भारत-नेपाल संबंध में पड़ी एक और गांठ हमारी पड़ोस नीति की समीक्षा की मांग करती है। जहां नेपाल के साथ हमें नरमदिली दिखानी चाहिए वहां हम तंगदिल हो जाते हैं। उधर चीन के साथ जहां सख्ती की जरूरत है वहां सरकार लापरवाह दिखती है। हमारे पुराने दोस्त भी अब दूरी बनाने लगे हैं। समय रहते इस पड़ोस नीति को बदला नहीं गया तो राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा बढ़ेगा।
नेपाल-भारत के अनूठे संबंध को सिर्फ ‘विदेश नीति’ के खांचे में नहीं समझ सकते। हम दो ऐसे पड़ोसी हैं जो एक-दूसरे के रिश्तेदार भी हैं। एक मकान बड़ा है, दूसरा छोटा। दोनों के बीच में चारदीवारी है भी, और नहीं भी है। अगर बड़े मकान वाला सिर्फ पड़ोसी जैसा व्यवहार करेगा तो छोटे के दिल को चोट पंहुचेगी। लेकिन अगर चारदीवारी भूल कर सिर्फ रिश्तेदार जैसा व्यवहार किया तो छोटे मकान में रहने वाला भाई कब्जे के डर से दूरी बनाने की कोशिश करेगा।
इसलिए नेपाल-भारत के इस रिश्ते की निर्मलता को बनाए रखने की बड़ी जिम्मेदारी बड़े मकान में रहने वाले भाई यानी भारत की बनती है। पड़ोसी की चारदीवारी का सम्मान करते हुए रिश्ते की मर्यादा निभाना ही इस संबंध की चुनौती है।
दोनों देशों के बीच नवीनतम तनाव ने इस संबंध में पड़ी दरार को चौड़ा कर दिया है। कहने को यह विवाद भारत नेपाल सीमा के कालापानी-लिम्पियाधुरा-लिपुलेख त्रिकोण में स्थित कोई 330 वर्ग किलोमीटर भूभाग का है। नेपाल में यह धारणा जोर पकड़ गई है कि भारत ने 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद नेपाल के राजा से गुप्त समझौता कर सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस इलाके पर कब्जा कर लिया था।
यह मामला बढ़ गया, जब पिछले सप्ताह नेपाल की संसद ने सर्वसम्मति से संविधान संशोधन पास कर नेपाल के एक नए नक्शे को संविधान का हिस्सा बना दिया। इस नक्शे में कालापानी इलाके को नेपाल में दिखाया गया है। अभी ऊपरी सदन में पास होने की औपचारिकता बाकी है।
ऐसा होने पर अब नेपाल की कोई सरकार भारत से इस मुद्दे पर समझौता करना भी चाहे तो संभव नहीं होगा, क्योंकि अब वह संविधान विरुद्ध होगा। भारतीय विदेश मंत्रालय इस पर नाराजगी जाहिर की है। लेकिन भारतीय रक्षा मंत्री ने नेपाल-भारत में ‘रोटी-बेटी’ के संबंध की याद दिलाते हुए संयत बयान दिया है। कुल मिलाकर भारत नेपाल संबंध की उलझन में एक नई और बड़ी गांठ पड़ गई है।
दोनों पक्ष सहमत हैं कि महाकाली नदी के पूर्व का इलाका नेपाल का है और पश्चिम का इलाका भारत का। विवाद यह है कि महाकाली नदी का उद्गम कहां से होता है। वर्ष 1816 की पहली संधि नेपाल के दावे को पुष्ट करती है तो 1861 के बाद के दस्तावेज़ भारत के दावे को मजबूत करते हैं।
भारत का कहना ठीक है कि इस इलाके को भारत पहले ही अपने नक्शे में दिखाता रहा है और नेपाल के आधिकारिक नक्शे में यह नहीं होता था। इसमें भी शक नहीं कि नेपाल सरकार का एतराज नेपाल की अंदरूनी राजनीति द्वारा संचालित है। प्रधानमंत्री ओली की लड़खड़ाती सरकार ने खुद को बचाने के लिए राष्ट्रवाद का पत्ता खेला है। इससे इंकार नहीं कर सकते कि इसके पीछे चीन की शह हो सकती है।
लेकिन एक बड़ा पड़ोसी होने के नाते तस्वीर का दूसरा पहलू भी हमें समझना चाहिए। नेपाली मानस में भारत सरकार की दादागिरी के खिलाफ पुरानी व गहरी शिकायत है। एक साधारण नेपाली को लगता है कि भारत उसके देश को सार्वभौम देश मानने को तैयार नहीं है, बल्कि उसे सिक्किम या भूटान जैसा समझती है।
भारत का विदेश मंत्रालय नेपाल के अंदरूनी मामलों में नाजायज दखल देता है, वहां सरकार बनाने या गिराने के खेल में शामिल रहता है। वर्ष 2015 में नेपाल की नाकाबंदी का दर्द वहां के नागरिक भूले नहीं हैं। इधर कई साल से ‘भारतीय साम्राज्यवाद’ के विरोध का नारा नेपाली राजनीति में खूब चलता है। कालापानी इस गहरे मानसिक अलगाव का प्रतीक बन गया है।
इस झगड़े को बढ़ने से रोकना दोनों पक्षों के लिए जरूरी है। नेपाल को खुली सीमा व भारतीय अर्थव्यवस्था से संबंध बनाए रखने की जरूरत है तो भारत को भी चीनी सीमा पर एक दोस्त की जरूरत है। इधर चीन ने अपनी आर्थिक और सैन्य शक्ति के बल पर लद्दाख में आक्रामकता दिखानी शुरू की है, उधर बाकी सब पड़ोसियों से भारत के संबंध में खटास पैदा हो रही है।
भूटान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे परंपरागत मित्र पड़ोसियों के साथ भी संबंध में तनाव पहले से बढ़ा है। ऐसे में नेपाल के साथ खुले तनाव होने का मतलब होगा कि भारत चारों तरफ पड़ोसियों से झगड़े में घिरा होगा। चीन इसी मौके की तलाश में है।
इसलिए इस गांठ को खोलने की कोशिश दोनों तरफ से होनी चाहिए। नेपाल की संसद चाहे तो ऊपरी सदन में इस संविधान संशोधन को टाल सकती है। भारत सरकार सीमा संबंधी बातचीत की पहल कर सकती है। भारत-नेपाल मैत्री को अविश्वास और आशंका से बचाने के लिए दोनों देशों के समझदार नागरिकों को आगे आना होगा। इस रिश्ते में निर्मलता बनाए रखना दोनों देशों की, संपूर्ण हिमालय क्षेत्र की और एशिया की आवश्यकता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2CeAP9Q
https://ift.tt/2CfRkCv
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubt, please let me know.