बुधवार, 30 दिसंबर 2020

35 दिन में 7वीं बार साथ बैठेंगे किसान और सरकार; लेकिन क्यों नहीं बन रही बात? कहां फंस रहा है पेंच? जानें सबकुछ

खेती से जुड़े तीन कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन का आज 35वां दिन है। सरकार और किसानों के बीच 21 दिन बाद आज 7वें दौर की बातचीत होगी। इससे पहले 6 दौर की बातचीत में कोई हल नहीं निकल सका है। किसान तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हैं। उधर, सरकार लिखित में किसानों को जवाब देने को तैयार हैं, लेकिन आखिर क्या वजह है कि इतने दिन और इतनी बातचीत का भी कोई हल नहीं निकल सका है? पहले की बातचीत में क्या हुआ? किसान किन मांगों पर अड़े हैं?

सबसे पहले किसान और सरकार के बीच अब तक हुई बातचीत में क्या निकला?
पहला दौरः 14 अक्टूबर
क्या हुआः
मीटिंग में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की जगह कृषि सचिव आए। किसान संगठनों ने मीटिंग का बायकॉट कर दिया। वो कृषि मंत्री से ही बात करना चाहते थे।

दूसरा दौरः 13 नवंबर
क्या हुआः
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल ने किसान संगठनों के साथ मीटिंग की। 7 घंटे तक बातचीत चली, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला।

तीसरा दौरः 1 दिसंबर
क्या हुआः
तीन घंटे बात हुई। सरकार ने एक्सपर्ट कमेटी बनाने का सुझाव दिया, लेकिन किसान संगठन तीनों कानून रद्द करने की मांग पर ही अड़े रहे।

चौथा दौरः 3 दिसंबर
क्या हुआः
साढ़े 7 घंटे तक बातचीत चली। सरकार ने वादा किया कि MSP से कोई छेड़छाड़ नहीं होगी। किसानों का कहना था सरकार MSP पर गारंटी देने के साथ-साथ तीनों कानून भी रद्द करे।

5वां दौरः 5 दिसंबर
क्या हुआः
सरकार MSP पर लिखित गारंटी देने को तैयार हुई, लेकिन किसानों ने साफ कहा कि कानून रद्द करने पर सरकार हां या न में जवाब दे।

6वां दौरः 8 दिसंबर
क्या हुआः
भारत बंद के दिन ही गृह मंत्री अमित शाह ने बैठक की। अगले दिन सरकार ने 22 पेज का प्रस्ताव दिया, लेकिन किसान संगठनों ने इसे ठुकरा दिया।

सरकार के प्रस्ताव में क्या था?
9 दिसंबर को सरकार के 22 पेज के प्रस्ताव में ये 5 प्वॉइंट थे-
1. MSP की खरीदी जारी रहेगी, सरकार ये लिखित में देने को तैयार है।
2. किसान और कंपनी के बीच कॉन्ट्रैक्ट की रजिस्ट्री 30 दिन के भीतर होगी। कॉन्ट्रैक्ट कानून में साफ कर देंगे कि किसान की जमीन पर लोन या गिरवी नहीं रख सकते।
3. राज्य सरकारें चाहें तो प्राइवेट मंडियों पर भी फीस लगा सकती हैं। इसके अलावा सरकारें चाहें तो मंडी व्यापारियों का रजिस्ट्रेशन जरूरी कर सकती हैं।
4. किसान की जमीन कुर्की नहीं हो सकेगी। किसानों को सिविल कोर्ट जाने का विकल्प भी मिलेगा।
5. बिजली बिल अभी ड्राफ्ट है, इसे नहीं लाएंगे और पुरानी व्यवस्था ही लागू रहेगी।

तो फिर किसानों ने इसे क्यों ठुकरा दिया?
किसान नेताओं का कहना है कि 22 में से 12 पेजों पर इसकी भूमिका, बैकग्राउंड, इसके फायदे और आंदोलन खत्म करने की अपील और धन्यवाद है। कानूनों में क्या-क्या संशोधन करेंगे, उसकी बजाय हर मुद्दे पर लिखा है कि ऐसा करने पर विचार कर सकते हैं। तीनों कानून रद्द करने के जवाब में हां या न में जवाब देने की जगह लिखा है कि किसानों के कोई और सुझाव होंगे, तो उन पर भी विचार किया जा सकता है।

किसानों की मांगें क्या हैं?

  • किसान खेती से जुड़े तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि कानूनों से कॉर्पोरेट घरानों को फायदा होगा।
  • किसान MSP पर सरकार की तरफ से लिखित आश्वासन चाहते हैं।
  • बिजली बिल का भी विरोध है। सरकार 2003 के बिजली कानून को संशोधित कर नया कानून लाने की तैयारी कर रही थी। किसानों का कहना है कि इससे किसानों को बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी खत्म हो जाएगी।
  • किसानों की एक मांग पराली जलाने पर लगने वाले जुर्माने का प्रस्ताव भी है। इसके तहत पराली जलाने पर किसान को 5 साल तक की जेल और 1 करोड़ रुपए तक का जुर्माना लग सकता है।

क्या बातचीत का हल नहीं निकलने के पीछे जिद है?
किसानों की जिद:
तीनों कानून रद्द करने की मांग पर अड़े। किसान संगठनों का कहना है जब तक सरकार कानून रद्द नहीं करती, तब तक आंदोलन चलता रहेगा।

सरकार की जिद: कानून को न वापस लिया जा सकता है और न ही रद्द किया जा सकता है। किसानों के जो भी सुझाव होंगे, उस हिसाब से इसमें संशोधन कर सकते हैं।



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Farmer Talks With Government Explained; Amit Shah Narendra Singh Tomar | All You Need To Know About Why Farmers Reject Government Proposal


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