कहानी - रामकृष्ण परमहंस से मिलने काफी लोग पहुंचते थे। वे अपने उपदेशों की वजह से प्रसिद्ध हो चुके थे। वे अपनी मस्ती में रहा करते थे। एक दिन वे अपने काम में व्यस्त थे। उनके पास कुछ लोग भी बैठे हुए थे। तभी वहां एक संत पहुंचे। संत का व्यक्तित्व प्रभावशाली था। वे परमहंस के सामने आकर खड़े हो गए।
संत ने कहा, 'क्या तुम मुझे पहचानते नहीं हो? मैं पानी पर चलकर आया हूं। मेरे पास चमत्कारी सिद्धि है, जिससे मैं बिना डूबे पानी पर धरती की तरह चल सकता हूं। मुझे ये चमत्कार करते हुए लोगों ने देखा है। और तुम मुझे ठीक से देख भी नहीं रहे हो और ना ही बात कर रहे हो।'
रामकृष्ण परमहंस ने कहा, 'भैया, आप बहुत बड़े व्यक्ति हैं और आपके पास सिद्धि भी है। लेकिन, एक बात मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि इतनी बड़ी सिद्धि हासिल की है और इतना छोटा काम किया है। नदी पार करनी थी तो नाव वाले को दो पैसे देते, वह आपको आराम से नदी पार करवा देता। जो काम दो पैसे में किसी केवट की मदद हो सकता था, उसके लिए आपने इतनी बड़ी महान सिद्धि का उपयोग किया और उसका प्रदर्शन भी कर रहे हो।' ये बातें सुनकर संत शर्मिंदा हो गए।
सीख - अगर हमारे पास कोई सिद्धि या विशेष योग्यता है तो उसका प्रदर्शन और दुरुपयोग न करें। जो काम जिस तरीके से हो सकता है, उसे उसी तरीके से करना चाहिए। योग्यता का उपयोग सही समय पर और सही जगह ही करें।
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