‘का हो? का होई एमरी? का बुझाता? नीतीश फेरू मुख्यमंत्री बनिहें की नाहीं’… अखबार का पन्ना फाड़ के बनाई गई प्लेट में अभी-अभी चूल्हे से निकली खुरमा मिठाई डालते हुए 40-45 साल के व्यक्ति ने सामने वाले सज्जन से सीधा सवाल पूछा! आरा जिले का खुरमा वैसे ही काफी फेमस है। नहीं जानते हैं तो गूगल कर लीजिए। मौका मिले तो छेना की इस सूखी मिठाई का स्वाद जरूर लीजिए। आप ‘वाह’ बोले बिना नहीं रह सकेंगे। रामसुभग सिंह कहते हैं कि उन्होंने तो कितनी ही बहसों को इसी खुरमा के स्वाद के साथ शुरू होते और नतीजे पर पहुंचते देखा है।
असल में सवाल जिनकी तरफ उछाला गया था, वो हौले से मुस्कुरा के रह गए। कुछ बोले नहीं। लेकिन, उनके बगल में प्लास्टिक के छोटे कप में चाय सुड़क रहे एक लड़के से रहा नहीं गया- बोला, ‘व्यक्ति त अच्छा बारन नीतीश। कामो ठीके-ठाक भइल ह। सड़क बनल। आज बिजली रहता, लेकिन 15 साल बहुत होला जी। इतना दिन में तो बच्चा जवान हो जाता है। एहिला कभी-कभी लगता कि परिवर्तन आवे के चाही अबकी।’
बिहार की कई खासियतों में से एक तो यही है कि यहां बात शुरू हुई तो बहुत आगे तक जाती है। कोई भी बात बीच में ही खत्म नहीं होती है। खासकर जब चुनाव का मौसम हो तो बातें रबर की तरह लमरती हैं, यहां। और मामला जब सांस्कृतिक-राजनीतिक नजरिए से ऐतिहासिक विरासत रखने वाले भोजपुर इलाके का हो तो फिर बात ही अलग हो जाती है।
ये बातचीत आरा से सासाराम जाने के रास्ते की है। जगह का नाम है दुल्हिनगंज। कस्बाई बाजार है। बाजार की अधिकतर दुकानें फूस की हैं। चाय, समोसा और मिठाई से लेकर साज श्रृंगार तक की दुकानें हैं। पान की गुमटियां भी हैं। हम एक मिठाई की दुकान में पहुंचे हैं। इरादा तो सिर्फ चाय पीने का था, लेकिन खुरमा की लज्जत के साथ चाल रही बहस ने दुकान पर बैठने को मजबूर कर दिया।
नौजवान की बात समाप्त होते ही करीब 70 साल के बुजुर्ग चाय का कप नीचे रखते हुए बोले, ‘राजनीति में बहुत गिरावट आई है बाबू। मैं तो तमाम चुनाव देख चुका हूं। कई सरकारों को देख चुका हूं। आज जैसी अवसरवादिता कभी नहीं थी। नीतीश से लेकर तेजस्वी तक सब केवल सत्ता में आने के लिए मेहनत कर रहे हैं। राजनीति से सेवाभाव का ह्रास हो गया है।’
शायद वहां मौजूद किसी भी व्यक्ति को इतनी गम्भीर टिप्पणी की उम्मीद नहीं थी। सभा थोड़ी देर के लिए शांत हो गए। बुजुर्ग से पहले अपनी बात कह रहे लड़के ने धीरे से कहा, ‘बतवा त सही कह रहे हैं आप, बाबा। गिरावट त आई है। नेताओं में भी और जनता में भी। देखिए ना, सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार त मुखिया के स्तर पर हो रहा है। लूट मची है। बोरा में पैसा बटोर रहा है मुखिया सब।’
एक पल को ऐसा लगा कि दुल्हिनगंज बाजार की इस राजनीतिक चर्चा का रुख बदल चुका है, लेकिन अभी-अभी दुकान में दाखिल हुआ नौजवान अचानक मोर्चा सम्भालता दिखा। राजनीतिक शुचिता की तरफ जाती बहस में जैसे हस्तक्षेप करते बोला, ‘हर समय ऐसा ही था। कभी भी सतयुग नहीं था। अफसोस मत कीजिए। चुनाव परिणाम के बाद असल अफसोस त नीतीश जी करेंगे। बीजेपी ने अपने चिराग से उन्हें नागपाश में डाल दिया है।’
थोड़ी देर पहले राजनीति में आई गिरावट पर अपनी बात रखने वाले बाबा मुस्कुराए और दुकान से बाहर निकलते हुए बोले, ‘देखत रहीं। ऊ त समय बताई कि के पछताई और के मिठाई खाई, लेकिन नीतीश के हल्के में लेवे के गलती ना करे केहू। लालू यादव कहले बारन कि एकरा पेट में दांत है।’ लालू यादव से पहले, बहुत पहले घाघ कहले हतन- ई ना जनिह जे घाघ निर्बुद्धि। सब कोई कुछ ना कुछ बोल रहल बा। एकगो खाली नीतीशे है, जे घाघ बनल बइठल है।’
इस बयान के बाद बस थोड़ी मुस्कुराहट और थोड़ी खुसुर-पुसर सी ही हुई है। समझा जा सकता है कि यह बाबा की उम्र और अनुभव का सम्मान है। मैं भी बहस का सिरा वहीं छोड़कर आगे बढ़ गया हूं। इस बहस ने भी एक तस्वीर तो दिखाई ही है।
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