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देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 2 लाख 46 हजार 622 हो गई है।Covid19india.org और राज्य सरकारों से मिली जानकारी के अनुसार, शनिवार को एक दिन में रिकॉर्ड10 हजार 521 मरीज बढ़े। वहींं, 5,490 ठीक भी हो गए। पिछले 24 घंटे में रिकॉर्ड 297 लोगों ने जान गंवाई। अब देश में कोरोना से मरने वालों की संख्या 6946 हो गई है। फिलहाल 1.20 लाख से ज्यादा एक्टिव मरीज हैं।
अनलॉक -1 में राजस्थान के बाद उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 10 हजार के पार हो गई। इसके साथ, उत्तरप्रदेश देश का छठा राज्य बन गया, जहां कोरोना के मामले 10 हजार 130 से ज्यादा हो गए। राज्य में अब तक 268 मौतें हो चुकी हैं।
5 दिन जब सबसे ज्यादा मामले आए
तारीख
केस
6 जून
10,521
5 जून
9379
4 जून
9847
3 जून
9689
2 जून
8815
देश के 5 राज्यों का हाल मध्य प्रदेश: राज्य मेंशनिवार को 232 नए मरीज समाने आए और 15 लोगों ने जान गंवाई।भोपाल में 51 रिपोर्ट पॉजिटिव आईं। इसी के साथ राजधानी में कोरोना मरीजों की संख्या 1733 हो गई। इसके अलावा इंदौर में 35, शाजापुर में 20, नीमच में 18, बुरहानपुर में 15, भिंड में 14, उज्जैन में 12 और ग्वालियर में 10 संक्रमित बढ़े। राज्य में कुल 9228 मरीज मिल चुके हैं।
उत्तर प्रदेश:यहां शनिवार को 370 नए मरीज मिले, जबकि 11 लोगों ने दम तोड़ा। कानपुर में 32, गाजियाबाद में 19, वाराणसी में 18, जौनपुर में 15 और गौतमबुद्धनगर में 14 संक्रमित बढ़े। प्रदेश में अब तक 10 हजार 103 मरीज मिल चुके हैं। यूपी 10 हजार से ज्यादा संक्रमित मिलने वाला देश का छठा राज्य बन गया है।
महाराष्ट्र: प्रदेश में शनिवार को 2739 संक्रमितबढ़े और 120 लोगों की मौत हो गई।सिर्फ मुंबई में ही 47 हजार 354 केस सामने आ चुके हैं। यहां 1247 नए मरीज मिले। महाराष्ट्र में अब कोरोना संक्रमितों की संख्या 82 हजार 968 हो गई, इनमें से 42 हजार से ज्यादा एक्टिव केस हैं।
राजस्थान: यहांशनिवार को 253 नए कोरोना पॉजिटिव मिले और 13 लोगों की जान गई। भरतपुर में 63, जोधपुर में 53, जयपुर में 36, सवाई माधोपुर में 15, पाली में 14, सीकर में 13 और चूरू में 10 मरीज मिले।राज्य में कुल संक्रमितों कीसंख्या 10 हजार 337 हो चुकी है। कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा 231हो गया।
बिहार: यहांशनिवार को 233 पॉजिटिव केस मिले। सुपौल में 28, मधुबनी और पूर्णिया में 16-16, मुंगेर में 15, सीवान में 13, सारण में 11 और समस्तीपुर में 10 मरीज मिले। राज्य मेंकुल 4831 मरीज सामने आ चुके हैं। इनमें से अब तक29 की जान गई। कुल 88 हजार 313 सैंपल की जांच हो चुकी है।
from Dainik Bhaskar /national/news/coronavirus-outbreakindia-mumbai-delhi-coronavirus-news-and-coronavirus-live-updates-07-june-2020-127383739.html
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लॉकडाउन समाप्त होने के बाद देशभर मेंगर्भपात कराने वाली महिलाओं की संख्या में वृद्धि हो सकती है। फाउंडेशन फॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज इंडिया (एफआरएचएस) के मुताबिक देश मेंहर महीने देशभर में 13 लाख महिलाएं गर्भपात कराती हैं। लॉकडाउन की वजह से 18 लाख महिलाओं को गर्भपात की सुविधाएं नहीं मिल पाई है। ऐसे में जिन महिलाओं के गर्भपात के 20 हफ्ते पुरे नहीं हुए हैं वो आने वाले महीनों में गर्भपात करा सकती हैं।
अनचाहे गर्भधारण के मामलों में बढ़ोतरी की आशंका
लॉकडाउन के दौरान हालांकि दवाई की दुकानें खुली हुई हैं लेकिन ऐसे कई लोग है जो घर से बाहर नहीं निकल पाए हैं।.कई कपल्स केपास लॉकडाउन के दौरान सुरक्षित यौन संबंध का कोई विकल्प नहीं होगा। ऐसे में अनचाहे गर्भ के मामले बढ़ सकते हैं।रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में 23 लाख अनचाहे गर्भ धारण किए जाने की संभावना है। जबकि 6.79 लाख बच्चों के जन्म लेने, 14.5 लाख गर्भपात (इसमें असुरक्षित गर्भपात भी शामिल है) और 1,743 माताओं की मृत्यु की आशंका है।
राजस्थान में 40 से 50 हजार महिलाएं करा सकती हैं गर्भपात
एसआरकेपीएस नामक संस्था के अध्ययन के अनुसार राजस्थान में जिन महिलाओं के गर्भधारण के20 हफ्तेपूरे नहीं हुए हैं ऐसी करीब 40 से 50 हजार महिलाएं जून-जुलाई में गर्भपात करा सकती हैं। इनमें शहर, कस्बे और गांव की भी महिलाएंशामिल हैं। सर्वे का यह भी कहना है कि इस दौरानमातृ और शिशु मृत्यु दर में भी 10 फीसदी तक बढ़ोतरी हो सकती है। लॉकडाउन के दौरान 10 से 15 हजार महिलाएं ऐसी भी हैं, जो फैमिली प्लानिंग के लिए जरूरी साधनों का इस्तेमाल नहीं कर पाई। संस्था के अध्ययन के अनुसार, राजस्थान में हर साल करीब सवा दो लाख गर्भपात होते हैं।
डिलीवरी के मामलों में 10 से 20 फीसदी तक बढ़ोतरी का अनुमान
इसके साथ हीनवंबर-दिसंबर में डिलीवरी के मामलों में भी 10 से 20 फीसदी तक बढ़ोतरी का अनुमान है। राजस्थान में हर साल 14 लाख डिलीवरी होती हैं। इस साल डिलीवरी की संख्या में दो लाख तक की बढ़ोतरी हो सकती है।
निजी अस्पतालों व क्लीनिक में गर्भपात के लिए 4500 रुपए तक ज्यादा चुकाने होंगे
इस संस्था का अनुमान है कि निजी अस्पतालों और क्लीनिकों में गर्भपात कराना भी महंगा हो जाएगा। आने वाले समय में कोविड टेस्ट अगर सरकार की तरफ से मेंडेटरी कर दिया जाता है तो उसका बोझ भी गर्भवती महिलाओं पर पड़ेगा और जो खर्च 2 हजार से पांच हजार में हो जाता है उसके साथ 4500 रुपए अतिरिक्त देने पड़ेंगे। देशभर में एक महीने में 13 लाख के करीब गर्भपात कराए जाते हैं। ऐसे में यह खर्च करीब 1.5 करोड़ रुपए सलाना होता है।
from Dainik Bhaskar /local/rajasthan/sikar/news/after-the-lockdown-is-over-40-50-thousand-women-in-the-state-can-get-abortions-in-june-july-research-127383185.html
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सुबह के पांच बजे हैं। भारत-नेपाल सीमा पर बसा धारचूला शहर अभी अलसायी नींद से जागा नहीं है। पास में बहती काली नदी के वेग और पक्षियों के कलरव से इतर जो आवाज धारचूला की शांत वादियों में अभी गूंज रही है, वह रवि के गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ है।
रवि के लिए आज की सुबह बेहद खास है। वे पहली बार गाड़ी से अपने गांव जा रहे हैं। पहली बार इसलिए क्योंकि उनका गांव हाल ही में मोटर रोड से जुड़ा है। ये वही रोड है जिसका उद्घाटन हाल ही में देश के रक्षा मंत्री ने किया है और जो धारचूला को लिपुलेख दर्रे से जोड़ती है। रवि नाबी गांव के रहने वाले हैं जो व्यास घाटी के सबसे सुदूर गांवों में से एक है।
रवि बताते हैं, ‘इस सड़क का निर्माण दोनों तरफ से शुरू हुआ था। मतलब लिपुलेख से नीचे की ओर और तवाघाट से ऊपर की ओर। ऊपरी हिस्सों में तो सड़क काफ़ी पहले ही बन चुकी थी। कालापानी से आगे और मेरे गांव तक भी सड़क बन चुकी थी। वहां फौज और आईटीबीपी की गाड़ियां भी कई साल से चलने लगी थी। लेकिन ये वही गाड़ियां थीं जिन्हें एयरलिफ़्ट करके वहां ऊपर पहुंचाया गया था। नीचे ये सड़क नजंग से आगे नहीं बनी थी इसलिए हमारा गांव सीधा धारचूला से नहीं जुड़ा था। ये पहली बार ही हुआ है।’
इस सड़क निर्माण के साथ ही अब व्यास घाटी में बसे तमाम गांव और लिपुलेख दर्रा भी मुख्य भारत से सीधा जुड़ गए हैं। लिपुलेख ही वह जगह है जहां से कैलाश मानसरोवर की यात्रा होती है। इसके मुख्य भारत से जुड़ने के साथ ही कैलाश मानसरोवर जाने वाले यात्रियों का सफर काफ़ी हद तक सुलभ हो गया है। लेकिन ये विडंबना ही है कि कई सालों की मेहनत के बाद जिस साल ये लिपुलेख को सड़क मार्ग से जोड़ने में हमें कामयाबी हासिल हुई, उस साल संभवतः कैलाश मानसरोवर यात्रा ही न हो।
कोरोना संक्रमण के चलते तय माना जा रहा है कि इस साल यह यात्रा रद्द कर दी जाएगी। 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के बाद जब 80 के दशक में यात्रा दोबारा शुरू की गई, तब से यह पहला मौक़ा है जब यात्रा पूरी तरह बंद रहेगी। इससे पहले साल 1998 हुए माल्पा कांड के चलते भी यात्रा बीच में ही स्थगित हुई थी, जब सैकड़ों यात्री प्राकृतिक आपदा की चपेट में आ गए थे। साल 2013 में आई उत्तराखंड आपदा के दौरान भी यात्रा बीच में रोकनी पड़ी थी। लेकिन यह पहली बार है जब यात्रा शुरू ही न हो।
यात्रा स्थगित होने का प्रभाव इस क्षेत्र के सैकड़ों लोगों पर पड़ने वाला है। आदि कैलाश मंदिर समिति के अध्यक्ष लक्ष्मण कुटियाल बताते हैं, ‘इस इलाक़े के सैकड़ों लोग यात्रा पर निर्भर होते हैं। धारचूला और आस-पास के गांवों से कई लड़के बतौर सहायक यात्रियों के साथ लिपुलेख दर्रे तक जाते हैं और सैकड़ों अन्य अपने घोड़े-खच्चरों से यात्रियों का सामान ढोते हैं। इन तमाम लोगों के लिए यही आजीविका का मुख्य स्रोत है जो इस साल बंद हो गया है।’
कोरोना महामारी के चलते इस साल भले ही यात्रा स्थगित रहे, लेकिन लिपुलेख तक सड़क बन जाने से आने वाले सालों में यात्रा काफी आसान हो जाएगी। इससे स्थानीय लोगों को कितना लाभ होने की उम्मीद है? यह सवाल करने पर लक्ष्मण कुटियाल कहते हैं, ‘सड़क बन जाने से निश्चित ही स्थानीय लोगों का कारोबार बढ़ने की उम्मीद है। लेकिन यह कैलाश मानसरोवर यात्रा के कारण नहीं होगा। क्योंकि यात्रियों की संख्या चीन तय करता है और साल में करीब एक हजार यात्री ही यहां से इस यात्रा पर जा सकते हैं। यात्रियों की संख्या अगर बढ़े तो स्थानीय लोगों को लाभ होगा लेकिन यह चीन की सहमति के बिना मुमकिन नहीं है।’
लक्ष्मण कुटियाल यह भी कहते हैं कि ‘भारत से जहां सिर्फ एक हजार यात्रियों को कैलाश मानसरोवर जाने की अनुमति मिलती है वहीं नेपाल से बीस-तीस हजार यात्री हर साल इस यात्रा पर जाते हैं। बल्कि भारत के भी कई लोग नेपाल होते हुए ही यात्रा पर जाते हैं क्योंकि वहां से यात्रा की औपचारिकताएं बहुत कम हैं और वहां निजी ट्रैवल एजेंट ही सारी व्यवस्था कर देते हैं। यदि लिपुलेख से भी निजी ट्रैवल एजेंट को यात्रा करवाने की छूट मिले और यात्रियों की संख्या बढ़ाने के लिए भारत-चीन में कोई समझौता हो सके, तो यह स्थानीय लोगों के लिए बेहद लाभदायक हो सकती है।’
क्या नेपाल की ही तरह भारत में भी कैलाश मानसरोवर की यात्रा निजी ट्रैवल एजेंट्स को सौंपी जा सकती है? इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार गोविंद पंत राजू कहते हैं, ‘इसकी संभावनाएं लगभग शून्य हैं और इसके वाजिब कारण भी हैं। पहला तो यही कि लिपुलेख बेहद संवेदनशील इलाका है। न सिर्फ़ राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से यह इलाका बेहद महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां की भौगोलिक संरचना भी नेपाल से होने वाली यात्रा की तुलना में बेहद कठिन है। यहां निजी हाथों में यात्रा नहीं सौंपी जा सकती।’
अपने अनुभव साझा करते हुए गोविंद पंत राजू कहते हैं, ‘मैंने साल 1989 में कैलाश मानसरोवर की यात्रा की थी। उस वक्त भी लिपुलेख से तिब्बत वाली तरफ चीन काफी निर्माण कर चुका था और अब तो उसने लिपुलेख दर्रे से लगभग तीन किलोमीटर नीचे तक बहुत अच्छी सड़क बना ली है। जबकि भारत वाले हिस्से में स्थितियां आज भी लगभग पहले जैसी ही हैं। ऐसी स्थितियों में निजी एजेंट्स को यात्रियों की जिम्मेदारी नहीं सौंपी जा सकती।’
पिथौरागढ़ के ही रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार बीडी कसनियाल कहते हैं, ‘हमने ये जो सड़क बीस साल में बनाई है ये उस मुक़ाबले कुछ भी नहीं जो चीन तिब्बत वाली तरफ कर चुका है। हम अगर पहले ये काम कर चुके होते तो मानसरोवर यात्रा लिपुलेख से एक-दो दिन में पूरी की जा सकती थी। लेकिन इस यात्रा की कमान पूरी तरह से चीन के हाथ में है। वही एक तरह से इसे तय करता है। कितने यात्री आएंगे, कहां रुकेंगे, कितने दिन रुकेंगे, ये सब चीन से तय होता है। इसलिए इस सड़क के बनने से यात्रा बढ़ेगी, ये कहना ग़लत होगा। ये ज़रूर है कि यात्रियों की जिस सीमित संख्या की अनुमति चीन देता है, उन यात्रियों को कुछ आसानी होगी और सड़क बन जाने उस इलाके में घरेलू पर्यटकों का आना भी बढ़ेगा।’
इस सड़क निर्माण से ऐसी ही उम्मीद सुदूर कुटी गांव के रहने वाले अर्जुन सिंह को भी है। अर्जुन बीते कई साल से इस क्षेत्र में गाइड का काम करते हैं। वे बताते हैं, ‘इस इलाक़े में कई ट्रेक्स हैं और छोटा कैलाश जिसे कि आदि कैलाश भी कहते हैं, वह भी यहीं है। सड़क बन जाने से अब इन जगहों पर लोगों का आना बढ़ेगा तो गांव-गांव में होम-स्टे भी बनेंगे और स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा।’
इस नई सड़क का उद्घाटन करते हुए देश के रक्षा मंत्री ने कैलाश मानसरोवर यात्रियों का प्रमुखता से जिक्र किया था। उन्होंने बताया था कि सड़क निर्माण के बाद यह यात्रा तीन हफ़्तों की न होकर सिर्फ़ एक हफ्ते में ही पूरी हो सकेगी। लेकिन इसके बावजूद भी यात्रियों को कैलाश मानसरोवर पहुंचाने में भारत की तुलना में नेपाल ने जो बढ़त बनाई है, उसका कम होना मुश्किल ही है। वह इसलिए कि लिपुलेख से यात्रा सुलभ होने के बाद भी यात्रियों की संख्या निर्धारित करना आख़िर चीन के ही हाथ में है।
ऐसे में कैलाश मानसरोवर की भौगोलिक दूरी भले ही लिपुलेख (भारत) से सबसे कम हो, लेकिन चीन से हमारी राजनीतिक दूरी फ़िलहाल नेपाल की तुलना में कहीं ज़्यादा है। यही कारण है कि सबसे छोटा रास्ता बना लेने के बाद भी अधिकतर भारतीयों को कैलाश मानसरोवर की यात्रा फिलहाल नेपाल होते हुए ही करनी पड़े।
किर्गिस्तान में भारत के 10 हजार से ज्यादा बच्चे पढ़ रहे हैं। लॉकडाउन लगने के बाद इनमें से कई बच्चे वहीं फंस गए हैं। लॉकडाउन में किर्गिस्तान में जो नियम लागू किए गए, उसके मुताबिक बाहर निकलने पर हर विदेशी के पास पासपोर्ट होना चाहिए।
बिना पासपोर्ट के कोई बाहर नहीं निकल सकता। बहुत से स्टूडेंट्स के पासपोर्ट कॉलेज में जमा हैं, ऐसे में वे पिछले करीब 70 दिनों से अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकल सके हैं। वे लोकल स्टूडेंट्स की मदद से अपने काम करवा रहे हैं।
किर्गिस्तान में 21 मार्च को लॉकडाउन लगाया गया था। हालांकि अब काफी हद तक हट गया है लेकिन पुलिस अब भी बाहर जाने पर पासपोर्ट और दूसरी चीजें चेक कर रही है, यही वजह है कि ये बच्चे पिछले दो माह से भी ज्यादा समय से एक कमरे में कैद होकर रह गए हैं।
मप्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान, यूपी सहित देश के तमाम राज्यों के हजारों स्टूडेंट्स किर्गिस्तान में फंसे हुए हैं। किर्गिस्तान में लॉकडाउन लगने के पहले से ही ये लोग भारत आने की कोशिशें कर रहे हैं, लेकिन अभी तक आ नहीं पाए।
कुछ स्टूडेंट्स वंदे भारत मिशन के तहत लौट आए हैं, कुछ की फ्लाइट शेड्यूल हुई हैं लेकिन ऐसे बहुत से हैं जिनके लौटने को लेकर असमंजस बना हुआ है।
स्टूडेंट्स कहते हैं कि, यहां हम बिना पासपोर्ट के कहीं नहीं जा सकते। बहुत से स्टूडेंट्स के पासपोर्ट कॉलेज में जमा हैं, वो तो बाहर भी नहीं निकल सकते।
बाहर जाओ तो कहां जा रहे हैं, उसका पूरा रूट, किससे मिल रहे हैं, कब आएंगे यह जानकारी नोट करवानी होती है इसलिए कोई बाहर निकलता ही नहीं।
किर्गिस्तान में टेम्प्रेचर कम होता है। पहले नलों से गरम पानी भी आता था, जो अब आना बंद हो गया है। घर में गरम करो तो बिल बहुत ज्यादा आता है।
कई का राशन खत्म होने को है और पैसे भी उतने नहीं की खरीद सकें। ऐसी तमाम दिक्कतें हैं।
पढ़िए इन्हीं स्टूडेंट्स की कहानी, इन्हीं की जुबानी।
मप्र के स्टूडेंट्स: बैंक ने लोन कैंसिल किया तो कॉलेज ने पासपोर्ट जमा कर लिया
मप्र के छोटे से कस्बे हाटपिपलिया की मेरियन दास पिछले 5 माह से किर्गिस्तान में फंसी हुई हैं। मेरियन किर्गिस्तान के कांट में एशियन मेडिकल इंस्टीट्यूट से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही थीं।
उनका फर्स्ट ईयर पूरा हो चुका था। इसके बाद वे छुटि्टयों पर भारत आईं और 24 सितंबर को वापस किर्गिस्तान लौट गईं।
वादा करने के बावजूद बैंक ने उन्हें एजुकेशन लोन नहीं दिया, इस कारण वे थर्ड सेमेस्टर की फीस जमा नहीं कर सकीं।
फीस जमा न करने के चलते कॉलेज ने उन्हें हॉस्टल में एडमिशन देने से इंकार कर दिया और उनका पासपोर्ट और वीजा भी जब्त कर लिया।
दिसंबर-जनवरी में जब मेरियन के सभी दोस्त हॉस्टल में शिफ्ट हो चुके थे, तब वो एक दूसरे फ्लैट में रहीं। इसी बीच लॉकडाउन लग गया और खाने-पीने की दिक्कत भी होने लगी।
मरियन कहती हैं, किर्गिस्तान में इंडियन फूड सबसे पहले खत्म हुआ। हम लोगों ने आपस में पैसे जोड़कर कुछ स्टॉक कर लिया था उसी से जैसे-तैसे दिन काटे।
इस बीच वे अपना पासपोर्ट और वीजा लेने के लिए लगातार कोशिशें करते रहीं लेकिन उन्हें कहीं से भी मदद नहीं मिल पाई।
मरियन कहती हैं, इसी बीच मुझे एग्जाम देने से रोक दिया गया। दिनरात मां और पापा से वॉट्स एप पर बात करती थी।
वो भी लगातार वहां से मुझे निकालने के लिए कोशिशें कर रहे थे लेकिन कुछ हो नहीं पा रहा था।
बड़ी कोशिशों के बाद पिछले हफ्ते ही मुझे इंदौर के विधायक रमेश मेंदोला की मददसे पासपोर्ट और वीजा मिल पाया। उन्होंने इंडियन एम्बेसी में बात की फिर एम्बेसी के दखल के बाद कॉलेज ने वीजा-पासपोर्ट दिए। मेरियन कहतीं हैं, कॉलेज के लोगों ने उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव किया। धमकियां दीं और अपशब्द तक कहे।
मुझसे जबरन नोटरी पर लिखवाया कि यदि मैं फीस नहीं चुकाती हूं तो कॉलेज मेरे खिलाफ किसी भी तरह की कानूनी कार्रवाई कर सकता है।
मेरियन ने फर्स्ट ईयर की पूरी फीस भरी थी। लेकिन लोन अप्रूव नहीं होने के कारण वे थर्ड सेमेस्टर की फीस नहीं भर पाईं थीं।
मेरियन की मां रीना दास के मुताबिक, बैंक ने पहले लोन देने के लिए हां कर दिया था इसलिए हमने बच्ची को किर्गिस्तान भेजा लेकिन उसके वहां पहुंचने के बाद बैंक ने लोन देने से इंकार कर दिया।
बड़ी मुश्किल से हम लोगों ने उसकी पहले साल की फीस भरी। लेकिन दूसरे साल बिना बैंक की मदद के ऐसा करना संभव नहीं था। बैंक पहले ही लोन देने से इंकार कर देता तो हम बच्ची को बाहर भेजते ही नहीं।
मेरियन के मुताबिक वहां बहुत सारे भारतीय हैं। सब एक-दूसरे को जानते हैं, इसलिए इस मुश्किल वक्त में इन्हीं से मदद मिल पाई।
वरना कॉलेज ने तोमरने के लिए छोड़ दिया था। उन्हें हॉस्टल के बाहर रहने वाले बच्चों से कोई मतलब नहीं। बच्चों की कोई फ्रिक नहीं। अब यहां फंसे हम 179 बच्चे विशेष फ्लाइट से 21 जून को अपने देश के लिए निकलेंगे।
किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिन से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे दीपक अंजाना भी 21 जून को लौटने वाले स्टूडेंट्स में शामिल हैं।
दीपक ने बताया कि यहां से निकलने के लिए हमें ‘मिशन मप्र' शुरू किया था। वॉट्सऐप पर मप्र के सभी स्टूडेंट्स का एक ग्रुप बनाया था। इस ग्रुप के जरिए ही सरकार पर फ्लाइट भेजने के लिए दबाव बनाया।
दीपक कहते हैं यह एम्बेसी की लापरवाही से कुछ बड़ी दिक्कतें भी हुईं। जैसे बिहार एक लड़की हॉस्पिटल में एडमिट थी लेकिन मेडिकल इमरजेंसी होने के बावजूद उसे पहली फ्लाइट से इंडिया नहीं भेजा गया। 1 जून को उसकी मौत हो गई।
दीपक के मुताबिक, किर्गिस्तान में भारत के करीब 10-15 हजार स्टूडेंट्स हैं। अधिकतर की एग्जाम मई में हो चुकी है। अब सब कैसे भी अपने घर पहुंचना चाहते हैं। कुछ ही एग्जाम बाद में ऑनलाइन होंगी।
दीपक के साथ ही रहने वाले रघुराज सिंह का पांचवा सेमेस्टर पूरा हो चुका है। उन्होंने बताया कि, यहां 21 मार्च से 10 मई तक लॉकडाउन चला।
लॉकडाउन में हमें पासपोर्ट और रूट चार्ज अपने साथ रखना होता था। रूट चार्ज से पुलिस को यह बताना होता था कि कहां जा रहे हैं और कितने बजे वापस आएंगे। पासपोर्ट दिखाना होता था।
कई स्टूडेंट्स के पासपोर्ट कॉलेज में जमा हैं, इसलिए वो बाहर नहीं जा सकते थे। जो स्टूडेंट्स हॉस्टल में थे, वो तो पूरे लॉकडाउन में एक बार भी बाहर नहीं निकल सके।
यदि सबकुछ ठीक रहा तो हम लोग सितंबर में फिर यहां आ जाएंगे। रघुराज कहते हैं, लॉकडाउन के बाद यहां यह महंगा हो गया था। इस कारण भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
राजस्थान: हम फंसे हुए हैं, अभी जो फ्लाइट जा रही उसमें हमारा नाम नहीं...
राजस्थान के तुषार जैन भी किर्गिस्तान में फंसे हुए हैं। उन्होंने बताया कि, अभी तक हमारे जाने का यहां से कोई जरिया नहीं बन पाया है।
हम लगातार इंडियन एम्बेसी में संपर्क कर रहे हैं। मैं खुद कई बार मेल कर चुका हूं लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला।
हमने चित्तौड़ के सांसद से भी बात की लेकिन कुछ हो नहीं पाया। हालांकि यहां अब लॉकडाउन हट गया है तो कोई तकलीफ नहीं है लेकिन बहुत सेस्टूडेंट्स ऐसे हैं, जिनके एग्जाम हो गए।
मेरा तो फाइनल ईयर कम्पीलट हो गया। अब कैसे भी हम जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहते हैं। अभी जो फ्लाइट जा रही है, उसमें मेरा नाम नहींहै।
यूपी के स्टूडेंट्स: बाहर निकलो तो पुलिस को बताना पड़ता है कि कहां और क्यों जा रहे हैं, कब लौटेंगे
यूपी के कपिल यादव ने बताया कि, मार्च से जाने के लिए ट्राय कर रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ हो नहीं सका। कपिल कहते हैं, यहां अब गरम पानी नहीं आ रहा। पहले एक नल से गरम पानी आता था दूसरे से ठंडा।
टेम्प्रेचर 18 से 20 डिग्री होता है। गरम पानी इस्तेमाल करने की आदत है। यदि घर में करो तो बिल बहुत ज्यादा आता है। खानेपीने का सामान भी लेने जाओ तो पासपोर्ट साथ में रखना पड़ता और बहुत पूछताछ होती है।
कहीं बाहर नहीं निकल सकते। निकलो तो पुलिस को बताना पड़ता है कि कहां जा रहे हैं, किससे मिलने जा रहे हैं और कब लौटेंगे। साथ में पासपोर्ट भी रखना होता है।
इसलिए कोई निकलता ही नहीं। सब फ्लैट में ही दिनरात काट रहे हैं। यूपी के हम 800-900 स्टूडेंट्स हैं। अब किसी भी तरह यहां से निकलना चाहते हैं।
लगातार एक ही जगह रहने के चलते कई लोग स्ट्रेस में चले गए हैं। हमारी सांसद वीके सिंह से भी बात हुई लेकिन कुछ मदद नहीं मिल सकी। उन्होंने कहा कि जुलाई तक फ्लाइट शुरू हो सकती हैं।
छत्तीसगढ़ के स्टूडेंट्स: हमारे साथ विधायक का बेटा भी पढ़ता है, फिर भी मदद नहीं मिली
छत्तीसगढ़ के कोसर आलम का भी अभी तक लिस्ट में नाम नहीं आया है। कोसर ने बताया कि छत्तीसगढ़ के करीब 500 स्टूडेंट्स यहां हैं, जो निकल नहीं पा रहे हैं।
हम लॉकडाउन लगने के पहले से ही निकलने के लिए ट्राय कर रहे थे, लेकिन किसी ने मदद नहीं की।
हमारे साथ एक विधायक का बेटा भी पढ़ता है, उसके जरिए भी बातचीत हुई लेकिन अभी तक हम लोगों को निकालने के लिए किसी ने कोशिश नहीं की।
कोसर कहते हैं कि, यहां एक कमरे में फंसे हुए हैं। एग्जाम हो गए। परिवार वाले चिंता में हैं। घर की याद आ रही है। कैसे भी जल्द से जल्द निकलना चाहते हैं।
कई पत्र लिख चुके हैं लेकिन अभी तक फ्लाइट शेड्यूल नहीं हुई।
जम्मू-कश्मीर के भी करीब 800 स्टूडेंट्स कर्गिस्तान में फंसे हुए हैं। वहां के पूर्व सीएमउमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर इस बारे में बताया।
I’ve been contacted by parents on behalf of about 800 Kashmiris stuck in Bishkek & Osh cities of Kyrgyzstan. The students have been stuck there for months & are desperate to come home. I hope @PMOIndia, @MEAIndia & @HardeepSPuri repatriate them under #VandeBharathMission.
दूतावास ने कहा- पासपोर्ट रखकर लोन न लें
भारतीय पासपोर्ट को लेकर कर्गिस्तान में बिश्केक में स्थित भारतीय दूतावास द्वारा एक नोटिस भी जारी किया गया है
इसमें कहा गया कि कुछ भारतीय स्टूडेंट्स अन्य स्टूडेंट्स के पास अपना पासपोर्ट जमा करके उनसे लोन ले रहे हैं।
कुछ विदेशियों के पास भी पासपोर्ट जमा कर ऐसा कर रहे हैं। यह पूरी तरह से गैर-कानूनी है क्योंकि भारतीय पासपोर्ट भारत सरकार की प्रॉपर्टी है। ऐसा करते हुए कोई पाया जाता है, तो दूतावास ने उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की बात कही है।
बच्ची के लिए चलती ट्रेन में दूध पहुंचाने वाले भोपाल रेल मंडल केआरपीएफ कॉस्टेबल इंदर यादव का वीडियो दैनिक भास्कर पर आने के बाद रेल मंत्री ने प्रशंसा की और इंदर को सम्मानित किया गया। भास्कर से विशेष बातचीत में इंदर नेकहा कि मैंने यह मदद किसी प्रशंसा के लिए नहीं की थी, मैंने तो सिर्फ इसे ड्यूटी का हिस्सा ही माना। मैं दैनिक भास्कर का शुक्रगुजार हूं, जिसने इस पूरे घटनाक्रम को बखूबी दिखाया, जिसके बाद रेलमंत्री ने भी इस वीडियो को शेयर करते हुए मेरे काम की प्रशंसा की। यह मेरे करियर का ऐसा पल है जिसे मैं कभी भुला नहीं पाऊंगा।
बेटी ने कहा- पापा प्राउड ऑफ यू
इंदर ने बताया कि मेरी भी दो बेटियां हैं इसलिए जब महिला यात्री ने अपनी बच्ची के लिए दूध की गुहार लगाई तो मैं उस मां के दर्द को समझ सका। यह हमारा रोजाना का काम है और इस काम से मुझे भी बहुत खुशी मिली है। यह वीडियो और खबर देखने के बाद मेरी वाइफ और मां ने कहा- हमें तुम पर गर्व है। वहीं मेरी सात की बेटी आराध्या यादव ने कहा- पापा प्राउड ऑफ यू। यह मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा अचीवमेंट है।
सबसे पहले 'दैनिक भास्कर' ने दिखाया था वीडियो
आरपीएफ जवान इंदर की इस बहादुरी की खबर और वीडियो सबसे पहले 'दैनिक भास्कर' पर दिखाया गया। इसे देखने के बाद रेल मंत्री पीयूष गोयल ने जवान की सराहना की और उन्हें नकद पुरस्कार देने की घोषणा भी की। शुक्रवार को पश्चिम मध्य रेलवे के जीएम शैलेंद्र कुमार सिंह ने कॉन्स्टेबलको पांच हजार रुपए नकद और प्रशंसा पत्र दिया।
टाइमलाइन में समझें मदद से लेकर उनके सम्मानित होने तक की पूरी कहानी
31 मई : भोपाल रेलवे स्टेशन पर इंदर सिंह ने श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सवार महिला रेल यात्री साफिया हाशमी की मदद की। इस दिन आरपीएफ ने इसे सामान्य ड्यूटी कार्य माना।
2 जून : घटना के दूसरे दिन दैनिक भास्कर ने इस पूरे घटनाक्रम के एक्सक्लूसिव सीसीटीवी वीडियो से इंदर की बहादुरी का किस्सा वीडियो स्टोरी के माध्यम से शेयर किया।
इसी दिन जब रेलमंत्री ने इस वीडियो को देखा तो अपने ऑफिशियल ट्विटर, फेसबुक अकाउंट से शेयर किया। इसके अलावा रेल मंत्रालय, जीएम, डीआरएम समेत देश भर में दैनिक भास्कर का यह वीडियो शेयर किया गया।
4 जून : रेलमंत्री ने आरपीएफ जवान इंदर सिंह की बहादुरी की तारीफ करते हुए उन्हें नकद पुरस्कार और प्रशंसा पत्र देने की घोषणा की।
5 जून : इटारसी-खंडवा रेल खंड का निरीक्षण करने भोपाल रेल मंडल पहुंचे पश्चिम मध्य रेलवे के जीएम शैलेंद्र कुमार सिंह ने आरपीएफ कॉन्स्टेबलइंदर सिंह को पांच हजार रुपए के नकद पुरस्कार और प्रशंसा पत्र से सम्मानित किया।
जानिए क्या है पूरा मामला
31 मई की रात 8:45 बजे बेलगाम (कर्नाटक) से गोरखपुर जा रही श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सफर कर रही साफिया हाशमी की तीन महीने बच्ची दो दिन से भूखी थी। बच्ची के माता-पिता उसे पानी में बिस्किट डुबोकर खिला रहे थे। उन्होंने कई स्टेशनों पर बच्ची के लिए दूध मांगा, लेकिन कहीं पर मदद नहीं मिली। ट्रेन भोपाल पहुंची तो साफिया ने आरपीएफ जवान से बच्ची के लिए दूध की गुहार लगाई। इंदर सिंह ने स्टेशन से चल चुकी ट्रेन तकदौड़ लगाकर दूध का पैकेट मां को दिया और दो दिन से भूखी बच्ची को मदद मिल सकी।
कोरोना के मरीजों को पिज्जा का स्वाद कार्डबोर्ड जैसा लग रहा है। परफ्यूम की खुशबूमहसूस नहीं कर पा रहे हैं। घर में गैस पर खाना जल रहा है तो भी उन्हें इस बात काअहसास नहीं हो रहा। संक्रमण से उबर रहे मरीज अपना डॉक्टर्स और शोधकर्ताओं के साथ अनुभव साझा करकेबाकियोंको सावधान रहनेको कह रहे हैं।
कोरोनावायरस के मरीजों में गंध महसूस न होने और खाने का स्वाद न मिलने के लक्षण वाले मामले बढ़ रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे सर्वाइवर्स को कभी तोस्वाद और गंधका अहसास हो रहा हैऔर कभी नहीं।दो मामलों से समझते हैं किक्या महसूस कर रहे कोरोना सर्वाइवर-
पहला मामला: 'मैं क्या खा रहा हूं समझ नहीं आ रहा'
अमेरिका के उटाहमें रहने वाले 23 साल के मैट नेवे को मार्च में कोरोना का संक्रमण हुआ। वे कुछ समय बाद रिकवर हो गए। खांसी तो चली गई, लेकिन स्वाद को न समझने और खुशबून महसूस कर पाने के लक्षण बरकरार रहे।
मैट का कहना है कि अप्रैल में मरहूम दादी के कमरे को साफ करते वक्त परफ्यूम की एक बोतल मिली। मुझे उनकेपरफ्यूम की खुशबूपसंद थी। इसलिए जब बोतल में उस खुशबूको सूंघा को कुछ अहसास नहीं हुआ। खाने के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। क्या खा रहा हूं, समझ नहीं आ रहा।
कई बार ब्रेकफास्ट और लंच करने में घंटों लग जाते हैं।पिछले महीने घर में बहन ने पैनकेक बनाया था, लेकिन वह जल गया और मुझे पता तक नहीं चल पाया क्योंकि जलने की गंध ही समझ नहीं आई।
दूसरा मामला: मार्च से अब तक खाने का स्वाद नहीं मिला
मिशिगन के रहने वाले 62 साल के डेन लेर्ग का कहना है कि कोरोना से रिकवर होने के बाद से आज तक खाने का स्वाद नहीं समझ पा रहा हूं। मार्च के बाद से ऐसा लगातार हो रहा है। एक दिन मेरी पत्नी में पिज्जा ऑर्डर किया। जब मैंने पिज्जा खाया तो ऐसा लगा मैं कोईकार्डबोर्ड का टुकड़ाखा रहा हूं।
अमेरिकी विशेषज्ञों ने सीडीसी को दिया था सुझाव
मार्च में अमेरिकन एकेडमी ऑफ ऑटोलैरंगोलॉजी ने यहां की सबसे बड़ी स्वास्थ्य एजेंसी सीडीसी को इन्हीं लक्षणों से कोराना संक्रमितों की पहचान करने कासुझाव दिया था। एकेडमी ने सीडीसी को स्वाद और गंध का पता न चलने वाला लक्षणों कोगाइडलाइन में शामिल करने को कहा था। 23 मार्च को डब्ल्यूएचओ की टेक्निकल हेड मारिया वेन ने कहा था कि हमऐसे लक्षणों को समझने की कोशिश कर रहे हैं। अभी हमारे पास इनका कोई जवाब नहीं है।
ऐसा लक्षण दिखे तो अलर्ट हो जाएं
अमेरिकन एकेडमी ऑफ ओटोलैरंगोलॉजी के सीईओ डॉ. जेम्स डैनी का कहना है, कोरोना से संक्रमित हुए काफी लोगों में येलक्षण दिखेहैं, जबकि कुछ मरीजों में येलक्षण नजर नहीं आए।
अगर ऐसेलक्षण दिखतेहैं तो आपको अलर्ट होने की जरूरत है, वरना आपके जरिएकोरोनावायरस दूसरों तक पहुंचेगा। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे सर्वाइवर्स को गंध और स्वाद के अहसास में अलग-अलग समय बिल्कुल नए अनुभव हो सकते हैं।
केरल के मलप्पुरम में खाने की तलाश में भटकते हुए शहर पहुंची गर्भवती हथिनी को फल में पटाखे रखकर खिलाकर हथिनी की हत्या करने की घटना ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। देश के कोने-कोने में वन्यजीव प्रेमियों के मन में इस घटना के बाद आक्रोश है। वहीं, मल्लपुरम से करीब 2400 किलोमीटर दूर राजस्थान की राजधानी जयपुर में देश का एकमात्र और पहला ऐसा हाथी गांव है, जहां लॉकडाउन की वजह से पिछले 80 दिनों से हाथी मालिकों और महावतों के परिवारों के 800 से ज्यादा सदस्यों की रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
तमाम मुसीबत और संकट के बावजूदइस गांव के लोगएक वक्त भूखे रहकर अपने हाथियों को पाल रहे हैं। उन्हें भूखा नहीं रहने दे रहे हैं। इसके पीछे वजह है कि हाथी इनके लिए जानवर नहीं बल्कि परिवार का हिस्सा है। हाथी गांव में रहने वाले बच्चे इन हाथियों के बीच पले-बढ़े हैं। ऐसे में इन बच्चों के लिए ये हाथी दोस्त जैसे हैं। यहां रहकर बच्चे इनके साथ खेलते हैं। मस्ती करते हैं। कभी सूंड पकड़कर चढ़ जाते हैं तोकभी पैर या दांत पकड़ कर झूलते हैं। यही हाल इनके मालिकों व महावतों का है,जो कि इन हाथियों से बच्चों के समान बर्ताव करते हैं।
गांव में हाथियों व महावतों कीरोजमर्रा की जिंदगी देखनेआते हैं पर्यटक
यहां के लोग बताते हैं कियह देशका पहला और एकमात्र हाथी गांव है, जिसे 2010में जयपुर-दिल्ली हाइवे पर 120 बीघा में बसाया गया था।देश विदेश के सैलानी यहां हाथियों और उनके महावतों की रोजमर्रा की जिंदगी को करीब से देखने आते रहे हैं। यहां मुख्यगेट पर एंट्री में हाथी गांव का बोर्ड लगा हुआ है।
गांव में कुल 103 हाथी, 63 हाथियों के लिए बने हैं बाड़े
हाथी गांव कल्याण समिति के अध्यक्ष बल्लू खान बताते हैं कि यहां हाथियों के रहने के लिए 63 शेड होम बने हैं। यह करीब 20 फीट से ऊंचाई चौड़ाई है। एक ब्लॉक में तीन हाथियों के लिए शेड होते हैं। इसके पास इनके महावतों और परिवार के ठहरने के लिए कमरे बने हैं। बच्चों के खेलने के लिए लॉन है। यहां हाथियों की देखरेख और उपचार के लिए वेटेनरी डॉक्टर की व्यवस्था भी है। इसके अलावा हाथियों के नहाने के लिए तीन बड़े तालाब हैं। कैंपस में ही यहां रहने वाले लोगों के लिएस्कूल व अस्पताल भी है। हाथियों का सामान व खाना रखने के लिए स्टोर रूम भी बना हुआ है।
'केरल की घटना से मां घबरा गई और फोन पर बात करते वक्त भावुक हो गई'
केरल में गर्भवती हथिनी की निर्ममता सेहुई हत्या की घटना को याद करते हुए बल्लू ने कहा, 'उनकी बुजुर्ग मां को मीडिया केजरिए यह समाचार मिला। तब वे घबरा गई।उस वक्त मैं घर से बाहर था। तब मेरी मां ने मुझे फोन कर केरल की घटना के बारे में बताया। वे उस वक्त काफीभावुक और परेशान थी। उन्होंने कहा कि एक बार हाथी गांव में अपने हाथियों को भी संभाल लो। कहीं यहां ऐसा कोई बदमाश नआ जाए,जो अपने हाथियों के साथ ऐसा कर दें।'
बल्लू कहते हैं किखाने की तलाश में शहर में निकली एक हथिनी को निर्ममता से हत्या से बड़ा पाप नहीं हो सकता। यहां हमने बचपन से जब से होश संभाला है तब से हाथियों को देखा है। हम खुद भूखे रह जांएगे। लेकिन इन बेजुबानहाथियों को भूखा नहीं रहने देंगे। आज इनकी वजह से हाथी मालिकों वमहावतों के 800 से ज्यादा परिवार के सदस्यों का पेट पल रहा है।
हाथी मालिक बल्लू खान के मुताबिक, केरल में घायलहथिनी तीन दिन तक पानी में तड़पती रही। वह शांत रही। लेकिन किसी को पता तक नहीं चला। जबकि उनका हाथियों से इतना लगाव है कि यहां उनके पेट दर्द हो या फिर कोई और शारीरिक समस्या। सिर्फ हाथियों के शरीर की हलचल को देखकर ही समझ आ जाती है। इससे वे तत्काल डॉक्टर को बुला लेते हैं।
A-ब्लड ग्रुपवालों को कोरोना के संक्रमण का खतरा अधिक है। इनमें संक्रमण का स्तर गंभीर हो सकता है। यह दावा जर्मनी की कील यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया है। उनका कहना है कि दूसरों के मुकाबले इनके संक्रमित होने का खतरा 6 फीसदी तक ज्यादा है।
शोधकर्ताओं ने पाया है कि A-ब्लड ग्रुपवाले कोरोना पीड़ितों में डीएनए का एक खासहिस्सा ऐसा है जो इसके लिए जिम्मेदार हो सकता है। रिसर्च के दौरान इसकी पुष्टि हुई है। इससे पहले चीन में हुई रिसर्च में भी A-ब्लड ग्रुपवालों में कोरोना के संक्रमण का खतरा अधिक बताया गया था।
वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है
शोधकर्ताओं का कहना है कि A-ग्रुपवालों में 50 फीसदी तक ये आशंका है कि उन्हें ऑक्सीजन की अधिक जरूरत पड़ सकती है,या उन्हें वेंटिलेटर पर ले जाना पड़ सकता है। यही वजह है कि युवा और स्वस्थ लोग भी कोरोना से संक्रमित हो सकते हैं या इनकी मौत भी हो सकती है। अमेरिका में कोरोना के 40 फीसदी मरीज युवा है।
पिछले हफ्ते 30 फीसदी युवा संक्रमित हुए
अमेरिका की सबसे बड़ी स्वास्थ्य एजेंसी सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के मुताबिक, पिछले हफ्ते अस्पतालों में भर्ती होने वाले कोरोना के 30 फीसदी मरीजों की उम्र 18 से 49 साल के बीच थी। ब्लड ग्रुप-ए वालों में किस उम्र वर्ग के लोग सबसे ज्यादा संक्रमण के रिस्क जोन में हैं, शोधकर्ता इसका पता लगा रहे हैं।
डीएनए रिपोर्ट में कॉमन पैटर्न दिखा
शोधकर्ताओं ने इटली और स्पेन के ऐसे कोरोना पीड़ितों के डीएनए सैम्पल लिए जो सांस नहीं ले पा रहे थे। दोनों देशों के ऐसे 1610 मरीजों का जीनोम सिक्वेंस जांचा गया। शोधकर्ताओं का कहना है कि इनकी डीएनए रिपोर्ट में एक कॉमन पैटर्न दिखा जो इनमें जान का जोखिम बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हो सकता है।
इनकी रिपोर्ट का मिलान कोरोना के ऐसे 2205 मरीजों से किया जो गंभीर बीमार नहीं थे। शोधकर्ताओं ने पाया डीएनए के दो जीन ऐसे है जो 1610 वाले समूह की मरीजों की हालत नाजुक होने की वजह थे।
ब्लड ग्रुप-ओ वालों में खतरा कम
शोधकर्ताओं का कहना है कि O-ब्लड ग्रुप वालों में संक्रमण के गंभीर रूप लेने की आशंका सबसे कम है। ब्लड ग्रुप-ए वालों में खतरे की वजह इम्यून सिस्टम हो सकती है। जो अधिक सक्रिय होने पर फेफड़ों में सूजन बढ़ाने के साथ दूसरे अंगों को इस कदर प्रभावित करता है कि ये कोरोना से नहीं लड़ पाते।
मुंबई में रोजाना औसतन 25 हजार लोग रक्तदान करते हैं। लेकिन, लॉकडाउन और संक्रमण के भय के कारण मुंबई के ब्लड बैंकों में ब्लड की भारी कमी है। थैलिसीमिया जैसी बीमारी के मरीज सर्वाधिक परेशान हैं। यह कहना है मुंबई की रक्त संक्रमण परिषद का। ऐसे ही देश में दूसरी गंंभीर बीमारियों के मरीज भी परेशान हो रहे हैं।
भास्कर ने इसे जानने के लिए 10 राज्यों की स्थिति जानी। अधिकांश राज्यों के प्रमुख अस्पतालों में ओपीडी शुरू नहीं हुई है या उसमें अभी 70-80% तक मरीज कम हैं। मुंबई निगम की स्वास्थ्य अधिकारी दक्षा शाह बताती हैं कि सरकारी और निजी अस्पताल मिलाकर रोज शहर में करीब 3 हजार सर्जरी होती थी। अभी मात्र 20 फीसदी सर्जरी ही हो रही हैं।
वहीं, दिल्ली में केंद्र सरकार के सबसे बड़े अस्पताल एम्स में ओपीडी शुरू नहीं हुई है। हालांकि, अस्पताल ने मरीजों को टेली कंसल्टेशन की सुविधा दी है। यहां पहले से तय कोई भी सर्जरी नहीं हो रही। इमरजेंसी सर्जरी की जा रही हैं। सरकार के दूसरे बड़े अस्पताल सफदरजंग में रोजाना करीब 1500 मरीज आ रहे हैं। पहले यहां रोजाना 10 हजार से ज्यादा मरीज आते थे।
वहीं, झारखंड में वॉलेंटरी ब्लड डोनेशन कैंप नहीं होने के कारण ब्लड बैंकों में रक्त की कमी देखी जा रहीहै। हीमोफीलिया, सिकल सेल जैसे मरीजों को ब्लड उपलब्ध कराने में देरी की सूचना के बाद सरकार की ओर से स्थिति सुधारने के लिए आदेश जारी किए गए।
हालांकि, गुजरात के अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में लॉकडाउन के दौरान भी ओपीडी खुली रहीं। मरीज ज्यादा नहीं आए। अब मरीजों की संख्या में 15 से 30% का इजाफा हुआ है। सिविल अस्पताल के परिसर स्थिति किडनी हॉस्पिटल में ऑर्गन ट्रांसप्लांट शुरू कर दिया गया है।
इन तीन केस से समझिए किस तरह आम आदमी परेशान हो रहा है
केस-1ट्रांसप्लांट
लॉकडाउन के कारण अब तक अटका
छत्तीसगढ़ के अभनपुर में रहने वाले ग्रामीण का किडनी ट्रांसप्लांट होना था। लॉकडाउन के ठीक एक दिन पहले उनका और डोनर का सैंपल जांच के लिए मुंबई भेजा गया। रिपोर्ट अब तक नहीं आई है जबकि ब्लड की जांच 12 घंटे के भीतर हो जानी चाहिए।
केस-2ऑपरेशन
कैंसर के मरीज को गेट से लौटाया
दिल्ली में रहने वाले जहांगीर को मुंह का कैंसर है। एम्स में एक साल से इलाज चल रहा है। डॉक्टर्स ने 14 मई की तारीख दी थी। जहांगीर जब एम्स गए तो सुरक्षा गार्ड्स ने गेट से ही लौटा दिया। प्राइवेट अस्तपाल में ऑपरेशन के 7 लाख रु. मांग रहे हैं।
केस-3आर्थिक बोझ
निजी लैब से टेस्ट करवाने का दबाव
पंजाब के जालंंधर में रहने वाले सुधीर वर्मा को पथरी का ऑपरेशन करवाना था। एक निजी अस्पताल पहुंचे तो ऑपरेशन से पहले उनपर निजी लैब से ही कोरोना टेस्ट करवाने का दबाव बनाया गया। ऐसे में सुधीर पर जबरदस्ती 4500 रुपए का बोझ डाला गया।
और एक फैक्टदेश में सर्जरी
5.8 लाख सर्जरी रुकी या टली हैं
ब्रिटिश जर्नल ऑफ सर्जरी में प्रकाशित स्टडी में दावा किया गया कि कोरोना के कारण भारत में 5.8 लाख लोगों की सर्जरी टल या रद्द हो सकती है। दुनियाभर में यह आंकड़ा दो करोड़ 84 लाख सर्जरी का है। लोग इस कारण परेशान हैं।
अलग-अलग राज्यों के इन उदाहरणों से समझिए स्थिति
राजस्थानः बिना डोनर नहीं मिल पा रहा है ब्लड (संदीप शर्मा)प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल एसएमएस की ओपीडी शुरू कर दी गई है। हालांकि स्किन, आंख और ईएनटी की ओपीडी शुरू नहीं की गई है। इन्हें फिलहाल अन्य जगह चलाया गया है। अस्पताल की ओपीडी 10000 से घटकर 1500 से 2000 तक हो गई है। अस्पताल में अभी बहुत ही जरूरी सर्जरी की जा रही हैं। अधिक परेशानी किडनी के मरीजों को हो रही है। क्योंकि डायलिसिस की संख्या भी कम कर दी गई है। पहले की तुलना में मात्र 20% मरीजों का डायलिसिस हो रहा है। प्रदेश भर के ब्लड बैंक में ब्लड की किल्लत है। अस्पताल या ब्लड बैंक मेें बिना डोनर के ब्लड नहीं दिया जा रहा है।
बिहारःएक अस्पताल में ही ओपन हार्ट सर्जरी की वेटिंग 470 (अजय कुमार सिंह)सरकारी अस्पताल आईजीआईएमएस में ओपन हॉर्ट सर्जरी के लिए प्रतीक्षा सूची 470 से अधिक हो गई है। यहां कॉर्निया ट्रांसप्लांट के लिए भी 100 से अधिक मरीज इंतजार कर रहे हैं। राज्य के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच में भी कॉर्निया ट्रांसप्लांट नहीं हुआ। यहां भी करीब 20 से अधिक मरीज कॉर्निया ट्रांसप्लांट के लिए इंतजार कर रहे हैं। संस्थान में कीमोथेरेपी और रेडिएशन के लिए 50 फीसदी ही मरीज पहुंचे। पीएमसीएच ने लॉकडाउन के दौरान भी ओपीडी समेत अपनी सभी चिकित्सकीय सुविधाएं बहाल रखी थी। हालांकि ओपीडी में आने वाले मरीजों की संख्या दो हजार से दो सौ पर पहुंच गई थी।
हरियाणाः सबसे बड़े अस्पताल में 5 हजार सर्जरी पेंडिंग (विवेक मिश्र)हरियाणा के सबसे बड़े अस्पताल पीजीआई रोहतक में रुटीन सर्जरी करने वाले मरीजों की वेटिंग लिस्ट करीब 5000 के पार हो चुकी हैं। वहीं चंडीगढ़ में पीजीआई सहित दो अन्य मेडिकल कॉलेज में 50% क्रिटिकल सर्जरी शुरू कर दी गई हैं। अभी पूरी ओपीडी नहीं चल रही है। चंडीगढ़ में भी करीब 6 हजार सर्जरी पेंडिंग हैं। चंडीगढ़ पीजीआई में फिलहाल दो ओपीडी गायनेकॉलोजी और रेडियो थेरेपी की चल रही है। बाकी की ओपीडी टेली कंसल्टेशन पर चल रही हैं। अभी रोजाना करीब 1000 से अधिक मरीज टेली कंसल्टेशन से सलाह ले रहे हैं। पहले यहां 10-12 हजार की ओपीडी थी।
अप्रैल में जब देशभर में सबसे सख्त लॉकडाउन लागू था और लोग घरों से बाहर तक नहीं निकल रहे थे, उस दाैरान देश में 3,209 नई कंपनियां बनीं। इनकी कुल अधिकृत पूंजी 1,429.75 करोड़ रुपए है। हालांकि, यह संख्या मार्च और पिछले साल अप्रैल में बनी कंपनियाें से काफी कम है।
इससे एक महीने पहले यानी मार्च 2020 में 5,788 नई कंपनियां गठित हुईं, जबकि अप्रैल 2019 में 10,383 नई कंपनियां बनी थीं। कॉरपोरेट मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल में सबसे अधिक 591 (18.42%) कंपनियां महाराष्ट्र में रजिस्टर हुईं। वहीं, दिल्ली में 368 (11.47%) और कर्नाटक में 350 (10.91%) कंपनियों का गठन हुआ। विशेषज्ञों के मुताबिक, पिछले 4-5 वर्ष से कंपनी रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया डिजिटाइज हो चुकी है।
3209 कंपनियों का गठन अप्रैल 2020 में
5,788 कंपनियां रजिस्टर हुईं मार्च 2020 में
10,383 कंपनियां गठित हुईं थीं अप्रैल 2019 में
कंपनी के गठन की ये प्रक्रियाएं
मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन, आर्टिकिल ऑफ एसोसिएशन तैयार करना, निदेशकों के लिए डायरेक्टर आईडेंटिफिकेशन नंबर (डिन) लेना।
कोरोनावायरस के कारण प्रो कबड्डी लीग के आयोजन पर खतरा मंडरा रहा है। मौजूदा सीजन की शुरुआत जुलाई से होनी थी। अप्रैल में खिलाड़ियों का ऑक्शन होना था, लेकिन यह अब तक नहीं हो सका है। आयोजकों को टूर्नामेंट से हर साल लगभग 500 करोड़ रुपए का फायदा होता है। उन्हें यह राशि स्पाॅन्सर की ओर से मिलती है।
पिछले दिनों लीग के आयोजन को लेकर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से कबड्डी फेडरेशन की बैठक हुई। इसमें बिना फैंस के नवंबर-दिसंबर में टूर्नामेंट के आयोजन को लेकर चर्चा हुई। अब तक लीग के सात सीजन हो चुके हैं।
एक शहर में आयोजन की तैयारी, 14 दिन क्वारैंटाइन भी
आयोजन पर अंतिम फैसला खेल मंत्रालय और गृह मंत्रालय की ओर सेहरी झंडी मिलने के बाद ही होगा। इसके लिए गाइडलाइन भी बना ली गई है। इसके अनुसार जिस राज्य में कोरोना के मरीजों की संख्या कम होगी, वहां आयोजन किया जाएगा। एक ही शहर में बिना फैंस के पूरा आयोजन कराया जाएगा। सभी खिलाड़ियाें को 14 दिन क्वारैंटाइन में रखा जाएगा। मैच के दौरान सैनिटाइजेशन भी किया जाएगा।
खिलाड़ियों को 50 करोड़ जबकि रेफरी को 90 लाख का नुकसान
लीग में 12 टीम में 200 से अधिक खिलाड़ी शामिल होते हैं। ऑक्शन पर लगभग 50 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। यदि लीग का आयोजन नहीं होता है तो खिलाड़ियों को 50 करोड़ रुपए का नुकसान होगा। लीग के 5 साल के ब्रॉडकास्टिंग राइट्स 150 करोड़ के हैं। ऐसे में इसमें भी 30 करोड़ का नुकसान संभव है।
लीग में देशभर के 30 रेफरी को शामिल किया जाता है। इन्हें एक सीजन के 3 लाख रुपए मिलते हैं। लीग के नहीं होने पर रेफरी को भी 90 लाख रुपए नहीं मिलेंगे।
आईपीएल के आयोजन पर सबकी निगाहें, इसी से अन्य को उम्मीद
प्रो कबड्डी लीग के आयोजक आईपीएल को हरी झंडी मिलने का इंतजार कर रहे हैं। यदि टी20 लीग के आयोजन को हरी झंडी मिलती है तो कबड्डी लीग के आयोजन का भी रास्ता साफ हो जाएगा। इसके बाद इंडिया सुपर लीग का भी आयोजन होना है। अधिकांश लीग बिना फैंस के मौजूदा सीजन का आयोजन कराना चाहती हैं। इससे वे आयोजन के साथ-साथ घाटे को कम कर सकेंगी। हालांकि, देश में कोरोना के केस लगातार बढ़ रहे हैं।