नवरात्रि पर्व पवित्रता का प्रतीक है। मान्यता है कि इन नौ दिनों में रखे जाने वाले व्रत हमारी आत्मा की शुद्घता और पवित्रता के लिए होते हैं। इसके साथ-साथ हमें अपने मन के विचारों की शुद्घि पर भी ध्यान देना चाहिए। तभी हम बेहतर बन पाएंगे और पारिवारिक रिश्तों को मजबूत कर पाएंगे। हर आत्मा के अंदर में दैवीय शक्तियां हैं, जिन्हें सिर्फ जागृत करने की जरूरत है।
हम बचपन से यही सीखते आए कि जब-जब नकारात्मक ऊर्जा का प्रकोप बढ़ेगा, तब उसपर विजय प्राप्त करने के लिए दैवीय शक्तियों का आह्वान किया जाएगा। आज पूरे विश्व में भी भ्रष्टाचार, अत्याचार, परिवारों का टूटना और बहनों के साथ जो कुछ हो रहा है, उससे निगेटिविटी चरम पर है। जब भी बुरी शक्तियां होंगी तो उनपर विजय प्राप्त करने के लिए शक्तिशाली ताकतों की आवश्यकता होगी।
इसके लिए हमें अपने अंदर शक्तियों का आह्वान करना होगा। इसके लिए हमें इस त्यौहार के आध्यात्मिक रहस्यों को समझना होगा। मान लीजिए किसी चित्रकार को क्रोध के ऊपर विजय प्राप्त करते हुए एक चित्र बनाना है तो वह पहले एक निगेटिव चित्र बनाएगा और दूसरी तरफ एक पवित्र शक्ति का चित्र बनाएगा जो उसके ऊपर विजय प्राप्त करेगी। तो निगेटिविटी का एक चिह्न होगा और शुद्धता व पॉजिटिविटी का भी।
लेकिन हम उसके महत्व को भूल गए। हमने देवी के हाथ में तलवार, गदा, त्रिशूल दिखाया, फिर देवी के हाथ में शंख और कमल के फूल भी दिखाए। ये कुछ साधन थे जिनसे पवित्र शक्ति ने असुरों पर विजय प्राप्त की। यह पूरी तरह से प्रतीकात्मक है।
पवित्रता, प्रेम, शांति, खुशी, इन्हें दैवीय संस्कार कहते हैं। और काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार ये आसुरी संस्कार हैं। दोनों ही हर आत्मा में हैं। दोनों जब मेरे अंदर ही हैं तो अपने दैवीय संस्कारों को, अपने आसुरी संस्कारों से बचाने के लिए और उन पर विजय प्राप्त करने के लिए शक्तियों का आह्वान भी स्वयं के अंदर ही करना होगा। लेकिन हमने क्या किया।
देवियों की मूर्तियां बनाईं और उनके हाथों में अस्त्र-शस्त्र और पैरों के नीचे एक राक्षस दिखाया। लेकिन उस प्रक्रिया को तो हमने किया ही नहीं, जिससे हम आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त कर सकते थे। ये सांकेतिक चित्र जो हम बनाते हैं, वे सिर्फ हमें याद दिलाने के लिए हैं कि इस सारी प्रक्रिया को हमें अपने अंदर ही करना है।
जब हम पूछते हैं कि क्रोध अच्छा नहीं है, इसे समाप्त करना चाहिए। तो जवाब आता है कि देवी-देवता भी तो क्रोध करते थे, उन्होंने भी तो युद्ध किया था। तो हम क्यों नहीं कर सकते। लेकिन आज अगर हममें से भी कोई हिंसा करे या किसी को मार दे तो क्या आप उसे देवात्मा कहेंगे?
देवी-देवताओं ने अपने अंदर की बुरी शक्तियों को समाप्त किया न कि किसी को मारा। इसीलिए तो वे देवी-देवता कहलाते हैं। उन्होंने अपने ही अंदर के असुरों के साथ, दिव्य शक्तियों को जागृत कर युद्घ किया। अगर हमारे अंदर बुरी शक्तियां थोड़ी कम हुई हैं तो मानिए कि हमने उनपर विजय पाई है, उनके साथ युद्ध किया है।
अब आपने इनके साथ जो युद्ध किया वो ज्ञान के शस्त्र इस्तेमाल कर किया। बीती बातों को भूलना, जो जैसे हैं उनको स्वीकार करना, सबको नि:स्वार्थ प्यार देना, सहयोग करना, ध्यान करना, परमात्मा से शक्तियां लेकर उसका प्रयोग करना, ये थे हमारे ज्ञान के शस्त्र।
इन शस्त्रों का प्रयोग करके हमने अंदर के असुरों को खत्म किया है। फिर चाहे वह क्रोध का हो, लोभ का या मोह का। अंदर के असुर खत्म हुए तो हमारे अंदर दैवीय संस्कार उभरे। इसलिए तो हम कहते हैं आज मैं बहुत अच्छा और शांत अनुभव कर रहा हूं, आज मैं ज्यादा खुश हूं। समझने वाली बात है कि ये सारी प्रक्रिया कौन कर रहा है? ये हर आत्मा कर रही है, ज्ञान के शस्त्रों का इस्तेमाल करके।
हम देवी-देवताओं की पूजा कर रहे हैं लेकिन हम ये भूल चुके हैं कि उनके अंदर हम जिन शक्तियों की पूजा कर रहे हैं, वे हर आत्मा के अंदर हैं। उन्होंने ज्ञान के शस्त्रों को तलवार, गदा, तीर, त्रिशुल आदि शस्त्र के रूप में चित्र में दिखाया है। ज्ञान की इन्हीं शक्तियों को याद दिलाने के लिए नवरात्रि का त्यौहार आता है। ताकि हर आत्मा अपने अंदर के असुरों को समाप्त करके दैवीय संस्कार को धारण कर सके।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3k5RvRT
https://ift.tt/3dDuxit
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubt, please let me know.