इस ‘कोरोनाकाल’ में बहुत से लोगों का मन नकारात्मकता से प्रभावित हुआ है। नकारात्मकता मन की ऐसी स्थिति है जिसमें मन की अच्छी भावनाएं, जिन्हें मैं मनविटामिन कहता हूं, जैसे कि आशा, विश्वास, साहस इत्यादि दब जाती हैं और इनकी जगह नकारात्मक भावनाएं जैसे कि डर, चिंता, हताशा और अवसाद मन पर कब्ज़ा कर लेती हैं।
कोरोनाकाल में लोग ज़्यादा चिंतित हो रहे हैं क्योंकि अपने मन की चिंताओं को वे किसी को कह नहीं पा रहे। लोग अवसाद (डिप्रेशन) भी अनुभव कर रहे हैं क्योंकि भविष्य में वे उजास नहीं देख पा रहे। ऐसे में प्रश्न यह है कि कैसे हम इन नकारात्मक भावनाओं से बचें और इस समय को भरपूर जिएं!
इसके लिए आपको जो पहला मंत्र अपने मन में रटना है वो ये है कि बदल जाना समय का स्वभाव है। बुरे समय की यह रात जल्द ढलेगी और सूरज अवश्य निकलेगा। आपका हताश मन सौ तरह के तर्क देगा कि यह समय कभी खत्म नहीं होगा...लेकिन इसकी ना सुनें! जब तक सूरज निकल नहीं आता, मन के एक कोने में आशा का दीपक ज़रूर जलाएं रखें।
वायरस, सोशल डिस्टेंसिंग इत्यादि जीवन की गति न रोकें इसके लिए जीवन में अनुशासन लाना होगा। आपको अपनी दिनचर्या को नई वास्तविकता के अनुसार ढालना चाहिए। आजकल बहुत से लोग घर से काम कर रहे हैं। घर से निकलना कम हो गया है, ऐसे में नियमित व्यायाम, शरीर व मन को स्वस्थ और ख़ुश रखने के लिए बेहद ज़रूरी है। जब भी संभव हो, धूप और बारिश का आनंद लें, पेड़-पौधों पर ध्यान दें। प्रकृति के जितना निकट रहेंगे उतना मन प्रसन्न रहेगा।
मित्रों से संपर्क बनाए रखें, उनके मन की सुनें और अपने मन की कहें। अपने किसी न किसी करीबी मित्र से रोज़ाना फ़ोन पर बात जरूर करें। ख़ुद को अलग-थलग बिल्कुल न करें। कोशिश करें कि अपने परिचय के दायरे के बाहर भी लोगों की मदद कर सकें। इससे संतुष्टि मिलेगी, जीवन को नया अर्थ मिलेगा। घर में रहते हुए भी काफ़ी कुछ कर सकते हैं। मैं आपको उदाहरण देता हूं।
इस लेख को लिखते समय मुझे घर से बाहर निकले हुए 120 दिन से अधिक हो चुके हैं। मैं सारा काम घर से ही कर रहा हूँ। मैंने पूरी कोशिश की है कि मैं कोरोनाकाल में और अधिक उपयोगी जीवन जी सकूं। इस दौरान मैंने और मेरे मित्रों ने अपने घरों में रहते हुए एक नेटवर्क बनाया, जिसने हज़ारों प्रवासी मज़दूरों को घर पहुंचने में सहायता दी।
हमने घर बैठे-बैठे कई टन भोजन सामग्री जुटाई और ज़रूरतमंदों तक पहुंचाई। यदि हम चाहें तो क्या नहीं कर सकते! हम सब मित्रों ने कोरोनाकाल का अपने जीवन को और अधिक समाजोपयोगी बनाने में प्रयोग किया। कोरोनाकाल यह साबित करने का एक अवसर है कि इंसान के मन की ताकत असीमित है और हम एक-दूसरे का साथ देते हुए किसी भी चुनौती को हरा सकते हैं।
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