देश में काेरोना से एक लाख मौतें हो चुकी हैं। भारत के सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों तक कोरोना फैल चुका है। लेकिन इनमें कुछ ऐसे राज्य भी शामिल हैं, जहां कोरोना के शुरुआती केस आने के बाद कड़े कदम उठाए गए और नए केस और मौतों पर काबू पाने की कोशिश की गई। गोवा, उत्तराखंड और केरल इसका उदाहरण हैं। गोवा से मनीषा भल्ला, उत्तराखंड से राहुल कोटियाल और केरल से बाबू के. पीटर की रिपोर्ट।
गोवा से मनीषा भल्ला की रिपोर्ट
पूरी तरह से खुल गया गोवा, पटरी पर लौट रही है जिंदगी
गोवा में हर दिन करीब 400 नए मामले आ रहे हैं। बावजूद इसके गोवा अपनी सामान्य जिंदगी में लौट रहा है। पर्यटकों की रौनक लौटने लगी है। आज से दो महीने पहले गोवा में होटल ऑक्युपेंसी सिर्फ 7% थी। यह अब बढ़कर 18% हो चुकी है।
गोवा के लिए आने वाले दो महीने अहम
गोवा का मुख्य रोजगार टूरिज्म है और इसे नुकसान से बचाने के लिए गोवा सरकार अब नए कदम उठा रही है। कोविड के लिए सर्विलांस अफसर डॉ. उत्कर्ष बेटोडकर बताते हैं कि हमने मरीजों की बढ़ती तादाद देखते हुए निजी अस्पतालों को भी कोविड ट्रीटमेंट की परमिशन दी है। कंटेंटमेंट जोन खत्म कर दिए गए हैं, लेकिन नए नियम बहुत सख्त हैं। आने वाले दो महीने तक गोवा में कोविड केस में ठहराव आने की उम्मीद है।
स्थानीय पंचायतों को भरोसे में लिया
भारत सरकार ने 8 जून से टूरिज्म के लिए हरी झंडी दी थी। दो जुलाई को गोवा पर्यटकों के लिए खोल दिया गया। गोवा ट्रैवल एंड टूरिज्म एसोसिएशन के अध्यक्ष निलेश शाह बताते हैं कि सबसे बड़ी दिक्कत थी स्थानीय गांव पंचायतों का पर्यटकों को न आने देना। लेकिन एसोसिएशन ने सरकार की मदद से पंचायतों को भरोसा दिलाया कि आने वाले पर्यटकों से बीमारी नहीं फैलेगी। वे नियमों का पूरी तरह पालन करेंगे।
क्या नियम बनाए?
- डॉ. उत्कर्ष ने बताया कि गांव पंचायतों के साथ लगातार मीटिंग की जा रही है। उन्हें निर्देश दिए गए हैं कि अगर उन्हें आसपास कोई पर्यटक संदिग्ध संक्रमित लगता है तो फौरन हेल्थ अफसरों को सूचित करें।
- गोवा आने वालों की एयरपोर्ट-रेलवे स्टेशन पर पूरा हेल्थ टेस्ट किया जा रहा है। जरा सी भी शंका होने पर लोगों को आइसोलेशन में रखा जा रहा है।
- होटल इंडस्ट्री को सख्ती से नियमों का पालन करने को कहा गया है। राज्य सरकार के पास कुल 3900 होटल रजिस्टर्ड हैं। इनमें से सिर्फ 700 होटल को काम करने की इजाजत मिली है। पर्यटकों द्वारा कमरा छोड़ने के बाद एक दिन होटल का कमरा खाली रखा जाएगा।
- खाने के लिए रूम सर्विस अभी शुरू नहीं की जाएगी। कोई भी पर्यटक बिना मास्क के नहीं दिखाई देगा। हर जगह सैनेटाइजर की व्यवस्था होगी। होटल में फ्रंट सर्विस के लोग फेस शील्ड, दस्ताने आदि पहनकर रखेंगे।
- टैक्सी ड्राइवरों के लिए भी सरकार की तरफ से अभियान चलाया गया है कि वे अपनी सुरक्षा कैसे कर सकते हैं।
40 हजार लोगों ने खोया था रोजगार
होटल-रेस्त्रां इंडस्ट्री में वर्करों का आना शुरू हो गया है। महामारी की वजह से यहां तकरीबन 40 हजार लोगों का रोजगार चला गया था। नॉर्थ गोवा में अंजुना बीच पर जिंजर ट्री होटल के मैनेजर हरीश बताते हैं कि कामकाज शुरू हो चुका है। आने वाले एक महीने के अंदर इसे रफ्तार मिलेगी। कैसीनो छोड़कर बाकी सब खुल चुका है। गांव पंचायतें भी सहयोग कर रही हैं। इस दफा गांव पंचायतों ने अपनी सालाना फीस भी नहीं बढ़ाई है। इससे पहले हर साल यह फीस बढ़ जाया करती थी।
उत्तराखंड से राहुल कोटियाल की रिपोर्ट
उत्तराखंड में कोरोना का पहला मामला 15 मार्च को सामने आया था। बीते 2 अक्टूबर को इसके 202 पूरे हुए हैं। सबसे पहले अब तक के आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं।
अन्य राज्यों से तुलना में ये आंकड़े ज्यादा डराने वाले नहीं लगते। लेकिन बीते 30 दिनों में इनमें जो तेजी आई है, वह जरूर राज्य सरकार के माथे पर बल डाल रही है। सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज फाउंडेशन ने इन आंकड़ों को बारीकी से परखा है। जहां शुरुआती 170 दिनों कुल 269 लोगों की मौत हुई थी, वहीं पिछले 30 दिनों में 342 लोगों की जान चली गई। हालांकि सकारात्मक पहलू यह है कि इन 30 दिनों में टेस्टिंग भी तेजी से बढ़ाई गई हैं और रिकवरी रेट में भी तेजी आई है।
पहाड़ी जनपदों ने किया बेहतर काम
सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल कहते हैं, "शुरुआती दौर में उत्तराखंड ने जरूर कोरोना संक्रमण की रोकथाम में अन्य राज्यों से बेहतर काम किया था और इसमें सबसे अहम भूमिका पहाड़ी जनपदों के लोगों और अफसरों ने निभाई थी।" उत्तराखंड राज्य में कुल 13 जिले हैं, जिनमें से नौ पहाड़ी जिले हैं और चार मैदानी जिले। मैदानों की तुलना में पहाड़ों पर कोरोना का संक्रमण काफी हद तक सीमित रहा है। राज्य में अब तक कोरोना के जो 49 हजार मामले सामने आए हैं, इनमें से 36,907 मामले सिर्फ इन चार मैदानी जिलों के ही हैं।
कैसे लड़ी कोरोना के खिलाफ लड़ाई
नौटियाल बताते हैं कि पहाड़ों में लोगों ने स्वतः ही कोरोना से निपटने के लिए कदम उठाए, जिसके नतीजे भी साफ देखने को मिले हैं। व्यापार मंडल के लोगों प्रशासन से छूट मिलने के बाद भी दुकानें बेहद सीमित समय के लिए ही खोली और लॉकडाउन का असली असर पहाड़ी कस्बों में ही नजर आया। अनलॉक के दौरान भी शाम होते ही पहाड़ी कस्बे पूरी तरह सुनसान हो जाते थे और ये एक बड़ा कारण है कि पहाड़ों में संक्रमण अब तक अनियंत्रित नहीं हुआ।
केंद्र की गाइडलाइन का सख्ती से किया पालन
- राज्य के एक वरिष्ठ पुलिस अफसर के मुताबिक, "प्रशासन की सक्रिय भूमिका से इतर हमें इसका भी लाभ मिला कि अन्य राज्यों की तुलना में प्रवासियों का वापस लौटना उत्तराखंड में कम हुआ।"
- उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति भी कोरोना की रोकथाम में कुछ हद तक प्रदेश के लिए उपयोगी साबित हुई। सीमांत राज्य होने के चलते प्रदेश में सिर्फ वे ही लोग दाखिल हुए, जिन्हें उत्तराखंड ही आना था। दिल्ली, हरियाणा या मध्य भारत के राज्यों जैसा दबाव उत्तराखंड पर नहीं था। प्रवासी इन राज्यों की सीमाओं से होते हुए अपने-अपने प्रदेश लौट रहे थे।
- प्रदेश की नाकेबंदी भी उत्तराखंड में अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा मजबूत रही। राज्य पुलिस अफसर प्रमोद साह कहते हैं, "प्रदेश में दाखिल होने के पांच मुख्य मार्ग हैं। इन पर नाकेबंदी होते ही पूरा प्रदेश सील हो जाता है। ऐसे में हर आने वाले पर नजर रखना और उनकी मॉनिटरिंग करना हमारे लिए अन्य राज्यों की तुलना में थोड़ा आसान है।"
- अनूप नौटियाल कहते हैं, ‘सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर जो गाइडलाइन समय-समय से जारी होती रही, प्रदेश ने उन्हीं का अनुपालन किया है।’
केरल से बाबू के. पीटर की रिपोर्ट
इन दिनों कोरोना की दूसरी लहर से केरल राज्य बुरी तरह से परेशान है। देश में सबसे पहला मामला केरल में ही सामने आया था। इसके बाद राज्य ने काेरोना के खिलाफ सही दिशा में कदम उठाए और कुछ हद तक इस पर काबू पाने की कोशिश की। लेकिन अब यहां दिन-ब-दिन केस बढ़ते जा रहे हैं। सरकार की ओर से जारी आंकड़े हर दिन बड़े होते जा रहे हैं।
केरल में डेथ रेट सबसे कम
देश में सबसे पहले कोरोना पॉजिटिव केस 30 जनवरी 2020 को केरल के त्रिशूर में मिला था। वुहान में पढ़ने वाली स्टूडेंट छुटि्टयों में अपने घर लौटी थी। भले ही देश में पहला केस केरल में मिला हो, लेकिन राज्य सबसे कम मृत्युदर (0.4%) वाले राज्यों में शामिल है। देश में कोरोना की वजह से औसत मृत्युदर 1.58% है। इस लिहाज से केरल डेथ रेट के मामले में टॉप-20 राज्यों में भी शामिल नहीं है।
जनता कर्फ्यू से पहले लॉकडाउन
मार्च में राज्य में सबसे ज्यादा केस आने शुरू हुए थे। तब राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के जनता कर्फ्यू की अपील से एक दिन पहले ही अपने यहां लॉकडाउन की घोषणा कर दी थी। केरल सरकार के प्रभावी कदम की वजह से राज्य में अप्रैल के आखिर तक केस बढ़ने की रफ्तार काफी धीमी हो गई थी। अप्रैल के महीने में काेई नया केस भी सामने नहीं आया था।
बाहरी लोग हैं जिम्मेदार
पहले हर दिन नए केस की संख्या 100 के भी नीचे आती थी, लेकिन जल्द ही ये नंबर सैकड़ों और हजारों में बदल गया। इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार भारत के बाहर रह रहे केरल के निवासी हैं, जो महामारी के दौरान राज्य लौटे हैं।
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