दिल्ली के आनंद विहार रेलवे स्टेशन पर महीनों बाद जो रौनक लौटी थी, वह एक बार फिर से थम गई है। लोहे के जो चक्के लॉकडाउन खुलते ही सरपट दौड़ने लगे थे, फिर से ठिठक कर ठहर गए हैं। यह ठहराव दिल्ली में लगातार बढ़ते कोरोना संक्रमण के चलते आया है।
दिल्ली में कोरोना के मामले इतनी तेजी से बढ़ रहे हैं कि अस्पतालों में जगह कम पड़ने लगी हैं। लिहाजा सरकार ने फैसला लिया है कि अब संक्रमितों को ट्रेन के डिब्बों में रखा जाए। इसके लिए आनंद विहार रेलवे स्टेशन को ‘कोविड फैसिलिटी’ में तब्दील कर दिया गया है और यहां खड़े ट्रेन के डिब्बों को ‘आईसोलेशन वार्ड’ बना दिया गया है।
15 जून से इस रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की आवाजाही पूरी तरह से बंद कर दी गई है। स्टेशन परिसर सील हो चुका है और पुलिस बैरिकेड से आगे रेलवे कर्मचारियों के अलावा किसी को भी जाने की अनुमति नहीं है। फिलहाल यहां कोरोना संक्रमितों का आना शुरू नहीं हुआ है, लेकिन इसकी तैयारी लगभग पूरी कर ली गई है।
आनंद विहार रेलवे स्टेशन पर कुल सात प्लेटफॉर्म हैं, जहां ट्रेन के कुल 171 डिब्बे खड़े हैं। यहां के स्टेशन सुपरिटेंडेंट चौधरी ओम कुमार बताते हैं, ‘प्लेटफॉर्म पर खड़े इन 171 डिब्बों के अलावा 96 डिब्बे वॉशिंग लाइन यार्ड में भी तैयार खड़े हैं। अगर प्लेटफॉर्म पर खड़े डिब्बे पूरे भर जाते हैं तो फिर वॉशिंग लाइन यार्ड पर खड़े डिब्बों में भी कोरोना संक्रमितों को ठहराया जा सकता है। इन डिब्बों में कुल 4200 संक्रमित लोगों के रहने की व्यवस्था हो सकती है।’
ओम कुमार यह भी बताते हैं कि ट्रेन के डिब्बों को आईसोलेशन वार्ड में बदलने की प्रक्रिया मार्च से ही शुरू हो चुकी थी। ऐसे कई डिब्बों को यहां तैयार करने के बाद अन्य राज्यों में भी भेजा गया है। लेकिन ये पहली बार ही है कि पूरे स्टेशन को ही कोविड फैसिलिटी में तब्दील किया जा रहा है।
रेलवे स्टेशन पर जहां यात्रियों के लिए निर्देश लिखे होते थे।वहीं अब कोरोना संक्रमितों के लिए निर्देश लिखे दिखाई देते हैं। जहां अमूमन डाइनिंग रूम लिखा होता था वहां अब डॉयनिंगरूम (जहां पीपीई किट पहना जाता है) लिखा दिखता है, डिब्बों पर जहां ट्रेन का नाम या गंतव्य लिखा होता था वहां अब ‘आईसोलेशन कोच’ लिखा दिखता है और जहां यात्रियों के नाम का चार्ट चिपका होता था, वहां अब मेडिकल स्टाफ के लिए निर्देश चिपका दिए गए हैं।
प्लेटफॉर्म पर खड़े डिब्बों की कतार में सिर्फ पहला और आखिरी डिब्बा ही एसी कोच है और यह मरीजों के लिए नहीं बल्कि मेडिकल स्टाफ के लिए है। मरीजों के लिए स्लीपर और जनरल के डिब्बे तैयार किए गए हैं। ऐसे हर डिब्बे में कुल नौ केबिन हैं जिनमें से एक केबिन मेडिकल स्टाफ के लिए अलग किया गया है और बाकी आठ केबिन मरीजों के लिए। रेलवे अधिकारियों का कहना है कि हर केबिन में दो मरीजों को रखा जाना है लिहाजा एक डिब्बे मेंकुल 16 मरीज रह सकते हैं।
बीते 34 साल से रेलवे में कारपेंटर का काम करने वाले महेश सिंह बताते हैं, ‘इन डिब्बों को तैयार करने में सबसे मुश्किल काम था मिडिल बर्थ को निकालना। ये इस कदर जाम हो चुकी थी कि कई बर्थ तो तोड़कर निकालनी पड़ी हैं। अब इन्हें जब दोबारा लगाया जाएगा तब भी यह काम इतना ही मुश्किल होगा।’
मिडिल बर्थ हटाने के अलावा इन डिब्बों को आईसोलेशन कोच बनाने के लिए और भी कई बदलाव किए गए हैं। हर डिब्बे में एक शौचालय को बदलकर स्नानघर बनाया गया है, मच्छर-मक्खियों से बचाव के लिए खिड़कियों पर जाली लगाई गई हैं, हर डिब्बेमें मरीजों के केबिन को मेडिकल स्टाफ के केबिन से अलग करने के लिए प्लास्टिक शीट के पर्दे लगाए गए हैं, हर केबिन में तीन डस्टबिन और हर कोच में दो ऑक्सीजन सिलेंडर भी रख दिए गए हैं।
स्टेशन सुपरिटेंडेंट ओम कुमार कहते हैं, ‘हमारी तैयारी पूरी हो चुकी हैं। 15 जून को यात्रियों का आना बंद हुआ और दो दिन के अंदर हमारे स्टाफ ने युद्ध स्तर पर काम करते हुए सभी तैयारियां पूरी कर ली। इसके लिए दिन-रात हमारे स्टाफ ने मेहनत की है। अब सरकार के ऊपर है कि वो कब ये मरीजों को यहां भेजते हैं।’
यहां आने वाले मरीजों के लिए भोजन की व्यवस्था कैसे होगी, इसकी फिलहाल यहां कोई तैयारी नहीं दिखती। लेकिन अधिकारी बताते हैं कि जब मरीजों का आना शुरू होगा तो आईआरसीटीसी इसकी व्यवस्था कर देगा। बाकी मूलभूत व्यवस्थाएं यहां पूरी कर ली गई हैं। रेलवे पुलिस के अधिकारी भी इन व्यवस्थाओं का लगातार निरीक्षण कर रहे हैं।
सभी तैयारियां पूरी होने के बाद भी यहां काम कर रहे लगभग सभी लोगों के मन में एक सवाल बार-बार उठ रहा है। यह सवाल है कि आखिर इतनी गर्मी में कोई भी ट्रेन के इन डिब्बों में कैसे रह सकेगा। दिल्ली में जब पारा 42-43 डिग्री तक पहुंच रहा है तब तपती धूप में खड़े ये लोहे के डिब्बे किसी तंदूर जैसे तप रहे हैं। ऐसे में तपती लोहे की चद्दर से लटकते छोटे-छोटे ट्रेन के पंखे भी लू जैसी गर्म हवा फेंक रहे हैं।
रेलवे में मेकैनिक का काम करने वाले सोनू कहते हैं, ‘लोग यहां बीमारी से बचने आएंगे या गर्मी से मरने? इन खड़े डिब्बों के अंदर दस मिनट रुकना भी मुश्किल हो रहा है। पूरा दिन धूप में खड़े इन डिब्बों में लोग कैसे रह सकेंगे पता नहीं।’ मरीजों के अलावा मेडिकल स्टाफ के लिए भी यहां रहना किसी चुनौती से कम नहीं होगा, क्योंकि उन्हें तो पीपीई किट पहने हुए यहां काम करना होगा। हालांकि मेडिकल स्टाफ के पास एसी कोच में जाकर सुस्ताने का विकल्प भी होगा जो कि मरीजों के पास नहीं है।
स्टेशन पर काम कर रहे रेलवे स्टाफ के लोग मानते हैं कि ट्रेन के डिब्बों को आईसोलेशन कोच बनाने से बेहतर प्लेटफॉर्म पर मरीजों की व्यवस्था करना शायद बेहतर विकल्प होता। डब्बों की तुलना में प्लेटफॉर्म ज्यादा खुली और हवादार जगह है। ऐसे में डिब्बों का इस्तेमाल शौचालय और स्नान जैसे कामों के लिए किया जा सकता था।
बहरहाल, ट्रेन के जिन डिब्बों में लोग इसलिए सवार हुआ करते थे कि वो यात्राएं कर सकें और अपनों तक पहुंच सकें। अब उन्हीं डिब्बों में लोग इसलिए सवार होंगे कि वो यात्राओं से बच सकें और अपनों से दूर रहें। लेकिन, ट्रेन के इन डिब्बों का काम आज भी वही है जो हमेशा से रहा है: सवारियों को सुरक्षित उनके घर पहुंचा देना। इसी काम के लिए कभी ये डिब्बे दिन-रात पटरियों पर दौड़ा करते थे और अब इसी काम के लिए चुपचाप प्लेटफॉर्म पर खड़े हो गए हैं। ताकि इनमें सवार होने वाले कोरोना संक्रमित 14-15 दिन बाद सुरक्षित अपने घर लौट सकें।
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