रविवार, 3 जनवरी 2021

UK से आने वाले लोग उठाएंगे RT-PCR का खर्च, कंट्रोवर्सी में फंसे इंडियन प्लेयर और देसी वैक्सीन को मिला अप्रूवल

नमस्कार!
बंगाल टाइगर सौरभ गांगुली को हार्ट अटैक आने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया। किसान आंदोलन में शनिवार को तीसरे प्रदर्शनकारी ने सुसाइड कर लिया। अमेरिका ने आतंकियों का फंड सीज कर दिया है। बहरहाल शुरू करते हैं न्यूज ब्रीफ।

आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर

  • शिवराज कैबिनेट का विस्तार हो सकता है। सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत शपथ ले सकते हैं।
  • राजस्थान के CM अशोक गहलोत ने किसान आंदोलन का समर्थन किया है। प्रदेश कांग्रेस भी धरना-प्रदर्शन करेगी।
  • ओडिशा का जगन्नाथ मंदिर कोरोना के चलते 9 महीने तक बंद रहने के बाद श्रद्धालुओं के लिए खुलेगा।

देश-विदेश

टीम इंडिया को लेकर बड़ी कॉन्ट्रोवर्सी
ऑस्ट्रेलिया के साथ 7 जनवरी को शुरू हो रहे तीसरे टेस्ट से पांच दिन पहले टीम इंडिया परेशानी में पड़ गई है। मेलबोर्न के एक इनडोर रेस्टोरेंट में खाना खाने का वीडियो सामने आने के बाद पांच खिलाड़ियों को आइसोलेट किया गया है। ये पांच खिलाड़ी हैं- रोहित शर्मा, ऋषभ पंत, शुभमन गिल, नवदीप सैनी और पृथ्वी शॉ। क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया (CA) ने कहा है कि इन खिलाड़ियों के कोविड प्रोटोकॉल तोड़ने के आरोप की भी जांच की जा रही है। आइसोलेशन प्रोटोकॉल के मुताबिक, पांचों खिलाड़ियों को ट्रेनिंग और सफर के दौरान बाकी भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों से अलग कर दिया गया है।

किसान आंदोलन में एक और सुसाइड
कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर 38 दिन से किसानों का आंदोलन जारी है। यहां गाजीपुर बॉर्डर पर शनिवार को 75 साल के किसान कश्मीर सिंह ने टॉयलेट में फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। कश्मीर सिंह ने सुसाइड नोट में लिखा, ‘सरकार फेल हो गई है। आखिर हम यहां कब तक बैठे रहेंगे। सरकार सुन नहीं रही है। इसलिए मैं जान देकर जा रहा हूं। अंतिम संस्कार मेरे बच्चों के हाथों दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर होना चाहिए। मेरा परिवार, बेटा-पोता यहीं आंदोलन में निरंतर सेवा कर रहे हैं।’किसान नेता अशोक धवाले ने बताया कि आंदोलन में अब तक 50 किसानों की जान जा चुकी है।

स्वदेशी कोरोना वैक्सीन को मंजूरी
देश की पहली स्वदेशी कोरोना वैक्सीन ''कोवैक्सीन'' को भी इमरजेंसी यूज के लिए सशर्त मंजूरी मिल गई है। न्यूज एजेंसी ने सूत्रों के हवाले से बताया कि सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (CDSCO) के एक्सपर्ट पैनल ने शनिवार को इसकी सिफारिश की। इसे हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के साथ मिलकर बनाया है। एक दिन पहले ही एक्सपर्ट पैनल ने सीरम इंस्टीट्यूट की कोवीशील्ड को इमरजेंसी यूज के लिए सशर्त मंजूरी दी थी।

कोरोना वैक्सीन का ड्राई रन
शनिवार को पूरे देश में वैक्सिनेशन का ड्राई रन किया गया। इसमें 125 जिलों के 285 सेंटर शामिल थे। इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने पहले कहा कि कोरोना वैक्सीन पूरे देश में फ्री होगी। फिर डेढ़ घंटे बाद बोले कि पहले फेज में यह 3 करोड़ लोगों के लिए फ्री मिलेगी। इनमें 1 करोड़ हेल्थकेयर वर्कर्स और 2 करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर्स शामिल होंगे। ड्राई रन की प्रोसेस में वैक्सीनेशन से इतर चार स्टेप्स शामिल थे। इनमें 1. बेनीफिशियरी की जानकारी, 2. जहां वैक्सीन दी जानी है उस जगह की डिटेल, 3. डाक्यूमेंट्स का वैरिफिकेशन और 4. वैक्सीनेशन की मॉक ड्रिल और रिपोर्टिंग की जानकारी शामिल था।

UK से आने वाले चुकाएंगे RT-PCR का बिल
भारत से यूके की फ्लाइट्स 6 जनवरी से जबकि, यूके से भारत की उड़ानें 8 जनवरी से शुरू हो जाएंगी। हर हफ्ते दोनों तरफ से 15-15 उड़ानें ऑपरेट होंगी। ऐसे में कोरोना के नए वैरिएंट के मद्देनजर स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रॉसिजर (SOP) जारी किया है। इसके मुताबि, UK से आने वाले यात्रियों को अपने खर्च पर RT-PCR टेस्ट करवाना जरूरी होगा। जीनोम सीक्वेंसिंग में अगर पुराना वैरिएंट मिलता है तो पेशेंट को होम आइसोलेशन या कोविड सेंटर में रखने का मौजूदा प्रोटोकॉल लागू होगा। अगर नया वैरिएंट मिलता है तो सेपरेट आइसोलेशन यूनिट में ही रखा जाएगा।

बंगाल टाइगर को हार्ट अटैक
टीम इंडिया के पूर्व कप्तान और वर्तमान में BCCI के अध्यक्ष सौरव गांगुली (48) को शनिवार को माइल्ड हार्ट अटैक के बाद कोलकाता के वुडलैंड हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। उनकी एंजियोप्लास्टी की गई है। गांगुली की हालत खतरे से बाहर है। वुडलैंड हॉस्पिटल की MD और CEO रूपाली बसू ने कहा- गांगुली की हालत स्थिर है। उनकी प्राइमरी एंजियोप्लास्टी की गई है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनकड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अस्पताल पहुंचकर गांगुली के स्वास्थ्य की जानकारी ली।

एक्सप्लेनर
भारत-पाक ने साझा की परमाणु प्रतिष्ठानों की लिस्ट

जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में शुक्रवार को पाकिस्तान ने फिर सीजफायर तोड़ा। इसमें नायब सूबेदार रविंद्र कुमार शहीद हो गए। पाकिस्तान की तरफ से सीजफायर का ये उल्लंघन दोपहर 3:30 बजे हुआ था। लेकिन इससे ठीक 4 घंटे पहले भारत ने पाकिस्तान को अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की लिस्ट सौंपी। उससे आधे घंटे पहले पाकिस्तान ने भी भारत को अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की लिस्ट दे दी थी। लेकिन जब दोनों देशों के बीच तनाव चल रहा है, तो फिर दोनों देशों ने अपने-अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की लिस्ट एक-दूसरे को क्यों दी? क्या ये पहली बार हुआ है? आइए जानते हैं....
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पॉजिटिव खबर
कश्मीर की पहली महिला बस ड्राइवर

जम्मू की रहने वाली पूजा देवी इन दिनों चर्चा में हैं। लोग उनकी तारीफ कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर तस्वीरें शेयर कर रहे हैं। कई लोग उनके साथ सेल्फी भी लेते हैं। दरअसल पूजा की इस लोकप्रियता की वजह है उनका जम्मू कश्मीर की पहली महिला बस ड्राइवर बनना। पूजा कहती हैं कि ड्राइविंग उनका शौक रहा है। लेकिन घर के लोग नहीं चाहते थे कि मैं यह काम करूं। उनका मानना था कि ये पुरुषों का काम है। कई लोग ताने भी मारते थे, कुछ लोग आपत्तिजनक कमेंट भी करते थे। लेकिन मैंने भी तय कर लिया था कि जिसे जो कहना है कहे, मुझे अपना काम जारी रखना है। आज उन्होंने अपनी मंजिल हासिल कर ली है।
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आतंकी संगठनों की मोटी रकम सीज
अमेरिका ने 2019 में दुनिया के कई आतंकी संगठनों के करीब छह करोड़ तीस लाख डॉलर (460 करोड़ रुपए) ब्लॉक कर दिए। इनमें पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन भी शामिल हैं। ये तीनों संगठन कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देते रहे हैं। अमेरिकी ट्रेजरी डिपार्टमेंट की ओर से गुरुवार को जारी एनुअल रिपोर्ट में बताया गया है कि लश्कर-ए-तैयबा के तीन लाख 42 हजार डॉलर, जैश-ए-मोहम्मद के 1,725 डॉलर और हरकत-उल-मुजाहिदीन-अल-इस्लामी के 45,798 डॉलर सीज किए गए हैं। वहीं, हिजबुल मुजाहिदीन के 4321 डॉलर ब्लॉक किए गए हैं।

सुर्खियों में और क्या है

  • देश के टॉप-5 संक्रमित शहरों की लिस्ट में बेंगलुरु पहले नंबर पर हो गया है। यहां अब तक 3.88 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं।
  • ब्रिटेन में कोरोना मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ने पर अस्पतालों में बेड कम पड़ने लगे हैं। शुक्रवार को 28 हजार से ज्यादा संक्रमित अस्पतालों में भर्ती हुए।


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देश में कोरोना वैक्सीन मिलेंगी भरपूर, अपनी च्वाइस बताइए हुजूर!



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जो लोग बुराई या चुगली करते हैं, उनसे सावधान रहें, वरना आपका बड़ा नुकसान हो सकता है

कहानी- रामायण में राजा दशरथ ने ये घोषणा कर दी थी कि अगले दिन राम का राज्याभिषेक किया जाएगा। इस घोषणा से कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी के साथ ही पूरी अयोध्या खुश थी, लेकिन मंथरा उदास थी।

मंथरा कैकयी के विवाह में दहेज में आई थी। उसका स्वभाव बने बनाए काम को बिगाड़ने का था। उसे इसी काम में मजा आता था और वह यही कोशिश करती रहती थी कि कैसे दूसरों का नुकसान किया जाए। मंथरा कुटिल बुद्धि की महिला थी, दूसरों की बुराई और चुगली करने में उसे महारत हासिल थी।

राम के राज्याभिषेक से पहले वाली रात कैकयी ने देखा कि मंथरा निराश बैठी है। रानी ने उससे कारण पूछा तो मंथरा बोली, 'आज सभी खुश हैं, लेकिन मैं दुखी हूं, क्योंकि मैं तुम्हारे हित के बारे में सोच रही हूं। राम राजा बन गया तो वह कौशल्या के साथ मिलकर तुम्हें और तुम्हारे बेटे भरत को जेल डाल देगा।'

यह बात सुनकर कैकयी को बहुत गुस्सा आया और मंथरा को एक चांटा मार दिया। कैकयी बोली, 'तू राजा दशरथ, राम और कौशल्या की बुराई मेरे सामने मत कर।'

मंथरा ने हिम्मत नहीं हारी, चांटा खाने के बाद भी वह धीरे-धीरे ऐसी बातें कहती रही, जिससे कैकयी का मन बदल जाए। वह कैकयी की कमजोरी बहुत अच्छी तरह जानती थी। मंथरा की कुछ बातें सुनकर कैकयी घबरा गई। उसे लगा कि ये सही बोल रही है।

रानी से मंथरा से पूछा, 'अब तू ही बता, मैं क्या करूं?'

मंथरा ने कहा, 'राजा दशरथ ने तुम्हें दो वरदान दे रखे हैं। तुम दोनों वरदान मांग लो। पहले वरदान में राम के लिए 14 वर्ष का वनवास और दूसरे में भरत का राज्यभिषेक ले लेना।'

इस तरह जो कैकयी राम से बहुत प्रेम करती थी, वह मंथरा की बातों में आ गई और राम को वनवास भेज दिया।

सीख - घर, व्यवसाय और समाज में हमें ध्यान रखना चाहिए कि हमारे आसपास कई लोग ऐसे हैं, जिन्हें बुराई और चुगली करने में मजा आता है। ऐसे लोग इधर की बात उधर करते हैं और बने-बनाए काम को बिगाड़ देते हैं। जब हम सुनी हुई बातों पर भरोसा करने लगते हैं तो हमारा नुकसान जरूर होता है। ऐसे लोगों से बचना चाहिए, जो निंदा करके अच्छे कामों को बिगाड़ देते हैं।



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घर वालों ने विरोध किया, लोग ताने मारते थे, फिर भी हिम्मत नहीं हारी, अब बनी हैं जम्मू-कश्मीर की पहली महिला बस ड्राइवर

जम्मू की रहने वाली पूजा देवी इन दिनों चर्चा में हैं। लोग उनकी तारीफ कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर तस्वीरें शेयर कर रहे हैं। वे जहां भी जाती हैं उन्हें देखने और उनसे मिलने के लिए लोग इकट्ठे हो जाते हैं। कई लोग उनके साथ सेल्फी भी लेते हैं। दरअसल पूजा की इस लोकप्रियता की वजह है उनका जम्मू कश्मीर की पहली महिला बस ड्राइवर बनना। कठुआ के सांसद और केंद्र में मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने भी सोशल मीडिया पर पूजा की तस्वीर शेयर की है।

पिछले साल 23 दिसंबर को उन्होंने एक प्रोफेशनल ड्राइवर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने जम्मू से कठुआ का 80 किलोमीटर का सफर किया। जो उनके लिए यादगार बन गया। कठुआ जिले के बसोहली से आने वाली पूजा एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती हैं। घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है।

आसान नहीं था सफर

पिछले साल 23 दिसंबर को पूजा ने एक प्रोफेशनल ड्राइवर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की।

पूजा कहती हैं कि ड्राइविंग उनका शौक रहा है। वे हमेशा से एक प्रोफेशनल ड्राइवर बनना चाहती थीं, लेकिन घर के लोग नहीं चाहते थे कि मैं यह काम करूं। उनका मानना था कि यह पुरुषों का काम है। महिलाओं के लिए ड्राइवर बनना सेफ नहीं है। कई लोग ताने भी मारते थे, कुछ लोग आपत्तिजनक कमेंट भी करते थे, लेकिन मैंने भी तय कर लिया था कि जिसे जो कहना है कहे, मुझे अपना काम जारी रखना है।

पूजा ने पांच साल पहले ड्राइविंग सीखना शुरू किया। जिन लोगों के पास छोटी गाड़ी या कार होती थी, पूजा उनसे कुछ देर सिखाने की रिक्वेस्ट करती थी। कई लोग मना भी कर देते थे। उन्होंने सबसे पहले कार चलाना सीखा। घरवाले मना करने लगे तो वे छिपकर सीखने जाती थीं। धीरे-धीरे उनकी प्रैक्टिस होती रही। इसके बाद मामा राजिंदर सिंह से ट्रक ड्राइविंग सीखी। फिर भारी वाहन चलाने के लिए आवेदन किया।

कल जो विरोध कर रहे थे, वही आज तारीफ करते हैं

वे कहती हैं कि शुरुआत में कुछ लोग विरोध करते ही हैं। हम उन्हें रोक नहीं सकते हैं। मैं महिलाओं से बस इतना ही कहना चाहती हूं कि कोई भी काम हो, अगर आप उसे करना चाहती हैं तो जरूर करिए। यह मत सोचिए कि लोग क्या कहेंगे। कल जो लोग मेरा विरोध कर रहे थे, आज वही लोग मुझे सोशल मीडिया या टीवी पर देख रहे हैं और तारीफ कर रहे हैं। कई लोग मुझसे मिलने के लिए आते हैं, मेरे साथ सेल्फी लेते हैं।

पूजा की शादी हो चुकी है। उनके तीन बच्चे हैं। वे बताती हैं कि ड्राइविंग के साथ-साथ मुझे बच्चों का भी ख्याल रखना होता है। मैं उनकी हर जरूरत पूरी करती हूं। पहले भी जब ड्राइविंग सीख रही थी तब भी घर का काम करती थी।

पूजा का छोटा बच्चा भी अक्सर उनके साथ रहता है। वे ड्राइविंग के साथ परिवार की भी देखभाल करती हैं।

ड्राइविंग के लिए ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट खोलना चाहती हैं

पूजा बताती हैं कि अब उन्हें गर्व महसूस होता है कि वे अपने सपने को पूरा कर पाईं। लोगों से उनको भरपूर सपोर्ट भी मिलता है। वे कहती हैं कि लड़कियां इस फिल्ड में आएं। मैं उन्हें ट्रेनिंग देने के लिए भी तैयार हूं। जब महिलाएं फाइटर प्लेन उड़ा सकती हैं, एक्सप्रेस ट्रेन चला रही हैं तो फिर बस क्यों नहीं चला सकतीं। वे आगे एक ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट भी खोलना चाहती हैं, ताकि लोगों को ड्राइविंग सिखा सकें।



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जम्मू के कठुआ जिले की रहने वाली पूजा देवी राज्य की पहली महिला बस ड्राइवर बनी हैं।


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एक्सपर्ट पैनल की सिफारिश के बाद कोवीशील्ड और कोवैक्सिन को आज मिल सकती है मंजूरी; DCGI ने 11 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई

आज कोरोना वैक्सीन को लेकर सबसे बड़ी और अच्छी खबर आ सकती है। ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने 11 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई है। इसमें कोरोना की वैक्सीन को मंजूरी दिए जाने का ऐलान किया जा सकता है। DCGI के पास इस वक्त भारत बायोटेक की कोवैक्सिन और सीरम इंस्टीट्यूट की कोवीशील्ड को इमरजेंसी यूज के लिए सशर्त मंजूरी देने की सिफारिश है। सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (CDSCO) के एक्सपर्ट पैनल ने यह सिफारिश पिछले दो दिनों में की है।

इसी हफ्ते शुरू हो सकता है वैक्सीनेशन
कोरोना पर बनी सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी ने शनिवार को भारत बायोटेक की कोवैक्सिन को इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए सशर्त मंजूरी देने की सिफारिश कर दी थी। इसके पहले शुक्रवार को सीरम इंस्टिट्यूट की कोवीशील्ड को भी इसी तरह की मंजूरी दने की सिफारिश की गई थी। अगर आज दोनों या फिर दोनों में से किसी एक को भी DCGI की तरफ से मंजूरी मिल जाएगी तो उम्मीद जताई जा रही है कि इसी हफ्ते से वैक्सीनेशन ड्राइव भी शुरू हो जाएगा। तैयारियों को परखने के लिए पूरे देश में इसके लिए वैक्सीनेशन ड्राई रन भी शुरू हो चुका है।

कोवैक्सिन की क्या है खासियत ?

  • कोवैक्सिन के फेज-2 क्लीनिकल ट्रायल्स के नतीजे 23 दिसंबर को सामने आए थे। ट्रायल्स 380 सेहतमंद बच्चों और वयस्कों पर किए गए।
  • 3 माइक्रोग्राम और 6 माइक्रोग्राम के दो फॉर्मूले तय किए गए। दो ग्रुप्स बनाए गए। उन्हें दो डोज चार हफ्तों के अंतर से लगाए गए।
  • फेज-2 ट्रायल्स में कोवैक्सिन ने हाई लेवल एंटीबॉडी प्रोड्यूस की। दूसरे वैक्सीनेशन के 3 महीने बाद भी सभी वॉलंटियर्स में एंटीबॉडी की संख्या बढ़ी हुई दिखी।
  • ट्रायल के नतीजों के आधार पर कंपनी का दावा है कि कोवैक्सिन की वजह से शरीर में बनी एंटीबॉडी 6 से 12 महीने तक कायम रहती है।
  • एंटीबॉडी यानी शरीर में मौजूद वह प्रोटीन, जो वायरस, बैक्टीरिया, फंगी और पैरासाइट्स के हमले को बेअसर कर देता है।
  • कंपनी का दावा है कि फेज-3 के लिए देशभर में सबसे ज्यादा 23 हजार वॉलंटियर्स पर ट्रायल हुआ।

कोवीशील्ड की क्या है खासियत?

  • कोवीशील्ड के क्लिनिकल ट्रायल्स के एनालिसिस से बहुत अच्छे नतीजे सामने आए हैं। वॉलेंटियर्स को पहले हॉफ डोज दिया और फिर फुल डोज। किसी को भी हेल्थ से जुड़ी कोई गंभीर समस्या देखने को नहीं मिली है।
  • जब हॉफ डोज दिया गया तो इफिकेसी 90% मिली। एक महीने बाद उसे पूरा फुल डोज दिया गया। जब दोनों फुल डोज दिए गए तो इफिकेसी 62% रही।
  • दोनों ही तरह के डोज में औसत इफिकेसी 70% रही। सभी नतीजे आंकड़ों के लिहाज से खास हैं। इफिकेसी जानने के लिए वैक्सीन लगाने के एक साल बाद तक वॉलेंटियर्स के ब्लड सैम्पल और इम्युनोजेनिसिटी टेस्ट किए जाएंगे। इंफेक्शन की जांच के लिए हर हफ्ते सैम्पल लिए जा रहे हैं।
  • कोवीशील्ड अन्य वैक्सीन के मुकाबले सस्ती भी है।

फाइजर को छोड़कर दोनों वैक्सीन को एक्सपर्ट पैनल ने मंजूर किया
भारत में तीन फार्मा कंपनियों ने कोरोना वैक्सीन के इमरजेंसी यूज के लिए अप्रूवल मांगा था। एक्सपर्ट पैनल ने इनमें से कोवीशील्ड और कोवैक्सीन को सशर्त मंजूरी दे दी, जबकि अमेरिकन फार्मा कंपनी फाइजर की ओर से बनाई गई वैक्सीन से और डेटा मांगा गया है। इसे WHO ने पूरी दुनिया में इमरजेंसी यूज के लिए अप्रूवल दिया है।

वहीं, कोवीशील्ड या AZD1222 को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर बनाया है। अदार पूनावाला का सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) इसके भारत में ट्रायल्स कर रहा है। 1 जनवरी को सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी ने इसे मंजूरी देने की सिफारिश की। कोवैक्सिन स्वदेशी है। इसे हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के साथ मिलकर बनाया है।

3 करोड़ लोगों को फ्री में लगाई जाएगी वैक्सीन
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने पहले कहा कि कोरोना वैक्सीन पूरे देश में फ्री होगी। फिर डेढ़ घंटे बाद बोले कि पहले फेज में यह 3 करोड़ लोगों के लिए फ्री मिलेगी। इनमें 1 करोड़ हेल्थकेयर वर्कर्स और 2 करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर्स शामिल होंगे। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, वैक्सीनेशन करने वाली टीम में 5 सदस्य होंगे।

इन देशों में इमरजेंसी यूज की मंजूरी मिली

  • अमेरिका में फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन को इमरजेंसी यूज का अप्रूवल मिल चुका है।
  • ब्रिटेन ने फाइजर और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को मंजूरी दी है। यहां वैक्सीनेशन चल रहा है।
  • चीन ने हाल में स्वदेशी कंपनी सिनोफार्म की वैक्सीन को कुछ शर्तों के साथ मंजूरी दी है।
  • रूस में भी स्वदेशी वैक्सीन स्पूतनिक V के जरिए मास वैक्सीनेशन शुरू किया जा चुका है।
  • कनाडा ने फाइजर और बायोएनटेक की वैक्सीन को मंजूरी दी है।


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फोटो मुंबई की है। यहां शनिवार को हुए वैक्सीनेशन ड्राई रन में डीप फ्रीजर से वैक्सीन निकालते हेल्थ स्टाफ।


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मीठा खाने के शौकीन हैं तो इस संडे बनाएं पाइनएप्पल हलवा, इसे कटा हुआ पिस्ता डालकर सर्व करें



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If you are fond of eating sweet, then make this Sunday pineapple halwa, serve it by adding chopped pistachios


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इटली की सत्ता पर उस तानाशाह का कब्जा हुआ, जिसके जुल्म से नाराज जनता ने उनके शव को भी नहीं छोड़ा था

1922 में 27-28 अक्टूबर की रात को 30 हजार लोगों ने इटली के तब के प्रधानमंत्री लूजी फैक्टा के इस्तीफे की मांग को लेकर रोम पर चढ़ाई कर दी। इस भीड़ के लीडर थे बेनितो मुसोलिनी। लोकतांत्रिक सरकार की रक्षा करने से सेना ने भी हाथ खींच लिए। नतीजा ये हुआ कि फैक्टा को सत्ता छोड़नी पड़ी। उनकी जगह नए प्रधानमंत्री बने बेनितो मुसोलिनी।

मुसोलिनी इटली की नेशनल फासिस्ट पार्टी के नेता थे। वे 1922 से लेकर 1943 तक लगातार 21 सालों तक इटली के प्रधानमंत्री रहे। अपने कार्यकाल के शुरुआती तीन साल तक उन्होंने लोकतंत्र की इज्जत करते हुए शासन किया। मुसोलिनी ने आज ही के दिन 1925 में खुद को इटली का तानाशाह घोषित कर दिया। शुरुआत में तो मुसोलिनी को जनता ने बहुत प्यार दिया। जनता पूरी ताकत के साथ उनके पीछे खड़ी रहती थी। लेकिन बाद में मुसोलिनी ने तानाशाही शुरू कर दी, जिससे वहां की जनता का जीना हराम हो गया।

ये वो वक्त था जब जर्मनी में एडोल्फ हिटलर का शासन था, जो खुद भी एक तानाशाह था। हिटलर और मुसोलिनी के बीच दोस्ती भी थी और थोड़ी खटास भी। खटास इसलिए क्योंकि उस वक्त मुसोलिनी से ज्यादा प्रसिद्ध हिटलर था। इसी बात से मुसोलिनी को उससे जलन होती थी। हालांकि, इन सबके बाद भी दूसरे विश्व युद्ध के समय मुसोलिनी ने हिटलर का साथ दिया। इसी वजह से 25 जुलाई 1943 को इटली के राजा ने मुसोलिनी की सरकार को बर्खास्त कर दिया।

मुसोलिनी, उनकी प्रेमिका क्लारेटा पेटाची और उनके साथियों को गोली मारकर उल्टा लटका दिया गया था।

1945 में जब तय हो गया कि जर्मनी दूसरा विश्व युद्ध हारने जा रहा है, तो मुसोलिनी ने स्विट्जरलैंड भागने की कोशिश की। लेकिन उन्हें उनके कुछ साथियों और प्रेमिका क्लारेटा पेटाची के साथ पकड़ लिया गया। 28 अप्रैल 1945 को मुसोलिनी और उनकी प्रेमिका को गोली मार दी गई। गोली मारने के बाद उनके शव को उल्टा लटका दिया गया। मुसोलिनी के शासन से जनता इतनी तंग आ चुकी थी कि शव के साथ जितना बुरा बर्ताव हो सकता था, जनता ने उससे ज्यादा बुरा किया। मुसोलिनी और उसकी प्रेमिका के शव पर लोगों ने थूका, लात-घूसे मारे, उनके शव पर चढ़कर कूदे। पूरे दिन उनके शव मिलान में पड़े रहे। अगले दिन उन्हें किसी गुमनाम जगह दफनाया गया।

भारत की पहली महिला शिक्षक का जन्म
3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के पुणे में एक दलित परिवार में सावित्रीबाई फुले का जन्म हुआ। उनके पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। 1840 में मात्र 9 साल की उम्र में सावित्रीबाई का विवाह 13 साल के ज्योतिराव फुले के साथ हुआ। सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिराव फुले ने 1848 में मात्र 9 स्टूडेंट्स को लेकर एक स्कूल की शुरुआत की थी। ज्योतिराव ने अपनी पत्नी को घर पर ही पढ़ाया और एक शिक्षक बनाया। सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका हैं और वही महिला थीं, जिन्होंने लड़कियों की पढ़ाई का जिम्मा उठाया था। 1897 में पुणे में प्लेग फैल गया। इसी महामारी से 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया।

भारत और दुनिया में 3 जनवरी की महत्वपूर्ण घटनाएं :

  • 2015 : नाइजीरिया के पूर्वोत्तर शहर बागा में आतंकवादी संगठन बोको हराम के हमले में लगभग 2000 लोगों की मौत।
  • 2014 : अल कायदा के आतंकवादियों ने इराक के फालुजा में पुलिस मुख्यालय को नुकसान पहुंचाया और इलाके को अपने कब्जे में बताते हुए उसके एक स्वतंत्र क्षेत्र होने का ऐलान किया।
  • 2005 : USA ने तमिलनाडु में सुनामी पीड़ितों को साफ पानी मुहैया कराने के लिए 6.2 करोड़ रुपए की मदद का ऐलान किया।
  • 2004 : मिस्र की एविएशन कंपनी फ्लैश एयरलाइंस का बोइंग 737 विमान 604 के दुर्घटनाग्रस्त होने से उसमें सवार सभी 148 लोग मारे गए।
  • 2004 : मंगल पर खोज के लिए निकला अंतरिक्ष यान रोवर स्पिरिट मंगल पर उतरा।
  • 2001 : हिलेरी क्लिंटन ने न्यूयार्क के सीनेटर के तौर पर शपथ ग्रहण की। वह देश के इतिहास में पहली पूर्व प्रथम महिला हैं, जिन्होंने चुनावी विजय हासिल की।
  • 1977: स्टीव जॉब्स और स्टीव वोज्नियाक ने एपल की स्थापना की। बाद में ये दुनिया की सबसे वैलुएबल कंपनियों में से एक बनी।
  • 1969: मशहूर फॉर्मूला वन कार रेसर माइकल शूमाकर का जन्म हुआ। शूमाकर ने रिकॉर्ड सात बार फॉर्मूला वन रेस जीती। बाद में लुइस हेमिल्टन ने उनके रिकॉर्ड की बराबरी की।
    1938 : अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डी रूजवेल्ट ने पोलियो की बीमारी का इलाज ढूंढने के लिए एक फाउंडेशन की स्थापना की। रूजवेल्ड 1921 में इस बीमारी की चपेट में आए थे।
  • 1880 : ‘इलस्ट्रेटिड वीकली ऑफ इंडिया’ का पहला अंक बम्बई (अब मुंबई) में प्रकाशित हुआ।
  • 1836 : मुंशी नवल किशोर का जन्म हुआ। उन्होंने पांच हजार से ज्यादा किताबें अलग-अलग भाषाओं में पब्लिश कीं।


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Today History: Aaj Ka Itihas India World 2 January Update | Savitribai Phule Jayanti , Italy Dictator Benito Mussolini Power


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बच्चे को पहले परखें फिर नसीहत दें, 4 तरीके से उसको बताएं सही-गलत में अंतर करना

वैसे तो कोरोना का बुरा असर सब पर पड़ा है, लेकिन बच्चों पर इसका कुछ ज्यादा ही नकारात्मक असर हुआ है। उनकी मानसिकता और व्यवहार में कई तरह के बदलाव देखे गए हैं। एक स्टडी के मुताबिक बच्चों में मेनर्स की कमी आ रही है और बेसिक एटिकेट्स की तरफ रुझान कम हो रहा है।

हैदराबाद की साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर प्रज्ञा रश्मि कहती हैं कि आज के दौरे में हम एक ग्लोबल मार्केट में हैं, जहां स्किल्स के साथ-साथ व्यक्तित्व भी मैटर करता है। व्यक्तित्व बनाने में बचपन की सबसे अहम भूमिका होती है, ऐसे में इस दौरान बच्चों को बेहतर गाइडेंस की सख्त जरूरत होती है।

डॉक्टर प्रज्ञा कहती हैं कि हमें यह समझना होगा कि ये बातें साइकोलॉजी से जुड़ी हुई हैं। बच्चों को डराने-धमकाने से काम नहीं चलेगा, पेरेंट्स या बड़े होने के तौर पर हमें सबसे पहले उन्हें ऑब्जर्व करना चाहिए और फिर उस हिसाब से ट्रीट करना चाहिए।

क्या होता है मैनर?

  • हममें से बहुतों को आज भी पेरेंट्स से तमीज में रहने की चेतावनी मिल ही जाती है और हम चेतावनी अपने बच्चों को भी देते रहते हैं, लेकिन ये ‘तमीज’ बला क्या है? डॉक्टर प्रज्ञा कहती हैं कि दरअसल सही-गलत के बीच फर्क करने के कौशल या सेंस ऑफ राइट एंड रॉन्ग को ही मैनर यानी तमीज कहा जाता है, इसलिए बच्चों को डांटने या मारने के बजाय उन्हें सही-गलत में फर्क करना सिखाएं।

  • सही-गलत की समझ को साइकोलॉजी की दुनिया में सेल्फ आइडेंटिटी के लिए जरूरी बताया गया है। यह व्यक्तित्व बोध के लिए जरूरी है। इससे ही इंसान यह सीखता है कि समाज में उसकी क्या जगह है। इसके अलावा इससे हमें सामाजिक बोध भी होता है। ये सारी चीजें बेहतर व्यक्तित्व के लिए जरूरी हैं।

5 साल से ऊपर के बच्चे लिमिट टेस्ट करते हैं

साइकोलॉजिस्ट कॉल बर्ग ने एक थ्योरी दी है, जो पुश थ्योरी के नाम से जानी जाती है। इसके मुताबिक जब बच्चा पांच साल का हो जाता है तो वह खुद की लिमिट टेस्ट करता है। यानी जो चीज उसे मना की जाएगी, उसे वह एक बार जरूर करना चाहेगा।

इसी तरह से वह अपनी लिमिट को ज्यादा से ज्यादा पुश करता जाता है। ऐसी स्थिति में कई पेरेंट्स बच्चों को मारने या डांटने पर विश्वास करते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करने से बच्चा मान जाएगा, जबकि यह बच्चे की गलती नहीं, बल्कि उसका नेचर है। इस स्टेज में उसकी क्यूरोसिटी सॉल्व करना होता है। इससे उसके पुश करने या लिमिट टेस्ट करने की आदत को छुड़ाया जा सकता है।

सही-गलत में फर्क जानना बच्चों के विकास में सबसे अहम

डॉ. प्रज्ञा कहती हैं कि जितना जल्दी बच्चा सही-गलत को पहचानना सीख जाएगा, उतना ही बेहतर होगा। 8 साल में यदि बच्चे को इस बात का बोध नहीं है तो उसके व्यक्तित्व पर असर जरूर पड़ेगा। बचपन के व्यक्तित्व के आधार पर उसे दूसरे बच्चे, टीचर और आसपास के लोग ट्रीट करते हैं।

लोग बच्चे के साथ कैसे पेश आ रहे हैं? यह भी एक अहम फैक्टर है, यह बात भी उनके व्यक्तित्व पर असर डालती है। यानी अगर एक बार बच्चे के व्यक्तित्व में कमी आ गई तो फिर उसे बदलना काफी मुश्किल होता है। इसलिए उसे बचपन में जितना ज्यादा हो सके सही-गलत में फर्क करना सिखा दें।

बेसिक एटीकेट्स सीखने के लिए 4 सबसे जरूरी बातें

  1. नमूना देकर समझाएं - नमूना देकर समझााने का मतलब यह कि आप अपने को डमी देकर समझाएं। जैसे - अगर आपका इलेक्ट्रिक सामान से बाज आता है तो टेडी बियर गुड़िया को नमूने के तौर पर इस्तेमाल करें और उसकी मदद से उसे दस डराएं ।
  2. तौर-तरीका सिखाएं- बेसिक एटिकेट्स का मतलब बच्चों का तौर-तरीका। यह बेहद जरूरी है कि बच्चा लोगों से कैसे पेश आता है, उसके मन में लोगों को लेकर क्या भाव हैं, क्या वह लोगों के प्रति सम्मान, थैंक्स गिविंग, मदद करने, सहानुभूति रखने, माफी मांगने और माफ करने का भाव रखता है?
  3. मैनर्स बताएं- तौर-तरीका तभी हो सकता है, जब बच्चे में मैनर्स हों। हालांकि, कई बार मैनर्स होने के बाद भी बच्चों को तौर-तरीके नहीं पता होते हैं, इससे उनका व्यक्तित्व वैसा नहीं बन पाता है, जैसा होना चाहिए।
  4. ट्रेंड करें- बच्चों को बेसिक एटिकेट्स सिखाने के लिए उन्हें ट्रेंड करना होता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक बच्चों को तमाम चीजों से जुड़े तौर-तरीके न केवल बताएं, बल्कि उसकी प्रैक्टिस भी कराएं। अलग-अलग चीजों के लिए सेशन बनाएं और उन्हें ट्रेंड करें।
  5. गलत उदाहरण न सेट करें- एक बात का विशेष ध्यान रखें कि आप पेरेंट्स या बड़े के तौर पर बच्चों के सामने गलत तौर-तरीके को डिस्प्ले न करें। इसका बच्चों पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। वे एटिकेट्स से जुड़ी चीजों को नजरअंदाज करने लगेंगे।


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The impact of childhood learning at every stage of life, know how to give good manners to children?


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15 हजार वैज्ञानिक, 200 कंपनियां, सालभर में बनते हैं वैक्सीन के 6 अरब डोज

मैं हैदराबाद गया था। सबसे पहले पहुंचा शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित जीनोम वैली, क्योंकि यहां देश की तीन बड़ी कंपनियां कोरोना की वैक्सीन डेवलप कर रही हैं। इनमें भारत बायोटेक, बायोलॉजिकल ई और इंडियन इम्युनोलॉजिकल्स लिमिटेड शामिल हैं।

जीनोम वैली में एंट्री लेने में तो कोई मुश्किल नहीं है, क्योंकि इसके बीचों-बीच से गांव के लिए सड़क गुजरती है और दिनभर लोगों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन यहां बनी बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों में किसी की एंट्री नहीं है।

इन्हीं में से एक भारत बायोटेक की फैक्ट्री में कुछ दिन पहले PM नरेंद्र मोदी पहुंचे थे और उन्होंने कोवैक्सिन के डेवलपमेंट की जानकारी ली थी। तब से यहां सिक्योरिटी और ज्यादा सख्त हो गई है। 600 वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा इलाके में फैली इस वैली को देश का सबसे बड़ा लाइफ साइंसेज क्लस्टर कहा जाता है। जीनोम वैली का नाम एशिया के टॉप लाइफ साइंसेज क्लस्टर में भी शामिल है, क्योंकि यहां से 100 से ज्यादा देशों में वैक्सीन भेजी जाती है।

जीनोम वैली में स्थित भारत बायोटेक कंपनी की फैक्ट्री। स्टाफ के अलावा यहां सभी की एंट्री अभी बैन है।

सबसे पहले मैं भारत बायोटेक की फैक्ट्री के सामने ही पहुंचा। गार्ड ने बताया कि, पूरा स्टाफ बस से आना-जाना करता है। स्टाफ के अलावा सिर्फ वही लोग अंदर जा सकते हैं, जिन्होंने पहले से परमिशन ली है। इसके अलावा किसी की भी एंट्री नहीं है। भारत बायोटेक ने जुलाई से नवंबर के बीच कोवैक्सिन डेवलप कर रहे अपने वैज्ञानिकों को गेस्ट हाउस में ही रोका था। दिसंबर से वैज्ञानिकों ने घर आना-जाना शुरू कर दिया है।

जीनोम वैली शहर से काफी दूर है, इसलिए पूरा स्टाफ कंपनी की बस से ही आता-जाता है। भारत बायोटेक से चंद कदमों की दूरी पर ही बायोलॉजिकल ई की फैक्ट्री है। यहां भी बाहर के लोगों की एंट्री बंद है। एंट्री गेट के पास मुझे एम्प्लॉई फूड पैकेट ले जाते दिखे तो मैंने वहां खड़े गार्ड से पूछा कि, क्या ये लोग कोरोना वैक्सीन वाली टीम में शामिल हैं तो गार्ड ने कहा, सभी स्टाफ के लोग हैं। फूड पैकेट बाहर से आते हैं।

यह फैक्ट्री बायोलॉजिकल ई कंपनी की है। इनके कोरोना वैक्सीन के फेज वन और टू के ट्रायल अभी चल रहे हैं।

15 हजार वैज्ञानिक, 6 अरब डोज सालभर में बनते हैं
जीनोम वैली में एग्रीकल्चर-बायोटेक, क्लीनिकल रिसर्च मैनेजमेंट, बायोफार्मा, वैक्सीन मैन्यूफैक्चरिंग, रेग्युलेटरी एंड टेस्टिंग करने वाली 200 से भी ज्यादा कंपनियां हैं, इसलिए इसे लाइफ साइंसेज क्लस्टर कहा जाता है।

तेलंगाना सरकार के लाइफ साइंसेज और फार्मा के डायरेक्टर शक्ति नागप्पन से मैंने जीनोम वैली के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया, 'कुछ समय पहले हमने एक सर्वे करवाया था, उसमें पता चला था कि जीनोम वैली में 15 हजार से ज्यादा साइंटिफिक वर्कफोर्स है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर यहां से लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा है।' रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगले दस सालों में यहां चार लाख से ज्यादा नौकरियां पैदा हो सकती हैं।

शहर से बाहर होने के चलते जीनोम वैली में काफी हरियाली और जगह है। करीब 18 देशों की कंपनियां यहां चल रही रिसर्च में शामिल हैं।

एशिया के टॉप फार्मा क्लस्टर में आता है नाम
मैंने उनसे पूछा कि, जीनोम वैली से सालभर में कितनी मात्रा में दवाएं बनती हैं? तो इस पर बोले, 'वैक्सीन के छह अरब डोज यहां से हर साल बनते हैं। यह अलग-अलग बीमारियों की अलग-अलग दवाएं होती हैं।' मैंने पूछा, ऐसा कहा जा रहा है कि, जीनोम वैली से दुनिया की आधी आबादी के लिए कोरोना की वैक्सीन बनाई जा सकती हैं? इस पर बोले, 'ये फिगर कहां से आया, ये मुझे पता नहीं है, लेकिन जीनोम वैली एशिया के टॉप लाइफ साइंसेज क्लस्टर में से एक है।'

डॉ. ऐल्ला ने दिया था बायोटेक नॉलेज पार्क बनाने का प्रपोजल
जीनोम वैली को बनाने के पीछे भारत बायोटेक के एमडी डॉ. कृष्णा एम ऐल्ला का दिमाग माना जाता है। उन्होंने साल 1996 में तत्कालीन CM चंद्रबाबू नायडू को बायोटेक नॉलेज पार्क बनाने के लिए प्रेजेंटेशन दिया था। इसके बाद आंध्रप्रदेश इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन के जरिए नॉलेज पार्क के लिए जमीन ली गई।

यह भारत के लिए एकदम नया कॉन्सेप्ट था, इसलिए सरकार ने भी इसमें पूरी दिलचस्पी दिखाई। भारत बायोटेक का हेपेटाइटिस वैक्सीन प्लांट ही सबसे पहले यहां स्थापित हुआ था। बाद में ICICI नॉलेज पार्क और दूसरी तमाम कंपनियां यहां आईं और फिर इसका नाम जीनोम वैली हो गया। आज यहां 100 से ज्यादा नॉलेज बेस्ड इंडस्ट्रीज हैं।



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Coronavirus Vaccine India Update; Bharat Biotech COVAXIN | Ground Report From Hyderabad Genome Valley


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अगर आप स्टूडेंट हैं तो यह आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है; पढ़ें बीते हफ्ते की खबरों से जुड़ा GK



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क्या बंगाल चुनाव में NRI भी विदेश से डाल सकेंगे वोट? लेकिन कैसे होगी वोटिंग? किन देशों में शुरू होगी सर्विस? जानें सब कुछ

विदेश में रह रहे भारतीय देश में होने वाले चुनावों में पोस्टल बैलेट के जरिए वोट डाल सकेंगे। इसका प्रस्ताव चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय के सामने रखा है। अगर ये प्रस्ताव पास हो जाता है तो इसी साल अप्रैल-मई में असम, पुड्डुचेरी, पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनावों में NRI पोस्टल बैलेट से वोटिंग कर सकेंगे।

लेकिन ये वोटिंग होगी कैसे? और क्या अब तक NRI वोट नहीं डाल सकते थे? अगर प्रस्ताव पास होता है, तो किन देशों में रहने वाले NRI को इस सर्विस का फायदा मिलेगा? आइए जानते हैं...

सबसे पहले बात यह कि चुनाव आयोग का प्रस्ताव क्या है?

  • 27 नवंबर को चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय के सामने ये प्रस्ताव रखा था। इसमें कहा गया कि विदेशों में रहने वाले भारतीय वोटरों के लिए भी पोस्टल बैलेट की फैसिलिटी हो, ताकि वो 2021 में होने वाले विधानसभा चुनावों में विदेश से ही वोट डाल सकें। इसके लिए कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स, 1961 में बदलाव करने की जरूरत होगी।
  • अभी पोस्टल बैलेट की सुविधा सर्विस वोटर्स को मिलती है। सर्विस वोटर यानी चुनाव ड्यूटी में लगे कर्मचारी, सेना के जवान या फिर विदेशों में काम करने वाले सरकारी अधिकारी होते हैं। ये लोग इलेक्ट्रॉनिकली या पोस्ट के जरिए वोटिंग करते हैं।
  • पिछले साल कोरोनाकाल में बिहार में चुनाव हुए तो ये सुविधा 80 साल या उससे अधिक उम्र के बुजर्गों, दिव्यांगों, कोरोना संक्रमितों और क्वारैंटाइन किए गए लोगों को भी मिली थी।

तो NRI वोटर अभी कैसे वोट करते हैं?

  • 2010 से पहले विदेशों में रहने वाले भारतीयों को वोटिंग का अधिकार नहीं था। उस समय तक ये नियम था कि अगर कोई भारतीय छह महीने से ज्यादा विदेश में रह रहा है, तो उसका नाम वोटर लिस्ट से हट जाएगा।
  • बाद में 2010 में रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट में संशोधन किया गया। इसके बाद NRI को भी वोटिंग का अधिकार मिल गया, लेकिन इसमें भी एक शर्त थी कि NRI को वोट डालने के लिए पोलिंग स्टेशन पर आना होगा।
  • रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट का सेक्शन-20A कहता है कि वोट डालने के लिए व्यक्ति को पोलिंग स्टेशन जाना होगा। 2017 में सरकार इसी बाधा को हटाने के लिए कानून लेकर आई थी। 2018 में यह बिल लोकसभा से पास भी हो गया था, लेकिन 2019 में लोकसभा का कार्यकाल खत्म हो गया और प्रस्ताव अधर में लटक गया।
  • सरकार के इस प्रस्ताव में था कि जो भारतीय विदेश में रह रहे हैं, उनकी जगह उनका कोई सगा-संबंधी यहां वोट डाल सके। इसे प्रॉक्सी वोटिंग नाम दिया गया था।

चुनाव आयोग का प्रस्ताव अगर पास हो जाता है, तो NRI वोट कैसे डालेंगे?

  • चुनाव आयोग के नए प्रस्ताव के मुताबिक जिस तरह से अभी सर्विस वोटर इलेक्ट्रॉनिकली ट्रासमिटेड पोस्टल बैलेट सिस्टम यानी ETPBS के जरिए वोट डालते हैं, उसी सिस्टम से NRI भी वोट डालें। भारत में 2016 से ही सर्विस वोटर को पोस्टल बैलेट के जरिए वोट डालने की इजाजत मिली है।
  • ETPBS के जरिए सर्विस वोटर को पहले पोस्टल बैलेट भेज दिया जाता है। उसके बाद सर्विस वोटर इसे डाउनलोड कर अपना वोट करते हैं। इसके बाद इसे ईमेल के जरिए या पोस्ट के जरिए रिटर्निंग ऑफिसर को भेज देते हैं। पोस्टल बैलेट काउंटिंग वाले दिन सुबह 8 बजे से पहले भेजा जाना जरूरी है।
  • अगर इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाती है। तो विदेश में रह रहे भारतीयों को चुनाव का नोटिफिकेशन जारी होने के कम से कम पांच दिन के भीतर ETPBS के जरिए वोट देने की जानकारी रिटर्निंग ऑफिसर को देनी होगी।
  • इसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर ETPBS के जरिए NRI वोटरों को बैलेट भेजेगा। इसके बाद NRI वोटर बैलेट पर अपना वोट डालेगा और सेल्फ अटेस्टेड करके उसे दोबारा भेजेगा। हालांकि, इस मामले में NRI को इंडियन एम्बेसी या कॉन्सुलेट के किसी अधिकारी को पोस्टल बैलेट भेजना होगा। इसके बाद यहां से ही रिटर्निंग ऑफिसर के पास भेजा जाएगा।

क्या ये फैसिलिटी सभी देशों में शुरू होगी?

अगर चुनाव आयोग का यह प्रस्ताव पास हो जाता है तो विदेश में रहने वाले भारतीय वहीं से बैठे-बैठे वोट डाल सकेंगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चुनाव आयोग ने विदेश मंत्रालय से इस संबंध में बात की है। फिलहाल इस सर्विस को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर अमेरिका, कनाडा, जापान, न्यूजीलैंड, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और साउथ अफ्रीका समेत कई देशों में रहने वाले भारतीयों के लिए शुरू किया जा सकता है। हालांकि, खाड़ी देशों में रहने वालों को यह सुविधा अभी नहीं मिलेगी।

खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीयों को क्यों करना होगा इंतजार?

सऊदी अरब, यूएई, ओमान, कुवैत और कतर जैसे खाड़ी देशों में लोकतंत्र नहीं है। ऐसे में यहां पोस्टल बैलेट की व्यवस्था करवाना चुनाव आयोग के लिए चुनौती हो सकती है। गैर-लोकतांत्रिक देशों में वोटिंग की व्यवस्था करने, वोट देने और इंडियन एम्बेसीस के बाहर लंबी-लंबी लाइन लगाने के लिए वहां की सरकार की मंजूरी लेनी होगी। ऐसी आशंका है कि गैर-लोकतांत्रिक देश इसके लिए इजाजत नहीं दें। इसलिए यहां रहने वाले भारतीयों को अभी इसके लिए लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।

अभी कितने भारतीय वोटर विदेशों में रह रहे हैं?

2014 के चुनाव के वक्त 11 हजार 856 भारतीय वोटर विदेश में रह रहे थे। 2019 में इनकी संख्या बढ़कर करीब एक लाख हो गई। इनमें भी सबसे ज्यादा 87 हजार 651 वोटर केरल के थे। उसके बाद पांच हजार वोटर आंध्र प्रदेश के रहने वाले थे। हालांकि, पोस्टल बैलेट की सुविधा नहीं होने की वजह से इनमें से आधे भी चुनावों में वोट नहीं डाल पाते। जैसे 2019 के लोकसभा चुनाव में विदेश में रह रहे केरल के 25 हजार वोटरों ने ही वोट डाला था।



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NRI Postal Ballot Voting Explained; Can Non-Resident Indians Cast Vote In West Bengal Vidhan Sabha Election? | All You Need To Know About How Many Non Resident Indians In USA Canada Australia France


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भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव, फिर भी दोनों ने एक-दूसरे को परमाणु प्रतिष्ठानों की लिस्ट क्यों दी? क्या यह पहली बार हुआ है?

जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में शुक्रवार को पाकिस्तान ने फिर सीजफायर तोड़ा। इसमें नायब सूबेदार रविंद्र कुमार शहीद हो गए। पाकिस्तान की तरफ से सीजफायर का ये उल्लंघन दोपहर 3:30 बजे हुआ था, लेकिन इससे ठीक चार घंटे पहले भारत ने पाकिस्तान को अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की लिस्ट सौंपी। उससे आधे घंटे पहले पाकिस्तान ने भी भारत को अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की लिस्ट दी थी। लेकिन जब दोनों देशों के बीच तनाव चल रहा है, तो फिर दोनों देशों ने अपने-अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की लिस्ट एक-दूसरे को क्यों दी? क्या यह पहली बार हुआ है? आइए जानते हैं...

सबसे पहले बात मामला क्या है?

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के मुताबिक 1 जनवरी की सुबह 11 बजे भारतीय हाई कमीशन को परमाणु प्रतिष्ठानों की लिस्ट सौंप दी गई। वहीं, भारत के विदेश मंत्रालय ने बताया कि सुबह 11:30 बजे पाकिस्तान हाई कमीशन के प्रतिनिधि को अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की लिस्ट दे दी गई है। परमाणु प्रतिष्ठान यानी वह जगह जहां परमाणु हथियार रखे जाते हैं।

लेकिन ऐसा क्यों किया दोनों देशों ने?

दरअसल, 31 दिसंबर 1988 को दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ था। समझौते में तय हुआ कि भारत और पाकिस्तान हर साल एक जनवरी को एक-दूसरे से अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की लिस्ट साझा करेंगे। इसमें यह भी तय हुआ था कि दोनों देश एक-दूसरे के परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमला नहीं करेंगे।

क्या ऐसा पहली बार हुआ है?

नहीं। दिसंबर 1988 को हुआ यह समझौता 27 जनवरी 1991 को लागू हुआ। पहली बार 1 जनवरी 1992 को दोनों देशों ने यह जानकारी साझा की थी। तब से हर साल 1 जनवरी को यह जानकारी साझा की जाती है। यह 30वीं बार था जब जानकारी साझा की गई।

भारत-पाकिस्तान के बीच कितने परमाणु हथियार हैं?

इस बात का कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के आंकड़े बताते हैं कि भारत के पास अगस्त 2020 तक 150 परमाणु हथियार थे। पाकिस्तान इस मामले में भारत से आगे है। उसके पास 160 परमाणु हथियार हैं। सबसे ज्यादा 6 हजार 375 हथियार रूस के पास हैं। दूसरे नंबर पर अमेरिका है, जिसके पास 5 हजार 800 हथियार हैं।

परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर क्या है भारत-पाक की नीति?

भारत ने साल 1999 में अपनी ‘नो फर्स्ट यूज' की परमाणु नीति घोषित की थी। इसके मुताबिक भारत कभी भी परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल नहीं करेगा। भारत केवल परमाणु हमला होने की स्थिति में ही अपने परमाणु बमों का सहारा लेगा।

पाकिस्तान की ऐसी कोई नीति नहीं है। यह केवल पाकिस्तान के हाई कमान पर निर्भर करता है कि उन्हें कब और किस स्थिति में परमाणु हमला करना है। 1999 में पाक विदेश मंत्री ने ‘नो फर्स्ट यूज' वाली परमाणु पॉलिसी को नकारते हुए कहा था, हम अपने देश की सुरक्षा की दिशा में हर जरूरी हथियार का इस्तेमाल कभी भी कर सकते हैं।

क्या कभी भारत-पाक के बीच परमाणु युद्ध के हालात बने हैं?

1999 में करगिल युद्ध करीब दो महीने तक चला था। इस दौरान भारत ने अपने इलाके से पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया था। युद्ध खत्म होने के तीन साल बाद 2002 में यह खुलासा हुआ था कि पाक ने इस दौरान परमाणु हथियार तैनात कर दिए थे।

CIA एनालिस्ट ब्रूस रिडल ने बताया कि 1999 में अमेरिकी सैटेलाइट की तस्वीरों से पता चला था कि पाकिस्तान ने भारत पर हमले के लिए परमाणु हथियारों को तैनात कर दिया था। उन्होंने बताया था कि अमेरिका ने यह भयावह स्थिति देखते हुए तुरंत अपने कूटनीतिक प्रयासों के जरिए पाकिस्तान को परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से रोका था।



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India Pakistan Nuclear Installations Exchange List; How Many Nuclear Bomb Does America France Israel China Have 2021?


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जब ट्रायल में औरतों को बचाकर रखा तो टीका देते हुए क्यों मान लिया कि उसका शरीर भी पुरुष जैसा व्यवहार करेगा

कोरोना को लेकर ​ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो का अटपटा बयान आया। उन्होंने टीकाकरण को खतरनाक बताते हुए कहा कि इससे औरतों के दाढ़ी-मूंछ उग आएंगी। साथ ही राष्ट्रपति ने अपने या अपने परिवार को वैक्सीन दिलाने से साफ मना कर दिया। बात तो हंसी-हंसी में कही गई, लेकिन मायने काफी गहरे हैं।

औरतों की चिबुक पर नागफनी-से बाल उग आएं, या फिर गुलाबी होंठ घने बालों से ढंके हों तो इससे खतरनाक क्या हो सकता है। दाढ़ी-मूंछें पाकर जिंदा बच पाने की बजाए औरत का मर्दों की नजर में कामुक रहते हुए मरना भला। शायद यह भी एक कारण है कि टीका बनने के बाद भी महिलाएं इसे लेने से डरी हुई हैं।

अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर ने लगभग 13 हजार लोगों से बात की। इनमें से 67 प्रतिशत पुरुष कोरोना वैक्सीन को लेकर खासे जोश में थे। वहीं केवल 54 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि वे टीका लेंगी। दिसंबर में नेशनल जियोग्राफिक ने सर्वे किया। इस बार सर्वे में ज्यादा लोग शामिल थे और इस बार महिलाओं की 'न' भी ज्यादा रही। पुरुषों की तुलना में 19 फीसदी कम महिलाओं ने कहा कि वे टीका लेंगी। गौर करें तो ये महिलाएं दुनिया के सबसे ताकतवर देश से हैं और खासी जानकार भी हैं। तब क्यों वे जान बचा सकने वाले टीके से बच रही हैं!

वजह समझने के लिए ज्यादा दूर नहीं जाना होगा। कोरोना वैक्सीन के जो दो नाम बार-बार दोहराए जा रहे हैं, उन्होंने अपनी दवा का ट्रायल गर्भवती या दूध पिलाती मांओं पर नहीं किया। लिहाजा, यह टीका लंबे समय तक उन्हें नहीं मिलेगा। दवा कंपनियां ट्रायल न करने के पीछे नैतिक कारण दे सकती हैं कि कहीं ट्रायल में मां या अजन्मे शिशु को कोई नुकसान न हो जाए, इसलिए उन्हें दूर रखा गया।

यह तर्क गले उतर भी जाए, अगर आप आंकड़ों पर ध्यान न दें। यूनिसेफ (UNICEF) बताता है कि 2021 के पहले ही रोज दुनियाभर में लगभग 3.7 करोड़ बच्चों ने जन्म लिया। अगर ये सारी मांएं बच्चों को ब्रेस्ट फीड कराने का फैसला लें तो इतनी ही मांएं और इतने शिशु टीकाकरण से वंचित रहेंगे। ये केवल एक दिन का आंकड़ा है। UN की मानें तो रोज हर मिनट 250 बच्चे जन्म लेते हैं। यानी हरेक मिनट 250 मांएं प्रसव पीड़ा से गुजरती हैं। या फिर इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि हरेक मिनट 250 मांओं को टीके से दूर रखा जाएगा।

चलिए, अब बड़ा गणित खेलें। सालभर में 14 करोड़ बच्चे दुनिया में आते हैं। यह संख्या अच्छी-खासी है। फ्रांस और जर्मनी की आबादी को मिलाकर बनी संख्या से भी ज्यादा। इतनी कि दिमाग नजरअंदाज करना चाहे तो आंखें नहीं कर पाएंगी। तब क्यों वैज्ञानिकों के पास ट्रायल में गर्भवती या ब्रेस्ट फीड कराती मांओं को नजरअंदाज करना आसान रहा?

क्यों नहीं मांओं के टीकाकरण को सोचते हुए दिन-रात एक किए गए? क्यों मान लिया गया कि कुछ महीनों या सालों के लिए औरतों को टीका न भी मिले तो कोई बात नहीं? क्योंकि इसके पीछे दशकों पुरानी प्रैक्टिस है। औरतों की बीमारी को 'रोने की आदत' मानने और पुरुषों की मामूली खरोंच पर भी संवेदना की पट्टियां लगाने की। इसी सोच के चलते मर्दों की कमजोर नसों को मजबूत बनाने पर मेडिकल से लेकर देसी साहित्य तक भर गया। वहीं, औरतों का मेनोपॉज बुढ़ाती औरत की चिड़चिड़ाहट बनकर रह गया।

गाल और तलवे आग की तरह तपते हैं, शरीर में दर्द होता है, हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, और किसी काम में मन नहीं लगता (औरतों को तो इसका बहाना चाहिए)। सबसे बड़ी बात कि ‘माहवारी’ जिसे औरत होने का प्रतीक बना दिया गया है, वो बंद हो जाती है। नतीजा- पहचान छीनने का दर्द कम ही होंगे जिन्होंने ऐसे में अपनी मां या किसी आत्मीया के दिल पर प्यार का फाहा रखा हो। वैसे भी मेनोपॉज कोई बीमारी तो है नहीं। औरतों के साथ घटती है, ठीक वैसे ही जैसे पीरियड्स का आना और हिदायतों का वजन लड़की के अपने वजन से भी भारी हो जाना।

कितनी ही ऐसी शारीरिक तकलीफें हैं जिन पर बात नहीं होती, क्योंकि वे औरतों को होती हैं। औरतों की बीमारी मतलब फुसफुसाकर या चटखारे लेकर करने की बात। ब्रेस्ट कैंसर को ही ले लीजिए। बीमारी किसी भी दूसरे कैंसर जितनी जानलेवा है, लेकिन साथ में ब्रेस्ट जुड़ गया है। अब वो या तो कामुक बीमारी है, या फिर ऐसी बात, सज्जन मर्द जो करने से बचें। तो लीजिए फिर ब्रेस्ट में बदलाव को सफेद होता बाल मानकर औरत चुप रहती है, जब तक सर्जरी की नौबत न आ जाए।

ये तो हुई जनाने मर्ज की बात। अब देखते हैं उन बीमारियों को जो किसी को भी हो सकती हैं। शोध बताते हैं कि दिल का दौरा औरत-मर्द को लगभग बराबर पड़ता है, लेकिन विज्ञापनों में मॉल में तेल चुनती औरत ने अलग ही इशारा कर दिया। वो बेस्ट तेल चुनती है ताकि उसके पति का दिल सलामत रहे। हसीन-तरीन बीवियों वाला यह विज्ञापन हम सबने इतनी बार देखा कि अब हार्ट अटैक मर्दानी बीमारी हो चुकी है। यही कारण है कि अगर पब्लिक प्लेस पर औरत को हार्ट अटैक आए तो लोग उसे थकान या बढ़ती उम्र मान लेते हैं। यूरोपियन हार्ट जर्नल में यह स्टडी आई है। वहीं, इसी हालात में पुरुष हो तो लोग तुरंत उसे लेकर अस्पताल भागते हैं।

अब आते हैं दर्द पर। मर्द को दर्द नहीं होता- यह बात हजारों बार हम सबने सुन, लेकिन हकीकत इससे उलट है। साल 1989 में अमेरिका के 10 अस्पतालों में बाईपास सर्जरी के मरीजों पर स्टडी हुई। इसमें देखा जा रहा था कि महिलाओं और पुरुषों में से किसके दर्द को डॉक्टर कितनी गंभीरता से लेते हैं। नतीजा शायद आपकी भी आंखें खोल दे। सर्जरी के लगातार तीन दिनों तक पुरुष मरीजों को दर्दनिवारक दवाएं दी गईं, वहीं औरतों को केवल एक ही रोज दवा मिली।

एक ही सर्जरी, बदन का हिस्सा उतना ही कटा-छंटा। अंदरुनी बदलाव भी एक जैसे हुए। तब क्या वजह है कि पुरुषों का दर्द डॉक्टरों को दिखा। इसलिए कि औरतों को तो दर्द सहने की आदत होती है। हर महीने थक्के के थक्के खून निकालते हुए सारे काम निपटाती औरत का दर्द भला मायने ही कहां रखता है। साल 1996 में इसी बात को लेकर दोबारा स्टडी हुई। इस बार यह 20 महीने लंबी चली। इसके नतीजे भी वही कि अस्पतालों में मर्दों के दर्द को ज्यादा गंभीरता से लिया जाता है।

सारी कथाएं छोड़कर वापस वैक्सीन की बात करें तो चुटकुले से तर्क दिखेंगे। साल 1993 तक अमेरिका में दवाओं और वैक्सीन के ट्रायल में औरतों को शामिल नहीं किया जाता था। पुरुषों पर ट्रायल होते थे और मान लिया जाता था कि टीका दोनों पर काम करेगा। अमेरिकी नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (NCBI) ने इस बात को स्वीकारा। हालांकि, NCBI सफाई देते हुए कहता है कि औरतों का शरीर हार्मोन्स के कारण काफी पेचीदा होता है, इसलिए उन्हें ट्रायल से अलग रखा गया। तो भलेमानुषों, जब ट्रायल में औरतों को बचाकर रखा तो टीका देते हुए क्यों मान लिया कि उसका शरीर भी पुरुष जैसा व्यवहार करेगा!

ऐसी कितनी ही बीमारियां हैं जिन पर काम या बात भी टाली जा रही है क्योंकि वह औरतों को होती है। औरत यानी रहस्यों का खूबसूरत जखीरा। उस पर कविताएं लिखी जा सकती हैं। तस्वीरें बन सकती हैं। सहलाया जा सकता है, लेकिन चीर-फाड़ नहीं की जा सकती। और मेडिकल साइंस जैसे ऊबाऊ विषय को तो औरतों के करीब भी नहीं फटकने देना है वरना आंखों को तरावट देने वाली कामुक मूर्ति टूट जाएगी। भेद खुल जाएगा कि औरत-मर्द में कोई फर्क नहीं। और जब यही भेद खत्म हो जाएगा तो दुनिया में बाकी ही क्या रहेगा।



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When the women were saved in the trial, why did they assume that their body would also behave like a male while giving the vaccine?


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