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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020
किसान आंदोलन से जुड़ी क्रिसमस की कहानी, मोदी की दाढ़ी ने बढ़ाई सांता की परेशानी
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अगर आप कोई बड़ा काम कर रहे हैं तो लोगों से मिलते-जुलते समय भी अपने लक्ष्य का ध्यान रखें
कहानी- रामायण में जब सीता का अपहरण हो गया तो श्रीराम और लक्ष्मण उनकी खोज कर रहे थे। बहुत कोशिशों के बाद भी सीता के बारे में कोई खबर नहीं मिल पा रही थी। दोनों भाई जंगल में भटक रहे थे। इस दौरान में शबरी के आश्रम में पहुंचे।
शबरी श्रीराम की भक्त थीं। उनके गुरु ने कहा था कि एक दिन यहां राम आएंगे तो वह आश्रम में उनका इंतजार कर रही थीं। जब श्रीराम-लक्ष्मण आश्रम में पहुंचे तो शबरी बहुत प्रसन्न हुईं। दोनों भाइयों को बैठाया, उन्हें भूख भी लग रही थी।
शबरी भोजन के लिए बेर लेकर आईं। बेर खट्टे न निकल जाएं इसलिए पहले वह खुद चखतीं और फिर श्रीराम को खाने के लिए देतीं। राम भी उस बेर को प्रेम से खा रहे थे, क्योंकि वे बेर मीठे होते थे।
ये देखकर लक्ष्मण को श्रीराम से दो शिकायतें हुईं। वे सोचने लगे कि राम खुद तो जूठे बेर खा रहे हैं और मुझे भी खिला रहे हैं। दूसरी शिकायत ये थी कि हमें सीताजी की खोज करनी है और भैया यहां आराम से बेर खा रहे हैं। तो क्या भैया ये बात भूल गए हैं कि हमें सीता को ढूंढना है।
श्रीराम ने जब बेर खा लिए तो उन्होंने शबरी से कहा, 'आप जो चाहती थीं, वह मैंने किया, हमने बेर खा लिए हैं। मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूं। हम सीता को ढूंढ रहे हैं। आप वन में रहती हैं, कृपया हमें आगे जाने का रास्ता बताइए।' शबरी ने श्रीराम को आगे जाने का सही रास्ता बताया।
लक्ष्मण को ये समझ आ गया कि भैया कितने सचेत हैं, वे शबरी के जूठे बेर प्रेम से खा रहे थे, उसके साथ अच्छी तरह बात भी की, लेकिन उन्हें अपना काम भी मालूम है।
सीख - हमें भी अपने मूल लक्ष्य का ध्यान हमेशा रखना चाहिए। लेकिन, अन्य लोगों के साथ समय व्यतीत करना हो, किसी जगह पर रुकना हो तो वह भी करें, लेकिन अपना काम न भूलें।
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चार दोस्तों ने नौकरी छोड़ ऑनलाइन कोर्स प्लेटफॉर्म शुरू किया, दो साल में 7 करोड़ पहुंचा टर्नओवर
संदीप सिंह, अनिरुद्ध सिंह, विजय सिंह और गौरव कक्कड़ चारों दोस्त हैं और पेशे से इंजीनियर। चारों एक ही कंपनी में काम करते थे। दो साल पहले चारों ने मिलकर एक ऑनलाइन कोर्स प्लेटफॉर्म लॉन्च किया। आज एक हजार से ज्यादा इनके कस्टमर्स हैं। पिछले 2 साल में 200 करोड़ से ज्यादा की सर्विसेज सेल की हैं। 6-7 करोड़ रुपए इनका सालाना टर्नओवर है। चार दोस्तों की सक्सेस स्टोरी को लेकर हमने संदीप सिंह से बात की...
संदीप सिंह कंप्यूटर इंजीनियर हैं। 2011 में IMS गाजियाबाद से बीटेक करने के बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में उनका कैम्पस प्लेसमेंट हो गया। पैकेज अच्छा था। वहां सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर तीन साल काम किया। इसके बाद उन्होंने खुद का काम शुरू करने का मन बनाया और 2014 में नौकरी छोड़ दी। अपने तीन दोस्तों के साथ मिलकर संदीप ने एक ई बुक पब्लिशिंग प्लेटफॉर्म लॉन्च किया, जो आगे चलकर ऑनलाइन कंटेंट क्रिएटर प्लेटफॉर्म में तब्दील हो गया।
31 साल के संदीप कहते हैं कि अनिरुद्ध सिंह और विजय सिंह मेरे बैचमेट थे और हमारा साथ में प्लेसमेंट भी हुआ था। यहां हमारी दोस्ती गौरव कक्कड़ से हुई, वो भी इंजीनियर थे। यहां काम करने के दौरान अक्सर खुद का काम शुरू करने का ख्याल मन में आता रहता था। फिर हम चारों ने तय किया कि खुद का बिजनेस शुरू किया जाए।
संदीप कहते हैं कि उस समय ई बुक पब्लिशिंग मार्केट में ग्रो कर रहा था और इसके लिए बहुत कम ही प्लेटफॉर्म उपलब्ध थे। हमने प्लान किया कि एक ऐसा प्लेटफॉर्म लॉन्च किया जाए जिस पर लोग ऑनलाइन और आसानी से बुक पब्लिश कर पाए। 2014 में हमने इसे लॉन्च भी कर दिया। लोगों का ठीक-ठाक रिस्पॉन्स मिला और हम अपना दायरा बढ़ाते गए। कई बड़े ऑर्गनाइजेशन और कोचिंग वाले हमारे कस्टमर्स बने।
संदीप बताते हैं कि 2016 में जियो लॉन्च हुआ और 2017 तक पूरे देश में छा गया। तब हमने रियलाइज किया कि अब लोग ई बुक की बजाय ऑनलाइन कंटेंट खासकर वीडियो कंटेंट देखना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। इसलिए हमें भी अब वीडियो कंटेंट प्लेटफॉर्म पर शिफ्ट होना चाहिए। हमने 2018 में स्पेई (Spayee) नाम से कोर्स प्लेटफॉर्म लॉन्च किया। सही मायने में कहा जाए तो हमारा काम यहीं से शुरू हुआ।
मार्केटिंग को लेकर संदीप कहते हैं, 'हमें इसको लेकर बहुत दिक्कत नहीं हुई। क्योंकि हम पहले से मार्केट में थे, बस काम थोड़ा अलग था। जो कस्टमर्स पहले से हमें जानते थे, उन्हीं से होते हुए नए कस्टमर्स बढ़ते गए। इसके साथ ही हमने गूगल पर एड्स लगाए और SEO की मदद से अपना दायरा बढ़ाया। आज आर्ट ऑफ लिविंग, रचना रानडे, कैरियर लॉन्चर जैसे ब्रांड्स ने हमारी सर्विसेज ली है। संदीप सेल्स और मार्केटिंग का काम देखते हैं। गौरव प्रोडक्ट और स्ट्रेटेजी, अनिरुद्ध मोबाइल टेक्नोलॉजी तो विजय प्रोडक्ट ऑर्किटेक्ट का काम संभालते हैं। साथ ही 30 लोगों की टीम है, जो इनके साथ काम करती है।
संदीप कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान हमें काफी फायदा हुआ। बड़ी संख्या में हमारे नए ग्राहक बने। जो काम हम एक साल में नहीं कर सके थे, वो काम हमने पिछले चार-पांच महीनों में कर दिया। इस दौरान ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स की डिमांड बढ़ गई थी। हमने कई नए फीचर लॉन्च किए, ऑनलाइन लाइव क्लासरूम की सुविधा हमने कस्टमर्स को प्रोवाइड की।
कैसे काम करता है स्पेई
संदीप बताते हैं हम कस्टमर्स को कंप्लीट ऑनलाइन कोर्स प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराते हैं। जैसे किसी को अपना कोई कोर्स ऑनलाइन सेल करना है, कोई कंटेंट या वीडियो ट्यूटोरियल ऑनलाइन सेल करना है, तो हम उसे सही प्लेटफॉर्म देते हैं ताकि वह अपना प्रोडक्ट सेल कर सके। वह हमारी वेबसाइट पर जाकर अपनी पसंद के मुताबिक सब्सक्रिप्शन ले सकता है।
वो बताते हैं कि जैसे आपको किसी सब्जेक्ट का कोर्स मटीरियल चाहिए, तो आप उसे गूगल पर ढूंढते हैं। जिसके बाद कुछ लिंक्स दिखते हैं, उनमें से किसी पर आप क्लिक करते हैं। फिर उसके बारे में पढ़ते हैं और अगर उसकी सर्विस पसंद आई, तो सब्सक्रिप्शन भी लेते हैं। ये जो पूरी प्रोसेस होती है उसे बैक एंड से मैनेज करने का काम हम करते हैं।
इस तरह के आइडिया पर काम करने को लेकर संदीप कहते हैं कि अपने इंडिया में बहुत कम ही प्लेटफॉर्म थे जहां ये सुविधा कस्टमर्स को मिलती थी। ज्यादातर कंपनियां विदेशी हैं। तो हमने सोचा कि क्यों न ग्लोबल मार्केट में एक भारतीय कंपनी को उतारा जाए, ताकि लोगों के पास ये विकल्प रहे कि वो अपने देश की कंपनी को चुन सकें।
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क्रिसमस पर मेहमानों के लिए केक के साथ पेश करें कर्ड पकौड़े, टेस्ट ऐसा कि सब रेसिपी पूछेंगे
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आज 9 करोड़ किसानों के खाते में 18 हजार करोड़ रु. ट्रांसफर करेंगे PM मोदी; कृषि कानूनों के फायदे भी बताएंगे
एक तरफ कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन चल रहा है, तो वहीं, केंद्र सरकार आज प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम किसान) की किश्त जारी करेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के 9 करोड़ किसानों के खाते में 18 हजार करोड़ रुपए की किश्त ट्रांसफर करेंगे। हर किसान के खाते में 2-2 हजार रुपए जाएंगे। इस दौरान प्रधानमंत्री 6 राज्यों के किसानों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बात भी करेंगे। इस कार्यक्रम को देशभर के 2 करोड़ से ज्यादा किसानों को दिखाया जाएगा।
आज का दिन क्यों चुना?
आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है। देशभर में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की ओर से कार्यक्रम कराए जाएंगे। इन कार्यक्रमों में केंद्रीय मंत्री, BJP शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक शामिल होंगे। किसानों के लिए चौपाल लगाई जाएगी और उन्हें प्रधानमंत्री का संबोधन दिखाया जाएगा। इस दौरान BJP कार्यकर्ता घर-घर जाकर कृषि कानूनों को लेकर लिखे गए कृषि मंत्री के लिखे पत्र को बांटेंगे।
हर साल 6 हजार रुपए किसानों को दिए जाते हैं
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत देशभर के किसानों को हर साल केंद्र सरकार की तरफ से 6 हजार रुपए 3 किश्तों में दिए जाते हैं। अब तक 10 करोड़ 96 लाख किसानों को इस योजना का लाभ मिल चुका है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने यह जानकारी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी। उन्होंने बताया कि PM मोदी किसानों को नए कृषि कानून की खूबियां भी बताएंगे। इस कार्यक्रम के लिए 22 दिसंबर तक देशभर के 2 करोड़ किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया है।
किसान आंदोलन का आज 30वां दिन
कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे किसानों के आंदोलन का आज 30वां दिन है। सरकार ने गुरुवार को एक और चिट्ठी लिखकर किसानों से बातचीत के लिए दिन और समय तय करने की अपील की। चिट्ठी में लिखा है कि किसानों के मुद्दों को हल करने के लिए सरकार गंभीर है।
साथ ही सरकार ने यह भी साफ कर दिया कि मिनिमम सपोर्ट प्राइज से जुड़ी कोई भी नई मांग जो नए कृषि कानूनों के दायरे से बाहर है, उसे बातचीत में शामिल करना तर्कसंगत नहीं होगा। बुधवार को ही किसानों ने सरकार के पिछले न्योते को ठुकरा दिया था। उन्होंने कहा था कि सरकार के प्रपोजल में दम नहीं, नया एजेंडा लाएं तभी बात होगी।
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कहानी उस प्रधानमंत्री की, जो कवि और पत्रकार भी रहे थे; जिन्होंने भारत को न्यूक्लियर स्टेट बनाया
वो एक स्कूल टीचर के बेटे थे। अपने पिता के साथ उन्होंने एलएलबी की पढ़ाई की। करियर पत्रकारिता से शुरू किया, लेकिन शौक कविताएं लिखने का था। पढ़ाई के दौरान ही आरएसएस से जुड़े, वहीं से राजनीति की ओर रुख किया। उनके भाषणों को सुनने के लिए विरोधी भी उनकी सभाओं में जाते थे।
पहला चुनाव लड़ा तो हार गए। दूसरी बार तीन जगह से चुनाव लड़े तो एक जगह से जीत मिली। एक वक्त ऐसा तक आया, जब उनकी पार्टी के दो सांसद थे, जिनमें से एक वो खुद थे। एक वक्त ऐसा भी आया, जब वो देश के प्रधानमंत्री बने और 20 से ज्यादा दलों के समर्थन के साथ। हम बात कर रहे हैं अटल बिहारी वाजपेयी की। आज ही के दिन 1924 में उनका जन्म हुआ था।
दुनिया उनकी भाषण शैली की कायल थी। लेकिन, वही अटलजी जब स्कूल के फंक्शन में पहली बार अपना भाषण पढ़ने खड़े हुए थे तो आधे भाषण के बाद उन्होंने बोलना बंद कर दिया था, क्योंकि वो अपना भाषण भूल गए थे।
अटलजी तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे। पहली बार 13 दिन और दूसरी बार 13 महीने के लिए। 13 अक्टूबर 1999 को तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और देश के पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया।
बात मई 1998 की है। अटलजी को प्रधानमंत्री बने महज 3 महीने हुए थे। 11 मई की दुनियाभर में ये खबर चली की भारत ने न्यूक्लियर टेस्ट किया है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए तक को इसकी भनक नहीं लगी। 13 मई को एक बार फिर भारत ने सफल टेस्ट किया। इसी के साथ भारत दुनिया के परमाणु शक्ति संपन्न देशों की लिस्ट में शामिल हो गया।
वो अटलजी ही थे, जिनकी सरकार के फैसले की वजह से कभी 17 रुपए मिनट कॉलिंग वाले मोबाइल पर बात फ्री कॉलिंग तक पहुंची। उनकी सरकार ने टेलीकॉम फर्म्स के लिए फिक्स्ड लाइसेंस फीस को खत्म कर दिया और उसकी जगह रेवेन्यू शेयरिंग की व्यवस्था शुरू की। अटल सरकार में ही 15 सितंबर 2000 को भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) का गठन किया। इसके अलावा टेलीकॉम सेक्टर में होने वाले विवादों को सुलझाने के लिए 29 मई 2000 को टेलीकॉम डिस्प्यूट सेटलमेंट अपीलेट ट्रिब्यूनल (TDSAT) को भी गठन किया।
भारत और दुनिया में 25 दिसंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं :
2015: एक्ट्रेस साधना का निधन हुआ। साधना ने मेरे महबूब, हम दोनों, वो कौन थी, राजकुमार, वक्त, मेरा साया, एक फूल-दो माली जैसी फिल्मों में काम किया था।
2012: दक्षिणी कजाकिस्तान के शिमकेंट में एएन-72 प्लेन क्रैश हो गया। प्लेन में सवार 27 लोगों की मौत हुई।
1994: पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह का निधन हुआ।
1991: राष्ट्रपति मिखाइल एस. गोर्बाचेव ने इस्तीफा दिया। इसके साथ ही सोवियत संघ का विभाजन एवं उसका अस्तित्व समाप्त। अगले दिन यानी 26 दिसंबर को रूस अस्तित्व में आया।
1977: हॉलीवुड के मशूहर कॉमेडियन चार्ली चैपलिन का निधन।
1959: केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले का जन्म हुआ। आठवले महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष हैं।
1926: मशहूर हिन्दी साहित्यकार धर्मवीर भारती का जन्म प्रयागराज में हुआ। गुनाहों का देवता और सूरज का सातवां घोड़ा उनकी सबसे चर्चित रचनाएं थीं।
1876: पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना का जन्म हुआ।
1861: महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद और बड़े समाज सुधारक मदनमोहन मालवीय का जन्म हुआ। 2014 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
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संसद भंग होने के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंची नेपाल की राजनीतिक लड़ाई, जानें इसका भारत और चीन से कनेक्शन?
नेपाल में राजनीतिक संकट गहरा गया है। एक तरफ प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की संसद भंग करने की सिफारिश को राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने मंजूरी दे दी है। राष्ट्रपति ने दो चरणों में 30 अप्रैल और 10 मई को चुनाव का भी ऐलान कर दिया है। वहीं, दूसरी ओर ओली के विरोधी और उनकी ही पार्टी के नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड समेत विपक्षी पार्टियां ओली के फैसले के खिलाफ हैं। ये लोग ओली के फैसले को असंवैधानिक बता रहे हैं। मामला कोर्ट तक पहुंच गया है। पांच जजों की संवैधानिक पीठ शुक्रवार से इस मामले की सुनवाई करेगी।
नेपाल की राजनीति में हुआ क्या है?ओली ने संसद भंग करने का फैसला क्यों लिया? पुष्प कमल दहल आगे क्या करने वाले हैं? चीन का इस पूरे विवाद में क्या रोल है? नेपाल की राजनीति में भारत का रोल क्या है? आइये जानते हैं…
नेपाल की राजनीति में हुआ क्या है?
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प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के संसद भंग करने की सिफारिश को राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने रविवार को मंजूरी दे दी और दो चरणों में चुनाव कराने का ऐलान किया है। उधर, नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के सीनियर लीडर पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड के खेमे के 7 मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया। दहल लगातार ओली पर इस्तीफे के लिए दबाव बना रहे थे।
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नेपाली मीडिया के मुताबिक, दहल के खेमे के 90 सांसदों ने रविवार को ही संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया। बुधवार को इस पर संसद के सेक्रेटरी ने कहा कि ये नोटिस दोपहर 3.30 बजे दिया गया। जबकि, प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने 3 बजे ही संसद भंग करने की मंजूरी दे दी थी।
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दूसरी ओर संसद भंग करने के फैसले के खिलाफ नेपाली सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग 12 पिटीशन फाइल हुई हैं। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
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ओली के खिलाफ एक और मोर्चा देश की सड़कों पर भी खुल गया है। संसद भंग करने के फैसले के खिलाफ अलग-अलग जगह प्रदर्शन हो रहे हैं।
ओली के संसद भंग करने के पीछे की वजह क्या है?
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ओली अपनी ही पार्टी में लीडरशिप की चुनौती से जूझ रहे थे। उनके ऊपर पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री का पद छोड़ने का दबाव बढ़ता जा रहा था।
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ओली पर संवैधानिक परिषद अधिनियम से जुड़े एक ऑर्डिनेंस को वापस लेने का दबाव था। इसे उन्होंने मंगलवार को जारी किया था। उसी दिन राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने उसे मंजूरी दे दी थी। इसके बाद से अपनी पार्टी के विरोधी नेताओं के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल और माधव नेपाल ओली पर दबाव बना रहे थे। इस ऑर्डिनेंस के बाद प्रधानमंत्री को संवैधानिक नियुक्तियों में संसद और विपक्ष की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी।
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ओली की पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने राष्ट्रपति से अध्यादेश वापस लेने की अपील की थी। सांसदों ने संसद का विशेष अधिवेशन बुलाने के लिए राष्ट्रपति के पास आवेदन किया था। इसके बाद समझौता हुआ कि सांसद अधिवेशन बुलाने का आवेदन वापस लेंगे और ओली अध्यादेश वापस लेंगे। लेकिन, ओली ने इसकी जगह संसद भंग करने की सिफारिश कर दी।
ओली और प्रचंड के बीच के रिश्तों की क्या कहानी है?
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2015 में नेपाल में नया संविधान लागू हुआ। चुनाव हुए और केपी शर्मा ओली नेपाल के प्रधानमंत्री बने। लेकिन, जुलाई 2016 में सहयोगियों के समर्थन वापस लेने से उनकी सरकार गिर गई। सरकार गिरी तो ओली ने इसमें भारत का हाथ बताया, क्योंकि भारत ने नेपाल के नए संविधान में मधेषी और थारू लोगों की मांगों को शामिल नहीं करने पर विरोध दर्ज कराया था।
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दोबारा चुनाव हुए तो ओली की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) और पुष्प कमल दहल प्रचंड की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी) ने गठबंधन सरकार बनाई। दोनों को मिलाकर सदन में दो तिहाई बहुमत मिला।
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2018 में दोनों पार्टियों का विलय हो गया और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) अस्तित्व में आई। 275 सदस्यों की सदन में एनसीपी के 173 सांसद हैं। 31 महीने बाद एक बार फिर इस पार्टी के दो धड़े हो गए हैं।
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प्रचंड सक्रिय राजनीति में आने से पहले 1996 से 2006 तक नेपाल में सशस्त्र माओवादी आंदोलन का हिस्सा रहे हैं। वहीं, ओली हिंसात्मक आंदोलन के धुर विरोधी नेताओं में से एक रहे हैं।
नेपाल का संविधान क्या कहता है?
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नेपाल के संविधान में संसद भंग करने को लेकर कुछ स्पष्ट नहीं कहा गया है। संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि आर्टिकल-85 में प्रतिनिधि सभा के पांच साल के कार्यकाल का जिक्र है।
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आर्टिकल-76 में कहा गया है कि अगर प्रधानमंत्री विश्वास मत खो देते हैं तो राष्ट्रपति प्रतिनिधि सभा को भंग कर देंगे। इसके बाद छह महीने के भीतर चुनाव की तारीख तय करेंगे।
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प्रधानमंत्री की सिफारिश करने पर विशेषज्ञों का कहना है कि उन्हें इसका अधिकार ही नहीं है।
चीन का क्या रोल है?
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बताया जाता है कि दोनों के बीच डील करने में चीन की कम्युनिस्ट सरकार का बड़ा रोल रहा था। यहां तक कि ओली-प्रचंड गुट के बीच चल रहे विवाद को सुलझाने के लिए भी चीन लगातार कोशिश कर रहा था।
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चीन ने होउ यांगकी को 2018 में नेपाल में राजदूत बनाकर भेजा। यांगकी ने यहां आने के बाद न सिर्फ नेपाल की राजनीति में लगातार दखल रखा, बल्कि नेपाल में भारत के खिलाफ माहौल बनाने में भी उनका अहम रोल माना जाता है।
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यांगकी नेपाल की राजनीति में कितनी पावरफुल हो गई हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वो बिना किसी प्रोटोकॉल को फॉलो किए नेपाली राष्ट्रपति से लेकर नेपाल के सभी नेताओं से मिलती हैं। नेपाल सरकार के हर विभाग में उनका दखल है।
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मई और नवंबर में भी ओली की कुर्सी जाने वाली थी। तब भी होउ यांगकी एक्टिव हुईं थीं। उन्होंने ओली के मुख्य विरोधी पुष्प कमल दहल प्रचंड से मुलाकात की थी। कई और नेताओं से भी मिलीं। किसी तरह ओली की सरकार तब बच गई थी।
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ओली और प्रचंड के बीच के विवादों को निपटाने में कई बार यांगकी ने अहम भूमिका निभाई। कहा जा रहा है कि मौजूदा विवाद निपटाने की भी चीन ने तैयारी कर ली थी। इसके लिए प्रचंड गुट के एक नेता और उपप्रधानमंत्री बामदेव गौतम को सत्ता की कमान सौंपने के लिए तैयार कर रही थीं। लेकिन, अब तक चीन के इशारे पर काम कर रहे ओली को इससे झटका लगा और उन्होंने चीन के मंसूबों को झटका देते हुए संसद भंग करने की सिफारिश कर दी।
नेपाल की राजनीति में भारत क्यों अहम?
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मौजूदा राजनीतिक संकट में भारत का कोई रोल नहीं है। लेकिन, ओली जब से प्रधानमंत्री बने तब से वो अक्सर अपने ऊपर आए संकट से ध्यान हटाने के लिए भारत विरोधी राजनीति का सहारा लेते रहे हैं। ओली को जब पहली बार अल्पमत में आने पर इस्तीफा देना पड़ा तब भी उन्होंने भारत को पर आरोप लगाए थे।
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प्रचंड के साथ सरकार बनाने के बाद भी जब-जब वो संकट में घिरे उन्होंने कोई ना कोई भारत विरोधी मुद्दा उछाला। चाहे नेपाल के नए नक्शे का मुद्दा हो या भारत-नेपाल सीमा विवाद।
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इन सभी विवादों में चीनी राजदूत यांगकी की भूमिका अहम मानी जा रही है। नेपाल के प्रधानमंत्री के दफ्तर से लेकर आर्मी हेडक्वार्टर तक उनकी सीधी पहुंच है। नेपाल के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ पूर्णचंद्र थापा उनके करीबी माने जाते हैं।
नेपाल की राजनीति में आगे क्या होने वाला है?
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ओली की पार्टी दो टुकड़े हो गई है। दहल खेमे ने बुधवार को चुनाव आयोग में असली पार्टी होने के दावे का लेटर भी दे दिया है। दोनों खेमों ने अलग-अलग मीटिंग की है। प्रचंड के खेमे ने ओली को पार्टी के सह-अध्यक्ष के पद से हटा दिया है। उनकी जगह माधव कुमार नेपाल के नए सह-अध्यक्ष चुने गए हैं। वहीं, प्रचंड को ओली की जगह संसदीय दल का नेता चुना है। गुरुवार को भी दोनों धड़ों ने अलग-अलग बैठक की।
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प्रमुख विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस की भी गुरुवार को बैठक हुई। बैठक में तय हुआ कि पार्टी 28 दिसंबर को पूरे देश में ओली के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन करेगी। कांग्रेस का एक धड़ा ओली के फैसले को असंवैधानिक बता रहा है और उसे कोर्ट में चुनौती देने के पक्ष में है। एक धड़ा ऐसा भी है जो चुनाव में जाने की बात कर रहा है।
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सुप्रीम कोर्ट में 12 याचिकाएं लगाई गई हैं। इन सभी पर सुनवाई भी शुक्रवार से शुरू हो रही है। सड़क पर भी संघर्ष बढ़ सकता है।
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ओली के इस्तीफे के बाद एक बार फिर चीनी राजदूत यांगकी भी सक्रिय हो गई हैं। उन्होंने मंगलवार को राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से मुलाकात की थी। वहीं, गुरुवार की सुबह वो ओली के विरोधी प्रचंड से मिलने पहुंचीं।
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कोरोना वैक्सीन को लेकर मुस्लिमों, यहूदियों और ईसाइयों के कुछ धड़ों में विरोध; क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
कोरोना वैक्सीन जिस तेजी से अप्रूव हो रही हैं और वैक्सीनेशन शुरू हो रहा है, उसी रफ्तार से उससे जुड़े विवाद भी सामने आ रहे हैं। नया विवाद वैक्सीन में इस्तेमाल होने वाले जिलेटिन को लेकर है, जो सुअर के गोश्त से बनाया जाता है। मुस्लिम देशों और संगठनों को इस पर आपत्ति है। वहीं, क्रिश्चियन कैथोलिक्स में इस बात को लेकर गुस्सा है कि कुछ वैक्सीन में अबॉर्ट किए गए भ्रूण से मिले सेल्स का इस्तेमाल किया है।
इन विवादों के बीच अलग-अलग देशों में सरकारें और धार्मिक संगठन भी सक्रिय हो गए हैं, ताकि वैक्सीन को लेकर किसी तरह का संदेह या फेक न्यूज प्रसारित न हो जाए। UAE में देश के सर्वोच्च धार्मिक संगठन फतवा काउंसिल ने कहा कि वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल हुआ भी होगा, तो वैक्सीन खानी थोड़ी है। यह तो दवा है। इंजेक्शन के तौर पर लगेगी। वहीं, इजरायल में यहूदी धार्मिक संगठन भी जिलेटिन से जुड़े विरोध को दूर करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। कैथोलिक्स के संदेहों को दूर करने का जिम्मा वेटिकन ने उठाया है।
कैसे उठा यह विवाद, किस धर्म में किस बात का विरोध?
- अक्टूबर में यह मुद्दा उठा था। इंडोनेशिया के डिप्लोमैट्स और मुस्लिम धर्मगुरु चीन गए थे। वे इंडोनेशिया के नागरिकों के लिए वैक्सीन की डील करने गए थे। तब धर्मगुरुओं ने ऐसी वैक्सीन लेने से इनकार कर दिया, जिसमें जिलेटिन का इस्तेमाल किया गया हो।
- दरअसल, सुअर के गोश्त से बने जिलेटिन का इस्तेमाल वैक्सीन को स्टोरेज और ट्रांसपोर्ट के दौरान सेफ और इफेक्टिव रखने में होता है। जिलेटिन को लेकर वैक्सीन का विरोध पहली बार नहीं है। इससे पहले भी वैक्सीन का मुस्लिम देशों में विरोध होता रहा है।
- सुअरों के गोश्त को लेकर मुस्लिमों के साथ-साथ परंपरावादी यहूदियों में विरोध है। भारत में भी इसे लेकर विरोध शुरू हो गया है। मुंबई में सुन्नी मुस्लिमों की रजा अकादमी के महासचिव सईद नूरी ने तो वीडियो संदेश जारी कर पोर्क-फ्री प्रोडक्ट्स की मांग की है।
- सईद का कहना है कि मेड इन इंडिया और विदेशी वैक्सीन का ऑर्डर देने से पहले केंद्र सरकार उन वैक्सीन के इन्ग्रेडिएंट्स की लिस्ट जारी करें। चीनी वैक्सीन का ऑर्डर नहीं देना चाहिए, जिसमें पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल किया गया है।
- कुछ हफ्ते पहले रोमन कैथोलिक्स में यह चर्चा थी कि वैक्सीन को बनाने में अबॉर्टेड भ्रूण के टिश्यू का इस्तेमाल किया है। अमेरिका के दो बिशप ने कहा था कि वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया अनैतिक है। इस वजह से वे वैक्सीन नहीं लगवाएंगे। बाकी लोग भी न लगवाएं।
⚠️ Warning to Jews, Muslims, Vegetarians & Vegans
— British Muslim TV (@BritishMuslimTV) September 16, 2020
Some UK childrens vaccines contain pork 💉
Help share this message 🔊#Vegans #Muslims #Jews #Vegetarians #Share pic.twitter.com/U6WfYswWDA
इस मुद्दे को धर्मगुरु कैसे देख रहे हैं?
- UAE फतवा काउंसिल के प्रमुख शेख अब्दुल्ला बिन बयाह ने कहा कि वैक्सीन पर इस्लाम के पोर्क से बनाए प्रोडक्ट्स पर प्रतिबंधों का असर नहीं होगा। यह प्रोडक्ट मनुष्यों की जान बचाने के लिए है। वैक्सीन में इस्तेमाल पोर्क जिलेटिन को दवा समझा जाए और खाना नहीं।
- इजरायल में रब्बीनिकल ऑर्गेनाइजेशन त्जोहर के चेयरमैन रब्बी डेविड स्टाव ने कहा कि यहूदी कानून में पोर्क के इस्तेमाल पर पाबंदी सिर्फ खाने तक सीमित है। अगर उसका इस्तेमाल दवा के तौर पर हो रहा है तो कोई समस्या नहीं है। इस पर प्रतिबंध नहीं है।
- वेटिकन ने बयान जारी किया। कहा कि अबॉर्टेड भ्रूण से सेल्स पर रिसर्च के बगैर वैक्सीन बन जाए तो वह सही है। पर अगर यह संभव नहीं है और इस वजह से इस प्रक्रिया को आजमाया गया है तो यह अनैतिक नहीं है। रोमन कैथोलिक्स को ऐसी वैक्सीन स्वीकार करनी चाहिए।
The #UAE Fatwa Council, under the chairmanship Sheikh @Bin_Bayyah, has issued a 'fatwa' (Islamic ruling) allowing the coronavirus vaccines to be used in compliance with Islamic Sharia’s objectives on the protection of the human body and other relevant Islamic rulings. pic.twitter.com/BmkaHGOS2U
— Dr. Bu Abdullah 🇦🇪 (@Dr_BuAbdullah) December 23, 2020
भारत में उपलब्ध वैक्सीन में क्या होगा?
- दरअसल, अब तक सिर्फ फाइजर, मॉडर्ना और एस्ट्राजेनेका ने ही बताया है कि उनकी वैक्सीन जिलेटिन-फ्री है। बाकी वैक्सीन कंपनियों ने कंटेंट्स के बारे में बहुत ज्यादा बात नहीं की है। भारत बायोटेक, जायडस कैडिला समेत अन्य कंपनियों ने भी यह नहीं बताया है।
- इससे यह तो साफ है कि भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) में बन रही एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन पोर्क-फ्री होगी। इतना ही नहीं, भारत में इमरजेंसी अप्रूवल मांग रही फाइजर की वैक्सीन में भी पोर्क का इस्तेमाल नहीं हुआ है।
- इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च में एपीडेमियोलॉजी और कम्युनिकेबल डिसीज के हेड साइंटिस्ट रहे डॉ. रमन गंगाखेड़ेकर ने बताया कि वैक्सीन में जिलेटिन इस्तेमाल होता रहा है। पर कोरोना के किस वैक्सीन में यह इस्तेमाल हो रहा है, जब तक कंपनियां नहीं बतातीं, तब तक कुछ भी कहा नहीं जा सकता।
विशेषज्ञ क्या कह रहे हैं इस मुद्दे पर?
- ब्रिटिश इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन के महासचिव डॉ. सलमान वकार के मुताबिक, वैक्सीन की डिमांड, मौजूदा सप्लाई चेन, लागत और कम शेल्फ लाइफ की वजह से ज्यादातर वैक्सीन में पोर्सिन जिलेटिन का इस्तेमाल होता है।
- वकार का कहना है कि इंडोनेशिया में ही विरोध की शुरुआत हुई है। वहां की सरकार ने वैक्सीन को सपोर्ट दिया है, पर कंपनियों को आगे आना होगा। वे इस प्रक्रिया को जितनी पारदर्शी और ओपन रखेंगी, उतना ही ज्यादा प्रोडक्ट पर लोगों का भरोसा बनेगा।
- यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. हरुनोर रशीद के मुताबिक, पोर्क जिलेटिन के वैक्सीन में इस्तेमाल को लेकर बहस काफी पुरानी है। सीधी-सी बात है कि अगर आपने यह वैक्सीन नहीं ली, तो आपको ज्यादा नुकसान होगा।
- कुछ कंपनियों ने वर्षों तक पोर्क-फ्री वैक्सीन बनाने पर काम किया है। स्विस फार्मा कंपनी नोवार्टिस ने पोर्क-फ्री मेनिंजाइटिस वैक्सीन डेवलप की। वहीं, सऊदी और मलेशिया की एजे फार्मा भी अपनी ऐसी ही वैक्सीन पर काम कर रही है।
अन्य मुस्लिम देशों में चीनी वैक्सीन को लेकर क्या स्थिति है?
- वैक्सीन का विरोध इंडोनेशिया के धर्मगुरुओं के चीन दौरे से शुरू हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीनी कंपनियों ने अपनी वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल किया है। लेकिन, अब भी कई मुस्लिम देशों में चीनी वैक्सीन इमरजेंसी यूज के तहत लगाए जा रहे हैं।
- पाकिस्तान में चीनी कंपनी कैनसिनो बायोलॉजिक्स वैक्सीन के अंतिम स्टेज के क्लीनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं। बांग्लादेश ने सिनोवेक बायोटेक की वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल्स के लिए एग्रीमेंट किया था। बाद में फंडिंग विवाद की वजह से यह ट्रायल्स टल गए।
- विशेषज्ञों का कहना है कि लिमिटेड सप्लाई और पहले से मौजूद लाखों डॉलर की डील्स की वजह से इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम आबादी वाले देशों में वह वैक्सीन उपलब्ध होती रहेंगी, जिन पर जिलेटिन-फ्री नहीं लिखा होगा।
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अहा! ज़िंदगी के दिसंबर अंक की चुनिंदा स्टोरीज पढ़िए सिर्फ एक क्लिक पर
1. विविधता से भरे भारत में विभिन्न धर्मों के अनुयायी रहते हैं और सभी एक-दूसरे के त्योहार का आनंद लेते हैं। पढ़िए देशभर में किस तरह के पकवान क्रिसमस पर बनाए जाते हैं...
क्रिसमस के मौके पर देशभर में बनते हैं इस तरह के विभिन्न पकवान
2. 20 साल की उम्र में पेशवा बनकर मराठा सत्ता की पताका को भारत में फहराने वाले महान योद्धा बाजीराव ने करीब 40 युद्धों में विजय हासिल की। इसी कारण उन्हें दुनिया के महानतम योद्धाओं और विजेताओं की श्रेणी में रखा जाता है...
20 साल की उम्र में पेशवा बने थे बाजीराव, 40 साल की उम्र तक जीते थे 40 युद्ध
3. क्रिसमस प्रभु यीशु का जन्मदिवस है। इस लेख में देवीय आभा से शोभायमान एक पुंज के रूप में जीसस की संस्तुति इसी आलोक में पेश की गई है...
जीसस क्राइस्ट की महानता बनाती है क्रिसमस को बड़ा दिन
4. कोरोना के आने के पहले सफर का अपना ही मजा था, और अक्सर यह सफर अंग्रेज़ी के ‘सफर’ में बदल जाया करता था। यह एक ऐसा ही किस्सा है...
5. सौंफ की ऐसी किस्म जो 55 प्रतिशत पानी का कम उपयोग करने के बावजूद ज्यादा उत्पादन देती है...
सौंफ की नई क़िस्म से दुनियाभर में मिली पहचान, कम पानी का उपयोग करके करते हैं अधिक उत्पादन
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पाठकों की सहज-बुद्धि को चुनौती देती पहेलियां
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हाल ही में प्रकाशित हुई चंद किताबों की समीक्षाएं
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टीम इंडिया कोहली और शमी के बिना उतरेगी, लगातार तीन सीरीज जीतने का रिकॉर्ड बनाने के लिए मैच जीतना जरूरी
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 4 टेस्ट की सीरीज का दूसरा मैच कल से मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में खेला जाएगा। यह बॉक्सिंग-डे टेस्ट है। सीरीज जीतने की दौड़ में बने रहने के लिए भारतीय टीम को यह मैच जीतना भी जरूरी है। पहले मैच में भारत को 8 विकेट से हराकर ऑस्ट्रेलिया सीरीज में 1-0 से आगे है।
भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पिछली दो सीरीज जीत चुकी है। ऐसे में वह इस सीरीज को भी जीतकर इतिहास रचना चाहेगी। टीम इंडिया अब तक ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ लगातार 3 सीरीज नहीं जीत सकी।
2018 में ऑस्ट्रेलिया को 2-1 से हराया था
टीम इंडिया ने पिछली बार 2018 में ऑस्ट्रेलिया टीम को उसी के घर में टेस्ट सीरीज में 3-1 से शिकस्त दी थी। टीम की ऑस्ट्रेलिया में यह पहली टेस्ट सीरीज जीत थी। भारत ने ऑस्ट्रेलिया में अब तक 12 में से 8 टेस्ट सीरीज हारीं और 3 ड्रॉ खेली हैं।
मेलबर्न में पिछला टेस्ट जीती थी टीम इंडिया
भारतीय टीम का मेलबर्न में टेस्ट रिकॉर्ड भले ही खराब रहा हो, लेकिन पिछला मैच इंडिया ने ही जीता था। 2018 के ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर भारतीय टीम ने मेजबान को मेलबर्न में खेल गए बॉक्सिंग-डे टेस्ट में 137 रन से शिकस्त दी थी।
कोहली और शमी के बिना उतरेगी भारतीय टीम
टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली पहले टेस्ट के बाद पैटरनिटी लीव पर चले गए हैं। तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी चोट के कारण सीरीज से बाहर हो गए हैं। पहले टेस्ट की दूसरी पारी में बैटिंग करते हुए उनके हाथ में बॉल लग गई थी।
रहाणे और पुजारा पर बैटिंग का दारोमदार
कोहली की गैरमौजूदगी में अजिंक्य रहाणे टीम की कप्तानी संभालेंगे। चेतेश्वर पुजारा के साथ उन पर भी बल्लेबाजी का दारोमदार रहेगा। दोनों मौजूदा टीम में शामिल प्लेयर्स का मेलबर्न में परफॉर्मेंस देखें तो टॉप-5 में सिर्फ यह दो ही भारतीय शामिल हैं। दोनों ने 1-1 शतक भी लगाया है। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान स्टीव स्मिथ टॉप पर हैं। उन्होंने टॉप-5 में शामिल बाकी सभी बैट्समैन के कुल रन से भी ज्यादा स्कोर किया है।
मेलबर्न में उमेश और अश्विन सबसे कामयाब भारतीय बॉलर
मेलबर्न में भारतीय बॉलर्स का परफॉर्मेंस देखें तो मौजूदा टीम में उमेश यादव और रविचंद्रन अश्विन सबसे कामयाब हैं। ऑस्ट्रेलियाई स्पिनर नाथन लियोन 9 टेस्ट में 31 विकेट लेकर टॉप पर हैं। शमी की गैरमौजूदगी में उमेश और अश्विन के अलावा जसप्रीत बुमराह पर गेंदबाजी का जिम्मा रहेगा। शमी की जगह मोहम्मद सिराज को डेब्यू का मौका मिल सकता है।
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 100वां टेस्ट
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच अब तक कुल 99 टेस्ट मैच खेले गए। इसमें भारत ने 28 और ऑस्ट्रेलिया ने 43 मैच जीते हैं। 27 मैच ड्रॉ और 1 बेनतीजा रहा। ऑस्ट्रेलिया में दोनों के बीच 49 मैच खेले गए। इसमें से भारत ने सिर्फ 7 और ऑस्ट्रेलिया ने 30 मैचों में जीत हासिल की। 12 मैच ड्रॉ रहे।
मौसम और पिच रिपोर्ट
मेलबर्न में टेस्ट के दौरान पहले दिन न्यूनतम तापमान 18 और अधिकतम तापमान 27 डिग्री सेल्सियस रहेगा। दूसरे दिन बारिश की संभावना है। बाकी दिन बादल छाए रहने का अनुमान है। पिच से बल्लेबाजों को मदद मिलेगी। स्पिनर्स को भी पिच मददगार रहेगी।
भारतीय टीम
- बैट्समैन: अजिंक्य रहाणे (कप्तान), रोहित शर्मा, मयंक अग्रवाल, केएल राहुल, चेतेश्वर पुजारा, पृथ्वी शॉ, शुभमन गिल, रिद्धिमान साहा (विकेटकीपर) और ऋषभ पंत (विकेटकीपर)।
- ऑलराउंडर: हनुमा विहारी, रविंद्र जडेजा और रविचंद्रन अश्विन।
- बॉलर: कुलदीप यादव, जसप्रीत बुमराह, नवदीप सैनी, उमेश यादव और मोहम्मद सिराज।
ऑस्ट्रेलिया टीम
- बैट्समैन: टिम पैन (कप्तान और विकेटकीपर), डेविड वॉर्नर, स्टीव स्मिथ, मैथ्यू वेड (विकेटकीपर), जो बर्न्स, मार्कस हैरिस और ट्रेविस हेड।
- ऑलराउंडर: कैमरून ग्रीन, मार्नस लाबुशाने और माइकल नेसेर।
- बॉलर: पैट कमिंस, सीन एबॉट, जोश हेजलवुड, नाथन लियोन, जेम्स पैटिंसन, मिचेल स्टार्क और मिचेल स्वेप्सन।
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देश में हर साल 15 लाख लोगों को होता है कैंसर, मल्टीपल माइलोमा उनमें से एक, जानें इसके लक्षण और कारण
सर्दियों में कई तरह की मौसमी बीमारियों की चपेट में आने से शरीर में जोड़ों का दर्द, सर्दी-खांसी और हाथ-पैर में सूजन की समस्या रहने लगती है। इस समय हड्डियों में भी कई तरह की दिक्कतें होती हैं। इससे कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का खतरा भी बढ़ सकता है। अगर रेयर कैंसर हो, तो ये और भी खतरनाक है।
भोपाल के जवाहरलाल नेहरू कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के रिसर्च डिपार्टमेंट के हेड डॉक्टर एन गणेश बताते हैं कि एक स्कूल टीचर रूम का पर्दा बंद कर रहे थे। उन्होंने जैसे ही पर्दा खींचा, वे स्लिप हो गए और उनके हाथ में फ्रैक्चर हो गया। ये एक तरह से पैथोलॉजिकल फ्रैक्चर था। जो मल्टीपल माइलोमा का लक्षण है।
मल्टीपल माइलोमा की केस स्टडी
फ्रैक्चर होने पर स्कूल टीचर ऑर्थोपेडिक सर्जन के पास गए। इस दौरान सबसे बड़ी भूल यह हुई कि उनके ब्लड की प्रोफाइल और पिक्चर इन-प्रिंट्स का टेस्ट नहीं किया गया। डॉक्टर का कहना है कि अगर उनका टेस्ट समय रहते कर लिया जाता तो शरीर में प्लाज्मा सेल बढ़ने की बात सामने आ जाती।
डेढ़ महीने से इस समस्या से जूझ रहे स्कूल के टीचर को हड्डियों के बाद सिर में भी दर्द रहने लगा। डॉक्टर के कहने पर उन्होंने सिर का एक्सरे और छाती का इलेक्ट्रोफोरेसिस टेस्ट कराया। एक्सरे की रिपोर्ट में आया कि उनके सिर में छोटे-छोटे गोल छेद हो गए हैं, जैसे किसी ने कागज पर जगह-जगह पंच मशीन से छेद कर दिए हों। उनमें मल्टीपल माइलोमा बीमारी होने की पुष्टि हुई।
ये एक तरह का ब्लड कैंसर है। उनका इलेक्ट्रोफोरेसिस टेस्ट किया गया था। इस तरह के टेस्ट में बीटा और गामा ग्लोब-लिन के लेवल की जांच की जाती है। डॉक्टर हर महीने इस टेस्ट की सलाह देते हैं। इस बीमारी का डायग्नोसिस ऐसे ही किया जाता है।
हर साल भारत में कैंसर के 15 लाख केस सामने आते हैं
मेदांता ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल भारत में कैंसर के 15 लाख केस सामने आते हैं। ASCO (अमेरिकन सोसायटी ऑफ क्लीनिकल ऑन्कोलॉजी) के मुताबिक, इस साल अमेरिका में मल्टीपल माइलोमा के 32.27 हजार पेशेंट सामने आए। इनमें 17.53 हजार पुरुष और 14.74 हजार महिलाएं हैं।
ये भी पढ़ें- दुनिया में हर साल 2 करोड़ लोग होते हैं शिकार, सर्दियों में रिस्क ज्यादा; जानें टाइफाइड के कारण और लक्षण
मल्टीपल माइलोमा के बारे में जानें वह सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं
क्या होती है यह बीमारी?
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शरीर में सेल बढ़ने से कैंसर का खतरा होता है। ये किसी भी भाग में हो सकता है। ब्लड कैंसर की शुरुआत ब्लड टिश्यू से होती है। इसका असर पहले इम्युन सिस्टम पर होता है।
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अब तक तीन तरह के ब्लड कैंसर रिपोर्ट किए गए हैं। इनमें लिंफोमा, ल्यूकेमिया, और मल्टीपल माइलोमा शामिल हैं। भारत में सबसे ज्यादा 64% लिंफोमा, 25% ल्यूकेमिया और 11% मल्टीपल माइलोमा के पेशेंट सामने आए हैं।
-
मल्टीपल माइलोमा रेयर कैंसर है। पेशेंट को इस बीमारी का पता आसानी से नहीं चल पाता है। ये नॉर्मल प्लाज्मा सेल बोन मेरो में पाया जाता है। ये इम्युन सिस्टम का मुख्य भाग होता है। इम्युन सिस्टम कई सारे सेल से मिलकर बनता है, जो वायरस और बीमारी से लड़ने में मदद करते हैं।
-
इसके अलावा लिंफोसाइट सेल (लिंफ सेल), जो व्हाइट ब्लड सेल है। ये भी इम्युन सिस्टम में पाए जाते हैं। ये दो तरह के होते हैं, पहला T सेल और दूसरा B सेल। ये सेल बॉडी के लिंफ नोड्स, बोन मेरो और ब्लड स्ट्रीम में पाए जाते हैं।
-
इन्फेक्शन B सेल को रिस्पॉन्स करता है, तो ये प्लाज्मा में बदल जाता है। प्लाज्मा सेल एंटीबॉडी बनाता है। इसको इम्युनोग्लोबिन कहते हैं। ये बॉडी के जम्स पर अटैक कर उसे खत्म करता है। प्लाज्मा एक सॉफ्ट टिश्यू की तरह बोन मेरो में होता है। इसकी मदद से नॉर्मल बोन मेरो में रेड सेल, व्हाइट सेल और प्लेटलेट्स पाई जाती है।
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प्लाज्मा सेल में कैंसर होने से कंट्रोल के बाहर हो जाता है। इसे ही मल्टीपल माइलोमा कहा जाता है। इससे प्लाज्मा सेल में एब-नॉर्मल प्रोटीन (एंटीबॉडी) डेवलप होने लगती है। इसके कई नाम हैं, जैसे- मोनोक्लोनल, इम्युनोग्लोबिन, मोनोक्लोनल प्रोटीन, M-स्पाइक या पैराप्रोटीन। इसके अलावा कई तरह के सेल डिसऑर्डर होते हैं, जैसे- मोनोक्लोनल गैमोपैथी ऑफ अन-सर्टेन सिग्निफिकेंट (MGUS), स्मोल्डरिंग मल्टीपल माइ-लोमा (SMM), सोलिट्री प्लाज्मा साइटोमा और लाइट चैन एमीलोइडोसिस।
-
इस बीमारी का ट्रीटमेंट हर बार सही हो, ऐसा जरूरी नहीं है। अगर मल्टीपल माइलोमा धीरे-धीरे डेवलप होने लगता है, तो इसके लक्षण नजर नहीं आते हैं। डॉक्टर पेशेंट को मॉनिटर पर रखते हैं। वे इलाज में जल्दबाजी नहीं करते हैं।
इसका डायग्नोसिस कैसे किया जाता है?
एक्सपर्ट के मुताबिक, प्लाज्मा सेल एक जगह इकट्ठे हो जाएं तो उसे प्लाज्मा साइकोम कहते हैं। ये भी एक तरह का कैंसर है, लेकिन इसका लाइन ऑफ ट्रीटमेंट अलग है। इसमें रेडियोथैरेपी, कीमियोथैरेपी दी जाती है। अगर सेल पूरे शरीर में ट्रेवल कर जाएं, तो इसे मल्टीपल माइलोमा कहते हैं। ब्लड क्लॉट में सीरम प्रोटीन निकलने लगता है। ये अल्फा-बिन और ग्लोब-लिन होते हैं।
ग्लोब-लिन में बीटा, गामा, अल्फा 1 और अल्फा 2 प्रोटीन पाए जाते हैं। ये सभी तब नजर आते हैं, जब बीटा और गामा ग्लोब-लिन का डायग्नोसिस किया जाता है। इन प्रोटीन का डायग्नोसिस बनाने के लिए इलेक्ट्रोफोसिस टेस्ट की मदद ली जाती है।
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प्राइमरी डायग्नोसिस कैसे बनता है?
- मल्टीपल माइलोमा में साइटिका-पेन, स्पॉन्डिलाइटिस-पेन, हड्डियों में जलन, करंट जैसा लगना, जरा में फ्रैक्चर होने जैसी समस्या बढ़ जाती है। इसका पहला डायग्नोसिस ऑर्थोपेडिक सर्जन करता है। इसमें जो सैंपल लिए जाते हैं, उन्हें इलेक्ट्रोफोसिस टैंक में डालकर करंट के अगेंस्ट रन कराने पर प्रोटीन अलग-अलग पोजीशन ले लेता है।
- इसमें प्रोटीन के स्टेटस को देखा जाता है। अगर प्रोटीन का पीक ज्यादा होता है, तो कंडीशन ज्यादा सीवियर होती है।
- एक्सपर्ट्स की मानें तो इन समस्या में बोन डैमेज, रीनल फेलियर, ब्लड फिल्टर न होना और ब्लॉकेज होने लगते हैं। कई बार ये बीमारी बहुत तेजी से फैलती है।
- इस बीमारी में कई टेस्ट होते हैं, जैसे- यूरीन, इलेक्ट्रोफोसिस, इम्नो-इलेक्ट्रोफोसिस, और इम्युनोग्लोबिन। अगर ये समस्या बढ़ जाती है तो आखिर में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की नौबत आ जाती है।
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अमित शाह के पश्चिम बंगाल दौरे के बाद क्यों भड़कीं ममता बनर्जी? जानें सच
क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें वे आस-पास खड़े लोगों पर भड़कती दिख रही हैं।
वीडियो को पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव के प्रचार से जोड़कर शेयर किया जा रहा है। कुछ यूजर इस वीडियो को हाल में हुए अमित शाह के पश्चिम बंगाल दौरे से जोड़कर भी शेयर कर रहे हैं।
अरे कोई तो सँभालो इसको,यह बोल बोल के पागल हो जायेगी या बीजेपी वाले इसे पागल करके छोड़ेंगे pic.twitter.com/pTFxqRrMuV
— V K SHARMA (@VictoriousNamo) December 21, 2020
और सच क्या है ?
- वीडियो के स्क्रीनशॉट्स लेकर गूगल पर रिवर्स सर्च करने से पता चला कि ये वीडियो जून, 2019 को ही एक यूट्यूब चैनल पर अपलोड हो चुका है। मतलब साफ है कि इसका हाल में पश्चिम बंगाल के चुनावी माहौल से कोई संबंध नहीं है।
- Dailymotion वेबसाइट पर यही वीडियो 6 साल पहले अपलोड किया जा चुका है। लेकिन, वीडियो के साथ ऐसी कोई जानकारी पब्लिश नहीं की गई है, जिससे पुष्टि हो सके कि वीडियो असल में किस घटना का है।
- अलग-अलग कीवर्ड्स को गूगल सर्च करने से हमें NDTV की वेबसाइट पर भी यही वीडियो मिला। यहां वीडियो साल 2006 में अपलोड किया गया है। वेबसाइट पर दी गई जानकारी से बस इतना पता चल सका कि वीडियो पश्चिम बंगाल असेंबली का है।
- इन सबसे साफ है कि सोशल मीडिया पर ममता बनर्जी के 6 साल पुराने वीडियो को हाल ही का बताकर गलत दावे के साथ शेयर किया जा रहा है। वायरल वीडियो का साल 2020 में हुए अमित शाह के रोड शो से कोई संबंध नहीं है।
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हिन्दुत्व ब्रिगेड को हिन्दू परंपरा की समझ नहीं, भारतीय संस्कृति नए विचारों को स्वीकार करती है
मानो बढ़ती कोविड महामारी, गड़बड़ाती अर्थव्यवस्था, उच्च बेरोजगारी और बड़ा किसान आंदोलन काफी नहीं था, जो हिन्दूवादी भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने नया संकट ला दिया है: सांस्कृतिक युद्ध। नवंबर में BJP शासित उत्तर प्रदेश मुख्य रूप से काल्पनिक अपराध लव जिहाद के खिलाफ कानून लाया।
उप्र विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश कहता है कि अगर एक महिला केवल शादी के लिए इस्लाम अपनाती है, तो शादी ‘शून्य’ घोषित कर दी जाएगी। शादी के बाद धर्म बदलने की इच्छुक महिलाओं को अनुमति के लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को आवेदन देना होगा। यह व्यक्तिगत आजादी पर हमला है, जिसमें स्त्री-द्वेष, पितृसत्ता और धर्मांधता का मिश्रण है।
यह उपाय उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दिमाग की उपज है, जिनके भड़काऊ भाषणों ने उन्हें BJP की चर्चित शख्सियत बना दिया। यह कानून देश के संविधान के तहत प्रदान की गई पूजा की आजादी पर प्रहार है। दिसंबर के पहले हफ्ते में ही राज्य पुलिस ने सात लोगों को इसके तहत गिरफ्तार कर लिया। हिन्दू-मुस्लिम संवाद से उपजी भारत की गंगा-जमुनी तहजीब पर अब आधिकारिक रूप से भड़काई गई धर्मांधता का हमला हो रहा है।
BJP को राजनीतिक शक्ति हठधर्मी हिन्दू समुदाय के वाहक के रूप में आक्रामक प्रचार से मिलती है और मुस्लिम-विरोधी भावनाओं को उकसाने को वह वोट पाने का साधन मानती है। BJP पहले भी सफलतापूर्वक ट्रिपल तलाक को अपराध बना चुकी है, मुस्लिम बहुल राज्य जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीन चुकी है और ऐसा कानून लागू कर चुकी है, जो मुस्लिम शरणार्थियों को जल्द भारतीय नागरिकता पाने से रोकता है।
इन कदमों ने पार्टी की मुस्लिमों पर सख्त छवि को मजबूत किया है और उप्र का नया कानून भी ऐसा ही है। हाल के हफ्तों में अन्य BJP शासित राज्यों ने भी ‘लव जिहाद‘ पर उन्माद दिखाया है, जो पार्टी की जड़ों में मौजूद इस्मालोफोबिया को दर्शाता है। मध्य प्रदेश और हरियाणा की राज्य सरकारें भी ऐसा कानून बनाने की घोषणा कर चुकी हैं।
मध्य प्रदेश के एक BJP नेता ने हाल ही में नेटफ्लिक्स पर हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज करवाया, क्योंकि उसकी एक सीरीज में मुस्लिम अभिनेता व हिन्दू अभिनेत्री के बीच मंदिर के सामने चुंबन दृश्य था। नेता गौरव तिवारी ने आपत्तिजनक दृश्य हटाने की मांग की। इस मामले में मप्र के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने जांच के आदेश दिए थे।
यहां तक कि इन खबरों से कि उप्र में पुलिस ने सबूतों के अभाव में लव जिहाद के 14 मामलों में से 8 बंद कर दिए, BJP का सांप्रदायिक उत्साह ठंडा नहीं पड़ेगा। कुछ महीने पहले एक ज्वेलरी ब्रांड को भी विज्ञापन में अंतर धार्मिक विवाह दिखाने पर हिंसा की धमकियां दी गई थीं।
हालांकि इस्लाम BJP का पसंदीदा लक्ष्य रहा है, लेकिन उसने भारतीय ईसाई अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक क्रियाकलापों पर भी नाराजगी जताई है। BJP से जुड़े बजरंग दल ने हाल ही में उन हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा की धमकी दी थी, जो क्रिसमस पर चर्च जाएंगे। जहां हिंदू धर्म अन्य धर्मों का सम्मान करना सिखता है, वहीं जो इसके योद्धा होने का दावा करते हैं, वे ऐसी सार्वभौमिकता को नहीं मानते।
विडंबना यह है कि हिन्दुत्व ब्रिगेड को हिन्दू परंपरा की समझ नहीं है। भारतीय मूल्यों की उनकी समझ न सिर्फ प्राचीन और संकीर्ण मानसिकता वाली है, बल्कि पूर्णत: अनैतिहासिक है। भारतीय संस्कृति हमेशा ही नए व विभिन्न विचारों को स्वीकारने वाली रही है।
आज भारतीय सभ्यता में मुख्य युद्ध इन दो के बीच है.. पहले वे, जो मानते हैं कि हमारी संस्कृति विविध और व्यापक है और दूसरे जिन्होंने खुद अपनी संकीर्ण सोच के साथ ठान लिया है कि वे ही सच्चा भारतीय होने को परिभाषित करेंगे।
आधुनिक हिन्दू धर्म को हमेशा मतभेदों के प्रति सहिष्णु होने पर गर्व रहा है। आधुनिक युग के सबसे प्रसिद्ध हिन्दू संत स्वामी विवेकानंद ने सिखाया था कि हिन्दू सभ्यता सिर्फ सहिष्णु नहीं है, बल्कि यह स्वीकारती भी है। आज के धर्मांध मूल रूप से अपने ही धर्म हो धोखा दे रहे हैं, साथ ही संविधान को चोट पहुंचा रहे हैं।
यह मुद्दा छोटा नहीं है। अगर असहिष्णु गुंडों को उनकी असहिष्णुता और कानूनी भय दिखाने पर भी बचने दिया गया, तो बतौर सभ्यता और आजाद लोकतंत्र, भारत के अस्तित्व के लिए जरूरी चरित्र को हिंसा का सामना करना पड़ेगा।
बहुलतावदी और लोकतांत्रिक भारत को अपनी विभिन्न पहचानों की बहुलतापूर्ण अभिव्यक्ति को सहना होगा। अगर हम हिन्दू संस्कृति के स्व-घोषित पंचों को अपना पाखंड और दोहरे मापदंड थोपने देंगे, तो वे भारतीयता को तब तक परिभाषित करते रहेंगे, जब तक वह भारतीय ही न रह जाए।
BJP के नेतृत्व में चल रहे इस सांस्कृतिक युद्ध से अदालतों में लड़ना चाहिए, लेकिन इसे सभी भारतीयों के दिलों में जीता जाएगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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इस्लामिक दुनिया में मौजूदा बदलावों के मद्देनजर सेना प्रमुख की यूएई और सऊदी अरब यात्रा बहुत अहम
यूएई लगातार आगे बढ़ते हुए मिडिल ईस्ट में एक अहम कूटनीतिक राष्ट्र बन गया है। ऐसा इसकी विविध आर्थिक स्थिति के कारण हुआ है, जो कि ऊर्जा पर निर्भर है और विदेशी संबंधों को संभालने में बहुत दक्ष है। दूसरी तरफ सऊदी अरब ने अपनी कूटनीतिक छवि तीन कारकों से हासिल की है: पहला, इस्लाम के महान धार्मिक स्थलों की मौजूदगी, दूसरा, बहुसंख्यक सुन्नी दुनिया का आभासी नेतृत्व और तीसरा, उसके नियंत्रण के ऊर्जा भंडार, जो उसे फलती-फूलती अर्थव्यवस्था देते हैं।
जनरल नरवणे यूएई और सऊदी अरब की आधिकारिक यात्रा करने वाले पहले भारतीय सेना प्रमुख हैं। इस्लामिक दुनिया में मौजूदा बदलावों के मद्देनजर इस यात्रा का बहुत महत्व है। भारतीय विदेश नीति में सैन्य कार्यक्षेत्र को राजनीतिक कूटनीति के महत्वपूर्ण सहायक के रूप में अपर्याप्त जगह मिली है। लेकिन 2005 से चीजें बदलना शुरू हुईं जब ज्यादा संख्या में संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण होने लगे।
मौजूदा भारतीय सरकार ने सेना से सेना के संबंधों का महत्व जल्दी समझ लिया और सोच में यह बदलाव सैन्य कूटनीति में जरूरी प्रयोगों के रूप में नजर आया, जैसे सेना प्रमुख की ऐसे महत्वपूर्ण देशों की यात्राएं, जहां विश्वास बढ़ाने और फिर संबंध बनाने के लिए सैन्य कार्यक्षेत्र में ज्यादा गुंजाइश है। इसकी शुरुआत के लिए सरकार का म्यांमार को चुनना उचित था।
नरवणे और विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला इस वर्ष नवंबर में यांगून गए थे। चूंकि म्यांमार की सेना पारंपरिक रूप से वहां की विदेश नीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है, इसलिए यह समझदारी भरा कदम था कि भारतीय सेना प्रमुख को भी पहल का हिस्सा बनाया जाए। यही सिद्धांत नेपाल के मामले में भी लागू किया गया।
हिमालयी सुरक्षा के मामले में महत्वपूर्ण खिलाड़ी नेपाल को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। नेपाल ने दूरगामी परिणामों के बारे में सोचे बिना भारत के साथ कूटनीतिक आमना-सामना का प्रयोग किया। सेना प्रमुख की लंबित यात्रा के साथ आगे बढ़ना उचित फैसला था, आखिरकार 30 हजार नेपाली गोरखा सैनिक भारतीय सेना में सेवाएं देते हैं और हजारों सैनिक पेंशन पाते हैं।
इस तरह सेना प्रमुख की यूएई और सऊदी अरब की यात्रा के लिए मजबूत पृष्ठभूमि बन चुकी थी। यह एक तरह से ‘कूटनीति सुदृढ़ करना’ था, यह देखते हुए कि 2014 के बाद से भारत सरकार ने महत्वपूर्ण मध्य पूर्वी देशों के साथ रिश्ते बनाने में काफी समय और ऊर्जा खर्च की है। इसमें खाड़ी क्षेत्र को ज्यादा प्राथमिकता दी गई हैं, जिसमें यूएई और सऊदी पर ज्यादा ध्यान है। दोनों देशों में करीब 50 लाख प्रवासी भारतीय काम कर रहे हैं।
भारत उच्च कूटनीतिक आश्वासन के साथ इन देशों से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं लिए आयात करता है। दोनों अब गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल के महत्वपूर्ण राष्ट्र बनकर उभरे हैं। यूएई ने अमेरिका और इजराइल के साथ अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर की शुरुआत की। इससे मध्य पूर्व में स्थिरता लाने की प्रक्रिया में योगदान मिला, लेकिन इस्लामिक दुनिया में फूट भी पड़ी। खुद सऊदी ने इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, हालांकि उसके इजराइल से संबंध अच्छे हैं।
ओआईसी में सऊदी और यूएई की सत्ता को पिछले एक साल में मलेशिया, पाकिस्तान, ईरान और तुर्की (सभी गैर-अरब देश) से चुनौती मिली है। ये सभी जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर भारत-विरोधी रवैये पर एक हैं। हालांकि पाकिस्तान ने सऊदी और यूएई ने फिर संबंध बनाने के प्रयास किए हैं, खासतौर पर जब उससे तीन अरब डॉलर का कर्ज लौटाने को कहा गया और कई पाकिस्तानी कामगारों के वर्क वीजा रिन्यू नहीं किए गए।
इस उभरते परिदृश्य में भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह जीसीसी के साथ अपने संबंध मजबूत करे। राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में संबंध अच्छे से विकसित हुए हैं। यह सैन्य क्षेत्र ही है, जहां कुछ परिवर्तनकारी हासिल कर सकते हैं। सेनाओं के बीच संयुक्त अभ्यास कुछ साल पहले शुरू हो चुका है। इसके साथ यह दर्शाने की जरूरत है कि भारत और दोनों राष्ट्रों के बीच सेना से सेना के संबंध उच्च स्तर पर संपर्क के माध्यम से स्थापित हुए हैं।
कभी पाकिस्तान के 15000 सैनिक सऊदी में तैनात थे और इसके पायलट यूएई के फाइटर क्राफ्ट उड़ाते थे। यह पाक के लिए बड़ा झटका है, जो तुर्की और ईरान के साथ कभी इस तरह का संबंध नहीं बन पाया। भारतीय नेवी और वायुसेना को भी सऊदी अरब और यूएई के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए तैयार रहना चाहिए।
जनरल नरवणे की यूएई और सऊदी अरब की यात्राएं सही समय पर हुई हैं, जब मध्यपूर्व में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। यह संदेश भी दे रही हैं कि भारत अब एकीकृत विदेश नीति के क्षेत्र में आ चुका है, जहां कूटनीतिक और सैन्य क्षेत्र, दोनों एक दूसरे का पूरक बनते हैं। जल्द आ रहे नए अमेरिकी प्रशासन के साथ यह संदेश भी मिलता है कि भारत स्थापित संबंधों में प्रयोग का इच्छुक है, जो आखिर में मिडिल ईस्ट में सत्ता का सही संतुलन बनाने में मदद करेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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शुरू होगी सियासत की पाठशाला; जहां चुनाव लड़ना, जीतना और ईमानदारी से जनसेवा के गुर सिखाए जाएंगे
राजनीति में आने का सपना देख रहे युवाओं के लिए अब एक पेशेवर प्रशिक्षण केंद्र खुलने वाला है। इस सियासत की पाठशाला में युवाओं को ईमानदार राजनीति के साथ चुनाव लड़ने, जीतने और जनता का दिल जीतने के सबक पढ़ाए जाएंगे। इंडियन स्कूल ऑफ डेमोक्रेसी के बैनर तले इस कोर्स की शुरुआत हो रही है। स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) से ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू हो जाएगा।
दलगत राजनीति से अलग सियासत की इस पाठशाला में हर विचारधारा के लोगों को जगह मिलेगी। देशभर से 50 युवा उम्मीदवार चुने जाएंगे। इनकी 9 महीने की ट्रेनिंग होगी। अमेरिका के कोलंबिया और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से लोकनीति (पब्लिक पॉलिसी) की पढ़ाई करके निकले एक्सपर्ट यहां ट्रेनिंग देंगे। लेक्चर देने के लिए अलग-अलग पार्टियों के वरिष्ठ नेता बुलाए जाएंगे।
जापान के मात्सुशिता संस्थान की तरह प्रयोग
इस नए स्कूल की शुरुआत प्रखर भारतीय और हेमाक्षी मेघानी नाम के दो युवा कर रहे हैं। हेमाक्षी हार्वर्ड और प्रखर कोलंबिया यूनिवर्सिटी से लोकनीति में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ले चुके हैं। इन दोनों ने जापान के मात्सुशिता संस्थान की तर्ज पर यह प्रयोग किया है।
प्रशिक्षण, आवास की पूरी फीस 2 लाख रुपए
इस ट्रेनिंग प्रोग्राम की फीस 2 लाख रुपए रखी गई है। इसमें आवासीय खर्च और मैदानी प्रशिक्षण शामिल है। चुने गए लोगों को छात्रवृत्ति भी दी जाएगी। इसके देश के उन उद्योगपतियों और कॉरपोरेट घरानों से संपर्क किया जा रहा है, जो ईमानदारी की राजनीति को बढ़ावा देना चाहते हैं।
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सदियों तक नीची जातियों के साथ खराब व्यवहार किया, इसके लिए हमें शर्म से सिर झुका लेना चाहिए
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है, ‘हमने सदियों तक निचली जातियों (अनुसूचित जाति/जनजाति) के साथ खराब व्यवहार किया। आज भी उनके साथ ठीक बर्ताव नहीं हो रहा है। उनके पास मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं। इसके लिए हमें अपना सिर शर्म से झुका लेना चाहिए।’
हाईकोर्ट की बेंच ने यह टिप्पणी तमिल दैनिक ‘दिनकरन’ में 21 दिसंबर को छपी खबर को लेकर की। कोर्ट ने इस खबर पर खुद एक्शन लिया था। खबर में बताया गया था कि मेलूर तालुक की मरुथुर कॉलोनी के एक दलित परिवार को अपने परिजन का अंतिम संस्कार करने के लिए खेतों से गुजरकर कब्रिस्तान जाना पड़ा। क्योंकि, वहां तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं थी।
अनुसूचित जाति के लोग भी सुविधाओं के हकदार
सड़क न होने से परिवार को तो परेशानी हुई ही, खेत में आवाजाही से खड़ी फसलों को भी नुकसान हुआ। अदालत ने कहा, ‘समाज के दूसरे लोगों की तरह अनुसूचित जाति के लाेगाें को भी कब्रिस्तान या विश्राम घाट तक पहुंचने के लिए अच्छी सड़क की सुविधा मिलनी चाहिए। लेकिन, इस खबर से पता चलता है कि उनके पास ऐसी सुविधा, अब भी कई जगह नहीं है। इसीलिए अदालत ने इस खबर को जनहित याचिका मानकर सुनवाई की है।’
कोर्ट ने पूछा- कितनी बस्तियों में कब्रिस्तान तक पहुंचने की सड़क नहीं है?
इस मामले में कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव के साथ ही आदिवासी कल्याण, राजस्व, नगरीय निकाय और जल आपूर्ति विभागों के प्रमुख सचिवों को पार्टी बनाकर उनसे जवाब मांगा है। अफसरों से अनुसूचित जाति की बस्तियों में मौजूद सुविधाओं को लेकर सवाल भी पूछे।
- 1. तमिलनाडु में अनुसूचित जाति के लोगों की कितनी बस्तियां हैं?
- 2. क्या अनुसूचित जाति की सभी बस्तियों में साफ पानी, स्ट्रीट लाइट, शौचालय, कब्रिस्तान तक पहुंचने के लिए सड़क आदि की सुविधा है?
- 3. ऐसी कितनी बस्तियां हैं, जहां कब्रिस्तान तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है?
- 4. इन लोगों को परिजनों के शव के साथ कब्रिस्तान तक पहुंचने के लिए सड़क की सुविधा मिले, इसके लिए अब तक क्या कदम उठाए गए?
- 5. ऐसी सभी बस्तियों में साफ पानी, स्ट्रीट लाइट, शौचालय, कब्रिस्तान तक पहुंचने के लिए सड़क की सुविधा कब तक मिल जाएगी?
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कहानी उस प्रधानमंत्री की, जो कवि और पत्रकार भी रहे थे; जिन्होंने भारत को न्यूक्लियर स्टेट बनाया
वो एक स्कूल टीचर के बेटे थे। अपने पिता के साथ उन्होंने एलएलबी की पढ़ाई की। करियर पत्रकारिता से शुरू किया, लेकिन शौक कविताएं लिखने का था। पढ़ाई के दौरान ही आरएसएस से जुड़े, वहीं से राजनीति की ओर रुख किया। उनके भाषणों को सुनने के लिए विरोधी भी उनकी सभाओं में जाते थे।
पहला चुनाव लड़ा तो हार गए। दूसरी बार तीन जगह से चुनाव लड़े तो एक जगह से जीत मिली। एक वक्त ऐसा तक आया, जब उनकी पार्टी के दो सांसद थे, जिनमें से एक वो खुद थे। एक वक्त ऐसा भी आया, जब वो देश के प्रधानमंत्री बने और 20 से ज्यादा दलों के समर्थन के साथ। हम बात कर रहे हैं अटल बिहारी वाजपेयी की। आज ही के दिन 1924 में उनका जन्म हुआ था।
दुनिया उनकी भाषण शैली की कायल थी। लेकिन, वही अटलजी जब स्कूल के फंक्शन में पहली बार अपना भाषण पढ़ने खड़े हुए थे तो आधे भाषण के बाद उन्होंने बोलना बंद कर दिया था, क्योंकि वो अपना भाषण भूल गए थे।
अटलजी तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे। पहली बार 13 दिन और दूसरी बार 13 महीने के लिए। 13 अक्टूबर 1999 को तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और देश के पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया।
बात मई 1998 की है। अटलजी को प्रधानमंत्री बने महज 3 महीने हुए थे। 11 मई की दुनियाभर में ये खबर चली की भारत ने न्यूक्लियर टेस्ट किया है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए तक को इसकी भनक नहीं लगी। 13 मई को एक बार फिर भारत ने सफल टेस्ट किया। इसी के साथ भारत दुनिया के परमाणु शक्ति संपन्न देशों की लिस्ट में शामिल हो गया।
वो अटलजी ही थे, जिनकी सरकार के फैसले की वजह से कभी 17 रुपए मिनट कॉलिंग वाले मोबाइल पर बात फ्री कॉलिंग तक पहुंची। उनकी सरकार ने टेलीकॉम फर्म्स के लिए फिक्स्ड लाइसेंस फीस को खत्म कर दिया और उसकी जगह रेवेन्यू शेयरिंग की व्यवस्था शुरू की। अटल सरकार में ही 15 सितंबर 2000 को भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) का गठन किया। इसके अलावा टेलीकॉम सेक्टर में होने वाले विवादों को सुलझाने के लिए 29 मई 2000 को टेलीकॉम डिस्प्यूट सेटलमेंट अपीलेट ट्रिब्यूनल (TDSAT) को भी गठन किया।
भारत और दुनिया में 25 दिसंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं :
2015: एक्ट्रेस साधना का निधन हुआ। साधना ने मेरे महबूब, हम दोनों, वो कौन थी, राजकुमार, वक्त, मेरा साया, एक फूल-दो माली जैसी फिल्मों में काम किया था।
2012: दक्षिणी कजाकिस्तान के शिमकेंट में एएन-72 प्लेन क्रैश हो गया। प्लेन में सवार 27 लोगों की मौत हुई।
1994: पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह का निधन हुआ।
1991: राष्ट्रपति मिखाइल एस. गोर्बाचेव ने इस्तीफा दिया। इसके साथ ही सोवियत संघ का विभाजन एवं उसका अस्तित्व समाप्त। अगले दिन यानी 26 दिसंबर को रूस अस्तित्व में आया।
1977: हॉलीवुड के मशूहर कॉमेडियन चार्ली चैपलिन का निधन।
1959: केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले का जन्म हुआ। आठवले महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष हैं।
1926: मशहूर हिन्दी साहित्यकार धर्मवीर भारती का जन्म प्रयागराज में हुआ। गुनाहों का देवता और सूरज का सातवां घोड़ा उनकी सबसे चर्चित रचनाएं थीं।
1876: पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना का जन्म हुआ।
1861: महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद और बड़े समाज सुधारक मदनमोहन मालवीय का जन्म हुआ। 2014 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
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आज 9 करोड़ किसानों के खाते में 18 हजार करोड़ रु. ट्रांसफर करेंगे PM मोदी; कृषि कानूनों के फायदे भी बताएंगे
एक तरफ कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन चल रहा है, तो वहीं, केंद्र सरकार आज प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम किसान) की किश्त जारी करेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के 9 करोड़ किसानों के खाते में 18 हजार करोड़ रुपए की किश्त ट्रांसफर करेंगे। हर किसान के खाते में 2-2 हजार रुपए जाएंगे। इस दौरान प्रधानमंत्री 6 राज्यों के किसानों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बात भी करेंगे। इस कार्यक्रम को देशभर के 2 करोड़ से ज्यादा किसानों को दिखाया जाएगा।
आज का दिन क्यों चुना?
आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है। देशभर में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की ओर से कार्यक्रम कराए जाएंगे। इन कार्यक्रमों में केंद्रीय मंत्री, BJP शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक शामिल होंगे। किसानों के लिए चौपाल लगाई जाएगी और उन्हें प्रधानमंत्री का संबोधन दिखाया जाएगा। इस दौरान BJP कार्यकर्ता घर-घर जाकर कृषि कानूनों को लेकर लिखे गए कृषि मंत्री के लिखे पत्र को बांटेंगे।
हर साल 6 हजार रुपए किसानों को दिए जाते हैं
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत देशभर के किसानों को हर साल केंद्र सरकार की तरफ से 6 हजार रुपए 3 किश्तों में दिए जाते हैं। अब तक 10 करोड़ 96 लाख किसानों को इस योजना का लाभ मिल चुका है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने यह जानकारी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी। उन्होंने बताया कि PM मोदी किसानों को नए कृषि कानून की खूबियां भी बताएंगे। इस कार्यक्रम के लिए 22 दिसंबर तक देशभर के 2 करोड़ किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया है।
किसान आंदोलन का आज 30वां दिन
कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे किसानों के आंदोलन का आज 30वां दिन है। सरकार ने गुरुवार को एक और चिट्ठी लिखकर किसानों से बातचीत के लिए दिन और समय तय करने की अपील की। चिट्ठी में लिखा है कि किसानों के मुद्दों को हल करने के लिए सरकार गंभीर है।
साथ ही सरकार ने यह भी साफ कर दिया कि मिनिमम सपोर्ट प्राइज से जुड़ी कोई भी नई मांग जो नए कृषि कानूनों के दायरे से बाहर है, उसे बातचीत में शामिल करना तर्कसंगत नहीं होगा। बुधवार को ही किसानों ने सरकार के पिछले न्योते को ठुकरा दिया था। उन्होंने कहा था कि सरकार के प्रपोजल में दम नहीं, नया एजेंडा लाएं तभी बात होगी।
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करनाल में SKM की मीटिंग आज:किसान नेता लेगें हिस्सा, लंबित मांगों को लेकर ले सकते हैं बड़ा फैसला
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