मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

13 राज्यों में दिखेगा बंद का असर, राजस्थान में मंडियां और पंजाब में पेट्रोल पंप बंद रहेंगे

किसान आंदोलन के समर्थन में मंगलवार को भारत बंद है। माना जा रहा है कि गैर-भाजपा शासित 13 राज्यों में इसका सबसे ज्यादा असर देखने को मिलेगा। इन राज्यों में देश की आधी आबादी रहती है और करीब 4.82 करोड़ किसान परिवार रहते हैं। इनमें बड़े राज्य महाराष्ट्र और राजस्थान हैं। महाराष्ट्र में 1.10 करोड़ और राजस्थान में 71 लाख परिवार खेती पर निर्भर हैं।

राजस्थान में अनाज मंडियां बंद रहेंगी
भारत बंद का कांग्रेस शासित राजस्थान में किसान संगठनों और मंडी कारोबारियों ने समर्थन किया है। यहां पेट्रोल पंप, अस्पताल, मेडिकल शॉप्स सहित जरूरी सेवाओं को छोड़कर बाकी सब कुछ बंद रहेगा। जयपुर में प्रदेश की सबसे बड़ी फल-सब्जी मंडी मुहाना टर्मिनल भी कल बंद रहेगी। राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यापार संघ ने भी बंद का समर्थन करते हुए प्रदेश की सभी 247 अनाज मंडियों को बंद रखने की अपील की है।

महाराष्ट्र में संवेदनशील मार्गों पर बसें नहीं चलेंगी, दूध सप्लाई नहीं होगी
किसानों के भारत बंद का महाविकास अघाड़ी (MVA) में शामिल तीनों दल यानी शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने समर्थन किया है। समाजसेवी अन्ना हजारे मंगलवार को किसानों के समर्थन में अपने गांव रालेगण सिद्धि में एक दिन का अनशन करेंगे। बंद को देखते हुए संवेदनशील मार्गों पर स्टेट ट्रांसपोर्ट (ST) की बसों को नहीं चलाने का फैसला लिया गया है।

बंद के दौरान राज्य में मेडिकल स्टोर और किराना दुकानें खुली रहेंगी। दूध उत्पादक संघ ने पूरे राज्य में मिल्क की सप्लाई रोकने का निर्णय लिया है। इसके अलावा फल और सब्जी की सप्लाई भी नहीं होगी। राज्य में सभी रेस्तरां सुबह 11 बजे से 3 बजे तक बंद रहेंगे। नासिक, पुणे, अहमदनगर और कोल्हापुर में मंडियां भी कल बंद रहेंगी।

पंजाब में पेट्रोल पंप भी सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक बंद रहेंगे
कांग्रेस शासित पंजाब में किसान आंदोलन को बड़े पैमाने पर समर्थन मिल रहा है। यहां मंगलवार को पेट्रोल पंप भी सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक बंद रहेंगे। पंजाब पेट्रोल पंप डीलर एसोसिएशन के प्रधान परमजीत सिंह इसकी घोषणा कर चुके हैं। हालांकि, इमरजेंसी सेवाओं और इससे जुड़ी गाड़ियों को पेट्रोल पंप से फ्यूल मिलता रहेगा। पंजाब में 3470 पेट्रोल पंप हैं, इनमें 4 लाख लीटर से ज्यादा फ्यूल बिकता है। राज्य के छोटे दुकानदार भी बंद के समर्थन में आ गए हैं।

झारखंड में ट्रेनों पर भी असर पड़ सकता है
झारखंड में भाजपा को छोड़कर लगभग सभी राजनीतिक दलों ने भारत बंद को अपना समर्थन दिया है। राज्य के CM हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया में लिखा है कि देश की आन-बान-शान हैं हमारे मेहनती किसान। केंद्र सरकार की देश के मालिक को मजदूर बनाने की साजिश है।

झारखंड में सीटू के महासचिव प्रकाश विप्लव ने बताया कि भारत बंद के दौरान इमरजेंसी को छोड़कर सभी सेवाएं बंद रहेंगी। ट्रेन को भी रोका जाएगा। बस और ट्रक एसोसिएशन ने एक दिन के बंद की अपील की है।

छत्तीसगढ़ में विधायक करेंगे बंद की अगुआई
कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में बंद का असर देखने को मिलेगा। कांग्रेस ने राजधानी रायपुर में बंद की अगुआई करने का जिम्मा विधायक विकास उपाध्याय पर सौंपा है। सोमवार को एक बैठक में सभी व्यापारियों से विधायकों ने बंद का समर्थन करने की अपील की है।

बाकी गैर-भाजपा शासित राज्यों का हल
केरल:
यहां भी बड़े पैमाने पर बंद का असर दिखेगा। राज्य सरकार ने कृषि कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया है।
बंगाल: सीएम ममता बनर्जी ने सोमवार को किसानों के समर्थन में मिदनापुर में कहा- भाजपा सरकार को तुरंत कृषि विधेयकों को वापस लेना चाहिए या फिर केंद्र की सत्ता से हट जाना चाहिए। ममता जिस मंच से भाषण दे रही थीं, वहां सब्जियां भी रखी हुई थीं। हालांकि, तृणमूल कांग्रेस ने भारत बंद का खुलकर समर्थन नहीं किया है। दरअसल, कांग्रेस और लेफ्ट बड़े पैमाने पर प्रदर्शन की तैयारी कर रही हैं।
आंध्र और तमिलनाडु: आंध्र में सरकार चला रही YSR और तमिलनाडु की अन्नाद्रमुक सरकार ने भारत बंद का सपोर्ट नहीं किया है।



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bharat bandh in non-BJP ruled states will be affected in 13 states, Mandis in Rajasthan and petrol pumps in Punjab will remain closed


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हरियाणा में पेट्रोल पंप बंद रहेंगे, बिहार में भी असर दिख सकता है; बाकी राज्यों में बंद बेअसर रहेगा

किसान आंदोलन के समर्थन में आज भारत बंद का भाजपा शासित 17 में से 15 राज्यों में ज्यादा असर दिखने के आसार नहीं हैं। हरियाणा और बिहार इससे अलग है। पंजाब के बाद हरियाणा में किसानों ने जमकर प्रदर्शन किया था। यहां बंद का असर नजर आ सकता है क्योंकि राज्य के 3400 पेट्रोल पंप बंद रहेंगे। बाजार बंद रहेंगे या नहीं, इस पर संगठनों के बीच सोमवार रात तक एक राय नहीं बन पाई थी। वहीं, बिहार में महागठबंधन के दलों ने बड़े पैमाने पर बंद को सपोर्ट करने की तैयारी कर ली है।

देश के 17 राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगियों की सरकार है। छह केंद्र शासित प्रदेश भी हैं, जिनमें से जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू है। इस तरह इन 23 राज्यों में देश की 50% आबादी रहती है। यहां 6.25 करोड़ किसान परिवार हैं।

मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार चाहती है कि मंडियां चलती रहें
मध्यप्रदेश में बंद का ज्यादा असर देखने को नहीं मिलेगा। शिवराज सरकार चाहती है कि प्रदेश की सभी 255 मंडियां चलती रहें। मध्यप्रदेश में सोमवार शाम तक किसी भी व्यापारी संगठन ने भारत बंद का समर्थन नहीं किया था। उधर, कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के प्रवक्ता विवेक साहू ने बताया कि मध्यप्रदेश में भारत बंद का असर नहीं होगा। हालांकि, कांग्रेस बड़े पैमाने पर प्रदर्शन की तैयारी में है।

हरियाणा के 3400 पेट्रोल पंप दोपहर 3 बजे तक बंद रहेंगे
हरियाणा में किसानों का पेट्रोलियम डीलर वेलफेयर एसोसिएशन के प्रधान संजीव चौधरी ने कहा कि किसानों के समर्थन में प्रदेश के 3400 से ज्यादा पेट्रोल पंप सुबह 8 से दोपहर 3 बजे तक बंद रहेंगे। सब्जी मंडियों में भी बंद का ऐलान किया गया है। रोडवेज निगम के अधिकारियों का कहना है कि यात्री मिलेंगे तो बसें चलाएंगे। राज्य में मेडिकल स्टोर खुले रहेंगे। बाजारों के खुलने या बंद रहने पर देर शाम तक कारोबारी संगठनों के बीच एक राय नहीं बन सकी।

बिहार में महागठबंधन का बंद को समर्थन
बिहार में लेफ्ट पार्टियों के साथ ही राजद और कांग्रेस के कार्यकर्ता भी भारत बंद के समर्थन में सड़कों पर उतरेंगे। इनकी सड़क और रेल मार्ग को रोकने की तैयारी है। इसके लिए सोमवार को लेफ्ट पार्टियों और कांग्रेस ने किसान संगठनों के साथ पटना में बैठक भी की। भाकपा माले की रणनीति है कि पहले नेशनल हाईवे बंद किया जाए। इसलिए पटना आने वाले रास्तों पर असर पड़ सकता है। NH 30 पटना-बख्तियारपुर, NH30A फतुहा से नालंदा के साथ ही पटना- गया और पटना-बख्तियारपुर स्टेट हाईवे भी प्रभावित हो सकते हैं।

उत्तर प्रदेश में भी व्यापारी संगठन बंद के समर्थन में नहीं
भाजपा शासित सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में किसान संगठनों के भारत बंद का थोड़ा असर देखने को मिल सकता है। राजधानी लखनऊ में किसान संगठन के पदाधिकारी जगह-जगह प्रदर्शन करेंगे। सपा ने भी किसानों का समर्थन देने का ऐलान किया है। हालांकि, राज्य में किसी भी व्यापारी संगठन ने भारत बंद का समर्थन करने का ऐलान नहीं किया है। शहर में सभी मार्केट खुलेंगे। ट्रांसपोर्ट के सभी साधन भी चलते रहेंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ ने अफसरों से कहा है कि राज्य में आम लोगों को दिक्कत नहीं होनी चाहिए।

गुजरात में असर के आसार नहीं
भारत बंद के मद्देनजर गुजरात सरकार ने पुख्ता इंतजाम किए हैं। अहमदाबाद में पुलिस कमिश्नर ने एक जगह पर चार या इससे ज्यादा लोगों के इकट्‌ठा होने पर रोक लगा दी है। गुजरात के सीएम विजय रूपाणी ने कहा कि गुजरात के किसान और APMC मंडियां भारत बंद के सपोर्ट में नहीं हैं। हमारे राज्य में बंद सफल नहीं रहेगा।



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Petrol pumps will remain closed in the BJP-ruled states in India, Haryana; Bihar may also be affected; Closure in other states will be ineffective


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अगर मुसलमान वोटर एक मुसलमान पार्टी से बंध गए, तो हिंदू वोटों के लिए प्रतियोगिता पूरी तरह से खुल जाएगी

क्या हमारे चुनावी लोकतंत्र में मुसलमानों की एक अलग पार्टी उभरने वाली है? अगर ऐसा हो गया, तो ऐसी पार्टी का समूची राजनीतिक प्रतियोगिता के चरित्र पर क्या असर पड़ेगा? ये सवाल असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली मजलिस-ए-इत्तहादुल-मुसलमीन की कुछ हालिया चुनावी सफलताओं ने पैदा किए हैं। मजलिस कोई नई पार्टी नहीं है।

साठ के दशक में असदुद्दीन के पिता सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद में इसकी नींव डाली थी। शुरू में वे स्थानीय राजनीति तक सीमित रहे। फिर 1984 में साल भर पहले उभरी तेलुगु देशम पार्टी और कांग्रेस के बीच हिंदू वोटों के बंटवारे का लाभ उठाकर लोकसभा का चुनाव जीत गए। उन्होंने 1989-1991 के संसदीय चुनाव भी जीते, लेकिन हैदराबाद के बाहर अपने पांव फैलाने का न तो प्रयास किया, और न ही ऐसा कोई मौका उन्हें मिला।

उनके पुत्र असदुद्दीन में कुशल वक्ता होने के साथ-साथ संविधानसम्मत लगने वाली अल्पसंख्यक राजनीति करने का माद्दा है। उन्हें साफ दिखाई दे रहा है कि मुसलमान वोटों की दावेदारी करने वाले बाकी दल भाजपा द्वारा तय किए गए हिंदू एजेंडे के पीछे घिसट रहे हैं। ऐसे में अगर कोई प्रभावशाली मुसलमान आवाज़ लोकतांत्रिक लहज़े में हिंदू वोटों की बिना परवाह किए देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय (जिसे मौलाना आज़ाद माइनॉरिटी के बजाय दूसरी सबसे बड़ी मैजॉरिटी कहा करते थे) के सरोकारों को स्पर्श करेगी, तो उसे किसी न किसी स्तर पर अवश्य सफलता मिलना तय है।

ओवैसी ने दिखाया है कि उनके भीतर पुराने हैदराबाद में अपने जनाधार को अपने साथ रखते हुए (भाजपा की ज़बरदस्त चुनावी मुहिम के बावजूद नगर निगम के चुनाव में 51 में से 44 सीटें जीतना) नए इलाकों (बिहार के सीमांचल में पांच सीटों पर विजय) में नियोजित प्रसार की क्षमता है।

केवल इतने भर से एक अलग मुसलमान पार्टी बनने की सारी शर्तें पूरी नहीं हो सकतीं। ओवैसी को अभी दिखाना है कि न केवल वे स्वयं वोट ले सकते हैं बल्कि अपने सहयोगी दलों को भी मुसलमान वोट दिलवा सकते हैं। बिहार के चुनाव में मजलिस की मौजूदगी उसके दोनों सहयोगी दलों को मुसलमान वोट दिलवाने में नाकाम रही।

इसी तरह पश्चिम बंगाल में उनका मुकाबला ममता बनर्जी से होगा, जो गैर-भाजपा विपक्ष की तरह हिंदू-एजेंडे के पीछे नहीं घिसटतीं, और खुलकर मुस्लिम वोट पटाने में लगी रहती हैं। जिस तरह मायावती उप्र में जाटव वोट हस्तांतरित करवा सकती हैं, या नीतीश बिहार में कुर्मी वोट भाजपा को दिलवा सकते हैं, उस तरह का प्रभुत्व ओवैसी को मुसलमान वोटों के मामले में प्रदर्शित करना होगा। ज़ाहिर है कि एक अलग मुसलमान पार्टी की मंजि़ल अभी दूर है।

मुसलमानों की अलग पार्टी इस सिद्धांत पर ही आधारित हो सकती है कि समाज अनिवार्य रूप से मुसलमानों और गैरमुसलमानों में बंटा है, और मुसलमान हितों की सही नुमाइंदगी मुसलमान ही कर सकते हैं। हिंदुत्ववादी राजनीति के दुष्प्रभावों से हमारे लोकतंत्र के आंशिक बचाव को यह पार्टी पूरी तरह से खत्म कर देगी। फिर भी, व्यावहारिक दृष्टि से अगर आने वाले वक्त में ऐसी पार्टी बन भी गई, तो ज़रूरी नहीं कि उसका लाभ केवल भाजपा को ही मिले।

दरअसल, इसका उल्टा भी हो सकता है। अगर मुसलमान वोटर धीरे-धीरे राष्ट्रीय स्तर पर किसी एक मुसलमान पार्टी या कुछ मुसलमान पार्टियों से बंध गए, तो हिंदू वोटों के लिए चुनावी प्रतियोगिता पूरी तरह से खुल जाएगी। बाकी सभी दल मुसलमान वोटों की चिंता छोड़ देंगे। उस सूरत में भाजपा के लिए हिंदुओं की सर्वप्रमुख प्रतिनिधि पार्टी बने रहना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि तब उसे हिंदू-प्रतिक्रिया का लाभ आज की तरह मिलने की गारंटी नहीं रह जाएगी। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)



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अभय कुमार दुबे, सीएसडीएस, दिल्ली में प्रोफेसर और भारतीय भाषा कार्यक्रम के निदेशक


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सुधारों के अपने सबसे साहसिक कदम पर अगर मोदी जैसे नेता भी लड़खड़ाते हैं तो यह दु:खद होगा

क्या किसानों के विरोध ने नरेंद्र मोदी को उनके मार्गरेट थैचर (ब्रिटेन की भूतपूर्व प्रधानमंत्री) या अन्ना हजारे वाले क्षण में ला दिया है? इसका जवाब भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था और आने वाले वर्षों में चुनावी राजनीति की दिशा तय करेगा। हम यह बता दें कि थैचर वाले क्षण का अर्थ है सुधारों की दिशा में बड़ा, साहसी और जोखिमभरा कदम, जो स्थापित ढांचों को चुनौती देगा और जिसका भारी विरोध होगा।

थैचर ने जब आर्थिक दक्षिणपंथ की ओर बुनियादी बदलाव किया था तब ऐसे ही विरोध का सामना करना पड़ा था। अन्ना वाला क्षण अलग है। थैचर ने संघों और वामपंथियों को हराया लेकिन मनमोहन सिंह और यूपीए ने अन्ना के आगे हथियार डाल दिए। अन्ना का मिशन यूपीए-2 को बर्बाद करना था। और इसमें वे सफल रहे।

मोदी अपने साढ़े छह साल के दौर की सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं, तब उन्हें ये दोनों उदाहरण देखने चाहिए। इसकी तुलना नागरिकता कानून (सीएए) विरोधी आंदोलन से न करें। यह बात कड़वी है कि आप सिखों को ‘मुस्लिम’ वाले राजनीतिक खांचे में नहीं डाल सकते। ‘खालिस्तानी हाथ’ का आरोप बेमानी था। सीएए विरोधी आंदोलन में शामिल मुस्लिम व वामपंथी बौद्धिक समूहों से मोदी सरकार ने बातचीत करना भी जरूरी नहीं समझा। लेकिन किसानों के मामले पर उसकी प्रतिक्रिया अलग रही।

मोदी की शिकायत रही है कि उन्होंने दिवालिया कानून बनाया, जीएसटी लाए, सरकारी बैंक मजबूत किए, विदेशी निवेश आसान बनाया लेकिन फिर भी उन्हें कई लोग आर्थिक सुधारक नहीं मानते। बेशक इन सुधारों के लिए उन्होंने भारी राजनीतिक चुनौतियों झेलीं, लेकिन इनमें से कुछ सुधार, खासकर जीएसटी, अपना मकसद पूरा नहीं कर पाए। अचानक नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया। इसलिए मोदी की अब तक की देन यही रही कि अर्थव्यवस्था सुस्त होती गई और भारत की वृद्धि दर ऋणात्मक हो गई।

कोरोना महामारी ने मोदी के लिए संकट में एक अवसर दिया था, जिसे ‘बर्बाद नहीं किया जाता।’ अगर नरसिंह राव और मनमोहन सिंह 1991 के आर्थिक संकट का लाभ उठाकर भारत के आर्थिक इतिहास में अपने लिए एक अच्छी जगह बना सके, तो मोदी आज ऐसा क्यों नहीं कर सकते? इसलिए, महामारी के मद्देनजर घोषित पैकेज में कई साहसी कदम उठाए गए। श्रम कानूनों में सुधार के बाद नए कृषि कानून ऐसे ही चमत्कारी कदमों में गिने जाएंगे।

इनकी तुलना थैचर के परिवर्तनकारी साहसी कदमों से कर सकते हैं। कोई भी बड़ा बदलाव किया जाता है तो उसे लेकर आशंकाएं जाहिर होती हैं, विरोध होता है। अभी के बदलाव से देश की 60% आबादी प्रभावित हुई है। मोदी सरकार बदलाव के बारे में किसानों को भरोसे में ले सकती थी, मगर अब समय बीत चुका है।

अन्ना आंदोलन और आज के हालात में कई समानताएं हैं। किसानों के आंदोलन का स्वरूप भी गैर-राजनीतिक है। लोक संस्कृति की कई हस्तियां इसके पक्ष में बोल रही हैं। इसके समर्थक भी सोशल मीडिया का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन कुछ अंतर भी हैं।

यूपीए-2 के विपरीत आज प्रधानमंत्री मर्जी के मालिक हैं। उनकी लोकप्रियता मनमोहन सिंह से कहीं ज्यादा है और चुनाव जिताने का उनका रिकॉर्ड भी बेदाग है। लेकिन किसानों का आंदोलन उनके लिए बदनुमा दाग बन गया है। उनकी राजनीति ‘संकेतों और संदेशों’ के खंभों पर टिकी रही है। ऐसे में किसानों का सरकार के साथ वार्ताओं में भी अपना लाया खाना जमीन पर बैठकर खाना, उन्हें ‘खालिस्तानी’ बताए जाने के आरोप का व्यापक विरोध, ये सब जो संदेश दे रहे हैं, वह मोदी को पसंद नहीं।

अब मोदी इससे कैसे निबटेंगे? आप विधेयकों को टाल सकते हैं, वापस ले सकते हैं। ऐसा नहीं है कि मोदी-शाह को कदम वापस खींचना नहीं आता। ऐसा उन्होंने भूमि अधिग्रहण विधेयक के मामले में किया ही था। तो एक बार फिर ‘चतुराई से पीछे हटने’ में क्या बुरा है?

लेकिन यह अनर्थ होगा। ‘मजबूत’ सरकार का नारा ही मोदी की ब्रांड छवि का आधार रहा है। भूमि अधिग्रहण विधेयक से वे शुरुआती दौर में पीछे हटे थे। लेकिन एक बार फिर कदम वापस खींचने से उनकी ‘मजबूत’ छवि बिखर जाएगी। और विपक्ष उनकी कमजोरी ताड़ लेगा। लेकिन उनकी राजधानी को किसानों ने घेर रखा हो, यह भी उनकी खराब छवि ही प्रस्तुत कर रहा है।

आपने थोड़ा-सा भी आत्मसमर्पण किया कि कमान छूटी। क्योंकि, तब श्रम सुधार के विरोधी राजधानी को घेरने आ जाएंगे। इसलिए, हमने कहा कि अब मोदी इस चुनौती के जवाब में जो कदम उठाते हैं वह राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय करेगी। हमारी अपेक्षा है कि वे थैचर का रास्ता चुनेंगे। सुधारों के अपने सबसे साहसिक कदम पर अगर मोदी जैसे नेता भी लड़खड़ाते हैं तो यह दु:खद होगा। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट


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एंबुलेंस जैसी जरूरी सर्विस को छोड़ बाकी सेवाओं पर असर शुरू, 11 बजे से 3 बजे तक चक्काजाम

कृषि कानूनों के खिलाफ 13 दिन से प्रदर्शन कर रहे किसानों से दिल्ली चौतरफा घिर चुकी है। आज भारत बंद की अपील की है। इसका असर दिखना शुरू हो गया है।महाराष्ट्र के बुलढ़ाना जिले के मलकापुर में स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के लोगों ने एक ट्रेन रोक दी। हालांकि, पुलिस ने कुछ ही देर में इन्हें ट्रैक से हटाकर हिरासत में ले लिया।

किसानों का कहना है कि बंद सुबह से शाम तक और चक्का जाम सुबह 11 से दोपहर 3 बजे तक रहेगा, ताकि ऑफिस आने-जाने वालों को दिक्कत नहीं हो। हालांकि, एंबुलेंस जैसी जरूरी सेवाओं और शादियों में लगी गाड़ियों को नहीं रोका जाएगा। उधर, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों को कानून व्यवस्था बनाए रखने के निर्देश दिए हैं।​​​

राजस्थान में डेयरी-अस्पताल और दवा दुकानें खुली रहेंगी
दूध की सप्लाई, अस्पताल, मेडिकल स्टोर और एंबुलेंस जैसी जरूरी सेवाएं चालू रहेंगी।
फल-अनाज: 247 कृषि उपज मंडियां बंद रहेंगी। मुहाना मंडी में हरी सब्जी का ब्लॉक बंद रहेगा, आलू-फल ब्लॉक खुलेगा।
ट्रांसपोर्ट: ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के प्रदेश संयोजक और जयपुर ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर्स चेंबर के प्रदेशाध्यक्ष गोपाल सिंह राठौड़ ने बताया कि ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर बंद में हिस्सा लेंगे। राजस्थान के सभी 7 लाख ट्रक ट्रेलर और सभी तरह के कमर्शियल वाहन नहीं चलेंगे। बंद में करीब 13 हजार ट्रांसपोर्ट कंपनियां शामिल होंगी। जयपुर में 1400 लो फ्लोर-मिनी बसें और 20 हजार ऑटो-रिक्शा नहीं चलेंगे।

पूरे गुजरात और नोएडा में धारा 144 लागू
गुजरात, मध्य प्रदेश, यूपी में जबरदस्ती बंद कराने पर कार्रवाई होगी। गुजरात और नोएडा में धारा 144 लागू है। हरियाणा में खापें बंद कराएंगी। राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब और दक्षिण के कई राज्यों में भी बंद रहेगा। कानूनों को केरल सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।



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महाराष्ट्र के बुलढ़ाना जिले के मलकापुर में प्रदर्शनकारियों ने रेल रोक दी। पुलिस ने कुछ देर में ही उन्हें ट्रैक से हटाकर हिरासत में ले लिया।


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13 राज्यों में दिखेगा बंद का असर, राजस्थान में मंडियां और पंजाब में पेट्रोल पंप बंद रहेंगे

किसान आंदोलन के समर्थन में मंगलवार को भारत बंद है। माना जा रहा है कि गैर-भाजपा शासित 13 राज्यों में इसका सबसे ज्यादा असर देखने को मिलेगा। इन राज्यों में देश की आधी आबादी रहती है और करीब 4.82 करोड़ किसान परिवार रहते हैं। इनमें बड़े राज्य महाराष्ट्र और राजस्थान हैं। महाराष्ट्र में 1.10 करोड़ और राजस्थान में 71 लाख परिवार खेती पर निर्भर हैं।

राजस्थान में अनाज मंडियां बंद रहेंगी
भारत बंद का कांग्रेस शासित राजस्थान में किसान संगठनों और मंडी कारोबारियों ने समर्थन किया है। यहां पेट्रोल पंप, अस्पताल, मेडिकल शॉप्स सहित जरूरी सेवाओं को छोड़कर बाकी सब कुछ बंद रहेगा। जयपुर में प्रदेश की सबसे बड़ी फल-सब्जी मंडी मुहाना टर्मिनल भी कल बंद रहेगी। राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यापार संघ ने भी बंद का समर्थन करते हुए प्रदेश की सभी 247 अनाज मंडियों को बंद रखने की अपील की है।

महाराष्ट्र में संवेदनशील मार्गों पर बसें नहीं चलेंगी, दूध सप्लाई नहीं होगी
किसानों के भारत बंद का महाविकास अघाड़ी (MVA) में शामिल तीनों दल यानी शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने समर्थन किया है। समाजसेवी अन्ना हजारे मंगलवार को किसानों के समर्थन में अपने गांव रालेगण सिद्धि में एक दिन का अनशन करेंगे। बंद को देखते हुए संवेदनशील मार्गों पर स्टेट ट्रांसपोर्ट (ST) की बसों को नहीं चलाने का फैसला लिया गया है।

बंद के दौरान राज्य में मेडिकल स्टोर और किराना दुकानें खुली रहेंगी। दूध उत्पादक संघ ने पूरे राज्य में मिल्क की सप्लाई रोकने का निर्णय लिया है। इसके अलावा फल और सब्जी की सप्लाई भी नहीं होगी। राज्य में सभी रेस्तरां सुबह 11 बजे से 3 बजे तक बंद रहेंगे। नासिक, पुणे, अहमदनगर और कोल्हापुर में मंडियां भी कल बंद रहेंगी।

पंजाब में पेट्रोल पंप भी सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक बंद रहेंगे
कांग्रेस शासित पंजाब में किसान आंदोलन को बड़े पैमाने पर समर्थन मिल रहा है। यहां मंगलवार को पेट्रोल पंप भी सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक बंद रहेंगे। पंजाब पेट्रोल पंप डीलर एसोसिएशन के प्रधान परमजीत सिंह इसकी घोषणा कर चुके हैं। हालांकि, इमरजेंसी सेवाओं और इससे जुड़ी गाड़ियों को पेट्रोल पंप से फ्यूल मिलता रहेगा। पंजाब में 3470 पेट्रोल पंप हैं, इनमें 4 लाख लीटर से ज्यादा फ्यूल बिकता है। राज्य के छोटे दुकानदार भी बंद के समर्थन में आ गए हैं।

झारखंड में ट्रेनों पर भी असर पड़ सकता है
झारखंड में भाजपा को छोड़कर लगभग सभी राजनीतिक दलों ने भारत बंद को अपना समर्थन दिया है। राज्य के CM हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया में लिखा है कि देश की आन-बान-शान हैं हमारे मेहनती किसान। केंद्र सरकार की देश के मालिक को मजदूर बनाने की साजिश है।

झारखंड में सीटू के महासचिव प्रकाश विप्लव ने बताया कि भारत बंद के दौरान इमरजेंसी को छोड़कर सभी सेवाएं बंद रहेंगी। ट्रेन को भी रोका जाएगा। बस और ट्रक एसोसिएशन ने एक दिन के बंद की अपील की है।

छत्तीसगढ़ में विधायक करेंगे बंद की अगुआई
कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में बंद का असर देखने को मिलेगा। कांग्रेस ने राजधानी रायपुर में बंद की अगुआई करने का जिम्मा विधायक विकास उपाध्याय पर सौंपा है। सोमवार को एक बैठक में सभी व्यापारियों से विधायकों ने बंद का समर्थन करने की अपील की है।

बाकी गैर-भाजपा शासित राज्यों का हल
केरल:
यहां भी बड़े पैमाने पर बंद का असर दिखेगा। राज्य सरकार ने कृषि कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया है।
बंगाल: सीएम ममता बनर्जी ने सोमवार को किसानों के समर्थन में मिदनापुर में कहा- भाजपा सरकार को तुरंत कृषि विधेयकों को वापस लेना चाहिए या फिर केंद्र की सत्ता से हट जाना चाहिए। ममता जिस मंच से भाषण दे रही थीं, वहां सब्जियां भी रखी हुई थीं। हालांकि, तृणमूल कांग्रेस ने भारत बंद का खुलकर समर्थन नहीं किया है। दरअसल, कांग्रेस और लेफ्ट बड़े पैमाने पर प्रदर्शन की तैयारी कर रही हैं।
आंध्र और तमिलनाडु: आंध्र में सरकार चला रही YSR और तमिलनाडु की अन्नाद्रमुक सरकार ने भारत बंद का सपोर्ट नहीं किया है।



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हरियाणा में पेट्रोल पंप बंद रहेंगे, बिहार में भी असर दिख सकता है; बाकी राज्यों में बंद बेअसर रहेगा

किसान आंदोलन के समर्थन में आज भारत बंद का भाजपा शासित 17 में से 15 राज्यों में ज्यादा असर दिखने के आसार नहीं हैं। हरियाणा और बिहार इससे अलग है। पंजाब के बाद हरियाणा में किसानों ने जमकर प्रदर्शन किया था। यहां बंद का असर नजर आ सकता है क्योंकि राज्य के 3400 पेट्रोल पंप बंद रहेंगे। बाजार बंद रहेंगे या नहीं, इस पर संगठनों के बीच सोमवार रात तक एक राय नहीं बन पाई थी। वहीं, बिहार में महागठबंधन के दलों ने बड़े पैमाने पर बंद को सपोर्ट करने की तैयारी कर ली है।

देश के 17 राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगियों की सरकार है। छह केंद्र शासित प्रदेश भी हैं, जिनमें से जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू है। इस तरह इन 23 राज्यों में देश की 50% आबादी रहती है। यहां 6.25 करोड़ किसान परिवार हैं।

मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार चाहती है कि मंडियां चलती रहें
मध्यप्रदेश में बंद का ज्यादा असर देखने को नहीं मिलेगा। शिवराज सरकार चाहती है कि प्रदेश की सभी 255 मंडियां चलती रहें। मध्यप्रदेश में सोमवार शाम तक किसी भी व्यापारी संगठन ने भारत बंद का समर्थन नहीं किया था। उधर, कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के प्रवक्ता विवेक साहू ने बताया कि मध्यप्रदेश में भारत बंद का असर नहीं होगा। हालांकि, कांग्रेस बड़े पैमाने पर प्रदर्शन की तैयारी में है।

हरियाणा के 3400 पेट्रोल पंप दोपहर 3 बजे तक बंद रहेंगे
हरियाणा में किसानों का पेट्रोलियम डीलर वेलफेयर एसोसिएशन के प्रधान संजीव चौधरी ने कहा कि किसानों के समर्थन में प्रदेश के 3400 से ज्यादा पेट्रोल पंप सुबह 8 से दोपहर 3 बजे तक बंद रहेंगे। सब्जी मंडियों में भी बंद का ऐलान किया गया है। रोडवेज निगम के अधिकारियों का कहना है कि यात्री मिलेंगे तो बसें चलाएंगे। राज्य में मेडिकल स्टोर खुले रहेंगे। बाजारों के खुलने या बंद रहने पर देर शाम तक कारोबारी संगठनों के बीच एक राय नहीं बन सकी।

बिहार में महागठबंधन का बंद को समर्थन
बिहार में लेफ्ट पार्टियों के साथ ही राजद और कांग्रेस के कार्यकर्ता भी भारत बंद के समर्थन में सड़कों पर उतरेंगे। इनकी सड़क और रेल मार्ग को रोकने की तैयारी है। इसके लिए सोमवार को लेफ्ट पार्टियों और कांग्रेस ने किसान संगठनों के साथ पटना में बैठक भी की। भाकपा माले की रणनीति है कि पहले नेशनल हाईवे बंद किया जाए। इसलिए पटना आने वाले रास्तों पर असर पड़ सकता है। NH 30 पटना-बख्तियारपुर, NH30A फतुहा से नालंदा के साथ ही पटना- गया और पटना-बख्तियारपुर स्टेट हाईवे भी प्रभावित हो सकते हैं।

उत्तर प्रदेश में भी व्यापारी संगठन बंद के समर्थन में नहीं
भाजपा शासित सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में किसान संगठनों के भारत बंद का थोड़ा असर देखने को मिल सकता है। राजधानी लखनऊ में किसान संगठन के पदाधिकारी जगह-जगह प्रदर्शन करेंगे। सपा ने भी किसानों का समर्थन देने का ऐलान किया है। हालांकि, राज्य में किसी भी व्यापारी संगठन ने भारत बंद का समर्थन करने का ऐलान नहीं किया है। शहर में सभी मार्केट खुलेंगे। ट्रांसपोर्ट के सभी साधन भी चलते रहेंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ ने अफसरों से कहा है कि राज्य में आम लोगों को दिक्कत नहीं होनी चाहिए।

गुजरात में असर के आसार नहीं
भारत बंद के मद्देनजर गुजरात सरकार ने पुख्ता इंतजाम किए हैं। अहमदाबाद में पुलिस कमिश्नर ने एक जगह पर चार या इससे ज्यादा लोगों के इकट्‌ठा होने पर रोक लगा दी है। गुजरात के सीएम विजय रूपाणी ने कहा कि गुजरात के किसान और APMC मंडियां भारत बंद के सपोर्ट में नहीं हैं। हमारे राज्य में बंद सफल नहीं रहेगा।



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Petrol pumps will remain closed in the BJP-ruled states in India, Haryana; Bihar may also be affected; Closure in other states will be ineffective


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किसानों का भारत बंद आज; दिल्ली में आतंकी साजिश नाकाम और रोनाल्डो से भिड़ेंगे मेसी

नमस्कार!
आज किसानों ने भारत बंद का आह्वान किया है। देशभर में सुबह 11 बजे से दोपहर 3 बजे तक चक्काजाम किया जाएगा। हालांकि, किसान नेताओं ने कहा है कि बंद शांतिपूर्ण रहेगा। और हमारे मंच पर किसी राजनेता को जगह नहीं मिलेगी। बहरहाल, शुरू करते हैं न्यूज ब्रीफ।

सबसे पहले देखते हैं, बाजार क्या कह रहा है

  • BSE का मार्केट कैप 181.16 लाख करोड़ रुपए रहा। करीब 64% कंपनियों के शेयरों में बढ़त रही।
  • 3,167 कंपनियों के शेयरों में ट्रेडिंग हुई। इसमें 2,036 कंपनियों के शेयर बढ़े और 936 कंपनियों के शेयर गिरे।

आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर

  • क्रिकेट में IND vs AUS तीसरा टी-20 आज। सीधा प्रसारण भारतीय समयानुसार दोपहर 1:40 बजे से सोनी सिक्स पर होगा।
  • यूरोपियन UEFA चैम्पियंस लीग में मेसी की कप्तानी वाली बार्सिलोना का मैच क्रिस्टियानो रोनाल्डो की टीम युवेंटस से रात 1.30 बजे से होगा।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज वर्चुअल मोड पर इंडिया मोबाइल कांग्रेस-2020 को संबोधित करेंगे।

देश-विदेश
किसान आंदोलन में दिखे विरोध के कई तरीके

कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन 12 दिन से जारी है। हर किसी का विरोध करने का तरीका अलग है। सोमवार को यूपी के नोएडा में किसानों ने भैंस के आगे बीन बजाई। वहीं, दिल्ली बॉर्डर पर एक टॉवर पर PM मोदी का पुतला टांगा गया ताकि सरकार किसानों का प्रदर्शन देख सके।

बीते 18 दिनों में 15 बार बढ़ी पेट्रोल-डीजल की कीमत
सरकारी तेल कंपनियों ने बीते 18 दिनों में यानी 20 नवंबर से 7 दिसंबर तक 15 बार पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ाईं। 15 बार हुई इस बढ़ोतरी से डीजल 3.41 रु. और पेट्रोल करीब 2.55 रु. तक महंगा हुआ। दिसंबर में अब तक पेट्रोल-डीजल के दाम में 6 बार बढ़ोतरी हुई।

मेसी और रोनाल्डो आज आमने-सामने होंगे
फुटबॉल जगत के दो दिग्गज लियोनल मेसी और क्रिस्टियानो रोनाल्डो यूरोपियन UEFA चैम्पियंस लीग में आमने-सामने होंगे। मेसी की कप्तानी वाली बार्सिलोना का मैच क्रिस्टियानो रोनाल्डो की टीम युवेंटस से मंगलवार रात 1.30 बजे होगा। यह मुकाबला स्पेन के बार्सिलोना शहर के कैंप नाउ स्टेडियम में होगा।

98 साल के दिलीप कुमार की सेहत ठीक नहीं
रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार की तबियत ठीक नहीं है। दैनिक भास्कर से खास बातचीत में सायरा बानो ने कहा, "साहब ठीक हैं। बस जरा वीकनेस है। अल्लाह का शुक्र है। अभी तो वे घर पर ही हैं। कई साल से उनकी देखरेख कर रहे डॉक्‍टरों की टीम ही उनका इलाज कर रही है।"

PoK की दो बहनों को भारतीय सेना ने घर पहुंचाया
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) से सीमा पार कर गलती से कश्मीर में दाखिल होने वाली दो सगी बहनों को भारतीय सेना ने सोमवार को वापस भेजा। लड़कियों की पहचान 17 साल की लायबा जबैर और 13 साल की सना जबैर के तौर पर हुई थी। दोनों को LOC पर रविवार को हिरासत में लिया गया था।

एक्सप्लेनर
कौन भारत बंद के साथ, कौन उसके खिलाफ?

पंजाब और हरियाणा के हजारों किसान पिछले 13 दिन से दिल्ली की सीमा पर डटे हैं। आंदोलनकारी किसानों ने आज भारत बंद बुलाया है। इस बंद को कई राजनीतिक पार्टियों और ट्रेड यूनियनों ने भी समर्थन दिया है। आखिर ये बंद क्यों बुलाया गया है? बंद कब से कब तक के लिए बुलाया गया है? आइए जानते हैं...

पढ़ें पूरी खबर...

पॉजिटिव खबर
नौकरी छोड़ी, फूड प्रोसेसिंग यूनिट शुरू की; आज टर्नओवर 30 लाख रु.

यह कहानी है उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली दिव्या की। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। 2008 में एक मल्टीनेशनल पब्लिशिंग हाउस में नौकरी की। 2014 में उत्तराखंड लौट आईं। मां के साथ मिलकर फार्मिंग करने लगीं। आज सालाना टर्नओवर 25 से 30 लाख रुपए का है।

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सुर्खियों में और क्या है...

  • फाइजर के बाद सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने भी कोवीशील्ड के इमरजेंसी यूज की अनुमति मांगी। सीरम इंस्टीट्यूट देश की पहली स्वदेशी कंपनी बन गई, जो कोरोना वैक्सीन को मार्केट में लॉन्च करने को तैयार है।
  • प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मैं पिछले दिनों कई वैज्ञानिकों से मिला। कोरोना वैक्सीन के लिए देश को अब ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। हमें अभी भी बेफिक्र नहीं होना है। मास्क और दो गज की दूरी का ध्यान रखिए।
  • इंडियन नेवी का ट्रेनी एयरक्राफ्ट MiG-29K 26 नवंबर को क्रैश हुआ था। इसके लापता पायलट का शव सोमवार को अरब सागर में मिला। इंडियन नेवी बीते 11 दिनों से अरब सागर में सर्च ऑपरेशन चला रही थी।
  • ISRO प्रमुख डॉ. के.सिवन ने सोमवार को कहा कि अब मानव मिशन की लॉन्चिंग में करीब एक साल की देरी होगी। गगनयान मिशन की लॉन्चिंग अब अगले साल के अंत तक या उसके एक साल बाद होने की उम्मीद है।


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किसान करेंगे चक्काजाम, देखेगी सरकार और आवाम



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Farmers will do the rounds, will see the government and the people


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किसी का दुख दूर करना चाहते हैं तो हम में दुख सहन करने के क्षमता होनी चाहिए

कहानी- स्वामी विवेकानंद और उनकी गुरु मां शारदा से जुड़ी घटना है। विदेश यात्रा पर जाने से पहले विवेकानंद मां शारदा से अनुमति और आशीर्वाद लेने पहुंचे। उन्होंने माता से कहा, 'मां, मैं संसार के दुःख को दूर करना चाहता हूं। मैं बड़ी यात्रा पर जा रहा हूं। आप मुझे आशीर्वाद में कोई ऐसी सीख दीजिए, जो विश्व कल्याण के उद्देश्य में मेरे काम आ सके।'

मां शारदा बहुत ही सहज और विद्वान थीं। वे उस समय रसोई का काम कर रही थीं। उन्होंने विवेकानंद की बातें सुनी और रसोई घर में रखे हुए एक चाकू की ओर इशारा करते हुए कहा, 'मुझे वह चाकू उठाकर दे दो।'

विवेकानंदजी ने जैसे ही चाकू उठाकर माता को दिया तो मां शारदा बोलीं, 'मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। मैं ये जान चुकी हूं कि तुम संसार की सेवा अवश्य करोगे।'

ये बात सुनकर विवेकानंद हैरान थे। उन्होंने कहा, 'मां, सिर्फ चाकू उठाकर देने से आपने ये कैसे जान लिया कि मैं संसार की सेवा कर पाऊंगा?'

मां शारदा बोलीं, 'तुमने जिस ढंग से चाकू उठाकर मुझे दिया, उससे ही मैं ये बात समझ गई हूं।'

विवेकानंदजी ने चाकू के धार वाले हिस्से को खुद की ओर करके पकड़ा और हत्थे की ओर से मां शारदा को चाकू दिया था।

मां शारदा ने कहा, 'तुम्हारी प्रवृत्ति दिखती है कि तकलीफ तुम खुद सहन करोगे और सुरक्षा दूसरों को दोगे।'

सीख- जो व्यक्ति खुद कष्ट उठाकर दूसरों को सुख देता है, वही व्यक्ति मानवता की सेवा कर सकता है।



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6 साल नौकरी की, फिर इसे छोड़ उत्तराखंड आकर मां के साथ फूड प्रोसेसिंग यूनिट शुरू की; आज टर्नओवर है 30 लाख रु.

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली दिव्या की शुरुआती पढ़ाई लिखाई देहरादून में हुई। इसके बाद वो दिल्ली चली गईं। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से बैचलर्स और मास्टर्स की पढ़ाई की। इसके बाद 2008 में एक मल्टीनेशनल पब्लिशिंग हाउस में उनकी जॉब लग गई।

6 साल तक उन्होंने नौकरी की। फिर 2014 में वो उत्तराखंड लौट आईं और अपनी मां के साथ मिलकर फार्मिंग करने लगीं। आज वो अपने खेतों में उगने वाले फल, सब्जी, हर्ब्स और ड्राई फ्रूट को प्रोसेस करके अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट्स बना रही हैं। उनका सालाना टर्नओवर 25 से 30 लाख रु. का है।

30 साल की दिव्या कहती हैं कि काम अच्छा था और सैलरी भी बढ़िया थी। मैं तो दिल्ली में सेटल भी हो गई थी। लेकिन, मां की चिंता सता रही थी। पापा की डेथ के बाद अकेली हो गई थी। मैंने कोशिश की कि वो भी यहीं आ जाए पर वो उत्तराखंड नहीं छोड़ना चाहती थीं।

दिव्या के पिता खेती करते थे। उन्होंने अच्छा खासा सेटअप भी तैयार किया था। 2014 में उनकी डेथ हो गई। जबकि दिव्या की मां इंदिरा सरकारी टीचर थीं, वो अब रिटायर्ड हो चुकी हैं।

दिव्या बताती हैं कि मां जेली, सॉस वगैरह तैयार करती थीं और मुझे भेजती थीं। जो लोग भी इसका टेस्ट करते वो हमसे इसकी डिमांड करते थे। फिर मैंने सोचा कि क्यों न इस काम को आगे बढ़ाया जाए ताकि मां को सपोर्ट भी मिले और मैं उनके साथ भी रह सकूं। इसके बाद मैं 2014 में उत्तराखंड लौट आई।

दिव्या ने सबसे पहले अपने साथ काम करने वाले लोगों को मां के बनाये प्रोडक्ट भेजे। उन्हें अच्छे लगे तो उन्होंने और डिमांड की। इसी तरह थोड़े ही दिनों में माउथ पब्लिसिटी के जरिए उनके प्रोडक्ट की अच्छी बिक्री होने लगी। फिर उन्होंने रिटेलर्स के पास संपर्क किया। वहां भी अच्छा रिस्पॉन्स मिला।

खुद्दार कहानी:नौकरी छोड़ शुरू किया बैंबू इंडिया स्टार्टअप ताकि प्लास्टिक का यूज कम हो, 3 साल में 3.8 करोड़ पहुंचा टर्नओवर

दिव्या ने हिमालयन हाट नाम से वेबसाइट लॉन्च की है। इस पर उनके सारे प्रोडक्ट मौजूद हैं। दिल्ली, महाराष्ट्र समेत पूरे देश से लोग ऑर्डर करते हैं। इससे हर महीने 2 से 3 लाख का ऑर्डर हो जाता है।

अभी दिव्या स्ट्रॉबेरी, माल्टा, संतरा, निंबू, आड़ू, प्लम, खुबानी, रोजमेरी, कैमोमाइल, लेमनग्रास, तेजपत्ता और सब्जियां उगाती हैं। इन खेतों में जो भी उपजता है, उसे प्रोसेस करके अलग-अलग प्रोडक्ट्स वो और उनकी मां तैयार करती हैं। जो प्रोडक्ट वो नहीं उगाते हैं, उसे लोकल फार्मर्स से खरीदकर प्रोसेसिंग के बाद मार्केट में सप्लाई करते हैं।

दिव्या अभी करीब 30 तरह के प्रोडक्ट तैयार करती हैं। इसमें किचन के सारे प्रोडक्ट शामिल हैं। अभी वो 20 एकड़ जमीन पर खेती कर रही हैं। उनके साथ दो दर्जन से ज्यादा महिलाएं काम करती हैं।

दिव्या कहती हैं कि उनके प्रोडक्ट्स नेचुरल हैं। इनमें किसी भी तरह के एडिटिव या फिर प्रिजर्वेटिव का इस्तेमाल नहीं वो नहीं करती हैं।



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कौन भारत बंद के साथ, कौन उसके खिलाफ? किसानों की मांग पर आगे क्या करेगी सरकार?

पंजाब और हरियाणा के हजारों किसान पिछले 13 दिन से दिल्ली की सीमा पर डटे हुए हैं। आंदोलनकारी किसानों ने आज भारत बंद बुलाया है। इस बंद को कई राजनीतिक पार्टियों और ट्रेड यूनियनों ने भी समर्थन दिया है।

किसान मोदी सरकार के तीन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। किसानों और केंद्र सरकार के बीच अब तक पांच दौर की बातचीत हो चुकी है। इसके बाद भी कोई सहमति नहीं बनी है। छठे दौर की बातचीत बुधवार को होनी है। इसके एक दिन पहले ये बंद बुलाया गया है।

आखिर ये बंद क्यों बुलाया गया है? बंद कब से कब तक के लिए बुलाया गया है? किसान किन मांगों पर अड़े हुए हैं? सरकार का नए कानूनों को लेकर क्या पक्ष है? किसानों के आंदोलन के बाद क्या सरकार इन्हें वापस ले सकती है? आइये जानते हैं...

आज का भारत बंद किसने बुलाया है?

बंद किसानों ने बुलाया है। ये किसान तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग के साथ पिछले 13 दिन से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं। किसानों के बंद को कई विपक्षी दलों और ट्रेड यूनियनों ने समर्थन किया है।

बंद का समय क्या रहेगा, क्या बंद के दौरान किसी को छूट रहेगी?

बंद पूरे दिन का होगा, लेकिन चक्काजाम सिर्फ सुबह 11 बजे से दोपहर 3 बजे तक रहेगा। भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा है कि हम आम आदमी को परेशान नहीं करना चाहते इसलिए

ऐसा टाइम रखा है, क्योंकि 11 बजे तक ज्यादातर लोग ऑफिस पहुंच जाते हैं और 3 बजे छुट्टी होनी शुरू हो जाती है। टिकैत ने कहा कि हम शांति से प्रदर्शन करते रहेंगे।

वहीं, किसान नेता बलदेव सिंह निहालगढ़ ने बताया कि मंगलवार को बंद के दौरान एम्बुलेंस और शादियों वाली गाड़ियां आ-जा सकेंगी।

कौन-सी पार्टियां किसानों के बंद के समर्थन में हैं और कौन विरोध में?

अब तक करीब 20 राजनीतिक पार्टियां किसानों के बंद को समर्थन दे चुकी हैं। इनमें भाजपा की सहयोगी असम गण परिषद और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी शामिल हैं। बंद का समर्थन करने वाली पार्टियों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बसपा, डीएमके, राजद, टीआरएस, आप, शिवसेना, अकाली दल और सभी लेफ्ट पार्टियां शामिल हैं।

देश की दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने भी इस बंद का समर्थन किया है। किसानों ने कहा है कि भारत बंद के दौरान वो दिल्ली को जाने वाली सभी सड़कें ब्लॉक करेंगे। सभी टोल प्लाजा रोके जाएंगे और वहां प्रदर्शन किया जाएगा।

वहीं, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी का दावा है कि गुजरात के किसानों और APMC(Agricultural produce market committee) का भारत बंद को सपोर्ट नहीं है। तमिलनाडु सरकार के मंत्री डी. जयकुमार ने भी इसी तरह की बातें कही हैं।

ये तीनों कानून क्या है, जिनका विरोध हो रहा है?

1. कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020: किसानों का कहना है कि इससे न्यूनतम मूल्य समर्थन (एमएसपी) प्रणाली समाप्त हो जाएगी। किसान यदि मंडियों के बाहर उपज बेचेंगे तो मंडियां खत्म हो जाएंगी।

हालांकि, सरकार दावा कर रही है कि एमएसपी पहले की तरह जारी रहेगी। मंडियां खत्म नहीं होंगी, बल्कि इस व्यवस्था में किसानों को मंडी के साथ ही अन्य स्थानों पर अपनी फसल बेचने का विकल्प मिलेगा।

2. कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020: किसानों का कहना है कि कॉन्ट्रेक्ट करने में किसानों का पक्ष कमजोर होगा, वे कीमत निर्धारित नहीं कर पाएंगे। छोटे किसान को इससे नुकसान होगा। विवाद की स्थिति में बड़ी कंपनियों को लाभ होगा।

सरकार का दावा है कि कॉन्ट्रेक्ट करना है या नहीं, इसमें किसान को पूरी आजादी रहेगी। वह अपनी इच्छानुसार दाम तय कर फसल बेचेगा। अधिक से अधिक 3 दिन में पेमेंट मिलेगा। देश में 10 हजार फार्मर्स प्रोड्यूसर ग्रुप्स (एफपीओ) बन रहे हैं। ये एफपीओ छोटे किसानों को जोड़कर फसल को बाजार में उचित लाभ दिलाने की दिशा में काम करेंगे। विवाद स्थानीय स्तर पर ही निपटाया जाएगा।

3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक -2020: किसान कह रहे है कि इससे बड़ी कंपनियां आवश्यक वस्तुओं का स्टोरेज करेंगी। उनका दखल बढ़ेगा। कालाबाजारी भी बढ़ सकती है।

सरकार का दावा है कि इससे कृषि क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ेगा। कोल्ड स्टोरेज एवं फूड प्रोसेसिंग के क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ने से किसानों को बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर मिलेगा। किसान की फसल खराब होने की आंशका दूर होगी। वह आलू-प्याज जैसी फसलें निश्चिंत होकर उगा सकेगा। इंस्पेक्टर राज खत्म होगा और भ्रष्टाचार भी।

किसानों की मांग क्या है?

किसान नेता हन्नान मोल्लाह का कहना है कि शुरुआत में ही हमने मांग की है कि कानून को वापस लिया जाए। संशोधन नहीं चाहते। ऐसा लगता है कि 9 दिसंबर को मीटिंग में सरकार कानून वापस लेगी। किसान नेता राजेंद्र आर्य भी कहते हैं कि तीनों कानून रद्द करने के अतिरिक्त किसान किसी बात पर नहीं मानेंगे। जरूरत हुई तो एक साल तक सड़क पर बैठेंगे।

शनिवार को पांचवें दौर की मीटिंग के दौरान किसान नेता नरेश टिकैत ने कहा कि सरकार कृषि कानूनों की वापसी पर हां या ना में जवाब दे। तीन घंटे की बातचीत के बाद हल न निकलता देख किसान नेताओं ने सामने रखे कागज पर यस ऑर नो लिखकर मंत्रियों को दिखाया। कुर्सी पीछे कर मुंह पर उंगली रखकर बैठ गए थे। इसके बाद कृषि मंत्री ने किसानों से समय मांगा था। किसानों ने कहा कि हम आपको आखिरी बार समय दे रहे हैं।

किसानों की मांग पर सरकार क्या कह रही है?

किसानों ने चार दौर की बातचीत के बाद वार्ता में उन बिंदुओं पर लिखित जवाब मांगा जिन पर चौथे दौर की मीटिंग में सहमति बनी थी। सरकार ने किसानों को लिखकर दे भी दिया है। वहीं, मीटिंग में सरकार जब संशोधन की बात पर अड़ी हुई थी तो किसानों ने कहा कि जीएसटी में भी आप काफी संशोधन कर चुके हैं लेकिन फायदा कुछ नहीं हुआ।

किसानों का कहना है कि इन बिलों में हमने इतनी आपत्तियां दी हैं कि उनका संशोधन करने के बाद कानूनों का कोई मतलब ही नहीं रहेगा, इसलिए इन्हें पूरी तरह रद्द किया जाए।

...तो क्या कानून वापस ले सकती है सरकार?

5 दिसंबर को किसानों के साथ पांचवें दौर की बातचीत से पहले पीएम मोदी ने गृह मंत्री अमित शाह और तीन अन्य मंत्रियों के साथ मीटिंग की थी। सूत्रों के अनुसार, इस मीटिंग में कानून वापस लेने पर भी चर्चा हुई।

पांचवें दौर की बातचीत में जब गतिरोध खत्म नहीं हुआ तो सरकार ने एक बार फिर समय मांगा। अब नौ दिसंबर की बैठक में कुछ ठोस फैसला हो सकता है।



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Bharat Bandh Latest Updates | Farmers Protest: Who Called Nationwide Shutdown On 8 December 2020? Everything You Need To Know


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125 करोड़ में बिकी 'लक्ष्मी' से मेकर्स सिर्फ लागत निकाल पाए, लेकिन कम बजट वाली फिल्मों के लिए फायदे का सौदा OTT

ओवर दि टॉप यानी OTT प्लेटफॉर्म्स पर इस साल अब तक 45 से ज्यादा फिल्में रिलीज हो चुकी हैं। इनमें कुछ फिल्में सीधे इन्हीं प्लेटफॉर्म्स के लिए बनाई गई थीं तो कुछ ऐसी भी हैं, जिन्हें लॉकडाउन में जब सिनेमाघर बंद हुए तो मजबूरी में यहां ले जाना पड़ा। इस प्रोसेस में उन फिल्ममेकर्स ने तो फायदा उठा लिया, जिनकी फिल्मों का बजट 10 से 50 करोड़ रुपए के अंदर रहा। लेकिन 'लक्ष्मी' जैसी बड़े बजट की फिल्म के निर्माताओं को अपनी लागत निकालकर ही संतुष्ट होना पड़ा।

125 करोड़ रुपए में बिके 'लक्ष्मी' के डिजिटल राइट्स

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो लक्ष्मी को OTT प्लेटफॉर्म के लिए करीब 125 करोड़ रुपए में बेचा गया था। इसके बावजूद फिल्म का सिर्फ लागत निकाल पाना हैरान करता है। फिल्म के बजट का खुलासा तो कहीं स्पष्ट रूप से नहीं हुआ। लेकिन, ट्रेड के गलियारों में यह चर्चा है कि इसके लिए अक्षय की फीस ही करीब 100 करोड़ रुपए (साइनिंग अमाउंट+प्रॉफिट शेयरिंग) थी। फिर दूसरे आर्टिस्ट्स और फिल्म की टीम की फीस। साथ ही मेकिंग में हुआ अन्य खर्च इसे और महंगा बना देता है।

ट्रेड एक्सपर्ट्स की मानें तो मेकर्स ने इस फिल्म से कोई मुनाफा नहीं उठाया है। अगर उन्हें प्रॉफिट हुआ भी होगा तो बेहद कम हुआ होगा। बॉक्स ऑफिस इंडिया की रिपोर्ट की मानें तो अगर यह फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज होती तो घरेलू बॉक्स ऑफिस पर करीब 141 करोड़ का कलेक्शन आसानी से कर ले जाती।

कुछ प्रोड्यूसर्स के लिए ऐसे फायदे का सौदा

एवरेज, मीडियम और बड़े बजट के कुछ प्रोड्यूसर्स को अपनी फिल्म OTT पर रिलीज करने का एक फायदा यह भी है कि वे इसकी डील सीधे करते हैं। इसके लिए उन्हें किसी ट्रेडर या डिस्ट्रीब्यूटर के साथ कलेक्शन साझा नहीं करना पड़ा। साथ पब्लिसिटी पर होने वाला एक्स्ट्रा खर्चा बच जाता है।

जैसे अगर 'गुलाबो सिताबो' बॉक्स ऑफिस पर आती तो बॉक्स ऑफिस इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, यह डोमेस्टिक बॉक्स ऑफिस पर 60 करोड़ रुपए भी नहीं कमा पाती। इसके अलावा, फिल्म के कलेक्शन में एग्जीबिटर्स का हिस्सा भी होता। साथ ही प्रमोशन पर करीब 10 करोड़ रुपए खर्च होने से इसका बजट बढ़कर करीब 55 करोड़ रुपए पहुंच जाता। इस हिसाब से रिलीज के बाद प्रोड्यूसर्स को बमुश्किल 30 करोड़ रुपए ही मिल पाते, जो फिल्म के बजट से भी कम है। हालांकि, यह फॉर्मूला सभी फिल्मों के लिए फिट नहीं बैठता।

अभी OTT पर महंगी बिक रहीं फिल्में

सिनेमा बंद होने की वजह से फिल्ममेकर्स को उनकी फिल्म सीधे OTT प्लेटफॉर्म्स पर दिखाने के लिए 30-40 फीसदी का प्रीमियम मिला है। जैसे, अगर किसी फिल्म के थिएटर में रिलीज होने के बाद उसके OTT राइट्स 20-25 करोड़ रुपए में बिकते तो वहीं, इसे सीधे OTT पर ले जाने पर राइट्स 30 से 35 करोड़ रुपए में बिके।

छोटे मेकर्स के लिए OTT वरदान सिर्फ इसलिए

ट्रेड एनालिस्ट और कम्पलीट सिनेमा मैगजीन के एडिटर अतुल मोहन के मुताबिक, OTT छोटी फिल्मों के लिए वरदान इसलिए है, क्योंकि उन्हें कम से कम अपना कंटेंट दिखाने का मौका मिल रहा है। उनकी कमाई बहुत ज्यादा नहीं होती है। इन फिल्मों के मेकर्स अपना कंटेंट बेचने के लिए धक्के खाते हैं और जब कोई राह नजर नहीं आती तो ट्रेडर्स को बेच देते हैं। ट्रेडर्स 2.50-3 करोड़ की फिल्म 25-30 लाख रुपए खरीदते हैं।

ऐसी 8-10 फिल्में 2.50-3 करोड़ में खरीदकर एक साथ अपने कनेक्शंस (OTT और सैटेलाइट चैनल्स) को 3- 3.50 करोड़ में बेच देते हैं। चूंकि, ये ट्रेडर्स रेगुलर सप्लायर होते हैं इसलिए इनसे किसी तरह की बारगेनिंग नहीं होती। दूसरी ओर बड़े मेकर्स डायरेक्ट डील करते हैं। इसलिए इनसे बजट के ऊपर जो भी मिलता है, वह उनका ही प्रॉफिट होता है।

बॉक्स ऑफिस से नहीं की जा सकती OTT की तुलना

अतुल मोहन कहते हैं, "OTT अलग दुनिया है। इसकी तुलना बॉक्स ऑफिस से नहीं की जा सकती। इससे टीवी चैनल्स को खतरा हो सकता है। मुझे लगता है कि हर कोई साल के 1000-2000 रुपए या महीने का 500-600 रुपए देकर इसका सब्सक्रिप्शन नहीं ले सकता है। लॉकडाउन में दुर्भाग्यवश सिनेमा हॉल्स बंद करने पड़े इसलिए ऑडियंस को मनोरंजन के लिए घर बैठे अपने लायक जो मिला, वह उन्होंने कंज्यूम कर लिया। एक बार जब सिनेमाघर और लाइफ रुटीन में आ जाएंगे, तब लोग इतने डेडिकेट होकर शायद OTT पर नहीं जाएंगे।"

बहुत छोटे फिल्ममेकर्स को OTT पर भी घाटा

अतुल मोहन बताते हैं कि कोई भी प्रोड्यूसर अपनी फिल्म नुकसान पर नहीं बेचना चाहता। जब तक कि उसकी कोई मजबूरी न हो। यहां मजबूरी का जिक्र उन छोटे फिल्ममेकर्स के लिए है, जिन्हें इंडस्ट्री के बारे में पता नहीं होता कि रिकवरी क्या और कैसे होती है? जिन्हें कुछ लोग उपेक्षित कर देते हैं।

बकौल अतुल मोहन, "ये ऐसे प्रोड्यूसर होते हैं, जिन्हें अपनी 3 करोड़ की फिल्म मजबूरी में 20-25 या 30 लाख में बेचनी पड़ती है। वहीं, बड़े प्रोड्यूसर्स स्मार्ट होते हैं क्योंकि उन्हें सब पता होता है। किसी भी बिजनेस में आप तब ही प्रॉफिट कमा सकते हो, जब आपको उस बिजनेस की समझ हो। नए-नए लोग हर फील्ड में आते हैं, लेकिन जिन्हें समझ नहीं होती उन्हें अपना बिजनेस बंद कर निकल जाना पड़ता है।"

'बमफाड़' इस साल की पहली OTT रिलीज

इस साल रंजन चंदेल के निर्देशन में बनी 'बमफाड़' OTT प्लेटफॉर्म पर आई पहली फिल्म थी, जिससे परेश रावल के बेटे आदित्य रावल ने डेब्यू किया। 10 अप्रैल को इस फिल्म का प्रीमियर जी-5 पर हुआ था। लेकिन OTT पर फिल्मों की रिलीज की चर्चा अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना स्टारर 'गुलाबो सिताबो' के प्रीमियर के साथ हुई, जो 12 जून को अमेजन प्राइम वीडियो पर आई।



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Box Office Vs OTT:Akshay Kumar's 'Lakshmi' only managed to extract cost from OTT, Low Budget Movies Are Gaining Profit


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कोरोना से ठीक हुए मरीजों में लंग्स डैमेज होने का खतरा, ब्लड गैस टेस्ट से मिलेगी सटीक जानकारी

कोरोना महामारी को देश और दुनिया में दस्तक दिए 11 महीने हो चुके हैं। इसके चलते दुनियाभर में अब तक करीब साढ़े 15 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। लोगों ने इससे बचने के लिए तमाम तरह के तरीके अपना लिए हैं। इम्यून को बेहतर बनाने के लिए खान-पान और एक्सरसाइज पर भी लोग खूब ध्यान दे रहे हैं।

भोपाल में डॉक्टर तेजप्रताप तोमर कहते हैं कि कोरोना न केवल हमारी इम्यून सिस्टम को बल्कि हमारे शरीर के ऑर्गन्स को भी डैमेज कर देता है। इससे बचने के लिए योग करने की सलाह दी जा रही है। कोरोना पीड़ितों को अपने साथ ऑक्सीमीटर रखने की सलाह भी दी जा रही है। जिससे समय-समय पर शरीर में ऑक्सीजन लेवल का स्तर जाना जा सके।

डॉ. तोमर के मुताबिक, अगर वायरस का लोड ज्यादा बढ़ जाता है तो इससे लंग्स डैमेज होने का खतरा भी बढ़ जाता है, जिसके चलते ब्लड में ऑक्सीजन लेवल घट जाता है। जो पोस्ट कोविड जैसी तमाम समस्याओं की वजह बन रहा है। इसलिए कोरोना से ठीक हुए मरीजों को ब्लड गैस टेस्ट करा लेना चाहिए। खासकर ऐसे मरीज जिनमें वायरस लोड ज्यादा था, उन्हें तो जरूर इस प्रक्रिया से गुजरना चाहिए।

क्या होता है ब्लड गैस टेस्ट

  • इस टेस्ट के जरिए शरीर में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर का पता चलता है। जिससे डॉक्टर यह पता कर पाते हैं कि फेफड़े और लीवर ठीक तरह से काम कर रहे हैं या नहीं।
  • ब्लड सेल्स शरीर में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड ट्रांसपोर्ट करते हैं। यह लंग्स के जरिए ही हो पाता है। ब्लड गैस टेस्ट में पता चलता है कि लंग्स ब्लड में ऑक्सीजन की कितनी सप्लाई कर रहे हैं। साथ ही यह भी पता चलता है कि हमारे लंग्स कितनी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को रिमूव कर रहे हैं।
  • टेस्ट के बाद अगर ब्लड में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का PH लेवल कम पाया जाता है तो इसका मतलब लंग्स सही ढंग से काम नहीं कर रहे हैं। इसका मतलब यह भी है कि पीड़ित की किडनी खराब है, हार्ट की समस्या है या शुगर लेवल बढ़ा हुआ है।

ब्लड गैस टेस्ट क्यों जरूरी

  • अगर किसी में सांस लेने में दिक्‍कत, जी मचलना या बेचैनी जैसे लक्षण हैं, तो उसे ब्लड गैस टेस्ट कराना चाहिए। ऐसे होने की कई वजहें हो सकती हैं। लेकिन अगर कोरोना से ठीक हुए मरीजों में यह लक्षण दिख रहा है तो इसकी वजह लंग्स डैमेज भी हो सकता है। ऐसे केस में लापरवाही को अफोर्ड नहीं किया जा सकता।
  • डॉ तोमर कहते हैं कि ब्लड टेस्ट के जरिए शरीर में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर का सटीक पता लगाया जा सकता है।

कब बिगड़ता है ब्लड का PH स्तर

हमारे ब्लड में कई तरह के गैस पाए जाते हैं। जब इनका स्तर सामान्य से ज्यादा या कम हो जाता है तो ब्लड का PH स्तर बिगड़ जाता है। इसके चलते हमारा इम्यून सिस्टम काफी कमजोर हो जाता है। कोरोना से ठीक हुए मरीजों में इस तरह के लक्षण देखे जा रहे हैं। इसलिए डॉक्टर्स और एक्सपर्ट्स कोरोना के बाद ब्लड गैस टेस्ट को जरूरी बता रहे हैं।

लंग्स पर सबसे ज्यादा चोट कर रहा कोरोना

डॉ तोमर कहते हैं कि कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्तियों में अगर वायरस लोड ज्यादा है तो उन पर लंग्स डैमेज का खतरा बना रहता है। जिसके चलते इम्यून सिस्टम कोलैप्स कर जाता है। इम्यून सिस्टम कमजोर होने से शरीर कोरोना समेत तमाम दूसरे वायरस से लड़ पाने में सक्षम नहीं रह जाता। इसके चलते फेफड़े भी कमजोर पड़ जाते हैं, जिससे सांस लेने में दिक्‍कत होने लगती है।



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Patients recovering from corona are prone to lung damage, blood gas test will provide accurate information


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केरल सरकार सांप पकड़ने की ट्रेनिंग दे रही, बिना लाइसेंस सांप पकड़ने वालों को 7 साल तक जेल और जुर्माना

केरल में अब सांप पकड़ने के लिए लाइसेंस लेना कंपल्सरी कर दिया गया है। केरल के वन और वन्यजीव विभाग की ओर से ट्रेनिंग और लाइसेंस प्राप्त किए बिना सांपों को पकड़ने पर सात साल तक जेल और जुर्माना हो सकता है। ये देश में अपनी तरह का पहला प्रयास है।

वन विभाग ने एक सांप पकड़ने वाले की मौत, कोबरा का इस्तेमाल करके एक महिला की हत्या और एक स्कूल में सांप के डसने से एक बच्चे की मौत की घटनाओं के बाद ये कदम उठाया है। ट्रेनिंग दो चरणों में पूरी की गई है। पहले चरण में वन विभाग के कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया गया, जिनमें वॉचर से लेकर एसीएफ रैंक तक के कर्मचारी शामिल थे।

दूसरे चरण में उन लोगों को प्रशिक्षित किया गया है, जिनकी सांप पकड़ने में रूचि थी। पहले चरण में 538 लोग इस ट्रेनिंग में शामिल हुए, जिनमें से 318 को लाइसेंस दिया गया। दूसरे चरण में 620 लोग ट्रेनिंग में शामिल हुए और 502 को लाइसेंस दिया गया।

ट्रेनिंग को दो चरणों में पूरा किया गया है। पहले चरण में वन विभाग के कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया गया, जिनमें वॉचर से लेकर एसीएफ रैंक तक के कर्मचारी शामिल थे।

जिन लोगों को लाइसेंस दिया गया है, उनमें से 35 महिलाएं भी हैं। इनमें 23 वन विभाग के कर्मचारी हैं जबकि 12 आमजन हैं। पूरे राज्य में 23 जगहों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

इस ट्रेनिंग प्रोग्राम के नोडल अधिकारी और असिस्टेंट कंजरवेटर फॉरेस्ट (एसीएफ) मोहम्मद अनवर ने बताया, 'ये सिर्फ ट्रेनिंग कार्यक्रम नहीं है बल्कि ये सर्पदंश को रोकने का प्रोजेक्ट है, जिसे हमारे विभाग ने शुरू किया है। हम उन लोगों की लिस्ट बनाएंगे जिन्हें लाइसेंस दिया जा रहा है और हमारी मोबाइल एप सर्प के जरिए लोग सांप पकड़ने के लिए इनकी सेवाएं ले सकेंगे। इमरजेंसी में एप सबसे नजदीकी अस्पताल और सांप पकड़ने वाले के बारे में जानकारी देगी। इस एप में उन अस्पतालों की सूची भी होगी, जहां सांप काटने पर दी जाने वाली दवाएं उपलब्ध होंगी।'

सांप के डसने के रोकने वाले कार्यक्रम इसलिए भी अहम है क्योंकि भारत में बारह लाख लोगों की मौत सांप के काटने से हुई है। भारत में सर्पदंश का शिकार चार में से दो लोगों की मौत हो जाती है जबकि एक पूरी तरह अपंग हो जाता है। भारत के औसत के मुकाबले केरल में सर्पदंश से मौतों की संख्या की काफी कम है।

बीते तीन सालों में केरल में 334 लोगों की मौत सांप काटने की वजह से हुई है जबकि इलाज देकर 1860 लोगों की जान बचाई गई है। इस प्रोजेक्ट का मकसद इस संख्या को और कम करना है। मोहम्मद अनवर कहते हैं कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का मकसद सांप पकड़ने वालों और सांपों दोनों की सुरक्षा करना है।

पहले चरण में 538 लोग इस ट्रेनिंग में शामिल हुए जिनमें से 318 को लाइसेंस दिया गया है।

ये पता चला है कि सांपों को गलत तरीके से पकड़ने की वजह से उन्हें भी नुकसान हो रहा है। जिन सांपों को सिर से पकड़ा जाता है या मुंह दबाया जाता है, वो घायल हो जाते हैं। बचाकर जंगलों में छोड़े जाने वाले ये घायल सांप बहुत ज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं रह पाते हैं।

इसी तरह असुरक्षित तरीके से सांप को पकड़ना, पकड़ने वालों के लिए भी खतरनाक होता है। मोहम्मद अनवर बताते हैं कि इन्हीं कारणों की वजह से विभाग नियम बनाने पर विचार कर रहा था। वो बताते हैं कि एक कत्ल के मामले में सांप के इस्तेमाल ने भी विभाग के इस फैसले को प्रभावित किया है।

अब केंद्र सराकर का पर्यावरण विभाग इस कदम को बाकी राज्यों में भी लागू करने पर विचार कर रहा है। इसी बीच केरल के चर्चित स्नेक हैंडलर बाबा सुरेश ने सांप पकड़ने के लिए लाइसेंस जरूरी करने का विरोध किया है। वो कहते हैं कि वन विभाग का ये कदम उन्हें निशाना बनाने के लिए उठाया गया है।

दूसरे चरण में 620 लोग ट्रेनिंग में शामिल हुए और 502 को लाइसेंस दिया गया।

वो कहते हैं, 'ना ही मैं सांप पकड़ने की ट्रेनिंग लूंगा और ना ही लाइसेंस के लिए आवेदन करूंगा। अगर कोई मुझे सांप पकड़ने के लिए बुलाएगा तो मैं निश्चित तौर पर जाउंगा।' सुरेश ने स्वयं ही सांप पकड़ने में महारथ हासिल की है और वो अब तक साठ हज़ार से अधिक सांपों की जान बचा चुके हैं। इनमें 201 किंग कोबरा हैं। उन्होंने अब तक दस हजार से अधिक लोगों को सांप पकड़ने के बारे में जागरूक किया है।

वो कहते हैं, 'मैंने कई बार वन विभाग के कर्मचारियों को भी प्रशिक्षित किया है। मैं वन विभाग से समन्वय बनाकर ही अपनी फ्री सेवा लोगों को देता हूं। लेकिन अब विभाग के भीतर और बाहर एक समूह है जो मेरे खिलाफ हो गया है।'



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Kerala government imparts snake catcher training, jails and fine for 7 years for unlicensed snake catchers


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स्वाद और सेहत से भरपूर तीखी आंवला पीनट चटनी, सिर्फ 15 मिनट में हो जाएगी तैयार



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Spicy Amla Peanut Chutney, full of taste and health, will be ready in just 15 minutes


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जब भारतीय नौसेना को मिली थी पहली सबमरीन कलवरी, 1971 की जंग में पाक को दिखाई थी ताकत

8 दिसंबर 1967 को सोवियत संघ के रीगा बंदरगाह पर पहली सबमरीन ‘कलवरी’ को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था। कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहा रीगा अब लात्विया की राजधानी है। जुलाई 1968 में "कलवरी" भारत के विशाखापत्तनम पहुंची। रीगा से विशाखापत्तनम पहुंचने में इस सबमरीन को तीन महीने लगे थे। इस दौरान इसने 30 हजार 500 किलोमीटर से ज्यादा का सफर किया।

जिस दौरान भारत की "कलवरी" रीगा से विशाखापत्तनम की यात्रा कर रही थी। उसी दौरान तीन ताकतवर देशों अमेरिका, ब्रिटेन और सोवियत संघ की तीन सबमरीन समुद्र में डूब गई थीं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस दौर में सबमरीन का संचालन कितना कठिन था।

भारतीय नौसेना में शामिल होने के चार साल बाद ही इस सबमरीन ने 1971 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध में अपने जौहर दिखाए। इस जंग में 8-9 दिसंबर की रात भारतीय नौसेना ने कराची बंदरगाह तबाह कर दिया था। इसे ऑपरेशन ट्राइडेंट नाम दिया गया था। इस ऑपरेशन में इस सबमरीन की अहम भूमिका थी।

करीब 30 साल देश की सेवा करने के बाद 31 मार्च 1996 को इसे नौसेना से रिटायर कर दिया गया। फ्रांस की मदद से देश में ही बनी स्कार्पिन श्रेणी की आधुनिकतम सबमरीन को 2018 में नौसेना में शामिल किया गया। इसका नाम भी ‘कलवरी’ ही रखा गया है।

तस्वीर जॉन लेनन की है। 1960 में जॉन लेनन, पॉल मैककार्टनी, रिंगो स्टार और जॉर्ज हैरिसन ने बीटल ग्रुप शुरू किया था।

बीटल के लेनन की हत्या
1980 में आज ही के दिन म्यूजिक बैंड बीटल के सदस्य जॉन लेनन की न्यूयॉर्क में हत्या कर दी गई थी। लेनन न सिर्फ बीटल के संस्थापकों में शामिल थे। 1960 के दशक में उनका बैंड हिट रहा तो 1970 के दशक में उन्होंने बैंड से अलग भी अपनी पहचान बनाई। लेनन का हत्यारा फेमस होना चाहता था। इसलिए उसने एक लिस्ट बनाई। इस लिस्ट में एलिजाबेथ टेलर, रोनाल्ड रीगन जैसे दिग्गजों के नाम शामिल थे। 2000 में रिहा होने के बाद लेनन के हत्यारे चैपमेन ने कहा कि मैं मशहूर होना चाहता था। मुझे लगा कि लेनन को मारकर मैं फेमस हो जाऊंगा, मैं कुछ बनना चाहता था, लेकिन मैं हत्यारा बन गया और हत्यारे कुछ नहीं होते हैं।

पहली निजी कंपनी ने अंतरिक्ष में अपना यान भेजा
2010 में आज ही के दिन अमेरिका की एयरोस्पेस कंपनी स्पेस-एक्स ने अपना यान अंतरिक्ष में भेजा। ऐसा करने वाली वह दुनिया की पहली निजी कंपनी बनी। यह यान कक्षा में सफलतापूर्वक छोड़ा गया और अपनी कार्य अवधि पूरी करने के बाद यह वापस लौट आया।

भारत और दुनिया में 8 दिसंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैं:

  • 1927: पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का जन्म हुआ।
  • 1935: एक्टर और पूर्व सांसद धर्मेन्द्र का जन्म।
  • 1946: एक्ट्रेस शर्मिला टैगोर का जन्म।
  • 1987 : अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाच्योफ ने परमाणु हथियारों में कटौती की संधि पर साइन किया।
  • 2002 : अमेरिका ने गौमूत्र का पेटेंट कराया।
  • 2004 : पाकिस्तान ने 700 किमी मारक क्षमता से लैस शाहीन-1 मिसाइल का सफल परीक्षण किया।
  • 2019: फिनलैंड की सना मारिन 34 साल की उम्र में दुनिया की सबसे युवा प्रधानमंत्री चुनी गईं। इससे पहले यूक्रेन के 35 साल के ओलेक्सी होन्चेरुक (Oleksiy HOncharuk) सबसे युवा प्रधानमंत्री थे।
  • 2019: दिल्ली में अनाज मंडी के रिहायशी इलाके में चल रही स्कूल बैग बनाने वाले फैक्ट्री में भीषण आग लगने से 43 लोगों की मौत हो गई।


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Today History: Aaj Ka Itihas India World December 8 Update | INS Kalvari Submarine Induction Date, Parkash Singh Badal Birthday


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टाटा vs मिस्त्री पर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई; जानें क्या है पूरा विवाद और कितना बड़ा है टाटा ग्रुप?

सुप्रीम कोर्ट में आज टाटा बनाम सायरस मिस्त्री विवाद की आखिरी सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस एसए बोबड़े ने 8 दिसंबर का दिन सिर्फ इसी मामले की सुनवाई के लिए तय किया है। ये मामला पिछले साल 2 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने सायरस मिस्त्री को टाटा सन्स के चेयरमैन पद से हटाने को गलत बताया था।

NCLAT ने मिस्त्री को दोबारा चेयरमैन बनाने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ टाटा सन्स सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। अब क्या है ये पूरा विवाद? 4 साल में इस विवाद को लेकर क्या-क्या हुआ? कितना बड़ा है टाटा ग्रुप? आइए जानते हैं...

पहले बात सायरस मिस्त्री को टाटा सन्स से क्यों हटाया?
24 अक्टूबर 2016 को टाटा ग्रुप ने सायरस मिस्त्री को टाटा सन्स के चेयरमैन पद से हटा दिया था। उनकी जगह रतन टाटा को अंतरिम चेयरमैन बनाया गया था। टाटा सन्स का कहना था, मिस्त्री के कामकाज का तरीका टाटा ग्रुप के काम करने के तरीके से मेल नहीं खा रहा था।

इसी वजह से बोर्ड के सदस्यों का मिस्त्री पर से भरोसा उठ गया था। मिस्त्री को हटाने के बाद 12 जनवरी 2017 को एन चंद्रशेखरन टाटा सन्स के चेयरमैन बनाए गए। टाटा के 150 साल से भी ज्यादा के इतिहास में सायरस मिस्त्री छठे ग्रुप चेयरमैन थे।

सायरस मिस्त्री कब से टाटा सन्स के चेयरमैन थे?

  • दिसंबर 2012 को रतन टाटा ने टाटा सन्स के चेयरमैन पद से रिटायरमेंट ले लिया। उसके बाद सायरस मिस्त्री को टाटा सन्स का चेयरमैन बनाया गया। मिस्त्री टाटा सन्स के सबसे युवा चेयरमैन थे। मिस्त्री परिवार की टाटा सन्स में 18.4% की हिस्सेदारी है। वो टाटा ट्रस्ट के बाद टाटा सन्स में दूसरे बड़े शेयर होल्डर्स हैं।
  • टाटा सन्स में मिस्त्री परिवार की एंट्री 1936 में हुई। टाटा सन्स में टाटा परिवार के कारोबारी मित्र सेठ इदुलजी दिनशॉ के पास 12.5% हिस्सेदारी थी। 1936 में दिनशॉ के निधन के बाद सायरस मिस्त्री के दादा शापूरजी पलोंजी मिस्त्री ने उनके 12.5% शेयर खरीद लिए। इसी साल जेआरडी टाटा की बहन सायला और भाई दोराब ने भी अपने कुछ शेयर शापुरजी को बेच दिए। इससे टाटा सन्स में उनकी हिस्सेदारी 17.5% हो गई।
  • शापुरजी के बाद 1975 में उनके बेटे पलोंजी शापूरजी टाटा सन्स में शामिल हुए। 2005 में सायरस मिस्त्री डायरेक्टर बनकर टाटा सन्स में आए। अभी टाटा सन्स में मिस्त्री परिवार और उनकी कंपनियों की कुल हिस्सेदारी 18.4% है। वो टाटा ट्रस्ट के बाद टाटा सन्स में दूसरे बड़े शेयर होल्डर्स हैं। टाटा सन्स में टाटा ट्रस्ट की हिस्सेदारी 66% है।

अब समझते हैं टाटा सन्स क्या है? और ये टाटा ग्रुप से कितना अलग है?

  • अक्सर लोग टाटा सन्स और टाटा ग्रुप को एक ही समझ लेते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। दोनों अलग-अलग है। टाटा सन्स, टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी है। टाटा ग्रुप के बारे में कहा जाता है कि वो सुई से लेकर हवाई जहाज तक बनाता है। टाटा ग्रुप में 100 से ज्यादा कंपनियां हैं। इन सभी का कंट्रोल टाटा सन्स के पास ही है। ग्रुप की सभी प्रमुख कंपनियों में टाटा सन्स की हिस्सेदारी 25 से लेकर 73% तक है। सबसे ज्यादा 73% हिस्सेदारी टाटा इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन में है।
  • 1887 में जमशेदजी टाटा ने टाटा एंड सन्स की स्थापना की। 1904 में उनके निधन के बाद उनके बेटे सर दोराब, सर रतन और चचेरे भाई आरडी टाटा ने टाटा कंपनी को मर्ज कर टाटा सन्स बनाई। 1919 में सर रतन टाटा का निधन हो गया। टाटा सन्स में उनकी 40% हिस्सेदारी सर रतन टाटा ट्रस्ट (SRTT) के पास चली गई।
  • 1932 में सर दोराब टाटा का निधन हो गया और उनकी भी 40% हिस्सेदारी सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट (SDTT) के पास आ गई। इस तरह टाटा सन्स में टाटा ट्रस्ट की हिस्सेदारी 80% हो गई।
  • 1991 में रतन टाटा को टाटा सन्स का चेयरमैन अपॉइंट किया गया। 1996 में टाटा सन्स में ट्रस्ट की हिस्सेदारी घटकर 66% हो गई। टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन रतन टाटा हैं।

4 साल से ट्रिब्यूनल और कोर्ट में चल रहा है मामला
24 अक्टूबर 2016 को टाटा सन्स के चेयरमैन पद से सायरस मिस्त्री को हटा दिया गया। उन्होंने दिसंबर 2016 में कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में इसके खिलाफ याचिका दायर की। जुलाई 2018 में NCLT ने मिस्त्री की याचिका खारिज कर दी और टाटा सन्स के फैसले को सही बताया। इसके खिलाफ मिस्त्री कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) गए। दिसंबर 2019 में NCLAT ने मिस्त्री को दोबारा टाटा सन्स का चेयरमैन बनाने का आदेश दिया। इसके खिलाफ टाटा सन्स ने जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

जमशेदजी ने 21 हजार रुपए से कारोबार शुरू किया
1868 में जमशेदजी टाटा ने 21 हजार रुपए में एक दिवालिया तेल मिल खरीदी और वहां रूई का कारखाना शुरू किया। जमशेदजी ने चार लक्ष्य तय किए। पहला- एक आयरन और स्टील कंपनी खोलना। दूसरा- एक वर्ल्ड क्लास इंस्टीट्यूट शुरू करना। तीसरा- एक होटल खोलना और चौथा- एक हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्लांट स्थापित करना।

हालांकि, जमशेदजी अपने जीवन में सिर्फ ताजमहल होटल (मुंबई) ही शुरू कर पाए। बाद में उनकी पीढ़ियों ने उनके सभी लक्ष्य पूरे किए। मार्च 2020 तक टाटा ग्रुप की सभी कंपनियों का रेवेन्यू 7.92 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा था। जबकि, इनकी मार्केट कैप मार्च 2019 तक 11.09 लाख करोड़ रुपए थी।



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