सोमवार, 25 मई 2020

1999 के तूफान में 10 हजार जिंदगियां खोने वाले ओडिशा ने 20 साल में कैसे बदल दी पूरी तस्वीर?

करीब दो दशक पहले 1999 का सुपर सॉयक्लोनिक तूफान ओडिशा के तटीय किनारों से 260 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से टकराया था। इस तूफान ने राज्य में भारी तबाही मचाई थी। 10 हजार से ज्यादा लोग और 4.5 लाख से ज्यादा जीव-जंतू मारे गए थे।

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इन दो दशकों में ओडिशा ने 7 बड़े चक्रवाती तूफान झेले। पिछले डेढ़ साल में ही यहां छोटे-बड़े मिलाकर कुल चार तूफान आ चुके हैं। इसमें पिछले साल आया भयंकर तूफान फानी भी शामिल है। हालांकि जितनी तबाही 1999 में हुई थी, उतनी तबाही बाद के तूफानों में नहीं देखी गई। पिछले कुछ सालों से यहां बहुत ज्यादा तीव्रता वाले तूफानों के बावजूद यहां जनहानि बहुत ही कम हुई है। हाल ही में आया च्रकावाती तूफान अम्फान और उससे पहले आए 'बुलबुल' तूफान से राज्य में किसी व्यक्ति की मौत नहीं हुई।

ओडिशा में 3 मई 2019 को फानी तूफान 175 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से ओडिशा से टकराया था, उसमें महज 64 लोगों की मौत हुई थी। यह तूफान 1999 में आए सुपर सायक्लोनिक तूफान के बाद 20 सालों का सबसे भयंकर तूफान था

राज्य सरकार के मुताबिक, हाल ही में अम्फान तूफान के ओडिशा में प्रवेश से पहले ही प्रभावित होने वाले क्षेत्रों से 2 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया था। वहीं फानी के दौरान भी सरकार ने 10 लाख लोगों का रेस्क्यू किया था।

फानी के दौरान इतनी बड़ी मात्रा में लोगों को निकालने के लिए और इतनी ज्यादा तीव्रता वाले तूफान में भी बहुत कम जनहानि होने देने के लिए यूएन से ओडिशा को प्रशंसा भी मिल चुकी है। तूफान के लिए बेहतर तैयारियों के चलते ओडिशा ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया का भी ध्यान खींचा था।

तो आखिर ओडिशा ने ऐसा क्या किया जिसके चलते पिछले कुछ सालों में आए इतने बड़े तूफानों में भी वह लोगों को सुरक्षित रख पाने में कामयाब रहा? तो इसका जवाब कुछ ऐसा है....

ओडिशा में हमेशा से ही नियमित तौर पर प्राकृतिक आपदाएं जैसे- तूफान, बाढ़ आते रहते हैं। राज्य ने दशकों के अपने अनुभव से इनके लिए बेहतर तरीके से तैयारी करने और इनका सामना करने की क्षमता में लगातार सुधार किया है। मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार कर कई ऐसे कदम उठाए जो देश और दुनिया के लिए भी अनोखे रहे।

सबसे महत्वपूर्ण चीज यह कि आपदा प्रबंधन का यहां ध्यान तूफान से होने वाले जान-माल के नुकसान को रोकने पर रहा, जबकि देश में कई जगह ऐसा देखा गया है कि वहां आपदा प्रबंधन तब सक्रिय होता है जब तबाही मच चुकी होती है यानी वे तूफान के बाद होने वाली तबाही को नियंत्रित करते हैं।

ओडिशा राज्य यह दावा भी करता है कि चक्रवाती तूफानों से निपटने में वह देश में सबसे अग्रणी राज्य है। यहां राज्य का आपदा प्रबंधन विभाग और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल अन्य से बेहतर है।

राज्य के आपदा प्रबंधन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उसने यहां की पंचायतों को इस तरह के तूफानों का सामना करने के सक्षम बनाया। स्पेशल रिलीफ कमिश्नर प्रदीप कुमार जैना बताते हैं कि हमने पंचायतों और गांवों को इस तरह के तूफान से बचने और बचाने के लिए जरूरी जानकारियां और ट्रेनिंग दी। उन्हें इस दौरान क्या-क्या कदम उठाने चाहिए, किन चीजों से बचना चाहिए, ये सभी जानकारियां दी गईं।"

जैना जो कि ओडिशा आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मैनेजिंग डायरेक्टर भी है, वह कहते हैं, "राज्य का पंचायती राज विभाग गांवों के सरपंचों को ट्रेनिंग देता है। इसमें आपदा प्रबंधन की एक अनिवार्य ट्रेनिंग भी दी जाती है। वे तूफान आने के पहले के वार्निंग सिस्टम से लेकर लोगों की सुरक्षित निकासी, बचाव कार्य और चक्रवाती तूफानों के लिए बनाए गए शेल्टर होम के प्रबंधन और बाकी जरूरी चीजों के लिए पूरी तरह ट्रेन्ड होते हैं। राज्य का आपदा विभाग हर साल इनकी ऐसी ट्रेनिंग कराता है।"

राज्य के 12 जिले समुद्री तट के किनारे हैं। यही वे जिले हैं जहां चक्रवाती तूफानों और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सबसे ज्यादा असर होता है। इन जिलों के सबसे ज्यादा हाई रिस्क वाले 50 गांवों के लिए राज्य सरकार स्पेशल विलेज लेवल डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान भी चलाती है। गांवों के सरपंचों को जो ट्रेनिंग दी जाती है, उसका मॉड्यूल स्थानीय नेताओं, आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में काम करने वाले एनजीओ, वॉलेंटियरों और विशेषज्ञों से सुझाव लेकर तैयार किया जाता है।

यहां तूफानों का सामना करने के लिए राज्य की जनता और अथॉरिटी को हमेशा तैयार रखने के लिए हर साल मॉक ड्रिल भी होती है। हर साल 19 जून को पूरे राज्य में यह मॉक ड्रिल होती है।

यहां सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, पिछले 2 दशकों में राज्य में तूफानों से लोगों के बचाव के लिए कई इंफ्रास्ट्रक्चर बनाए गए हैं। फानी तूफान के दौरान स्पेशल रिलीफ कमिश्नर रहे और वर्तमान में राज्य के ऊर्जा सचिव बिष्णुपदा सेठी बताते हैं कि तूफान और बाढ़ से पहले ही प्रभावित हो सकने वाले इलाकों से लोगों को शेल्टर होम में भेज दिया जाता है। ये शेल्टर होम इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं के लिए ही बनाए गए हैं। शेल्टर होम्स की बनावट ऐसी है कि ये 350 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से आने वाली हवाओं को भी झेल सकते हैं। ये सभी शेल्टर गांवों और शहरों से अच्छी सड़कों से जूडे़ हुए हैं ऐसे में आपदा की वार्निंग मिलते ही लोगों को तेजी से आसपास के इलाकों से यहां शिफ्ट कर दिया जाता है।"

ओडिशा के 12 तटीय जिलों में ऐसे करीब 809 शेल्टर हैं। ये शेल्टर 2 तरह के हैं। एक वे हैं जिनकी क्षमता 2000 लोगों को रखने की है, दूसरे वे जहां 3000 तक लोग आ सकते हैं। इनमें से कई शेल्टर होम वर्तमान में कोरोनावायरस से बचाव के लिए क्वारैंटाइन सेंटर में तब्दील कर दिए गए हैं।

सेठी कहते हैं, "ओडिशा में आपदाओं का सामना करने के लिए आपदा प्रतिक्रिया बल की 20 यूनिट बनाई गईं हैं। जो काम ये प्रतिक्रिया बल करती है, पहले उस काम के लिए हम आर्मी और नेवी की मदद लेते थे। राज्य की आपदा प्रतिक्रिया बल की सभी यूनिट्स ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए जरूरी चीजों से लैस होती है और पूरी तरह प्रशिक्षित भी। इन बलों को आपदा के समय फौरन मोर्च पर तैनात किया जा सकता है। हमारे पास 340 फायर सर्विस यूनिट भी है, जिसमें आग से जुड़ी घटनाओं में तुरंत प्रतिक्रिया देने की दमदार क्षमता है।"

राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के एक उच्च अधिकारी कहते हैं, "यह हमेशा बेहतर होता है कि आप कम तैयारी की बजाय जरूरत से भी ज्यादा तैयारी रखें। अम्फान चक्रवाती तूफान के दौरान भी हमने 155 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से आने वाली हवाओं का सामना करने के लिए पूरी तैयारी कर ली थी, जबकि तूफान जब ओडिशा से टकराया तब हवा की रफ्तार 120 किमी प्रति घंटा तक ही थी।"

तस्वीर अम्फान के ओडिशा में प्रवेश के 2 दिन पहले की है। तूफान की आहट होते ही आपदा प्रबंधन विभाग सक्रिय हो चुका था।

राज्य सरकार यह भी दावा करती है कि वह आपदा प्रबंधन की दिशा में और ज्यादा बेहतर तैयारी की ओर बढ़ रही है।

वह यह भी बताते हैं कि हमने अम्फान के दौरान पीने के पानी के लिए अपने टैंकर तैयार रखे थे। बिजली जाने से परेशानी न हो इसके लिए डिजल सेट तैयार थे। बचावकर्मी पने औजारों के साथ चपेट में आ सकने वाली जगहों पर तैयार थे।

सरकार यह भी दावा करती है कि राज्य में चक्रवाती तूफानों के लिए जो वार्निंग सिस्टम लगाया गया है, वह सॉयक्लोन के आगे बढ़ने की सही दिशा और सही रफ्तार भांपने में सटीक है। इससे बेहतर तैयारियां करने में मदद मिलती हैं। इसमें सेटेलाइट आधारित मोबाइल डेटा वॉइस टर्मिनल्स, डिजिटल मोबाइल रेडियो, मॉस मैसेजिंग सिस्टम, अलर्ट सायरन सिस्टम और यूनिवर्सल कम्यूनिकेशन इंटरफेस जैसी अलग-अलग कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी शामिल हैं।

सरकार पिछले कुछ सालों से आपदाओं से निपटने के लिए स्थानीय स्तर पर लोगों को भी ट्रेनिंग दे रही है, इन्हें सेल्फ हेल्प ग्रुप (एसएचजी) कहा जाता है। राज्य सरकार "स्वयं सिद्धा" नाम से एक खास योजना चलाती है। इसके तहत महिलाओं को तूफान और बाढ़ के दौरान खुद की और दूसरों की मदद कैसे करनी चाहिए ये बताया जाता है।

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इस योजना के तहत राज्यभर में 10 हजार से ज्यादा एसएचजी वर्कस को अब तक प्रशिक्षित किया जा चुका है। इस साल के आखिरी तक ऐसे 2 लाख और वर्कस को तैयार करने का लक्ष्य है।

बंगाल की खाड़ी से सटा गंजम जिला तटीय 12 जिलों में सबसे ज्यादा हाई रिस्क पर रहता है। इस जिले में सबसे ज्यादा एसएचजी वर्कस हैं। यह इस क्षेत्र में आपदा के सामने पहली पंक्ति के रक्षक हैं। इनकी बदौलत चेतावनी देने से लेकर, बचाव कार्य और पुनर्वास कार्यक्रम तेजी से संभव हो पाता है।

एन पुष्पांजलि एक एसएचजी वर्कस हैं। वे बताती हैं, "आपदाओं के दौरान स्थानीय इलाकों में तेजी से काम करने के लिए हम प्रशिक्षित किए गए हैं। हम फर्स्ट एड की तरह काम करते हैं। चेतावनी मिलते ही लोगों को सुरक्षित ठिकानों पर भेजने से लेकर आपदा के बाद पुनर्वास कार्यक्रम तक हम हर समय प्रशासन का हाथ बंटाते हैं।"

गंजाम कलेक्टर विजय कुलांगे बताते हैं कि ये कार्यकर्ता आपदा प्रबंधन के लिए फेज वाइज तैयार किए गए हैं। इन कार्यकर्ताओं ने कई तूफान देखें हैं और ये स्थानीय इलाकों को बेहतर तरीके से जानते हैं। आपदाओं के दौरान ये लोग पहली पंक्ति के रक्षक के तौर पर काम करते हैं। ये प्रशिक्षित होते हैं और हर समय इनके पास स्पेशल किट होती है।"

तूफान आने से पहले लोगों से शेल्टर होम में जाने की अपील करते पुलिसकर्मी।

राज्य के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के मुख्य सचिव संजय सिह कहते हैं, "पुराने अनुभवों से हमनें सीख लेकर अब ऐसे समय में अलग-अलग कामों के लिए तेजी से कमिटी बना दी जाती है। जैसे- एक कमेटी जो यह देखे कि जरूरी चीजों की आपूर्ति एक जगह से दूसरी जगह बिना अवरोध के हो सके, सड़कों को साफ करने के लिए एक कमिटी, हेल्थ सर्विस की आसान पहुंच के लिए एक पैनल, एक पैनल जो आपदाओं को लेकर मीडियो को जानकारियां दें आदि।"

वे बताते हैं कि कई राज्यों में आपने देखा होगा कि जिन बड़े अधिकारियों का काम जमीन पर कामकाज देखना और सुविधाओं का बंदोबस्त करना होता है, वह भी मीडिया ब्रीफ करने आ जाते हैं। ऐसे में काम प्रभावित होता है। हमने इसी लिए मीडिया में जानकारी देने के लिए भी अलग पैनल बनाया ताकि जिसका जो काम है वो वही करे और किसी तरह से काम बाधित न हो।"



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ओडिशा में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए स्थानीय स्तर पर लोगों को ट्रेनिंग भी दी जाती है। इन्हें सेल्फ हेल्प ग्रुप (एसएचजी) कहा जाता है। ये तूफान या बाढ़ के समय फर्स्ट एड की तरह काम करते हैं। चेतावनी मिलते ही लोगों को सुरक्षित ठिकानों पर भेजने से लेकर आपदा के बाद पुनर्वास कार्यक्रम तक ये प्रशासन का हाथ बंटाते हैं।


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