रुपए उड़ा चुके हैं। उन्होंने सरकारी वेबसाइट से मिलती-जुलती साइट्स बना ली है, जिन पर लोग अपनी डिटेल्स शेयर करते हैं।

वे इन डिटेल्स का दुरुपयोग कर फर्जी पहचान पत्र, दस्तावेज बना लेेते हैं और पैसों के लिए आवेदन कर देते हैं। अकेले पर्थ में ये धोखेबाज करीब 150 लोगों को धोखा दे चुके हैं और हफ्ते भर में करीब 11.50 करोड़ रुपए चुरा चुके हैं।

सरकार का दावाःशिकायतों के बाद सुरक्षा कड़ी कर दी गई

हालांकि, सरकार का दावा है कि शिकायतों के बाद सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। वेबसाइट पर दर्ज हो रहे खातों की संख्या सीमित कर दी गई है। लोगों के दस्तावेज कैसे चोरी हो रहे हैं इस पर गृह मंत्री पीटर डटन का कहना है कि हो सकता है कि टैक्स रिटर्न भरने के दौरान टैक्स एजेंसियों से ये जानकारी लीक या चोरी हुई हो।

पता चलने पर दो दिन स्कीम बंद की, पर चोरी जारी

एक टैक्स अधिकारी को शक होने के बाद धोखेबाजी पकड़ में आई। दरअसल, अपराधी सरकारी वेबसाइट से मिलती-जुलती वेबसाइट बनाकर लोगों की जानकारी चुरा रहे हैं। बाद में उसका इस्तेमाल कर खाते से पैसे निकाल लेते हैं। सरकार ने दो दिन वेबसाइट बंद की फिर सुरक्षा बढ़ाने और सख्त कदम उठाने का दावा किया, लेकिन धोखाधड़ी रुक नहीं रही।



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अपराधी सरकारी वेबसाइट से मिलती-जुलती वेबसाइट बनाकर लोगों की जानकारी चुरा रहे हैं। -प्रतीकात्मक फोटो


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झारखंड के कटहल को लंदन और भिंडी को दुबई भेजने की तैयारी; किसानों की आय तिगुनी होगी, रांची की सब्जियों से होगी शुरुआत

लॉकडाउन की वजह से नुकसान उठाने वाले किसान अपनी सब्जी को विदेश भेज सकेंगे। झारखंड में उपजी सब्जियां कटहल, भिंडी, करेला, गोभी, कद्दू आदिकोसिंगापुर, कतर, सऊदी अरब, लंदन सहित कई यूरोपीय देशों में निर्यात करने की तैयारी है। इससे सब्जी उत्पादक किसानों की आय 3 गुना तक बढ़ जाएगी।

पिछले साल राज्य से भिंडी, बीन्स थोड़ी मात्रा में दुबई व कतर में निर्यात की गई है। गुणवत्ता की वजह से यहां के सब्जियों की मांग ज्यादा है। यहां की सब्जियों की तारीफ कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) की वार्षिक रिपोर्ट में भी की गई है। कृषि बाजार समिति ने पूरी तैयारी कर ली है। दो तीन महीनों में निर्यात शुरू हो जाएगा।

सब्जियों को दूसरे देशों में भेजने के लिए भारत सरकार के वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले प्राधिकरण एपीडा ने भी प्रयास शुरू कर दिए हैं। इसके लिए एक्सपोर्टर कंपनी ऑल सीजन फॉर्म फ्रेश का सहयोग लिया जा रहा है।

समिति के पणन सचिव अभिषेक आनंद ने बताया कि झारखंड में सब्जियों को उगाने का ईको सिस्टम अच्छा होने और फर्टिलाइजर का उपयोग नहीं किए जाने से ये उच्च गुणवत्ता की होती हैं। शुरुआत में रांची व आसपास के क्षेत्रों की सब्जियां एक्सपोर्ट की जाएंगी।

झारखंड में विभिन्न सब्जियों का 40 लाख मीट्रिक टन उत्पादन

1. झारखंड के ड्रम स्टिक (सहजन की फली) और कटहल को पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, दिल्ली में काफी पसंद किया जाता है।
2. झारखंडमें विभिन्न सब्जियों का करीब 40 लाख मीट्रिक टन उत्पादन प्रति वर्ष होता है। झारखंड में सब्जियों की उत्पादकता 14.8 एमटी प्रति हेक्टेयर है।
3. राज्य में आलू, मटर, टमाटर, बैंगन, गोभी, बीन्स, भिंडी, कद्दू, करैला, ब्रोकली, हरी मिर्च, कटहल, ड्रम स्टिक, गिलकी सहित अन्य सब्जियों का भरपूर उत्पादन होता है।

कटहल व गोभी पिछले वर्ष दूसरे राज्य भेजे गए

पिछले साल पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, मुंबई, ओडिशा, हैदराबाद, छत्तीसगढ़ व बिहार में फ्रेंच बीन्स 1250 टन, मटर की फली 1200 टन, फूल गोभी 1800 टन, बंद गोभी 480 टन, शिमला मिर्च 800 टन, हरी मिर्च 600 टन, बैंगन 500 टन, कटहल 2100 टन, कद्दू 1080 टन, खीरा 600 टन व मूली 500 टन के अलावा टमाटर और अन्य सब्जियां भी भेजी गईं।
नोट: ये झारखंड की कृषि बाजार समिति के अनुमानित आंकड़े हैं।



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पिछले साल राज्य से भिंडी, बीन्स थोड़ी मात्रा में दुबई व कतर में निर्यात की गई है। गुणवत्ता की वजह से यहां के सब्जियों की मांग ज्यादा है।


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वायरस से उबरने के बाद महीनों तक भारी थकान और सांस की तकलीफ हो सकती है: ब्रिटेन की सबसे बड़ी एजेंसी की चेतावनी

कोरोना के मरीजों में कई महीनों तक अधिक थकान और सांस लेने की तकलीफ रह सकती है। यह अलर्ट ब्रिटेन की सबसे बड़ी सरकारी स्वास्थ्य एजेंसी नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) ने कोरोना मरीजों के लिए जारी किया है।

एनएचएस के वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोनावायरस का असर शरीर पर लम्बे समय तक रह सकता है। कोरोना से उबरने के बाद शरीर पर इसका बुरा असर कब तक रहेगा, फिलहाल इस पर रिसर्च की जा रही है।

सामान्य जीवन में नहीं लौट सकेंगे
मई में एनएचएस के वैज्ञानिकों ने कोरोना के गंभीर लक्षणों पर चर्चा की थी जिसमें स्ट्रोक, किडनी डिसीज और अंगों की घटती कार्यक्षमता पर बैठक चली थी।

बैठक में एनएचएस के वैज्ञानिकों का कहना था कि कोरोना के उबरने वाले ऐसे मरीजों की संख्या अधिक होगी जो वापस सामान्य जीवन में नहीं लौट सकेंगे।

यह मॉडल पूरे देश में लागू होगा
खासतौर पर कोरोना पीड़ितों के लिए बनाए गए एनएचएस हॉस्पिटल में पिछले सप्ताह, ऐसे मरीज रिकवर हुए जो इलाज के बाद लम्बे समय से कोरोना के असर से जूझ रहे थे।

एजेंसी का कहना है, यही मॉडल देश में अब कोरोना से उबरने वाले मरीजों के लिए अपनाया जाएगा ताकि उनकी मेंटल डिसऑर्डर, सांस लेने में तकलीफ और हृदय रोगों के कॉम्पिकेशन से लड़ने में मदद की जा सके

पिछले हफ्ते भी दी थी चेतावनी
एनएचएस ने पिछले हफ्ते एक अलर्ट जारी करते हुए कहा था कि जिन लोगों के शरीर में किसी तरह का डैमेज हुआ है उन्हें रिकवर करने में हम मदद करेंगे।

एनएचएस के चीफ एग्जीक्यूटिव सिमोन स्टीवेंस का कहना है, हमारा देश महामारी की चरम स्थिति से गुजर रहा है, अब हमें इससे उबरने के बाद दिखने वाले परिणामों से बचाव के तरीकों पर काम करने की जरूरत है।

कोरोना को हराने के बाद ऐसे ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ेगी
सिमोन स्टीवेंस के मुताबिक, कोरोना से उबरने वाले मरीजों को ट्रैकियोस्टॉमी वाउंड, हृदय और फेफड़ों के डैमेज रिपेयर करने वाली थैरेपी, मसल और सायकोलॉजिकल ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ सकती है।

वहीं, कुछ ऐसे मरीज भी हो सकते हैं जिन्हें सोशल सपोर्ट की जरूरत होगी। इसके लिए हमें तैयार रहने की जरूरत है।



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Coronavirus patients can suffer 'extreme tiredness and shortness of breath for months'


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ईरान का आरत 9 माह की उम्र से मेहनत कर रहा, अब मेसी की तरह खेलने का सपना

6 साल की उम्र में सिक्स पैक एब बनाने वाले आरतहोसैनी की खूबियां हैं। ये इंस्टाग्राम स्टार और सॉकर प्लेयर होने के साथ जिम्नास्ट भी हैं। इन्हें अक्सर लोग लड़कीसमझ बैठते हैं। ईरान के बाबोल शहर में रहने वाले आरतअपने सिक्स पैक एब और सॉकर के कारण सोशल मीडिया स्टार बन चुके हैं। जानिए छोटी सी उम्र इतना नाम कमाने वाले लिटिल चैम्पियन की कहानी...

सॉकर प्लेयर को बॉडी ने बनाया स्टार : आरत के पिता मोहम्मद ने इनकी ट्रेनिंग काफी कम उम्र में ही शुरू कर की थी। आरत ने 9 माह की उम्र से जिम्नास्टिक करना शुरू किया और दो साल की उम्र पूरी होने तक अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बन चुका था। आरत को सॉकर खेलना काफी पसंद है लेकिन वे चर्चा में अपनी बॉडी के कारण आए।
सोशल मीडिया स्टार :आरत का जन्म इंग्लैंड के लिवरपूल में हुआ था, अब वह लिवरपूल एकेडमी में स्पोर्ट्स ट्रेनिंग ले रहे हैं। सोशल मीडिया पर अरत की फैन फॉलोइंग काफी बड़ी है। सिर्फ इंस्टाग्राम पर इनके 4 मिलियन फॉलोवर हैं। इनकी लगभग हर एक पोस्ट पर मिलियन लाइक हैं।

इंस्टाग्राम पर डेब्यू:आरत के पिता का कहना है कि बेटे में अनोखे टैलेंट को देखने के बाद आसपास के लोगों ने सलाह दी कि इंस्टाग्राम पर उसका एक पेज बनाना चाहिए। पेज बनने के बाद तेजी से लोगों ने उसे पसंद किया और लाखों फॉलोवर जुड़ गए।

आरोपों का सामना किया :अरत के पिता पर कई बार यह आरोप भी लगे कि वह अपने बेटे से पैसे कमाने के लिए ऐसा करा रहे हैं। जिसका उन्होंने जवाब दिया, उनका कहना है कि बेटा हमेशा से एथलेटिक्स एक्टिविटीज में एक्टिव रहा है। मैंने सिर्फ एक पिता के तौर पर उसकी उन चीजों में मदद की है जो वह करना चाहता है।

लिओनल मेसी के फैन :आरत दीवार पर चढ़ने की कला में भी माहिर हैं। अब उनका सपना है कि बड़े होकर बार्सिलोना सॉकर क्लब के लिए खेलें। उनके पसंदीदा खिलाड़ियों में लिओनल मेसी शामिल हैं, और आरत मेसी की तरह की खेलना चाहते हैं। फोटो साभार: इंस्टाग्राम



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6-Year-Old Instagram Sensation Stuns Internet With His Chiseled Physique


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लद्दाख में चीन के रवैये का अनुमान तभी लग जाना था जब जम्मू-कश्मीर में बदलाव किए गए थे

आजादी के बाद से अब तक अगर हम चीन के साथ संबंध देखें तो ऐसा क्या है कि जिसके आधार पर हम उसे रहस्यमय मानेंगे? 1962 में उसने दो मोर्चों पर हम पर जो हमला किया वह हमारे नेताओं के लिए चौंकाने वाला रहा होगा, लेकिन ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वे भ्रम के शिकार थे।

उसके बाद से 1965 में पाकिस्तान के साथ हमारी 22 दिन की जंग में चीन की ‘उनके चुराए गए याक और भेड़ें लौटा दो’ की धमकी से लेकर इस साल लद्दाख सीमा पर उसकी तथाकथित ‘चौंकाने वाली’ हरकतों तक, भारत के मामले में चीन का हर कदम यही बताता है कि वह रहस्यमय तो बिल्कुल नहीं रहा है, बल्कि उसके हर कदम का पहले से अनुमान लगाया जा सकता है।

नाथु ला (सिक्किम) में 1967 में की गई चोट शायद भारत की प्रतिक्रिया देखने के लिए की गई थी। तब उसे लग रहा था कि 1962 और 1965 की लड़ाई, अकालों, अनाज के लिए विदेशी मदद पर निर्भर रहने, राजनीतिक अस्थिरता और इंदिरा गांधी का कद घटने से भारत अस्थिर हो गया होगा।

लेकिन भारत ने जो जवाब दिया, उससे उसने सबक सीखा और 53 वर्षों तक शांत रहा। क्या इसे चीन के रहस्यमय होने का सबूत मानेंगे? नहीं। उसने हमारी जांच-पड़ताल की और उसे करारा जवाब मिला।

फिर अलग-अलग समय पर विभिन्न तरीकों से गतिविधि करते हुए वह इंतज़ार करता रहा। 1960 के आसपास से अब तक के छह दशकों में चीन भारत के साथ रिश्तों को मर्जी से चलाता रहा है। उसने 1962 तक वो हासिल कर लिया था, जो चाहता था।

सच्चाई यह है कि लद्दाख में सामरिक रूप से जरूरी कुछ छोटे-छोटे टुकड़ों को छोड़कर, उसने लगभग पूरा कब्जा कर लिया था। उसने पूरी तरह से भारत के नियंत्रण में रहे अरुणाचल प्रदेश पर भी मालिकाना हक जताया, लेकिन सैन्य चुनौती नहीं दी। इस क्षेत्र और पूरी दुनिया में सत्ता समीकरण में बदलावों के आधार पर उसके तेवर बदलते रहे।

1986-87 में जब उसने देखा कि राजीव गांधी ने रक्षा बजट को अभूतपूर्व रूप से जीडीपी का 4% कर दिया तो उसने फिर वांगदुंग-सुमदोरोंग चू (अरुणाचल) में हमें आजमाया। उसे फिर करारा जवाब मिला और वह पीछे हट गया। इससे फिर यह सबक मिला कि वह बेवजह गोलियां नहीं चलाएगा, तब तक नहीं जब तक उसे आसानी से जीतने का भरोसा न हो। इससे पता चलता है कि उसकी हरकतों का अनुमान लगा सकते हैं।
आज के संदर्भ में दो हस्तियों से हुई बातचीत प्रासंगिक लगती है।

डॉ. मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री थे, उन्होंने कहा था कि चीन भारत को हमेशा अस्थिर रखने के लिए पाकिस्तान को मोहरा बना रहा है। हमारा भविष्य इस पर निर्भर है कि हम इस ‘त्रिभुजन’ का तोड़ निकालें। उनका सुझाव यह था कि हम पाकिस्तान से अच्छे रिश्ते बनाने की कोशिश करें।

लेकिन आज पाकिस्तान से दुश्मनी मोदी-भाजपा राजनीति का केंद्रीय तत्व बन गया है। यह पाकिस्तान से ज्यादा चीन से सुलह को तरजीह देगी। वैसे, लक्ष्य त्रिभुजन से बचना ही है। दूसरी बात वाजपेयी के साथ हुई थी, जिन्होंने चीन की वार्ता शैली का खुलासा किया था, ‘देखिए, आप-हम वार्ता कर रहे हैं। दोनों समाधान चाहते हैं। मैं कहूंगा कि थोड़ी रियायत कीजिए, आप मना कर देंगे। मैं कहूंगा, कुछ कम रियायत कर दीजिए, आप फिर मना कर देंगे। अंततः आप मान जाएंगे और उस थोड़े को गंवा देंगे। लेकिन चीन कभी ऐसा नहीं करेगा।’

ये दोनों नेता यही स्पष्ट करते हैं कि चीन अपनी बात पर कायम रहता है और उसका अनुमान लगाया जा सकता है। इसलिए उसने लद्दाख में जो किया है, उसका अनुमान हमें पिछले साल 5 अगस्त को ही लग जाना चाहिए था, जब हमने जम्मू-कश्मीर में भारी बदलाव किए थे। हमें मालूम था कि वहां के भौगोलिक पेंच में एक तीसरा पक्ष चीन भी है।

गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में यह बयान देकर कोई भी रास्ता नहीं छोड़ा कि ‘हम अपनी जान की बाज़ी लगाकर भी अक्साई चीन को हासिल करके रहेंगे।’ इसके बाद नए नक्शे आए, ‘सीपीईसी’ (चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) को भारतीय क्षेत्र से बनाने पर और मौसम की रिपोर्ट पर आपत्तियां आईं। लद्दाख-अक्साई चीन में 1962 के बाद से भौगोलिक दृष्टि से यथास्थिति जैसी बनी हुई थी।


मैं यह नहीं जानता चीनी सेना एलएसी के उस ओर है या इस ओर। मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि इसका अनुमान 5 अगस्त 2019 को ही लगा लेना चाहिए था और तैयारी भी तभी कर लेनी चाहिए थी। इन 60 वर्षों में जो कुछ हुआ है, उन्हीं की तरह चीनी कदमों को भी अप्रत्याशित नहीं मान सकते। और जहां तक इन कदमों को उठाने का समय चुनने की बात है, तो उसे बस बर्फ के पिघलने का इंतज़ार था।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)



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शेेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’


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लालच और वैश्वीकरण ने हमें कोविड-19 और दूसरी विपदाओं के लिए जिम्मेदार बना दिया है

हाल के हफ्तों में हमें यह पता चला है कि दुनिया नाजुक है। पिछले 20 सालों में हम लगातार इंसान निर्मित और प्राकृतिक प्रतिरोधों (बफर) व नियमों को लगातार हटाते रहे, जो पर्यावरणीय, भूराजनीतिक या वित्तीय तंत्रों के संकट में पड़ने पर हमारी रक्षा करते थे। तकनीक के भारी इस्तेमाल से हमने ‌वैश्वीकरण को पहले से कहीं तेज, सस्ता व गहरा कर दिया है। कौन जानता था कि चीन के वुहान से अमेरिका के लिए सीधी उड़ानें थीं?

इन बातों को एकसाथ देखें तो आपको ऐसी दुनिया मिलेगी जिसे एेसे झटकों से ज्यादा खतरा है, जिन्हें नेटवर्क्ड कंपनियां और लोग दुनियाभर में फैला सकते हैं। यह कोरोना से और स्पष्ट हो गया है। लेकिन दुनिया को अस्थिर करने वाला यह ट्रेंड पिछले 20 सालों से बन रहा है: 9/11, 2008 की महामंदी, कोरोना और जलवायु परिवर्तन। महामारियां अब सिर्फ जैविक नहीं रह गईं। वे अब भू-राजनैतिक, वित्तीय और वायुमंडलीय हो गई हैं।

इनमें पैटर्न देखिए। मेरे द्वारा उल्लेखित हर संकट के पहले हमें एक ‘हल्का’ झटका मिलता है, जो सावधान करता है कि हमने प्रतिरोध हटा दिया है। हालांकि हर मामले में हमने चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया और संकट ने पूरी दुनिया को घेर लिया। ‘इंडिस्पेंसेबल: व्हेन लीडर्स रियली मैटर’ के लेखक गौतम मुकुंदा कहते हैं, ‘हमने वैश्वीकरण वाले नेटवर्क बना लिए क्योंकि वे हमें ज्यादा दक्ष और उत्पादक बनाकर जिंदगी आसान कर सकते हैं। लेकिन जब आप लगातार प्रतिरोध और स्वयं की अतिरिक्त क्षमता को खत्म करते हैं और कुछ समय की दक्षता पाने या लालच के लिए संरक्षक बढ़ाते जाते हैं, तो आप न सिर्फ तंत्रों को झटके के प्रति कम सहनशील बनाते हैं, बल्कि झटकों को हर ओर फैला देते हैं।’

शुरुआत 9/11 से करते हैं। आप अलकायदा और ओसामा को राजनीतिक रोगाणु की तरह देख सकते हैं। यह रोगाणु कैसेट टेप्स और फिर इंटरनेट के जरिए पाकिस्तान, उत्तर अफ्रीका, यूरोप, भारत और इंडोनेशिया तक फैल गया। पहली चेतावनी 26 फरवरी 1993 को मिली जब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की बिल्डिंग के नीचे एक वैन से धमाका किया गया। इसके बाद जो होता गया, हम सब जानते हैं। अलकायदा का वायरस इराक और अफगानिस्तान से होते हुए रूप बदलता रहा और आईएसआईएस में बदल गया।

फिर 2008 में आई महामंदी। वैश्विक बैंकिंग संकट भी इसी तरह फैला। ‘लॉन्ग टर्म कैपिटल मैनेजमेंट’ नाम के वायरस से इसकी चेतावनी मिली, जो कि 1994 में आया एक हेज फंड था, जिसने बहुत कमाई का लालच दिया। इसे जैसे-तैसे रोका गया। लेकिन हमने कोई सबक नहीं लिया एक दशक बाद आर्थिक महामंदी आ गई। दुर्भाग्य से लालच के लिए कोई हर्ड इम्यूनिटी नहीं है।

कोविड-19 की चेतावनी 2002 में सार्स के रूप में आई थी, पर हम चेते नहीं। सार्स के लिए जिम्मेदार कोरोनावायरस भी चमगादड़ों और पाम सिवेट्स में पाया गया था और इंसानों में इसलिए पहुंचा क्योंकि हम घनी शहरी आबादी पर जोर दे रहे हैं और प्राकृतिक प्रतिरोध खत्म कर रहे हैं।

सार्स चीन से हांगकांग एक प्रोफेसर के जरिए पहुंचा था, जो एक होटल के कमरा नंबर 911 में रुके थे। जी हां 911! बहुत से लोग जलवायु परिवर्तन को गंभीर नहीं मानते हैं। हर मौसम अपनी तीव्रता बढ़ा रहा है। इनसे जुड़े घटनाक्रम लगातार हो रहे हैं और महंगे पड़ रहे हैं। कोविड-19 से अलग हममें वे एंडीबॉडी हैं जो हमें जलवायु परिवर्तन के साथ रहने और उसे कम करने में मदद कर सकती हैं। अगर हम प्राकृतिक प्रतिरोधों को सरंक्षित करें तो भी हमें हर्ड इम्यूनिटी मिल जाएगी।

इन चारों वैश्विक आपदाओं की यात्रा यांत्रिक और अपरिहार्य लग सकती है। लेकिन ऐसा नहीं था। यह केवल विभिन्न विकल्पों, मूल्यों को चुनने के बारे में था, जिन्हें हमारे ‌वैश्वीकरण के युग में अलग-अलग समय पर इंसानों और उनके नेताओं ने चुना या नहीं चुना। तकनीकी रूप से कहें तो वैश्वीकरण निश्चित था। लेकिन हम उसे क्या आकार दें, यह तय नहीं है। वेंचर कैपिटलिस्ट और राजनीतिक अर्थशास्त्री निक हैनेयोर ने मुझसे एक दिन कहा था, ‘रोगाणुओं का आना तय है, लेकिन यह अपरिहार्य नहीं है कि वे महामारियों में बदलें।’

हमने दक्षता के नाम पर प्रतिरोधों को हटाने का फैसला लिया, हमने पूंजीवाद को फैलने दिया और सरकारों की क्षमताएं तब कम कर दीं, जब इनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। हमने महामारी में एक-दूसरे का सहयोग न करने का फैसला लिया, हमने अमेजन के जंगल काटने का फैसला लिया, हमने प्राचीन पारिस्थितिकी तंत्र में घुसपैठ कर वन्यजीवन का शिकार किया।

फेसबुक ने राष्ट्रपति ट्रम्प के भड़काऊ पोस्ट न हटाने का फैसला लिया, जबकि ट्विटर ने ऐसा किया। और बहुत से मुस्लिम धार्मिक नेताओं ने फैसला लिया कि वे भूतकाल को भविष्य को दफनाने देंगे, जबकि होना यह चाहिए कि भविष्य भूतकाल को दफनाए।

जरूरी सबक यह है कि जैसे-जैसे दुनिया आपस में ज्यादा गहराई से गुंथती जा रही है, हर किसी के व्यवहार का महत्व भी बढ़ता जा रहा है। उन मूल्यों का महत्व बढ़ रहा है जिन्हें एक-दूसरे पर निर्भर इस दुनिया में हम लाते हैं। और इसी के साथ ‘गोल्डन रूल’ भी पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। यानी दूसरों के साथ वैसा ही बर्ताव करें, जैसा बर्ताव हम अपने साथ चाहते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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थाॅमस फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में नियमित स्तंभकार


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अनलॉक-1.0 के बाद पटरी पर लौटती जिंदगी में अब हमें अपने जीने के तरीकों को बदलना होगा

जब ‘छूना’ वर्जित हो जाए और जीवन के लिए जरूरी ‘सांस’ भी जोखिमभरी हो जाए तो पूरी मानवता ही मुश्किल में आ जाती है। जब तक वायरस को रोक नहीं लिया जाता, ‘कोरोना के साथ जीने’ वाली स्थिति रहेगी। इसके लिए ‘पॉज’ बटन नहीं, ‘रीसेट’ बटन की जरूरत है। मन और जीने के तरीकों को रीसेट करना होगा।

प्यू रिसर्च सेंटर के एक सर्वे में 91% अमेरीकियों ने कहा कि वायरस ने उनके जीवन को बदल दिया है। करीब 77% रेस्त्रां नहीं जाना चाहते और 66% राष्ट्रपति चुनावों में वोट के लिए लाइन में लगने को लेकर सहज नहीं हैं। यह सब एक सूक्ष्म जीवाणु का असर है। जब देश में संक्रमण का आंकड़ा एक लाख के पार हुआ तो आजादी की एक तड़प दिखी।

इसलिए लॉकडाउन 4.0 पहले से पूरी तरह अलग रहा। यह तड़प बताती है कि हम शायद वायरस का सामना करने के लिए तैयार हैं क्योंकि जीवन बहुत लंबे समय तक बंधन में रहने से कहीं ज्यादा है। इस वायरस के फैलने से एक व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए दूसरे पर निर्भरता का जरूरी अंतरसंबंध सामने आया है।

यही अब हमारे रवैये और व्यवहार का आधार होगा। हमें सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखते हुए, एक दूसरे से सार्थक ढंग से जुड़े रहने और हर संभव मदद करने की जरूरत है। कोरोना के बाद क्लासरूम की जगह घरों ने ले ली है, सेमीनार वेबिनार में बदल गए हैं। एक स्वस्थ डिजिटल लाइफ उभर रही है, हालांकि इन साधनों तक सभी की बराबर पहुंच अभी मुद्दा है। नई आदतें कोरोना के साथ जीने के लिए जरूरी हैं।

लोगों की जिंदगियां बचाते हुए अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार इस समय मुख्य चुनौती है। पिछली शताब्दी के महामंदी के बाद अब वैश्विक अर्थव्यव्स्था ऐसी गंभीर गिरावट देख रही है। उत्पादन के केंद्र और अन्य आर्थिक गतिविधियां, इनमें शामिल लोगों की पूरी सुरक्षा के साथ ही शुरू हों।

कम समय में तेजी से पुराने उत्पादन स्तर को पाने की कोशिश की जगह धीरे-धीरे काम की नीति बेहतर होगी। इस वायरस ने स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर की अपर्याप्तता को सामने लाकर जनस्वास्थ्य पर जरूरी निवेश की आवश्यकता को भी रेखांकित किया है।

वायरस का फैलाव हमारे देश के आपसी सहयोग वाले संघवाद को भी सामने लाया है, जहां केंद्र और राज्य स्तर के नेतृत्व ने एक-दूसरे की बिंदुओं को लॉकडाउन 1.0 से 4.0 तक में समायोजित किया। यही भावना आर्थिक पुनरुद्धार के लिए उठाए जाने वाले कदमों का भी मार्गदर्शन करेगी। ऐसी परिस्थिति का सामना करने में बेहतर नतीजों के लिए शासन के तीसरे स्तर और स्थानीय समुदायों को भी और सशक्त करने की जरूरत है।
इतिहासकार और लेखक युवाल नोआ हरारी ने दुख जताया है कि कोविड-19 को लेकर वैश्विक प्रतिक्रिया आदर्श नहीं रही है। हर देश वायरस के खिलाफ अपनी खुद की लड़ाई लड़ रहा है, जबकि जरूरत सामूहिक वैश्विक प्रतिक्रिया की थी। इससे वे देश प्रभावित हो रहे हैं, जहां संसाधन कम हैं।

वायरस के विस्फोट की वजह से तकनीक तक पहुंच, आय के स्तर और जीविका से जुड़ी असुरक्षा आदि से संबंधित मौजूदा असमानताओं पर भी ध्यान गया है। कुल मिलाकर कोरोना वायरस हमारे लिए ‘शॉक ट्रीटमेंट’ की तरह है। यह हमें सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और वैश्विक दृष्टिकोणों को रीसेट करने के अलावा एक-दूसरे और प्रकृति संग एकता से रहने की भी याद दिला रहा है।



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एम. वैंकैया नायडू, उपराष्ट्रपति


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वापसी के बाद खिलाड़ियों के ट्रेनिंग शेड्यूल में बड़े बदलाव होंगे, सोशल डिस्टेंसिंग के बीच प्रैक्टिस करनी होगी 

कोरोना वायरस के चलते टोक्यो ओलिंपिक एक साल के लिए टल गया है। कई खेलों के बड़े टूर्नामेंट भी स्थगित हो चुके हैं। देश में स्टेडियम और स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स तो खुल गए हैं। लेकिन, खेल गतिविधियां बड़े स्तर पर शुरू नहीं हुई हैं। खिलाड़ियों के लिए यह दौर संकट से कम नहीं है, क्योंकि उन्हें रिदम में लौटने के लिए नए सिरे से तैयारी करनी होगी।

इसके लिए अलग-अलग खेलों के विशेषज्ञों ने खिलाड़ियों की वापसी के लिए स्पेसिफिक ट्रेनिंग प्लान बनाया है, जिसमें फिजिकल ट्रेनिंग के साथ-साथ मेंटल सपोर्ट भी शामिल है। ट्रेनिंग शेड्यूल में सोशल डिस्टेंसिंग और सैनिटाइजेशन को भी शामिल किया गया है। क्रिकेट, एथलेटिक्स, बॉक्सिंग, टेनिस, रेसलिंग, वेटलिफ्टिंग, बैडमिंटन, फुटबॉल और हॉकी के विशेषज्ञों ने बताया कि खिलाड़ियों का शेड्यूल कैसा होगा।

क्रिकेट: ट्रेनिंग के पहले जजमेंट करेंगे, फिर मोटर स्किल्स पर काम करेंगे
काफी दिन तक प्रैक्टिस नहीं करने से क्रिकेटरों के प्रदर्शन और उसके स्तरमें गिरावट आई है। उसे पहले जैसा बनाने के लिए अलग-अलग पार्ट में मेंटल सपोर्ट के साथ फिटनेस ट्रेनिंग देंगे। ऐसा नहीं करने पर खिलाड़ी के मेंटल ब्रेकडाउन होने का खतरा रहता है। ट्रेनिंग के पहले जजमेंट करेंगे और फिर मोटर स्किल्स (स्पीड, स्ट्रेंथ, एंड्यूरेंस) पर काम करेंगे। मसल मेमोरी डेवलप कर खिलाड़ी की गेंद के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाएंगे।
-डॉ. पल्लब दास गुप्ता, हाईपरफॉर्मेंस मैनेजर, साई कोलकाता के क्रिकेट कोच

टेनिस: टेक्निकल और टेक्टिकल लेवल सुधारने पर काम करेंगे
टेनिस ओपन स्पोर्ट्स है। यहां खिलाड़ियों के बीच वैसे भी दूरी रहती ही है। खिलाड़ियों ने पिछले दो माह में रेस्ट के साथ फिजिकल और मेंटल लेवल पर बहुत काम किया है। अब हम उनका टेक्निकल और टेक्टिकल लेवल सुधारने पर काम करेंगे। आने वाले टूर्नामेंट को देखते हुए प्री-कॉम्प्टिीशन फेज, पोस्ट कॉम्प्टिीशन फेज, एक्टिव रेस्ट और पेसिव रेस्ट फेज से ट्रेनिंग देंगे। इससे खिलाड़ी दो हफ्ते में रिदम में आ जाएगा।
- साजिद लोधी, पूर्व कोच, नेशनल जूनियर टेनिस टीम

रेसलिंग: टेक्नीक की ट्रेनिंग अलग-अलग कैटेगरी में बांटकर दी जाएगी
पहलवानों को मेट पर बुल्गारियन और इंडियन डमी के साथ ऑन द मैच तकनीककी प्रैक्टिस कराएंगे। इससे खिलाड़ी बिना कनेक्टिविटी के हिप थ्रो, फ्रंट साल्तो, भारंदाज और वार्मअप थ्रो के साथ प्रैक्टिस पूरी कर फार्म में लौट सके। कोविड-19 के कारण दो माह के लंबे रेस्ट पीरियड में रेसलर फिजिकली रूप से बहुत स्ट्रांग हैं। इसलिए इस पर ज्यादा फोकस करने की जरूरत नहीं है। टेक्नीक की ट्रेनिंग अलग-अलग कैटेगरी में ही बांटकर दी जाएगी।
- प्रदीप शर्मा, कोच, सीनियर नेशनल महिला कुश्ती टीम

बैडमिंटन: स्टेंडिंग स्ट्रोक और मूमेंट ट्रेनिंग से कॉन्फिडेंस वापस लौटेगा
खिलाड़ियों के स्टेंडिंग स्ट्रोक के लिए छोटे-छोटे प्रैक्टिस सेशन बनाए हैं, जिसमें वे कोर्ट पर स्मैश, ड्रॉप शॉट, फोरहैंड और बैक हैंड के साथ कई पोजीशन पर काम करेंगे। ऐसा करने से उनका कॉन्फिडेंस लेवल तो बढ़ेगा ही। साथ ही साथ वे कम समय में मूमेंट ट्रेनिंग भी पूरी कर सकेंगे। पुरानी पोजीशन में लौटने में खिलाड़ियों को एक-दो हफ्ते लगेंगे।
- संजय मिश्रा, भारतीय जूनियर बैडमिंटन टीम के कोच

हॉकी: बेसिक ट्रेनिंग से शुरुआत करेंगे, ताकि स्टिक पर होल्ड आ जाए
लॉकडाउन में आराम के बाद खिलाड़ियों को लय में लाने के लिए स्टॉपिंग, हिटिंग, पुशिंग, रिसीविंग, शूटिंग, पासिंग टाइमिंग और पासिंग एक्यूरेसी जैसी बेसिक ट्रेनिंग से शुरुआत की जाएगी। इसके अलावा आसान स्किल्स के जरिए खिलाड़ियों को प्रैक्टिस मोड में लाया जाएगा, जिससे उसका स्टिक पर होल्ड आ जाए। एकाएक लोड देने पर खिलाड़ी चोटिल हो सकता है।
-शिवेंद्र सिंह चौधरी, कोच हॉकी इंडिया और पूर्व ओलिंपियन

एथलेटिक्स: चेनिंग और शेपिंग मैथड से प्रदर्शन सुधारेंगे
खिलाड़ियों को टीचिंग प्रोगेशन के साथ चेनिंग और शेपिंग मैथड पर काम करना होगा। एंड्यूरेंस स्पोर्ट्स (लॉन्ग डिस्टेंस इवेंट), फील्ड इवेंट (जंपिंग-थ्रो) और स्प्रिंट इवेंट (शॉर्ट डिस्टेंस इवेंट और हर्डल्स) के एथलीट शुरुआती स्टेज में इंटेंसिटी मेंटेन कर तैयारी करेंगे। इसके बाद ही उनका आत्मविश्वास और कॉर्डिनेशन बढ़ेगा। ट्रेनिंग का यह पार्ट सभी के लिए अलग-अलग होगा।
- प्रो. जेपी भूकर, लेवल-2 कोच, वर्ल्ड एथलेटिक्स

बॉक्सिंग: तीन फेज की पीक ट्रेनिंग शुरू की जाएगी
बॉक्सर ने लॉकडाउन के बीच भी घर पर रहकर फिजिकल फिटनेस पर काम किया है। वह रिंग से दूर रहा है। लेकिन, इसका फिटनेस पर असर सिर्फ 5 या 10 प्रतिशत ही आया हाेगा। टूर्नामेंट शेड्यूल आते ही तीन फेज की पीक ट्रेनिंग शुरू हो जाएगी। इसमें विरोधी को ध्यान में रखकर फिटनेस के साथ स्किल और गेम इम्प्रूवमेंट करने पर काम किया जाता है। तीसरे और अंतिम फेज में बॉक्सर फुल पीक पर रहता है, जिसमें उसे खेलना होता है।
- महावीर सिंह, द्रोणाचार्य अवार्डी और नेशनल महिला बॉक्सिंग टीम के कोच

फुटबॉल: खिलाड़ी की ट्रेनिंग की मॉनिटरिंग की जाएगी
खिलाड़ी ने लॉकडाउन में कैसी ट्रेनिंग की है, इसे देखने के बाद ही उसकी नए सिरे से ट्रेनिंग शुरू होगी। पावर ट्रेनिंग, फिजिकल डेवलपमेंट टेक्नीक और गेंद के साथ फिजिकल ट्रेनिंग कर खिलाड़ी को वापस रिदम में लाने की कोशिश की जाएगी। ट्रेनिंग की मॉनिटरिंग भी की जाएगी, ताकि पता चल सके कि किस खिलाड़ी को कब और कैसी ट्रेनिंग करनी है। इसके बाद ही खिलाड़ी मैदान पर गेंद से तालमेल बिठा सकेगा।
- डॉ. प्रदीप दत्ता, फीफा इंस्ट्रक्टर

वेटलिफ्टिंग: हर खिलाड़ी के लिए बनेगा पीरियोडाइसेशन प्रोग्राम
खिलाड़ी का लॉकडाउन से पहले और अभी फिटनेस लेवल क्या है, इसका वैल्यूएशन होगा। इसके बाद उसका लेवल किस-किस कैटेगरी में नीचे गया, उस पर फोकस कर काम किया जाएगा। इसके लिए पीरियोडाइसेशन प्रोग्राम की मदद ली जाएगी। वैसे वेटलिफ्टिंग इंडिविजुअल स्पोर्ट्स है, जिसमें खिलाड़ी को अकेले ही ट्रेनिंग पूरी करनी होती है। अन्य खेलों की तुलना में उस पर ज्यादा इफेक्ट नहीं पड़ा।
- प्रो. विल्फ्रेड वाज, डायरेक्टर ऑफ फिटनेस सेंटर, एलएनआईपीई



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खिलाड़ियों के लिए यह दौर संकट से कम नहीं है, क्योंकि उन्हें रिदम में लौटने के लिए नए सिरे से तैयारी करनी होगी। -प्रतीकात्मक फोटो


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