शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी ने कहा- मैं और असद उमर प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल नहीं; पिछले दिनों कैबिनेट में हुआ था इमरान का विरोध

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का अपनी ही कैबिनेट में विरोध शुरू हो गया है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया है। कहा जा रहा है कि विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी या केंद्रीय विकास मंत्री असद उमर अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं। इन कयासों पर कुरैशी ने सफाई दी है। कुरैशी के मुताबिक, वो खुद या असद प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में शामिल नहीं हैं।
जियो न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कुरैशी और उमर दोनों चाहते हैं कि इमरान अपने करीबी फवाद चौधरी को कैबिनेट से हटाएं। लेकिन, इमरान इसके लिए तैयार नहीं हैं।

इमरान के सामने ही उनका विरोध
शुक्रवार को कुरैशी ने एक इंटरव्यू में इस बात से इनकार किया कि वो या असद उमर प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि पिछले दिनों कैबिनेट मीटिंग के दौरान कुछ मंत्रियों ने इमरान का विरोध किया था। पिछले दिनों सरकार ने पेट्रोल करीब 26 और डीजल 21 रुपए महंगा किया था। इसके बाद देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। इसकी वजह से भी इमरान पर काफी दबाव है। आरोप लग रहे हैं कि सरकार आर्थिक मोर्चे पर पूरी तरह नाकाम साबित हो चुकी है।

कुरैशी और असद भी इमरान से नाराज
खबरों के मुताबिक, कूरैशी और असद के अलावा कई कैबिनेट मंत्री इमरान के करीबी साइंस एंड टेक्नोलॉजी मिनिस्टर फवाद चौधरी को हटाए जाने की मांग कर रहे हैं। इनका आरोप है कि फवाद के भ्रष्टाचार की वजह से सरकार की बदनामी हो रही है। लेकिन, इमरान चौधरी को हटाए जाने से साफ इनकार कर चुके हैं। अब इमरान की कुर्सी ही खतरे में नजर आ रही है। बताया जाता है कि कुरैशी और असद प्रधानमंत्री इमरान के कई फैसलों से सख्त नाखुश हैं।

फौज के करीबी हैं कुरैशी
शाह महमूद कुरैशी को देश की ताकतवर फौज का करीबी बताया जाता है। कहा जाता है कि आर्मी चीफ बाजवा उनके दूर के रिश्तेदार हैं। फौज इमरान से नाखुश है। सिविल एडमिनिस्ट्रेशन के कई अहम पदों पर लेफ्टनेंट जनरल रैंक के अफसर पहले ही तैनात किए जा चुके हैं। ऐसे में माना जा सकता है कि फौज ने पहले ही तैयारी कर ली है।

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फोटो पिछले साल अक्टूबर का है। इसमें इमरान के साथ बीच में शाह महमूद कुरैशी और सबसे बाईं तरफ तब के फाइनेंस मिनिस्टर असद उमर नजर आ रहे हैं। बाद में उमर से वित्त मंत्रालय वापस ले लिया गया था। कहा जाता है कि यह फैसला आईएमएफ के दबाव में लिया गया था।


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