यह विडंबना ही है कि झारखंड के गठन के बाद भी दुमका जिले के बड़तल्ला पंचायत के मोहनपुर गांव के लोग रोड नहीं होने के कारण मरीजों को खाट पर लिटाकर अस्पताल ले जाने को विवश हैं। बारिश में यह गांव 4 महीने तक टापू बन जाता है। गांव से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र करीब 5 किमी दूर है। बरसात के दिनों में बहुत कष्ट होता है। गांव तक एम्बुलेंस नहीं पहुंचता है। गांव से मुख्यालय की दूरी 7 किलोमीटर है। मोहनपुर गांव डेढ़ किलोमीटर रोड नहीं है।
न श्मशान, न सड़क
फोटो मध्यप्रदेश के बीना जिले के लहरावदा पंचायत के देवराजी गांव की है। यह गांव सुविधाओं के लिए तरस रहा है। यहां न तो स्थाई श्मशान घाट है और न ही वहां तक पहुंचने का मार्ग। बुधवार को गांव के उदय सिंह लोधी का निधन होने के बाद उनकी अंतिम यात्रा में शामिल लोगों को दलदल से गुजरना पड़ा।
दूसरी मंजिल पर बाइक, उतारने की सता रही चिंता
मप्र के देवास जिले के नेमावर में 29 अगस्त को आई बाढ़ के निशान अभी भी नगर में बने हुए हैं। पानी उतरने के बाद लोगों की समस्या कम नहीं हुई है। ऐसी ही फोटो राकेश नामक युवक की सामने आई, जिसने बाढ़ का पानी बढ़ने पर अपनी बाइक सीढ़ी से दूसरी मंजिल पर चढ़ा दी थी। अब पानी उतर रहा है तो उसे बाइक नीचे उतारने की चिंता सता रही है।
ऑनलाइन मंत्रोच्चार कर घर बैठे पुरखों को जलांजलि
महामारी के चलते पितृपक्ष प्रारंभ होने के बाद पहली बार भोपाल की शीतलदास की बगिया समेत छोटे बड़े तालाबों के सभी घाट सूने रहे। वहां पितरों के निमित्त किए जाने वाला तर्पण नहीं किया जा सका। ऐसा नहीं है कि श्रद्धालु इन घाटों पर पहुंचे नहीं, पर वहां पुलिस का पहरा था और किसी को जाने की इजाजत नहीं थी। कई लोग वापस लौट आए, जबकि पंडितों ने ऑनलाइन मंत्रोच्चार कर घर बैठे पुरखों को जलांजलि दिलवाई।
पितृ पक्ष प्रारंभ
बुधवार को पूर्णिमा के तर्पण के साथ श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही नदी, तालाबों पर पितरों का तर्पण करने के लिए लोगों की भीड़ पहुंचने लगी है। दतिया जिले के उनाव की पहूज नदी पर सैकड़ों लोगों ने पहुंचकर पितरों का तर्पण किया। वहीं सनकुआं पर भी भारी भीड़ पहुंची। लोगों ने अपने पितरों को कुश से जल दान किया और पूजा अर्चना की।
शिक्षक ने पत्थरों पर उतार दिया पाठ्यक्रम
मप्र के टीकमगढ़ जिले के डूडा गांव के शिक्षक संजय जैन को 5 सितंबर को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। 12 साल में उन्होंने स्कूल की तस्वीर बदल कर रख दी। जैन ने बच्चों को पढ़ाने के लिए पाषाण नवाचार के तहत विद्यालय परिसर में पड़े बड़े-बड़े पत्थरों व स्कूल से सटे मकानों की दीवारों पर माह, दिन, पहाड़ा, कविताएं, कहानी, बारह खड़ी आदि को अंकित करवाया है।
लियो पारगिल चोटी पर तिरंगा फहराया
आईटीबीपी के जवानों ने 22 हजार 222 फीट ऊंची लियो पारगिल चोटी पर तिरंगा फहराकर रिकॉर्ड बनाया है। यह हिमाचल प्रदेश की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है। 16 जवानों के दल में से 12 को यह कामयाबी मिली। यह अभियान कोरोना के कारण और भी कठिन हो गया था। इसे कोविड की गाइडलाइन का पालन करते हुए पूरा किया गया। रिकॉर्ड बनाने वाला यह दल 20 अगस्त को आईटीबीपी के शिमला हेडक्वार्टर से रवाना हुआ था।
135 साल पहले बना था किला
फोटो राजस्थान में उदयपुर के सज्जनगढ़ किले की है। यह मानसून पैलेस के नाम से मशहूर है। मानसूनी बारिश के चलते 3100 फीट की ऊंचाई पर बना पैलेस हरियाली से खिल उठा है। स्थानीय लोग बताते हैं कि पैलेस उदयपुर की सबसे ऊंची चोटी पर बना है, जो विश्व की प्राचीनतम पर्वत शृंखला अरावली के शिखर पर ताज के समान स्थित है। इस पैलेस को करीब 135 साल पहले मेवाड़ के राजा सज्जन सिंह ने खास तौर पर मानसून के बादलों को देखने और बारिश का अनुमान लगाने के लिए बनवाया था।
1000 फीट गहरी खाई में गिरता है पानी
मांडू से 5 किलोमीटर दूरी पर स्थित गिद्याया खो का झरना पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन हुआ है। काकड़ा खो के झरने के समान पहाड़ी से लगभग 1000 फीट नीचे गहरी खाई में गिरता है। जिसे देखने सैलानी पहुंच रहे हैं। हालांकि यहां पहुंचने का रास्ता ठीक नहीं होने व इसकी जानकारी नहीं होने से कम ही पर्यटक पहुंच पाते हैं।
पथरी की दवा बनाने में कारगर
फोटो हरियाणा के पानीपत की है। तेज बहाव के साथ हर बार किनारों को तोड़ आसपास के गांवों में सैलाब लाने वाली यमुना में इस बार जलस्तर कम है। इसलिए नदी के किनारों पर कांस की पैदावार बड़ी मात्रा में हुई है। सफेद रंग की यह कांस काफी उपयोगी है। बॉटनी विषय के सहायक प्रोफेसर डॉ. रवि कुमार ने बताया कि कांस के पौधे से पथरी की दवाई तैयार की जाती है। साथ ही इसकी पत्तियों का इस्तेमाल ग्रीन टी में भी होता है।
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