बुधवार, 23 सितंबर 2020

गांव से पलायन रोकने 2 साल पहले 10 हजार रु में शुरू की थी नमक कंपनी, 9 करोड़ रु पहुंचा टर्नओवर, 14 किसान जुड़े, हर एक की आमदनी 15 हजार रु महीना

देहरादून के रहने वाले 33 साल के हर्षित सहदेव मनोवैज्ञानिक और मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल हैं, 15 से ज्यादा देशों में मेंटल हेल्थ वर्कशाप कर चुके हैं। साल 2013 में उत्तराखंड में बाढ़ ने भीषण तबाही मचाई थी तब वे प्रभावित गांवों में पहुंचकर मदद करना चाहते थे। आईटीबीपी से जुड़े उनके एक दोस्त ने उत्तरकाशी जिले के दिदसारी गांव का पता दिया। हर्षित यहां हुई तबाही के मंजर को देखकर बेचैन हो गए। यहां 75 फीसदी खेत बर्बाद हो चुके थे। गांव को मुख्य मार्ग से जोड़ने वाला एकमात्र पुल टूट गया था। कई घर भी गिर गए थे।

हर्षित बताते हैं, 'यह सबकुछ बर्बाद हो चुका था। लोग बेहद मुश्किल हालात में थे। पुल के बिना उनका जीना मुहाल हो गया था। बाहरी दुनिया से एक तरह से उनका संपर्क ही कट गया था।' उन्होंने स्थानीय लोगों की मदद से गांव का पुल दोबारा बनवाने के लिए सामाजिक आंदोलन किया, जिसके बाद प्रशासन को पुल बनवाना पड़ा।

गांव के बच्चों के साथ हर्षित सहदेव। हर्षित मनोवैज्ञानिक और मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल हैं, 15 से ज्यादा देशों में मेंटल हेल्थ वर्कशाप कर चुके हैं।

करीब डेढ़ साल गांव में रहने के बाद हर्षित देहरादून लौट आए और कार्पोरेट सेक्टर में नौकरी करने लगे। 2018 में फ्रांस से साइकिल चलाते हुए भारत पहुंची एक युवती क्लोए एंडे ने मीडिया रिपोर्टों में हर्षित के बारे में पढ़ा और उनसे मिलने देहरादून पहुंच गई। क्लोए ने वह गांव देखने की इच्छा जाहिर की जहां हर्षित ने काम किया था।

हर्षित क्लोए के साथ फिर दिदसारी पहुंचे। यहां हालात अभी भी पहले ही जैसे थे। बेरोजगारी की वजह से पलायन था। जंगली जानवरों के फसल बर्बाद करने के कारण लोग खेती छोड़ रहे थे। उन्होंने यहां क्लोए को पारंपरिक नमक खिलाया। जिसे पिंक साल्ट भी कहते हैं। गांव की महिलाएं पहाड़ी नमक में हल्दी, लहसुन, मिर्च और पहाड़ पर मिलने वाली अन्य जड़ी बूटियां मिलाकर पीसती हैं। क्लोए को यह स्वाद बहुत पसंद आया। चखते ही वे बोलीं की वे इसे फ्रांस में बेच सकती हैं।

दोनों गांव के लोगों के लिए कुछ करना चाहते थे। उन्होंने इसी नमक को पैक करके बेचने और गांव वालों को रोजगार देने की ठानी। दोनों ने पांच-पांच हजार रुपए मिलाए और दस हजार रुपए का नमक खरीद कर देहरादून लौट आए।

यहां उन्होंने इस नमक का नाम दिदसारी सॉल्ट रखा और हिमशक्ति ब्रांड के तहत इसकी पैकेजिंग की। वे देहरादून के कुछ कार्पोरेट हाउस में गए, जहां यह नमक उन्होंने दिवाली पर गिफ्ट में देने के लिए खरीद लिया। दोनों को अच्छी आमदनी हुई।

पिंक सॉल्ट बनाने के लिए काली मिर्च, लाल मिर्च, जीरा, अदरक, लहसुन, हींग जैसी चीजें मिलाकर सिलबट्टे पर पीसा जाता है। फिर उसे छोटे-छोटे पैकेटों में भरकर पैकिंग की जाती है।

फिर क्लोए ने कहा कि वे फ्रांस में इसे क्रिसमस गिफ्ट के रूप में बेचेंगी। दोनों ने पारंपरिक भारतीय कपड़े में इसे पैक किया। इस पर ब्रांड नेम और बाकी जानकारी फ्रेंच भाषा में छापी गईं। क्लोए ने यह नमक फ्रांस पहुंचाया जहां इसे पसंद किया गया।

हर्षित कहते हैं, 'फ्रांस में भी लोगों ने हमारे नमक को पसंद किया। हमें लग गया कि यह प्रोडक्ट अच्छा है और इसके आगे बढ़ने की गुंजाइश है। इसी बीच आईआईएम काशीपुर ने एग्रो बेस्ड स्टार्टअप के लिए ग्रांट देने के लिए आवेदन मांगे। हमने यहां आवेदन कर दिया और कामयाब रहे। क्लोए तो अब फ्रांस लौट गई हैं, लेकिन हर्षित इस ब्रांड को आगे बढ़ाने में जुटे हैं। उनके स्टार्टअप हिमशक्ति का आईआईएम काशीपुर से 25 लाख रुपए की ग्रांट के लिए चयन भी हो गया है।

फिलहाल उन्होंने दिदसारी और आसपास के गांवों में सात किसानों से कांट्रेक्ट किया है और उन्हें निश्चित भुगतान कर रहे हैं। अब उनके साथ कुल चौदह लोग जुड़े हैं। हर्षित फिलहाल हर महीने दो से ढाई लाख रुपए के बीच कमा रहे हैं और उनकी कंपनी की मार्केट वैल्यू नौ करोड़ रुपए है।

हर्षित चर्चित शेफ हरपाल सिंह सोढ़ी के पास गए और उन्हें अपने प्रोडक्ट के बारे में बताया। उन्हें यह आइडिया पसंद आया और वे दिदसारी सॉल्ट के साथ ब्रांड एम्बेसडर के तौर पर जुड़ गए।

हर्षित ने हाल ही में दिदसारी कूलर्स के नाम से शिकंजी मसाला भी लांच किया है। देहरादून के कई रेस्त्रां और कैफेटेरिया में उन्होंने इसे लांच किया है। उन्होंने अपने प्रोडक्ट को अमेरिका में भी एक्सपोर्ट किया है। हर्षित का कहना है कि ब्रिटेन की सेना के लिए काम करने वाले शेफ ने भी उनका नमक मंगाया गया है।

हाल ही में हर्षित चर्चित शेफ हरपाल सिंह सोढ़ी से मिले थे और उन्हें अपने प्रोडक्ट के बारे में बताया। उन्हें यह आइडिया पसंद आया और वे दिदसारी सॉल्ट के साथ ब्रांड एम्बेसडर के तौर पर जुड़ गए।

लॉकडाउन का उनके कारोबार पर असर तो हुआ है, लेकिन अब वह पटरी पर लौट रहा है। हर्षित कहते हैं, ‘लॉकडाउन की वजह से ऑनलाइन रिटेलर अमेजन और फ्लिपकार्ट पर प्रोडक्ट लिस्ट कराने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा। पहाड़ से सामान लाने ले जाने में भी दिक्कत हुई।’

हर्षित का इरादा और बड़ी तादाद में गांव के लोगों को अपने साथ जोड़ना है। वे कहते हैं, 'इन पहाड़ी गांवों में बेरोजगारी की वजह से पलायन बहुत है। चुनौतियों की वजह से लोग खेती से भी दूर हो रहे हैं। हमारा मकसद किसानों के लिए एक निश्चित आमदनी तय करना है। अभी हमारे साथ जुड़े किसान कम से कम हर महीने पंद्रह हजार रुपए कमाते हैं। हमारा कारोबार आगे बढ़ेगा तो हम और किसानों को अपने साथ जोड़ेंगे।

हर्षित अब आसपास के गांवों के किसानों को भी अपने साथ जोड़ना चाहते हैं। वे ट्रायल के तौर पर अदरक की खेती भी करवा रहे हैं। हर्षित कहते हैं, 'अब हम दिदसारी गांव के इस नमक को देश और दुनिया में ले जाना चाहते हैं।

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उत्तराखंड के दिदसारी गांव की महिलाएं पहाड़ी नमक में हल्दी, लहसुन, मिर्च और पहाड़ पर मिलने वाली अन्य जड़ी बूटियां मिलाकर पीसती हैं। इसे पिंक सॉल्ट कहा जाता है।


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