रविवार, 28 जून 2020

आठ बच्चों से पिता का साया छिना, 15 दिन बाद चिता पर अंतिम बार चेहरा देखा; पता गलत होने से दो दिन मर्च्युरी में पड़ा रहा शव

राजधानी जयपुर में कोरोना संक्रमण की वजह से मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाली यह कहानी है 40 वर्षीय हंसराज जोरावत की। हंसराज अजमेर जिले केअराईं कस्बे के देवपुरी गांव के रहने वाले थे।कोरोना की वजह से हंसराज की मौत ने ना सिर्फ पत्नी की मांग का सिंदूर उजाड़ दिया, बल्कि छह बेटियों और दो मासूम बेटों के सिर से पिता का साया भी छीन लिया। शनिवार कोअंतिम संस्कार के समयबेटियों नेमां को संभालाऔर15 दिन बाद चिता पर पिता के अंतिम दर्शन किए।

जयपुर में मोक्षधाम में कर्मचारियों ने परिजन को काफी समझाया। लेकिन, कोरोना संक्रमण के खतरे से ऊपर भावनाओं का ज्वार फूटकर आंसूओं से निकल रहा था। चिता पर हंसराज का अंतिम बार चेहरा देखकर ही पत्नी, बच्चे और बहन लौटी।

जयपुर केआदर्श नगर मोक्षधाम में लकड़ियों से सजी चिता पर पॉलिथिन में लिपटे हंसराज कोआखिरी बारदेखने के लिए अजमेर से पत्नी और बच्चे पहुंचे। चिता के पास खड़ी होकर रो रही अपनी बड़ी बहन मीनाक्षी की गोद मेंसबसे छोटा भाईयह सब देख रहा था। लेकिन, वह इस दुख से अनजान था। वह कभी मां को देखता, कभी बहन को। यह दृश्य देखकर वहां मौजूद अन्य की आंखें भी भीग गईं।

हंसराज की चिता को तैयार कर रहे मोक्षधाम कर्मचारी दुर्गेश ने हाथ जोड़कर उनके परिजनों से विनती करते हुए धैर्य बंधाया। उन्हें संबल दिया। साथ ही दूर से ही खड़े होकर अंतिम दर्शन करने की बात कही।

भर्ती टिकट में गलत पता भरा होने से हंसराज के परिजनसे नहीं हो सका संपर्क

अजमेर के अराईं कस्बा निवासी हंसराज। (फाइल फोटो)

हंसराज 16 जून को पॉजिटिव होने पर अजमेर से रैफर होकर जयपुर आए। यहां 24 जून को प्रतापनगर स्थितआरयूएचएस में दम तोड़ा। भर्ती टिकट में पता गांव देवपुरी, किशनगढ़ लिखा था।जबकि वे देवपुरी,अराईं के रहने वाले थे। ऐसे में प्रताप नगर पुलिस दो दिन तक परिजन काे तलाशने में जुटी रही। फार्म में उनके ही मोबाइल नंबर रिश्तेदार के कॉलम में लिखे हुए थे।पुलिस स्टाफ ने शव की पहचान कर परिजनको सूचना देनी चाही तो भर्ती टिकट में लिखा पता गलत निकला। मोबाइल नंबर हंसराज के थे। वह फोन बंद हो चुका था।

जयपुर पहुंचने के बाद एसएमएस अस्पताल की मर्च्युरी के बाहर बदहवास हालत में हंसराज की पत्नी.. अब इन पर छह बेटियों और दो बेटों को पालने की जिम्मेदारी आ गई है। रिश्तेदारों का कहना था कि सरकार आर्थिक मदद करे, नौकरी दे तब परिवार का घर खर्च चल पाएगा।

अन्य रिश्तेदारों के नंबर नहीं थे। ऐसे में हंसराज का शव दो दिन तक एसएमएस अस्पताल की मर्च्युरी में लावारिस के जैसे पड़ा रहा।आखिरकार, प्रताप नगर थाने के सब इंस्पेक्टर सुंदरलाल औरहेडकांस्टेबल किशन सिंह नाग ने मोबाइल नंबरों के आधार पर पता जुटाया। तब मदनगंज किशनगढ़ के थानाप्रभारी ने देवपुरी गांव उनके इलाके में नहीं होना बताया। इसके बाद स्थानीय पुलिस ने अराईं कस्बे में संपर्क किया।

कोरोना संक्रमण और किडनी की बीमारी की वजह से जान गंवाने वाले अजमेर के हंसराज को उनके बड़े भाई शिवराज ने जयपुर में आदर्श नगर मोक्षधाम में मुखाग्नि दी। कुछ देर वहीं हाथ जोड़कर खड़े रहे।

तब हंसराज के परिजनका पता चला। 26 जून को सुबह पुलिस ने हंसराज के घर पहुंचकर बेटी मीनाक्षी औरउनकी पत्नी को सूचना दी। तब दोनों मां-बेटी, अपने छोटे भाई, मामा प्रभुलाल, ताऊ शिवराज और बुआ समेत कार किराए पर लेकर देर शाम को जयपुर पहुंचे। इसके बाद हेडकांस्टेबल किशनलाल ने कागजीप्रक्रिया पूरी कर शव परिजनको सुपुर्द किया।इसके बाद हंसराज का अंतिम संस्कार किया जा सका।

आदर्श नगर मोक्षधाम के बाहर हंसराज की पत्नी ने उन्हें बाहर से ही हाथ जोड़कर अंतिम विदाई दी। इस दौरान अपनी बड़ी बहन मीनाक्षी की गोद में मासूम भाई एकटक अपनी मां को देखता रहा। इसके बाद पति का चेहरा देखने के लिए पत्नी चिता तक चली गई। वहां फूट फूटकर रोने लगी।

चार साल से किड़नी खराब थी, डायलिसिस करवाने गए तब कोरोना पॉजिटिव हो गए
हंसराज की बड़ी बेटी मीनाक्षी ने बताया कि पापा कोचार साल पहले किडनी खराब होने के बारे में बताया गया था।उनका सप्ताह में तीन बार डायलिसिस होता था। लॉकडाउन में भी उपचार जारी रहा। मीनाक्षी के मुताबिक, आखिरी बार पापा 10 जून को अराईं में ही एक नर्सिंग होम में डायलिसिस के लिए गए थे। लेकिन, कोरोना संक्रमण की वजह से वह नर्सिंग होम बंद हो गया।

इसकी वजह से पापा का 13 जून को डायलिसिस नहीं हो सका। वे 14 जून को किशनगढ़ चले गए। वहां से उन्हें अजमेर रैफर कर दिया। वहीं, कोरोना पॉजिटिव होने पर उन्हें 16 जून को जयपुर में आरयूएचएस रैफर कर भर्ती करवाया गया। यहां वे करीब 7 दिन भर्ती रहे। लेकिन, डायलिसिस नहीं हो सका। इसी बीच 16 जून से 24 जून तक हंसराज की अपनी बेटी मीनाक्षी, उनके साले प्रभुलाल की मोबाइल फोन पर बातचीत होती रही। तब हंसराज ने कहा यहां किसी को मिलने नहीं देते हैं। इसलिए आने की जरूरत नहीं है। पापा अजमेर में गांव के आसपास मजदूरी कर परिवार के नौ सदस्यों की जिम्मेदारी उठा रहेथे।

पापा ने आखिरी बार कहा था- मैं दो-तीन दिन बाद घर आऊंगा, क्या पता था मौत की खबर आएगी

पापा से अंतिम बार 24 जून को सुबह फोन पर बात की, तब बोले- मैं ठीक हूं, दो तीन दिन में घर आ जाऊंगा... यह कहते हुए आंखों से बड़ी बेटी मीनाक्षी की रूलाई फूट पड़ी।

मीनाक्षी के मुताबिक, आखिरी बात 24 जून दोपहर करीब 12 बजे पापा से फोन पर बात हुई तो बोले- कल-परसों मेरा डायलिसिस होगा। इसके दो तीन दिन बाद मैं घर आ जाऊंगा। सब सही हो जाएगा। इसके बाद हंसराज की उसी दिन मौत हो गई। वहीं, परिजनका कहना है कि उन्होंने शाम को फोन किया तो कुछ देर तो घंटी गई। इसके बाद मोबाइल फोन बंद आने लगा। मीनाक्षी ने 25 जून को पंचायत में बातचीत की तो जवाब मिला कि तुम्हारे पापा ठीक है। वहां डॉक्टर इलाज कर रहे हैं। मोबाइल पर बातचीत नहीं करवा सकते।

आदर्श नगर मोक्षधाम में चिता पर लकड़ी लगाने में कर्मचारी के साथ जुटे प्रताप नगर थाने के हेडकांस्टेबल किशन सिंह, ये पिछले तीन महीने से सब इंस्पेक्टर सुंदरलाल के साथ कोरोना पॉजिटिव मृतकों के दाह संस्कार करवा रहे हैं। इन दोनों ने मिलकर ही हंसराज के परिजनों का पता लगाकर सूचना पहुंचाई।

पापा की मौत का उन्हें 26 जून को पता चला। जब स्थानीय पुलिस ने उन्हें इसकी सूचना दी। इसके पहले दो दिन तक वे पापा का मोबाइल बंद होने से परेशान होते रहे। घबराहट भी हुई। लेकिन, पापा उसी दिन हमारा साथ छोड़ गए। ये सपने में भी नहीं सोचा था। उनके रिश्तेदारों का कहना है कि संकट की इस घड़ी में हंसराज के बच्चों औरपत्नी को सरकारी सहायता मिलनी चाहिए। ताकि वे घर खर्च चला सकें।



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कोरोना संक्रमण की वजह से 24 जून को जान गंवाने वाले अजमेर के अराईं कस्बा निवासी हंसराज की चिता के सामने हाथ जोड़कर ढोक लगाते हुए अंतिम विदाई देती उनकी पत्नी... इस बीच उनकी ननद और बेटी संभाले रही।


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