शाम ढलने को है। किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी अभी-अभी अपने घर लौटे हैं। पूरा दिन किसानों के साथ आंदोलन में शामिल रहने बाद अब वे स्थानीय मीडिया से घिरे हुए हैं। उनका फोन अब भी लगातार बज रहा है और लगभग हर कॉल पर वे एक-सा जवाब देते हुए लोगों को बता रहे हैं कि किसानों के लिए आगे कि रणनीति क्या होगी।
बीते कुछ महीनों से यही गुरनाम सिंह की दिनचर्या बन गई है। माना जाता है कि हरियाणा में इन दिनों जो किसान आंदोलन हो रहा है, उसमें गुरनाम सिंह की सबसे अहम भूमिका रही है। कुरुक्षेत्र जिले के चढूनी गांव के रहने वाले गुरनाम सिंह भारतीय किसान यूनियन (हरियाणा) के अध्यक्ष हैं।
पिछले दो महीनों में वे हरियाणा में चार बड़े प्रदर्शन कर चुके हैं। इन प्रदर्शनों की शुरुआत 20 जुलाई से हुई थी, जब 15 हजार ट्रैक्टरों के साथ हरियाणा के किसान सड़कों पर उतर आए थे। गुरनाम सिंह बताते हैं, ‘केंद्र सरकार जून में तीन अध्यादेश लेकर आई। यह वह दौर था जब हम लोग कोरोना के डर से घरों से भी नहीं निकल रहे थे, लेकिन जब हमने इन कानूनों के प्रावधान देखे तो सड़कों पर निकलना हमारी मजबूरी हो गई। ये कानून खेती और किसानी की कब्र खोदने के लिए बनाए गए हैं।’
जिन तीन कानूनों का जिक्र गुरनाम सिंह कर रहे हैं उनमें से दो कानून संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुके हैं, जबकि एक का अभी राज्यसभा से पारित होना बाकी है। ये तीन कानून हैं: कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020।
केंद्र सरकार का दावा है कि इन कानूनों का पारित होना एक ऐतिहासिक फैसला है और इससे किसानों के जीवन में अभूतपूर्व समृद्धि आएगी। इसके ठीक उलट गुरनाम सिंह दावा करते हैं कि इन कानूनों से किसानों के जीवन में अभूतपूर्व दरिद्रता और बर्बादी आने वाली है।
इस पर विस्तार से चर्चा करते हुए वे कहते हैं, ‘सबसे अहम बदलाव जो इन कानूनों से होगा वह है मंडी के बाहर व्यापारी को खरीद की छूट मिलना। अभी सारा व्यापार मंडियों के जरिए होता है। वहां एक टैक्स व्यापारी को चुकाना होता है जो आखिरकार किसानों के ही काम आता है। पंजाब, हरियाणा के खेतों से गुजरने वाली बेहतरीन पक्की सड़कें जो आपको दिखती हैं वह इसी टैक्स से बन सकी हैं।’
अब सरकार मंडियों से बाहर व्यापार की छूट दे रही है तो इससे किसानों को कोई फायदा नहीं होगा, बल्कि बड़े व्यापारियों को फायदा होगा, क्योंकि वे लोग बिना टैक्स चुकाए बाहर से खरीद कर सकेंगे। इससे एक तरफ किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मिलना बंद हो जाएगा, दूसरी तरफ धीरे-धीरे मंडियां ठप पड़ने लगेंगी, क्योंकि जब मंडियों से सस्ता माल व्यापारी को बाहर मिलेगा तो वह क्यों टैक्स चुकाकर मंडी में माल खरीदेगा।’
बिहार राज्य का उदाहरण देते हुए गुरनाम सिंह कहते हैं, ‘मंडियों से बाहर खरीद की व्यवस्था अगर इतनी ही अच्छी थी तो बिहार के किसान आज तक समृद्ध क्यों नहीं हुए? वहां 2006 से यह व्यवस्था लागू हो चुकी है जो अब देशभर में करने की तैयारी है, लेकिन बिहार के किसानों की स्थिति इतनी खराब है कि वहां का चार एकड़ का किसान भी यहां के दो एकड़ के किसान के खेत में मजदूरी करने आता है। इसका मुख्य कारण यही है कि वहां किसानों को एमएसपी नहीं मिलता।’
जब प्रधानमंत्री लगातार बोल रहे हैं कि एमएसपी की व्यवस्था से कोई छेड़छाड़ नहीं होने वाली और यह बनी रहेगी तो फिर भी किसान विरोध क्यों कर रहे हैं? इस पर गुरनाम सिंह कहते हैं, ‘इस बात की तो हम दाद देते हैं कि प्रधानमंत्री बोलते बहुत अच्छा हैं। उनके पास बोलने की अद्भुत कला है। बस दिक्कत यह है कि वे झूठ बहुत बोलते हैं। अगर ये एमएसपी नहीं खत्म कर रहे तो हमारी छोटी-सी मांग मान लें और एमएसपी की गारंटी का कानून बना दें। कानून में बस इतना लिख दें कि एमएसपी से कम दाम पर खरीदना अपराध होगा, हम लोग कल ही अपना आंदोलन वापस ले लेंगे।'
इन कानूनों को गुमराह करने वाला बताते हुए किसान नेता कहते हैं, ‘इसमें सबसे बड़ा झूठ तो यही है कि इस कानून से किसानों को अपना माल कहीं भी बेचने की छूट मिलेगी। यह सरासर झूठ है, क्योंकि किसानों के पास यह छूट 1977 से ही है। ऐसा ही झूठ फसल के भंडारण को लेकर भी कहा जा रहा है कि अब किसान अपनी उपज स्टॉक कर सकेगा। यह स्टॉक का फायदा अडानी जैसे लोगों को होगा जो अब जमाखोरी करके दाम निर्धारित कर सकेंगे।’
अपने पड़ोस का ही उदाहरण देते हुए गुरनाम सिंह कहते हैं, ‘कुरुक्षेत्र-कैथल हाईवे पर ढांड नाम की एक जगह है जहां अडानी का एक वेयरहाउस है। वहां यह सुविधा है कि 10 साल तक गेहूं स्टोर किया जा सकता है। आम किसान या छोटे व्यापारियों के पास तो ऐसे वेयर हाउस हो नहीं सकते, तो सबका राशन खरीदकर अडानी जैसे लोग अब सालों तक स्टोर कर सकेंगे और जब उनके पास असीमित स्टॉक होगा तो पूरा बाजार वे नियंत्रित करेंगे। जैसे मोबाइल की दुनिया में आज पूरा बाजार अंबानी का है, वैसे ही आने वाले सालों में सारी खेती भी बड़े पूंजीपतियों की होगी।’
अपनी बात को समेटते हुए वे कहते हैं, ‘यह असल में सिर्फ किसान का मुद्दा नहीं, बल्कि देश की तमाम जनता का भी मुद्दा है। यह जनता बनाम कॉरपोरेट का मामला है। चंद व्यापारी पूरे देश का माल खरीदेंगे और फिर पूरा देश उनसे लेकर खाएगा। यानी पूरा देश उनका ग्राहक होगा।’
गुरनाम सिंह अपनी बात पूरी करते उससे पहले ही उनके फोन पर एक तस्वीर आती है। यह तस्वीर दिखाते हुए वे कहते हैं, ‘देखिए सरकार की चालाकी। अभी-अभी कई फसलों का एमएसपी बढ़ा दिया गया है। यह बढ़त भी बस ऊंट के मुंह में जीरे जितनी ही है, लेकिन इसे ठीक ऐसे समय पर किया है जब किसान आंदोलन लगातार तेज हो रहा है, जबकि यह एमएसपी हर साल अक्टूबर में आया करती है।
इससे सरकार दिखाना चाहती है कि एमएसपी को लेकर वह कितनी गंभीर है और इस पर काम कर रही है, लेकिन सरकार की नीयत अगर साफ है तो बस यही बात कानून में क्यों नहीं लिख दी जाती कि एमएसपी व्यवस्था बनी रहेगी। इतना हो जाए तो किसान बेफिक्र हों, लेकिन इन्होंने तो किसानों को मार डालने वाले कानून बना दिए हैं, इसलिए किसानों ने भी ठान ली है। अब या तो सरकार ये कानून वापस ले या फिर हमें सीधे ही गोली मार दे।
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