गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

कुमार विश्वास बोले- कब तक मौन रहोगे विदुरों? कब अपने लब खोलोगे, जब सर ही कट जायेगा तो किस मुंह से क्या बोलोगे?

इस वीडियो में मैं थोड़ा ज्यादा गुस्से में आ गया, एक दो बार गला भी भर आया है😢! पर आप सब मेरे चाहने वालों से, साहित्य से, भाषा से, उसकी मर्यादा से मैं माफ़ी नहीं मांगना चाहता ! यह जनबोधी कविता, यह ग़ुस्सा मेरे वंश की परम्परा है ! जिन्हें बुरा लगा हो वे मुझे गरियाने के लिए स्वतंत्र हैं 😢🙏 ।

उपनिषद भी कहता है कि कूपमंडूक की तरह अब भी अगर हम इस अंधियारी कोठरी से बाहर नहीं निकले तो धीरे-धीरे इस अनाचारी असुर लोक के ऐसे अंधकार में प्रवेश कर जाएंगे जो स्वयं हमारे विनाश का कारण बनेगा 👎। “असूर्य नाम ते लोकाः अंधे तमसावृताः।।”

उन्नीस सौ बासठ की चीन से लड़ाई के वक्त अपनी जरूरी जिम्मेदारी से बेखबर अपनी ही सरकार से अपनी कविता “परशुराम की प्रतीक्षा” में जब राष्ट्रकवि दिनकर जी ने सवाल पूछा था तो एक पंक्ति लिख दी थी, “छागियो करो अभ्यास रक्त पीने का !”

अपनी डायरी में दिनकर जी ने लिखा है कि मुझे एक शालीन कवि होने के नाते रक्त पीने जैसी बात शायद नहीं लिखनी चाहिए थी पर मैंने इसलिए लिख दी है ताकि आने वाले कल में इतिहास याद रखें कि जब सब सरकारी सरोकारी लोग मौन थे तो इस देश के एक कवि को इतना गुस्सा आया था कि उसने रक्त पी जाने जैसी कामना कर डाली थी !

🇮🇳😢 "कब तक मौन रहोगे विदुरों? कब अपने लब खोलोगे ? जब सर ही कट जायेगा तो किस मुंह से क्या बोलोगे..?”

वीडियो में कुमार विश्वास ने लगातार 19 मिनट तक हाथरस रेप केस को महाभारत की कथा और भारत की वर्तमान स्थिति से जोड़ा और नेताओं को जमकर कोसा। कुमार ने सवाल उठाए कि इतना बड़ा हादसा होने के बाद भी लोग सवाल क्यों नहीं उठा रहे?


बकौल कुमार -

हर बार की तरह शुरुआत करते समय जय हिंद कहने में समस्या है। क्योंकि, हिंद भी अगर सुनता होगा और देश भी कभी सुनता होगा तो वो भी आपसे पूछता हाेगा कि मेरी जय कहने का तुम्हें अधिकार है या नहीं। जब बचपन में मैं महाभारत की पूरी कहानी अपनी दादी से सुनी थी, पिता से सुनी थी तो अक्सर सोचता था कि इतने नीतिज्ञ, इतने पढ़े-लिखे इतने विराट व्यक्तित्व के लोग एक ही सभाग्रह में उपस्थित थे। जहां चाहे द्वेष था, वैमनस्य था, ईर्ष्या थी, दोनों दलों के लोगों में एक-दूसरे के प्रति घृणा थी। ऐसा क्या हुआ होगा कि एक कुलवधु, जो बड़े आदर स्नेह के साथ उस परिवार में आई हो। जहां उसने भीष्म के चरण छुए हों, जिसने गुरुवर द्रोणाचार्य की पूजा की हो, महात्मा विदुर में पिता दिखाई दिए हों, जिसमें दुर्योधन में अपना देवर दिखाई दिया हो। जिसमें कृपाचार्य में अपना रिश्तेदार दिखाई दिया हो। उस पूरे परिवार में पूरे वंश में चाहे कितनी भी घृणा थी, कितना भी द्वेष हो, लेकिन ऐसा कैसे हो हुआ कि स्त्री को बालों से खींचकर सभाग्रह में लाया गया और सबने उसका चीरहरण किया।
सबसे बड़ी बात ये है कि कोई इस पर बोला नहीं। जिन लोगों ने उसे दांव पर लगाया वो तो अपराधी थे ही। लेकिन, मुझे उन लोगों पर दुख नहीं आता था, मुझे गुस्सा आता था भीष्म पर, द्रोणाचार्य पर, गुस्सा आता था कृपाचार्य पर। फिर मेरी छाती चौड़ी होती थी महात्मा विदुर के लिए। कि कोई एक आदमी ताे है जो खड़ा होकर धृतराष्ट्र से पूछ रहा है कि मेरी सिंहासन के प्रति पूरी निष्ठा है, लेकिन ये सवाल तो पूछूंगा ही कि आखिर ये हो क्या रहा है?
जिस समय विदुर सवाल पूछ रहे थे तो दुर्याेधन के चमचों ने उन्हें हस्तिनापुर का विद्रोही बताया था। और यह चमचों की छाप होती है कि अपने दुर्योधनों को बचाने के लिए और धृतराष्ट्रों को बचाने के लिए उनके अंधेपन को उस देश के ऊपर मढ़ देते हैं और कह देते हैं कि आप देश के खिलाफ जा रहे हैं। मैं बार-बार कहता हूं कि नंद मगध नहीं है। मगध था, है और रहेगा। भारत था, है और रहेगा। सरकारें आएंगी और जाएंगी, लेकिन ये देश रहेगा।
महाभारत में सवाल नहीं पूछा गया। लेकिन हमारी कविता ने कहा- अधिकार खोकर बैठे रहना, ये महादुष्कर्म है। न्यायार्थ अपने बंधकों को भी दंड देना धर्म है। इस हेतु ही तो कौरवों-पांडवों का रण हुआ, जो भव्य भारतवर्ष के कल्पांत का कारण हुआ।
बेटियों की, कुलवधुओं की, बहनों की चीखों पर खामोश होने जाने वाले हस्तिनापुर अक्सर खंडहर में बदल जाते हैं। लाशों पर रोने वाला कोई नहीं बचता। और ये जो पिछले दो दिन से देख रहा हूं कि सरकारें और सत्ताएं और उनका समर्थन करने वाले लोग, मैं आप सबसे प्रार्थना करता हूं कि आप किसी भी पार्टी के हों। उसके पूरे अच्छे से भक्त बनकर रहिए। चमचे बनकर रहिए। समर्थक बनकर रहिए। अगली बार भी इन्हें ही वोट दे दीजिए। पर क्या वोट देने से सवाल पूछने का अधिकार खत्म कर दिया है।
सवाल नहीं पूछेंगे तो ये अहंकारी हो जाएंगे, इन्हें लगेगा कि सब ठीक है। आप सबसे कहता हूं कि अपनी पार्टी से सवाल पूछिए। उन महिलाओं से सवाल पूछिए, जो बहुत ही सिलेक्टिव अप्रोच दिखाती हैं। उन जया बच्चन से सवाल कीजिए, जो आजम खान के अधोवृद्ध पर टिप्पणी करने पर चुप रह जाती हैं और मुंबई में कुछ होता है तो संसद में उसके खिलाफ बोलती हैं। स्मृति ईरानी से सवाल कीजिएगा कि जो हैदराबाद की बेटी पर तो आंसू बहाती हैं, लेकिन उन्नाव में उनका विधायक बिटिया के साथ दुष्कर्म कर उसे मारने की कोशिश करता है तो चुप रह जाती हैं। चिन्मयानंद पर चुप रह जाती हैं। बहनों, बेटियों, मांओं से कह रहा हूं कि आप सब पूछिए कि ये लोग चुप क्यों हैं?
इसलिए इस बिके हुए समय में जब सब बिके हुए हैं, आप और हम बचें हैं सामान्य नागरिक बोलेंगे तो सरकारें सुनेंगी। इनकी औकात नहीं है। अन्ना हजारे ठीक कहते थे, इनकी नाक दबाओ तो मुंह खुलता है। इनकी नाक दबाइए, इनका मुंह खुलेगा। आखिर में गुस्से में ऐसी कोई बात की हो जो आपको बुरी लगी तो क्षमा कीजिएगा। लेकिन बहुत कष्ट है। एक कवि हबीब जालिब पाकिस्तान पंजाब से थे। उन्होंने एक मुशायरे में जिया उल हक के वक्त में एक नज्म पढ़ी थी। तो वो नज्म पढ़ना शुरू की तो नीचे से किसी शायर ने उनका पजामा खींचा और कहा कि अभी वक्त नहीं है। तो उन्होंने कहा कि मैं वक्त देखकर तेवर बदलने वाला शायर नहीं हूं। उन्होंने कहा-

दीप जिस का महल्लात ही में जले
चंद लोगों की ख़ुशियों को ले कर चले
वो जो साए में हर मस्लहत के पले
ऐसे दस्तूर को सुब्ह-ए-बे-नूर को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता


थोड़े दिनों के लिए, कुछ सालों के लिए दलित, हिंदू-मुस्लिम, ठाकुर बनिया, इन सब विमर्श से बाहर आइए, और देश का विमर्श संभालिए। बहुत मुश्किल वक्त है। फिक्र कर सकें तो बहुत अच्छा है और न कर सकें तो एक हजार साल में गुलामी गई है। फिर आपसे भी सवाल पूछा जाएगा आने वाले कल में..



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Kumar Vishwas said - how long will Vidro remain silent? When will you open your lips, when your head is cut, with what mouth will you speak?


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